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The Holy Bible - व्यवस्थाविवरण (Deuteronomy)

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व्यवस्थाविवरण (Deuteronomy)

Chapter 1

1. जो बातें मूसा ने यरदन के पार जंगल में, अर्यात्‌ सूप के सामने के अराबा में, और पारान और तोपेल के बीच, और लाबान हसरोत और दीजाहाब में, सारे इस्त्राएलियोंसे कहीं वे थे हैं। 
2. होरेब से कादेशबर्ने तक सेइर पहाड़ का मार्ग ग्यारह दिन का हैं। 
3. चालीसवें वर्ष के ग्यारहवें महीने के पहिले दिन को जो कुछ यहोवा ने मूसा को इस्त्राएलियोंसे कहने की आज्ञा दी यी, उसके अनुसार मूसा उन से थे बातें कहने लगा। 
4. अर्यात्‌ जब मूसा ने ऐमोरियोंके राजा हेशबोनवासी सीहोन और बाशान के राजा अशतारोतवासी ओग को एद्रेई में मार डाला, 
5. उसके बाद यरदन के पार मोआब देश में वह व्यवस्या का विवरण योंकरने लगा, 
6. कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने होरेब के पास हम से कहा या, कि तुम लोगोंको इस पहाड़ के पास रहते हुए बहुत दिन हो गए हैं; 
7. इसलिथे अब यहॉ से कूच करो, और एमोरियोंके पहाड़ी देश को, और क्या अराबा में, क्या पहाड़ोंमें, क्या नीचे के देश में, क्या दक्खिन देश में, क्या समुद्र के तीर पर, जितने लोग एमोरियोंके पास रहते हैं उनके देश को, अर्यात्‌ लबानोन पर्वत तक और परात नाम महानद तक रहनेवाले कनानियोंके देश को भी चले जाओ। 
8. सुनो, मैं उस देश को तुम्हारे साम्हने किऐ देता हॅू; जिस देश के विषय यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तुम्हारे पितरोंसे शपय खाकर कहा या, कि मैं इसे तुम को और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंश को दूंगा, उसको अब जाकर अपके अधिक्कारने में कर लो। 
9. फिर उसी समय मैं ने तुम से कहा, कि मैं तुम्हारा भार अकेला नहीं सह सकता; 
10. क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को यहॉ तक बढ़ाया है, कि तुम गिनती में आज आकाश के तारोंके समान हो गथे हो। 
11. तुम्हारे पितरोंका परमेश्वर तुम को हजारगुणा और भी बढ़ाए, और अपके वचन के अनुसार तुम को आशीष भी देता रहे। 
12. परन्तु तुम्हारे जंजाल, और भार, और फगड़े रगड़े को मैं अकेला कहॉ तक सह सकता हॅू। 
13. सो तुम अपके एक एक गोत्र में से बुद्धिमान और समझदार और प्रसिद्ध पुरूष चुन लो, और मैं उन्हें तुम पर मुखिया ठहराऊॅगा। 
14. इसके उत्तर में तुम ने मुझ से कहा, जो कुछ तू हम से कहता है उसका करना अच्छा है। 
15. इसलिथे मैं ने तुम्हारे गोत्रोंके मुख्य पुरूषोंको जो बुद्धिमान और प्रसिद्ध पुरूष थे चुनकर तुम पर मुखिया नियुक्त किया, अर्यात्‌ हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास, और दस-दस के ऊपर प्रधान और तुम्हारे गोत्रोंके सरदार भी नियुक्त किए। 
16. और उस समय मैं ने तुम्हारे न्यायियोंको आज्ञा दी, कि तुम अपके भाइयोंके मुकद्दमे सुना करो, और उनके बीच और उनके पड़ोसियोंऔर परदेशियोंके बीच भी धर्म से न्याय किया करो। 
17. न्याय करते समय किसी का पझ न करना; जैसे बड़े की वैसे ही छोटे मनुष्य की भी सुनना; किसी का मुॅह देखकर न डरना, क्योंकि न्याय परमेश्वर का काम है; और जो मुकद्दमा तुम्हारे लिथे कठिन हो, वह मेरे पास ले आना, और मैं उसे सुनूंगा। 
18. और मैं ने उसी समय तुम्हारे सारे कर्त्तव्य कर्म तुम को बता दिए।। 
19. और हम होरेब से कूच करके अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार उस सारे बड़े और भयानक जंगल में होकर चले, जिसे तुम ने एमोरियोंके पहाड़ी देश के मार्ग में देखा, और हम कादेशबर्ने तक आए। 
20. वहाँ मैं ने तुम से कहा, तुम एमोरियोंके पहाड़ी देश तक आ गए हो जिसको हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है। 
21. देखो, उस देश को तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साम्हने किए देता है, इसलिऐ अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उस पर चढ़ो, और उसे अपके अधिक्कारने में ले लो; न तो तुम डरो और न तुम्हारा मन कच्चा हो। 
22. और तुम सब मेरे पास आकर कहने लगे, हम अपके आगे पुरूषोंको भेज देंगे, जो उस देश का पता लगाकर हम को यह सन्देश दें, कि कौन सा मार्ग होकर चलना होगा और किस किस नगर में प्रवेश करना पकेगा? 
23. इस बात से प्रसन्न होकर मैं ने तुम में से बारह पुरूष, अर्यात्‌ गोत्र पीछे एक पुरूष चुन लिया; 
24. और वे पहाड़ पर चढ़ गए, और एशकोल नाम नाले को पहुँचकर उस देश का भेद लिया। 
25. और उस देश के फलोंमें से कुछ हाथ में लेकर हमारे पास आए, और हम को यह सन्देश दिया, कि जो देश हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है वह अच्छा है। 
26. तौभी तुम ने वहाँ जाने से नाह किया, किन्तु अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरूद्ध होकर 
27. अपके अपके डेरे में यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, कि यहोवा हम से बैर रखता है, इस कारण हम को मिस्र देश से निकाल ले आया है, कि हम को एमोरियोंके वश में करके सत्यनाश कर डाले। 
28. हम किधर जाएँ? हमारे भाइयोंने यह कहके हमारे मन को कच्चा कर दिया है, कि वहाँ के लोग हम से बड़े और लम्बे हैं; और वहाँ के नगर बड़े बड़े हैं, और उनकी शहरपनाह आकाश से बातें करती हैं; और हम ने वहाँ अनाकवंशियोंको भी देखा है। 
29. मैं ने तुम से कहा, उनके कारण त्रास मत खाओ और न डरो। 
30. तुम्हारा परमेश्वर यहोवा जो तुम्हारे आगे आगे चलता है वह आप तुम्हारी ओर से लड़ेगा, जैसे कि उस ने मिस्र में तुम्हारे देखते तुम्हारे लिथे किया; 
31. फिर तुम ने जंगल में भी देखा, कि जिस रीति कोई पुरूष अपके लड़के को उठाए चलता है, उसी रीति हमारा परमेश्वर यहोवा हम को इस स्यान पर पहुँचने तक, उस सारे मार्ग में जिस से हम आए हैं, उठाथे रहा। 
32. इस बात पर भी तुम ने अपके उस परमेश्वर यहोवा पर विश्वास नहीं किया, 
33. जो तुम्हारे आगे आगे इसलिथे चलता रहा, कि डेरे डालने का स्यान तुम्हारे लिथे ढूंढ़े, और रात को आग में और दिन को बादल में प्रगट होकर चला, ताकि तुम को वह मार्ग दिखाए जिस से तुम चलो। 
34. परन्तु तुम्हारी वे बातें सुनकर यहोवा का कोप भड़क उठा, और उस ने यह शपय खाई, 
35. कि निश्चय इस बुरी पीढ़ी के मनुष्योंमें से एक भी उस अच्छे देश को देखने न पाऐगा, जिसे मैं ने उनके पितरोंको देने की शपय खाई यी। 
36. यपुन्ने का पुत्र कालेब ही उसे देखने पाऐगा, और जिस भूमि पर उसके पाँव पके हैं उसे मैं उसको और उसके वंश को भी दूंगा; क्योंकि वह मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिया है। 
37. और मुझ पर भी यहोवा तुम्हारे कारण क्रोधित हुआ, और यह कहा, कि तू भी वहाँ जाने न पाएगा; 
38. नून का पुत्र यहोशू जो तेरे साम्हने खड़ा रहता है, वह तो वहाँ जाने पाएगा; सो तू उसको हियाव दे, क्योंकि उस देश को इस्राएलियोंके अधिक्कारने में वही कर देगा। 
39. फिर तुम्हारे बालबच्चे जिनके विषय में तुम कहते हो, कि थे लूट में चले जाएंगे, और तुम्हारे जो लड़केबाले अभी भले बुरे का भेद नहीं जानते, वे वहाँ प्रवेश करेंगे, और उनको मैं वह देश दूँगा, और वे उसके अधिक्कारनेी होंगे। 
40. परन्तु तुम लोग घूमकर कूच करो, और लाल समुद्र के मार्ग से जंगल की ओर जाओ। 
41. तब तुम ने मुझ से कहा, हम ने यहोवा के विरूद्व पाप किया हैं; अब हम अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार चढ़ाई करेंगे और लड़ेंगे। तब तुम अपके अपके हयियार बान्धकर पहाड़ पर बिना सोचे समझे चढ़ने को तैयार हो गए। 
42. तब यहोवा ने मुझ से कहा, उन से कह दे, कि तुम मत चढ़ो, और न लड़ो; क्योंकि मैं तुम्हारे मध्य में नहीं हँू; कहीं ऐसा न हो कि तुम अपके शत्रुओं से हार जाओ। 
43. यह बात मैं ने तुम से कह दी, परन्तु तुम ने न मानी; किन्तु ढिठाई से यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन करके पहाड़ पर चढ़ गए। 
44. तब उस पहाड़ के निवासी एमोरियोंने तुम्हारा साम्हना करने को निकलकर मधुमक्खियोंकी नाई तुम्हारा पीछा किया, और सेईर देश के होर्मा तक तुम्हें मारते मारते चले आए। 
45. तब तुम लौटकर यहोवा के साम्हने रोने लगे; परन्तु यहोवा ने तुम्हारी न सुनी, न तुम्हारी बातोंपर कान लगाया। 
46. और तुम कादेश में बहुत दिनोंतक पके रहे, यहाँ तक कि एक जुग हो गया।।

Chapter 2

1. तब उस आज्ञा के अनुसार, जो यहोवा ने मुझ को दी यी, हम ने घूमकर कूच किया, और लाल समुद्र के मार्ग के जंगल की ओर चले; और बहुत दिन तक सेईर पहाड़ के बाहर बाहर चलते रहे। 
2. तब यहोवा ने मुझ से कहा, 
3. तुम लोगोंको इस पहाड़ के बाहर बाहर चलते हुए बहुत दिन बीत गए, अब घूमकर उत्तर की ओर चलो। 
4. और तू प्रजा के लोगोंको मेरी यह आज्ञा सुना, कि तुम सेईर के निवासी अपके भाई एसावियोंके सिवाने के पास होकर जाने पर हो; और वे तुम से डर जाएँगे। इसलिथे तुम बहुत चौकस रहो; 
5. उन्हें न छेड़ना; क्योंकि उनके देश में से मैं तुम्हें पाँव धरने का ठौर तक न दूँगा, इस कारण कि मैं ने सेईर पर्वत एसावियोंके अधिक्कारने में कर दिया हैं। 
6. तुम उन से भोजन रूपके से मोल लेकर खा सकोगे, और रूपया देकर कुंओं से पानी भरके पी सकोगे। 
7. क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे हाथोंके सब कामोंके विषय तुम्हें आशीष देता आया है; इस भारी जंगल में तुम्हारा चलना फिरना वह जानता हैं; इन चालीस वर्षो में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे संग संग रहा है; और तुम को कुछ घटी नहीं हुई। 
8. योंहम सेईर निवासी और अपके भाई एसावियोंके पास से होकर, अराबा के मार्ग, और एलत और एस्योनगेबेर को पीछे छोड़कर चलें।। फिर हम मुड़कर मोआब के जंगल के मार्ग से होकर चले। 
9. और यहोवा ने मुझ से कहा, मोआबियोंको न सताना और न लड़ाई छेड़ना, क्योंकि मैं उनके देश में से कुछ भी तेरे अधिक्कारने में न कर दूँगा क्योंकि मैं ने आर को लूतियोंके अधिक्कारने में किया है। 
10. (अगले दिनोंमें वहाँ एमी लोग बसे हुए थे, जो अनाकियोंके समान बलवन्त और लम्बे लम्बे और गिनती में बहुत थे; 
11. और अनाकियोंकी नाई वे भी रपाई गिने जाते थे, परन्तु मोआबी उन्हें एमी कहते हैं। 
12. और अगले दिनोंमें सेईर में होरी लोग बसे हुए थे, परन्तु एसावियोंने उनको उस देश से निकाल दिया, और अपके साम्हने से नाश करके उनके स्यान पर आप बस गए; जैसे कि इस्राएलियोंने यहोवा के दिथे हुए अपके अधिक्कारने के देश में किया।) 
13. अब तुम लोग कूच करके जेरेद नदी के पार जाओ; तब हम जेरेद नदी के पार आए। 
14. और हमारे कादेशबर्ने को छोड़ने से लेकर जेरेद नदीे पार होने तक अड़तीस वर्ष बीत गए, उस बीच में यहोवा की शपय के अनुसार उस पीढ़ी के सब योद्धा छावनी में से नाश हो गए। 
15. और जब तक वे नाश न हुए तब तक यहोवा का हाथ उन्हें छावनी में से मिटा डालने के लिथे उनके विरूद्ध बढ़ा ही रहा 
16. जब सब योद्धा मरते मरते लोगोंके बीच में से नाश हो गए, 
17. तब यहोवा ने मुझ से कहा, 
18. अब मोआब के सिवाने, अर्यात आर को पार कर; 
19. और जब तू अम्मोनियोंके साम्हने जाकर उनके निकट पहुँचे, तब उनको न सताना और न छेड़ना, क्योंकि मैं अम्मोनियोंके देश में से कुछ भी तेरे अधिक्कारने में न करूँगा, क्योंकि मैं ने उसे लूसियोंके अधिक्कारने में कर दिया है। 
20. (वह देश भी रपाइयोंका गिना जाता या, क्योंकि अगले दिनोंमें रपाई, जिन्हें अम्मोनी जमजुम्मी कहते थे, वे वहाँ रहते थे; 
21. वे भी अनाकियोंके समान बलवान और लम्बे लम्बे और गिनती में बहुत थे; परन्तु यहोवा ने उनको अम्मोनियोंके साम्हने से नाश कर डाला, और उन्होंने उनको उस देश से निकाल दिया, और उनके स्यान पर आप रहने लगे; 
22. जैसे कि उस ने सेईर के निवासी एसावियोंके साम्हने से होरियोंको नाश किया, और उन्होंने उनको उस देश से निकाल दिया, और आज तक उनके स्यान पर वे आप निवास करते हैं। 
23. वैसा ही अव्वियोंको, जो अज्जा नगर तक गाँवोंमें बसे हुए थे, उनको कप्तोरियोंने जो कप्तोर से निकले थे नाश किया, और उनके स्यान पर आप रहने लगे।) 
24. अब तुम लोग उठकर कूच करो, और अर्नोन के नाले के पार चलो; सुन, मैं देश समेत हेशबोन के राजा एमोरी सीहोन को तेरे हाथ में कर देता हूँ; इसलिथे उस देश को अपके अधिक्कारने में लेना आरम्भ करो, और उस राजा से युद्ध छेड़ दो। 
25. और जितने लोग धरती पर रहते हैं उन सभोंके मन में मैं आज ही के दिन से तेरे कारण डर और यरयराहट समवाने लगूंगा; वे तेरा समाचार पाकर तेरे डर के मारे कांपेंगे और पीड़ित होंगे।। 
26. और मैं ने कदेमोत नाम जंगल से हेशबोन के राजा सीहोन के पास मेल की थे बातें कहने को दूत भेजे, 
27. कि मुझे अपके देश में से होकर जाने दे; मैं राजपय पर चला जाऊँगा, और दहिने और बांए हाथ न मुड़ूँगा। 
28. तू रूपया लेकर मेरे हाथ भोजनवस्तु देना कि मैं खाऊं, और पानी भी रूपया लेकर मुझ को देना कि मैं पीऊं; केवल मुझे पांव पांव चले जाने दे, 
29. जैसा सेईर के निवासी एसावियोंने और आर के निवासी मोआबियोंने मुझ से किया, वैसा ही तू भी मुझ से कर, इस रीति मैं यरदन पार होकर उस देश में पहुंचूंगा जो हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है। 
30. परन्तु हेशबोन के राजा सीहोन ने हम को अपके देश में से होकर चलने न दिया; क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने उसका चित्त कठोर और उसका मन हठीला कर दिया या, इसलिथे कि उसको तुम्हारे हाथ में कर दे, जैसा कि आज प्रकट है। 
31. और यहोवा ने मुझ से कहा, सुन, मैं देश समेत सीहोन को तेरे वश में कर देने पर हूँ; उस देश को अपके अधिक्कारने में लेना आरम्भ कर। 
32. तब सीहोन अपक्की सारी सेना समेत निकल आया, और हमारा साम्हना करके युद्ध करने को यहस तक चढ़ा आया। 
33. और हमारे परमेश्वर यहोवा ने उसको हमारे द्वारा हरा दिया, और हम ने उसको पुत्रोंऔर सारी सेना समेत मार डाला। 
34. और उसी समय हम ने उसके सारे नगर ले लिए, और एक एक बसे हुए नगर का स्त्रियोंऔर बालबच्चोंसमेत यहाँ तक सत्यनाश किया कि कोई न छूटा; 
35. परन्तु पशुओं को हम ने अपना कर लिया, और उन नगरोंकी लूट भी हम ने ले ली जिनको हम ने जीत लिया या। 
36. अर्नोन के नाले के छोरवाले अरोएर नगर से लेकर, गिलाद तक कोई नगर ऐसा ऊँचा न रहा जो हमारे साम्हने ठहर सकता या; क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा ने सभोंको हमारे वश में कर दिया। 
37. परन्तु हम अम्मोनियोंके देश के निकट, वरन यब्बोक नदी के उस पार जितना देश है, और पहाड़ी देश के नगर जहाँ जहाँ जाने से हमारे परमेश्वर यहोवा ने हम को मना किया या, वहाँ हम नहीं गए।

Chapter 3

1. तब हम मुड़कर बाशान के मार्ग से चढ़ चले; और बाशान का ओग नाम राजा अपक्की सारी सेना समेत हमारा साम्हना करने को निकल आया, कि एद्रेई में युद्ध करे। 
2. तब यहोवा ने मुझ से कहा, उस से मत डर; क्योंकि मैं उसको सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में किए देता हूँ; और जैसा तू ने हेशबोन के निवासी एमोरियोंके राजा सीहोन से किया है वैसा ही उस से भी करना। 
3. सो इस प्रकार हमारे परमेश्वर यहोवा ने सारी सेना समेत बाशान के राजा ओग को भी हमारे हाथ में कर दिया; और हम उसको यहाँ तक मारते रहे कि उन में से कोई भी न बच पाया। 
4. उसी समय हम ने उनके सारे नगरोंको ले लिया, कोई ऐसा नगर न रह गया जिसे हम ने उस से न ले लिया हो, इस रीति अर्गोब का सारा देश, जो बाशान में ओग के राज्य में या और उस में साठ नगर थे, वह हमारे वश में आ गया। 
5. थे सब नगर गढ़वाले थे, और उनके ऊंची ऊंची शहरपनाह, और फाटक, और बेड़े थे, और इनको छोड़ बिना शहरपनाह के भी बहुत से नगर थे। 
6. और जैसा हम ने हेशबोन के राजा सीहोन के नगरोंसे किया या वैसा ही हम ने इन नगरोंसे भी किया, अर्यात सब बसे हुए नगरोंको स्त्रियोंऔर बालबच्चोंसमेत सत्यानाश कर डाला। 
7. परन्तु सब घरेलू पशु और नगरोंकी लूट हम ने अपक्की कर ली। 
8. योंहम ने उस समय यरदन के इस पार रहनेवाले एमोरियोंके दोनोंराजाओं के हाथ से अर्नोन के नाले से लेकर हेर्मोन पर्वत तक का देश ले लिया। 
9. (हेर्मोन को सीदोनी लोग सिर्योन, और एमोरी लोग सनीर कहते हैं।) 
10. समयर देश के सब नगर, और सारा गिलाद, और सल्का, और एर्देई तक जो ओग के राज्य के नगर थे, सारा बाशान हमारे वश में आ गया। 
11. जो रपाई रह गए थे, उन में से केवल बाशान का राजा ओग रह गया या, उसकी चारपाई जो लोहे की है वह तो अम्मोनियोंके रब्बा नगर में पक्की है, साधारण पुरूष के हाथ के हिसाब से उसकी लम्बाई नौ हाथ की और चौड़ाई चार हाथ की है। 
12. जो देश हम ने उस समय अपके अधिक्कारने में ले लिया वह यह है, अर्यात अर्नोन के नाले के किनारेवाले अरोएर नगर से ले सब नगरोंसमेत गिलाद के पहाड़ी देश का आधा भाग, जिसे मैं ने रूबेनियोंऔर गादियोंको दे दिया, 
13. और गिलाद का बचा हुआ भाग, और सारा बाशान, अर्यात अर्गोब का सारा देश जो ओग के राज्य में या, इन्हें मैं ने मनश्शे के आधे गोत्र को दे दिया। (सारा बाशान तो रपाइयोंका देश कहलाता है। 
14. और मनश्शेई याईर ने गशूरियोंऔर माकावासियोंके सिवानोंतक अर्गोब का सारा देश ले लिया, और बाशान के नगरोंका नाम अपके नाम पर हब्बोत्याईर रखा, और वही नाम आज तक बना है।) 
15. और मैं ने गिलाद देश माकीर को दे दिया, 
16. और रूबेनियोंऔर गादियोंको मैं ने गिलाद से ले अर्नोन के नाले तक का देश दे दिया, अर्यात उस नाले का बीच उनका सिवाना ठहराया, और यब्बोक नदी तक जो अम्मोनियोंका सिवाना है; 
17. और किन्नेरेत से ले पिसगा की सलामी के नीचे के अराबा के ताल तक, जो खारा ताल भी कहलाता है, अराबा और यरदन की पूर्व की ओर का सारा देश भी मैं ने उन्हीं को दे दिया।। 
18. और उस समय मैं ने तुम्हें यह आज्ञा दी, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें यह देश दिया है कि उसे अपके अधिक्कारने में रखो; तुम सब योद्धा हयियारबन्द होकर अपके भाई इस्राएलियोंके आगे आगे पार चलो। 
19. परन्तु तुम्हारी स्त्रियाँ, और बालबच्चे, और पशु, जिन्हें मैं जानता हूँ कि बहुत से हैं, वह सब तुम्हारे नगरोंमें जो मैं ने तुम्हें दिए हैं रह जाएँ। 
20. और जब यहोवा तुम्हारे भाइयोंको वैसा विश्रम दे जैसा कि उस ने तुम को दिया है, और वे उस देश के अधिक्कारनेी हो जाएँ जो तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उन्हें यरदन पार देता है; तब तुम भी अपके अपके अधिक्कारने की भूमि पर जो मैं ने तुम्हें दी है लौटोगे। 
21. फिर मैं ने उसी समय यहोशू से चिताकर कहा, तू ने अपक्की आँखो से देखा है कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने इन दोनोंराजाओं से क्या क्या किया है; वैसा ही यहोवा उन सब राज्योंसे करेगा जिन में तू पार होकर जाएगा। 
22. उन से न डरना; क्योंकि जो तुम्हारी ओर से लड़नेवाला है वह तुम्हारा परमेश्वर यहोवा है।। 
23. उसी समय मैं ने यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की, कि हे प्रभु यहोवा, 
24. तू अपके दास को अपक्की महिमा और बलवन्त हाथ दिखाने लगा है; स्वर्ग में और पृय्वी पर ऐसा कौन देवता है जो तेरे से काम और पराक्रम के कर्म कर सके? 
25. इसलिथे मुझे पार जाने दे कि यरदन पारके उस उत्तम देश को, अर्यात उस उत्तम पहाड़ और लबानोन को भी देखने पाऊँ। 
26. परन्तु यहोवा तुम्हारे कारण मुझ से रूष्ट हो गया, और मेरी न सुनी; किन्तु यहोवा ने मुझ से कहा, बस कर; इस विषय में फिर कभी मुझ से बातें न करना। 
27. पिसगा पहाड़ की चोटी पर चढ़ जा, और पूर्व, पच्छिम, उत्तर, दक्खिन, चारोंओर दृष्टि करके उस देश को देख ले; क्योंकि तू इस यरदन के पार जाने न पाएगा। 
28. और यहोशू को आज्ञा दे, और उसे ढाढ़स देकर दृढ़ कर; क्योंकि इन लोगोंके आगे आगे वही पार जाऐगा, और जो देश तू देखेगा उसको वही उनका निज भाग करा देगा। 
29. तब हम बेतपोर के साम्हने की तराई में ठहरे रहे।।

Chapter 4

1. अब, हे इस्राएल, जो जो विधि और नियम मैं तुम्हें सिखाना चाहता हूं उन्हें सुन लो, और उन पर चलो; जिस से तुम जीवित रहो, और जो देश तुम्हारे पितरोंका परमेश्वर यहोवा तुम्हें देता है उस में जाकर उसके अधिक्कारनेी हो जाओ। 
2. जो आज्ञा मैं तुम को सुनाता हूं उस में न तो कुछ बढ़ाना, और न कुछ घटाना; तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की जो जो आज्ञा मैं तुम्हें सुनाता हूं उन्हें तुम मानना। 
3. तुम ने तो अपक्की आंखोंसे देखा है कि बालपोर के कारण यहोवा ने क्या क्या किया; अर्यात्‌ जितने मनुष्य बालपोर के पीछे हो लिथे थे उन सभोंको तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे बीच में से सत्यानाश कर डाला; 
4. परन्तु तुम जो अपके परमेश्वर यहोवा के साय लिपके रहे हो सब के सब आज तक जीवित हो। 
5. सुनो, मैं ने तो अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार तुम्हें विधि और नियम सिखाए हैं, कि जिस देश के अधिक्कारनेी होने जाते हो उस में तुम उनके अनुसार चलो। 
6. सो तुम उनको धारण करना और मानना; क्योंकि और देशोंके लोगोंके साम्हने तुम्हारी बुद्धि और समझ इसी से प्रगट होगी, अर्यात्‌ वे इन सब विधियोंको सुनकर कहेंगे, कि निश्चय यह बड़ी जाति बुद्धिमान और समझदार है। 
7. देखो, कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसका देवता उसके ऐसे समीप रहता हो जैसा हमारा परमेश्वर यहोवा, जब कि हम उस को पुकारते हैं? 
8. फिर कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसके पास ऐसी धर्ममय विधि और नियम हों, जैसी कि यह सारी व्यवस्या जिसे मैं आज तुम्हारे साम्हने रखता हूं? 
9. यह अत्यन्त आवश्यक है कि तुम अपके विषय में सचेत रहो, और अपके मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपक्की आंखोंसे देखीं उनको भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिथे तुम्हारे मन से जाती रहे; किन्तु तुम उन्हें अपके बेटोंपोतोंको सिखाना। 
10. विशेष करके उस दिन की बातें जिस में तुम होरेब के पास अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े थे, जब यहोवा ने मुझ से कहा या, कि उन लोगोंको मेरे पास इकट्ठा कर कि मैं उन्हें अपके वचन सुनाऊं, जिस से वे सीखें, ताकि जितने दिन वे पृय्वी पर जीवित रहें उतने दिन मेरा भय मानते रहें, और अपके लड़के बालोंको भी यही सिखाएं। 
11. तब तुम समीप जाकर उस पर्वत के नीचे खड़े हुए, और वह पहाड़ आग से धधक रहा या, और उसकी लौ आकाश तक पहुंचक्की यी, और उसके चारोंओर अन्धिक्कारनेा, और बादल, और घोर अन्धकार छाया हुआ या। 
12. तक यहोवा ने उस आग के बीच में से तुम से बातें की; बातोंका शब्द तो तुम को सुनाई पड़ा, परन्तु कोई रूप न देखा; केवल शब्द ही शब्द सुन पड़ा। 
13. और उस ने तुम को अपक्की वाचा के दसोंवचन बताकर उनके मानने की आज्ञा दी; और उन्हें पत्यर की दो पटियाओं पर लिख दिया। 
14. और मुझ को यहोवा ने उसी समय तुम्हें विधि और नियम सिखाने की आज्ञा दी, इसलिथे कि जिस देश के अधिक्कारनेी होने को तुम पार जाने पर हो उस में तुम उनको माना करो। 
15. इसलिथे तुम अपके विषय में बहुत सावधान रहना। क्योंकि जब यहोवा ने तुम से होरेब पर्वत पर आग के बीच में से बातें की तब तुम को कोई रूप न देख पड़ा,
16. कहीं ऐसा न हो कि तुम बिगड़कर चाहे पुरूष चाहे स्त्री के, 
17. चाहे पृय्वी पर चलनेवाले किसी पशु, चाहे आकाश में उड़नेवाले किसी पक्की के, 
18. चाहे भूमि पर रेंगनेवाले किसी जन्तु, चाहे पृय्वी के जल में रहनेवाली किसी मछली के रूप की कोई मूत्तिर् खोदकर बना लो, 
19. वा जब तुम आकाश की ओर आंखे उठाकर, सूर्य, चंद्रमा, और तारोंको, अर्यात्‌ आकाश का सारा तारागण देखो, तब बहककर उन्हें दण्डवत्‌ करके उनकी सेवा करने लगो जिनको तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने धरती पर के सब देशवालोंके लिथे रखा है। 
20. और तुम को यहोवा लोहे के भट्ठे के सरीखे मिस्र देश से निकाल ले आया है, इसलिथे कि तुम उसकी प्रजारूपी निज भाग ठहरो, जैसा आज प्रगट है। 
21. फिर तुम्हारे कारण यहोवा ने मुझ से क्रोध करके यह शपय खाई, कि तू यरदन पार जाने न पाएगा, और जो उत्तम देश इस्राएलियोंका परमेश्वर यहोवा उन्हें उनका निज भाग करके देता है उस में तू प्रवेश करने न पाएगा। 
22. किन्तु मुझे इसी देश में मरना है, मैं तो यरदन पार नहीं जा सकता; परन्तु तुम पार जाकर उस उत्तम देश के अधिक्कारनेी हो जाओगे। 
23. इसलिथे अपके विषय में तुम सावधान रहो, कहीं ऐसा न हो कि तुम उस वाचा को भूलकर, जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम से बान्धी है, किसी और वस्तु की मूत्तिर् खोदकर बनाओ, जिसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को मना किया है। 
24. क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा भस्म करनेवाली आग है; वह जल उठनेवाला परमेश्वर है।। 
25. यदि उस देश में रहते रहते बहुत दिन बीत जाने पर, और अपके बेटे-पोते उत्पन्न होने पर, तुम बिगड़कर किसी वस्तु के रूप की मूतिर् खोदकर बनाओ, और इस रीति से अपके परमेश्वर यहोवा के प्रति बुराई करके उसे अप्रसन्न कर दो, 
26. तो मैं आज आकाश और पृय्वी को तुम्हारे विरूद्ध साझी करके कहता हूं, कि जिस देश के अधिक्कारनेी होने के लिथे तुम यरदन पार जाने पर हो उस में तुम जल्दी बिल्कुल नाश हो जाओगे; और बहुत दिन रहने न पाओगे, किन्तु पूरी रीति से नष्ट हो जाओगे। 
27. और यहोवा तुम को देश देश के लोगोंमें तितर बितर करेगा, और जिन जातियोंके बीच यहोवा तुम को पहुंचाएगा उन में तुम योड़े ही से रह जाओगे। 
28. और वहां तुम मनुष्य के बनाए हुए लकड़ी और पत्यर के देवताओं की सेवा करोगे, जो न देखते, और न सुनते, और न खाते, और न सूंघते हैं। 
29. परन्तु वहां भी यदि तुम अपके परमेश्वर यहोवा को ढूंढ़ोगे, तो वह तुम को मिल जाएगा, शर्त यह है कि तुम अपके पूरे मन से और अपके सारे प्राण से उसे ढूंढ़ो। 
30. अन्त के दिनोंमें जब तुम संकट में पड़ो, और थे सब विपत्तियां तुम पर आ पकेंगी, तब तुम अपके परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो और उसकी मानना; 
31. क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा दयालु ईश्वर है, वह तुम को न तो छोड़ेगा और न नष्ट करेगा, और जो वाचा उस ने तेरे पितरोंसे शपय खाकर बान्धी है उसको नहीं भूलेगा। 
32. और जब से परमेश्वर ने मनुष्य हो उत्पन्न करके पृय्वी पर रखा तब से लेकर तू अपके उत्पन्न होने के दिन तक की बातें पूछ, और आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक की बातें पूछ, क्या ऐसाी बड़ी बात कभी हुई वा सुनने में आई है? 
33. क्या कोई जाति कभी परमेश्वर की वाणी आग के बीच में से आती हुई सुनकर जीवित रही, जैसे कि तू ने सुनी है? 
34. फिर क्या परमेश्वर ने और किसी जाति को दूसरी जाति के बीच में निकालने को कमर बान्धकर पक्कीझा, और चिन्ह, और चमत्कार, और युद्ध, और बली हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा से ऐसे बड़े भयानक काम किए, जैसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने मिस्र में तुम्हारे देखते किए? 
35. यह सब तुझ को दिखाया गया, इसलिथे कि तू जान रखे कि यहोवा ही परमेश्वर है; उसको छोड़ और कोई है ही नहीं। 
36. आकाश में से उस ने तुझे अपक्की वाणी सुनाई कि तुझे शिझा दे; और पृय्वी पर उस ने तुझे अपक्की बड़ी आग दिखाई, और उसके वचन आग के बीच में से आते हुए तुझे सुन पके। 
37. और उस ने जो तेरे पितरोंसे प्रेम रखा, इस कारण उनके पीछे उनके वंश को चुन लिया, और प्रत्यझ होकर तुझे अपके बड़े सामर्य्य के द्वारा मिस्र से इसलिथे निकाल लाया, 
38. कि तुझ से बड़ी और सामर्यी जातियोंको तेरे आगे से निकालकर तुझे उनके देश में पहुंचाए, और उसे तेरा निज भाग कर दे, जैसा आज के दिन दिखाई पड़ता है;
39. सो आज जान ले, और अपके मन में सोच भी रख, कि ऊपर आकाश में और नीचे पृय्वी पर यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं। 
40. और तू उसकी विधियोंऔर आज्ञाओं को जो मैं आज तुझे सुनाता हूं मानना, इसलिथे कि तेरा और तेरे पीछे तेरे वंश का भी भला हो, और जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तेरे दिन बहुत वरन सदा के लिथे हों। 
41. तब मूसा ने यरदन के पार पूर्व की ओर तीन नगर अलग किए, 
42. इसलिथे कि जो कोई बिना जाने और बिना पहले से बैर रखे अपके किसी भाई को मार डाले, वह उन में से किसी नगर में भाग जाए, और भागकर जीवित रहे: 
43. अर्यात्‌ रूबेनियोंका बेसेर नगर जो जंगल के समयर देश में है, और गादियोंके गिलाद का रामोत, और मनश्शेइयोंके बाशान का गोलान। 
44. फिर जो व्यवस्या मूसा ने इस्राएलियोंको दी वह यह है; 
45. थे ही वे चितौनियां और नियम हैं जिन्हें मूसा ने इस्राएलियोंको उस समय कह सुनाया जब वे मिस्र से निकले थे, 
46. अर्यात्‌ यरदन के पार बेतपोर के साम्हने की तराई में, एमोरियोंके राजा हेशबोनवासी सीहोन के देश में, जिस राजा को उन्होंने मिस्र से निकलने के पीछे मारा। 
47. और उन्होंने उसके देश को, और बाशान के राजा ओग के देश को, अपके वश में कर लिया; यरदन के पार सूर्योदय की ओर रहनेवाले एमोरियोंके राजाओं के थे देश थे। 
48. यह देश अर्नोन के नाले के छोरवाले अरोएर से लेकर सीओन, जो हेर्मोन भी कहलाता है, 
49. उस पर्वत तक का सारा देश, और पिसगा की सलामी के नीचे के अराबा के ताल तक, यरदन पार पूर्व की ओर का सारा अराबा है।

Chapter 5

1. मूसा ने सारे इस्राएलियोंको बुलवाकर कहा, हे इस्राएलियों, जो जो विधि और नियम मैं आज तुम्हें सुनाता हूं वे सुनो, इसलिथे कि उन्हें सीखकर मानने में चौकसी करो। 
2. हमारे परमेश्वर याहोवा ने तो होरेब पर हम से वाचा बान्धी। 
3. इस वाचा को यहोवा ने हमारे पितरोंसे नहीं, हम ही से बान्धा, जो यहां आज के दिन जीवित हैं। 
4. यहोवा ने उस पर्वत पर आग के बीच में से तुम लोगोंसे आम्हने साम्हने बातें की; 
5. उस आग के डर के मारे तुम पर्वत पर न चढ़े, इसलिथे मैं यहोवा के और तुम्हारे बीच उसका वचन तुम्हें बताने को खड़ा रहा। तब उस ने कहा, 
6. तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे दासत्व के घर आर्यात्‌ मिस्र देश में से निकाल लाया है, वह मैं हूं। 
7. मुझे छोड़ दूसरोंको परमेश्वर करके न मानना।। 
8. तु अपके लिथे कोई मूतिर् खोदकर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना जो आकाश में, वा पृय्वी के जल में है; 
9. तू उनको दण्डवत्‌ न करना और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखनेवाला ईश्वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते हैं उनके बेटों, पोतों, और परपोतोंको पितरोंका दण्ड दिया करता हूं, 
10. और जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं उन हजारोंपर करूणा किया करता हूं। 
11. तू अपके परमेश्वर यहोवा का नाम व्यर्य न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्य ले वह उनको निर्दोष न ठहराएगा।। 
12. तू विश्रमदिन को मानकर पवित्र रखना, जैसे तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी। 
13. छ: दिन तो परिश्र्म करके अपना सारा कामकाज करना; 
14. परन्तु सातवां दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे विश्रमदिन है; उस में न तू किसी भांति का कामकाज करना, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरा बैल, न तेरा गदहा, न तेरा कोई पशु, न कोई परदेशी भी जो तेरे फाटकोंके भीतर हो; जिस से तेरा दास और तेरी दासी भी तेरी नाई विश्रम करे। 
15. और इस बात को स्मरण रखना कि मिस्र देश में तू आप दास या, और वहां से तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा निकाल लाया; इस कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे विश्रमदिन मानने की आज्ञा देता है।। 
16. अपके पिता और अपक्की माता का आदर करना, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है; जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहते पाए, और तेरा भला हो।। 
17. तू हत्या न करना।। 
18. तू व्यभिचार न करना।। 
19. तू चोरी न करना।। 
20. तू किसी के विरूद्ध फूठी साझी न देना।। 
21. तू न किसी की पत्नी का लालच करना, और न किसी के घर का लालच करना, न उसके खेत का, न उसके दास का, न उसकी दासी का, न उसके बैल वा गदहे का, न उसकी किसी और वस्तु का लालच करना।। 
22. यही वचन यहोवा ने उस पर्वत पर आग, और बादल, और घोर अन्धकार के बीच में से तुम्हारी सारी मण्डली से पुकारकर कहा; और इस से अधिक और कुछ न कहा। और उन्हें उस ने पत्यर की दो पटियाओं पर लिखकर मुझे दे दिया। 
23. जब पर्वत आग से दहक रहा या, और तुम ने उस शब्द को अन्धिक्कारने के बीच में से आते सुना, तब तुम और तुम्हारे गोत्रोंके सब मुख्य मुख्य पुरूष और तुम्हारे पुरनिए मेरे पास आए; 
24. और तुम कहने लगे, कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने हम को अपना तेज और महीमा दिखाई है, और हम ने उसका शब्द आग के बीच में से आते हुए सुना; आज हम ने देख लिया कि यद्यपि परमेश्वर मनुष्य से बातें करता है तौभी मनुष्य जीवित रहता है। 
25. अब हम क्योंमर जाएं? क्योंकि ऐसी बड़ी आग से हम भस्म हो जाएंगे; और यदि हम अपके परमेश्वर यहोवा का शब्द फिर सुनें, तब तो मर ही जाएंगे। 
26. क्योंकि सारे प्राणियोंमें से कौन ऐसा है जो हमारी नाई जीवित और अग्नि के बीच में से बोलते हुए परमेश्वर का शब्द सुनकर जीवित बचा रहे? 
27. इसलिथे तू समीप जा, और जो कुछ हमारा परमेश्वर यहोवा कहे उसे सुन ले; फिर जो कुछ हमारा परमेश्वर यहोवा कहे उसे हम से कहना; और हम उसे सुनेंगे और उसे मानेंगे। 
28. जब तुम मुझ से थे बातें कह रहे थे तब यहोवा ने तुम्हारी बातें सुनीं; तब उस ने मुझ से कहा, कि इन लोगोंने जो जो बातें तुझ से कही हैं मैं ने सुनी हैं; इन्होंने जो कुछ कहा वह ठीक ही कहा। 
29. भला होता कि उनका मन सदैव ऐसा ही बना रहे, कि वे मेरा भय मानते हुए मेरी सब आज्ञाओं पर चलते रहें, जिस से उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे! 
30. इसलिथे तू जाकर उन से कह दे, कि अपके अपके डेरोंको लौट जाओ। 
31. परन्तु तू यहीं मेरे पास खड़ा रह, और मैं वे सारी आज्ञाएं और विधियां और नियम जिन्हें तुझे उनको सिखाना होगा तुझ से कहूंगा, जिस से वे उन्हें उस देश में जिसका अधिक्कारने मैं उन्हें देने पर हूं मानें। 
32. इसलिथे तुम अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार करने में चौकसी करना; न तो दहिने मुड़ना और न बांए। 
33. जिस मार्ग में चलने की आज्ञा तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है उस सारे मार्ग पर चलते रहो, कि तुम जीवित रहो, और तुम्हारा भला हो, और जिस देश के तुम अधिक्कारनेी होगे उस में तुम बहुत दिनोंके लिथे बने रहो।।

Chapter 6

1. यह वह आज्ञा, और वे विधियां और नियम हैं जो तुम्हें सिखाने की तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने आज्ञा दी है, कि तुम उन्हें उस देश में मानो जिसके अधिक्कारनेी होने को पार जाने पर हो; 
2. और तू और तेरा बेटा और तेरा पोता यहोवा का भय मानते हुए उसकी उन सब विधियोंऔर आज्ञाओं पर, जो मैं तुझे सुनाता हूं, अपके जीवन भर चलते रहें, जिस से तू बहुत दिन तक बना रहे। 
3. हे इस्राएल, सुन, और ऐसा ही करने की चौकसी कर; इसलिथे कि तेरा भला हो, और तेरे पितरोंके परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उस देश में जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं तुम बहुत हो जाओ। 
4. हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है; 
5. तू अपके परमेश्वर यहोवा से अपके सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साय प्रेम रखना। 
6. और थे आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; 
7. और तू इन्हें अपके बालबच्चोंको समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना। 
8. और इन्हें अपके हाथ पर चिन्हानी करके बान्धना, और थे तेरी आंखोंके बीच टीके का काम दें। 
9. और इन्हें अपके अपके घर के चौखट की बाजुओं और अपके फाटकोंपर लिखना।। 
10. और जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उस देश में पहुंचाए जिसके विषय में उस ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब नाम, तेरे पूर्वजोंसे तुझे देने की शपय खाई, और जब वह तुझ को बड़े बड़े और अच्छे नगर, जो तू ने नहीं बनाए, 
11. और अच्छे अच्छे पदार्योंसे भरे हुए घर, जो तू ने नहीं भरे, और खुदे हुए कुंए, जो तू ने नहीं खोदे, और दाख की बारियां और जलपाई के वझृ, जो तू ने नहीं लगाए, थे सब वस्तुएं जब वह दे, और तू खाके तृप्त हो, 
12. तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि तू यहोवा को भूल जाए, जो तुझे दासत्व के घर अर्यात्‌ मिस्र देश से निकाल लाया है। 
13. अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना, और उसी के नाम की शपय खाना। 
14. तुम पराए देवताओं के, अर्यात्‌ अपके चारोंओर के देशोंके लोगोंके देवताओं के पीछे न हो लेना; 
15. क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा जो तेरे बीच में है वह जल उठनेवाला ईश्वर है; कहीं ऐसा न हो कि तेरे परमेश्वर यहोवा का कोप तुझ पर भड़के, और वह तुझ को पृय्वी पर से नष्ट कर डाले।। 
16. तुम अपके परमेश्वर यहोवा की पक्कीझा न करना, जैसे कि तुम ने मस्सा में उसकी पक्कीझा की यी। 
17. अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं, चितौनियों, और विधियोंको, जो उस ने तुझ को दी हैं, सावधानी से मानना। 
18. और जो काम यहोवा की दृष्टि में ठीक और सुहावना है वही किया करना, जिस से कि तेरा भला हो, और जिस उत्तम देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाई उस में तू प्रवेश करके उसका अधिक्कारनेी हो जाए, 
19. कि तेरे सब शत्रु तेरे साम्हने से दूर कर दिए जाएं, जैसा कि यहोवा ने कहा या।। 
20. फिर आगे को जब तेरा लड़का तुझ से पूछे, कि थे चितौनियां और विधि और नियम, जिनके मानने की आज्ञा हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है, इनका प्रयोजन क्या है? 
21. तब अपके लड़के से कहना, कि जब हम मिस्र में फिरौन के दास थे, तब यहोवा बलवन्त हाथ से हम को मिस्र में से निकाल ले आया; 
22. और यहोवा ने हमारे देखते मिस्र में फिरौन और उसके सारे घराने को दु:ख देनेवाले बड़े बड़े चिन्ह और चमत्कार दिखाए; 
23. और हम को वह वहां से निकाल लाया, इसलिथे कि हमें इस देश में पहुंचाकर, जिसके विषय में उस ने हमारे पूर्वजोंसे शपय खाई यी, इसको हमें सौंप दे। 
24. और यहोवा ने हमें थे सब विधियां पालने की आज्ञा दी, इसलिथे कि हम अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और इस रीति सदैव हमारा भला हो, और वह हम को जीवित रखे, जैसा कि आज के दिन है। 
25. और यदि हम अपके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में उसकी आज्ञा के अनुसार इन सारे नियमोंको मानने में चौकसी करें, तो वह हमारे लिथे धर्म ठहरेगा।।

Chapter 7

1. फिर जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उस देश में जिसके अधिक्कारनेी होने को तू जाने पर है पहुंचाए, और तेरे साम्हने से हित्ती, गिर्गाशी, एमोरी, कनानी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी नाम, बहुत सी जातियोंको अर्यात्‌ तुम से बड़ी और सामर्यी सातोंजातियोंको निकाल दे, 
2. और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे द्वारा हरा दे, और तू उन पर जय प्राप्त कर ले; तब उन्हें पूरी रीति से नष्ट कर डालना; उन से न वाचा बान्धना, और न उन पर दया करना। 
3. और न उन से ब्याह शादी करना, न तो उनकी बेटी को अपके बेटे के लिथे ब्याह लेना। 
4. क्योंकि वे तेरे बेटे को मेरे पीछे चलने से बहकाएंगी, और दूसरे देवताओं की उपासना करवाएंगी; और इस कारण यहोवा का कोप तुम पर भड़क उठेगा, और वह तुझ को शीघ्र सत्यानाश कर डालेगा। 
5. उन लोगोंसे ऐसा बर्ताव करना, कि उनकी वेदियोंको ढा देना, उनकी लाठोंको तोड़ डालना, उनकी अशेरा नाम मूत्तिर्योंको काट काटकर गिरा देना, और उनकी खुदी हुई मूत्तियोंको आग में जला देना। 
6. क्योंकि तू अपके परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा है; यहोवा ने पृय्वी भर के सब देशोंके लोगोंमें से तुझ को चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा और निज धन ठहरे। 
7. यहोवा ने जो तुम से स्नेह करके तुम को चुन लिया, इसका कारण यह नहीं या कि तुम गिनती में और सब देशोंके लोगोंसे अधिक थे, किन्तु तुम तो सब देशोंके लोगोंसे गिनती में योड़े थे; 
8. यहोवा ने जो तुम को बलवन्त हाथ के द्वारा दासत्व के घर में से, और मिस्र के राजा फिरौन के हाथ से छुड़ाकर निकाल लाया, इसका यही करण है कि वह तुम से प्रेम रखता है, और उस शपय को भी पूरी करना चाहता है जो उस ने तुम्हारे पूर्वजोंसे खाई यी। 
9. इसलिथे जान रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा ही परमेश्वर है, वह विश्वासयोग्य ईश्वर है; और जो उस से प्रेम रखते और उसकी आज्ञाएं मानते हैं उनके साय वह हजार पीढ़ी तक अपक्की वाचा पालता, और उन पर करूणा करता रहता है; 
10. और जो उस से बैर रखते हैं वह उनके देखते उन से बदला लेकर नष्ट कर डालता है; अपके बैरी के विषय में विलम्ब न करेगा, उसके देखते ही उस से बदला लेगा। 
11. इसलिथे इन आज्ञाओं, विधियों, और नियमोंको, जो मैं आज तुझे चिताता हूं, मानने में चौकसी करना।। 
12. और तुम जो इन नियमोंको सुनकर मानोगे और इन पर चलोगे, तो तेरा परमेश्र यहोवा भी करूणामय वाचा को पालेगा जिसे उस ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर बान्धी यी; 
13. और वह तुझ से प्रेम रखेगा, और तुझे आशीष देगा, और गिनती में बढ़ाएगा; और जो देश उस ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर तुझे देने को कहा है उस में वह तेरी सन्तान पर, और अन्न, नथे दाखमधु, और टटके तेल आदि, भूमि की उपज पर आशीष दिया करेगा, और तेरी गाय-बैल और भेड़-बकरियोंकी बढ़ती करेगा। 
14. तू सब देशोंके लोगोंसे अधिक धन्य होगा; तेरे बीच में न पुरूष न स्त्री निर्वंश होगी, और तेरे पशुओं में भी ऐसा कोई न होगा। 
15. और यहोवा तुझ से सब प्रकार के रोग दूर करेगा; और मिस्र की बुरी बुरी व्याधियां जिन्हें तू जानता है उन में से किसी को भी तुझे लगने न देगा, थे सब तेरे बैरियोंही को लगेंगे। 
16. और देश देश के जितने लोगोंको तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे वश में कर देगा, तू उन सभोंको सत्यानाश करना; उन पर तरस की दृष्टि न करना, और न उनके देवताओं की उपासना करना, नहीं तो तू फन्दे में फंस जाएगा। 
17. यदि तू अपके मन में सोचे, कि वे जातियां जो मुझ से अधिक हैं; तो मैं उनको क्योंकर देश से निकाल सकूंगा? 
18. तौभी उन से न डरना, जो कुछ तेरे परमेश्वर यहोवा ने फिरौन से और सारे मिस्र से किया उसे भली भांति स्मरण रखना। 
19. जो बड़े बड़े पक्कीझा के काम तू ने अपक्की आंखोंसे देखे, और जिन चिन्हों, और चमत्कारों, और जिस बलवन्त हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को निकाल लाया, उनके अनुसार तेरा परमेश्वर यहोवा उन सब लोगोंसे भी जिन से तू डरता है करेगा। 
20. इस से अधिक तेरा परमेश्वर यहोवा उनके बीच बर्रे भी भेजेगा, यहां तक कि उन में से जो बचकर छिप जाएंगे वे भी तेरे साम्हने से नाश हो जाएंगे। 
21. उस से भय न खाना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, और वह महान्‌ और भय योग्य ईश्वर है। 
22. तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियोंको तेरे आगे से धीरे धीरे निकाल देगा; तो तू एक दम से उनका अन्त न कर सकेगा, नहीं तो बनैले पशु बढ़कर तेरी हानि करेंगे। 
23. तौभी तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तुझ से हरवा देगा, और जब तक वे सत्यानाश न हो जाएं तब तक उनको अति व्याकुल करता रहेगा। 
24. और वह उनके राजाओं को तेरे हाथ में करेगा, और तू उनका भी नाम धरती पर से मिटा डालेगा; उन में से कोई भी तेरे साम्हने खड़ा न रह सकेगा, और अन्त में तू उन्हें सत्यानाश कर डालेगा। 
25. उनके देवताओं की खुदी हुई मूत्तिर्यां तुम आग में जला देना; जो चांदी वा सोना उन पर मढ़ा हो उसका लालच करके न ले लेना, नहीं तो तू उसके कारण फन्दे में फंसेगा; क्योंकि ऐसी वस्तुएं तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं। 
26. और कोई घृणित वस्तु अपके घर में न ले आना, नहीं तो तू भी उसके समान नष्ट हो जाने की वस्तु ठहरेगा; उसे सत्यानाश की वस्तु जानकर उस से घृणा करना और उसे कदापि न चाहना; क्योंकि वह अशुद्ध वस्तु है।

Chapter 8

1. जो जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं उन सभोंपर चलने की चौकसी करना, इसलिथे कि तुम जीवित रहो और बढ़ते रहो, और जिस देश के विषय में यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजोंसे शपय खाई है उस में जाकर उसके अधिक्कारनेी हो जाओ। 
2. और स्मरण रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षोंमें तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिथे ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी पक्कीझा करके यह जान ले कि तेरे मन में क्या क्या है, और कि तू उसकी आज्ञाओं का पालन करेगा वा नहीं। 
3. उस ने तुझ को नम्र बनाया, और भूखा भी होने दिया, फिर वह मन्ना, जिसे न तू और न तेरे पुरखा ही जानते थे, वही तुझ को खिलाया; इसलिथे कि वह तुझ को सिखाए कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं जीवित रहता, परन्तु जो जो वचन यहोवा के मुंह से निकलते हैं उन ही से वह जीवित रहता है। 
4. इन चालीस वर्षोंमें तेरे वस्त्र पुराने न हुए, और तेरे तन से भी नहीं गिरे, और न तेरे पांव फूले। 
5. फिर अपके मन में यह तो विचार कर, कि जैसा कोई अपके बेटे को ताड़ना देता है वैसे ही तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को ताड़ना देता है। 
6. इसलिथे अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं का पालन करते हुए उसके मागार्ें पर चलना, और उसका भय मानते रहना। 
7. क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे एक उत्तम देश में लिथे जा रहा है, जो जल की नदियोंका, और तराइयोंऔर पहाड़ोंसे निकले हुए गहिरे गहिरे सोतोंका देश है। 
8. फिर वह गेहूं, जौ, दाखलताओं, अंजीरों, और अनरोंका देश है; और तेलवाली जलपाई और मधु का भी देश है। 
9. उस देश में अन्न की महंगी न होगी, और न उस में तुझे किसी पदार्य की घटी होगी; वहां के पत्यर लोहे के हैं, और वहां के पहाड़ोंमें से तू तांबा खोदकर निकाल सकेगा। 
10. और तू पेट भर खाएगा, और उस उत्तम देश के कारण जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देगा उसका धन्य मानेगा। 
11. इसलिथे सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि अपके परमेश्वर यहोवा को भूलकर उसकी जो जो आज्ञा, नियम, और विधि, मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका मानना छोड़ दे; 
12. ऐसा न हो कि जब तू खाकर तृप्त हो, और अच्छे अच्छे घर बनाकर उन में रहने लगे, 
13. और तेरी गाय-बैलोंऔर भेड़-बकरियोंकी बढ़ती हो, और तेरा सोना, चांदी, और तेरा सब प्रकार का धन बढ़ जाए, 
14. तब तेरे मन में अहंकार समा जाए, और तू अपके परमेश्वर यहोवा को भूल जाए, जो तुझ को दासत्व के घर अर्यात्‌ मिस्र देश से निकाल लाया है, 
15. और उस बड़े और भयानक जंगल में से ले आया है, जहां तेज विषवाले सर्प और बिच्छू हैं, और जलरहित सूखे देश में उस ने तेरे लिथे चकमक की चट्ठान से जल निकाला, 
16. और तुझे जंगल में मन्ना खिलाया, जिसे तुम्हारे पुरखा जानते भी न थे, इसलिथे कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी पक्कीझा करके अन्त में तेरा भला ही करे। 
17. और कहीं ऐसा न हो कि तू सोचने लगे, कि यह सम्पत्ति मेरे ही सामर्य्य और मेरे ही भुजबल से मुझे प्राप्त हुई। 
18. परन्तु तू अपके परमेश्वर यहोवा को स्मरण रखना, क्योंकि वही है जो तुझे सम्पति प्राप्त करने का सामर्य्य इसलिथे देता है, कि जो वाचा उस ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर बान्धी यी उसको पूरा करे, जैसा आज प्रगट है। 
19. यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा को भूलकर दूसरे देवताओं के पीछे हो लेगा, और उसकी उपासना और उनको दण्डवत्‌ करेगा, तो मैं आज तुम को चिता देता हूं कि तुम नि:सन्देह नष्ट हो जाओगे। 
20. जिन जातियोंको यहोवा तुम्हारे सम्मुख से नष्ट करने पर है, उन्ही की नाई तुम भी अपके परमेश्वर यहोवा का वचन न मानने के कारण नष्ट हो जाओगे।

Chapter 9

1. हे इस्राएल, सुन, आज तू यरदन पार इसलिथे जानेवाला है, कि ऐसी जातियोंको जो तुझ से बड़ी और सामर्यी हैं, और ऐसे बड़े नगरोंको जिनकी श्हरपनाह आकाश से बातें करती हैं, अपके अधिक्कारने में ले ले। 
2. उन में बड़े बड़े और लम्बे लम्बे लोग, अर्यात्‌ अनाकवंशी रहते हैं, जिनका हाल तू जानता है, और उनके विषय में तू ने यह सुना है, कि अनाकवशियोंके साम्हने कौन ठहर सकता है? 
3. इसलिथे आज तू यह जान ले, कि जो तेरे आगे भस्म करनेवाली आग की नाई पार जानेवाला है वह तेरा परमेश्वर यहोवा है; और वह उनका सत्यानाश करेगा, और वह उनको तेरे साम्हने दबा देगा; और तू यहोवा के वचन के अनुसार उनको उस देश से निकालकर शीघ्र ही नष्ट कर डालेगा। 
4. जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे साम्हने से निकाल चुके तब यह न सोचना, कि यहोवा तेरे धर्म के कारण तुझे इस देश का अधिक्कारनेी होने को ले आया है, किन्तु उन जातियोंकी दुष्टता ही के कारण यहोवा उनको तेरे साम्हने से निकालता है। 
5. तू जो उनके देश का अधिक्कारनेी होने के लिथे जा रहा है, इसका कारण तेरा धर्म वा मन की सीधाई नहीं है; तेरा परमेश्वर यहोवा जो उन जातियोंको तेरे साम्हने से निकालता है, उसका कारण उनकी दुष्टता है, और यह भी कि जो वचन उस ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजोंको शपय खाकर दिया या, उसको वह पूरा करना चाहता है। 
6. इसलिथे यह जान ले कि तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे वह अच्छा देश देता है कि तू उसका अधिक्कारनेी हो, उसे वह तेरे धर्म के कारण नहीं दे रहा है; क्योंकि तू तो एक हठीली जाति है। 
7. इस बात का स्मरण रख और कभी भी न भूलना, कि जंगल में तू ने किस किस रीति से अपके परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया; और जिस देश से तू मिस्र देश से निकला है जब तक तुम इस स्यान पर न पहंुचे तब तक तुम यहोवा से बलवा ही बलवा करते आए हो। 
8. फिर होरेब के पास भी तुम ने यहोवा को क्रोधित किया, और वह क्रोधित होकर तुम्हें नष्ट करना चाहता या। 
9. जब मैं उस वाचा के पत्यर की पटियाओं को जो यहोवा ने तुम से बान्धी यी लेने के लिथे पर्वत के ऊपर चढ़ गया, तब चालीस दिन और चालीस रात पर्वत ही के ऊपर रहा; और मैं ने न तो रोटी खाई न पानी पिया। 
10. और यहोवा ने मुझे अपके ही हाथ की लिखी हुई पत्यर की दोनोंपटियाओं को सौंप दिया, और वे ही वचन जिन्हें यहोवा ने पर्वत के ऊपर आग के मध्य में से सभा के दिन तुम से कहे थे वे सब उन पर लिखे हुए थे। 
11. और चालीस दिन और चालीस रात के बीत जाने पर यहोवा ने पत्यर की वे दो वाचा की पटियाएं मुझे दे दीं। 
12. और यहोवा ने मुझ से कहा, उठ, यहां से फटपट नीचे जा; क्योकिं तेरी प्रजा के लोग जिनको तू मिस्र से निकालकर ले आया है वे बिगड़ गए हैं; जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उन्हें दी यी उसको उन्होंने फटपट छोड़ दिया है; अर्यात्‌ उन्होंने तुरन्त अपके लिथे एक मूत्तिर् ढालकर बना ली है। 
13. फिर यहोवा ने मुझ से यह भी कहा, कि मैं ने उन लोगो को देख लिया, वे हठीली जाति के लोग हैं; 
14. इसलिथे अब मुझे तू मत रोक, ताकि मैं उन्हें नष्ट कर डालूं, और धरती के ऊपर से उनका नाम वा चिन्ह तक मिटा डालूं, और मैं उन से बढ़कर एक बड़ी और सामर्यी जाति तुझी से उत्पन्न करूंगा। 
15. तब मैं उलटे पैर पर्वत से नीचे उतर चला, और मेरे दोनोंहाथोंमें वाचा की दोनोंपटियाएं यीं। 
16. और मैं ने देखा कि तुम ने अपके परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध महापाप किया; और अपके लिथे एक बछड़ा ढालकर बना लिया है, और तुरन्त उस मार्ग से जिस पर चलने की आज्ञा यहोवा ने तुम को दी यी उसको तुम ने तज दिया। 
17. तब मैं ने उन दोनोंपटियाओं को अपके दोनो हाथोंसे लेकर फेंक दिया, और तुम्हारी आंखोंके साम्हने उनको तोड़ डाला। 
18. तब तुम्हारे उस महापाप के कारण जिसे करके तुम ने यहोवा की दृष्टि में बुराई की, और उसे रीस दिलाई यी, मैं यहोवा के साम्हने मुंह के बल गिर पड़ा, और पहिले की नाई, अर्यात्‌ चालीस दिन और चालीस रात तक, न तो रोटी खाई और न पानी पिया। 
19. मैं तो यहोवा के उस कोप और जल-जलाहट से डर रहा या, क्योंकि वह तुम से अप्रसन्न होकर तुम्हें सत्यानाश करने को या। परन्तु यहोवा ने उस बार भी मेरी सुन ली। 
20. और यहोवा हारून से इतना क्रोधित हुआ कि उसे भी सत्यानाश करना चाहा; परन्तु उसी समय मैं ने हारून के लिथे भी प्रार्यना की। 
21. और मैं ने वह बछड़ा जिसे बनाकर तुम पापी हो गए थे लेकर, आग में डालकर फूंक दिया; और फिर उसे पीस पीसकर ऐसा चूर चूरकर डाला कि वह धूल की नाई जीर्ण हो गया; और उसकी उस राख को उस नदी में फेंक दिया जो पर्वत से निकलकर नीचे बहती यी। 
22. फिर तबेरा, और मस्सा, और किब्रोतहत्तावा में भी तुम ने यहोवा को रीस दिलाई यी। 
23. फिर जब यहोवा ने तुम को कोदशबर्ने से यह कहकर भेजा, कि जाकर उस देश के जिसे मैं ने तुम्हें दिया है अधिक्कारनेी हो जाओ, तब भी तुम ने अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरूद्ध बलवा किया, और न तो उसका विश्वास किया, और न उसकी बात मानी। 
24. जिस दिन से मैं तुम्हें जानता हूं उस दिन से तुम यहोवा से बलवा ही करते आए हो। 
25. मैं यहोवा के साम्हने चालीस दिन और चालीस रात मुंह के बल पड़ा रहा, क्योंकि यहोवा ने कह दिया या, कि वह तुम को सत्यानाश करेगा। 
26. और मैं ने यहोवा से यह प्रार्यना की, कि हे प्रभु यहोवा, अपना प्रजारूपी निज भाग, जिनको तू ने अपके महान्‌ प्रताप से छुड़ा लिया है, और जिनको तू ने अपके बलवन्त हाथ से मिस्र से निकाल लिया है, उन्हें नष्ट न कर। 
27. अपके दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर; और इन लोगोंकी कठोरता, और दुष्टता, और पाप पर दृष्टि न कर, 
28. जिस से ऐसा न हो कि जिस देश से तू हम को निकालकर ले आया है, वहां से लोग कहने लगें, कि यहोवा उन्हें उस देश में जिसके देश का वचन उनको दिया या नहीं पहुंचा सका, और उन से बैर भी रखता या, इसी कारण उस ने उन्हें जंगल में निकालकर मार डाला है। 
29. थे लोग तेरी प्रजा और निज भाग हैं, जिनको तू ने अपके बड़े सामर्य्य और बलवन्त भुजा के द्वारा निकाल ले आया है।।

Chapter 10

1. उस समय यहोवा ने मुझ से कहा, पहिली पटियाओं के समान पत्यर की दो और पटियाएं गढ़ ले, और उन्हें लेकर मेरे पास पर्वत के ऊपर आ जा, और लकड़ी का एक सन्दूक भी बनवा ले। 
2. और मैं उन पटियाओं पर वे ही वचन लिखूंगा, जो उन पहिली पटियाओं पर थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, और तू उन्हें उस सन्दूक में रखना। 
3. तब मैं ने बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनवाया, और पहिली पटियाओं के समान पत्यर की दो और पटियाएं गढ़ीं, तब उन्हें हाथोंमें लिथे हुए पर्वत पर चढ़ गया। 
4. और जो दस वचन यहोवा ने सभा के दिन पर्वत पर अग्नि के मध्य में से तुम से कहे थे, वे ही उस ने पहिलोंके समान उन पटियाओं पर लिखे; और उनको मुझे सौंप दिया। 
5. तब मै पर्वत से नीचे उतर आया, और पटियाओं को अपके बनवाए हुए सन्दूक में धर दिया; और यहोवा की आज्ञा के अनुसार वे वहीं रखीं हुई हैं। 
6. तब इस्राएली याकानियोंके कुओं से कूच करके मोसेरा तक आए। वहां हारून मर गया, और उसको वहीं मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र एलीआजर उसके स्यान पर याजक का काम करने लगा। 
7. वे वहां से कूच करके गुदगोदा को, और गुदगोदा से योतबाता को चले, इस देश में जल की नदियां हैं। 
8. उस समय यहोवा ने लेवी गोत्र को इसलिथे अलग किया कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक उठाया करें, और यहोवा के सम्मुख खड़े होकर उसकी सेवाटहल किया करें, और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें, जिस प्रकार कि आज के दिन तक होता आ रहा है। 
9. इस कारण लेवियोंको अपके भाईयोंके साय कोई निज अंश वा भाग नहीं मिला; यहोवा ही उनका निज भाग है, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उन से कहा या। 
10. मैं तो पहिले की नाई उस पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात ठहरा रहा, और उस बार भी यहोवा ने मेरी सुनी, और तुझे नाश करने की मनसा छोड़ दी। 
11. फिर यहोवा ने मुझ से कहा, उठ, और तू इन लोगोंकी अगुवाई कर, ताकि जिस देश के देने को मैं ने उनके पूर्वजोंसे शपय खाकर कहा या उस में वे जाकर उसको अपके अधिक्कारने में कर लें।। 
12. और अब, हे इस्राएल, तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और उसके सारे मार्गोंपर चले, उस से प्रेम रखे, और अपके पूरे मन और अपके सारे प्राण से उसकी सेवा करे, 
13. और यहोवा की जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनको ग्रहण करे, जिस से तेरा भला हो? 
14. सुन, स्वर्ग और सब से ऊंचा स्वर्ग भी, और पृय्वी और उस में जो कुछ है, वह सब तेरे परमेश्वर यहोवा ही का है; 
15. तौभी यहोवा ने तेरे पूर्वजोंसे स्नेह और प्रेम रखा, और उनके बाद तुम लोगोंको जो उनकी सन्तान हो सर्व देशोंके लोगोंके मध्य में से चुन लिया, जैसा कि आज के दिन प्रगट है। 
16. इसलिथे अपके अपके ह्रृदय का खतना करो, और आगे को हठीले न रहो। 
17. क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा वही ईश्वरोंका परमेश्वर और प्रभुओं का प्रभु है, वह महान्‌ पराक्रमी और भय योग्य ईश्वर है, जो किसी का पझ नहीं करता और न घूस लेता है। 
18. वह अनायोंऔर विधवा का न्याय चुकाता, और परदेशियोंसे ऐसा प्रेम करता है कि उन्हें भोजन और वस्त्र देता है। 
19. इसलिथे तुम भी परदेशियोंसे प्रेम भाव रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में पकेदशी थे। 
20. अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना और उसी से लिपके रहना, और उसी के नाम की शपय खाना। 
21. वही तुम्हारी स्तुति के योग्य है; और वही तेरा परमेश्वर है, जिस ने तेरे साय वे बड़े महत्व के और भयानक काम किए हैं, जिन्हें तू ने अपक्की आंखोंसे देखा है। 
22. तेरे पुरखा जब मिस्र में गए तब सत्तर ही मनुष्य थे; परन्तु अब तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरी गिनती आकाश के तारोंके समान बहुत कर दिया है।।

Chapter 11

1. इसलिथे तू अपके परमेश्वर यहोवा से अत्यन्त प्रेम रखना, और जो कुछ उस ने तुझे सौंपा है उसका, अर्यात्‌ उसी विधियों, नियमों, और आज्ञाओं का नित्य पालन करना। 
2. और तुम आज यह सोच समझ लो (क्योंकि मैं तो तुम्हारे बाल-बच्चोंसे नहीं कहता,) जिन्होंने न तो कुछ देखा और न जाना है कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने क्या क्या ताड़ना की, और कैसी महिमा, और बलवन्त हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा दिखाई, 
3. और मिस्र में वहां के राजा फिरौन को कैसे कैसे चिन्ह दिखाए, और उसके सारे देश में कैसे कैसे चमत्कार के काम किए; 
4. और उस ने मिस्र की सेना के घोड़ोंऔर रयोंसे क्या किया, अर्यात्‌ जब वे तुम्हारा पीछा कर रहे थे तब उस ने उनको लाल समुद्र में डुबोकर किस प्रकार नष्ट कर डाला, कि आज तक उनका पता नहीं; 
5. और तुम्हारे इस स्यान में पहुंचने तक उस ने जंगल में तुम से क्या क्या किया; 
6. औैर उस ने रूबेनी एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम से क्या क्या किया; अर्यात्‌ पृय्वी ने अपना मुंह पसारके उनको घरानों, और डेरों, और सब अनुचरोंसमेत सब इस्राएलियोंके देखते देखते कैसे निगल लिया; 
7. परन्तु यहोवा के इन सब बड़े बड़े कामोंको तुम ने अपक्की आंखोंसे देखा है। 
8. इस कारण जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सभोंको माना करना, इसलिथे कि तुम सामर्यी होकर उस देश में जिसके अधिक्कारनेी होने के लिथे तुम पार जा रहे हो प्रवेश करके उसके अधिक्कारनेी हो जाओ, 
9. और उस देश में बहुत दिन रहने पाओ, जिसे तुम्हें और तुम्हारे वंश को देने की शपय यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजोंसे खाईं यी, और उस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं। 
10. देखो, जिस देश के अधिक्कारनेी होने को तुम जा रहे हो वह मिस्र देश के समान नहीं है, जहां से निकलकर आए हो, जहां तुम बीज बोते थे और हरे साग के खेत की रीति के अनुसार अपके पांव की नलियां बनाकर सींचते थे; 
11. परन्तु जिस देश के अधिक्कारनेी होने को तुम पार जाने पर हो वह पहाड़ोंऔर तराईयोंका देश है, और आकाश की वर्षा के जल से सिंचता है; 
12. वह ऐसा देश है जिसकी तेरे परमेश्वर यहोवा को सुधि रहती है; और वर्ष के आदि से लेकर अन्त तक तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि उस पर निरन्तर लगी रहती है।। 
13. और यदि तुम मेरी आज्ञाओं को जो आज मैं तुम्हें सुनाता हूं ध्यान से सुनकर, अपके सम्पूर्ण मन और सारे प्राण के साय, अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो और उसकी सेवा करते रहो, 
14. तो मैं तुम्हारे देश में बरसात के आदि और अन्त दोनोंसमयोंकी वर्षा को अपके अपके समय पर बरसाऊंगा, जिस से तू अपना अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल संचय कर सकेगा। 
15. और मै तेरे पशुओं के लिथे तेरे मैदान में घास उपजाऊंगा, और तू पेट भर खाएगा और सन्तुष्ट रहेगा। 
16. इसलिथे अपके विषय में सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन धोखा खाएं, और तुम बहककर दूसरे देवताओं की पूजा करने लगो और उनको दण्डवत्‌ करने लगो, 
17. और यहोवा का कोप तुम पर भड़के, और वह आकाश की वर्षा बन्द कर दे, और भूमि अपक्की उपज न दे, और तुम उस उत्तम देश में से जो यहोवा तुम्हें देता है शीघ्र नष्ट हो जाओ। 
18. इसलिथे तुम मेरे थे वचन अपके अपके मन और प्राण में धारण किए रहना, और चिन्हानी के लिथे अपके हाथोंपर बान्धना, और वे तुम्हारी आंखोंके मध्य में टीके का काम दें। 
19. और तुम घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते-उठते इनकी चर्चा करके अपके लड़केबालोंको सिखाया करना। 
20. और इन्हें अपके अपके घर के चौखट के बाजुओं और अपके फाटकोंके ऊपर लिखना; 
21. इसलिथे कि जिस देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर कहा या, कि मैं उसे तुम्हें दूंगा, उस में तुम्हारे और तुम्हारे लड़केबालोंकी दीर्घायु हो, और जब तक पृय्वी के ऊपर का आकाश बना रहे तब तक वे भी बने रहें। 
22. इसलिथे यदि तुम इन सब आज्ञाओं के मानने में जो मैं तुम्हें सुनाता हूं पूरी चौकसी करके अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो, और उसके सब मार्गोंपर चलो, और उस से लिपके रहो, 
23. तो यहोवा उन सब जातियोंको तुम्हारे आगे से निकाल डालेगा, और तुम अपके से बड़ी और सामर्यी जातियोंके अधिक्कारनेी हो जाओगे। 
24. जिस जिस स्यान पर तुम्हारे पांव के तलवे पकें वे सब तुम्हारे ही हो जाएंगे, अर्यात्‌ जंगल से लबानोन तक, और परात नाम महानद से लेकर पश्चिम के समुद्र तक तुम्हारा सिवाना होगा। 
25. तुम्हारे साम्हने कोई भी खड़ा न रह सकेगा; क्योंकि जितनी भूमि पर तुम्हारे पांव पकेंगे उस सब पर रहनेवालोंके मन में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपके वचन के अनुसार तुम्हारे कारण उन में डर और यरयराहट उत्पन्न कर देगा। 
26. सुनो, मैं आज के दिन तुम्हारे आगे आशीष और शाप दोनोंरख देता हूं। 
27. अर्यात्‌ यदि तुम अपके परमेश्वर यहोवा की इन आज्ञाओं को जो मैं आज तुम्हे सुनाता हूं मानो, तो तुम पर आशीष होगी, 
28. और यदि तुम अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को नहीं मानोगे, और जिस मार्ग की आज्ञा मैं आज सुनाता हूं उसे तजकर दूसरे देवताओं के पीछे हो लोगे जिन्हें तुम नहीं जानते हो, तो तुम पर शाप पकेगा। 
29. और जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को उस देश में पहुंचाए जिसके अधिक्कारनेी होने को तू जाने पर है, तब आशीष गरीज्जीम पर्वत पर से और शाप एबाल पर्वत पर से सुनाना। 
30. क्या वे यरदन के पार, सूर्य के अस्त होने की ओर, अराबा के निवासी कनानियोंके देश में, गिल्गाल के साम्हने, मोरे के बांज वृझोंके पास नहीं है? 
31. तुम तो यरदन पार इसी लिथे जाने पर हो, कि जो देश तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें देता है उसके अधिक्कारनेी होकर उस में निवास करोगे; 
32. इसलिथे जितनी विधियां और नियम मैं आज तुम को सुनाता हूं उन सभोंके मानने में चौकसी करना।।

Chapter 12

1. जो देश तुम्हारे पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें अधिक्कारने में लेने को दिया है, उस में जब तक तुम भूमि पर जीवित रहो तब तक इन विधियोंऔर नियमोंके मानने में चौकसी करना। 
2. जिन जातियोंके तुम अधिक्कारनेी होगे उनके लोग ऊंचे ऊंचे पहाड़ोंवा टीलोंपर, वा किसी भांति के हरे वृझ के तले, जितने स्यानोंमें अपके देवताओं की उपासना करते हैं, उन सभोंको तुम पूरी रीति से नष्ट कर डालना; 
3. उनकी वेदियोंको ढा देना, उनकी लाठोंको तोड़ डालना, उनकी अशेरा नाम मूत्तिर्योंको आग में जला देना, और उनके देवताओं की खुदी हुई मूत्तिर्योंको काटकर गिरा देना, कि उस देश में से उनके नाम तक मिट जाएं। 
4. फिर जैसा वे करते हैं, तुम अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे वैसा न करना। 
5. किन्तु जो स्यान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे सब गोत्रोंमें से चुन लेगा, कि वहां अपना नाम बनाए रखे, उसके उसी निवासस्यान के पास जाया करना; 
6. और वहीं तुम अपके होमबलि, और मेलबलि, और दंशमांश, और उठाई हुई भेंट, और मन्नत की वस्तुएं, और स्वेच्छाबलि, और गाय-बैलोंऔर भेड़-बकरियोंके पहिलौठे ले जाया करना; 
7. और वहीं तुम अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने भोजन करना, और अपके अपके घराने समेत उन सब कामोंपर, जिन में तुम ने हाथ लगाया हो, और जिन पर तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की आशीष मिली हो, आनन्द करना। 
8. जैसे हम आजकल यहां जो काम जिसको भाता है वही करते हैं वैसा तुम न करना; 
9. जो विश्रमस्यान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे भाग में देता है वहां तुम अब तक तो नहीं पहुंचे। 
10. परन्तु जब तुम यरदन पार जाकर उस देश में जिसके भागी तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें करता है बस जाओ, और वह तुम्हारे चारोंओर के सब शत्रुओं से तुम्हें विश्रम दे, 
11. और तुम निडर रहने पाओ, तब जो स्यान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास ठहराने के लिथे चुन ले उसी में तुम अपके होमबलि, और मेलबलि, और दशमांश, और उठाई हुईं भेंटें, और मन्नतोंकी सब उत्तम उत्तम वस्तुएं जो तुम यहोवा के लिथे संकल्प करोगे, निदान जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैं तुम को सुनाता हूं उन सभोंको वहीं ले जाया करना। 
12. और वहां तुम अपके अपके बेटे बेटियोंऔर दास दासियोंसहित अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने आनन्द करना, और जो लेवीय तुम्हारे फाटकोंमें रहे वह भी आनन्द करे, क्योंकि उसका तुम्हारे संग कोई निज भाग वा अंश न होगा। 
13. और सावधान रहना कि तू अपके होमबलियोंको हर एक स्यान पर जो देखने में आए न चढ़ाना; 
14. परन्तु जो स्यान तेरे किसी गोत्र में यहोवा चुन ले वहीं अपके होमबलियोंको चढ़ाया करना, और जिस जिस काम की आज्ञा मैं तुझ को सुनाता हूं उसको वहीं करना। 
15. परन्तु तू अपके सब फाटकोंके भीतर अपके जी की इच्छा और अपके परमेश्वर यहोवा की दी हुई आशीष के अनुसार पशु मारके खा सकेगा, शुद्व और अशुद्व मनुष्य दोनोंखा सकेंगे, जैसे कि चिकारे और हरिण का मांस। 
16. परन्तु उसका लोहू न खाना; उसे जल की नाई भूमि पर उंडेल देना। 
17. फिर अपके अन्न, वा नथे दाखमधु, वा टटके तेल का दशमांश, और अपके गाय-बैलोंवा भेड़-बकरियोंके पहिलौठे, और अपक्की मन्नतोंकी कोई वस्तु, और अपके स्वेच्छाबलि, और उठाई हुई भेंटें अपके सब फाटकोंके भीतर न खाना; 
18. उन्हें अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने उसी स्यान पर जिसको वह चुने अपके बेटे बेटियोंऔर दास दासियोंके, और जो लेवीय तेरे फाटकोंके भीतर रहेंगे उनके साय खाना, और तू अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने अपके सब कामोंपर जिन में हाथ लगाया हो आनन्द करना। 
19. और सावधान रह कि जब तक तू भूमि पर जीवित रहे तब तक लेवियोंको न छोड़ना।। 
20. जब तेरा परमेश्वर यहोवा अपके वचन के अनुसार तेरा देश बढ़ाए, और तेरा जी मांस खाना चाहे, और तू सोचने लगे, कि मैं मांस खाऊंगा, तब जो मांस तेरा जी चाहे वही खा सकेगा। 
21. जो स्यान तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बनाए रखने के लिथे चुन ले वह यदि तुझ से बहुत दूर हो, तो जो गाय-बैल भेड़-बकरी यहोवा ने तुझे दी हों, उन में से जो कुछ तेरा जी चाहे, उसे मेरी आज्ञा के अनुसार मारके अपके फाटकोंके भीतर खा सकेगा। 
22. जैसे चिकारे और हरिण का मांस खाया जाता है वैसे ही उनको भी खा सकेगा, शुद्व और अशुद्व दोनो प्रकार के मनुष्य उनका मांस खा सकेंगे। 
23. परन्तु उनका लोहू किसी भांति न खाना; क्योंकि लोहू जो है वह प्राण ही है, और तू मांस के साय प्राण कभी भी न खाना। 
24. उसको न खाना; उसे जल की नाईं भूमि पर उंडेल देना। 
25. तू उसे न खाना; इसलिथे कि वह काम करने से जो यहोवा की दृष्टि में ठीक हैं तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी भला हो। 
26. परन्तु जब तू कोई वस्तु पवित्र करे, वा मन्नत माने, तो ऐसी वस्तुएं लेकर उस स्यान को जाना जिसको यहोवा चुन लेगा, 
27. और वहां अपके होमबलियोंके मांस और लोहू दोनोंको अपके परमेश्वर यहोवा की वेदी पर चढ़ाना, और मेलबलियोंका लोहू उसकी वेदी पर उंडेलकर उनका मांस खाना। 
28. इन बातोंको जिनकी आज्ञा मैं तुझे सुनाता हूं चित्त लगाकर सुन, कि जब तू वह काम करे जो तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला और ठीक है, तब तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी सदा भला होता रहे। 
29. जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियोंको जिनका अधिक्कारनेी होने को तू जा रहा है तेरे आगे से नष्ट करे, और तू उनका अधिक्कारनेी होकर उनके देश में बस जाए, 
30. तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि उनके सत्यनाश होने के बाद तू भी उनकी नाई फंस जाए, अर्यात्‌ यह कहकर उनके देवताओं के सम्बन्ध में यह पूछपाछ न करना, कि उन जातियोंके लोग अपके देवताओं की उपासना किस रीति करते थे? मैं भी वैसी ही करूंगा। 
31. तू अपके परमेश्वर यहोवा से ऐसा व्यवहार न करना; क्योंकि जितने प्रकार के कामोंसे यहोवा घृणा करता है और बैर-भाव रखता है, उन सभोंको उन्होंने अपके देवताओं के लिथे किया है, यहां तक कि अपके बेटे बेटियोंको भी वे अपके देवताओं के लिथे अग्नि में डालकर जला देते हैं।। 
32. जितनी बातोंकी मैं तुम को आज्ञा देता हूं उनको चौकस होकर माना करना; और न तो कुछ उन में बढ़ाना और न उन में से कुछ घटाना।।

Chapter 13

1. यदि तेरे बीच कोई भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखनेवाला प्रगट होकर तुझे कोई चिन्ह वा चमत्कार दिखाए, 
2. और जिस चिन्ह वा चमत्कार को प्रमाण ठहराकर वह तुझ से कहे, कि आओ हम पराए देवताओं के अनुयायी होकर, जिनसे तुम अब तक अनजान रहे, उनकी पूजा करें, 
3. तब तुम उस भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखने वाले के वचन पर कभी कान न धरना; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारी पक्कीझा लेगा, जिस से यह जान ले, कि थे मुझ से अपके सारे मन और सारे प्राण के साय प्रेम रखते हैं वा नहीं? 
4. तुम अपके परमेश्वर यहोवा के पीछे चलना, और उसका भय मानना, और उसकी आज्ञाओं पर चलना, और उसका वचन मानना, और उसकी सेवा करना, और उसी से लिपके रहना। 
5. और ऐसा भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखनेवाला जो तुम को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा से फेरके, जिस ने तुम को मिस्र देश से निकाला और दासत्व के घर से छुड़ाया है, तेरे उसी परमेश्वर यहोवा के मार्ग से बहकाने की बात कहनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मार डाला जाए। इस रीति से तू अपके बीच में से ऐसी बुराई को दूर कर देना।। 
6. यदि तेरा सगा भाई, वा बेटा, वा बेटी, वा तेरी अर्द्धांगिन, वा प्राण प्रिय तेरा कोई मित्र निराले में तुझ को यह कहकर फुसलाने लगे, कि आओ हम दूसरे देवताओं की उपासना वा पूजा करें, जिन्हें न तो तू न तेरे पुरखा जानते थे, 
7. चाहे वे तुम्हारे निकट रहनेवाले आस पास के लोगोंके, चाहे पृय्वी के एक छोर से लेके दूसरे छोर तक दूर दूर के रहनेवालोंके देवता हों, 
8. तो तू उसकी न मानना, और न तो उसकी बात सुनना, और न उस पर तरस खाना, और न कोमलता दिखाना, और न उसको छिपा रखना; 
9. उसको अवश्य घात करना; उसके घात करने में पहिले तेरा हाथ उठे, पीछे सब लोगोंके हाथ उठे। 
10. उस पर ऐसा पत्यरवाह करना कि वह मर जाए, क्योंकि उस ने तुझ को तेरे उस परमेश्वर यहोवा से, जो तुझ को दासत्व के घर अर्यात्‌ मिस्र देश से निकाल लाया है, बहकाने का यत्न किया है। 
11. और सब इस्राएली सुनकर भय खाएंगे, और ऐसा बुरा काम फिर तेरे बीच न करेंगे।। 
12. यदि तेरे किसी नगर के विषय में, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे रहने के लिथे देता है, ऐसी बात तेरे सुनने में आए, 
13. कि कितने अधम पुरूषोंने तेरे ही बीच में से निकलकर अपके नगर के निवासिक्कों यह कहकर बहका दिया है, कि आओ हम और देवताओं की जिन से अब तक अनजान रहे उपासना करें, 
14. तो पूछपाछ करना, और खोजना, और भलीं भांति पता लगाना; और यदि यह बात सच हो, और कुछ भी सन्देह न रहे कि तेरे बीच ऐसा घिनौना काम किया जाता है, 
15. तो अवश्य उस नगर के निवासिक्कों तलवार से मान डालना, और पशु आदि उस सब समेत जो उस में हो उसको तलवार से सत्यानाश करना। 
16. और उस में की सारी लूट चौक के बीच इकट्ठी करके उस नगर को लूट समेत अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे मानो सर्व्वांग होम करके जलाना; और वह सदा के लिथे डीह रहे, वह फिर बसाया न जाए। 
17. और कोई सत्यानाश की वस्तु तेरे हाथ न लगने पाए; जिस से यहोवा अपके भड़के हुए कोप से शान्त होकर जैसा उस ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाई यी वैसा ही तुझ से दया का व्यवहार करे, और दया करके तुझ को गिनती में बढ़ाए। 
18. यह तब होगा जब तू अपके परमेश्वर यहोवा की जितनी आज्ञाएं मैं आज तुझे सुनाता हूं उन सभोंको मानेगा, और जो तेरा परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही करेगा।।

Chapter 14

1. तुम अपके परमेश्वर यहोवा के पुत्र हो; इसलिथे मरे हुओं के कारण न तो अपना शरीर चीरना, और न भौहोंके बाल मुंडाना। 
2. क्योंकि तू अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे एक पवित्र समाज है, और यहोवा ने तुझ को पृय्वी भर के समस्त देशोंके लोगोंमें से अपक्की निज सम्पति होने के लिथे चुन लिया है। 
3. तू कोई घिनौनी वस्तु न खाना। 
4. जो पशु तुम खा सकते हो वे थे हैं, अर्यात्‌ गाय-बैल, भेड़-बकरी, 
5. हरिण, चिकारा, यखमूर, बनैली बकरी, साबर, नीलगाय, और बैनेली भेड़। 
6. निदान पशुओं में से जितने पशु चिरे वा फटे खुरवाले और पागुर करनेवाले होते हैं उनका मांस तुम खा सकते हो। 
7. परन्तु पागुर करनेवाले वा चिरे खुरवालोंमें से इन पशुओं को, अर्यात्‌ ऊंट, खरहा, और शापान को न खाना, क्योंकि थे पागुर तो करते हैं परन्तु चिरे खुर के नही होते, इस कारण वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं। 
8. फिर सूअर, जो चिरे खुर का होता है परन्तु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खाना, और न इनकी लोय छूना।। 
9. फिर जितने जलजन्तु हैं उन में से तुम इन्हें खा सकते हो, अर्यात्‌ जितनोंके पंख और छिलके होते हैं। 
10. परन्तु जितने बिना पंख और छिलके के होते हैं उन्हें तुम न खाना; क्योंकि वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं।। 
11. सब शुद्ध पझियोंका मांस तो तुम खा सकते हो। 
12. परन्तु इनका मांस न खाना, अर्यात्‌ उकाब, हड़फोड़, कुरर; 
13. गरूड़, चील और भांति भांति के शाही; 
14. और भांति भांति के सब काग; 
15. शुतर्मुर्ग, तहमास, जलकुक्कट, और भांति भांति के बाज; 
16. छोटा और बड़ा दोनोंजाति का उल्लू, और घुग्घू; 
17. धनेश, गिद्ध, हाड़गील; 
18. सारस, भांति भांति के बगुले, नौवा, और चमगीदड़। 
19. और जितने रेंगनेवाले पकेरू हैं वे सब तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं; वे खाए न जाएं। 
20. परन्तु सब शुद्ध पंखवालोंका मांस तुम खा सकते हो।। 
21. जो अपक्की मृत्यु से मर जाए उसे तुम न खाना; उसे अपके फाटकोंके भीतर किसी पकेदशी को खाने के लिथे दे सकते हो, वा किसी पराए के हाथ बेच सकते हो; परन्तु तू तो अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे पवित्र समाज है। बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना।। 
22. बीज की सारी उपज में से जो प्रतिवर्ष खेत में उपके उसका दंशमांश अवश्य अलग करके रखना। 
23. और जिस स्यान को तेरा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास ठहराने के लिथे चुन ले उस में अपके अन्न, और नथे दाखमधु, और टटके तेल का दशमांश, और अपके गाय-बैलोंऔर भेड़-बकरियोंके पहिलौठे अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने खाया करना; जिस से तुम उसका भय नित्य मानना सीखोगे। 
24. परन्तु यदि वह स्यान जिस को तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बानाए रखने के लिथे चुन लेगा बहुत दूर हो, और इस कारण वहां की यात्रा तेरे लिथे इतनी लम्बी हो कि तू अपके परमेश्वर यहोवा की आशीष से मिली हुई वस्तुएं वहां न ले जा सके, 
25. तो उसे बेचके, रूपके को बान्ध, हाथ में लिथे हुए उस स्यान पर जाना जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा, 
26. और वहां गाय-बैल, वा भेड़-बकरी, वा दाखमधु, वा मदिरा, वा किसी भांति की वस्तु क्योंन हो, जो तेरा जी चाहे, उसे उसी रूपके से मोल लेकर अपके घराने समेत अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने खाकर आनन्द करना। 
27. और अपके फाटकोंके भीतर के लेवीय को न छोड़ना, क्योंकि तेरे साय उसका कोई भाग वा अंश न होगा।। 
28. तीन तीन वर्ष के बीतने पर तीसरे वर्ष की उपज का सारा दशंमांश निकालकर अपके फाटकोंके भीतर इकट्ठा कर रखना; 
29. तब लेवीय जिसका तेरे संग कोई निज भाग वा अंश न होगा वह, और जो परदेशी, और अनाय, और विधवांए तेरे फाटकोंके भीतर हों, वे भी आकर पेट भर खाएं; जिस से तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामोंमें तुझे आशीष दे।।

Chapter 15

1. सात सात वर्ष बीतने पर तुम छुटकारा दिया करना, 
2. अर्यात्‌ जिस किसी ऋण देनेवाले ने अपके पड़ोसी को कुछ उधार दिया हो, तो वह उसे छोड़ दे; और अपके पड़ोसी वा भाई से उसको बरबस न भरवा ले, क्योंकि यहोवा के नाम से इस छुटकारे का प्रचार हुआ है। 
3. परदेशी मनुष्य से तू उसे बरबस भरवा सकता है, परन्तु जो कुछ तेरे भाई के पास तेरा हो उसको तू बिना भरवाए छोड़ देना। 
4. तेरे बीच कोई दरिद्र न रहेगा, क्योंकि जिस देश को तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है, कि तू उसका अधिक्कारनेी हो, उस में वह तुझे बहुत ही आशीष देगा। 
5. इतना अवश्य है कि तू अपके परमेश्वर यहोवा की बात चित्त लगाकर सुने, और इन सारी आज्ञाओं के मानने में जो मैं आज तुझे सुनाता हूं चौकसी करे। 
6. तब तेरा परमेश्वर यहोवा अपके वचन के अनुसार तुझे आशीष देगा, परन्तु तुझे उधार लेना न पकेगा; और तू बहुत जातियोंपर प्रभुता करेगा, परन्तु वे तेरे ऊपर प्रभुता न करने पाएंगी।। 
7. जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसके किसी फाटक के भीतर यदि तेरे भाइयोंमें से कोई तेरे पास द्ररिद्र हो, तो अपके उस दरिद्र भाई के लिथे न तो अपना ह्रृदय कठोर करना, और न अपक्की मुट्ठी कड़ी करना; 
8. जिस वस्तु की घटी उसको हो, उसका जितना प्रयोजन हो उतना अवश्य अपना हाथ ढीला करके उसको उधार देना। 
9. सचेत रह कि तेरे मन में ऐसी अधम चिन्ता न समाए, कि सातवां वर्ष जो छुटकारे का वर्ष है वह निकट है, और अपक्की दृष्टि तू अपके उस दरिद्र भाई की ओर से क्रूर करके उसे कुछ न दे, तो यह तेरे लिथे पाप ठहरेगा। 
10. तू उसको अवश्य देना, और उसे देते समय तेरे मन को बुरा न लगे; क्योकि इसी बात के कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामोंमें जिन में तू अपना हाथ लगाएगा तुझे आशीष देगा। 
11. तेरे देश में दरिद्र तो सदा पाए जाएंगे, इसलिथे मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं कि तू अपके देश में अपके दीन-दरिद्र भाइयोंको अपना हाथ ढीला करके अवश्य दान देना।। 
12. यदि तेरा कोई भाईबन्धु, अर्यात्‌ कोई इब्री वा इब्रिन, तेरे हाथ बिके, और वह छ: वर्ष तेरी सेवा कर चुके, तो सातवे वर्ष उसको अपके पास से स्वतंत्र करके जाने देना। 
13. और जब तू उसको स्वतंत्र करके अपके पास से जाने दे तब उसे छूछे हाथ न जाने देना; 
14. वरन अपक्की भेड़-बकरियों, और खलिहान, और दाखमधु के कुण्ड में से बहुतायत से देना; तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे जैसी आशीष दी हो उसी के अनुसार उसे देना। 
15. और इस बात को स्मरण रखना कि तू भी मिस्र देश में दास या, और तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे छुड़ा लिया; इस कारण मैं आज तुझे यह आज्ञा सुनाता हूं। 
16. और यदि वह तुझ से ओर तेरे घराने से प्रेम रखता है, और तेरे संग आनन्द से रहता हो, और इस कारण तुझ से कहने लगे, कि मैं तेरे पास से न जाऊंगा; 
17. तो सुतारी लेकर उसका कान किवाड़ पर लगाकर छेदना, तब वह सदा तेरा दास बना रहेगा। और अपक्की दासी से भी ऐसा ही करना। 
18. जब तू उसको अपके पास से स्वतंत्र करके जाने दे, तब उसे छोड़ देना तुझ को कठिन न जान पके; क्योंकि उस ने छ: वर्ष दो मजदूरोंके बराबर तेरी सेवा की है। और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सारे कामोंमें तुझ को आशीष देगा।। 
19. तेरी गायोंऔर भेड़-बकरियोंके जितने पहिलौठे नर होंउन सभोंको अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे पवित्र रखना; अपक्की गायोंके पहिलौठोंसे कोई काम न लेना, और न अपक्की भेड़-बकरियोंके पहिलौठोंका ऊन कतरना। 
20. उस स्यान पर जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा तू यहोवा के साम्हने अपके अपके धराने समेत प्रति वर्ष उसका मांस खाना। 
21. परन्तु यदि उस में किसी प्रकार का दोष हो, अर्यात्‌ वह लंगड़ा वा अन्धा हो, वा उस में किसी और ही प्रकार की बुराई का दोष हो, तो उसे अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे बलि न करना। 
22. उसको अपके फाटकोंके भीतर खाना; शुद्ध और अशुद्ध दोनोंप्रकार के मनुष्य जैसे चिकारे और हरिण का मांस खाते हैं वैसे ही उसका भी खा सकेंगे। 
23. परन्तु उसका लोहू न खाना; उसे जल की नाई भूमि पर उंडेल देना।।

Chapter 16

1. आबीब के महीने को स्मरण करके अपके परमेश्वर यहोवा के लिय फसह का पर्व्व मानना; क्योकिं आबीब महीने में तेरा परमेश्वर यहोवा रात को तुझे मिस्र से निकाल लाया। 
2. इसलिथे जो स्यान यहोवा अपके नाम का निवास ठहराने को चुन लेगा, वही अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैल फसह करके बलि करना।
3. उसके संग कोई खमीरी वस्तु न खाना; सात दिन तक अखमीरी रोटी जो दु:ख की रोटी है खाया करना; क्योंकि तू मिस्र देश से उतावली करके निकला या; इसी रीति से तुझ को मिस्र देश से निकलने का दिन जीवन भर स्मरण रहेगा। 
4. सात दिन तक तेरे सारे देश में तेरे पास कहीं खमीर देखने में भी न आए; और जो पशु तू पहिले दिन की संध्या को बलि करे उसके मांस में से कुछ बिहान तक रहने न पाए। 
5. फसह को अपके किसी फाटक के भीतर, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे दे बलि न करना। 
6. जो स्यान तेरा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास करने के लिथे चुन ले केवल वहीं, वर्ष के उसी समय जिस में तू मिस्र से निकला या, अर्यात्‌ सूरज डूबने पर संध्याकाल को, फसह का पशुबलि करना। 
7. तब उसका मांस उसी स्यान में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले भूंजकर खाना; फिर बिहान को उठकर अपके अपके डेरे को लौट जाना। 
8. छ: दिन तक अखीमीरी रोटी खाया करना; और सातवें दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे महासभा हो; उस दिन किसी प्रकार का कामकाज न किया जाए।। 
9. फिर जब तू खेत में हंसुआ लगाने लगे, तब से आरम्भ करके सात अठवारे गिनना। 
10. तब अपके परमेश्वर यहोवा की आशीष के अनुसार उसके लिथे स्वेच्छा बलि देकर अठवारोंनाम पर्व्व मानना; 
11. और उस स्यान में जो तेरा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास करने को चुन ले अपके अपके बेटे-बेटियों, दास-दासियोंसमेत तू और तेरे फाटकोंके भीतर जो लेवीय हों, और जो जो परदेशी, और अनाय, और विधवाएं तेरे बीच में हों, वे सब के सब अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने आनन्द करें। 
12. और स्मरण रखना कि तू भी मिस्र में दास या; इसलिथे इन विधियोंके पालन करने में चौकसी करना।। 
13. तू जब अपके खलिहान और दाखमधु के कुण्ड में से सब कुछ इकट्ठा कर चुके, तब फोपडिय़ोंका पर्व्व सात दिन मानते रहना; 
14. और अपके इस पर्व्व में अपके अपके बेटे बेटियों, दास-दासियोंसमेत तू और जो लेवीय, और परदेशी, और अनाय, और विधवाएं तेरे फाटकोंके भीतर होंवे भी आनन्द करें। 
15. जो स्यान यहोवा चुन ले उस में तु अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे सात दिन तक पर्व्व मानते रहना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तेरी सारी बढ़ती में और तेरे सब कामोंमें तुझ को आशीष देगा; तू आनन्द ही करना। 
16. ुवर्ष में तीन बार, अर्यात्‌ अखमीरी रोटी के पर्व्व, और अठवारोंके पर्व्व, और फोपडिय़ोंके पर्व्व, इन तीनोंपर्व्व में तुम्हारे सब पुरूष अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने उस स्यान में जो वह चुन लेगा जाएं। और देखो, छूछे हाथ यहोवा के साम्हने कोई न जाए; 
17. सब पुरूष अपक्की अपक्की पूंजी, और उस आशीष के अनुसार जो तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझ को दी हो, दिया करें।। 
18. तू अपके एक एक गोत्र में से, अपके सब फाटकोंके भीतर जिन्हें तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देता है न्यायी और सरदार नियुक्त कर लेना, जो लोगोंका न्याय धर्म से किया करें। 
19. तुम न्याय न बिगाड़ना; तू न तो पझपात करना; और न तो घूस लेना, क्योंकि घूस बुद्धिमान की आंखें अन्धी कर देती है, और धमिर्योंकी बातें पलट देती है। 
20. जो कुछ नितान्त ठीक है उसी का पीछा पकड़े रहना, जिस से तू जीवित रहे, और जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसका अधिक्कारनेी बना रहे।। 
21. तू अपके परमेश्वर यहोवा की जो वेदी बनाऐगा उसके पास किसी प्रकार की लकड़ी की बनी हुई अशेरा का स्यापन न करना। 
22. और न कोई लाठ खड़ी करना, क्योंकि उस से तेरा परमेश्वर यहोवा घृणा करता है।।

Chapter 17

1. तू अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे कोई बैल वा भेड़-बकरी बलि न करना जिस में दोष वा किसी प्रकार की खोट हो; क्योंकि ऐसा करना तेरे परमेश्वर यहोवा के समीप घृणित है।। 
2. जो बस्तियां तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, यदि उन में से किसी में कोई पुरूष वा स्त्री ऐसी पाई जाए, जिस ने तेरे परमेश्वर यहोवा की वाचा तोड़कर ऐसा काम किया हो, जो उसकी दृष्टि में बुरा है, 
3. अर्यात्‌ मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके पराए देवताओं की, वा सूर्य, वा चंद्रमा, वा आकाश के गण में से किसी की उपासना की हो, वा उसको दण्डवत किया हो, 
4. और यह बात तुझे बतलाई जाए और तेरे सुनने में आए; तब भली भांति पूछपाछ करना, और यदि यह बात सच ठहरे कि इस्राएल में ऐसा घृणित कर्म किया गया है, 
5. तो जिस पुरूष वा स्त्री ने ऐसा बुरा काम किया हो, उस पुरूष वा स्त्री को बाहर अपके फाटकोंपर ले जाकर ऐसा पत्यरवाह करना कि वह मर जाए। 
6. जो प्राणदण्ड के योग्य ठहरे वह एक ही की साझी से न मार डाला जाए, किन्तु दो वा तीन मनुष्योंकी साझी से मार डाला जाए। 
7. उसके मार डालने के लिथे सब से पहिले साझियोंके हाथ, और उनके बाद और सब लोगोंके हाथ उस पर उठें। इसी रीति से ऐसी बुराई को अपके मध्य से दूर करना।। 
8. यदि तेरी बस्तियोंके भीतर कोई फगड़े की बात हो, अर्यात्‌ आपस के खून, वा विवाद, वा मारपीट का कोई मुकद्दमा उठे, और उसका न्याय करना तेरे लिथे कठिन जान पके, तो उस स्यान को जाकर जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा; 
9. लेवीय याजकोंके पास और उन दिनो के न्यायियोंके पास जाकर पूछताछ करना, कि वे तुम को न्याय की बातें बतलाएं। 
10. और न्याय की जैसी बात उस स्यान के लोग जो यहोवा चुन लेगा तुझे बता दें, उसी के अनुसार करना; और जो व्यवस्या वे तुझे दें उसी के अनुसार चलने में चौकसी करना; 
11. व्यवस्या की जो बात वे तुझे बताएं, और न्याय की जो बात वे तुझ से कहें, उसी के अनुसार करना; जो बात वे तुझ को बाताएं उस से दहिने वा बाएं न मुड़ना। 
12. और जो मनुष्य अभिमान करके उस याजक की, जो वहां तेरे परमेश्वर यहोवा की सेवा टहल करने को उपस्यित रहेगा, न माने, वा उस न्यायी की न सुने, तो वह मनुष्य मार डाला जाए; इस प्रकार तू इस्राएल में से ऐसी बुराई को दूर कर देना। 
13. इस से सब लोग सुनकर डर जाएंगे, और फिर अभिमान नहीं करेंगे।। 
14. जब तू उस देश में पहुंचे जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, और उसका अधिक्कारनेी हो, और उन में बसकर कहने लगे, कि चारोंओर की सब जातियोंकी नाई मैं भी अपके ऊपर राजा ठहराऊंगा; 
15. तब जिसको तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले अवश्य उसी को राजा ठहराना। अपके भाइयोंही में से किसी को अपके ऊपर राजा ठहराना; किसी परदेशी को जो तेरा भाई न हो तू अपके ऊपर अधिक्कारनेी नहीं ठहरा सकता। 
16. और वह बहुत घोड़े न रखे, और न इस मनसा से अपक्की प्रजा के लोगोंको मिस्र में भेजे कि उसके पास बहुत से घोड़े हो जाएं, क्योंकि यहोवा ने तुम से कहा है, कि तुम उस मार्ग से फिर कभी न लौटना। 
17. और वह बहुत स्त्रियां भी न रखे, ऐसा न हो कि उसका मन यहोवा की ओर से पलट जाए; और न वह अपना सोना रूपा बहुत बढ़ाए। 
18. और जब वह राजगद्दी पर विराजमान हो, तब इसी व्यवस्या की पुस्तक, जो लेवीय याजकोंके पास रहेगी, उसकी एक नकल अपके लिथे कर ले। 
19. और वह उसे अपके पास रखे, और अपके जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिस से वह अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्या और इन विधियोंकी सारी बातोंके मानने में चौकसी करना सीखे; 
20. जिस से वह अपके मन में घमण्ड करके अपके भाइयोंको तुच्छ न जाने, और इन आज्ञाओं से न तो दहिने मुड़े और न बाएं; जिस से कि वह और उसके वंश के लोग इस्राएलियोंके मध्य बहुत दिनोंतक राज्य करते रहें।।

Chapter 18

1. लेवीय याजकोंका, वरन सारे लेवीय गोत्रियोंका, इस्राएलियोंके संग कोई भाग वा अंश न हो; उनका भोजन हव्य और यहोवा का दिया हुआ भाग हो। 
2. उनका अपके भाइयोंके बीच कोई भाग न हो; क्योंकि अपके वचन के अनुसार यहोवा उनका निज भाग ठहरा है। 
3. और चाहे गाय-बैल चाहे भेड़-बकरी का मेलबलि हो, उसके करनेवाले लोगोंकी ओर से याजकोंका हक यह हो, कि वे उसका कन्धा और दोनोंगाल और फोफ याजक को दें। 
4. तू उसका अपक्की पहिली उपज का अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल, और अपक्की भेंड़ोंका वह ऊन देना जो पहिली बार कतरा गया हो। 
5. क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे सब गोत्रियोंमें से उसी को चुन लिया है, कि वह और उसके वंश सदा उसके नाम से सेवा टहल करने को उपस्यित हुआ करें।। 
6. फिर यदि कोई लेवीय इस्राएल की बस्तियोंमें से किसी से, जहां वह परदेशी की नाई रहता हो, अपके मन की बड़ी अभिलाषा से उस स्यान पर जाए जिसे यहोवा चुन लेगा, 
7. तो अपके सब लेवीय भाइयोंकी नाईं, जो वहां अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने उपस्यित होंगे, वह भी उसके नाम से सेवा टहल करे। 
8. और अपके पूर्वजोंके भाग की मोल को छोड़ उसको भोजन का भाग भी उनके समान मिला करे।। 
9. जब तू उस देश में पहुंचे जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब वहां की जातियोंके अनुसार घिनौना काम करने को न सीखना। 
10. तुझ में कोई ऐसा न हो जो अपके बेटे वा बेटी को आग में होम करके चढ़ानेवाला, वा भावी कहनेवाला, वा शुभ अशुभ मुहूर्तोंका माननेवाला, वा टोन्हा, वा तान्त्रिक, 
11. वा बाजीगर, वा ओफोंसे पूछनेवाला, वा भूत साधनेवाला, वा भूतोंका जगानेवाला हो। 
12. क्योंकि जितने ऐसे ऐसे काम करते हैं वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं; और इन्हीं घृणित कामोंके कारण तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तेरे साम्हने से निकालने पर है। 
13. तू अपके परमेश्वर यहोवा के सम्मुख सिद्ध बना रहना। 
14. वे जातियां जिनका अधिक्कारनेी तू होने पर है शुभ-अशुभ मुहूर्तोंके माननेवालोंऔर भावी कहनेवालोंकी सुना करती है; परन्तु तुझ को तेरे परमेश्वर यहोवा ने ऐसा करने नहीं दिया। 
15. तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे मध्य से, अर्यात्‌ तेरे भाइयोंमें से मेरे समान एक नबी को उत्पन्न करेगा; तू उसी की सुनना; 
16. यह तेरी उस बिनती के अनुसार होगा, जो तू ने होरेब पहाड़ के पास सभा के दिन अपके परमेश्वर यहोवा से की यी, कि मुझे न तो अपके परमेश्वर यहोवा का शब्द फिर सुनना, और न वह बड़ी आग फिर देखनी पके, कहीं ऐसा न हो कि मर जाऊं। 
17. तब यहोवा ने मुझ से कहा, कि वे जो कुछ कहते हैं सो ठीक कहते हैं। 
18. सो मैं उनके लिथे उनके भाइयोंके बीच में से तेरे समान एक नबी को उत्पन्न करूंगा; और अपना वचन उसके मुंह में डालूंगा; और जिस जिस बात की मैं उसे आज्ञा दूंगा वही वह उनको कह सुनाएगा। 
19. और जो मनुष्य मेरे वह वचन जो वह मेरे नाम से कहेगा ग्रहण न करेगा, तो मैं उसका हिसाब उस से लूंगा। 
20. परन्तु जो नबी अभिमान करके मेरे नाम से कोई ऐसा वचन कहे जिसकी आज्ञा मैं ने उसे न दी हो, वा पराए देवताओं के नाम से कुछ कहे, वह नबी मार डाला जाए। 
21. और यदि तू अपके मन में कहे, कि जो वचन यहोवा ने नहीं कहा उसको हम किस रीति से पहिचानें? 
22. तो पहिचान यह है कि जब कोई नबी यहोवा के नाम से कुछ कहे; तब यदि वह वचन न घटे और पूरा न हो जाए, तो वह वचन यहोवा का कहा हुआ नहीं; परन्तु उस नबी ने वह बात अभियान करके कही है, तू उस से भय न खाना।।

Chapter 19

1. जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियोंको नाश करे जिनका देश वह तुझे देता है, और तू उनके देश का अधिक्कारनेी हो के उनके नगरोंऔर घरोंमें रहने लगे, 
2. तब अपके देश के बीच जिसका अधिक्कारनेी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे कर देता है तीन नगर अपके लिथे अलग कर देना। 
3. और तू अपके लिथे मार्ग भी तैयार करना, और अपके देश के जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे सौंप देता है तीन भाग करना, ताकि हर एक खूनी वहीं भाग जाए। 
4. और जो खूनी वहां भागकर अपके प्राण को बचाए, वह इस प्रकार का हो; अर्यात्‌ वह किसी से बिना पहिले बैर रखे वा उसको बिना जाने बूफे मार डाला हो 
5. जैसे कोई किसी के संग लकड़ी काटने को जंगल में जाए, और वृझ काटने को कुल्हाड़ी हाथ से उठाए, और कुल्हाड़ी बेंट से निकलकर उस भाई को ऐसी लगे कि वह मर जाए तो वह उस नगरोंमें से किसी में भागकर जीवित रहे; 
6. ऐसा न हो कि मार्ग की लम्बाई के कारण खून का पलटा लेनेवाला अपके क्रोध के ज्वलन में उसका पीछा करके उसको जा पकड़े, और मार डाले, यद्यपि वह प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि उस से बैर नहीं रखता या। 
7. इसलिथे मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं, कि अपके लिथे तीन नगर अलग कर रखना। 
8. और यदि तेरा परमेश्वर यहोवा उस शपय के अनुसार जो उस ने तेरे पूर्वजोंसे खाई यी तेरे सिवानोंको बढ़ाकर वह सारा देश तुझे दे, जिसके देने का वचन उस ने तेरे पूर्वजोंको दिया या 
9. यदि तू इन सब आज्ञाओं के मानने में जिन्हें मैं आज तुझ को सुनाता हूं चौकसी करे, और अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखे और सदा उसके मार्गोंपर चलता रहे तो इन तीन नगरोंसे अधिक और भी तीन नगर अलग कर देना, 
10. इसलिथे कि तेरे उस देश में जो तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके देता है किसी निर्दोष का खून न बहाथा जाए, और उसका दोष तुझ पर न लगे। 
11. परन्तु यदि कोई किसी से बैर रखकर उसकी घात में लगे, और उस पर लपककर उसे ऐसा मारे कि वह मर जाए, और फिर उन नगरोंमें से किसी में भाग जाए, 
12. तो उसके नगर के पुरनिथे किसी को भेजकर उसको वहां से मंगाकर खून के पलटा लेनेवाले के हाथ में सौंप दे, कि वह मार डाला जाए। 
13. उस पर तरस न खाना, परन्तु निर्दोष के खून का दोष इस्राएल से दूर करना, जिस से तुम्हारा भला हों।। 
14. जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देता है, उसका जो भाग तुझे मिलेगा, उस में किसी का सिवाना जिसे अगले लोगोंने ठहराया हो न हटाना।। 
15. किसी मनुष्य के विरूद्ध किसी प्रकार के अधर्म वा पाप के विषय में, चाहे उसका पाप कैसा ही क्यो न हो, एक ही जन की साझी न सुनना, परन्तु दो वा तीन साझीयोंके कहने से बात पक्की ठहरे। 
16. यदि कोई फूठी साझी देनेवाला किसी के विरूद्ध याहोवा से फिर जाने की साझी देने को खड़ा हो, 
17. तो वे दोनोंमनुष्य, जिनके बीच ऐसा मुकद्दमा उठा हो, यहोवा के सम्मुख, अर्यात्‌ उन दिनोंके याजकोंऔर न्यायियोंके साम्हने खड़े किए जाएं; 
18. तब न्यायी भली भांति पूछपाछ करें, और यदि यह निर्णय पाए कि वह फूठा साझी है, और अपके भाई के विरूद्ध फूठी साझी दी है 
19. तो अपके भाई की जैसी भी हानि करवाने की युक्ति उस ने की हो वैसी ही तुम भी उसकी करना; इसी रीति से अपके बीच में से ऐसी बुराई को दूर करना। 
20. और दूसरे लोग सुनकर डरेंगे, और आगे को तेरे बीच फिर ऐसा बुरा काम नहीं करेंगे। 
21. और तू बिलकुल तरस न खाना; प्राण की सन्ती प्राण का, आंख की सन्ती आंख का, दांत की सन्ती दांत का, हाथ की सन्ती हाथ का, पांव की सन्ती पांव का दण्ड देना।।

Chapter 20

1. जब तू अपके शत्रुओं से युद्ध करने को जाए, और घोड़े, रय, और अपके से अधिक सेना को देखे, तब उन से न डरना; तेरा परमेश्वर यहोवा जो तुझ को मिस्र देश से निकाल ले आया है वह तेरे संग है। 
2. और जब तुम युद्ध करने को शत्रुओं के निकट जाओ, तब याजक सेना के पास आकर कहे, 
3. हे इस्राएलियोंसुनो, आज तुम अपके शत्रुओं से युद्ध करने को निकट आए हो; तुम्हारा मन कच्चा न हो; तुम मत डरो, और न यरयराओ, और न उनके साम्हने भय खाओ; 
4. क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे शत्रुओं से युद्ध करने और तुम्हें बचाने के लिथे तुम्हारे संग चलता है। 
5. फिर सरदार सिपाहियोंसे यह कहें, कि तुम में से कौन है जिस ने नया घर बनाया हो और उसका समर्पण न किया हो? तो वह अपके घर को लौट जाए और दूसरा मनुष्य उसका समर्पण करे। 
6. और कौन है जिस ने दाख की बारी लगाई हो, परन्तु उसके फल न खाए हों? वह भी अपके घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह संग्राम में मारा जाए, और दूसरा मनुष्य उसके फल खाए। 
7. फिर कौन है जिस ने किसी स्त्री से ब्याह की बात लगाई हो, परन्तु उसको ब्याह न लाया हो? वह भी अपके घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह युद्ध में मारा जाए, और दूसरा मनुष्य उस से ब्याह कर ले। 
8. इसके अलावा सरदार सिपाहियोंसे यह भी कहें, कि कौन कौन मनुष्य है जो डरपोक और कच्चे मन का है, वह भी अपके घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि उसकी देखा देखी उसके भाइयोंका भी हियाव टूट जाए। 
9. और जब प्रधान सिपाहियोंसे यह कह चुकें, तब उन पर प्रधानता करने के लिथे सेनापतियोंको नियुक्त करें।। 
10. जब तू किसी नगर से युद्ध करने को उनके निकट जाए, तब पहिले उस से सन्धि करने का समाचार दे। 
11. और यदि वह सन्धि करना अंगीकार करे और तेरे लिथे अपके फाटक खोल दे, तब जितने उस में होंवे सब तेरे अधीन होकर तेरे लिथे बेगार करनेवाले ठहरें। 
12. परन्तु यदि वे तुझ से सन्धि न करें, परन्तु तुझ से लड़ना चाहें, तो तू उस नगर को घेर लेना; 
13. और जब तेरा परमेश्वर यहोवा उसे तेरे हाथ में सौंप दे तब उस में के सब पुरूषोंको तलवार से मार डालना। 
14. परन्तु स्त्रियां और बालबच्चे, और पशु आदि जितनी लूट उस नगर में हो उसे अपके लिथे रख लेना; और तेरे शत्रुओं की लूट जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे दे उसे काम में लाना। 
15. इस प्रकार उन नगरोंसे करना जो तुझ से बहुत दूर हैं, और इन जातियोंके नगर नहीं हैं। 
16. परन्तु जो नगर इन लोगोंके हैं, जिनका अधिक्कारनेी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को ठहराने पर है, उन में से किसी प्राणी को जीवित न रख छोड़ना, 
17. परन्तु उनको अवश्य सत्यानाश करना, अर्यात्‌ हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों, और यबूसिक्कों, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है; 
18. ऐसा न हो कि जितने घिनौने काम वे अपके देवताओं की सेवा में करते आए हैं वैसा ही करना तुम्हें भी सिखाएं, और तुम अपके परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप करने लगो।। 
19. जब तू युद्ध करते हुए किसी नगर को जीतने के लिथे उसे बहुत दिनोंतक घेरे रहे, तब उसके वृझोंपर कुल्हाड़ी चलाकर उन्हें नाश न करना, क्योंकि उनके फल तेरे खाने के काम आएंगे, इसलिथे उन्हें न काटना। क्या मैदान के वृझ भी मनुष्य हैं कि तू उनको भी घेर रखे? 
20. परन्तु जिन वृझोंके विषय में तू यह जान ले कि इनके फल खाने के नहीं हैं, तो उनको काटकर नाश करना, और उस नगर के विरूद्ध उस समय तक कोट बान्धे रहना जब तक वह तेरे वश में न आ जाए।।

Chapter 21

1. यदि उस देश के मैदान में जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है किसी मारे हुए की लोय पक्की हुई मिले, और उसको किस ने मार डाला है यह जान न पके, 
2. तो तेरे सियाने लोग और न्यायी निकलकर उस लोय के चारोंओर के एक एक नगर की दूरी को नापें; 
3. तब जो नगर उस लोय के सब से निकट ठहरे, उसके सियाने लोग एक ऐसी कलोर ले रखें, जिस से कुछ काम न लिया गया हो, और जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो। 
4. तब उस नगर के सियाने लोग उस कलोर को एक बारहमासी नदी की ऐसी तराई में जो न जोती और न बोई गई हो ले जाएं, और उसी तराई में उस कलोर का गला तोड़ दें। 
5. और लेवीय याजक भी निकट आएं, क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उनको चुन लिया है कि उसकी सेवा टहल करें और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें, और उनके कहने के अनुसार हर एक फगड़े और मारपीट के मुकद्दमे का निर्णय हो। 
6. फिर जो नगर उस लोय के सब से निकट ठहरे, उसके सब सियाने लोग उस कलोर के ऊपर जिसका गला तराई में तोड़ा गया हो अपके अपके हाथ धोकर कहें, 
7. यह खून हम से नहीं किया गया, और न यह हमारी आंखोंका देखा हुआ काम है। 
8. इसलिथे, हे यहोवा, अपक्की छुड़ाई हुई इस्राएली प्रजा का पाप ढांपकर निर्दोष खून का पाप अपक्की इस्राएल प्रजा के सिर पर से उतार। तब उस खून का दोष उनको झमा कर दिया जाएगा। 
9. योंवह काम करके जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है तू निर्दोष के खून का दोष अपके मध्य में से दूर करना।। 
10. जब तू अपके शत्रुओं से युद्ध करने को जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे हाथ में कर दे, और तू उन्हें बन्धुआ कर ले, 
11. तब यदि तू बन्धुओं में किसी सुन्दर स्त्री को देखकर उस पर मोहित हो जाए, और उस से ब्याह कर लेना चाहे, 
12. तो उसे अपके घर के भीतर ले आना, और वह अपना सिर मुंड़ाए, नाखून कटाए, 
13. और अपके बन्धुआई के वस्त्र उतारके तेरे घर में महीने भर रहकर अपके माता पिता के लिथे विलाप करती रहे; उसके बाद तू उसके पास जाना, और तू उसका पति और वह तेरी पत्नी बने। 
14. फिर यदि वह तुझ को अच्छी न लगे, तो जहां वह जाना चाहे वहां उसे जाने देना; उसको रूपया लेकर कहीं न बेचना, और तू ने जो उसकी पत-पानी ली, इस कारण उस से दासी का सा ब्यवहार न करना।। 
15. यदि किसी पुरूष की दो पत्नियां हों, और उसे एक प्रिय और दूसरी अप्रिय हो, और प्रिया और अप्रिया दोनोंस्त्रियां बेटे जने, परन्तु जेठा अप्रिया का हो, 
16. तो जब वह अपके पुत्रोंको सम्पत्ति का बटवारा करे, तब यदि अप्रिया का बेटा जो सचमुच जेठा है यदि जीवित हो, तो वह प्रिया के बेटे को जेठांस न दे सकेगा; 
17. वह यह जानकर कि अप्रिया का बेटा मेरे पौरूष का पहिला फल है, और जेठे का अधिक्कारने उसी का है, उसी को अपक्की सारी सम्पत्ति में से दो भाग देकर जेठांसी माने।। 
18. यदि किसी के हठीला और दंगैत बेटा हो, जो अपके माता-पिता की बात न माने, किन्तु ताड़ना देने पर भी उनकी न सुने, 
19. तो उसके माता-पिता उसे पकड़कर अपके नगर से बाहर फाटक के निकट नगर के सियानोंके पास ले जाएं, 
20. और वे नगर के सियानोंसे कहें, कि हमारा यह बेटा हठीला और दंगैत है, यह हमारी नहीं सुनता; यह उड़ाऊ और पियक्कड़ है। 
21. तब उस नगर के सब पुरूष उसको पत्यरवाह करके मार डाले, योंतू अपके मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना, तब सारे इस्राएली सुनकर भय खाएंगे। 
22. फिर यदि किसी से प्राणदण्ड के योग्य कोई पाप हुआ हो जिस से वह मार डाला जाए, और तू उसकी लोय को वृझ पर लटका दे, 
23. तो वह लोय रात को वृझ पर टंगी न रहे, अवश्य उसी दिन उसे मिट्टी देना, क्योंकि जो लटकाया गया हो वह परमेश्वर की ओर से शापित ठहरता है; इसलिथे जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके देता है उसकी भूमि को अशुद्ध न करना।।

Chapter 22

1. तू अपके भाई के गाय-बैल वा भेड़-बकरी को भटकी हुई देखकर अनदेखी न करना, उसको अवश्य उसके पास पहुंचा देना। 
2. परन्तु यदि तेरा वह भाई निकट न रहता हो, वा तू उसे न जानता हो, तो उस पशु को अपके घर के भीतर ले आना, और जब तक तेरा वह भाई उसको न ढूंढ़े तब तक वह तेरे पास रहे; और जब वह उसे ढूंढ़े तब उसको दे देना। 
3. और उसके गदहे वा वस्त्र के विषय, वरन उसकी कोई वस्तु क्योंन हो, जो उस से खो गई हो और तुझ को मिले, उसके विषय में भी ऐसा ही करना; तू देखी-अनदेखी न करना।। 
4. तू अपके भाई के गदहे वा बैल को मार्ग पर गिरा हुआ देखकर अनदेखी न करना; उसके उठाने में अवश्य उसकी सहाथता करना।। 
5. कोई स्त्री पुरूष का पहिरावा न पहिने, और न कोई पुरूष स्त्री का पहिरावा पहिने; क्योंकि ऐसे कामोंके सब करनेवाले तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।। 
6. यदि वृझ वा भूमि पर तेरे साम्हने मार्ग में किसी चिडिय़ा का घोंसला मिले, चाहे उस में बच्चे होंचाहे अण्डे, और उन बच्चोंवा अण्डोंपर उनकी मां बैठी हुई हो, तो बच्चोंसमेत मां को न लेना; 
7. बच्चोंको अपके लिथे ले तो ले, परन्तु मां को अवश्य छोड़ देना; इसलिथे कि तेरा भला हो, और तेरी आयु के दिन बहुत हों।। 
8. जब तू नया घर बनाए तब उसकी छत पर आड़ के लिथे मुण्डेर बनाना, ऐसा न हो कि कोई छत पर से गिर पके, और तू अपके घराने पर खून का दोष लगाए। 
9. अपक्की दाख की बारी में दो प्रकार के बीज न बोना, ऐसा न हो कि उसकी सारी उपज, अर्यात्‌ तेरा बोया हुआ बीज और दाख की बारी की उपज दोनोंअपवित्र ठहरें। 
10. बैल और गदहा दोनोंसंग जोतकर हल न चलाना। 
11. ऊन और सनी की मिलावट से बना हुआ वस्त्र न पहिनना।। 
12. अपके ओढ़ने के चारोंओर की कोर पर फालर लगाया करना।। 
13. यदि कोई पुरूष किसी स्त्री को ब्याहे, और उसके पास जाने के समय वह उसको अप्रिय लगे, 
14. और वह उस स्त्री की नामधराई करे, और यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाए, कि इस स्त्री को मैं ने ब्याहा, और जब उस से संगति की तब उस में कुंवारी अवस्या के लझण न पाए, 
15. तो उस कन्या के माता-पिता उसके कुंवारीपन के चिन्ह लेकर नगर के वृद्ध लोगोंके पास फाटक के बाहर जाएं; 
16. और उस कन्या का पिता वृद्ध लोगोंसे कहे, मैं ने अपक्की बेटी इस पुरूष को ब्याह दी, और वह उसको अप्रिय लगती है; 
17. और वह तो यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाता है, कि मैं ने तेरी बेटी में कुंवारीपन के लझण नहीं पाए। परन्तु मेरी बेटी के कुंवारीपन के चिन्ह थे हैं। तब उसके माता-पिता नगर के वृद्ध लोगोंके साम्हने उस चद्दर को फैलाएं। 
18. तब नगर के सियाने लोग उस पुरूष को पकड़कर ताड़ना दें; 
19. और उस पर सौ शेकेल रूपे का दण्ड भी लगाकर उस कन्या के पिता को दें, इसलिथे कि उस ने एक इस्राएली कन्या की नामधराई की है; और वह उसी की पत्नी बनी रहे, और वह जीवन भर उस स्त्री को त्यागने न पाए। 
20. परन्तु यदि उस कन्या के कुंवारीपन के चिन्ह पाए न जाएं, और उस पुरूष की बात सच ठहरे, 
21. तो वे उस कन्या को उसके पिता के घर के द्वार पर ले जाएं, और उस नगर के पुरूष उसको पत्यरवाह करके मार डालें; उस ने तो अपके पिता के घर में वेश्या का काम करके बुराई की है; योंतू अपके मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना।। 
22. यदि कोई पुरूष दूसरे पुरूष की ब्याही हुई स्त्री के संग सोता हुआ पकड़ा जाए, तो जो पुरूष उस स्त्री के संग सोया हो वह और वह स्त्री दोनोंमार डालें जाएं; इस प्रकार तू ऐसी बुराई को इस्राएल में से दूर करना।। 
23. यदि किसी कुंवारी कन्या के ब्याह की बात लगी हो, और कोई दूसरा पुरूष उसे नगर में पाकर उस से कुकर्म करे, 
24. तो तुम उन दोनोंको उस नगर के फाटक के बाहर ले जाकर उनको पत्यरवाह करके मार डालना, उस कन्या को तो इसलिथे कि वह नगर में रहते हुए भी नहीं चिल्लाई, और उस पुरूष को इस कारण कि उस ने पड़ोसी की स्त्री की पत-पानी ली है; इस प्रकार तू अपके मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना।। 
25. परन्तु यदि कोई पुरूष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात लगी हो मैदान में पाकर बरबस उस से कुकर्म करे, तो केवल वह पुरूष मार डाला जाए, जिस ने उस से कुकर्म किया हो। 
26. और उस कन्या से कुछ न करना; उस कन्या का पाप प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि जैसे कोई अपके पड़ोसी पर चढ़ाई करके उसे मार डाले, वैसी ही यह बात भी ठहरेगी; 
27. कि उस पुरूष ने उस कन्या को मैदान में पाया, और वह चिल्लाई को सही, परन्तु उसको कोई बचानेवाला न मिला। 
28. यदि किसी पुरूष को कोई कुंवारी कन्या मिले जिसके ब्याह की बात न लगी हो, और वह उसे पकड़कर उसके साय कुकर्म करे, और वे पकड़े जाएं, 
29. तो जिस पुरूष ने उस से कुकर्म किया हो वह उस कन्या के पिता को पचास शेकेल रूपा दे, और वह उसी की पत्नी हो, उस ने उस की पत-पानी ली; इस कारण वह जीवन भर उसे न त्यागने पाए।। 
30. कोई अपक्की सौतेली माता को अपक्की स्त्री न बनाए, वह अपके पिता का ओढ़ना न उघारे।।

Chapter 23

1. जिसके अण्ड कुचले गए वा लिंग काट डाला गया हो वह यहोवा की सभा में न आने पाए।। 
2. कोई कुकर्म से जन्मा हुआ यहोवा की सभा में न आने पाए; किन्तु दस पीढ़ी तक उसके वंश का कोई यहोवा की सभा में न आने पाए।। 
3. कोई अम्मोनी वा मोआबी यहोवा की सभा में न आने पाए; उनकी दसवीं पीढ़ी तक का कोई यहोवा की सभा में कभी न आने पाए; 
4. इस कारण से कि जब तुम मिस्र से निकलकर आते थे तब उन्होंने अन्न जल लेकर मार्ग में तुम से भेंट नहीं की, और यह भी कि उन्होंने अरम्नहरैम देश के पतोर नगरवाले बोर के पुत्र बिलाम को तुझे शाप देने के लिथे दझिणा दी। 
5. परन्तु तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे निमित्त उसके शाप को आशीष से पलट दिया, इसलिथे कि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से प्रेम रखता या। 
6. तू जीवन भर उनका कुशल और भलाई कभी न चाहना। 
7. किसी एदोमी से घृणा न करना, क्योंकि वह तेरा भाई है; किसी मिस्री से भी घृणा न करना, क्योंकि उसके देश में तू परदेशी होकर रहा या। 
8. उनके जो परपोते उत्पन्न होंवे यहोवा की सभा में न आने पाएं। 
9. जब तू शत्रुओं से लड़ने को जाकर छावनी डाले, तब सब प्रकार की बुरी बातोंसे बचा रहना। 
10. यदि तेरे बीच कोई पुरूष उस अशुद्धता से जो रात्रि को आप से आप हुआ करती है अशुद्ध हुआ हो, तो वह छावनी से बाहर जाए, और छावनी के भीतर न आए; 
11. परन्तु संध्या से कुछ पहिले वह स्नान करे, और जब सूर्य डूब जाए तब छावनी में आए। 
12. छावनी के बाहर तेरे दिशा फिरने का एक स्यान हुआ करे, और वहीं दिशा फिरने को जाया करना; 
13. और तेरे पास के हयियारोंमें एक खनती भी रहे; और जब तू दिशा फिरने को बैठे, तब उस से खोदकर अपके मल को ढांप देना। 
14. क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बचाने और तेरे शत्रुओं को तुझ से हरवाने को तेरी छावनी के मध्य घूमता रहेगा, इसलिथे तेरी छावनी पवित्र रहनी चाहिथे, ऐसा न हो कि वह तेरे मध्य में कोई अशुद्ध वस्तु देखकर तुझ से फिर जाए।। 
15. जो दास अपके स्वामी के पास से भागकर तेरी शरण ले उसको उसके स्वामी के हाथ न पकड़ा देना; 
16. वह तेरे बीच जो नगर उसे अच्छा लगे उसी में तेरे संग रहने पाए; और तू उस पर अन्धेर न करना।। 
17. इस्राएली स्त्रियोंमें से कोई देवदासी न हो, और न इस्राएलियोंमें से कोई पुरूष ऐसा बुरा काम करनेवाला हो। 
18. तू वेश्यापन की कमाई वा कुत्ते की कमाई किसी मन्नत को पूरी करने के लिथे अपके परमेश्वर यहोवा के घर में न लाना; क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा के समीप थे दोनोंकी दोनोंकमाई घृणित कर्म है।। 
19. अपके किसी भाई को ब्याज पर ऋण न देना, चाहे रूपया हो, चाहे भोजन-वस्तु हो, चाहे कोई वस्तु हो जो ब्याज पर दी जाति है, उसे ब्याज न देना। 
20. तू परदेशी को ब्याज पर ऋण तो दे, परन्तु अपके किसी भाई से ऐसा न करना, ताकि जिस देश का अधिक्कारनेी होने को तू जा रहा है, वहां जिस जिस काम में अपना हाथ लगाए, उन सभोंको तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे आशीष दे।। 
21. जब तू अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे मन्नत माने, तो उसके पूरी करने में विलम्ब न करना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा उसे निश्चय तुझ से ले लेगा, और विलम्ब करने से तू पापी ठहरेगा। 
22. परन्तु यदि तू मन्नत न माने, तो तेरा कोई पाप नहीं। 
23. जो कुछ तेरे मुंह से निकले उसके पूरा करने में चौकसी करना; तू अपके मुंह से वचन देकर अपक्की इच्छा से अपके परमेश्वर यहोवा की जैसी मन्नत माने, वैसा ही स्वतंत्रता पूर्वक उसे पूरा करना। 
24. जब तू किसी दूसरे की दाख की बारी में जाए, तब पेट भर मनमाने दाख खा तो खा, परन्तु अपके पात्र में कुछ न रखना। 
25. और जब तू किसी दूसरे के खड़े खेत में जाए, तब तू हाथ से बालें तोड़ सकता है, परन्तु किसी दूसरे के खड़े खेत पर हंसुआ न लगाना।।

Chapter 24

1. यदि कोई पुरूष किसी स्त्री को ब्याह ले, और उसके बाद उसमें लज्जा की बात पाकर उस से अप्रसन्न हो, तो वह उसके लिथे त्यागपत्र लिखकर और उसके हाथ में देकर उसको अपके घर से निकाल दे। 
2. और जब वह उसके घर से निकल जाए, तब दूसरे पुरूष की हो सकती है। 
3. परन्तु यदि वह उस दूसरे पुरूष को भी अप्रिय लगे, और वह उसके लिथे त्यागपत्र लिखकर उसके हाथ में देकर उसे अपके घर से निकाल दे, वा वह दूसरा पुरूष जिस ने उसको अपक्की स्त्री कर लिया हो मर जाए, 
4. तो उसका पहिला पति, जिस ने उसको निकाल दिया हो, उसके अशुद्ध होने के बाद उसे अपक्की पत्नी न बनाने पाए क्योंकि यह यहोवा के सम्मुख घृणित बात है। इस प्रकार तू उस देश को जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है पापी न बनाना।। 
5. जो पुरूष हाल का ब्याहा हुआ हो, वह सेना के साय न जाए और न किसी काम का भार उस पर डाला जाए; वह वर्ष भर अपके घर में स्वतंत्रता से रहकर अपक्की ब्याही हुई स्त्री को प्रसन्न करता रहे। 
6. कोई मनुष्य चक्की को वा उसके ऊपर के पाट को बन्धक न रखे; क्योंकि वह तो मानोंप्राण ही को बन्धक रखना है।। 
7. यदि कोई अपके किसी इस्राएली भाई को दास बनाने वा बेच डालने की मनसा से चुराता हुआ पकड़ा जाए, तो ऐसा चोर मार डाला जाए; ऐसी बुराई को अपके मध्य में से दूर करना।। 
8. कोढ़ की ब्याधि के विषय में चौकस रहना, और जो कुछ लेवीय याजक तुम्हें सिखाएं उसी के अनुसार यत्न से करने में चौकसी करना; जैसी आज्ञा मैं ने उनको दी है वैसा करने में चौकसी करना। 
9. स्मरण रख कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने, जब तुम मिस्र से निकलकर आ रहे थे, तब मार्ग में मरियम से क्या किया। 
10. जब तू अपके किसी भाई को कुछ उधार दे, तब बन्धक की वस्तु लेने के लिथे उसके घर के भीतर न घुसना। 
11. तू बाहर खड़ा रहना, और जिसको तू उधार दे वही बन्धक की वस्तु को तेरे पास बाहर ले आए। 
12. और यदि वह मनुष्य कंगाल हो, तो उसका बन्धक अपके पास रखे हुए न सोना; 
13. सूर्य अस्त होते होते उसे वह बन्धक अवश्य फेर देना, इसलिथे कि वह अपना ओढ़ना ओढ़कर सो सके और तुझे आशीर्वाद दे; और यह तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में धर्म का काम ठहरेगा।। 
14. कोई मजदूर जो दीन और कंगाल हो, चाहे वह तेरे भाइयोंमें से हो चाहे तेरे देश के फाटकोंके भीतर रहनेवाले परदेशियोंमें से हो, उस पर अन्धेर न करना; 
15. यह जानकर, कि वह दीन है और उसका मन मजदूरी में लगा रहता है, मजदूरी करने ही के दिन सूर्यास्त से पहिले तू उसकी मजदूरी देना; ऐसा न हो कि वह तेरे कारण यहोवा की दोहाई दे, और तू पापी ठहरे।। 
16. पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए; जिस ने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए।। 
17. किसी पकेदशी मनुष्य वा अनाय बालक का न्याय न बिगाड़ना, और न किसी विधवा के कपके को बन्धक रखना; 
18. और इस को स्मरण रखना कि तू मिस्र में दास या, और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे वहां से छुड़ा लाया है; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं।। 
19. जब तू अपके पक्के खेत को काटे, और एक पूला खेत में भूल से छूट जाए, तो उसे लेने को फिर न लौट जाना; वह परदेशी, अनाय, और विधवा के लिथे पड़ा रहे; इसलिथे कि परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामोंमें तुझ को आशीष दे। 
20. जब तू अपके जलपाई के वृझ को फाड़े, तब डालियोंको दूसरी बार न फाड़ना; वह परदेशी, अनाय, और विधवा के लिथे रह जाए। 
21. जब तू अपक्की दाख की बारी के फल तोड़े, तो उसका दाना दाना न तोड़ लेना; वह परदेशी, अनाय और विधवा के लिथे रह जाए। 
22. और इसको स्मरण रखना कि तू मिस्र देश में दास या; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं।।

Chapter 25

1. यदि मनुष्योंके बीच कोई फगड़ा हो, और वे न्याय करवाने के लिथे न्यायियोंके पास जाएं, और वे उनका न्याय करें, तो निर्दोष को निर्दोष और दोषी को दोषी ठहराएं। 
2. और यदि दोषी मार खाने के योग्य ठहरे, तो न्यायी उसको गिरवाकर अपके साम्हने जैसा उसका दोष हो उसके अनुसार कोड़े गिनकर लगवाए। 
3. वह उसे चालीस कोड़े तक लगवा सकता है, इस से अधिक नहीं लगवा सकता; ऐसा न हो कि इस से अधिक बहुत मार खिलवाने से तेरा भाई तेरी दृष्टि में तुच्छ ठहरे।। 
4. दांवते समय चलते हुए बैल का मुंह न बान्धना। 
5. जब कोई भाई संग रहते हों, और उन में से एक निपुत्र मर जाए, तो उसकी स्त्री का ब्याह परगोत्री से न किया जाए; उसके पति का भाई उसके पास जाकर उसे अपक्की पत्नी कर ले, और उस से पति के भाई का धर्म पालन करे। 
6. और जो पहिला बेटा उस स्त्री से उत्पन्न हो वह उस मरे हुए भाई के नाम का ठहरे, जिस से कि उसका नाम इस्राएल में से मिट न जाए। 
7. यदि उस स्त्री के पति के भाई को उसे ब्याहना न भाए, तो वह स्त्री नगर के फाटक पर वृद्ध लोगोंके पास जाकर कहे, कि मेरे पति के भाई ने अपके भाई का नाम इस्त्राएल में बनाए रखने से नकार दिया है, और मुझ से पति के भाई का धर्म पालन करना नहीं चाहता। 
8. तब उस नगर के वृद्ध उस पुरूष को बुलवाकर उसे समझाएं; और यदि वह अपक्की बात पर अड़ा रहे, और कहे, कि मुझे इसको ब्याहना नहीं भावता, 
9. तो उसके भाई की पत्नी उन वृद्ध लोगोंके साम्हने उसके पास जाकर उसके पांव से जूती उतारे, और उसके मूंह पर यूक दे; और कहे, जो पुरूष अपके भाई के वंश को चलाना न चाहे उस से इसी प्रकार व्यवहार किया जाएगा। 
10. तब इस्राएल में उस पुरूष का यह नाम पकेगा, अर्यात्‌ जूती उतारे हुए पुरूष का घराना।। 
11. यदि दो पुरूष आपस में मारपीट करते हों, और उन में से एक की पत्नी अपके पति को मारनेवाले के हाथ से छुड़ाने के लिथे पास जाए, और अपना हाथ बढ़ाकर उसके गुप्त अंग को पकड़े, 
12. तो उस स्त्री का हाथ काट डालना; उस पर तरस न खाना।। 
13. अपक्की यैली में भांति भांति के अर्यात्‌ घटती-बढ़ती बटखरे न रखना। 
14. अपके घर में भांति भांति के, अर्यात्‌ घटती-बढती नपुए न रखना। 
15. तेरे बटखरे और नपुए पूरे पूरे और धर्म के हों; इसलिथे कि जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तेरी आयु बहुत हो। 
16. क्योंकि ऐसे कामोंमें जितने कुटिलता करते हैं वे सब तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।। 
17. स्मरण रख कि जब तू मिस्र से निकलकर आ रहा या तब अमालेक ने तुझ से मार्ग में क्या किया, 
18. अर्यात्‌ उनको परमेश्वर का भय न या; इस कारण उस ने जब तू मार्ग में यका मांदा या, तब तुझ पर चढ़ाई करके जितने निर्बल होने के कारण सब से पीछे थे उन सभोंको मारा। 
19. इसलिथे जब तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में, जो वह तेरा भाग करके तेरे अधिक्कारने में कर देता है, तुझे चारोंओर के सब शत्रुओं से विश्रम दे, तब अमालेक का नाम धरती पर से मिटा डालना; और तुम इस बात को न भूलना।।

Chapter 26

1. फिर जब तू उस देश में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके तुझे देता है पहुंचे, और उसका अधिक्कारनेी होकर उन में बस जाए, 
2. तब जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, उसकी भूमि की भांति भांति की जो पहिली उपज तू अपके घर लाएगा, उस में से कुछ टोकरी में लेकर उस स्यान पर जाना, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास करने को चुन ले। 
3. और उन दिनोंके याजक के पास जाकर यह कहना, कि मैं आज तेरे परमेश्वर यहोवा के साम्हने निवेदन करता हूं, कि यहोवा ने हम लोगोंको जिस देश के देने की हमारे पूर्वजोंसे शपय खाई यी उस में मैं आ गया हूं। 
4. तब याजक तेरे हाथ से वह टोकरी लेकर तेरे परमेश्वर यहोवा की वेदी के साम्हने धर दे। 
5. तब तू अपके परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार कहना, कि मेरा मूलपुरूष एक अरामी मनुष्य या जो मरने पर या; और वह अपके छोटे से परिवार समेत मिस्र को गया, और वहां परदेशी होकर रहा; और वहंा उस से एक बड़ी, और सामर्यी, और बहुत मनुष्योंसे भरी हुई जाति उत्पन्न हुई। 
6. और मिस्रियोंने हम लोगोंसे बुरा बर्ताव किया, और हमें दु:ख दिया, और हम से कठिन सेवा लीं। 
7. परन्तु हम ने अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने हमारी सुनकर हमारे दुख-श्र्म और अन्धेर पर दृष्टि की; 
8. और यहोवा ने बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से अति भयानक चिन्ह और चमत्कार दिखलाकर हम को मिस्र से निकाल लाया; 
9. और हमें इस स्यान पर पहुंचाकर यह देश जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं हमें दे दिया है। 
10. अब हे यहोवा, देख, जो भूमि तू ने मुझे दी है उसकी पहली उपज मैं तेरे पास ले आया हूं। 
11. तब तू उसे अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने रखना; और यहोवा को दण्डवत करना; 
12. और जितने अच्छे पदार्य तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे और तेरे घराने को दे, उनके कारण तू लेवीयोंऔर अपके मध्य में रहनेवाले परदेशियोंसहित आनन्द करना।। 
13. और तू अपके परमेश्वर यहोवा से कहना, कि मैं ने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार पवित्र ठहराई हुई वस्तुओं को अपके घर से निकाला, और लेवीय, परदेशी, अनाय, और विधवा को दे दिया है; तेरी किसी आज्ञा को मैं ने न तो टाला है, और न भूला है। 
14. उन वस्तुओं में से मैं ने शोक के समय नहीं खाया, और न उन में से कोई वस्तु अशुद्धता की दशा में घर से निकाली, और न कुछ शोक करनेवालोंको दिया; मैं ने अपके परमेश्वर यहोवा की सुन ली, मैं ने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया है। 
15. तू स्वर्ग में से जो तेरा पवित्र धाम है दृष्टि करके अपक्की प्रजा इस्राएल को आशीष दे, और इस दूध और मधु की धाराओं के देश की भूमि पर आशीष दे, जिसे तू ने हमारे पूर्वजोंसे खाई हुई शपय के अनुसार हमें दिया है। 
16. आज के दिन तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को इन्हीं विधियोंऔर नियमोंके मानने की आज्ञा देता है; इसलिथे अपके सारे मन और सारे प्राण से इनके मानने में चौकसी करना। 
17. तू ने तो आज यहोवा को अपना परमेश्वर मानकर यह वचन दिया है, कि मैं तेरे बनाए हुए मागार्ें पर चलूंगा, और तेरी विधियों, आज्ञाओं, और नियमोंको माना करूंगा, और तेरी सुना करूंगा। 
18. और यहोवा ने भी आज तुझ को अपके वचन के अनुसार अपना प्रजारूपी निज धन सम्पत्ति माना है, कि तू उसकी सब आज्ञाओं को माना करे, 
19. और कि वह अपक्की बनाई हुई सब जातियोंसे अधिक प्रशंसा, नाम, और शोभा के विषय में तुझ को प्रतिष्ठित करे, और तू उसके वचन के अनुसार अपके परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा बना रहे।

Chapter 27

1. फिर इस्राएल के वृद्ध लोगोंसमेत मूसा ने प्रजा के लोगोंको यह आज्ञा दी, कि जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सब को मानना। 
2. और जब तुम यरदन पार होके उस देश में पहुंचो, जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब बड़े बड़े पत्यर खड़े कर लेना, और उन पर चूना पोतना; 
3. और पार होने के बाद उन पर इस व्यवस्या के सारे वचनोंको लिखना, इसलिथे कि जो देश तेरे पूर्वजोंका परमेश्वर यहोवा अपके वचन के अनुसार तुझे देता है, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, उस देश में तू जाने पाए। 
4. फिर जिन पत्यरोंके विषय में मैं ने आज आज्ञा दी है, उन्हें तुम यरदन के पार होकर एबाल पहाड़ पर खड़ा करना, और उन पर चूना पोतना। 
5. और वहीं अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे पत्यरोंकी एक वेदी बनाना, उन पर कोई औजार न चलाना। 
6. अपके परमेश्वर यहोवा की वेदी अनगढ़े पत्यरोंकी बनाकर उन पर उसके लिथे होमबलि चढ़ाना; 
7. और वहीं मेलबलि भी चढ़ाकर भोजन करना, और अपके परमेश्वर यहोवा के सम्मुख आनन्द करना। 
8. और उन पत्यरोंपर इस व्यवस्या के सब वचनोंको शुद्ध रीति से लिख देना।। 
9. फिर मूसा और लेवीय याजकोंने सब इस्राएलियोंसे यह भी कहा, कि हे इस्राएल, चुप रहकर सुन; आज के दिन तू अपके परमेश्वर यहोवा की प्रजा हो गया है। 
10. इसलिथे अपके परमेश्वर यहोवा की बात मानना, और उसकी जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका पालन करना। 
11. फिर उसी दिन मूसा ने प्रजा के लोगोंको यह आज्ञा दी, 
12. कि जब तुम यरदन पार हो जाओ तब शिमौन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, युसुफ, और बिन्यामीन, थे गिरिज्जीम पहाड़ पर खडे होकर आशीर्वाद सुनाएं। 
13. और रूबेन, गाद, आशेर, जबूलून, दान, और नप्ताली, थे एबाल पहाड़ पर खड़े होके शाप सुनाएं। 
14. तब लेवीय लोग सब इस्राएली पुरूषोंसे पुकारके कहें, 
15. कि शापित हो वह मनुष्य जो कोई मूत्तिर् कारीगर से खुदवाकर वा ढलवाकर निराले स्यान में स्यापन करे, क्योंकि इस से यहोवा को घृणा लगती है। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
16. शापित हो वह जो अपके पिता वा माता को तुच्छ जाने। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
17. शापित हो वह जो किसी दूसरे के सिवाने को हटाए। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
18. शापित हो वह जो अन्धे को मार्ग से भटका दे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
19. शापित हो वह जो पकेदशी, अनाय, वा विधवा का न्याय बिगाड़े। तब सब लोग कहें आमीन।। 
20. शापित हो वह जो अपक्की सौतेली माता से कुकर्म करे, क्योकिं वह अपके पिता का ओढ़ना उघारता है। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
21. शापित हो वह जो किसी प्रकार के पशु से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
22. शापित हो वह जो अपक्की बहिन, चाहे सगी हो चाहे सौतेली, उस से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
23. शापित हो वह जो अपक्की सास के संग कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
24. शापित हो वह जो किसी को छिपकर मारे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
25. शापित हो वह जो निर्दोष जन के मार डालने के लिथे धन ले। तब सब लोग कहें, आमीन।। 
26. शापित हो वह जो इस व्यवस्या के वचनोंको मानकर पूरा न करे। तब सब लोग कहें, आमीन।।

Chapter 28

1. यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाएं, जो मैं आज तुझे सुनाता हूं, चौकसी से पूरी करने का चित्त लगाकर उसकी सुने, तो वह तुझे पृय्वी की सब जातियोंमें श्रेष्ट करेगा। 
2. फिर अपके परमेश्वर यहोवा की सुनने के कारण थे सब आर्शीवाद तुझ पर पूरे होंगे। 
3. धन्य हो तू नगर में, धन्य हो तू खेत में। 
4. धन्य हो तेरी सन्तान, और तेरी भूमि की उपज, और गाय और भेड़-बकरी आदि पशुओं के बच्चे। 
5. धन्य हो तेरी टोकरी और तेरी कठौती। 
6. धन्य हो तू भीतर आते समय, और धन्य हो तू बाहर जाते समय। 
7. यहोवा ऐसा करेगा कि तेरे शत्रु जो तुझ पर चढ़ाई करेंगे वे तुझ से हार जाएंगे; वे एक मार्ग से तुझ पर चढ़ाई करेंगे, परन्तु तेरे साम्हने से सात मार्ग से होकर भाग जाएंगे। 
8. तेरे खत्तोंपर और जितने कामोंमें तू हाथ लगाएगा उन सभोंपर यहोवा आशीष देगा; इसलिथे जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में वह तुझे आशीष देगा। 
9. यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को मानते हुए उसके मार्गोंपर चले, तो वह अपक्की शपय के अनुसार तुझै अपक्की पवित्र प्रजा करके स्यिर रखेगा। 
10. और पृय्वी के देश देश के सब लोग यह देखकर, कि तू यहोवा का कहलाता है, तुझ से डर जाएंगे। 
11. और जिस देश के विषय यहोवा ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर तुझे देने को कहा, या उस में वह तेरी सन्तान की, और भूमि की उपज की, और पशुओं की बढ़ती करके तेरी भलाई करेगा। 
12. यहोवा तेरे लिथे अपके आकाशरूपी उत्तम भण्डार को खोलकर तेरी भूमि पर समय पर मेंह बरसाया करेगा, और तेरे सारे कामोंपर आशीष देगा; और तू बहुतेरी जातियोंको उधार देगा, परन्तु किसी से तुझे उधार लेना न पकेगा। 
13. और यहोवा तुझ को पुंछ नहीं, किन्तु सिर ही ठहराएगा, और तू नीचे नहीं, परन्तु ऊपर ही रहेगा; यदि परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं, तू उनके मानने में मन लगाकर चौकसी करे; 
14. और जिन वचनोंकी मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं उन में से किसी से दहिने वा बाएं मुड़के पराथे देवताओं के पीछे न हो ले, और न उनकी सेवा करे।। 
15. परन्तु यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा की बात न सुने, और उसकी सारी आज्ञाओं और विधियोंके पालने में जो मैं आज सुनाता हूं चौकसी नहीं करेगा, तो थे सब शाप तुझ पर आ पकेंगे। 
16. अर्यात्‌ शापित हो तू नगर में, शापित हो तू खेत में। 
17. शापित हो तेरी टोकरी और तेरी कठौती। 
18. शापित हो तेरी सन्तान, और भूमि की उपज, और गायोंऔर भेड़-बकरियोंके बच्चे। 
19. शापित हो तू भीतर आते समय, और शापित हो तू बाहर जाते समय। 
20. फिर जिस जिस काम में तू हाथ लगाए, उस में यहोवा तब तक तुझ को शाप देता, और भयातुरं करता, और धमकी देता रहेगा, जब तक तू मिट न जाए, और शीघ्र नष्ट न हो जाए; यह इस कारण होगा कि तू यहोवा को त्यागकर दुष्ट काम करेगा। 
21. और यहोवा ऐसा करेगा कि मरी तुझ में फैलकर उस समय तक लगी रहेगी, जब तक जिस भूमि के अधिक्कारनेी होने के लिथे तू जा रहा है उस से तेरा अन्त न हो जाए। 
22. यहोवा तुझ को झयरोग से, और ज्वर, और दाह, और बड़ी जलन से, और तलवार से, और फुलस, और गेरूई से मारेगा; और थे उस समय तक तेरा पीछा किथे रहेंगे, तब तक तू सत्यानाश न हो जाए। 
23. और तेरे सिर के ऊपर आकाश पीतल का, और तेरे पांव के तले भूमि लोहे की हो जाएगी। 
24. यहोवा तेरे देश में पानी के बदले बालू और धूलि बरसाएगा; वह आकाश से तुझ पर यहां तक बरसेगी कि तू सत्यानाश हो जाएगा। 
25. यहोवा तुझ को शत्रुओं से हरवाएगा; और तू एक मार्ग से उनका साम्हना करने को जाएगा, परन्तु सात मार्ग से होकर उनके साम्हने से भाग जाएगा; और पृय्वी के सब राज्योंमें मारा मारा फिरेगा। 
26. और तेरी लोय आकाश के भांति भांति के पझियों, और धरती के पशुओं का आहार होगी; और उनका कोई हाँकनेवाला न होगा। 
27. यहोवा तुझ को मिस्र के से फोड़े, और बवासीर, और दाद, और खुजली से ऐसा पीड़ित करेगा, कि तू चंगा न हो सकेगा। 
28. यहोवा तुझे पागल और अन्धा कर देगा, और तेरे मन को अत्यन्त घबरा देगा; 
29. और जैसे अन्धा अन्धिक्कारने में टटोलता है वैसे ही तू दिन दुपहरी में टटोलता फिरेगा, और तेरे काम काज सुफल न होंगे; और तू सदैव केवल अन्धेर सहता और लुटता ही रहेगा, और तेरा कोई छुड़ानेवाला न होगा। 
30. तू स्त्री से ब्याह की बात लगाएगा, परन्तु दूसरा पुरूष उसको भ्रष्ट करेगा; घर तू बनाएगा, परन्तु उस में बसने न पाएगा; दाख की बारी तू लगाएगा, परन्तु उसके फल खाने न पाएगा। 
31. तेरा बैल तेरी आंखोंके साम्हने मारा जाएगा, और तू उसका मांस खाने न पाएगा; तेरा गदहा तेरी आंख के साम्हने लूट में चला जाएगा, और तुझे फिर न मिलेगा; तेरी भेड़-बकरियां तेरे शत्रुओं के हाथ लग जाएंगी, और तेरी ओर से उनका कोई छुड़ानेवाला न होगा। 
32. तेरे बेटे-बेटियां दूसरे देश के लोगोंके हाथ लग जाएंगे, और उनके लिथे चाव से देखते देखते तेरी आंखे रह जाएंगी; और तेरा कुछ बस न चलेगा। 
33. तेरी भूमि की उपज और तेरी सारी कमाई एक अनजाने देश के लोगे खा जाएंगे; और सर्वदा तू केवल अन्धेर सहता और पीसा जाता रहेगा; 
34. यहां तक कि तू उन बातोंके कारण जो अपक्की आंखोंसे देखेगा पागल हो जाएगा। 
35. यहोवा तेरे घुटनोंऔर टांगोंमें, वरन नख से शिख तक भी असाध्य फोड़े निकालकर तुझ को पीड़ित करेगा। 
36. यहोवा तुझ को उस राजा समेत, जिस को तू अपके ऊपर ठहराएगा, तेरी और तेरे पूर्वजोंसे अनजानी एक जाति के बीच पहुंचाएगा; और उसके मध्य में रहकर तू काठ और पत्यर के दूसरे देवताओं की उपासना और पूजा करेगा। 
37. और उन सब जातियोंमें जिनके मध्य में यहोवा तुझ को पहुंचाएगा, वहां के लोगोंके लिथे तू चकित होने का, और दृष्टान्त और शाप का कारण समझा जाएगा। 
38. तू खेत में बीज तो बहुत सा ले जाएगा, परन्तु उपज योड़ी ही बटोरेगा; क्योंकि टिड्डियां उसे खा जाएंगी। 
39. तू दाख की बारियां लगाकर उन मे काम तो करेगा, परन्तु उनकी दाख का मधु पीने न पाएगा, वरन फल भी तोड़ने न पाएगा; क्योंकि कीड़े उनको खा जाएंगे। 
40. तेरे सारे देश में जलपाई के वृझ तो होंगे, परन्तु उनका तेल तू अपके शरीर में लगाने न पाएगा; क्योंकि वे फड़ जाएंगे। 
41. तेरे बेटे-बेटियां तो उत्पन्न होंगे, परन्तु तेरे रहेंगे नहीं; क्योंकि वे बन्धुवाई में चले जाएंगे। 
42. तेरे सब वृझ और तेरी भूमि की उपज टिड्डियां खा जाएंगी। 
43. जो परदेशी तेरे मध्य में रहेगा वह तुझ से बढ़ता जाएगा; और तू आप घटता चला जाएगा। 
44. वह तुझ को उधार देगा, परन्तु तू उसको उधार न दे सकेगा; वह तो सिर और तू पूंछ ठहरेगा। 
45. तू जो अपके परमेश्वर यहोवा की दी हुई आज्ञाओं और विधियोंके मानने को उसकी न सुनेगा, इस कारण थे सब शाप तुझ पर आ पकेंगे, और तेरे पीछे पके रहेंगे, और तुझ को पकड़ेंगे, और अन्त में तू नष्ट हो जाएगा। 
46. और वे तुझ पर और तेरे वंश पर सदा के लिथे बने रहकर चिन्ह और चमत्कार ठहरेंगे; 
47. तू जो सब पदार्य की बहुतायत होने पर भी आनन्द और प्रसन्नता के साय अपके परमेश्वर यहोवा की सेवा नहीं करेगा, 
48. इस कारण तुझ को भूखा, प्यासा, नंगा, और सब पदार्योंसे रहित होकर अपके उन शत्रुओं की सेवा करनी पकेगी जिन्हें यहोवा तेरे विरूद्ध भेजेगा; और जब तक तू नष्ट न हो जाए तब तक वह तेरी गर्दन पर लेहे का जूआ डाल रखेगा। 
49. यहोवा तेरे विरूद्ध दूर से, वरन पृय्वी के छोर से वेग उड़नेवाले उकाब सी एक जाति को चढ़ा लाएगा जिसकी भाषा को तू न समझेगा; 
50. उस जाति के लोगोंका व्यवहार क्रूर होगा, वे न तो बूढ़ोंका मुंह देखकर आदर करेंगे, और न बालकोंपर दया करेंगे; 
51. और वे तेरे पशुओं के बच्चे और भूमि की उपज यहां तक खा जांएगे कि तू नष्ट हो जाएगा; और वे तेरे लिथे न अन्न, और न नया दाखमधु, और न टटका तेल, और न बछड़े, न मेम्ने छोड़ेंगे, यहां तक कि तू नाश हो जाएगा। 
52. और वे तेरे परमेश्वर यहोवा के दिथे हुए सारे देश के सब फाटकोंके भीतर तुझे घेर रखेंगे; वे तेरे सब फाटकोंके भीतर तुझे उस समय तक घेरेंगे, जब तक तेरे सारे देश में तेरी ऊंची ऊंची और दृढ़ शहरपनाहें जिन पर तू भरोसा करेगा गिर न जाएं। 
53. तब घिर जाने और उस सकेती के समय जिस में तेरे शत्रु तुझ को डालेंगे, तू अपके निज जन्माए बेटे-बेटियोंका मांस जिन्हें तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देगा खाएगा। 
54. और तुझ में जो पुरूष कोमल और अति सुकुमार हो वह भी अपके भाई, और अपक्की प्राणप्यारी, और अपके बचे हुए बालकोंको क्रूर दृष्टि से देखेगा; 
55. और वह उन में से किसी को भी अपके बालकोंके मांस में से जो वह आप खाएगा कुछ न देगा, क्योंकि घिर जाने और उस सकेती में, जिस में तेरे शत्रु तेरे सारे फाटकोंके भीतर तुझे घेर डालेंगे, उसके पास कुछ न रहेगा। 
56. और तुझ में जो स्त्री यहां तक कोमल और सुकुमार हो कि सुकुमारपन के और कोमलता के मारे भूमि पर पांव धरते भी डरती हो, वह भी अपके प्राणप्रिय पति, और बेटे, और बेटी को, 
57. अपक्की खेरी, वरन अपके जने हुए बच्चोंको क्रूर दृष्टि से देखेगी, क्योंकि घिर जाने और सकेती के समय जिस में तेरे शत्रु तुझे तेरे फाटकोंके भीतर घेरकर रखेंगे, वह सब वस्तुओं की घटी के मारे उन्हें छिप के खाएगी। 
58. यदि तू इन व्यवस्या के सारे वचनोंके पालने में, जो इस पुस्तक में लिखें है, चौकसी करके उस आदरनीय और भययोग्य नाम का, जो यहोवा तेरे परमेश्वर का है भय न माने, 
59. तो यहोवा तुझ को और तेरे वंश को अनोखे अनोखे दण्ड देगा, वे दुष्ट और बहुत दिन रहनेवाले रोग और भारी भारी दण्ड होंगे। 
60. और वह मिस्र के उन सब रोगोंको फिर तेरे ऊपर लगा देगा, जिन से तू भय खाता या; और वे तुझ में लगे रहेंगे। 
61. और जितने रोग आदि दण्ड इस व्यवस्या की पुस्तक में नहीं लिखे हैं, उन सभोंको भी यहोवा तुझ को यहां तक लगा देगा, कि तू सत्यानाश हो जाएगा। 
62. और तू जो अपके परमेश्वर यहोवा की न मानेगा, इस कारण आकाश के तारोंके समान अनगिनित होने की सन्ती तुझ में से योड़े ही मनुष्य रह जाएंगे। 
63. और जैसे अब यहोवा की तुम्हारी भलाई और बढ़ती करने से हर्ष होता है, वैसे ही तब उसको तुम्हें नाश वरन सत्यानाश करने से हर्ष होगा; और जिस भूमि के अधिक्कारनेी होने को तुम जा रहे हो उस पर से तुम उखाड़े जाओगे। 
64. और यहोवा तुझ को पृय्वी के इस छोर से लेकर उस छोर तक के सब देशोंके लोगोंमें तित्तर बित्तर करेगा; और वहां रहकर तू अपके और अपके पुरखाओं के अनजाने काठ और पत्यर के दूसरे देवताओं की उपासना करेगा। 
65. और उन जातियोंमें तू कभी चैन न पाएगा, और न तेरे पांव को ठिकाना मिलेगा; क्योंकि वहां यहोवा ऐसा करेगा कि तेरा ह्रृदय कांपता रहेगा, और तेरी आंखे धुंधली पड़ जाएगीं, और तेरा मन कलपता रहेगा; 
66. और तुझ को जीवन का नित्य सन्देह रहेगा; और तू दिन रात यरयराता रहेगा, और तेरे जीवन का कुछ भरोसा न रहेगा। 
67. तेरे मन में जो भय बना रहेगा, उसके कारण तू भोर को आह मारके कहेगा, कि सांफ कब होगी! और सांफ को आह मारके कहेगा, कि भोर कब होगा। 
68. और यहोवा तुझ को नावोंपर चढ़ाकर मिस्र में उस मार्ग से लौटा देगा, जिसके विषय में मैं ने तुझ से कहा या, कि वह फिर तेरे देखने में न आएगा; और वहंा तुम अपके शत्रुओं के हाथ दास-दासी होने के लिथे बिकाऊ तो रहोगे, परन्तु तुम्हारा कोई ग्राहक न होगा।।

Chapter 29

1. इस्त्राएलियोंसे जिस वाचा के बान्धने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को मोआब के देश में दी उसके थे ही वचन हैं, और जो वाचा उस ने उन से होरेब पहाड़ पर बान्धी यी यह उस से अलग है। 
2. फिर मूसा ने सब इस्त्राएलियोंको बुलाकर कहा, जो कुछ यहोवा ने मिस्र देश में तुम्हारे देखते फिरौन और उसके सब कर्मचारियों, और उसके सारे देश से किया वह तुम ने देखा है; 
3. वे बड़े बड़े पक्कीझा के काम, और चिन्ह, और बड़े बड़े चमत्कार तेरी आंखोंके साम्हने हुए; 
4. परन्तु यहोवा ने आज तक तुम को न तो समझने की बुद्धि, और न देखने की आंखें, और न सुनने के कान दिए हैं। 
5. मैं तो तुम को जंगल में चालीस वर्ष लिए फिरा; और न तुम्हारे तन पर वस्त्र पुराने हुए, और न तेरी जूतियां तेरे पैरोंमें पुरानी हुई; 
6. रोटी जो तुम नहीं खाने पाए, और दाखमधु और मदिरा जो तुम नहीं पीने पाए, वह इसलिथे हुआ कि तुम जानो कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूं। 
7. और जब तुम इस स्यान पर आए, तब हेशबोन का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग, थे दोनो युद्ध के लिथे हमारा साम्हना करने को निकल आए, और हम ने उनको जीतकर उनका देश ले लिया; 
8. और रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगोंको निज भाग करके दे दिया। 
9. इसलिथे इस वाचा की बातोंका पालन करो, ताकि जो कुछ करो वह सुफल हो।। 
10. आज क्या वृद्ध लोग, क्या सरदार, तुम्हारे मुख्य मुख्य पुरूष, क्या गोत्र गोत्र के तुम सब इस्राएली पुरूष, 
11. क्या तुम्हारे बालबच्चे और स्त्रियां, क्या लकड़हारे, क्या पनभरे, क्या तेरी छावनी में रहनेवाले परदेशी, तुम सब के सब अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने इसलिथे खड़े हुए हो, 
12. कि जो वाचा तेरा परमेश्वर यहोवा आज तुझ से बान्धता है, और जो शपय वह आज तुझ को खिलाता है, उस में तू साफी हो जाए; 
13. इसलिथे कि उस वचन के अनुसार जो उसने तुझ को दिया, और उस शपय के अनुसार जो उसने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजोंसे खाई यी, वह आज तुझ को अपक्की प्रजा ठहराए, और आप तेरा परमेश्वर ठहरे। 
14. फिर मैं इस वाचा और इस शपय में केवल तुम को नहीं, 
15. परन्तु उनको भी, जो आज हमारे संग यहां हमारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े हैं, और जो आज यहां हमारे संग नहीं हैं, साफी करता हूं। 
16. तुम जानते हो कि जब हम मिस्र देश में रहते थे, और जब मार्ग में की जातियोंके बीचोंबीच होकर आ रहे थे, 
17. तब तुम ने उनकी कैसी कैसी घिनौनी वस्तुएं, और काठ, पत्यर, चांदी, सोने की कैसी मूरतें देखीं। 
18. इसलिथे ऐसा न हो, कि तुम लोगोंमें ऐसा कोई पुरूष, वा स्त्री, वा कुल, वा गोत्र के लोग होंजिनका मन आज हमारे परमेश्वर यहोवा से फिर जाए, और वे जाकर उन जातियोंके देवताओं की उपासना करें; फिर ऐसा न हो कि तुम्हारे मध्य ऐसी कोई जड़ हो, जिस से विष वा कडुआ बीज उगा हो, 
19. और ऐसा मनुष्य इस शाप के वचन सुनकर अपके को आशीर्वाद के योग्य माने, और यह सोचे कि चाहे मैं अपके मन के हठ पर चलूं, और तृप्त होकर प्यास को मिटा डालूं, तौभी मेरा कुशल होगा। 
20. यहोवा उसका पाप झमा नहीं करेगा, वरन यहोवा के कोप और जलन का धुंआ उसको छा लेगा, और जितने शाप इस पुस्तक में लिखें हैं वे सब उस पर आ पकेंगे, और यहोवा उसका नाम धरती पर से मिटा देगा। 
21. और व्यवस्या की इस पुस्तक में जिस वाचा की चर्चा है उसके सब शापोंके अनुसार यहोवा उसको इस्राएल के सब गोत्रोंमें से हानि के लिथे अलग करेगा। 
22. और आनेवाली पीढिय़ोंमें तुम्हारे वंश के लोग जो तुम्हारे बाद उत्पन्न होंगे, और पकेदेशी मनुष्य भी जो दूर देश से आएंगे, वे उस देश की विपत्तियोंऔर उस में यहोवा के फैलाए हुए रोग देखकर, 
23. और यह भी देखकर कि इसकी सब भूमि गन्धक और लोन से भर गई है, और यहां तक जल गई है कि इस में न कुछ बोया जाता, और न कुछ जम सकता, और न घास उगती है, वरन सदोम और अमोरा, अदमा और सबोयीम के समान हो गया है जिन्हें यहोवा ने अपके कोप और जलजलाहट में उलट दिया या; 
24. और सब जातियोंके लोग पूछेंगे, कि यहोवा ने इस देश से ऐसा क्योंकिया? और इस बड़े कोप के भड़कने का क्या कारण है? 
25. तब लोग यह उत्तर देंगे, कि उनके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा ने जो वाचा उनके साय मिस्र देश से निकालने के समय बान्धी यी उसको उन्होंने तोड़ा है। 
26. और पराए देवताओं की उपासना की है जिन्हें वे पहिले नहीं जानते थे, और यहोवा ने उनको नहीं दिया या; 
27. इसलिथे यहोवा का कोप इस देश पर भड़क उठा है, कि पुस्तक मे लिखे हुए सब शाप इस पर आ पकें; 
28. और यहोवा ने कोप, और जलजलाहट, और बड़ा ही क्रोध करके उन्हें उनके देश में से उखाड़ कर दूसरे देश में फेंक दिया, जैसा कि आज प्रगट है।। 
29. गुप्त बातें हमारे परमेश्वर यहोवा के वश में हैं; परन्तु जो प्रगट की गई हैं वे सदा के लिथे हमारे और हमारे वंश में रहेंगी, इसलिथे कि इस व्यवस्या की सब बातें पूरी ही जाएं।।

Chapter 30

1. फिर जब आशीष और शाप की थे सब बातें जो मैं ने तुझ को कह सुनाई हैं तुझ पर घटें, और तू उन सब जातियोंके मध्य में रहकर, जहां तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बरबस पहुंचाएगा, इन बातोंको स्मरण करे, 
2. और अपक्की सन्तान सहित अपके सारे मन और सारे प्राण से अपके परमेश्वर यहोवा की ओर फिरकर उसके पास लौट आए, और इन सब आज्ञाओं के अनुसार जो मैं आज तुझे सुनाता हूं उसकी बातें माने; 
3. तब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बन्धुआई से लौटा ले आएगा, और तुझ पर दया करके उन सब देशोंके लोगोंमें से जिनके मध्य में वह तुझ को तित्तर बित्तर कर देगा फिर इकट्ठा करेगा। 
4. चाहे धरती के छोर तक तेरा बरबस पहुंचाया जाना हो, तौभी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को वहां से ले आकर इकट्ठा करेगा। 
5. और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उसी देश में पहुंचाएगा जिसके तेरे पुरखा अधिक्कारनेी हुए थे, और तू फिर उसका अधिक्कारनेी होगा; और वह तेरी भलाई करेगा, और तुझ को तेरे पुरखाओं से भी गिनती में अधिक बढ़ाएगा। 
6. और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे और तेरे वंश के मन का खतना करेगा, कि तू अपके परमेश्वर यहोवा से अपके सारे मन और सारे प्राण के साय प्रेम करे, जिस से तू जीवित रहे। 
7. और तेरा परमेश्वर यहोवा थे सब शाप की बातें तेरे शत्रुओं पर जो तुझ से बैर करके तेरे पीछे पकेंगे भेजेगा। 
8. और तू फिरेगा और यहोवा की सुनेगा, और इन सब आज्ञाओं को मानेगा जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं। 
9. और यहोवा तेरी भलाई के लिथे तेरे सब कामोंमें, और तेरी सन्तान, और पशुओं के बच्चों, और भूमि की उपज में तेरी बढ़ती करेगा; क्योंकि यहोवा फिर तेरे ऊपर भलाई के लिथे वैसा ही आनन्द करेगा, जैसा उस ने तेरे पूर्वजोंके ऊपर किया या; 
10. क्योंकि तू अपके परमेश्वर यहोवा की सुनकर उसकी आज्ञाओं और विधियोंको जो इस व्यवस्या की पुस्तक में लिखी हैं माना करेगा, और अपके परमेश्वर यहोवा की ओर अपके सारे मन और सारे प्राण से मन फिराएगा।। 
11. देखो, यह जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं, वह न तो तेरे लिथे अनोखी, और न दूर है। 
12. और न तो यह आकाश में है, कि तू कहे, कि कौन हमारे लिथे आकाश में चढ़कर उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें? 
13. और न यह समुद्र पार है, कि तू कहे, कौन हमारे लिथे समुद्र पार जाए, और उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें? 
14. परन्तु यह वचन तेरे बहुत निकट, वरन तेरे मुंह और मन ही में है ताकि तू इस पर चले।। 
15. सुन, आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है। 
16. क्योंकि मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं, कि अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, और उसके मागार्ें पर चलना, और उसकी आज्ञाओं, विधियों, और नियमोंको मानना, जिस से तू जीवित रहे, और बढ़ता जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में जिसका अधिक्कारनेी होने को तू जा रहा है, तुझे आशीष दे। 
17. परन्तु यदि तेरा मन भटक जाए, और तू न सुने, और भटककर पराए देवताओं को दण्डवत करे और उनकी उपासना करने लगे, 
18. तो मैं तुम्हें आज यह चितौनी दिए देता हूं कि तुम नि:सन्देह नष्ट हो जाओगे; और जिस देश का अधिक्कारनेी होने के लिथे तू यरदन पार जा रहा है, उस देश में तुम बहुत दिनोंके लिथे रहने न पाओगे। 
19. मैं आज आकाश और पृय्वी दोनोंको तुम्हारे साम्हने इस बात की साझी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिथे तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनोंजीवित रहें; 
20. इसलिथे अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानों, और उस से लिपके रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घ जीवन यही है, और ऐसा करने से जिस देश को यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजोंको देने की शपय खाई यी उस देश में तू बसा रहेगा।।

Chapter 31

1. और मूसा ने जाकर यह बातें सब इस्रएलियोंको सुनाईं। 
2. और उस ने उन से यह भी कहा, कि आज मैं एक सौ बीच वर्ष का हूं; और अब मैं चल फिर नहीं सकता; क्योंकि यहोवा ने मुझ से कहा है, कि तू इस यरदन पार नहीं जाने पाएगा। 
3. तेरे आगे पार जानेवाला तेरा परमेश्वर यहोवा ही है; वह उन जातियोंको तेरे साम्हने से नष्ट करेगा, और तू उनके देश का अधिक्कारनेी होगा; और यहोवा के वचन के अनुसार यहोशू तेरे आगे आगे पार जाएगा। 
4. और जिस प्रकार यहोवा ने एमोरियोंके राजा सीहोन और ओग और उनके देश को नष्ट किया है, उसी प्रकार वह उन सब जातियोंसे भी करेगा। 
5. और जब यहोवा उनको तुम से हरवा देगा, तब तुम उन सारी आज्ञाओं के अनुसार उन से करना जो मैं ने तुम को सुनाई हैं। 
6. तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो, उन से न डर और न भयभीत हो; क्योंकि तेरे संग चलनेवाला तेरा परमेश्वर यहोवा है; वह तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा। 
7. तब मूसा ने यहोशू को बुलाकर सब इस्राएलियोंके सम्मुख कहा, कि तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो जा; क्योंकि इन लोगोंके संग उस देश में जिसे यहोवा ने इनके पूर्वजोंसे शपय खाकर देने को कहा या तू जाएगा; और तू इनको उसका अधिक्कारनेी कर देगा। 
8. और तेरे आगे आगे चलनेवाला यहोवा है; वह तेरे संग रहेगा, और न तो तुझे धोखा देगा और न छोड़ देगा; इसलिथे मत डर और तेरा मन कच्चा न हो।। 
9. फिर मूसा ने यही व्यवस्या लिखकर लेवीय याजकोंको, जो यहोवा की वाचा के सन्दूक उठानेवाले थे, और इस्राएल के सब वृद्ध लोगोंको सौंप दी। 
10. तब मूसा ने उनको आज्ञा दी, कि सात सात वर्ष के बीतने पर, अर्यात्‌ उगाही न होने के वर्ष के फोपक्कीवाले पर्व्व में, 
11. जब सब इस्राएली तेरे परमेश्वर यहोवा के उस स्यान पर जिसे वह चुन लेगा आकर इकट्ठे हों, तब यह व्यवस्या सब इस्राएलियोंको पढ़कर सुनाना। 
12. क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकोंके भीतर के परदेशी, सब लोगोंको इकट्ठा करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्या के सारे वचनोंके पालन करने में चौकसी करें, 
13. और उनके लड़केबाले जिन्होंने थे बातें नहीं सुनीं वे भी सुनकर सींखें, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय उस समय तक मानते रहें, जब तक तुम उस देश में जीवित रहो जिसके अधिक्कारनेी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो।। 
14. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, तेरे मरने का दिन निकट है; तू यहोशू को बुलवा, और तुम दोनोंमिलापवाले तम्बू में आकर उपस्यित हो कि मैं उसको आज्ञा दूं। तब मूसा और यहोशू जाकर मिलापवाले तम्बू में उपस्यित हुए। 
15. तब यहोवा ने उस तम्बू में बादल के खम्भे में होकर दर्शन दिया; और बादल का खम्भा तम्बू के द्वार पर ठहर गया। 
16. तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू तो अपके पुरखाओं के संग सो जाने पर है; और थे लागे उठकर उस देश के पराथे देवताओं के पीछे जिनके मध्य वे जाकर रहेंगे व्यभिचारी हो जाएंगे, और मुझे त्यागकर उस वाचा को जो मैं ने उन से बान्धी है तोडेंगे। 
17. उस समय मेरा कोप इन पर भड़केगा, और मैं भी इन्हें त्यागकर इन से अपना मुंह छिपा लूंगा, और थे आहार हो जाएंगे; और बहुत सी विपत्तियां और क्लेश इन पर आ पकेंगे, यहां तक कि थे उस समय कहेंगे, क्या थे विपत्तियां हम पर इस कारण तो नहीं आ पक्कीं, क्योंकि हमारा परमेश्वर हमारे मध्य में नहीं रहा? 
18. उस समय मैं उन सब बुराइयोंके कारण जो थे पराथे देवताओं की ओर फिरकर करेंगे नि:सन्देह उन से अपना मुंह छिपा लूंगा। 
19. सो अब तुम यह गीत लिख लो, और तू उसे इस्राएलियोंको सिखाकर कंठ करा देना, इसलिथे कि यह गीत उनके विरूद्ध मेरा साझी ठहरे। 
20. जब मैं इनको उस देश में पहुंचाऊंगा जिसे देने की मैं ने इनके पूर्वजोंसे शपय खाईं यी, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और खाते-खाते इनका पेट भर जाए, और थे ह्रृष्ट-पुष्ट हो जाएंगे; तब थे पराथे देवताओं की ओर फिरकर उनकी उपासना करने लगेंगे, और मेरा तिरस्कार करके मेरी वाचा को तोड़ देंगे। 
21. वरन अभी भी जब मैं इन्हें इस देश में जिसके विषय मैं ने शपय खाई है पहुंचा नहीं चुका, मुझे मालूम है, कि थे क्या क्या कल्पना कर रहे हैं; इसलिथे जब बहुत सी विपत्तियां और क्लेश इन पर आ पकेंगे, तब यह गीत इन पर साझी देगा, क्योंकि इनकी सन्तान इसको कभी भी नहीं भूलेगी। 
22. तब मूसा ने उसी दिन यह गीत लिखकर इस्राएलियोंको सिखाया। 
23. और उस ने नून के पुत्र यहोशू को यह आज्ञा दी, कि हियाव बान्ध और दृढ़ हो; क्योंकि इस्राएलियोंको उस देश में जिसे उन्हें देने को मैं ने उन से शपय खाई है तू पहुंचाएगा; और मैं आप तेरे संग रहूंगा।। 
24. जब मूसा इस व्यवस्या के वचन को आदि से अन्त तक पुस्तक में लिख चुका, 
25. तब उस ने यहोवा के सन्दूक उठानेवाले लेवियोंको आज्ञा दी, 
26. कि व्यवस्या की इस पुस्तक को लेकर अपके परमेश्वर यहोवा की वाचा के सन्दूक के पास रख दो, कि यह वहां तुझ पर साझी देती रहे। 
27. क्योंकि तेरा बलवा और हठ मुझे मालूम है; देखो, मेरे जीवित और संग रहते हुए भी तुम यहोवा से बलवा करते आए हो; फिर मेरे मरने के बाद भी क्योंन करोगे! 
28. तुम अपके गोत्रोंके सब वृद्ध लोगोंको और अपके सरदारोंको मेरे पास इकट्ठा करो, कि मैं उनको थे वचन सुनाकर उनके विरुद्ध आकाश और पृय्वी दोनोंको साझी बनाऊं। 
29. क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरी मृत्यु के बाद तुम बिलकुल बिगड़ जाओगे, और जिस मार्ग में चलने की आज्ञा मैं ने तुम को सुनाई है उसको भी तुम छोड़ दोगे; और अन्त के दिनोंमें जब तुम वह काम करके जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अपक्की बनाई हुई वस्तुओं की पूजा करके उसको रिस दिलाओगे, तब तुम पर विपत्ति आ पकेगी।। 
30. तब मूसा ने इस्राएल की सारी सभा को इस गीत के वचन आदि से अन्त तक कह सुनाए:

Chapter 32

1. हे आकाश, कान लगा, कि मैं बोलूं; और हे पृय्वी, मेरे मुंह की बातें सुन।। 
2. मेरा उपकेश मेंह की नाईं बरसेगा और मेरी बातें ओस की नाईं टपकेंगी, जैसे कि हरी घास पर फीसी, और पौधोंपर फडिय़ां।। 
3. मैं तो याहोवा नाम का प्रचार करूंगा। तुम अपके परमेश्वर की महिमा को मानो! 
4. वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।। 
5. परन्तु इसी जाति के लोग टेढ़े और तिर्छे हैं; थे बिगड़ गए, थे उसके पुत्र नहीं; यह उनका कलंक है।। 
6. हे मूढ़ और निर्बुद्धि लोगों, क्या तुम यहोवा को यह बदला देते हो? क्या वह तेरा पिता नहीं है, जिस ने तुम को मोल लिया है? उस ने तुम को बनाया और स्यिर भी किया है।। 
7. प्राचीनकाल के दिनोंको स्मरण करो, पीढ़ी पीढ़ी के वर्षोंको विचारो; अपके बाप से पूछो, और वह तुम को बताएगा; अपके वृद्ध लोगोंसे प्रश्न करो, और वे तुझ से कह देंगे।। 
8. जब परमप्रधान ने एक एक जाति को निज निज भाग बांट दिया, और आदमियोंको अलग अलग बसाया, तब उस ने देश देश के लोगोंके सिवाने इस्राएलियोंकी गिनती के अनुसार ठहराए।। 
9. क्योंकि यहोवा का अंश उसकी प्रजा है; याकूब उसका नपा हुआ निज भाग है।। 
10. उस ने उसको जंगल में, और सुनसान और गरजनेवालोंसे भरी हुई मरूभूमि में पाया; उस ने उसके चंहु ओर रहकर उसकी रझा की, और अपक्की आंख की पुतली की नाई उसकी सुधि रखी।। 
11. जैसे उकाब अपके घोंसले को हिला हिलाकर अपके बच्चोंके ऊपर ऊपर मण्डलाता है, वैसे ही उस ने अपके पंख फैलाकर उसको अपके परोंपर उठा लिया।। 
12. यहोवा अकेला ही उसकी अगुवाई करता रहा, और उसके संग कोई पराया देवता न या।। 
13. उस ने उसको पृय्वी के ऊंचे ऊंचे स्यानोंपर सवार कराया, और उसको खेतोंकी उपज खिलाई; उस ने उसे चट्टान में से मधु और चकमक की चट्ठान में से तेल चुसाया।। 
14. गायोंका दही, और भेड़-बकरियोंका दूध, मेम्नोंकी चर्बी, बकरे और बाशान की जाति के मेढ़े, और गेहूं का उत्तम से उत्तम आटा भी; और तू दाखरस का मधु पिया करता या।। 
15. परन्तु यशूरून मोटा होकर लात मारने लगा; तू मोटा और ह्रृष्ट-पुष्ट हो गया, और चर्बी से छा गया है; तब उस ने अपके सृजनहार ईश्वर को तज दिया, और अपके उद्धारमूल चट्टान को तुच्छ जाना।। 
16. उन्होंने पराए देवताओं को मानकर उस में जलन उपजाई; और घृणित कर्म करके उसको रिस दिलाई ।। 
17. उन्होंने पिशाचोंके लिथे जो ईश्वर न थे बलि चढ़ाए, और उनके लिथे वे अनजाने देवता थे, वे तो नथे नथे देवता थे जो योड़े ही दिन से प्रकट हुए थे, और जिन से उनके पुरखा कभी डरे नहीं। 
18. जिस चट्टान से तू उत्पन्न हुआ उसको तू भूल गया, और ईश्वर जिस से तेरी उत्पत्ति हुई उसको भी तू भूल गया है।। 
19. इन बातोंको देखकर यहोवा ने उन्हें तुच्छ जाना, क्योंकि उसके बेटे-बेटियोंने उसे रिस दिलाई यी।। 
20. तब उस ने कहा, मैं उन से अपना मुख छिपा लूंगा, और देखूंगा कि उनका अन्त कैसा होगा, क्योंकि इस जाति के लोग बहुत टेढ़े हैं और धोखा देनेवाले पुत्र हैं। 
21. उन्होंने ऐसी वस्तु मानकर जो ईश्वर नहीं हैं, मुझ में जलन उत्पन्न की; और अपक्की व्यर्य वस्तुओं के द्वारा मुझे रिस दिलाई। इसलिथे मैं भी उनके द्वारा जो मेरी प्रजा नहीं हैं उनके मन में जलन उत्पन्न करूंगा; और एक मूढ़ जाति के द्वारा उन्हें रिस दिलाऊंगा।। 
22. क्योंकि मेरे कोप की आग भड़क उठी है, जो पाताल की तह तक जलती जाएगी, और पृय्वी अपक्की उपज समेत भस्म हो जाएगी, और पहाड़ोंकी नेवोंमें भी आग लगा देगी।। 
23. मैं उन पर विपत्ति पर विपत्ति भेजूंगा; और उन पर मैं अपके सब तीरोंको छोडूंगा।। 
24. वे भूख से दुबले हो जाएंगे, और अंगारोंसे और कठिन महारोगोंसे ग्रसित हो जाएंगे; और मैं उन पर पशुओं के दांत लगवाऊंगा, और धूलि पर रेंगनेवाले सर्पोंका विष छोड़ दूंगा।। 
25. बाहर वे तलवार से मरेंगे, और कोठरियोंके भीतर भय से; क्या कुंवारे और कुंवारियां, क्या दूध पीता हुआ बच्चा क्या पक्के बालवाले, सब इसी प्रकार बरबाद होंगे। 
26. मैं ने कहा या, कि मैं उनको दूर दूर से तित्तर-बित्तर करूंगा, और मनुष्योंमें से उनका स्मरण तक मिटा डालूंगा; 
27. परन्तु मुझे शत्रुओं की छेड़ छाड़ का डर या, ऐसा न हो कि द्रोही इसको उलटा समझकर यह कहने लगें, कि हम अपके ही बाहुबल से प्रबल हुए, और यह सब यहोवा से नहीं हुआ।। 
28. यह जाति युक्तहीन तो है, और इन में समझ है ही नहीं।। 
29. भला होता कि थे बुद्धिमान होते, कि इसको समझ लेते, और अपके अन्त का विचार करते! 
30. यदि उनकी चट्टान ही उनको न बेच देती, और यहोवा उनको औरोंके हाथ में न कर देता; तो यह क्योंकर हो सकता कि उनके हजार का पीछा एक मनुष्य करता, और उनके दस हजार को दो मनुष्य भगा देते? 
31. क्योंकि जैसी हमारी चट्टान है वैसी उनकी चट्टान नहीं है, चाहे हमारे शत्रु ही क्योंन न्यायी हों।। 
32. क्योंकि उनकी दाखलता सदोम की दाखलता से निकली, और अमोरा की दाख की बारियोंमें की है; उनकी दाख विषभरी और उनके गुच्छे कड़वे हैं; 
33. उनका दाखमधु सांपोंका सा विष और काले नागोंका सा हलाहल है।। 
34. क्या यह बात मेरे मन में संचित, और मेरे भण्डारोंमें मुहरबन्द नहीं है? 
35. पलटा लेना और बदला देना मेरा ही काम है, यह उनके पांव फिसलने के समय प्रगट होगा; क्योंकि उनकी विपत्ति का दिन निकट है, और जो दुख उन पर पड़नेवाले है वे शीघ्र आ रहे हैं।। 
36. क्योंकि जब यहोवा देखेगा कि मेरी प्रजा की शक्ति जाती रही, और क्या बन्धुआ और क्या स्वाधीन, उन में कोई बचा नहीं रहा, तब यहोवा अपके लोगोंका न्याय करेगा, और अपके दासोंके विषय में तरस खाएगा।। 
37. तब वह कहेगा, उनके देवता कहां हैं, अर्यात वह चट्टान कहां जिस पर उनका भरोसा या, 
38. जो उनके बलिदानोंकी चर्बी खाते, और उनके तपावनोंका दाखमधु पीते थे? वे ही उठकर तुम्हारी सहाथता करें, और तुम्हारी आड़ हों! 
39. इसलिथे अब तुम देख लो कि मैं ही वह हूं, और मेरे संग कोई देवता नहीं; मैं ही मार डालता, और मैं जिलाता भी हूं; मैं ही घायल करता, और मैं ही चंगा भी करता हूं; और मेरे हाथ से कोई नहीं छुड़ा सकता।। 
40. क्योंकिं मैं अपना हाथ स्वर्ग की ओर उठाकर कहता हूं, क्योंकि मैं अनन्त काल के लिथे जीवित हूं, 
41. सो यदि मैं बिजली की तलवार पर सान धरकर फलकाऊं, और न्याय को अपके हाथ में ले लूं, तो अपके द्रोहियोंसे बदला लूंगा, और अपके बैरियोंको बदला दूंगा।। 
42. मैं अपके तीरोंको लोहू से मतवाला करूंगा, और मेरी तलवार मांस खाएगी वह लोहू, मारे हुओं और बन्धुओं का, और वह मांस, शत्रुओं के प्रधानोंके शीश का होगा।। 
43. हे अन्यजातियों, उसकी प्रजा के साय आनन्द मनाओ; क्योंकि वह अपके दासोंके लोहू का पलटा लेगा, और अपके द्रोहियोंको बदला देगा, और अपके देश और अपक्की प्रजा के पाप के लिथे प्रायश्चित देगा। 
44. इस गीत के सब वचन मूसा ने नून के पुत्र होशे समेत आकर लोगोंको सुनाए। 
45. जब मूसा थे सब वचन सब इस्राएलियोंसे कह चुका, 
46. तब उस ने उन से कहा कि जितनी बातें मैं आज तुम से चिताकर कहता हूं उन सब पर अपना अपाना मन लगाओ, और उनके अर्यात्‌ इस व्यवस्या की सारी बातोंके मानने में चौकसी करने की आज्ञा अपके लड़केबालोंको दो। 
47. क्योंकि यह तुम्हारे लिथे व्यर्य काम नहीं, परन्तु तुम्हारा जीवन ही है, और ऐसा करने से उस देश में तुम्हारी आयु के दिन बहुत होंगे, जिसके अधिक्कारनेी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो।। 
48. फिर उसी दिन यहोवा ने मूसा से कहा, 
49. उस अबारीम पहाड़ की नबो नाम चोटी पर, जो मोआब देश में यरीहो के साम्हने है, चढ़कर कनान देश जिसे मैं इस्राएलियोंकी निज भूमि कर देता हूं उसको देख ले। 
50. तब जैसा तेरा भाई हारून होर पहाड़ पर मरकर अपके लोगोंमें मिल गया, वैसा ही तू इस पहाड़ पर चढ़कर मर जाएगा, और अपके लोगोंमें मिल जाएगा। 
51. इसका कारण यह है, कि सीन जंगल में, कादेश के मरीबा नाम सोते पर, तुम दोनोंने मेरा अपराध किया, क्योंकि तुम ने इस्राएलियोंके मध्य में मुझे पवित्र न ठहराया। 
52. इसलिथे वह देश जो मैं इस्राएलियोंको देता हूं, तू अपके साम्हने देख लेगा, परन्तु वहां जाने न पाएगा।।

Chapter 33

1. जो आशीर्वाद परमेश्वर के जन मूसा ने अपक्की मृत्यु से पहिले इस्राएलियोंको दिया वह यह है।। 
2. उस ने कहा, यहोवा सीनै से आया, और सेईर से उनके लिथे उदय हुआ; उस ने पारान पर्वत पर से अपना तेज दिखाया, और लाखोंपवित्रोंके मध्य में से आया, उसके दहिने हाथ से उनके लिथे ज्वालामय विधियां निकलीं।। 
3. वह निश्चय देश देश के लोगोंसे प्रेम करता है; उसके सब पवित्र लोग तेरे हाथ में हैं: वे तेरे पांवोंके पास बैठे रहते हैं, 
4. मूसा ने हमें व्यवस्या दी, और याकूब की मण्डली का निज भाग ठहरी।। 
5. जब प्रजा के मुख्य मुख्य पुरूष, और इस्राएल के गोत्री एक संग होकर एकत्रित हुए, तब वह यशूरून में राजा ठहरा।। 
6. रूबेन न मरे, वरन जीवित रहे, तौभी उसके यहां के मनुष्य योड़े हों।। 
7. और यहूदा पर यह आशीर्वाद हुआ जो मूसा ने कहा, हे यहोवा तू यहूदा की सुन, और उसे उसके लोगोंके पास पहुंचा। वह अपके लिथे आप अपके हाथोंसे लड़ा, और तू ही उसके द्रोहियोंके विरूद्ध उसका सहाथक हो।। 
8. फिर लेवी के विषय में उस ने कहा, तेरे तुम्मीम और ऊरीम तेरे भक्त के पास हैं, जिसको तू ने मस्सा में परख लिया, और जिसके साय मरीबा नाम सोते पर तेरा वादविवाद हुआ; 
9. उस ने तो अपके माता पिता के विषय में कहा, कि मैं उनको नहीं जानता; और न तो उस ने अपके भाइयोंको अपना माना, और न अपके पुत्रोंको पहिचाना। क्योंकि उन्होंने तेरी बातें मानी, और वे तेरी वाचा का पालन करते हैं।। 
10. वे याकूब को तेरे नियम, और इस्राएल को तेरी व्यवस्या सिखाएंगे; और तेरे आगे धूप और तेरी वेदी पर सर्वांग पशु को होमबलि करेंगे।। 
11. हे यहोवा, उसकी सम्पत्ति पर आशीष दे, और उसके हाथोंकी सेवा को ग्रहण कर; उसके विरोधियोंऔर बैरियोंकी कमर पर ऐसा मार, कि वे फिर न उठ सकें।। 
12. फिर उस ने बिन्यामीन के विषय में कहा, यहोवा का वह प्रिय जन, उसके पास निडर वास करेगा; और वह दिन भर उस पर छाया करेगा, और वह उसके कन्धोंके बीच रहा करता है।। 
13. फिर यूसुफ के विषय में उस ने कहा; इसका देश यहोवा से आशीष पाए अर्यात्‌ आकाश के अनमोल पदार्य और ओस, और वह गहिरा जल जो नीचे है, 
14. और सूर्य के पकाए हुए अनमोल फल, और जो अनमोल पदार्य चंद्रमा के उगाए उगते हैं, 
15. और प्राचीन पहाड़ोंके उत्तम पदार्य, और सनातन पहाडिय़ोंके अनमोल पदार्य, 
16. और पृय्वी और जो अनमोल पदार्य उस में भरे हैं, और जो फाड़ी में रहता या उसकी प्रसन्नता। इन सभोंके विषय में यूसुफ के सिर पर, अर्यात्‌ उसी के सिर के चांद पर जो अपके भाइयोंसे न्यारा हुआ या आशीष ही आशीष फले।। 
17. वह प्रतापी है, मानो गया का पहिलौठा है, और उसके सींग बनैले बैल के से हैं; उन से वह देश देश के लोगोंको, वरन पृय्वी के छोर तक के सब मनुष्योंको ढकेलेगा; वे एप्रैम के लाखोंलाख, और मनश्शे के हजारोंहजार हैं।। 
18. फिर जबूलून के विषय में उस ने कहा, हे जबूलून, तू बाहर निकलते समय, और हे इस्साकार, तू अपके डेरोंमें आनन्द करे।। 
19. वे देश देश के लोगोंको पहाड़ पर बुलाएंगे; वे वहां धर्मयज्ञ करेंगे; क्योंकि वे समुद्र का धन, और बालू के छिपे हुए अनमोल पदार्य से लाभ उठाएंगे।। 
20. फिर गाद के विषय में उस ने कहा, धन्य वह है जो गाद को बढ़ाता है! गाद तो सिंहनी के समान रहता है, और बांह को, वरन सिर के चांद तक को फाड़ डालता है।। 
21. और उस ने पहिला अंश तो अपके लिथे चुन लिया, क्योंकि वहां रईस के योग्य भाग रखा हुआ या; तब उस ने प्रजा के मुख्य मुख्य पुरूषोंके संग आकर यहोवा का ठहराया हुआ धर्म, और इस्राएल के साय होकर उसके नियम का प्रतिपालन किया।। 
22. फिर दान के विषय में उस ने कहा, दान तो बाशान से कूदनेवाला सिंह का बच्चा है।। 
23. फिर नप्ताली के विषय में उस ने कहा, हे नप्ताली, तू जो यहोवा की प्रसन्नता से तृप्त, और उसकी आशीष से भरपूर है, तू पच्छिम और दक्खिन के देश का अधिक्कारनेी हो।। 
24. फिर आशेर के विषय में उस ने कहा, आशेर पुत्रोंके विषय में आशीष पाए; वह अपके भाइयोंमें प्रिय रहे, और अपना पांव तेल में डुबोए।। 
25. तेरे जूते लोहे और पीतल के होंगे, और जैसे तेरे दिन वैसी ही तेरी शक्ति हो।। 
26. हे यशूरून, ईश्वर के तुल्य और कोई नहीं है, वह तेरी सहाथता करने को आकाश पर, और अपना प्रताप दिखाता हुआ आकाशमण्डल पर सवार होकर चलता है।।
27. अनादि परमेश्वर तेरा गृहधाम है, और नीचे सनातन भुजाएं हैं। वह शत्रुओं को तेरे साम्हने से निकाल देता, और कहता है, उनको सत्यानाश कर दे।। 
28. और इस्राएल निडर बसा रहता है, अन्न और नथे दाखमधु के देश में याकूब का सोता अकेला ही रहता है; और उसके ऊपर के आकाश से ओस पड़ा करती है।। 
29. हे इस्राएल, तू क्या ही धन्य है! हे यहोवा से उद्धार पाई हुई प्रजा, तेरे तुल्य कौन है? वह तो तेरी सहाथता के लिथे ढाल, और तेरे प्रताप के लिथे तलवार है; तेरे शत्रु तुझे सराहेंगे, और तू उनके ऊंचे स्यानोंको रौंदेगा।।

Chapter 34

1. फिर मूसा मोआब के अराबा से नबो पहाड़ पर, जो पिसगा की एक चोटी और यरीहो के साम्हने है, चढ़ गया; और यहोवा ने उसको दान तक का गिलाद नाम सारा देश, 
2. और नप्ताली का सारा देश, और एप्रैम और मनश्शे का देश, और पच्छिम के समुद्र तक का यहूदा का सारा देश, 
3. और दक्खिन देश, और सोअर तक की यरीहो नाम खजूरवाले नगर की तराई, यह सब दिखाया। 
4. तब याहोवा ने उस से कहा, जिस देश के विषय में मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपय खाकर कहा या, कि मैं इसे तेरे वंश को दूंगा वह यही है। मैं ने इसको तुझे साझात दिखला दिया है, परन्तु तू पार होकर वहां जाने न पाएगा। 
5. तब यहोवा के कहने के अनुसार उसका दास मूसा वहीं मोआब देश में मर गया, 
6. और उस ने उसे मोआब के देश में बेतपोर के साम्हने एक तराई में मिट्टी दी; और आज के दिन तक कोई नहीं जानता कि उसकी कब्र कहां है। 
7. मूसा अपक्की मृत्यु के समय एक सौ बीस वर्ष का या; परन्तु न तो उसकी आंखें धुंधली पक्कीं, और न उसका पौरूष घटा या। 
8. और इस्राएली मोआब के अराबा में मूसा के लिथे तीस दिन तक रोते रहे; तक मूसा के लिथे रोने और विलाप करने के दिन पूरे हुए। 
9. और नून का पुत्र यहोशू बुद्धिमानी की आत्मा से परिपूर्ण या, क्योंकि मूसा ने अपके हाथ उस पर रखे थे; और इस्राएली उस आज्ञा के अनुसार जो याहोवा ने मूसा को दी यी उसकी मानते रहे। 
10. और मूसा के तुल्य इस्राएल में ऐसा कोई नबी नहीं उठा, जिस से यहोवा ने आम्हने-साम्हने बातें कीं, 
11. और उसको यहोवा ने फिरौन और उसके सब कर्मचारियोंके साम्हने, और उसके सारे देश में, सब चिन्ह और चमत्कार करने को भेजा या, 

12. और उस ने सारे इस्राएलियोंकी दृष्टि में बलवन्त हाथ और बड़े भय के काम कर दिखाए।।
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