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हबक्कूक (Habakkuk)
Chapter 1
1. भारी वचन जिसको हबक्कूक नबी ने दर्शन में पाया।।
2. हे यहोवा मैं कब तक तेरी दोहाई देता रहूंगा, और तू न सुनेगा? मैं कब तक तेरे सम्मुख “उपद्रव”, “उपद्रव” चिल्लाता रहूंगा? क्या तू उद्धार नहीं करेगा?
3. तू मुझे अनर्य काम क्योंदिखाता है? और क्या कारण है कि तू उत्पात को देखता ही रहता है? मेरे साम्हने लूट-पाट और उपद्रव होते रहते हैं; और फगड़ा हुआ करता है और वादविवाद बढ़ता जाता है।
4. इसलिथे व्यवस्या ढीली हो गई और न्याय कभी नहीं प्रगट होता। दुष्ट लोग धर्मी को घेर लेते हैं; सो न्याय का खून हो रहा है।।
5. अन्यजातियोंकी ओर चित्त लगाकर देखो, और बहुत ही चकित हो। क्योंकि मैं तुम्हारे ही दिनोंमें ऐसा काम करने पर हूं कि जब वह तुम को बताया जाए तो तुम उसकी प्रतीति न करोगे।
6. देखो, मैं कसदियोंको उभारने पर हूं, वे क्रूर और उतावली करनेवाली जाति हैं, जो पराए वासस्यानोंके अधिक्कारनेी होने के लिथे पृय्वी भर में फैल गए हैं।
7. वे भयानक और डरावने हैं, वे आप ही अपके न्याय की बड़ाई और प्रशंसा का कारण हैं।
8. उनके घोड़े चीतोंसे भी अधिक वेग चलनेवाले हैं, और सांफ को आहेर करनेवाले हुंडारोंसे भी अधिक क्रूर हैं; उनके सवार दूर दूर कूदते-फांदते आते हैं। हां, वे दूर से चले आते हैं; और आहेर पर फपटनेवाले उकाब की नाई फपट्टा मारते हैं।
9. वे सब के सब उपद्रव करने के लिथे आते हैं; साम्हने की ओर मुख किए हुए वे सीधे बढ़े चले जाते हैं, और बंधुओं को बालू के किनकोंके समान बटोरते हैं।
10. राजाओं को वे ठट्ठोंमें उड़ाते और हाकिमोंका उपहास करते हैं; वे सब दृढ़ गढ़ोंको तुच्छ जानते हैं, क्योंकि वे दमदमा बान्धकर उनको जीत लेते हैं।
11. तब वे वायु की नाई चलते और मर्यादा छोड़कर दोषी ठहरते हैं, क्योंकि उनका बल ही उनका देवता है।।
12. हे मेरे प्रभु यहोवा, हे मेरे पवित्र परमेश्वर, क्या तू अनादि काल से नहीं है? इस कारण हम लोग नहीं मरने के। हे यहोवा, तू ने उनको न्याय करने के लिथे ठहराया है; हे चट्टान, तू ने उलाहना देने के लिथे उनको बैठाया है।
13. तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता; फिर तू विश्वासघातियोंको क्योंदेखता रहता, और जब दुष्ट निर्दोष को निगल जाता है, तब तू क्योंचुप रहता है?
14. तू क्योंमनुष्योंको समुद्र की मछलियोंके समान और उन रेंगनेवाले जन्तुओं के समान बनाता है जिन पर कोई शासन करनेवाला नहीं है।
15. वह उन सब मनुष्योंको बन्सी से पकड़कर उठा लेता और जाल में घसीटता और महाजाल में फंसा लेता है; इस कारण वह आनन्दित और मगन है।
16. इसीलिथे वह अपके जाल के साम्हने बलि चढ़ाता और अपके महाजाल के आगे धूप जलाता है; क्योंकि इन्हीं के द्वारा उसका भाग पुष्ट होता, और उसका भोजन चिकना होता है।
17. परन्तु क्या वह जाल को खाली करने और जाति जाति के लोगोंको लगातार निर्दयता से घात करने से हाथ न रोकेगा?
Chapter 2
1. मैं अपके पहरे पर खड़ा रहूंगा, और गुम्मट पर चढ़कर ठहरा रहूंगा, और ताकता रहूंगा कि मुझ से वह क्या कहेगा? और मैं अपके दिए हुए उलाहने के विषय में उत्तर दूं?
2. यहोवा ने मुझ से कहा, दर्शन की बातें लिख दे; वरन पटियाओं पर साफ साफ लिख दे कि दौड़ते हुए भी वे सहज से पक्की जाएं।
3. क्योंकि इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होनेवाली है, वरन इसके पूरे होने के समय वेग से आता है; इस में धोखा न होगा। चाहे इस में विलम्ब भी हो, तौभी उसकी बाट जाहते रहना; क्योंकि वह निश्चय पूरी होगी और उस में देन न होगी।
4. देख, उसका मन फूला हुआ है, उसका मन सीधा नहीं है; परन्तु धर्मी अपके विश्वास के द्वारा जीवित रहेगा।
5. दाखमधु से धोखा होता है; अहंकारी पुरूष घर में नहीं रहता, और उसकी लालसा अधोलोक के समान पूरी नहीं होती, और मृत्यु की नाईं उसका पेट नहीं भरता। वह सब जातियोंको अपके पास खींच लेता, और सब देशोंके लोगोंको अपके पास इकट्ठे कर रखता है।।
6. क्या वे सब उसका दृष्टान्त चलाकर, और उस पर ताना मारकर न कहेंगे कि हाथ उस पर जो पराया धल छीन छीनकर धनवान हो जाता है? कब तक? हाथ उस पर जो अपना घर बन्धक की वस्तुओं से भर लेता है।
7. जो तुझ से कर्ज लेते हैं, क्या वे लोग अचानक न उठेंगे? और क्या वे न जागेंगे जो तुझ को संकट में डालेंगे?
8. और क्या तू उन से लूटा न जाएगा? तू ने बहुत सी जातियोंको लूट लिया है, सो सब बचे हुए लोग तुझे भी लूट लेंगे। इसका कारण मनुष्योंकी हत्या, और वह अपद्रव भी जो तू ने इस देश और राजधानी और इसके सब रहनेवालोंपर किया है।।
9. हाथ उस पर, जो अपके धर के लिथे अन्याय के लाभ का लोभी है ताकि वह अपना घोंसला ऊंचे स्यान में बनाकर विपत्ति से बचे।
10. तू ने बहुत सी जातियोंको काटकर अपके घर लिथे लज्जा की युक्ति बान्धी, और अपके ही प्राण का दोषी ठहरा है।
11. क्योंकि घर की भीत का पत्यर दोहाई देता है, और उसके छत की कड़ी उनके स्वर में स्वर मिलाकर उत्तर देती हैं।
12. हाथ उस पर जो हत्या करके नगर को बनाता, और कुटिलता करके गढ़ को दृढ़ करता है।
13. देखो, क्या सेनाओं के यहोवा की ओर से यह नहीं होता कि देश देश के लोग परिश्र्म तो करते हैं परन्तु वे आग का कौर होते हैं; और राज्य-राज्य के लोगोंका परिश्र्म व्यर्य ही ठहरता है?
14. क्योंकि पृय्वी यहोवा की महिमा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसे समुद्र जल से भर जाता है।।
15. हाथ उस पर, जो अपके पड़ोसी को मदिरा पिलाता, और उस में विष मिलाकर उसको मतवाला कर देता है कि उसको नंगा देखे।
16. तू महिमा की सन्ती अपमान ही से भर गया है। तू भी पी, और अपके को खतनाहीन प्रगट कर! जो कटोरा यहोवा के दहिने हाथ में रहता है, सो घूमकर तेरी ओर भी जाएगा, और तेरा विभव तेरी छांट से अशुद्ध हो जाएगा।
17. क्योंकि लबानोन में तेरा किया हुआ उपद्रव और वहां के पशुओं पर तेरा किया हुआ उत्पात, जिन से वे भयभीत हो गए थे, तुझी पर आ पकेंगे। यह मनुष्योंकी हत्या और उस उपद्रव के कारण होगा, जो इस देश और राजधानी और इसके सब रहनेवालोंपर किया गया है।।
18. खुदी हुई मूरत में क्या लाभ देखकर बनानेवाले ने उसे खोदा है? फिर फूठ सिखानेवाली और ढली हुई मूरत में क्या लाभ देखकर ढालनेवाले ने उस पर इतना भरोसा रखा है कि न बोलनेवाली और निकम्मी मूरत बनाए?
19. हाथ उस पर जो काठ से कहता है, जाग, वा अबोल पत्यर से, उठ! क्या वह सिखाएगा? देखो, वह सोने चान्दी में मढ़ा हुआ है, परन्तु उस में आत्मा नहीं है।।
20. परन्तु यहोवा अपके पवित्र मन्दिर में है; समस्त पृय्वी उसके साम्हने शान्त रहे।।
Chapter 3
1. श्ग्ियोनीत की रीति पर हबक्कूक नबी की प्रार्यना।।
2. हे यहोवा, मैं तेरी कीत्तिर् सुनकर डर गया। हे यहोवा, वर्तमान युग में अपके काम को पूरा कर; इसी युग में तू उसको प्रकट कर; क्रोध करते हुए भी दया करना स्मरण कर।।
3. ईश्वर तेमान से आया, पवित्र ईश्वर परान पर्वत से आ रहा है। उसका तेज आकाश पर छाया हुआ है, और पृय्वी उसकी स्तुति से परिपूर्ण हो गई है।।
4. उसकी ज्योति सूर्य के तुल्य यी, उसके हाथ से किरणे निकल रही यीं; और इन में उसका सामर्य छिपा हुआ या।
5. उसके आगे आगे मरी फैलती गई, और उसके पांवोंसे महाज्वर निकलता गया।
6. वह खड़ा होकर पृय्वी को नाप रहा या; उस ने देखा और जाति जाति के लोग घबरा गए; तब सनातन पर्वत चकनाचूर हो गए, और सनातन की पहाडिय़ां फुक गई उसकी गति अनन्त काल से एक सी है।
7. मुझे कूशान के तम्बू में रहनेवाले दु:ख से दबे दिखाई पके; और मिद्यान देश के डेरे डगमगा गए।
8. हे यहोवा, क्या तू नदियोंपर रिसियाया या? क्या तेरा क्रोध नदियोंपर भड़का या, अयवा क्या तेरी जलजलाहट समुद्र पर भड़की यी, जब तू अपके घोड़ोंपर और उद्धार करनेवाले विजयी रयोंपर चढ़कर आ रहा या?
9. तेरा धनुष खोल में से निकल गया, तेरे दण्ड का वचन शाप के साय हुआ या। तू ने धरती को नदियोंसे चीर डाला।
10. पहाड़ तुझे देखकर कांप उठे; आंधी और जलप्रलय निकल गए; गहिरा सागर बोल उठा और अपके हाथोंअर्यात् लहरोंको ऊपर उठाया।
11. तेरे उड़नेवाले तीरोंके चलने की जयोति से, और तेरे चमकीले भाले की फलक के प्रकाश से सूर्य और चन्द्रमा अपके अपके स्यान पर ठहर गए।।
12. तू क्रोध में आकर पृय्वी पर चल निकला, तू ने जाति जाति को क्रोध से नाश किया।
13. तू अपक्की प्रजा के उद्धार के लिथे निकला, हां, अपके अभिषिक्त के संग होकर उद्धार के लिथे निकला। तू ने दुष्ट के घर के सिर को घायल करके उसे गल से नेव तक नंगा कर दिया।
14. तू ने उसके योद्धाओं के सिक्कों उसी की बर्छी से छेदा है, वे मुझ को तितर-बितर करने के लिथे बवंडर की आंधी की नाईं आए, और दीन लोगोंको घात लगाकर मार डालने की आशा से आनन्दित थे।
15. तू अपके घोड़ोंपर सवार होकर समुद्र से हां, जलप्रलय से पार हो गया।।
16. यह सब सुनते ही मेरा कलेजा कांप उठा, मेरे ओंठ यरयराने लगे; मेरी हड्डियां सड़ने लगीं, और मैं खड़े खड़े कांपके लगा। मैं शान्ति से उस दिन की बाट जोहता रहूंगा जब दल बांधकर प्रजा चढ़ाई करे।।
17. क्योंकि चाहे अंजीर के वृझोंमें फूल न लगें, और न दाखलताओं में फल लगें, जलपाई के वृझ से केवल धोखा पाया जाए और खेतोंमें अन्न न उपके, भेड़शालाओं में भेड़-बकरियां न रहें, और न यानोंमें गाय बैल हों,
18. तौभी मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मगन रहूंगा, और अपके उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के द्वारा अति प्रसन्न रहूंगा।।
19. यहोवा परमेश्वर मेरा बलमूल है, वह मेरे पांव हरिणोंके समान बना देता है, वह मुझ को मेरे ऊंचे स्यानोंपर चलाता है।।
Chapter 1
1. भारी वचन जिसको हबक्कूक नबी ने दर्शन में पाया।।
2. हे यहोवा मैं कब तक तेरी दोहाई देता रहूंगा, और तू न सुनेगा? मैं कब तक तेरे सम्मुख “उपद्रव”, “उपद्रव” चिल्लाता रहूंगा? क्या तू उद्धार नहीं करेगा?
3. तू मुझे अनर्य काम क्योंदिखाता है? और क्या कारण है कि तू उत्पात को देखता ही रहता है? मेरे साम्हने लूट-पाट और उपद्रव होते रहते हैं; और फगड़ा हुआ करता है और वादविवाद बढ़ता जाता है।
4. इसलिथे व्यवस्या ढीली हो गई और न्याय कभी नहीं प्रगट होता। दुष्ट लोग धर्मी को घेर लेते हैं; सो न्याय का खून हो रहा है।।
5. अन्यजातियोंकी ओर चित्त लगाकर देखो, और बहुत ही चकित हो। क्योंकि मैं तुम्हारे ही दिनोंमें ऐसा काम करने पर हूं कि जब वह तुम को बताया जाए तो तुम उसकी प्रतीति न करोगे।
6. देखो, मैं कसदियोंको उभारने पर हूं, वे क्रूर और उतावली करनेवाली जाति हैं, जो पराए वासस्यानोंके अधिक्कारनेी होने के लिथे पृय्वी भर में फैल गए हैं।
7. वे भयानक और डरावने हैं, वे आप ही अपके न्याय की बड़ाई और प्रशंसा का कारण हैं।
8. उनके घोड़े चीतोंसे भी अधिक वेग चलनेवाले हैं, और सांफ को आहेर करनेवाले हुंडारोंसे भी अधिक क्रूर हैं; उनके सवार दूर दूर कूदते-फांदते आते हैं। हां, वे दूर से चले आते हैं; और आहेर पर फपटनेवाले उकाब की नाई फपट्टा मारते हैं।
9. वे सब के सब उपद्रव करने के लिथे आते हैं; साम्हने की ओर मुख किए हुए वे सीधे बढ़े चले जाते हैं, और बंधुओं को बालू के किनकोंके समान बटोरते हैं।
10. राजाओं को वे ठट्ठोंमें उड़ाते और हाकिमोंका उपहास करते हैं; वे सब दृढ़ गढ़ोंको तुच्छ जानते हैं, क्योंकि वे दमदमा बान्धकर उनको जीत लेते हैं।
11. तब वे वायु की नाई चलते और मर्यादा छोड़कर दोषी ठहरते हैं, क्योंकि उनका बल ही उनका देवता है।।
12. हे मेरे प्रभु यहोवा, हे मेरे पवित्र परमेश्वर, क्या तू अनादि काल से नहीं है? इस कारण हम लोग नहीं मरने के। हे यहोवा, तू ने उनको न्याय करने के लिथे ठहराया है; हे चट्टान, तू ने उलाहना देने के लिथे उनको बैठाया है।
13. तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता; फिर तू विश्वासघातियोंको क्योंदेखता रहता, और जब दुष्ट निर्दोष को निगल जाता है, तब तू क्योंचुप रहता है?
14. तू क्योंमनुष्योंको समुद्र की मछलियोंके समान और उन रेंगनेवाले जन्तुओं के समान बनाता है जिन पर कोई शासन करनेवाला नहीं है।
15. वह उन सब मनुष्योंको बन्सी से पकड़कर उठा लेता और जाल में घसीटता और महाजाल में फंसा लेता है; इस कारण वह आनन्दित और मगन है।
16. इसीलिथे वह अपके जाल के साम्हने बलि चढ़ाता और अपके महाजाल के आगे धूप जलाता है; क्योंकि इन्हीं के द्वारा उसका भाग पुष्ट होता, और उसका भोजन चिकना होता है।
17. परन्तु क्या वह जाल को खाली करने और जाति जाति के लोगोंको लगातार निर्दयता से घात करने से हाथ न रोकेगा?
Chapter 2
1. मैं अपके पहरे पर खड़ा रहूंगा, और गुम्मट पर चढ़कर ठहरा रहूंगा, और ताकता रहूंगा कि मुझ से वह क्या कहेगा? और मैं अपके दिए हुए उलाहने के विषय में उत्तर दूं?
2. यहोवा ने मुझ से कहा, दर्शन की बातें लिख दे; वरन पटियाओं पर साफ साफ लिख दे कि दौड़ते हुए भी वे सहज से पक्की जाएं।
3. क्योंकि इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होनेवाली है, वरन इसके पूरे होने के समय वेग से आता है; इस में धोखा न होगा। चाहे इस में विलम्ब भी हो, तौभी उसकी बाट जाहते रहना; क्योंकि वह निश्चय पूरी होगी और उस में देन न होगी।
4. देख, उसका मन फूला हुआ है, उसका मन सीधा नहीं है; परन्तु धर्मी अपके विश्वास के द्वारा जीवित रहेगा।
5. दाखमधु से धोखा होता है; अहंकारी पुरूष घर में नहीं रहता, और उसकी लालसा अधोलोक के समान पूरी नहीं होती, और मृत्यु की नाईं उसका पेट नहीं भरता। वह सब जातियोंको अपके पास खींच लेता, और सब देशोंके लोगोंको अपके पास इकट्ठे कर रखता है।।
6. क्या वे सब उसका दृष्टान्त चलाकर, और उस पर ताना मारकर न कहेंगे कि हाथ उस पर जो पराया धल छीन छीनकर धनवान हो जाता है? कब तक? हाथ उस पर जो अपना घर बन्धक की वस्तुओं से भर लेता है।
7. जो तुझ से कर्ज लेते हैं, क्या वे लोग अचानक न उठेंगे? और क्या वे न जागेंगे जो तुझ को संकट में डालेंगे?
8. और क्या तू उन से लूटा न जाएगा? तू ने बहुत सी जातियोंको लूट लिया है, सो सब बचे हुए लोग तुझे भी लूट लेंगे। इसका कारण मनुष्योंकी हत्या, और वह अपद्रव भी जो तू ने इस देश और राजधानी और इसके सब रहनेवालोंपर किया है।।
9. हाथ उस पर, जो अपके धर के लिथे अन्याय के लाभ का लोभी है ताकि वह अपना घोंसला ऊंचे स्यान में बनाकर विपत्ति से बचे।
10. तू ने बहुत सी जातियोंको काटकर अपके घर लिथे लज्जा की युक्ति बान्धी, और अपके ही प्राण का दोषी ठहरा है।
11. क्योंकि घर की भीत का पत्यर दोहाई देता है, और उसके छत की कड़ी उनके स्वर में स्वर मिलाकर उत्तर देती हैं।
12. हाथ उस पर जो हत्या करके नगर को बनाता, और कुटिलता करके गढ़ को दृढ़ करता है।
13. देखो, क्या सेनाओं के यहोवा की ओर से यह नहीं होता कि देश देश के लोग परिश्र्म तो करते हैं परन्तु वे आग का कौर होते हैं; और राज्य-राज्य के लोगोंका परिश्र्म व्यर्य ही ठहरता है?
14. क्योंकि पृय्वी यहोवा की महिमा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसे समुद्र जल से भर जाता है।।
15. हाथ उस पर, जो अपके पड़ोसी को मदिरा पिलाता, और उस में विष मिलाकर उसको मतवाला कर देता है कि उसको नंगा देखे।
16. तू महिमा की सन्ती अपमान ही से भर गया है। तू भी पी, और अपके को खतनाहीन प्रगट कर! जो कटोरा यहोवा के दहिने हाथ में रहता है, सो घूमकर तेरी ओर भी जाएगा, और तेरा विभव तेरी छांट से अशुद्ध हो जाएगा।
17. क्योंकि लबानोन में तेरा किया हुआ उपद्रव और वहां के पशुओं पर तेरा किया हुआ उत्पात, जिन से वे भयभीत हो गए थे, तुझी पर आ पकेंगे। यह मनुष्योंकी हत्या और उस उपद्रव के कारण होगा, जो इस देश और राजधानी और इसके सब रहनेवालोंपर किया गया है।।
18. खुदी हुई मूरत में क्या लाभ देखकर बनानेवाले ने उसे खोदा है? फिर फूठ सिखानेवाली और ढली हुई मूरत में क्या लाभ देखकर ढालनेवाले ने उस पर इतना भरोसा रखा है कि न बोलनेवाली और निकम्मी मूरत बनाए?
19. हाथ उस पर जो काठ से कहता है, जाग, वा अबोल पत्यर से, उठ! क्या वह सिखाएगा? देखो, वह सोने चान्दी में मढ़ा हुआ है, परन्तु उस में आत्मा नहीं है।।
20. परन्तु यहोवा अपके पवित्र मन्दिर में है; समस्त पृय्वी उसके साम्हने शान्त रहे।।
Chapter 3
1. श्ग्ियोनीत की रीति पर हबक्कूक नबी की प्रार्यना।।
2. हे यहोवा, मैं तेरी कीत्तिर् सुनकर डर गया। हे यहोवा, वर्तमान युग में अपके काम को पूरा कर; इसी युग में तू उसको प्रकट कर; क्रोध करते हुए भी दया करना स्मरण कर।।
3. ईश्वर तेमान से आया, पवित्र ईश्वर परान पर्वत से आ रहा है। उसका तेज आकाश पर छाया हुआ है, और पृय्वी उसकी स्तुति से परिपूर्ण हो गई है।।
4. उसकी ज्योति सूर्य के तुल्य यी, उसके हाथ से किरणे निकल रही यीं; और इन में उसका सामर्य छिपा हुआ या।
5. उसके आगे आगे मरी फैलती गई, और उसके पांवोंसे महाज्वर निकलता गया।
6. वह खड़ा होकर पृय्वी को नाप रहा या; उस ने देखा और जाति जाति के लोग घबरा गए; तब सनातन पर्वत चकनाचूर हो गए, और सनातन की पहाडिय़ां फुक गई उसकी गति अनन्त काल से एक सी है।
7. मुझे कूशान के तम्बू में रहनेवाले दु:ख से दबे दिखाई पके; और मिद्यान देश के डेरे डगमगा गए।
8. हे यहोवा, क्या तू नदियोंपर रिसियाया या? क्या तेरा क्रोध नदियोंपर भड़का या, अयवा क्या तेरी जलजलाहट समुद्र पर भड़की यी, जब तू अपके घोड़ोंपर और उद्धार करनेवाले विजयी रयोंपर चढ़कर आ रहा या?
9. तेरा धनुष खोल में से निकल गया, तेरे दण्ड का वचन शाप के साय हुआ या। तू ने धरती को नदियोंसे चीर डाला।
10. पहाड़ तुझे देखकर कांप उठे; आंधी और जलप्रलय निकल गए; गहिरा सागर बोल उठा और अपके हाथोंअर्यात् लहरोंको ऊपर उठाया।
11. तेरे उड़नेवाले तीरोंके चलने की जयोति से, और तेरे चमकीले भाले की फलक के प्रकाश से सूर्य और चन्द्रमा अपके अपके स्यान पर ठहर गए।।
12. तू क्रोध में आकर पृय्वी पर चल निकला, तू ने जाति जाति को क्रोध से नाश किया।
13. तू अपक्की प्रजा के उद्धार के लिथे निकला, हां, अपके अभिषिक्त के संग होकर उद्धार के लिथे निकला। तू ने दुष्ट के घर के सिर को घायल करके उसे गल से नेव तक नंगा कर दिया।
14. तू ने उसके योद्धाओं के सिक्कों उसी की बर्छी से छेदा है, वे मुझ को तितर-बितर करने के लिथे बवंडर की आंधी की नाईं आए, और दीन लोगोंको घात लगाकर मार डालने की आशा से आनन्दित थे।
15. तू अपके घोड़ोंपर सवार होकर समुद्र से हां, जलप्रलय से पार हो गया।।
16. यह सब सुनते ही मेरा कलेजा कांप उठा, मेरे ओंठ यरयराने लगे; मेरी हड्डियां सड़ने लगीं, और मैं खड़े खड़े कांपके लगा। मैं शान्ति से उस दिन की बाट जोहता रहूंगा जब दल बांधकर प्रजा चढ़ाई करे।।
17. क्योंकि चाहे अंजीर के वृझोंमें फूल न लगें, और न दाखलताओं में फल लगें, जलपाई के वृझ से केवल धोखा पाया जाए और खेतोंमें अन्न न उपके, भेड़शालाओं में भेड़-बकरियां न रहें, और न यानोंमें गाय बैल हों,
18. तौभी मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मगन रहूंगा, और अपके उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के द्वारा अति प्रसन्न रहूंगा।।
19. यहोवा परमेश्वर मेरा बलमूल है, वह मेरे पांव हरिणोंके समान बना देता है, वह मुझ को मेरे ऊंचे स्यानोंपर चलाता है।।
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