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प्रकाशित वाक्य (Revelation)
Chapter 1
1. यीशु मसीह का प्रकाशितवाक्य जो उसे परमेश्वर ने इसलिथे दिया, कि अपके दासोंको वे बातें, जिन का शीघ्र होना अवश्य है, दिखाए: और उस ने अपके स्वर्गदूत को भेजकर उसके द्वारा अपके दास यूहन्ना को बताया।
2. जिस ने परमेश्वर के वचन और यीशु मसीह की गवाही, अर्यात् जो कुछ उस ने देखा या उस की गवाही दी।
3. धन्य है वह जो इस भविष्यद्वाणी के वचन को पढ़ता है, और वे जो सुनते हैं और इस में लिखी हुई बातोंको मानते हैं, क्योंकि समय निकट आया है।।
4. यूहन्ना की ओर से आसिया की सात कलीसियाओं के नाम: उस की ओर से जो है, और जो या, और जो आनेवाला है; और उन सात आत्क़ाओं की ओर से, जो उसके सिंहासन के साम्हने है।
5. और यीशु मसीह की ओर से, जो विश्वासयोग्य साझी और मरे हुओं में से जी उठनेवालोंमें पहिलौठा, और पृय्वी के राजाओं का हाकिम है, तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे: जो हम से प्रेम रखता है, और जिस ने अपके लोहू के द्वारा हमें पापोंसे छुड़ाया है।
6. और हमें एक राज्य और अपके पिता परमेश्वर के लिथे याजक भी बना दिया; उसी की महिमा और पराक्रम युगानुयुग रहे। आमीन।
7. देखो, वह बादलोंके साय आनेवाला है; और हर एक आंख उसे देखेगी, बरन जिन्होंने उसे बेधा या, वे भी उसे देखेंगे, और पृय्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे। हां। आमीन।।
8. प्रभु परमेश्वर वह जो है, और जो या, और जो आनेवाला है; जो सर्वशक्तिमान है: यह कहता है, कि मैं ही अल्फा और ओमिगा हूं।।
9. मैं यूहन्ना जो तुम्हारा भाई, और यीशु के क्लेश, और राज्य, और धीरज में तुम्हारा सहभागी हूं, परमेश्वर के वचन, और यीशु की गवाही के कारण पतमुस नाम टापू में या।
10. कि मैं प्रभु के दिन आत्क़ा में आ गया, और अपके पीछे तुरही का सा बड़ा शब्द यह कहते सुना।
11. कि जो कुछ तू देखता है, उसे पुस्तक में लिखकर सातोंकलीसियाओं के पास भेज दे, अर्यात् इफिसुस और स्क़ुरना, और पिरगमुन, और यूआतीरा, और सरदीस, और फिलेदिलफिया, और लौदीकिया में।
12. और मैं ने उसे जो मुझ से बोल रहा या; देखने के लिथे अपना मुंह फेरा; और पीछे घूमकर मैं ने सोने की सात दीवटें देखी।
13. और उन दीवटोंके बीच में मनुष्य के पुत्र सरीखा एक पुरूष को देखा, जो पांवोंतक का वस्त्र पहिने, और छाती पर सुनहला पटुका बान्धे हुए या।
14. उसके सिर और बाल श्वेत ऊन वरन पाले के से उज्ज़वल थे; और उस की आंखे आग की ज्वाला की नाईं यी।
15. और उसके पांव उत्तम पीतल के समान थे जो मानो भट्टी में तपाए गए हों; और उसका शब्द बहुत जल के शब्द की नाई या।
16. और वह अपके दिहने हाथ में सात तारे लिए हुए या: और उसके मुख से चोखी दोधारी तलवार निकलती यी; और उसका मुंह ऐसा प्रज्वलित या, जैसा सूर्य कड़ी धूप के समय चमकता है।
17. जब मै ने उसे देखा, तो उसके पैरोंपर मुर्दा सा गिर पड़ा और उस ने मुझ पर अपना दिहना हाथ रखकर यह कहा, कि मत डर; मैं प्रयम और अन्तिम और जीवता हूं।
18. मैं मर गया या, और अब देख; मैं युगानुयुग जीवता हूं; और मृत्यु और अधोलोक की कुंजियां मेरे ही पास हैं।
19. इसलिथे जो बातें तू ने देखीं हैं और जो बातें हो रही हैं; और जो इस के बाद होनेवाली हैं, उन सब को लिख ले।
20. अर्यात् उन सात तारोंका भेद जिन्हें तू ने मेरे दिहने हाथ में देखा या, और उन सात सोने की दीवटोंका भेद: वे सात तारे सातोंकलीसियाओं के दूत हैं, और वे सात दीवट सात कलीसियाएं हैं।।
Chapter 2
1. इफिसुस की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो सातोंतारे अपके दिहने हाथ में लिए हुए है, और सोने की सातोंदीवटोंके बीच में फिरता है, वह यह कहता है कि
2. मै तेरे काम, और परिश्र्म, और तेरा धीरज जानता हूं; और यह भी, कि तू बुरे लोगोंको तो देख नहीं सकता; और जो अपके आप को प्रेरित कहते हैं, और हैं नहीं, उन्हें तू ने परखकर फूठा पाया।
3. और तू धीरज धरता है, और मेरे नाम के लिथे दु:ख उठाते उठाते यका नहीं।
4. पर मुझे तेरे विरूद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहिला सा प्रेम छोड़ दिया है।
5. सो चेत कर, कि तू कहां से गिरा है, और मन फिरा और पहिले के समान काम कर; और यदि तू मन न फिराएगा, तो मै तेरे पास आकर तेरी दीवट को उस स्यान से हटा दूंगा।
6. पर होंतुझ में यह बात तो है, कि तू नीकुलइयोंके कामोंसे घृणा करता है, जिन से मैं भी घृणा करता हूं।
7. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है: जो जय पाए, मैं उसे उस जीवन के पेड़ में से जो परमेश्वर के स्वर्गलोक में है, फल खाने को दूंगा।।
8. और स्क़ुरना की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो प्रयम और अन्तिम है; जो मर गया या और अब जीवित हो गया है, वह यह कहता है कि।
9. मैं तेरे क्लेश और दिरद्रता को जानता हूं; (परन्तु तू धनी है); और जो लोग अपके आप को यहूदी कहते हैं और हैं नहीं, पर शैतान की सभा हैं, उन की निन्दा को भी जानता हूं।
10. जो दु:ख तुझ को फेलने होंगे, उन से मत डर: क्योंकि देखो, शैतान तुम में से कितनोंको जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ; और तुम्हें दस दिन तक क्लेश उठाना होगा: प्राण देने तक विश्वासी रह; तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा।
11. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है: जो जय पाए, उस को दूसरी मृत्यु से हानि न पंहुचेगी।।
12. और पिरगमुन की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जिस के पास दोधारी और चोखी तलवार है, वह यह कहता है, कि।
13. मैं यह तो जानता हूं, कि तू वहां रहता है जहां शैतान का सिंहासन है, और मेरे नाम पर स्यिर रहता है; और मुझ पर विश्वास करने से उन दिनोंमें भी पीछे नहीं हटा जिन में मेरा विश्वासयोग्य साझी अन्तिपास, तुम में उस स्यान पर घात किया गया जहां शैतान रहता है।
14. पर मुझे तेरे विरूद्ध कुछ बातें कहनी हैं, क्योंकि तेरे यहां कितने तो ऐसे हैं, जो बिलाम की शिझा को मानते हैं, जिस ने बालाक को इस्त्राएलियोंके आगे ठोकर का कारण रखना सिखाया, कि वे मूरतोंके बलिदान खाएं, और व्यभिचार करें।
15. वैसे ही तेरे यहां कितने तो ऐसे हैं, जो नीकुलइयोंकी शिझा को मानते हैं।
16. सो मन फिरा, नहीं तो मैं तेरे पास शीघ्र ही आकर, अपके मुख की तलवार से उन के साय लडूंगा।
17. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है; जो जय पाए, उस को मैं गुप्त मन्ना में से दूंगा, और उसे एक श्वेत पत्यर भी दूंगा; और उस पत्यर पर एक नाम लिखा हुआ होगा, जिसे उसके पानेवाले के सिवाय और कोई न जानेगा।।
18. और यूआतीरा की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, परमेश्वर का पुत्र जिस की आंखे आग की ज्वाला की नाई, और जिस के पांव उत्तम पीतल के समान हैं, यह कहता है, कि
19. मैं तेरे कामों, और प्रेम, और विश्वास, और सेवा, और धीरज को जानता हूं, और यह भी कि तेरे पिछले काम पहिलोंसे बढ़कर हैं।
20. पर मुझे तेरे विरूद्ध यह कहना है, कि तू उस स्त्री इजेबेल को रहने देता है जो अपके आप को भविष्यद्वक्तिन कहती है, और मेरे दासोंको व्यभिचार करने, और मूरतोंके आगे के बलिदान खाने को सिखलाकर भरमाती है।
21. मैं ने उस को मन फिराने के लिथे अवसर दिया, पर वह अपके व्यभिचार से मन फिराना नहीं चाहती।
22. देख, मैं उसे खाट पर डालता हूं; और जो उसके साय व्यभिचार करते हैं यदि वे भी उसके से कामोंसे मन न फिराएंगे तो उन्हें बड़े क्लेश में डांलूगा।
23. और मैं उसके बच्चोंको मार डालंूगा; और तब सब कलीसियाएं जान लेंगी कि ह्रृदय और मन का परखनेवाला मैं ही हूं: और मैं तुम में से हर एक को उसके कामोंके अनुसार बदला दूंगा।
24. पर तुम यूआतीरा के बाकी लोगोंसे, जितने इस शिझा को नहीं मानते, और उन बातोंको जिन्हें शैतान की गहिरी बातें कहते हैं नहीं जानते, यह कहता हूं, कि मैं तुम पर और बोफ न डालूंगा।
25. पर हां, जो तुम्हारे पास है उस को मेरे आने तक यामें रहो।
26. जो जय पाए, और मेरे कामोंके अनुसार अन्त तक करता रहे, मैं उसे जाति जाति के लोगोंपर अधिक्कारने दूंगा।
27. और वह लोहे का राजदण्ड लिथे हुए उन पर राज्य करेगा, जिस प्रकार कुम्हार के मिट्टी के बरतन चकनाचूर हो जाते है: जैसे कि मै ने भी ऐसा ही अधिक्कारने अपके पिता से पाया है।
28. और मैं उसे भोर को तारा दूंगा।
29. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है।।
Chapter 3
1. और सरदीस की कलीसिया के दूत को लिख, कि, जिस के पास परमेश्वर की सात आत्क़ाएं और सात तारे हैं, यह कहता है, कि मैं तेरे कामोंको जानता हूं, कि तू जीवता तो कहलाता है, पर, है मरा हुआ।
2. जागृत रह, और उन वस्तुओं को जो बाकी रह गई हैं, और जो मिटने को यी, उन्हें दृढ़ कर; क्योंकि मैं ने तेरे किसी काम को अपके परमेश्वर के निकट पूरा नहीं पाया।
3. सो चेत कर, कि तु ने किस रीति से शिझा प्राप्त की और सुनी यी, और उस में बना रह, और मन फिरा: और यदि तू जागृत न रहेगा, तो मैं चोर की नाई आ जाऊंगा और तू कदापि न जान सकेगा, कि मैं किस घड़ी तुझ पर आ पडूंगा।
4. पर हां, सरदीस में तेरे यहां कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपके अपके वस्त्र अशुद्ध नहीं किए, वे श्वेत वस्त्र पहिने हुए मेरे साय घूमेंगे क्योंकि वे इस योग्य हैं।
5. जो जय पाए, उसे इसी प्रकार श्वेत वस्त्र पहिनाया जाएगा, और मैं उसका नाम जीवन की पुस्तक में से किसी रीति से न काटूंगा, पर उसका नाम अपके पिता और उसके स्वर्गदूतोंके साम्हने मान लूंगा।
6. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है।।
7. और फिलेदिलफिया की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो पवित्र और सत्य है, और जो दाऊद की कुंजी रखता है, जिस के खोले हुए को कोई बन्द नहीं कर सकता और बन्द किए हुए को कोई खोल नहीं सकता, वह यह कहता है, कि।
8. मैं तेरे कामोंको जानता हूं, (देख, मैं ने तेरे साम्हने एक द्वार खोल रखा है, जिसे कोई बन्द नहीं कर सकता) कि तेरी सामर्य योड़ी सी है, और तू ने मेरे वचन का पालन किया है और मेरे नाम का इन्कार नहीं किया।
9. देख, मैं शैतान के उन सभावालोंको तेरे वश में कर दूंगा जो यहूदी बन बैठे हैं, पर हैं नहीं, बरन फूठ बोलते हैं देख, मैं ऐसा करूंगा, कि वे आकर तेरे चरणोंमें दण्डवत करेंगे, और यह जान लेंगे, कि मैं ने तुझ से प्रेम रखा है।
10. तू ने मेरे धीरज के वचन को यामा है, इसलिथे मैं भी तुझे पक्कीझा के उस समय बचा रखूंगा, जो पृय्वी पर रहनेवालोंके परखने के लिथे सारे संसार पर आनेवाला है।
11. मैं शीघ्र ही आनेवाला हूं; जो कुछ तेरे पास है, उस यामें रह, कि कोई तेरा मुकुट छीन न ले।
12. जो जय पाए, उस मैं अपके परमेश्वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊंगा; और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपके परमेश्वर का नाम, और अपके परमेश्वर के नगर, अर्यात् नथे यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है और अपना नया नाप उस पर लिखूंगा।
13. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है।।
14. और लौदीकिया की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो आमीन, और विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह है, और परमेश्वर की सृष्टि का मूल कारण है, वह यह कहता है।
15. कि मैं तेरे कामोंको जानता हूं कि तू न तो ठंडा है और न गर्म: भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता।
16. सो इसलिथे कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपके मुंह से उगलने पर हूं।
17. तू जो कहता है, कि मैं धनी हूं, और धनवान हो गया हूं, और मुझे किसी वस्तु की घटी नहीं, और यह नहीं जानता, कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धा, और नंगा है।
18. इसी लिथे मैं तुझे सम्मति देता हूं, कि आग में ताया हुआ सोना मुझ से मोल ले, कि धनी हो जाए; और श्वेत वस्त्र ले ले कि पहिनकर तुझे अपके नंगेपन की लज्ज़ा न हो; और अपक्की आंखोंमें लगाने के लिथे सुर्मा ले, कि तू देखने लगे।
19. मैं जिन जिन से प्रीति रखता हूं, उन सब को उलाहना और ताड़ना देता हूं, इसलिथे सरगर्म हो, और मन फिरा।
20. देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साय भोजन करूंगा, और वह मेरे साय।
21. जो जय पाए, मैं उसे अपके साय अपके सिंहासन पर बैठाऊंगा, जैसा मैं भी जय पाकर अपके पिता के साय उसके सिंहासन पर बैठ गया।
22. जिस के कान होंवह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है।।
Chapter 4
1. इन बातोंके बाद जो मैं ने दृष्टि की, तो क्या देखता हूं कि स्वर्ग में एक द्वार खुला हुआ है; और जिस को मैं ने पहिले तुरही के से शब्द से अपके साय बातें करते सुना या, वही कहता है, कि यहां ऊपर आ जा: और मैं वे बातें तुझै दिखाऊंगा, जिन का इन बातोंके बाद पूरा होना अवश्य है।
2. और तुरन्त मैं आत्क़ा में आ गया; और क्या देखता हूं, कि एक सिंहासन स्वर्ग में धरा है, और उस सिंहासन पर कोई बैठा है।
3. और जो उस पर बैठा है, वह यशब और मानिक सा दिखाई पड़ता है, और उस सिंहासन के चारोंओर मरकत सा एक मेघधनुष दिखाई देता है।
4. और उस सिंहासन के चारोंओर चौबीस सिंहासन है; और इन सिंहासनोंपर चौबीस प्राचीन श्वेत वस्त्र पहिने हुए बैठें हैं, और उन के सिरोंपर सोने के मुकुट हैं।
5. और उस सिंहासन में से बिजलियां और गर्जन निकलते हैं और सिंहासन के साम्हने आग के सात दीपक जल रहे हैं, थे परमेश्वर की सात आत्क़ाएं हैं।
6. और उस सिंहासन के साम्हने मानो बिल्लौर के समान कांच का सा समुद्र है, और सिंहासन के बीच में और सिंहासन के चारोंओर चार प्राणी है, जिन के आगे पीछे आंखे ही आंखे हैं।
7. पहिला प्राणी सिंह के समान है, और दूसरा प्राणी का मुंह बछड़े के समान है, तीसरे प्राणी का मुंह मनुष्य का सा है, और चौया प्राणी उड़ते हुए उकाब के समान है।
8. और चारोंप्राणियोंके छ: छ: पंख हैं, और चारोंओर, और भीतर आंखे ही आंखे हैं; और वे रात दिन बिना विश्रम लिए यह कहते रहते हैं, कि पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु परमेश्वर, सर्वशक्तिमान, जो या, और जो है, और जो आनेवाला है।
9. और जब वे प्राणी उस की जो सिंहासन पर बैठा है, और जो युगानुयुग जीवता है, महिमा और आदर और धन्यवाद करेंगे।
10. तब चौबीसोंप्राचीन सिंहासन पर बैठनेवाले के साम्हने गिर पकेंगे, और उसे जो युगानुयुग जीवता है प्रणाम करेंगे; और अपके अपके मुकुट सिंहासन के साम्हने यह कहते हुए डाल देंगे।
11. कि हमारे प्रभु, और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्य के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से यी, और सृजी गईं।।
Chapter 5
1. और जो सिंहासन पर बैठा या, मैं ने उसके दिहने हाथ में एक पुस्तक देखी, जो भीतर और बाहर लिखी हुई भी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई यी।
2. फिर मैं ने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊंचे शब्द से यह प्रचार करता या कि इस पुस्तक के खोलने और उस की मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है
3. और न स्वर्ग में, न पृय्वी पर, न पृय्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्टि डालने के योग्य निकला।
4. और मैं फूट फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक के खोलने, या उस पर दृष्टि करने के योग्य कोई न मिला।
5. तब उन प्राचीनोंमें से एक ने मुझे से कहा, मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह, जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातोंमुहर तोड़ने के लिथे जयवन्त हुआ है।
6. और मैं ने उस सिंहासन और चारोंप्राणियोंऔर उन प्राचीनोंके बीच में, मानोंएक वध किया हुआ मेम्ना खड़ा देखा: उसके सात सींग और सात आंखे यी; थे परमेश्वर की सातोंआत्क़ाएं हैं, जो सारी पृय्वी पर भेजी गई हैं।
7. उस ने आकर उसके दिहने हाथ से जो सिंहासन पर बैठा या, वह पुस्तक ले ली,
8. और जब उस ने पुस्तक ले ली, तो वे चारोंप्राणी और चौबीसोंप्राचीन उस मेम्ने के साम्हने गिर पके; और हर एक के हाथ में वीणा और धूप से भरे हुए सोने के कटोरे थे, थे तो पवित्र लोगोंकी प्रार्यनाएं हैं।
9. और वे यह नया गीत गाने लगे, कि तू इस पुस्तक के लेने, और उसकी मुहरें खोलने के योग्य है; क्योंकि तू ने वध होकर अपके लोहू से हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से परमेश्वर के लिथे लोगोंको मोल लिया है।
10. और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिथे एक राज्य और याजक बनाया; और वे पृय्वी पर राज्य करते हैं।
11. और जब मै ने देखा, तो उस सिंहासन और उन प्राणियोंऔर उन प्राचीनोंकी चारोंओर बहुत से स्वर्गदूतोंका शब्द सुना, जिन की गिनती लाखोंऔर करोड़ोंकी यी।
12. और वे ऊंचे शब्द से कहते थे, कि वध किया हुआ मेम्ना ही सामर्य, और धन, और ज्ञान, और शक्ति, और आदर, और महिमा, और धन्यवाद के योग्य है।
13. फिर मैं ने स्वर्ग में, और पृय्वी पर, और पृय्वी के नीचे, और समुद्र की सब सृजी हुई वस्तुओं को, और सब कुछ को जो उन में हैं, यह कहते सुना, कि जो सिंहासन पर बैठा है, उसका, और मेम्ने का धन्यवाद, और आदर, और महिमा, और राज्य, युगानुयुग रहे।
14. और चारोंप्राणियोंने आमीन कहा, और प्राचीनोंने गिरकर दण्डवत् किया।।
Chapter 6
1. फिर मैं ने देखा, कि मेम्ने ने उन सात मुहरोंमें से एक को खोला; और उन चारोंप्राणियोंमें से एक का गर्ज का सा शब्द सुना, कि आ।
2. और मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक श्वेत घोड़ा है, और उसका सवार धनुष लिए हुए है: और उसे एक मुकुट दिया गया, और वह जय करता हुआ निकल कि और भी जय प्राप्त करे।।
3. और जब उस ने दूसरी मुहर खोली, तो मैं ने दूसरे प्राणी को यह कहते सुना, कि आ।
4. फिर एक और घोड़ा निकला, जो लाल रंग का या; उसके सवार को यह अधिक्कारने दिया गया, कि पृय्वी पर से मेल उठा ले, ताकि लोग एक दूसरे को वध करें; और उसे एक बड़ी तलवार दी गई।।
5. और जब उस ने तीसरी मुहर खोली, तो मैं ने तीसरे प्राणी को यह कहते सुना, कि आ: और मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक काला घोड़ा है;
6. और मैं ने उन चारोंप्राणियोंके बीच में से एक शब्द यह कहते सुना, कि दीनार का सेर भर गेहूं, और दीनार का तीन सेर जव, और तेल, और दाख-रस की हानि न करना।।
7. और जब उस ने चौयी मुहर खोली, तो मैं ने चौथे प्राणी का शब्द यह कहते सुना, कि आ।
8. और मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक पीला सा घोड़ा है; और उसके सवार का नाम मृत्यु है: और अधोलोक उसके पीछे पीछे है और उन्हें पृय्वी की एक चौयाई पर यह अधिक्कारने दिया गया, कि तलवार, और अकाल, और मरी, और पृय्वी के वनपशुओं के द्वारा लोगोंको मार डालें।।
9. और जब उस ने पांचक्की मुहर खोली, तो मैं ने वेदी के नीचे उन के प्राणोंको देखा, जो परमेश्वर के वचन के कारण, और उस गवाही के कारण जो उन्होंने दी यी, वध किए गए थे।
10. और उन्होंने बड़े शब्द से पुकार कर कहा; हे स्वामी, हे पवित्र, और सत्य; तू कब तक न्याय न करेगा और पृय्वी के रहनेवालोंसे हमारे लोहू का पलटा कब तक न लेगा
11. और उन में से हर एक को श्वेत वस्त्र दिया गया, और उन से कहा गया, कि और योड़ी देर तक विश्रम करो, जब तक कि तुम्हारे संगी दास, और भाई, जो तुम्हारी नाई वध होनेवाले हैं, उन की भी गिनती पूरी न हो ले।।
12. और जब उस ने छठवीं मुहर खोली, तो मैं ने देखा, कि एक बड़ा भुइंडोल हुआ; और सूर्य कम्मल की नाईं काला, और पूरा चन्द्रमा लोहू का सा हो गया।
13. और आकाश के तारे पृय्वी पर ऐसे गिर पके जैसे बड़ी आन्धी से हिलकर अंजीर के पेड़ में से कच्चे फल फड़ते हैं।
14. और आकाश ऐसा सरक गया, जैसा पत्र लपेटने से सरक जाता है; और हर एक पहाड़, और टापू, अपके अपके स्यान से टल गया।
15. और पृय्वी के राजा, और प्रधान, और सरदार, और धनवान और सामर्यी लोग, और हर एक दास, और हर एक स्वतंत्र, पहाड़ोंकी खोहोंमें, और चटानोंमें जा छिपे।
16. और पहाड़ों, और चटानोंसे कहने लगे, कि हम पर गिर पड़ो; और हमें उसके मुंह से जो सिंहासन पर बैठा है और मेम्ने के प्रकोप से छिपा लो।
17. क्योंकि उन के प्रकोप का भयानक दिन आ पहुंचा है, अब कौन ठहर सकता है
Chapter 7
1. इसके बाद मैं ने पृय्वी के चारोंकोनोंपर चार स्वर्गदूत खड़े देखे, वे पृय्वी की चारोंहवाओं को यामे हुए थे ताकि पृय्वी, या समुद्र, या किसी पेड़ पर, हवा न चले।
2. फिर मैं ने एक और स्वर्गदूत को जीवते परमेश्वर की मुहर लिए हुए पूरब से ऊपर की ओर आते देखा; उस ने उन चारोंस्वर्गदूतोंसे जिन्हें पृय्वी और समुद्र की हानि करने का अधिक्कारने दिया गया या, ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा।
3. जब तक हम अपके परमेश्वर के दासोंके माथे पर मुहर न लगा दें, तब तक पृय्वी और समुद्र और पेड़ोंको हानि न पहुंचाना।
4. और जिन पर मुहर दी गई, मैं ने उन की गिनती सुनी, कि इस्त्राएल की सन्तानोंके सब गोत्रोंमें से एक लाख चौआलीस हजार पर मुहर दी गई।
5. यहूदा के गोत्र में से बारह हजार पर मुहर दी गई; रूबेन के गोत्र में से बारह हजार पर; गाद के गोत्र में से बारह हजार पर।
6. आशेर के गोत्र में से बारह हजार पर; मनश्श्हि के गोत्र में से बारह हजार पर।
7. शमौन के गोत्र में से बारह हजार पर; लेवी के गोत्र में से बारह हजार पर; लेवी के गोत्र में से बारह हजार पर; इस्साकार के गोत्र में से बारह हजार पर।
8. जबूलून के गोत्र में से बारह हजार पर; यूसुफ के गोत्र में से बारह हजार पर और बिन्यामीन के गोत्र में से बारह हजार पर मुहर दी गई।
9. इस के बाद मैं ने दृष्टि की, और देखो, हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता या श्वेत वस्त्र पहिने, और अपके हाथोंमें खजूर की डालियां लिथे हुए सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी है।
10. और बड़े शब्द से पुकारकर कहती है, कि उद्धार के लिथे हमारे परमेश्वर का जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने का जय-जय-कार हो।
11. और सारे स्वर्गदूत, उस सिंहासन और प्राचीनोंऔर चारोंप्राणियोंके चारोंओर खड़े हैं, फिर वे सिंहासन के साम्हने मुंह के बल गिर पके; और परमेश्वर को दण्डवत् करके कहा, आमीन।
12. हमारे परमेश्वर की स्तुति, ओर महिमा, और ज्ञान, और धन्यवाद, और आदर, और सामर्य, और शक्ति युगानुयुग बनी रहें। आमीन।
13. इस पर प्राचीनोंमें से एक ने मुझ से कहा; थे श्वेत वस्त्र पहिने हुए कौन हैं और कहां से आए हैं
14. मैं ने उस से कहा; हे स्वामी, तू ही जानता है: उस ने मुझ से कहा; थे वे हैं, जो उस बड़े क्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्होंने अपके अपके वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।
15. इसी कारण वे परमेश्वर के सिंहासन के साम्हने हैं, और उसके मन्दिर में दिन रात उस की सेवा करते हैं; और जो सिंहासन पर बैठा है, वह उन के ऊपर अपना तम्बू तानेगा।
16. वे फिर भूखे और प्यासे न होंगे: ओर न उन पर धूप, न कोई तपन पकेगी।
17. क्योंकि मेम्ना जो सिंहासन के बीच में है, उन की रखवाली करेगा; और उन्हें जीवन रूपी जल के सोतोंके पास ले जाया करेगा, और परमेश्वर उन की आंखोंसे सब आंसू पोंछ डालेगा।।
Chapter 8
1. और जब उस ने सातवीं मुहर खोली, तो स्वर्ग में आध घड़ी तक सन्नाटा छा गया।
2. और मैं ने उन सातोंस्वर्गदूतोंको जो परमेश्वर के साम्हने खड़े रहते हैं, देखा, और उन्हें सात तुरिहयां दी गईं।।
3. फिर एक और स्वर्गदूत सोने का धूपदान लिथे हुए आया, और वेदी के निकट खड़ा हुआ; और उस को बहुत धूप दिया गया, कि सब पवित्र लोगोंकी प्रार्यनाओं के साय उस सोनहली वेदी पर जो सिंहासन के साम्हने है चढ़ाए।
4. और उस धूप का धुआं पवित्र लोगोंकी प्रार्यनाओं सहित स्वर्गदूत के हाथ से परमेश्वर के साम्हने पहुंच गया।
5. और स्वर्गदूत ने धूपदान लेकर उस में वेदी की आग भरी, और पृय्वी पर डाल दी, और गर्जन और शब्द और बिजलियां और भूईडोल होने लगा।।
6. और वे सातोंस्वर्गदूत जिन के पास सात तुरिहयां यी, फंूकने को तैयार हुए।।
7. पहिले स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, और लोहू से मिले हुए ओले और आग उत्पन्न हुई, और पृय्वी पर डाली गई; और पृय्वी की एक तिहाई जल गई, और सब हरी घास भी जल गई।।
8. और दूसरे स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, तो मानो आग सा जलता हुआ एक बड़ा पहाड़ समुद्र में डाला गया; और समुद्र का एक तिहाई लोहू हो गया।
9. और समुद्र की एक तिहाई सृजी हुई वस्तुएं जो सजीव यीं मर गई, और एक तिहाई जहाज नाश हो गया।।
10. और तीसरे स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, और एक बड़ा तारा जो मशाल की नाई जलता या, स्वर्ग से टूटा, और नदियोंकी एक तिहाई पर, और पानी के सोतोंपर आ पड़ा
11. और उस तोर का नाम नागदौना कहलाता है, और एक तिहाई पानी नागदौना सा कड़वा हो गया, और बहुतेरे मनुष्य उस पानी के कड़वे हो जाने से मर गए।।
12. और चौथे स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, और सूर्य की एक तिहाई, और चान्द की एक तिहाई और तारोंकी एक तिहाई पर आपत्ति आई, यहां तक कि उन का एक तिहाई अंग अन्धेरा हो गया और दिन की एक तिहाई में उजाला न रहा, और वैसे ही रात में भी।।
13. और जब मैं ने फिर देखा, तो आकाश के बीच में एक उकाब को उड़ते और ऊंचे शब्द से यह कहते सुना, कि उन तीन स्वर्गदूतोंकी तुरही के शब्दोंके कारण जिन का फूंकना अभी बाकी है, पृय्वी के रहनेवालोंपर हाथ! हाथ! हाथ!
Chapter 9
1. और जब पांचवें स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, तो मैं ने स्वर्ग से पृय्वी पर एक तारा गिरता हुआ देखा, और उसे अयाह कुण्ड की कुंजी दी गई।
2. और उस ने अयाह कुण्ड को खोला, और कुण्ड में से बड़ी भट्टी का सा धुआं उठा, और कुण्ड के धुएं से सूर्य और वायु अन्धयारी हो गई।
3. और उस धुएं में से पृय्वी पर ट्टिड्डियाँ निकलीं, और उन्हें पृय्वी के बिच्छुओं की सी शक्ति दी गई।
4. और उन से कहा गया, कि न पृय्वी की घास को, न किसी हिरयाली को, न किसी पेड़ को हानि पहुंचाओ, केवल उन मनुष्योंको जिन के माथे पर परमेश्वर की मुहर नहीं है।
5. और उन्हें मार डालते का तो नहीं, पर पांच महीने तक लोगोंको पीड़ा देने का अधिक्कारने दिया गया: और उन की पीड़ा ऐसी यी, जैसे बिच्छू के डंक मारने से मनुष्य को होती है।
6. उन दिनोंमें मनुष्य मृत्यु को ढूंढ़ेंगे, ओर न पाएंगे; और मरने की लालसा करेंगे, और मृत्यु उस से भागेगी।
7. और उन िटिड्डयोंके आकार लड़ाई के लिथे तैयार किए हुए घोड़ोंके से थे, और उन के सिरोंपर मानोंसोने के मुकुट थे; और उसके मुंह मनुष्योंके से थे।
8. और उन के बाल स्त्रियोंके से, और दांत सिहोंके से थे।
9. और वे लोहे की सी फिलम पहिने थे, और उन के पंखोंका शब्द ऐसा या जैसा रयोंऔर बहुत से घोड़ोंका जो लड़ाई में दौड़ते हों।
10. और उन की पूंछ बिच्छुओं की सी यीं, और उन में डंक थे, और उन्हें पांच महीने तक मनुष्योंको दुख पहुंचाने की जो सामर्य यी, वह उन की पूंछोंमें यी।
11. अयाह कुण्ड का दूत उन पर राजा या, उसका नाम इब्रानी में अबद्दोन, और यूनानी में अपुल्लयोन है।।
12. पहिली विपत्ति बीत चुकी, देखो अब इन के बाद दो विपत्तियां और होनेवाली हैं।।
13. और जब छठवें स्वर्गदूत ने तुरही फंूकी तो जो सोने की वेदी परमेश्वर के साम्हने है उसके सींगो में से मैं ने ऐसा शब्द सुना।
14. मानोंकोई छठवें स्वर्गदूत से जिस के पास तुरही यी कह रहा है कि उन चार स्वर्गदूतोंको जो बड़ी नदी फुरात के पास बन्धे हुए हैं, खोल दे।
15. और वे चारोंदूत खोल दिए गए जो उस घड़ी, और दिन, और महीने, और वर्ष के लिथे मनुष्योंकी एक तिहाई के मार डालने को तैयार किए गए थे।
16. और फौजोंके सवारोंकी गिनती बीस करोड़ यी; मैं ने उन की गिनती सुनी।
17. और मुझे इस दर्शन में घोड़े और उन के ऐसे सवार दिखाई दिए, जिन की फिलमें आग, और धूम्रकान्त, और गन्धक की सी यीं, और उन घोड़ोंके सिर सिंहोंके सिरोंके से थे: और उन के मुंह से आग, और धुआं, और गन्धक निकलती यी।
18. इन तीनोंमरियों; अर्यात् आग, और धुएं, और गन्धक से जो उसके मुंह से निकलती यीं, मनुष्योंकी एक तिहाई मार डाली गई।
19. क्योंकि उन घोड़ोंकी सामर्य उन के मुंह, और उन की पूंछोंमें यी; इसलिथे कि उन की पूंछे सांपोंकी सी यीं, और उन पूंछोंके सिर भी थे, और इन्हीं से वे पीड़ा पहुंचाते थे।
20. और बाकी मनुष्योंने जो उन मरियोंसे न मरे थे, अपके हाथोंके कामोंसे मन न फिराया, कि दुष्टात्क़ाओं की, और सोने और चान्दी, और पीतल, और पत्यर, और काठ की मूरतोंकी पूजा न करें, जो न देख, न सुन, न चल सकती हैं।
21. और जो खून, और टोना, और व्यभिचार, और चोरियां, उन्होंने की यीं, उन से मन न फिराया।।
Chapter 10
1. फिर मैं ने एक और बली स्वर्गदूत को बादल ओढ़े हुए स्वर्ग से उतरते देखा, उसके सिर पर मेघधनुष या: और उसका मुंह सूर्य का सा और उसके पांव आग के खंभे के से थे।
2. और उसके हाथ में एक छोटी सी खुली हुई पुस्तक यी; उस ने अपना दिहना पांव समुद्र पर, और बायां पृय्वी पर रखा।
3. और ऐसे बड़े शब्द से चिल्लाया, जैसा सिंह गरजता है; और जब वह चिल्लाया तो गर्जन के सात शब्द सुनाई दिए।
4. और जब सातोंगर्जन के शब्द सुनाई दे चुके, तो मैं लिखने पर या, और मैं ने स्वर्ग से यह शब्द सुना, कि जो बातें गर्जन के उन सात शब्दोंसे सुनी हैं, उन्हें गुप्त रख, और मत लिख।
5. और जिस स्वर्गदूत को मैं ने समुद्र और पृय्वी पर खड़े देख या; उस ने अपना दिहना हाथ स्वर्ग की ओर उठाया।
6. और जो युगानुयुग जीवता रहेगा, और जिस ने सवर्ग को और जो कुछ उस में है, और पृय्वी को और जो कुछ उस पर है, और समुद्र को और जो कुछ उस में है सृजा उसी की शपय खाकर कहा, अब तो और देर न होगी।
7. बरन सातवें स्वर्गदूत के शब्द देने के दिनोंमें जब वह तुरही फूंकने पर होगा, तो परमेश्वर का गुप्त मनोरय उस सुसमाचार के अनुसार जो उस ने अपके दास भविष्यद्वक्ताओं को दिया पूरा होगा।
8. और जिस शब्द करनेवाले को मैं ने स्वर्ग से बोलते सुना या, वह फिर मेरे साय बातें करने लगा; कि जा, जो स्वर्गदूत समुद्र और पृय्वी पर खड़ा है, उसके हाथ में की खुली हुईं पुस्तक ले ले।
9. और मैं ने स्वर्गदूत के पास जाकर कहा, यह छोटी पुस्तक मुझे दे; और उस ने मुझ से कहा ले इसे खा जो, और यह तेरा पेट कड़वा तो करेगी, पर तेरे मुंह में मधु सी मीठी लगेगी।
10. सो मैं वह छोटी पुस्तक उस स्वर्गदूत के हाथ से लेकर खा गया, वह मेरे मुंह में मधु सी मीठी तो लगी, पर जब मैं उसे खा गया, तो मेरा पेट कड़वा हो गया।
11. तब मुझ से यह कहा गया, कि तुझे बहुत से लोगों, और जातियों, और भाषाओं, और राजाओं पर, फिर भविष्यद्ववाणी करनी होगी।।
Chapter 11
1. और मुझे लग्गी के समान एक सरकंडा दिया गया, और किसी ने कहा; उठ, परमेश्वर के मन्दिर और वेदी, और उस में भजन करनेवालोंको नाप ले।
2. और मन्दिर के बारह का आंगन छोड़ दे; उस मत नाप, क्योंकि वह अन्यजातियोंको दिया गया है, और वे पवित्र नगर को बयालीस महीने तक रौंदेंगी।
3. और मैं अपके दो गवाहोंको यह अधिक्कारने दूंगा, कि टाट ओढे हुए एक हजार दो सौ साठ दिन तक भविष्यद्ववाणी करें।
4. थे वे ही जैतून के दो पेड़ और दो दीवट हैं जो पृय्वी के प्रभु के साम्हने खड़े रहते हैं।
5. और यदि कोई उन को हानि पहुंचाना चाहता है, तो उन के मुंह से आग निकलकर उन के बैरियोंको भस्क़ करती है, और यदि कोई उन को हानि पहुंचाना चाहेगा, तो अवश्य इसी रीति से मार डाला जाएगा।
6. इन्हें अधिक्कारने है, कि आकाश को बन्द करें, कि उन की भविष्यद्ववाणी के दिनोंमें मेंह न बरसे, और उन्हें सब पानी पर अधिक्कारने है, कि उसे लोहू बनाएं, और जब जब चाहें तब तब पृय्वी पर हर प्रकार की आपत्ति लाएं।
7. और जब वे अपक्की गवाही दे चुकेंगे, तो वह पशु जो अयाह कुण्ड में से निकलेगा, उन से लड़कर उन्हें जीतेगा और उन्हें मार डालेगा।
8. और उन की लोथें उस बड़े नगर के चौक में पड़ी रहेंगी, जो आत्क़िक रीति से सदोम और मिसर कहलाता है, जहां उन का प्रभु भी क्रूस पर चढ़ाया गया या।
9. और सब लोगों, और कुलों, और भाषाओं, और जातियोंमें से लोग उन की लोथें साढ़े तीन दिन तक देखते रहेंगे, और उन की लोथें कब्र में रखने ने देंगे।
10. और पृय्वी के रहनेवाले, उन के मरने से आनन्दित और मगन होंगे, और एक दूसरे के पास भेंट भेजेंगे, क्योंकि इन दोनोंभविष्यद्वक्ताओं ने पृय्वी के रहनेवालोंको सताया या
11. और साढ़े तीन दिन के बाद परमेश्वर की ओर से जीवन की आत्क़ा उन में पैठ गई; और वे अपके पांवोंके बल खड़े हो गए, और उनके देखनेवालोंपर बड़ा भय छा गया।
12. और उन्हें स्वर्ग से एक बड़ा शब्द सुनाई दिया, कि यहां ऊपर आओ; यह सुन वे बादल पर सवार होकर अपके बैरियोंके देखते देखते स्वर्ग पर चढ़ गए।
13. फिर उसी घड़ी एक बड़ा भुइंडोल हुआ, और नगर का दसवां अंश गिर पड़ा; और उस भुइंडोल से सात हजार मनुष्य मर गए और शेष डर गए, और स्वर्ग के परमेश्वर की महिमा की।।
14. दूसरी विपत्ति बीत चुकी, देखो, तीसरी विपत्ति शीघ्र आनेवाली है।।
15. और जब सातवें दूत ने तुरही फूंकी, तो स्वर्ग में इस विषय के बड़े बड़े शब्द होने लगे कि जगत का राज्य हमारे प्रभु का, और उसके मसीह का हो गया।
16. और वह युगानुयुग राज्य करेगा, और चौबीसोंप्राचीन जो परमेश्वर के साम्हने अपके अपके सिंहासन पर बैठे थे, मुंह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत करके।
17. यह कहने लगे, कि हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, जो है, और जो या, हम तेरा धन्यवाद करते हैं, कि तू ने अपक्की बड़ी सार्म्य काम में लाकर राज्य किया है।
18. और अन्यजातियोंने क्रोध किया, और तेरा प्रकोप आ पड़ा और वह समय आ पहुंचा है, कि मरे हुओं का न्याय किया जाए, और तेरे दास भविष्यद्वक्ताओं और पवित्र लोगोंको और उन छोटे बड़ोंको जो तेरे नाम से डरते हैं, बदला दिया जाए, और पृय्वी के बिगाड़नेवाले नाश किए जाएं।।
19. और परमेश्वर का जो मन्दिर स्वर्ग में है, वह खोला गया, और उसके मन्दिर में उस की वाचा का सन्दूक दिखाई दिया, और बिजलियां और शब्द और गर्जन और भुइंडोल हुए, और बड़े बड़े ओले पके।।
Chapter 12
1. फिर स्वर्ग पर एक बड़ा चिन्ह दिखाई दिया, अर्यात् एक स्त्री जो सूर्य्य ओढ़े हुए यी, और चान्द उसके पांवोंतले या, और उसके सिर पर बारह तारोंका मुकुट या।
2. और वह गर्भवती हुई, और चिल्लाती यी; कयोंकि प्रसव की पीड़ा उसे लगी यी; और वह बच्चा जनने की पीड़ा में यी।
3. और एक और चिन्ह स्वर्ग पर दिखाई दिया, और देखो; एक बड़ा लाल अजगर या जिस के सात सिर और दस सींग थे, और उसके सिरोंपर सात राजमुकुट थे।
4. और उस की पूंछ ने आकाश के तारोंकी एक तिहाई को खींचकर पृय्वी पर डाल दिया, और वह अजगर उस स्त्री से साम्हने जो जच्चा यी, खड़ा हुआ, कि जब वह बच्चा जने तो उसके बच्चे को निगल जाए।
5. और वह बेटा जनी जो लोहे का दण्ड लिए हुए, सब जातियोंपर राज्य करने पर या, और उसका बच्चा एकाएक परमेश्वर के पास, और उसके सिंहासन के पास उठाकर पहुंचा दिया गया।
6. और वह स्त्री उस जंगल को भाग गई, जहां परमेश्वर की ओर से उसके लिथे एक जगह तैयार की गई यी, कि वहां वह एक हजार दो सौ साठ दिन तक पाली जाए।।
7. फिर स्वर्ग पर लड़ाई हुई, मीकाईल और उसके स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले, और अजगर ओर उनके दूत उस से लड़े।
8. परन्तु प्रबल न हुए, और स्वर्ग में उन के लिथे फिर जगह न रही।
9. और वह बड़ा अजगर अर्यात् वही पुराना सांप, जो इब्लीस और शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृय्वी पर गिरा दिया गया; और उसके दूत उसके साय गिरा दिए गए।
10. फिर मैं ने स्वर्ग पर से यह बड़ा शब्द आते हुए सुना, कि अब हमारे परमेश्वर का उद्धार, और सामर्य, और राज्य, और उसके मसीह का अधिक्कारने प्रगट हुआ है; क्योंकि हमारे भाइयोंपर दोष लगानेवाला, जो रात दिन हमारे परमेश्वर के साम्हने उन पर दोष लगाया करता या, गिरा दिया गया।
11. और वे मेम्ने के लोहू के कारण, और अपक्की गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवन्त हुए, और उन्होंने अपके प्राणोंको प्रिय न जाना, यहां तक कि मृत्यु भी सह ली।
12. इस कारण, हे स्वर्गों, और उन में के रहनेवालोंमगन हो; हे पृय्वी, और समुद्र, तुम पर हाथ! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साय तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका योड़ा ही समय और बाकी है।।
13. और जब अजगर ने देखा, कि मैं पृय्वी पर गिरा दिया गया हूं, तो उस स्त्री को जो बेटा जनी यी, सताया।
14. और उस स्त्री को बड़े उकाब के दो पंख दिए गए, कि सांप के साम्हने से उड़कर जंगल में उस जगह पहुंच जाए, जहां वह एक समय, और समयों, और आधे समय तक पाली जाए।
15. और सांप ने उस स्त्री के पीछे अपके मुंह से नदी की नाई पानी बहाथा, कि उसे इस नदी से बहा दे।
16. परन्तु पृय्वी ने उस स्त्री की सहाथता की, और अपना मुंह खोलकर उस नदी को जो अजगर ने अपके मुंह से बहाई यी, पी लिया।
17. और अजगर स्त्री पर क्रोधित हुआ, और उसकी शेष सन्तान से जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही देने पर स्यिर हैं, लड़ने को गया। और वह समुद्र के बालू पर जा खड़ा हुआ।।
Chapter 13
1. और मैं ने एक पशु को समुद्र में से निकलते हुए देखा, जिस के दस सींग और सात सिर थे; और उसके सिरोंपर निन्दा के नाम लिखे हुए थे।
2. और जो पशु मैं ने देखा, वह चीते की नाई या; और उसके पांव भालू के से, और मुंह सिंह का सा या; और उस अजगर ने अपक्की सामर्य, और अपना सिंहासन, और बड़ा अधिक्कारने, उसे दे दिया।
3. और मैं ने उसके सिरोंमें से एक पर ऐसा भारी घाव लगा देखा, मानो वह माने पर है; फिर उसका प्राणघातक घाव अच्छा हो गया, और सारी पृय्वी के लोग उस पशु के पीछे पीछे अचंभा करते हुए चले।
4. और उन्होंने अजगर की पूजा की, क्योंकि उस ने पशु को अपना अधिक्कारने दे दिया या और यह कहकर पशु की पूजा की, कि इस पशु के समान कौन है
5. कौन उस से लड़ सकता है और बड़े बोल बोलने और निन्दा करने के लिथे उसे एक मुंह दिया गया, और उसे बयालीस महीने तक काम करने का अधिक्कारने दिया गया।
6. और उस ने परमेश्वर की निन्दा करने के लिथे मुंह खोला, कि उसके नाम और उसके तम्बू अर्यात् स्वर्ग के रहनेवालोंकी निन्दा करे।
7. और उसे यह अधिक्कारने दिया गया, कि पवित्र लोगोंसे लड़े, और उन पर जय पाए, और उसे हर एक कुल, और लोग, और भाषा, और जाति पर अधिक्कारने दिया गया।
8. और पृय्वी के वे सब रहनेवाले जिन के नाम उस मेम्ने की जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, जो जंगल की उत्पत्ति के समय से घात हुआ है, उस पशु की पूजा करेंगे।
9. जिस के कान होंवह सुने।
10. जिस को कैद में पड़ना है, वह कैद में पकेगा, जो तलवार से मारेगा, अवश्य है कि वह तलवार से मारा जाएगा, पवित्र लोगोंका धीरज और विश्वास इसी में है।।
11. फिर मैं ने एक और पशु को पृय्वी में से निकलते हुए देखा, उसके मेम्ने के से दो सींग थे; और वह अजगर की नाईं बोलता या।
12. और यह उस पहिले पशु का सारा अधिक्कारने उसके साम्हने काम में लाता या, और पृय्वी और उसके रहनेवालोंसे उस पहिले पशु की जिस का प्राणघातक घाव अच्छा हो गया या, पूजा कराता या।
13. और वह बड़े बड़े चिन्ह दिखाता या, यहां तक कि मनुष्योंके साम्हने स्वर्ग से पृय्वी पर आग बरसा देता या।
14. और उन चिन्होंके कारण जिन्हें उस पशु के साम्हने दिखाने का अधिक्कारने उसे दिया गया या; वह पृय्वी के रहनेवालोंको इस प्रकार भरमाता या, कि पृय्वी के रहनेवालोंसे कहता या, कि जिस पशु के तलवार लगी यी, वह जी गया है, उस की मूरत बनाओ।
15. और उसे उस पशु की मूरत में प्राण डालने का अधिक्कारने दिया गया, कि पशु की मूरत बोलने लगे; और जितने लोग उस पशु की मूरत की पूजा न करें, उन्हें मरवा डाले।
16. और उस ने छोटे, बड़े, धनी, कंगाल, स्वत्रंत, दास सब के दिहने हाथ या उन के माथे पर एक एक छाप करा दी।
17. कि उस को छोड़ जिस पर छाप अर्यात् उस पशु का नाम, या उसके नाम का अंक हो, और कोई लेन देन न कर सके।
18. ज्ञान इसी में है, जिसे बुद्धि हो, वह इस पशु का अंक जोड़ ले, क्योंकि मनुष्य का अंक है, और उसका अंक छ: सौ छियासठ है।।
Chapter 14
1. फिर मैं ने दृष्टि की, और देखो, वह मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साय एक लाख चौआलीस हजार जन हैं, जिन के माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है।
2. और स्वर्ग से मुझे एक ऐसा शब्द सुनाई दिया, जो जल की बहुत धाराओं और बड़े गर्जन का सा शब्द या, और जो शब्द मैं ने सुना; वह ऐसा या, मानो वीणा बजानेवाले वीणा बजाते हों।
3. और वे सिंहासन के साम्हने और चारोंप्राणियोंऔर प्राचीनोंके साम्हने मानो, यह नया गीत गा रहे थे, और उन एक लाख चौआलीस हजार जनो को छोड़ जो मोल लिए गए थे, कोई वह गीत न सीख सकता या।
4. थे वे हैं, जो स्त्रियोंके साय अशुद्ध नहीं हुए, पर कुंवारे हैं: थे वे ही हैं, कि जहां कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं: थे तो परमेश्वर के निमित्त पहिले फल होने के लिथे मनुष्योंमें से मोल लिए गए हैं।
5. और उन के मुंह से कभी फूठ न निकला या, वे निर्दोष हैं।।
6. फिर मैं ने एक और स्वर्गदूत को आकाश के बीच में उड़ते हुए देखा जिस के पास पृय्वी पर के रहनेवालोंकी हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगोंको सुनाने के लिथे सनातन सुसमाचार या।
7. और उस ने बड़े शब्द से कहा; परमेश्वर से डरो; और उस की महिमा करो; क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुंचा है, और उसका भजन करो, जिस ने स्वर्ग और पृय्वी और समुद्र और जल के सोते बनाए।।
8. फिर इस के बाद एक और दूसरा स्वर्गदूत यह कहता हुआ आया, कि गिर पड़ा, वह बड़ा बाबुल गिर पड़ा जिस ने अपके व्यभिचार की कोपमय मदिरा सारी जातियोंको पिलाई है।।
9. फिर इन के बाद एक और स्वर्गदूत बड़े शब्द से यह कहता हुआ आया, कि जो कोई उस पशु और उस की मूरत की पूजा करे, और अपके माथे या अपके हाथ पर उस की छाप ले।
10. तो वह परमेश्वर का प्रकोप की निरी मदिरा जो उसके क्रोध के कटोरे में डाली गई है, पीएगा और पवित्र स्वर्गदूतोंके साम्हने, और मेम्ने के साम्हने आग और गन्धक की पीड़ा में पकेगा।
11. और उन की पीड़ा का धुआं युगानुयुग उठता रहेगा, और जो उस पशु और उस की मूरत की पूजा करते हैं, और जो उसके नाम ही छाप लेते हैं, उन को रात दिन चैन न मिलेगा।
12. पवित्र लोगोंका धीरज इसी में है, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु पर विश्वास रखते हैं।।
13. और मैं ने स्वर्ग से यह शब्द सुना, कि लिख; जो मुरदे प्रभु में मरते हैं, वे अब से धन्य हैं, आत्क़ा कहता है, हां क्योंकि वे अपके परिश्र्मोंसे विश्रम पाएंगे, और उन के कार्य्य उन के साय हो लेते हैं।।
14. और मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक उजला बादल है, और उस बादल पर मनुष्य के पुत्र सरीखा कोई बैठा है, जिस के सिर पर सोने का मुकुट और हाथ में चोखा हंसुआ है।
15. फिर एक और स्वर्गदूत ने मन्दिर में से निकलकर, उस से जो बादल पर बैठा या, बड़े शब्द से पुकारकर कहा, कि अपना हंसुआ लगाकर लवनी कर, क्योंकि लवने का समय आ पंहुचा है, इसलिथे कि पृय्वी की खेती पक चुकी है।
16. सो जो बादल पर बैठा या, उस ने पृय्वी पर अपना हंसुआ लगाया, और पृय्वी की लवनी की गई।।
17. फिर एक और स्वर्गदूत उस मन्दिर में से निकला, जो स्वर्ग में है, और उसके पास भी चोखा हंसुआ या।
18. फिर एक और स्वर्गदूत जिस आग पर अधिक्कारने या, वेदी में से निकला, और जिस के पास चोखा हंसुआ या, उस से ऊंचे शब्द से कहा; अपना चोखा हंसुआ लगाकर पृय्वी की दाख लता के गुच्छे काट ले; क्योंकि उस की दाख पक चुकी है।
19. और उस स्वर्गदूत ने पृय्वी पर अपना हंसुआ डाला, और पृय्वी की दाख लता का फल काटकर, अपके परमेश्वर के प्रकोप के बड़े रस के कुण्ड में डाल दिया।
20. और नगर के बाहर उस रस कुण्ड में दाख रौंदे गए, और रस कुण्ड में से इतना लोहू निकला कि घोड़ोंके लगामोंतक पहुंचा, और सौ कोस तक बह गया।।
Chapter 15
1. फिर मैं ने स्वर्ग में एक और बड़ा और अद्भुत चिन्ह देखा, अर्यात् सात स्वर्गदूत जिन के पास सातोंपिछली विपत्तियां यीं, क्योंकि उन के हो जाने पर परमेश्वर के प्रकोप का अन्त है।।
2. और मैं ने आग से मिले हुए कांच का सा एक समुद्र देखा, और जो उस पशु पर, और उस की मूरत पर, और उसके नाम के अंक पर जयवन्त हुए थे, उन्हें उस कांच के समुद्र के निकट परमेश्वर की वीणाओं को लिए हुए खड़े देखा।
3. और वे परमेश्वर के दास मूसा का गीत, और मेम्ने का गीत गा गाकर कहते थे, कि हे र्स्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, तेरे कार्य्य बड़े, और अद्भुत हैं, हे युग युग के राजा, तेरी चाल ठीक और सच्ची है।
4. हे प्रभु, कौन तुझ से न डरेगा और तेरे नाम की महिमा न करेगा क्योंकि केवल तू ही पवित्र है, और सारी जातियां आकर तेरे साम्हने दण्डवत् करेंगी, क्योंकि तेरे न्याय के काम प्रगट हो गए हैं।।
5. और इस के बाद मैं ने देखा, कि स्वर्ग में साझी के तम्बू का मन्दिर खोला गया।
6. और वे सातोंस्वर्गदूत जिन के पास सातोंविपत्तियां यीं, शुद्ध और चमकती हुई मणि पहिने हुए छाती पर सुनहले पटुके बान्धे हुए मन्दिर से निकले।
7. और उन चारोंप्राणियोंमें से एक ने उन सात स्वर्गदूतोंको परमेश्वर के, जो युगानुयुग जीवता है, प्रकोप से भरे हुए सात सोने के कटोरे दिए।
8. और परमेश्वर की महिमा, और उस की सामर्य के कारण मन्दिर धुएं से भर गया और जब तक उन सातोंस्वर्गदूतोंकी सातोंविपत्तियां समाप्त न हुई, तब तक कोई मन्दिर में न जा सका।।
Chapter 16
1. फिर मैं ने मन्दिर में किसी को ऊंचे शब्द से उन सातोंस्वर्गदूतोंसे यह कहते सुना कि जाओ, परमेश्वर के प्रकोप के सातोंकटोरोंको पृय्वी पर उंडेल दो।।
2. सो पहिले ने जाकर अपना कटोरा पृय्वी पर उंडेल दिया। और उन मनुष्योंके जिन पर पशु की छाप यी, और जो उस की मूरत की पूजा करते थे, एक प्रकार का बुरा और दुखदाई फोड़ा निकला।।
3. और दूसरे ने अपना कटोरा समुद्र पर उंडेल दिया और वह मरे हुए का सा लोहू बन गया, और समुद्र में का हर एक जीवधारी मर गया।।
4. और तीसरे ने अपना कटोरा नदियों, और पानी के सोतोंपर उंडेल दिया, और वे लोहू बन गए।
5. और मैं ने पानी के स्वर्गदूत को यह कहते सुना, कि हे पवित्र, जो है, और जो या, तू न्यायी है और तू ने यह न्याय किया।
6. क्योंकि उन्होंने पवित्र लोगों, और भविष्यद्वक्ताओं को लोहू बहाथा या, और तू ने उन्हें लोहू पिलाया; क्योंकि वे इसी योग्य हैं।
7. फिर मैं ने वेदी से यह शब्द सुना, कि हां हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, तेरे निर्णय ठीक और सच्चे हैं।।
8. और चौथे ने अपना कटोरा सूर्य पर उंडेल दिया, और उसे मनुष्योंको आग से फुलसा देने का अधिक्कारने दिया गया।
9. और मनुष्य बड़ी तपन से फुलस गए, और परमेश्वर के नाम की जिसे इन विपत्तियोंपर अधिक्कारने है, निन्दा की और उस की महिमा करने के लिथे मन न फिराया।।
10. और पांचवें ने अपना कटोरा उस पशु के सिंहासन पर उंडेल दिया और उसके राज्य पर अंधेरा छा गया; और लोग पीड़ा के मारे अपक्की अपक्की जीभ चबाने लगे।
11. और अपक्की पीड़ाओं और फोड़ोंके कारण स्वर्ग के परमेश्वर की निन्दा की; और अपके अपके कामोंसे मन न फिराया।।
12. और छठवें ने अपना कटोरा बड़ी नदी फुरात पर उंडेल दिया और उसका पानी सूख गया कि पूर्व दिशा के राजाओं के लिथे मार्ग तैयार हो जाए।
13. और मैं ने उस अजगर के मुंह से, और उस पशु के मुंह से और उस फूठे भविष्यद्वक्ता के मुंह से तीन अशुद्ध आत्क़ाओं को मेंढ़कोंके रूप में निकलते देखा।
14. थे चिन्ह दिखानेवाली दुष्टात्क़ा हैं, जो सारे संसार के राजाओं के पास निकलकर इसलिथे जाती हैं, कि उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई के लिथे इकट्ठा करें।
15. देख, मैं चोर की नाई आता हूं; धन्य वह है, जो जागता रहता है, और अपके वस्त्र कि चौकसी करता है, कि नंगा न फिरे, और लोग उसका नंगापन न देखें।
16. और उन्होंने उन को उस जगह इकट्ठा किया, जो इब्रानी में हर-मगिदोन कहलाता है।।
17. और सातवें ने अपना कटोरा हवा पर उंडेल दिया, और मंदिर के सिंहासन से यह बड़ा शब्द हुआ, कि ?हो चुका।
18. फिर बिजलियां, और शब्द, और गर्जन हुए, और एक ऐसा बड़ा भुइंडोल हुआ, कि जब से मनुष्य की उत्पत्ति पृय्वी पर हुई, तब से ऐसा बड़ा भुइंडोल कभी न हुआ या।
19. और उस बड़े नगर के तीन टुकड़े हो गए, और जाति जाति के नगर गिर पके, और बड़ा बाबुल का स्क़रण परमेश्वर के यहां हुआ, कि वह अपके क्रोध की जलजलाहट की मदिरा उसे पिलाए।
20. और हर एक टापू अपक्की जगह से टल गया; और पहाड़ोंका पता न लगा।
21. और आकाश से मनुष्योंपर मन मन भर के बड़े ओले गिरे, और इसलिथे कि यह विपत्ति बहुत ही भारी यी, लोगोंने ओलोंकी विपत्ति के कारण परमेश्वर की निन्दा की।।
Chapter 17
1. और जिन सात स्वर्गदूतोंके पास वे सात कटोरे थे, उन में से एक ने आकर मुझ से यह कहा कि इधर आ, मैं तुझे उस बड़ी वेश्या का दण्ड दिखाऊं, जो बहुत से पानियोंपर बैठी है।
2. जिस के साय पृय्वी के राजाओं ने व्यभिचार किया, और पृय्वी के रहनेवाले उसके व्यभिचार की मदिरा से मतवाले हो गए थे।
3. तब वह मुझे आत्क़ा में जंगल को ले गया, और मैं ने किरिमजी रंग के पशु पर जो निन्दा के नामोंसे छिपा हुआ या और जिस के सात सिर और दस सींग थे, एक स्त्री को बैठे हुए देखा।
4. यह स्त्री बैंजनी, और किरिमजी, कपके पहिने यी, और सोने और बहुमोल मणियोंऔर मोतियोंसे सजी हुई यी, और उसके हाथ में एक सोने का कटोरा या जो घृणित वस्तुओं से और उसके व्यभिचार की अशुद्ध वस्तुओं से भरा हुआ या।
5. और उसके माथे पर यह नाम लिखा या, ?भेद बड़ा बाबुल पृय्वी की वेश्याओं और घृणित वस्तुओं की माता।
6. और मैं ने उस स्त्री को पवित्र लोगोंके लोहू और यीशु के गवाहोंके लोहू पीने से मतवाली देखा और उसे देखकर मैं चकित हो गया।
7. उस स्वर्गदूत ने मुझ से कहा; तू क्योंचकित हुआ मैं इस स्त्री, और उस पशु का, जिस पर वह सवार है, और जिस के सात सिर और दस सींग हैं, तुझे भेद बताया हूं।
8. जो पशु तू ने देखा है, यह पहिले तो या, पर अब नहीं है, और अयाह कुंड से निकलकर विनाश में पकेगा, और पृय्वी के रहनेवाले जिन के नाम जगत की उत्पत्ति के समय से जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, इस पशु की यह दशा देखकर, कि पहिले या, और अब नहीं; और फिर आ जाएगा, अचंभा करेंगे।
9. उस बुद्धि के लिथे जिस में ज्ञान है यही अवसर है, वे सातोंसिर सात पहाड़ हैं, जिन पर वह स्त्री बैठी है।
10. और वे सात राजा भी हैं, पांच तो हो चुके हैं, और एक अभी है; और एक अब तक आया नहीं, और जब आएगा, तो कुछ समय तक उसका रहना भी अवश्य है।
11. और जो पशु पहिले या, और अब नहीं, वह आप आठवां है; और उन सातोंमें से उत्पन्न हुआ, और विनाश में पकेगा।
12. और जो दस सींग तू ने देखे वे दस राजा हैं; जिन्होंने अब तक राज्य नहीं पाया; पर उस पशु के साय घड़ी भर के लिथे राजाओं का सा अधिक्कारने पाएंगे।
13. थे सब एक मन होंगे, और वे अपक्की अपक्की सामर्य और अधिक्कारने उस पशु को देंगे।
14. थे मेम्ने से लड़ेंगे, और मेम्ना उन पर जय पाएगा; क्योंकि वह प्रभुओं का प्रभु, और राजाओं का राजा है: और जो बुलाए हुए, और चुने हुए, ओर विश्वासी उसके साय हैं, वे भी जय पाएंगे।
15. फिर उस ने मुझ से कहा, कि जो पानी तू ने देखे, जिन पर वेश्या बैठी है, वे लोग, और भीड़ और जातियां, और भाषा हैं।
16. और जो दस सींग तू ने देखे, वे और पशु उस वेश्या से बैर रखेंगे, और उसे लाचार और नंगी कर देंगे; और उसका मांस खा जाएंगे, और उसे आग में जला देंगे।
17. क्योंकि परमेश्वर उन के मन में यह डालेगा, कि वे उस की मनसा पूरी करें; और जब तक परमेश्वर के वचन पूरे न हो लें, तब तक एक मन होकर अपना अपना राज्य पशु को दे दें।
18. और वह स्त्री, जिस तू ने देखा है वह बड़ा नगर है, जो पृय्वी के राजाओं पर राज्य करता है।।
Chapter 18
1. इस के बाद मैं ने एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा, जिस का बड़ा अधिक्कारने या; और पृय्वी उसके तेज से प्रज्वलित हो गई।
2. उस ने ऊंचे शबद से पुकारकर कहा, कि गिर गया बड़ा बाबुल गिर गया है: और दुष्टात्क़ाओ का निवास, और हर एक अशुद्ध आत्क़ा का अड्डा, और एक अशुद्ध और घृणित पक्की का अड्डा हो गया।
3. क्योंकि उसके व्यभिचार के भयानक मदिरा के कारण सब जातियां गिर गई हैं, और पृय्वी के राजाओं ने उसके साय व्यभिचार किया है; और पृय्वी के व्यापारी उसके सुख-विलास की बहुतायत के कारण धनवान हुए हैं।
4. फिर मैं ने स्वर्ग से किसी और का शब्द सुना, कि हे मेरे लोगों, उस में से निकल आओ; कि तुम उसके पापोंमें भागी न हो, और उस की विपत्तियोंमें से कोई तुम पर आ न पके।
5. क्योंकि उसके पाप स्वर्ग तक पहुंच गए हैं, और उसके अधर्म परमेश्वर को स्क़रण आए हैं।
6. जैसा उस ने तुम्हें दिया है, वैसा ही उस को भर दो, और उसके कामोंके अनुसार उसे दो गुणा बदला दो, जिस कटोरे में उस ने भर दिया या उसी में उसके लिथे दो गुणा भर दो।
7. जितनी उस ने अपक्की बड़ाई की और सुख-विलास किया; उतनी उस को पीड़ा, और शोक दो; क्योंकि वह अपके मन में कहती है, मैं रानी हो बैठी हूं, विधवा नहीं; और शोक में कभी न पडूंगी।
8. इस कारण एक ही दिन में उस पर विपत्तियां आ पकेंगी, अर्यात् मृत्यु, और शोक, और अकाल; और वह आग में भस्क़ कर दी जाएगी, क्योंकि उसका न्यायी प्रभु परमेश्वर शक्तिमान है।
9. और पृय्वी के राजा जिन्होंने उसके साय व्यभिचार, और सुख-विलास किया, जब उसके जलने का धुआं देखेंगे, तो उसके लिथे रोएंगे, और छाती पीटेंगे।
10. और उस की पीड़ा के डर के मारे दूर खड़े होकर कहेंगे, हे बड़े नगर, बाबुल! हे दृढ़ नगर, हाथ! हाथ! घड़ी ही भर में तुझे दण्ड मिल गया है।
11. और पृय्वी के व्यापारी उसके लिथे रोएंगे और कलपेंगे क्योंकि अब कोई उन का माल मोल न लेगा।
12. अर्यात् सोना, चान्दी, रत्न, मोती, और मलमल, और बैंजनी, और रेशमी, और किरिमजी कपके, और हर प्रकार का सुगन्धित काठ, और हाथीदांत की हर प्रकार की वस्तुएं, और बहुमोल काठ, और पीतल, और लोहे, और संगमरमर के सब भांति के पात्र।
13. और दारचीनी, मसाले, धूप, इत्र, लोबान, मदिरा, तेल, मैदा, गेहूं, गाय, बैल, भेड़, बकिरयां, घोड़े, रय, और दास, और मनुष्य के प्राण।
14. अब मेरे मन भावने फल तेरे पास से जाते रहे; और स्वादिष्ट और भड़कीली वस्तुएं तुझ से दूर हुई हैं, और वे फिर कदापि न मिलेंगी।
15. इन वस्तुओं के व्यापारी जो उसके द्वारा धनवान हो गए थे, उस की पीड़ा के डर के मारे दूर खड़े होंगे, और रोते और कलपके हुए कहेंगे।
16. हाथ! हाथ! यह बड़ा नगर जो मलमल, और बैंजनी, और किरिमजी कपके पहिने या, और सोने, और रत्नों, और मोतियोंसे सजा या,
17. घड़ी ही भर में उसका ऐसा भारी धन नाश हो गया: और हर एक मांफी, और जलयात्री, और मल्लाह, और जितने समुद्र से कमाते हैं, सब दूर खड़े हुए।
18. और उसके जलने का धुआं देखते हुए पुकारकर कहेंगे, कौन सा नगर इस बड़े नगर के समान है
19. और अपके अपके सिरोंपर धूल डालेंगे, और रोते हुए और कलपके हुए चिल्ला चिल्लाकर कहेंगे, कि हाथ! हाथ! यह बड़ा नगर जिस की सम्पत्ति के द्वारा समुद्र के सब जहाजवाले धनी हो गए थे घड़ी ही भर में उजड़ गया।
20. हे स्वर्ग, और हे पवित्र लोगों, और प्रेरितों, और भविष्यद्वक्ताओं, उस पर आनन्द करो, क्योंकि परमेश्वर ने न्याय करके उस से तुम्हारा पलटा लिया है।।
21. फिर एक बलवन्त स्वर्गदूत ने बड़ी चक्की के पाअ के समान एक पत्यर उठाया, और यह कहकर समुद्र में फेंक दिया, कि बड़ा नगर बाबुल ऐसे ही बड़े बल से गिराया जाएगा, और फिर कभी उसका पता न मिलेगा।
22. और वीणा बजानेवालों, और बजनियों, और बंसी बजानेवालों, और तुरही फूंकनेवालोंका शब्द फिर कभी तुझ में सुनाई न देगा, और किसी उद्यम का कोई कारीगर भी फिर कभी तुझ में न मिलेगा; और चक्की के चलने का शब्द फिर कभी तुझ में सुनाई न देगा।
23. और दीया का उजाला फिर कभी तुझ में ने चमकेगा और दूल्हे और दुल्हिन का शब्द फिर कभी तुझ में सुनाई न देगा; क्योंकि तेरे व्यापारी पृय्वी के प्रधान थे, और तेरे टोने से सब जातियां भरमाई गई यी।
24. और भविष्यद्वक्ताओं और पवित्र लोगों, और पृय्वी पर सब घात किए हुओं का लोहू उसी में पाया गया।।
Chapter 19
1. इस के बाद मैं ने स्वर्ग में मानो बड़ी भीड़ को ऊंचे शब्द से यह कहते सुना, कि हल्लिलूय्याह उद्धार, और महिमा, और सामर्य हमारे परमेश्वर ही की है।
2. क्योंकि उसके निर्णय सच्चे और ठीक हैं, इसलिथे कि उस ने उस बड़ी वेश्या का जो अपके व्यभिचार से पृय्वी को भ्रष्ट करती यी, न्याय किया, और उस से अपके दासोंके लोहू का पलटा लिया है।
3. फिर दूसरी बार उन्होंने हल्लिलूय्याह कहा: और उसके जलने का धुआं युगानुयुग उठता रहेगा।
4. और चौबीसोंप्राचीनोंऔर चारोंप्राणियोंने गिरकर परमेश्वर को दण्डवत् किया; जो सिंहासन पर बैठा या, और कहा, आमीन, हल्लिलूय्याह।
5. और सिंहासन में से एक शब्द निकला, कि हे हमारे परमेश्वर से सब डरनेवाले दासों, क्या छोटे, क्या बड़े; तुम सब उस की स्तुति करो।
6. फिर मैं ने बड़ी भीड़ का सा, और बहुत जल का सा शब्द, और गर्जनोंका सा बड़ा शब्द सुना, कि हल्लिलूय्याह, इसलिथे कि प्रभु हमारा परमेश्वर, सर्वशक्तिमान राज्य करता है।
7. आओ, हम आनन्दित और मगन हों, और उस की स्तुति करें; क्योंकि मेम्ने का ब्याह आ पहुंचा: और उस की पत्नी ने अपके आप को तैयार कर लिया है।
8. और उस को शुद्ध और चमकदार महीन मलमल पहिनने का अधिक्कारने दिया गया, क्योंकि उस महीन मलमल का अर्य पवित्र लोगोंके धर्म के काम है।
9. और उस ने मुझ से कहा; यह लिख, कि धन्य वे हैं, जो मेम्ने के ब्याह के भोज में बुलाए गए हैं; फिर उस ने मुझ से कहा, थे वचन परमेश्वर के सत्य वचन हैं।
10. और मैं उस को दण्डवत करने के लिथे उसके पांवोंपर गिरा; उस ने मुझ से कहा; देख, ऐसा मत कर, मैं तेरा और तेरे भाइयोंका संगी दास हूं, जो यीशु की गवाही देने पर स्यिर हैं, परमेश्वर ही को दण्डवत् कर; क्योंकि यीशु की गवाही भविष्यद्वाणी की आत्क़ा है।।
11. फिर मैं ने स्वर्ग को खुला हुआ देखा; और देखता हूं कि एक श्वेत घोड़ा है; और उस पर एक सवार है, जो विश्वास योग्य, और सत्य कहलाता है; और वह धर्म के साय न्याय और लड़ाई करता है।
12. उस की आंखे आग की ज्वाला हैं: और उसके सिर पर बहुत से राजमुकुट हैं; और उसका एक नाम लिखा है, जिस उस को छोड़ और कोई नहीं जानता।
13. और वह लोहू से छिड़का हुआ वस्त्र पहिने है: और उसका नाम परमेश्वर का वचन है।
14. और स्वर्ग की सेना श्वेत घोड़ोंपर सवार और श्वेत और शुद्ध मलमल पहिने हुए उसके पीछे पीछे है।
15. और जाति जाति को मारने के लिथे उसके मुंह से एक चोखी तलवार निकलती है, और वह लोहे का राजदण्ड लिए हुए उन पर राज्य करेगा, और वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के भयानक प्रकोप की जलजलाहट की मदिरा के कुंड में दाख रौंदेगा।
16. और उसके वस्त्र और जांघ पर यह नाम लिखा है, राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु।।
17. फिर मैं ने एक स्वर्गदूत को सूर्य पर खड़े हुए देखा, और उस ने बड़े शब्द से पुकारकर आकाश के बीच में से उड़नेवाले सब पझियोंसे कहा, आओ परमेश्वर की बड़ी बियारी के लिथे इकट्ठे हो जाओ।
18. जिस से तुम राजाओं का मांस, ओर सरदारोंका मांस, और शक्तिमान पुरूषोंका मांस, और घाड़ोंका, और उन के सवारोंका मांस, और क्या स्वतंत्र, क्या दास, क्या छोटे, क्या बड़े, सब लोगोंका मांस खाओ।।
19. फिर मैं ने उस पशु और पृय्वी के राजाओं और उन की सेनाओं को उस घोड़े के सवार, और उस की सेना से लड़ने के लिथे इकट्ठे देखा।
20. और वह पशु और उसके साय वह फूठा भविष्यद्वक्ता पकड़ा गया, जिस ने उसके साम्हने ऐसे चिन्ह दिखाए थे, जिन के द्वारा उस ने उन को भरमाया, जिन्हो ने उस पशु की छाप ली यी, और जो उस की मूरत की पूजा करते थे, थे दोनोंजीते जी उस आग की फील में जो गन्धक से जलती है, डाले गए।
21. और शेष लोग उस घोड़े के सवार की तलवार से जो उसके मुंह से निकलती यी, मार डाले गए; और सब पक्की उन के मांस से तृप्त हो गए।।
Chapter 20
1. फिर मै ने एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा; जिस के हाथ में अयाह कुंड की कुंजी, और एक बड़ी जंजीर यी।
2. और उस ने उस अजगर, अर्यात् पुराने सांप को, जो इब्लीस और शैतान है; पकड़ के हजार वर्ष के लिथे बान्ध दिया।
3. और उसे अयाह कुंड में डालकर बन्द कर दिया और उस पर मुहर कर दी, कि वह हजार वर्ष के पूरे होने तक जाति जाति के लोगोंको फिर न भरमाए; इस के बाद अवश्य है, कि योड़ी देर के लिथे फिर खोला जाए।।
4. फिर मैं ने सिंहासन देखे, और उन पर लोग बैठ गए, और उन को न्याय करने का अधिक्कारने दिया गया; और उन की आत्क़ाओं को भी देखा, जिन के सिर यीशु की गवाही देने और परमेश्वर के वचन के कारण काटे गए थे; और जिन्होंने न उस पशु की, और न उस की मूरत की पूजा की यी, और न उस की छाप अपके माथे और हाथोंपर ली यी; वे जीवित होकर मसीह के साय हजार वर्ष तक राज्य करते रहे।
5. और जब तक थे हजार वर्ष पूरे न हुए तक तक शेष मरे हुए न जी उठे; यह तो पहिला मृत्कोत्यान है।
6. धन्य और पवित्र वह है, जो इस पहिले पुनरूत्यान का भागी है, ऐसोंपर दूसरी मृत्यु का कुछ भी अधिक्कारने नहीं, पर वे परमेश्वर और मसीह के याजक होंगे, और उसके साय हजार वर्ष तक राज्य करेंगे।।
7. और जब हजार वर्ष पूरे हो चुकेंगे; तो शैतान कैद से छोड़ दिया जाएगा।
8. और उन जातियोंको जो पृय्वी के चारोंओर होंगी, अर्यात् याजूज और माजूज को जिन की गिनती समुद्र की बालू के बराबर होगी, भरमाकर लड़ाई के लिथे इकट्ठे करने को निकलेगा।
9. और वे सारी पृय्वी पर फैल जाएंगी; और पवित्र लोगोंकी छावनी और प्रिय नगर को घेर लेंगी: और आग स्वर्ग से उतरकर उन्हें भस्क़ करेगी।
10. और उन का भरमानेवाला शैतान आग और गन्धक की उस फाील में, जिस में वह पशु और फूठा भविष्यद्वक्ता भी होगा, डाल दिया जाएगा, और वे रात दिन युगानुयुग पीड़ में तड़पके रहेंगे।।
11. फिर मैं ने एक बड़ा श्वेत सिंहासन और उस को जो उस पर बैठा हुआ है, देखा, जिस के साम्हने से पृय्वी और आकाश भाग गए, और उन के लिथे जगह न मिली।
12. फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के साम्हने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें खोली गई; और फिर एक और पुस्तक खोली गईं; और फिर एक और पुस्तक खोली गई, अर्यात् जीवन की पुस्तक; और जैसे उन पुस्तकोंमें लिखा हुआ या, उन के कामोंके अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया।
13. और समुद्र ने उन मरे हुओं को जो उस में थे दे दिया, और मृत्यु और अधोलोक ने उन मरे हुओं को जो उन में थे दे दिया; और उन में से हर एक के कामोंके अनुसार उन का न्याय किया गया।
14. और मृत्यु और अधोलोक भी आग की फील में डाले गए; यह आग की फील में डाले गए; यह आग की फील तो दूसरी मृत्यु है।
15. और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की फील में डाला गया।।
Chapter 21
1. फिर मैं ने नथे आकाश और नयी पृय्वी को देखा, क्योंकि पहिला आकाश और पहिली पृय्वी जाती रही यी, और समुद्र भी न रहा।
2. फिर मैं ने पवित्र नगर नथे यरूशलेम को स्वर्ग पर से परमेश्वर के पास से उतरते देखा, और वह उस दुल्हिन के समान यी, जो अपके पति के लिथे सिंगार किए हो।
3. फिर मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊंचे शब्द से यह कहते सुना, कि देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्योंके बीच में है; वह उन के साय डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उन के साय रहेगा; और उन का परमेश्वर होगा।
4. और वह उन की आंखोंसे सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।
5. और जो सिंहासन पर बैठा या, उस ने कहा, कि देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं: फिर उस ने कहा, कि लिख ले, क्योंकि थे वचन विश्वास के योग्य और सत्य हैं।
6. फिर उस ने मुझ से कहा, थे बातें पूरी हो गई हैं, मैं अलफा और ओमिगा, आदि और अन्त हूं: मैं प्यासे को जीवन के जल के सोते में से सेंतमेंत पिलाऊंगा।
7. जो जय पाए, वही उन वस्तुओं का वारिस होगा; और मैं उसका परमेश्वर होऊंगा, और वह मेरा पुत्र होगा।
8. पर डरपोकों, और अविश्वासियों, और घिनौनों, और हत्यारों, और व्यभिचारियों, और टोन्हों, और मूतिर्पूजकों, और सब फूठोंका भाग उस फील में मिलेगा, जो आग और गन्धक से जलती रहती है: यह दूसरी मृत्यु है।।
9. फिर जिन सात स्वर्गदूतोंके पास सात पिछली विपत्तियोंसे भरे हुए सात कटोरे थे, उन में से एक मेरे पास आया, और मेरे साय बातें करके कहा; इधर आ: मैं तुझे दुल्हिन अर्यात् मेम्ने की पत्नी दिखाऊंगा।
10. और वह मुझे आत्क़ा में, एक बड़े और ऊंचे पहाड़ पर ले गया, और पवित्र नगर यरूशलेम को स्वर्ग पर से परमेश्वर के पास से उतरते दिखाया।
11. परमेश्वर की महिमा उस में यी, ओर उस की ज्योति बहुत की बहुमोल पत्यर, अर्यात् बिल्लौर के समान यशब की नाई स्वच्छ यी।
12. और उस की शहरपनाह बड़ी ऊंची यी, और उसके बारह फाटक और फाटकोंपर बारह स्वर्गदूत थे; और उन पर इस्त्राएलियोंके बारह गोत्रोंके नाम लिखे थे।
13. पूर्व की ओर तीन फाटक, उत्तर की ओर तीन फाटक, दक्खिन की ओर तीन फाटक, और पश्चिम की ओर तीन फाटक थे।
14. और नगर की शहरपनाह की बारह नेवें यीं, और उन पर मेम्ने के बारह प्रेरितोंके बारह नाम लिखे थे।
15. और जो मेरे साय बातें कर रहा या, उसके पास नगर, और उसके फाटकोंऔर उस की शहरपनाह को नापके के लिथे एक सोने का गज या।
16. और वह नगर चौकोर बसा हुआ या और उस की लम्बाई चौड़ाई के बराबर यी, और उस ने उस गज से नगर को नापा, तो साढ़े सात सौ कोस का निकला: उस की लम्बाई, और चौड़ाई, और ऊंचाई बराबर यी।
17. और उस ने उस की शहरपनाह को मनुष्य के, अर्यात् स्वर्गदूत के नाम से नापा, तो एक सौ चौआलीस हाथ निकली।
18. और उस की शहरपनाह की जुड़ाई यशब की यी, और नगर ऐसे चोखे सोने का या, जा स्वच्छ कांच के समान हो।
19. और उस नगर की नेवें हर प्रकार के बहुमोल पत्यरोंसे संवारी हुई यी, पहिली नेव यशब की यी, दूसरी नीलमणि की, तीसरी लालड़ी की, चौयी मरकत की।
20. पांचक्की गोमेदक की, छठवीं माणिक्य की, सातवीं पीतमणि की, आठवीं पेरोज की, नवीं पुखराज की, दसवीं लहसनिए की, ग्यारहवीं धूम्रकान्त की, बारहवीं याकूत की।
21. और बारहोंफाटक, बारह मोतियोंके थे; एक एक फाटक, एक एक मोती का बना या; और नगर की सड़क स्वच्छ कांच के समान चोखे सोने की यी।
22. और मैं ने उस में कोई मंदिर न देखा, क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, और मेम्ना उसका मंदिर हैं।
23. और उस नगर में सूर्य और चान्द के उजाले का प्रयोजन नहीं, क्योंकि परमेश्वर के तेज से उस में उजाला हो रहा है, और मेम्ना उसका दीपक है।
24. और जाति जाति के लोग उस की ज्योति में चले फिरेंगे, और पृय्वी के राजा अपके अपके तेज का सामान उस में लाएंगे।
25. और उसके फाटक दिन को कभी बन्द न होंगे, और रात वहां न होगी।
26. और लोग जाति जाति के तेज और विभव का सामान उस में लाएंगे।
27. और उस में कोई अपवित्र वस्तु या घृणित काम करनेवाला, या फूठ का गढ़नेवाला, किसी रीति से प्रवेश न करेगा; पर केवल वे लोग जिन के नाम मेम्ने के जीवन की पुस्तक में लिखे हैं।।
Chapter 22
1. फिर उस ने मुझे बिल्लौर की सी फलकती हुई, जीवन के जल की एक नदी दिखाई, जो परमेश्वर और मेंम्ने के सिंहासन से निकलकर उस नगर की सड़क के बीचोंबीच बहती यी।
2. और नदी के इस पार; और उस पार, जीवन का पेड़ या: उस में बारह प्रकार के फल लगते थे, और वह हर महीने फलता या; और उस पेड़ के पत्तोंसे जाति जाति के लोग चंगे होते थे।
3. और फिर स्राप न होगा और परमेश्वर और मेम्ने का सिंहासन उस नगर में होगा, और उसके दास उस की सेवा करेंगे।
4. और उसका मुंह देखेंगे, और उसका नाम उन के मायोंपर लिखा हुआ होगा।
5. और फिर रात न होगी, और उन्हें दीपक और सूर्य के उजियाले का प्रयोजन न होगा, क्योंकि प्रभु परमेश्वर उन्हें उजियाला देगा: और वे युगानुयुग राज्य करेंगे।।
6. फिर उस ने मुझ से कहा, थे बातें विश्वास के योग्य, और सत्य हैं, और प्रभु ने जो भविष्यद्वक्ताओं की आत्क़ाओं का परमेश्वर है, अपके स्वर्गदूत को इसलिथे भेजा, कि अपके दासोंको वे बातें जिन का शीघ्र पूरा होना अवश्य है दिखाए।
7. देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूं; धन्य है वह, जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें मानता है।।
8. मैं वही यूहन्ना हूं, जो थे बातें सुनता, और देखता या; और जब मैं ने सुना, और देखा, तो जो स्वर्गदूत मुझे थे बातें दिखाता या, मैं उसके पांवोंपर दण्डवत करने के लिथे गिर पड़ा।
9. और उस ने मुझ से कहा, देख, ऐसा मत कर; क्योंकि मैं तेरा और तेरे भाई भविष्यद्वक्ताओं और इस पुस्तक की बातोंके माननेवालोंका संगी दास हूं; परमेश्वर ही को दण्डवत कर।।
10. फिर उस ने मुझ से कहा, इस पुस्तक की भविष्यद्ववाणी की बातोंको बन्द मत कर; क्योंकि समय निकट है।।
11. जो अन्याय करता है, वह अन्याय ही करता रहे; और जो मलिन है, वह मलिन बना रहे; और जो धर्मी है, वह धर्मी बना रहे; और जो पवित्र है, वह पवित्र बना रहे।
12. देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूं; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिथे प्रतिफल मेरे पास है।
13. मैं अलफा और ओमिगा, पहिला और पिछला, आदि और अन्त हूं।
14. धन्य वे हैं, जो अपके वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के पेड़ के पास आने का अधिक्कारने मिलेगा, और वे फाटकोंसे होकर नगर में प्रवेश करेंगे।
15. पर कुत्ते, और टोन्हें, और व्यभिचारी, और हत्यारे और मूतिर्पूजक, और हर एक फूठ का चाहनेवाला, और गढ़नेवाला बाहर रहेगा।।
16. मुझ यीशु ने अपके स्वर्गदूत को इसलिथे भेजा, कि तुम्हारे आगे कलीसियाओं के विषय में इन बातोंकी गवाही दे: मैं दाऊद का मूल, और वंश, और भोर का चमकता हुआ तारा हूं।।
17. और आत्क़ा, और दुल्हिन दोनोंकहती हैं, आ; और सुननेवाला भी कहे, कि आ; और जो प्यासा हो, वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।।
18. मैं हर एक को जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें सुनता है, गवाही देता हूं, कि यदि कोई मनुष्य इन बातोंमें कुछ बढ़ाए, तो परमेश्वर उन विपत्तियोंको जो इस पुस्तक में लिखी हैं, उस पर बढ़ाएगा।
19. और यदि कोई इस भविष्यद्वाणी की पुस्तक की बातोंमें से कुछ निकाल डाले, तो परमेश्वर उस जीवन के पेड़ और पवित्र नगर में से जिस की चर्चा इस पुस्तक में है, उसका भाग निकाल देगा।।
20. जो इन बातोंकी गवाही देता है, वह यह कहता है, हां शीघ्र आनेवाला हूं। आमीन। हे प्रभु यीशु आ।।
21. प्रभु यीशु का अनुग्रह पवित्र लोगोंके साय रहे। आमीन।।
Chapter 1
1. यीशु मसीह का प्रकाशितवाक्य जो उसे परमेश्वर ने इसलिथे दिया, कि अपके दासोंको वे बातें, जिन का शीघ्र होना अवश्य है, दिखाए: और उस ने अपके स्वर्गदूत को भेजकर उसके द्वारा अपके दास यूहन्ना को बताया।
2. जिस ने परमेश्वर के वचन और यीशु मसीह की गवाही, अर्यात् जो कुछ उस ने देखा या उस की गवाही दी।
3. धन्य है वह जो इस भविष्यद्वाणी के वचन को पढ़ता है, और वे जो सुनते हैं और इस में लिखी हुई बातोंको मानते हैं, क्योंकि समय निकट आया है।।
4. यूहन्ना की ओर से आसिया की सात कलीसियाओं के नाम: उस की ओर से जो है, और जो या, और जो आनेवाला है; और उन सात आत्क़ाओं की ओर से, जो उसके सिंहासन के साम्हने है।
5. और यीशु मसीह की ओर से, जो विश्वासयोग्य साझी और मरे हुओं में से जी उठनेवालोंमें पहिलौठा, और पृय्वी के राजाओं का हाकिम है, तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे: जो हम से प्रेम रखता है, और जिस ने अपके लोहू के द्वारा हमें पापोंसे छुड़ाया है।
6. और हमें एक राज्य और अपके पिता परमेश्वर के लिथे याजक भी बना दिया; उसी की महिमा और पराक्रम युगानुयुग रहे। आमीन।
7. देखो, वह बादलोंके साय आनेवाला है; और हर एक आंख उसे देखेगी, बरन जिन्होंने उसे बेधा या, वे भी उसे देखेंगे, और पृय्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे। हां। आमीन।।
8. प्रभु परमेश्वर वह जो है, और जो या, और जो आनेवाला है; जो सर्वशक्तिमान है: यह कहता है, कि मैं ही अल्फा और ओमिगा हूं।।
9. मैं यूहन्ना जो तुम्हारा भाई, और यीशु के क्लेश, और राज्य, और धीरज में तुम्हारा सहभागी हूं, परमेश्वर के वचन, और यीशु की गवाही के कारण पतमुस नाम टापू में या।
10. कि मैं प्रभु के दिन आत्क़ा में आ गया, और अपके पीछे तुरही का सा बड़ा शब्द यह कहते सुना।
11. कि जो कुछ तू देखता है, उसे पुस्तक में लिखकर सातोंकलीसियाओं के पास भेज दे, अर्यात् इफिसुस और स्क़ुरना, और पिरगमुन, और यूआतीरा, और सरदीस, और फिलेदिलफिया, और लौदीकिया में।
12. और मैं ने उसे जो मुझ से बोल रहा या; देखने के लिथे अपना मुंह फेरा; और पीछे घूमकर मैं ने सोने की सात दीवटें देखी।
13. और उन दीवटोंके बीच में मनुष्य के पुत्र सरीखा एक पुरूष को देखा, जो पांवोंतक का वस्त्र पहिने, और छाती पर सुनहला पटुका बान्धे हुए या।
14. उसके सिर और बाल श्वेत ऊन वरन पाले के से उज्ज़वल थे; और उस की आंखे आग की ज्वाला की नाईं यी।
15. और उसके पांव उत्तम पीतल के समान थे जो मानो भट्टी में तपाए गए हों; और उसका शब्द बहुत जल के शब्द की नाई या।
16. और वह अपके दिहने हाथ में सात तारे लिए हुए या: और उसके मुख से चोखी दोधारी तलवार निकलती यी; और उसका मुंह ऐसा प्रज्वलित या, जैसा सूर्य कड़ी धूप के समय चमकता है।
17. जब मै ने उसे देखा, तो उसके पैरोंपर मुर्दा सा गिर पड़ा और उस ने मुझ पर अपना दिहना हाथ रखकर यह कहा, कि मत डर; मैं प्रयम और अन्तिम और जीवता हूं।
18. मैं मर गया या, और अब देख; मैं युगानुयुग जीवता हूं; और मृत्यु और अधोलोक की कुंजियां मेरे ही पास हैं।
19. इसलिथे जो बातें तू ने देखीं हैं और जो बातें हो रही हैं; और जो इस के बाद होनेवाली हैं, उन सब को लिख ले।
20. अर्यात् उन सात तारोंका भेद जिन्हें तू ने मेरे दिहने हाथ में देखा या, और उन सात सोने की दीवटोंका भेद: वे सात तारे सातोंकलीसियाओं के दूत हैं, और वे सात दीवट सात कलीसियाएं हैं।।
Chapter 2
1. इफिसुस की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो सातोंतारे अपके दिहने हाथ में लिए हुए है, और सोने की सातोंदीवटोंके बीच में फिरता है, वह यह कहता है कि
2. मै तेरे काम, और परिश्र्म, और तेरा धीरज जानता हूं; और यह भी, कि तू बुरे लोगोंको तो देख नहीं सकता; और जो अपके आप को प्रेरित कहते हैं, और हैं नहीं, उन्हें तू ने परखकर फूठा पाया।
3. और तू धीरज धरता है, और मेरे नाम के लिथे दु:ख उठाते उठाते यका नहीं।
4. पर मुझे तेरे विरूद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहिला सा प्रेम छोड़ दिया है।
5. सो चेत कर, कि तू कहां से गिरा है, और मन फिरा और पहिले के समान काम कर; और यदि तू मन न फिराएगा, तो मै तेरे पास आकर तेरी दीवट को उस स्यान से हटा दूंगा।
6. पर होंतुझ में यह बात तो है, कि तू नीकुलइयोंके कामोंसे घृणा करता है, जिन से मैं भी घृणा करता हूं।
7. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है: जो जय पाए, मैं उसे उस जीवन के पेड़ में से जो परमेश्वर के स्वर्गलोक में है, फल खाने को दूंगा।।
8. और स्क़ुरना की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो प्रयम और अन्तिम है; जो मर गया या और अब जीवित हो गया है, वह यह कहता है कि।
9. मैं तेरे क्लेश और दिरद्रता को जानता हूं; (परन्तु तू धनी है); और जो लोग अपके आप को यहूदी कहते हैं और हैं नहीं, पर शैतान की सभा हैं, उन की निन्दा को भी जानता हूं।
10. जो दु:ख तुझ को फेलने होंगे, उन से मत डर: क्योंकि देखो, शैतान तुम में से कितनोंको जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ; और तुम्हें दस दिन तक क्लेश उठाना होगा: प्राण देने तक विश्वासी रह; तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा।
11. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है: जो जय पाए, उस को दूसरी मृत्यु से हानि न पंहुचेगी।।
12. और पिरगमुन की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जिस के पास दोधारी और चोखी तलवार है, वह यह कहता है, कि।
13. मैं यह तो जानता हूं, कि तू वहां रहता है जहां शैतान का सिंहासन है, और मेरे नाम पर स्यिर रहता है; और मुझ पर विश्वास करने से उन दिनोंमें भी पीछे नहीं हटा जिन में मेरा विश्वासयोग्य साझी अन्तिपास, तुम में उस स्यान पर घात किया गया जहां शैतान रहता है।
14. पर मुझे तेरे विरूद्ध कुछ बातें कहनी हैं, क्योंकि तेरे यहां कितने तो ऐसे हैं, जो बिलाम की शिझा को मानते हैं, जिस ने बालाक को इस्त्राएलियोंके आगे ठोकर का कारण रखना सिखाया, कि वे मूरतोंके बलिदान खाएं, और व्यभिचार करें।
15. वैसे ही तेरे यहां कितने तो ऐसे हैं, जो नीकुलइयोंकी शिझा को मानते हैं।
16. सो मन फिरा, नहीं तो मैं तेरे पास शीघ्र ही आकर, अपके मुख की तलवार से उन के साय लडूंगा।
17. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है; जो जय पाए, उस को मैं गुप्त मन्ना में से दूंगा, और उसे एक श्वेत पत्यर भी दूंगा; और उस पत्यर पर एक नाम लिखा हुआ होगा, जिसे उसके पानेवाले के सिवाय और कोई न जानेगा।।
18. और यूआतीरा की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, परमेश्वर का पुत्र जिस की आंखे आग की ज्वाला की नाई, और जिस के पांव उत्तम पीतल के समान हैं, यह कहता है, कि
19. मैं तेरे कामों, और प्रेम, और विश्वास, और सेवा, और धीरज को जानता हूं, और यह भी कि तेरे पिछले काम पहिलोंसे बढ़कर हैं।
20. पर मुझे तेरे विरूद्ध यह कहना है, कि तू उस स्त्री इजेबेल को रहने देता है जो अपके आप को भविष्यद्वक्तिन कहती है, और मेरे दासोंको व्यभिचार करने, और मूरतोंके आगे के बलिदान खाने को सिखलाकर भरमाती है।
21. मैं ने उस को मन फिराने के लिथे अवसर दिया, पर वह अपके व्यभिचार से मन फिराना नहीं चाहती।
22. देख, मैं उसे खाट पर डालता हूं; और जो उसके साय व्यभिचार करते हैं यदि वे भी उसके से कामोंसे मन न फिराएंगे तो उन्हें बड़े क्लेश में डांलूगा।
23. और मैं उसके बच्चोंको मार डालंूगा; और तब सब कलीसियाएं जान लेंगी कि ह्रृदय और मन का परखनेवाला मैं ही हूं: और मैं तुम में से हर एक को उसके कामोंके अनुसार बदला दूंगा।
24. पर तुम यूआतीरा के बाकी लोगोंसे, जितने इस शिझा को नहीं मानते, और उन बातोंको जिन्हें शैतान की गहिरी बातें कहते हैं नहीं जानते, यह कहता हूं, कि मैं तुम पर और बोफ न डालूंगा।
25. पर हां, जो तुम्हारे पास है उस को मेरे आने तक यामें रहो।
26. जो जय पाए, और मेरे कामोंके अनुसार अन्त तक करता रहे, मैं उसे जाति जाति के लोगोंपर अधिक्कारने दूंगा।
27. और वह लोहे का राजदण्ड लिथे हुए उन पर राज्य करेगा, जिस प्रकार कुम्हार के मिट्टी के बरतन चकनाचूर हो जाते है: जैसे कि मै ने भी ऐसा ही अधिक्कारने अपके पिता से पाया है।
28. और मैं उसे भोर को तारा दूंगा।
29. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है।।
Chapter 3
1. और सरदीस की कलीसिया के दूत को लिख, कि, जिस के पास परमेश्वर की सात आत्क़ाएं और सात तारे हैं, यह कहता है, कि मैं तेरे कामोंको जानता हूं, कि तू जीवता तो कहलाता है, पर, है मरा हुआ।
2. जागृत रह, और उन वस्तुओं को जो बाकी रह गई हैं, और जो मिटने को यी, उन्हें दृढ़ कर; क्योंकि मैं ने तेरे किसी काम को अपके परमेश्वर के निकट पूरा नहीं पाया।
3. सो चेत कर, कि तु ने किस रीति से शिझा प्राप्त की और सुनी यी, और उस में बना रह, और मन फिरा: और यदि तू जागृत न रहेगा, तो मैं चोर की नाई आ जाऊंगा और तू कदापि न जान सकेगा, कि मैं किस घड़ी तुझ पर आ पडूंगा।
4. पर हां, सरदीस में तेरे यहां कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपके अपके वस्त्र अशुद्ध नहीं किए, वे श्वेत वस्त्र पहिने हुए मेरे साय घूमेंगे क्योंकि वे इस योग्य हैं।
5. जो जय पाए, उसे इसी प्रकार श्वेत वस्त्र पहिनाया जाएगा, और मैं उसका नाम जीवन की पुस्तक में से किसी रीति से न काटूंगा, पर उसका नाम अपके पिता और उसके स्वर्गदूतोंके साम्हने मान लूंगा।
6. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है।।
7. और फिलेदिलफिया की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो पवित्र और सत्य है, और जो दाऊद की कुंजी रखता है, जिस के खोले हुए को कोई बन्द नहीं कर सकता और बन्द किए हुए को कोई खोल नहीं सकता, वह यह कहता है, कि।
8. मैं तेरे कामोंको जानता हूं, (देख, मैं ने तेरे साम्हने एक द्वार खोल रखा है, जिसे कोई बन्द नहीं कर सकता) कि तेरी सामर्य योड़ी सी है, और तू ने मेरे वचन का पालन किया है और मेरे नाम का इन्कार नहीं किया।
9. देख, मैं शैतान के उन सभावालोंको तेरे वश में कर दूंगा जो यहूदी बन बैठे हैं, पर हैं नहीं, बरन फूठ बोलते हैं देख, मैं ऐसा करूंगा, कि वे आकर तेरे चरणोंमें दण्डवत करेंगे, और यह जान लेंगे, कि मैं ने तुझ से प्रेम रखा है।
10. तू ने मेरे धीरज के वचन को यामा है, इसलिथे मैं भी तुझे पक्कीझा के उस समय बचा रखूंगा, जो पृय्वी पर रहनेवालोंके परखने के लिथे सारे संसार पर आनेवाला है।
11. मैं शीघ्र ही आनेवाला हूं; जो कुछ तेरे पास है, उस यामें रह, कि कोई तेरा मुकुट छीन न ले।
12. जो जय पाए, उस मैं अपके परमेश्वर के मन्दिर में एक खंभा बनाऊंगा; और वह फिर कभी बाहर न निकलेगा; और मैं अपके परमेश्वर का नाम, और अपके परमेश्वर के नगर, अर्यात् नथे यरूशलेम का नाम, जो मेरे परमेश्वर के पास से स्वर्ग पर से उतरनेवाला है और अपना नया नाप उस पर लिखूंगा।
13. जिस के कान हों, वह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है।।
14. और लौदीकिया की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो आमीन, और विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह है, और परमेश्वर की सृष्टि का मूल कारण है, वह यह कहता है।
15. कि मैं तेरे कामोंको जानता हूं कि तू न तो ठंडा है और न गर्म: भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता।
16. सो इसलिथे कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपके मुंह से उगलने पर हूं।
17. तू जो कहता है, कि मैं धनी हूं, और धनवान हो गया हूं, और मुझे किसी वस्तु की घटी नहीं, और यह नहीं जानता, कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धा, और नंगा है।
18. इसी लिथे मैं तुझे सम्मति देता हूं, कि आग में ताया हुआ सोना मुझ से मोल ले, कि धनी हो जाए; और श्वेत वस्त्र ले ले कि पहिनकर तुझे अपके नंगेपन की लज्ज़ा न हो; और अपक्की आंखोंमें लगाने के लिथे सुर्मा ले, कि तू देखने लगे।
19. मैं जिन जिन से प्रीति रखता हूं, उन सब को उलाहना और ताड़ना देता हूं, इसलिथे सरगर्म हो, और मन फिरा।
20. देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साय भोजन करूंगा, और वह मेरे साय।
21. जो जय पाए, मैं उसे अपके साय अपके सिंहासन पर बैठाऊंगा, जैसा मैं भी जय पाकर अपके पिता के साय उसके सिंहासन पर बैठ गया।
22. जिस के कान होंवह सुन ले कि आत्क़ा कलीसियाओं से क्या कहता है।।
Chapter 4
1. इन बातोंके बाद जो मैं ने दृष्टि की, तो क्या देखता हूं कि स्वर्ग में एक द्वार खुला हुआ है; और जिस को मैं ने पहिले तुरही के से शब्द से अपके साय बातें करते सुना या, वही कहता है, कि यहां ऊपर आ जा: और मैं वे बातें तुझै दिखाऊंगा, जिन का इन बातोंके बाद पूरा होना अवश्य है।
2. और तुरन्त मैं आत्क़ा में आ गया; और क्या देखता हूं, कि एक सिंहासन स्वर्ग में धरा है, और उस सिंहासन पर कोई बैठा है।
3. और जो उस पर बैठा है, वह यशब और मानिक सा दिखाई पड़ता है, और उस सिंहासन के चारोंओर मरकत सा एक मेघधनुष दिखाई देता है।
4. और उस सिंहासन के चारोंओर चौबीस सिंहासन है; और इन सिंहासनोंपर चौबीस प्राचीन श्वेत वस्त्र पहिने हुए बैठें हैं, और उन के सिरोंपर सोने के मुकुट हैं।
5. और उस सिंहासन में से बिजलियां और गर्जन निकलते हैं और सिंहासन के साम्हने आग के सात दीपक जल रहे हैं, थे परमेश्वर की सात आत्क़ाएं हैं।
6. और उस सिंहासन के साम्हने मानो बिल्लौर के समान कांच का सा समुद्र है, और सिंहासन के बीच में और सिंहासन के चारोंओर चार प्राणी है, जिन के आगे पीछे आंखे ही आंखे हैं।
7. पहिला प्राणी सिंह के समान है, और दूसरा प्राणी का मुंह बछड़े के समान है, तीसरे प्राणी का मुंह मनुष्य का सा है, और चौया प्राणी उड़ते हुए उकाब के समान है।
8. और चारोंप्राणियोंके छ: छ: पंख हैं, और चारोंओर, और भीतर आंखे ही आंखे हैं; और वे रात दिन बिना विश्रम लिए यह कहते रहते हैं, कि पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु परमेश्वर, सर्वशक्तिमान, जो या, और जो है, और जो आनेवाला है।
9. और जब वे प्राणी उस की जो सिंहासन पर बैठा है, और जो युगानुयुग जीवता है, महिमा और आदर और धन्यवाद करेंगे।
10. तब चौबीसोंप्राचीन सिंहासन पर बैठनेवाले के साम्हने गिर पकेंगे, और उसे जो युगानुयुग जीवता है प्रणाम करेंगे; और अपके अपके मुकुट सिंहासन के साम्हने यह कहते हुए डाल देंगे।
11. कि हमारे प्रभु, और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्य के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से यी, और सृजी गईं।।
Chapter 5
1. और जो सिंहासन पर बैठा या, मैं ने उसके दिहने हाथ में एक पुस्तक देखी, जो भीतर और बाहर लिखी हुई भी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई यी।
2. फिर मैं ने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊंचे शब्द से यह प्रचार करता या कि इस पुस्तक के खोलने और उस की मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है
3. और न स्वर्ग में, न पृय्वी पर, न पृय्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्टि डालने के योग्य निकला।
4. और मैं फूट फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक के खोलने, या उस पर दृष्टि करने के योग्य कोई न मिला।
5. तब उन प्राचीनोंमें से एक ने मुझे से कहा, मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह, जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातोंमुहर तोड़ने के लिथे जयवन्त हुआ है।
6. और मैं ने उस सिंहासन और चारोंप्राणियोंऔर उन प्राचीनोंके बीच में, मानोंएक वध किया हुआ मेम्ना खड़ा देखा: उसके सात सींग और सात आंखे यी; थे परमेश्वर की सातोंआत्क़ाएं हैं, जो सारी पृय्वी पर भेजी गई हैं।
7. उस ने आकर उसके दिहने हाथ से जो सिंहासन पर बैठा या, वह पुस्तक ले ली,
8. और जब उस ने पुस्तक ले ली, तो वे चारोंप्राणी और चौबीसोंप्राचीन उस मेम्ने के साम्हने गिर पके; और हर एक के हाथ में वीणा और धूप से भरे हुए सोने के कटोरे थे, थे तो पवित्र लोगोंकी प्रार्यनाएं हैं।
9. और वे यह नया गीत गाने लगे, कि तू इस पुस्तक के लेने, और उसकी मुहरें खोलने के योग्य है; क्योंकि तू ने वध होकर अपके लोहू से हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से परमेश्वर के लिथे लोगोंको मोल लिया है।
10. और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिथे एक राज्य और याजक बनाया; और वे पृय्वी पर राज्य करते हैं।
11. और जब मै ने देखा, तो उस सिंहासन और उन प्राणियोंऔर उन प्राचीनोंकी चारोंओर बहुत से स्वर्गदूतोंका शब्द सुना, जिन की गिनती लाखोंऔर करोड़ोंकी यी।
12. और वे ऊंचे शब्द से कहते थे, कि वध किया हुआ मेम्ना ही सामर्य, और धन, और ज्ञान, और शक्ति, और आदर, और महिमा, और धन्यवाद के योग्य है।
13. फिर मैं ने स्वर्ग में, और पृय्वी पर, और पृय्वी के नीचे, और समुद्र की सब सृजी हुई वस्तुओं को, और सब कुछ को जो उन में हैं, यह कहते सुना, कि जो सिंहासन पर बैठा है, उसका, और मेम्ने का धन्यवाद, और आदर, और महिमा, और राज्य, युगानुयुग रहे।
14. और चारोंप्राणियोंने आमीन कहा, और प्राचीनोंने गिरकर दण्डवत् किया।।
Chapter 6
1. फिर मैं ने देखा, कि मेम्ने ने उन सात मुहरोंमें से एक को खोला; और उन चारोंप्राणियोंमें से एक का गर्ज का सा शब्द सुना, कि आ।
2. और मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक श्वेत घोड़ा है, और उसका सवार धनुष लिए हुए है: और उसे एक मुकुट दिया गया, और वह जय करता हुआ निकल कि और भी जय प्राप्त करे।।
3. और जब उस ने दूसरी मुहर खोली, तो मैं ने दूसरे प्राणी को यह कहते सुना, कि आ।
4. फिर एक और घोड़ा निकला, जो लाल रंग का या; उसके सवार को यह अधिक्कारने दिया गया, कि पृय्वी पर से मेल उठा ले, ताकि लोग एक दूसरे को वध करें; और उसे एक बड़ी तलवार दी गई।।
5. और जब उस ने तीसरी मुहर खोली, तो मैं ने तीसरे प्राणी को यह कहते सुना, कि आ: और मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक काला घोड़ा है;
6. और मैं ने उन चारोंप्राणियोंके बीच में से एक शब्द यह कहते सुना, कि दीनार का सेर भर गेहूं, और दीनार का तीन सेर जव, और तेल, और दाख-रस की हानि न करना।।
7. और जब उस ने चौयी मुहर खोली, तो मैं ने चौथे प्राणी का शब्द यह कहते सुना, कि आ।
8. और मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक पीला सा घोड़ा है; और उसके सवार का नाम मृत्यु है: और अधोलोक उसके पीछे पीछे है और उन्हें पृय्वी की एक चौयाई पर यह अधिक्कारने दिया गया, कि तलवार, और अकाल, और मरी, और पृय्वी के वनपशुओं के द्वारा लोगोंको मार डालें।।
9. और जब उस ने पांचक्की मुहर खोली, तो मैं ने वेदी के नीचे उन के प्राणोंको देखा, जो परमेश्वर के वचन के कारण, और उस गवाही के कारण जो उन्होंने दी यी, वध किए गए थे।
10. और उन्होंने बड़े शब्द से पुकार कर कहा; हे स्वामी, हे पवित्र, और सत्य; तू कब तक न्याय न करेगा और पृय्वी के रहनेवालोंसे हमारे लोहू का पलटा कब तक न लेगा
11. और उन में से हर एक को श्वेत वस्त्र दिया गया, और उन से कहा गया, कि और योड़ी देर तक विश्रम करो, जब तक कि तुम्हारे संगी दास, और भाई, जो तुम्हारी नाई वध होनेवाले हैं, उन की भी गिनती पूरी न हो ले।।
12. और जब उस ने छठवीं मुहर खोली, तो मैं ने देखा, कि एक बड़ा भुइंडोल हुआ; और सूर्य कम्मल की नाईं काला, और पूरा चन्द्रमा लोहू का सा हो गया।
13. और आकाश के तारे पृय्वी पर ऐसे गिर पके जैसे बड़ी आन्धी से हिलकर अंजीर के पेड़ में से कच्चे फल फड़ते हैं।
14. और आकाश ऐसा सरक गया, जैसा पत्र लपेटने से सरक जाता है; और हर एक पहाड़, और टापू, अपके अपके स्यान से टल गया।
15. और पृय्वी के राजा, और प्रधान, और सरदार, और धनवान और सामर्यी लोग, और हर एक दास, और हर एक स्वतंत्र, पहाड़ोंकी खोहोंमें, और चटानोंमें जा छिपे।
16. और पहाड़ों, और चटानोंसे कहने लगे, कि हम पर गिर पड़ो; और हमें उसके मुंह से जो सिंहासन पर बैठा है और मेम्ने के प्रकोप से छिपा लो।
17. क्योंकि उन के प्रकोप का भयानक दिन आ पहुंचा है, अब कौन ठहर सकता है
Chapter 7
1. इसके बाद मैं ने पृय्वी के चारोंकोनोंपर चार स्वर्गदूत खड़े देखे, वे पृय्वी की चारोंहवाओं को यामे हुए थे ताकि पृय्वी, या समुद्र, या किसी पेड़ पर, हवा न चले।
2. फिर मैं ने एक और स्वर्गदूत को जीवते परमेश्वर की मुहर लिए हुए पूरब से ऊपर की ओर आते देखा; उस ने उन चारोंस्वर्गदूतोंसे जिन्हें पृय्वी और समुद्र की हानि करने का अधिक्कारने दिया गया या, ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा।
3. जब तक हम अपके परमेश्वर के दासोंके माथे पर मुहर न लगा दें, तब तक पृय्वी और समुद्र और पेड़ोंको हानि न पहुंचाना।
4. और जिन पर मुहर दी गई, मैं ने उन की गिनती सुनी, कि इस्त्राएल की सन्तानोंके सब गोत्रोंमें से एक लाख चौआलीस हजार पर मुहर दी गई।
5. यहूदा के गोत्र में से बारह हजार पर मुहर दी गई; रूबेन के गोत्र में से बारह हजार पर; गाद के गोत्र में से बारह हजार पर।
6. आशेर के गोत्र में से बारह हजार पर; मनश्श्हि के गोत्र में से बारह हजार पर।
7. शमौन के गोत्र में से बारह हजार पर; लेवी के गोत्र में से बारह हजार पर; लेवी के गोत्र में से बारह हजार पर; इस्साकार के गोत्र में से बारह हजार पर।
8. जबूलून के गोत्र में से बारह हजार पर; यूसुफ के गोत्र में से बारह हजार पर और बिन्यामीन के गोत्र में से बारह हजार पर मुहर दी गई।
9. इस के बाद मैं ने दृष्टि की, और देखो, हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता या श्वेत वस्त्र पहिने, और अपके हाथोंमें खजूर की डालियां लिथे हुए सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी है।
10. और बड़े शब्द से पुकारकर कहती है, कि उद्धार के लिथे हमारे परमेश्वर का जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने का जय-जय-कार हो।
11. और सारे स्वर्गदूत, उस सिंहासन और प्राचीनोंऔर चारोंप्राणियोंके चारोंओर खड़े हैं, फिर वे सिंहासन के साम्हने मुंह के बल गिर पके; और परमेश्वर को दण्डवत् करके कहा, आमीन।
12. हमारे परमेश्वर की स्तुति, ओर महिमा, और ज्ञान, और धन्यवाद, और आदर, और सामर्य, और शक्ति युगानुयुग बनी रहें। आमीन।
13. इस पर प्राचीनोंमें से एक ने मुझ से कहा; थे श्वेत वस्त्र पहिने हुए कौन हैं और कहां से आए हैं
14. मैं ने उस से कहा; हे स्वामी, तू ही जानता है: उस ने मुझ से कहा; थे वे हैं, जो उस बड़े क्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्होंने अपके अपके वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।
15. इसी कारण वे परमेश्वर के सिंहासन के साम्हने हैं, और उसके मन्दिर में दिन रात उस की सेवा करते हैं; और जो सिंहासन पर बैठा है, वह उन के ऊपर अपना तम्बू तानेगा।
16. वे फिर भूखे और प्यासे न होंगे: ओर न उन पर धूप, न कोई तपन पकेगी।
17. क्योंकि मेम्ना जो सिंहासन के बीच में है, उन की रखवाली करेगा; और उन्हें जीवन रूपी जल के सोतोंके पास ले जाया करेगा, और परमेश्वर उन की आंखोंसे सब आंसू पोंछ डालेगा।।
Chapter 8
1. और जब उस ने सातवीं मुहर खोली, तो स्वर्ग में आध घड़ी तक सन्नाटा छा गया।
2. और मैं ने उन सातोंस्वर्गदूतोंको जो परमेश्वर के साम्हने खड़े रहते हैं, देखा, और उन्हें सात तुरिहयां दी गईं।।
3. फिर एक और स्वर्गदूत सोने का धूपदान लिथे हुए आया, और वेदी के निकट खड़ा हुआ; और उस को बहुत धूप दिया गया, कि सब पवित्र लोगोंकी प्रार्यनाओं के साय उस सोनहली वेदी पर जो सिंहासन के साम्हने है चढ़ाए।
4. और उस धूप का धुआं पवित्र लोगोंकी प्रार्यनाओं सहित स्वर्गदूत के हाथ से परमेश्वर के साम्हने पहुंच गया।
5. और स्वर्गदूत ने धूपदान लेकर उस में वेदी की आग भरी, और पृय्वी पर डाल दी, और गर्जन और शब्द और बिजलियां और भूईडोल होने लगा।।
6. और वे सातोंस्वर्गदूत जिन के पास सात तुरिहयां यी, फंूकने को तैयार हुए।।
7. पहिले स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, और लोहू से मिले हुए ओले और आग उत्पन्न हुई, और पृय्वी पर डाली गई; और पृय्वी की एक तिहाई जल गई, और सब हरी घास भी जल गई।।
8. और दूसरे स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, तो मानो आग सा जलता हुआ एक बड़ा पहाड़ समुद्र में डाला गया; और समुद्र का एक तिहाई लोहू हो गया।
9. और समुद्र की एक तिहाई सृजी हुई वस्तुएं जो सजीव यीं मर गई, और एक तिहाई जहाज नाश हो गया।।
10. और तीसरे स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, और एक बड़ा तारा जो मशाल की नाई जलता या, स्वर्ग से टूटा, और नदियोंकी एक तिहाई पर, और पानी के सोतोंपर आ पड़ा
11. और उस तोर का नाम नागदौना कहलाता है, और एक तिहाई पानी नागदौना सा कड़वा हो गया, और बहुतेरे मनुष्य उस पानी के कड़वे हो जाने से मर गए।।
12. और चौथे स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, और सूर्य की एक तिहाई, और चान्द की एक तिहाई और तारोंकी एक तिहाई पर आपत्ति आई, यहां तक कि उन का एक तिहाई अंग अन्धेरा हो गया और दिन की एक तिहाई में उजाला न रहा, और वैसे ही रात में भी।।
13. और जब मैं ने फिर देखा, तो आकाश के बीच में एक उकाब को उड़ते और ऊंचे शब्द से यह कहते सुना, कि उन तीन स्वर्गदूतोंकी तुरही के शब्दोंके कारण जिन का फूंकना अभी बाकी है, पृय्वी के रहनेवालोंपर हाथ! हाथ! हाथ!
Chapter 9
1. और जब पांचवें स्वर्गदूत ने तुरही फूंकी, तो मैं ने स्वर्ग से पृय्वी पर एक तारा गिरता हुआ देखा, और उसे अयाह कुण्ड की कुंजी दी गई।
2. और उस ने अयाह कुण्ड को खोला, और कुण्ड में से बड़ी भट्टी का सा धुआं उठा, और कुण्ड के धुएं से सूर्य और वायु अन्धयारी हो गई।
3. और उस धुएं में से पृय्वी पर ट्टिड्डियाँ निकलीं, और उन्हें पृय्वी के बिच्छुओं की सी शक्ति दी गई।
4. और उन से कहा गया, कि न पृय्वी की घास को, न किसी हिरयाली को, न किसी पेड़ को हानि पहुंचाओ, केवल उन मनुष्योंको जिन के माथे पर परमेश्वर की मुहर नहीं है।
5. और उन्हें मार डालते का तो नहीं, पर पांच महीने तक लोगोंको पीड़ा देने का अधिक्कारने दिया गया: और उन की पीड़ा ऐसी यी, जैसे बिच्छू के डंक मारने से मनुष्य को होती है।
6. उन दिनोंमें मनुष्य मृत्यु को ढूंढ़ेंगे, ओर न पाएंगे; और मरने की लालसा करेंगे, और मृत्यु उस से भागेगी।
7. और उन िटिड्डयोंके आकार लड़ाई के लिथे तैयार किए हुए घोड़ोंके से थे, और उन के सिरोंपर मानोंसोने के मुकुट थे; और उसके मुंह मनुष्योंके से थे।
8. और उन के बाल स्त्रियोंके से, और दांत सिहोंके से थे।
9. और वे लोहे की सी फिलम पहिने थे, और उन के पंखोंका शब्द ऐसा या जैसा रयोंऔर बहुत से घोड़ोंका जो लड़ाई में दौड़ते हों।
10. और उन की पूंछ बिच्छुओं की सी यीं, और उन में डंक थे, और उन्हें पांच महीने तक मनुष्योंको दुख पहुंचाने की जो सामर्य यी, वह उन की पूंछोंमें यी।
11. अयाह कुण्ड का दूत उन पर राजा या, उसका नाम इब्रानी में अबद्दोन, और यूनानी में अपुल्लयोन है।।
12. पहिली विपत्ति बीत चुकी, देखो अब इन के बाद दो विपत्तियां और होनेवाली हैं।।
13. और जब छठवें स्वर्गदूत ने तुरही फंूकी तो जो सोने की वेदी परमेश्वर के साम्हने है उसके सींगो में से मैं ने ऐसा शब्द सुना।
14. मानोंकोई छठवें स्वर्गदूत से जिस के पास तुरही यी कह रहा है कि उन चार स्वर्गदूतोंको जो बड़ी नदी फुरात के पास बन्धे हुए हैं, खोल दे।
15. और वे चारोंदूत खोल दिए गए जो उस घड़ी, और दिन, और महीने, और वर्ष के लिथे मनुष्योंकी एक तिहाई के मार डालने को तैयार किए गए थे।
16. और फौजोंके सवारोंकी गिनती बीस करोड़ यी; मैं ने उन की गिनती सुनी।
17. और मुझे इस दर्शन में घोड़े और उन के ऐसे सवार दिखाई दिए, जिन की फिलमें आग, और धूम्रकान्त, और गन्धक की सी यीं, और उन घोड़ोंके सिर सिंहोंके सिरोंके से थे: और उन के मुंह से आग, और धुआं, और गन्धक निकलती यी।
18. इन तीनोंमरियों; अर्यात् आग, और धुएं, और गन्धक से जो उसके मुंह से निकलती यीं, मनुष्योंकी एक तिहाई मार डाली गई।
19. क्योंकि उन घोड़ोंकी सामर्य उन के मुंह, और उन की पूंछोंमें यी; इसलिथे कि उन की पूंछे सांपोंकी सी यीं, और उन पूंछोंके सिर भी थे, और इन्हीं से वे पीड़ा पहुंचाते थे।
20. और बाकी मनुष्योंने जो उन मरियोंसे न मरे थे, अपके हाथोंके कामोंसे मन न फिराया, कि दुष्टात्क़ाओं की, और सोने और चान्दी, और पीतल, और पत्यर, और काठ की मूरतोंकी पूजा न करें, जो न देख, न सुन, न चल सकती हैं।
21. और जो खून, और टोना, और व्यभिचार, और चोरियां, उन्होंने की यीं, उन से मन न फिराया।।
Chapter 10
1. फिर मैं ने एक और बली स्वर्गदूत को बादल ओढ़े हुए स्वर्ग से उतरते देखा, उसके सिर पर मेघधनुष या: और उसका मुंह सूर्य का सा और उसके पांव आग के खंभे के से थे।
2. और उसके हाथ में एक छोटी सी खुली हुई पुस्तक यी; उस ने अपना दिहना पांव समुद्र पर, और बायां पृय्वी पर रखा।
3. और ऐसे बड़े शब्द से चिल्लाया, जैसा सिंह गरजता है; और जब वह चिल्लाया तो गर्जन के सात शब्द सुनाई दिए।
4. और जब सातोंगर्जन के शब्द सुनाई दे चुके, तो मैं लिखने पर या, और मैं ने स्वर्ग से यह शब्द सुना, कि जो बातें गर्जन के उन सात शब्दोंसे सुनी हैं, उन्हें गुप्त रख, और मत लिख।
5. और जिस स्वर्गदूत को मैं ने समुद्र और पृय्वी पर खड़े देख या; उस ने अपना दिहना हाथ स्वर्ग की ओर उठाया।
6. और जो युगानुयुग जीवता रहेगा, और जिस ने सवर्ग को और जो कुछ उस में है, और पृय्वी को और जो कुछ उस पर है, और समुद्र को और जो कुछ उस में है सृजा उसी की शपय खाकर कहा, अब तो और देर न होगी।
7. बरन सातवें स्वर्गदूत के शब्द देने के दिनोंमें जब वह तुरही फूंकने पर होगा, तो परमेश्वर का गुप्त मनोरय उस सुसमाचार के अनुसार जो उस ने अपके दास भविष्यद्वक्ताओं को दिया पूरा होगा।
8. और जिस शब्द करनेवाले को मैं ने स्वर्ग से बोलते सुना या, वह फिर मेरे साय बातें करने लगा; कि जा, जो स्वर्गदूत समुद्र और पृय्वी पर खड़ा है, उसके हाथ में की खुली हुईं पुस्तक ले ले।
9. और मैं ने स्वर्गदूत के पास जाकर कहा, यह छोटी पुस्तक मुझे दे; और उस ने मुझ से कहा ले इसे खा जो, और यह तेरा पेट कड़वा तो करेगी, पर तेरे मुंह में मधु सी मीठी लगेगी।
10. सो मैं वह छोटी पुस्तक उस स्वर्गदूत के हाथ से लेकर खा गया, वह मेरे मुंह में मधु सी मीठी तो लगी, पर जब मैं उसे खा गया, तो मेरा पेट कड़वा हो गया।
11. तब मुझ से यह कहा गया, कि तुझे बहुत से लोगों, और जातियों, और भाषाओं, और राजाओं पर, फिर भविष्यद्ववाणी करनी होगी।।
Chapter 11
1. और मुझे लग्गी के समान एक सरकंडा दिया गया, और किसी ने कहा; उठ, परमेश्वर के मन्दिर और वेदी, और उस में भजन करनेवालोंको नाप ले।
2. और मन्दिर के बारह का आंगन छोड़ दे; उस मत नाप, क्योंकि वह अन्यजातियोंको दिया गया है, और वे पवित्र नगर को बयालीस महीने तक रौंदेंगी।
3. और मैं अपके दो गवाहोंको यह अधिक्कारने दूंगा, कि टाट ओढे हुए एक हजार दो सौ साठ दिन तक भविष्यद्ववाणी करें।
4. थे वे ही जैतून के दो पेड़ और दो दीवट हैं जो पृय्वी के प्रभु के साम्हने खड़े रहते हैं।
5. और यदि कोई उन को हानि पहुंचाना चाहता है, तो उन के मुंह से आग निकलकर उन के बैरियोंको भस्क़ करती है, और यदि कोई उन को हानि पहुंचाना चाहेगा, तो अवश्य इसी रीति से मार डाला जाएगा।
6. इन्हें अधिक्कारने है, कि आकाश को बन्द करें, कि उन की भविष्यद्ववाणी के दिनोंमें मेंह न बरसे, और उन्हें सब पानी पर अधिक्कारने है, कि उसे लोहू बनाएं, और जब जब चाहें तब तब पृय्वी पर हर प्रकार की आपत्ति लाएं।
7. और जब वे अपक्की गवाही दे चुकेंगे, तो वह पशु जो अयाह कुण्ड में से निकलेगा, उन से लड़कर उन्हें जीतेगा और उन्हें मार डालेगा।
8. और उन की लोथें उस बड़े नगर के चौक में पड़ी रहेंगी, जो आत्क़िक रीति से सदोम और मिसर कहलाता है, जहां उन का प्रभु भी क्रूस पर चढ़ाया गया या।
9. और सब लोगों, और कुलों, और भाषाओं, और जातियोंमें से लोग उन की लोथें साढ़े तीन दिन तक देखते रहेंगे, और उन की लोथें कब्र में रखने ने देंगे।
10. और पृय्वी के रहनेवाले, उन के मरने से आनन्दित और मगन होंगे, और एक दूसरे के पास भेंट भेजेंगे, क्योंकि इन दोनोंभविष्यद्वक्ताओं ने पृय्वी के रहनेवालोंको सताया या
11. और साढ़े तीन दिन के बाद परमेश्वर की ओर से जीवन की आत्क़ा उन में पैठ गई; और वे अपके पांवोंके बल खड़े हो गए, और उनके देखनेवालोंपर बड़ा भय छा गया।
12. और उन्हें स्वर्ग से एक बड़ा शब्द सुनाई दिया, कि यहां ऊपर आओ; यह सुन वे बादल पर सवार होकर अपके बैरियोंके देखते देखते स्वर्ग पर चढ़ गए।
13. फिर उसी घड़ी एक बड़ा भुइंडोल हुआ, और नगर का दसवां अंश गिर पड़ा; और उस भुइंडोल से सात हजार मनुष्य मर गए और शेष डर गए, और स्वर्ग के परमेश्वर की महिमा की।।
14. दूसरी विपत्ति बीत चुकी, देखो, तीसरी विपत्ति शीघ्र आनेवाली है।।
15. और जब सातवें दूत ने तुरही फूंकी, तो स्वर्ग में इस विषय के बड़े बड़े शब्द होने लगे कि जगत का राज्य हमारे प्रभु का, और उसके मसीह का हो गया।
16. और वह युगानुयुग राज्य करेगा, और चौबीसोंप्राचीन जो परमेश्वर के साम्हने अपके अपके सिंहासन पर बैठे थे, मुंह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत करके।
17. यह कहने लगे, कि हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, जो है, और जो या, हम तेरा धन्यवाद करते हैं, कि तू ने अपक्की बड़ी सार्म्य काम में लाकर राज्य किया है।
18. और अन्यजातियोंने क्रोध किया, और तेरा प्रकोप आ पड़ा और वह समय आ पहुंचा है, कि मरे हुओं का न्याय किया जाए, और तेरे दास भविष्यद्वक्ताओं और पवित्र लोगोंको और उन छोटे बड़ोंको जो तेरे नाम से डरते हैं, बदला दिया जाए, और पृय्वी के बिगाड़नेवाले नाश किए जाएं।।
19. और परमेश्वर का जो मन्दिर स्वर्ग में है, वह खोला गया, और उसके मन्दिर में उस की वाचा का सन्दूक दिखाई दिया, और बिजलियां और शब्द और गर्जन और भुइंडोल हुए, और बड़े बड़े ओले पके।।
Chapter 12
1. फिर स्वर्ग पर एक बड़ा चिन्ह दिखाई दिया, अर्यात् एक स्त्री जो सूर्य्य ओढ़े हुए यी, और चान्द उसके पांवोंतले या, और उसके सिर पर बारह तारोंका मुकुट या।
2. और वह गर्भवती हुई, और चिल्लाती यी; कयोंकि प्रसव की पीड़ा उसे लगी यी; और वह बच्चा जनने की पीड़ा में यी।
3. और एक और चिन्ह स्वर्ग पर दिखाई दिया, और देखो; एक बड़ा लाल अजगर या जिस के सात सिर और दस सींग थे, और उसके सिरोंपर सात राजमुकुट थे।
4. और उस की पूंछ ने आकाश के तारोंकी एक तिहाई को खींचकर पृय्वी पर डाल दिया, और वह अजगर उस स्त्री से साम्हने जो जच्चा यी, खड़ा हुआ, कि जब वह बच्चा जने तो उसके बच्चे को निगल जाए।
5. और वह बेटा जनी जो लोहे का दण्ड लिए हुए, सब जातियोंपर राज्य करने पर या, और उसका बच्चा एकाएक परमेश्वर के पास, और उसके सिंहासन के पास उठाकर पहुंचा दिया गया।
6. और वह स्त्री उस जंगल को भाग गई, जहां परमेश्वर की ओर से उसके लिथे एक जगह तैयार की गई यी, कि वहां वह एक हजार दो सौ साठ दिन तक पाली जाए।।
7. फिर स्वर्ग पर लड़ाई हुई, मीकाईल और उसके स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले, और अजगर ओर उनके दूत उस से लड़े।
8. परन्तु प्रबल न हुए, और स्वर्ग में उन के लिथे फिर जगह न रही।
9. और वह बड़ा अजगर अर्यात् वही पुराना सांप, जो इब्लीस और शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृय्वी पर गिरा दिया गया; और उसके दूत उसके साय गिरा दिए गए।
10. फिर मैं ने स्वर्ग पर से यह बड़ा शब्द आते हुए सुना, कि अब हमारे परमेश्वर का उद्धार, और सामर्य, और राज्य, और उसके मसीह का अधिक्कारने प्रगट हुआ है; क्योंकि हमारे भाइयोंपर दोष लगानेवाला, जो रात दिन हमारे परमेश्वर के साम्हने उन पर दोष लगाया करता या, गिरा दिया गया।
11. और वे मेम्ने के लोहू के कारण, और अपक्की गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवन्त हुए, और उन्होंने अपके प्राणोंको प्रिय न जाना, यहां तक कि मृत्यु भी सह ली।
12. इस कारण, हे स्वर्गों, और उन में के रहनेवालोंमगन हो; हे पृय्वी, और समुद्र, तुम पर हाथ! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साय तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका योड़ा ही समय और बाकी है।।
13. और जब अजगर ने देखा, कि मैं पृय्वी पर गिरा दिया गया हूं, तो उस स्त्री को जो बेटा जनी यी, सताया।
14. और उस स्त्री को बड़े उकाब के दो पंख दिए गए, कि सांप के साम्हने से उड़कर जंगल में उस जगह पहुंच जाए, जहां वह एक समय, और समयों, और आधे समय तक पाली जाए।
15. और सांप ने उस स्त्री के पीछे अपके मुंह से नदी की नाई पानी बहाथा, कि उसे इस नदी से बहा दे।
16. परन्तु पृय्वी ने उस स्त्री की सहाथता की, और अपना मुंह खोलकर उस नदी को जो अजगर ने अपके मुंह से बहाई यी, पी लिया।
17. और अजगर स्त्री पर क्रोधित हुआ, और उसकी शेष सन्तान से जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही देने पर स्यिर हैं, लड़ने को गया। और वह समुद्र के बालू पर जा खड़ा हुआ।।
Chapter 13
1. और मैं ने एक पशु को समुद्र में से निकलते हुए देखा, जिस के दस सींग और सात सिर थे; और उसके सिरोंपर निन्दा के नाम लिखे हुए थे।
2. और जो पशु मैं ने देखा, वह चीते की नाई या; और उसके पांव भालू के से, और मुंह सिंह का सा या; और उस अजगर ने अपक्की सामर्य, और अपना सिंहासन, और बड़ा अधिक्कारने, उसे दे दिया।
3. और मैं ने उसके सिरोंमें से एक पर ऐसा भारी घाव लगा देखा, मानो वह माने पर है; फिर उसका प्राणघातक घाव अच्छा हो गया, और सारी पृय्वी के लोग उस पशु के पीछे पीछे अचंभा करते हुए चले।
4. और उन्होंने अजगर की पूजा की, क्योंकि उस ने पशु को अपना अधिक्कारने दे दिया या और यह कहकर पशु की पूजा की, कि इस पशु के समान कौन है
5. कौन उस से लड़ सकता है और बड़े बोल बोलने और निन्दा करने के लिथे उसे एक मुंह दिया गया, और उसे बयालीस महीने तक काम करने का अधिक्कारने दिया गया।
6. और उस ने परमेश्वर की निन्दा करने के लिथे मुंह खोला, कि उसके नाम और उसके तम्बू अर्यात् स्वर्ग के रहनेवालोंकी निन्दा करे।
7. और उसे यह अधिक्कारने दिया गया, कि पवित्र लोगोंसे लड़े, और उन पर जय पाए, और उसे हर एक कुल, और लोग, और भाषा, और जाति पर अधिक्कारने दिया गया।
8. और पृय्वी के वे सब रहनेवाले जिन के नाम उस मेम्ने की जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, जो जंगल की उत्पत्ति के समय से घात हुआ है, उस पशु की पूजा करेंगे।
9. जिस के कान होंवह सुने।
10. जिस को कैद में पड़ना है, वह कैद में पकेगा, जो तलवार से मारेगा, अवश्य है कि वह तलवार से मारा जाएगा, पवित्र लोगोंका धीरज और विश्वास इसी में है।।
11. फिर मैं ने एक और पशु को पृय्वी में से निकलते हुए देखा, उसके मेम्ने के से दो सींग थे; और वह अजगर की नाईं बोलता या।
12. और यह उस पहिले पशु का सारा अधिक्कारने उसके साम्हने काम में लाता या, और पृय्वी और उसके रहनेवालोंसे उस पहिले पशु की जिस का प्राणघातक घाव अच्छा हो गया या, पूजा कराता या।
13. और वह बड़े बड़े चिन्ह दिखाता या, यहां तक कि मनुष्योंके साम्हने स्वर्ग से पृय्वी पर आग बरसा देता या।
14. और उन चिन्होंके कारण जिन्हें उस पशु के साम्हने दिखाने का अधिक्कारने उसे दिया गया या; वह पृय्वी के रहनेवालोंको इस प्रकार भरमाता या, कि पृय्वी के रहनेवालोंसे कहता या, कि जिस पशु के तलवार लगी यी, वह जी गया है, उस की मूरत बनाओ।
15. और उसे उस पशु की मूरत में प्राण डालने का अधिक्कारने दिया गया, कि पशु की मूरत बोलने लगे; और जितने लोग उस पशु की मूरत की पूजा न करें, उन्हें मरवा डाले।
16. और उस ने छोटे, बड़े, धनी, कंगाल, स्वत्रंत, दास सब के दिहने हाथ या उन के माथे पर एक एक छाप करा दी।
17. कि उस को छोड़ जिस पर छाप अर्यात् उस पशु का नाम, या उसके नाम का अंक हो, और कोई लेन देन न कर सके।
18. ज्ञान इसी में है, जिसे बुद्धि हो, वह इस पशु का अंक जोड़ ले, क्योंकि मनुष्य का अंक है, और उसका अंक छ: सौ छियासठ है।।
Chapter 14
1. फिर मैं ने दृष्टि की, और देखो, वह मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साय एक लाख चौआलीस हजार जन हैं, जिन के माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है।
2. और स्वर्ग से मुझे एक ऐसा शब्द सुनाई दिया, जो जल की बहुत धाराओं और बड़े गर्जन का सा शब्द या, और जो शब्द मैं ने सुना; वह ऐसा या, मानो वीणा बजानेवाले वीणा बजाते हों।
3. और वे सिंहासन के साम्हने और चारोंप्राणियोंऔर प्राचीनोंके साम्हने मानो, यह नया गीत गा रहे थे, और उन एक लाख चौआलीस हजार जनो को छोड़ जो मोल लिए गए थे, कोई वह गीत न सीख सकता या।
4. थे वे हैं, जो स्त्रियोंके साय अशुद्ध नहीं हुए, पर कुंवारे हैं: थे वे ही हैं, कि जहां कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं: थे तो परमेश्वर के निमित्त पहिले फल होने के लिथे मनुष्योंमें से मोल लिए गए हैं।
5. और उन के मुंह से कभी फूठ न निकला या, वे निर्दोष हैं।।
6. फिर मैं ने एक और स्वर्गदूत को आकाश के बीच में उड़ते हुए देखा जिस के पास पृय्वी पर के रहनेवालोंकी हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगोंको सुनाने के लिथे सनातन सुसमाचार या।
7. और उस ने बड़े शब्द से कहा; परमेश्वर से डरो; और उस की महिमा करो; क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुंचा है, और उसका भजन करो, जिस ने स्वर्ग और पृय्वी और समुद्र और जल के सोते बनाए।।
8. फिर इस के बाद एक और दूसरा स्वर्गदूत यह कहता हुआ आया, कि गिर पड़ा, वह बड़ा बाबुल गिर पड़ा जिस ने अपके व्यभिचार की कोपमय मदिरा सारी जातियोंको पिलाई है।।
9. फिर इन के बाद एक और स्वर्गदूत बड़े शब्द से यह कहता हुआ आया, कि जो कोई उस पशु और उस की मूरत की पूजा करे, और अपके माथे या अपके हाथ पर उस की छाप ले।
10. तो वह परमेश्वर का प्रकोप की निरी मदिरा जो उसके क्रोध के कटोरे में डाली गई है, पीएगा और पवित्र स्वर्गदूतोंके साम्हने, और मेम्ने के साम्हने आग और गन्धक की पीड़ा में पकेगा।
11. और उन की पीड़ा का धुआं युगानुयुग उठता रहेगा, और जो उस पशु और उस की मूरत की पूजा करते हैं, और जो उसके नाम ही छाप लेते हैं, उन को रात दिन चैन न मिलेगा।
12. पवित्र लोगोंका धीरज इसी में है, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु पर विश्वास रखते हैं।।
13. और मैं ने स्वर्ग से यह शब्द सुना, कि लिख; जो मुरदे प्रभु में मरते हैं, वे अब से धन्य हैं, आत्क़ा कहता है, हां क्योंकि वे अपके परिश्र्मोंसे विश्रम पाएंगे, और उन के कार्य्य उन के साय हो लेते हैं।।
14. और मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक उजला बादल है, और उस बादल पर मनुष्य के पुत्र सरीखा कोई बैठा है, जिस के सिर पर सोने का मुकुट और हाथ में चोखा हंसुआ है।
15. फिर एक और स्वर्गदूत ने मन्दिर में से निकलकर, उस से जो बादल पर बैठा या, बड़े शब्द से पुकारकर कहा, कि अपना हंसुआ लगाकर लवनी कर, क्योंकि लवने का समय आ पंहुचा है, इसलिथे कि पृय्वी की खेती पक चुकी है।
16. सो जो बादल पर बैठा या, उस ने पृय्वी पर अपना हंसुआ लगाया, और पृय्वी की लवनी की गई।।
17. फिर एक और स्वर्गदूत उस मन्दिर में से निकला, जो स्वर्ग में है, और उसके पास भी चोखा हंसुआ या।
18. फिर एक और स्वर्गदूत जिस आग पर अधिक्कारने या, वेदी में से निकला, और जिस के पास चोखा हंसुआ या, उस से ऊंचे शब्द से कहा; अपना चोखा हंसुआ लगाकर पृय्वी की दाख लता के गुच्छे काट ले; क्योंकि उस की दाख पक चुकी है।
19. और उस स्वर्गदूत ने पृय्वी पर अपना हंसुआ डाला, और पृय्वी की दाख लता का फल काटकर, अपके परमेश्वर के प्रकोप के बड़े रस के कुण्ड में डाल दिया।
20. और नगर के बाहर उस रस कुण्ड में दाख रौंदे गए, और रस कुण्ड में से इतना लोहू निकला कि घोड़ोंके लगामोंतक पहुंचा, और सौ कोस तक बह गया।।
Chapter 15
1. फिर मैं ने स्वर्ग में एक और बड़ा और अद्भुत चिन्ह देखा, अर्यात् सात स्वर्गदूत जिन के पास सातोंपिछली विपत्तियां यीं, क्योंकि उन के हो जाने पर परमेश्वर के प्रकोप का अन्त है।।
2. और मैं ने आग से मिले हुए कांच का सा एक समुद्र देखा, और जो उस पशु पर, और उस की मूरत पर, और उसके नाम के अंक पर जयवन्त हुए थे, उन्हें उस कांच के समुद्र के निकट परमेश्वर की वीणाओं को लिए हुए खड़े देखा।
3. और वे परमेश्वर के दास मूसा का गीत, और मेम्ने का गीत गा गाकर कहते थे, कि हे र्स्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, तेरे कार्य्य बड़े, और अद्भुत हैं, हे युग युग के राजा, तेरी चाल ठीक और सच्ची है।
4. हे प्रभु, कौन तुझ से न डरेगा और तेरे नाम की महिमा न करेगा क्योंकि केवल तू ही पवित्र है, और सारी जातियां आकर तेरे साम्हने दण्डवत् करेंगी, क्योंकि तेरे न्याय के काम प्रगट हो गए हैं।।
5. और इस के बाद मैं ने देखा, कि स्वर्ग में साझी के तम्बू का मन्दिर खोला गया।
6. और वे सातोंस्वर्गदूत जिन के पास सातोंविपत्तियां यीं, शुद्ध और चमकती हुई मणि पहिने हुए छाती पर सुनहले पटुके बान्धे हुए मन्दिर से निकले।
7. और उन चारोंप्राणियोंमें से एक ने उन सात स्वर्गदूतोंको परमेश्वर के, जो युगानुयुग जीवता है, प्रकोप से भरे हुए सात सोने के कटोरे दिए।
8. और परमेश्वर की महिमा, और उस की सामर्य के कारण मन्दिर धुएं से भर गया और जब तक उन सातोंस्वर्गदूतोंकी सातोंविपत्तियां समाप्त न हुई, तब तक कोई मन्दिर में न जा सका।।
Chapter 16
1. फिर मैं ने मन्दिर में किसी को ऊंचे शब्द से उन सातोंस्वर्गदूतोंसे यह कहते सुना कि जाओ, परमेश्वर के प्रकोप के सातोंकटोरोंको पृय्वी पर उंडेल दो।।
2. सो पहिले ने जाकर अपना कटोरा पृय्वी पर उंडेल दिया। और उन मनुष्योंके जिन पर पशु की छाप यी, और जो उस की मूरत की पूजा करते थे, एक प्रकार का बुरा और दुखदाई फोड़ा निकला।।
3. और दूसरे ने अपना कटोरा समुद्र पर उंडेल दिया और वह मरे हुए का सा लोहू बन गया, और समुद्र में का हर एक जीवधारी मर गया।।
4. और तीसरे ने अपना कटोरा नदियों, और पानी के सोतोंपर उंडेल दिया, और वे लोहू बन गए।
5. और मैं ने पानी के स्वर्गदूत को यह कहते सुना, कि हे पवित्र, जो है, और जो या, तू न्यायी है और तू ने यह न्याय किया।
6. क्योंकि उन्होंने पवित्र लोगों, और भविष्यद्वक्ताओं को लोहू बहाथा या, और तू ने उन्हें लोहू पिलाया; क्योंकि वे इसी योग्य हैं।
7. फिर मैं ने वेदी से यह शब्द सुना, कि हां हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, तेरे निर्णय ठीक और सच्चे हैं।।
8. और चौथे ने अपना कटोरा सूर्य पर उंडेल दिया, और उसे मनुष्योंको आग से फुलसा देने का अधिक्कारने दिया गया।
9. और मनुष्य बड़ी तपन से फुलस गए, और परमेश्वर के नाम की जिसे इन विपत्तियोंपर अधिक्कारने है, निन्दा की और उस की महिमा करने के लिथे मन न फिराया।।
10. और पांचवें ने अपना कटोरा उस पशु के सिंहासन पर उंडेल दिया और उसके राज्य पर अंधेरा छा गया; और लोग पीड़ा के मारे अपक्की अपक्की जीभ चबाने लगे।
11. और अपक्की पीड़ाओं और फोड़ोंके कारण स्वर्ग के परमेश्वर की निन्दा की; और अपके अपके कामोंसे मन न फिराया।।
12. और छठवें ने अपना कटोरा बड़ी नदी फुरात पर उंडेल दिया और उसका पानी सूख गया कि पूर्व दिशा के राजाओं के लिथे मार्ग तैयार हो जाए।
13. और मैं ने उस अजगर के मुंह से, और उस पशु के मुंह से और उस फूठे भविष्यद्वक्ता के मुंह से तीन अशुद्ध आत्क़ाओं को मेंढ़कोंके रूप में निकलते देखा।
14. थे चिन्ह दिखानेवाली दुष्टात्क़ा हैं, जो सारे संसार के राजाओं के पास निकलकर इसलिथे जाती हैं, कि उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई के लिथे इकट्ठा करें।
15. देख, मैं चोर की नाई आता हूं; धन्य वह है, जो जागता रहता है, और अपके वस्त्र कि चौकसी करता है, कि नंगा न फिरे, और लोग उसका नंगापन न देखें।
16. और उन्होंने उन को उस जगह इकट्ठा किया, जो इब्रानी में हर-मगिदोन कहलाता है।।
17. और सातवें ने अपना कटोरा हवा पर उंडेल दिया, और मंदिर के सिंहासन से यह बड़ा शब्द हुआ, कि ?हो चुका।
18. फिर बिजलियां, और शब्द, और गर्जन हुए, और एक ऐसा बड़ा भुइंडोल हुआ, कि जब से मनुष्य की उत्पत्ति पृय्वी पर हुई, तब से ऐसा बड़ा भुइंडोल कभी न हुआ या।
19. और उस बड़े नगर के तीन टुकड़े हो गए, और जाति जाति के नगर गिर पके, और बड़ा बाबुल का स्क़रण परमेश्वर के यहां हुआ, कि वह अपके क्रोध की जलजलाहट की मदिरा उसे पिलाए।
20. और हर एक टापू अपक्की जगह से टल गया; और पहाड़ोंका पता न लगा।
21. और आकाश से मनुष्योंपर मन मन भर के बड़े ओले गिरे, और इसलिथे कि यह विपत्ति बहुत ही भारी यी, लोगोंने ओलोंकी विपत्ति के कारण परमेश्वर की निन्दा की।।
Chapter 17
1. और जिन सात स्वर्गदूतोंके पास वे सात कटोरे थे, उन में से एक ने आकर मुझ से यह कहा कि इधर आ, मैं तुझे उस बड़ी वेश्या का दण्ड दिखाऊं, जो बहुत से पानियोंपर बैठी है।
2. जिस के साय पृय्वी के राजाओं ने व्यभिचार किया, और पृय्वी के रहनेवाले उसके व्यभिचार की मदिरा से मतवाले हो गए थे।
3. तब वह मुझे आत्क़ा में जंगल को ले गया, और मैं ने किरिमजी रंग के पशु पर जो निन्दा के नामोंसे छिपा हुआ या और जिस के सात सिर और दस सींग थे, एक स्त्री को बैठे हुए देखा।
4. यह स्त्री बैंजनी, और किरिमजी, कपके पहिने यी, और सोने और बहुमोल मणियोंऔर मोतियोंसे सजी हुई यी, और उसके हाथ में एक सोने का कटोरा या जो घृणित वस्तुओं से और उसके व्यभिचार की अशुद्ध वस्तुओं से भरा हुआ या।
5. और उसके माथे पर यह नाम लिखा या, ?भेद बड़ा बाबुल पृय्वी की वेश्याओं और घृणित वस्तुओं की माता।
6. और मैं ने उस स्त्री को पवित्र लोगोंके लोहू और यीशु के गवाहोंके लोहू पीने से मतवाली देखा और उसे देखकर मैं चकित हो गया।
7. उस स्वर्गदूत ने मुझ से कहा; तू क्योंचकित हुआ मैं इस स्त्री, और उस पशु का, जिस पर वह सवार है, और जिस के सात सिर और दस सींग हैं, तुझे भेद बताया हूं।
8. जो पशु तू ने देखा है, यह पहिले तो या, पर अब नहीं है, और अयाह कुंड से निकलकर विनाश में पकेगा, और पृय्वी के रहनेवाले जिन के नाम जगत की उत्पत्ति के समय से जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, इस पशु की यह दशा देखकर, कि पहिले या, और अब नहीं; और फिर आ जाएगा, अचंभा करेंगे।
9. उस बुद्धि के लिथे जिस में ज्ञान है यही अवसर है, वे सातोंसिर सात पहाड़ हैं, जिन पर वह स्त्री बैठी है।
10. और वे सात राजा भी हैं, पांच तो हो चुके हैं, और एक अभी है; और एक अब तक आया नहीं, और जब आएगा, तो कुछ समय तक उसका रहना भी अवश्य है।
11. और जो पशु पहिले या, और अब नहीं, वह आप आठवां है; और उन सातोंमें से उत्पन्न हुआ, और विनाश में पकेगा।
12. और जो दस सींग तू ने देखे वे दस राजा हैं; जिन्होंने अब तक राज्य नहीं पाया; पर उस पशु के साय घड़ी भर के लिथे राजाओं का सा अधिक्कारने पाएंगे।
13. थे सब एक मन होंगे, और वे अपक्की अपक्की सामर्य और अधिक्कारने उस पशु को देंगे।
14. थे मेम्ने से लड़ेंगे, और मेम्ना उन पर जय पाएगा; क्योंकि वह प्रभुओं का प्रभु, और राजाओं का राजा है: और जो बुलाए हुए, और चुने हुए, ओर विश्वासी उसके साय हैं, वे भी जय पाएंगे।
15. फिर उस ने मुझ से कहा, कि जो पानी तू ने देखे, जिन पर वेश्या बैठी है, वे लोग, और भीड़ और जातियां, और भाषा हैं।
16. और जो दस सींग तू ने देखे, वे और पशु उस वेश्या से बैर रखेंगे, और उसे लाचार और नंगी कर देंगे; और उसका मांस खा जाएंगे, और उसे आग में जला देंगे।
17. क्योंकि परमेश्वर उन के मन में यह डालेगा, कि वे उस की मनसा पूरी करें; और जब तक परमेश्वर के वचन पूरे न हो लें, तब तक एक मन होकर अपना अपना राज्य पशु को दे दें।
18. और वह स्त्री, जिस तू ने देखा है वह बड़ा नगर है, जो पृय्वी के राजाओं पर राज्य करता है।।
Chapter 18
1. इस के बाद मैं ने एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा, जिस का बड़ा अधिक्कारने या; और पृय्वी उसके तेज से प्रज्वलित हो गई।
2. उस ने ऊंचे शबद से पुकारकर कहा, कि गिर गया बड़ा बाबुल गिर गया है: और दुष्टात्क़ाओ का निवास, और हर एक अशुद्ध आत्क़ा का अड्डा, और एक अशुद्ध और घृणित पक्की का अड्डा हो गया।
3. क्योंकि उसके व्यभिचार के भयानक मदिरा के कारण सब जातियां गिर गई हैं, और पृय्वी के राजाओं ने उसके साय व्यभिचार किया है; और पृय्वी के व्यापारी उसके सुख-विलास की बहुतायत के कारण धनवान हुए हैं।
4. फिर मैं ने स्वर्ग से किसी और का शब्द सुना, कि हे मेरे लोगों, उस में से निकल आओ; कि तुम उसके पापोंमें भागी न हो, और उस की विपत्तियोंमें से कोई तुम पर आ न पके।
5. क्योंकि उसके पाप स्वर्ग तक पहुंच गए हैं, और उसके अधर्म परमेश्वर को स्क़रण आए हैं।
6. जैसा उस ने तुम्हें दिया है, वैसा ही उस को भर दो, और उसके कामोंके अनुसार उसे दो गुणा बदला दो, जिस कटोरे में उस ने भर दिया या उसी में उसके लिथे दो गुणा भर दो।
7. जितनी उस ने अपक्की बड़ाई की और सुख-विलास किया; उतनी उस को पीड़ा, और शोक दो; क्योंकि वह अपके मन में कहती है, मैं रानी हो बैठी हूं, विधवा नहीं; और शोक में कभी न पडूंगी।
8. इस कारण एक ही दिन में उस पर विपत्तियां आ पकेंगी, अर्यात् मृत्यु, और शोक, और अकाल; और वह आग में भस्क़ कर दी जाएगी, क्योंकि उसका न्यायी प्रभु परमेश्वर शक्तिमान है।
9. और पृय्वी के राजा जिन्होंने उसके साय व्यभिचार, और सुख-विलास किया, जब उसके जलने का धुआं देखेंगे, तो उसके लिथे रोएंगे, और छाती पीटेंगे।
10. और उस की पीड़ा के डर के मारे दूर खड़े होकर कहेंगे, हे बड़े नगर, बाबुल! हे दृढ़ नगर, हाथ! हाथ! घड़ी ही भर में तुझे दण्ड मिल गया है।
11. और पृय्वी के व्यापारी उसके लिथे रोएंगे और कलपेंगे क्योंकि अब कोई उन का माल मोल न लेगा।
12. अर्यात् सोना, चान्दी, रत्न, मोती, और मलमल, और बैंजनी, और रेशमी, और किरिमजी कपके, और हर प्रकार का सुगन्धित काठ, और हाथीदांत की हर प्रकार की वस्तुएं, और बहुमोल काठ, और पीतल, और लोहे, और संगमरमर के सब भांति के पात्र।
13. और दारचीनी, मसाले, धूप, इत्र, लोबान, मदिरा, तेल, मैदा, गेहूं, गाय, बैल, भेड़, बकिरयां, घोड़े, रय, और दास, और मनुष्य के प्राण।
14. अब मेरे मन भावने फल तेरे पास से जाते रहे; और स्वादिष्ट और भड़कीली वस्तुएं तुझ से दूर हुई हैं, और वे फिर कदापि न मिलेंगी।
15. इन वस्तुओं के व्यापारी जो उसके द्वारा धनवान हो गए थे, उस की पीड़ा के डर के मारे दूर खड़े होंगे, और रोते और कलपके हुए कहेंगे।
16. हाथ! हाथ! यह बड़ा नगर जो मलमल, और बैंजनी, और किरिमजी कपके पहिने या, और सोने, और रत्नों, और मोतियोंसे सजा या,
17. घड़ी ही भर में उसका ऐसा भारी धन नाश हो गया: और हर एक मांफी, और जलयात्री, और मल्लाह, और जितने समुद्र से कमाते हैं, सब दूर खड़े हुए।
18. और उसके जलने का धुआं देखते हुए पुकारकर कहेंगे, कौन सा नगर इस बड़े नगर के समान है
19. और अपके अपके सिरोंपर धूल डालेंगे, और रोते हुए और कलपके हुए चिल्ला चिल्लाकर कहेंगे, कि हाथ! हाथ! यह बड़ा नगर जिस की सम्पत्ति के द्वारा समुद्र के सब जहाजवाले धनी हो गए थे घड़ी ही भर में उजड़ गया।
20. हे स्वर्ग, और हे पवित्र लोगों, और प्रेरितों, और भविष्यद्वक्ताओं, उस पर आनन्द करो, क्योंकि परमेश्वर ने न्याय करके उस से तुम्हारा पलटा लिया है।।
21. फिर एक बलवन्त स्वर्गदूत ने बड़ी चक्की के पाअ के समान एक पत्यर उठाया, और यह कहकर समुद्र में फेंक दिया, कि बड़ा नगर बाबुल ऐसे ही बड़े बल से गिराया जाएगा, और फिर कभी उसका पता न मिलेगा।
22. और वीणा बजानेवालों, और बजनियों, और बंसी बजानेवालों, और तुरही फूंकनेवालोंका शब्द फिर कभी तुझ में सुनाई न देगा, और किसी उद्यम का कोई कारीगर भी फिर कभी तुझ में न मिलेगा; और चक्की के चलने का शब्द फिर कभी तुझ में सुनाई न देगा।
23. और दीया का उजाला फिर कभी तुझ में ने चमकेगा और दूल्हे और दुल्हिन का शब्द फिर कभी तुझ में सुनाई न देगा; क्योंकि तेरे व्यापारी पृय्वी के प्रधान थे, और तेरे टोने से सब जातियां भरमाई गई यी।
24. और भविष्यद्वक्ताओं और पवित्र लोगों, और पृय्वी पर सब घात किए हुओं का लोहू उसी में पाया गया।।
Chapter 19
1. इस के बाद मैं ने स्वर्ग में मानो बड़ी भीड़ को ऊंचे शब्द से यह कहते सुना, कि हल्लिलूय्याह उद्धार, और महिमा, और सामर्य हमारे परमेश्वर ही की है।
2. क्योंकि उसके निर्णय सच्चे और ठीक हैं, इसलिथे कि उस ने उस बड़ी वेश्या का जो अपके व्यभिचार से पृय्वी को भ्रष्ट करती यी, न्याय किया, और उस से अपके दासोंके लोहू का पलटा लिया है।
3. फिर दूसरी बार उन्होंने हल्लिलूय्याह कहा: और उसके जलने का धुआं युगानुयुग उठता रहेगा।
4. और चौबीसोंप्राचीनोंऔर चारोंप्राणियोंने गिरकर परमेश्वर को दण्डवत् किया; जो सिंहासन पर बैठा या, और कहा, आमीन, हल्लिलूय्याह।
5. और सिंहासन में से एक शब्द निकला, कि हे हमारे परमेश्वर से सब डरनेवाले दासों, क्या छोटे, क्या बड़े; तुम सब उस की स्तुति करो।
6. फिर मैं ने बड़ी भीड़ का सा, और बहुत जल का सा शब्द, और गर्जनोंका सा बड़ा शब्द सुना, कि हल्लिलूय्याह, इसलिथे कि प्रभु हमारा परमेश्वर, सर्वशक्तिमान राज्य करता है।
7. आओ, हम आनन्दित और मगन हों, और उस की स्तुति करें; क्योंकि मेम्ने का ब्याह आ पहुंचा: और उस की पत्नी ने अपके आप को तैयार कर लिया है।
8. और उस को शुद्ध और चमकदार महीन मलमल पहिनने का अधिक्कारने दिया गया, क्योंकि उस महीन मलमल का अर्य पवित्र लोगोंके धर्म के काम है।
9. और उस ने मुझ से कहा; यह लिख, कि धन्य वे हैं, जो मेम्ने के ब्याह के भोज में बुलाए गए हैं; फिर उस ने मुझ से कहा, थे वचन परमेश्वर के सत्य वचन हैं।
10. और मैं उस को दण्डवत करने के लिथे उसके पांवोंपर गिरा; उस ने मुझ से कहा; देख, ऐसा मत कर, मैं तेरा और तेरे भाइयोंका संगी दास हूं, जो यीशु की गवाही देने पर स्यिर हैं, परमेश्वर ही को दण्डवत् कर; क्योंकि यीशु की गवाही भविष्यद्वाणी की आत्क़ा है।।
11. फिर मैं ने स्वर्ग को खुला हुआ देखा; और देखता हूं कि एक श्वेत घोड़ा है; और उस पर एक सवार है, जो विश्वास योग्य, और सत्य कहलाता है; और वह धर्म के साय न्याय और लड़ाई करता है।
12. उस की आंखे आग की ज्वाला हैं: और उसके सिर पर बहुत से राजमुकुट हैं; और उसका एक नाम लिखा है, जिस उस को छोड़ और कोई नहीं जानता।
13. और वह लोहू से छिड़का हुआ वस्त्र पहिने है: और उसका नाम परमेश्वर का वचन है।
14. और स्वर्ग की सेना श्वेत घोड़ोंपर सवार और श्वेत और शुद्ध मलमल पहिने हुए उसके पीछे पीछे है।
15. और जाति जाति को मारने के लिथे उसके मुंह से एक चोखी तलवार निकलती है, और वह लोहे का राजदण्ड लिए हुए उन पर राज्य करेगा, और वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के भयानक प्रकोप की जलजलाहट की मदिरा के कुंड में दाख रौंदेगा।
16. और उसके वस्त्र और जांघ पर यह नाम लिखा है, राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु।।
17. फिर मैं ने एक स्वर्गदूत को सूर्य पर खड़े हुए देखा, और उस ने बड़े शब्द से पुकारकर आकाश के बीच में से उड़नेवाले सब पझियोंसे कहा, आओ परमेश्वर की बड़ी बियारी के लिथे इकट्ठे हो जाओ।
18. जिस से तुम राजाओं का मांस, ओर सरदारोंका मांस, और शक्तिमान पुरूषोंका मांस, और घाड़ोंका, और उन के सवारोंका मांस, और क्या स्वतंत्र, क्या दास, क्या छोटे, क्या बड़े, सब लोगोंका मांस खाओ।।
19. फिर मैं ने उस पशु और पृय्वी के राजाओं और उन की सेनाओं को उस घोड़े के सवार, और उस की सेना से लड़ने के लिथे इकट्ठे देखा।
20. और वह पशु और उसके साय वह फूठा भविष्यद्वक्ता पकड़ा गया, जिस ने उसके साम्हने ऐसे चिन्ह दिखाए थे, जिन के द्वारा उस ने उन को भरमाया, जिन्हो ने उस पशु की छाप ली यी, और जो उस की मूरत की पूजा करते थे, थे दोनोंजीते जी उस आग की फील में जो गन्धक से जलती है, डाले गए।
21. और शेष लोग उस घोड़े के सवार की तलवार से जो उसके मुंह से निकलती यी, मार डाले गए; और सब पक्की उन के मांस से तृप्त हो गए।।
Chapter 20
1. फिर मै ने एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा; जिस के हाथ में अयाह कुंड की कुंजी, और एक बड़ी जंजीर यी।
2. और उस ने उस अजगर, अर्यात् पुराने सांप को, जो इब्लीस और शैतान है; पकड़ के हजार वर्ष के लिथे बान्ध दिया।
3. और उसे अयाह कुंड में डालकर बन्द कर दिया और उस पर मुहर कर दी, कि वह हजार वर्ष के पूरे होने तक जाति जाति के लोगोंको फिर न भरमाए; इस के बाद अवश्य है, कि योड़ी देर के लिथे फिर खोला जाए।।
4. फिर मैं ने सिंहासन देखे, और उन पर लोग बैठ गए, और उन को न्याय करने का अधिक्कारने दिया गया; और उन की आत्क़ाओं को भी देखा, जिन के सिर यीशु की गवाही देने और परमेश्वर के वचन के कारण काटे गए थे; और जिन्होंने न उस पशु की, और न उस की मूरत की पूजा की यी, और न उस की छाप अपके माथे और हाथोंपर ली यी; वे जीवित होकर मसीह के साय हजार वर्ष तक राज्य करते रहे।
5. और जब तक थे हजार वर्ष पूरे न हुए तक तक शेष मरे हुए न जी उठे; यह तो पहिला मृत्कोत्यान है।
6. धन्य और पवित्र वह है, जो इस पहिले पुनरूत्यान का भागी है, ऐसोंपर दूसरी मृत्यु का कुछ भी अधिक्कारने नहीं, पर वे परमेश्वर और मसीह के याजक होंगे, और उसके साय हजार वर्ष तक राज्य करेंगे।।
7. और जब हजार वर्ष पूरे हो चुकेंगे; तो शैतान कैद से छोड़ दिया जाएगा।
8. और उन जातियोंको जो पृय्वी के चारोंओर होंगी, अर्यात् याजूज और माजूज को जिन की गिनती समुद्र की बालू के बराबर होगी, भरमाकर लड़ाई के लिथे इकट्ठे करने को निकलेगा।
9. और वे सारी पृय्वी पर फैल जाएंगी; और पवित्र लोगोंकी छावनी और प्रिय नगर को घेर लेंगी: और आग स्वर्ग से उतरकर उन्हें भस्क़ करेगी।
10. और उन का भरमानेवाला शैतान आग और गन्धक की उस फाील में, जिस में वह पशु और फूठा भविष्यद्वक्ता भी होगा, डाल दिया जाएगा, और वे रात दिन युगानुयुग पीड़ में तड़पके रहेंगे।।
11. फिर मैं ने एक बड़ा श्वेत सिंहासन और उस को जो उस पर बैठा हुआ है, देखा, जिस के साम्हने से पृय्वी और आकाश भाग गए, और उन के लिथे जगह न मिली।
12. फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के साम्हने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें खोली गई; और फिर एक और पुस्तक खोली गईं; और फिर एक और पुस्तक खोली गई, अर्यात् जीवन की पुस्तक; और जैसे उन पुस्तकोंमें लिखा हुआ या, उन के कामोंके अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया।
13. और समुद्र ने उन मरे हुओं को जो उस में थे दे दिया, और मृत्यु और अधोलोक ने उन मरे हुओं को जो उन में थे दे दिया; और उन में से हर एक के कामोंके अनुसार उन का न्याय किया गया।
14. और मृत्यु और अधोलोक भी आग की फील में डाले गए; यह आग की फील में डाले गए; यह आग की फील तो दूसरी मृत्यु है।
15. और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की फील में डाला गया।।
Chapter 21
1. फिर मैं ने नथे आकाश और नयी पृय्वी को देखा, क्योंकि पहिला आकाश और पहिली पृय्वी जाती रही यी, और समुद्र भी न रहा।
2. फिर मैं ने पवित्र नगर नथे यरूशलेम को स्वर्ग पर से परमेश्वर के पास से उतरते देखा, और वह उस दुल्हिन के समान यी, जो अपके पति के लिथे सिंगार किए हो।
3. फिर मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊंचे शब्द से यह कहते सुना, कि देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्योंके बीच में है; वह उन के साय डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उन के साय रहेगा; और उन का परमेश्वर होगा।
4. और वह उन की आंखोंसे सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।
5. और जो सिंहासन पर बैठा या, उस ने कहा, कि देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं: फिर उस ने कहा, कि लिख ले, क्योंकि थे वचन विश्वास के योग्य और सत्य हैं।
6. फिर उस ने मुझ से कहा, थे बातें पूरी हो गई हैं, मैं अलफा और ओमिगा, आदि और अन्त हूं: मैं प्यासे को जीवन के जल के सोते में से सेंतमेंत पिलाऊंगा।
7. जो जय पाए, वही उन वस्तुओं का वारिस होगा; और मैं उसका परमेश्वर होऊंगा, और वह मेरा पुत्र होगा।
8. पर डरपोकों, और अविश्वासियों, और घिनौनों, और हत्यारों, और व्यभिचारियों, और टोन्हों, और मूतिर्पूजकों, और सब फूठोंका भाग उस फील में मिलेगा, जो आग और गन्धक से जलती रहती है: यह दूसरी मृत्यु है।।
9. फिर जिन सात स्वर्गदूतोंके पास सात पिछली विपत्तियोंसे भरे हुए सात कटोरे थे, उन में से एक मेरे पास आया, और मेरे साय बातें करके कहा; इधर आ: मैं तुझे दुल्हिन अर्यात् मेम्ने की पत्नी दिखाऊंगा।
10. और वह मुझे आत्क़ा में, एक बड़े और ऊंचे पहाड़ पर ले गया, और पवित्र नगर यरूशलेम को स्वर्ग पर से परमेश्वर के पास से उतरते दिखाया।
11. परमेश्वर की महिमा उस में यी, ओर उस की ज्योति बहुत की बहुमोल पत्यर, अर्यात् बिल्लौर के समान यशब की नाई स्वच्छ यी।
12. और उस की शहरपनाह बड़ी ऊंची यी, और उसके बारह फाटक और फाटकोंपर बारह स्वर्गदूत थे; और उन पर इस्त्राएलियोंके बारह गोत्रोंके नाम लिखे थे।
13. पूर्व की ओर तीन फाटक, उत्तर की ओर तीन फाटक, दक्खिन की ओर तीन फाटक, और पश्चिम की ओर तीन फाटक थे।
14. और नगर की शहरपनाह की बारह नेवें यीं, और उन पर मेम्ने के बारह प्रेरितोंके बारह नाम लिखे थे।
15. और जो मेरे साय बातें कर रहा या, उसके पास नगर, और उसके फाटकोंऔर उस की शहरपनाह को नापके के लिथे एक सोने का गज या।
16. और वह नगर चौकोर बसा हुआ या और उस की लम्बाई चौड़ाई के बराबर यी, और उस ने उस गज से नगर को नापा, तो साढ़े सात सौ कोस का निकला: उस की लम्बाई, और चौड़ाई, और ऊंचाई बराबर यी।
17. और उस ने उस की शहरपनाह को मनुष्य के, अर्यात् स्वर्गदूत के नाम से नापा, तो एक सौ चौआलीस हाथ निकली।
18. और उस की शहरपनाह की जुड़ाई यशब की यी, और नगर ऐसे चोखे सोने का या, जा स्वच्छ कांच के समान हो।
19. और उस नगर की नेवें हर प्रकार के बहुमोल पत्यरोंसे संवारी हुई यी, पहिली नेव यशब की यी, दूसरी नीलमणि की, तीसरी लालड़ी की, चौयी मरकत की।
20. पांचक्की गोमेदक की, छठवीं माणिक्य की, सातवीं पीतमणि की, आठवीं पेरोज की, नवीं पुखराज की, दसवीं लहसनिए की, ग्यारहवीं धूम्रकान्त की, बारहवीं याकूत की।
21. और बारहोंफाटक, बारह मोतियोंके थे; एक एक फाटक, एक एक मोती का बना या; और नगर की सड़क स्वच्छ कांच के समान चोखे सोने की यी।
22. और मैं ने उस में कोई मंदिर न देखा, क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, और मेम्ना उसका मंदिर हैं।
23. और उस नगर में सूर्य और चान्द के उजाले का प्रयोजन नहीं, क्योंकि परमेश्वर के तेज से उस में उजाला हो रहा है, और मेम्ना उसका दीपक है।
24. और जाति जाति के लोग उस की ज्योति में चले फिरेंगे, और पृय्वी के राजा अपके अपके तेज का सामान उस में लाएंगे।
25. और उसके फाटक दिन को कभी बन्द न होंगे, और रात वहां न होगी।
26. और लोग जाति जाति के तेज और विभव का सामान उस में लाएंगे।
27. और उस में कोई अपवित्र वस्तु या घृणित काम करनेवाला, या फूठ का गढ़नेवाला, किसी रीति से प्रवेश न करेगा; पर केवल वे लोग जिन के नाम मेम्ने के जीवन की पुस्तक में लिखे हैं।।
Chapter 22
1. फिर उस ने मुझे बिल्लौर की सी फलकती हुई, जीवन के जल की एक नदी दिखाई, जो परमेश्वर और मेंम्ने के सिंहासन से निकलकर उस नगर की सड़क के बीचोंबीच बहती यी।
2. और नदी के इस पार; और उस पार, जीवन का पेड़ या: उस में बारह प्रकार के फल लगते थे, और वह हर महीने फलता या; और उस पेड़ के पत्तोंसे जाति जाति के लोग चंगे होते थे।
3. और फिर स्राप न होगा और परमेश्वर और मेम्ने का सिंहासन उस नगर में होगा, और उसके दास उस की सेवा करेंगे।
4. और उसका मुंह देखेंगे, और उसका नाम उन के मायोंपर लिखा हुआ होगा।
5. और फिर रात न होगी, और उन्हें दीपक और सूर्य के उजियाले का प्रयोजन न होगा, क्योंकि प्रभु परमेश्वर उन्हें उजियाला देगा: और वे युगानुयुग राज्य करेंगे।।
6. फिर उस ने मुझ से कहा, थे बातें विश्वास के योग्य, और सत्य हैं, और प्रभु ने जो भविष्यद्वक्ताओं की आत्क़ाओं का परमेश्वर है, अपके स्वर्गदूत को इसलिथे भेजा, कि अपके दासोंको वे बातें जिन का शीघ्र पूरा होना अवश्य है दिखाए।
7. देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूं; धन्य है वह, जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें मानता है।।
8. मैं वही यूहन्ना हूं, जो थे बातें सुनता, और देखता या; और जब मैं ने सुना, और देखा, तो जो स्वर्गदूत मुझे थे बातें दिखाता या, मैं उसके पांवोंपर दण्डवत करने के लिथे गिर पड़ा।
9. और उस ने मुझ से कहा, देख, ऐसा मत कर; क्योंकि मैं तेरा और तेरे भाई भविष्यद्वक्ताओं और इस पुस्तक की बातोंके माननेवालोंका संगी दास हूं; परमेश्वर ही को दण्डवत कर।।
10. फिर उस ने मुझ से कहा, इस पुस्तक की भविष्यद्ववाणी की बातोंको बन्द मत कर; क्योंकि समय निकट है।।
11. जो अन्याय करता है, वह अन्याय ही करता रहे; और जो मलिन है, वह मलिन बना रहे; और जो धर्मी है, वह धर्मी बना रहे; और जो पवित्र है, वह पवित्र बना रहे।
12. देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूं; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिथे प्रतिफल मेरे पास है।
13. मैं अलफा और ओमिगा, पहिला और पिछला, आदि और अन्त हूं।
14. धन्य वे हैं, जो अपके वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के पेड़ के पास आने का अधिक्कारने मिलेगा, और वे फाटकोंसे होकर नगर में प्रवेश करेंगे।
15. पर कुत्ते, और टोन्हें, और व्यभिचारी, और हत्यारे और मूतिर्पूजक, और हर एक फूठ का चाहनेवाला, और गढ़नेवाला बाहर रहेगा।।
16. मुझ यीशु ने अपके स्वर्गदूत को इसलिथे भेजा, कि तुम्हारे आगे कलीसियाओं के विषय में इन बातोंकी गवाही दे: मैं दाऊद का मूल, और वंश, और भोर का चमकता हुआ तारा हूं।।
17. और आत्क़ा, और दुल्हिन दोनोंकहती हैं, आ; और सुननेवाला भी कहे, कि आ; और जो प्यासा हो, वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।।
18. मैं हर एक को जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें सुनता है, गवाही देता हूं, कि यदि कोई मनुष्य इन बातोंमें कुछ बढ़ाए, तो परमेश्वर उन विपत्तियोंको जो इस पुस्तक में लिखी हैं, उस पर बढ़ाएगा।
19. और यदि कोई इस भविष्यद्वाणी की पुस्तक की बातोंमें से कुछ निकाल डाले, तो परमेश्वर उस जीवन के पेड़ और पवित्र नगर में से जिस की चर्चा इस पुस्तक में है, उसका भाग निकाल देगा।।
20. जो इन बातोंकी गवाही देता है, वह यह कहता है, हां शीघ्र आनेवाला हूं। आमीन। हे प्रभु यीशु आ।।
21. प्रभु यीशु का अनुग्रह पवित्र लोगोंके साय रहे। आमीन।।
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