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The Holy Bible - निर्गमन (Exodus)

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निर्गमन (Exodus)

Chapter 1

1. इस्राएल के पुत्रोंके नाम, जो अपके अपके घराने को लेकर याकूब के साय मिस्र देश में आए, थे हैं: 
2. अर्यात्‌ रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, 
3. इस्साकार, जबूलून, बिन्यामीन, 
4. दान, नप्ताली, गाद और आशेर। 
5. और यूसुफ तो मिस्र में पहिले ही आ चुका या। याकूब के निज वंश में जो उत्पन्न हुए वे सब सत्तर प्राणी थे। 
6. और यूसुफ, और उसके सब भाई , और उस पीढ़ी के सब लोग मर मिटे। 
7. और इस्राएल की सन्तान फूलने फलने लगी; और वे अत्यन्त सामर्यी बनते चले गए; और इतना बढ़ गए कि कुल देश उन से भर गया।। 
8. मिस्र में एक नया राजा गद्दी पर बैठा जो यूसुफ को नहीं जानता या। 
9. और उस ने अपक्की प्रजा से कहा, देखो, इस्राएली हम से गिनती और सामर्य्य में अधिक बढ़ गए हैं। 
10. इसलिथे आओ, हम उनके साय बुद्धिमानी से बर्ताव करें, कहीं ऐसा न हो कि जब वे बहुत बढ़ जाएं, और यदि संग्राम का समय आ पके, तो हमारे बैरियोंसे मिलकर हम से लड़ें और इस देश से निकल जाएं। 
11. इसलिथे उन्होंने उन पर बेगारी करानेवालोंको नियुक्त किया कि वे उन पर भार डाल डालकर उनको दु:ख दिया करें; तब उन्होंने फिरौन के लिथे पितोम और रामसेस नाम भण्डारवाले नगरोंको बनाया। 
12. पर ज्योंज्योंवे उनको दु:ख देते गए त्योंत्योंवे बढ़ते और फैलते चले गए; इसलिथे वे इस्राएलियोंसे अत्यन्त डर गए। 
13. तौभी मिस्रियोंने इस्राएलियोंसे कठोरता के साय सेवकाई करवाई। 
14. और उनके जीवन को गारे, ईंट और खेती के भांति भांति के काम की कठिन सेवा से दु:खी कर डाला; जिस किसी काम में वे उन से सेवा करवाते थे उस में वे कठोरता का व्यवहार करते थे। 
15. शिप्रा और पूआ नाम दो इब्री धाइयोंको मिस्र के राजा ने आज्ञा दी, 
16. कि जब तुम इब्री स्त्रियोंको बच्चा उत्पन्न होने के समय जन्मने के पत्यरोंपर बैठी देखो, तब यदि बेटा हो, तो उसे मार डालना; और बेटी हो, तो जीवित रहने देना। 
17. परन्तु वे धाइयां परमेश्वर का भय मानती यीं, इसलिथे मिस्र के राजा की आज्ञा न मानकर लड़कोंको भी जीवित छोड़ देती यीं। 
18. तब मिस्र के राजा ने उनको बुलवाकर पूछा, तुम जो लड़कोंको जीवित छोड़ देती हो, तो ऐसा क्योंकरती हो? 
19. धाइयोंने फिरौन को उतर दिया, कि इब्री स्त्रियोंमिस्री स्त्रियोंके समान नहीं हैं; वे ऐसी फुर्तीली हैं कि धाइयोंके पहुंचने से पहिले ही उनको बच्चा उत्पन्न हो जाता है। 
20. इसलिथे परमेश्वर ने धाइयोंके साय भलाई की; और वे लोग बढ़कर बहुत सामर्यी हो गए। 
21. और धाइयां इसलिथे कि वे परमेश्वर का भय मानती यीं उस ने उनके घर बसाए। 
22. तब फिरौन ने अपक्की सारी प्रजा के लोगोंको आज्ञा दी, कि इब्रियोंके जितने बेटे उत्पन्न होंउन सभोंको तुम नील नदी में डाल देना, और सब बेटियोंको जीवित रख छोड़ना।।

Chapter 2

1. लेवी के घराने के एक पुरूष ने एक लेवी वंश की स्त्री को ब्याह लिया। 
2. और वह स्त्री गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और यह देखकर कि यह बालक सुन्दर है, उसे तीन महीने तक छिपा रखा। 
3. और जब वह उसे और छिपा न सकी तब उसके लिथे सरकंड़ोंकी एक टोकरी लेकर, उस में बालक को रखकर नील नदी के तीर पर कांसोंके बीच छोड़ आई। 
4. उस बालक कि बहिन दूर खड़ी रही, कि देखे इसका क्या हाल होगा। 
5. तब फिरौन की बेटी नहाने के लिथे नदी के तीर आई; उसकी सखियां नदी के तीर तीर टहलने लगीं; तब उस ने कांसोंके बीच टोकरी को देखकर अपक्की दासी को उसे ले आने के लिथे भेजा। 
6. तब उस ने उसे खोलकर देखा, कि एक रोता हुआ बालक है; तब उसे तरस आया और उस ने कहा, यह तो किसी इब्री का बालक होगा। 
7. तब बालक की बहिन ने फिरौन की बेटी से कहा, क्या मैं जाकर इब्री स्त्रियोंमें से किसी धाई को तेरे पास बुला ले आऊं जो तेरे लिथे बालक को दूध पिलाया करे? 
8. फिरौन की बेटी ने कहा, जा। तब लड़की जाकर बालक की माता को बुला ले आई। 
9. फिरौन की बेटी ने उस से कहा, तू इस बालक को ले जाकर मेरे लिथे दूध पिलाया कर, और मैं तुझे मजदूरी दूंगी। तब वह स्त्री बालक को ले जाकर दूध पिलाने लगी। 
10. जब बालक कुछ बड़ा हुआ तब वह उसे फिरौन की बेटी के पास ले गई, और वह उसका बेटा ठहरा; और उस ने यह कहकर उसका नाम मूसा रखा, कि मैं ने इसको जल से निकाल लिया।। 
11. उन दिनोंमें ऐसा हुआ कि जब मूसा जवान हुआ, और बाहर अपके भाई बन्धुओं के पास जाकर उनके दु:खोंपर दृष्टि करने लगा; तब उस ने देखा, कि कोई मिस्री जन मेरे एक इब्री भाई को मार रहा है। 
12. जब उस ने इधर उधर देखा कि कोई नहीं है, तब उस मिस्री को मार डाला और बालू में छिपा दिया।। 
13. फिर दूसरे दिन बाहर जाकर उस ने देखा कि दो इब्री पुरूष आपस में मारपीट कर रहे हैं; उस ने अपराधी से कहा, तू अपके भाई को क्योंमारता है ? 
14. उस ने कहा, किस ने तुझे हम लोगोंपर हाकिम और न्यायी ठहराया ? जिस भांति तू ने मिस्री को घात किया क्या उसी भांति तू मुझे भी घात करना चाहता है ? तब मूसा यह सोचकर डर गया, कि निश्चय वह बात खुल गई है। 
15. जब फिरौन ने यह बात सुनी तब मूसा को घात करने की युक्ति की। तब मूसा फिरौन के साम्हने से भागा, और मिद्यान देश में जाकर रहने लगा; और वह वहां एक कुएं के पास बैठ गया। 
16. मिद्यान के याजक की सात बेटियां यी; और वे वहां आकर जल भरने लगीं, कि कठौतोंमें भरके अपके पिता की भेड़बकरियोंको पिलाएं। 
17. तब चरवाहे आकर उनको हटाने लगे; इस पर मूसा ने खड़ा होकर उनकी सहाथता की, और भेड़-बकरियोंको पानी पिलाया। 
18. जब वे अपके पिता रूएल के पास फिर आई, तब उस ने उन से पूछा, क्या कारण है कि आज तुम ऐसी फुर्ती से आई हो ? 
19. उन्होंने कहा, एक मिस्री पुरूष ने हम को चरवाहोंके हाथ से छुड़ाया, और हमारे लिथे बहुत जल भरके भेड़-बकरियोंको पिलाया। 
20. तब उस ने अपक्की बेटियोंसे कहा, वह पुरूष कहां है ? तुम उसको क्योंछोड़ आई हो ? उसको बुला ले आओ कि वह भोजन करे। 
21. और मूसा उस पुरूष के साय रहने को प्रसन्न हुआ; उस ने उसे अपक्की बेटी सिप्पोरा को ब्याह दिया। 
22. और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, तब मूसा ने यह कहकर, कि मैं अन्य देश में परदेशी हूं, उसका नाम गेर्शोम रखा।। 
23. बहुत दिनोंके बीतने पर मिस्र का राजा मर गया। और इस्राएली कठिन सेवा के कारण लम्बी लम्बी सांस लेकर आहें भरने लगे, और पुकार उठे, और उनकी दोहाई जो कठिन सेवा के कारण हुई वह परमेश्वर तक पहुंची। 
24. और परमेश्वर ने उनका कराहना सुनकर अपक्की वाचा को, जो उस ने इब्राहीम, और इसहाक, और याकूब के साय बान्धी यी, स्मरण किया। 
25. और परमेश्वर ने इस्राएलियोंपर दृष्टि करके उन पर चित्त लगाया।।

Chapter 3

1. मूसा अपके ससुर यित्रो नाम मिद्यान के याजक की भेड़-बकरियोंको चराता या; और वह उन्हें जंगल की परली ओर होरेब नाम परमेश्वर के पर्वत के पास ले गया। 
2. और परमेश्वर के दूत ने एक कटीली फाड़ी के बीच आग की लौ में उसको दर्शन दिया; और उस ने दृष्टि उठाकर देखा कि फाड़ी जल रही है, पर भस्म नहीं होती। 
3. तब मूसा ने सोचा, कि मैं उधर फिरके इस बड़े अचम्भे को देखूंगा, कि वह फाड़ी क्योंनहीं जल जाती। 
4. जब यहोवा ने देखा कि मूसा देखने को मुड़ा चला आता है, तब परमेश्वर ने फाड़ी के बीच से उसको पुकारा, कि हे मूसा, हे मूसा। मूसा ने कहा, क्या आज्ञा। 
5. उस ने कहा इधर पास मत आ, और अपके पांवोंसे जूतियोंको उतार दे, क्योंकि जिस स्यान पर तू खड़ा है वह पवित्र भूमि है। 
6. फिर उस ने कहा, मैं तेरे पिता का परमेश्वर, और इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूं। तब मूसा ने जो परमेश्वर की ओर निहारने से डरता या अपना मुंह ढ़ाप लिया। 
7. फिर यहोवा ने कहा, मैं ने अपक्की प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं उनके दु:ख को निश्चय देखा है, और उनकी जो चिल्लाहट परिश्र्म करानेवालोंके कारण होती है उसको भी मैं ने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है ; 
8. इसलिथे अब मैं उतर आया हूं कि उन्हें मिस्रियोंके वश से छुड़ाऊं, और उस देश से निकालकर एक अच्छे और बड़े देश में जिस में दूध और मधु की धारा बहती है, अर्यात्‌ कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी लोगोंके स्यान में पहुंचाऊं। 
9. सो अब सुन, इस्राएलियोंकी चिल्लाहट मुझे सुनाई पक्की है, और मिस्रियोंका उन पर अन्धेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है, 
10. इसलिथे आ, मैं तुझे फिरौन के पास भेजता हूं कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए। 
11. तब मूसा ने परमेश्वर से कहा, मै कौन हूं जो फिरौन के पास जाऊं, और इस्राएलियोंको मिस्र से निकाल ले आऊं ? 
12. उस ने कहा, निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा; और इस बात का कि तेरा भेजनेवाला मैं हूं, तेरे लिथे यह चिन्ह होगा कि जब तू उन लोगोंको मिस्र से निकाल चुके तब तुम इसी पहाड़ पर परमेश्वर की उपासना करोगे। 
13. मूसा ने परमेश्वर से कहा, जब मैं इस्राएलियोंके पास जाकर उन से यह कहूं, कि तुम्हारे पितरोंके परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, तब यदि वे मुझ से पूछें, कि उसका क्या नाम है? तब मैं उनको क्या बताऊं? 
14. परमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं जो हूं सो हूं। फिर उस ने कहा, तू इस्राएलियोंसे यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूं है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। 
15. फिर परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, कि तू इस्राएलियोंसे यह कहना, कि तुम्हारे पितरोंका परमेश्वर, अर्यात्‌ इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर, यहोवा उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है। देख सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा। 
16. इसलिथे अब जाकर इस्राएली पुरनियोंको इकट्ठा कर, और उन से कह, कि तुम्हारे पितर इब्राहीम, इसहाक, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने मुझे दर्शन देकर यह कहा है, कि मैं ने तुम पर और तुम से जो बर्ताव मिस्र में किया जाता है उस पर भी चित लगाया है; 
17. और मैं ने ठान लिया है कि तुम को मिस्र के दुखोंमें से निकालकर कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी हिब्बी, और यबूसी लोगोंके देश में ले चलूंगा, जो ऐसा देश है कि जिस में दूध और मधु की धारा बहती है। 
18. तब वे तेरी मानेंगे; और तू इस्राएली पुरनियोंको संग लेकर मिस्र के राजा के पास जाकर उस से योंकहना, कि इब्रियोंके परमेश्वर, यहोवा से हम लोगोंकी भेंट हुई है; इसलिथे अब हम को तीन दिन के मार्ग पर जंगल में जाने दे, कि अपके परमेश्वर यहोवा को बलिदान चढ़ाएं। 
19. मैं जानता हूं कि मिस्र का राजा तुम को जाने न देगा वरन बड़े बल से दबाए जाने पर भी जाने न देगा। 
20. इसलिथे मैं हाथ बढ़ाकर उन सब आश्चर्यकर्मोंसे जो मिस्र के बीच करूंगा उस देश को मारूंगा; और उसके पश्चात्‌ वह तुम को जाने देगा। 
21. तब मैं मिस्रियोंसे अपक्की इस प्रजा पर अनुग्रह करवाऊंगा; और जब तुम निकलोगे तब छूछे हाथ न निकलोगे। 
22. वरन तुम्हारी एक एक स्त्री अपक्की अपक्की पड़ोसिन, और अपके अपके घर की पाहुनी से सोने चांदी के गहने, और वस्त्र मांग लेगी, और तुम उन्हें अपके बेटोंऔर बेटियोंको पहिराना; इस प्रकार तुम मिस्रियोंको लूटोगे।।

Chapter 4

1. तब मूसा ने उतर दिया, कि वे मेरी प्रतीति न करेंगे और न मेरी सुनेंगे, वरन कहेंगे, कि यहोवा ने तुझ को दर्शन नहीं दिया। 
2. यहोवा ने उस से कहा, तेरे हाथ में वह क्या है ? वह बोला, लाठी। 
3. उस ने कहा, उसे भूमि पर डाल दे; जब उस ने उसे भूमि पर डाला तब वह सर्प बन गई, और मूसा उसके साम्हने से भागा। 
4. तब यहोवा ने मूसा से कहा, हाथ बढ़ाकर उसकी पूंछ पकड़ ले कि वे लोग प्रतीति करें कि तुम्हारे पितरोंके परमेश्वर अर्यात्‌ इब्राहीम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने तुझ को दर्शन दिया है। 
5. तब उस ने हाथ बढ़ाकर उसको पकड़ा तब वह उसके हाथ में फिर लाठी बन गई। 
6. फिर यहोवा ने उस से यह भी कहा, कि अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप। सो उस ने अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप लिया; फिर जब उसे निकाला तब क्या देखा, कि उसका हाथ कोढ़ के कारण हिम के समान श्वेत हो गया है। 
7. तब उस ने कहा, अपना हाथ छाती पर फिर रखकर ढांप। और उस ने अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप लिया; और जब उस ने उसको छाती पर से निकाला तब क्या देखता है, कि वह फिर सारी देह के समान हो गया। 
8. तब यहोवा ने कहा, यदि वे तेरी बात की प्रतीति न करें, और पहिले चिन्ह को न मानें, तो दूसरे चिन्ह की प्रतीति करेंगे। 
9. और यदि वे इन दोनोंचिन्होंकी प्रतीति न करें और तेरी बात को न मानें, तब तू नील नदी से कुछ जल लेकर सूखी भूमि पर डालना; और जो जल तू नदी से निकालेगा वह सूखी भूमि पर लोहू बन जाथेगा। 
10. मूसा ने यहोवा से कहा, हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं, न तो पहिले या, और न जब से तू अपके दास से बातें करने लगा; मैं तो मुंह और जीभ का भद्दा हूं। 
11. यहोवा ने उस से कहा, मनुष्य का मुंह किस ने बनाया है ? और मनुष्य को गूंगा, वा बहिरा, वा देखनेवाला, वा अन्धा, मुझ यहोवा को छोड़ कौन बनाता है ? 
12. अब जा, मैं तेरे मुख के संग होकर जो तुझे कहना होगा वह तुझे सिखलाता जाऊंगा। 
13. उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, जिसको तू चाहे उसी के हाथ से भेज। 
14. तब यहोवा का कोप मूसा पर भड़का और उस ने कहा, क्या तेरा भाई लेवीय हारून नहीं है ? मुझे तो निश्चय है कि वह बोलने में निपुण है, और वह तेरी भेंट के लिथे निकला भी आता है, और तुझे देखकर मन में आनन्दित होगा। 
15. इसलिथे तू उसे थे बातें सिखाना; और मैं उसके मुख के संग और तेरे मुख के संग होकर जो कुछ तुम्हे करना होगा वह तुम को सिखलाता जाऊंगा। 
16. और वह तेरी ओर से लोगोंसे बातें किया करेगा; वह तेरे लिथे मुंह और तू उसके लिथे परमेश्वर ठहरेगा। 
17. और तू इस लाठी को हाथ में लिए जा, और इसी से इन चिन्होंको दिखाना।। 
18. तब मूसा अपके ससुर यित्रो के पास लौटा और उस से कहा, मुझे विदा कर, कि मैं मिस्र में रहनेवाले अपके भाइयोंके पास जाकर देखूं कि वे अब तक जीवित हैं वा नहीं। यित्रो ने कहा, कुशल से जा। 
19. और यहोवा ने मिद्यान देश में मूसा से कहा, मिस्र को लौट जा; क्योंकि जो मनुष्य तेरे प्राण के प्यासे थे वे सब मर गए हैं 
20. तब मूसा अपक्की पत्नी और बेटोंको गदहे पर चढ़ाकर मिस्र देश की ओर परमेश्वर की उस लाठी को हाथ में लिथे हुए लौटा। 
21. और यहोवा ने मूसा से कहा, जब तू मिस्र में पहुंचे तब सावधान हो जाना, और जो चमत्कार मैं ने तेरे वश में किए हैं उन सभोंको फिरौन को दिखलाना; परन्तु मै उसके मन को हठीला करूंगा, और वह मेरी प्रजा को जाने न देगा। 
22. और तू फिरौन से कहना, कि यहोवा योंकहता है, कि इस्राएल मेरा पुत्र वरन मेरा जेठा है, 
23. और मैं जो तुझ से कह चुका हूं, कि मेरे पुत्र को जाने दे कि वह मेरी सेवा करे; और तू ने अब तक उसे जाने नहीं दिया, इस कारण मैं अब तेरे पुत्र वरन तेरे जेठे को घात करूंगा। 
24. और ऐसा हुआ कि मार्ग पर सराय में यहोवा ने मूसा से भेंट करके उसे मार डालना चाहा। 
25. तब सिप्पोरा ने एक तेज चकमक पत्यर लेकर अपके बेटे की खलड़ी को काट डाला, और मूसा के पावोंपर यह कहकर फेंक दिया, कि निश्चय तू लोहू बहानेवाला मेरा पति है। 
26. तब उस ने उसको छोड़ दिया। और उसी समय खतने के कारण वह बोली, तू लोहू बहानेवाला पति है। 
27. तब यहोवा ने हारून से कहा, मूसा से भेंट करने को जंगल में जा। और वह गया, और परमेश्वर के पर्वत पर उस से मिला और उसको चूमा। 
28. तब मूसा ने हारून को यह बतलाया कि यहोवा ने क्या क्या बातें कहकर उसको भेजा है, और कौन कौन से चिन्ह दिखलाने की आज्ञा उसे दी है। 
29. तब मूसा और हारून ने जाकर इस्राएलियोंके सब पुरनियोंको इकट्ठा किया। 
30. और जितनी बातें यहोवा ने मूसा से कही यी वह सब हारून ने उन्हें सुनाई, और लोगोंके साम्हने वे चिन्ह भी दिखलाए। 
31. और लोगोंने उनकी प्रतीति की; और यह सुनकर, कि यहोवा ने इस्राएलियोंकी सुधि ली और उनके दु:खोंपर दृष्टि की है, उन्होंने सिर फुकाकर दण्डवत की।।

Chapter 5

1. इसके पश्चात्‌ मूसा और हारून ने जाकर फिरौन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि वे जंगल में मेरे लिथे पर्व्व करें। 
2. फिरौन ने कहा, यहोवा कौन है, कि मैं उसका वचन मानकर इस्राएलियोंको जाने दूं ? मैं यहोवा को नहीं जानता, और मैं इस्राएलियोंको नहीं जाने दूंगा। 
3. उन्होंने कहा, इब्रियोंके परमेश्वर ने हम से भेंट की है; सो हमें जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाने दे, कि अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे बलिदान करें, ऐसा न हो कि वह हम में मरी फैलाए वा तलवार चलवाए। 
4. मिस्र के राजा ने उन से कहा, हे मूसा, हे हारून, तुम क्योंलोगोंसे काम छुड़वाने चाहते हो? तुम जाकर अपके अपके बोफ को उठाओ। 
5. और फिरोन ने कहा, सुनो, इस देश में वे लोग बहुत हो गए हैं, फिर तुम उनको परिश्र्म से विश्रम दिलाना चाहते हो ! 
6. और फिरौन ने उसी दिन उन परिश्र्म करवानेवालोंको जो उन लोगोंके ऊपर थे, और उनके सरदारोंको यह आज्ञा दी, 
7. कि तुम जो अब तक ईटें बनाने के लिथे लोगोंको पुआल दिया करते थे सो आगे को न देना; वे आप ही जाकर अपके लिथे पुआल इकट्ठा करें। 
8. तौभी जितनी ईंटें अब तक उन्हें बनानी पड़ती यीं उतनी ही आगे को भी उन से बनवाना, ईंटोंकी गिनती कुछ भी न घटाना; क्योंकि वे आलसी हैं; इस कारण यह कहकर चिल्लाते हैं, कि हम जाकर अपके परमेश्वर के लिथे बलिदान करें। 
9. उन मनुष्योंसे और भी कठिन सेवा करवाई जाए कि वे उस में परिश्र्म करते रहें और फूठी बातोंपर ध्यान न लगाएं। 
10. तब लोगोंके परिश्र्म करानेवालोंने और सरदारोंने बाहर जाकर उन से कहा, फिरौन इस प्रकार कहता है, कि मैं तुम्हें पुआल नहीं दूंगा। 
11. तुम ही जाकर जहां कहीं पुआल मिले वहां से उसको बटोर कर ले आओ; परन्तु तुम्हारा काम कुछ भी नहीं घटाया जाएगा। 
12. सो वे लोग सारे मिस्र देश में तित्तर-बित्तर हुए कि पुआल की सन्ती खूंटी बटोरें। 
13. और परिश्र्म करनेवाले यह कह कहकर उन से जल्दी करते रहे, कि जिस प्रकार तुम पुआल पाकर किया करते थे उसी प्रकार अपना प्रतिदिन का काम अब भी पूरा करो। 
14. और इस्राएलियोंमें से जिन सरदारोंको फिरौन के परिश्र्म करानेवालोंने उनका अधिक्कारनेी ठहराया या, उन्होंने मार खाई, और उन से पूछा गया, कि क्या कारण है कि तुम ने अपक्की ठहराई हुई ईंटोंकी गिनती के अनुसार पहिले की नाई कल और आज पूरी नहीं कराई ? 
15. तब इस्राएलियोंके सरदारोंने जाकर फिरौन की दोहाई यह कहकर दी, कि तू अपके दासोंसे ऐसा बर्ताव क्योंकरता है? 
16. तेरे दासोंको पुआल तो दिया ही नहीं जाता और वे हम से कहते रहते हैं, ईंटे बनाओ, ईंटें बनाओ, और तेरे दासोंने भी मार खाई हैं; परन्तु दोष तेरे ही लोगोंका है।
17. फिरौन ने कहा, तुम आलसी हो, आलसी; इसी कारण कहते हो कि हमे यहोवा के लिथे बलिदान करने को जाने दे। 
18. और जब आकर अपना काम करो; और पुआल तुम को नहीं दिया जाएगा, परन्तु ईटोंकी गिनती पूरी करनी पकेगी। 
19. जब इस्राएलियोंके सरदारोंने यह बात सुनी कि उनकी ईंटोंकी गिनती न घटेगी, और प्रतिदिन उतना ही काम पूरा करना पकेगा, तब वे जान गए कि उनके दुर्भाग्य के दिन आ गए हैं। 
20. जब वे फिरौन के सम्मुख से बाहर निकल आए तब मूसा और हारून, जो उन से भेंट करने के लिथे खड़े थे, उन्हें मिले। 
21. और उन्होंने मूसा और हारून से कहा, यहोवा तुम पर दृष्टि करके न्याय करे, क्योंकि तुम ने हम को फिरौन और उसके कर्मचारियोंकी दृष्टि में घृणित ठहरवाकर हमें घात करने के लिथे उनके हाथ में तलवार दे दी है। 
22. तब मूसा ने यहोवा के पास लौट कर कहा, हे प्रभु, तू ने इस प्रजा के साय ऐसी बुराई क्योंकी? और तू ने मुझे यहां क्योंभेजा ? 
23. जब से मैं तेरे नाम से फिरौन के पास बातें करने के लिथे गया तब से उसने इस प्रजा के साय बुरा ही व्यवहार किया है, और तू ने अपक्की प्रजा का कुछ भी छुटकारा नहीं किया।

Chapter 6

1. तब यहोवा ने मूसा से कहा, अब तू देखेगा कि मैं फिरौन ने क्या करूंगा; जिस से वह उनको बरबस निकालेगा, वह तो उन्हें अपके देश से बरबस निकाल देगा।। 
2. और परमेश्वर ने मूसा से कहा, कि मैं यहोवा हूं। 
3. मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर के नाम से इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को दर्शन देता या, परन्तु यहोवा के नाम से मैं उन पर प्रगट न हुआ। 
4. और मैं ने उनके साय अपक्की वाचा दृढ़ की है, अर्यात्‌ कनान देश जिस में वे परदेशी होकर रहते थे, उसे उन्हें दे दूं। 
5. और इस्राएली जिन्हें मिस्री लोग दासत्व में रखते हैं उनका कराहना भी सुनकर मैं ने अपक्की वाचा को स्मरण किया है। 
6. इस कारण तू इस्राएलियोंसे कह, कि मैं यहोवा हूं, और तुम को मिस्रियोंके बोफोंके नीचे से निकालूंगा, और उनके दासत्व से तुम को छुड़ाऊंगा, और अपक्की भुजा बढ़ाकर और भारी दण्ड देकर तुम्हें छुड़ा लूंगा, 
7. और मैं तुम को अपक्की प्रजा बनाने के लिथे अपना लूंगा, और मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूंगा; और तुम जान लोगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुम्हें मिस्रियोंके बोफोंके नीचे से निकाल ले आया। 
8. और जिस देश के देने की शपय मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से खाई यी उसी में मैं तुम्हें पहुंचाकर उसे तुम्हारा भाग कर दूंगा। मैं तो यहोवा हूं। 
9. और थे बातें मूसा ने इस्राएलियोंको सुनाई; परन्तु उन्होंने मन की बेचैनी और दासत्व की क्रूरता के कारण उसकी न सुनी।। 
10. तब यहोवा ने मूसा से कहा, 
11. तू जाकर मिस्र के राजा फिरौन से कह, कि इस्राएलियोंको अपके देश में से निकल जाने दे। 
12. और मूसा ने यहोवा से कहा, देख, इस्राएलियोंने मेरी नहीं सुनी; फिर फिरौन मुझ भद्दे बोलनेवाले की क्योंकर सुनेगा ? 
13. और यहोवा ने मूसा और हारून को इस्राएलियोंऔर मिस्र के राजा फिरौन के लिथे आज्ञा इस अभिप्राय से दी कि वे इस्राएलियोंको मिस्र देश से निकाल ले जाएं। 
14. उनके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष थे हैं : इस्राएल के जेठा रूबेन के पुत्र : हनोक, पल्लू, हेस्रोन और कर्म्मी थे; 
15. और शिमोन के पुत्र : यमूएल, यामीन, ओहद, याकिन, और सोहर थे, और एक कनानी स्त्री का बेटा शाउल भी या; इन्हीं से शिमोन के कुल निकले। 
16. और लेवी के पुत्र जिन से उनकी वंशावली चक्की है, उनके नाम थे हैं : अर्यात्‌ गेर्शोन, कहात और मरारी, और लेवी को पूरी अवस्या एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। 
17. गेर्शोन के पुत्र जिन से उनका कुल चला : लिबनी और शिमी थे। 
18. और कहात के पुत्र : अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल थे, और कहात की पूरी अवस्या एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। 
19. और मरारी के पुत्र : महली और मूशी थे। लेवियोंके कुल जिन से उनकी वंशावली चक्की थे ही हैं। 
20. अम्राम ने अपक्की फूफी योकेबेद को ब्याह लिया और उस से हारून और मूसा उत्पन्न हुए, और अम्राम की पूरी अवस्या एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। 
21. और यिसहार के पुत्र कोरह, नेपेग और जिक्री थे। 
22. और उज्जीएल के पुत्र: मीशाएल, एलसापन और सित्री थे। 
23. और हारून ने अम्मीनादाब की बेटी, और नहशोन की बहिन एलीशेबा को ब्याह लिया; और उस से नादाब, अबीहू, ऐलाजार और ईतामार उत्पन्न हुए। 
24. और कोरह के पुत्र : अस्सीर, एलकाना और अबीआसाप थे; और इन्हीं से कोरहियोंके कुल निकले। 
25. और हारून के पुत्र एलाजार ने पूतीएल की एक बेटी को ब्याह लिया; और उस से पीनहास उत्पन्न हुआ जिन से उनका कुल चला। लेवियोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष थे ही हैं। 
26. हारून और मूसा वे ही हैं जिनको यहोवा ने यह आज्ञा दी, कि इस्राएलियोंको दल दल करके उनके जत्योंके अनुसार मिस्र देश से निकाल ले आओ। 
27. थे वही मूसा और हारून हैं जिन्होंने मिस्र के राजा फिरौन से कहा, कि हम इस्राएलियोंको मिस्र से निकाल ले जाएंगे।। 
28. जब यहोवा ने मिस्र देश में मूसा से यह बात कही, 
29. कि मैं तो यहोवा हूं; इसलिथे जो कुछ मैं तुम से कहूंगा वह सब मिस्र के राजा फिरौन से कहना। 
30. और मूसा ने यहोवा को उत्तर दिया, कि मैं तो बोलने में भद्दा हूं; और फिरोन क्योंकर मेरी सुनेगा ?

Chapter 7

1. तब यहोवा ने मूसा से कहा, सुन, मैं तुझे फिरौन के लिथे परमेश्वर सा ठहराता हूं; और तेरा भाई हारून तेरा नबी ठहरेगा। 
2. जो जो आज्ञा मैं तुझे दूं वही तू कहना, और हारून उसे फिरौन से कहेगा जिस से वह इस्राएलियोंको अपके देश से निकल जाने दे। 
3. और मैं फिरौन के मन को कठोर कर दूंगा, और अपके चिन्ह और चमत्कार मिस्र देश में बहुत से दिखलाऊंगा। 
4. तौभी फिरौन तुम्हारी न सुनेगा; और मैं मिस्र देश पर अपना हाथ बढ़ाकर मिस्रियोंको भारी दण्ड देकर अपक्की सेना अर्यात्‌ अपक्की इस्राएली प्रजा को मिस्र देश से निकाल लूंगा। 
5. और जब मैं मिस्र पर हाथ बढ़ा कर इस्राएलियोंको उनके बीच से निकालूंगा तब मिस्री जान लेंगे, कि मैं यहोवा हूं। 
6. तब मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया। 
7. और जब मूसा और हारून फिरौन से बात करने लगे तब मूसा तो अस्सी वर्ष का या, और हारून तिरासी वर्ष का या।। 
8. फिर यहोवा ने, मूसा और हारून से इस प्रकार कहा, 
9. कि जब फिरौन तुम से कहे, कि अपके प्रमाण का कोई चमत्कार दिखाओ, तब तू हारून से कहना, कि अपक्की लाठी को लेकर फिरौन के साम्हने डाल दे, कि वह अजगर बन जाए। 
10. तब मूसा और हारून ने फिरौन के पास जाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया; और जब हारून ने अपक्की लाठी को फिरौन और उसके कर्मचारियोंके साम्हने डाल दिया, तब वह अजगर बन गया। 
11. तब फिरौन ने पण्डितोंऔर टोनहा करनेवालोंको बुलवाया; और मिस्र के जादूगरोंने आकर अपके अपके तंत्र मंत्र से वैसा ही किया। 
12. उन्होंने भी अपक्की अपक्की लाठी को डाल दिया, और वे भी अजगर बन गए। पर हारून की लाठी उनकी लाठियोंको निगल गई। 
13. परन्तु फिरौन का मन और हठीला हो गया, और यहोवा के वचन के अनुसार उस ने मूसा और हारून की बातोंको नहीं माना।। 
14. तब यहोवा ने मूसा से कहा, फिरोन का मन कठोर हो गया है और वह इस प्रजा को जाने नहीं देता। 
15. इसलिथे बिहान को फिरौन के पास जा, वह तो जल की ओर बाहर आएगा; और जो लाठी सर्प बन गई यी, उसको हाथ में लिए हुए नील नदी के तट पर उस से भेंट करने के लिथे खड़ा रहना। 
16. और उस से इस प्रकार कहना, कि इब्रियोंके परमेश्वर यहोवा ने मुझे यह कहने के लिथे तेरे पास भेजा है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे कि जिस से वे जंगल में मेरी उपासना करें; और अब तक तू ने मेरा कहना नहीं माना। 
17. यहोवा योंकहता है, इस से तू जान लेगा कि मैं ही परमेश्वर हूं; देख, मै अपके हाथ की लाठी को नील नदी के जल पर मारूंगा, और जल लोहू बन जाएगा, 
18. और जो मछलियां नील नदी में हैं वे मर जाएंगी, और नील नदी बसाने लगेगी, और नदी का पानी पीने के लिथे मिस्रियोंका जी न चाहेगा। 
19. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून से कह, कि अपक्की लाठी लेकर मिस्र देश में जितना जल है, अर्यात्‌ उसकी नदियां, नहरें, फीलें, और पोखरे, सब के ऊपर अपना हाथ बढ़ा कि उनका जल लोहू बन जाए; और सारे मिस्र देश में काठ और पत्यर दोनोंभांति के जलपात्रोंमें लोहू ही लोहू हो जाएगा। 
20. तब मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा ही के अनुसार किया, अर्यात्‌ उस ने लाठी को उठाकर फिरौन और उसके कर्मचारियोंके देखते नील नदी के जल पर मारा, और नदी का सब जल लोहू बन गया। 
21. और नील नदी में जो मछलियां यीं वे मर गई; और नदी से दुर्गन्ध आने लगी, और मिस्री लोग नदी का पानी न पी सके; और सारे मिस्र देश में लोहू हो गया। 
22. तब मिस्र के जादूगरोंने भी अपके तंत्र-मंत्रो से वैसा ही किया; तौभी फिरौन का मन हठीला हो गया, और यहोवा के कहने के अनुसार उस ने मूसा और हारून की न मानी। 
23. फिरौन ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया, और मुंह फेर के अपके घर में चला गया। 
24. और सब मिस्री लोग पीने के जल के लिथे नील नदी के आस पास खोदने लगे, क्योंकि वे नदी का जल नहीं पी सकते थे। 
25. और जब यहोवा ने नील नदी को मारा या तब से सात दिन हो चुके थे।।

Chapter 8

1. और तब यहोवा ने फिर मूसा से कहा, फिरौन के पास जाकर कह, यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे जिस से वे मेरी उपासना करें। 
2. और यदि उन्हें जाने न देगा तो सुन, मैं मेंढ़क भेजकर तेरे सारे देश को हानि पहुंचानेवाला हूं। 
3. और नील नदी मेंढ़कोंसे भर जाएगी, और वे तेरे भवन में, और तेरे बिछौने पर, और तेरे कर्मचारियोंके घरोंमें, और तेरी प्रजा पर, वरन तेरे तन्दूरोंऔर कठौतियोंमें भी चढ़ जाएंगे। 
4. और तुझ पर, और तेरी प्रजा, और तेरे कर्मचारियों, सभोंपर मेंढ़क चढ़ जाएंगे। 
5. फिर यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी, कि हारून से कह दे, कि नदियों, नहरों, और फीलोंके ऊपर लाठी के साय अपना हाथ बढ़ाकर मेंढकोंको मिस्र देश पर चढ़ा ले आए। 
6. तब हारून ने मिस्र के जलाशयोंके ऊपर अपना हाथ बढ़ाया; और मेंढ़कोंने मिस्र देश पर चढ़कर उसे छा लिया। 
7. और जादूगर भी अपके तंत्र-मंत्रोंसे उसी प्रकार मिस्र देश पर मेंढक चढ़ा ले आए। 
8. तक फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, यहोवा से बिनती करो कि वह मेंढ़कोंको मुझ से और मेरी प्रजा से दूर करे; और मैं इस्राएली लोगोंको जाने दूंगा जिस से वे यहोवा के लिथे बलिदान करें। 
9. तब मूसा ने फिरौन से कहा, इतनी बात पर तो मुझ पर तेरा घमंड रहे, अब मैं तेरे, और तेरे कर्मचारियों, और प्रजा के निमित्त कब बिनती करूं, कि यहोवा तेरे पास से और तेरे घरोंमें से मेंढकोंको दूर करे, और वे केवल नील नदी में पाए जाएं ? 
10. उस ने कहा, कल। उस ने कहा, तेरे वचन के अनुसार होगा, जिस से तुझे यह ज्ञात हो जाए कि हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कोई दूसरा नहीं है। 
11. और मेंढक तेरे पास से, और तेरे घरोंमें से, और तेरे कर्मचारियोंऔर प्रजा के पास से दूर होकर केवल नील नदी में रहेंगे। 
12. तब मूसा और हारून फिरौन के पास से निकल गए; और मूसा ने उन मेंढकोंके विषय यहोवा की दोहाई दी जो उस ने फिरौन पर भेजे थे। 
13. और यहोवा ने मूसा के कहने के अनुसार किया; और मेंढक घरों, आंगनों, और खेतोंमें मर गए। 
14. और लोगोंने इकट्ठे करके उनके ढेर लगा दिए, और सारा देश दुर्गन्ध से भर गया। 
15. परन्तु जब फिरोन ने देखा कि अब आराम मिला है तक यहोवा के कहने के अनुसार उस ने फिर अपके मन को कठोर किया, और उनकी न सुनी।। 
16. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून को आज्ञा दे, कि तू अपक्की लाठी बढ़ाकर भूमि की धूल पर मार, जिस से वह मिस्र देश भर में कुटकियां बन जाएं। 
17. और उन्होंने वैसा ही किया; अर्यात्‌ हारून ने लाठी को ले हाथ बढ़ाकर भूमि की धूल पर मारा, तब मनुष्य और पशु दोनोंपर कुटकियां हो गई वरन सारे मिस्र देश में भूमि की धूल कुटकियां बन गई। 
18. तब जादूगरोंने चाहा कि अपके तंत्र मंत्रोंके बल से हम भी कुटकियां ले आएं, परन्तु यह उन से न हो सका। और मनुष्योंऔर पशुओं दोनोंपर कुटकियां बनी ही रहीं। 
19. तब जादूगरोंने फिरौन से कहा, यह तो परमेश्वर के हाथ का काम है। तौभी यहोवा के कहने के अनुसार फिरौन का मन कठोर होता गया, और उस ने मूसा और हारून की बात न मानी।। 
20. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बिहान को तड़के उठकर फिरौन के साम्हने खड़ा होना, वह तो जल की ओर आएगा, और उस से कहना, कि यहोवा तुझ से यह कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। 
21. यदि तू मेरी प्रजा को न जाने देगा तो सुन, मैं तुझ पर, और तेरे कर्मचारियोंऔर तेरी प्रजा पर, और तेरे घरोंमें फुंड के फुंड डांस भेजूंगा; और मिस्रियोंके घर और उनके रहने की भूमि भी डांसोंसे भर जाएगी। 
22. उस दिन मैं गोशेन देश को जिस में मेरी प्रजा रहती है अलग करूंगा, और उस में डांसोंके फुंड न होंगे; जिस से तू जान ले कि पृय्वी के बीच मैं ही यहोवा हूं। 
23. और मैं अपक्की प्रजा और तेरी प्रजा में अन्तर ठहराऊंगा। यह चिन्ह कल होगा। 
24. और यहोवा ने वैसा ही किया, और फिरौन के भवन, और उसके कर्मचारियोंके घरोंमें, और सारे मिस्र देश में डांसोंके फुंड के फुंड भर गए, और डांसोंके मारे वह देश नाश हुआ। 
25. तब फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, तुम जाकर अपके परमेश्वर के लिथे इसी देश में बलिदान करो। 
26. मूसा ने कहा, ऐसा करना उचित नहीं; क्योंकि हम अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे मिस्रियोंकी घृणित वस्तु बलिदान करेंगें; और यदि हम मिस्रियोंके देखते उनकी घृणित वस्तु बलिदान करें तो क्या वे हम को पत्यरवाह न करेंगे ? 
27. हम जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाकर अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे जैसा वह हम से कहेगा वैसा ही बलिदान करेंगे। 
28. फिरौन ने कहा, मैं तुम को जंगल में जाने दूंगा कि तुम अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे जंगल में बलिदान करो; केवल बहुत दूर न जाना, और मेरे लिथे बिनती करो। 
29. तब मूसा ने कहा, सुन, मैं तेरे पास से बाहर जाकर यहोवा से बिनती करूंगा कि डांसोंके फुंड तेरे, और तेरे कर्मचारियों, और प्रजा के पास से कल ही दूर हों; पर फिरौन आगे को कपट करके हमें यहोवा के लिथे बलिदान करने को जाने देने के लिथे नाहीं न करे। 
30. सो मूसा ने फिरौन के पास से बाहर जाकर यहोवा से बिनती की। 
31. और यहोवा ने मूसा के कहे के अनुसार डांसोंके फुण्डोंको फिरौन, और उसके कर्मचारियों, और उसकी प्रजा से दूर किया; यहां तक कि एक भी न रहा। 
32. तक फिरौन ने इस बार भी अपके मन को सुन्न किया, और उन लोगोंको जाने न दिया।।

Chapter 9

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, फिरोन के पास जाकर कह, कि इब्रियोंका परमेश्वर यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि मेरी उपासना करें। 
2. और यदि तू उन्हें जाने न दे और अब भी पकड़े रहे, 
3. तो सुन, तेरे जो घोड़े, गदहे, ऊंट, गाय-बैल, भेड़-बकरी आदि पशु मैदान में हैं, उन पर यहोवा का हाथ ऐसा पकेगा कि बहुत भारी मरी होगी। 
4. और यहोवा इस्राएलियोंके पशुओं में और मिस्रियोंके पशुओं में ऐसा अन्तर करेगा, कि जो इस्राएलियोंके हैं उन में से कोई भी न मरेगा। 
5. फिर यहोवा ने यह कहकर एक समय ठहराया, कि मैं यह काम इस देश में कल करूंगा। 
6. दूसरे दिन यहोवा ने ऐसा ही किया; और मिस्र के तो सब पशु मर गए, परन्तु इस्राएलियोंका एक भी पशु न मरा। 
7. और फिरौन ने लोगोंको भेजा, पर इस्राएलियोंके पशुओं में से एक भी नहीं मरा या। तौभी फिरौन का मन सुन्न हो गया, और उस ने उन लोगोंको जाने न दिया। 
8. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, कि तुम दोनोंभट्टी में से एक एक मुट्ठी राख ले लो, और मूसा उसे फिरौन के साम्हने आकाश की ओर उड़ा दे। 
9. तब वह सूझ्म धूल होकर सारे मिस्र देश में मनुष्योंऔर पशुओं दोनोंपर फफोले और फोड़े बन जाएगी। 
10. सो वे भट्टी में की राख लेकर फिरौन के साम्हने खड़े हुए, और मूसा ने उसे आकाश की ओर उड़ा दिया, और वह मनुष्योंऔर पशुओं दोनोंपर फफोले और फोड़े बन गई। 
11. और उन फोड़ोंके कारण जादूगर मूसा के साम्हने खड़े न रह सके, क्योंकि वे फोड़े जैसे सब मिस्रियोंके वैसे ही जादूगरोंके भी निकले थे। 
12. तब यहोवा ने फिरौन के मन को कठोर कर दिया, और जैसा यहोवा ने मूसा से कहा या, उस ने उसकी न सुनी।। 
13. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बिहान को तड़के उठकर फिरौन के साम्हने खड़ा हो, और उस से कह इब्रियोंका परमेश्वर यहोवा इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। 
14. नहीं तो अब की बार मैं तुझ पर, और तेरे कर्मचारियोंऔर तेरी प्रजा पर सब प्रकार की विपत्तियां डालूंगा, जिससे तू जान ले कि सारी पृय्वी पर मेरे तुल्य कोई दूसरा नहीं है। 
15. मैं ने तो अभी हाथ बढ़ाकर तुझे और तेरी प्रजा को मरी से मारा होता, और तू पृय्वी पर से सत्यनाश हो गया होता; 
16. परन्तु सचमुच मैं ने इसी कारण तुझे बनाए रखा है, कि तुझे अपना सामर्य्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृय्वी पर प्रसिद्ध करूं। 
17. क्या तू अब भी मेरी प्रजा के साम्हने अपके आप को बड़ा समझता है, और उन्हें जाने नहीं देता ? 
18. सुन, कल मैं इसी समय ऐसे भारी भारी ओले बरसाऊंगा, कि जिन के तुल्य मिस्र की नेव पड़ने के दिन से लेकर अब तक कभी नहीं पके। 
19. सो अब लोगोंको भेजकर अपके पशुओं को अपके मैदान में जो कुछ तेरा है सब को फुर्ती से आड़ में छिपा ले; नहीं तो जितने मनुष्य वा पशु मैदान में रहें और घर में इकट्ठे न किए जाएं उन पर ओले गिरेंगे, और वे मर जाएंगे। 
20. इसलिथे फिरौन के कर्मचारियोंमें से जो लोग यहोवा के वचन का भय मानते थे उन्होंने तो अपके अपके सेवकोंऔर पशुओं को घर में हाँक दिया। 
21. पर जिन्होंने यहोवा के वचन पर मन न लगाया उन्होंने अपके सेवकोंऔर पशुओं को मैदान में रहने दिया।। 
22. तक यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा, कि सारे मिस्र देश के मनुष्योंपशुओं और खेतोंकी सारी उपज पर ओले गिरें। 
23. तब मूसा ने अपक्की लाठी को आकाश की ओर उठाया; और यहोवा मेघ गरजाने और ओले बरसाने लगा, और आग पृय्वी तक आती रही। इस प्रकार यहोवा ने मिस्र देश पर ओले बरसाए। 
24. जो ओले गिरते थे उनके साय आग भी मिली हुई यी, और वे ओले इतने भारी थे कि जब से मिस्र देश बसा या तब से मिस्र भर में ऐसे ओले कभी न गिरे थे। 
25. इसलिथे मिस्र भर के खेतोंमें क्या मनुष्य, क्या पशु, जितने थे सब ओलोंसे मारे गए, और ओलोंसे खेत की सारी उपज नष्ट हो गई, और मैदान के सब वृझ टूट गए। 
26. केवल गोशेन देश में जहां इस्राएली बसते थे ओले नहीं गिरे। 
27. तब फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवा भेजा और उन से कहा, कि इस बार मैं ने पाप किया है; यहोवा धर्मी है, और मैं और मेरी प्रजा अधर्मी हैं। 
28. मेघोंका गरजना और ओलोंका बरसना तो बहुत हो गया; अब भविष्य में यहोवा से बिनती करो; तब मैं तुम लोगोंको जाने दूंगा, और तुम न रोके जाओगे। 
29. मूसा ने उस से कहा, नगर से निकलते ही मैं यहोवा की ओर हाथ फैलाऊंगा, तब बादल का गरजना बन्द हो जाएगा, और ओले फिर न गिरेंगे, इस से तू जान लेगा कि पृय्वी यहोवा ही की है। 
30. तौभी मैं जानता हूं, कि न तो तू और न तेरे कर्मचारी यहोवा परमेश्वर का भय मानेंगे। 
31. सन और जव तो ओलोंसे मारे गए, क्योंकि जव की बालें निकल चुकी यीं और सन में फूल लगे हुए थे। 
32. पर गेहूं और कठिया गेहूं जो बढ़े न थे, इस कारण वे मारे न गए। 
33. जब मूसा ने फिरौन के पास से नगर के बाहर निकलकर यहोवा की ओर हाथ फैलाए, तब बादल का गरजना और ओलोंका बरसना बन्द हुआ, और फिर बहुत मेंह भूमि पर न पड़ा। 
34. यह देखकर कि मेंह और ओलोंऔर बादल का गरजना बन्द हो गया फिरौन ने अपके कर्मचारियोंसमेत फिर अपके मन को कठोर करके पाप किया। 
35. और फिरौन का मन हठीला होता गया, और उस ने इस्राएलियोंको जाने न दिया; जैसा कि यहोवा ने मूसा के द्वारा कहलवाया या।।

Chapter 10

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, फिरोन के पास जा; क्योंकि मैं ही ने उसके और उसके कर्मचारियोंके मन को इसलिथे कठोर कर दिया है, कि अपके चिन्ह उनके बीच में दिखलाऊं। 
2. और तुम लोग अपके बेटोंऔर पोतोंसे इसका वर्णन करो कि यहोवा ने मिस्रियोंको कैसे ठट्ठोंमें उड़ाया और अपके क्या क्या चिन्ह उनके बीच प्रगट किए हैं; जिस से तुम यह जान लोगे कि मैं यहोवा हूं। 
3. तब मूसा और हारून ने फिरौन के पास जाकर कहा, कि इब्रियोंका परमेश्वर यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि तू कब तक मेरे साम्हने दीन होने से संकोच करता रहेगा ? मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। 
4. यदि तू मेरी प्रजा को जाने न दे तो सुन, कल मैं तेरे देश में टिड्डियां ले आऊंगा। 
5. और वे धरती को ऐसा छा लेंगी, कि वह देख न पकेगी; और तुम्हारा जो कुछ ओलोंसे बच रहा है उसको वे चट कर जाएंगी, और तुम्हारे जितने वृझ मैदान में लगे हैं उनको भी वे चट कर जाएंगी, 
6. और वे तेरे और तेरे सारे कर्मचारियों, निदान सारे मिस्रियोंके घरोंमें भर जाएंगी; इतनी टिड्डियां तेरे बापदादोंने वा उनके पुरखाओं ने जब से पृय्वी पर जन्मे तब से आज तक कभी न देखीं। और वह मुंह फेरकर फिरौन के पास से बाहर गया। 
7. तब फिरौन के कर्मचारी उस से कहने लगे, वह जन कब तक हमारे लिथे फन्दा बना रहेगा ? उन मनुष्योंको जाने दे, कि वे अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना करें; क्या तू अब तक नहीं जानता, कि सारा मिस्र नाश हो गया है ? 
8. तब मूसा और हारून फिरौन के पास फिर बुलवाए गए, और उस ने उन से कहा, चले जाओ, अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना करो; परन्तु वे जो जानेवाले हैं, कौन कौन हैं ? 
9. मूसा ने कहा, हम तो बेटोंबेटियों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलोंसमेत वरन बच्चोंसे बूढ़ोंतक सब के सब जाएंगे, क्योंकि हमें यहोवा के लिथे पर्ब्ब करना है। 
10. उस ने इस प्रकार उन से कहा, यहोवा तुम्हारे संग रहे जब कि मैं तुम्हें बच्चोंसमेत जाने देता हूं; देखो, तुम्हारे आगे को बुराई है। 
11. नहीं, ऐसा नहीं होने पाएगा; तुम पुरूष ही जाकर यहोवा की उपासना करो, तुम यही तो चाहते थे। और वे फिरौन के सम्मुख से निकाल दिए गए।। 
12. तब यहोवा ने मूसा से कहा, मिस्र देश के ऊपर अपना हाथ बढ़ा, कि टिड्डियां मिस्र देश पर चढ़के भूमि का जितना अन्न आदि ओलोंसे बचा है सब को चट कर जाएं। 
13. और मूसा ने अपक्की लाट्ठी को मिस्र देश के ऊपर बढ़ाया, तब यहोवा ने दिन भर और रात भर देश पर पुरवाई बहाई; और जब भोर हुआ तब उस पुरवाई में टिड्डियां आईं। 
14. और टिडि्‌डयोंने चढ़के मिस्र देश के सारे स्यानोंमे बसेरा किया, उनका दल बहुत भारी या, वरन न तो उनसे पहले ऐसी टिड्डियां आई यी, और न उनके पीछे ऐसी फिर आएंगी। 
15. वे तो सारी धरती पर छा गई, यहां तक कि देश अन्धेरा हो गया, और उसका सारा अन्न आदि और वृझोंके सब फल, निदान जो कुछ ओलोंसे बचा या, सब को उन्होंने चट कर लिया; यहां तक कि मिस्र देश भर में न तो किसी वृझ पर कुछ हरियाली रह गई और न खेत में अनाज रह गया। 
16. तब फिरौन ने फुर्ती से मूसा और हारून को बुलवाके कहा, मैं ने तो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का और तुम्हारा भी अपराध किया है। 
17. इसलिथे अब की बार मेरा अपराध झमा करो, और अपके परमेश्वर यहोवा से बिनती करो, कि वह केवल मेरे ऊपर से इस मृत्यु को दूर करे। 
18. तब मूसा ने फिरोन के पास से निकल कर यहोवा से बिनती की। 
19. तब यहोवा ने बहुत प्रचण्ड पछुवा बहाकर टिड्डियोंको उड़ाकर लाल समुन्द्र में डाल दिया, और मिस्र के किसी स्यान में एक भी टिड्डी न रह गई। 
20. तौभी यहोवा ने फिरौन के मन को कठोर कर दिया, जिस से उस ने इस्राएलियोंको जाने न दिया। 
21. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा कि मिस्र देश के ऊपर अन्धकार छा जाए, ऐसा अन्धकार कि टटोला जा सके। 
22. तब मूसा ने अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ाया, और सारे मिस्र देश में तीन दिन तक घोर अन्धकार छाया रहा। 
23. तीन दिन तक न तो किसी ने किसी को देखा, और न कोई अपके स्यान से उठा; परन्तु सारे इस्राएलियोंके घरोंमें उजियाला रहा। 
24. तब फिरौन ने मूसा को बुलवाकर कहा, तुम लोग जाओ, यहोवा की उपासना करो; अपके बालकोंको भी संग ले जाओ; केवल अपक्की भेड़-बकरी और गाय-बैल को छोड़ जाओ। 
25. मूसा ने कहा, तुझ को हमारे हाथ मेलबलि और होमबलि के पशु भी देने पकेंगे, जिन्हें हम अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे चढ़ाएं। 
26. इसलिथे हमारे पशु भी हमारे संग जाएंगे, उनका एक खुर तक न रह जाएगा, क्योंकि उन्हीं में से हम को अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना का सामान लेना होगा, और हम जब तक वहां न पहुंचें तब तक नहीं जानते कि क्या क्या लेकर यहोवा की उपासना करनी होगी। 
27. पर यहोवा ने फिरौन का मन हठीला कर दिया, जिस से उस ने उन्हें जाने न दिया। 
28. तब फिरौन ने उस से कहा, मेरे साम्हने से चला जा; और सचेत रह; मुझे अपना मुख फिर न दिखाना; क्योंकि जिस दिन तू मुझे मुंह दिखलाए उसी दिन तू मारा जाएगा। 
29. मूसा ने कहा, कि तू ने ठीक कहा है; मैं तेरे मुंह को फिर कभी न देखूंगा।।

Chapter 11

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, एक और विपत्ति मैं फिरौन और मिस्र देश पर डालता हूं, उसके पश्चात्‌ वह तुम लोगोंको वहां से जाने देगा; और जब वह जाने देगा तब तुम सभोंको निश्चय निकाल देगा। 
2. मेरी प्रजा को मेरी यह आज्ञा सुना, कि एक एक पुरूष अपके अपके पड़ोसी, और एक एक स्त्री अपक्की अपक्की पड़ोसिन से सोने चांदी के गहने मांग ले। 
3. तब यहोवा ने मिस्रियोंको अपक्की प्रजा पर दयालु किया। और इससे अधिक वह पुरूष मूसा मिस्र देश में फिरौन के कर्मचारियोंऔर साधारण लोगोंकी दृष्टि में अति महान या।। 
4. फिर मूसा ने कहा, यहोवा इस प्रकार कहता है, कि आधी रात के लगभग मैं मिस्र देश के बीच में होकर चलूंगा। 
5. तब मिस्र में सिंहासन पर विराजने वाले फिरौन से लेकर चक्की पीसनेवाली दासी तक के पहिलौठे; वरन पशुओं तक के सब पहिलौठे मर जाएंगे। 
6. और सारे मिस्र देश में बड़ा हाहाकार मचेगा, यहां तक कि उसके समान न तो कभी हुआ और न होगा। 
7. पर इस्राएलियोंके विरूद्ध, क्या मनुष्य क्या पशु, किसी पर कोई कुत्ता भी न भोंकेगा; जिस से तुम जान लो कि मिस्रियोंऔर इस्राएलियोंमें मैं यहोवा अन्तर करता हूं। 
8. तब तेरे थे सब कर्मचारी मेरे पास आ मुझे दण्डवत्‌ करके यह कहेंगे, कि अपके सब अनुचरोंसमेत निकल जा। और उसके पश्चात्‌ मैं निकल जाऊंगा। यह कह कर मूसा बड़े क्रोध में फिरौन के पास से निकल गया।। 
9. यहोवा ने मूसा से कह दिया या, कि फिरौन तुम्हारी न सुनेगा; क्योंकि मेरी इच्छा है कि मिस्र देश में बहुत से चमत्कार करूं। 
10. मूसा और हारून ने फिरौन के साम्हने थे सब चमत्कार किए; पर यहोवा ने फिरौन का मन और कठोर कर दिया, सो उसने इस्राएलियोंको अपके देश से जाने न दिया।।

Chapter 12

1. फिर यहोवा ने मिस्र देश में मूसा और हारून से कहा, 
2. कि यह महीना तुम लोगोंके लिथे आरम्भ का ठहरे; अर्यात्‌ वर्ष का पहिला महीना यही ठहरे। 
3. इस्राएल की सारी मण्डली से इस प्रकार कहो, कि इसी महीने के दसवें दिन को तुम अपके अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार, घराने पीछे एक एक मेम्ना ले रखो। 
4. और यदि किसी के घराने में एक मेम्ने के खाने के लिथे मनुष्य कम हों, तो वह अपके सब से निकट रहनेवाले पड़ोसी के साय प्राणियोंकी गिनती के अनुसार एक मेम्ना ले रखे; और तुम हर एक के खाने के अनुसार मेम्ने का हिसाब करना। 
5. तुम्हारा मेम्ना निर्दौष और पहिले वर्ष का नर हो, और उसे चाहे भेड़ोंमें से लेना चाहे बकरियोंमें से। 
6. और इस महीने के चौदहवें दिन तक उसे रख छोड़ना, और उस दिन गोधूलि के समय इस्राएल की सारी मण्डली के लोग उसे बलि करें। 
7. तब वे उसके लोहू में से कुछ लेकर जिन घरोंमें मेम्ने को खाएंगे उनके द्वार के दोनोंअलंगोंऔर चौखट के सिक्के पर लगाएं। 
8. और वे उसके मांस को उसी रात आग में भूंजकर अखमीरी रोटी और कड़वे सागपात के साय खाएं। 
9. उसको सिर, पैर, और अतडिय़ोंसमेत आग में भूंजकर खाना, कच्चा वा जल में कुछ भी पकाकर न खाना। 
10. और उस में से कुछ बिहान तक न रहने देना, और यदि कुछ बिहान तक रह भी जाए, तो उसे आग में जला देना। 
11. और उसके खाने की यह विधि है; कि कमर बान्धे, पांव में जूती पहिने, और हाथ में लाठी लिए हुए उसे फुर्ती से खाना; वह तो यहोवा का पर्ब्ब होगा। 
12. क्योंकि उस रात को मैं मिस्र देश के बीच में से होकर जाऊंगा, और मिस्र देश के क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठोंको मारूंगा; और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूंगा; मैं तो यहोवा हूं। 
13. और जिन घरोंमें तुम रहोगे उन पर वह लोहू तुम्हारे निमित्त चिन्ह ठहरेगा; अर्यात्‌ मैं उस लोहू को देखकर तुम को छोड़ जाऊंगा, और जब मैं मिस्र देश के लोगोंको मारूंगा, तब वह विपत्ति तुम पर न पकेगी और तुम नाश न होगे। 
14. और वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरेगा, और तुम उसको यहोवा के लिथे पर्ब्ब करके मानना; वह दिन तुम्हारी पीढिय़ोंमें सदा की विधि जानकर पर्ब्ब माना जाए। 
15. सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, उन में से पहिले ही दिन अपके अपके घर में से खमीर उठा डालना, वरन जो पहिले दिन से लेकर सातवें दिन तक कोई खमीरी वस्तु खाए, वह प्राणी इस्राएलियोंमें से नाश किया जाए। 
16. और पहिले दिन एक पवित्र सभा, और सातवें दिन भी एक पवित्र सभा करना; उन दोनोंदिनोंमे कोई काम न किया जाए; केवल जिस प्राणी का जो खाना हो उसके काम करने की आज्ञा है। 
17. इसलिथे तुम बिना खमीर की रोटी का पर्ब्ब मानना, क्योंकि उसी दिन मानो मैं ने तुम को दल दल करके मिस्र देश से निकाला है; इस कारण वह दिन तुम्हारी पीढिय़ोंमें सदा की विधि जानकर माना जाए। 
18. पहिले महीने के चौदहवें दिन की सांफ से लेकर इक्कीसवें दिन की सांफ तक तुम अखमीरी रोटी खाया करना। 
19. सात दिन तक तुम्हारे घरोंमें कुछ भी खमीर न रहे, वरन जो कोई किसी खमीरी वस्तु को खाए, चाहे वह देशी हो चाहे परदेशी, वह प्राणी इस्राएलियोंकी मण्डली से नाश किया जाए। 
20. कोई खमीरी वस्तु न खाना; अपके सब घरोंमें बिना खमीर की रोटी खाया करना।। 
21. तब मूसा ने इस्राएल के सब पुरनियोंको बुलाकर कहा, तुम अपके अपके कुल के अनुसार एक एक मेम्ना अलग कर रखो, और फसह का पशु बलि करना। 
22. और उसका लोहू जो तसले में होगा उस में जूफा का एक गुच्छा डुबाकर उसी तसले में के लोहू से द्वार के चौखट के सिक्के और दोनोंअलंगोंपर कुछ लगाना; और भोर तक तुम में से कोई घर से बाहर न निकले। 
23. क्योंकि यहोवा देश के बीच होकर मिस्रियोंको मारता जाएगा; इसलिथे जहां जहां वह चौखट के सिक्के, और दोनोंअलंगोंपर उस लोहू को देखेगा, वहां वहां वह उस द्वार को छोड़ जाएगा, और नाश करनेवाले को तुम्हारे घरोंमें मारने के लिथे न जाने देगा। 
24. फिर तुम इस विधि को अपके और अपके वंश के लिथे सदा की विधि जानकर माना करो। 
25. जब तुम उस देश में जिसे यहोवा अपके कहने के अनुसार तुम को देगा प्रवेश करो, तब वह काम किया करना। 
26. और जब तुम्हारे लड़केबाले तुम से पूछें, कि इस काम से तुम्हारा क्या मतलब है ? 
27. तब तुम उनको यह उत्तर देना, कि यहोवा ने जो मिस्रियोंके मारने के समय मिस्र में रहने वाले हम इस्राएलियोंके घरोंको छोड़कर हमारे घरोंको बचाया, इसी कारण उसके फसह का यह बलिदान किया जाता है। तब लोगोंने सिर फुकाकर दण्डवत्‌ की। 
28. और इस्राएलियोंने जाकर, जो आज्ञा यहोवा ने मूसा और हारून को दी यी, उसी के अनुसार किया।। 
29. और ऐसा हुआ कि आधी रात को यहोवा ने मिस्र देश में सिंहासन पर विराजनेवाले फिरौन से लेकर गड़हे में पके हुए बन्धुए तक सब के पहिलौठोंको, वरन पशुओं तक के सब पहिलौठोंको मार डाला। 
30. और फिरौन रात ही को उठ बैठा, और उसके सब कर्मचारी, वरन सारे मिस्री उठे; और मिस्र में बड़ा हाहाकार मचा, क्योंकि एक भी ऐसा घर न या जिसमें कोई मरा न हो। 
31. तब फिरौन ने रात ही रात में मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, तुम इस्राएलियोंसमेत मेरी प्रजा के बीच से निकल जाओ; और अपके कहने के अनुसार जाकर यहोवा की उपासना करो। 
32. अपके कहने के अनुसार अपक्की भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैलोंको साय ले जाओ; और मुझे आशीर्वाद दे जाओ। 
33. और मिस्री जो कहते थे, कि हम तो सब मर मिटे हैं, उन्होंने इस्राएली लोगोंपर दबाव डालकर कहा, कि देश से फटपट निकल जाओ। 
34. तब उन्होंने अपके गून्धे गुन्धाए आटे को बिना खमीर दिए ही कठौतियोंसमेत कपड़ोंमें बान्धके अपके अपके कन्धे पर डाल लिया। 
35. और इस्राएलियोंने मूसा के कहने के अनुसार मिस्रियोंसे सोने चांदी के गहने और वस्त्र मांग लिथे। 
36. और यहोवा ने मिस्रियोंको अपक्की प्रजा के लोगोंपर ऐसा दयालु किया, कि उन्होंने जो जो मांगा वह सब उनको दिया। इस प्रकार इस्राएलियोंने मिस्रियोंको लूट लिया।। 
37. तब इस्राएली रामसेस से कूच करके सुक्कोत को चले, और बालबच्चोंको छोड़ वे कोई छ: लाख पुरूष प्यादे थे। 
38. और उनके साय मिली जुली हुई एक भीड़ गई, और भेड़-बकरी, गाय-बैल, बहुत से पशु भी साय गए। 
39. और जो गून्धा आटा वे मिस्र से साय ले गए उसकी उन्होंने बिना खमीर दिए रोटियां बनाई; क्योंकि वे मिस्र से ऐसे बरबस निकाले गए, कि उन्हें अवसर भी न मिला की मार्ग में खाने के लिथे कुछ पका सकें, इसी कारण वह गून्धा हुआ आटा बिना खमीर का या। 
40. मिस्र में बसे हुए इस्राएलियोंको चार सौ तीस वर्ष बीत गए थे। 
41. और उन चार सौ तीस वर्षोंके बीतने पर, ठीक उसी दिन, यहोवा की सारी सेना मिस्र देश से निकल गई। 
42. यहोवा इस्राएलियोंको मिस्र देश से निकाल लाया, इस कारण वह रात उसके निमित्त मानने के अति योग्य है; यह यहोवा की वही रात है जिसका पीढ़ी पीढ़ी में मानना इस्राएलियोंके लिथे अति अवश्य है।। 
43. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, पर्ब्ब की विधि यह है; कि कोई परदेशी उस में से न खाए; 
44. पर जो किसी का मोल लिया हुआ दास हो, और तुम लोगोंने उसका खतना किया हो, वह तो उस में से खा सकेगा। 
45. पर परदेशी और मजदूर उस में से न खाएं। 
46. उसका खाना एक ही घर में हो; अर्यात्‌ तुम उसके मांस में से कुछ घर से बाहर न ले जाना; और बलिपशु की कोई हड्डी न तोड़ना। 
47. पर्ब्ब को मानना इस्राएल की सारी मण्डली का कर्तव्य कर्म है। 
48. और यदि कोई परदेशी तुम लोगोंके संग रहकर यहोवा के लिथे पर्ब्ब को मानना चाहे, तो वह अपके यहां के सब पुरूषोंका खतना कराए, तब वह समीप आकर उसको माने; और वह देशी मनुष्य के तुल्य ठहरेगा। पर कोई खतनारहित पुरूष उस में से न खाने पाए। 
49. उसकी व्यवस्या देशी और तुम्हारे बीच में रहनेवाले परदेशी दोनोंके लिथे एक ही हो। 
50. यह आज्ञा जो यहोवा ने मूसा और हारून को दी उसके अनुसार सारे इस्राएलियोंने किया। 
51. और ठीक उसी दिन यहोवा इस्राएलियोंको मिस्र देश से दल दल करके निकाल ले गया।।

Chapter 13

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 
2. कि क्या मनुष्य के क्या पशु के, इस्राएलियोंमें जितने अपक्की अपक्की मां के जेठे हों, उन्हें मेरे लिथे पवित्र मानना; वह तो मेरा ही है।। 
3. फिर मूसा ने लोगोंसे कहा, इस दिन को स्मरण रखो, जिस में तुम लोग दासत्व के घर, अर्यात्‌ मिस्र से निकल आए हो; यहोवा तो तुम को वहां से अपके हाथ के बल से निकाल लाया; इस में खमीरी रोटी न खाई जाए। 
4. आबीब के महीने में आज के दिन तुम निकले हो। 
5. इसलिथे जब यहोवा तुम को कनानी, हित्ती, एमोरी, हिब्बी, और यबूसी लोगोंके देश में पहुचाएगा, जिसे देने की उस ने तुम्हारे पुरखाओं से शपय खाई यी, और जिस में दूध और मधु की धारा बहती है, तब तुम इसी महीने में पर्ब्ब करना। 
6. सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, और सातवें दिन यहोवा के लिथे पर्ब्ब मानना। 
7. इन सातोंदिनोंमें अखमीरी रोटी खाई जाए; वरन तुम्हारे देश भर में न खमीरी रोटी, न खमीर तुम्हारे पास देखने में आए। 
8. और उस दिन तुम अपके अपके पुत्रोंको यह कहके समझा देना, कि यह तो हम उसी काम के कारण करते हैं, जो यहोवा ने हमारे मिस्र से निकल आने के समय हमारे लिथे किया या। 
9. फिर यह तुम्हारे लिथे तुम्हारे हाथ में एक चिन्ह होगा, और तुम्हारी आंखोंके साम्हने स्मरण करानेवाली वस्तु ठहरे; जिस से यहोवा की व्यवस्या तुम्हारे मुंह पर रहे : क्योंकि यहोवा ने तुम्हें अपके बलवन्त हाथोंसे मिस्र से निकाला है। 
10. इस कारण तुम इस विधि को प्रति वर्ष नियत समय पर माना करना।। 
11. फिर जब यहोवा उस शपय के अनुसार, जो उस ने तुम्हारे पुरखाओं से और तुम से भी खाई है, तुम्हे कनानियोंके देश में पहुंचाकर उसको तुम्हें दे देगा, 
12. तब तुम में से जितने अपक्की अपक्की मां के जेठे होंउनको, और तुम्हारे पशुओं में जो ऐसे होंउनको भी यहोवा के लिथे अर्पण करना; सब नर बच्चे तो यहोवा के हैं। 
13. और गदही के हर एक पहिलौठे की सन्ती मेम्ना देकर उसको छुड़ा लेना, और यदि तुम उसे छुड़ाना न चाहो तो उसका गला तोड़ देना। पर अपके सब पहिलौठे पुत्रोंको बदला देकर छुड़ा लेना। 
14. और आगे के दिनोंमें जब तुम्हारे पुत्र तुम से पूछें, कि यह क्या है ? तो उन से कहना, कि यहोवा हम लोगोंको दासत्व के घर से, अर्यात्‌ मिस्र देश से अपके हाथोंके बल से निकाल लाया है। 
15. उस समय जब फिरौन ने कठोर होकर हम को जाने देना न चाहा, तब यहोवा ने मिस्र देश में मनुष्य से लेकर पशु तक सब के पहिलौठोंको मार डाला। इसी कारण पशुओं में से तो जितने अपक्की अपक्की मां के पहिलौठे नर हैं, उन्हें हम यहोवा के लिथे बलि करते हैं; पर अपके सब जेठे पुत्रोंको हम बदला देकर छुड़ा लेते हैं। 
16. और यह तुम्हारे हाथोंपर एक चिन्ह सा और तुम्हारी भौहोंके बीच टीका सा ठहरे; क्योंकि यहोवा हम लोगोंको मिस्र से अपके हाथोंके बल से निकाल लाया है।। 
17. जब फिरौन ने लोगोंको जाने की आज्ञा दे दी, तब यद्यपि पलिश्तियोंके देश में होकर जो मार्ग जाता है वह छोटा या; तौभी परमेश्वर यह सोच कर उनको उस मार्ग से नहीं ले गया, कि कहीं ऐसा न हो कि जब थे लोग लड़ाई देखें तब पछताकर मिस्र को लौट आएं। 
18. इसलिथे परमेश्वर उनको चक्कर खिलाकर लाल समुद्र के जंगल के मार्ग से ले चला। और इस्राएली पांति बान्धे हुए मिस्र से निकल गए। 
19. और मूसा यूसुफ की हड्डियोंको साय लेता गया; क्योंकि यूसुफ ने इस्राएलियोंसे यह कहके, कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विषय की दृढ़ शपय खिलाई यी, कि वे उसकी हड्डियोंको अपके साय यहां से ले जाएंगे। 
20. फिर उन्होंने सुक्कोत से कूच करके जंगल की छोर पर एताम में डेरा किया। 
21. और यहोवा उन्हें दिन को मार्ग दिखाने के लिथे मेघ के खम्भे में, और रात को उजियाला देने के लिथे आग के खम्भे में होकर उनके आगे आगे चला करता या, जिससे वे रात और दिन दोनोंमें चल सकें। 
22. उस ने न तो बादल के खम्भे को दिन में और न आग के खम्भे को रात में लोगोंके आगे से हटाया।।

Chapter 14

1. यहोवा ने मूसा से कहा, 
2. इस्राएलियोंको आज्ञा दे, कि वे लौटकर मिगदोल और समुद्र के बीच पीहहीरोत के सम्मुख, बालसपोन के साम्हने अपके डेरे खड़े करें, उसी के साम्हने समुद्र के तट पर डेरे खड़े करें। 
3. तब फिरौन इस्राएलियोंके विषय में सोचेगा, कि वे देश के उलफनोंमें बफे हैं और जंगल में घिर गए हैं। 
4. तब मैं फिरौन के मन को कठोर कर दूंगा, और वह उनका पीछा करेगा, तब फिरौन और उसकी सारी सेना के द्वारा मेरी महिमा होगी; और मिस्री जान लेंगे कि मैं यहोवा हूं। और उन्होंने वैसा ही किया। 
5. जब मिस्र के राजा को यह समाचार मिला कि वे लोग भाग गए, तब फिरौन और उसके कर्मचारियोंका मन उनके विरूद्ध पलट गया, और वे कहने लगे, हम ने यह क्या किया, कि इस्राएलियोंको अपक्की सेवकाई से छुटकारा देकर जाने दिया ? 
6. तब उस ने अपना रय जुतवाया और अपक्की सेना को संग लिया। 
7. उस ने छ: सौ अच्दे से अच्छे रय वरन मिस्र के सब रय लिए और उन सभोंपर सरदार बैठाए। 
8. और यहोवा ने मिस्र के राजा फिरौन के मन को कठोर कर दिया। सो उस ने इस्राएलियोंका पीछा किया; परन्तु इस्राएली तो बेखटके निकले चले जाते थे। 
9. पर फिरौन के सब घोड़ों, और रयों, और सवारोंसमेत मिस्री सेना ने उनका पीछा करके उन्हें, जो पीहहीरोत के पास, बालसपोन के साम्हने, समुद्र के तीर पर डेरे डाले पके थे, जा लिया।। 
10. जब फिरौन निकट आया, तब इस्राएलियोंने आंखे उठाकर क्या देखा, कि मिस्री हमारा पीछा किए चले आ रहे हैं; और इस्राएली अत्यन्त डर गए, और चिल्लाकर यहोवा की दोहाई दी। 
11. और वे मूसा से कहने लगे, क्या मिस्र में कबरें न यीं जो तू हम को वहां से मरने के लिथे जंगल में ले आया है ? तू ने हम से यह क्या किया, कि हम को मिस्र से निकाल लाया ? 
12. क्या हम तुझ से मिस्र में यही बात न कहते रहे, कि हमें रहने दे कि हम मिस्रियोंकी सेवा करें ? हमारे लिथे जंगल में मरने से मिस्रियोंकि सेवा करनी अच्छी यी। 
13. मूसा ने लोगोंसे कहा, डरो मत, खड़े खड़े वह उद्धार का काम देखो, जो यहोवा आज तुम्हारे लिथे करेगा; क्योंकि जिन मिस्रियोंको तुम आज देखते हो, उनको फिर कभी न देखोगे। 
14. यहोवा आप ही तुम्हारे लिथे लड़ेगा, इसलिथे तुम चुपचाप रहो।। 
15. तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू क्योंमेरी दोहाई दे रहा है? इस्राएलियोंको आज्ञा दे कि यहां से कूच करें। 
16. और तू अपक्की लाठी उठाकर अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, और वह दो भाग हो जाएगा; तब इस्राएली समुद्र के बीच होकर स्यल ही स्यल पर चले जाएंगे। 
17. और सुन, मैं आप मिस्रियोंके मन को कठोर करता हूं, और वे उनका पीछा करके समुद्र में घुस पकेंगे, तब फिरौन और उसकी सेना, और रयों, और सवारोंके द्वारा मेरी महिमा होगी, तब मिस्री जान लेंगे कि मैं यहोवा हूं। 
18. और जब फिरौन, और उसके रयों, और सवारोंके द्वारा मेरी महिमा होगी, तब मिस्री जान लेंगे कि मैं यहोवा हूं। 
19. तब परमेश्वर का दूत जो इस्राएली सेना के आगे आगे चला करता या जाकर उनके पीछे हो गया; और बादल का खम्भा उनके आगे से हटकर उनके पीछे जा ठहरा। 
20. इस प्रकार वह मिस्रियोंकी सेना और इस्राएलियोंकी सेना के बीच में आ गया; और बादल और अन्धकार तो हुआ, तौभी उससे रात को उन्हें प्रकाश मिलता रहा; और वे रात भर एक दूसरे के पास न आए। 
21. और मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया; और यहोवा ने रात भर प्रचण्ड पुरवाई चलाई, और समुद्र को दो भाग करके जल ऐसा हटा दिया, जिससे कि उसके बीच सूखी भूमि हो गई। 
22. तब इस्राएली समुद्र के बीच स्यल ही स्यल पर होकर चले, और जल उनकी दाहिनी और बाईं ओर दीवार का काम देता या। 
23. तब मिस्री, अर्यात्‌ फिरौन के सब घोड़े, रय, और सवार उनका पीछा किए हुए समुद्र के बीच में चले गए। 
24. और रात के पिछले पहर में यहोवा ने बादल और आग के खम्भे में से मिस्रियोंकी सेना पर दृष्टि करके उन्हें घबरा दिया। 
25. और उस ने उनके रयोंके पहियोंको निकाल डाला, जिससे उनका चलना कठिन हो गया; तब मिस्री आपस में कहने लगे, आओ, हम इस्राएलियोंके साम्हने से भागें; क्योंकि यहोवा उनकी ओर से मिस्रियोंके विरूद्ध युद्ध कर रहा है।। 
26. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, कि जल मिस्रियों, और उनके रयों, और सवारोंपर फिर बहने लगे। 
27. तब मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया, और भोर होते होते क्या हुआ, कि समुद्र फिर ज्योंका त्योंअपके बल पर आ गया; और मिस्री उलटे भागने लगे, परन्तु यहोवा ने उनको समुद्र के बीच ही में फटक दिया। 
28. और जल के पलटने से, जितने रय और सवार इस्राएलियोंके पीछे समुद्र में आए थे, सो सब वरन फिरौन की सारी सेना उस में डूब गई, और उस में से एक भी न बचा। 
29. परन्तु इस्राएली समुद्र के बीच स्यल ही स्यल पर होकर चले गए, और जल उनकी दाहिनी और बाईं दोनोंओर दीवार का काम देता या। 
30. और यहोवा ने उस दिन इस्राएलियोंको मिस्रियोंके वश से इस प्रकार छुड़ाया; और इस्राएलियोंने मिस्रियोंको समुद्र के तट पर मरे पके हुए देखा। 
31. और यहोवा ने मिस्रियोंपर जो अपना पराक्रम दिखलाता या, उसको देखकर इस्राएलियोंने यहोवा का भय माना और यहोवा की और उसके दास मूसा की भी प्रतीति की।।

Chapter 15

1. तब मूसा और इस्राएलियोंने यहोवा के लिथे यह गीत गाया। उन्होंने कहा, मैं यहोवा का गीत गाऊंगा, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; घोड़ोंसमेत सवारोंको उस ने समुद्र में डाल दिया है।। 
2. यहोवा मेरा बल और भजन का विषय है, और वही मेरा उद्धार भी ठहरा है; मेरा ईश्वर वही है, मैं उसी की स्तुति करूंगा, (मैं उसके लिथे निवासस्यान बनाऊंगा ), मेरे पूर्वजोंका परमेश्वर वही है, मैं उसको सराहूंगा।। 
3. यहोवा योद्धा है; उसका नाम यहोवा है।। 
4. फिरौन के रयोंऔर सेना को उस ने समुद्र में डाल दिया; और उसके उत्तम से उत्तम रयी लाल समुद्र में डूब गए।। 
5. गहिरे जल ने उन्हें ढांप लिया; वे पत्यर की नाईं गहिरे स्यानोंमें डूब गए।। 
6. हे यहोवा, तेरा दहिना हाथ शक्ति में महाप्रतापी हुआ हे यहोवा, तेरा दहिना हाथ शत्रु को चकनाचूर कर देता है।। 
7. और तू अपके विरोधियोंको अपके महाप्रताप से गिरा देता है; तू अपना कोप भड़काता, और वे भूसे की नाईं भस्म हो जाते हैं।। 
8. और तेरे नयनोंकी सांस से जल एकत्र हो गया, धाराएं ढेर की नाईं यम गईं; समुद्र के मध्य में गहिरा जल जम गया।। 
9. शत्रु ने कहा या, मैं पीछा करूंगा, मैं जा पकडूंगा, मैं लूट के माल को बांट लूंगा, उन से मेरा जी भर जाएगा। मै अपक्की तलवार खींचते ही अपके हाथ से उनको नाश कर डालूंगा।। 
10. तू ने अपके श्वास का पवन चलाया, तब समुद्र ने उनको ढांप लिया; वे महाजलराशि में सीसे की नाई डूब गए।। 
11. हे यहोवा, देवताओं में तेरे तुल्य कौन है? तू तो पवित्रता के कारण महाप्रतापी, और अपक्की स्तुति करने वालोंके भय के योग्य, और आश्चर्य कर्म का कर्त्ता है।। 
12. तू ने अपना दहिना हाथ बढ़ाया, और पृय्वी ने उनको निगल लिया है।। 
13. अपक्की करूणा से तू ने अपक्की छुड़ाई हुई प्रजा की अगुवाई की है, अपके बल से तू उसे अपके पवित्र निवासस्यान को ले चला है।। 
14. देश देश के लोग सुनकर कांप उठेंगे; पलिश्तियोंके प्राण के लाले पड़ जाएंगे।। 
15. एदोम के अधिपति व्याकुल होंगे; मोआब के पहलवान यरयरा उठेंगे; सब कनान निवासियोंके मन पिघल जाएंगें।। 
16. उन में डर और घबराहट समा जाएगा; तेरी बांह के प्रताप से वे पत्यर की नाई अबोल होंगे, जब तक, हे यहोवा, तेरी प्रजा के लोग निकल न जाएं, जब तक तेरी प्रजा के लोग जिनको तू ने मोल लिया है पार न निकल जाएं।। 
17. तू उन्हें पहुचाकर अपके निज भागवाले पहाड़ पर बसाएगा, यह वही स्यान है, हे यहोवा जिसे तू ने अपके निवास के लिथे बनाया, और वही पवित्रस्यान है जिसे, हे प्रभु, तू ने आप स्यिर किया है।। 
18. यहोवा सदा सर्वदा राज्य करता रहेगा।। 
19. यह गीत गाने का कारण यह है, कि फिरौन के घोड़े रयोंऔर सवारोंसमेत समुद्र के बीच में चले गए, और यहोवा उनके ऊपर समुद्र का जल लौटा ले आया; परन्तु इस्राएली समुद्र के बीच स्यल ही स्यल पर होकर चले गए। 
20. और हारून की बहिन मरियम नाम नबिया ने हाथ में डफ लिया; और सब स्त्रियां डफ लिए नाचक्की हुई उसके पीछे हो लीं। 
21. और मरियम उनके साय यह टेक गाती गई कि :- यहोवा का गीत गाओ, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; घोड़ोंसमेत सवारोंको उस ने समुद्र में डाल दिया है।। 
22. तब मूसा इस्राएलियोंको लाल समुद्र से आगे ले गया, और वे शूर नाम जंगल में आए; और जंगल में जाते हुए तीन दिन तक पानी का सोता न मिला। 
23. फिर मारा नाम एक स्यान पर पहुंचे, वहां का पानी खारा या, उसे वे न पी सके; इस कारण उस स्यान का नाम मारा पड़ा। 
24. तब वे यह कहकर मूसा के विरूद्ध बकफक करने लगे, कि हम क्या पीएं ? 
25. तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने उसे एक पौधा बतला दिया, जिसे जब उस ने पानी में डाला, तब वह पानी मीठा हो गया। वहीं यहोवा ने उनके लिथे एक विधि और नियम बनाया, और वहीं उस ने यह कहकर उनकी पक्कीझा की, 
26. कि यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा का वचन तन मन से सुने, और जो उसकी दृष्टि में ठीक है वही करे, और उसकी सब विधियोंको माने, तो जितने रोग मैं ने मिस्रियोंपर भेजा है उन में से एक भी तुझ पर न भेजूंगा; क्योंकि मैं तुम्हारा चंगा करनेवाला यहोवा हूं।। 
27. तब वे एलीम को आए, जहां पानी के बारह सोते और सत्तर खजूर के पेड़ थे; और वहां उन्होंने जल के पास डेरे खड़े किए।।

Chapter 16

1. फिर एलीम से कूच करके इस्राएलियोंकी सारी मण्डली, मिस्र देश से निकलने के महीने के दूसरे महीने के पंद्रहवे दिन को, सीन नाम जंगल में, जो एलीम और सीनै पर्वत के बीच में है, आ पहुंची। 
2. जंगल में इस्राएलियोंकी सारी मण्डली मूसा और हारून के विरूद्ध बकफक करने लगी। 
3. और इस्राएली उन से कहने लगे, कि जब हम मिस्र देश में मांस की हांडियोंके पास बैठकर मनमाना भोजन खाते थे, तब यदि हम यहोवा के हाथ से मार डाले भी जाते तो उत्तम वही या; पर तुम हम को इस जंगल में इसलिथे निकाल ले आए हो कि इस सारे समाज को भूखोंमार डालो। 
4. तब यहोवा ने मूसा से कहा, देखो, मैं तुम लोगोंके लिथे आकाश से भोजन वस्तु बरसाऊंगा; और थे लोग प्रतिदिन बाहर जाकर प्रतिदिन का भोजन इकट्ठा करेंगे, इस से मैं उनकी पक्कीझा करूंगा, कि थे मेरी व्यवस्या पर चलेंगे कि नहीं। 
5. और ऐसा होगा कि छठवें दिन वह भोजन और दिनोंसे दूना होगा, इसलिथे जो कुछ वे उस दिन बटोरें उसे तैयार कर रखें। 
6. तब मूसा और हारून ने सारे इस्राएलियोंसे कहा, सांफ को तुम जान लोगे कि जो तुम को मिस्र देश से निकाल ले आया है वह यहोवा है। 
7. और भोर को तुम्हें यहोवा का तेज देख पकेगा, क्योंकि तुम जो यहोवा पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं, कि तुम हम पर बुड़बुड़ाते हो ? 
8. फिर मूसा ने कहा, यह तब होगा जब यहोवा सांफ को तुम्हें खाने के लिथे मांस और भोर को रोटी मनमाने देगा; क्योंकि तुम जो उस पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं ? तुम्हारा बुड़बुड़ाना हम पर नहीं यहोवा ही पर होता है। 
9. फिर मूसा ने हारून से कहा, इस्राएलियोंकी सारी मण्डली को आज्ञा दे, कि यहोवा के साम्हने वरन उसके समीप आवे, क्योंकि उस ने उनका बुड़बुड़ाना सुना है। 
10. और ऐसा हुआ कि जब हारून इस्राएलियोंकी सारी मण्डली से ऐसी ही बातें कर रहा या, कि उन्होंने जंगल की ओर दृष्टि करके देखा, और उनको यहोवा का तेज बादल में दिखलाई दिया। 
11. तब यहोवा ने मूसा से कहा, 
12. इस्राएलियोंका बुड़बुड़ाना मैं ने सुना है; उन से कह दे, कि गोधूलि के समय तुम मांस खाओगे और भोर को तुम रोटी से तृप्त हो जाओगे; और तुम यह जान लोगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 
13. और ऐसा हुआ कि सांफ को बटेरें आकर सारी छावनी पर बैठ गईं; और भोर को छावनी के चारोंओर ओस पक्की। 
14. और जब ओस सूख गई तो वे क्या देखते हैं, कि जंगल की भूमि पर छोटे छोटे छिलके छोटाई में पाले के किनकोंके समान पके हैं। 
15. यह देखकर इस्राएली, जो न जानते थे कि यह क्या वस्तु है, सो आपस में कहने लगे यह तो मन्ना है। तब मूसा ने उन से कहा, यह तो वही भोजन वस्तु है जिसे यहोवा तुम्हें खाने के लिथे देता है। 
16. जो आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है, कि तुम उस में से अपके अपके खाने के योग्य बटोरा करना, अर्यात्‌ अपके अपके प्राणियोंकी गिनती के अनुसार, प्रति मनुष्य के पीछे एक एक ओमेर बटोरना; जिसके डेरे में जितने होंवह उन्हीं भर के लिथे बटोरा करे। 
17. और इस्राएलियोंने वैसा ही किया; और किसी ने अधिक, और किसी ने योड़ा बटोर लिया। 
18. और जब उन्होंने उसको ओमेर से नापा, तब जिसके पास अधिक या उसके कुछ अधिक न रह गया, ओर जिसके पास योड़ा या उसको कुछ घटी न हुई; क्योंकि एक एक मनुष्य ने अपके खाने के योग्य ही बटोर लिया या। 
19. फिर मूसा ने उन से कहा, कोई इस में से कुछ बिहान तक न रख छोड़े। 
20. तौभी उन्होंने मूसा की बात न मानी; इसलिथे जब किसी किसी मनुष्य ने उस में से कुछ बिहान तक रख छोड़ा, तो उस में कीड़े पड़ गए और वह बसाने लगा; तब मूसा उन पर क्रोधित हुआ। 
21. और वे भोर को प्रतिदिन अपके अपके खाने के योग्य बटोर लेते थे, ओर जब धूप कड़ी होती यी, तब वह गल जाता या। 
22. और ऐसा हुआ कि छठवें दिन उन्होंने दूना, अर्यात्‌ प्रति मनुष्य के पीछे दो दो ओमेर बटोर लिया, और मण्डली के सब प्रधानोंने आकर मूसा को बता दिया। 
23. उस ने उन से कहा, यह तो वही बात है जो यहोवा ने कही, क्यांेकि कल परमविश्रम, अर्यात्‌ यहोवा के लिथे पवित्र विश्रम होगा; इसलिथे तुम्हें जो तन्दूर में पकाना हो उसे पकाओ, और जो सिफाना हो उसे सिफाओ, और इस में से जितना बचे उसे बिहान के लिथे रख छोड़ो। 
24. जब उन्होंने उसको मूसा की इस आज्ञा के अनुसार बिहान तक रख छोड़ा, तब न तो वह बसाया, और न उस में कीड़े पके। 
25. तब मूसा ने कहा, आज उसी को खाओ, क्योंकि आज यहोवा का विश्रमदिन है; इसलिथे आज तुम को मैदान में न मिलेगा। 
26. छ: दिन तो तुम उसे बटोरा करोगे; परन्तु सातवां दिन तो विश्रम का दिन है, उस में वह न मिलेगा। 
27. तौभी लोगोंमें से कोई कोई सातवें दिन भी बटोरने के लिथे बाहर गए, परन्तु उनको कुछ न मिला। 
28. तब यहोवा ने मूसा से कहा, तुम लोग मेरी आज्ञाओं और व्यवस्या को कब तक नहीं मानोगे ? 
29. देखो, यहोवा ने जो तुम को विश्रम का दिन दिया है, इसी कारण वह छठवें दिन को दो दिन का भोजन तुम्हें देता है; इसलिथे तुम अपके अपके यहां बैठे रहना, सातवें दिन कोई अपके स्यान से बाहर न जाना। 
30. लोगोंने सातवें दिन विश्रम किया। 
31. और इस्राएल के घरानेवालोंने उस वस्तु का नाम मन्ना रखा; और वह धनिया के समान श्वेत या, और उसका स्वाद मधु के बने हुए पुए का सा या। 
32. फिर मूसा ने कहा, यहोवा ने जो आज्ञा दी वह यह है, कि इस में से ओमेर भर अपके वंश की पीढ़ी पीढ़ी के लिथे रख छोड़ो, जिससे वे जानें कि यहोवा हमको मिस्र देश से निकालकर जंगल में कैसी रोटी खिलाता या। 
33. तब मूसा ने हारून से कहा, एक पात्र लेकर उस में ओमेर भर लेकर उसे यहोवा के आगे धर दे, कि वह तुम्हारी पीढिय़ोंके लिथे रखा रहे। 
34. जैसी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी, उसी के अनुसार हारून ने उसको साझी के सन्दूक के आगे धर दिया, कि वह वहीं रखा रहे। 
35. इस्राएली जब तक बसे हुए देश में न पहुंचे तब तक, अर्यात्‌ चालीस वर्ष तक मन्ना को खाते रहे; वे जब तक कनान देश के सिवाने पर नहीं पहुंचे तब तक मन्ना को खाते रहे। 
36. एक ओमेर तो एपा का दसवां भाग है।

Chapter 17

1. फिर इस्राएलियोंकी सारी मण्डली सीन नाम जंगल से निकल चक्की, और यहोवा के आज्ञानुसार कूच करके रपीदीम में अपके डेरे खड़े किए; और वहां उन लोगोंको पीने का पानी न मिला। 
2. इसलिथे वे मूसा से वादविवाद करके कहने लगे, कि हमें पीने का पानी दे। मूसा ने उन से कहा, तुम मुझ से क्योंवादविवाद करते हो? और यहोवा की पक्कीझा क्योंकरते हो? 
3. फिर वहां लोगोंको पानी की प्यास लगी तब वे यह कहकर मूसा पर बुड़बुड़ाने लगे, कि तू हमें लड़केबालोंऔर पशुओं समेत प्यासोंमार डालने के लिथे मिस्र से क्योंले आया है ? 
4. तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और कहा, इन लोगोंसे मैं क्या करूं? थे सब मुझे पत्यरवाह करने को तैयार हैं। 
5. यहोवा ने मूसा से कहा, इस्राएल के वृद्ध लोगोंमें से कुछ को अपके साय ले ले; और जिस लाठी से तू ने नील नदी पर मारा या, उसे अपके हाथ में लेकर लोगोंके आगे बढ़ चल। 
6. देख मैं तेरे आगे चलकर होरेब पहाड़ की एक चट्टान पर खड़ा रहूंगा; और तू उस चट्टान पर मारना, तब उस में से पानी निकलेगा जिससे थे लोग पीएं। तब मूसा ने इस्राएल के वृद्ध लोगोंके देखते वैसा ही किया। 
7. और मूसा ने उस स्यान का नाम मस्सा और मरीबा रखा, कयोंकि इस्राएलियोंने वहां वादविवाद किया या, और यहोवा की पक्कीझा यह कहकर की, कि क्या यहोवा हमारे बीच है वा नहीं ? 
8. तब अमालेकी आकर रपीदीम में इस्राएलियोंसे लड़ने लगे। 
9. तब मूसा ने यहोशू से कहा, हमारे लिथे कई एक पुरूषोंको चुनकर छांट ले, ओर बाहर जाकर अमालेकियोंसे लड़; और मैं कल परमेश्वर की लाठी हाथ में लिथे हुए पहाड़ी की चोटी पर खड़ा रहूंगा। 
10. मूसा की इस आज्ञा के अनुसार यहोशू अमालेकियोंसे लड़ने लगा; और मूसा, हारून, और हूर पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गए। 
11. और जब तक मूसा अपना हाथ उठाए रहता या तब तक तो इस्राएल प्रबल होता या; परन्तु जब जब वह उसे नीचे करता तब तब अमालेक प्रबल होता या। 
12. और जब मूसा के हाथ भर गए, तब उन्होंने एक पत्यर लेकर मूसा के नीचे रख दिया, और वह उस पर बैठ गया, और हारून और हूर एक एक अलंग में उसके हाथोंको सम्भाले रहें; और उसके हाथ सूर्यास्त तक स्यिर रहे। 
13. और यहोशू ने अनुचरोंसमेत अमालेकियोंको तलवार के बल से हरा दिया। 
14. तब यहोवा ने मूसा से कहा, स्मरणार्य इस बात को पुस्तक में लिख ले और यहोशू को सुना दे, कि मैं आकाश के नीचे से अमालेक का स्मरण भी पूरी रीति से मिटा डालूंगा। 
15. तब मूसा ने एक वेदी बनाकर उसका नाम यहोवानिस्सी रखा ; 
16. और कहा, यहोवा ने शपय खाई है, कि यहोवा अमालेकियोंसे पीढिय़ोंतक लड़ाई करता रहेगा।।

Chapter 18

1. और मूसा के ससुर मिद्दान के याजक यित्रो ने यह सुना, कि परमेश्वर ने मूसा और अपक्की प्रजा इस्त्राएल के लिथे क्या क्या किया है, अर्यात्‌ यह कि किस रीति से यहोवा इस्त्राएलियोंको मिस्र से निकाल ले आया। 
2. तब मूसा के ससुर यित्रो मूसा की पत्नी सिप्पोरा को, जो पहिले नैहर भेज दी गई यी, 
3. और उसके दोनोंबेटोंको भी ले आया; इन में से एक का नाम मूसा ने यह कहकर गेर्शोम रखा या, कि मै अन्य देश में परदेशी हुआ हूं। 
4. और दूसरे का नाम उस ने यह कहकर एलीएजेर रखा, कि मेरे पिता के परमेश्वर ने मेरा सहाथक होकर मुझे फिरौन की तलवार से बचाया। 
5. मूसा की पत्नी और पुत्रोंको उसका ससुर यित्रो संग लिए मूसा के पास जंगल के उस स्थान में आया, जहां परमेश्वर के पर्वत के पास उसका डेरा पड़ा या। 
6. और आकर उस ने मूसा के पास यह कहला भेजा, कि मैं तेरा ससुर यित्रो हूं, और दोनो बेटोंसमेत तेरी पत्नी को तेरे पास ले आया हूं। 
7. तब मूसा अपके ससुर से भेंट करने के लिथे निकला, और उसको दण्डवत्‌ करके चूमा; और वे परस्पर कुशल झेम पूछते हुए डेरे पर आ गए। 
8. वहां मूसा ने अपके ससुर से वर्णन किया, कि यहोवा ने इस्त्राएलियोंके निमित्त फिरौन और मिस्रियोंसे क्या क्या किया, और इस्त्राएलियोंने मार्ग में क्या क्या कष्ट उठाया, फिर यहोवा उन्हें कैसे कैसे छुड़ाता आया है। 
9. तब यित्रो ने उस समस्त भलाई के कारण जो यहोवा ने इस्त्राएलियोंके साय की यी, कि उन्हें मिस्रियोंके वश से छुड़ाया या, मग्न होकर कहा, 
10. धन्य है यहोवा, जिस ने तुम को फिरौन और मिस्रियोंके वश से छुड़ाया, जिस ने तुम लोगोंको मिस्रियोंकी मुट्ठी में से छुड़ाया है। 
11. अब मैं ने जान लिया है कि यहोवा सब देवताओं से बड़ा है; वरन उस विषय में भी जिस में उन्होंने इस्त्राएलियोंसे अभिमान किया या। 
12. तब मूसा के ससुर यित्रो ने परमेश्वर के लिथे होमबलि और मेलबलि चढ़ाए, और हारून इस्त्राएलियोंके सब पुरनियोंसमेत मूसा के ससुर यित्रो के संग परमेश्वर के आगे भोजन करने को आया। 
13. दूसरे दिन मूसा लोगोंका न्याय करने को बैठा, और भोर से सांफ तक लोग मूसा के आसपास खड़े रहे। 
14. यह देखकर कि मूसा लोगोंके लिथे क्या क्या करता है, उसके ससुर ने कहा, यह क्या काम है जो तू लोगोंके लिथे करता है? क्या कारण है कि तू अकेला बैठा रहता है, और लोग भोर से सांफ तक तेरे आसपास खड़े रहते हैं? 
15. मूसा ने अपके ससुर से कहा, इसका कारण यह है कि लोग मेरे पास परमेश्वर से पूछने आते है। 
16. जब जब उनका कोई मुकद्दमा होता है तब तब वे मेरे पास आते हैं और मैं उनके बीच न्याय करता, और परमेश्वर की विधि और व्यवस्या उन्हें जताता हूं। 
17. मूसा के ससुर ने उस से कहा, जो काम तू करता है वह अच्छा नहीं। 
18. और इस से तू क्या, वरन थे लोग भी जो तेरे संग हैं निश्चय हार जाएंगे, क्योंकि यह काम तेरे लिथे बहुत भारी है; तू इसे अकेला नहीं कर सकता। 
19. इसलिथे अब मेरी सुन ले, मैं तुझ को सम्मति देता हूं, और परमेश्वर तेरे संग रहे। तू तो इन लोगोंके लिथे परमेश्वर के सम्मुख जाया कर, और इनके मुकद्दमोंको परमेश्वर के पास तू पहुंचा दिया कर। 
20. इन्हें विधि और व्यवस्या प्रगट कर करके, जिस मार्ग पर इन्हें चलना, और जो जो काम इन्हें करना हो, वह इनको जता दिया कर। 
21. फिर तू इन सब लोगोंमें से ऐसे पुरूषोंको छांट ले, जो गुणी, और परमेश्वर का भय मानने वाले, सच्चे, और अन्याय के लाभ से घृणा करने वाले हों; और उनको हजारफार, सौ-सौ, पचास-पचास, और दस-दस मनुष्योंपर प्रधान नियुक्त कर दे। 
22. और वे सब समय इन लोगोंका न्याय किया करें; और सब बड़े बड़े मुकद्दमोंको तो तेरे पास ले आया करें, और छोटे छोटे मुकद्दमोंका न्याय आप ही किया करें; तब तेरा बोफ हलका होगा, क्योंकि इस बोफ को वे भी तेरे साय उठाएंगे। 
23. यदि तू यह उपाय करे, और परमेश्वर तुझ को ऐसी आज्ञा दे, तो तू ठहर सकेगा, और थे सब लोग अपके स्यान को कुशल से पहुंच सकेंगें। 
24. अपके ससुर की यह बात मान कर मूसा ने उसके सब वचनोंके अनुसार किया। 
25. सो उस ने सब इस्त्राएलियोंमें से गुणी-गुणी पुरूष चुनकर उन्हें हजारफार, सौ-सौ, पचास-पचास, दस-दस, लोगोंके ऊपर प्रधान ठहराया। 
26. और वे सब लोगोंका न्याय करने लगे; जो मुकद्दमा कठिन होता उसे तो वे मूसा के पास ले आते थे, और सब छोटे मुकद्दमोंका न्याय वे आप ही किया करते थे। 
27. और मूसा ने अपके ससुर को विदा किया, और उस ने अपके देश का मार्ग लिया।।

Chapter 19

1. इस्त्राएलियोंको मिस्र देश से निकले हुए जिस दिन तीन महीने बीत चुके, उसी दिन वे सीनै के जंगल में आए। 
2. और जब वे रपीदीम से कूच करके सीनै के जंगल में आए, तब उन्होंने जंगल में डेरे खड़े किए; और वहीं पर्वत के आगे इस्त्राएलियोंने छावनी डाली। 
3. तब मूसा पर्वत पर परमेश्वर के पास चढ़ गया, और यहोवा ने पर्वत पर से उसको पुकारकर कहा, याकूब के घराने से ऐसा कह, और इस्त्राएलियोंको मेरा यह वचन सुना, 
4. कि तुम ने देखा है कि मै ने मिस्रियोंसे क्या क्या किया; तुम को मानो उकाब पक्की के पंखोंपर चढ़ाकर अपके पास ले आया हूं। 
5. इसलिथे अब यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा का पालन करोगे, तो सब लोगोंमें से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृय्वी तो मेरी है। 
6. और तुम मेरी दृष्टि में याजकोंका राज्य और पवित्र जाति ठहरोगे। जो बातें तुझे इस्त्राएलियोंसे कहनी हैं वे थे ही है। 
7. तब मूसा ने आकर लोगोंके पुरनियोंको बुलवाया, और थे सब बातें, जिनके कहने की आज्ञा यहोवा ने उसे दी यी, उनको समझा दीं। 
8. और सब लोग मिलकर बोल उठे, जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे। लोगोंकी यह बातें मूसा ने यहोवा को सुनाईं। 
9. तब यहोवा ने मूसा से कहा, सुन, मैं बादल के अंधिक्कारने में होकर तेरे पास आता हूं, इसलिथे कि जब मैं तुझ से बातें करूं तब वे लोग सुनें, और सदा तेरी प्रतीति करें। और मूसा ने यहोवा से लोगोंकी बातोंका वर्णन किया। 
10. तब यहोवा ने मूसा से कहा, लोगोंके पास जा और उन्हें आज और कल पवित्र करना, और वे अपके वस्त्र धो लें, 
11. और वे तीसरे दिन तक तैयार हो रहें; क्योंकि तीसरे दिन यहोवा सब लोगोंके देखते सीनै पर्वत पर उतर आएगा। 
12. और तू लोगोंके लिथे चारोंओर बाड़ा बान्ध देना, और उन से कहना, कि तुम सचेत रहोंकि पर्वत पर न चढ़ो और उसके सिवाने को भी न छूओ; और जो कोई पहाड़ को छूए वह निश्चय मार डाला जाए। 
13. उसको कोई हाथ से तो न छूए, परन्तु वह निश्चय पत्यरवाह किया जाए, वा तीर से छेदा जाए; चाहे पशु हो चाहे मनुष्य, वह जीवित न बचे। जब महाशब्द वाले नरसिंगे का शब्द देर तक सुनाई दे, तब लोग पर्वत के पास आएं। 
14. तब मूसा ने पर्वत पर से उतरकर लोगोंके पास आकर उनको पवित्र कराया; और उन्होंने अपके वस्त्र धो लिए। 
15. और उस ने लोगोंसे कहा, तीसरे दिन तक तैयार हो रहो; स्त्री के पास न जाना। 
16. जब तीसरा दिन आया तब भोर होते बादल गरजने और बिजली चमकने लगी, और पर्वत पर काली घटा छा गई, फिर नरसिंगे का शब्द बड़ा भरी हुआ, और छावनी में जितने लोग थे सब कांप उठे। 
17. तब मूसा लोगोंको परमेश्वर से भेंट करने के लिथे छावनी से निकाल ले गया; और वे पर्वत के नीचे खड़े हुए। 
18. और यहोवा जो आग में होकर सीनै पर्वत पर उतरा या, इस कारण समस्त पर्वत धुएं से भर गया; और उसका धुआं भट्टे का सा उठ रहा या, और समस्त पर्वत बहुत कांप रहा या 
19. फिर जब नरसिंगे का शब्द बढ़ता और बहुत भारी होता गया, तब मूसा बोला, और परमेश्वर ने वाणी सुनाकर उसको उत्तर दिया। 
20. और यहोवा सीनै पर्वत की चोटी पर उतरा; और मूसा को पर्वत की चोटी पर बुलाया और मूसा ऊपर चढ़ गया। 
21. तब यहोवा ने मूसा से कहा, नीचे उतरके लोगोंको चितावनी दे, कहीं ऐसा न हो कि वे बाड़ा तोड़के यहोवा के पास देखने को घुसें, और उन में से बहुत नाश होंजाएं। 
22. और याजक जो यहोवा के समीप आया करते हैं वे भी अपके को पवित्र करें, कहीं ऐसा न हो कि यहोवा उन पर टूट पके। 
23. मूसा ने यहोवा से कहा, वे लोग सीनै पर्वत पर नहीं चढ़ सकते; तू ने तो आप हम को यह कहकर चिताया, कि पर्वत के चारोंऔर बाड़ा बान्धकर उसे पवित्र रखो। 
24. यहोवा ने उस से कहा, उतर तो जा, और हारून समेत ऊपर आ; परन्तु याजक और साधारण लोग कहीं यहोवा के पास बाड़ा तोड़के न चढ़ आएं, कहीं ऐसा न हो कि वह उन पर टूट पके। 
25. थे ही बातें मूसा ने लोगोंके पास उतरके उनको सुनाईं।।

Chapter 20

1. तब परमेश्वर ने थे सब वचन कहे, 
2. कि मै तेरा परमेश्वर यहोवा हूं, जो तुझे दासत्व के घर अर्यात्‌ मिस्र देश से निकाल लाया है।। 
3. तू मुझे छोड़ दूसरोंको ईश्वर करके न मानना।। 
4. तू अपके लिथे कोई मूतिर् खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृय्वी पर, वा पृय्वी के जल में है। 
5. तू उनको दण्डवत्‌ न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मै तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते है, उनके बेटों, पोतों, और परपोतोंको भी पितरोंका दण्ड दिया करता हूं, 
6. और जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हजारोंपर करूणा किया करता हूं।। 
7. तू अपके परमेश्वर का नाम व्यर्य न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्य ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा।। 
8. तू विश्रमदिन को पवित्र मानने के लिथे स्मरण रखना। 
9. छ: दिन तो तू परिश्र्म करके अपना सब काम काज करना; 
10. परन्तु सातवां दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे विश्रमदिन है। उस में न तो तू किसी भांति का काम काज करना, और न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरे पशु, न कोई परदेशी जो तेरे फाटकोंके भीतर हो। 
11. क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश, और पृय्वी, और समुद्र, और जो कुछ उन में है, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्रम किया; इस कारण यहोवा ने विश्रमदिन को आशीष दी और उसको पवित्र ठहराया।। 
12. तू अपके पिता और अपक्की माता का आदर करना, जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहने पाए।। 
13. तू खून न करना।। 
14. तू व्यभिचार न करना।। 
15. तू चोरी न करना।। 
16. तू किसी के विरूद्ध फूठी साझी न देना।। 
17. तू किसी के घर का लालच न करना; न तो किसी की स्त्री का लालच करना, और न किसी के दास-दासी, वा बैल गदहे का, न किसी की किसी वस्तु का लालच करना।। 
18. और सब लोग गरजने और बिजली और नरसिंगे के शब्द सुनते, और धुआं उठते हुए पर्वत को देखते रहे, और देखके, कांपकर दूर खड़े हो गए; 
19. और वे मूसा से कहने लगे, तू ही हम से बातें कर, तब तो हम सुन सकेंगे; परन्तु परमेश्वर हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएं। 
20. मूसा ने लोगोंसे कहा, डरो मत; क्योंकि परमेश्वर इस निमित्त आया है कि तुम्हारी पक्कीझा करे, और उसका भय तुम्हारे मन में बना रहे, कि तुम पाप न करो। 
21. और वे लोग तो दूर ही खड़े रहे, परन्तु मूसा उस घोर अन्धकार के समीप गया जहां परमेश्वर या।। 
22. तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू इस्त्राएलियोंको मेरे थे वचन सुना, कि तुम लोगोंने तो आप ही देखा है कि मै ने तुम्हारे साय आकाश से बातें की हैं। 
23. तुम मेरे साय किसी को सम्मिलित न करना, अर्यात्‌ अपके लिथे चान्दी वा सोने से देवताओं को न गढ़ लेना। 
24. मेरे लिथे मिट्टी की एक वेदी बनाना, और अपक्की भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैलोंके होमबलि और मेलबलि को उस पर चढ़ाना; जहां जहां मैं अपके नाम का स्मरण कराऊं वहां वहां मैं आकर तुम्हें आशीष दूंगा। 
25. और यदि तुम मेरे लिथे पत्यरोंकी वेदी बनाओ, तो तराशे हुए पत्यरोंसे न बनाना; क्योंकि जहां तुम ने उस पर अपना हयियार लगाया वहां तू उसे अशुद्ध कर देगा। 
26. और मेरी वेदी पर सीढ़ी से कभी न चढ़ना, कहीं ऐसा न हो कि तेरा तन उस पर नंगा देख पके।।

Chapter 21

1. फिर जो नियम तुझे उनको समझाने हैं वे थे हैं।। 
2. जब तुम कोई इब्री दास मोल लो, तब वह छ: वर्ष तक सेवा करता रहे, और सातवें वर्ष स्वतंत्र होकर सेंतमेंत चला जाए। 
3. यदि वह अकेला आया हो, तो अकेला ही चला जाए; और यदि पत्नी सहित आया हो, तो उसके साय उसकी पत्नी भी चक्की जाए। 
4. यदि उसके स्वामी ने उसको पत्नी दी हो और उस से उसके बेटे वा बेटियां उत्पन्न हुई हों, तो उसकी पत्नी और बालक उसके स्वामी के ही रहें, और वह अकेला चला जाए। 
5. परन्तु यदि वह दास दृढ़ता से कहे, कि मैं अपके स्वामी, और अपक्की पत्नी, और बालकोंसे प्रेम रखता हूं; इसलिथे मैं स्वतंत्र होकर न चला जाऊंगा; 
6. तो उसका स्वामी उसको परमेश्वर के पास ले चले; फिर उसको द्वार के किवाड़ वा बाजू के पास ले जाकर उसके कान में सुतारी से छेद करें; तब वह सदा उसकी सेवा करता रहे।। 
7. यदि कोई अपक्की बेटी को दासी होने के लिथे बेच डाले, तो वह दासी की नाई बाहर न जाए। 
8. यदि उसका स्वामी उसको अपक्की पत्नी बनाए, और फिर उस से प्रसन्न न रहे, तो वह उसे दाम से छुड़ाई जाने दे; उसका विश्वासघात करने के बाद उसे ऊपक्की लोगोंके हाथ बेचने का उसको अधिक्कारने न होगा। 
9. और यदि उस ने उसे अपके बेटे को ब्याह दिया हो, तो उस से बेटी का सा व्यवहार करे। 
10. चाहे वह दूसरी पत्नी कर ले, तौभी वह उसका भोजन, वस्त्र, और संगति न घटाए। 
11. और यदि वह इन तीन बातोंमें घटी करे, तो वह स्त्री सेंतमेंत बिना दाम चुकाए ही चक्की जाए।। 
12. जो किसी मनुष्य को ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए। 
13. यदि वह उसकी घात में न बैठा हो, और परमेश्वर की इच्छा ही से वह उसके हाथ में पड़ गया हो, तो ऐसे मारनेवाले के भागने के निमित्त मैं एक स्यान ठहराऊंगा जहां वह भाग जाए। 
14. परन्तु यदि कोई ढिठाई से किसी पर चढ़ाई करके उसे छल से घात करे, तो उसको मार ढालने के लिथे मेरी वेदी के पास से भी अलग ले जाना।। 
15. जो अपके पिता वा माता को मारे-पीटे वह निश्चय मार डाला जाए।। 
16. जो किसी मनुष्य को चुराए, चाहे उसे ले जाकर बेच डाले, चाहे वह उसके पास पाया जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए।। 
17. जो अपके पिता वा माता को श्रप दे वह भी निश्चय मार डाला जाए।। 
18. यदि मनुष्य फगड़ते हों, और एक दूसरे को पत्यर वा मुक्के से ऐसा मारे कि वह मरे नहीं परन्तु बिछौने पर पड़ा रहे, 
19. तो जब वह उठकर लाठी के सहारे से बाहर चलने फिरने लगे, तब वह मारनेवाला निर्दोष ठहरे; उस दशा में वह उसके पके रहने के समय की हानि तो भर दे, ओर उसको भला चंगा भी करा दे।। 
20. यदि कोई अपके दास वा दासी को सोंटे से ऐसा मारे कि वह उसके मारने से मर जाए, तब तो उसको निश्चय दण्ड दिया जाए। 
21. परन्तु यदि वह दो एक दिन जीवित रहे, तो उसके स्वामी को दण्ड न दिया जाए; क्योंकि वह दास उसका धन है।। 
22. यदि मनुष्य आपस में मारपीट करके किसी गभिर्णी स्त्री को ऐसी चोट पहुचाए, कि उसका गर्भ गिर जाए, परन्तु और कुछ हानि न हो, तो मारनेवाले से उतना दण्ड लिया जाए जितना उस स्त्री का पति पंच की सम्मति से ठहराए। 
23. परन्तु यदि उसको और कुछ हानि पहुंचे, तो प्राण की सन्ती प्राण का, 
24. और आंख की सन्ती आंख का, और दांत की सन्ती दांत का, और हाथ की सन्ती हाथ का, और पांव की सन्ती पांव का, 
25. और दाग की सन्ती दाग का, और घाव की सन्ती घाव का, और मार की सन्ती मार का दण्ड हो।। 
26. जब कोई अपके दास वा दासी की आंख पर ऐसा मारे कि फूट जाए, तो वह उसकी आंख की सन्ती उसे स्वतंत्र करके जाने दे। 
27. और यदि वह अपके दास वा दासी को मारके उसका दांत तोड़ डाले, तो वह उसके दांत की सन्ती उसे स्वतंत्र करके जाने दे।। 
28. यदि बैल किसी पुरूष वा स्त्री को ऐसा सींग मारे कि वह मर जाए, तो वह बैल तो निश्चय पत्यरवाह करके मार डाला जाए, और उसका मांस खाया न जाए; परन्तु बैल का स्वामी निर्दोष ठहरे। 
29. परन्तु यदि उस बैल की पहिले से सींग मारने की बान पक्की हो, और उसके स्वामी ने जताए जाने पर भी उसको न बान्ध रखा हो, और वह किसी पुरूष वा स्त्री को मार डाले, तब तो वह बैल पत्यरवाह किया जाए, और उसका स्वामी भी मार डाला जाए। 
30. यदि उस पर छुड़ौती ठहराई जाए, तो प्राण छुड़ाने को जो कुछ उसके लिथे ठहराया जाए उसे उतना ही देना पकेगा। 
31. चाहे बैल ने किसी बेटे को, चाहे बेटी को मारा हो, तौभी इसी नियम के अनुसार उसके स्वामी के साय व्यवहार किया जाए। 
32. यदि बैल ने किसी दास वा दासी को सींग मारा हो, तो बैल का स्वामी उस दास के स्वामी को तीस शेकेल रूपा दे, और वह बैल पत्यरवाह किया जाए।। 
33. यदि कोई मनुष्य गड़हा खोलकर वा खोदकर उसको न ढांपे, और उस में किसी का बैल वा गदहा गिर पके 
34. तो जिसका वह गड़हा हो वह उस हानि को भर दे; वह पशु के स्वामी को उसका मोल दे, और लोय गड़हेवाले की ठहरे।। 
35. यदि किसी का बैल किसी दूसरे के बैल को ऐसी चोट लगाए, कि वह मर जाए, तो वे दोनो मनुष्य जीते बैल को बेचकर उसका मोल आपस में आधा आधा बांट ले; और लोय को भी वैसा ही बांटें। 
36. यदि यह प्रगट हो कि उस बैल की पहिले से सींग मारने की बान पक्की यी, पर उसके स्वामी ने उसे बान्ध नहीं रखा, तो निश्चय यह बैल की सन्ती बैल भर दे, पर लोय उसी की ठहरे।।

Chapter 22

1. यदि कोई मनुष्य बैल, वा भेड़, वा बकरी चुराकर उसका घात करे वा बेच डाले, तो वह बैल की सन्ती पाँच बैल, और भेड़-बकरी की सन्ती चार भेड़-बकरी भर दे। 
2. यदि चोर सेंध लगाते हुए पकड़ा जाए, और उस पर ऐसी मार पके कि वह मर जाए, तो उसके खून का दोष न लगे; 
3. यदि सूर्य निकल चुके, तो उसके खून का दोष लगे; अवश्य है कि वह हानि को भर दे, और यदि उसके पास कुछ न हो, तो वह चोरी के कारण बेच दिया जाए। 
4. यदि चुराया हुआ बैल, वा गदहा, वा भेड़ वा बकरी उसके हाथ में जीवित पाई जाए, तो वह उसका दूना भर दे।। 
5. यदि कोई अपके पशु से किसी का खेत वा दाख की बारी चराए, अर्यात्‌ अपके पशु को ऐसा छोड़ दे कि वह पराए खेत को चर ले, तो वह अपके खेत की और अपक्की दाख की बारी की उत्तम से उत्तम उपज में से उस हानि को भर दे।। 
6. यदि कोई आग जलाए, और वह कांटोंमें लग जाए और फूलोंके ढेर वा अनाज वा खड़ा खेत जल जाए, तो जिस ने आग जलाई हो वह हानि को निश्चय भर दे।। 
7. यदि कोई दूसरे को रूपए वा सामग्री की धरोहर धरे, और वह उसके घर से चुराई जाए, तो यदि चोर पकड़ा जाए, तो दूना उसी को भर देना पकेगा। 
8. और यदि चोर न पकड़ा जाए, तो घर का स्वामी परमेश्वर के पास लाया जाए, कि निश्चय हो जाय कि उस ने अपके भाई बन्धु की सम्पत्ति पर हाथ लगाया है वा नहीं। 
9. चाहे बैल, चाहे गदहे, चाहे भेड़ वा बकरी, चाहे वस्त्र, चाहे किसी प्रकार की ऐसी खोई हुई वस्तु के विषय अपराध क्योंन लगाया जाय, जिसे दो जन अपक्की अपक्की कहते हों, तो दोनोंका मुकद्दमा परमेश्वर के पास आए; और जिसको परमेश्वर दोषी ठहराए वह दूसरे को दूना भर दे।। 
10. यदि कोई दूसरे को गदहा वा बैल वा भेड़-बकरी वा कोई और पशु रखने के लिथे सौपें, और किसी के बिना देखे वह मर जाए, वा चोट खाए, वा हांक दिया जाए, 
11. तो उन दोनो के बीच यहोवा की शपय खिलाई जाए कि मैं ने इसकी सम्पत्ति पर हाथ नहीं लगाया; तब सम्पत्ति का स्वामी इसको सच माने, और दूसरे को उसे कुछ भी भर देना न होगा। 
12. यदि वह सचमुच उसके यहां से चुराया गया हो, तो वह उसके स्वामी को उसे भर दे। 
13. और यदि वह फाड़ डाला गया हो, तो वह फाड़े हुए को प्रमाण के लिथे ले आए, तब उसे उसको भी भर देना न पकेगा।। 
14. फिर यदि कोई दूसरे से पशु मांग लाए, और उसके स्वामी के संग न रहते उसको चोट लगे वा वह मर जाए, तो वह निश्चय उसकी हानि भर दे। 
15. यदि उसका स्वामी संग हो, तो दूसरे को उसकी हानि भरना न पके; और यदि वह भाड़े का हो तो उसकी हानि उसके भाड़े में आ गई।। 
16. यदि कोई पुरूष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात न लगी हो फुसलाकर उसके संग कुकर्म करे, तो वह निश्चय उसका मोल देके उसे ब्याह ले। 
17. परन्तु यदि उसका पिता उसे देने को बिल्कुल इनकार करे, तो कुकर्म करनेवाला कन्याओं के मोल की रीति के अनुसार रूपके तौल दे।। 
18. तू डाइन को जीवित रहने न देना।। 
19. जो कोई पशुगमन करे वह निश्चय मार डाला जाए।। 
20. जो कोई यहोवा को छोड़ किसी और देवता के लिथे बलि करे वह सत्यनाश किया जाए। 
21. और परदेशी को न सताना और न उस पर अन्धेर करना क्योंकि मिस्र देश में तुम भी परदेशी थे। 
22. किसी विधवा वा अनाय बालक को दु:ख न देना। 
23. यदि तुम ऐसोंको किसी प्रकार का दु:ख दो, और वे कुछ भी मेरी दोहाई दें, तो मैं निश्चय उनकी दोहाई सुनूंगा; 
24. तब मेरा क्रोध भड़केगा, और मैं तुम को तलवार से मरवाऊंगा, और तुम्हारी पत्नियां विधवा और तुम्हारे बालक अनाय हो जाएंगे।। 
25. यदि तू मेरी प्रजा में से किसी दीन को जो तेरे पास रहता हो रूपए का ऋण दे, तो उस से महाजन की नाई ब्याज न लेना। 
26. यदि तू कभी अपके भाईबन्धु के वस्त्र को बन्धक करके रख भी ले, तो सूर्य के अस्त होने तक उसको लौटा देना; 
27. क्योंकि वह उसका एक ही ओढ़ना है, उसकी देह का वही अकेला वस्त्र होगा फिर वह किसे ओढ़कर सोएगा? तोभी जब वह मेरी दोहाई देगा तब मैं उसकी सुनूंगा, क्योंकि मैं तो करूणामय हूं।। 
28. परमेश्वर को श्रप न देना, और न अपके लोगोंके प्रधान को श्रप देना। 
29. अपके खेतोंकी उपज और फलोंके रस में से कुछ मुझे देने में विलम्ब न करना। अपके बेटोंमें से पहिलौठे को मुझे देना। 
30. वैसे ही अपक्की गायोंऔर भेड़-बकरियोंके पहिलौठे भी देना; सात दिन तक तो बच्चा अपक्की माता के संग रहे, और आठवें दिन तू उसे मुझे दे देना। 
31. और तुम मेरे लिथे पवित्र मनुष्य बनना; इस कारण जो पशु मैदान में फाड़ा हुआ पड़ा मिले उसका मांस न खाना, उसको कुत्तोंके आगे फेंक देना।।

Chapter 23

1. फूठी बात न फैलाना। अन्यायी साझी होकर दुष्ट का साय न देना। 
2. बुराई करने के लिथे न तो बहुतोंके पीछे हो लेना; और न उनके पीछे फिरके मुकद्दमें में न्याय बिगाड़ने को साझी देना; 
3. और कंगाल के मुकद्दमें में उसका भी पझ न करना।। 
4. यदि तेरे शत्रु का बैल वा गदहा भटकता हुआ तुझे मिले, तो उसे उसके पास अवश्य फेर ले आना। 
5. फिर यदि तू अपके बैरी के गदहे को बोफ के मारे दबा हुआ देखे, तो चाहे उसको उसके स्वामी के लिथे छुड़ाने के लिथे तेरा मन न चाहे, तौभी अवश्य स्वामी का साय देकर उसे छुड़ा लेना।। 
6. तेरे लोगोंमें से जो दरिद्र होंउसके मुकद्दमे में न्याय न बिगाड़ना। 
7. फूठे मुकद्दमे से दूर रहना, और निर्दोष और धर्मी को घात न करना, क्योंकि मैं दुष्ट को निर्दोष न ठहराऊंगा। 
8. घूस न लेना, क्योंकि घूस देखने वालोंको भी अन्धा कर देता, और धमिर्योंकी बातें पलट देता है। 
9. परदेशी पर अन्धेर न करना; तुम तो परदेशी के मन की बातें जानते हो, क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे।। 
10. छ: वर्ष तो अपक्की भूमि में बोना और उसकी उपज इकट्ठी करना; 
11. परन्तु सातवें वर्ष में उसको पड़ती रहने देना और वैसा ही छोड़ देना, तो तेरे भाई बन्धुओं में के दरिद्र लोग उस से खाने पाएं, और जो कुछ उन से भी बचे वह बनैले पशुओं के खाने के काम में आए। और अपक्की दाख और जलपाई की बारियोंको भी ऐसे ही करना। 
12. छ: दिन तक तो अपना काम काज करना, और सातवें दिन विश्रम करना; कि तेरे बैल और गदहे सुस्ताएं, और तेरी दासियोंके बेटे और परदेशी भी अपना जी ठंडा कर सकें। 
13. और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है उस में सावधान रहना; और दूसरे देवताओं के नाम की चर्चा न करना, वरन वे तुम्हारे मुंह से सुनाई भी न दें। 
14. प्रति वर्ष तीन बार मेरे लिथे पर्ब्ब मानना। 
15. अखमीरी रोटी का पर्ब्ब मानना; उस में मेरी आज्ञा के अनुसार अबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, क्योंकि उसी महीने में तुम मिस्र से निकल आए। और मुझ को कोई छूछे हाथ अपना मुंह न दिखाए। 
16. और जब तेरी बोई हुई खेती की पहिली उपज तैयार हो, तब कटनी का पर्ब्ब मानना। और वर्ष के अन्त में जब तू परिश्र्म के फल बटोर के ढेर लगाए, तब बटोरन का पर्ब्ब मानना। 
17. प्रति वर्ष तीनोंबार तेरे सब पुरूष प्रभु यहोवा को अपना मुंह दिखाएं।। 
18. मेरे बलिपशु का लोहू खमीरी रोटी के संग न चढ़ाना, और न मेरे पर्ब्ब के उत्तम बलिदान में से कुछ बिहान तक रहने देना। 
19. अपक्की भूमि की पहिली उपज का पहिला भाग अपके परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना।। 
20. सुन, मैं एक दूत तेरे आगे आगे भेजता हूं जो मार्ग में तेरी रझा करेगा, और जिस स्यान को मै ने तैयार किया है उस में तुझे पहुंचाएगा। 
21. उसके साम्हने सावधान रहना, और उसकी मानना, उसका विरोध न करना, क्योंकि वह तुम्हारा अपराध झमा न करेगा; इसलिथे कि उस में मेरा नाम रहता है।
22. और यदि तू सचमुच उसकी माने और जो कुछ मैं कहूं वह करे, तो मै तेरे शत्रुओं का शत्रु और तेरे द्रोहियोंका द्रोही बनूंगा। 
23. इस रीति मेरा दूत तेरे आगे आगे चलकर तुझे एमोरी, हित्ती, परज्जी, कनानी, हिब्बी, और यबूसी लोगोंके यहां पहुंचाएगा, और मैं उनको सत्यनाश कर डालूंगा। 
24. उनके देवताओं को दण्डवत्‌ न करना, और न उनकी उपासना करना, और न उनके से काम करना, वरन उन मूरतोंको पूरी रीति से सत्यानाश कर डालना, और उन लोगोंकी लाटोंके टुकड़े टुकड़े कर देना। 
25. और तुम अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना करना, तब वह तेरे अन्न जल पर आशीष देगा, और तेरे बीच में से रोग दूर करेगा। 
26. तेरे देश में न तो किसी का गर्भ गिरेगा और न कोई बांफ होगी; और तेरी आयु मैं पूरी करूंगा। 
27. जितने लोगोंके बीच तू जाथेगा उन सभोंके मन में मै अपना भय पहिले से ऐसा समवा दूंगा कि उनको व्याकुल कर दूंगा, और मैं तुझे सब शत्रुओं की पीठ दिखाऊंगा। 
28. और मैं तुझ से पहिले बर्रोंको भेजूंगा जो हिब्बी, कनानी, और हित्ती लोगोंको तेरे साम्हने से भगा के दूर कर देंगी। 
29. मैं उनको तेरे आगे से एक ही वर्ष में तो न निकाल दूंगा, ऐसा न हो कि देश उजाड़ हो जाए, और बनैले पशु बढ़कर तुझे दु:ख देने लगें। 
30. जब तक तू फूल फलकर देश को अपके अधिक्कारने में न कर ले तब तक मैं उन्हें तेरे आगे से योड़ा योड़ा करके निकालता रहूंगा। 
31. मैं लाल समुद्र से लेकर पलिश्तियोंके समुद्र तक और जंगल से लेकर महानद तक के देश को तेरे वश में कर दूंगा; मैं उस देश के निवासिक्कों भी तेरे वश में कर दूंगा, और तू उन्हें अपके साम्हने से बरबस निकालेगा। 
32. तू न तो उन से वाचा बान्धना और न उनके देवताओं से। 
33. वे तेरे देश में रहने न पाएं, ऐसा न हो कि वे तुझ से मेरे विरूद्ध पाप कराएं; क्योंकि यदि तू उनके देवताओं की उपासना करे, तो यह तेरे लिथे फंदा बनेगा।।

Chapter 24

1. फिर उस ने मूसा से कहा, तू, हारून, नादाब, अबीहू, और इस्त्राएलियोंके सत्तर पुरनियोंसमेत यहोवा के पास ऊपर आकर दूर से दण्डवत्‌ करना। 
2. और केवल मूसा यहोवा के समीप आए; परन्तु वे समीप न आएं, और दूसरे लोग उसके संग ऊपर न आएं। 
3. तब मूसा ने लोगोंके पास जाकर यहोवा की सब बातें और सब नियम सुना दिए; तब सब लोग एक स्वर से बोल उठे, कि जितनी बातें यहोवा ने कही हैं उन सब बातोंको हम मानेंगे। 
4. तब मूसा ने यहोवा के सब वचन लिख दिए। और बिहान को सवेरे उठकर पर्वत के नीचे एक वेदी और इस्त्राएल के बारहोंगोत्रोंके अनुसार बारह खम्भे भी बनवाए।
5. तब उस ने कई इस्त्राएली जवानोंको भेजा, जिन्होंने यहोवा के लिथे होमबलि और बैलोंके मेलबलि चढ़ाए। 
6. और मूसा ने आधा लोहू तो लेकर कटारोंमें रखा, और आधा वेदी पर छिड़क दिया। 
7. तब वाचा की पुस्तक को लेकर लोगोंको पढ़ सुनाया; उसे सुनकर उन्होंने कहा, जो कुछ यहोवा ने कहा है उस सब को हम करेंगे, और उसकी आज्ञा मानेंगे। 
8. तब मूसा ने लोहू को लेकर लोगोंपर छिड़क दिया, और उन से कहा, देखो, यह उस वाचा का लोहू है जिसे यहोवा ने इन सब वचनोंपर तुम्हारे साय बान्धी है। 
9. तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्त्राएलियोंके सत्तर पुरनिए ऊपर गए, 
10. और इस्त्राएल के परमेश्वर का दर्शन किया; और उसके चरणोंके तले नीलमणि का चबूतरा सा कुछ या, जो आकाश के तुल्य ही स्वच्छ या। 
11. और उस ने इस्त्राएलियोंके प्रधानोंपर हाथ न बढ़ाया; तब उन्होंने परमेश्वर का दर्शन किया, और खाया पिया।। 
12. तब यहोवा ने मूसा से कहा, पहाड़ पर मेरे पास चढ़, और वहां रह; और मै तुझे पत्यर की पटियाएं, और अपक्की लिखी हुई व्यवस्या और आज्ञा दूंगा, कि तू उनको सिखाए। 
13. तब मूसा यहोशू नाम अपके टहलुए समेत परमेश्वर के पर्वत पर चढ़ गया। 
14. कि जब तक हम तुम्हारे पास फिर न आएं तब तक तुम यहीं हमारी बाट जोहते रहो; और सुनो, हारून और हूर तुम्हारे संग हैं; तो यदि किसी का मुकद्दमा हो तो उन्हीं के पास जाए। 
15. तब मूसा पर्वत पर चढ़ गया, और बादल ने पर्वत को छा लिया। 
16. तब यहोवा के तेज ने सीनै पर्वत पर निवास किया, और वह बादल उस पर छ: दिन तक छाया रहा; और सातवें दिन उस ने मूसा को बादल के बीच में से पुकारा। 
17. और इस्त्राएलियोंकी दृष्टि में यहोवा का तेज पर्वत की चोटी पर प्रचण्ड आग सा देख पड़ता या। 
18. तब मूसा बादल के बीच में प्रवेश करके पर्वत पर चढ़ गया। और मूसा पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात रहा।।

Chapter 25

1. यहोवा ने मूसा से कहा, 
2. इस्त्राएलियोंसे यह कहना, कि मेरे लिथे भेंट लाएं; जितने अपक्की इच्छा से देना चाहें उन्हीं सभोंसे मेरी भेंट लेना। 
3. और जिन वस्तुओं की भेंट उन से लेनी हैं वे थे हैं; अर्यात्‌ सोना, चांदी, पीतल, 
4. नीले, बैंजनी और लाल रंग का कपड़ा, सूझ्म सनी का कपड़ा, बकरी का बाल, 
5. लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ोंकी खालें, सुइसोंकी खालें, बबूल की लकड़ी, 
6. उजियाले के लिथे तेल, अभिषेक के तेल के लिथे और सुगन्धित धूप के लिथे सुगन्ध द्रव्य, 
7. एपोद और चपरास के लिथे सुलैमानी पत्यर, और जड़ने के लिथे मणि। 
8. और वे मेरे लिथे एक पवित्रस्यान बनाए, कि मैं उनके बीच निवास करूं। 
9. जो कुछ मैं तुझे दिखाता हूं, अर्यात्‌ निवासस्यान और उसके सब सामान का नमूना, उसी के अनुसार तुम लोग उसे बनाना।। 
10. बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनाया जाए; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, और चौड़ाई और ऊंचाई डेढ़ डेढ़ हाथ की हों। 
11. और उसको चोखे सोने से भीतर और बाहर मढ़वाना, और सन्दूक के ऊपर चारोंओर सोने की बाड़ बनवाना। 
12. और सोने के चार कड़े ढलवाकर उसके चारोंपायोंपर, एक अलंग दो कड़े और दूसरी अलंग भी दो कड़े लगवाना। 
13. फिर बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हे भी सोने से मढ़वाना। 
14. और डण्डोंको सन्दूक की दोनोंअलंगोंके कड़ोंमें डालना जिस से उनके बल सन्दूक उठाया जाए। 
15. वे डण्डे सन्दूक के कड़ोंमें लगे रहें; और उस से अलग न किए जाएं। 
16. और जो साझीपत्र मैं तुझे दूंगा उसे उसी सन्दूक में रखना। 
17. फिर चोखे सोने का एक प्रायश्चित्त का ढकना बनवाना; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो। 
18. और सोना ढालकर दो करूब बनवाकर प्रायश्चित्त के ढकने के दोनोंसिरोंपर लगवाना। 
19. एक करूब तो एक सिक्के पर और दूसरा करूब दूसरे सिक्के पर लगवाना; और करूबोंको और प्रायश्चित्त के ढकने को उसके ही टुकड़े से बनाकर उसके दोनो सिरोंपर लगवाना। 
20. और उन करूबोंके पंख ऊपर से ऐसे फैले हुए बनें कि प्रायश्चित्त का ढकना उन से ढंपा रहे, और उनके मुख आम्हने-साम्हने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर रहें। 
21. और प्रायश्चित्त के ढकने को सन्दूक के ऊपर लगवाना; और जो साझीपत्र मैं तुझे दूंगा उसे सन्दूक के भीतर रखना। 
22. और मैं उसके ऊपर रहकर तुझ से मिला करूंगा; और इस्त्राएलियोंके लिथे जितनी आज्ञाएं मुझ को तुझे देनी होंगी, उन सभोंके विषय मैं प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर से और उन करूबोंके बीच में से, जो साझीपत्र के सन्दूक पर होंगे, तुझ से वार्तालाप किया करूंगा।। 
23. फिर बबूल की लकड़ी की एक मेज बनवाना; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की हो। 
24. उसे चोखे सोने से मढ़वाना, और उसके चारोंओर सोने की एक बाड़ बनवाना। 
25. और उसके चारोंओर चार अंगुल चौड़ी एक पटरी बनवाना, और इस पटरी के चारोंओर सोने की एक बाड़ बनवाना। 
26. और सोने के चार कड़े बनवाकर मेज के उन चारोंकोनोंमें लगवाना जो उसके चारोंपायोंमें होंगे। 
27. वे कड़े पटरी के पास ही हों, और डण्डोंके घरोंका काम दें कि मेज़ उन्हीं के बल उठाई जाए। 
28. और डण्डोंको बबूल की लकड़ी के बनवाकर सोने से मढ़वाना, और मेज़ उन्हीं से उठाई जाए। 
29. और उसके परात और धूपदान, और चमचे और उंडेलने के कटोरे, सब चोखे सोने के बनवाना। 
30. और मेज़ पर मेरे आगे भेंट की रोटियां नित्य रखा करना।। 
31. फिर चोखे सोने की एक दीवट बनवाना। सोना ढलवाकर वह दीवट, पाथे और डण्डी सहित बनाया जाए; उसके पुष्पकोष, गांठ और फूल, सब एक ही टुकड़े के बनें; 
32. और उसकी अलंगोंसे छ: डालियां निकलें, तीन डालियां तो दीवट की एक अलंग से और तीन डालियां उसकी दूसरी अलंग से निकली हुई हों; 
33. एक एक डाली में बादाम के फूल के समान तीन तीन पुष्पकोष, एक एक गांठ, और एक एक फूल हों; दीवट से निकली हुई छहोंडालियोंका यही आकार या रूप हो; 
34. और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के समान चार पुष्पकोष अपक्की अपक्की गांठ और फूल समेत हों; 
35. और दीवट से निकली हुई छहोंडालियोंमें से दो दो डालियोंके नीचे एक एक गांठ हो, वे दीवट समेत एक ही टुकड़े के बने हुए हों। 
36. उनकी गांठे और डालियां, सब दीवट समेत एक ही टुकड़े की हों, चोखा सोना ढलवाकर पूरा दीवट एक ही टुकड़े का बनवाना। 
37. और सात दीपक बनवाना; और दीपक जलाए जाएं कि वे दीवट के साम्हने प्रकाश दें। 
38. और उसके गुलतराश और गुलदान सब चोखे सोने के हों। 
39. वह सब इन समस्त सामान समेत किक्कार भर चोखे सोने का बने। 
40. और सावधान रहकर इन सब वस्तुओं को उस नमूने के समान बनवाना, जो तुझे इस पर्वत पर दिखाया गया है।।

Chapter 26

1. फिर निवासस्यान के लिथे दस परदे बनवाना; इनको बटी हुई सनीवाले और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का कढ़ाई के काम किए हुए करूबोंके साय बनवाना। 
2. एक एक परदे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; सब परदे एक ही नाप के हों। 
3. पांच परदे एक दूसरे से जुड़े हुए हों; और फिर जो पांच परदे रहेंगे वे भी एक दूसरे से जुड़े हुए हों। 
4. और जहां थे दोनोंपरदे जोड़े जाएं वहां की दोनोंछोरोंपर नीली नीली फलियां लगवाना। 
5. दोनोंछोरोंमें पचास पचास फलियां ऐसे लगवाना कि वे आम्हने साम्हने हों। 
6. और सोने के पचास अंकड़े बनवाना; और परदोंके पंचो को अंकड़ोंके द्वारा एक दूसरे से ऐसा जुड़वाना कि निवासस्यान मिलकर एक ही हो जाए। 
7. फिर निवास के ऊपर तम्बू का काम देने के लिथे बकरी के बाल के ग्यारह परदे बनवाना। 
8. एक एक परदे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; ग्यारहोंपरदे एक ही नाप के हों। 
9. और पांच परदे अलग और फिर छ: परदे अलग जुड़वाना, और छटवें परदे को तम्बू के साम्हने मोड़ कर दुहरा कर देना। 
10. और तू पचास अंकड़े उस परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा और पचास ही अंकड़े दूसरी ओर के परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा बनवाना। 
11. और पीतल के पचास अंकड़े बनाना, और अंकड़ोंको फलियोंमें लगाकर तम्बू को ऐसा जुड़वाना कि वह मिलकर एक ही हो जाए। 
12. और तम्बू के परदोंका लटका हुआ भाग, अर्यात्‌ जो आधा पट रहेगा, वह निवास की पिछली ओर लटका रहे। 
13. और तम्बू के परदोंकी लम्बाई मे से हाथ भर इधर, और हाथ भर उधर निवास के ढांकने के लिथे उसकी दोनोंअलंगोंपर लटका हुआ रहे। 
14. फिर तम्बू के लिथे लाल रंग से रंगी हुई मेढोंकी खालोंका एक ओढ़ना और उसके ऊपर सूइसोंकी खालोंका भी एक ओढ़ना बनवाना।। 
15. फिर निवास को खड़ा करने के लिथे बबूल की लकड़ी के तख्ते बनवाना। 
16. एक एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो। 
17. एक एक तख्ते में एक दूसरे से जोड़ी हुई दो दो चूलें हों; निवास के सब तख्तोंको इसी भांति से बनवाना। 
18. और निवास के लिथे जो तख्ते तू बनवाएगा उन में से बीस तख्ते तो दक्खिन की ओर के लिथे हों; 
19. और बीसोंतख्तोंके नीचे चांदी की चालीस कुसिर्यां बनवाना, अर्यात्‌ एक एक तख्ते के नीचे उसके चूलोंके लिथे दो दो कुसिर्यां। 
20. और निवास की दूसरी अलंग, अर्यात्‌ उत्तर की ओर बीस तख्ते बनवाना। 
21. और उनके लिथे चांदी की चालीस कुसिर्यां बनवाना, अर्यात्‌ एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हों। 
22. और निवास की पिछली अलंग, अर्यात्‌ एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हों। 
23. और पिछले अलंग में निवास के कोनोंके लिथे दो तख्ते बनवाना; 
24. और थे नीचे से दो दो भाग के होंऔर दोनोंभाग ऊपर के सिक्के तक एक एक कड़े में मिलाथे जाएं; दोनोंतख्तोंका यही रूप हो; थे तो दोनोंकोनोंके लिथे हों। 
25. और आठ तख्तें हों, और उनकी चांदी की सोलह कुसिर्यां हों; अर्यात्‌ एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हों। 
26. फिर बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनवाना, अर्यात्‌ निवास की एक अलंग के तख्तोंके लिथे पांच, 
27. और निवास की दूसरी अलंग के तख्तोंके लिथे पांच बेंडे, और निवास की जो अलंग पश्चिम की ओर पिछले भाग में होगी, उसके लिथे पांच बेंड़े बनवाना। 
28. और बीचवाला बेंड़ा जो तख्तोंके मध्य में होगा वह तम्बू के एक सिक्के से दूसरे सिक्के तक पहुंचे। 
29. फिर तख्तोंको सोने से मढ़वाना, और उनके कड़े जो बेंड़ोंके घरोंका काम देंगे उन्हें भी सोने के बनवाना; और बेड़ोंको भी सोने से मढ़वाना। 
30. और निवास को इस रीति खड़ा करना जैसा इस पर्वत पर तुझे दिखाया गया है।। 
31. फिर नीले, बैजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूझ्म सनीवाले कपके का एक बीचवाला पर्दा बनवाना; वह कढ़ाई के काम किथे हुए करूबोंके साय बने। 
32. और उसको सोने से मढ़े हुए बबूल के चार ख्म्भोंपर लटकाना, इनकी अंकडिय़ां सोने की हों, और थे चांदी की चार कुसिर्योंपर खड़ी रहें। 
33. और बीचवाले पर्दे को अंकडिय़ोंके नीचे लटकाकर, उसकी आड़ में साझीपत्र का सन्दूक भीतर लिवा ले जाना; सो वह बीचवाला पर्दा तुम्हारे लिथे पवित्रस्यान को परमपवित्रस्यान से अलग किथे रहे। 
34. फिर परमपवित्र स्यान में साझीपत्र के सन्दूक के ऊपर प्रायश्चित्त के ढकने को रखना। 
35. और उस पर्दे के बाहर निवास की उत्तर अलग मेज़ रखना; और उसकी दक्खिन अलंग मेज़ के साम्हने दीवट को रखना। 
36. फिर तम्बू के द्वार के लिथे नीले, बैंजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूझ्म सनीवाले कपके का कढ़ाई का काम किया हुआ एक पर्दा बनवाना। 
37. और इस पर्दे के लिथे बबूल के पांच खम्भे बनवाना, और उनको सोने से मढ़वाना; उनकी कडियां सोने की हो, और उनके लिथे पीतल की पांच कुसिर्यां ढलवा कर बनवाना।।

Chapter 27

1. फिर वेदी को बबूल की लकड़ी की, पांच हाथ लम्बी और पांच हाथ चौड़ी बनवाना; वेदी चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई तीन हाथ की हो। 
2. और उसके चारोंकोनोंपर चार सींग बनवाना; वे उस समेत एक ही टुकड़े के हों, और उसे पीतल से मढ़वाना। 
3. और उसकी राख उठाने के पात्र, और फावडिय़ां, और कटोरे, और कांटे, और अंगीठियां बनवाना; उसका कुल सामान पीतल का बनवाना। 
4. और उसके पीतल की जाली एक फंफरी बनवाना; और उसके चारोंसिरोंमें पीतल के चार कड़े लगवाना। 
5. और उस फंफरी को वेदी के चारोंओर की कंगनी के नीचे ऐसे लगवाना, कि वह वेदी की ऊंचाई के मध्य तक पहुंचे। 
6. और वेदी के लिथे बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हें पीतल से मढ़वाना। 
7. और डंडे कड़ोंमें डाले जाएं, कि जब जब वेदी उठाई जाए तब वे उसकी दोनोंअलंगोंपर रहें। 
8. वेदी को तख्तोंसे खोखली बनवाना; जैसी वह इस पर्वत पर तुझे दिखाई गई है वैसी ही बनाई जाए।। 
9. फिर निवास के आंगन को बनवाना। उसकी दक्खिन अलंग के लिथे तो बटी हुई सूझ्म सनी के कपके के सब पर्दोंको मिलाए कि उसकी लम्बाई सौ हाथ की हो; एक अलंग पर तो इतना ही हो। 
10. और उनके बीस खम्भे बनें, और इनके लिथे पीतल की बीस कुसिर्यां बनें, और खम्भोंके कुन्डे और उनकी पट्टियां चांदी की हों। 
11. और उसी भांति आंगन की उत्तर अलंग की लम्बाई में भी सौ हाथ लम्बे पर्दे हों, और उनके भी बीस खम्भे और इनके लिथे भी पीतल के बीस खाने हों; और उन खम्भोंके कुन्डे और पट्टियां चांदी की हों। 
12. फिर आंगन की चौड़ाई में पच्छिम की ओर पचास हाथ के पर्दे हों, उनके खम्भे दस और खाने भी दस हों। 
13. और पूरब अलंग पर आंगन की चौड़ाई पचास हाथ की हो। 
14. और आंगन के द्वार की एक ओर पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, और उनके खम्भे तीन और खाने तीन हों। 
15. और दूसरी ओर भी पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, उनके भी खम्भे तीन और खाने तीन हों। 
16. और आंगन के द्वार के लिथे एक पर्दा बनवाना, जो नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके और बटी हुई सूझ्म सनी के कपके का कामदार बना हुआ बीस हाथ का हो, उसके खम्भे चार और खाने भी चार हों। 
17. आंगन की चारोंओर के सब खम्भे चांदी की पट्टियोंसे जुड़े हुए हों, उनके कुन्डे चांदी के और खाने पीतल के हों। 
18. आंगन की लम्बाई सौ हाथ की, और उसकी चौड़ाई बराबर पचास हाथ की और उसकी कनात की ऊंचाई पांच हाथ की हो, उसकी कनात बटी हुई सुझ्म सनी के कपके की बने, और खम्भोंके खाने पीतल के हों। 
19. निवास के भांति भांति के बर्तन और सब सामान और उसके सब खूंटें और आंगन के भी सब खूंटे पीतल ही के हों।। 
20. फिर तू इस्त्राएलियोंको आज्ञा देना, कि मेरे पास दीवट के लिथे कूट के निकाला हुआ जलपाई का निर्मल तेल ले आना, जिस से दीपक नित्य जलता रहे। 
21. मिलाप के तम्बू में, उस बीचवाले पर्दे से बाहर जो साझीपत्र के आगे होगा, हारून और उसके पुत्र दीवट सांफ से भोर तक यहोवा के साम्हने सजा कर रखें। यह विधि इस्त्राएलियोंकी पीढिय़ोंके लिथे सदैव बनी रहेगी।।

Chapter 28

1. फिर तू इस्त्राएलियोंमें से अपके भाई हारून, और नादाब, अबीहू, एलीआज़ार और ईतामार नाम उसके पुत्रोंको अपके समीप ले आना कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें। 
2. और तू अपके भाई हारून के लिथे विभव और शोभा के निमित्त पवित्र वस्त्र बनवाना। 
3. और जितनोंके ह्रृदय में बुद्धि है, जिनको मैं ने बुद्धि देनेवाली आत्मा से परिपूर्ण किया है, उनको तू हारून के वस्त्र बनाने की आज्ञा दे कि वह मेरे निमित्त याजक का काम करने के लिथे पवित्र बनें। 
4. और जो वस्त्र उन्हें बनाने होंगे वे थे हैं, अर्यात्‌ सीनाबन्द; और एपोद, और जामा, चार खाने का अंगरखा, पुरोहित का टोप, और कमरबन्द; थे ही पवित्र वस्त्र तेरे भाई हारून और उसके पुत्रोंके लिथे बनाए जाएं कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें। 
5. और वे सोने और नीले और बैंजनी और लाल रंग का और सूझ्म सनी का कपड़ा लें।। 
6. और वे एपोद को सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का और बटी हुई सूझ्म सनी के कपके का बनाएं, जो कि निपुण कढ़ाई के काम करनेवाले के हाथ का काम हो। 
7. और वह इस तरह से जोड़ा जाए कि उसके दोनो कन्धोंके सिक्के आपस में मिले रहें। 
8. और एपोद पर जो काढ़ा हुआ पटुका होगा उसकी बनावट उसी के समान हो, और वे दोनोंबिना जोड़ के हों, और सोने और नीले, बैंजनी और लाल रंगवाले और बटी हुई सूझ्म सनीवाले कपके के हों। 
9. फिर दो सुलैमानी मणि लेकर उन पर इस्त्राएल के पुत्रोंके नाम खुदवाना, 
10. उनके नामोंमें से छ: तो एक मणि पर, और शेष छ: नाम दूसरे मणि पर, इस्त्राएल के पुत्रोंकी उत्पत्ति के अनुसार खुदवाना। 
11. मणि खोदनेवाले के काम से जैसे छापा खोदा जाता है, वैसे ही उन दो मणियोंपर इस्त्राएल के पुत्रोंके नाम खुदवाना; और उनको सोने के खानोंमें जड़वा देना। 
12. और दोनोंमणियोंको एपोद के कन्धोंपर लगवाना, वे इस्त्राएलियोंके निमित्त स्मरण दिलवाने वाले मणि ठहरेंगे; अर्यात्‌ हारून उनके नाम यहोवा के आगे अपके दोनोंकन्धोंपर स्मरण के लिथे लगाए रहे।। 
13. फिर सोने के खाने बनवाना, 
14. और डोरियोंकी नाईं गूंथे हुए दो जंजीर चोखे सोने के बनवाना; और गूंथे हुए जंजीरोंको उन खानोंमें जड़वाना। 
15. फिर न्याय की चपरास को भी कढ़ाई के काम का बनवाना; एपोद की नाईं सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूझ्म सनी के कपके की उसे बनवाना। 
16. वह चौकोर और दोहरी हो, और उसकी लम्बाई और चौड़ाई एक एक बित्ते की हों। 
17. और उस में चार पांति मणि जड़ाना। पहिली पांति में तो माणिक्य, पद्क़राग और लालड़ी हों; 
18. दूसरी पांति में मरकत, नीलमणि और हीरा; 
19. तीसरी पांति में लशम, सूर्यकांत और नीलम; 
20. और चौयी पांति में फीरोजा, सुलैमानी मणि और यशब हों; थे सब सोने के खानोंमें जड़े जाएं। 
21. और इस्त्राएल के पुत्रोंके जितने नाम हैं उतने मणि हों, अर्यात्‌ उनके नामोंकी गिनती के अनुसार बारह नाम खुदें, बारहोंगोत्रोंमें से एक एक का नाम एक एक मणि पर ऐसे खुदे जेसे छापा खोदा जाता है। 
22. फिर चपरास पर डोरियोंकी नाई। गूंथे हुए चोखे सोने की जंजीर लगवाना; 
23. और चपरास में सोने की दो कडिय़ां लगवाना, और दोनोंकडिय़ोंको चपरास के दोनो सिरोंपर लगवाना। 
24. और सोने के दोनोंगूंथे जंजीरोंको उन दोनोंकडिय़ोंमें जो चपरास के सिरोंपर होंगी लगवाना; 
25. और गूंथे हुए दोनो जंजीरोंके दोनोंबाकी सिक्कों दोनोंखानोंमें जड़वा के एपोद के दोनोंकन्धोंके बंधनोंपर उसके साम्हने लगवाना। 
26. फिर सोने की दो और कडिय़ां बनवाकर चपरास के दोनोंसिरोंपर, उसकी उस कोर पर जो एपोद की भीतर की ओर होगी लगवाना। 
27. फिर उनके सिवाय सोने की दो और कडिय़ां बनवाकर एपोद के दोनोंकन्धोंके बंधनोंपर, नीचे से उनके साम्हने और उसके जोड़ के पास एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगवाना। 
28. और चपरास अपक्की कडिय़ोंके द्वारा एपोद की कडिय़ोंमें नीले फीते से बांधी जाए, इस रीति वह एपोद के काढ़े हुए पटुके पर बनी रहे, और चपरास एपोद पर से अलग न होने पाए। 
29. और जब जब हारून पवित्रस्यान में प्रवेश करे, तब तब वह न्याय की चपरास पर अपके ह्रृदय के ऊपर इस्त्राएलियोंके नामोंको लगाए रहे, जिस से यहोवा के साम्हने उनका स्मरण नित्य रहे। 
30. और तू न्याय की चपरास में ऊरीम और तुम्मीम को रखना, और जब जब हारून यहोवा के साम्हने प्रवेश करे, तब तब वे उसके ह्रृदय के ऊपर हों; इस प्रकार हारून इस्त्राएलियोंके न्याय पदार्य को अपके ह्रृदय के ऊपर यहोवा के साम्हने नित्य लगाए रहे।। 
31. फिर एपोद के बागे को सम्पूर्ण नीले रंग का बनवाना। 
32. और उसकी बनावट ऐसी हो कि उसके बीच में सिर डालने के लिथे छेद हो, और उस छेद की चारोंओर बखतर के छेद की सी एक बुनी हुई कोर हो, कि वह फटने न पाए। 
33. और उसके नीचेवाले घेरे में चारोंओर नीेले, बैंजनी और लाल रंग के कपके के अनार बनवाना, और उनके बीच बीच चारोंओर सोने की घंटीयां लगवाना, 
34. अर्यात्‌ एक सोने की घंटी और एक अनार, फिर एक सोने की घंटी और एक अनार, इसी रीति बागे के नीचेवाले घेरे में चारोंओर ऐसा ही हो। 
35. और हारून एक बागे को सेवा टहल करने के समय पहिना करे, कि जब जब वह पवित्रस्यान के भीतर यहोवा के साम्हने जाए, वा बाहर निकले, तब तब उसका शब्द सुनाई दे, नहीं तो वह मर जाएगा। 
36. फिर चोखे सोने का एक टीका बनवाना, और जैसे छापे में वैसे ही उस में थे अझर खोदें जाएं, अर्यात्‌ यहोवा के लिथे पवित्र। 
37. और उसे नीले फीते से बांधना; और वह पगड़ी के साम्हने के हिस्से पर रहे। 
38. और हारून के माथे पर रहे, इसलिथे कि इस्त्राएली जो कुछ पवित्र ठहराएं, अर्यात्‌ जितनी पवित्र वस्तुएं भेंट में चढ़ावें उन पवित्र वस्तुओं का दोष हारून उठाए रहे, और वह नित्य उसके माथे पर रहे, जिस से यहोवा उन से प्रसन्न रहे।। 
39. और अंगरखे को सूझ्म सनी के कपके का चारखाना बुनवाना, और एक पगड़ी भी सूझ्म सनी के कपके की बनवाना, और कारचोबी काम किया हुआ एक कमरबन्द भी बनवाना।। 
40. फिर हारून के पुत्रोंके लिथे भी अंगरखे और कमरबन्द और टोपियां बनवाना; थे वस्त्र भी विभव और शोभा के लिथे बनें। 
41. अपके भाई हारून और उसके पुत्रोंको थे ही सब वस्त्र पहिनाकर उनका अभिषेक और संस्कार करना, और उन्हें पवित्र करना, कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें। 
42. और उनके लिथे सनी के कपके की जांघिया बनवाना जिन से उनका तन ढपा रहे; वे कमर से जांघ तक की हों; 
43. और जब जब हारून वा उसके पुत्र मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करें, वा पवित्र स्यान में सेवा टहल करने को वेदी के पास जाएं तब तब वे उन जांघियोंको पहिने रहें, न हो कि वे पापी ठहरें और मर जाएं। यह हारून के लिथे और उसके बाद उसके वंश के लिथे भी सदा की विधि ठहरें।।

Chapter 29

1. और उन्हें पवित्र करने को जो काम तुझे उन से करना है, कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें वह यह है। एक निर्दोष बछड़ा और दो निर्दोष मेंढ़े लेना, 
2. और अखमीरी रोटी, और तेल से सने हुए मैदे के अखमीरी फुलके, और तेल से चुपक्की हुई अखमीरी पपडिय़ां भी लेना। थे सब गेहूं के मैदे के बनवाना। 
3. इनको एक टोकरी में रखकर उस टोकरी को उस बछड़े और उन दोनोंमेंढ़ो समेत समीप ले आना। 
4. फिर हारून और उसके पुत्रोंको मिलापवाले तम्बू के द्वार के समीप ले आकर जल से नहलाना। 
5. तब उन वोंको लेकर हारून को अंगरखा ओर एपोद का बागा पहिनाना, और एपोद और चपरास बान्धना, और एपोद का काढ़ा हुआ पटुका भी बान्धना; 
6. और उसके सिर पर पगड़ी को रखना, और पगड़ी पर पवित्र मुकुट को रखना। 
7. तब अभिषेक का तेल ले उसके सिर पर डालकर उसका अभिषेक करना। 
8. फिर उसके पुत्रोंको समीप ले आकर उनको अंगरखे पहिनाना, 
9. और उसके अर्यात्‌ हारून और उसके पुत्रोंके कमर बान्धना और उनके सिर पर टोपियां रखना; जिस से याजक के पद पर सदा उनका हक रहे। इसी प्रकार हारून और उसके पुत्रोंका संस्कार करना। 
10. और बछड़े को मिलापवाले तम्बू के साम्हने समीप ले आना। और हारून और उसके पुत्र बछड़े के सिर पर अपके अपके हाथ रखें, 
11. तब उस बछड़े को यहोवा के सम्मुख मिलापवाले तम्बू के द्वार पर बलिदान करना, 
12. और बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर अपक्की उंगली से वेदी के सींगोंपर लगाना, और शेष सब लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल देना 
13. और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जो फिल्ली कलेजे के ऊपर होती है, उनको और दोनो गुर्दोंको उनके ऊपर की चरबी समेत लेकर सब को वेदी पर जलाना। 
14. और बछड़े का मांस, और खाल, और गोबर, छावनी से बाहर आग में जला देना; क्योंकि यह पापबलि होगा। 
15. फिर एक मेढ़ा लेना, और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपके अपके हाथ रखें, 
16. तब उस मेढ़ें को बलि करना, और उसका लोहू लेकर वेदी पर चारोंओर छिड़कना। 
17. और उस मेढ़े को टुकड़े टुकड़े काटना, और उसकी अंतडिय़ोंऔर पैरोंको धोकर उसके टुकड़ोंऔर सिर के ऊपर रखना, 
18. तब उस पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाना; वह तो यहोवा के लिथे होमबलि होगा; वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिथे हवन होगा। 
19. फिर दूसरे मेढ़े को लेना; और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपके अपके हाथ रखें, 
20. तब उस मेंड़े को बलि करना, और उसके लोहू में से कुछ लेकर हारून और उसके पुत्रोंके दहिने कान के सिक्के पर, और उनके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाना, और लोहू को वेदी पर चारोंओर छिड़क देना। 
21. फिर वेदी पर के लोहू, और अभिषेक के तेल, इन दोनो में से कुछ कुछ लेकर हारून और उसके वोंपर, और उसके पुत्रोंऔर उनके वोंपर भी छिड़क देना; तब वह अपके वोंसमेत और उसके पुत्र भी अपके अपके वोंसमेत पवित्र हो जाएंगे। 
22. तब मेढ़े को संस्कारवाला जानकर उस में से चरबी और मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं उसको, और कलेजे पर की फिल्ली को, और चरबी समेत दोनोंगुर्दोंको, और दहिने पुट्ठे को लेना, 
23. और अखमीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे धरी होगी उस में से भी एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक पपक्की लेकर, 
24. इन सब को हारून और उसके पुत्रोंके हाथोंमें रखकर हिलाए जाने की भेंट ठहराके यहोवा के आगे हिलाया जाए। 
25. तब उन वस्तुओं को उनके हाथोंसे लेकर होमबलि की वेदी पर जला देना, जिस से वह यहोवा के साम्हने सुखदायक सुगन्ध ठहरे; वह तो यहोवा के लिथे हवन होगा। 
26. फिर हारून के संस्कार को जो मेंढ़ा होगा उसकी छाती को लेकर हिलाए जाने की भेंट के लिथे यहोवा के आगे हिलाना; और वह तेरा भाग ठहरेगा। 
27. और हारून और उसके पुत्रोंके संस्कार का जो मेढ़ा होगा, उस में से हिलाए जाने की भेंटवाली छाती जो हिलाई जाएगी, और उठाए जाने का भेंटवाला पुट्ठा जो उठाया जाएगा, इन दोनोंको पवित्र ठहराना। 
28. और थे सदा की विधि की रीति पर इस्त्राएलियोंकी ओर से उसका और उसके पुत्रोंका भाग ठहरे, कयोंकि थे उठाए जाने की भेंटें ठहरी हैं; और यह इस्त्राएलियोंकी ओर से उनके मेलबलियोंमें से यहोवा के लिथे उठाऐ जाने की भेंट होगी। 
29. और हारून के जो पवित्र वस्त्र होंगे वह उसके बाद उसके बेटे पोते आदि को मिलते रहें, जिस से उन्हीं को पहिने हुए उनका अभिषेक और संस्कार किया जाए। 
30. उसके पुत्रोंके जो उसके स्यान पर याजक होगा, वह जब पवित्रस्यान में सेवा टहल करने को मिलाप वाले तम्बू में पहिले आए, तब उन वोंको सात दिन तक पहिने रहें। 
31. फिर याजक के संस्कार का जो मेढ़ा होगा उसे लेकर उसका मांस किसी पवित्र स्यान में पकाना; 
32. तब हारून अपके पुत्रोंसमेत उस मेढे का मांस और टोकरी की रोटी, दोनोंको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खाए। 
33. और जिन पदार्योंसे उनका संस्कार और उन्हें पवित्र करने के लिथे प्रायश्चित्त किया जाएगा उनको तो वे खाएं, परन्तु पराए कुल का कोई उन्हें न खाने पाए, क्योंकि वे पवित्र होंगे। 
34. और यदि संस्कारवाले मांस वा रोटी में से कुछ बिहान तक बचा रहे, तो उस बचे हुए को आग में जलाना, वह खाया न जाए; क्योंकि वह पवित्र होगा। 
35. और मैं ने तुझे जो जो आज्ञा दी हैं, उन सभोंके अनुसार तू हारून और उसके पुत्रोंसे करना; और सात दिन तक उनका संस्कार करते रहना, 
36. अर्यात्‌ पापबलि का एक बछड़ा प्रायश्चित्त के लिथे प्रतिदिन चढ़ाना। और वेदी को भी प्रायश्चित्त करने के समय शुद्ध करना, और उसे पवित्र करने के लिथे उसका अभिषेक करना। 
37. सात दिन तक वेदी के लिथे प्रायश्चित्त करके उसे पवित्र करना, और वेदी परम पवित्र ठहरेगी; और जो कुछ उस से छू जाएगा वह भी पवित्र हो जाएगा।। 
38. जो तुझे वेदी पर नित्य चढ़ाना होगा वह यह है; अर्यात्‌ प्रतिदिन एक एक वर्ष के दो भेड़ी के बच्चे। 
39. एक भेड़ के बच्चे को तो भोर के समय, और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना। 
40. और एक भेड़ के बच्चे के संग हीन की चौयाई कूटके निकाले हुए तेल से सना हुआ एपा का दसवां भाग मैदा, और अर्घ के लिथे ही की चौयाई दाखमधु देना। 
41. और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना, और उसके साय भोर की रीति अनुसार अन्नबलि और अर्घ दोनोंदेना, जिस से वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिथे हवन ठहरे। 
42. तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यहोवा के आगे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर नित्य ऐसा ही होमबलि हुआ करे; यह वह स्यान है जिस में मैं तुम लोगोंसे इसलिथे मिला करूंगा, कि तुझ से बातें करूं। 
43. और मैं इस्त्राएलियोंसे वहीं मिला करूंगा, और वह तम्बू मेरे तेज से पवित्र किया जाएगा। 
44. और मैं मिलापवाले तम्बू और वेदी को पवित्र करूंगा, और हारून और उसके पुत्रोंको भी पवित्र करूंगा, कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें। 
45. और मैं इस्त्राएलियोंके मध्य निवास करूंगा, और उनका परमेश्वर ठहरूंगा। 
46. तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा उनका परमेश्वर हूं, जो उनको मिस्र देश से इसलिथे निकाल ले आया, कि उनके मध्य निवास करूं; मैं ही उनका परमेश्वर यहोवा हूं।।

Chapter 30

1. फिर धूप जलाने के लिथे बबूल की लकड़ी की वेदी बनाना। 
2. उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ की हो, वह चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की हो, और उसके सींग उसी टुकड़े से बनाए जाएं। 
3. और वेदी के ऊपरवाले पल्ले और चारोंओर की अलंगोंऔर सींगोंको चोखे सोने से मढ़ना, और इसकी चारोंओर सोने की एक बाड़ बनाना। 
4. और इसकी बाड़ के नीचे इसके दानोंपल्ले पर सोने के दो दो कड़े बनाकर इसके दोनोंओर लगाना, वे इसके उठाने के डण्डोंके खानोंका काम देंगे। 
5. और डण्डोंको बबूल की लकड़ी के बनाकर उनको सोने से मढ़ना। 
6. और तू उसको उस पर्दे के आगे रखना जो साझीपत्र के सन्दूक के साम्हने है, अर्यात्‌ प्रायश्चित्त वाले ढकने के आगे जो साझीपत्र के ऊपर है, वहीं मैं तुझ से मिला करूंगा। 
7. और उसी वेदी पर हारून सुगन्धित धूप जलाया करे; प्रतिदिन भोर को जब वह दीपक को ठीक करे तब वह धूप को जलाए, 
8. तब गोधूलि के समय जब हारून दीपकोंको जलाए तब धूप जलाया करे, यह धूप यहोवा के साम्हने तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में नित्य जलाया जाए। 
9. और उस वेदी पर तुम और प्रकार का धूप न जलाना, और न उस पर होमबलि और न अन्नबलि चढ़ाना; और न इस पर अर्घ देना। 
10. और हारून वर्ष में एक बार इसके सींगोंपर प्रायश्चित्त करे; और तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में वर्ष में एक बार प्रायश्चित्त लिया जाए; यह यहोवा के लिथे परमपवित्र है।। 
11. और तब यहोवा ने मूसा से कहा, 
12. जब तू इस्त्राएलियोंकि गिनती लेने लगे, तब वे गिनने के समय जिनकी गिनती हुई हो अपके अपके प्राणोंके लिथे यहोवा को प्रायश्चित्त दें, जिस से जब तू उनकी गिनती कर रहा हो उस समय कोई विपत्ति उन पर न आ पके। 
13. जितने लोग गिने जाएं वे पवित्रस्यान के शेकेल के लिथे आधा शेकेल दें, यह शेकेल बीस गेरा का होता है, यहोवा की भेंट आधा शेकेल हो। 
14. बीस वर्ष के वा उस से अधिक अवस्या के जितने गिने जाएं उन में से एक एक जन यहोवा की भेंट दे। 
15. जब तुम्हारे प्राणोंके प्रायश्चित्त के निमित्त यहोवा की भेंट दी जाए, तब न तो धनी लोग आधे शेकेल से अधिक दें, और न कंगाल लोग उस से कम दें। 
16. और तू इस्त्राएलियोंसे प्रायश्चित्त का रूपया लेकर मिलापवाले तम्बू के काम में लगाना; जिस से वह यहोवा के सम्मुख इस्त्राएलियोंके स्मरणार्य चिन्ह ठहरे, और उनके प्राणोंका प्रायश्चित्त भी हो।। 
17. और यहोवा ने मूसा से कहा, 
18. धोने के लिथे पीतल की एक हौदी और उसका पाया पीतल का बनाना। और उसके मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच में रखकर उस में जल भर देना; 
19. और उस में हारून और उसके पुत्र अपके अपके हाथ पांव धोया करें। 
20. जब जब वे मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करें तब तब वे हाथ पांव जल से धोएं, नहीं तो मर जाएंगे; और जब जब वे वेदी के पास सेवा टहल करने, अर्यात्‌ यहोवा के लिथे हव्य जलाने को आएं तब तब वे हाथ पांव धोएं, न हो कि मर जाएं। 
21. यह हारून और उसके पीढ़ी पीढ़ी के वंश के लिथे सदा की विधि ठहरे।। 
22. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 
23. तू मुख्य मुख्य सुगन्ध द्रव्य, अर्यात्‌ पवित्रस्यान के शेकेल के अनुसार पांच सौ शेकेल अपके आप निकला हुआ गन्धरस, और उसका आधा, अर्यात्‌ अढ़ाई सौ शेकेल सुगन्धित अगर, 
24. और पांच सौ शेकेल तज, और एक हीन जलपाई का तेल लेकर 
25. उन से अभिषेक का पवित्र तेल, अर्यात्‌ गन्धी की रीति से तैयार किया हुआ सुगन्धित तेल बनवाना; यह अभिषेक का पवित्र तेल ठहरे। 
26. और उस से मिलापवाले तम्बू का, और साझीपत्र के सन्दूक का, 
27. और सारे सामान समेत मेज़ का, और सामान समेत दीवट का, और धूपकेदी का, 
28. और सारे सामान समेत होमवेदी का, और पाए समेत हौदी का अभिषेक करना। 
29. और उनको पवित्र करना, जिस से वे परमपवित्र ठहरें; और जो कुछ उन से छू जाएगा वह पवित्र हो जाएगा। 
30. फिर हारून का उसके पुत्रोंके साय अभिषेक करना, और इस प्रकार उन्हें मेरे लिथे याजक का काम करने के लिथे पवित्र करना। 
31. और इस्त्राएलियोंको मेरी यह आज्ञा सुनाना, कि वह तेल तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे लिथे पवित्र अभिषेक का तेल होगा। 
32. वह किसी मनुष्य की देह पर न डाला जाए, और मिलावट में उसके समान और कुछ न बनाना; वह तो पवित्र होगा, वह तुम्हारे लिथे पवित्र होगा। 
33. जो कोई उसके समान कुछ बनाए, वा जो कोई उस में से कुछ पराए कुलवाले पर लगाए, वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाए।। 
34. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बोल, नखी और कुन्दरू, थे सुगन्ध द्रव्य निर्मल लोबान समेत ले लेना, थे सब एक तौल के हों, 
35. और इनका धूप अर्यात्‌ लोन मिलाकर गन्धी की रीति के अनुसार चोखा और पवित्र सुगन्ध द्रव्य बनवाना; 
36. फिर उस में से कुछ पीसकर बुकनी कर डालना, तब उस में से कुछ मिलापवाले तम्बू में साझीपत्र के आगे, जहां पर मैं तुझ से मिला करूंगा वहां रखना; वह तुम्हारे लिथे परमपवित्र होगा। 
37. और जो धूप तू बनवाएगा, मिलावट में उसके समान तुम लोग अपके लिथे और कुछ न बनवाना; वह तुम्हारे आगे यहोवा के लिथे पवित्र होगा। 
38. जो कोई सूंघने के लिथे उसके समान कुछ बनाए वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाए।।

Chapter 31

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 
2. सुन, मैं ऊरी के पुत्र बसलेल को, जो हूर का पोता और यहूदा के गोत्र का है, नाम लेकर बुलाता हूं। 
3. और मैं उसको परमेश्वर की आत्मा से जो बुद्धि, प्रवीणता, ज्ञान, और सब प्रकार के कार्योंकी समझ देनेवाली आत्मा है परिपूर्ण करता हूं, 
4. जिस से वह कारीगरी के कार्य बुद्धि से निकाल निकालकर सब भांति की बनावट में, अर्यात्‌ सोने, चांदी, और पीतल में, 
5. और जड़ने के लिथे मणि काटने में, और लकड़ी के खोदने में काम करे। 
6. और सुन, मैं दान के गोत्रवाले अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को उसके संग कर देता हूं; वरन जितने बुद्धिमान है उन सभोंके ह्रृदय में मैं बुद्धि देता हूं, जिस से जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैं ने तुझे दी है उन सभोंको वे बनाएं; 
7. अर्यात्‌ मिलापवाला तम्बू, और साझीपत्र का सन्दूक, और उस पर का प्रायश्चित्तवाला ढकना, और तम्बू का सारा सामान, 
8. और सामान सहित मेज़, और सारे सामान समेत चोखे सोने की दीवट, और धूपकेदी, 
9. और सारे सामान सहित होमवेदी, और पाए समेत हौदी, 
10. और काढ़े हुए वस्त्र, और हारून याजक के याजकवाले काम के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रोंके वस्त्र, 
11. और अभिषेक का तेल, और पवित्र स्यान के लिथे सुगन्धित धूप, इन सभोंको वे उन सब आज्ञाओं के अनुसार बनाएं जो मैं ने तुझे दी हैं।। 
12. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 
13. तू इस्त्राएलियोंसे यह भी कहना, कि निश्चय तुम मेरे विश्रमदिनोंको मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे और तुम लोगोंके बीच यह एक चिन्ह ठहरा है, जिस से तुम यह बात जान रखो कि यहोवा हमारा पवित्र करनेहारा है। 
14. इस कारण तुम विश्रमदिन को मानना, क्योंकि वह तुम्हारे लिथे पवित्र ठहरा है; जो उसको अपवित्र करे वह निश्चय मार डाला जाए; जो कोई उस दिन में से कुछ कामकाज करे वह प्राणी अपके लोगोंके बीच से नाश किया जाए। 
15. छ: दिन तो काम काज किया जाए, पर सातवां दिन परमविश्रम का दिन और यहोवा के लिथे पवित्र है; इसलिथे जो कोई विश्रम के दिन में कुछ काम काज करे वह निश्चय मार डाला जाए। 
16. सो इस्त्राएली विश्रमदिन को माना करें, वरन पीढ़ी पीढ़ी में उसको सदा की वाचा का विषय जानकर माना करें। 
17. वह मेरे और इस्त्राएलियोंके बीच सदा एक चिन्ह रहेगा, क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश और पृय्वी को बनाया, और सातवें दिन विश्रम करके अपना जी ठण्डा किया।। 
18. जब परमेश्वर मूसा से सीनै पर्वत पर ऐसी बातें कर चुका, तब उस ने उसको अपक्की उंगली से लिखी हुई साझी देनेवाली पत्यर की दोनोंतख्तियां दी।।

Chapter 32

1. जब लोगोंने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, अब हमारे लिथे देवता बना, जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ? 
2. हारून ने उन से कहा, तुम्हारी स्त्रियोंऔर बेटे बेटियोंके कानोंमें सोने की जो बालियां है उन्हें तोड़कर उतारो, और मेरे पास ले आओ। 
3. तब सब लोगोंने उनके कानोंसे सोने की बालियोंको तोड़कर उतारा, और हारून के पास ले आए। 
4. और हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और एक बछड़ा ढालकर बनाया, और टांकी से गढ़ा; तब वे कहने लगे, कि हे इस्त्राएल तेरा परमेश्वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है वह यही है। 
5. यह देखके हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, कि कल यहोवा के लिथे पर्ब्ब होगा। 
6. और दूसरे दिन लोगोंने तड़के उठकर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे।। 
7. तब यहोवा ने मूसा से कहा, नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल ले आया है, सो बिगड़ गए हैं; 
8. और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उनको दी यी उसको फटपट छोड़कर उन्होंने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत्‌ किया, और उसके लिथे बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, कि हे इस्त्राएलियोंतुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा ले आया है वह यही है। 
9. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, मैं ने इन लोगोंको देखा, और सुन, वे हठीले हैं। 
10. अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिस से मैं उन्हें भस्म करूं; परन्तु तुझ से एक बड़ी जाति उपजाऊंगा। 
11. तब मूसा अपके परमेश्वर यहोवा को यह कहके मनाने लगा, कि हे यहोवा, तेरा कोप अपक्की प्रजा पर क्योंभड़का है, जिसे तू बड़े सामर्य्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है? 
12. मिस्री लोग यह क्योंकहने पाए, कि वह उनको बुरे अभिप्राय से, अर्यात्‌ पहाड़ोंमें घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया? तू अपके भड़के हुए कोप को शांत कर, और अपक्की प्रजा को ऐसी हानि पहुचाने से फिर जा। 
13. अपके दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर, जिन से तू ने अपक्की ही किरिया खाकर यह कहा या, कि मै तुम्हारे वंश को आकाश के तारोंके तुल्य बहुत करूंगा, और यह सारा देश जिसकी मैं ने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूंगा, कि वह उसके अधिक्कारनेी सदैव बने रहें। 
14. तब यहोवा अपक्की प्रजा की हानि करने से जो उन ने कहा या पछताया।। 
15. तब मूसा फिरकर साझी की दानोंतख्तियोंको हाथ में लिथे हुए पहाड़ से उतर गया, उन तख्तियोंके तो इधर और उधर दोनोंअलंगोंपर कुछ लिखा हुआ या। 
16. और वे तख्तियां परमेश्वर की बनाई हुई यीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ या वह परमेश्वर का लिखा हुआ या।। 
17. जब यहोशू को लोगोंके कोलाहल का शब्द सुनाई पड़ा, तब उस ने मूसा से कहा, छावनी से लड़ाई का सा शब्द सुनाई देता है। 
18. उस ने कहा, वह जो शब्द है वह न तो जीतनेवालोंका है, और न हारनेवालोंका, मुझे तो गाने का शब्द सुन पड़ता है। 
19. छावनी के पास आते ही मूसा को वह बछड़ा और नाचना देख पड़ा, तब मूसा का कोप भड़क उठा, और उस ने तख्तियोंको अपके हाथोंसे पर्वत के नीचे पटककर तोड़ डाला। 
20. तब उस ने उनके बनाए हुए बछड़े को लेकर आग में डालके फूंक दिया। और पीसकर चूर चूर कर डाला, और जल के ऊपर फेंक दिया, और इस्त्राएलियोंको उसे पिलवा दिया। 
21. तब मूसा हारून से कहने लगा, उन लोगोंने तुझ से क्या किया कि तू ने उनको इतने बड़े पाप में फंसाया? 
22. हारून ने उत्तर दिया, मेरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो उन लोगोंको जानता ही है कि वे बुराई में मन लगाए रहते हैं। 
23. और उन्होंने मुझ से कहा, कि हमारे लिथे देवता बनवा जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ? 
24. तब मैं ने उन से कहा, जिस जिसके पास सोने के गहनें हों, वे उनको तोड़कर उतार लाएं; और जब उन्होंने मुझ को दिया, मैं ने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा 
25. हारून ने उन लोगोंको ऐसा निरंकुश कर दिया या कि वे अपके विरोधियोंके बीच उपहास के योग्य हुए, 
26. उनको निरंकुश देखकर मूसा ने छावनी के निकास पर खड़े होकर कहा, जो कोई यहोवा की ओर का हो वह मेरे पास आए; तब सारे लेवीय उस के पास इकट्ठे हुए। 
27. उस ने उन से कहा, इस्त्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि अपक्की अपक्की जांघ पर तलवार लटका कर छावनी से एक निकास से दूसरे निकास तक घूम घूमकर अपके अपके भाइयों, संगियों, और पड़ोसिक्कों घात करो। 
28. मूसा के इस वचन के अनुसार लेवियोंने किया और उस दिन तीन हजार के अटकल लोग मारे गए। 
29. फिर मूसा ने कहा, आज के दिन यहोवा के लिथे अपना याजकपद का संस्कार करो, वरन अपके अपके बेटोंऔर भाइयोंके भी विरूद्ध होकर ऐसा करो जिस से वह आज तुम को आशीष दे। 
30. दूसरे दिन मूसा ने लोगोंसे कहा, तुम ने बड़ा ही पाप किया है। अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊंगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित्त कर सकूं। 
31. तब मूसा यहोवा के पास जाकर कहने लगा, कि हाथ, हाथ, उन लोगोंने सोने का देवता बनवाकर बड़ा ही पाप किया है। 
32. तौभी अब तू उनका पाप झमा कर नहीं तो अपक्की लिखी हुई पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे। 
33. यहोवा ने मूसा से कहा, जिस ने मेरे विरूद्ध पाप किया है उसी का नाम मैं अपक्की पुस्तक में से काट दूंगा। 
34. अब तो तू जाकर उन लोगोंको उस स्यान में ले चल जिसकी चर्चा मैं ने तुझ से की यी; देख मेरा दूत तेरे आगे आगे चलेगा। परन्तु जिस दिन मैं दण्ड देने लगूंगा उस दिन उनको इस पाप का भी दण्ड दूंगा। 
35. और यहोवा ने उन लोगोंपर विपत्ति डाली, क्योंकि हारून के बनाए हुए बछड़े को उन्हीं ने बनवाया या।

Chapter 33

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, तू उन लोगोंको जिन्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है संग लेकर उस देश को जा, जिसके विषय मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपय खाकर कहा या, कि मैं उसे तुम्हारे वंश को दूंगा। 
2. और मैं तेरे आगे आगे एक दूत को भेजूंगा, और कनानी, एमोरी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगोंको बरबस निकाल दूंगा। 
3. तुम लोग उस देश को जाओ जिस में दूध और मधु की धारा बहती है; परन्तु तुम हठीले हो, इस कारण मैं तुम्हारे बीच में होके न चलूंगा, ऐसा न हो कि मैं मार्ग में तुम्हारा अन्त कर डालूं। 
4. यह बुरा समाचार सुनकर वे लोग विलाप करने लगे; और कोई अपके गहने पहिने हुए न रहा। 
5. क्योंकि यहोवा ने मूसा से कह दिया या, कि इस्त्राएलियोंको मेरा यह वचन सुना, कि तुम लोग तो हठीले हो; जो मै पल भर के लिथे तुम्हारे बीच होकर चलूं, तो तुम्हारा अन्त कर डालूंगा। इसलिथे अब अपके अपके गहने अपके अंगोंसे उतार दो, कि मैं जानूं कि तुम्हारे साय क्या करना चाहिए। 
6. तब इस्त्राएली होरेब पर्वत से लेकर आगे को अपके गहने उतारे रहे।। 
7. मूसा तम्बू को छावनी से बाहर वरन दूर खड़ा कराया करता या, और उसको मिलापवाला तम्बू कहता या। और जो कोई यहोवा को ढूंढ़ता वह उस मिलापवाले तम्बू के पास जो छावनी के बाहर या निकल जाता या। 
8. और जब जब मूसा तम्बू के पास जाता, तब तब सब लोग उठकर अपके अपके डेरे के द्वार पर खड़े हो जाते, और जब तक मूसा उस तम्बू में प्रवेश न करता या तब तक उसकी ओर ताकते रहते थे। 
9. और जब मूसा उस तम्बू में प्रवेश करता या, तब बादल का खम्भा उतर के तम्बू के द्वार पर ठहर जाता या, और यहोवा मूसा से बातें करने लगता या। 
10. और सब लोग जब बादल के खम्भे को तम्बू के द्वार पर ठहरा देखते थे, तब उठकर अपके अपके डेरे के द्वार पर से दण्डवत्‌ करते थे। 
11. और यहोवा मूसा से इस प्रकार आम्हने-साम्हने बातें करता या, जिस प्रकार कोई अपके भाई से बातें करे। और मूसा तो छावनी में फिर आता या, पर यहोशू नाम एक जवान, जो नून का पुत्र और मूसा का टहलुआ या, वह तम्बू में से न निकलता या।। 
12. और मूसा ने यहोवा से कहा, सुन तू मुझ से कहता है, कि इन लोगोंको ले चल; परन्तु यह नहीं बताया कि तू मेरे संग किसको भेजेगा। तौभी तू ने कहा है, कि तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है, और तुझ पर मेरे अनुग्रह की दृष्टि है। 
13. और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे अपक्की गति समझा दे, जिस से जब मैं तेरा ज्ञान पाऊं तब तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। फिर इसकी भी सुधि कर कि यह जाति तेरी प्रजा है। 
14. यहोवा ने कहा, मैं आप चलूंगा और तुझे विश्रम दूंगा। 
15. उस ने उस से कहा, यदि तू आप न चले, तो हमें यहां से आगे न ले जा। 
16. यह कैसे जाना जाए कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर और अपक्की प्रजा पर है? क्या इस से नहीं कि तू हमारे संग संग चले, जिस से मैं और तेरी प्रजा के लोग पृय्वी भर के सब लोगोंसे अलग ठहरें? 
17. यहोवा ने मूसा से कहा, मैं यह काम भी जिसकी चर्चा तू ने की है करूंगा; कयोंकि मेरे अनुग्रह की दृष्टि तुझ पर है, और तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है। 
18. उस ने कहा मुझे अपना तेज दिखा दे। 
19. उस ने कहा, मैं तेरे सम्मुख होकर चलते हुए तुझे अपक्की सारी भलाई दिखाऊंगा, और तेरे सम्मुख यहोवा नाम का प्रचार करूंगा, और जिस पर मैं अनुग्रह करना चाहूं उसी पर अनुग्रह करूंगा, और जिस पर दया करना चांहू उसी पर दया करूंगा। 
20. फिर उस ने कहा, तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता। 
21. फिर यहोवा ने कहा, सुन, मेरे पास एक स्यान है, तू उस चट्टान पर खड़ा हो; 
22. और जब तक मेरा तेज तेरे साम्हने होके चलता रहे तब तक मै तुझे चट्टान के दरार में रखूंगा, और जब तक मैं तेरे साम्हने होकर न निकल जाऊं तब तक अपके हाथ से तुझे ढांपे रहूंगा; 
23. फिर मैं अपना हाथ उठा लूंगा, तब तू मेरी पीठ का तो दर्शन पाएगा, परन्तु मेरे मुख का दर्शन नहीं मिलेगा।।

Chapter 34

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, पहिली तख्तियोंके समान पत्यर की दो और तख्तियां गढ़ ले; तब जो वचन उन पहिली तख्तियोंपर लिखे थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, वे ही वचन मैं उन तख्तियोंपर भी लिखूंगा। 
2. और बिहान को तैयार रहना, और भोर को सीनै पर्वत पर चढ़कर उसकी चोटी पर मेरे साम्हने खड़ा होना। 
3. और तेरे संग कोई न चढ़ पाए, वरन पर्वत भर पर कोई मनुष्य कहीं दिखाई न दे; और न भेड़-बकरी और गाय-बैल भी पर्वत के आगे चरते पाएं। 
4. तब मूसा ने पहिली तख्तियोंके समान दो और तख्तियां गढ़ी; और बिहान को सवेरे उठकर अपके हाथ में पत्यर की वे दोनोंतख्तियां लेकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार पर्वत पर चढ़ गया। 
5. तब यहोवा ने बादल में उतरके उसके संग वहां खड़ा होकर यहोवा नाम का प्रचार किया। 
6. और यहोवा उसके साम्हने होकर योंप्रचार करता हुआ चला, कि यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करूणामय और सत्य, 
7. हजारोंपीढिय़ोंतब निरन्तर करूणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का झमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा, वह पितरोंके अधर्म का दण्ड उनके बेटोंवरन पोतोंऔर परपोतोंको भी देनेवाला है। 
8. तब मूसा ने फुर्ती कर पृय्वी की ओर फुककर दण्डवत्‌ की। 
9. और उस ने कहा, हे प्रभु, यदि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो प्रभु, हम लोगोंके बीच में होकर चले, थे लोग हठीले तो हैं, तौभी हमारे अधर्म और पाप को झमा कर, और हमें अपना निज भाग मानके ग्रहण कर। 
10. उस ने कहा, सुन, मैं एक वाचा बान्धता हूं। तेरे सब लोगोंके साम्हने मैं ऐसे आश्चर्य कर्म करूंगा जैसा पृय्वी पर और सब जातियोंमें कभी नहीं हुए; और वे सारे लोग जिनके बीच तू रहता है यहोवा के कार्य को देखेंगे; क्योंकि जो मैं तुम लोगोंसे करने पर हूं वह भय योग्य काम है। 
11. जो आज्ञा मैं आज तुम्हें देता हूं उसे तुम लोग मानना। देखो, मैं तुम्हारे आगे से एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगोंको निकालता हूं। 
12. इसलिथे सावधान रहना कि जिस देश में तू जानेवाला है उसके निवासिक्कों वाचा न बान्धना; कहीं ऐसा न हो कि वह तेरे लिथे फंदा ठहरे। 
13. वरन उनकी वेदियोंको गिरा देना, उनकी लाठोंको तोड़ डालना, और उनकी अशेरा नाम मूतिर्योंको काट डालना; 
14. क्योंकि तुम्हें किसी दूसरे को ईश्वर करके दण्डवत्‌ करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है, वह जल उठनेवाला ईश्वर है ही, 
15. ऐसा न हो कि तू उस देश के निवासिक्कों वाचा बान्धे, और वे अपके देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करें, और उनके लिथे बलिदान भी करें, और कोई तुझे नेवता दे और तू भी उसके बलिपशु का प्रसाद खाए, 
16. और तू उनकी बेटियोंको अपके बेटोंके लिथे लावे, और उनकी बेटियां जो आप अपके देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करती है तेरे बेटोंसे भी अपके देवताओं के पीछे होने को व्यभिचार करवाएं। 
17. तुम देवताओं की मूत्तियां ढालकर न बना लेना। 
18. अखमीरी रोटी का पर्ब्ब मानना। उस में मेरी आज्ञा के अनुसार आबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना; क्योंकि तू मिस्र से आबीब महीने में निकल आया। 
19. हर एक पहिलौठा मेरा है; और क्या बछड़ा, क्या मेम्ना, तेरे पशुओं में से जो नर पहिलौठे होंवे सब मेरे ही हैं। 
20. और गदही के पहिलौठे की सन्ती मेम्ना देकर उसको छुड़ाना, यदि तू उसे छुड़ाना न चाहे तो उसकी गर्दन तोड़ देना। परन्तु अपके सब पहिलौठे बेटोंको बदला देकर छुड़ाना। मुझे कोई छूछे हाथ अपना मुंह न दिखाए। 
21. छ: दिन तो परिश्र्म करना, परन्तु सातवें दिन विश्रम करना; वरन हल जोतने और लवने के समय में भी विश्रम करना। 
22. और तू अठवारोंका पर्ब्ब मानना जो पहिले लवे हुए गेहूं का पर्ब्ब कहलाता है, और वर्ष के अन्त में बटोरन का भी पर्ब्ब मानना। 
23. वर्ष में तीन बार तेरे सब पुरूष इस्त्राएल के परमेश्वर प्रभु यहोवा को अपके मुंह दिखाएं। 
24. मैं तो अन्यजातियोंको तेरे आगे से निकालकर तेरे सिवानोंको बढ़ाऊंगा; और जब तू अपके परमेश्वर यहोवा को अपना मुंह दिखाने के लिथे वर्ष में तीन बार आया करे, तब कोई तेरी भूमि का लालच न करेगा। 
25. मेरे बलिदान के लोहू को खमीर सहित न चढ़ाना, और न फसह के पर्ब्ब के बलिदान में से कुछ बिहान तक रहने देना। 
26. अपक्की भूमि की पहिली उपज का पहिला भाग अपके परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी के बच्चे को उसकी मां के दूध में ने सिफाना। 
27. और यहोवा ने मूसा से कहा, थे वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनोंके अनुसार मैं तेरे और इस्त्राएल के साय वाचा बान्धता हूं। 
28. मूसा तो वहां यहोवा के संग चालीस दिन और रात रहा; और तब तक न तो उस ने रोटी खाई और न पानी पिया। और उस ने उन तख्तियोंपर वाचा के वचन अर्यात्‌ दस आज्ञाएं लिख दीं।। 
29. जब मूसा साझी की दोनोंतख्तियां हाथ में लिथे हुए सीनै पर्वत से उतरा आता या तब यहोवा के साय बातें करने के कारण उसके चेहरे से किरणें निकल रही यी।, परन्तु वह यह नहीं जानता या कि उसके चेहरे से किरणें निकल रही हैं। 
30. जब हारून और सब इस्त्राएलियोंने मूसा को देखा कि उसके चेहरे से किरणें निकलती हैं, तब वे उसके पास जाने से डर गए। 
31. तब मूसा ने उनको बुलाया; और हारून मण्डली के सारे प्रधानोंसमेत उसके पास आया, और मूसा उन से बातें करने लगा। 
32. इसके बाद सब इस्त्राएली पास आए, और जितनी आज्ञाएं यहोवा ने सीनै पर्वत पर उसके साय बात करने के समय दी यीं, वे सब उस ने उन्हें बताईं। 
33. जब तक मूसा उन से बात न कर चुका तब तक अपके मुंह पर ओढ़ना डाले रहा। 
34. और जब जब मूसा भीतर यहोवा से बात करने को उसके साम्हने जाता तब तब वह उस ओढ़नी को निकलते समय तक उतारे हुए रहता या; फिर बाहर आकर जो जो आज्ञा उसे मिलती उन्हें इस्त्राएलियोंसे कह देता या। 
35. सो इस्त्राएली मूसा का चेहरा देखते थे कि उस से किरणें निकलती हैं; और जब तक वह यहोवा से बात करने को भीतर न जाता तब तक वह उस ओढ़नी को डाले रहता या।।

Chapter 35

1. मूसा ने इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली इकट्ठी करके उन से कहा, जिन कामोंके करने की आज्ञा यहोवा ने दी है वे थे हैं। 
2. छ: दिन तो काम काज किया जाए, परन्तु सातवां दिन तुम्हारे लिथे पवित्र और यहोवा के लिथे परमविश्रम का दिन ठहरे; उस में जो कोई काम काज करे वह मार डाला जाए; 
3. वरन विश्रम के दिन तुम अपके अपके घरोंमें आग तक न जलाना।। 
4. फिर मूसा ने इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली से कहा, जिस बात की आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है। 
5. तुम्हारे पास से यहोवा के लिथे भेंट ली जाए, अर्यात्‌ जितने अपक्की इच्छा से देना चाहें वे यहोवा की भेंट करके थे वस्तुएं ले आएं; अर्यात्‌ सोना, रूपा, पीतल; 
6. नीले, बैंजनी और लाल रंग का कपड़ा, सूझ्म सनी का कपड़ा; बकरी का बाल, 
7. लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ोंकी खालें, सुइसोंकी खालें; बबूल की लकड़ी, 
8. उजियाला देने के लिथे तेल, अभिषेक का तेल, और धूप के लिथे सुगन्धद्रव्य, 
9. फिर एपोद और चपरास के लिथे सुलैमानी मणि और जड़ने के लिथे मणि। 
10. और तुम में से जितनोंके ह्रृदय में बुद्धि का प्रकाश है वे सब आकर जिस जिस वस्तु की आज्ञा यहोवा ने दी है वे सब बनाएं। 
11. अर्यात्‌ तम्बू, और ओहार समेत निवास, और उसकी घुंडी, तख्ते, बेंड़े, खम्भे और कुसिर्यां; 
12. फिर डण्डोंसमेत सन्दूक, और प्रायश्चित्त का ढकना, और बीचवाला पर्दा; 
13. डण्डोंऔर सब सामान समेत मेज़, और भेंट की रोटियां; 
14. सामान और दीपकोंसमेत उजियाला देनेवाला दीवट, और उजियाला देने के लिथे तेल; 
15. डण्डोंसमेत धूपकेदी, अभिषेक का तेल, सुगन्धित धूप, और निवास के द्वार का पर्दा; 
16. पीतल की फंफरी, डण्डोंआदि सारे सामान समेत होमवेदी, पाए समेत होदी; 
17. खम्भोंऔर उनकी कुसिर्योंसमेत आंगन के पर्दे, और आंगन के द्वार के पर्दे; 
18. निवास और आंगन दोनोंके खूंटे, और डोरियां; 
19. पवित्रस्यान में सेवा टहल करने के लिथे काढ़े हुए वस्त्र, और याजक का काम करने के लिथे हारून याजक के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रोंके वस्त्र भी।। 
20. तब इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली मूसा के साम्हने से लौट गई। 
21. और जितनोंको उत्साह हुआ, और जितनोंके मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई यी, वे मिलापवाले तम्बू के काम करने और उसकी सारी सेवकाई और पवित्र वोंके बनाने के लिथे यहोवा की भेंट ले आने लगे। 
22. क्या स्त्री, क्या पुरूष, जितनोंके मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई भी वे सब जुगनू, नयुनी, मुंदरी, और कंगन आदि सोने के गहने ले आने लगे, इस भंाति जितने मनुष्य यहोवा के लिथे सोने की भेंट के देनेवाले थे वे सब उनको ले आए। 
23. और जिस जिस पुरूष के पास नीले, बैंजनी वा लाल रंग का कपड़ा वा सूझ्म सनी का कपड़ा, वा बकरी का बाल, वा लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ोंकी खालें, वा सूइसोंकी खालें यी वे उन्हें ले आए। 
24. फिर जितने चांदी, वा पीतल की भेंट के देनेवाले थे वे यहोवा के लिथे वैसी भेंट ले आए; और जिस जिसके पास सेवकाई के किसी काम के लिथे बबूल की लकड़ी यी वे उसे ले आए। 
25. और जितनी स्त्रियोंके ह्रृदय में बुद्धि का प्रकाश या वे अपके हाथोंसे सूत कात कातकर नीले, बैंजनी और लाल रंग के, और सूझ्म सनी के काते हुए सूत को ले आई। 
26. और जितनी स्त्रियोंके मन में ऐसी बुद्धि का प्रकाश या उन्हो ने बकरी के बाल भी काते। 
27. और प्रधान लोग एपोद और चपरास के लिथे सुलैमानी मणि, और जड़ने के लिथे मणि, 
28. और उजियाला देने और अभिषेक और धूप के सुगन्धद्रव्य और तेल ले आथे। 
29. जिस जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी यी उसके लिथे जो कुछ आवश्यक या, उसे वे सब पुरूष और स्त्रियां ले आई, जिनके ह्रृदय में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई यी। इस प्रकार इस्त्राएली यहोवा के लिथे अपक्की ही इच्छा से भेंट ले आए।। 
30. तब मूसा ने इस्त्राएलियोंसे कहा सुनो, यहोवा ने यहूदा के गोत्रवाले बसलेल को, जो ऊरी का पुत्र और हूर का पोता है, नाम लेकर बुलाया है। 
31. और उस ने उसको परमेश्वर के आत्मा से ऐसा परिपूर्ण किया हे कि सब प्रकार की बनावट के लिथे उसको ऐसी बुद्धि, समझ, और ज्ञान मिला है, 
32. कि वह कारीगरी की युक्तियां निकालकर सोने, चांदी, और पीतल में, 
33. और जड़ने के लिथे मणि काटने में और लकड़ी के खोदने में, वरन बुद्धि से सब भांति की निकाली हुई बनावट में काम कर सके। 
34. फिर यहोवा ने उसके मन में और दान के गोत्रवाले अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब के मन में भी शिझा देने की शक्ति दी है। 
35. इन दोनोंके ह्रृदय को यहोवा ने ऐसी बुद्धि से परिपूर्ण किया है, कि वे खोदने और गढ़ने और नीले, बैजनी और लाल रंग के कपके, और सूझ्म सनी के कपके में काढ़ने और बुनने, वरन सब प्रकार की बनावट में, और बुद्धि से काम निकालने में सब भांति के काम करें।।

Chapter 36

1. और बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमान जिनको यहोवा ने ऐसी बुद्धि और समझ दी हो, कि वे यहोवा की सारी आज्ञाओं के अनुसार पवित्रस्यान की सेवकाई के लिथे सब प्रकार का काम करना जानें, वे सब यह काम करें।। 
2. तब मूसा ने बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमानोंको जिनके ह्रृदय में यहोवा ने बुद्धि का प्रकाश दिया या, अर्यात्‌ जिस जिसको पास आकर काम करने का उत्साह हुआ या उन सभोंको बुलवाया। 
3. और इस्त्राएली जो जो भेंट पवित्रस्यान की सेवकाई के काम और उसके बनाने के लिथे ले आए थे, उन्हें उन पुरूषोंने मूसा के हाथ से ले लिया। तब भी लोग प्रति भोर को उसके पास भेंट अपक्की इच्छा से लाते रहें; 
4. और जितने बुद्धिमान पवित्रस्यान का काम करते थे वे सब अपना अपना काम छोड़कर मूसा के पास आए, 
5. और कहने लगे, जिस काम के करने की आज्ञा यहोवा ने दी है उसके लिथे जितना चाहिथे उससे अधिक वे ले आए हैं। 
6. तब मूसा ने सारी छावनी में इस आज्ञा का प्रचार करवाया, कि क्या पुरूष, क्या स्त्री, कोई पवित्रस्यान के लिथे और भेंट न लाए, इस प्रकार लोग और भेंट लाने से रोके गए। 
7. क्योंकि सब काम बनाने के लिथे जितना सामान आवश्यक या उतना वरन उससे अधिक बनाने वालोंके पास आ चुका या।। 
8. और काम करनेवाले जितने बुद्धिमान थे उन्होंने निवास के लिथे बटी हुई सूझ्म सनी के कपके के, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके के दस पटोंको काढ़े हुए करूबोंसहित बनाया। 
9. एक एक पट की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; सब पट एक ही नाप के बने। 
10. उस ने पांच पट एक दूसरे से जोड़ दिए, और फिर दूसरे पांच पट भी एक दूसरे से जोड़ दिए। 
11. और जहां थे पट जोड़े गए वहां की दोनोंछोरोंपर उस ने पीली नीली फलियां लगाईं। 
12. उस ने दोनोंछोरोंमें पचास पचास फलियां इस प्रकार लगाई कि वे आम्हने-साम्हने हुई। 
13. और उस ने सोने की पचास घुंडियां बनाई, और उनके द्वारा पटोंको एक दूसरे से ऐसा जोड़ा कि निवास मिलकर एक हो गया। 
14. फिर निवास के ऊपर के तम्बू के लिथे उस ने बकरी के बाल के ग्यारह पट बनाए। 
15. एक एक पट की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; और ग्यारहोंपट एक ही नाप के थे। 
16. इन में से उस ने पांच पट अलग और छ: पट अलग जोड़ दिए। 
17. और जहां दोनोंजोड़े गए वहां की छोरोंमें उस ने पचास पचास फलियां लगाईं। 
18. और उस ने तम्बू के जोड़ने के लिथे पीतल की पचास घुंडियां भी बनाई जिस से वह एक हो जाए। 
19. और उस ने तम्बू के लिथे लाल रंग से रंगी हुई मेंढ़ोंकी खालोंका एक ओढ़ना और उसके ऊपर के लिथे सूइसोंकी खालोंका भी एक ओढ़ना बनाया। 
20. फिर उस ने निवास के लिथे बबूल की लकड़ी के तख्तोंको खड़े रहने के लिथे बनाया। 
21. एक एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हुई। 
22. एक एक तख्ते में एक दूसरी से जोड़ी हुई दो दो चूलें बनीं, निवास के सब तख्तोंके लिथें उस ने इसी भंाति बनाईं। 
23. और उस ने निवास के लिथे तख्तोंको इस रीति से बनाया, कि दक्खिन की ओर बीस तख्ते लगे। 
24. और इन बीसोंतख्तोंके नीचे चांदी की चालीस कुसिर्यां, अर्यात्‌ एक एक तख्ते के नीचे उसकी दो चूलोंके लिथे उस ने दो कुसिर्यां बनाईं। 
25. और निवास की दूसरी अलंग, अर्यात्‌ उत्तर की ओर के लिथे भी उस ने बीस तख्ते बनाए। 
26. और इनके लिथे भी उस ने चांदी की चालीस कुसिर्यां, अर्यात्‌ एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां बनाईं। 
27. और निवास की पिछली अलंग, अर्यात्‌ पश्चिम ओर के लिथे उस ने छ: तख्ते बनाए। 
28. और पिछली अलंग में निवास के कोनोंके लिथे उस ने दो तख्ते बनाए। 
29. और वे नीचे से दो दो भाग के बने, और दोनोंभाग ऊपर से सिक्के तक उन दोनोंतख्तोंका ढब ऐसा ही बनाया। 
30. इस प्रकार आठ तख्ते हुए, और उनकी चांदी की सोलह कुसिर्यां हुईं, अर्यात्‌ एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हुईं। 
31. फिर उस ने बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनाए, अर्यात्‌ निवास की एक अलंग के तख्तोंके लिथे पांच बेंड़े, 
32. और निवास की दूसरी अलंग के तख्तोंके लिथे पांच बेंड़े, और निवास की जो अलंग पश्चिम ओर पिछले भाग में यी उसके लिथे भी पांच बेंड़े, बनाए। 
33. और उस ने बीचवाले बेंड़े को तख्तोंके मध्य में तम्बू के एक सिक्के से दूसरे सिक्के तक पहुंचने के लिथे बनाया। 
34. और तख्तोंको उस ने सोने से मढ़ा, और बेंड़ोंके घर को काम देनेवाले कड़ोंको सोने के बनाया, और बेंड़ोंको भी सोने से मढ़ा।। 
35. फिर उस ने नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का, और बटी हुई सूझ्म सनीवाले कपके का बीचवाला पर्दा बनाया; वह कढ़ाई के काम किथे हुए करूबोंके साय बना। 
36. और उस ने उसके लिथे बबूल के चार खम्भे बनाए, और उनको सोने से मढ़ा; उनकी घुंडियां सोने की बनी, और उस ने उनके लिथे चांदी की चार कुसिर्यां ढालीं। 
37. और उस ने तम्बू के द्वार के लिथे नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का, और बटी हुई सूझ्म सनी के कपके का कढ़ाई का काम किया हुआ पर्दा बनाया। 
38. और उस ने घुंडियोंसमेत उसके पांच खम्भे भी बनाए, और उनके सिरोंऔर जोड़ने की छड़ोंको सोने से मढ़ा, और उनकी पांच कुसिर्यां पीतल की बनाईं।।

Chapter 37

1. फिर बसलेल ने बबूल की लकड़ी का सन्दूक बनाया; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, चौड़ाई डेढ़ हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की यी। 
2. और उस ने उसको भीतर बाहर चोखे सोने से मढ़ा, और उसके चारोंओर सोने की बाड़ बनाई। 
3. और उसके चारोंपायोंपर लगाने को उस ने सोने के चार कड़े ढ़ाले, दो कड़े एक अलंग और दो कड़े दूसरी अलंग पर लगे। 
4. फिर उस ने बबूल के डण्डे बनाए, और उन्हें सोने से मढ़ा, 
5. और उनको सन्दूक की दोनो अलंगोंके कड़ोंमें डाला कि उनके बल सन्दूक उठाया जाए। 
6. फिर उस ने चोखे सोने के प्रायश्चित्तवाले ढकने को बनाया; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की यी। 
7. और उस ने सोना गढ़कर दो करूब प्रायश्चित्त के ढकने के दानोंसिरोंपर बनाए; 
8. एक करूब तो एक सिक्के पर, और दूसरा करूब दूसरे सिक्के पर बना; उस ने उनको प्रायश्चित्त के ढकने के साय एक ही टुकड़े के दोनोंसिरोंपर बनाया। 
9. और करूबोंके पंख ऊपर से फैले हुए बने, और उन पंखोंसे प्रायश्चित्त का ढकना ढपा हुआ बना, और उनके मुख आम्हने-साम्हने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर किए हुए बने।। 
10. फिर उस ने बबूल की लकड़ी की मेज़ को बनाया; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की यी; 
11. और उस ने उसको चोखे सोने से मढ़ा, और उस में चारोंओर सोने की एक बाड़ बनाई। 
12. और उस ने उसके लिथे चार अंगुल चौड़ी एक पटरी, और इस पटरी के लिथे चारोंओर सोने की एक बाड़ बनाई। 
13. और उस ने मेज़ के लिथे सोने के चार कड़े ढालकर उन चारोंकोनोंमें लगाया, जो उसके चारोंपायोंपर थे। 
14. वे कड़े पटरी के पास मेज़ उठाने के डण्डोंके खानोंका काम देने को बने। 
15. और उस ने मेज़ उठाने के लिथे डण्डोंको बबूल की लकड़ी के बनाया, और सोने से मढ़ा। 
16. और उस ने मेज़ पर का सामान अर्यात्‌ परात, धूपदान, कटोरे, और उंडेलने के बर्तन सब चोखे सोने के बनाए।। 
17. फिर उस ने चोखा सोना गढ़के पाए और डण्डी समेत दीवट को बनाया; उसके पुष्पकोष, गांठ, और फूल सब एक ही टुकड़े के बने। 
18. और दीवट से निकली हुई छ: डालियां बनीं; तीन डालियां तो उसकी एक अलंग से और तीन डालियां उसकी दूसरी अलंग से निकली हुई बनीं। 
19. एक एक डाली में बादाम के फूल के सरीखे तीन तीन पुष्पकोष, एक एक गांठ, और एक एक फूल बना; दीवट से निकली हुई, उन छहोंडालियोंका यही ढब हुआ।
20. और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के सामान अपक्की अपक्की गांठ और फूल समेत चार पुष्पकोष बने। 
21. और दीवट से निकली हुई छहोंडालियोंमें से दो दो डालियोंके नीचे एक एक गांठ दीवट के साय एक ही टुकड़े की बनी। 
22. गांठे और डालियां सब दीवट के साय एक ही टुकड़े की बनीं; सारा दीवट गढ़े हुए चोखे सोने का और एक ही टुकड़े का बना। 
23. और उस ने दीवट के सातोंदीपक, और गुलतराश, और गुलदान, चोखे सोने के बनाए। 
24. उस ने सारे सामान समेत दीवट को किक्कार भर सोने का बनाया।। 
25. फिर उस ने बबूल की लकड़ी की धूपकेदी भी बनाई; उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ ही यी; वह चौकोर बनी, और उसकी ऊंचाई एक हाथ की यी; वह चौकोर बनी, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की यी; और उसके सींग उसके साय बिना जोड़ के बने थे 
26. और ऊपरवाले पल्लों, और चारोंओर की अलंगों, और सींगो समेत उस ने उस वेदी को चोखे सोने से मढ़ा; और उसकी चारोंओर सोने की एक बाड़ बनाई, 
27. और उस बाड़ के नीचे उसके दोनोंपल्लोंपर उस ने सोने के दो कड़े बनाए, जो उसके उठाने के डण्डोंके खानोंका काम दें। 
28. और डण्डोंको उस ने बबूल की लकड़ी का बनाया, और सोने से मढ़ा। 
29. और उस ने अभिषेक का पवित्र तेल, और सुगन्धद्रव्य का धूप, गन्धी की रीति के अनुसार बनाया।।

Chapter 38

1. फिर उस ने बबूल की लकड़ी की होमबलि भी बनाई; उसकी लम्बाई पांच हाथ और चौड़ाई पांच हाथ की यी; इस प्रकार से वह चौकोर बनी, और ऊंचाई तीन हाथ की यी। 
2. और उस ने उसके चारोंकोनोंपर उसके चार सींग बनाए, वे उसके साय बिना जोड़ के बने; और उस ने उसको पीतल से मढ़ा। 
3. और उस ने वेदी का सारा सामान, अर्यात्‌ उसकी हांडिय़ों, फावडिय़ों, कटोरों, कांटों, और करछोंको बनाया। उसका सारा सामान उस ने पीतल का बनाया। 
4. और वेदी के लिथे उसके चारोंओर की कंगनी के तले उस ने पीतल की जाली की एक फंफरी बनाई, वह नीचे से वेदी की ऊंचाई के मध्य तक पहुंची। 
5. और उस ने पीतल की फंफरी के चारोंकोनोंके लिथे चार कड़े ढाले, जो डण्डोंके खानोंका काम दें। 
6. फिर उस ने डण्डोंको बबूल की लकड़ी का बनाया, और पीतल से मढ़ा। 
7. तब उस ने डण्डोंको वेदी की अलंगोंके कड़ोंमें वेदी के उठाने के लिथे डाल दिया। वेदी को उस ने तख्तोंसे खोखली बनाया।। 
8. और उसे ने हौदी और उसका पाया दोनोंपीतल के बनाए, यह मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करनेवाली महिलाओं के दर्पणोंके लिथे पीतल के बनाए गए।। 
9. फिर उस ने आंगन बनाया; और दक्खिन अलंग के लिथे आंगन के पर्दे बटी हुई सूझ्म सनी के कपके के थे, और सब मिलाकर सौ हाथ लम्बे थे; 
10. उनके लिथे बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस कुसिर्यां बनी; और खम्भोंकी घुंडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की बनीं। 
11. और उत्तर अलग के लिथे बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस ही कुसिर्यां बनीं, और खम्भोंकी घुंडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की बनी। 
12. और पश्चिम अलंग के लिथे सब पर्दे मिलाकर पचास हाथ के थे; उनके लिथे दस खम्भे, और दस ही उनकी कुसिर्यां यीं, और खम्भोंकी घंुडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की यीं। 
13. और पूरब अलंग में भी वह पचास हाथ के थे। 
14. आंगन के द्वार के एक ओर के लिथे पंद्रह हाथ के पर्दे बने; और उनके लिथे तीन खम्भे और तीन कुसिर्यां यी। 
15. और आंगन के द्वार की दूसरी ओर भी वैसा ही बना या; और आंगन के दरवाजे के इधर और उधर पंद्रह पंद्रह हाथ के पर्दे बने थे; और उनके लिथे तीन हीे खम्भे, और तीन ही तीन इनकी कुसिर्यां भी यीं। 
16. आंगन की चारोंओर सब पर्दे सूझ्म बटी हुई सनी के कपके के बने हुए थे। 
17. और खम्भोंकी कुसिर्यां पीतल की, और घुंडियां और छड़े चांदी की बनी, और उनके सिक्के चांदी से मढ़े गए, और आंगन के सब खम्भे चांदी के छड़ोंसे जोड़े गए थे। 
18. आंगन के द्वार के पर्दे पर बेल बूटे का काम किया हुआ या, और वह नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का; और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके के बने थे; और उसकी लम्बाई बीस हाथ की यी, और उसकी ऊंचाई आंगन की कनात की चौड़ाई के सामान पांच हाथ की बनी। 
19. और उनके लिथे चार खम्भे, और खम्भोंकी चार ही कुसिर्यां पीतल की बनीं, उनकी घुंडियां चांदी की बनीं, और उनके सिक्के चांदी से मढ़े गए, और उनकी छड़ें चांदी की बनीं। 
20. और निवास और आंगन की चारोंओर के सब खूंटे पीतल के बने थे।। 
21. साझीपत्र के निवास का सामान जो लेवियोंकी सेवकाई के लिथे बना; और जिसकी गिनती हारून याजक के पुत्र ईतामार के द्वारा मूसा के कहने से हुई यी, उसका वर्णन यह है। 
22. जिस जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उसको यहूदा के गोत्रवाले बसलेल ने, जो हूर का पोता और ऊरी का पुत्र या, बना दिया। 
23. और उसके संग दान के गोत्रवाले, अहीसामाक के पुत्र, ओहोलीआब या, जो खोदने और काढ़नेवाला और नीले, बैंजनी और लाल रंग के और सूझ्म सनी के कपके में कारचोब करनेवाला निपुण कारीगर या।। 
24. पवित्रस्यान के सारे काम में जो भेंट का सोना लगा वह उनतीस किक्कार, और पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से सात सौ तीन शेकेल या। 
25. और मण्डली के गिने हुए लोगोंकी भेंट की चांदी सौ किक्कार, और पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से सत्तरह सौ पचहत्तर शेकेल यी। 
26. अर्यात्‌ जितने बीस बरस के और उससे अधिक अवस्या के गिने गए थे, वे छ: लाख तीन हज़ार साढ़े पांच सौ पुरूष थे, और एक एक जन की ओर से पवित्रस्यान के शेकेल के अनुसार आधा शेकेल, जो एक बेका होता है मिला। 
27. और वह सौ किक्कार चांदी पवित्रस्यान और बीचवाले पर्दे दोनोंकी कुसिर्योंके ढालने में लग गई; सौ किक्कार से सौ कुसिर्यां बनीं, एक एक कुर्सी एक किक्कार की बनी। 
28. और सत्तरह सौ पचहत्तर शेकेल जो बच गए उन से खम्भोंकी चोटियां मढ़ी गईं, और उनकी छड़ें भी बनाई गई। 
29. और भेंट का पीतल सत्तर किक्कार और दो हज़ार चार सौ शेकेल या; 
30. उससे मिलापवाले तम्बू के द्वार की कुसिर्यां, और पीतल की वेदी, पीतल की फंफरी, और वेदी का सारा सामान; 
31. और आंगन के चारोंओर की कुसिर्यां, और आंगन की चारोंओर के खूंटे भी बनाए गए।।

Chapter 39

1. फिर उन्होंने नीले, बैंजनी और लाल रंग के काढ़े हुए कपके पवित्र स्यान की सेवकाई के लिथे, और हारून के लिथे भी पवित्र वस्त्र बनाए; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 
2. और उस ने एपोद को सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके का बनाया। 
3. और उन्होंने सोना पीट-पीटकर उसके पत्तर बनाए, फिर पत्तरोंको काट-काटकर तार बनाए, और तारोंको नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके में, और सूझ्म सनी के कपके में कढ़ाई की बनावट से मिला दिया। 
4. एपोद के जोड़ने को उन्होंने उसके कन्धोंपर के बन्धन बनाए, वह तो अपके दोनोंसिक्कों जोड़ा गया। 
5. और उसके कसने के लिथे जो काढ़ा हुआ पटुका उस पर बना, वह उसके साय बिना जोड़ का, और उसी की बनावट के अनुसार, अर्यात्‌ सोने और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का, और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके का बना; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 
6. और उन्होंने सुलैमानी मणि काटकर उनमें इस्त्राएल के पुत्रोंके नाम जैसा छापा खोदा जाता है वैसे ही खोदे, और सोने के खानोंमें जड़ दिए। 
7. और उस ने उनको एपोद के कन्धे के बन्धनोंपर लगाया, जिस से इस्त्राएलियोंके लिथे स्मरण कराने वाले मणि ठहरें; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 
8. और उस ने चपरास को एपोद की नाई सोने की, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके की, और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके में बेल बूटे का काम किया हुआ बनाया। 
9. चपरास तो चौकोर बनी; और उन्हो ने उसको दोहरा बनाया, और वह दोहरा होकर एक बित्ता लम्बा और एक बित्ता चौड़ा बना। 
10. और उन्होंने उस में चार पांति मणि जड़े। पहिली पांति में तो माणिक्य, पद्य्क़राग, और लालड़ी जडे गए; 
11. और दूसरी पांति में मरकत, नीलमणि, और हीरा, 
12. और तीसरी पांति में लशम, सूर्यकान्त, और नीलम; 
13. और चौयी पांति में फीरोजा, सुलैमानी मणि, और यशब जड़े; थे सब अलग अलग सोने के खानोंमें जड़े गए। 
14. और थे मणि इस्त्राएल के पुत्रोंके नाम की गिनती के अनुसार बारह थे; बारहोंगोत्रोंमें से एक एक का नाम जैसा छापा खोदा जाता है वैसा ही खोदा गया। 
15. और उन्होंने चपरास पर डोरियोंकी नाई गूंथे हुए चोखे सोने की जंजीर बनाकर लगाई; 
16. फिर उन्होंने सोने के दो खाने, और सोने की दो कडिय़ां बनाकर दोनोंकडिय़ोंको चपरास के दोनोंसिरोंपर लगाया; 
17. तब उन्होंने सोने की दोनोंगूंयी हुई जंजीरो को चपरास के सिरोंपर की दोनोंकडिय़ोंमें लगाया। 
18. और गूंयी हुई दोनोंजंजीरोंके दोनोंबाकी सिक्कों उन्होंने दोनोंखानोंमें जड़के, एपोद के साम्हने दोनोंकन्धोंके बन्धनोंपर लगाया। 
19. और उन्होंने सोने की और दो कडिय़ां बनाकर चपरास के दोनोंसिरोंपर उसकी उस कोर पर, जो एपोद की भीतरी भाग में यी, लगाईं। 
20. और उन्होंने सोने की दो और कडिय़ां भी बनाकर एपोद के दोनोंकन्धोंके बन्धनोंपर नीचे से उसके साम्हने, और जोड़ के पास, एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगाईं। 
21. तब उन्होंने चपरास को उसकी कडिय़ोंके द्वारा एपोद की कडिय़ोंमें नीले फीते से ऐसा बान्धा, कि वह एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर रहे, और चपरास एपोद से अलग न होने पाए; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 
22. फिर एपोद का बागा सम्पूर्ण नीले रंग का बनाया गया। 
23. और उसकी बनावट ऐसी हुई कि उसके बीच बखतर के छेद के समान एक छेद बना, और छेद के चारोंओर एक कोर बनी, कि वह फटने न पाए। 
24. और उन्होंने उसके नीचेवाले घेरे में नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके के अनार बनाए। 
25. और उन्होंने चोखे सोने की घंटियां भी बनाकर बागे के नीचे वाले घेरे के चारोंओर अनारोंके बीचोंबीच लगाईं; 
26. अर्यात्‌ बागे के नीचेवाले घेरे की चारोंओर एक सोने की घंटी, और एक अनार लगाया गया कि उन्हें पहिने हुए सेवा टहल करें; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 
27. फिर उन्होंने हारून, और उसके पुत्रोंके लिथे बुनी हुई सूझ्म सनी के कपके के अंगरखे, 
28. और सूझ्म सनी के कपके की पगड़ी, और सूझ्म सनी के कपके की सुन्दर टोपियां, और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके की जांघिया, 
29. और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके की और नीले, बैंजनी और लाल रंग की कारचोबी काम की हुई पगड़ी; इन सभोंको जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी वैसा ही बनाया।। 
30. फिर उन्होंने पवित्र मुकुट की पटरी चोखे सोने की बनाई; और जैसे छापे में वैसे ही उस में थे अझर खोदे गए, अर्यात्‌ यहोवा के लिथे पवित्र। 
31. और उन्होंने उस में नीला फीता लगाया, जिस से वह ऊपर पगड़ी पर रहे, जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 
32. इस प्रकार मिलापवाले तम्बू के निवास का सब काम समाप्त हुआ, और जिस जिस काम की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी, इस्त्राएलियोंने उसी के अनुसार किया।। 
33. तब वे निवास को मूसा के पास ले आए, अर्यात्‌ घंुडियां, तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुसिर्यां आदि सारे सामान समेत तम्बू; 
34. और लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ोंकी खालोंका ओढ़ना, और सूइसोंकी खालोंका ओढ़ना, और बीच का पर्दा; 
35. डण्डोंसहित साझीपत्र का सन्दूक, और प्रायश्चित्त का ढकना; 
36. सारे सामान समेत मेज़, और भेंट की रोटी; 
37. सारे सामान सहित दीवट, और उसकी सजावट के दीपक और उजियाला देने के लिथे तेल; 
38. सोने की वेदी, और अभिषेक का तेल, और सुगन्धित धूप, और तम्बू के द्वार का पर्दा; 
39. पीतल की फंफरी, डण्डों, और सारे सामान समेत पीतल की वेदी; और पाए समेत हौदी; 
40. खम्भों, और कुसिर्योंसमेत आंगन के पर्दे, और आंगन के द्वार का पर्दा, और डोरियां, और खूंटे, और मिलापवाले तम्बू के निवास की सेवकाई का सारा सामान; 
41. पवित्रस्यान में सेवा टहल करने के लिथे बेल बूटा काढ़े हुए वस्त्र, और हारून याजक के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रोंके वस्त्र जिन्हें पहिनकर उन्हें याजक का काम करना या। 
42. अर्यात्‌ जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यीं उन्हीं के अनुसार इस्त्राएलियोंने सब काम किया। 
43. तब मूसा ने सारे काम का निरीझण करके देखा, कि उन्होंने यहोवा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया है। और मूसा ने उनको आशीर्वाद दिया।।

Chapter 40

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 
2. पहिले महीने के पहिले दिन को तू मिलापवाले तम्बू के निवास को खड़ा करा देना। 
3. और उस में साझीपत्र के सन्दूक को रखकर बीचवाले पर्दे की ओट में करा देना। 
4. और मेज़ को भीतर ले जाकर जो कुछ उस पर सजाना है उसे सजवा देना; 
5. और साझीपत्र के सन्दूक के साम्हने सोने की वेदी को जो धूप के लिथे है उसे रखना, और निवास के द्वार के पर्दे को लगा देना। 
6. और मिलापवाले तम्बू के निवास के द्वार के साम्हने होमवेदी को रखना। 
7. और मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच होदी को रखके उस में जल भरना। 
8. और चारोंओर के आंगन की कनात को खड़ा करना, और उस आंगन के द्वार पर पर्दे को लटका देना। 
9. और अभिषेक का तेल लेकर निवास को और जो कुछ उस में होगा सब कुछ का अभिषेक करना, और सारे सामान समेत उसको पवित्र करना; तब वह पवित्र ठहरेगा। 
10. और सब सामान समेत होमवेदी का अभिषेक करके उसको पवित्र करना; तब वह परमपवित्र ठहरेगी। 
11. और पाए समेत हौदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्र करना। 
12. और हारून और उसके पुत्रोंको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर ले जाकर जल से नहलाना, 
13. और हारून को पवित्र वस्त्र पहिनाना, और उसका अभिषेक करके उसको पवित्र करना, कि वह मेरे लिथे याजक का काम करे। 
14. और उसके पुत्रोंको ले जाकर अंगरखे पहिनाना, 
15. और जैसे तू उनके पिता का अभिषेक करे वैसे ही उनका भी अभिषेक करना, कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें; और उनका अभिषेक उनकी पीढ़ी पीढ़ी के लिथे उनके सदा के याजकपद का चिन्ह ठहरेगा। 
16. और मूसा ने जो जो आज्ञा यहोवा ने उसको दी यी उसी के अनुसार किया।। 
17. और दूसरे बरस के पहिले महीने के पहिले दिन को निवास खड़ा किया गया। 
18. और मूसा ने निवास को खड़ा करवाया, और उसकी कुसिर्यां धर उसके तख्ते लगाके उन में बेंड़े डाले, और उसके खम्भोंको खड़ा किया; 
19. और उस ने निवास के ऊपर तम्बू को फैलाया, और तम्बू के ऊपर उस ने ओढ़ने को लगाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 
20. और उस ने साझीपत्र को लेकर सन्दूक में रखा, और सन्दूक में डण्डोंको लगाके उसके ऊपर प्रायश्चित्त के ढकने को धर दिया; 
21. और उस ने सन्दूक को निवास में पहुंचवाया, और बीचवाले पर्दे को लटकवाके साझीपत्र के सन्दूक को उसके अन्दर किया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 
22. और उस ने मिलापवाले तम्बू में निवास की उत्तर अलंग पर बीच के पर्दे से बाहर मेज़ को लगवाया, 
23. और उस पर उन ने यहोवा के सम्मुख रोटी सजाकर रखी; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 
24. और उस ने मिलापवाले तम्बू में मेज़ के साम्हने निवास की दक्खिन अलंग पर दीवट को रखा, 
25. और उस ने दीपकोंको यहोवा के सम्मुख जला दिया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 
26. और उस ने मिलापवाले तम्बू में बीच के पर्दे के साम्हने सोने की वेदी को रखा, 
27. और उस ने उस पर सुगन्धित धूप जलाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 
28. और उस ने निवास के द्वार पर पर्दे को लगाया। 
29. और मिलापवाले तम्बू के निवास के द्वार पर होमबलि और अन्नबलि को चढ़ाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 
30. और उस ने मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच हौदी को रखकर उस में धोने के लिथे जल डाला, 
31. और मूसा और हारून और उसके पुत्रोंने उस में अपके अपके हाथ पांव धोए; 
32. और जब जब वे मिलापवाले तम्बू में वा वेदी के पास जाते थे तब तब वे हाथ पांव धोते थे; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 
33. और उस ने निवास की चारोंओर और वेदी के आसपास आंगन की कनात को खड़ा करवाया, और आंगन के द्वार के पर्दे को लटका दिया। इस प्रकार मूसा ने सब काम को पूरा कर समाप्त किया।। 
34. तब बादल मिलापवाले तम्बू पर छा गया, और यहोवा का तेज निवासस्यान में भर गया। 
35. और बादल जो मिलापवाले तम्बू पर ठहर गया, और यहोवा का तेज जो निवासस्यान में भर गया, इस कारण मूसा उस मे प्रवेश न कर सका। 
36. और इस्त्राएलियोंकी सारी यात्रा में ऐसा होता या, कि जब जब वह बादल निवास के ऊपर उठ जाता तब तब वे कूच करते थे। 
37. और यदि वह न उठता, तो जिस दिन तक वह न उठता या उस दिन तक वे कूच नहीं करते थे। 

38. इस्त्राएल के घराने की सारी यात्रा में दिन को तो यहोवा का बादल निवास पर, और रात को उसी बादल में आग उन सभोंको दिखाई दिया करती यी।।
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