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1 कुरिन्थियों (1 Corinthians)
Chapter 1
1. पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित होने के लिथे बुलाया गया और भाई सोस्यिनेस की ओर से।
2. परमेश्वर की उस कलीसिया के नामि जो कुरिन्युस में है, अर्यात् उन के नाम जो मसीह यीशु में पवित्र किए गए, और पवित्र होने के लिथे बुलाए गए हैं; और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपके प्रभु यीशु मसीह के नाम की प्रार्यना करते हैं।
3. हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।।
4. मैं तुम्हारे विषय में अपके परमेश्वर का धन्यवाद सदा करता हूं, इसलिथे कि परमेश्वर का यह अनुग्रह तुम पर मसीह यीशु में हुआ।
5. कि उस में होकर तुम हर बात में अर्यात् सारे वचन और सारे ज्ञान में धनी किए गए।
6. कि मसीह की गवाही तुम में पक्की निकली।
7. यहां तक कि किसी बरदान में तुम्हें घटी नहीं, और तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने की बाट जोहते रहते हो।
8. वह तुम्हें अन्त तक दृढ़ भी करेगा, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के दिन में निर्दोष ठहरो।
9. परमेश्वर सच्चा है; जिस ने तुम को अपके पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह की संगति में बुलाया है।।
10. हे भाइयो, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा बिनती करता हूं, कि तुम सब एक ही बात कहो; और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो।
11. क्योंकि हे मेरे भाइयों, खलोए के घराने के लोगोंने मुझे तुम्हारे विषय में बताया है, कि तुम में फगड़े हो रहे हैं।
12. मेरा कहना यह है, कि तुम में से कोई तो अपके आप को पौलुस का, कोई अपुल्लोस का, कोई कैफा का, कोई मसीह का कहता है।
13. क्या मसीह बट गया क्या पौलुस तुम्हारे लिथे क्रूस पर चढ़ाया गया या तुम्हें पौलुस के नाम पर बपतिस्क़ा मिला
14. मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं, कि क्रिस्पुस और गयुस को छोड़, मैं ने तुम में से किसी को भी बपतिस्क़ा नहीं दिया।
15. कहीं ऐसा नह हो, कि कोई कहे, कि तुम्हें मेरे नाम पर बपतिस्क़ा मिला।
16. और मैं ने स्तिफनास के घराने को भी बपतिस्क़ा दिया; इन को छोड़, मैं नहीं जानता कि मैं ने और किसी को बपतिस्क़ा दिया।
17. क्योंकि मसीह ने मुझे बपतिस्क़ा देने को नहीं, बरन सुसमाचार सुनाने को भेजा है, और यह भी शब्दोंके ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस व्यर्य ठहरे।
18. क्योंकि क्रूस की कया नाश होनेवालोंके निकट मूर्खता है, परन्तु हम उद्धार पानेवालोंके निकट परमेश्वर की सामर्य है।
19. क्योकि लिखा है, कि मैं ज्ञानवानोंके ज्ञान को नाश करूंगा, और समझदारोंकी समझ को तुच्छ कर दूंगा।
20. कहां रहा ज्ञानवान कहां रहा शास्त्री कहां इस संसार का विवादी क्या परमेश्वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया
21. क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा, कि इस प्रकार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करनेवालोंको उद्धार दे।
22. यहूदी तो चिन्ह चाहते हैं, और यूनानी ज्ञान की खोज में हैं।
23. परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियोंके निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियोंके निकट मूर्खता है।
24. परन्तु जो बुलाए हुए हैं क्या यहूदी, क्या यूनानी, उन के निकट मसीह परमेश्वर की सामर्य, और परमेश्वर का ज्ञान है।
25. क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्योंके ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्योंके बल से बहुत बलवान है।।
26. हे भाइयो, अपके बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्यी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए।
27. परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खोंको चुन लिया है, कि ज्ञानवालोंको लज्ज़ित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलोंको चुन लिया है, कि बलवानोंको लज्ज़ित करे।
28. और परमेश्वर ने जगत के नीचोंऔर तुच्छोंको, बरन जो हैं भी नहीं उन को भी चुन लिया, कि उन्हें जो हैं, व्यर्य ठहराए।
29. ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के साम्हने घमण्ड न करने पाए।
30. परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिथे ज्ञान ठहरा अर्यात् धर्म, और पवित्रता, और छुटकारा।
31. ताकि जैसा लिखा है, वैसा ही हो, कि जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।।
Chapter 2
1. और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साय नहीं आया।
2. क्योंकि मैं ने यह ठान लिया या, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, बरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं।
3. और मैं निर्बलता और भय के साय, और बहुत यरयराता हुआ तुम्हारे साय रहा।
4. ओर मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली बातें नहीं; परन्तु आत्क़ा और सामर्य का प्रमाण या।
5. इसलिथे कि तुम्हारा विश्वास मनुष्योंके ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्य पर निर्भर हो।।
6. फिर भी सिद्ध लोगोंमें हम ज्ञान सुनाते हैं: परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होनेवाले हाकिमोंका ज्ञान नहीं।
7. परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिथे ठहराया।
8. जिसे इस संसार के हाकिमोंमें से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते।
9. परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपके प्रेम रखनेवालोंके लिथे तैयार की हैं।
10. परन्तु परमेश्वर ने उन को अपके आत्क़ा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्क़ा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्क़ा सब बातें, बरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।
11. मनुष्योंमें से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता, केवल मनुष्य की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेवर का आत्क़ा।
12. परन्तु हम ने संसार की आत्क़ा नहीं, परन्तु वह आत्क़ा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातोंको जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।
13. जिन को हम मनुष्योंके ज्ञान की सिखाई हुई बातोंमें नहीं, परन्तु आत्क़ा की सिखाई हुई बातोंमें, आत्क़िक बातें आत्क़िक बातोंसे मिला मिलाकर सुनाते हैं।
14. परनतु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्क़ा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उस की दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उन की जांच आत्क़िक रीति से होती है।
15. आत्क़िक जन सब कुछ जांचता है, परन्तु वह आप किसी से जांचा नहीं जाता।
16. क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखलाए परन्तु हम में मसीह का मन है।।
Chapter 3
1. हे भाइयों, मैं तुम से इस रीति से बातें न कर सका, जैसे आत्क़िक लोगोंसे; परन्तु जैसे शारीरिक लोगोंसे, और उन से जो मसीह में बालक हैं।
2. में ने तुम्हें दूध पिलाया, अन्न न खिलाया; क्योंकि तुम उस को न खा सकते थे; बारन अब तक भी नहीं खा सकते हो।
3. क्योंकि अब तक शारीरिक हो, इसलिथे, कि जब तुम में डाह और फगड़ा है, तो क्या तुम शारीरिक नहीं और मनुष्य की रीति पर नहीं चलते
4. इसलिथे कि जब एक कहता है, कि मैं पौलुस का हूं, और दूसरा कि मैं अपुल्लोस का हूं, तो क्या तुम मनुष्य नहीं
5. अपुल्लोस क्या है और पौलुस क्या केवल सेवक, जिन के द्वारा तुम ने विश्वास किया, जैसा हर एक को प्रभु ने दिया।
6. मैं ने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्वर ने बढ़ाया।
7. इसलिथे न तो लगानेवाला कुछ है, और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्वर जो बढ़ानेवाला है।
8. लगानेवाला और सींचनेवाला दानोंएक हैं; परन्तु हर एक व्यक्ति अपके ही परिश्र्म के अनुसार अपक्की ही मजदूरी पाएगा।
9. क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्वर की खेती और परमेश्वर की रचना हो।
10. परमेश्वर के उस अनुग्रह के अनुसार, जो मुझै दिया गया, मैं ने बुद्धिमान राजमिस्री की नाईं नेव डाली, और दूसरा उस पर रद्दा रखता है; परन्तु हर एक मनुष्य चौकस रहे, कि वह उस पर कैसा रद्दा रखता है।
11. क्योंकि उस नेव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है कोई दूसरी नेव नहीं डाल सकता।
12. और यदि कोई इस नेव पर सोना या चान्दी या बहुमोल पत्यर या काठ या घास या फूस का रद्दा रखता है।
13. तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिथे कि आग के साय प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है
14. जिस का काम उस पर बना हुआ स्यिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा।
15. और यदि किसी का काम जल जाएगा, तो हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा परन्तु जलते जलते।।
16. क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्क़ा तुम में वास करता है
17. यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नाश करेगा तो परमेश्वर उसे नाश करेगा; क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है, और वह तुम हो।
18. कोई अपन आप को धोखा न दे: यदि तुम में से कोई इस संसार में अपके आप को ज्ञानी समझे, तो मूर्ख बने; कि ज्ञानी हो जाए।
19. क्योंकि इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है, जैसा लिखा है; कि वह ज्ञानियोंको उन की चतुराई में फंसा देता है।
20. और फिर प्रभु ज्ञानियोंकी चिन्ताओं को जानता है, कि व्यर्य हैं।
21. इसलिथे मनुष्योंपर कोई घमण्ड न करे, क्योंकि सब कुछ तुम्हारा है।
22. क्या पौलुस, क्या अपुल्लोस, क्या कैफा, क्या जगत, क्या जीवन, क्या मरण, क्या वर्तमान, क्या भविष्य, सब कुछ तुम्हारा है,
23. और तुम मसीह के हो, और मसीह परमेश्वर का है।।
Chapter 4
1. मनुष्य हमें मसीह के सेवक और परमेश्वर के भेदोंके भण्डारी समझे।
2. फिर यहां भण्डारी में यह बात देखी जाती है, कि विश्वास योग्य निकले।
3. परन्तु मेरी दृष्टि में यह बहुत छोटी बात है, कि तुम या मनुष्योंका कोई न्यायी मुझे परखे, बरन मैं आप ही अपके आप को नहीं परखता।
4. क्योंकि मेरा मन मुझे किसी बात में दोषी नहीं ठहराता, परन्तु इस से मैं निर्दोष नहीं ठहरता, क्योंकि मेरा परखने वाला प्रभु है।
5. सो जब तक प्रभु न आए, समय से पहिले किसी बात का न्याय न करो: वही तो अन्धकार की छिपी बातें ज्योति में दिखाएगा, और मनोंकी मतियोंको प्रगट करेगा, तब परमेश्वर की ओर से हर एक की प्रशंसा होगी।।
6. हे भाइयों, मैं ने इन बातोंमें तुम्हारे लिथे अपक्की और अपुल्लोस की चर्चा, दृष्टान्त की रीति पर की है, इसलिथे कि तुम हमारे द्वारा यह सीखो, कि लिखे हुए से आगे न बढ़ना, और एक के पझ में और दूसरे के विरोध में गर्व न करना।
7. क्योंकि तुझ में और दूसरे में कौन भेद करता है और तेरे पास क्या है जो तू ने (दूसरे से) नहीं पाया: और जब कि तु ने (दूसरे से) पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्योंकरता है, कि मानोंनही पाया
8. तुम तो तृप्त हो चुके; तुम धनी हो चुके, तुम ने हमारे बिना राज्य किया; परन्तु भला होता कि तुम राज्य करते कि हम भी तुम्हारे साय राज्य करते।
9. मेरी समझ में परमेश्वर ने हम प्ररितोंको सब के बाद उन लोगोंकी नाई ठहराया है, जिन की मृत्यु की आज्ञा हो चुकी हो; क्योंकि हम जगत और स्वर्गदूतोंऔर मनुष्योंके लिथे तमाशा ठहरे हैं।
10. हम मसीह के लिथे मूर्ख है; परन्तु तुम मसीह में बुद्धिमान हो: हम निर्बल हैं परन्तु तुम बलवान हो: तुम आदर पाते हो, परन्तु हम निरादर होते हैं।
11. हम इस घड़ी तक भूखे-प्यासे और नंगे हैं, और घूसे खाते हैं और मारे मारे फिरते हैं; और अपके ही हाथोंके काम करके परिश्र्म करते हैं।
12. लोग बुरा कहते हैं, हम आशीष देते हैं; वे सताते हैं, हम सहते हैं।
13. वे बदना करते हैं, हम बिनती करते हैं: हम आज तक जगत के कूड़े और सब वस्तुओं की खुरचन की नाई ठहरे हैं।।
14. मैं तुम्हें लज्ज़ित करते के लिथे थे बातें नहीं लिखता, परन्तु अपके प्रिय बालक जानकर उन्हें चितात हूं।
15. क्योंकि यदि मसीह में तुम्हारे सिखानेवाले दस हजार भी होते, तौभी तुम्हारे पिता बहुत से नहीं, इसलिथे कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा मैं तुम्हारा पिता हुआ।
16. सो मैं तुम से बिनती करता हूं, कि मेरी सी चाल चलो।
17. इसलिथे मैं ने तीमुयियुस को जो प्रभु में मेरा प्रिय और विश्वासयोग्य पुत्र है, तुम्हारे पास भेजा है, और वह तुम्हें मसीह में मेरा चरित्र स्क़रण कराएगा, जैसे कि मैं हर जगह हर एक कलीसिया में उपकेश करता हूं।
18. कितने तो उसे फूल गए हैं, मानोंमैं तुम्हारे पास आने ही का नहीं।
19. परन्तु प्रभु चाहे तो मैं तुम्हारे पास शीघ्र ही आऊंगा, और उन फूले हुओं की बातोंको नहीं, परन्तु उन की सामर्य को जान लूंगा।
20. क्योंकि परमश्ेवर का राज्य बातोंमें नहीं, परन्तु सामर्य में है।
21. तुम क्या चाहते हो क्या मैं छड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊं या प्रेम और नम्रता की आत्क़ा के साय
Chapter 5
1. यहां तक सुनने में आता है, कि तुम में व्यभिचार होता है, बरन ऐसा व्यभिचार जो अन्यजातियोंमें भी नहीं होता, कि एक मनुष्य अपके पिता की पत्नी को रखता है।
2. और तुम शोक तो नहीं करते, जिस से ऐसा काम करनेवाला तुम्हारे बीच में से निकाला जाता, परन्तु घमण्ड करते हो।
3. मैं तो शरीर के भाव से दूर या, परन्तु आत्क़ा के भाव से तुम्हारे साय होकर, मानो उपस्यिति ही दशा में ऐसे काम करनेवाले के विषय में यह आज्ञा दे चुका हूं।
4. कि जब तुम, और मेरी आत्क़ा, हमारे प्रभु यीशु की सामर्य के साय इकट्ठे हो, तो ऐसा मनुष्य, हमारे प्रभु यीशु के नाम से।
5. शरीर के विनाश के लिथे शैतान को सौंपा जाए, ताकि उस की आत्क़ा प्रभु यीशु के दिन में उद्धार पाए।
6. तुम्हारा घमण्ड करना अच्छा नहीं; क्या तुम नहीं जानते, कि योड़ा सा खमीर पूरे गूंधे हुए आटे को खमीर कर देता है।
7. पुराना खमीर निकाल कर, अपके आप को शुद्ध करो: कि नया गूंधा हुआ आटा बन जाओ; ताकि तुम अखमीरी हो, क्योंकि हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है।
8. सो आओ हम उत्सव में आनन्द मनावें, न तो पुराने खमीर से और न बुराई और दुष्टता के खमीर से, परन्तु सीधाई और सच्चाई की अखमीरी रोटी से।।
9. मैं ने अपक्की पत्री में तुम्हें लिखा है, कि व्यभिचारियोंकी संगति न करना।
10. यह नहीं, कि तुम बिलकुल इस जगत के व्यभिचारियों, या लोभियों, या अन्धेर करनेवालों, या मूत्तिपूजकोंकी संगति न करो; क्योंकि इस दशा में तो तुम्हें जगत में से निकल जाना ही पड़ता।
11. मेरा कहना यह है; कि यदि कोई भाई कहलाकर, व्यभिचारी, या लोभी, या मूत्तिपूजक, या गाली देनेवाला, या पिय?ड़, या अन्धेर करनेवाला हो, तो उस की संगति मत करना; बरन ऐसे मनुष्य के साय खाना भी न खाना।
12. क्योंकि मुझे बाहरवालोंका न्याय करने से क्या काम क्या तुम भीतरवालोंका न्याय नहीं करते
13. परन्तु बाहरवालोंका न्याय परमेश्वर करता है: इसलिथे उस कुकर्मी को अपके बीच में से निकाल दो।।
Chapter 6
1. क्या तुम में से किसी को यह हियाव है, कि जब दूसरे के साय फगड़ा हो, तो फैसले के लिथे अधिमिर्योंके पास जाए; और पवित्र लागोंके पास न जाए
2. क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्र लोग जगत का न्याय करेंगे सो जब तुम्हें जगत का न्याय करना हे, तो क्या तुम छोटे से छोटे फगड़ोंका भी निर्णय करने के योग्य नहीं
3. क्या तुम नहीं जानते, कि हम स्वर्गदूतोंका न्याय करेंगे तो क्या सांसारिक बातोंका निर्णय करना हो, तो क्या उन्हीं को बैठाओगे जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं
4. सो यदि तुम्हें सांसारिक बातोंका निर्णय करना हो, तो क्या उन्हीं को बैठाओगे जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं
5. मैं तुम्हें लज्ज़ित करने के लिथे यह कहता हूं: क्या सचमुच तुम में से एक भी बुद्धिमान नहीं मिलता, जो अपके भाइयोंका निर्णय कर सके
6. बरन भाई भाई में मुकद्दमा होता है, और वह भी अविश्वासियोंके साम्हने।
7. परन्तु सचमुच तुम में बड़ा दोष तो यह है, कि आपस में मुकद्दमा करते हो: बरन अन्याय क्योंनहीं सहते अपक्की हानि क्योंनहीं सहते
8. बरन अन्याय करते और हानि पहुंचाते हो, और वह भी भाइयोंको।
9. क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूत्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरूषगामी।
10. न चोर, न लोभी, न पिय?ड़, न गाली देनेवाले, न अन्धेर करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे।
11. और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्क़ा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।।
12. सब वस्तुएं मेरे लिथे उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुएं लाभ की नहीं, सब वस्तुएं मेरे लिथे उचित हैं, परन्तु मैं किसी बात के आधीन न हूंगा।
13. भोजन पेट के लिथे, और पेट भोजन के लिथे है, परन्तु परमेश्वर इस को और उस को दोनोंको नाश करेगा, परन्तु देह व्यभिचार के लिथे नहीं, बरन प्रभु के लिथे; और प्रभु देह के लिथे है।
14. और परमेश्वर ने अपक्की सामर्य से प्रभु को जिलाया, और हमें भी जिलाएगा।
15. क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह मसीह के अंग हैं सो क्या मैं मसीह के अंग लेकर उन्हें वेश्या के अंग बनाऊं कदापि नहीं।
16. क्या तुम नहीं जानते, कि जो कोई वेश्या से संगति करता है, वह उसके साय एक तन हो जाता है क्योंकि वह कहता है, कि वे दोनोंएक तन होंगे।
17. और जो प्रभु की संगति में रहता है, वह उसके साय एक आत्क़ा हो जाता है।
18. व्यभिचार से बचे रहो: जितने और पाप मनुष्य करता है, वे देह के बाहर हैं, परन्तु व्यभिचार करनेवाला अपक्की ही देह के विरूद्ध पाप करता है।
19. क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्रात्क़ा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपके नहीं हो
20. कयोंकि दाम देकर मोल लिथे गए हो, इसलिथे अपक्की देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो।।
Chapter 7
1. उन बातोंके विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरूष स्त्री को न छुए।
2. परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरूष की पत्नी, और हर एक सत्री का पति हो।
3. पति अपक्की पत्नी का ह? पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपके पति का।
4. पत्नी को अपक्की देह पर अधिक्कारने नहीं पर उसके पति का अधिक्कारने है; वैसे ही पति को भी अपक्की देह पर अधिक्कारने नहीं, परन्तु पत्नी को।
5. तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्यना के लिथे अवकाश मिले, और फिर एक साय रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे।
6. परन्तु मैं जो यह कहता हूं वह अनुमति है न कि आज्ञा।
7. मैं यह चाहता हूं, कि जैसा मैं हूं, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष विशेष बरदान मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का।।
8. परन्तु मैं अविवाहितोंऔर विधवाओं के विषय में कहता हूं, कि उन के लिथे ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूं।
9. परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामतुर रहने से भला है।
10. जिन का ब्याह हो गया है, उन को मैं नहीं, बरन प्रभु आज्ञा देता है, कि पत्नी अपके पति से अलग न हो।
11. (और यदि अलग भी हो जाए, तो बिन दूसरा ब्याह किए रहे; या अपके पति से फिर मेल कर ले) और न पति अपक्की पत्नी को छोड़े।
12. दूसरें से प्रभु नहीं, परन्तु मैं ही कहता हूं, यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो, और उसके साय रहते से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े।
13. और जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साय रहने से प्रसन्न हो; वह पति को न छोड़े।
14. क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्नी के कारण पवित्र ठहरता है, और ऐसी पत्नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे लड़केबालें अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं।
15. परन्तु जो पुरूष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो, तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहिन बन्धन में नहीं; परन्तु परमेश्वर ने तो हमें मेल मिलाप के लिथे बुलाया है।
16. क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है, कि तुम अपके पति का उद्धार करा ले और हे पुरूष, तू क्या जानता है कि तू अपक्की पत्नी का उद्धार करा ले
17. पर जैसा प्रभु ने हर एक को बांटा है, और परमेश्वर ने हर एक को बुलाया है; वैसा ही वह चले: और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराताह हूं।
18. जो खतना किया हुअ बुलाया गया हो, वह खतनारिहत न बने: जो खतनारिहत बुलाया गया हो, वह खतना न कराए।
19. न खतना कुछ है, और न खतनारिहत परन्तु परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है।
20. हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे।
21. यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर।
22. क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है: और वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है।
23. तुम दाम देकर मोल लिथे गए हो, मनुष्योंके दास न बनो।
24. हे भाइयो, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्वर के साय रहे।।
25. कुंवारियोंके विषय में प्रभु की कोई आज्ञा मुझे नहीं मिली, परन्तु विश्वासयोग्य होने के लिथे जैसी दया प्रभु ने मुझ पर की है, उसी के अनुसार सम्मति देता हूं।
26. सो मेरी समझ में यह अच्छा है, कि आजकल क्लेश के कारण मनुष्य जैसा है, वैसा ही रहे।
27. यदि तेरे पत्नी है, तो उस से अलग होने का यत्न न कर: और यदि तेरे पत्नी नहीं, तो पत्नी की खोज न कर:
28. परन्तु यदि तू ब्याह भी करे, तो पाप नहीं; और यदि कुंवारी ब्याही जाए तो कोई पाप नहीं; परन्तु ऐसोंको शारीरिक दुख होगा, और मैं बचाना चाहता हूं।
29. हे भाइयो, मैं यह कहता हूं, कि समय कम किया गया है, इसलिथे चाहिए कि जिन के पत्नी हों, वे ऐसे होंमानो उन के पत्नी नहीं।
30. और रोनेवाले ऐसे हों, मानो रोते नहीं; और आनन्द करनेवाले ऐसे हों, मानो आनन्द नहीं करते; और मोल लेनेवाले एसे हों, कि मानो उन के पास कुछ है नहीं।
31. और इस संसार के बरतनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हो लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।
32. सो मैं यह चाहता हूं, कि तुम्हें चिन्ता न हो: अविवाहित पुरूष प्रभु की बातोंकी चिन्ता में रहता है, कि प्रभु को क्योंकर प्रसन्न रखे।
33. परन्तु विवाहित मनुष्य संसार की बातोंकी चिन्ता में रहता है, कि अपक्की पत्नी को किस रीति से प्रसन्न रखे।
34. विवाहिता और अविवाहिता में भी भेद है: अविवाहिता प्रभु की चिन्ता में रहती है, कि वह देह और आत्क़ा दोनोंमें पवित्र हो, परन्तु विवाहिता संसार की चिन्ता में रहती है, कि अपके पति को प्रसन्न रखे।
35. यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिथे कहता हूं, न कि तुम्हें फंसाने के लिथे, बरन इसलिथे कि जैसा सोहता है, वैसा ही किया जाए; कि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो।
36. और यदि कोई यह समझे, कि मैं अपक्की उस कुंवारी का ह? मान रहा हूं, जिस की जवानी ढल चक्की है, और प्रयोजन भी होए, तो जैसा चाहे, वैसा करे, इस में पाप नहीं, वह उसका ब्याह होने दे।
37. परन्तु जो मन में दृढ़ रहता है, और उस को प्रयोजन न हो, बरन अपक्की इच्छा पूरी करने में अधिक्कारने रखता हो, और अपके मन में यह बात ठान ली हो, कि मैं अपक्की कुंवारी लड़की को बिन ब्याही रखूंगा, वह अच्छा करता है।
38. सो जो अपक्की कुंवारी का ब्याह कर देता है, वह अच्छा करता है और जो ब्याह नहीं कर देता, वह और भी अच्छा करता है।
39. जब तक किसी स्त्री का पति जीवित रहता है, तब तक वह उस से बन्धी हुई है, परन्तु जब उसका पति मर जाए, तो जिस से चाहे विवाह कर सकती है, परन्तु केवल प्रभु में।
40. परनतु जेसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है, और मैं समझता हूं, कि परमेश्वर का आत्क़ा मुझ में भी है।।
Chapter 8
1. अब मूरतोंके साम्हने बलि की हुई वस्तुओं के विषय में हम जानते हैं, कि हम सब को ज्ञान है: ज्ञान घमण्ड उत्पन्न करता है, परन्तु प्रेम से उन्नति होती है।
2. यदि कोई समझे, कि मैं कुछ जानता हूं, तो जैसा जानना चाहिए वैसा अब तक नहीं जानता।
3. परन्तु यदि कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्वर पहिचानता है।
4. सो मूरतोंके साम्हने बलि की हुई वस्तुओं के खाने के विषय में हम जानते हैं, कि मूरत जगत में कोई वस्तु नहीं, और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं।
5. यद्यपि आकाश में और पृय्वी पर बहुत से ईश्वर कहलाते हैं, (जैसा कि बहुत से ईश्वर ओर बहुत से प्रभु हैं)।
6. तौभी हमारे निकट तो एक ही परमेश्वर है: अर्यात् पिता जिस की ओर से सब वस्तुएं हैं, और हम उसी के लिथे हैं, और एक ही प्रभु है, अर्यात् यीशु मसीह जिस के द्वारा सब वस्तुएं हुई, और हम भी उसी के द्वारा हैं।
7. परन्तु सब को यह ज्ञान नही; परन्तु कितने तो अब तक मूरत को कुछ समझने के कारण मूरतोंके साम्हने बलि की हुई को कुछ वस्तु समझकर खाते हैं, और उन का विवेक निर्बल होकर अशुद्ध होता है।
8. भेजन हमें परमेश्वर के निकट नहीं पहुंचाता, यदि हम न खांए, तो हमारी कुछ हानि नहीं, और यदि खाएं, तो कुछ लाभ नहीं।
9. परन्तु चौकस रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता कहीं निर्बलोंके लिथे ठोकर का कारण हो जाए।
10. क्योंकि यदि कोई तुझ ज्ञानी को मूरत के मन्दिर में भोजन करते देखे, और वह निर्बल जन हो, तो क्या उसके विवेक में मूरत के साम्हने बलि की हुई वस्तु के खाने का हियाव न हो जाएगा।
11. इस रीति से तेरे ज्ञान के कारण वह निर्बल भाई जिस के लिथे मसीह मरा नाश हो जाएगा।
12. सो भाइयोंका अपराध करने से ओर उन के निर्बल विवेक को चोट देने से तुम मसीह का अपराध करते हो।
13. इस कारण यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाए, तो मैं कभी किसी रीति से मांस न खाऊंगा, न हो कि मैं अपके भाई के ठोकर का कारण बनूं।
Chapter 9
1. क्या मैं स्वतंत्र नहीं क्या मैं प्ररित नहीं क्या मैं ने यीशु को जो हमारा प्रभु है, नहीं देखा, क्या तुम प्रभु में मेरे बनाए हुए नहीं
2. यदि मैं औरोंके लिथे प्रेरित नहीं, तौभी तुम्हारे लिथे तो हूं; क्योंकि तुम प्रभु में मेरी प्रेरिताई पर छाप हो।
3. जो मुझे जांचते हैं, उन के लिथे यीह मेरा उत्तर है।
4. क्या हमें खाने-पीने का अधिक्कारने नहीं
5. क्या हमें यह अधिक्कारने नहीं, कि किसी मसीही बहिन को ब्याह कर के लिए फिरें, जैसा और प्रेरित और प्रभु के भाई और कैफा करते हैं
6. या केवल मुझे और बरनबास को अधिक्कारने नहीं कि कमाई करना छोड़ें।
7. कौन कभी अपक्की गिरह से खाकर सिपाही का काम करता है: कौन दाख की बारी लगाकर उसका फल नहीं खाता कौन भेड़ोंकी रखवाली करके उन का दूध नहीं पीता
8. क्या मैं थे बातें मनुष्य ही की रीति पर बोलता हूं
9. क्या व्यवस्या भी यही नहीं कहती क्योंकि मूसा की व्यवस्या में लिखा है कि दांए में चलते हुए बैल का मुंह न बान्धना: क्या परमेश्वर बैलोंही की चिन्ता करता है या विशेष करके हमारे लिथे कहता है।
10. हां, हमारे लिथे ही लिखा गया, क्योंकि उचित है, कि जातनेवाला आशा से जोते, और दावनेवाला भागी होने की आशा से दावनी करे।
11. सो जब कि हम ने तुम्हारे लिथे आत्क़िक वस्तुएं बोई, तो क्या यह कोई बड़ी बात है, कि तुम्हारी शारीरिक वस्तुओं की फसल काटें।
12. जब औरोंका तुम पर यह अधिक्कारने है, तो क्या हमारा इस से अधिक न होगा परन्तु हम यह अधिक्कारने काम में नहीं लाए; परन्तु सब कुछ सहते हैं, कि हमारे द्वारा मसीह के सुसमाचार की कुछ रोक न हो।
13. क्या तुम नहीं जानते कि जो पवित्र वस्तुओं की सेवा करते हैं, वे मन्दिर में से खाते हैं; और जो वेदी की सेवा करते हैं; वे वेदी के साय भागी होते हैं
14. इसी रीति से प्रभु ने भी ठहराया, कि जो लोग सुसमाचार सुनाते हैं, उन की जीविका सुसमाचार से हो।
15. परन्तु मैं इन में से कोई भी बात काम में न लाया, और मैं ने तो थे बातें इसलिथे नहीं लिखीं, कि मेरे लिथे ऐसा किया जाए, क्योंकि इस से तो मेरा मरना ही भला है; कि कोई मेरा घमण्ड व्यर्य ठहराए।
16. और यदि मैं सुसमाचार सुनाऊं, तो मेरा कुछ घमण्ड नहीं; क्योंकि यह तो मेरे लिथे अवश्य है; और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊं, तो मुझ पर हाथ।
17. क्योंकि यदि अपक्की इच्छा से यह करता हूं, तो मजदूरी मुझे मिलती है, और यदि अपक्की इच्छा से नहीं करता, तौभी भण्डारीपन मुझे सौंपा गया है।
18. सो मेरी कौन सी मजदूरी है यह कि सुसमाचार सुनाने में मैं मसीह का सुसमाचार सेंत मेंत कर दूं; यहां तक कि सुसमाचार में जो मेरा अधिक्कारने है, उस को मैं पूरी रीति से काम में लाऊं।
19. क्योंकि सब से स्वतंत्र होने पर भी मैं ने अपके आप को सब का दास बना दिया है; कि अधिक लोगोंको खींच लाऊं।
20. मैं यहूदियोंके लिथे यहूदी बना कि यहूदियोंको खींच लाऊं, जो लोग व्यवस्या के आधीन हैं उन के लिथे मैं व्यवस्या के आधीन न होने पर भी व्यवस्या के आधीन बना, कि उन्हें जो व्यवस्या के आधीन हैं, खींच लाऊं।
21. व्यवस्याहीनोंके लिथे मैं (जो परमेश्वर की व्यवस्या से हीन नहीं, परन्तु मसीह की व्यवस्या के आधीन हूं) व्यवस्याहीन सा बना, कि व्यवस्याहीनोंको खींच लाऊं।
22. मैं निर्बलोंके लिथे निर्बल सा बना, कि निर्बलोंको खींच लाऊं, मैं सब मनुष्योंके लिथे सब कुछ बना हूं, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊं।
23. और मैं सब कुछ सुसमाचार के लिथे करता हूं, कि औरोंके साय उसका भागी हो जाऊं।
24. क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो छौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो।
25. और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरफानेवाले मुकुट को पाने के लिथे यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिथे करते हैं, जो मुरफाने का नहीं।
26. इसलिथे मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूं, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मु?ोंसे लड़ता हूं, परन्तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है।
27. परनतु मैं अपक्की देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं; ऐसा न हो कि औरोंको प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।।
Chapter 10
1. हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस बात से अज्ञात रहो, कि हमारे सब बापदादे बादल के नीचे थे, और सब के सब समुद्र के बीच से पार हो गए।
2. और सब ने बादल में, और समुद्र में, मूसा का बपितिस्क़ा लिया।
3. और सब ने एक ही आत्क़िक भोजन किया।
4. और सब ने एक ही आत्क़िक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्क़िक चटान से पीते थे, जो उन के साय-साय चलती यी; और वह चटान मसीह या।
5. परन्तु परमेश्वर उन में के बहुतेरोंसे प्रसन्न न हुआ, इसलिथे वे जंगल में ढेर हो गए।
6. थे बातें हमारे लिथे दृष्टान्त ठहरी, कि जैसे उन्होंने लालच किया, वैसे हम बुरी वस्तुओं का लालच न करें।
7. और न तुम मूरत पूजनेवाले बनों; जैसे कि उन में से कितने बन गए थे, जैसा लिखा है, कि लोग खाने-पीने बैठे, और खेलने-कूदने उठे।
8. और न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनोंने किया: एक दिन में तेईस हजार मर गथे।
9. और न हम प्रभु को परखें; जैसा उन में से कितनोंने किया, और सांपोंके द्वारा नाश किए गए।
10. और नतुम कुड़कुड़ाए, जिस रीति से उन में से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करनेवाले के द्वारा नाश किए गए।
11. परन्तु थे सब बातें, जो उन पर पड़ी, दृष्टान्त की रीति पर भी: और वे हमारी चितावनी के लिथे जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं।
12. इसलिथे जो समझता है, कि मैं स्यिर हूं, वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पकें।
13. तुम किसी ऐसी पक्कीझा में नहीं पके, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्य से बाहर पक्कीझा में न पड़ने देगा, बरन पक्कीझा के साय निकास भी करेगा; कि तुम सह सको।।
14. इस कारण, हे मेरे प्यारोंमूत्तिर् पूजा से बचे रहो।
15. मैं बुद्धिमान जानकर, तुम से कहता हूं: जो मैं कहता हूं, उसे तुम परखो।
16. वह धन्यवाद का कटोरा, जिस पर हम धन्यवाद करते हैं, क्या मसीह के लोहू की सहभागिता नहीं वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या मसीह की देह की सहभागिता नहीं
17. इसलिथे, कि एक ही रोटी है सो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं: क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में भागी होते हैं।
18. जो शरीर के भाव से इस्त्रएली हैं, उन को देखो: क्या बलिदानोंके खानेवाले वेदी के सहभागी नहीं
19. फिर मैं क्या कहता हूं क्या यह कि मूरत का बलिदान कुछ है, या मूरत कुछ है
20. नहीं, बरन यह, कि अन्यजाति जो बलिदान करते हैं, वे परमेश्वर के लिथे नहीं, परन्तु दुष्टात्क़ाओं के लिथे बलिदान करते हैं: और मैं नहीं चाहता, कि तुम दुष्टात्क़ाओं के सहभागी हो।
21. तुम प्रभु के कटोरे, और दुष्टात्क़ाओं के कटोरे दानोंमें से नहीं पी सकते! तुम प्रभु की मेज और दुष्टात्क़ाओं की मेज दानोंके साफी नहीं हो सकते।
22. क्या हम प्रभु को रिस दिलाते हैं क्या हम उस से शक्तिमान हैं
23. सब वस्तुएं मेरे लिथे उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं: सब वस्तुएं मेरे लिथे उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुओं से उन्नित नहीं।
24. कोई अपक्की ही भलाई को न ढूंढे, बरन औरोंकी।
25. जो कुछ कस्साइयोंके यहां बिकता है, वह खाओ और विवेक के कारण कुछ न पूछो।
26. क्योकि पृय्वी और उसकी भरपूरी प्रभु की है।
27. और यदि अविश्वायथें में से कोई तुम्हें नेवता दे, और तुम जाना चाहो, तो जो कुछ तुम्हारे साम्हने रखा जाए वही खाओ: और विवेक के कारण कुछ न पूछो।
28. परन्तु यदि कोई तुम से कहे, यह तो मूरत को बलि की हुई वस्तु है, तो उसी बतानेवाले के कारण, और विवेक के कारण न खाओ।
29. मेरा मतलब, तेरा विवेक नहीं, परन्तु उस दूसरे का। भला, मेरी स्वतंत्रता दूसरे के विचार से क्योंपरखी जाए:
30. यदि मैं धन्यवाद करके साफी होता हूं, तो जिस पर मैं धन्यवाद करता हूं, उसके कारण मेरी बदनामीं क्योंहोती है
31. सो तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महीमा के लिथे करो।
32. तुम न यहूदियों, न यूनानियों, और न परमेश्वर की कलीसिया के लिथे ठोकर का कारण बनो।
33. जैसा मैं भी सब बातोंमें सब को प्रसन्न रखता हूं, और अपना नहीं, परन्तु बहुतोंका लाभ ढूंढ़ता हूं, कि वे उद्धार पाएं।
Chapter 11
1. तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं।।
2. हे भाइयों, मैं तुम्हें सराहता हूं, कि सब बातोंमें तुम मुझे स्क़रण करते हो: और जो व्यवहार मैं ने तुम्हें सौंप दिए हैं, उन्हें धारण करते हो।
3. सो मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि हर एक पुरूष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरूष है: और मसीह का सिर परमेश्वर है।
4. जो पुरूष सिर ढांके हुए प्रार्यना या भविष्यद्वाणी करता है, वह अपके सिर का अपमान करता है।
5. परन्तु जो स्त्री उघाड़े सिर प्रार्यना या भविष्यद्ववाणी करती है, वह अपके सिर का अपमान करती है, क्योंकि वह मुण्डी होने के बराबर है।
6. यदि स्त्री आढ़नी न ओढ़े, तो बाल भी कटा ले; यदि स्त्री के लिथे बाल कटाना या मुण्डाना लज्ज़ा की बात है, तो ओढ़नी ओढ़े।
7. हां पुरूष को अपना सिर ढांकना उचित हनीं, क्योंकि वह परमेश्वर का स्वरूप और महिमा है; परन्तु स्त्री पुरूष की महिमा!
8. क्योंकि पुरूष स्त्री से नहीं हुआ, परन्तु स्त्री से हुई है।
9. और पुरूष स्त्री के लिथे नहीं सिरजा गया, परन्तु स्त्री पुरूष के लिथे सिरजी गई है।
10. इसीलिथे स्वर्गदूतोंके कारण स्त्री को उचित है, कि अधिक्कारने अपके सिर पर रखे।
11. तौभी प्रभु में न तो स्त्री बिना पुरूष और न पुरूष बिना स्त्री के है।
12. क्योंकि जैसे स्त्री पुरूष से है, वैसे ही पुरूष स्त्री के द्वारा है; परन्तु सब वस्तुएं परमेश्वर के द्वारा हैं।
13. तुम आप ही विचार करो, क्या स्त्री को उघाड़े सिर परमेश्वर से प्रार्यना करना सोहना है
14. क्या स्वाभिविक रीति से भी तुम नहीं जानते, कि यदि पुरूष लम्बे बाल रखे, तो उसके लिथे अपमान है।
15. परन्तु यदि स्त्री लम्बे बाल रखे; तो उसके लिथे शोभा है क्योंकि बाल उस को ओढ़नी के लिथे दिए गए हैं।
16. परनतु यदि कोई विवाद करना चाहे, तो यह जाने कि न हमारी और न परमेश्वर की कलीसियोंकी ऐसी रीति है।।
17. परनतु यह आज्ञा देते हुए, मैं तुम्हें नहीं सराहता, इसलिथे कि तुम्हारे इकट्ठे होने से भलाई नहीं, परन्तु हानि होती है।
18. क्योंकि पहिले तो मैं यह सुनता हूं, कि जब तुम कलीसिया में इकट्ठे हाते हो, तो तुम में फूट होती है और मैं कुछ कुछ प्रतीति भी करता हूं।
19. क्यांकि विधर्म भी तुम में अवश्य होंगे, इसलिथे कि जो लागे तुम में खरे निकले हैं, वे प्रगट हो जांए।
20. सो तुम जो एक जगह में इकट्ठे होते हो तो यह प्रभु भोज खाने के लिथे नहीं।
21. क्योंकि खाने के समय एक दूसरे से पहिले अपना भोज खा लेता है, सो कोई तो भूखा रहता है, और कोई मतवाला हो जाता है।
22. क्या खाने पीने के लिथे तुम्हारे घर नहीं या परमेश्वर की कलीसिया को तुच्छ जानते हो, और जिन के पास नहीं है उन्हें लज्ज़ित करते हो मैं तुम से क्या कहूं क्या इस बात में तुम्हारी प्रशंसा करूं मैं प्रशंसा नहीं करता।
23. क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी; कि प्रभु यीशु ने जिस रात पकड़वाया गया रोटी ली।
24. और धन्यवाद करके उसे तोड़ी, और कहा; कि यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिथे है: मेरे स्क़रण के लिथे यही किया करो।
25. इसी रीति से उस ने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया, और कहा; यह कटोरा मेरे लोहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो मेरे स्क़रण के लिथे यही किया करो।
26. क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो।
27. इसलिथे जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लोहू का अपराधी ठहरेगा।
28. इसलिथे मनुष्य अपके आप को जांच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए।
29. क्योंकि जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहिचाने, वह इस खाने और पीने से अपके ऊपर दण्ड लाता है।
30. इसी कारण तुम में से बहुत से निर्बल और रोगी हैं, और बहुत से सो भी गए।
31. यदि हम अपके आप में जांचते, तो दण्ड न पाते।
32. परन्तु प्रभु हमें दण्ड देकर हमारी ताड़ना करता है इसलिथे कि हम संसार के साय दोषी न ठहरें।
33. इसलिथे, हे मेरे भाइयों, जब तुम खाने के लिथे इकट्ठे होते हो, तो एक दूसरे के लिथे ठहरा करो।
34. यदि कोई भूखा हो, तो अपके घर में खा ले जिस से तुम्हार इकट्ठा होना दण्ड का कारण न हो: और शेष बातोंको मैं आकर ठीक कर दूंगा।।
Chapter 12
1. हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम आत्क़िक बरदानोंके विषय में अज्ञात रहो।
2. तुम जानते हो, कि जब तुम अन्यजाति थे, तो गूंगी मूरतोंके पीछे जेसे चलाए जाते थे वैसे चलते थे।
3. इसलिथे मैं तुम्हें चितौनी देता हूं कि जो कोई परमेश्वर की आत्क़ा की अगुआई से बोलता है, वह नहीं कहता कि यीशु स्त्रापित है; और न कोई पवित्र आत्क़ा के बिना कह सकता है कि यीशु प्रभु है।।
4. बरदान तो कई प्रकार के हैं, परन्तु आत्क़ा एक ही है।
5. और सेवा भी कई प्रकार की है, परन्तु प्रभु एक ही है।
6. और प्रभावशाली कार्य्य कई प्रकार के हैं, परन्तु परमश्ेवर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है।
7. किन्तु सब के लाभ पहुंचाने के लिथे हर एक को आत्क़ा का प्रकाश दिया जाता है।
8. क्योंकि एक को आत्क़ा के द्वारा बुिद्व की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्क़ा के अनुसार ज्ञान की बातें।
9. और किसी को उसी आत्क़ा से विश्वास; और किसी को उसी एक आत्क़ा से चंगा करने का बरदान दिया जाता है।
10. फिर किसी को सामर्य के काम करने की शक्ति; और किसी को भविष्यद्वाणी की; और किसी को अनेक प्रकार की भाषा; और किसी को भाषाओं का अर्य बताना।
11. परन्तु थे सब प्रभावशाली कार्य्य वही एक आत्क़ा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बांट देता है।।
12. क्योंकि जिस प्रकार देह तो एक है और उसके अंग बहुत से हैं, और उस एक देह के सब अंग, बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह हैं, उसी प्रकार मसीह भी है।
13. क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र एक ही आत्क़ा के द्वारा एक देह होने के लिथे बपतिस्क़ा लिया, और हम एक को एक ही आत्क़ा पिलाया गया।
14. इसलिथे कि देह में एक ही अंग नहीं, परन्तु बहुत से हैं।
15. यदि पांव कहे: कि मैं हाथ नहीं, इसलिथे देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं
16. और यदि कान कहे; कि मैं आंख का नहीं, इसलिथे देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं।
17. यदि सारी देह आंख की होती तो सुनना कहां से होता यदि सारी देह कान ही होती तो सूंघना कहां होता
18. परन्तु सचमुच परमेश्वर ने अंगो को अपक्की इच्छा के अनुसार एक एक करके देह में रखा है।
19. यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहां होती
20. परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है।
21. आंख हाथ से नहीं कह सकती, कि मुझे तेरा प्रयोजन नहीं, और न सिर पांवोंसे कह सकता है, कि मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं।
22. परन्तु देह के वे अंग जो औरोंसे निर्बल देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं।
23. और देह के जिन अंगो को हम आदर के योग्य नहीं समझते हैं उन्ही को हम अधिक आदर देते हैं; और हमारे शोभाहीन अंग और भी बहुत शोभायमान हो जाते हैं।
24. फिर भी हमारे शोभायमान अंगो को इस का प्रयोजन नहीं, परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी यी उसी को और भी बहुत आदर हो।
25. ताकि देह में फूट न पके, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें।
26. इसलिथे यदि एक अंग दु:ख पाता है, तो सब अंग उसके साय दु:ख पाते हैं; और यदि एक अंग की बड़ाई होती है, तो उसके साय सब अंग आनन्द मनाते हैं।
27. इसी प्रकार तुम सब मिलकर मसीह की देह हो, और अलग अलग उसके अंग हो।
28. और परमश्ेवर ने कलीसिया में अलग अलग व्यक्ति नियुक्त किए हैं; प्रयम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिझक, फिर सामर्य के काम करनेवाले, फिर चंगा करनेवाले, और उपकार करनेवाले, और प्रधान, और नाना प्रकार की भाषा बालनेवाले।
29. क्या सब प्रेरित हैं क्या सब भविष्यद्वक्ता हैं क्या सब उपकेशक हैं क्या सब सामर्य के काम करनेवाले हैं
30. क्या सब को चंगा करने का बरदान मिला है क्या सब नाना प्रकार की भाषा बोलते हैं
31. क्या सब अनुवाद करते हैं तुम बड़ी से बड़ी बरदानोंकी धुन में रहो! परन्तु मैं तुम्हें और भी सब से उत्तम मार्ग बताता हूं।।
Chapter 13
1. यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतोंकी बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और फंफनाती हुई फांफ हूं।
2. और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदोंऔर सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ोंको हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
3. और यदि मैं अपक्की सम्पूर्ण संपत्ति कंगालोंको खिला दूं, या अपक्की देह जलाने के लिथे दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
4. प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाल नहीं करता; प्रेम अपक्की बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
5. वह अनरीति नहीं चलता, वह अपक्की भलाई नहीं चाहता, फुंफलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
6. कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सन्य से आनन्दित होता है।
7. वह सब बातें सह लेता है, सब बातोंकी प्रतीति करता है, सब बातोंकी आशा रखता है, सब बातोंमें धीरज धरता है।
8. प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
9. क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
10. परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
11. जब मैं बालक या, तो मैं बालकोंकी नाईं बोलता या, बालकोंका सा मन या बालकोंकी सी समझ यी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकोंकी बातें छोड़ दी।
12. अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
13. पर अब विश्वास, आशा, प्रेम थे तीनोंस्याई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।
Chapter 14
1. प्रेम का अनुकरण करो, और आत्क़िक बरदानोंकी भी धुन में रहो विशेष करके यह, कि भविष्यद्वाणी करो।
2. क्योंकि जो अन्यभाषा में बातें करता है; वह मनुष्योंसे नहीं, परन्तु परमेश्वर से बातें करता है; इसलिथे कि उस की कोई नहीं समझता; क्योंकि वह भेट की बातें आत्क़ा में होकर बोलता है।
3. परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्योंसे उन्नति, और उपकेश, और शान्ति की बातें कहता है।
4. जो अन्य भाषा में बातें करता है, वह अपक्की ही उन्नति करता है; परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह कलीसिया की उन्नति करता है।
5. मैं चाहता हूं, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो, परन्तु अधिकतर यह चाहता हूं कि भविष्यद्वाणी करो: क्योंकि यदि अन्यान्य भाषा बोलनेवाला कलीसिया की उन्नति के लिथे अनुवाद न करे तो भविष्यद्ववाणी करनेवाला उस से बढ़कर है।
6. इसलिथे हे भाइयों, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्यान्य भाषा में बातें करूं, और प्रकाश, या ज्ञान, या भविष्यद्वाणी, या उपकेश की बातें तुम से न कहूं, तो मुझ से तुम्हें क्या लाभ होगा
7. इसी प्रकार यदि निर्जीव वस्तुएं भी, जिन से ध्वनि निकलती है जेसे बांसुरी, या बीन, यदि उन के स्वरोंमें भेद न हो तो जो फूंका या बजाया जाता है, वह क्योंकर पहिचाना जाएगा
8. और यदि तुरही का शब्द साफ न हो तो कौन लड़ाई के लिथे तैयारी करेगा
9. ऐसे ही तुम भी यदि जीभ से साफ बातें न कहो, तो जो कुछ कहा जाता है वह क्योंकर समझा जाएगा तुम तो हवा से बातें करनेवाले ठहरोगे।
10. जगत में कितने की प्रकार की भाषाएं क्योंन हों, परन्तु उन में से कोई भी बिना अर्य की न होगी।
11. इसलिथे यदि मैं किसी भाषा का अर्य न समझूं, तो बोलनेवाले की दृष्टि में परदेशी ठहरूंगा; और बोलनेवाला मेरे दृष्टि में परदेशी ठहरेगा।
12. इसलिथे तुम भी जब आत्क़िक बरदानोंकी धुन में हो, तो ऐसा प्रयत्न करो, कि तुम्हारे बरदानोंकी उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो।
13. इस कारण जो अन्य भाषा बोले, तो वह प्रार्यना करे, कि उसका अनुवाद भी कर सके।
14. इसलिथे यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्यना करूं, तो मेरी आत्क़ा प्रार्यना करती है, परन्तु मेरी बुद्धि काम नहीं देती।
15. सो क्या करना चाहिए मैं आत्क़ा से भी प्रार्यना करूंगा, और बुद्धि से भी प्रार्यना करूंगा; मैं आत्क़ा से गाऊंगा, और बुद्धि से भी गाऊंगा।
16. नहीं तो यदि तू आत्क़ा ही से धन्यवाद करेगा, तो फिर अज्ञानी तेरे धन्यवाद पर आमीन क्योंकि कहेगा इसलिथे कि वह तो नहीं जानता, कि तू क्या कहता है
17. तू तो भली भांति से धन्यवाद करता है, परन्तु दूसरे की उन्नति नहीं होती।
18. मैं अपके परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं, कि मैं तुम सब से अधिक अन्यान्य भाषा में बोलता हूं।
19. परन्तु कलीसिया में अन्य भाषा में दस हजार बातें कहने से यह मुझे और भी अच्छा जान पड़ता है, कि औरोंके सिखाने के लिथे बुद्धि से पांच ही बातें कहूं।।
20. हे भाइयो, तुम समझ में बालक न बनो: तौभी बुराई में तो बालक रहो, परन्तु समझ में सियाने बानो।
21. व्यवस्या में लिखा है, कि प्रभु कहता है; मैं अन्य भाषा बोलनेवालोंके द्वारा, और पराए मुख के द्वारा इन लोगोंसे बात करूंगा तौभी वे मेरी न सुनेंगे।
22. इसलिथे अन्यान्य भाषाएं विश्वासियोंके लिथे नहीं, परन्तु अविश्वासियोंके लिथे चिन्ह हैं, और भविष्यद्वाणी अविश्वासीयोंके लिथे नहीं परन्तु विश्वासियोंके लिथे चिन्ह हैं।
23. सो यदि कलीसिया एक जगह इकट्ठी हो, और सब के सब अन्यान्य भाषा बोलें, और अनपढ़े या अविश्वासी लोग भीतर आ जाएं तो क्या वे तुम्हें पागल न कहेंगे
24. परन्तु यदि सब भविष्यद्वाणी करने लगें, और कोई अविश्वासी या अनपढ़ा मनुष्य भीतर आ जाए, तो सब उसे दोषी ठहरा देंगे और परख लेंगे।
25. और उसके मन के भेअ प्रगट हो जाएंगे, और तब वह मुंह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत करेगा, और मान लेगा, कि सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है।
26. इसलिथे हे भाइयो क्या करना चाहिए जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के ह्रृदय में भजन, या उपकेश, या अन्यभाषा, या प्रकाश, या अन्यभाषा का अर्य बताना रहता है: सब कुछ आत्क़िक उन्नति के लिथे होना चाहिए।
27. यदि अन्य भाषा में बातें करनीं हों, तो दो दो, या बहुत हो तो तीन तीन जन बारी बारी बोलें, और एक व्यक्ति अनुवाद करे।
28. परन्तु यदि अनुवाद करनेवाला न हो, तो अन्यभाषा बालनेवाला कलीसिया में शान्त रहे, और अपके मन से, और परमेश्वर से बातें करे।
29. भविष्यद्वक्ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उन के वचन को परखें।
30. परन्तु यदि दूसरे पर जो बैठा है, कुछ ईश्वरीय प्रकाश हो, तो पहिला चुप हो जाए।
31. क्योंकि तुम सब एक एक करके भविष्यद्वाणी कर सकते हो ताकि सब सीखें, और सब शान्ति पाएं।
32. और भविष्यद्वक्ताओं की आत्क़ा भविष्यद्वक्ताओं के वश में है।
33. क्थेंकि परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है; जैसा पवित्र लोगोंकी सब कलीसियाओं में है।।
34. स्त्रियां कलीसिया की सभा में चुप रहें, क्योंकि उन्हें बातें करने की आज्ञा नहीं, परन्तु आधीन रहने की आज्ञा है: जैसा व्यवस्या में लिखा भी है।
35. और यदि वे कुछ सीखना चाहें, तो घर में अपके अपके पति से पूछें, क्योंकि स्त्री का कलीसिया में बातें करना लज्ज़ा की बात है।
36. क्योंपरमश्ेवर का वचन तुम में से निकला या केवल तुम ही तक पहुंचा है
37. यदि कोई मनुष्य अपके आप को भविष्यद्वक्ता या आत्क़िक जन समझे, तो यह जान ले, कि जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूं, वे प्रभु की आज्ञाएं हैं।
38. परन्तु यदि कोई न जाने, तो न जाने।।
39. सो हे भाइयों, भविष्यद्वाणी करने की धुन में रहो और अन्यभाषा बोलने से मना न करो।
40. पर सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएं।
Chapter 15
1. हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूं जो पहिले सुना चुका हूं, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया या और जिस में तुम स्यिर भी हो।
2. उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भी होता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैं ने तुम्हें सुनाया या स्क़रण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्य हुआ।
3. इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची यी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापोंके लिथे मर गया।
4. ओर गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा।
5. और कैफा को तब बारहोंको दिलाई दिया।
6. फिर पांच सौ से अधिक भाइयोंको एक साय दिखाई दिया, जिन में से बहुतेरे अब तक वर्तमान हैं पर कितने सो गए।
7. फिर याकूब को दिखाई दिया तक सब प्रेरितोंको दिखाई दिया।
8. और सब के बाद मुझ को भी दिखाई दिया, जो मानो अधूरे दिनोंका जन्क़ा हूं।
9. क्योंकि मैं प्ररितोंमें सब से छोटा हूं, बरन प्ररित कहलाने के योग्य भी नहीं, क्योंकि मैं ने परमेश्वर की कलीसिया को सताया या।
10. परन्तु मैं जो कुछ भी हूं, परमेश्वर के अनुग्रह से हूं: और उसका अनुग्रह जो मुझ पर हुआ, वह व्यर्य नहीं हुआद्ध परनतु मैं ने उन सब से बढ़कर परिश्र्म भी किया: तौभी यह मेरी ओर से नहीं हुआ परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से जो मुझ पर या।
11. सो चाहे मैं हूं, चाहे वे हों, हम यही प्रचार करते हैं, और इसी पर तुम ने विश्वास भी किया।।
12. सो जब कि मसीह का यह प्रचार किया जाता है, कि वह मरे हुओं में से जी उठा, तो तुम में से कितने क्योंकर कहते हैं, कि मरे हुओं का पुनरूत्यान है ही नहीं
13. यदि मरे हुओं का पुनरूत्यान ही नहीं, तो मसीह भी नहीं जी उठा।
14. और यदि मसीह भी नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्य है; और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्य है।
15. बरन हम परमश्ेवर के फूठे गवाह ठहरे; क्योंकि हम ने परमेश्वर के विषय में यह गवाही दी कि उस ने मसीह को जिला दिया यद्यपि नहीं जिलाया, यदि मरे हुए नहीं जी उठते।
16. और यदि मुर्दे नहीं जी उठते, तो मसीह भी नहीं जी उठा।
17. और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो तुम्हारा विश्वास व्यर्य है; और तुम अब तक अपके पापोंमें फंसे हो।
18. बरन जो मसीह मे सो गए हैं, वे भी नाश हुए।
19. यदि हम केवल इसी जीवन में मसीह से आशा रखते हैं तो हम सब मनुष्योंसे अधिक अभागे हैं।।
20. परन्तु सचमुच मसीह मुर्दोंमें से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ।
21. क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरूत्यान भी आया।
22. और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।
23. परन्तु हर एक अपक्की अपक्की बारी से; पहिला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग।
24. इस के बाद अन्त होगा; उस समय वह सारी प्रधानता और सारा अधिक्कारने और सामर्य का अन्त करके राज्य को परमेश्वर पिता के हाथ में सौंप देगा।
25. क्योंकि जब तक कि वह अपके बैरियोंको अपके पांवोंतले न ले आए, तब तक उसका राज्य करना अवश्य है।
26. सब से अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है।
27. क्योंकि परमेश्वर ने सब कुछ उसके पांवोंतले कर दिया है, परन्तु जब वह कहता है कि सब कुछ उसके आधीन कर दिया गया है तो प्रत्यझ है, कि जिस ने सब कुछ उसके आधीन कर दिया, वह आप अलग रहा।
28. और जब सब कुछ उसके आधीन हो जाएगा, तो पुत्र आप भी उसके आधीन हो जाएगा जिस ने सब कुछ उसके आधीन कर दिया; ताकि सब में परमेश्वर ही सब कुछ हो।।
29. नहीं तो जो लोग मरे हुओं के लिथे बपतिस्क़ा लेते हैं, वे क्या करेंगे यदि मुर्दे जी उठते ही नहीं तो फिर क्योंउन के लिथे बपतिस्क़ा लेते हैं
30. और हम भी क्योंहर घड़ी जाखिम में पके रहते हैं
31. हे भाइयो, मुझे उस घमण्ड की सोंह जो हमारे मसीह यीशु में मैं तुम्हारे विषय में करता हूं, कि मैं प्रति दिन मरता हूं।
32. यदि मैं मनुष्य की रीति पर इफिसुस में बन-पशुओं से लड़ा, तो मुझे क्या लाभ हुआ यदि मुर्दे जिलाए नहीं जाएंगे, तो आओ, खाए-पीए, क्योंकि कल तो मर ही जाएंगे।
33. धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।
34. धर्म के लिथे जाग उठो और पाप न करो; क्योंकि कितने ऐसे हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते, मैं तुम्हें लज्ज़ित करते के लिथे यह कहता हूं।।
35. अब कोई यह कहेगा, कि मुर्दे किस रीति से जी उठते हैं, और किसी देह के साय आते हैं
36. हे निर्बुिद्व, जो कुछ तु बोता है, जब तक वह न मरे जिलाया नहीं जाता।
37. ओर जो तू बोता है, यह वह देह नहीं जो उत्पन्न होनेवाली है, परन्तु निरा दाना है, चाहे गेहूं का, चाहे किसी और अनाज का।
38. परन्तु परमेश्वर अपक्की इच्छा के अनुसार उस को देह देता है; और हर एक बीज को उस की विशेष देह।
39. सब शरीर एक सरीखे नहीं, परन्तु मनुष्योंका शरीर और है, पशुओं का शरीर और है; पझियोंका शरीर और है; मिछिलयोंका शरीर और है।
40. स्वर्गीय देह है, और पायिर्व देह भी है: परन्तु स्वर्गीयह देहोंका तेज और हैं, और पायिर्व का और।
41. सूर्य का तेज और है, चान्द का तेज और है, और तारागणोंका तेज और है, (क्योंकि एक तारे से दूसरे तारे के तेज मे अन्तर है)।
42. मुर्दोंका जी उठना भी ऐसा ही है। शरीर नाशमान दशा में बोया जाता है, और अविनाशी रूप में जी उठता है।
43. वह अनादर के साय बोया जाता है, और तेज के साय जी उठता है; निर्बलता के साय बोया जाता है; और सामर्य के साय जी उठता है।
44. स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्क़िक देह जी उठती है: जब कि स्वाभाविक देह है, तो आत्क़िक देह भी है।
45. ऐसा ही लिखा भी है, कि प्रयम मनुष्य, अर्यात् आदम, जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम, जीवनदायक आत्क़ा बना।
46. परन्तु पहिले आत्क़िक न या, पर स्वाभाविक या, इस के बाद आत्क़िक हुआ।
47. प्रयम मनुष्य धरती से अर्यात् मिट्टी का या; दूसरा मनुष्य स्वर्गीय है।
48. जैसा वह मिट्टी का या वैसे ही और मिट्टी के हैं; और जैसा वह स्वर्गीय है, वैसे ही और भी स्वर्गीय हैं।
49. और जैसे हम ने उसका रूप जो मिट्टी का या धारण किया वैसे ही उस स्वर्गीय का रूप भी धारण करेंगे।।
50. हे भाइयों, मैं यह कहता हूं कि मांस और लोहू परमेश्वर के राज्य के अधिक्कारनेी नहीं हो सकते, और न विनाश अविनाशी का अधिक्कारनेी हो सकता है।
51. देखे, मैं तुम से भेद की बात कहता हूं: कि हम सब तो नहीं सोएंगे, परन्तु सब बदल जाएंगे।
52. और यह झण भर में, पलक मारते ही पिछली तुरही फूंकते ही होगा: कयोंकि तुरही फूंकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जांएगे, और हम बदल जाएंगे।
53. क्योंकि अवश्य है, कि वह नाशमान देह अविनाश को पहिन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहिन ले।
54. और जब यह नाशमान अविनाश को पहिन लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहिन लेगा, तक वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा, कि जय ने मृत्यु को निगल लिया।
55. हे मृत्यु तेरी जय कहां रहीं
56. हे मृत्यु तेरा डंक कहां रहा मृत्यु का डंक पाप है; और पाप का बल ब्यवस्या है।
57. परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें जयवन्त करता है।
58. सो हे मेरे प्रिय भाइयो, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्र्म प्रभु में व्यर्य नहीं है।।
Chapter 16
1. अब उस चन्दे के विषय में जो पवित्र लोगोंके लिथे किया जाता है, जैसी आज्ञा मैं ने गलतिया की कलीसियाओं को दी, वैसा ही तुम भी करो।
2. सप्ताह के पहिले दिन तुम में से हर एक अपक्की आमदनी के अनुसार कुछ अपके पास रख छोड़ा करे, कि मेरे आने पर चन्दा न करना पके।
3. और जब मैं आऊंगा, तो जिन्हें तुम चाहोगे उन्हें मैं चिट्ठियां देकर भेज दूंगा, कि तुम्हारा दान यरूशलेम पहुंचा दें।
4. और यदि मेरा भी जाना उचित हुआ, तो वे मेरे साय जाएंगे।
5. और मैं मकिदुनिया होकर तो जाना ही है।
6. परन्तु सम्भव है कि तुम्हारे यहां ही ठहर जाऊं और शरद ऋतु तुम्हारे यंहा काटूं, तब जिस ओर मेरा जाना हो, उस ओर तुम मुझे पहुंचा दो।
7. क्योंकि मैं अब मार्ग में तुम से भेंट करना नहीं चाहता; परन्तु मुझे आशा है, कि यदि प्रभु चाहे तो कुछ समय तक तुम्हारे साय रहूंगा।
8. परनतु मैं पेन्तिकुस्त तक इफिसुस में रहूंगा।
9. क्योंकि मेरे लिथे एक बड़ा और उपयोगी द्वार खुला है, और विरोधी बहुत से हैं।।
10. यदि तीमुयियुस आ जाए, तो देखना, कि वह तुम्हारे यहां निडर रहे; क्योंकि वह मेरी नाई प्रभु का काम करता है।
11. इसलिथे कोई उसे तुच्छ न जाने, परन्तु उसे कुशल से इस ओर पहुंचा देना, कि मेरे पास आ जाए; क्योंकि मैं उस की बाट जोह रहा हूं, कि वह भाइयोंके साय आए।
12. और भाई अपुल्लोस से मैं ने बहुत बिनती की है कि तुम्हारे पास भाइयोंके साय जाए; परन्तु उस ने उस समय जाने की कुछ भी इच्छा न की, परन्तु जब अवसर पाएगा, तब आ जाएगा।
13. जागते रहो, विश्वास में स्यिर रहो, पुरूषार्य करो, बलवन्त होओ।
14. जो कुछ करते हो प्रेम से करो।।
15. हे भाइयो, तुम स्तिफनास के घराने को जानते हो, कि वे अखया के पहिले फल हैं, और पवित्र लोगोंकी सेवा के लिथे तैयार रहते हैं।
16. सो मैं तुम से बिनती करता हूं कि ऐसोंके आधीन रहो, बरन हर एक के जो इस काम में परिश्र्मी और सहकर्मी हैं।
17. और मैं स्तिफनास और फूरतूनातुस और अखइकुस के आने से आनन्दित हूं, क्योंकि उन्होंने तुम्हारी धटी को पूरी की है।
18. और उन्होंने मेरी और तुम्हारी आत्क़ा को चैन दिया है इसलिथे ऐसोंको मानो।।
19. आसिया की कलीसियाओं की ओर से तुम को नमस्कार; अक्विला और प्रिसका का और उन के घर की कलीसिया को भी तुम को प्रभु में बहुत बहुत नमस्कार।
20. सब भाइयोंका तुम को नमस्कार: पवित्र चुम्बन से आपस में नमस्कार करो।।
21. मुझ पौलुस का अपके हाथ का लिखा हुआ नमस्कार: यदि कोई प्रभु से प्रेम न रखे तो वह स्त्रापित हो।
22. हमारा प्रभु आनेवाला है।
23. प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे।
24. मेरा प्रेम मसीह यीशु में तुम सब से रहे। आमीन।।
Chapter 1
1. पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित होने के लिथे बुलाया गया और भाई सोस्यिनेस की ओर से।
2. परमेश्वर की उस कलीसिया के नामि जो कुरिन्युस में है, अर्यात् उन के नाम जो मसीह यीशु में पवित्र किए गए, और पवित्र होने के लिथे बुलाए गए हैं; और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और अपके प्रभु यीशु मसीह के नाम की प्रार्यना करते हैं।
3. हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।।
4. मैं तुम्हारे विषय में अपके परमेश्वर का धन्यवाद सदा करता हूं, इसलिथे कि परमेश्वर का यह अनुग्रह तुम पर मसीह यीशु में हुआ।
5. कि उस में होकर तुम हर बात में अर्यात् सारे वचन और सारे ज्ञान में धनी किए गए।
6. कि मसीह की गवाही तुम में पक्की निकली।
7. यहां तक कि किसी बरदान में तुम्हें घटी नहीं, और तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रगट होने की बाट जोहते रहते हो।
8. वह तुम्हें अन्त तक दृढ़ भी करेगा, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के दिन में निर्दोष ठहरो।
9. परमेश्वर सच्चा है; जिस ने तुम को अपके पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह की संगति में बुलाया है।।
10. हे भाइयो, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा बिनती करता हूं, कि तुम सब एक ही बात कहो; और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो।
11. क्योंकि हे मेरे भाइयों, खलोए के घराने के लोगोंने मुझे तुम्हारे विषय में बताया है, कि तुम में फगड़े हो रहे हैं।
12. मेरा कहना यह है, कि तुम में से कोई तो अपके आप को पौलुस का, कोई अपुल्लोस का, कोई कैफा का, कोई मसीह का कहता है।
13. क्या मसीह बट गया क्या पौलुस तुम्हारे लिथे क्रूस पर चढ़ाया गया या तुम्हें पौलुस के नाम पर बपतिस्क़ा मिला
14. मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं, कि क्रिस्पुस और गयुस को छोड़, मैं ने तुम में से किसी को भी बपतिस्क़ा नहीं दिया।
15. कहीं ऐसा नह हो, कि कोई कहे, कि तुम्हें मेरे नाम पर बपतिस्क़ा मिला।
16. और मैं ने स्तिफनास के घराने को भी बपतिस्क़ा दिया; इन को छोड़, मैं नहीं जानता कि मैं ने और किसी को बपतिस्क़ा दिया।
17. क्योंकि मसीह ने मुझे बपतिस्क़ा देने को नहीं, बरन सुसमाचार सुनाने को भेजा है, और यह भी शब्दोंके ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस व्यर्य ठहरे।
18. क्योंकि क्रूस की कया नाश होनेवालोंके निकट मूर्खता है, परन्तु हम उद्धार पानेवालोंके निकट परमेश्वर की सामर्य है।
19. क्योकि लिखा है, कि मैं ज्ञानवानोंके ज्ञान को नाश करूंगा, और समझदारोंकी समझ को तुच्छ कर दूंगा।
20. कहां रहा ज्ञानवान कहां रहा शास्त्री कहां इस संसार का विवादी क्या परमेश्वर ने संसार के ज्ञान को मूर्खता नहीं ठहराया
21. क्योंकि जब परमेश्वर के ज्ञान के अनुसार संसार ने ज्ञान से परमेश्वर को न जाना तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा, कि इस प्रकार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करनेवालोंको उद्धार दे।
22. यहूदी तो चिन्ह चाहते हैं, और यूनानी ज्ञान की खोज में हैं।
23. परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियोंके निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियोंके निकट मूर्खता है।
24. परन्तु जो बुलाए हुए हैं क्या यहूदी, क्या यूनानी, उन के निकट मसीह परमेश्वर की सामर्य, और परमेश्वर का ज्ञान है।
25. क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्योंके ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्योंके बल से बहुत बलवान है।।
26. हे भाइयो, अपके बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्यी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए।
27. परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खोंको चुन लिया है, कि ज्ञानवालोंको लज्ज़ित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलोंको चुन लिया है, कि बलवानोंको लज्ज़ित करे।
28. और परमेश्वर ने जगत के नीचोंऔर तुच्छोंको, बरन जो हैं भी नहीं उन को भी चुन लिया, कि उन्हें जो हैं, व्यर्य ठहराए।
29. ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के साम्हने घमण्ड न करने पाए।
30. परन्तु उसी की ओर से तुम मसीह यीशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारे लिथे ज्ञान ठहरा अर्यात् धर्म, और पवित्रता, और छुटकारा।
31. ताकि जैसा लिखा है, वैसा ही हो, कि जो घमण्ड करे वह प्रभु में घमण्ड करे।।
Chapter 2
1. और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साय नहीं आया।
2. क्योंकि मैं ने यह ठान लिया या, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, बरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं।
3. और मैं निर्बलता और भय के साय, और बहुत यरयराता हुआ तुम्हारे साय रहा।
4. ओर मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली बातें नहीं; परन्तु आत्क़ा और सामर्य का प्रमाण या।
5. इसलिथे कि तुम्हारा विश्वास मनुष्योंके ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्य पर निर्भर हो।।
6. फिर भी सिद्ध लोगोंमें हम ज्ञान सुनाते हैं: परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होनेवाले हाकिमोंका ज्ञान नहीं।
7. परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिथे ठहराया।
8. जिसे इस संसार के हाकिमोंमें से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते।
9. परन्तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपके प्रेम रखनेवालोंके लिथे तैयार की हैं।
10. परन्तु परमेश्वर ने उन को अपके आत्क़ा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्क़ा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्क़ा सब बातें, बरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।
11. मनुष्योंमें से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता, केवल मनुष्य की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेवर का आत्क़ा।
12. परन्तु हम ने संसार की आत्क़ा नहीं, परन्तु वह आत्क़ा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातोंको जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।
13. जिन को हम मनुष्योंके ज्ञान की सिखाई हुई बातोंमें नहीं, परन्तु आत्क़ा की सिखाई हुई बातोंमें, आत्क़िक बातें आत्क़िक बातोंसे मिला मिलाकर सुनाते हैं।
14. परनतु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्क़ा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उस की दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उन की जांच आत्क़िक रीति से होती है।
15. आत्क़िक जन सब कुछ जांचता है, परन्तु वह आप किसी से जांचा नहीं जाता।
16. क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखलाए परन्तु हम में मसीह का मन है।।
Chapter 3
1. हे भाइयों, मैं तुम से इस रीति से बातें न कर सका, जैसे आत्क़िक लोगोंसे; परन्तु जैसे शारीरिक लोगोंसे, और उन से जो मसीह में बालक हैं।
2. में ने तुम्हें दूध पिलाया, अन्न न खिलाया; क्योंकि तुम उस को न खा सकते थे; बारन अब तक भी नहीं खा सकते हो।
3. क्योंकि अब तक शारीरिक हो, इसलिथे, कि जब तुम में डाह और फगड़ा है, तो क्या तुम शारीरिक नहीं और मनुष्य की रीति पर नहीं चलते
4. इसलिथे कि जब एक कहता है, कि मैं पौलुस का हूं, और दूसरा कि मैं अपुल्लोस का हूं, तो क्या तुम मनुष्य नहीं
5. अपुल्लोस क्या है और पौलुस क्या केवल सेवक, जिन के द्वारा तुम ने विश्वास किया, जैसा हर एक को प्रभु ने दिया।
6. मैं ने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्वर ने बढ़ाया।
7. इसलिथे न तो लगानेवाला कुछ है, और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्वर जो बढ़ानेवाला है।
8. लगानेवाला और सींचनेवाला दानोंएक हैं; परन्तु हर एक व्यक्ति अपके ही परिश्र्म के अनुसार अपक्की ही मजदूरी पाएगा।
9. क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्वर की खेती और परमेश्वर की रचना हो।
10. परमेश्वर के उस अनुग्रह के अनुसार, जो मुझै दिया गया, मैं ने बुद्धिमान राजमिस्री की नाईं नेव डाली, और दूसरा उस पर रद्दा रखता है; परन्तु हर एक मनुष्य चौकस रहे, कि वह उस पर कैसा रद्दा रखता है।
11. क्योंकि उस नेव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है कोई दूसरी नेव नहीं डाल सकता।
12. और यदि कोई इस नेव पर सोना या चान्दी या बहुमोल पत्यर या काठ या घास या फूस का रद्दा रखता है।
13. तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिथे कि आग के साय प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है
14. जिस का काम उस पर बना हुआ स्यिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा।
15. और यदि किसी का काम जल जाएगा, तो हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा परन्तु जलते जलते।।
16. क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्क़ा तुम में वास करता है
17. यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नाश करेगा तो परमेश्वर उसे नाश करेगा; क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है, और वह तुम हो।
18. कोई अपन आप को धोखा न दे: यदि तुम में से कोई इस संसार में अपके आप को ज्ञानी समझे, तो मूर्ख बने; कि ज्ञानी हो जाए।
19. क्योंकि इस संसार का ज्ञान परमेश्वर के निकट मूर्खता है, जैसा लिखा है; कि वह ज्ञानियोंको उन की चतुराई में फंसा देता है।
20. और फिर प्रभु ज्ञानियोंकी चिन्ताओं को जानता है, कि व्यर्य हैं।
21. इसलिथे मनुष्योंपर कोई घमण्ड न करे, क्योंकि सब कुछ तुम्हारा है।
22. क्या पौलुस, क्या अपुल्लोस, क्या कैफा, क्या जगत, क्या जीवन, क्या मरण, क्या वर्तमान, क्या भविष्य, सब कुछ तुम्हारा है,
23. और तुम मसीह के हो, और मसीह परमेश्वर का है।।
Chapter 4
1. मनुष्य हमें मसीह के सेवक और परमेश्वर के भेदोंके भण्डारी समझे।
2. फिर यहां भण्डारी में यह बात देखी जाती है, कि विश्वास योग्य निकले।
3. परन्तु मेरी दृष्टि में यह बहुत छोटी बात है, कि तुम या मनुष्योंका कोई न्यायी मुझे परखे, बरन मैं आप ही अपके आप को नहीं परखता।
4. क्योंकि मेरा मन मुझे किसी बात में दोषी नहीं ठहराता, परन्तु इस से मैं निर्दोष नहीं ठहरता, क्योंकि मेरा परखने वाला प्रभु है।
5. सो जब तक प्रभु न आए, समय से पहिले किसी बात का न्याय न करो: वही तो अन्धकार की छिपी बातें ज्योति में दिखाएगा, और मनोंकी मतियोंको प्रगट करेगा, तब परमेश्वर की ओर से हर एक की प्रशंसा होगी।।
6. हे भाइयों, मैं ने इन बातोंमें तुम्हारे लिथे अपक्की और अपुल्लोस की चर्चा, दृष्टान्त की रीति पर की है, इसलिथे कि तुम हमारे द्वारा यह सीखो, कि लिखे हुए से आगे न बढ़ना, और एक के पझ में और दूसरे के विरोध में गर्व न करना।
7. क्योंकि तुझ में और दूसरे में कौन भेद करता है और तेरे पास क्या है जो तू ने (दूसरे से) नहीं पाया: और जब कि तु ने (दूसरे से) पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्योंकरता है, कि मानोंनही पाया
8. तुम तो तृप्त हो चुके; तुम धनी हो चुके, तुम ने हमारे बिना राज्य किया; परन्तु भला होता कि तुम राज्य करते कि हम भी तुम्हारे साय राज्य करते।
9. मेरी समझ में परमेश्वर ने हम प्ररितोंको सब के बाद उन लोगोंकी नाई ठहराया है, जिन की मृत्यु की आज्ञा हो चुकी हो; क्योंकि हम जगत और स्वर्गदूतोंऔर मनुष्योंके लिथे तमाशा ठहरे हैं।
10. हम मसीह के लिथे मूर्ख है; परन्तु तुम मसीह में बुद्धिमान हो: हम निर्बल हैं परन्तु तुम बलवान हो: तुम आदर पाते हो, परन्तु हम निरादर होते हैं।
11. हम इस घड़ी तक भूखे-प्यासे और नंगे हैं, और घूसे खाते हैं और मारे मारे फिरते हैं; और अपके ही हाथोंके काम करके परिश्र्म करते हैं।
12. लोग बुरा कहते हैं, हम आशीष देते हैं; वे सताते हैं, हम सहते हैं।
13. वे बदना करते हैं, हम बिनती करते हैं: हम आज तक जगत के कूड़े और सब वस्तुओं की खुरचन की नाई ठहरे हैं।।
14. मैं तुम्हें लज्ज़ित करते के लिथे थे बातें नहीं लिखता, परन्तु अपके प्रिय बालक जानकर उन्हें चितात हूं।
15. क्योंकि यदि मसीह में तुम्हारे सिखानेवाले दस हजार भी होते, तौभी तुम्हारे पिता बहुत से नहीं, इसलिथे कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा मैं तुम्हारा पिता हुआ।
16. सो मैं तुम से बिनती करता हूं, कि मेरी सी चाल चलो।
17. इसलिथे मैं ने तीमुयियुस को जो प्रभु में मेरा प्रिय और विश्वासयोग्य पुत्र है, तुम्हारे पास भेजा है, और वह तुम्हें मसीह में मेरा चरित्र स्क़रण कराएगा, जैसे कि मैं हर जगह हर एक कलीसिया में उपकेश करता हूं।
18. कितने तो उसे फूल गए हैं, मानोंमैं तुम्हारे पास आने ही का नहीं।
19. परन्तु प्रभु चाहे तो मैं तुम्हारे पास शीघ्र ही आऊंगा, और उन फूले हुओं की बातोंको नहीं, परन्तु उन की सामर्य को जान लूंगा।
20. क्योंकि परमश्ेवर का राज्य बातोंमें नहीं, परन्तु सामर्य में है।
21. तुम क्या चाहते हो क्या मैं छड़ी लेकर तुम्हारे पास आऊं या प्रेम और नम्रता की आत्क़ा के साय
Chapter 5
1. यहां तक सुनने में आता है, कि तुम में व्यभिचार होता है, बरन ऐसा व्यभिचार जो अन्यजातियोंमें भी नहीं होता, कि एक मनुष्य अपके पिता की पत्नी को रखता है।
2. और तुम शोक तो नहीं करते, जिस से ऐसा काम करनेवाला तुम्हारे बीच में से निकाला जाता, परन्तु घमण्ड करते हो।
3. मैं तो शरीर के भाव से दूर या, परन्तु आत्क़ा के भाव से तुम्हारे साय होकर, मानो उपस्यिति ही दशा में ऐसे काम करनेवाले के विषय में यह आज्ञा दे चुका हूं।
4. कि जब तुम, और मेरी आत्क़ा, हमारे प्रभु यीशु की सामर्य के साय इकट्ठे हो, तो ऐसा मनुष्य, हमारे प्रभु यीशु के नाम से।
5. शरीर के विनाश के लिथे शैतान को सौंपा जाए, ताकि उस की आत्क़ा प्रभु यीशु के दिन में उद्धार पाए।
6. तुम्हारा घमण्ड करना अच्छा नहीं; क्या तुम नहीं जानते, कि योड़ा सा खमीर पूरे गूंधे हुए आटे को खमीर कर देता है।
7. पुराना खमीर निकाल कर, अपके आप को शुद्ध करो: कि नया गूंधा हुआ आटा बन जाओ; ताकि तुम अखमीरी हो, क्योंकि हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है।
8. सो आओ हम उत्सव में आनन्द मनावें, न तो पुराने खमीर से और न बुराई और दुष्टता के खमीर से, परन्तु सीधाई और सच्चाई की अखमीरी रोटी से।।
9. मैं ने अपक्की पत्री में तुम्हें लिखा है, कि व्यभिचारियोंकी संगति न करना।
10. यह नहीं, कि तुम बिलकुल इस जगत के व्यभिचारियों, या लोभियों, या अन्धेर करनेवालों, या मूत्तिपूजकोंकी संगति न करो; क्योंकि इस दशा में तो तुम्हें जगत में से निकल जाना ही पड़ता।
11. मेरा कहना यह है; कि यदि कोई भाई कहलाकर, व्यभिचारी, या लोभी, या मूत्तिपूजक, या गाली देनेवाला, या पिय?ड़, या अन्धेर करनेवाला हो, तो उस की संगति मत करना; बरन ऐसे मनुष्य के साय खाना भी न खाना।
12. क्योंकि मुझे बाहरवालोंका न्याय करने से क्या काम क्या तुम भीतरवालोंका न्याय नहीं करते
13. परन्तु बाहरवालोंका न्याय परमेश्वर करता है: इसलिथे उस कुकर्मी को अपके बीच में से निकाल दो।।
Chapter 6
1. क्या तुम में से किसी को यह हियाव है, कि जब दूसरे के साय फगड़ा हो, तो फैसले के लिथे अधिमिर्योंके पास जाए; और पवित्र लागोंके पास न जाए
2. क्या तुम नहीं जानते, कि पवित्र लोग जगत का न्याय करेंगे सो जब तुम्हें जगत का न्याय करना हे, तो क्या तुम छोटे से छोटे फगड़ोंका भी निर्णय करने के योग्य नहीं
3. क्या तुम नहीं जानते, कि हम स्वर्गदूतोंका न्याय करेंगे तो क्या सांसारिक बातोंका निर्णय करना हो, तो क्या उन्हीं को बैठाओगे जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं
4. सो यदि तुम्हें सांसारिक बातोंका निर्णय करना हो, तो क्या उन्हीं को बैठाओगे जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं
5. मैं तुम्हें लज्ज़ित करने के लिथे यह कहता हूं: क्या सचमुच तुम में से एक भी बुद्धिमान नहीं मिलता, जो अपके भाइयोंका निर्णय कर सके
6. बरन भाई भाई में मुकद्दमा होता है, और वह भी अविश्वासियोंके साम्हने।
7. परन्तु सचमुच तुम में बड़ा दोष तो यह है, कि आपस में मुकद्दमा करते हो: बरन अन्याय क्योंनहीं सहते अपक्की हानि क्योंनहीं सहते
8. बरन अन्याय करते और हानि पहुंचाते हो, और वह भी भाइयोंको।
9. क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूत्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरूषगामी।
10. न चोर, न लोभी, न पिय?ड़, न गाली देनेवाले, न अन्धेर करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे।
11. और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम प्रभु यीशु मसीह के नाम से और हमारे परमेश्वर के आत्क़ा से धोए गए, और पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।।
12. सब वस्तुएं मेरे लिथे उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुएं लाभ की नहीं, सब वस्तुएं मेरे लिथे उचित हैं, परन्तु मैं किसी बात के आधीन न हूंगा।
13. भोजन पेट के लिथे, और पेट भोजन के लिथे है, परन्तु परमेश्वर इस को और उस को दोनोंको नाश करेगा, परन्तु देह व्यभिचार के लिथे नहीं, बरन प्रभु के लिथे; और प्रभु देह के लिथे है।
14. और परमेश्वर ने अपक्की सामर्य से प्रभु को जिलाया, और हमें भी जिलाएगा।
15. क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह मसीह के अंग हैं सो क्या मैं मसीह के अंग लेकर उन्हें वेश्या के अंग बनाऊं कदापि नहीं।
16. क्या तुम नहीं जानते, कि जो कोई वेश्या से संगति करता है, वह उसके साय एक तन हो जाता है क्योंकि वह कहता है, कि वे दोनोंएक तन होंगे।
17. और जो प्रभु की संगति में रहता है, वह उसके साय एक आत्क़ा हो जाता है।
18. व्यभिचार से बचे रहो: जितने और पाप मनुष्य करता है, वे देह के बाहर हैं, परन्तु व्यभिचार करनेवाला अपक्की ही देह के विरूद्ध पाप करता है।
19. क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्रात्क़ा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपके नहीं हो
20. कयोंकि दाम देकर मोल लिथे गए हो, इसलिथे अपक्की देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो।।
Chapter 7
1. उन बातोंके विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरूष स्त्री को न छुए।
2. परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरूष की पत्नी, और हर एक सत्री का पति हो।
3. पति अपक्की पत्नी का ह? पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपके पति का।
4. पत्नी को अपक्की देह पर अधिक्कारने नहीं पर उसके पति का अधिक्कारने है; वैसे ही पति को भी अपक्की देह पर अधिक्कारने नहीं, परन्तु पत्नी को।
5. तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्यना के लिथे अवकाश मिले, और फिर एक साय रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे।
6. परन्तु मैं जो यह कहता हूं वह अनुमति है न कि आज्ञा।
7. मैं यह चाहता हूं, कि जैसा मैं हूं, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष विशेष बरदान मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का।।
8. परन्तु मैं अविवाहितोंऔर विधवाओं के विषय में कहता हूं, कि उन के लिथे ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूं।
9. परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामतुर रहने से भला है।
10. जिन का ब्याह हो गया है, उन को मैं नहीं, बरन प्रभु आज्ञा देता है, कि पत्नी अपके पति से अलग न हो।
11. (और यदि अलग भी हो जाए, तो बिन दूसरा ब्याह किए रहे; या अपके पति से फिर मेल कर ले) और न पति अपक्की पत्नी को छोड़े।
12. दूसरें से प्रभु नहीं, परन्तु मैं ही कहता हूं, यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो, और उसके साय रहते से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े।
13. और जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साय रहने से प्रसन्न हो; वह पति को न छोड़े।
14. क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्नी के कारण पवित्र ठहरता है, और ऐसी पत्नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे लड़केबालें अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं।
15. परन्तु जो पुरूष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो, तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहिन बन्धन में नहीं; परन्तु परमेश्वर ने तो हमें मेल मिलाप के लिथे बुलाया है।
16. क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है, कि तुम अपके पति का उद्धार करा ले और हे पुरूष, तू क्या जानता है कि तू अपक्की पत्नी का उद्धार करा ले
17. पर जैसा प्रभु ने हर एक को बांटा है, और परमेश्वर ने हर एक को बुलाया है; वैसा ही वह चले: और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराताह हूं।
18. जो खतना किया हुअ बुलाया गया हो, वह खतनारिहत न बने: जो खतनारिहत बुलाया गया हो, वह खतना न कराए।
19. न खतना कुछ है, और न खतनारिहत परन्तु परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है।
20. हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे।
21. यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर।
22. क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है: और वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है।
23. तुम दाम देकर मोल लिथे गए हो, मनुष्योंके दास न बनो।
24. हे भाइयो, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्वर के साय रहे।।
25. कुंवारियोंके विषय में प्रभु की कोई आज्ञा मुझे नहीं मिली, परन्तु विश्वासयोग्य होने के लिथे जैसी दया प्रभु ने मुझ पर की है, उसी के अनुसार सम्मति देता हूं।
26. सो मेरी समझ में यह अच्छा है, कि आजकल क्लेश के कारण मनुष्य जैसा है, वैसा ही रहे।
27. यदि तेरे पत्नी है, तो उस से अलग होने का यत्न न कर: और यदि तेरे पत्नी नहीं, तो पत्नी की खोज न कर:
28. परन्तु यदि तू ब्याह भी करे, तो पाप नहीं; और यदि कुंवारी ब्याही जाए तो कोई पाप नहीं; परन्तु ऐसोंको शारीरिक दुख होगा, और मैं बचाना चाहता हूं।
29. हे भाइयो, मैं यह कहता हूं, कि समय कम किया गया है, इसलिथे चाहिए कि जिन के पत्नी हों, वे ऐसे होंमानो उन के पत्नी नहीं।
30. और रोनेवाले ऐसे हों, मानो रोते नहीं; और आनन्द करनेवाले ऐसे हों, मानो आनन्द नहीं करते; और मोल लेनेवाले एसे हों, कि मानो उन के पास कुछ है नहीं।
31. और इस संसार के बरतनेवाले ऐसे हों, कि संसार ही के न हो लें; क्योंकि इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं।
32. सो मैं यह चाहता हूं, कि तुम्हें चिन्ता न हो: अविवाहित पुरूष प्रभु की बातोंकी चिन्ता में रहता है, कि प्रभु को क्योंकर प्रसन्न रखे।
33. परन्तु विवाहित मनुष्य संसार की बातोंकी चिन्ता में रहता है, कि अपक्की पत्नी को किस रीति से प्रसन्न रखे।
34. विवाहिता और अविवाहिता में भी भेद है: अविवाहिता प्रभु की चिन्ता में रहती है, कि वह देह और आत्क़ा दोनोंमें पवित्र हो, परन्तु विवाहिता संसार की चिन्ता में रहती है, कि अपके पति को प्रसन्न रखे।
35. यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिथे कहता हूं, न कि तुम्हें फंसाने के लिथे, बरन इसलिथे कि जैसा सोहता है, वैसा ही किया जाए; कि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो।
36. और यदि कोई यह समझे, कि मैं अपक्की उस कुंवारी का ह? मान रहा हूं, जिस की जवानी ढल चक्की है, और प्रयोजन भी होए, तो जैसा चाहे, वैसा करे, इस में पाप नहीं, वह उसका ब्याह होने दे।
37. परन्तु जो मन में दृढ़ रहता है, और उस को प्रयोजन न हो, बरन अपक्की इच्छा पूरी करने में अधिक्कारने रखता हो, और अपके मन में यह बात ठान ली हो, कि मैं अपक्की कुंवारी लड़की को बिन ब्याही रखूंगा, वह अच्छा करता है।
38. सो जो अपक्की कुंवारी का ब्याह कर देता है, वह अच्छा करता है और जो ब्याह नहीं कर देता, वह और भी अच्छा करता है।
39. जब तक किसी स्त्री का पति जीवित रहता है, तब तक वह उस से बन्धी हुई है, परन्तु जब उसका पति मर जाए, तो जिस से चाहे विवाह कर सकती है, परन्तु केवल प्रभु में।
40. परनतु जेसी है यदि वैसी ही रहे, तो मेरे विचार में और भी धन्य है, और मैं समझता हूं, कि परमेश्वर का आत्क़ा मुझ में भी है।।
Chapter 8
1. अब मूरतोंके साम्हने बलि की हुई वस्तुओं के विषय में हम जानते हैं, कि हम सब को ज्ञान है: ज्ञान घमण्ड उत्पन्न करता है, परन्तु प्रेम से उन्नति होती है।
2. यदि कोई समझे, कि मैं कुछ जानता हूं, तो जैसा जानना चाहिए वैसा अब तक नहीं जानता।
3. परन्तु यदि कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है, तो उसे परमेश्वर पहिचानता है।
4. सो मूरतोंके साम्हने बलि की हुई वस्तुओं के खाने के विषय में हम जानते हैं, कि मूरत जगत में कोई वस्तु नहीं, और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं।
5. यद्यपि आकाश में और पृय्वी पर बहुत से ईश्वर कहलाते हैं, (जैसा कि बहुत से ईश्वर ओर बहुत से प्रभु हैं)।
6. तौभी हमारे निकट तो एक ही परमेश्वर है: अर्यात् पिता जिस की ओर से सब वस्तुएं हैं, और हम उसी के लिथे हैं, और एक ही प्रभु है, अर्यात् यीशु मसीह जिस के द्वारा सब वस्तुएं हुई, और हम भी उसी के द्वारा हैं।
7. परन्तु सब को यह ज्ञान नही; परन्तु कितने तो अब तक मूरत को कुछ समझने के कारण मूरतोंके साम्हने बलि की हुई को कुछ वस्तु समझकर खाते हैं, और उन का विवेक निर्बल होकर अशुद्ध होता है।
8. भेजन हमें परमेश्वर के निकट नहीं पहुंचाता, यदि हम न खांए, तो हमारी कुछ हानि नहीं, और यदि खाएं, तो कुछ लाभ नहीं।
9. परन्तु चौकस रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता कहीं निर्बलोंके लिथे ठोकर का कारण हो जाए।
10. क्योंकि यदि कोई तुझ ज्ञानी को मूरत के मन्दिर में भोजन करते देखे, और वह निर्बल जन हो, तो क्या उसके विवेक में मूरत के साम्हने बलि की हुई वस्तु के खाने का हियाव न हो जाएगा।
11. इस रीति से तेरे ज्ञान के कारण वह निर्बल भाई जिस के लिथे मसीह मरा नाश हो जाएगा।
12. सो भाइयोंका अपराध करने से ओर उन के निर्बल विवेक को चोट देने से तुम मसीह का अपराध करते हो।
13. इस कारण यदि भोजन मेरे भाई को ठोकर खिलाए, तो मैं कभी किसी रीति से मांस न खाऊंगा, न हो कि मैं अपके भाई के ठोकर का कारण बनूं।
Chapter 9
1. क्या मैं स्वतंत्र नहीं क्या मैं प्ररित नहीं क्या मैं ने यीशु को जो हमारा प्रभु है, नहीं देखा, क्या तुम प्रभु में मेरे बनाए हुए नहीं
2. यदि मैं औरोंके लिथे प्रेरित नहीं, तौभी तुम्हारे लिथे तो हूं; क्योंकि तुम प्रभु में मेरी प्रेरिताई पर छाप हो।
3. जो मुझे जांचते हैं, उन के लिथे यीह मेरा उत्तर है।
4. क्या हमें खाने-पीने का अधिक्कारने नहीं
5. क्या हमें यह अधिक्कारने नहीं, कि किसी मसीही बहिन को ब्याह कर के लिए फिरें, जैसा और प्रेरित और प्रभु के भाई और कैफा करते हैं
6. या केवल मुझे और बरनबास को अधिक्कारने नहीं कि कमाई करना छोड़ें।
7. कौन कभी अपक्की गिरह से खाकर सिपाही का काम करता है: कौन दाख की बारी लगाकर उसका फल नहीं खाता कौन भेड़ोंकी रखवाली करके उन का दूध नहीं पीता
8. क्या मैं थे बातें मनुष्य ही की रीति पर बोलता हूं
9. क्या व्यवस्या भी यही नहीं कहती क्योंकि मूसा की व्यवस्या में लिखा है कि दांए में चलते हुए बैल का मुंह न बान्धना: क्या परमेश्वर बैलोंही की चिन्ता करता है या विशेष करके हमारे लिथे कहता है।
10. हां, हमारे लिथे ही लिखा गया, क्योंकि उचित है, कि जातनेवाला आशा से जोते, और दावनेवाला भागी होने की आशा से दावनी करे।
11. सो जब कि हम ने तुम्हारे लिथे आत्क़िक वस्तुएं बोई, तो क्या यह कोई बड़ी बात है, कि तुम्हारी शारीरिक वस्तुओं की फसल काटें।
12. जब औरोंका तुम पर यह अधिक्कारने है, तो क्या हमारा इस से अधिक न होगा परन्तु हम यह अधिक्कारने काम में नहीं लाए; परन्तु सब कुछ सहते हैं, कि हमारे द्वारा मसीह के सुसमाचार की कुछ रोक न हो।
13. क्या तुम नहीं जानते कि जो पवित्र वस्तुओं की सेवा करते हैं, वे मन्दिर में से खाते हैं; और जो वेदी की सेवा करते हैं; वे वेदी के साय भागी होते हैं
14. इसी रीति से प्रभु ने भी ठहराया, कि जो लोग सुसमाचार सुनाते हैं, उन की जीविका सुसमाचार से हो।
15. परन्तु मैं इन में से कोई भी बात काम में न लाया, और मैं ने तो थे बातें इसलिथे नहीं लिखीं, कि मेरे लिथे ऐसा किया जाए, क्योंकि इस से तो मेरा मरना ही भला है; कि कोई मेरा घमण्ड व्यर्य ठहराए।
16. और यदि मैं सुसमाचार सुनाऊं, तो मेरा कुछ घमण्ड नहीं; क्योंकि यह तो मेरे लिथे अवश्य है; और यदि मैं सुसमाचार न सुनाऊं, तो मुझ पर हाथ।
17. क्योंकि यदि अपक्की इच्छा से यह करता हूं, तो मजदूरी मुझे मिलती है, और यदि अपक्की इच्छा से नहीं करता, तौभी भण्डारीपन मुझे सौंपा गया है।
18. सो मेरी कौन सी मजदूरी है यह कि सुसमाचार सुनाने में मैं मसीह का सुसमाचार सेंत मेंत कर दूं; यहां तक कि सुसमाचार में जो मेरा अधिक्कारने है, उस को मैं पूरी रीति से काम में लाऊं।
19. क्योंकि सब से स्वतंत्र होने पर भी मैं ने अपके आप को सब का दास बना दिया है; कि अधिक लोगोंको खींच लाऊं।
20. मैं यहूदियोंके लिथे यहूदी बना कि यहूदियोंको खींच लाऊं, जो लोग व्यवस्या के आधीन हैं उन के लिथे मैं व्यवस्या के आधीन न होने पर भी व्यवस्या के आधीन बना, कि उन्हें जो व्यवस्या के आधीन हैं, खींच लाऊं।
21. व्यवस्याहीनोंके लिथे मैं (जो परमेश्वर की व्यवस्या से हीन नहीं, परन्तु मसीह की व्यवस्या के आधीन हूं) व्यवस्याहीन सा बना, कि व्यवस्याहीनोंको खींच लाऊं।
22. मैं निर्बलोंके लिथे निर्बल सा बना, कि निर्बलोंको खींच लाऊं, मैं सब मनुष्योंके लिथे सब कुछ बना हूं, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊं।
23. और मैं सब कुछ सुसमाचार के लिथे करता हूं, कि औरोंके साय उसका भागी हो जाऊं।
24. क्या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो छौड़ते सब ही हैं, परन्तु इनाम एक ही ले जाता है तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो।
25. और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरफानेवाले मुकुट को पाने के लिथे यह सब करते हैं, परन्तु हम तो उस मुकुट के लिथे करते हैं, जो मुरफाने का नहीं।
26. इसलिथे मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूं, परन्तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मु?ोंसे लड़ता हूं, परन्तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है।
27. परनतु मैं अपक्की देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं; ऐसा न हो कि औरोंको प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।।
Chapter 10
1. हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस बात से अज्ञात रहो, कि हमारे सब बापदादे बादल के नीचे थे, और सब के सब समुद्र के बीच से पार हो गए।
2. और सब ने बादल में, और समुद्र में, मूसा का बपितिस्क़ा लिया।
3. और सब ने एक ही आत्क़िक भोजन किया।
4. और सब ने एक ही आत्क़िक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्क़िक चटान से पीते थे, जो उन के साय-साय चलती यी; और वह चटान मसीह या।
5. परन्तु परमेश्वर उन में के बहुतेरोंसे प्रसन्न न हुआ, इसलिथे वे जंगल में ढेर हो गए।
6. थे बातें हमारे लिथे दृष्टान्त ठहरी, कि जैसे उन्होंने लालच किया, वैसे हम बुरी वस्तुओं का लालच न करें।
7. और न तुम मूरत पूजनेवाले बनों; जैसे कि उन में से कितने बन गए थे, जैसा लिखा है, कि लोग खाने-पीने बैठे, और खेलने-कूदने उठे।
8. और न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनोंने किया: एक दिन में तेईस हजार मर गथे।
9. और न हम प्रभु को परखें; जैसा उन में से कितनोंने किया, और सांपोंके द्वारा नाश किए गए।
10. और नतुम कुड़कुड़ाए, जिस रीति से उन में से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करनेवाले के द्वारा नाश किए गए।
11. परन्तु थे सब बातें, जो उन पर पड़ी, दृष्टान्त की रीति पर भी: और वे हमारी चितावनी के लिथे जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं।
12. इसलिथे जो समझता है, कि मैं स्यिर हूं, वह चौकस रहे; कि कहीं गिर न पकें।
13. तुम किसी ऐसी पक्कीझा में नहीं पके, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्य से बाहर पक्कीझा में न पड़ने देगा, बरन पक्कीझा के साय निकास भी करेगा; कि तुम सह सको।।
14. इस कारण, हे मेरे प्यारोंमूत्तिर् पूजा से बचे रहो।
15. मैं बुद्धिमान जानकर, तुम से कहता हूं: जो मैं कहता हूं, उसे तुम परखो।
16. वह धन्यवाद का कटोरा, जिस पर हम धन्यवाद करते हैं, क्या मसीह के लोहू की सहभागिता नहीं वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या मसीह की देह की सहभागिता नहीं
17. इसलिथे, कि एक ही रोटी है सो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं: क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में भागी होते हैं।
18. जो शरीर के भाव से इस्त्रएली हैं, उन को देखो: क्या बलिदानोंके खानेवाले वेदी के सहभागी नहीं
19. फिर मैं क्या कहता हूं क्या यह कि मूरत का बलिदान कुछ है, या मूरत कुछ है
20. नहीं, बरन यह, कि अन्यजाति जो बलिदान करते हैं, वे परमेश्वर के लिथे नहीं, परन्तु दुष्टात्क़ाओं के लिथे बलिदान करते हैं: और मैं नहीं चाहता, कि तुम दुष्टात्क़ाओं के सहभागी हो।
21. तुम प्रभु के कटोरे, और दुष्टात्क़ाओं के कटोरे दानोंमें से नहीं पी सकते! तुम प्रभु की मेज और दुष्टात्क़ाओं की मेज दानोंके साफी नहीं हो सकते।
22. क्या हम प्रभु को रिस दिलाते हैं क्या हम उस से शक्तिमान हैं
23. सब वस्तुएं मेरे लिथे उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं: सब वस्तुएं मेरे लिथे उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुओं से उन्नित नहीं।
24. कोई अपक्की ही भलाई को न ढूंढे, बरन औरोंकी।
25. जो कुछ कस्साइयोंके यहां बिकता है, वह खाओ और विवेक के कारण कुछ न पूछो।
26. क्योकि पृय्वी और उसकी भरपूरी प्रभु की है।
27. और यदि अविश्वायथें में से कोई तुम्हें नेवता दे, और तुम जाना चाहो, तो जो कुछ तुम्हारे साम्हने रखा जाए वही खाओ: और विवेक के कारण कुछ न पूछो।
28. परन्तु यदि कोई तुम से कहे, यह तो मूरत को बलि की हुई वस्तु है, तो उसी बतानेवाले के कारण, और विवेक के कारण न खाओ।
29. मेरा मतलब, तेरा विवेक नहीं, परन्तु उस दूसरे का। भला, मेरी स्वतंत्रता दूसरे के विचार से क्योंपरखी जाए:
30. यदि मैं धन्यवाद करके साफी होता हूं, तो जिस पर मैं धन्यवाद करता हूं, उसके कारण मेरी बदनामीं क्योंहोती है
31. सो तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महीमा के लिथे करो।
32. तुम न यहूदियों, न यूनानियों, और न परमेश्वर की कलीसिया के लिथे ठोकर का कारण बनो।
33. जैसा मैं भी सब बातोंमें सब को प्रसन्न रखता हूं, और अपना नहीं, परन्तु बहुतोंका लाभ ढूंढ़ता हूं, कि वे उद्धार पाएं।
Chapter 11
1. तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं।।
2. हे भाइयों, मैं तुम्हें सराहता हूं, कि सब बातोंमें तुम मुझे स्क़रण करते हो: और जो व्यवहार मैं ने तुम्हें सौंप दिए हैं, उन्हें धारण करते हो।
3. सो मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि हर एक पुरूष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरूष है: और मसीह का सिर परमेश्वर है।
4. जो पुरूष सिर ढांके हुए प्रार्यना या भविष्यद्वाणी करता है, वह अपके सिर का अपमान करता है।
5. परन्तु जो स्त्री उघाड़े सिर प्रार्यना या भविष्यद्ववाणी करती है, वह अपके सिर का अपमान करती है, क्योंकि वह मुण्डी होने के बराबर है।
6. यदि स्त्री आढ़नी न ओढ़े, तो बाल भी कटा ले; यदि स्त्री के लिथे बाल कटाना या मुण्डाना लज्ज़ा की बात है, तो ओढ़नी ओढ़े।
7. हां पुरूष को अपना सिर ढांकना उचित हनीं, क्योंकि वह परमेश्वर का स्वरूप और महिमा है; परन्तु स्त्री पुरूष की महिमा!
8. क्योंकि पुरूष स्त्री से नहीं हुआ, परन्तु स्त्री से हुई है।
9. और पुरूष स्त्री के लिथे नहीं सिरजा गया, परन्तु स्त्री पुरूष के लिथे सिरजी गई है।
10. इसीलिथे स्वर्गदूतोंके कारण स्त्री को उचित है, कि अधिक्कारने अपके सिर पर रखे।
11. तौभी प्रभु में न तो स्त्री बिना पुरूष और न पुरूष बिना स्त्री के है।
12. क्योंकि जैसे स्त्री पुरूष से है, वैसे ही पुरूष स्त्री के द्वारा है; परन्तु सब वस्तुएं परमेश्वर के द्वारा हैं।
13. तुम आप ही विचार करो, क्या स्त्री को उघाड़े सिर परमेश्वर से प्रार्यना करना सोहना है
14. क्या स्वाभिविक रीति से भी तुम नहीं जानते, कि यदि पुरूष लम्बे बाल रखे, तो उसके लिथे अपमान है।
15. परन्तु यदि स्त्री लम्बे बाल रखे; तो उसके लिथे शोभा है क्योंकि बाल उस को ओढ़नी के लिथे दिए गए हैं।
16. परनतु यदि कोई विवाद करना चाहे, तो यह जाने कि न हमारी और न परमेश्वर की कलीसियोंकी ऐसी रीति है।।
17. परनतु यह आज्ञा देते हुए, मैं तुम्हें नहीं सराहता, इसलिथे कि तुम्हारे इकट्ठे होने से भलाई नहीं, परन्तु हानि होती है।
18. क्योंकि पहिले तो मैं यह सुनता हूं, कि जब तुम कलीसिया में इकट्ठे हाते हो, तो तुम में फूट होती है और मैं कुछ कुछ प्रतीति भी करता हूं।
19. क्यांकि विधर्म भी तुम में अवश्य होंगे, इसलिथे कि जो लागे तुम में खरे निकले हैं, वे प्रगट हो जांए।
20. सो तुम जो एक जगह में इकट्ठे होते हो तो यह प्रभु भोज खाने के लिथे नहीं।
21. क्योंकि खाने के समय एक दूसरे से पहिले अपना भोज खा लेता है, सो कोई तो भूखा रहता है, और कोई मतवाला हो जाता है।
22. क्या खाने पीने के लिथे तुम्हारे घर नहीं या परमेश्वर की कलीसिया को तुच्छ जानते हो, और जिन के पास नहीं है उन्हें लज्ज़ित करते हो मैं तुम से क्या कहूं क्या इस बात में तुम्हारी प्रशंसा करूं मैं प्रशंसा नहीं करता।
23. क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी; कि प्रभु यीशु ने जिस रात पकड़वाया गया रोटी ली।
24. और धन्यवाद करके उसे तोड़ी, और कहा; कि यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिथे है: मेरे स्क़रण के लिथे यही किया करो।
25. इसी रीति से उस ने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया, और कहा; यह कटोरा मेरे लोहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो मेरे स्क़रण के लिथे यही किया करो।
26. क्योंकि जब कभी तुम यह रोटी खाते, और इस कटोरे में से पीते हो, तो प्रभु की मृत्यु को जब तक वह न आए, प्रचार करते हो।
27. इसलिथे जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लोहू का अपराधी ठहरेगा।
28. इसलिथे मनुष्य अपके आप को जांच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए।
29. क्योंकि जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहिचाने, वह इस खाने और पीने से अपके ऊपर दण्ड लाता है।
30. इसी कारण तुम में से बहुत से निर्बल और रोगी हैं, और बहुत से सो भी गए।
31. यदि हम अपके आप में जांचते, तो दण्ड न पाते।
32. परन्तु प्रभु हमें दण्ड देकर हमारी ताड़ना करता है इसलिथे कि हम संसार के साय दोषी न ठहरें।
33. इसलिथे, हे मेरे भाइयों, जब तुम खाने के लिथे इकट्ठे होते हो, तो एक दूसरे के लिथे ठहरा करो।
34. यदि कोई भूखा हो, तो अपके घर में खा ले जिस से तुम्हार इकट्ठा होना दण्ड का कारण न हो: और शेष बातोंको मैं आकर ठीक कर दूंगा।।
Chapter 12
1. हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम आत्क़िक बरदानोंके विषय में अज्ञात रहो।
2. तुम जानते हो, कि जब तुम अन्यजाति थे, तो गूंगी मूरतोंके पीछे जेसे चलाए जाते थे वैसे चलते थे।
3. इसलिथे मैं तुम्हें चितौनी देता हूं कि जो कोई परमेश्वर की आत्क़ा की अगुआई से बोलता है, वह नहीं कहता कि यीशु स्त्रापित है; और न कोई पवित्र आत्क़ा के बिना कह सकता है कि यीशु प्रभु है।।
4. बरदान तो कई प्रकार के हैं, परन्तु आत्क़ा एक ही है।
5. और सेवा भी कई प्रकार की है, परन्तु प्रभु एक ही है।
6. और प्रभावशाली कार्य्य कई प्रकार के हैं, परन्तु परमश्ेवर एक ही है, जो सब में हर प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करता है।
7. किन्तु सब के लाभ पहुंचाने के लिथे हर एक को आत्क़ा का प्रकाश दिया जाता है।
8. क्योंकि एक को आत्क़ा के द्वारा बुिद्व की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्क़ा के अनुसार ज्ञान की बातें।
9. और किसी को उसी आत्क़ा से विश्वास; और किसी को उसी एक आत्क़ा से चंगा करने का बरदान दिया जाता है।
10. फिर किसी को सामर्य के काम करने की शक्ति; और किसी को भविष्यद्वाणी की; और किसी को अनेक प्रकार की भाषा; और किसी को भाषाओं का अर्य बताना।
11. परन्तु थे सब प्रभावशाली कार्य्य वही एक आत्क़ा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बांट देता है।।
12. क्योंकि जिस प्रकार देह तो एक है और उसके अंग बहुत से हैं, और उस एक देह के सब अंग, बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह हैं, उसी प्रकार मसीह भी है।
13. क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्र एक ही आत्क़ा के द्वारा एक देह होने के लिथे बपतिस्क़ा लिया, और हम एक को एक ही आत्क़ा पिलाया गया।
14. इसलिथे कि देह में एक ही अंग नहीं, परन्तु बहुत से हैं।
15. यदि पांव कहे: कि मैं हाथ नहीं, इसलिथे देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं
16. और यदि कान कहे; कि मैं आंख का नहीं, इसलिथे देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं।
17. यदि सारी देह आंख की होती तो सुनना कहां से होता यदि सारी देह कान ही होती तो सूंघना कहां होता
18. परन्तु सचमुच परमेश्वर ने अंगो को अपक्की इच्छा के अनुसार एक एक करके देह में रखा है।
19. यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहां होती
20. परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है।
21. आंख हाथ से नहीं कह सकती, कि मुझे तेरा प्रयोजन नहीं, और न सिर पांवोंसे कह सकता है, कि मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं।
22. परन्तु देह के वे अंग जो औरोंसे निर्बल देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं।
23. और देह के जिन अंगो को हम आदर के योग्य नहीं समझते हैं उन्ही को हम अधिक आदर देते हैं; और हमारे शोभाहीन अंग और भी बहुत शोभायमान हो जाते हैं।
24. फिर भी हमारे शोभायमान अंगो को इस का प्रयोजन नहीं, परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी यी उसी को और भी बहुत आदर हो।
25. ताकि देह में फूट न पके, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्ता करें।
26. इसलिथे यदि एक अंग दु:ख पाता है, तो सब अंग उसके साय दु:ख पाते हैं; और यदि एक अंग की बड़ाई होती है, तो उसके साय सब अंग आनन्द मनाते हैं।
27. इसी प्रकार तुम सब मिलकर मसीह की देह हो, और अलग अलग उसके अंग हो।
28. और परमश्ेवर ने कलीसिया में अलग अलग व्यक्ति नियुक्त किए हैं; प्रयम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिझक, फिर सामर्य के काम करनेवाले, फिर चंगा करनेवाले, और उपकार करनेवाले, और प्रधान, और नाना प्रकार की भाषा बालनेवाले।
29. क्या सब प्रेरित हैं क्या सब भविष्यद्वक्ता हैं क्या सब उपकेशक हैं क्या सब सामर्य के काम करनेवाले हैं
30. क्या सब को चंगा करने का बरदान मिला है क्या सब नाना प्रकार की भाषा बोलते हैं
31. क्या सब अनुवाद करते हैं तुम बड़ी से बड़ी बरदानोंकी धुन में रहो! परन्तु मैं तुम्हें और भी सब से उत्तम मार्ग बताता हूं।।
Chapter 13
1. यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतोंकी बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और फंफनाती हुई फांफ हूं।
2. और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदोंऔर सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ोंको हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
3. और यदि मैं अपक्की सम्पूर्ण संपत्ति कंगालोंको खिला दूं, या अपक्की देह जलाने के लिथे दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
4. प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाल नहीं करता; प्रेम अपक्की बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
5. वह अनरीति नहीं चलता, वह अपक्की भलाई नहीं चाहता, फुंफलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
6. कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सन्य से आनन्दित होता है।
7. वह सब बातें सह लेता है, सब बातोंकी प्रतीति करता है, सब बातोंकी आशा रखता है, सब बातोंमें धीरज धरता है।
8. प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
9. क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
10. परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
11. जब मैं बालक या, तो मैं बालकोंकी नाईं बोलता या, बालकोंका सा मन या बालकोंकी सी समझ यी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकोंकी बातें छोड़ दी।
12. अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
13. पर अब विश्वास, आशा, प्रेम थे तीनोंस्याई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।
Chapter 14
1. प्रेम का अनुकरण करो, और आत्क़िक बरदानोंकी भी धुन में रहो विशेष करके यह, कि भविष्यद्वाणी करो।
2. क्योंकि जो अन्यभाषा में बातें करता है; वह मनुष्योंसे नहीं, परन्तु परमेश्वर से बातें करता है; इसलिथे कि उस की कोई नहीं समझता; क्योंकि वह भेट की बातें आत्क़ा में होकर बोलता है।
3. परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्योंसे उन्नति, और उपकेश, और शान्ति की बातें कहता है।
4. जो अन्य भाषा में बातें करता है, वह अपक्की ही उन्नति करता है; परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह कलीसिया की उन्नति करता है।
5. मैं चाहता हूं, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो, परन्तु अधिकतर यह चाहता हूं कि भविष्यद्वाणी करो: क्योंकि यदि अन्यान्य भाषा बोलनेवाला कलीसिया की उन्नति के लिथे अनुवाद न करे तो भविष्यद्ववाणी करनेवाला उस से बढ़कर है।
6. इसलिथे हे भाइयों, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्यान्य भाषा में बातें करूं, और प्रकाश, या ज्ञान, या भविष्यद्वाणी, या उपकेश की बातें तुम से न कहूं, तो मुझ से तुम्हें क्या लाभ होगा
7. इसी प्रकार यदि निर्जीव वस्तुएं भी, जिन से ध्वनि निकलती है जेसे बांसुरी, या बीन, यदि उन के स्वरोंमें भेद न हो तो जो फूंका या बजाया जाता है, वह क्योंकर पहिचाना जाएगा
8. और यदि तुरही का शब्द साफ न हो तो कौन लड़ाई के लिथे तैयारी करेगा
9. ऐसे ही तुम भी यदि जीभ से साफ बातें न कहो, तो जो कुछ कहा जाता है वह क्योंकर समझा जाएगा तुम तो हवा से बातें करनेवाले ठहरोगे।
10. जगत में कितने की प्रकार की भाषाएं क्योंन हों, परन्तु उन में से कोई भी बिना अर्य की न होगी।
11. इसलिथे यदि मैं किसी भाषा का अर्य न समझूं, तो बोलनेवाले की दृष्टि में परदेशी ठहरूंगा; और बोलनेवाला मेरे दृष्टि में परदेशी ठहरेगा।
12. इसलिथे तुम भी जब आत्क़िक बरदानोंकी धुन में हो, तो ऐसा प्रयत्न करो, कि तुम्हारे बरदानोंकी उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो।
13. इस कारण जो अन्य भाषा बोले, तो वह प्रार्यना करे, कि उसका अनुवाद भी कर सके।
14. इसलिथे यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्यना करूं, तो मेरी आत्क़ा प्रार्यना करती है, परन्तु मेरी बुद्धि काम नहीं देती।
15. सो क्या करना चाहिए मैं आत्क़ा से भी प्रार्यना करूंगा, और बुद्धि से भी प्रार्यना करूंगा; मैं आत्क़ा से गाऊंगा, और बुद्धि से भी गाऊंगा।
16. नहीं तो यदि तू आत्क़ा ही से धन्यवाद करेगा, तो फिर अज्ञानी तेरे धन्यवाद पर आमीन क्योंकि कहेगा इसलिथे कि वह तो नहीं जानता, कि तू क्या कहता है
17. तू तो भली भांति से धन्यवाद करता है, परन्तु दूसरे की उन्नति नहीं होती।
18. मैं अपके परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं, कि मैं तुम सब से अधिक अन्यान्य भाषा में बोलता हूं।
19. परन्तु कलीसिया में अन्य भाषा में दस हजार बातें कहने से यह मुझे और भी अच्छा जान पड़ता है, कि औरोंके सिखाने के लिथे बुद्धि से पांच ही बातें कहूं।।
20. हे भाइयो, तुम समझ में बालक न बनो: तौभी बुराई में तो बालक रहो, परन्तु समझ में सियाने बानो।
21. व्यवस्या में लिखा है, कि प्रभु कहता है; मैं अन्य भाषा बोलनेवालोंके द्वारा, और पराए मुख के द्वारा इन लोगोंसे बात करूंगा तौभी वे मेरी न सुनेंगे।
22. इसलिथे अन्यान्य भाषाएं विश्वासियोंके लिथे नहीं, परन्तु अविश्वासियोंके लिथे चिन्ह हैं, और भविष्यद्वाणी अविश्वासीयोंके लिथे नहीं परन्तु विश्वासियोंके लिथे चिन्ह हैं।
23. सो यदि कलीसिया एक जगह इकट्ठी हो, और सब के सब अन्यान्य भाषा बोलें, और अनपढ़े या अविश्वासी लोग भीतर आ जाएं तो क्या वे तुम्हें पागल न कहेंगे
24. परन्तु यदि सब भविष्यद्वाणी करने लगें, और कोई अविश्वासी या अनपढ़ा मनुष्य भीतर आ जाए, तो सब उसे दोषी ठहरा देंगे और परख लेंगे।
25. और उसके मन के भेअ प्रगट हो जाएंगे, और तब वह मुंह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत करेगा, और मान लेगा, कि सचमुच परमेश्वर तुम्हारे बीच में है।
26. इसलिथे हे भाइयो क्या करना चाहिए जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के ह्रृदय में भजन, या उपकेश, या अन्यभाषा, या प्रकाश, या अन्यभाषा का अर्य बताना रहता है: सब कुछ आत्क़िक उन्नति के लिथे होना चाहिए।
27. यदि अन्य भाषा में बातें करनीं हों, तो दो दो, या बहुत हो तो तीन तीन जन बारी बारी बोलें, और एक व्यक्ति अनुवाद करे।
28. परन्तु यदि अनुवाद करनेवाला न हो, तो अन्यभाषा बालनेवाला कलीसिया में शान्त रहे, और अपके मन से, और परमेश्वर से बातें करे।
29. भविष्यद्वक्ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उन के वचन को परखें।
30. परन्तु यदि दूसरे पर जो बैठा है, कुछ ईश्वरीय प्रकाश हो, तो पहिला चुप हो जाए।
31. क्योंकि तुम सब एक एक करके भविष्यद्वाणी कर सकते हो ताकि सब सीखें, और सब शान्ति पाएं।
32. और भविष्यद्वक्ताओं की आत्क़ा भविष्यद्वक्ताओं के वश में है।
33. क्थेंकि परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है; जैसा पवित्र लोगोंकी सब कलीसियाओं में है।।
34. स्त्रियां कलीसिया की सभा में चुप रहें, क्योंकि उन्हें बातें करने की आज्ञा नहीं, परन्तु आधीन रहने की आज्ञा है: जैसा व्यवस्या में लिखा भी है।
35. और यदि वे कुछ सीखना चाहें, तो घर में अपके अपके पति से पूछें, क्योंकि स्त्री का कलीसिया में बातें करना लज्ज़ा की बात है।
36. क्योंपरमश्ेवर का वचन तुम में से निकला या केवल तुम ही तक पहुंचा है
37. यदि कोई मनुष्य अपके आप को भविष्यद्वक्ता या आत्क़िक जन समझे, तो यह जान ले, कि जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूं, वे प्रभु की आज्ञाएं हैं।
38. परन्तु यदि कोई न जाने, तो न जाने।।
39. सो हे भाइयों, भविष्यद्वाणी करने की धुन में रहो और अन्यभाषा बोलने से मना न करो।
40. पर सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएं।
Chapter 15
1. हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूं जो पहिले सुना चुका हूं, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया या और जिस में तुम स्यिर भी हो।
2. उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भी होता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैं ने तुम्हें सुनाया या स्क़रण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्य हुआ।
3. इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची यी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापोंके लिथे मर गया।
4. ओर गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा।
5. और कैफा को तब बारहोंको दिलाई दिया।
6. फिर पांच सौ से अधिक भाइयोंको एक साय दिखाई दिया, जिन में से बहुतेरे अब तक वर्तमान हैं पर कितने सो गए।
7. फिर याकूब को दिखाई दिया तक सब प्रेरितोंको दिखाई दिया।
8. और सब के बाद मुझ को भी दिखाई दिया, जो मानो अधूरे दिनोंका जन्क़ा हूं।
9. क्योंकि मैं प्ररितोंमें सब से छोटा हूं, बरन प्ररित कहलाने के योग्य भी नहीं, क्योंकि मैं ने परमेश्वर की कलीसिया को सताया या।
10. परन्तु मैं जो कुछ भी हूं, परमेश्वर के अनुग्रह से हूं: और उसका अनुग्रह जो मुझ पर हुआ, वह व्यर्य नहीं हुआद्ध परनतु मैं ने उन सब से बढ़कर परिश्र्म भी किया: तौभी यह मेरी ओर से नहीं हुआ परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से जो मुझ पर या।
11. सो चाहे मैं हूं, चाहे वे हों, हम यही प्रचार करते हैं, और इसी पर तुम ने विश्वास भी किया।।
12. सो जब कि मसीह का यह प्रचार किया जाता है, कि वह मरे हुओं में से जी उठा, तो तुम में से कितने क्योंकर कहते हैं, कि मरे हुओं का पुनरूत्यान है ही नहीं
13. यदि मरे हुओं का पुनरूत्यान ही नहीं, तो मसीह भी नहीं जी उठा।
14. और यदि मसीह भी नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्य है; और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्य है।
15. बरन हम परमश्ेवर के फूठे गवाह ठहरे; क्योंकि हम ने परमेश्वर के विषय में यह गवाही दी कि उस ने मसीह को जिला दिया यद्यपि नहीं जिलाया, यदि मरे हुए नहीं जी उठते।
16. और यदि मुर्दे नहीं जी उठते, तो मसीह भी नहीं जी उठा।
17. और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो तुम्हारा विश्वास व्यर्य है; और तुम अब तक अपके पापोंमें फंसे हो।
18. बरन जो मसीह मे सो गए हैं, वे भी नाश हुए।
19. यदि हम केवल इसी जीवन में मसीह से आशा रखते हैं तो हम सब मनुष्योंसे अधिक अभागे हैं।।
20. परन्तु सचमुच मसीह मुर्दोंमें से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ।
21. क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरूत्यान भी आया।
22. और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।
23. परन्तु हर एक अपक्की अपक्की बारी से; पहिला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग।
24. इस के बाद अन्त होगा; उस समय वह सारी प्रधानता और सारा अधिक्कारने और सामर्य का अन्त करके राज्य को परमेश्वर पिता के हाथ में सौंप देगा।
25. क्योंकि जब तक कि वह अपके बैरियोंको अपके पांवोंतले न ले आए, तब तक उसका राज्य करना अवश्य है।
26. सब से अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है।
27. क्योंकि परमेश्वर ने सब कुछ उसके पांवोंतले कर दिया है, परन्तु जब वह कहता है कि सब कुछ उसके आधीन कर दिया गया है तो प्रत्यझ है, कि जिस ने सब कुछ उसके आधीन कर दिया, वह आप अलग रहा।
28. और जब सब कुछ उसके आधीन हो जाएगा, तो पुत्र आप भी उसके आधीन हो जाएगा जिस ने सब कुछ उसके आधीन कर दिया; ताकि सब में परमेश्वर ही सब कुछ हो।।
29. नहीं तो जो लोग मरे हुओं के लिथे बपतिस्क़ा लेते हैं, वे क्या करेंगे यदि मुर्दे जी उठते ही नहीं तो फिर क्योंउन के लिथे बपतिस्क़ा लेते हैं
30. और हम भी क्योंहर घड़ी जाखिम में पके रहते हैं
31. हे भाइयो, मुझे उस घमण्ड की सोंह जो हमारे मसीह यीशु में मैं तुम्हारे विषय में करता हूं, कि मैं प्रति दिन मरता हूं।
32. यदि मैं मनुष्य की रीति पर इफिसुस में बन-पशुओं से लड़ा, तो मुझे क्या लाभ हुआ यदि मुर्दे जिलाए नहीं जाएंगे, तो आओ, खाए-पीए, क्योंकि कल तो मर ही जाएंगे।
33. धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।
34. धर्म के लिथे जाग उठो और पाप न करो; क्योंकि कितने ऐसे हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते, मैं तुम्हें लज्ज़ित करते के लिथे यह कहता हूं।।
35. अब कोई यह कहेगा, कि मुर्दे किस रीति से जी उठते हैं, और किसी देह के साय आते हैं
36. हे निर्बुिद्व, जो कुछ तु बोता है, जब तक वह न मरे जिलाया नहीं जाता।
37. ओर जो तू बोता है, यह वह देह नहीं जो उत्पन्न होनेवाली है, परन्तु निरा दाना है, चाहे गेहूं का, चाहे किसी और अनाज का।
38. परन्तु परमेश्वर अपक्की इच्छा के अनुसार उस को देह देता है; और हर एक बीज को उस की विशेष देह।
39. सब शरीर एक सरीखे नहीं, परन्तु मनुष्योंका शरीर और है, पशुओं का शरीर और है; पझियोंका शरीर और है; मिछिलयोंका शरीर और है।
40. स्वर्गीय देह है, और पायिर्व देह भी है: परन्तु स्वर्गीयह देहोंका तेज और हैं, और पायिर्व का और।
41. सूर्य का तेज और है, चान्द का तेज और है, और तारागणोंका तेज और है, (क्योंकि एक तारे से दूसरे तारे के तेज मे अन्तर है)।
42. मुर्दोंका जी उठना भी ऐसा ही है। शरीर नाशमान दशा में बोया जाता है, और अविनाशी रूप में जी उठता है।
43. वह अनादर के साय बोया जाता है, और तेज के साय जी उठता है; निर्बलता के साय बोया जाता है; और सामर्य के साय जी उठता है।
44. स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्क़िक देह जी उठती है: जब कि स्वाभाविक देह है, तो आत्क़िक देह भी है।
45. ऐसा ही लिखा भी है, कि प्रयम मनुष्य, अर्यात् आदम, जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम, जीवनदायक आत्क़ा बना।
46. परन्तु पहिले आत्क़िक न या, पर स्वाभाविक या, इस के बाद आत्क़िक हुआ।
47. प्रयम मनुष्य धरती से अर्यात् मिट्टी का या; दूसरा मनुष्य स्वर्गीय है।
48. जैसा वह मिट्टी का या वैसे ही और मिट्टी के हैं; और जैसा वह स्वर्गीय है, वैसे ही और भी स्वर्गीय हैं।
49. और जैसे हम ने उसका रूप जो मिट्टी का या धारण किया वैसे ही उस स्वर्गीय का रूप भी धारण करेंगे।।
50. हे भाइयों, मैं यह कहता हूं कि मांस और लोहू परमेश्वर के राज्य के अधिक्कारनेी नहीं हो सकते, और न विनाश अविनाशी का अधिक्कारनेी हो सकता है।
51. देखे, मैं तुम से भेद की बात कहता हूं: कि हम सब तो नहीं सोएंगे, परन्तु सब बदल जाएंगे।
52. और यह झण भर में, पलक मारते ही पिछली तुरही फूंकते ही होगा: कयोंकि तुरही फूंकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जांएगे, और हम बदल जाएंगे।
53. क्योंकि अवश्य है, कि वह नाशमान देह अविनाश को पहिन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहिन ले।
54. और जब यह नाशमान अविनाश को पहिन लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहिन लेगा, तक वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा, कि जय ने मृत्यु को निगल लिया।
55. हे मृत्यु तेरी जय कहां रहीं
56. हे मृत्यु तेरा डंक कहां रहा मृत्यु का डंक पाप है; और पाप का बल ब्यवस्या है।
57. परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें जयवन्त करता है।
58. सो हे मेरे प्रिय भाइयो, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्र्म प्रभु में व्यर्य नहीं है।।
Chapter 16
1. अब उस चन्दे के विषय में जो पवित्र लोगोंके लिथे किया जाता है, जैसी आज्ञा मैं ने गलतिया की कलीसियाओं को दी, वैसा ही तुम भी करो।
2. सप्ताह के पहिले दिन तुम में से हर एक अपक्की आमदनी के अनुसार कुछ अपके पास रख छोड़ा करे, कि मेरे आने पर चन्दा न करना पके।
3. और जब मैं आऊंगा, तो जिन्हें तुम चाहोगे उन्हें मैं चिट्ठियां देकर भेज दूंगा, कि तुम्हारा दान यरूशलेम पहुंचा दें।
4. और यदि मेरा भी जाना उचित हुआ, तो वे मेरे साय जाएंगे।
5. और मैं मकिदुनिया होकर तो जाना ही है।
6. परन्तु सम्भव है कि तुम्हारे यहां ही ठहर जाऊं और शरद ऋतु तुम्हारे यंहा काटूं, तब जिस ओर मेरा जाना हो, उस ओर तुम मुझे पहुंचा दो।
7. क्योंकि मैं अब मार्ग में तुम से भेंट करना नहीं चाहता; परन्तु मुझे आशा है, कि यदि प्रभु चाहे तो कुछ समय तक तुम्हारे साय रहूंगा।
8. परनतु मैं पेन्तिकुस्त तक इफिसुस में रहूंगा।
9. क्योंकि मेरे लिथे एक बड़ा और उपयोगी द्वार खुला है, और विरोधी बहुत से हैं।।
10. यदि तीमुयियुस आ जाए, तो देखना, कि वह तुम्हारे यहां निडर रहे; क्योंकि वह मेरी नाई प्रभु का काम करता है।
11. इसलिथे कोई उसे तुच्छ न जाने, परन्तु उसे कुशल से इस ओर पहुंचा देना, कि मेरे पास आ जाए; क्योंकि मैं उस की बाट जोह रहा हूं, कि वह भाइयोंके साय आए।
12. और भाई अपुल्लोस से मैं ने बहुत बिनती की है कि तुम्हारे पास भाइयोंके साय जाए; परन्तु उस ने उस समय जाने की कुछ भी इच्छा न की, परन्तु जब अवसर पाएगा, तब आ जाएगा।
13. जागते रहो, विश्वास में स्यिर रहो, पुरूषार्य करो, बलवन्त होओ।
14. जो कुछ करते हो प्रेम से करो।।
15. हे भाइयो, तुम स्तिफनास के घराने को जानते हो, कि वे अखया के पहिले फल हैं, और पवित्र लोगोंकी सेवा के लिथे तैयार रहते हैं।
16. सो मैं तुम से बिनती करता हूं कि ऐसोंके आधीन रहो, बरन हर एक के जो इस काम में परिश्र्मी और सहकर्मी हैं।
17. और मैं स्तिफनास और फूरतूनातुस और अखइकुस के आने से आनन्दित हूं, क्योंकि उन्होंने तुम्हारी धटी को पूरी की है।
18. और उन्होंने मेरी और तुम्हारी आत्क़ा को चैन दिया है इसलिथे ऐसोंको मानो।।
19. आसिया की कलीसियाओं की ओर से तुम को नमस्कार; अक्विला और प्रिसका का और उन के घर की कलीसिया को भी तुम को प्रभु में बहुत बहुत नमस्कार।
20. सब भाइयोंका तुम को नमस्कार: पवित्र चुम्बन से आपस में नमस्कार करो।।
21. मुझ पौलुस का अपके हाथ का लिखा हुआ नमस्कार: यदि कोई प्रभु से प्रेम न रखे तो वह स्त्रापित हो।
22. हमारा प्रभु आनेवाला है।
23. प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम पर होता रहे।
24. मेरा प्रेम मसीह यीशु में तुम सब से रहे। आमीन।।
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