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नहेमायाह (Nehemiah)
Chapter 1
1. हकल्याह के पुत्र नहेमायाह के वचन। बीसवें वर्ष के किसलवे नाम महीने में, जब मैं शूशन नाम राजगढ़ में रहता या,
2. तब हनानी नाम मेरा एक भाई और यहूदा से आए हुए कई एक पुरुष आए; तब मैं ने उन से उन बचे हुए यहूदियोंके विषय जो बन्धुआई से छूट गए थे, और यरूशलेम के विष्य में पूछा।
3. उन्होंने मुझ से कहा, जो बचे हुए लोग बन्धुआई से छूटकर उस प्रान्त में रहते हैं, वे बड़ी दुर्दशा में पके हैं, और उनकी निन्दा होती है; क्योंकि यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई, और उसके फाटक जले हुए हैं।
4. थे बातें सुनते ही मैं बैठकर रोने लगा और कितने दिन तक विलाप करता; और स्वर्ग के परमेश्वर के सम्मुख उपवास करता और यह कहकर प्रार्यना करता रहा।
5. हे स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा, हे महान और भययोग्य ईश्वर ! तू जो अपके प्रेम रखनेवाले और आज्ञा माननेवाले के विष्य अपक्की वाचा पालता और उन पर करुणा करता है;
6. तू कान लगाए और आंखें खोले रह, कि जो प्रार्यना मैं तेरा दास इस समय तेरे दास इस्राएलियोंके लिथे दिन रात करता रहता हूँ, उसे तू सुन ले। मैं इस्राएलियोंके पापोंको जो हम लोगोंने तेरे विरुद्ध किए हैं, मान लेता हूँ। मैं और मेरे पिता के घराने दोनोंने पाप किया है।
7. हम ने तेरे साम्हने बहुत बुराई की है, और जो आज्ञाएं, विधियां और नियम तू ने अपके दास मूसा को दिए थे, उनको हम ने नहीं माना।
8. उस वचन की सुधि ले, जो तू ने अपके दास मूसा से कहा या, कि यदि तुम लोग विश्वासघात करो, तो मैं तुम को देश देश के लोगोंमें तितर बितर करूंगा।
9. परन्तु यदि तुम मेरी ओर फिरो, और मेरी आज्ञाएं मानो, और उन पर चलो, तो चाहे तुम में से निकाले हुए लोग आकाश की छोर में भी हों, तौभी मैं उनको वहां से इकट्ठा करके उस स्यान में पहुंचाऊंगा, जिसे मैं ने अपके नाम के निवास के लिथे चुन लिया है।
10. अब वे तेरे दास और तेरी प्रजा के लोग हैं जिनको तू ने अपक्की बड़ी सामर्य और बलवन्त हाथ के द्वारा छुड़ा लिया है।
11. हे प्रभु बिनती यह है, कि तू अपके दास की प्रार्यना पर, और अपके उन दासोंकी प्रार्यना पर, जो तेरे नाम का भय मानना चाहते हैं, कान लगा, और आज अपके दास का काम सुफल कर, और उस पुरुष को उस पर दयालु कर। (मैं तो राजा का पियाऊ या।)
Chapter 2
1. अर्तझत्र राजा के बीसवें वर्ष के नीसान नाम महीने में, जब उसके साम्हने दाखमधु या, तब मैं ने दाखमधु उठाकर राजा को दिया। इस से पहिले मैं उसके साम्हने कभी उदास न हुआ या।
2. तब राजा ने मुझ से पूछा, तू तो रेगी नहीं है, फिर तेरा मुंह क्योंउतरा है? यह तो मन ही की उदासी होगी।
3. तब मैं अत्यन्त डर गया। और राजा से कहा, राजा सदा जीवित रहे ! जब वह नगर जिस में मेरे पुरखाओं की कबरें हैं, उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं, तो मेरा मुंह क्योंन उतरे?
4. राजा ने मुझ से पूछा, फिर तू क्या मांगता है? तब मैं ने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्यना करके, राजा से कहा;
5. यदि राजा को भाए, और तू अपके दास से प्रसन्न हो, तो मुझे यहूदा और मेरे पुरखाओं की कबरोंके नगर को भेज, ताकि मैं उसे बनाऊं।
6. तब राजा ने जिसके पास रानी भी बैठी यी, मुझ से पूछा, तू कितने दिन तक यात्रा में रहेगा? और कब लैटेगा? सो राजा मुझे भेजने को प्रसन्न हुआ; और मैं ने उसके लिथे एक समय नियुक्त किया।
7. फिर मैं ने राजा से कहा, यदि राजा को भाए, तो महानद के पार के अधिपतियोंके लिथे इस आशय की चिट्ठियां मुझे दी जाएं कि जब तक मैं यहूदा को न महुंचूं, तब तक वे मुझे अपके अपके देश में से होकर जाने दें।
8. और सरकारी जंगल के रखवाले आसाप के लिथे भी इस आशय की चिट्ठी मुझे दी जाए ताकि वह मुझे भवन से लगे हुए राजगढ़ की कडिय़ोंके लिथे, और शहरपनाह के, और उस घर के लिथे, जिस में मैं जाकर रहूंगा, लकड़ी दे। मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर यी, इसलिथे राजा ने यह बिनती ग्रहण किया।
9. तब मैं ने महानद के पार के अधिपतियोंके पास जाकर उन्हें राजा की चिट्ठियां दीं। राजा ने मेरे संग सेनापति और सवार भी भेजे थे।
10. यह सुनकर कि एक मनुष्य इस्राएलियोंके कल्याण का उपाय करने को आया है, होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नाम कर्मचारी जो अम्मोनी या, उन दोनोंको बहुत बुरा लगा।
11. जब मैं यरूशलेम पहुंच गया, तब वहां तीन दिन रहा।
12. तब मैं योड़े पुरुषोंको लेकर रात को उठा; मैं ने किसी को नहीं बताया कि मेरे परमेश्वर ने यरूशलेम के हित के लिथे मेरे मन में क्या उपजाया या। और अपक्की सवारी के पशु को छोड़ कोई पशु मेरे संग न या।
13. मैं रात को तराई के फाटक में होकर निकला और अजगर के सोते की ओर, और कूड़ाफाटक के पास गया, और यरूशलेम की टूटी पक्की हुई शहरपनाह और जले फाटकोंको देखा।
14. तब मैं आगे बढ़कर सोते के फाटक और राजा के कुणड के पास गया; परन्तु मेरी सवारी के पशु के लिथे आगे जाने को स्यान न या।
15. तब मैं रात ही रात नाले से होकर शहरपनाह को देखता हुआ चढ़ गया; फिर घूमकर तािई के फाटक से भीतर आया, और इस प्रकार लौट आया।
16. और हाकिम न जानते थे कि मैं कहां गया और क्या करता या; वरन मैं ने तब तक न तो यहूदियोंको कुछ बताया या और न याजकोंऔर न रईसोंऔर न हाकिमोंऔर न दूसरे काम करनेवालोंको।
17. तब मैं ने उन से कहा, तुम तो आप देखते हो कि हम कैसी दुर्दशा में हैं, कि यरूशलेम उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं। तो आओ, हम यरूशलेम की शहरपनाह को बनाएं, कि भविष्य में हमारी नामधराई न रहे।
18. फिर मैं ने उनको बतलाया, कि मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर कैसी हुई और राजा ने मुझ से क्या क्या बातें कही यीं। तब उन्होंने कहा, आओ हम कमर बान्धकर बनाने लगें। और उन्होंने इस भले काम को करने के लिथे हियाव बान्ध लिया।
19. यह सुनकर होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नाम कर्मचारी जो अम्मोनी या, और गेशेम नाम एक अरबी, हमेें ठट्ठोंमें उड़ाने लगे; और हमें तुच्छ जानकर कहन लगे, यह तुम क्या काम करते हो।
20. क्या तुम राजा के विरुद्ध बलवा करोगे? तब मैं ने उनको उत्तर देकर उन से कहा, स्वर्ग का परमेश्वर हमारा काम सुफल करेगा, इसलिथे हम उसके दास कमर बान्धकर बनाएंगे; परन्तु यरूशलेम में तुम्हारा न तो कोई भाग, न हक्क, न स्मारक है।
Chapter 3
1. तब एल्याशीब महाथाजक ने अपके भाई याजकोंसमेत कमर बान्धकर भेड़फाटक को बनाया। उन्होंने उसकी प्रतिष्ठा की, और उसके पल्लोंको भी लगाया; और हम्मेआ नाम गुम्मट तक वरन हननेल के गुम्मट के पास तक उन्होंने शहरपनाह की प्रतिष्ठा की।
2. उस से आगे यरीहो के मनुष्योंने बनाया। और इन से आगे इम्री के पुत्र जक्कूर ने बनाया ।
3. फिर मछलीफाटक को हस्सना के बेटोंने बनाया; उन्होंने उसकी कडिय़ां लगाई, और उसके पल्ले, ताले और बेंड़े लगाए।
4. और उन से आगे मरेमोत ने जो हक्कोस का पोता और ऊरियाह का पुत्र या, मरम्मत की। और इन से आगे मशुल्लाम ने जो मशेजबेल का पोता, और बरेक्याह का पुत्र या, मरम्मत की। और इस से आगे बाना के पुत्र सादोक ने मरम्मत की।
5. और इन से आगे तकोइयोंने मरम्मत की; परन्तु उनके रईसोंने अपके प्रभु की सेवा का जूआ अपक्की गर्दन पर न लिया।
6. फिर पुराने फाटक की मरम्मत पासेह के पुत्र योयादा और बसोदयाह के पुत्र मशुल्लाम ने की; उन्होंने उसकी कडिय़ां लगाई, और उसके पल्ले, ताले और बेंड़े लगाए।
7. और उन से आगे गिबोनी मलत्याह और मेरोनोती यादोन ने और गिबोन और मिस्पा के मनुष्योंने महानद के पार के अधिपति के सिंहासन की ओर से मरम्मत की।
8. उन से आगे हर्हयाह के पुत्र उजीएल ने और और सुनारोंने मरम्मत की। और इस से आगे हनन्याह ने, जो गन्धियोंके समाज का या, मरम्मत की; और उन्होंने चौड़ी शहरपनाह तक यरूशलेम को दृढ़ किया।
9. और उन से आगे हूर के पुत्र रपायाह ने, जो यरूशलेम के आधे जिले का हाकिम या, मरम्मत की।
10. और उन से आगे हरुमप के पुत्र यदायाह ने अपके ही घर के साम्हने मरम्मत की; और इस से आगे हशब्नयाह के पुत्र हत्तूश ने मरम्मत की।
11. हारीम के पुत्र मल्कियाह और पहत्तोआब के पुत्र हश्शूब ने एक और भाग की, और भट्टोंके गुम्मट की मरम्मत की।
12. इस से आगे यरूशलेम के आधे जिले के हाकिम हल्लोहेश के पुत्र शल्लूम ने अपक्की बेटियोंसमेत मरम्मत की।
13. तराई के फाटक की मरम्मत हानून और जानोह के निवासियोंने की; उन्होंने उसको बनाया, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए, और हजार हाथ की शहरपनाह को भी अर्यात् कूड़ाफाटक तक बनाया।
14. और कूड़ाफाटक की मरम्मत रेकाब के पुत्र मल्कियाह ने की, जो बेयक्केरेम के जिले का हाकिम या; उसी ने उसको बनाया, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए।
15. और सोताफाटक की मरम्मत कोल्होजे के पुत्र शल्लूम ने की, जो मिस्पा के जिले का हाकिम या; उसी ने उसको बनाया और पाटा, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए; और उसी ने राजा की बारी के पास के शेलह नाम कुणड की शहरपनाह को भी दाऊदपुर से उतरनेवाली सीढ़ी तक बनाया।
16. उसके बाद अज अजबूक के पुत्र नहेमायाह ने जो बेतसूर के आधे जिले का हाकिम या, दाऊद के कब्रिस्तान के साम्हने तक और बनाए हुए पोखरे तक, वरन वीरोंके घर तक भी मरम्मत की।
17. इसके बाद बानी के पुत्र रहूम ने कितने लेवियोंसमेत मरम्मत की। इस से आगे कीला के आधे जिले के हाकिम हशब्याह ने अपके जिले की ओर से मरम्मत की।
18. उसके बाद उनके भाइयोंसमेत कीला के आधे जिले के हाकिम हेनादाद के पुत्र बव्वै ने मरम्मत की।
19. उस से आगे एक और भाग की मरम्मत जो शहरपनाह के मोड़ के पास शस्त्रें के घर की चढ़ाई के साम्हने है, थेशु के पुत्र एज़ेर ने की, जो मिस्पा का हाकिम या।
20. फिर एक और भाग की अर्यात् उसी मोड़ से ले एल्याशीब महाथाजक के घर के द्वार तक की मरम्मत जब्बै के पुत्र बारूक ने तन मन से की।
21. इसके बाद एक और भाग की अर्यात् एल्याशीब के घर के द्वार से ले उसी घर के सिक्के तक की मरम्मत, मरेमोत ने की, जो हक्कोस का पोता और ऊरियाह का पुत्र या।
22. उसके बाद उन याजकोंने मरम्मत की जो तराई के मनुष्य थे।
23. उनके बाद बिन्यामीन और हश्शूब ने अपके घर के साम्हने मरम्मत की; और इनके पीछे अजर्याह ने जो मासेयाह का पुत्र और अनन्याह का पोता या अपके घर के पास मरम्मत की।
24. तब एक और भाग की, अर्यात् अजर्याह के घर से लेकर शहरपनाह के मोड़ तक वरन उसके कोने तक की मरम्मत हेनादाद के पुत्र बिन्नूई ने की।
25. फिर उसी मोड़ के साम्हने जो ऊंचा गुम्मट राजभवन से बाहर निकला हुआ बन्दीगृह के आंगन के पास है, उसके साम्हने ऊजै के पुत्र पालाल ने मरम्मत की। इसके बाद परोश के पुत्र पदायाह ने मरम्मत की।
26. नतीन लोग तो ओपेल में पूरब की ओर जलफाटक के साम्हने तक और बाहर निकले हुए गुम्मट तक रहते थे।
27. पदायाह के बाद तकोइयोंने एक और भाग की मरम्मत की, जो बाहर तिकले हुए बड़े गुम्मट के साम्हने और ओबेल की शहरपनाह तक है।
28. फिर घोड़ाफाटक के ऊपर याजकोंने अपके अपके घर के साम्हने मरम्मत की।
29. इनके बाद इम्मेर के पुत्र सादोक ने अपके घर के साम्हने मरम्मत की; और तब पूरवी फाटक के रखवाले शकन्याह के पुत्र समयाह ने मरम्मत की।
30. इसके बाद शेलेम्याह के पुत्र हनन्याह और सालाप के छठवें पुत्र हानून ने एक और भाग की मरम्मत की। तब बेरेक्याह के पुत्र मशुल्लाम ने अपक्की कोठरी के साम्हने मरम्मत की।
31. उसके बाद मल्कियाह ने जो सुनार या नतिनोंऔर व्यापारियोंके स्यान तक ठहराए हुए स्यान के फाटक के साम्हने और कोने के कोठे तक मरम्मत की।
32. और कोनेवाले कोठे से लेकर भेड़फाटक तक सुनारोंऔर व्यापारियोंने मरम्मत की।
Chapter 4
1. जब सम्बल्लत ने सुना कि यहूदी लोग शहरपनाह को बना रहे हैं, तब उस ने बुरा माना, और बहुत रिसियाकर यहूदियोंको ठट्ठोंमें उड़ाने लगा।
2. वह अपके भाइयोंके और शोमरोन की सेना के साम्हने योंकहने लगा, वे निर्बल यहूदी क्या किया चाहते हैं? क्या वे वह काम अपके बल से करेंगे? क्या वे अपना स्यान दृढ़ करेंगे? क्या वे यज्ञ करेंगे? क्या वे आज ही सब काम निपटा डालेंगे? क्या वे मिट्टीके ढेरोंमें के जले हुए पत्य्रोंको फिर नथे सिक्के से बनाएंगे?
3. उसके पास तो अम्मोनी तोबियाह या, और वह कहने लगा, जो कुछ वे बना रहे हैं, यदि कोई गीदड़ भी उस पर चढ़े, तो वह उनकी बनाई हुई पत्यर की शहरपनाह को तोड़ देगा।
4. हे हमारे परमेश्वर सुन ले, कि हमारा अपमान हो रहा है; और उनका किया हुआ अपमान उन्हीं के सिर पर लौटा दे, और उन्हें बन्धुआई के देश में लुटवा दे।
5. और उनका अधर्म तू न ढांप, और न उनका पाप तेरे सम्मुख से मिटाया जाए; क्योंकि उन्होंने तुझे शहरपनाह बनानेवालोंके साम्हने क्रोध दिलाया है।
6. और हम लोगोंने शहरपनाह को बनाया; और सारी शहरपनाह आधी ऊंचाई तक जुड़ गई। क्योंकि लोगोंका मन उस काम में नित लगा रहा।
7. जब सम्बल्लत और तोबियाह और अरबियों, अम्मोनियोंऔर अशदोदियोंने सुना, कि यरूशलेम की शहरपनाह की मरम्मत होती जाती है, और उस में के नाके बन्द होने लगे हैं, तब उन्होंने बहुत ही बुरा माना;
8. और सभोंने एक मन से गोष्ठी की, कि जाकर यरूशलेम से लड़ें, और उस में गड़बड़ी डालें।
9. परन्तु हम लोगोंने अपके परमेश्वर से प्रार्यना की, और उनके डर के मारे उनके विरुद्ध दिन रात के पहरुए ठहरा दिए।
10. और यहूदी कहने लगे, ढोनेवालोंका बल घट गया, और मिट्टी बहुत पक्की है, इसलिथे शहरपनाह हम से नहीं बन सकती।
11. और हमारे शत्रु कहने लगे, कि जब तक हम उनके बीच में न महुंचे, और उन्हें घात करके वह काम बन्द न करें, तब तक उनको न कुछ मालूम होगा, और न कुछ दिखाई पकेगा।
12. फिर जो यहूदी उनके आस पास रहते थे, उन्होंने सब स्यानोंसे दस बार आ आकर, हम लोगोंसे कहा, तुम को हमारे पास लौट आना चाहिथे।
13. इस कारण मैं ने लोगोंको तलवारें, बछिर्यां और धनुष देकर शहरपनाह के पीछे सब से नीचे के खुले स्यानोंमें घराने घराने के अनुसार बैठा दिया।
14. तब मैं देखकर उठा, और रईसोंऔर हाकिमोंऔर और सब लोगोंसे कहा, उन से मत डरो; प्रभु जो महान और भययोग्य है, उसी को स्मरण करके, अपके भाइयों, बेटों, बेटियों, स्त्रियोंऔर घरोंके लिथे युद्ध करना।
15. जब हमारे शत्रुओं ने सुना, कि यह बात हम को मालूम हो गई है और परमेश्वर ने उनकी युक्ति निष्फल की है, तब हम सब के सब शहरपनाह के पास अपके अपके काम पर लौट गए।
16. और उस दिन से मेरे आधे सेवक तो उस काम मे लगे रहे और आधे बछिर्यों, तलवारों, धनुषोंऔर फिलमोंको धारण किए रहते थे; और यहूदा के सारे धराने के पीछे हाकिम रहा करते थे।
17. शहरपनाह के बनानेवाले और बोफ के ढोनेवाले दोनोंभार उठाते थे, अर्यत् एक हाथ से काम करते थे और दूसरे हाथ से हयियार पकड़े रहते थे।
18. और राज अपक्की अपक्की जांघ पर तलवार लटकाए हुए बनाते थे। और नरसिंगे का फूंकनेवाला मेरे पास रहता या।
19. इसलिथे मैं ने रईसों, हाकिमोंऔर सब लोगोंसे कहा, काम तो बड़ा और फैला हुआ है, और हम लोग शहरपनाह पर अलग अलग एक दूसरे से दूर रहते हैं।
20. इसलिथे जिधर से नरसिंगा तुम्हें सुनाई दे, उधर ही हमारे पास इकट्ठे हो जाना। हमारा परमेश्वर हमारी ओर से लड़ेगा।
21. योंहम काम में लगे रहे, और उन में आधे, पौ फटने से तारोंके निकलने तक बछिर्यां लिथे रहते थे।
22. फिर उसी समय मैं ने लोगोंसे यह भी कहा, कि एक एक मनुष्य अपके दास समेत यरूशलेम के भीतर रात बिताया करे, कि वे रात को तो हमारी रखवाली करें, और दिन को काम में लगे रहें।
23. और न तो मैं अपके कपके उतारता या, और न मेरे भाई, न मेरे सेवक, न वे पहरुए जो मेरे अनुचर थे, अपके कपके उतारते थे; सब कोई पानी के पास हयियार लिथे हुए जागते थे।
Chapter 5
1. तब लोग और उनकी स्त्रियोंकी ओर से उनके भाई यहूदियोंके किरुद्ध बड़ी चिल्लाहट मची।
2. कितने तो कहते थे, हम अपके बेटे-बेटियोंसमेत बहुत प्राणी हैं, इसलिथे हमें अन्न मिलना चाहिथे कि उसे खाकर जीवित रहें।
3. और कितने कहते थे, कि हम अपके अपके खेतों, दाख की बारियोंऔर घरोंको महंगी के कारण बन्धक रखते हैं, कि हमें अन्न मिले।
4. फिर कितने यह कहते थे, कि हम ने राजा के कर के लिथे अपके अपके खेतोंऔर दाख की बारियोंपर रुपया उधार लिया।
5. परन्तु हमारा और हमारे भाइयोंका शरीर और हमारे और उनके लड़केबाले एक ही समान हैं, तौभी हम अपके बेटे-बेटियोंको दास बनाते हैं; वरन हमारी कोई कोई बेटी दासी भी हो चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं जलता, क्योंकि हमारे खेत और दाख की बारियां औरोंके हाथ पक्की हैं।
6. यह चिल्लाहट ओर थे बातें सुनकर मैं बहुत क्रोधित हुआ।
7. तब अपके मन में सोच विचार करके मैं ने रईसोंऔर हाकिमोंको घुड़ककर कहा, तुम अपके अपके भाई से ब्याज लेते हो। तब मैं ने उनके विरुद्ध एक बड़ी सभा की।
8. और मैं ने उन से कहा, हम लोगोंने तो अपक्की शक्ति भर अपके यहूदी भाइयोंको जो अन्यजातियोंके हाथ बिक गए थे, दाम देकर छुड़ाया है, फिर क्या तुम अपके भाइयोंको बेचोगे? क्या वे हमारे हाथ बिकेंगे? तब वे चुप रहे और कुछ न कह सके।
9. फिर मैं कहता गया, जो काम तुम करते हो वह अच्छा नहीं है; क्या तुम को इस कारण हमारे परमेश्वर का भय मानकर चलना न चाहिथे कि हमारे शत्रु जो अन्यजाति हैं, वे हमारी नामधराई न करें?
10. मैं भी और मेरे भाई और सेवक उनको रुपया और अनाज उधार देते हैं, परन्तु हम इसका ब्याज छोड़ दें।
11. आज ही अनको उनके खेत, और दाख, और जलपाई की बारियां, और घर फेर दो; और जो रुपया, अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल तुम उन से ले लेते हो, उसका सौवां भाग फेर दो?
12. अन्होंने कहा, हम उन्हें फेर देंगे, और उन से कुछ न लेंगे; जैसा तू कहता है, वैसा ही हम करेंगे। तब मैं ने याजकोंको बुलाकर उन लोगोंको यह शपय खिलाई, कि वे इसी वचन के अनुसार करेंगे।
13. फिर मैं ने अपके कपके की छोर फाड़कर कहा, इसी रीति से जो कोई इस वचन को पूरा न करे, उसको परमेश्वर फाड़कर, उसका घर और कमाई उस से छुड़ाए, और इसी रीति से वह फाड़ा जाए, और छूछा हो जाए। तब सारी सभा ने कहा, आमेन ! और यहोवा की स्तुति की। और लोगोंने इस वचन के अनुसार काम किया।
14. फिर जब से मैं यहूदा देश में उनका अधिपति ठहराया गया, अर्यात् राजा अर्तझत्र के बीसवें वर्ष से ले उसके बत्तीसवें वर्ष तक, अर्यात् बारह वर्ष तक मैं और मेरे भाई अधिपति के हक का भोजन खाते रहे।
15. परन्तु पहिले अधिपति जो मुझ से आगे थे, वह प्रजा पर भार डालते थे, और उन से रोटी, और दाखमधु, और इस से अधिक चालीस शेकेल चान्दी लेते थे, वरन उनके सेवक भी प्रजा के ऊपर अधिक्कारने जताते थे; परन्तु मैं ऐसा नहीं करता या, क्योंकि मैं यहोवा का भय मानता या।
16. फिर मैं शहरपनाह के काम में लिपटा रहा, और हम लोगोंने कुछ भूमि मोल न ली; और मेरे सब सेवक काम करने के लिथे वहां इकट्ठे रहते थे।
17. फिर मेरी मेज पर खानेवाले एक सौ पचास यहूदी और हाकिम और वे भी थे, जो चारोंओर की अन्यजातियोंमें से हमारे पास आए थे।
18. और जो प्रतिदिन के लिथे तैयार किया जाता या वह एक बैल, छ: अच्छी अच्छी भेड़ें व बकरियां यीं, और मेरे लिथे चिडिय़ें भी तैयार की जाती यीं; दस दस दिन के बाद भांति भांति का बहुत दाखमधु भी तैयार किया जाता या; परन्तु तौभी मैं ने अधिपति के हक का भोज नहीं लिया,
19. क्योंकि काम का भार प्रजा पर भारी या। हे मेरे परमेश्वर ! जो कुछ मैं ने इस प्रजा के लिथे किया है, उसे तू मेरे हित के लिथे स्मरण रख।
Chapter 6
1. जब सम्बल्लत, तोबियाह और अरबी गेशेम और हमारे और शत्रुओं को यह समाचार मिला, कि मैं शहरपनाह को बनवा चुका; और यद्यपि उस समय तक भी मैं फाटकोंमें पल्ले न लगा चुका या, तौभी शहरपनाह में कोई दरार न रह गया या।
2. तब सम्बल्लत और गेशेम ने मेरे पास योंकहला भेजा, कि आ, हम ओनो के मैदान के किसी गांव में एक दूसरे से भेंट करें। परन्तु वे मेरी हानि करने की इच्छा करते थे।
3. परन्तु मैं ने उनके पास दूतोंसे कहला भेजा, कि मैं तो भारी काम में लगा हूँ, वहां नहीं जा सकता; मेरे इसे छोड़कर तुम्हारे पास जाने से वह काम क्योंबन्द रहे?
4. फिर उन्होंने चार बार मेरे पास वैसी ही बात कहला भेजी, और मैं ने उनको वैसा ही उत्तर दिया।
5. तब पांचक्की बार सम्बल्लत ने अपके सेवक को खुली हुई चिट्ठी देकर मेरे पास भेजा,
6. जिस में योंलिखा या, कि जाति जाति के लोगोंमें यह कहा जाता है, और गेशेम भी यही बात कहता है, कि तुम्हारी और यहूदियोंकी मनसा बलवा करने की है, और इस कारण तू उस शहरपनाह को बनवाता है; और तू इन बातोंके अनुसार उनका राजा बनना चाहता है।
7. और तू ने यरूशलेम में नबी ठहराए हैं, जो यह कहकर तेरे विषय प्रचार करें, कि यहूदियोंमें एक राजा है। अब ऐसा ही समाचार राजा को दिया जाएगा। इसलिथे अब आ, हम एक साय सम्मति करें।
8. तब मैं ने उसके पास कहला भेजा कि जैसा तू कहता है, वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ, तू थे बातें अपके मन से गढ़ता है।
9. वे सब लोग यह सोचकर हमें डराना चाहते थे, कि उनके हाथ ढीले पकें, और काम बन्द हो जाए। परन्तु अब हे परमेश्वर तू मुझे हियाव दे।
10. और मैं शमायाह के घर में गया, जो दलायाह का पुत्र और महेतबेल का पोता या, वह तो बन्द घर में या; उस ने कहा, आ, हम परमेश्वर के भवन अर्यात् मन्दिर के भीतर आपस में भेंट करें, और मन्दिर के द्वार बन्द करें; क्योंकि वे लोग तुझे घात करने आएंगे, रात ही को वे तुझे घात करने आएंगे।
11. परन्तु मैं ने कहा, क्या मुझ ऐसा मनुष्य भागे? और तुझ ऐसा कौन है जो अपना प्राण बचाने को मन्दिर में घुसे? मैं नहीं जाने का।
12. फिर मैं ने जान लिया कि वह परमेश्वर का भेजा नहीं है परन्तु उस ने हर बात ईश्वर का वचन कहकर मेरी हानि के लिथे कही, क्योंकि तोबियाह और सम्बल्लत ने उसे रुपया दे रखा या।
13. उन्होंने उसे इस कारण रुपया दे रखा या कि मैं डर जाऊं, और वैसा ही काम करके पापी ठहरूं, और उनको अपवाद लगाने का अवसर मिले और वे मेरी नामधराई कर सकें।
14. हे मेरे रपरमेश्वर ! तोबियाह, सम्बल्लत, और नोअद्याह, नबिया और और तितने नबी मुझे डराना चाहते थे, उन सब के ऐसे ऐसे कामोंकी सुधि रख।
15. एलूल महीने के पक्कीसवें दिन को अर्यात् बावन दिन के भीतर शहरपनाह बन चुकी।
16. जब हमारे सब शत्रुओं ने यह सुना, तब हमारे चारोंओर रहनेवाले सब अन्यजाति डर गए, और बहुत लज्जित हुए; क्योंकि उन्होंने जान लिया कि यह काम हमारे परमेश्वर की ओर से हुआ।
17. उन दिनोंमें भी यहूदी रईसोंऔर तोबियाह के बीच चिट्ठ बहुत आया जाया करती यी।
18. क्योंकि वह आरह के पुत्र शकम्याह का दामाद या, और उसके पुत्र यहोहानान ने बेरेक्याह के पुत्र मशुल्लाम की बेटी की ब्याह लिया या; इस कारण बहुत से यहूदी उसका पझ करने की शपय खाए हुए थे।
19. और वे मेरे सुनते उसके भले कामोंकी चर्चा किया करते, और मेरी बातें भी उसको सुनाया करते थे। और तोबियाह मुझे डराने के लिथे चिट्ठियां भेजा करता या।
Chapter 7
1. जब शहरपनाह बन गई, और मैं ने उसके फाटक खड़े किए, और द्वारपाल, और गवैथे, और लेवीय लोग ठहराथे गए,
2. तब मैं ने अपके भाई हनानी और राजगढ़ के हाकिम हनन्याह को यरूशलेम का अधिक्कारनेी ठहराया, क्योंकि यह सच्चा पुरुष और बहुतेरोंसे अधिक परमेश्वर का भय माननेवाला या।
3. और मैं ने उन से कहा, जब तक घाम कड़ा न हो, तब तक यरूशलेम के फाटक न खोले जाएं और जब पहरुए पहरा देते रहें, तब ही फाटक बन्द किए जाएं और बेड़े लगाए जाएं। फिर यरूशलेम के निवासियोंमें से तू रखवाले ठहरा जो अपना अपना पहरा अपके अपके घर के साम्हने दिया करें।
4. नगर तो लम्बा चौड़ा या, परन्तु उस में लोग योड़े थे, और घर नहीं बने थे।
5. तब मेरे परमेश्वर ने मेरे मन में यह उपजाया कि रईसों, हाकिमोंऔर प्रजा के लोगोंको इसलिथे इकट्ठे करूं, कि वे अपक्की अपक्की वंशावली के अनुसार गिने जाएं। और मुझे पहिले पहिल यरूशलेम को आए हुओं का वंशावलीपत्र मिला, और उस में मैं ने योंलिख हुआ पाया:
6. जिनको बाबेल का राजा, नबूकदनेस्सर बन्धुआ करके ले गया या, उन में से प्रान्त के जो लोग बन्धुआई से छूटकर, यरूशलेम और यहूदा के अपके अपके नगर को आए।
7. वे जरुब्बाबेल, थेशू, नहेमायाह, अजर्याह, राम्याह, नहमानी, मोर्दकै, बिलशान, मिस्पेरेत, विग्वै, नहूम और बाना के संग आए।
8. इस्राएली प्रजा के लोगोंकी गिनती यह है : अर्यात् परोश की सन्तान दो हजार एक सौ बहत्तर,
9. सपत्याह की सन्तान तीन सौ बहत्तर, आाह की सन्तान छ: सौ बावन।
10. पहत्मोआब की सन्तान याने थेशू और योआब की सन्तान,
11. दो हजार आठ सौ अठारह।
12. एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन,
13. जत्तू की सन्तान आठ सौ पैंतालीस।
14. जवकै की सन्तान सात सौ साठ।
15. बिन्नूई की सन्तान छ:सौ अड़तालीस।
16. बेबै की सन्तान छ:सौ अट्ठाईस।
17. अजगाद की सन्तान दो हजार तीन सौ बाईस।
18. अदोनीकाम की सन्तान छ:सौ सड़सठ।
19. बिग्बै की सन्तान दो हजार सड़सठ।
20. आदीन की सन्तान छ:सौ पचपन।
21. हिचकिय्याह की सन्तान आतेर के वंश में से अट्ठानवे।
22. हाशम की सन्तान तीन सौ अट्ठाईस।
23. बैसै की सन्तान तीन सौ चौबीस।
24. हारीप की सन्तान एक सौ बारह।
25. गिबोन के लोग पचानवे।
26. बेतलेहेम और नतोपा के मनुष्य एक सौ अट्ठासी।
27. अनातोत के मनुष्य एक सौ अट्ठाईस।
28. बेतजमावत के मनुष्य बयालीस।
29. किर्यत्यारीम, कपीर, और बेरोत के मनुष्य सात सौ तैंतालीस।
30. रामा और गेबा के मनुष्य छ:सौ इक्कीस।
31. मिकपास के मनुष्य एक सौ बाईस।
32. बेतेल और ऐ के मनुष्य एक सौ तेईस।
33. दूसरे नबो के मनुष्य बावन।
34. दूसरे एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन।
35. हारीम की सन्तान तीन सौ बीस।
36. यरीहो के लोग तीन सौ पैंतालीस।
37. लोद हादीद और ओनोंके लोग सात सौ इक्कीस।
38. सना के लोग तीन हजार नौ सौ तीस।
39. फिर याजक अर्यात् थेशू के घराने में से यदायाह की सन्तान नौ सौ तिहत्तर।
40. इम्मेर की सन्तान एक हजार बावन।
41. पशहूर की सन्तान बारह सौ सैंतालीस।
42. हारीम की सन्तान एक हजार सत्रह।
43. फिर लेवीय थे थे: अर्यात् होदवा के दंश में से कदमीएल की सन्तान थेशू की सन्तान चौहत्तर।
44. फिर गवैथे थे थे: अर्यात् आसाप की सन्तान एक सौ अड़तालीस।
45. फिर द्वारपाल थे थे: अर्यात् शल्लूम की सन्तान, आतेर की सन्तान, तल्मोन की सन्तान, अक्कूब की सन्तान, हतीता की सन्तान, और शोबै की सन्तान, जो सब मिलकर एक सौ अड़तीस हुए।
46. फिर नतीन अर्यत् सीहा की सन्तान, हसूपा की सन्तान, तब्बाओत की सन्तान,
47. केरोस की सन्तान, सीआ की सन्तान, पादोन की सन्तान,
48. लबाना की सन्तान, हगावा की सन्तान, शल्मै की सन्तान।
49. हानान की सन्तान, गिद्देल की सन्तान, गहर की सन्तान,
50. राया की सन्तान, रसीन की सन्तान, नकोदा की सन्तान,
51. गज्जाम की सन्तान, उज्जा की सन्तान, पासेह की सन्तान,
52. बेसै की सन्तान, मूनीम की सन्तान, नमूशस की सन्तान,
53. बकबूक की सन्तान, हकूपा की सन्तान, हर्हूर की सन्तान,
54. बसलीत की सन्तान, महीदा की सन्तान, हर्शा की सन्तान,
55. बकॉस की सन्तान, सीसरा की सन्तान, तेमेह की सन्तान,
56. नसीह की सन्तान, और हतीपा की सन्तान।
57. फिर सुलैमान के दासोंकी सन्तान, अर्यात् सोतै की सन्तान, सोपेरेत की सन्तान, पक्कीदा की सन्तान,
58. याला की सन्तान, दकॉन की सन्तान, गिद्देल की सन्तान,
59. शपत्याह की सन्तान, हत्तील की सन्तान, पोकेरेत सवायीम की सन्तान, और आमोन की सन्तान।
60. नतीन और सुलैमान के दासोंकी सन्तान मिलकर तीन सौ बानवे थे।
61. और थे वे हैं, जो तेलमेलह, तेलहर्शा, करूब, अद्दोन, और इम्मेर से यरूशलेम को गए, परन्तु अपके अपके पितरोंके घराने और वंशावली न बता सके, कि इस्राएल के हैं, वा नहीं :
62. अर्यात् दलायाह की सन्तान, तोबिय्याह की सन्तान, और दकोदा की सन्तान, जो सब मिलकर छ: सौ बयालीस थे।
63. और याजकोंमें से होबायाह की सन्तान, हक्कोस की सन्तान, और बजिर्ल्लै की सन्तान, जिस ने गिलादी बजिर्ल्लै की बेटियोंमें से एक को ब्याह लिया, और उन्हीं का नाम रख लिया या।
64. इन्होंने अपना अपना वंशावलीपत्र और और वंशावलीपत्रोंमें दूंढ़ा, परन्तु न पाया, इसलिथे वे अशुद्ध ठहरकर याजकपद से निकालेगए।
65. और अधिपति ने उन से कहा, कि जब तक ऊरीम और तुम्मीम धारण करनेवाला कोई याजक न उठे, तब तक तुम कोई परमपवित्र वस्तु खाने न पाओगे।
66. पूरी मणडली के लोग मिलकर बयालीस हजार तीन सौ साठ ठहरे।
67. इनको छोड़ उनके सात हजार तीन सौ सैंतीस दास-दासियां, और दो सौ पैंतालीस गानेवाले और गानेवालियां यीं।
68. उनके घोड़े सात सौ छत्तीस, ख्च्चर दो सौ पैंतालीस,
69. ऊंट चार सौ पैंतीस और गदहे छ: हजार सात सौ बीस थे।
70. और पितरोंके घरानोंके कई एक मुख्य पुरुषोंने काम के लिथे दिया। अधिपति ने तो चन्दे में हजार दर्कमोन सोना, पचास कटोरे और पांच सौ तीस याजकोंके अंगरखे दिए।
71. और पितरोंके घरानोंके कई मुख्य मुख्य पुरुषोंने उस काम के चन्दे में बीस हजार दर्कमोन सोना और दो हजार दो सौ माने चान्दी दी।
72. और शेष प्रजा ने जो दिया, वह बीस हजार दर्कमोन सोना, दो हजार माने चान्दी और सड़सठ याजकोंके अंगरखे हुए।
73. इस प्रकार याजक, लेवीय, द्वारपाल, गवैथे, प्रजा के कुछ लोग और नतीन और सब इस्राएली अपके अपके नगर में बस गए।
Chapter 8
1. जब सातवां महीना निकट आया, उस समय सब इस्राएली अपके अपके नगर में थे। तब उन सब लोगोंने एक मन होकर, जलफाटक के साम्हने के चौक में इकट्ठे होकर, बज्रा शास्त्री से कहा, कि मूसा की जो व्यवस्या यहोवा ने इस्राएल को दी यी, उसकी पुस्तक ले आ।
2. तब एज्रा याजक सातवें महीने के पहिले दिन को क्या स्त्री, क्या पुरुष, जितने सुनकर समझ सकते थे, उन सभोंके साम्हने व्यवस्या को ले आया।
3. और वह उसकी बातें भोर से दो पहर तक उस चौक के साम्हने जो जलफाटक के साम्हने या, क्या स्त्री, क्या पुरुष और सब समझने वालोंको पढ़कर सुनाता रहा; और लोग व्यवस्या की पुस्तक पर कान लगाए रहे।
4. एज्रा शास्त्री, काठ के एक मचान पर जो इसी काम के लिथे बना या, ख्ड़ा हो गयां; और उसकी दाहिनी अलंग मत्तित्याह, शेमा, अनायाह, ऊरिय्याह, हिल्किय्याह और मासेयाह; और बाई अलंग, पदायाह, मीशाएल, मल्किय्याह, हाशूम, हश्बद्दाना,जकर्याह और मशुल्लाम खड़े हुए।
5. तब एज्रा ने जो सब लोगोंसे ऊंचे पर या, सभोंके देखते उस पुस्तक को खोल दिया; और जब उस ने उसको खोला, तब सब लोग उठ खाड़े हुए।
6. तब एज्रा ने महान परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा; और सब लोगोंने अपके अपके हाथ उठाकर आमेन, आमेन, कहा; और सिर फुकाकर अपना अपना माया भूमि पर टेक कर यहोवा को दणडवत किया।
7. और थेशू, बानी, शेरेब्याह, यामीन, अक्कूब, शब्बतै, होदिय्याह, मासेयाह, कलीता, अजर्याह, योजाबाद, हानान और पलायाह नाम लेवीय, लोगोंको व्यवस्या समझाते गए, और लोग अपके अपके स्यान पर खड़े रहे।
8. और उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्या की पुस्तक से पढ़कर अर्य समझा दिया; और लोगोंने पाठ को समझ लिया।
9. तब नहेमायाह जो अधिपति या, और एज्रा जो याजक और शास्त्री या, और जो लेवीय लोगोंको समझा रहे थे, उन्होंने सब लोगोंसे कहा, आज का दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के लिथे पवित्र है; इसलिथे विलाप न करो और न रोओ। क्योंकि सब लोग व्यवस्या के वचन सुनकर रोते रहे।
10. फिर उस ने उन से कहा, कि जाकर चिकना चिकना भोजन करो और मीठा मीठा रस पियो, और जिनके लिथे कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास बैना भेजो; क्योंकि आज का दिन हमारे प्रभु के लिथे पवित्र है; और उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है।
11. योंलेवियोंने सब लोगोंको यह कहकर चुप करा दिया, कि चुप रहो क्योंकि आज का दिन पवित्र है; और उदास मत रहो।
12. तब सब लोग खाने, पीने, बैना भेजने और बड़ा आनन्द मनाने को चले गए, क्योंकि जो वचन उनको समझाए गए थे, उन्हें वे समझ गए थे।
13. और दूसरे दिन को भी समस्त प्रजा के पितरोंके घराने के मुख्य मुख्य पुरुष और याजक और लेवीय लोग, एज्रा शास्त्री के पास व्यवस्या के वचन ध्यान से सुनने के लिथे इकट्टे हुए।
14. और उन्हें व्यवस्या में यह लिखा हुआ मिला, कि यहोवा ने मूसा से यह आज्ञा दिलाई यी, कि इस्राएली सातवें महीने के पर्व के समय फोपडिय़ोंमें रहा करें,
15. और अपके सब नगरोंऔर यरूशलेम में यह सुनाया और प्रचार किया जाए, कि पहाड़ पर जाकर जलपाई, तैलवृझ, मेंहदी, खजूर और घने घने वृझोंकी डालियां ले आकर फोपडिय़ां बनाओ, जैसे कि लिखा है।
16. सो सब लोग बाहर जाकर डालियां ले आए, और अपके अपके घर की छत पर, और अपके आंगनोंमें, और परमेश्वर के भवन के आंगनोंमें, और जलफाटक के चौक में, और एप्रैम के फाटक के चौक में, फोंपडिय़ां बना लीं।
17. वरन सब मणडली के लोग जितने बन्धुआई से छूटकर लौट आए थे, फोंपडिय़ां बना कर उन में टिके। नून के पुत्र यहोशू के दिनोंसे लेकर उस दिन तक इस्राएलियोंने ऐसा नहीं किया या। और उस समय बहुत बड़ा आनन्द हुआ।
18. फिर पक्कीले दिन से पिछले दिन तक एज्रा ने प्रतिदिन परमेश्वर की व्यवस्या की पुस्तक में से पढ़ पढ़कर सुनाया। योंवे सात दिन तक पर्व को मानते रहे, और साठवें दिन नियम के अनुसार महासभा हुई।
Chapter 9
1. फिर उसी महीने के चौबीसवें दिन को इस्राएली उपवास का टाट पहिने और सिर पर धूल डाले हुए, इकट्ठे हो गए।
2. तब इस्राएल के वंश के लोग सब अन्यजाति लोगोंसे अलग हो गए, और खड़े होकर, अपके अपके पापोंऔर अपके पुरखाओं के अधर्म के कामोंको मान लिया।
3. तब उन्होंने अपके अपके स्यान पर खड़े होकर दिन के एक पहर तक अपके परमेश्वर यहोवा की व्यवस्या की पुस्तक पढ़ते, और एक और पहर अपके पापोंको मानते, और अपके परमेश्वर यहोवा को दणडवत करते रहे।
4. और थेशू, बानी, कदमीएल, शबन्याह, बुन्नी, शेरेब्याह, बानी और कनानी ने लेवियोंकी सीढ़ी पर खड़े होकर ऊंचे स्वर से अपके परमेश्वर यहोवा की दोहाई दी।
5. फिर थेशू, कदमीएल, बानी, हशब्नयाह, शेरेब्याह, होदिय्याह, शबन्याह, और पतह्याह नाम लेवियोंने कहा, खड़े हो; अपके परमेश्वर यहोवा को अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य कहो। तेरा महिमायुक्त नाम धन्य कहा जाए, जो सब धन्यवाद और स्तुति से पके है।
6. तू ही अकेला यहोवा है; स्वर्ग वरन सब से ऊंचे स्वर्ग और उसके सब गण, और पृय्वी और जो कुछ उस में है, और समुद्र और जो कुछ उस में है, सभोंको तू ही ने बनाया, और सभोंकी रझा तू ही करता है; और स्वर्ग की समस्त सेना तुझी को दणडवत करती हैं।
7. हे यहोवा ! तू वही परमेश्वर है, जो अब्राहाम को चुनकर कसदियोंके ऊर नगर में से निकाल लाया, और उसका नाम इब्राहीम रखा;
8. और उसके मन को अपके साय सच्चा पाकर, उस से वाचा बान्धी, कि मैं तेरे वंश को कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, यबूसियों, और गिर्गाशियोंका देश दूंगा; और तू ने अपना वह वचन पूरा भी किया, क्योंकि तू धमीं है।
9. फिर तू ने मिस्र में हमारे पुरखाओं के दु:ख पर दृष्टि की; और लाल समुद्र के तट पर उनकी दोहाई सुनी।
10. और फ़िरौन और उसके सब कर्मचारी वरन उसके देश के सब लोगोंको दणड देने के लिथे चिन्ह और चमत्कार दिखाए; क्योंकि तू जानता या कि वे उन से अभिमान करते हैं; और तू ने अपना ऐसा बड़ा नाम किया, जैसा आज तक वर्तमान है।
11. और तू ने उनके आगे समुद्र को ऐसा दो भाग किया, कि वे समुद्र के बीच स्यल ही स्यल चलकर पार हो गए; और जो उनके पीछे पके थे, उनको तू ने गहिरे स्यानोंमें ऐसा डाल दिया, जैसा पत्य्र महाजलराशि में डाला जाए।
12. फिर तू ने दिन को बादल के खम्भे में होकर और रात को आग के खम्भे में होकर उनकी अगुआई की, कि जिस मार्ग पर उन्हें चलना या, उस में उनको उजियाला मिले।
13. फिर तू ने सीनै पर्वत पर उतरकर आकाश में से उनके साय बातें की, और उनको सीधे नियम, सच्ची व्यवस्या, और अच्छी विधियां, और आज्ञाएं दीं।
14. और उन्हें अपके पवित्र विश्रम दिन का ज्ञान दिया, और अपके दास मूसा के द्वारा आज्ञाएं और विधियां और व्यवस्या दीं।
15. और उनकी भूख मिटाने को आकाश से उन्हें भोजन दिया और उनकी प्यास बुफाने को चट्टान में से उनके लिथे पानी निकाला, और उन्हें आज्ञा दी कि जिस देश को तुम्हें देने की मैं ने शपय खाई है उसके अधिक्कारनेी होने को तुम उस में जाओ।
16. परन्तु उन्होंने और हमारे पुरखाओं ने अभिमान किया, और हठीले बने और तेरी आज्ञाएं न मानी;
17. और आज्ञा मनने से इनकार किया, और जो आश्चर्यकर्म तू ने उनके बीच किए थे, उनका स्मरण न किया, वरन हठ करके यहां तक बलवा करनेवाले बने, कि एक प्रधान ठहराया, कि अपके दासत्व की दशा में लौटे। परन्तु तू झमा करनेवाला अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से कोप करनेवाला, और अतिकरुणामय ईश्वर है, तू ने उनको न त्यागा।
18. वरन जब दन्होंने बछड़ा ढालकर कहा, कि तुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, वह यही है, और तेरा बहुत तिरस्कार किया,
19. तब भी तू जो अति दयालु है, उनको जंगल में न त्यागा; न तो दिन को अगुआई करनेवाला बादल का खम्भा उन पर से हटा, और न रात को उजियाला देनेवाला और उनका मार्ग दिखानेवाला आग का खम्भा।
20. वरन तू ने उन्हें समझाने के लिथे अपके आत्मा को जो भला है दिया, और अपना मान्ना उन्हें खिलाना न छोड़ा, और उनकी प्यास बुफाने को पानी देता रहा।
21. चालीस वर्ष तक तू जंगल में उनका ऐसा पालन पोषण करता रहा, कि उनको कुछ घटी न हुई; न तो उनके वस्त्र पुराने हुए और न उनके पांव में सूजन हुई।
22. फिर तू ने राज्य राज्य और देश देश के लोगोंको उनके वश में कर दिया, और दिशा दिशा में उनको बांट दिया; योंवे हेशबोन के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग दोनोंके देशोंके अधिक्कारनेी हो गए।
23. फिर तू ने उनकी सन्तान को आकाश के तारोंके समान बढ़ाकर उन्हें उस देश में पहुंचा दिया, जिसके विषय तू ने उनके पूर्वजोंसे कहा या; कि वे उस में जाकर उसके अधिक्कारनेी हो जाएंगे।
24. सो यह सन्तान जाकर उसकी अधिक्कारनेिन हो गई, और तू ने उनके द्वारा देश के निवासी कनानियोंको दबाया, और राजाओं और देश के लोगोंसमेत उनको, उनके हाथ में कर दिया, कि वे उन से जो चाहें सो करें।
25. और उन्होंने गढ़वाले नगर और उपजाऊ भूमि ले ली, और सब भांति की अच्छी वस्तुओं से भरे हुए घरोंके, और खुदे हुए हौदोंके, और दाख और जलपाई बारियोंके, और खाने के फलवाले बहुत से वृझोंके अधिक्कारनेी हो गए; वे उसे खा खाकर तृप्त हुए, और ह्रृष्ट-पुष्ट हो गए, और तेरी बड़ी भलाई के कारण सुख भोगते रहे।
26. परन्तु वे तुझ से फिरकर बलवा करनेवाले बन गए और तेरी व्यवस्या को त्याग दिया, और तेरे जो नबी तेरी ओर उन्हें फेरने के लिथे उनको चिताते रहे उनको उन्होंने घात किया, और तेरा बहुत तिरस्कार किया।
27. इस कारण तू ने उनको उनके शत्रुओं के हाथ में कर दिया, और उन्होंने उनको संकट में डाल दिया; तौभी जब जब वे संकट में पड़कर तेरी दोहाई देते रहे तब तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता रहा; और तू जो अतिदयालु है, इसलिथे उनके छुड़ानेवाले को भेजता रहा जो उनको शत्रुओं के हाथ से छुड़ाते थे।
28. परन्तु जब जब उनको चैन मिला, तब तब वे फिर तेरे साम्हने बुराई करते थे, इस कारण तू उनको शत्रुओं के हाथ में कर देता या, और वे उन पर प्रभुता करते थे; तौभी जब वे फिरकर तेरी दोहाई देते, तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता और तू जो दयालु है, इसलिथे बार बार उनको छुड़ाता,
29. और उनको जिताता या कि उनको फिर अपक्की व्यवस्या के अधीन कर दे। परन्तु वे अभिमान करते रहे और तेरी आज्ञाएं नहीं मानते थे, और तेरे नियम, जिनको यदि मनुष्य माने, तो उनके कारण जीवित रहे, उनके विरुद्ध पाप करते, और हठ करके अपना कन्धा हटाते और न सुनते थे।
30. तू तो बहुत वर्ष तक उनकी सहता रहा, और अपके आत्मा से नबियोंके द्वारा उन्हें चिताता रहा, परन्तु वे कान नहीं लगाते थे, इसलिथे तू ने उन्हें देश देश के लोगोंके हाथ में कर दिया।
31. तौभी तू ने जो अतिदयालु है, उनका अन्त नहीं कर डाला और न उनको त्याग दिया, क्योंकि तू अनुग्रहकारी और दयालु ईश्वर है।
32. अब तो हे हमारे परमेश्वर ! हे महान पराक्रमी और भययोग्य ईश्वर ! जो अपक्की वाचा पालता और करुणा करता रहा है, जो बड़ा कष्ट, अश्शूर के राजाओं के दिनोंसे ले आज के दिन तक हमें और हमारे राजाओं, हाकिमों, याजकों, नबियों, पुरखाओं, वरन तेरी समस्त प्रजा को भोगना पड़ा है, वह तेरी दृष्टि में योड़ा न ठहरे।
33. तौभी जो कुछ हम पर बीता है उसके विष्य तू तो धमीं है; तू ने तो सच्चाई से काम किया है, परन्तु हम ने दुष्टता की है।
34. और हमारे राजाओं और हाकिमों, याजकोंऔर पुरखाओं ने, न तो तेरी व्यवस्या को माना है और न तेरी आज्ञाओं और चितौनियोंकी ओर ध्यान दिया है जिन से तू ने उनको चिताया या।
35. उन्होंने अपके राज्य में, और उस बड़े कल्याण के समय जो तू ने उन्हें दिया या, और इस लम्बे चौड़े और उपजाऊ देश मेंं तेरी सेवा नहीं की; और न अपके बुरे कामोंसे पश्चाताप किया।
36. देख, हम आज कल दास हैं; जो देश तू ने हमारे पितरोंको दिया या कि उसकी उत्तम उपज खाएं, इसी में हम दास हैं।
37. इसकी उपज से उन राजाओं को जिन्हें तू ने हमारे पापोंके कारण हमारे ऊपर ठहराया है, बहुत धन मिलता है; और वे हमारे शरीरोंऔर हमारे पशुओं पर अपक्की अपक्की इच्छा के अनुसार प्रभुता जताते हैं, इसलिथे हम बड़े संकट में पके हैं।
38. इस सब के कारण, हम सच्चई के साय वाचा बान्धते, और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, लेवीय और याजक उस पर छाप लगाते हैं।
Chapter 10
1. जिन्होंने छाप लगाई वे थे हैं, अर्यात् हकल्याह का पुत्र नहेमायाह जो अधिपति या, और सिदकिय्याह;
2. मरायाह, अजर्याह, यिर्मयाह;
3. पशहूर, अमर्याह, मल्किय्याह;
4. हतूश, शबन्याह, मल्लूक;
5. हारीम, मरेयोत, ओबद्याह;
6. दानिय्थेल, गिन्नतोन, बारूक;
7. मशुल्लाम, अबिय्याह, मिय्यामीन;
8. माज्याह, बिलगै और शमायाह; थे ही तो याजक थे।
9. और लेवी थे थे : आजन्याह का पुत्र थेशू, हेनादाद की सन्तान में से बिन्नई और कदमीएल;
10. और उनके भाई शबन्याह, होदिय्याह, कलीता, पलायाह, हानान;
11. मीका, रहोब, हशब्याह;
12. जक्कूर, शेरेब्याह, शबन्याह।
13. होदिय्याह, बानी और बनीन;
14. फिर प्रजा के प्रधान थे थे : परोश, पहत्मोआब, एलाम, जत्तू, बानी;
15. बुनी, अजगाद, बेबै;
16. अदोनिय्याह, बिग्वै, आदीन;
17. आतेर, हिजकिय्याह, मज्जूर;
18. होदिय्याह, हाशूम, बेसै;
19. हारीफ, अनातोत, नोबै;
20. मग्पीआश, मशुल्लाम, हेजीर;
21. मशेजबेल, सादोक, यद्दू;
22. पलत्याह, हानान, अनायाह;
23. होशे, हनन्याह, हश्शूब;
24. हल्लोहेश, पिल्हा, शोबेक;
25. रहूम, हशब्ना, माशेयाह;
26. अहिय्याह, हानान, आनान;
27. मल्लूक, हारीम और बाना।
28. शेष लोग अर्यात् याजक, लेवीय, द्वारपाल, गवैथे और नतीन लोग, निदान जितने परमेश्वर की व्यवस्या मानने के लिथे देश देश के लोगोंसे अलग हुए थे, उन सभें ने अपक्की स्त्रियोंऔर उन बेटें-बेटियोंसमेत जो समझनेवाले थे,
29. अपके भाई रईसोंसे मिलकर शपय खाई, कि हम परमेश्वर की उस व्यवस्या पर चलेंगे जो उसके दास मूसा के द्वारा दी गई है, और अपके प्रभु यहोवा की सब आज्ञाएं, नियम और विधियां मानने में चौकसी करेंगे।
30. और हम न तो अपक्की बेटियां इस देश के लोगोंको ब्याह देंगे, और न अपके बेटोंके लिथे उनकी बेटियां ब्याह लेंगे।
31. और जब इस देश के लोग विश्रमदिन को अन्न वा और बिकाऊ वस्तुएं बेचने को ले आथेंगे तब हम उन से न तो विश्रमदिन को न किसी पवित्र दिन को कुछ लेंगे; और सातवें वर्ष में भूमि पक्की रहने देंगे, और अपके अपके ॠण की वसूली छोड़ देंगे।
32. फिर हम लोगोंने ऐसा नियम बान्ध लिया जिस से हम को अपके परमेश्वर के भवन की उपासना के लिथे एक एक तिहाई शेकेल देना पकेगा:
33. अर्यात् भेंट की रोटी और नित्य अन्नबलि और नित्य होमबलि के लिथे, और विश्रमदिनोंऔर नथे चान्द और नियत पब्बॉं के बलिदानोंऔर और पवित्र भेंटोंऔर इस्राएल के प्रायश्चित्त के निमित्त पाप बलियोंके लिथे, निदान अपके परमेश्वर के भवन के सारे काम के लिथे।
34. फिर क्या याजक, क्या लेवीय, क्या साधारण लोग, हम सभोंने इस बात के ठहराने के लिथे चिट्ठियां डालीं, कि अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार प्रति वर्ष में ठहराए हुए समयोंपर लकड़ी की भेंट व्यवस्या में लिखी हुई बात के अनुसार हम अपके परमेश्वर यहोवा की वेदी पर जलाने के लिथे अपके परमेश्वर के भवन में लाया करेंगे।
35. और अपक्की अपक्की भूमि की पहिली उपज और सब भांति के वृझोंके पहिले फल प्रति वर्ष यहोवा के भवन में ले आएंगे।
36. और व्यवस्या में लिखी हुई बात के अनुसार, अपके अपके पहिलौठे बेटोंऔर पशुओं, अर्यात् पहिलौठे बछड़ोंऔर मेम्नोंको अपके परमेश्वर के भवन में उन याजकोंके पास लाया करेंगे, जो हमारे परमेश्वर के भवन में सेवा टहल करते हैं।
37. और अपना पहिला गूंधा हुआ आटा, और उठाई हुई भेंटे, और सब प्रकार के वृझोंके फल, और नया दाखमधु, और टटका तेल, अपके परमेश्वर के भवन की कोठरियोंमें याजकोंके पास, और अपक्की अपक्की भूमि की उपज का दशमांश लेवियोंके पास लाया करेंगे; क्योंकि वे लेवीय हैं, जो हमारी खेती के सब नगरोंमें दशमांश लेते हैं।
38. और जब जब लेवीय दशमांश लें, तब तब उनके संग हारून की सन्तान का कोई याजक रहा करे; और लेवीय दशमांशोंका दशमांश हमारे परमेश्वर के भवन की कोठरियोंमें अर्यात् भणडार में पहुंचाया करेंगे।
39. क्योंकि जिन कोठरियोंमें पवित्र स्यान के पात्र और सेवा टहल करनेवाले याजक और द्वारपाल और गवैथे रहते हैं, उन में इस्राएली और लेवीय, अनाज, नथे दाखपधु, और टटके तेल की उठाई हुई भेंटे पहुंचाएंगे। निदान हम अपके परमेश्वर के भवन को न छोड़ेंगे।
Chapter 11
1. प्रजा के हाकिम तो यरूशलेम में रहते थे, और शेष लोगोंने यह ठहराने के लिथे चिट्ठियां डालीं, कि दस में से एक मनुष्य यरूशलेम में, जो पवित्र नगर है, बस जाएं; और नौ मनुष्य और और नगरोंमें बसें।
2. और जिन्होंने अपक्की ही इच्छा से यरूशलेम में वास करना चाहा उन सभोंको लोगोंने आशिर्वाद दिया।
3. उस प्रान्त के मुख्य मुख्य पुरुष जो यरूशलेम में रहते थे, वे थे हैं; (परन्तु यहूदा के नगरोंमें एक एक मनुष्य अपक्की निज भूमि में रहता या; अर्यात् इस्राएली, याजक, लेवीय, नतीन और सुलैमान के दासोंके सन्तान )
4. यरूशलेम में तो कुछ यहूदी और बिन्यामीनी रहते थे। यहूदियोंमें से तो थेरेस के वंश का अतायाह जो अज्जिय्याह का पुत्र या, यह जकर्याह का पुत्र, यह अमर्याह का पुत्र, यह शपत्याह का पुत्र, यह महललेल का पुत्र या।
5. और मासेयाह जो बारूक का पुत्र या, यह कोलहोजे का पुत्र, यह हजायाह का पुत्र, यह अदायाह का पुत्र, यह योयारीब का पुत्र, यह जकर्याह का पुत्र, यह और यह शीलोई का पुत्र या।
6. पेरेस के वंश के जो यरूशलेम में रहते थे, वह सब मिलाकर चार सौ अड़सठ शूरवीर थे।
7. और बिन्यामीनियोंमें से सल्लू जो मशुल्लाम का पुत्र या, यह योएद का पुत्र, यह पदायाह का पुत्र या, यह कोलायाह का पुत्र यह मासेयाह का पुत्र, यह इतीएह का पुत्र, यह यशायाह का पुत्र या।
8. और उसके बाद गब्यै सल्लै जिनके साय नौ सौ अट्ठाईस पुरुष थे।
9. इनका रखवाल जिक्री का पुत्र योएल या, और हस्सनूआ का पुत्र यहूदा नगर के प्रधान का नायब या।
10. फिर याजकोंमें से योयारीब का पुत्र यदायाह और याकीन।
11. और सरायाह जो परमेश्वर के भवन का प्रधान और हिल्किय्याह का पुत्र या, यह मशुल्लाम का पुत्र, यह सादोक का पुत्र, यह मरायोत का पुत्र, यह अहीतूब का पुत्र या।
12. और इनके आठ सौ बाईस भाई जो उस भवन का काम करते थे; और अदायाह, जो यरोहाम का पुत्र या, यह पलल्याह का वुत्र, यह अम्सी का पुत्र, यह जकर्याह का पुत्र, यह पशहूर का पुत्र, यह मल्किय्याह का पुत्र या।
13. और इसके दो सौ बयालीस भाई जो पितरोंके घरानोंके प्रधान थे; और अमशै जो अजरेल का पुत्र या, यह अहजै का पुत्र, यह मशिल्लेमोत का पुत्र, यह इम्मेर का पुत्र या।
14. और इनके एक सौ अट्ठाईस शूरवीर भाई थे और इनका रखवाल हग्गदोलीम का पुत्र जब्दीएल या।
15. फिर लेवियोंमें से शमायाह जो हश्शूब का पुत्र या, यह अज्रीकाम का पुत्र, यह हुशब्याह का पुत्र, यह बुन्नी का पुत्र या।
16. ओर शब्बत और योजाबाद मुख्य लेवियोंमें से परमेश्वर के भवन के बाहरी काम पर ठहरे थे।
17. और मत्तन्याह जो मीका का पुत्र और जब्दी का पोता, और आसाप का परपोता या; वह प्रार्यना में धन्यवाद करनेवालोंका मुखिया या, और बकबुक्याह अपके भाइयोंमें दूसरा पद रखता या; और अब्दा जो शम्मू का पुत्र, और गालाल का पोता, और यदूतून का परपोता या।
18. जो लेवीय पवित्र नगर में रहते थे, वह सब मिलाकर दो सौ चौरासी थे।
19. और अक्कूब और तल्मोन नाम द्वारपाल और उनके भाई जो फाटकोंके रखवाले थे, एक सौ बहत्तर थे।
20. और शेष इस्राएली याजक और लेवीय, यहूदा के सब नगरोंमें अपके अपके भाग पर रहते थे।
21. और नतीन लोग ओपेल में रहते; और नतिनोंके ऊपर सीहा, और गिश्पा ठहराए गए थे।
22. और जो लेवीय यरूशलेम में रहकर परमेश्वर के भवन के काम में लगे रहते थे, उनका मुखिया आसाप के वंश के गवैयोंमें का उज्जी या, जो बानी का पुत्र या, यह हशब्याह का पुत्र, यह मत्तन्याह का पुत्र और यह हशब्याह का पुत्र या।
23. क्योंकि उनके विषय राजा की आज्ञा यी, और गवैयोंके प्रतिदिन के प्रयोजन के अनुसार ठीक प्रबन्ध या।
24. और प्रजा के सब काम के लिथे मशेजबेल का पुत्र पतह्याह जो यहूदा के पुत्र जेरह के वंश में या, वह राजा के पास रहता या।
25. बच गए गांव और उनके खेत, सो कुछ यहूदी किर्यतर्बा, और उनके गांव में, कुछ दीबोन, और उसके गांवोंमें, कुछ यकब्सेल और उसके गांवोंमें रहते थे।
26. फिर थेशू, मोलादा, बेत्पेलेत;
27. हमर्शूआल, और बेर्शेबा और और उसके गांवोंमें;
28. और सिकलग और मकोना और उनके गांवोंमें;
29. एन्निम्मोन, सोरा, यर्मूत,
30. जानोह और अदूल्लाम और उनके गांवोंमें, लाकीश, और उसके खेतोंमें अजेका, और उसके गांवोंमें वे बेर्शेबा से ले हिन्नोम की तराई तक डेरे डाले हुए रहते थे।
31. और बिन्यामीनी गेबा से लेकर मिकमश, अय्या और बेतेल और उसके गांवोंमें;
32. अनातोत, नोब, अनन्याह,
33. हासोर, रामा, गित्तैम,
34. हादीद, सबोईम, नबल्लत,
35. लोद, ओनो और कारीगरोंकी तराई तक रहते थे।
36. और कितने लेवियोंके दल यहूदा और बिन्यामीन के प्रान्तोंमें बस गए।
Chapter 12
1. जो याजक और लेवीय शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल और थेशू के संग यरूशलेम को गए थे, वे थे थे : अर्यात् सरायाह, यिर्मयाह, एज्रा,
2. अमर्याह, मल्लूक, हत्तूश,
3. शकन्याह, रहूम, मरेमोत,
4. इद्दो, गिन्नतोई, अबिय्याह,
5. मीय्यामीन, माद्याह, बिलगा,
6. शमायाह, योआरीब, यदायाह,
7. सल्लू, आमोक, हिल्किय्याह और यदायाह। थेशू के दिनोंमें याजकोंऔर उनके भाइयोंके मुख्य मुख्य पुरुष, थे ही थे।
8. फिर थे लेवीय गए : अर्यात् थेशू, बिन्नूई, कदमीएल, शेरेब्याह, यहूदा और वह मत्तन्याह जो अपके भाइयोंसमेत धन्यवाद के काम पर ठहराया गया या।
9. और उनके भाई बकबुक्याह और उन्नो उनके साम्हने अपक्की अपक्की सेवकाई में लगे रहते थे।
10. और थेशू से योयाकीम उत्पन्न हुआ और योयाकीम से एल्याशीब और एल्याशीब से योयादा,
11. और योयादा से योनातान और योनातान से यद्द उत्पन्न हुआ।
12. और योयाकीम के दिनोंमें थे याजक अपके अपके पितरोंके घराने के मुख्य पुरुष थे, अर्यात् शरायाह का तो मरायाह; यिर्मयाह का हनन्याह।
13. एज्रा का मशुल्लाम; अमर्याह का यहोहानान।
14. मल्लूकी का योनातान; शबन्याह का योसेप।
15. हारीम का अदना; मरायोत का हेलकै।
16. इद्दो का जकर्याह; गिन्नतोन का मशुल्लाम।
17. अबिय्याह का जिक्री; मिन्यामीन के मोअद्याह का पिलतै।
18. बिलगा का शम्मू; शामायह का यहोनातान।
19. योयारीब का मत्तनै; यदायाह का उज्जी।
20. सल्लै का कल्लै; आमोक का एबेर।
21. हिल्किय्याह का हशब्याह; और यदायाह का नतनेल।
22. एल्याशीब, योयादा, योहानान और यद्द के दिनोंमें लेवीय पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुषोंके नाम लिखे जाते थे, और दारा फारसी के राज्य में याजकोंके भी नाम लिखे जाते थे।
23. जो लेवीय पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुष थे, उनके नाम एल्याशीब के पुत्र योहानान के दिनोंतक इतिहास की पुस्तक में लिखे जाते थे।
24. और लेवियोंके मुख्य पुरुष थे थे : अर्यात् हसब्याह, शेरेब्याह और कदमीएल का पुत्र थेशू; और उनके साम्हने उनके भाई परमेश्वर के भक्त दाऊद की आज्ञा के अनुसार आम्हने-साम्हने स्तुति और धन्यवाद करने पर नियुक्त थे।
25. मत्तन्याह, बकबुक्याह, ओबद्याह, मशुल्लाम, तल्मोन और अक्कूब फाटकोंके पास के भणडारोंका पहरा देनेवाले द्वारपाल थे।
26. योयाकीम के दिनोंमें जो योसादाक का पोता और थेशू का पुत्र या, और नहेमायाह अधिपति और एज्रा याजक और शास्त्री के दिनोंमें थे ही थे।
27. और यरूशलेम की शहरपनाह की प्रतिष्ठा के समय लेवीय अपके सब स्यानोंमें ढूंढ़े गए, कि यरूशलेम को पहुंचाए जाएं, जिस से आनन्द और धन्यवाद करके और फांफ, सारंगी और वीणा बजाकर, और गाकर उसकी प्रतिष्ठा करें।
28. तो गवैयोंके सन्तान यरूशलेम के चारोंओर के देश से और नतोपातियोंके गांवोंसे,
29. और बेतगिलगाल से, और गेबा और अज्माबेत के खेतोंसे इकट्ठे हुए; क्योंकि गवैयोंने यरूशलेम के आस-पास गांव बसा लिथे थे।
30. तब याहकोंऔर लेवियोंने अपके अपके को शुद्ध किया; और उन्होंने प्रजा को, और फाटकोंऔर शहरपनाह को भी शुद्ध किया।
31. तब मैं ने यहूदी हाकिमोंको शहरपनाह पर चढ़ाकर दो बड़े दल ठहराए, जो धन्यवाद करते हुए धूमधाम के साय चलते थे। इनमें से एक दल तो दक्खिन ओर, अर्यात् कूड़ाफाटक की ओर शहरपनाह के ऊपर ऊपर से चला;
32. और उसके पीछे पीछे थे चले, अर्यात् होशयाह और यहूदा के आधे हाकिम,
33. और अजर्याह, एज्रा, मशुल्लाम,
34. यहूदा, बिन्यामीन, शमायाह, और यिर्मयाह,
35. और याजकोंके कितने पुत्र तुरहियां लिथे हुए : अर्यात् जकर्याह जो योहानान का पुत्र या, यह शमायाह का पुत्र, यह मत्तन्याह का पुत्र, यह मीकायाह का पुत्र, यह जक्कूर का पुत्र, यह आसाप का पुत्र या।
36. और उसके भाई शमायाह, अजरेल, मिललै, गिललै, माऐ, नतनेल, यहूदा और हनानी परमेश्वर के भक्त दाऊद के बाजे लिथे हुए थे; और उनके आगे आगे एज्रा शास्त्री चला।
37. थे सेताफाटक से हो सीधे दाऊदपुर की सीढ़ी पर चढ़, शहरपनाह की ऊंचाई पर से चलकर, दाऊद के भवन के ऊपर से होकर, पूरब की ओर जलफाटक तक पहुंचे।
38. और धन्यवाद करने और धूमधाम से चलनेवालोंका दूसरा दल, और उनके पीछे पीछे मैं, और आधे लोग उन से मिलने को शहरपनाह के ऊपर ऊपर से भट्ठोंके गुम्मट के पास से चौड़ी शहरपनाह तक।
39. और एप्रैम के फाटक और पुराने फाटक, और मछलीफाटक, और हननेल के गुम्मट, और हम्मेआ नाम गुम्मट के पास से होकर भेड़ फाटक तक चले, और पहरुओं के फाटक के पास खड़े हो गए।
40. तब धन्यवाद करने वालोंके दोनोंदल और मैं और मेरे साय आधे हाकिम परमेश्वर के भवन में खड़े हो गए।
41. और एल्याकीम, मासेयाह, मिन्यामीन, मीकायाह, एल्योएनै, जकर्याह और हनन्याह नाम याजक तुरहियां लिथे हुए थे।
42. और मासेयाह, शमायाह, एलीआजर, उज्जी, यहोहानान, मल्किय्याह, एलाम, ओर एजेर (खड़े हुए थे) और गवैथे जिनका मुखिया यिज्रह्याह या, वह ऊंचे स्वर से गाते बजाते रहे।
43. उसी दिन लोगोंने बड़े बड़े मेलबलि चढ़ाए, और आनन्द लिया; क्योंकि परमेश्वर ने उनको बहुत ही आनन्दित किया या; स्त्रियोंने और बालबच्चोंने भी आनन्द किया। और यरूशलेम के आनन्द की ध्वनि दूर दूर तक फैल गई।
44. उसी दिन खज़ानों के, उठाई हुई भेंटोंके, पहिली पहिली उपज के, और दशमांशोंकी कोठरियोंके अधिक्कारनेी ठहराए गए, कि उन में नगर नगर के खेतोंके अनुसार उन वस्तुओं को जमा करें, जो व्यवस्या के अनुसार याजकोंऔर लेवियोंके भाग में की यी; क्योंकि यहूदी उपस्य्ित याजकोंऔर लेवियोंके कारण आनन्दित थे।
45. इसलिथे वे अपके परमेश्वर के काम और शुद्धता के विषय चौकसी करते रहे; और गवैथे ओर द्वारपाल भी दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान की आज्ञा के अनुसार वैसा ही करते रहे।
46. प्राचीनकाल, अर्यात् दाऊद और आसाप के दिनोंमें तो गवैयोंके प्रधान थे, और परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद के गीत गाए जाते थे।
47. और जरुब्बाबेल और नहेमायाह के दिनोंमें सारे इस्राएली, गवैयोंऔर द्वारपालोंके प्रतिदिन का भाग देते रहे; और वे लेवियोंके अंश पवित्र करके देते थे; और लेवीय हारून की सन्तान के अंश पवित्र करके देते थे।
Chapter 13
1. उसी दिन मूसा की पुस्तक लोगोंको पढ़कर सुनाई गई; और उस में यह लिखा हुआ मिला, कि कोई अम्मोनी वा मोआबी परमेश्वर की सभा में कभी न आने पाए;
2. क्योंकि उन्होंने अन्न जल लेकर इस्राएलियोंसे भेंट नहीं की, वरन बिलाम को उन्हें शाप देने के लिथे दझिणा देकर बुलवाया या--तौभी हमारे परमेश्वर ने उस शाप को आशीष से बदल दिया।
3. यह व्यवस्या सुनकर, उन्होंने इस्राएल में से मिली जुली भीड़ को अलग अलग कर दिया।
4. इस से पहिले एल्याशीब याजक जो हमारे परमेश्वर के भवन की कोठरियोंका अधिक्कारनेी और तोबिय्याह का सम्बन्धी या।
5. उस ने तोबिय्याह के लिथे एक बड़ी कोठरी तैयार की यी जिस में पहिले अन्नबलि का सामान और लोबान और पात्र और अनाज, नथे दाखमधु और टटके तेल के दशमांश, जिन्हें लेवियों, गवैयोंऔर द्वारपालोंको देने की आज्ञा यी, रखी हुई यी; और याजकोंके लिथे उठाई हुई भेंट भी रखी जाती यीं।
6. परन्तु मैं इस समय यरूशलेम में नहीं या, क्योंकि बाबेल के राजा अर्तझत्र के बत्तीसवें वर्ष में मैं राजा के पास चला गया। फिर कितने दिनोंके बाद राजा से छुट्टी मांगी,
7. और मैं यरूशलेम को आया, तब मैं ने जान लिया, कि एल्याशीब ने तोबिय्याह के लिथे परमेश्वर के भवन के आंगनोंमें एक कोठरी तैयार कर, क्या ही बुराई की है।
8. इसे मैं ने बहुत बुरा माना, और तोबिय्याह का सारा घरेलू सामान उस कोठरी में से फेंक दिया।
9. तब मेरी आज्ञा से वे कोठरियां शुद्ध की गई, और मैं ने परमेश्वर के भवन के पात्र और अन्नबलि का सामान और लोबान उन में फिर से रखवा दिया।
10. फिर मुझे मालूम हुआ कि लेवियोंका भाग उन्हें नहीं दिया गया है; और इस कारण काम करनेवाले लेवीय और गवैथे अपके अपके खेत को भाग गए हैं।
11. तब मैं ने हाकिमोंको डांटकर कहा, परमेश्वर का भवन क्योंत्यागा गया है? फिर मैं ने उनको इकट्ठा करके, एक एक को उसके स्यान पर नियुक्त किया।
12. तब से सब यहूदी अनाज, नथे दाखमधु और टटके तेल के दशमांश भणडारोंमें लाने लगे।
13. और मैं ने भणडारोंके अधिक्कारनेी शेलेम्याह याजक और सादोक मुंशी को, और लेवियोंमें से पदायाह को, और उनके नीचे हानान को, जो मत्तन्याह का पोता और जक्कूर का पुत्र या, नियुक्त किया; वे तो विश्वासयोग्य गिने जाते थे, और अपके भाइयोंके मय बांटना उनका काम या।
14. हे मेरे परमेश्वर ! मेरा यह काम मेरे हित के लिथे स्मरण रख, और जो जो सुकर्म मैं ने अपके परमेश्वर के भवन और उस में की आराधना के विषय किए हैं उन्हे मिटा न डाल।
15. उन्हीं दिनोंमें मैं ने यहूदा में कितनोंको देखा जो विश्रमदिन को हैदोंमें दाख रौंदते, और पूलियोंको ले आते, और गदहोंपर लादते थे; वैसे ही वे दाखमधु, दाख, अंजीर और भांति भांति के बोफ विश्रमदिन को यरूशलेम में लाते थे; तब जिस दिन वे भोजनवस्तु बेचते थे, उसी दिन मैं ने उनको चिता दिया।
16. फिर उस में सोरी लोग रहकर मछली और भांति भांति का सौदा ले आकर, यहूदियोंके हाथ यरूशलेम में विश्रमदिन को बेचा करते थे।
17. तब मैं ने यहूदा के रईसोंको डांटकर कहा, तुम लोग यह क्या बुराई करते हो, जो विश्रमदिन को अपवित्र करते हो?
18. क्या तुम्हारे पुरखा ऐसा नहीं करते थे? और क्या हमारे परमेश्वर ने यह सब विपत्ति हम पर और इस नगर पर न डाली? तौभी तुम विश्रमदिन को अपवित्र करने से इस्राएल पर परमेश्वर का क्रोध और भी भड़काते जाते हो।
19. सो जब विश्रमवार के पहिले दिन को यरूशलेम के फाटकोंके आस-पास अन्ध्ेरा होने लगा, तब मैं ने आज्ञा दी, कि उनके पल्ले बन्द किए जाएं, और यह भी आज्ञा दी, कि वे विश्रमवार के पूरे होने तक खोले न जाएं। तब मैं ने अपके कितने सेवकोंको फाटकोंका अधिक्कारनेी ठहरा दिया, कि विश्रमवार को कोई बोफ भीतर आने न पाए।
20. इसलिथे व्योपारी और भांति भांति के सौदे के बेचनेवाले यरूशलेम के बाहर दो एक बेर टिके।
21. तब मैं ने उनको चिताकर कहा, तुम लोग शहरपनाह के साम्हने क्योंटिकते हो? यदि तुम फिर ऐसा करोगे तो मैं तुम पर हाथ बढ़ाऊंगा। इसलिथे उस समय से वे फिर विश्रमबार को नहीं आए।
22. तब मैं ने लेवियोंको आज्ञा दी, कि अपके अपके को शुद्ध करके फाटकोंकी रखवाली करने के लिथे आया करो, ताकि विश्रमदिन पवित्र माना जाए। हे मेरे परमेश्वर ! मेरे हित के लिथे यह भी स्मरण रख और अपक्की बड़ी करुणा के अनुसार मुझ पर तरस खा।
23. फिर उन्हीं दिनोंमें मुझ को ऐसे यहूदी दिखाई पके, जिन्होंने अशदोदी, अम्मोनी और मोआबी स्त्रियां ब्याह ली यीं।
24. और उनके लड़केबालोंकी आधी बोली अशदोदी थी, और वे यहूदी बोली न बोल सकते थे, दोनोंजाति की बोली बोलते थे।
25. तब मैं ने उनको डांटा और कोसा, और उन में से कितनोंको पिटवा दिया और उनके बाल नुचवाए; और उनको परमेश्वर की यह शपय खिलाई, कि हम अपक्की बेटियां उनके बेटोंके साय ब्याह में न देंगे और न अपके लिथे वा अपके बेटोंके लिथे उनकी बेटियां ब्याह में लेंगे।
26. क्या इस्राएल का राजा सुलैमान इसी प्रकार के पाप में न फंसा य? बहुतेरी जातियोंमें उसके तुल्य कोई राजा नहीं हुआ, और वह अपके परमेश्वर का प्रिय भी या, और परमेश्वर ने उसे सारे इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त किया; परन्तु उसको भी अन्यजाति स्त्रियोंने पाप में फंसाया।
27. तो क्या हम तुम्हारी सुनकर, ऐसी बड़ी बुराई करें कि अन्यजाति की स्त्रियां ब्याह कर अपके परमेश्वर के विरुद्ध पाप करें?
28. और एल्याशीब महाथाजक के पुत्र योयादा का एक पुत्र, होरोनी सम्बल्लत का दामाद या, इसलिथे मैं ने उसको अपके पास से भगा दिया।
29. हे मेरे परमेश्वर उनकी हानि के लिथे याजकपद और याजकोंओर लेवियोंकी वाचा का तोड़ा जाना स्मरण रख।
30. इस प्रकार मैं ने उनको सब अन्यजातियोंसे शुद्ध किया, और एक एक याजक और लेवीय की बारी और काम ठहरा दिया।
31. फिर मैं ने लकड़ी की भेंट ले आने के विशेष समय ठहरा दिए, और पहिली पहिली उपज के देने का प्रबन्ध भी किया। हे मेरे परमेश्वर ! मेरे हित के लिथे मुझे स्मरण कर।
Chapter 1
1. हकल्याह के पुत्र नहेमायाह के वचन। बीसवें वर्ष के किसलवे नाम महीने में, जब मैं शूशन नाम राजगढ़ में रहता या,
2. तब हनानी नाम मेरा एक भाई और यहूदा से आए हुए कई एक पुरुष आए; तब मैं ने उन से उन बचे हुए यहूदियोंके विषय जो बन्धुआई से छूट गए थे, और यरूशलेम के विष्य में पूछा।
3. उन्होंने मुझ से कहा, जो बचे हुए लोग बन्धुआई से छूटकर उस प्रान्त में रहते हैं, वे बड़ी दुर्दशा में पके हैं, और उनकी निन्दा होती है; क्योंकि यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई, और उसके फाटक जले हुए हैं।
4. थे बातें सुनते ही मैं बैठकर रोने लगा और कितने दिन तक विलाप करता; और स्वर्ग के परमेश्वर के सम्मुख उपवास करता और यह कहकर प्रार्यना करता रहा।
5. हे स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा, हे महान और भययोग्य ईश्वर ! तू जो अपके प्रेम रखनेवाले और आज्ञा माननेवाले के विष्य अपक्की वाचा पालता और उन पर करुणा करता है;
6. तू कान लगाए और आंखें खोले रह, कि जो प्रार्यना मैं तेरा दास इस समय तेरे दास इस्राएलियोंके लिथे दिन रात करता रहता हूँ, उसे तू सुन ले। मैं इस्राएलियोंके पापोंको जो हम लोगोंने तेरे विरुद्ध किए हैं, मान लेता हूँ। मैं और मेरे पिता के घराने दोनोंने पाप किया है।
7. हम ने तेरे साम्हने बहुत बुराई की है, और जो आज्ञाएं, विधियां और नियम तू ने अपके दास मूसा को दिए थे, उनको हम ने नहीं माना।
8. उस वचन की सुधि ले, जो तू ने अपके दास मूसा से कहा या, कि यदि तुम लोग विश्वासघात करो, तो मैं तुम को देश देश के लोगोंमें तितर बितर करूंगा।
9. परन्तु यदि तुम मेरी ओर फिरो, और मेरी आज्ञाएं मानो, और उन पर चलो, तो चाहे तुम में से निकाले हुए लोग आकाश की छोर में भी हों, तौभी मैं उनको वहां से इकट्ठा करके उस स्यान में पहुंचाऊंगा, जिसे मैं ने अपके नाम के निवास के लिथे चुन लिया है।
10. अब वे तेरे दास और तेरी प्रजा के लोग हैं जिनको तू ने अपक्की बड़ी सामर्य और बलवन्त हाथ के द्वारा छुड़ा लिया है।
11. हे प्रभु बिनती यह है, कि तू अपके दास की प्रार्यना पर, और अपके उन दासोंकी प्रार्यना पर, जो तेरे नाम का भय मानना चाहते हैं, कान लगा, और आज अपके दास का काम सुफल कर, और उस पुरुष को उस पर दयालु कर। (मैं तो राजा का पियाऊ या।)
Chapter 2
1. अर्तझत्र राजा के बीसवें वर्ष के नीसान नाम महीने में, जब उसके साम्हने दाखमधु या, तब मैं ने दाखमधु उठाकर राजा को दिया। इस से पहिले मैं उसके साम्हने कभी उदास न हुआ या।
2. तब राजा ने मुझ से पूछा, तू तो रेगी नहीं है, फिर तेरा मुंह क्योंउतरा है? यह तो मन ही की उदासी होगी।
3. तब मैं अत्यन्त डर गया। और राजा से कहा, राजा सदा जीवित रहे ! जब वह नगर जिस में मेरे पुरखाओं की कबरें हैं, उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं, तो मेरा मुंह क्योंन उतरे?
4. राजा ने मुझ से पूछा, फिर तू क्या मांगता है? तब मैं ने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्यना करके, राजा से कहा;
5. यदि राजा को भाए, और तू अपके दास से प्रसन्न हो, तो मुझे यहूदा और मेरे पुरखाओं की कबरोंके नगर को भेज, ताकि मैं उसे बनाऊं।
6. तब राजा ने जिसके पास रानी भी बैठी यी, मुझ से पूछा, तू कितने दिन तक यात्रा में रहेगा? और कब लैटेगा? सो राजा मुझे भेजने को प्रसन्न हुआ; और मैं ने उसके लिथे एक समय नियुक्त किया।
7. फिर मैं ने राजा से कहा, यदि राजा को भाए, तो महानद के पार के अधिपतियोंके लिथे इस आशय की चिट्ठियां मुझे दी जाएं कि जब तक मैं यहूदा को न महुंचूं, तब तक वे मुझे अपके अपके देश में से होकर जाने दें।
8. और सरकारी जंगल के रखवाले आसाप के लिथे भी इस आशय की चिट्ठी मुझे दी जाए ताकि वह मुझे भवन से लगे हुए राजगढ़ की कडिय़ोंके लिथे, और शहरपनाह के, और उस घर के लिथे, जिस में मैं जाकर रहूंगा, लकड़ी दे। मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर यी, इसलिथे राजा ने यह बिनती ग्रहण किया।
9. तब मैं ने महानद के पार के अधिपतियोंके पास जाकर उन्हें राजा की चिट्ठियां दीं। राजा ने मेरे संग सेनापति और सवार भी भेजे थे।
10. यह सुनकर कि एक मनुष्य इस्राएलियोंके कल्याण का उपाय करने को आया है, होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नाम कर्मचारी जो अम्मोनी या, उन दोनोंको बहुत बुरा लगा।
11. जब मैं यरूशलेम पहुंच गया, तब वहां तीन दिन रहा।
12. तब मैं योड़े पुरुषोंको लेकर रात को उठा; मैं ने किसी को नहीं बताया कि मेरे परमेश्वर ने यरूशलेम के हित के लिथे मेरे मन में क्या उपजाया या। और अपक्की सवारी के पशु को छोड़ कोई पशु मेरे संग न या।
13. मैं रात को तराई के फाटक में होकर निकला और अजगर के सोते की ओर, और कूड़ाफाटक के पास गया, और यरूशलेम की टूटी पक्की हुई शहरपनाह और जले फाटकोंको देखा।
14. तब मैं आगे बढ़कर सोते के फाटक और राजा के कुणड के पास गया; परन्तु मेरी सवारी के पशु के लिथे आगे जाने को स्यान न या।
15. तब मैं रात ही रात नाले से होकर शहरपनाह को देखता हुआ चढ़ गया; फिर घूमकर तािई के फाटक से भीतर आया, और इस प्रकार लौट आया।
16. और हाकिम न जानते थे कि मैं कहां गया और क्या करता या; वरन मैं ने तब तक न तो यहूदियोंको कुछ बताया या और न याजकोंऔर न रईसोंऔर न हाकिमोंऔर न दूसरे काम करनेवालोंको।
17. तब मैं ने उन से कहा, तुम तो आप देखते हो कि हम कैसी दुर्दशा में हैं, कि यरूशलेम उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं। तो आओ, हम यरूशलेम की शहरपनाह को बनाएं, कि भविष्य में हमारी नामधराई न रहे।
18. फिर मैं ने उनको बतलाया, कि मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर कैसी हुई और राजा ने मुझ से क्या क्या बातें कही यीं। तब उन्होंने कहा, आओ हम कमर बान्धकर बनाने लगें। और उन्होंने इस भले काम को करने के लिथे हियाव बान्ध लिया।
19. यह सुनकर होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नाम कर्मचारी जो अम्मोनी या, और गेशेम नाम एक अरबी, हमेें ठट्ठोंमें उड़ाने लगे; और हमें तुच्छ जानकर कहन लगे, यह तुम क्या काम करते हो।
20. क्या तुम राजा के विरुद्ध बलवा करोगे? तब मैं ने उनको उत्तर देकर उन से कहा, स्वर्ग का परमेश्वर हमारा काम सुफल करेगा, इसलिथे हम उसके दास कमर बान्धकर बनाएंगे; परन्तु यरूशलेम में तुम्हारा न तो कोई भाग, न हक्क, न स्मारक है।
Chapter 3
1. तब एल्याशीब महाथाजक ने अपके भाई याजकोंसमेत कमर बान्धकर भेड़फाटक को बनाया। उन्होंने उसकी प्रतिष्ठा की, और उसके पल्लोंको भी लगाया; और हम्मेआ नाम गुम्मट तक वरन हननेल के गुम्मट के पास तक उन्होंने शहरपनाह की प्रतिष्ठा की।
2. उस से आगे यरीहो के मनुष्योंने बनाया। और इन से आगे इम्री के पुत्र जक्कूर ने बनाया ।
3. फिर मछलीफाटक को हस्सना के बेटोंने बनाया; उन्होंने उसकी कडिय़ां लगाई, और उसके पल्ले, ताले और बेंड़े लगाए।
4. और उन से आगे मरेमोत ने जो हक्कोस का पोता और ऊरियाह का पुत्र या, मरम्मत की। और इन से आगे मशुल्लाम ने जो मशेजबेल का पोता, और बरेक्याह का पुत्र या, मरम्मत की। और इस से आगे बाना के पुत्र सादोक ने मरम्मत की।
5. और इन से आगे तकोइयोंने मरम्मत की; परन्तु उनके रईसोंने अपके प्रभु की सेवा का जूआ अपक्की गर्दन पर न लिया।
6. फिर पुराने फाटक की मरम्मत पासेह के पुत्र योयादा और बसोदयाह के पुत्र मशुल्लाम ने की; उन्होंने उसकी कडिय़ां लगाई, और उसके पल्ले, ताले और बेंड़े लगाए।
7. और उन से आगे गिबोनी मलत्याह और मेरोनोती यादोन ने और गिबोन और मिस्पा के मनुष्योंने महानद के पार के अधिपति के सिंहासन की ओर से मरम्मत की।
8. उन से आगे हर्हयाह के पुत्र उजीएल ने और और सुनारोंने मरम्मत की। और इस से आगे हनन्याह ने, जो गन्धियोंके समाज का या, मरम्मत की; और उन्होंने चौड़ी शहरपनाह तक यरूशलेम को दृढ़ किया।
9. और उन से आगे हूर के पुत्र रपायाह ने, जो यरूशलेम के आधे जिले का हाकिम या, मरम्मत की।
10. और उन से आगे हरुमप के पुत्र यदायाह ने अपके ही घर के साम्हने मरम्मत की; और इस से आगे हशब्नयाह के पुत्र हत्तूश ने मरम्मत की।
11. हारीम के पुत्र मल्कियाह और पहत्तोआब के पुत्र हश्शूब ने एक और भाग की, और भट्टोंके गुम्मट की मरम्मत की।
12. इस से आगे यरूशलेम के आधे जिले के हाकिम हल्लोहेश के पुत्र शल्लूम ने अपक्की बेटियोंसमेत मरम्मत की।
13. तराई के फाटक की मरम्मत हानून और जानोह के निवासियोंने की; उन्होंने उसको बनाया, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए, और हजार हाथ की शहरपनाह को भी अर्यात् कूड़ाफाटक तक बनाया।
14. और कूड़ाफाटक की मरम्मत रेकाब के पुत्र मल्कियाह ने की, जो बेयक्केरेम के जिले का हाकिम या; उसी ने उसको बनाया, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए।
15. और सोताफाटक की मरम्मत कोल्होजे के पुत्र शल्लूम ने की, जो मिस्पा के जिले का हाकिम या; उसी ने उसको बनाया और पाटा, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए; और उसी ने राजा की बारी के पास के शेलह नाम कुणड की शहरपनाह को भी दाऊदपुर से उतरनेवाली सीढ़ी तक बनाया।
16. उसके बाद अज अजबूक के पुत्र नहेमायाह ने जो बेतसूर के आधे जिले का हाकिम या, दाऊद के कब्रिस्तान के साम्हने तक और बनाए हुए पोखरे तक, वरन वीरोंके घर तक भी मरम्मत की।
17. इसके बाद बानी के पुत्र रहूम ने कितने लेवियोंसमेत मरम्मत की। इस से आगे कीला के आधे जिले के हाकिम हशब्याह ने अपके जिले की ओर से मरम्मत की।
18. उसके बाद उनके भाइयोंसमेत कीला के आधे जिले के हाकिम हेनादाद के पुत्र बव्वै ने मरम्मत की।
19. उस से आगे एक और भाग की मरम्मत जो शहरपनाह के मोड़ के पास शस्त्रें के घर की चढ़ाई के साम्हने है, थेशु के पुत्र एज़ेर ने की, जो मिस्पा का हाकिम या।
20. फिर एक और भाग की अर्यात् उसी मोड़ से ले एल्याशीब महाथाजक के घर के द्वार तक की मरम्मत जब्बै के पुत्र बारूक ने तन मन से की।
21. इसके बाद एक और भाग की अर्यात् एल्याशीब के घर के द्वार से ले उसी घर के सिक्के तक की मरम्मत, मरेमोत ने की, जो हक्कोस का पोता और ऊरियाह का पुत्र या।
22. उसके बाद उन याजकोंने मरम्मत की जो तराई के मनुष्य थे।
23. उनके बाद बिन्यामीन और हश्शूब ने अपके घर के साम्हने मरम्मत की; और इनके पीछे अजर्याह ने जो मासेयाह का पुत्र और अनन्याह का पोता या अपके घर के पास मरम्मत की।
24. तब एक और भाग की, अर्यात् अजर्याह के घर से लेकर शहरपनाह के मोड़ तक वरन उसके कोने तक की मरम्मत हेनादाद के पुत्र बिन्नूई ने की।
25. फिर उसी मोड़ के साम्हने जो ऊंचा गुम्मट राजभवन से बाहर निकला हुआ बन्दीगृह के आंगन के पास है, उसके साम्हने ऊजै के पुत्र पालाल ने मरम्मत की। इसके बाद परोश के पुत्र पदायाह ने मरम्मत की।
26. नतीन लोग तो ओपेल में पूरब की ओर जलफाटक के साम्हने तक और बाहर निकले हुए गुम्मट तक रहते थे।
27. पदायाह के बाद तकोइयोंने एक और भाग की मरम्मत की, जो बाहर तिकले हुए बड़े गुम्मट के साम्हने और ओबेल की शहरपनाह तक है।
28. फिर घोड़ाफाटक के ऊपर याजकोंने अपके अपके घर के साम्हने मरम्मत की।
29. इनके बाद इम्मेर के पुत्र सादोक ने अपके घर के साम्हने मरम्मत की; और तब पूरवी फाटक के रखवाले शकन्याह के पुत्र समयाह ने मरम्मत की।
30. इसके बाद शेलेम्याह के पुत्र हनन्याह और सालाप के छठवें पुत्र हानून ने एक और भाग की मरम्मत की। तब बेरेक्याह के पुत्र मशुल्लाम ने अपक्की कोठरी के साम्हने मरम्मत की।
31. उसके बाद मल्कियाह ने जो सुनार या नतिनोंऔर व्यापारियोंके स्यान तक ठहराए हुए स्यान के फाटक के साम्हने और कोने के कोठे तक मरम्मत की।
32. और कोनेवाले कोठे से लेकर भेड़फाटक तक सुनारोंऔर व्यापारियोंने मरम्मत की।
Chapter 4
1. जब सम्बल्लत ने सुना कि यहूदी लोग शहरपनाह को बना रहे हैं, तब उस ने बुरा माना, और बहुत रिसियाकर यहूदियोंको ठट्ठोंमें उड़ाने लगा।
2. वह अपके भाइयोंके और शोमरोन की सेना के साम्हने योंकहने लगा, वे निर्बल यहूदी क्या किया चाहते हैं? क्या वे वह काम अपके बल से करेंगे? क्या वे अपना स्यान दृढ़ करेंगे? क्या वे यज्ञ करेंगे? क्या वे आज ही सब काम निपटा डालेंगे? क्या वे मिट्टीके ढेरोंमें के जले हुए पत्य्रोंको फिर नथे सिक्के से बनाएंगे?
3. उसके पास तो अम्मोनी तोबियाह या, और वह कहने लगा, जो कुछ वे बना रहे हैं, यदि कोई गीदड़ भी उस पर चढ़े, तो वह उनकी बनाई हुई पत्यर की शहरपनाह को तोड़ देगा।
4. हे हमारे परमेश्वर सुन ले, कि हमारा अपमान हो रहा है; और उनका किया हुआ अपमान उन्हीं के सिर पर लौटा दे, और उन्हें बन्धुआई के देश में लुटवा दे।
5. और उनका अधर्म तू न ढांप, और न उनका पाप तेरे सम्मुख से मिटाया जाए; क्योंकि उन्होंने तुझे शहरपनाह बनानेवालोंके साम्हने क्रोध दिलाया है।
6. और हम लोगोंने शहरपनाह को बनाया; और सारी शहरपनाह आधी ऊंचाई तक जुड़ गई। क्योंकि लोगोंका मन उस काम में नित लगा रहा।
7. जब सम्बल्लत और तोबियाह और अरबियों, अम्मोनियोंऔर अशदोदियोंने सुना, कि यरूशलेम की शहरपनाह की मरम्मत होती जाती है, और उस में के नाके बन्द होने लगे हैं, तब उन्होंने बहुत ही बुरा माना;
8. और सभोंने एक मन से गोष्ठी की, कि जाकर यरूशलेम से लड़ें, और उस में गड़बड़ी डालें।
9. परन्तु हम लोगोंने अपके परमेश्वर से प्रार्यना की, और उनके डर के मारे उनके विरुद्ध दिन रात के पहरुए ठहरा दिए।
10. और यहूदी कहने लगे, ढोनेवालोंका बल घट गया, और मिट्टी बहुत पक्की है, इसलिथे शहरपनाह हम से नहीं बन सकती।
11. और हमारे शत्रु कहने लगे, कि जब तक हम उनके बीच में न महुंचे, और उन्हें घात करके वह काम बन्द न करें, तब तक उनको न कुछ मालूम होगा, और न कुछ दिखाई पकेगा।
12. फिर जो यहूदी उनके आस पास रहते थे, उन्होंने सब स्यानोंसे दस बार आ आकर, हम लोगोंसे कहा, तुम को हमारे पास लौट आना चाहिथे।
13. इस कारण मैं ने लोगोंको तलवारें, बछिर्यां और धनुष देकर शहरपनाह के पीछे सब से नीचे के खुले स्यानोंमें घराने घराने के अनुसार बैठा दिया।
14. तब मैं देखकर उठा, और रईसोंऔर हाकिमोंऔर और सब लोगोंसे कहा, उन से मत डरो; प्रभु जो महान और भययोग्य है, उसी को स्मरण करके, अपके भाइयों, बेटों, बेटियों, स्त्रियोंऔर घरोंके लिथे युद्ध करना।
15. जब हमारे शत्रुओं ने सुना, कि यह बात हम को मालूम हो गई है और परमेश्वर ने उनकी युक्ति निष्फल की है, तब हम सब के सब शहरपनाह के पास अपके अपके काम पर लौट गए।
16. और उस दिन से मेरे आधे सेवक तो उस काम मे लगे रहे और आधे बछिर्यों, तलवारों, धनुषोंऔर फिलमोंको धारण किए रहते थे; और यहूदा के सारे धराने के पीछे हाकिम रहा करते थे।
17. शहरपनाह के बनानेवाले और बोफ के ढोनेवाले दोनोंभार उठाते थे, अर्यत् एक हाथ से काम करते थे और दूसरे हाथ से हयियार पकड़े रहते थे।
18. और राज अपक्की अपक्की जांघ पर तलवार लटकाए हुए बनाते थे। और नरसिंगे का फूंकनेवाला मेरे पास रहता या।
19. इसलिथे मैं ने रईसों, हाकिमोंऔर सब लोगोंसे कहा, काम तो बड़ा और फैला हुआ है, और हम लोग शहरपनाह पर अलग अलग एक दूसरे से दूर रहते हैं।
20. इसलिथे जिधर से नरसिंगा तुम्हें सुनाई दे, उधर ही हमारे पास इकट्ठे हो जाना। हमारा परमेश्वर हमारी ओर से लड़ेगा।
21. योंहम काम में लगे रहे, और उन में आधे, पौ फटने से तारोंके निकलने तक बछिर्यां लिथे रहते थे।
22. फिर उसी समय मैं ने लोगोंसे यह भी कहा, कि एक एक मनुष्य अपके दास समेत यरूशलेम के भीतर रात बिताया करे, कि वे रात को तो हमारी रखवाली करें, और दिन को काम में लगे रहें।
23. और न तो मैं अपके कपके उतारता या, और न मेरे भाई, न मेरे सेवक, न वे पहरुए जो मेरे अनुचर थे, अपके कपके उतारते थे; सब कोई पानी के पास हयियार लिथे हुए जागते थे।
Chapter 5
1. तब लोग और उनकी स्त्रियोंकी ओर से उनके भाई यहूदियोंके किरुद्ध बड़ी चिल्लाहट मची।
2. कितने तो कहते थे, हम अपके बेटे-बेटियोंसमेत बहुत प्राणी हैं, इसलिथे हमें अन्न मिलना चाहिथे कि उसे खाकर जीवित रहें।
3. और कितने कहते थे, कि हम अपके अपके खेतों, दाख की बारियोंऔर घरोंको महंगी के कारण बन्धक रखते हैं, कि हमें अन्न मिले।
4. फिर कितने यह कहते थे, कि हम ने राजा के कर के लिथे अपके अपके खेतोंऔर दाख की बारियोंपर रुपया उधार लिया।
5. परन्तु हमारा और हमारे भाइयोंका शरीर और हमारे और उनके लड़केबाले एक ही समान हैं, तौभी हम अपके बेटे-बेटियोंको दास बनाते हैं; वरन हमारी कोई कोई बेटी दासी भी हो चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं जलता, क्योंकि हमारे खेत और दाख की बारियां औरोंके हाथ पक्की हैं।
6. यह चिल्लाहट ओर थे बातें सुनकर मैं बहुत क्रोधित हुआ।
7. तब अपके मन में सोच विचार करके मैं ने रईसोंऔर हाकिमोंको घुड़ककर कहा, तुम अपके अपके भाई से ब्याज लेते हो। तब मैं ने उनके विरुद्ध एक बड़ी सभा की।
8. और मैं ने उन से कहा, हम लोगोंने तो अपक्की शक्ति भर अपके यहूदी भाइयोंको जो अन्यजातियोंके हाथ बिक गए थे, दाम देकर छुड़ाया है, फिर क्या तुम अपके भाइयोंको बेचोगे? क्या वे हमारे हाथ बिकेंगे? तब वे चुप रहे और कुछ न कह सके।
9. फिर मैं कहता गया, जो काम तुम करते हो वह अच्छा नहीं है; क्या तुम को इस कारण हमारे परमेश्वर का भय मानकर चलना न चाहिथे कि हमारे शत्रु जो अन्यजाति हैं, वे हमारी नामधराई न करें?
10. मैं भी और मेरे भाई और सेवक उनको रुपया और अनाज उधार देते हैं, परन्तु हम इसका ब्याज छोड़ दें।
11. आज ही अनको उनके खेत, और दाख, और जलपाई की बारियां, और घर फेर दो; और जो रुपया, अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल तुम उन से ले लेते हो, उसका सौवां भाग फेर दो?
12. अन्होंने कहा, हम उन्हें फेर देंगे, और उन से कुछ न लेंगे; जैसा तू कहता है, वैसा ही हम करेंगे। तब मैं ने याजकोंको बुलाकर उन लोगोंको यह शपय खिलाई, कि वे इसी वचन के अनुसार करेंगे।
13. फिर मैं ने अपके कपके की छोर फाड़कर कहा, इसी रीति से जो कोई इस वचन को पूरा न करे, उसको परमेश्वर फाड़कर, उसका घर और कमाई उस से छुड़ाए, और इसी रीति से वह फाड़ा जाए, और छूछा हो जाए। तब सारी सभा ने कहा, आमेन ! और यहोवा की स्तुति की। और लोगोंने इस वचन के अनुसार काम किया।
14. फिर जब से मैं यहूदा देश में उनका अधिपति ठहराया गया, अर्यात् राजा अर्तझत्र के बीसवें वर्ष से ले उसके बत्तीसवें वर्ष तक, अर्यात् बारह वर्ष तक मैं और मेरे भाई अधिपति के हक का भोजन खाते रहे।
15. परन्तु पहिले अधिपति जो मुझ से आगे थे, वह प्रजा पर भार डालते थे, और उन से रोटी, और दाखमधु, और इस से अधिक चालीस शेकेल चान्दी लेते थे, वरन उनके सेवक भी प्रजा के ऊपर अधिक्कारने जताते थे; परन्तु मैं ऐसा नहीं करता या, क्योंकि मैं यहोवा का भय मानता या।
16. फिर मैं शहरपनाह के काम में लिपटा रहा, और हम लोगोंने कुछ भूमि मोल न ली; और मेरे सब सेवक काम करने के लिथे वहां इकट्ठे रहते थे।
17. फिर मेरी मेज पर खानेवाले एक सौ पचास यहूदी और हाकिम और वे भी थे, जो चारोंओर की अन्यजातियोंमें से हमारे पास आए थे।
18. और जो प्रतिदिन के लिथे तैयार किया जाता या वह एक बैल, छ: अच्छी अच्छी भेड़ें व बकरियां यीं, और मेरे लिथे चिडिय़ें भी तैयार की जाती यीं; दस दस दिन के बाद भांति भांति का बहुत दाखमधु भी तैयार किया जाता या; परन्तु तौभी मैं ने अधिपति के हक का भोज नहीं लिया,
19. क्योंकि काम का भार प्रजा पर भारी या। हे मेरे परमेश्वर ! जो कुछ मैं ने इस प्रजा के लिथे किया है, उसे तू मेरे हित के लिथे स्मरण रख।
Chapter 6
1. जब सम्बल्लत, तोबियाह और अरबी गेशेम और हमारे और शत्रुओं को यह समाचार मिला, कि मैं शहरपनाह को बनवा चुका; और यद्यपि उस समय तक भी मैं फाटकोंमें पल्ले न लगा चुका या, तौभी शहरपनाह में कोई दरार न रह गया या।
2. तब सम्बल्लत और गेशेम ने मेरे पास योंकहला भेजा, कि आ, हम ओनो के मैदान के किसी गांव में एक दूसरे से भेंट करें। परन्तु वे मेरी हानि करने की इच्छा करते थे।
3. परन्तु मैं ने उनके पास दूतोंसे कहला भेजा, कि मैं तो भारी काम में लगा हूँ, वहां नहीं जा सकता; मेरे इसे छोड़कर तुम्हारे पास जाने से वह काम क्योंबन्द रहे?
4. फिर उन्होंने चार बार मेरे पास वैसी ही बात कहला भेजी, और मैं ने उनको वैसा ही उत्तर दिया।
5. तब पांचक्की बार सम्बल्लत ने अपके सेवक को खुली हुई चिट्ठी देकर मेरे पास भेजा,
6. जिस में योंलिखा या, कि जाति जाति के लोगोंमें यह कहा जाता है, और गेशेम भी यही बात कहता है, कि तुम्हारी और यहूदियोंकी मनसा बलवा करने की है, और इस कारण तू उस शहरपनाह को बनवाता है; और तू इन बातोंके अनुसार उनका राजा बनना चाहता है।
7. और तू ने यरूशलेम में नबी ठहराए हैं, जो यह कहकर तेरे विषय प्रचार करें, कि यहूदियोंमें एक राजा है। अब ऐसा ही समाचार राजा को दिया जाएगा। इसलिथे अब आ, हम एक साय सम्मति करें।
8. तब मैं ने उसके पास कहला भेजा कि जैसा तू कहता है, वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ, तू थे बातें अपके मन से गढ़ता है।
9. वे सब लोग यह सोचकर हमें डराना चाहते थे, कि उनके हाथ ढीले पकें, और काम बन्द हो जाए। परन्तु अब हे परमेश्वर तू मुझे हियाव दे।
10. और मैं शमायाह के घर में गया, जो दलायाह का पुत्र और महेतबेल का पोता या, वह तो बन्द घर में या; उस ने कहा, आ, हम परमेश्वर के भवन अर्यात् मन्दिर के भीतर आपस में भेंट करें, और मन्दिर के द्वार बन्द करें; क्योंकि वे लोग तुझे घात करने आएंगे, रात ही को वे तुझे घात करने आएंगे।
11. परन्तु मैं ने कहा, क्या मुझ ऐसा मनुष्य भागे? और तुझ ऐसा कौन है जो अपना प्राण बचाने को मन्दिर में घुसे? मैं नहीं जाने का।
12. फिर मैं ने जान लिया कि वह परमेश्वर का भेजा नहीं है परन्तु उस ने हर बात ईश्वर का वचन कहकर मेरी हानि के लिथे कही, क्योंकि तोबियाह और सम्बल्लत ने उसे रुपया दे रखा या।
13. उन्होंने उसे इस कारण रुपया दे रखा या कि मैं डर जाऊं, और वैसा ही काम करके पापी ठहरूं, और उनको अपवाद लगाने का अवसर मिले और वे मेरी नामधराई कर सकें।
14. हे मेरे रपरमेश्वर ! तोबियाह, सम्बल्लत, और नोअद्याह, नबिया और और तितने नबी मुझे डराना चाहते थे, उन सब के ऐसे ऐसे कामोंकी सुधि रख।
15. एलूल महीने के पक्कीसवें दिन को अर्यात् बावन दिन के भीतर शहरपनाह बन चुकी।
16. जब हमारे सब शत्रुओं ने यह सुना, तब हमारे चारोंओर रहनेवाले सब अन्यजाति डर गए, और बहुत लज्जित हुए; क्योंकि उन्होंने जान लिया कि यह काम हमारे परमेश्वर की ओर से हुआ।
17. उन दिनोंमें भी यहूदी रईसोंऔर तोबियाह के बीच चिट्ठ बहुत आया जाया करती यी।
18. क्योंकि वह आरह के पुत्र शकम्याह का दामाद या, और उसके पुत्र यहोहानान ने बेरेक्याह के पुत्र मशुल्लाम की बेटी की ब्याह लिया या; इस कारण बहुत से यहूदी उसका पझ करने की शपय खाए हुए थे।
19. और वे मेरे सुनते उसके भले कामोंकी चर्चा किया करते, और मेरी बातें भी उसको सुनाया करते थे। और तोबियाह मुझे डराने के लिथे चिट्ठियां भेजा करता या।
Chapter 7
1. जब शहरपनाह बन गई, और मैं ने उसके फाटक खड़े किए, और द्वारपाल, और गवैथे, और लेवीय लोग ठहराथे गए,
2. तब मैं ने अपके भाई हनानी और राजगढ़ के हाकिम हनन्याह को यरूशलेम का अधिक्कारनेी ठहराया, क्योंकि यह सच्चा पुरुष और बहुतेरोंसे अधिक परमेश्वर का भय माननेवाला या।
3. और मैं ने उन से कहा, जब तक घाम कड़ा न हो, तब तक यरूशलेम के फाटक न खोले जाएं और जब पहरुए पहरा देते रहें, तब ही फाटक बन्द किए जाएं और बेड़े लगाए जाएं। फिर यरूशलेम के निवासियोंमें से तू रखवाले ठहरा जो अपना अपना पहरा अपके अपके घर के साम्हने दिया करें।
4. नगर तो लम्बा चौड़ा या, परन्तु उस में लोग योड़े थे, और घर नहीं बने थे।
5. तब मेरे परमेश्वर ने मेरे मन में यह उपजाया कि रईसों, हाकिमोंऔर प्रजा के लोगोंको इसलिथे इकट्ठे करूं, कि वे अपक्की अपक्की वंशावली के अनुसार गिने जाएं। और मुझे पहिले पहिल यरूशलेम को आए हुओं का वंशावलीपत्र मिला, और उस में मैं ने योंलिख हुआ पाया:
6. जिनको बाबेल का राजा, नबूकदनेस्सर बन्धुआ करके ले गया या, उन में से प्रान्त के जो लोग बन्धुआई से छूटकर, यरूशलेम और यहूदा के अपके अपके नगर को आए।
7. वे जरुब्बाबेल, थेशू, नहेमायाह, अजर्याह, राम्याह, नहमानी, मोर्दकै, बिलशान, मिस्पेरेत, विग्वै, नहूम और बाना के संग आए।
8. इस्राएली प्रजा के लोगोंकी गिनती यह है : अर्यात् परोश की सन्तान दो हजार एक सौ बहत्तर,
9. सपत्याह की सन्तान तीन सौ बहत्तर, आाह की सन्तान छ: सौ बावन।
10. पहत्मोआब की सन्तान याने थेशू और योआब की सन्तान,
11. दो हजार आठ सौ अठारह।
12. एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन,
13. जत्तू की सन्तान आठ सौ पैंतालीस।
14. जवकै की सन्तान सात सौ साठ।
15. बिन्नूई की सन्तान छ:सौ अड़तालीस।
16. बेबै की सन्तान छ:सौ अट्ठाईस।
17. अजगाद की सन्तान दो हजार तीन सौ बाईस।
18. अदोनीकाम की सन्तान छ:सौ सड़सठ।
19. बिग्बै की सन्तान दो हजार सड़सठ।
20. आदीन की सन्तान छ:सौ पचपन।
21. हिचकिय्याह की सन्तान आतेर के वंश में से अट्ठानवे।
22. हाशम की सन्तान तीन सौ अट्ठाईस।
23. बैसै की सन्तान तीन सौ चौबीस।
24. हारीप की सन्तान एक सौ बारह।
25. गिबोन के लोग पचानवे।
26. बेतलेहेम और नतोपा के मनुष्य एक सौ अट्ठासी।
27. अनातोत के मनुष्य एक सौ अट्ठाईस।
28. बेतजमावत के मनुष्य बयालीस।
29. किर्यत्यारीम, कपीर, और बेरोत के मनुष्य सात सौ तैंतालीस।
30. रामा और गेबा के मनुष्य छ:सौ इक्कीस।
31. मिकपास के मनुष्य एक सौ बाईस।
32. बेतेल और ऐ के मनुष्य एक सौ तेईस।
33. दूसरे नबो के मनुष्य बावन।
34. दूसरे एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन।
35. हारीम की सन्तान तीन सौ बीस।
36. यरीहो के लोग तीन सौ पैंतालीस।
37. लोद हादीद और ओनोंके लोग सात सौ इक्कीस।
38. सना के लोग तीन हजार नौ सौ तीस।
39. फिर याजक अर्यात् थेशू के घराने में से यदायाह की सन्तान नौ सौ तिहत्तर।
40. इम्मेर की सन्तान एक हजार बावन।
41. पशहूर की सन्तान बारह सौ सैंतालीस।
42. हारीम की सन्तान एक हजार सत्रह।
43. फिर लेवीय थे थे: अर्यात् होदवा के दंश में से कदमीएल की सन्तान थेशू की सन्तान चौहत्तर।
44. फिर गवैथे थे थे: अर्यात् आसाप की सन्तान एक सौ अड़तालीस।
45. फिर द्वारपाल थे थे: अर्यात् शल्लूम की सन्तान, आतेर की सन्तान, तल्मोन की सन्तान, अक्कूब की सन्तान, हतीता की सन्तान, और शोबै की सन्तान, जो सब मिलकर एक सौ अड़तीस हुए।
46. फिर नतीन अर्यत् सीहा की सन्तान, हसूपा की सन्तान, तब्बाओत की सन्तान,
47. केरोस की सन्तान, सीआ की सन्तान, पादोन की सन्तान,
48. लबाना की सन्तान, हगावा की सन्तान, शल्मै की सन्तान।
49. हानान की सन्तान, गिद्देल की सन्तान, गहर की सन्तान,
50. राया की सन्तान, रसीन की सन्तान, नकोदा की सन्तान,
51. गज्जाम की सन्तान, उज्जा की सन्तान, पासेह की सन्तान,
52. बेसै की सन्तान, मूनीम की सन्तान, नमूशस की सन्तान,
53. बकबूक की सन्तान, हकूपा की सन्तान, हर्हूर की सन्तान,
54. बसलीत की सन्तान, महीदा की सन्तान, हर्शा की सन्तान,
55. बकॉस की सन्तान, सीसरा की सन्तान, तेमेह की सन्तान,
56. नसीह की सन्तान, और हतीपा की सन्तान।
57. फिर सुलैमान के दासोंकी सन्तान, अर्यात् सोतै की सन्तान, सोपेरेत की सन्तान, पक्कीदा की सन्तान,
58. याला की सन्तान, दकॉन की सन्तान, गिद्देल की सन्तान,
59. शपत्याह की सन्तान, हत्तील की सन्तान, पोकेरेत सवायीम की सन्तान, और आमोन की सन्तान।
60. नतीन और सुलैमान के दासोंकी सन्तान मिलकर तीन सौ बानवे थे।
61. और थे वे हैं, जो तेलमेलह, तेलहर्शा, करूब, अद्दोन, और इम्मेर से यरूशलेम को गए, परन्तु अपके अपके पितरोंके घराने और वंशावली न बता सके, कि इस्राएल के हैं, वा नहीं :
62. अर्यात् दलायाह की सन्तान, तोबिय्याह की सन्तान, और दकोदा की सन्तान, जो सब मिलकर छ: सौ बयालीस थे।
63. और याजकोंमें से होबायाह की सन्तान, हक्कोस की सन्तान, और बजिर्ल्लै की सन्तान, जिस ने गिलादी बजिर्ल्लै की बेटियोंमें से एक को ब्याह लिया, और उन्हीं का नाम रख लिया या।
64. इन्होंने अपना अपना वंशावलीपत्र और और वंशावलीपत्रोंमें दूंढ़ा, परन्तु न पाया, इसलिथे वे अशुद्ध ठहरकर याजकपद से निकालेगए।
65. और अधिपति ने उन से कहा, कि जब तक ऊरीम और तुम्मीम धारण करनेवाला कोई याजक न उठे, तब तक तुम कोई परमपवित्र वस्तु खाने न पाओगे।
66. पूरी मणडली के लोग मिलकर बयालीस हजार तीन सौ साठ ठहरे।
67. इनको छोड़ उनके सात हजार तीन सौ सैंतीस दास-दासियां, और दो सौ पैंतालीस गानेवाले और गानेवालियां यीं।
68. उनके घोड़े सात सौ छत्तीस, ख्च्चर दो सौ पैंतालीस,
69. ऊंट चार सौ पैंतीस और गदहे छ: हजार सात सौ बीस थे।
70. और पितरोंके घरानोंके कई एक मुख्य पुरुषोंने काम के लिथे दिया। अधिपति ने तो चन्दे में हजार दर्कमोन सोना, पचास कटोरे और पांच सौ तीस याजकोंके अंगरखे दिए।
71. और पितरोंके घरानोंके कई मुख्य मुख्य पुरुषोंने उस काम के चन्दे में बीस हजार दर्कमोन सोना और दो हजार दो सौ माने चान्दी दी।
72. और शेष प्रजा ने जो दिया, वह बीस हजार दर्कमोन सोना, दो हजार माने चान्दी और सड़सठ याजकोंके अंगरखे हुए।
73. इस प्रकार याजक, लेवीय, द्वारपाल, गवैथे, प्रजा के कुछ लोग और नतीन और सब इस्राएली अपके अपके नगर में बस गए।
Chapter 8
1. जब सातवां महीना निकट आया, उस समय सब इस्राएली अपके अपके नगर में थे। तब उन सब लोगोंने एक मन होकर, जलफाटक के साम्हने के चौक में इकट्ठे होकर, बज्रा शास्त्री से कहा, कि मूसा की जो व्यवस्या यहोवा ने इस्राएल को दी यी, उसकी पुस्तक ले आ।
2. तब एज्रा याजक सातवें महीने के पहिले दिन को क्या स्त्री, क्या पुरुष, जितने सुनकर समझ सकते थे, उन सभोंके साम्हने व्यवस्या को ले आया।
3. और वह उसकी बातें भोर से दो पहर तक उस चौक के साम्हने जो जलफाटक के साम्हने या, क्या स्त्री, क्या पुरुष और सब समझने वालोंको पढ़कर सुनाता रहा; और लोग व्यवस्या की पुस्तक पर कान लगाए रहे।
4. एज्रा शास्त्री, काठ के एक मचान पर जो इसी काम के लिथे बना या, ख्ड़ा हो गयां; और उसकी दाहिनी अलंग मत्तित्याह, शेमा, अनायाह, ऊरिय्याह, हिल्किय्याह और मासेयाह; और बाई अलंग, पदायाह, मीशाएल, मल्किय्याह, हाशूम, हश्बद्दाना,जकर्याह और मशुल्लाम खड़े हुए।
5. तब एज्रा ने जो सब लोगोंसे ऊंचे पर या, सभोंके देखते उस पुस्तक को खोल दिया; और जब उस ने उसको खोला, तब सब लोग उठ खाड़े हुए।
6. तब एज्रा ने महान परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा; और सब लोगोंने अपके अपके हाथ उठाकर आमेन, आमेन, कहा; और सिर फुकाकर अपना अपना माया भूमि पर टेक कर यहोवा को दणडवत किया।
7. और थेशू, बानी, शेरेब्याह, यामीन, अक्कूब, शब्बतै, होदिय्याह, मासेयाह, कलीता, अजर्याह, योजाबाद, हानान और पलायाह नाम लेवीय, लोगोंको व्यवस्या समझाते गए, और लोग अपके अपके स्यान पर खड़े रहे।
8. और उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्या की पुस्तक से पढ़कर अर्य समझा दिया; और लोगोंने पाठ को समझ लिया।
9. तब नहेमायाह जो अधिपति या, और एज्रा जो याजक और शास्त्री या, और जो लेवीय लोगोंको समझा रहे थे, उन्होंने सब लोगोंसे कहा, आज का दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के लिथे पवित्र है; इसलिथे विलाप न करो और न रोओ। क्योंकि सब लोग व्यवस्या के वचन सुनकर रोते रहे।
10. फिर उस ने उन से कहा, कि जाकर चिकना चिकना भोजन करो और मीठा मीठा रस पियो, और जिनके लिथे कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास बैना भेजो; क्योंकि आज का दिन हमारे प्रभु के लिथे पवित्र है; और उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है।
11. योंलेवियोंने सब लोगोंको यह कहकर चुप करा दिया, कि चुप रहो क्योंकि आज का दिन पवित्र है; और उदास मत रहो।
12. तब सब लोग खाने, पीने, बैना भेजने और बड़ा आनन्द मनाने को चले गए, क्योंकि जो वचन उनको समझाए गए थे, उन्हें वे समझ गए थे।
13. और दूसरे दिन को भी समस्त प्रजा के पितरोंके घराने के मुख्य मुख्य पुरुष और याजक और लेवीय लोग, एज्रा शास्त्री के पास व्यवस्या के वचन ध्यान से सुनने के लिथे इकट्टे हुए।
14. और उन्हें व्यवस्या में यह लिखा हुआ मिला, कि यहोवा ने मूसा से यह आज्ञा दिलाई यी, कि इस्राएली सातवें महीने के पर्व के समय फोपडिय़ोंमें रहा करें,
15. और अपके सब नगरोंऔर यरूशलेम में यह सुनाया और प्रचार किया जाए, कि पहाड़ पर जाकर जलपाई, तैलवृझ, मेंहदी, खजूर और घने घने वृझोंकी डालियां ले आकर फोपडिय़ां बनाओ, जैसे कि लिखा है।
16. सो सब लोग बाहर जाकर डालियां ले आए, और अपके अपके घर की छत पर, और अपके आंगनोंमें, और परमेश्वर के भवन के आंगनोंमें, और जलफाटक के चौक में, और एप्रैम के फाटक के चौक में, फोंपडिय़ां बना लीं।
17. वरन सब मणडली के लोग जितने बन्धुआई से छूटकर लौट आए थे, फोंपडिय़ां बना कर उन में टिके। नून के पुत्र यहोशू के दिनोंसे लेकर उस दिन तक इस्राएलियोंने ऐसा नहीं किया या। और उस समय बहुत बड़ा आनन्द हुआ।
18. फिर पक्कीले दिन से पिछले दिन तक एज्रा ने प्रतिदिन परमेश्वर की व्यवस्या की पुस्तक में से पढ़ पढ़कर सुनाया। योंवे सात दिन तक पर्व को मानते रहे, और साठवें दिन नियम के अनुसार महासभा हुई।
Chapter 9
1. फिर उसी महीने के चौबीसवें दिन को इस्राएली उपवास का टाट पहिने और सिर पर धूल डाले हुए, इकट्ठे हो गए।
2. तब इस्राएल के वंश के लोग सब अन्यजाति लोगोंसे अलग हो गए, और खड़े होकर, अपके अपके पापोंऔर अपके पुरखाओं के अधर्म के कामोंको मान लिया।
3. तब उन्होंने अपके अपके स्यान पर खड़े होकर दिन के एक पहर तक अपके परमेश्वर यहोवा की व्यवस्या की पुस्तक पढ़ते, और एक और पहर अपके पापोंको मानते, और अपके परमेश्वर यहोवा को दणडवत करते रहे।
4. और थेशू, बानी, कदमीएल, शबन्याह, बुन्नी, शेरेब्याह, बानी और कनानी ने लेवियोंकी सीढ़ी पर खड़े होकर ऊंचे स्वर से अपके परमेश्वर यहोवा की दोहाई दी।
5. फिर थेशू, कदमीएल, बानी, हशब्नयाह, शेरेब्याह, होदिय्याह, शबन्याह, और पतह्याह नाम लेवियोंने कहा, खड़े हो; अपके परमेश्वर यहोवा को अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य कहो। तेरा महिमायुक्त नाम धन्य कहा जाए, जो सब धन्यवाद और स्तुति से पके है।
6. तू ही अकेला यहोवा है; स्वर्ग वरन सब से ऊंचे स्वर्ग और उसके सब गण, और पृय्वी और जो कुछ उस में है, और समुद्र और जो कुछ उस में है, सभोंको तू ही ने बनाया, और सभोंकी रझा तू ही करता है; और स्वर्ग की समस्त सेना तुझी को दणडवत करती हैं।
7. हे यहोवा ! तू वही परमेश्वर है, जो अब्राहाम को चुनकर कसदियोंके ऊर नगर में से निकाल लाया, और उसका नाम इब्राहीम रखा;
8. और उसके मन को अपके साय सच्चा पाकर, उस से वाचा बान्धी, कि मैं तेरे वंश को कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, यबूसियों, और गिर्गाशियोंका देश दूंगा; और तू ने अपना वह वचन पूरा भी किया, क्योंकि तू धमीं है।
9. फिर तू ने मिस्र में हमारे पुरखाओं के दु:ख पर दृष्टि की; और लाल समुद्र के तट पर उनकी दोहाई सुनी।
10. और फ़िरौन और उसके सब कर्मचारी वरन उसके देश के सब लोगोंको दणड देने के लिथे चिन्ह और चमत्कार दिखाए; क्योंकि तू जानता या कि वे उन से अभिमान करते हैं; और तू ने अपना ऐसा बड़ा नाम किया, जैसा आज तक वर्तमान है।
11. और तू ने उनके आगे समुद्र को ऐसा दो भाग किया, कि वे समुद्र के बीच स्यल ही स्यल चलकर पार हो गए; और जो उनके पीछे पके थे, उनको तू ने गहिरे स्यानोंमें ऐसा डाल दिया, जैसा पत्य्र महाजलराशि में डाला जाए।
12. फिर तू ने दिन को बादल के खम्भे में होकर और रात को आग के खम्भे में होकर उनकी अगुआई की, कि जिस मार्ग पर उन्हें चलना या, उस में उनको उजियाला मिले।
13. फिर तू ने सीनै पर्वत पर उतरकर आकाश में से उनके साय बातें की, और उनको सीधे नियम, सच्ची व्यवस्या, और अच्छी विधियां, और आज्ञाएं दीं।
14. और उन्हें अपके पवित्र विश्रम दिन का ज्ञान दिया, और अपके दास मूसा के द्वारा आज्ञाएं और विधियां और व्यवस्या दीं।
15. और उनकी भूख मिटाने को आकाश से उन्हें भोजन दिया और उनकी प्यास बुफाने को चट्टान में से उनके लिथे पानी निकाला, और उन्हें आज्ञा दी कि जिस देश को तुम्हें देने की मैं ने शपय खाई है उसके अधिक्कारनेी होने को तुम उस में जाओ।
16. परन्तु उन्होंने और हमारे पुरखाओं ने अभिमान किया, और हठीले बने और तेरी आज्ञाएं न मानी;
17. और आज्ञा मनने से इनकार किया, और जो आश्चर्यकर्म तू ने उनके बीच किए थे, उनका स्मरण न किया, वरन हठ करके यहां तक बलवा करनेवाले बने, कि एक प्रधान ठहराया, कि अपके दासत्व की दशा में लौटे। परन्तु तू झमा करनेवाला अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से कोप करनेवाला, और अतिकरुणामय ईश्वर है, तू ने उनको न त्यागा।
18. वरन जब दन्होंने बछड़ा ढालकर कहा, कि तुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, वह यही है, और तेरा बहुत तिरस्कार किया,
19. तब भी तू जो अति दयालु है, उनको जंगल में न त्यागा; न तो दिन को अगुआई करनेवाला बादल का खम्भा उन पर से हटा, और न रात को उजियाला देनेवाला और उनका मार्ग दिखानेवाला आग का खम्भा।
20. वरन तू ने उन्हें समझाने के लिथे अपके आत्मा को जो भला है दिया, और अपना मान्ना उन्हें खिलाना न छोड़ा, और उनकी प्यास बुफाने को पानी देता रहा।
21. चालीस वर्ष तक तू जंगल में उनका ऐसा पालन पोषण करता रहा, कि उनको कुछ घटी न हुई; न तो उनके वस्त्र पुराने हुए और न उनके पांव में सूजन हुई।
22. फिर तू ने राज्य राज्य और देश देश के लोगोंको उनके वश में कर दिया, और दिशा दिशा में उनको बांट दिया; योंवे हेशबोन के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग दोनोंके देशोंके अधिक्कारनेी हो गए।
23. फिर तू ने उनकी सन्तान को आकाश के तारोंके समान बढ़ाकर उन्हें उस देश में पहुंचा दिया, जिसके विषय तू ने उनके पूर्वजोंसे कहा या; कि वे उस में जाकर उसके अधिक्कारनेी हो जाएंगे।
24. सो यह सन्तान जाकर उसकी अधिक्कारनेिन हो गई, और तू ने उनके द्वारा देश के निवासी कनानियोंको दबाया, और राजाओं और देश के लोगोंसमेत उनको, उनके हाथ में कर दिया, कि वे उन से जो चाहें सो करें।
25. और उन्होंने गढ़वाले नगर और उपजाऊ भूमि ले ली, और सब भांति की अच्छी वस्तुओं से भरे हुए घरोंके, और खुदे हुए हौदोंके, और दाख और जलपाई बारियोंके, और खाने के फलवाले बहुत से वृझोंके अधिक्कारनेी हो गए; वे उसे खा खाकर तृप्त हुए, और ह्रृष्ट-पुष्ट हो गए, और तेरी बड़ी भलाई के कारण सुख भोगते रहे।
26. परन्तु वे तुझ से फिरकर बलवा करनेवाले बन गए और तेरी व्यवस्या को त्याग दिया, और तेरे जो नबी तेरी ओर उन्हें फेरने के लिथे उनको चिताते रहे उनको उन्होंने घात किया, और तेरा बहुत तिरस्कार किया।
27. इस कारण तू ने उनको उनके शत्रुओं के हाथ में कर दिया, और उन्होंने उनको संकट में डाल दिया; तौभी जब जब वे संकट में पड़कर तेरी दोहाई देते रहे तब तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता रहा; और तू जो अतिदयालु है, इसलिथे उनके छुड़ानेवाले को भेजता रहा जो उनको शत्रुओं के हाथ से छुड़ाते थे।
28. परन्तु जब जब उनको चैन मिला, तब तब वे फिर तेरे साम्हने बुराई करते थे, इस कारण तू उनको शत्रुओं के हाथ में कर देता या, और वे उन पर प्रभुता करते थे; तौभी जब वे फिरकर तेरी दोहाई देते, तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता और तू जो दयालु है, इसलिथे बार बार उनको छुड़ाता,
29. और उनको जिताता या कि उनको फिर अपक्की व्यवस्या के अधीन कर दे। परन्तु वे अभिमान करते रहे और तेरी आज्ञाएं नहीं मानते थे, और तेरे नियम, जिनको यदि मनुष्य माने, तो उनके कारण जीवित रहे, उनके विरुद्ध पाप करते, और हठ करके अपना कन्धा हटाते और न सुनते थे।
30. तू तो बहुत वर्ष तक उनकी सहता रहा, और अपके आत्मा से नबियोंके द्वारा उन्हें चिताता रहा, परन्तु वे कान नहीं लगाते थे, इसलिथे तू ने उन्हें देश देश के लोगोंके हाथ में कर दिया।
31. तौभी तू ने जो अतिदयालु है, उनका अन्त नहीं कर डाला और न उनको त्याग दिया, क्योंकि तू अनुग्रहकारी और दयालु ईश्वर है।
32. अब तो हे हमारे परमेश्वर ! हे महान पराक्रमी और भययोग्य ईश्वर ! जो अपक्की वाचा पालता और करुणा करता रहा है, जो बड़ा कष्ट, अश्शूर के राजाओं के दिनोंसे ले आज के दिन तक हमें और हमारे राजाओं, हाकिमों, याजकों, नबियों, पुरखाओं, वरन तेरी समस्त प्रजा को भोगना पड़ा है, वह तेरी दृष्टि में योड़ा न ठहरे।
33. तौभी जो कुछ हम पर बीता है उसके विष्य तू तो धमीं है; तू ने तो सच्चाई से काम किया है, परन्तु हम ने दुष्टता की है।
34. और हमारे राजाओं और हाकिमों, याजकोंऔर पुरखाओं ने, न तो तेरी व्यवस्या को माना है और न तेरी आज्ञाओं और चितौनियोंकी ओर ध्यान दिया है जिन से तू ने उनको चिताया या।
35. उन्होंने अपके राज्य में, और उस बड़े कल्याण के समय जो तू ने उन्हें दिया या, और इस लम्बे चौड़े और उपजाऊ देश मेंं तेरी सेवा नहीं की; और न अपके बुरे कामोंसे पश्चाताप किया।
36. देख, हम आज कल दास हैं; जो देश तू ने हमारे पितरोंको दिया या कि उसकी उत्तम उपज खाएं, इसी में हम दास हैं।
37. इसकी उपज से उन राजाओं को जिन्हें तू ने हमारे पापोंके कारण हमारे ऊपर ठहराया है, बहुत धन मिलता है; और वे हमारे शरीरोंऔर हमारे पशुओं पर अपक्की अपक्की इच्छा के अनुसार प्रभुता जताते हैं, इसलिथे हम बड़े संकट में पके हैं।
38. इस सब के कारण, हम सच्चई के साय वाचा बान्धते, और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, लेवीय और याजक उस पर छाप लगाते हैं।
Chapter 10
1. जिन्होंने छाप लगाई वे थे हैं, अर्यात् हकल्याह का पुत्र नहेमायाह जो अधिपति या, और सिदकिय्याह;
2. मरायाह, अजर्याह, यिर्मयाह;
3. पशहूर, अमर्याह, मल्किय्याह;
4. हतूश, शबन्याह, मल्लूक;
5. हारीम, मरेयोत, ओबद्याह;
6. दानिय्थेल, गिन्नतोन, बारूक;
7. मशुल्लाम, अबिय्याह, मिय्यामीन;
8. माज्याह, बिलगै और शमायाह; थे ही तो याजक थे।
9. और लेवी थे थे : आजन्याह का पुत्र थेशू, हेनादाद की सन्तान में से बिन्नई और कदमीएल;
10. और उनके भाई शबन्याह, होदिय्याह, कलीता, पलायाह, हानान;
11. मीका, रहोब, हशब्याह;
12. जक्कूर, शेरेब्याह, शबन्याह।
13. होदिय्याह, बानी और बनीन;
14. फिर प्रजा के प्रधान थे थे : परोश, पहत्मोआब, एलाम, जत्तू, बानी;
15. बुनी, अजगाद, बेबै;
16. अदोनिय्याह, बिग्वै, आदीन;
17. आतेर, हिजकिय्याह, मज्जूर;
18. होदिय्याह, हाशूम, बेसै;
19. हारीफ, अनातोत, नोबै;
20. मग्पीआश, मशुल्लाम, हेजीर;
21. मशेजबेल, सादोक, यद्दू;
22. पलत्याह, हानान, अनायाह;
23. होशे, हनन्याह, हश्शूब;
24. हल्लोहेश, पिल्हा, शोबेक;
25. रहूम, हशब्ना, माशेयाह;
26. अहिय्याह, हानान, आनान;
27. मल्लूक, हारीम और बाना।
28. शेष लोग अर्यात् याजक, लेवीय, द्वारपाल, गवैथे और नतीन लोग, निदान जितने परमेश्वर की व्यवस्या मानने के लिथे देश देश के लोगोंसे अलग हुए थे, उन सभें ने अपक्की स्त्रियोंऔर उन बेटें-बेटियोंसमेत जो समझनेवाले थे,
29. अपके भाई रईसोंसे मिलकर शपय खाई, कि हम परमेश्वर की उस व्यवस्या पर चलेंगे जो उसके दास मूसा के द्वारा दी गई है, और अपके प्रभु यहोवा की सब आज्ञाएं, नियम और विधियां मानने में चौकसी करेंगे।
30. और हम न तो अपक्की बेटियां इस देश के लोगोंको ब्याह देंगे, और न अपके बेटोंके लिथे उनकी बेटियां ब्याह लेंगे।
31. और जब इस देश के लोग विश्रमदिन को अन्न वा और बिकाऊ वस्तुएं बेचने को ले आथेंगे तब हम उन से न तो विश्रमदिन को न किसी पवित्र दिन को कुछ लेंगे; और सातवें वर्ष में भूमि पक्की रहने देंगे, और अपके अपके ॠण की वसूली छोड़ देंगे।
32. फिर हम लोगोंने ऐसा नियम बान्ध लिया जिस से हम को अपके परमेश्वर के भवन की उपासना के लिथे एक एक तिहाई शेकेल देना पकेगा:
33. अर्यात् भेंट की रोटी और नित्य अन्नबलि और नित्य होमबलि के लिथे, और विश्रमदिनोंऔर नथे चान्द और नियत पब्बॉं के बलिदानोंऔर और पवित्र भेंटोंऔर इस्राएल के प्रायश्चित्त के निमित्त पाप बलियोंके लिथे, निदान अपके परमेश्वर के भवन के सारे काम के लिथे।
34. फिर क्या याजक, क्या लेवीय, क्या साधारण लोग, हम सभोंने इस बात के ठहराने के लिथे चिट्ठियां डालीं, कि अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार प्रति वर्ष में ठहराए हुए समयोंपर लकड़ी की भेंट व्यवस्या में लिखी हुई बात के अनुसार हम अपके परमेश्वर यहोवा की वेदी पर जलाने के लिथे अपके परमेश्वर के भवन में लाया करेंगे।
35. और अपक्की अपक्की भूमि की पहिली उपज और सब भांति के वृझोंके पहिले फल प्रति वर्ष यहोवा के भवन में ले आएंगे।
36. और व्यवस्या में लिखी हुई बात के अनुसार, अपके अपके पहिलौठे बेटोंऔर पशुओं, अर्यात् पहिलौठे बछड़ोंऔर मेम्नोंको अपके परमेश्वर के भवन में उन याजकोंके पास लाया करेंगे, जो हमारे परमेश्वर के भवन में सेवा टहल करते हैं।
37. और अपना पहिला गूंधा हुआ आटा, और उठाई हुई भेंटे, और सब प्रकार के वृझोंके फल, और नया दाखमधु, और टटका तेल, अपके परमेश्वर के भवन की कोठरियोंमें याजकोंके पास, और अपक्की अपक्की भूमि की उपज का दशमांश लेवियोंके पास लाया करेंगे; क्योंकि वे लेवीय हैं, जो हमारी खेती के सब नगरोंमें दशमांश लेते हैं।
38. और जब जब लेवीय दशमांश लें, तब तब उनके संग हारून की सन्तान का कोई याजक रहा करे; और लेवीय दशमांशोंका दशमांश हमारे परमेश्वर के भवन की कोठरियोंमें अर्यात् भणडार में पहुंचाया करेंगे।
39. क्योंकि जिन कोठरियोंमें पवित्र स्यान के पात्र और सेवा टहल करनेवाले याजक और द्वारपाल और गवैथे रहते हैं, उन में इस्राएली और लेवीय, अनाज, नथे दाखपधु, और टटके तेल की उठाई हुई भेंटे पहुंचाएंगे। निदान हम अपके परमेश्वर के भवन को न छोड़ेंगे।
Chapter 11
1. प्रजा के हाकिम तो यरूशलेम में रहते थे, और शेष लोगोंने यह ठहराने के लिथे चिट्ठियां डालीं, कि दस में से एक मनुष्य यरूशलेम में, जो पवित्र नगर है, बस जाएं; और नौ मनुष्य और और नगरोंमें बसें।
2. और जिन्होंने अपक्की ही इच्छा से यरूशलेम में वास करना चाहा उन सभोंको लोगोंने आशिर्वाद दिया।
3. उस प्रान्त के मुख्य मुख्य पुरुष जो यरूशलेम में रहते थे, वे थे हैं; (परन्तु यहूदा के नगरोंमें एक एक मनुष्य अपक्की निज भूमि में रहता या; अर्यात् इस्राएली, याजक, लेवीय, नतीन और सुलैमान के दासोंके सन्तान )
4. यरूशलेम में तो कुछ यहूदी और बिन्यामीनी रहते थे। यहूदियोंमें से तो थेरेस के वंश का अतायाह जो अज्जिय्याह का पुत्र या, यह जकर्याह का पुत्र, यह अमर्याह का पुत्र, यह शपत्याह का पुत्र, यह महललेल का पुत्र या।
5. और मासेयाह जो बारूक का पुत्र या, यह कोलहोजे का पुत्र, यह हजायाह का पुत्र, यह अदायाह का पुत्र, यह योयारीब का पुत्र, यह जकर्याह का पुत्र, यह और यह शीलोई का पुत्र या।
6. पेरेस के वंश के जो यरूशलेम में रहते थे, वह सब मिलाकर चार सौ अड़सठ शूरवीर थे।
7. और बिन्यामीनियोंमें से सल्लू जो मशुल्लाम का पुत्र या, यह योएद का पुत्र, यह पदायाह का पुत्र या, यह कोलायाह का पुत्र यह मासेयाह का पुत्र, यह इतीएह का पुत्र, यह यशायाह का पुत्र या।
8. और उसके बाद गब्यै सल्लै जिनके साय नौ सौ अट्ठाईस पुरुष थे।
9. इनका रखवाल जिक्री का पुत्र योएल या, और हस्सनूआ का पुत्र यहूदा नगर के प्रधान का नायब या।
10. फिर याजकोंमें से योयारीब का पुत्र यदायाह और याकीन।
11. और सरायाह जो परमेश्वर के भवन का प्रधान और हिल्किय्याह का पुत्र या, यह मशुल्लाम का पुत्र, यह सादोक का पुत्र, यह मरायोत का पुत्र, यह अहीतूब का पुत्र या।
12. और इनके आठ सौ बाईस भाई जो उस भवन का काम करते थे; और अदायाह, जो यरोहाम का पुत्र या, यह पलल्याह का वुत्र, यह अम्सी का पुत्र, यह जकर्याह का पुत्र, यह पशहूर का पुत्र, यह मल्किय्याह का पुत्र या।
13. और इसके दो सौ बयालीस भाई जो पितरोंके घरानोंके प्रधान थे; और अमशै जो अजरेल का पुत्र या, यह अहजै का पुत्र, यह मशिल्लेमोत का पुत्र, यह इम्मेर का पुत्र या।
14. और इनके एक सौ अट्ठाईस शूरवीर भाई थे और इनका रखवाल हग्गदोलीम का पुत्र जब्दीएल या।
15. फिर लेवियोंमें से शमायाह जो हश्शूब का पुत्र या, यह अज्रीकाम का पुत्र, यह हुशब्याह का पुत्र, यह बुन्नी का पुत्र या।
16. ओर शब्बत और योजाबाद मुख्य लेवियोंमें से परमेश्वर के भवन के बाहरी काम पर ठहरे थे।
17. और मत्तन्याह जो मीका का पुत्र और जब्दी का पोता, और आसाप का परपोता या; वह प्रार्यना में धन्यवाद करनेवालोंका मुखिया या, और बकबुक्याह अपके भाइयोंमें दूसरा पद रखता या; और अब्दा जो शम्मू का पुत्र, और गालाल का पोता, और यदूतून का परपोता या।
18. जो लेवीय पवित्र नगर में रहते थे, वह सब मिलाकर दो सौ चौरासी थे।
19. और अक्कूब और तल्मोन नाम द्वारपाल और उनके भाई जो फाटकोंके रखवाले थे, एक सौ बहत्तर थे।
20. और शेष इस्राएली याजक और लेवीय, यहूदा के सब नगरोंमें अपके अपके भाग पर रहते थे।
21. और नतीन लोग ओपेल में रहते; और नतिनोंके ऊपर सीहा, और गिश्पा ठहराए गए थे।
22. और जो लेवीय यरूशलेम में रहकर परमेश्वर के भवन के काम में लगे रहते थे, उनका मुखिया आसाप के वंश के गवैयोंमें का उज्जी या, जो बानी का पुत्र या, यह हशब्याह का पुत्र, यह मत्तन्याह का पुत्र और यह हशब्याह का पुत्र या।
23. क्योंकि उनके विषय राजा की आज्ञा यी, और गवैयोंके प्रतिदिन के प्रयोजन के अनुसार ठीक प्रबन्ध या।
24. और प्रजा के सब काम के लिथे मशेजबेल का पुत्र पतह्याह जो यहूदा के पुत्र जेरह के वंश में या, वह राजा के पास रहता या।
25. बच गए गांव और उनके खेत, सो कुछ यहूदी किर्यतर्बा, और उनके गांव में, कुछ दीबोन, और उसके गांवोंमें, कुछ यकब्सेल और उसके गांवोंमें रहते थे।
26. फिर थेशू, मोलादा, बेत्पेलेत;
27. हमर्शूआल, और बेर्शेबा और और उसके गांवोंमें;
28. और सिकलग और मकोना और उनके गांवोंमें;
29. एन्निम्मोन, सोरा, यर्मूत,
30. जानोह और अदूल्लाम और उनके गांवोंमें, लाकीश, और उसके खेतोंमें अजेका, और उसके गांवोंमें वे बेर्शेबा से ले हिन्नोम की तराई तक डेरे डाले हुए रहते थे।
31. और बिन्यामीनी गेबा से लेकर मिकमश, अय्या और बेतेल और उसके गांवोंमें;
32. अनातोत, नोब, अनन्याह,
33. हासोर, रामा, गित्तैम,
34. हादीद, सबोईम, नबल्लत,
35. लोद, ओनो और कारीगरोंकी तराई तक रहते थे।
36. और कितने लेवियोंके दल यहूदा और बिन्यामीन के प्रान्तोंमें बस गए।
Chapter 12
1. जो याजक और लेवीय शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल और थेशू के संग यरूशलेम को गए थे, वे थे थे : अर्यात् सरायाह, यिर्मयाह, एज्रा,
2. अमर्याह, मल्लूक, हत्तूश,
3. शकन्याह, रहूम, मरेमोत,
4. इद्दो, गिन्नतोई, अबिय्याह,
5. मीय्यामीन, माद्याह, बिलगा,
6. शमायाह, योआरीब, यदायाह,
7. सल्लू, आमोक, हिल्किय्याह और यदायाह। थेशू के दिनोंमें याजकोंऔर उनके भाइयोंके मुख्य मुख्य पुरुष, थे ही थे।
8. फिर थे लेवीय गए : अर्यात् थेशू, बिन्नूई, कदमीएल, शेरेब्याह, यहूदा और वह मत्तन्याह जो अपके भाइयोंसमेत धन्यवाद के काम पर ठहराया गया या।
9. और उनके भाई बकबुक्याह और उन्नो उनके साम्हने अपक्की अपक्की सेवकाई में लगे रहते थे।
10. और थेशू से योयाकीम उत्पन्न हुआ और योयाकीम से एल्याशीब और एल्याशीब से योयादा,
11. और योयादा से योनातान और योनातान से यद्द उत्पन्न हुआ।
12. और योयाकीम के दिनोंमें थे याजक अपके अपके पितरोंके घराने के मुख्य पुरुष थे, अर्यात् शरायाह का तो मरायाह; यिर्मयाह का हनन्याह।
13. एज्रा का मशुल्लाम; अमर्याह का यहोहानान।
14. मल्लूकी का योनातान; शबन्याह का योसेप।
15. हारीम का अदना; मरायोत का हेलकै।
16. इद्दो का जकर्याह; गिन्नतोन का मशुल्लाम।
17. अबिय्याह का जिक्री; मिन्यामीन के मोअद्याह का पिलतै।
18. बिलगा का शम्मू; शामायह का यहोनातान।
19. योयारीब का मत्तनै; यदायाह का उज्जी।
20. सल्लै का कल्लै; आमोक का एबेर।
21. हिल्किय्याह का हशब्याह; और यदायाह का नतनेल।
22. एल्याशीब, योयादा, योहानान और यद्द के दिनोंमें लेवीय पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुषोंके नाम लिखे जाते थे, और दारा फारसी के राज्य में याजकोंके भी नाम लिखे जाते थे।
23. जो लेवीय पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुष थे, उनके नाम एल्याशीब के पुत्र योहानान के दिनोंतक इतिहास की पुस्तक में लिखे जाते थे।
24. और लेवियोंके मुख्य पुरुष थे थे : अर्यात् हसब्याह, शेरेब्याह और कदमीएल का पुत्र थेशू; और उनके साम्हने उनके भाई परमेश्वर के भक्त दाऊद की आज्ञा के अनुसार आम्हने-साम्हने स्तुति और धन्यवाद करने पर नियुक्त थे।
25. मत्तन्याह, बकबुक्याह, ओबद्याह, मशुल्लाम, तल्मोन और अक्कूब फाटकोंके पास के भणडारोंका पहरा देनेवाले द्वारपाल थे।
26. योयाकीम के दिनोंमें जो योसादाक का पोता और थेशू का पुत्र या, और नहेमायाह अधिपति और एज्रा याजक और शास्त्री के दिनोंमें थे ही थे।
27. और यरूशलेम की शहरपनाह की प्रतिष्ठा के समय लेवीय अपके सब स्यानोंमें ढूंढ़े गए, कि यरूशलेम को पहुंचाए जाएं, जिस से आनन्द और धन्यवाद करके और फांफ, सारंगी और वीणा बजाकर, और गाकर उसकी प्रतिष्ठा करें।
28. तो गवैयोंके सन्तान यरूशलेम के चारोंओर के देश से और नतोपातियोंके गांवोंसे,
29. और बेतगिलगाल से, और गेबा और अज्माबेत के खेतोंसे इकट्ठे हुए; क्योंकि गवैयोंने यरूशलेम के आस-पास गांव बसा लिथे थे।
30. तब याहकोंऔर लेवियोंने अपके अपके को शुद्ध किया; और उन्होंने प्रजा को, और फाटकोंऔर शहरपनाह को भी शुद्ध किया।
31. तब मैं ने यहूदी हाकिमोंको शहरपनाह पर चढ़ाकर दो बड़े दल ठहराए, जो धन्यवाद करते हुए धूमधाम के साय चलते थे। इनमें से एक दल तो दक्खिन ओर, अर्यात् कूड़ाफाटक की ओर शहरपनाह के ऊपर ऊपर से चला;
32. और उसके पीछे पीछे थे चले, अर्यात् होशयाह और यहूदा के आधे हाकिम,
33. और अजर्याह, एज्रा, मशुल्लाम,
34. यहूदा, बिन्यामीन, शमायाह, और यिर्मयाह,
35. और याजकोंके कितने पुत्र तुरहियां लिथे हुए : अर्यात् जकर्याह जो योहानान का पुत्र या, यह शमायाह का पुत्र, यह मत्तन्याह का पुत्र, यह मीकायाह का पुत्र, यह जक्कूर का पुत्र, यह आसाप का पुत्र या।
36. और उसके भाई शमायाह, अजरेल, मिललै, गिललै, माऐ, नतनेल, यहूदा और हनानी परमेश्वर के भक्त दाऊद के बाजे लिथे हुए थे; और उनके आगे आगे एज्रा शास्त्री चला।
37. थे सेताफाटक से हो सीधे दाऊदपुर की सीढ़ी पर चढ़, शहरपनाह की ऊंचाई पर से चलकर, दाऊद के भवन के ऊपर से होकर, पूरब की ओर जलफाटक तक पहुंचे।
38. और धन्यवाद करने और धूमधाम से चलनेवालोंका दूसरा दल, और उनके पीछे पीछे मैं, और आधे लोग उन से मिलने को शहरपनाह के ऊपर ऊपर से भट्ठोंके गुम्मट के पास से चौड़ी शहरपनाह तक।
39. और एप्रैम के फाटक और पुराने फाटक, और मछलीफाटक, और हननेल के गुम्मट, और हम्मेआ नाम गुम्मट के पास से होकर भेड़ फाटक तक चले, और पहरुओं के फाटक के पास खड़े हो गए।
40. तब धन्यवाद करने वालोंके दोनोंदल और मैं और मेरे साय आधे हाकिम परमेश्वर के भवन में खड़े हो गए।
41. और एल्याकीम, मासेयाह, मिन्यामीन, मीकायाह, एल्योएनै, जकर्याह और हनन्याह नाम याजक तुरहियां लिथे हुए थे।
42. और मासेयाह, शमायाह, एलीआजर, उज्जी, यहोहानान, मल्किय्याह, एलाम, ओर एजेर (खड़े हुए थे) और गवैथे जिनका मुखिया यिज्रह्याह या, वह ऊंचे स्वर से गाते बजाते रहे।
43. उसी दिन लोगोंने बड़े बड़े मेलबलि चढ़ाए, और आनन्द लिया; क्योंकि परमेश्वर ने उनको बहुत ही आनन्दित किया या; स्त्रियोंने और बालबच्चोंने भी आनन्द किया। और यरूशलेम के आनन्द की ध्वनि दूर दूर तक फैल गई।
44. उसी दिन खज़ानों के, उठाई हुई भेंटोंके, पहिली पहिली उपज के, और दशमांशोंकी कोठरियोंके अधिक्कारनेी ठहराए गए, कि उन में नगर नगर के खेतोंके अनुसार उन वस्तुओं को जमा करें, जो व्यवस्या के अनुसार याजकोंऔर लेवियोंके भाग में की यी; क्योंकि यहूदी उपस्य्ित याजकोंऔर लेवियोंके कारण आनन्दित थे।
45. इसलिथे वे अपके परमेश्वर के काम और शुद्धता के विषय चौकसी करते रहे; और गवैथे ओर द्वारपाल भी दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान की आज्ञा के अनुसार वैसा ही करते रहे।
46. प्राचीनकाल, अर्यात् दाऊद और आसाप के दिनोंमें तो गवैयोंके प्रधान थे, और परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद के गीत गाए जाते थे।
47. और जरुब्बाबेल और नहेमायाह के दिनोंमें सारे इस्राएली, गवैयोंऔर द्वारपालोंके प्रतिदिन का भाग देते रहे; और वे लेवियोंके अंश पवित्र करके देते थे; और लेवीय हारून की सन्तान के अंश पवित्र करके देते थे।
Chapter 13
1. उसी दिन मूसा की पुस्तक लोगोंको पढ़कर सुनाई गई; और उस में यह लिखा हुआ मिला, कि कोई अम्मोनी वा मोआबी परमेश्वर की सभा में कभी न आने पाए;
2. क्योंकि उन्होंने अन्न जल लेकर इस्राएलियोंसे भेंट नहीं की, वरन बिलाम को उन्हें शाप देने के लिथे दझिणा देकर बुलवाया या--तौभी हमारे परमेश्वर ने उस शाप को आशीष से बदल दिया।
3. यह व्यवस्या सुनकर, उन्होंने इस्राएल में से मिली जुली भीड़ को अलग अलग कर दिया।
4. इस से पहिले एल्याशीब याजक जो हमारे परमेश्वर के भवन की कोठरियोंका अधिक्कारनेी और तोबिय्याह का सम्बन्धी या।
5. उस ने तोबिय्याह के लिथे एक बड़ी कोठरी तैयार की यी जिस में पहिले अन्नबलि का सामान और लोबान और पात्र और अनाज, नथे दाखमधु और टटके तेल के दशमांश, जिन्हें लेवियों, गवैयोंऔर द्वारपालोंको देने की आज्ञा यी, रखी हुई यी; और याजकोंके लिथे उठाई हुई भेंट भी रखी जाती यीं।
6. परन्तु मैं इस समय यरूशलेम में नहीं या, क्योंकि बाबेल के राजा अर्तझत्र के बत्तीसवें वर्ष में मैं राजा के पास चला गया। फिर कितने दिनोंके बाद राजा से छुट्टी मांगी,
7. और मैं यरूशलेम को आया, तब मैं ने जान लिया, कि एल्याशीब ने तोबिय्याह के लिथे परमेश्वर के भवन के आंगनोंमें एक कोठरी तैयार कर, क्या ही बुराई की है।
8. इसे मैं ने बहुत बुरा माना, और तोबिय्याह का सारा घरेलू सामान उस कोठरी में से फेंक दिया।
9. तब मेरी आज्ञा से वे कोठरियां शुद्ध की गई, और मैं ने परमेश्वर के भवन के पात्र और अन्नबलि का सामान और लोबान उन में फिर से रखवा दिया।
10. फिर मुझे मालूम हुआ कि लेवियोंका भाग उन्हें नहीं दिया गया है; और इस कारण काम करनेवाले लेवीय और गवैथे अपके अपके खेत को भाग गए हैं।
11. तब मैं ने हाकिमोंको डांटकर कहा, परमेश्वर का भवन क्योंत्यागा गया है? फिर मैं ने उनको इकट्ठा करके, एक एक को उसके स्यान पर नियुक्त किया।
12. तब से सब यहूदी अनाज, नथे दाखमधु और टटके तेल के दशमांश भणडारोंमें लाने लगे।
13. और मैं ने भणडारोंके अधिक्कारनेी शेलेम्याह याजक और सादोक मुंशी को, और लेवियोंमें से पदायाह को, और उनके नीचे हानान को, जो मत्तन्याह का पोता और जक्कूर का पुत्र या, नियुक्त किया; वे तो विश्वासयोग्य गिने जाते थे, और अपके भाइयोंके मय बांटना उनका काम या।
14. हे मेरे परमेश्वर ! मेरा यह काम मेरे हित के लिथे स्मरण रख, और जो जो सुकर्म मैं ने अपके परमेश्वर के भवन और उस में की आराधना के विषय किए हैं उन्हे मिटा न डाल।
15. उन्हीं दिनोंमें मैं ने यहूदा में कितनोंको देखा जो विश्रमदिन को हैदोंमें दाख रौंदते, और पूलियोंको ले आते, और गदहोंपर लादते थे; वैसे ही वे दाखमधु, दाख, अंजीर और भांति भांति के बोफ विश्रमदिन को यरूशलेम में लाते थे; तब जिस दिन वे भोजनवस्तु बेचते थे, उसी दिन मैं ने उनको चिता दिया।
16. फिर उस में सोरी लोग रहकर मछली और भांति भांति का सौदा ले आकर, यहूदियोंके हाथ यरूशलेम में विश्रमदिन को बेचा करते थे।
17. तब मैं ने यहूदा के रईसोंको डांटकर कहा, तुम लोग यह क्या बुराई करते हो, जो विश्रमदिन को अपवित्र करते हो?
18. क्या तुम्हारे पुरखा ऐसा नहीं करते थे? और क्या हमारे परमेश्वर ने यह सब विपत्ति हम पर और इस नगर पर न डाली? तौभी तुम विश्रमदिन को अपवित्र करने से इस्राएल पर परमेश्वर का क्रोध और भी भड़काते जाते हो।
19. सो जब विश्रमवार के पहिले दिन को यरूशलेम के फाटकोंके आस-पास अन्ध्ेरा होने लगा, तब मैं ने आज्ञा दी, कि उनके पल्ले बन्द किए जाएं, और यह भी आज्ञा दी, कि वे विश्रमवार के पूरे होने तक खोले न जाएं। तब मैं ने अपके कितने सेवकोंको फाटकोंका अधिक्कारनेी ठहरा दिया, कि विश्रमवार को कोई बोफ भीतर आने न पाए।
20. इसलिथे व्योपारी और भांति भांति के सौदे के बेचनेवाले यरूशलेम के बाहर दो एक बेर टिके।
21. तब मैं ने उनको चिताकर कहा, तुम लोग शहरपनाह के साम्हने क्योंटिकते हो? यदि तुम फिर ऐसा करोगे तो मैं तुम पर हाथ बढ़ाऊंगा। इसलिथे उस समय से वे फिर विश्रमबार को नहीं आए।
22. तब मैं ने लेवियोंको आज्ञा दी, कि अपके अपके को शुद्ध करके फाटकोंकी रखवाली करने के लिथे आया करो, ताकि विश्रमदिन पवित्र माना जाए। हे मेरे परमेश्वर ! मेरे हित के लिथे यह भी स्मरण रख और अपक्की बड़ी करुणा के अनुसार मुझ पर तरस खा।
23. फिर उन्हीं दिनोंमें मुझ को ऐसे यहूदी दिखाई पके, जिन्होंने अशदोदी, अम्मोनी और मोआबी स्त्रियां ब्याह ली यीं।
24. और उनके लड़केबालोंकी आधी बोली अशदोदी थी, और वे यहूदी बोली न बोल सकते थे, दोनोंजाति की बोली बोलते थे।
25. तब मैं ने उनको डांटा और कोसा, और उन में से कितनोंको पिटवा दिया और उनके बाल नुचवाए; और उनको परमेश्वर की यह शपय खिलाई, कि हम अपक्की बेटियां उनके बेटोंके साय ब्याह में न देंगे और न अपके लिथे वा अपके बेटोंके लिथे उनकी बेटियां ब्याह में लेंगे।
26. क्या इस्राएल का राजा सुलैमान इसी प्रकार के पाप में न फंसा य? बहुतेरी जातियोंमें उसके तुल्य कोई राजा नहीं हुआ, और वह अपके परमेश्वर का प्रिय भी या, और परमेश्वर ने उसे सारे इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त किया; परन्तु उसको भी अन्यजाति स्त्रियोंने पाप में फंसाया।
27. तो क्या हम तुम्हारी सुनकर, ऐसी बड़ी बुराई करें कि अन्यजाति की स्त्रियां ब्याह कर अपके परमेश्वर के विरुद्ध पाप करें?
28. और एल्याशीब महाथाजक के पुत्र योयादा का एक पुत्र, होरोनी सम्बल्लत का दामाद या, इसलिथे मैं ने उसको अपके पास से भगा दिया।
29. हे मेरे परमेश्वर उनकी हानि के लिथे याजकपद और याजकोंओर लेवियोंकी वाचा का तोड़ा जाना स्मरण रख।
30. इस प्रकार मैं ने उनको सब अन्यजातियोंसे शुद्ध किया, और एक एक याजक और लेवीय की बारी और काम ठहरा दिया।
31. फिर मैं ने लकड़ी की भेंट ले आने के विशेष समय ठहरा दिए, और पहिली पहिली उपज के देने का प्रबन्ध भी किया। हे मेरे परमेश्वर ! मेरे हित के लिथे मुझे स्मरण कर।
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