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फिलिप्पियों (Philippians)
Chapter 1
1. मसीह यीशु के दास पौलुस और तीमुयियुस की ओर से सब पवित्र लोगोंके नाम, जो मसीह यीशु में होकर फिलिप्पी में रहते हैं, अध्यझोंऔर सेवकोंसमेत।
2. हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।।
3. मैं जब जब तुम्हें स्क़रण करता हूं, तब तब अपके परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं।
4. और जब कभी तुम सब के लिथे बिनती करता हूं, तो सदा आनन्द के साय बिनती करता हूं।
5. इसलिथे, कि तुम पहिले दिन से लेकर आज तक सुसमाचार के फैलाने में मेरे सहभागी रहे हो।
6. और मुझे इस बात का भरोसा है, कि जिस ने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा।
7. उचित है, कि मैं तुम सब के लिथे ऐसा ही विचार करूं क्योंकि तुम मेरे मन में आ बसे हो, और मेरी कैद में और सुसमाचार के लिथे उत्तर और प्रमाण देने में तुम सब मेरे साय अनुग्रह में सहभागी हो।
8. इस में परमेश्वर मेरा गवाह है, कि मैं मसीह यीशु की सी प्रीति करके तुम सब की लालसा करता हूं।
9. और मैं यह प्रार्यना करता हूं, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए।
10. यहां तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातोंको प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ।
11. और उस धामिर्कता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे।।
12. हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
13. यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगोंमें यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिथे कैद हूं।
14. और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से बहुधा मेरे कैद होने के कारण, हियाव बान्ध कर, परमेश्वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी हियाव करते हैं।
15. कितने तो डाह और फगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कितने भली मनसा से।
16. कई एक तो यह जान कर कि मैं सुसमाचार के लिथे उत्तर देने को ठहराया गया हूं प्रेम से प्रचार करते हैं।
17. और कई एक तो सीधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कया सुनाते हैं, यह समझ कर कि मेरी कैद में मेरे लिथे क्लेश उत्पन्न करें।
18. सो क्या हुआ केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्चाई से, मसीह की कया सुनाई जाती है, और मैं इस से आनन्दित हूं, और आनन्दित रहूंगा भी।
19. क्योंकि मैं जानता हूं, कि तुम्हारी बिनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्क़ा के दान के द्वारा इस का प्रतिफल मेरा उद्धार होगा।
20. मैं तो यही हादिर्क लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्ज़ित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं वा मर जाऊं।
21. क्योंकि मेरे लिथे जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।
22. पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिथे लाभदायक है तो मैं नहीं जानता, कि किस को चुनूं।
23. क्योंकि मैं दोनोंके बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है।
24. परन्तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है।
25. और इसलिथे कि मुझे इस का भरोसा है सो मैं जानता हूं कि मैं जीवित रहूंगा, बरन तुम सब के साय रहूंगा जिस से तुम विश्वास में दृढ़ होते जाओ और उस में आनन्दित रहो।
26. और जो घमण्ड तुम मेरे विषय में करते हो, वह मेरे फिर तुम्हारे पास आने से मसीह यीशु में अधिक बढ़ जाए।
27. केवल इतना करो कि तुम्हारा चाल-चलन मसीह के सुसमाचार के योग्य हो कि चाहे मैं आकर तुम्हें देखूं, चाहे न भी आऊं, तुम्हारे विषय में यह सुनूं, कि तुम एक ही आत्क़ा में स्यिर हो, और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिथे परिश्र्म करते रहते हो।
28. और किसी बात में विरोधियोंसे भय नहीं खाते यह उन के लिथे विनाश का स्पष्ट चिन्ह है, परन्तु तुम्हारे लिथे उद्धार का, और यह परमेश्वर की ओर से है।
29. क्योंकि मसीह के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ कि न केवल उस पर विश्वास करो पर उसके लिथे दुख भी उठाओ।
30. और तुम्हें वैसा ही परिश्र्म करना है, जैसा तुम ने मुझे करते देखा है, और अब भी सुनते हो, कि मैं वैसा ही करता हूं।।
Chapter 2
1. सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्क़ा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
2. तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
3. विरोध या फूठी बड़ाई के लिथे कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपके से अच्छा समझो।
4. हर एक अपक्की ही हित की नहीं, बरन दूसरोंकी हित की भी चिन्ता करे।
5. जैसा मसीह यीशु का स्वभाव या वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
6. जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपके वश में रखने की वस्तु न समझा।
7. बरन अपके आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
8. और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपके आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
9. इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामोंमें श्र्ेष्ठ है।
10. कि जो स्वर्ग में और पृय्वी पर और जो पृय्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
11. और परमेश्वर पिता की महिमा के लिथे हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।।
12. सो हे मेरे प्यारो, जिस प्रकार तुम सदा से आज्ञा मानते आए हो, वैसे ही अब भी न केवल मेरे साय रहते हुए पर विशेष करके अब मेरे दूर रहने पर भी डरते और कांपके हुए अपके अपके उद्धार का कार्य्य पूरा करते जाओ।
13. क्योंकि परमेश्वर ही है, जिस न अपक्की सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनोंबातोंके करने का प्रभाव डाला है।
14. सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो।
15. ताकि तुम निर्दोष और भोले होकर टेढ़े और हठीले लोगोंके बीच परमेश्वर के निष्कलंक सन्तान बने रहो, (जिन के बीच में तुम जीवन का वचन लिए हुए जगत में जलते दीपकोंकी नाईं दिखाई देते हो)।
16. कि मसीह के दिन मुझे घमण्ड करने का कारण हो, कि न मेरा दौड़ना और न मेरा परिश्र्म करना व्यर्य हुआ।
17. और यदि मुझे तुम्हारे विश्वास के बलिदान और सेवा के साय अपना लोहू भी बहाना पके तौभी मैं आनन्दित हूं, और तुम सब के साय आनन्द करता हूं।
18. वैसे ही तुम भी आनन्दित हो, और मेरे साय आनन्द करो।।
19. मुझे प्रभु यीशु में आशा है, कि मैं तीमुयियुस को तुम्हारे पास तुरन्त भेजूंगा, ताकि तुम्हारी दशा सुनकर मुझे शान्ति मिले।
20. क्योंकि मेरे पास ऐसे स्वाभाव का कोई नहीं, जो शुद्ध मन से तुम्हारी चिन्ता करे।
21. क्योंकि सब अपके स्वार्य की खोज में रहते हैं, न कि यीशु मसीह की।
22. पर उसको तो तुम ने परखा और जान भी लिया है, कि जैसा पुत्र पिता के साय करता है, वैसा ही उस ने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साय परिश्र्म किया।
23. सो मुझे आशा है, कि ज्योंही मुझे जान पकेगा कि मेरी क्या दशा होगी, त्योंही मैं उसे तुरन्त भेज दूंगा।
24. और मुझे प्रभु में भरोसा है, कि मैं आप भी शीघ्र आऊंगा।
25. पर मैं ने इपफ्रदीतुस को जो मेरा भाई, और सहकर्मी और संगी योद्धा और तुम्हारा दूत, और आवश्यक बातोंमें मेरी सेवा टहल करनेवाला है, तुम्हारे पास भेजना अवश्य समझा।
26. क्योंकि उसका मन तुम सब में लगा हुआ या, इस कारण वह व्याकुल रहता या क्योंकि तुम ने उस की बीमारी का हाल सुना या।
27. और निश्चय वह बीमार तो हो गया या, यहां तक कि मरने पर या, परन्तु परमेश्वर ने उस पर दया की; और केवल उस ही पर नहीं, पर मुझ पर भी, कि मुझे शोक पर शोक न हो।
28. इसलिथे मैं ने उसे भेजने का और भी यत्न किया कि तुम उस से फिर भेंट करके आनन्दित हो जाओ और मेरा शोक घट जाए।
29. इसलिथे तुम प्रभु में उस से बहुत आनन्द के साय भेंट करना, और ऐसोंका आदर किया करना।
30. क्योंकि वही मसीह के काम के लिथे अपके प्राणोंपर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया या, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई, उसे पूरा करे।।
Chapter 3
1. निदान, हे मेरे भाइयो, प्रभु में आनन्दित रहो: वे ही बातें तुम को बार बार लिखने में मुझे तो कोई कष्ट नहीं होता, और इस में तुम्हारी कुशलता है।
2. कुत्तोंसे चौकस रहो, उन बुरे काम करनेवालोंसे चौकस रहो, उन काट कूट करनेवालोंसे चौकस रहो।
3. क्योंकि खतनावाले तो हम ही हैं जो परमेश्वर के आत्क़ा की अगुवाई से उपासना करते हैं, और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं और शरीर पर भरोसा नहीं रखते।
4. पर मैं तो शरीर पर भी भरोसा रख सकता हूं यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उस से भी बढ़कर रख सकता हूं।
5. आठवें दिन मेरा खतना हुआ, इस्त्राएल के वंश, और बिन्यामीन के गोत्र का हूं; इब्रानियोंका इब्रानी हूं; व्यवस्या के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूं।
6. उत्साह के विषय में यदि कहो तो कलीसिया का सतानेवाला; और व्यवस्या की धामिर्कता के विषय में यदि कहो तो निर्दोष या।
7. परन्तु जो जो बातें मेरे लाभ की यीं, उन्हीं को मैं ने मसीह के कारण हानि समझ लिया है।
8. बरन मैं अपके प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातोंको हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं।
9. और उस में पाया जाऊं; न कि अपक्की उस धामिर्कता के साय, जो व्यवस्या से है, बरन उस धामिर्कता के साय जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है।
10. और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्य को, और उसके साय दुखोंमें सहभागी हाने के मर्म को जानू, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं।
11. ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं।
12. यह मतलब नहीं, कि मैं पा चुका हूं, या सिद्ध हो चुका हूं: पर उस पदार्य को पकड़ने के लिथे दौड़ा चला जाता हूं, जिस के लिथे मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा या।
13. हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातोंकी ओर बढ़ता हुआ।
14. निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिथे परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।
15. सो हम में से जितने सिद्ध हैं, यही विचार रखें, और यदि किसी बात में तुम्हारा और ही विचार हो तो परमेश्वर उसे भी तुम पर प्रगट कर देगा।
16. सो जहां तक हम पहुंचे हैं, उसी के अनुसार चलें।।
17. हे भाइयो, तुम सब मिलकर मेरी सी चाल चलो, और उन्हें पहिचान रखो, जो इस रीति पर चलते हैं जिस का उदाहरण तुम हम में पाते हो।
18. क्योंकि बहुतेरे ऐसी चाल चलते हैं, जिन की चर्चा मैं ने तुम से बार बार किया है और अब भी रो रोकर कहता हूं, कि वे अपक्की चालचलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं।
19. उन का अन्त विनाश है, उन का ईश्वर पेट है, वे अपक्की लज्ज़ा की बातोंपर घमण्ड करते हैं, और पृय्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं।
20. पर हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम पर उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहां से आन ही बाट जोह रहे हैं।
21. वह अपक्की शक्ति के उस प्रभाव के अनुसार जिस के द्वारा वह सब वस्तुओं को अपके वश में कर सकता है, हमारी दीन-हीन देह का रूप बदलकर, अपक्की महिमा की देह के अनुकूल बना देगा।।
Chapter 4
1. इसलिथे हे मेरे प्रिय भाइयों, जिन में मेरा जी लगा रहता है जो मेरे आनन्द और मुकुट हो, हे प्रिय भाइयो, प्रभु में इसी प्रकार स्यिर रहो।।
2. मैं यूआदिया को भी समझाता हूं, और सुन्तुखे को भी, कि वे प्रभु में एक मन रहें।
3. और हे सच्चे सहकर्मी मैं तुझ से भी बिनती करता हूं, कि तू उन स्त्रियोंकी सहयता कर, क्योंकि उन्होंने मेरे साय सुसमाचार फैलाने में, क्लेमेंस और मेरे उन और सहकिर्मयोंसमेत परिश्र्म किया, जिन के नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हुए हैं।
4. प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो।
5. तुम्हारी कोमलता सब मनुष्योंपर प्रगट हो: प्रभु निकट है।
6. किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्यना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साय परमेश्वर के सम्मुख अपस्यित किए जाएं।
7. तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल पके है, तुम्हारे ह्रृदय और तुम्हारे विचारोंको मसीह यीशु में सुरिझत रखेगी।।
8. निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरनीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगया करो।
9. जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साय रहेगा।।
10. मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूं कि अब इतने दिनोंके बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार या, पर तुम्हें अवसर न मिला।
11. यह नहीं कि मैं अपक्की घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं।
12. मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है।
13. जो मुझे सामर्य देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।
14. तौभी तुम ने भला किया, कि मेरे क्लेश में मेरे सहभागी हुए।
15. और हे फिलप्पियो, तुम आप भी जानते हो, कि सुसमाचार प्रचार के आरम्भ में जब मैं ने मकिदुनिया से कूच किया तब तुम्हें छोड़ और किसी मण्डली ने लेने देने के विषय में मेरी सहयता नहीं की।
16. इसी प्रकार जब मैं यिस्सलुनीके में या; तब भी तुम ने मेरी घटी पूरी करने के लिथे एक बार क्या बरन दो बार कुछ भेजा या।
17. यह नहीं कि मैं दान चाहता हूं परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूं, जो तुम्हारे लाभ के लिथे बढ़ता जाए।
18. मेरे पास सब कुछ है, बरन बहुतायत से भी है: जो वस्तुएं तुम ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से भेजी यीं उन्हें पाकर मैं तृप्त हो गया हूं, वह तो सुगन्ध और ग्रहण करने के योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है।
19. और मेरा परमश्ेवर भी अपके उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा।
20. हमारे परमेश्वर और पिता की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।।
21. हर एक पवित्र जन को जो यीशु मसीह में हैं नमस्कार कहो। जो भाई मेरे साय हैं तुम्हें नमस्कार कहते हैं।
22. सब पवित्र लोग, विशेष करके जो कैसर के घराने के हैं तुम को नमस्कार कहते हैं।।
23. हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्क़ा के साय रहे।।
Chapter 1
1. मसीह यीशु के दास पौलुस और तीमुयियुस की ओर से सब पवित्र लोगोंके नाम, जो मसीह यीशु में होकर फिलिप्पी में रहते हैं, अध्यझोंऔर सेवकोंसमेत।
2. हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।।
3. मैं जब जब तुम्हें स्क़रण करता हूं, तब तब अपके परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं।
4. और जब कभी तुम सब के लिथे बिनती करता हूं, तो सदा आनन्द के साय बिनती करता हूं।
5. इसलिथे, कि तुम पहिले दिन से लेकर आज तक सुसमाचार के फैलाने में मेरे सहभागी रहे हो।
6. और मुझे इस बात का भरोसा है, कि जिस ने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा।
7. उचित है, कि मैं तुम सब के लिथे ऐसा ही विचार करूं क्योंकि तुम मेरे मन में आ बसे हो, और मेरी कैद में और सुसमाचार के लिथे उत्तर और प्रमाण देने में तुम सब मेरे साय अनुग्रह में सहभागी हो।
8. इस में परमेश्वर मेरा गवाह है, कि मैं मसीह यीशु की सी प्रीति करके तुम सब की लालसा करता हूं।
9. और मैं यह प्रार्यना करता हूं, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए।
10. यहां तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातोंको प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ।
11. और उस धामिर्कता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्तुति होती रहे।।
12. हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
13. यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगोंमें यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिथे कैद हूं।
14. और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से बहुधा मेरे कैद होने के कारण, हियाव बान्ध कर, परमेश्वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी हियाव करते हैं।
15. कितने तो डाह और फगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कितने भली मनसा से।
16. कई एक तो यह जान कर कि मैं सुसमाचार के लिथे उत्तर देने को ठहराया गया हूं प्रेम से प्रचार करते हैं।
17. और कई एक तो सीधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कया सुनाते हैं, यह समझ कर कि मेरी कैद में मेरे लिथे क्लेश उत्पन्न करें।
18. सो क्या हुआ केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्चाई से, मसीह की कया सुनाई जाती है, और मैं इस से आनन्दित हूं, और आनन्दित रहूंगा भी।
19. क्योंकि मैं जानता हूं, कि तुम्हारी बिनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्क़ा के दान के द्वारा इस का प्रतिफल मेरा उद्धार होगा।
20. मैं तो यही हादिर्क लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्ज़ित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं वा मर जाऊं।
21. क्योंकि मेरे लिथे जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।
22. पर यदि शरीर में जीवित रहना ही मेरे काम के लिथे लाभदायक है तो मैं नहीं जानता, कि किस को चुनूं।
23. क्योंकि मैं दोनोंके बीच अधर में लटका हूं; जी तो चाहता है कि कूच करके मसीह के पास जा रहूं, क्योंकि यह बहुत ही अच्छा है।
24. परन्तु शरीर में रहना तुम्हारे कारण और भी आवश्यक है।
25. और इसलिथे कि मुझे इस का भरोसा है सो मैं जानता हूं कि मैं जीवित रहूंगा, बरन तुम सब के साय रहूंगा जिस से तुम विश्वास में दृढ़ होते जाओ और उस में आनन्दित रहो।
26. और जो घमण्ड तुम मेरे विषय में करते हो, वह मेरे फिर तुम्हारे पास आने से मसीह यीशु में अधिक बढ़ जाए।
27. केवल इतना करो कि तुम्हारा चाल-चलन मसीह के सुसमाचार के योग्य हो कि चाहे मैं आकर तुम्हें देखूं, चाहे न भी आऊं, तुम्हारे विषय में यह सुनूं, कि तुम एक ही आत्क़ा में स्यिर हो, और एक चित्त होकर सुसमाचार के विश्वास के लिथे परिश्र्म करते रहते हो।
28. और किसी बात में विरोधियोंसे भय नहीं खाते यह उन के लिथे विनाश का स्पष्ट चिन्ह है, परन्तु तुम्हारे लिथे उद्धार का, और यह परमेश्वर की ओर से है।
29. क्योंकि मसीह के कारण तुम पर यह अनुग्रह हुआ कि न केवल उस पर विश्वास करो पर उसके लिथे दुख भी उठाओ।
30. और तुम्हें वैसा ही परिश्र्म करना है, जैसा तुम ने मुझे करते देखा है, और अब भी सुनते हो, कि मैं वैसा ही करता हूं।।
Chapter 2
1. सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्क़ा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
2. तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
3. विरोध या फूठी बड़ाई के लिथे कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपके से अच्छा समझो।
4. हर एक अपक्की ही हित की नहीं, बरन दूसरोंकी हित की भी चिन्ता करे।
5. जैसा मसीह यीशु का स्वभाव या वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
6. जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपके वश में रखने की वस्तु न समझा।
7. बरन अपके आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
8. और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपके आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
9. इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामोंमें श्र्ेष्ठ है।
10. कि जो स्वर्ग में और पृय्वी पर और जो पृय्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
11. और परमेश्वर पिता की महिमा के लिथे हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।।
12. सो हे मेरे प्यारो, जिस प्रकार तुम सदा से आज्ञा मानते आए हो, वैसे ही अब भी न केवल मेरे साय रहते हुए पर विशेष करके अब मेरे दूर रहने पर भी डरते और कांपके हुए अपके अपके उद्धार का कार्य्य पूरा करते जाओ।
13. क्योंकि परमेश्वर ही है, जिस न अपक्की सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनोंबातोंके करने का प्रभाव डाला है।
14. सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो।
15. ताकि तुम निर्दोष और भोले होकर टेढ़े और हठीले लोगोंके बीच परमेश्वर के निष्कलंक सन्तान बने रहो, (जिन के बीच में तुम जीवन का वचन लिए हुए जगत में जलते दीपकोंकी नाईं दिखाई देते हो)।
16. कि मसीह के दिन मुझे घमण्ड करने का कारण हो, कि न मेरा दौड़ना और न मेरा परिश्र्म करना व्यर्य हुआ।
17. और यदि मुझे तुम्हारे विश्वास के बलिदान और सेवा के साय अपना लोहू भी बहाना पके तौभी मैं आनन्दित हूं, और तुम सब के साय आनन्द करता हूं।
18. वैसे ही तुम भी आनन्दित हो, और मेरे साय आनन्द करो।।
19. मुझे प्रभु यीशु में आशा है, कि मैं तीमुयियुस को तुम्हारे पास तुरन्त भेजूंगा, ताकि तुम्हारी दशा सुनकर मुझे शान्ति मिले।
20. क्योंकि मेरे पास ऐसे स्वाभाव का कोई नहीं, जो शुद्ध मन से तुम्हारी चिन्ता करे।
21. क्योंकि सब अपके स्वार्य की खोज में रहते हैं, न कि यीशु मसीह की।
22. पर उसको तो तुम ने परखा और जान भी लिया है, कि जैसा पुत्र पिता के साय करता है, वैसा ही उस ने सुसमाचार के फैलाने में मेरे साय परिश्र्म किया।
23. सो मुझे आशा है, कि ज्योंही मुझे जान पकेगा कि मेरी क्या दशा होगी, त्योंही मैं उसे तुरन्त भेज दूंगा।
24. और मुझे प्रभु में भरोसा है, कि मैं आप भी शीघ्र आऊंगा।
25. पर मैं ने इपफ्रदीतुस को जो मेरा भाई, और सहकर्मी और संगी योद्धा और तुम्हारा दूत, और आवश्यक बातोंमें मेरी सेवा टहल करनेवाला है, तुम्हारे पास भेजना अवश्य समझा।
26. क्योंकि उसका मन तुम सब में लगा हुआ या, इस कारण वह व्याकुल रहता या क्योंकि तुम ने उस की बीमारी का हाल सुना या।
27. और निश्चय वह बीमार तो हो गया या, यहां तक कि मरने पर या, परन्तु परमेश्वर ने उस पर दया की; और केवल उस ही पर नहीं, पर मुझ पर भी, कि मुझे शोक पर शोक न हो।
28. इसलिथे मैं ने उसे भेजने का और भी यत्न किया कि तुम उस से फिर भेंट करके आनन्दित हो जाओ और मेरा शोक घट जाए।
29. इसलिथे तुम प्रभु में उस से बहुत आनन्द के साय भेंट करना, और ऐसोंका आदर किया करना।
30. क्योंकि वही मसीह के काम के लिथे अपके प्राणोंपर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया या, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई, उसे पूरा करे।।
Chapter 3
1. निदान, हे मेरे भाइयो, प्रभु में आनन्दित रहो: वे ही बातें तुम को बार बार लिखने में मुझे तो कोई कष्ट नहीं होता, और इस में तुम्हारी कुशलता है।
2. कुत्तोंसे चौकस रहो, उन बुरे काम करनेवालोंसे चौकस रहो, उन काट कूट करनेवालोंसे चौकस रहो।
3. क्योंकि खतनावाले तो हम ही हैं जो परमेश्वर के आत्क़ा की अगुवाई से उपासना करते हैं, और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं और शरीर पर भरोसा नहीं रखते।
4. पर मैं तो शरीर पर भी भरोसा रख सकता हूं यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उस से भी बढ़कर रख सकता हूं।
5. आठवें दिन मेरा खतना हुआ, इस्त्राएल के वंश, और बिन्यामीन के गोत्र का हूं; इब्रानियोंका इब्रानी हूं; व्यवस्या के विषय में यदि कहो तो फरीसी हूं।
6. उत्साह के विषय में यदि कहो तो कलीसिया का सतानेवाला; और व्यवस्या की धामिर्कता के विषय में यदि कहो तो निर्दोष या।
7. परन्तु जो जो बातें मेरे लाभ की यीं, उन्हीं को मैं ने मसीह के कारण हानि समझ लिया है।
8. बरन मैं अपके प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातोंको हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं।
9. और उस में पाया जाऊं; न कि अपक्की उस धामिर्कता के साय, जो व्यवस्या से है, बरन उस धामिर्कता के साय जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है।
10. और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्य को, और उसके साय दुखोंमें सहभागी हाने के मर्म को जानू, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं।
11. ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं।
12. यह मतलब नहीं, कि मैं पा चुका हूं, या सिद्ध हो चुका हूं: पर उस पदार्य को पकड़ने के लिथे दौड़ा चला जाता हूं, जिस के लिथे मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा या।
13. हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातोंकी ओर बढ़ता हुआ।
14. निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिथे परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है।
15. सो हम में से जितने सिद्ध हैं, यही विचार रखें, और यदि किसी बात में तुम्हारा और ही विचार हो तो परमेश्वर उसे भी तुम पर प्रगट कर देगा।
16. सो जहां तक हम पहुंचे हैं, उसी के अनुसार चलें।।
17. हे भाइयो, तुम सब मिलकर मेरी सी चाल चलो, और उन्हें पहिचान रखो, जो इस रीति पर चलते हैं जिस का उदाहरण तुम हम में पाते हो।
18. क्योंकि बहुतेरे ऐसी चाल चलते हैं, जिन की चर्चा मैं ने तुम से बार बार किया है और अब भी रो रोकर कहता हूं, कि वे अपक्की चालचलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं।
19. उन का अन्त विनाश है, उन का ईश्वर पेट है, वे अपक्की लज्ज़ा की बातोंपर घमण्ड करते हैं, और पृय्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं।
20. पर हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम पर उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहां से आन ही बाट जोह रहे हैं।
21. वह अपक्की शक्ति के उस प्रभाव के अनुसार जिस के द्वारा वह सब वस्तुओं को अपके वश में कर सकता है, हमारी दीन-हीन देह का रूप बदलकर, अपक्की महिमा की देह के अनुकूल बना देगा।।
Chapter 4
1. इसलिथे हे मेरे प्रिय भाइयों, जिन में मेरा जी लगा रहता है जो मेरे आनन्द और मुकुट हो, हे प्रिय भाइयो, प्रभु में इसी प्रकार स्यिर रहो।।
2. मैं यूआदिया को भी समझाता हूं, और सुन्तुखे को भी, कि वे प्रभु में एक मन रहें।
3. और हे सच्चे सहकर्मी मैं तुझ से भी बिनती करता हूं, कि तू उन स्त्रियोंकी सहयता कर, क्योंकि उन्होंने मेरे साय सुसमाचार फैलाने में, क्लेमेंस और मेरे उन और सहकिर्मयोंसमेत परिश्र्म किया, जिन के नाम जीवन की पुस्तक में लिखे हुए हैं।
4. प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो।
5. तुम्हारी कोमलता सब मनुष्योंपर प्रगट हो: प्रभु निकट है।
6. किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्यना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साय परमेश्वर के सम्मुख अपस्यित किए जाएं।
7. तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल पके है, तुम्हारे ह्रृदय और तुम्हारे विचारोंको मसीह यीशु में सुरिझत रखेगी।।
8. निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरनीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगया करो।
9. जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साय रहेगा।।
10. मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूं कि अब इतने दिनोंके बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार या, पर तुम्हें अवसर न मिला।
11. यह नहीं कि मैं अपक्की घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्तोष करूं।
12. मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है।
13. जो मुझे सामर्य देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।
14. तौभी तुम ने भला किया, कि मेरे क्लेश में मेरे सहभागी हुए।
15. और हे फिलप्पियो, तुम आप भी जानते हो, कि सुसमाचार प्रचार के आरम्भ में जब मैं ने मकिदुनिया से कूच किया तब तुम्हें छोड़ और किसी मण्डली ने लेने देने के विषय में मेरी सहयता नहीं की।
16. इसी प्रकार जब मैं यिस्सलुनीके में या; तब भी तुम ने मेरी घटी पूरी करने के लिथे एक बार क्या बरन दो बार कुछ भेजा या।
17. यह नहीं कि मैं दान चाहता हूं परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूं, जो तुम्हारे लाभ के लिथे बढ़ता जाए।
18. मेरे पास सब कुछ है, बरन बहुतायत से भी है: जो वस्तुएं तुम ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से भेजी यीं उन्हें पाकर मैं तृप्त हो गया हूं, वह तो सुगन्ध और ग्रहण करने के योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है।
19. और मेरा परमश्ेवर भी अपके उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा।
20. हमारे परमेश्वर और पिता की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।।
21. हर एक पवित्र जन को जो यीशु मसीह में हैं नमस्कार कहो। जो भाई मेरे साय हैं तुम्हें नमस्कार कहते हैं।
22. सब पवित्र लोग, विशेष करके जो कैसर के घराने के हैं तुम को नमस्कार कहते हैं।।
23. हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्क़ा के साय रहे।।
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