{[['']]}
2 कुरिन्थियों (2 Corinthians)
Chapter 1
1. पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुयियुस की ओर से परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्युस में है; और सारे अखमा के सब पवित्र लागोंके नाम।।
2. हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।।
3. हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर है।
4. वह हमारे सब क्लेशोंमें शान्ति देता है; ताकि हम उस शान्ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों।
5. क्योंकि जैसे मसीह के दुख हम को अधिक होते हैं, वैसे ही हमारी शान्ति भी मसीह के द्वारा अधिक हाती है।
6. यदि हम क्लेश पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति और उद्धार के लिथे है और यदि शान्ति पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति के लिथे है; जिस के प्रभाव से तुम धीरज के साय उन क्लेशोंको सह लेते हो, जिन्हें हम भी सहते हैं।
7. और हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुखोंके वैसे ही शान्ति के भी सहभागी हो।
8. हे भाइयों, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्लेश से अनजान रहो, जो आसिया में हम पर पड़ा, कि ऐसे भारी बोफ से दब गए थे, जो हमारी समर्य से बाहर या, यहां तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे।
9. बरन हम ने अपके मन में समझ लिया या, कि हम पर मृत्यु की आज्ञा हो चुकी है कि हम अपना भरोसा न रखें, बरन परमेश्वर का जो मरे हुओं को जिलाता है।
10. उसी ने हमें ऐसी बड़ी मृत्यु से बचाया, और बचाएगा; और उस से हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा।
11. और तुम भी मिलकर प्रार्यना के द्वारा हमारी सहाथता करोगे, कि जो बरदान बहुतोंके द्वारा हमें मिला, उसके कारण बहुत लोग हमारी ओर से धन्यवाद करें।।
12. क्योंकि हम अपके विवेक की इस गवाही पर घमण्ड करते हैं, कि जगत में और विशेष करके तुम्हारे बीच हमारा चरित्र परमेश्वर के योग्य ऐसी पवित्रता और सच्चाई सहित या, जो शारीरिक ज्ञान से नहीं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह के साय या।
13. हम तुम्हें और कुछ नहीं लिखते, केवल वह जो तुम पढ़ते या मानते भी हो, और मुझे आशा है, कि अन्त तक भी मानते रहोगे।
14. जैसा तुम में से कितनोंने मान लिया है, कि हम तुम्हारे घमण्ड का कारण है; वैसे तुम भी प्रभु यीशु के दिन हमारे लिथे घमण्ड का कारण ठहरोगे।।
15. और इस भरोसे से मैं चाहता या कि पहिले तुम्हारे पास आऊं; कि तुम्हें एक और दान मिले।
16. और तुम्हारे पास से होकर मकिदुनिया को जाऊं, और तुम मुछे यहूदिया की ओर कुद दूर तक पहुंचाओ।
17. इसलिथे मैं ने जो यह इच्छा की यी तो क्या मैं ने चंचलता दिखाई या जो करना चाहता हूं क्या शरीर के अनुसार करना चाहता हूं, कि मैं बात में हां, हां भी करूं;
18. और नहीं नहीं भी करूं परमेश्वर सच्चा गवाह है, कि हमारे उस वचन में जो तुम से कहा हां और नहीं दानोंपाई नहीं जातीं।
19. क्योंकि परमेश्वर का पुत्र यीशु मसीह जिसका हमारे द्वारा अर्यात् मेरे और सिलवानुस और तीमुयियुस के द्वारा तुम्हारे बीच में प्रचार हुआ; उस में हां और नहीं दोनोंन यी; परन्तु, उस में हां ही हां हुई।
20. क्यांकि परमेश्वर की जितनी प्रतिज्ञाएं हैं, वे सब उसी में हां के साय हैं: इसलिथे उसके द्वारा आमीन भी हुई, कि हमारे द्वारा परमेश्वर की महिमा हो।
21. और जो हमें तुम्हारे साय मसीह में दृढ़ करता है, और जिस ने हमें अभिषेक किया वही परमेश्वर है।
22. जिस ने हम पर छाप भी कर दी है और बयान में आत्क़ा को हमारे मनोंमें दिया।।
23. मैं परमेश्वर को गवाह करता हूं, कि मै अब तक कुरिन्युस में इसलिथे नहीं आया, कि मुझे तुम पर तरस आता या।
24. यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहाथक हैं क्योंकि तुम विश्वास ही से स्यिर रहते हो।
Chapter 2
1. मैंने अपके मन में यही ठान लिया या कि फिर तुम्हारे पास उदास होकर न आऊं।
2. क्योंकि यदि मैं तुम्हें उदास करूं, तो मुझे आनन्द देनेवाला कौन होगा, केवल वही जिस को मैं ने उदास किया
3. और मैं ने यही बात तुम्हें इसलिथे लिखी, कि कहीं ऐसा न हो, कि मेरे आने पर जिन से आनन्द मिलना चाहिए, मैं उन से उदास होऊं; क्योंकि मुझे तुम सब पर इस बात का भरोसा है, कि जो मेरा आनन्द है, वही तुम सब का भी है।
4. बड़े क्लेश, और मन के कष्ट से, मैं ने बहुत से आंसु बहा बहाकर तुम्हें लिखा, इसलिथे नहीं, कि तुम उदास हो, परन्तु इसलिथे कि तुम उस बड़े प्रेम को जान लो, जो मुझे तुम से है।।
5. और यदि किसी ने उदास किया है, तो मुझे ही नहीं बरन (कि उसके साय बहुत कड़ाई न करूं) कुछ कुछ तुम सब को भी उदास किया है।
6. ऐसे जन के लिथे यह दण्ड जो भाइयोंमें से बहुतोंने दिया, बहुत है।
7. इसलिथे इस से यह भला है कि उसका अपराध झमा करो; और शान्ति दो, न हो कि ऐसा मनुष्य उदासी में डूब जाए।
8. इस कारण मैं तुम से बिनती करता हूं, कि उस को अपके प्रेम का प्रमाण दो।
9. क्योंकि मैं ने इसलिथे भी लिखा या, कि तुम्हें परख लूं, कि सब बातोंके मानने के लिथे तैयार हो, कि नहीं।
10. जिस का तुम कुछ झमा करते हो उस मैं भी झमा करता हूं, क्योंकि मैं ने भी जो कुछ झमा किया है, यदि किया हो, तो तुम्हारे कारण मसीह की जगह में होकर झमा किया है।
11. कि शैतान का हम पर दांव न चले, क्योंकि हम उस की युक्तियोंसे अनजान नहीं।
12. और जब मैं मसीह का सुसमाचार, सुनाने को त्रोआस में आया, और प्रभु ने मेरे लिथे एक द्वार खोल दिया।
13. तो मेरे मन में चैन ने मिला, इसलिथे कि मैं ने अपके भाई तितुस को नहीं पाया; सो उन से विदा होकर मैं मकिदुनिया को चला गया।
14. परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय के उत्सव में लिथे फिरता है, और अपके ज्ञान का सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है।
15. क्योंकि हम परमेश्वर के निकट उद्धार पानेवालों, और नाश होनेवालों, दोनो के लिथे मसीह के सुगन्ध हैं।
16. कितनो के लिथे तो मरने के निमित्त मृन्यु की गन्ध, और कितनो के लिथे जीवन के निमित्त जीवन की सुगन्ध, और इन बातोंके योग्य कौन है
17. क्योंकि हम उन बहुतोंके समान नहीं, जो परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं; परन्तु मन की सच्चाई से, और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर को उपस्यित जानकर मसीह में बोलते हैं।।
Chapter 3
1. क्या हम फिर अपक्की बड़ाई करने लगे या हमें कितनोंकि नाई सिफारिश की पत्रियां तुम्हारे पास लानी या तुम से लेनी हैं
2. हमारी पत्री तुम ही हो, जो हमारे ह्रृदयोंपर लिखी हुई है, और उसे सब मनुष्य पहिचानते और पढ़ते है।
3. यह प्रगट है, कि तुम मसीह की पत्री हो, जिस को हम ने सेवकोंकी नाई लिखा; और जो सियाही से नहीं, परन्तु जीवते परमेश्वर के आत्क़ा से पत्यर की पटियोंपर नहीं, परन्तु ह्रृदय की मांस रूपी पटियोंपर लिखी है।
4. हम मसीह के द्वारा परमेश्वर पर ऐसा ही भरोसा रखते हैं।
5. यह नहीं, कि हम अपके आप से इस योग्य हैं, कि अपक्की ओर से किसी बात का विचार कर सकें; पर हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है।
6. जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं बरन आत्क़ा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्क़ा जिलाता है।
7. और यहद मृत्यु की यह वाचा जिस के अझर पत्यरोंपर खोद गए थे, यहां तक तेजोमय हुई, कि मूसा के मुंह पर के तेज के कराण जो घटता भी जाता या, इस्त्राएल उसके मुंह पर दृष्टि नहीं कर सकते थे।
8. तो आत्क़ा की वाचा और भी तेजोमय क्योंन होगी
9. क्योंकि जब दोषी ठहरानेवाली वाचा तेजोमय यी, तो धर्मी ठहरानेवाली वाचा और भी तेजोमय क्योंन होगी
10. और जो तेजोमय या, वह भी उस तेज के कारण जो उस से बढ़कर तेजामय या, कुछ तेजोमय न ठहरा।
11. क्योंकि जब वह जो घटता जाता या तेजोमय या, तो वह जो स्यिर रहेगा, और भी तेजोमय क्योंन होगा
12. सो ऐसी आशा रखकर हम हियाव के साय बोलते हैं।
13. और मूसर की नाईं नहीं, जिस ने अपके मुंह पर परदा डाला या ताकि इस्त्राएली उस घटनेवाली वस्तु के अन्त को न देखें।
14. परन्तु वे मतिमन्द हो गए, क्योंकि आज तक पुराने नियम के पढ़ते समय उन के ह्रृदयोंपर वही परदा पड़ा रहता है; पर वह मसीह में उठ जाता है।
15. और आज तक जब कभी मूसा की पुस्तक पढ़ी जाती है, तो उन के ह्रृदय पर परदा पड़ा रहता है।
16. परन्तु जब कभी उन का ह्रृदय प्रभु की ओर फिरेगा, तब वह परदा उठ जाएगा।
17. प्रभु तो आत्क़ा है: और जहां कहीं प्रभु का आत्क़ा है वहां स्वतंत्रता है।
18. परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्क़ा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं।।
Chapter 4
1. इसलिथे जब हम पर ऐसी दया हुई, कि हमें यह सेवा मिली, तो हम हियाव नहीं छोड़ते।
2. परन्तु हम ने लज्ज़ा के गुप्त कामोंको त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं, परन्तु सत्य को प्रगट करके, परमेश्वर के साम्हने हर एक मनुष्य के विवेक में अपक्की भलाई बैठाते हैं।
3. परन्तु यदि हमारे सुसमाचार पर परदा पड़ा है, तो यह नाश होनेवालोंही के लिथे पड़ा है।
4. और उन अविश्वासियोंके लिथे, जिन की बुद्धि को इस संसार के ईश्वर ने अन्धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।
5. क्योंकि हम अपके को नहीं, परन्तु मसीह यीशु को प्रचार करते हैं, कि वह प्रभु है; और उसके विषय में यह कहते हैं, कि हम यीशु के कारण तुम्हारे सेवक हैं।
6. इसलिथे कि परमेश्वर ही है, जिस ने कहा, कि अन्धकार में से ज्योति चमके; और वही हमारे ह्रृदयोंमें चमका, कि परमेश्वर की महिमा की पहिचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो।।
7. परन्तु महारे पास यह धन मिट्ठी के बरतनोंमें रखा है, कि यह असीम सामर्य हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे।
8. हम चारोंओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरूपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते।
9. सताए तो जाते हैं; पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश नहीं होते।
10. हम यीशु की मृत्यु को अपक्की देह में हर समय लिथे फिरते हैं; कि यीशु का जीवन भी हमारी देह में प्रगट हो।
11. क्योंकि हम जीते जी सर्वदा यीशु के कारण मृत्यु के हाथ में सौंपे जाते हैं कि यीशु का जीवन भी हमारे मरनहार शरीर में प्रगट हो।
12. सो मृत्यु तो हम पर प्रभाव डालती है और जीवन तुम पर।
13. और इसलिथे कि हम में वही विश्वास की आत्क़ा है, (जिस के विषय मे लिखा है, कि मैं ने विश्वास किया, इसलिथे मैं बोला) सो हम भी विश्वास करते हैं, इसी लिथे बोलते हैं।
14. क्योंकि हम जातने हैं, जिस ने प्रभु यीशु को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागी जानकर जिलाएगा, और तुम्हारे साय अपके साम्हने उपस्यित करेगा।
15. क्योंकि सब वस्तुएं तुम्हारे लिथे हैं, ताकि अनुग्रह बहुतोंके द्वारा अधिक होकर परमेश्वर की महिमा के लिथे धन्यवाद भी बढ़ाए।।
16. इसलिथे हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है।
17. क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिथे बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त जीवन महिमा उत्पन्न करता जाता है।
18. और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं योड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं।
Chapter 5
1. क्योंकि हम जानते हैं, कि जब हमारा पृय्वी पर का डेरा सरीखा घर गिराया जाएगा तो हमें परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा, जो हाथोंसे बना हुआ घर नहीं परन्तु चिरस्याई है।
2. इस में तो हम कहरते, और बड़ी लालसा रखते हैं; कि अपके स्वर्गीय घर को पहिन लें।
3. कि इस के पहिनने से हम नंगे न पाए जाएं।
4. और हम इस डेरे में रहते हुए बोफ से दबे कहरते रहते हैं; क्योंकि हम उतारना नहीं, बरन और पहिनना चाहते हैं, ताकि वह जो मरनहार है जीवन में डूब जाए।
5. और जिस ने हमें इसी बात के लिथे तैयार किया है वह परमेश्वर है, जिस ने हमें बयाने में आत्क़ा भी दिया है।
6. सो हम सदा ढाढ़स बान्धे रहते हैं और यह जानते हैं; कि जब तक हम देह में रहते हैं, तब तक प्रभु से अलग हैं।
7. क्योंकि हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं।
8. इसलिथे हम ढाढ़स बान्धे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साय रहना और भी उत्तम समझते हैं।
9. इस कारण हमारे मन की उमंग यह है, कि चाहे साय रहें, चाहे अलग रहें पर हम उसे भाते रहें।
10. क्योंकि अवश्य है, कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के साम्हने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपके अपके भले बुरे कामोंका बदला जो उस ने देह के द्वारा किए होंपाए।।
11. सो प्रभु का भय मानकर हम लोगोंको समझाते हैं और परमेश्वर पर हमारा हाल प्रगट है; और मेरी आशा यह है, कि तुम्हारे विवेक पर भी प्रगट हुआ होगा।
12. हम फिर भी अपक्की बड़ाई तुम्हारे साम्हने नहीं करते बरन हम अपके विषय में तुम्हें घमण्ड करने का अवसर देते हैं, कि तुम उन्हें उत्तर दे सको, जो मन पर नहीं, बरन दिखवटी बातोंपर घमण्ड करते हैं।
13. यदि हम बेसुध हैं, तो परमेश्वर के लिथे; और यदि चैतन्य हैं, तो तुम्हारे लिथे हैं।
14. क्योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है; इसलिथे कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिथे मरा तो सब मर गए।
15. और वह इस निमित्त सब के लिथे मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपके लिथे न जीएं परन्तु उसके लिथे जो उन के लिथे मरा और फिर जी उठा।
16. सो अब से हम किसी को शरीर के अनुसार न समझेंगे, और यदि हम ने मसीह को भी शरीर के अनुसार जाना या, तौभी अब से उस को ऐसा नहीं जानेंगे।
17. सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं।
18. और सब बातें परमेश्वर की ओर से हैं, जिस ने मसीह के द्वारा अपके साय हमारा मेल मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है।
19. अर्यात् परमेश्वर ने मसीह में होकर अपके साय संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उन के अपराधोंका दोष उन पर नहीं लगाया और उस ने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है।।
20. सो हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साय मेल मिलाप कर लो।
21. जो पाप से अज्ञात या, उसी को उस ने हमारे लिथे पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं।।
Chapter 6
1. और हम जो उसके सहकर्मी हैं यह भी समझाते हैं, कि परमेश्वर का अनुगंह जो तुम पर हुआ, व्यर्य न रहने दो।
2. क्योंकि वह तो कहता है, कि अपक्की प्रसन्नता के समय मैं ने तेरी सहाथता की: देखो, अभी उद्धार का दिन है।
3. हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आए।
4. परन्तु हर बात में परमेश्वर के सेवकोंकी नाई अपके सद्गुणोंको प्रगट करते हैं, बड़े धैर्य से, क्लेशोंसे, दिरद्रता से, संकटो से।
5. कोड़े खाने से, कैद होने से, हुल्लड़ोंसे, परिश्र्म से, जागते रहने से, उपवास करने से।
6. पवित्रता से, ज्ञान से, धीरज से, कृपालुता से, पवित्र आत्क़ा से।
7. सच्चे प्रेम से, सत्य के वचन से, परमेश्वर की सामर्य से; धामिर्कता के हिययारोंसे जो दिहने, बाएं हैं।
8. आदर और निरादर से, दुरनाम और सुनाम से, यद्यपि भरमानेवालोंके ऐसे मालूम होते हैं तौभी सच्चे हैं।
9. अनजानोंके सदृश्य हैं; तौभी प्रसिद्ध हैं; मरते हुओं के ऐसे हैं और देखोंजीवित हैं; मारखानेवालोंके सदृश हैं परन्तु प्राण से मारे नहीं जाते।
10. शोक करनेवाले के समान हैं, परन्तु सर्वदा आनन्द करते हैं, कंगालोंके ऐसे हैं, परन्तु बहुतोंको धनवान बना देते हैं; ऐसे हैं जैसे हमारे पास कुछ नहीं तौभी सब कुछ रखते हैं।
11. हे कुरिन्यियों, हम ने खुलकर तुम से बातें की हैं, हमारा ह्रृदय तुम्हारी ओर खुला हुआ है।
12. तुम्हारे लिथे हमारे मन में कुछ सकेती नहीं, पर तुम्हारे ही मनोंमें सकेती है।
13. पर अपके लड़के-बाले जानकर तुम से कहता हूं, कि तुम भी उसके बदले में अपना ह्रृदय खोल दो।।
14. अविश्वासियोंके साय असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धामिर्कता और अधर्म का क्या मेल जोल या ज्योति और अन्धकार की क्या संगति
15. और मसीह का बलियाल के साय क्या लगाव या विश्वासी के साय अविश्वासी का क्या नाता
16. और मूरतोंके साय परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध क्योंकि हम तो जीवते परमेश्वर का मन्दिर हैं; जैसा परमेश्वर ने कहा है कि मैं उन में बसूंगा और उन में चला फिरा करूंगा; और मैं उन का परमेश्वर हूंगा, और वे मेरे लोग होंगे।
17. इसलिथे प्रभु कहता है, कि उन के बीच में से निकलो और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छूओ, तो मैं तुम्हें ग्रहण करूंगा।
18. और तुम्हारा पिता हूंगा, और तुम मेरे बेटे और बेटियां होगे: यह सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर का वचन है।।
Chapter 7
1. सो हे प्यारो जब कि थे प्रतिज्ञाएं हमें मिली हैं, तो आओ, हम अपके आप को शरीर और आत्क़ा की सब मलिनता शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।।
2. हमें अपके ह्रृदय में जगह दो: हम ने न किसी से अन्याय किया, न किसी को बिगाड़ा, और न किसी को ठगा।
3. मैं तुम्हें दोषी ठहराने के लिथे यह नहीं कहता: क्योंकि मैं पहिले ही कह चूका हूं, कि तुम हमारे ह्रृदय में ऐसे बस गए हो कि हम तुम्हारे साय मरने जीने के लिथे तैयार हैं।
4. मैं तुम से बहुत हियाव के साय बोल रहा हूं, मुझे तुम पर बड़ा घमण्ड है: मैं शान्ति से भर गया हूं; अपके सारे क्लेश में मैं आनन्द से अति भरपूर रहता हूं।।
5. क्योंकि जब हम मकिदुनिया में आए, तब भी हमारे शरीर को चैन नहीं मिला, परन्तु हम चारोंओर से क्लेश पाते थे; बाहर लड़ाइयां यीं, भीतर भयंकर बातें यी।
6. तौभी दानोंको शान्ति देनेवाले परमेश्वर ने तितुस के आने से हम को शान्ति दी।
7. और न केवल उसके आने से परन्तु उस की उस शान्ति से भी, जो उस को तुम्हारी ओर से मिली यी; और उस ने तुम्हारी लालसा, और तुम्हारे दुख ओर मेरे लिथे तुम्हारी धुन का समाचार हमें सुनाया, जिस से मुझे और भी आनन्द हुआ।
8. क्योकि यद्यपि मैं ने अपक्की पत्री से तुम्हें शोकित किया, परन्तु उस से पछताता नहीं जैसा कि पहिले पछताता या क्योंकि मैं देखता हूं, कि उस पत्री से तुम्हें शोक तो हुआ परन्तु वह योड़ी देर के लिथे या।
9. अब मैं आनन्दित हूं पर इसलिथे नहीं कि तुम को शोक पहुंचा बरन इसलिथे कि तुम ने उस शोक के कारण मन फिराया, क्योंकि तुम्हारा शोक परमेश्वर की इच्छा के अनुसार या, कि हमारी ओर से तुम्हें किसी बात में हानि न पहुंचे।
10. क्योंकि परमेश्वर-भक्ति का शोक ऐसा पश्चाताप उत्पन्न करता है जिस का परिणाम उद्धार है और फिर उस से पछताना नहीं पड़ता: परन्तु संसारी शोक मृत्यु उत्पन्न करता है।
11. सो देखो, इसी बात से कि तुम्हें परमेश्वर-भक्ति का शोक हुआ तुम में कितनी उत्तेजना और प्रत्यत्तर और रिस, और भय, और लालसा, और धुन और पलआ लेने का विचार उत्पन्न हुआ तुम ने सब प्रकार से यह सिद्ध कर दिखाया, कि तुम इस बात में निर्दोष हो।
12. फिर मैं ने जो तुम्हारे पास लिखा या, वह न तो उसके कारण लिखा, जिस ने अन्याय किया, और न उसके कारण जिस पर अन्याय किया गया, परन्तु इसलिथे कि तुम्हारी उत्तेजना जो हमारे लिथे है, वह परमेश्वर के साम्हने तुम पर प्रगट हो जाए।
13. इसलिथे हमें शान्ति हुई; और हमारी इस शान्ति के साय तितुस के आनन्द के कारण और भी आनन्द हुआ कयोंकि उसका जी तुम सब के कारण हरा भरा हो गया है।
14. क्योंकि यदि मैं ने उसके साम्हने तुम्हारे विषय में कुछ घमण्ड दिखाया, तो लज्ज़ित नहीं हुआ, परन्तु जैसे हम ने तुम से सब बातें सच सच कह दी यीं, वैसे ही हमारा धमण्ड दिखाना तितुस के साम्हने भी सच निकला।
15. और जब उस को तुम सब के आज्ञाकारी होने का स्क़रण आता है, कि क्योंकर तुम ने डरते और कांपके हुए उस से भेंट की; तो उसका प्रेम तुम्हारी ओर और भी बढ़ता जाता है।
16. मैं आनन्द करता हूं, कि तुम्हारी ओर से मुझे हर बात में ढाढ़स होता है।।
Chapter 8
1. अब हे भाइयों, हम तुम्हें परमेश्वर के उस अनुग्रह का समाचार देते हैं, जो मकिदुनिया की कलीसियाओं पर हुआ है।
2. कि क्लेश की बड़ी पक्कीझा में उन के बड़े आनन्द और भारी कंगालपन के बढ़ जाने से उन की उदारता बहुत बढ़ गई।
3. और उनके विषय में मेरी यह गवाही है, कि उन्होंने अपक्की सामर्य भर बरन सामर्य से भी बाहर मन से दिया।
4. और इस दान में और पवित्र लोगोंकी सेवा में भागी होने के अनुग्रह के विषय में हम से बार बार बहुत बिनती की।
5. और जैसी हम ने आज्ञा की यी, वैसी ही नहीं, बरन उन्होंने प्रभु को, फिर परमेश्वर की इच्छा से हम को भी अपके तई दे दिया।
6. इसलिथे हम ने तितुस को समझाया, कि जेसा उस ने पहिले आरम्भ किया या, वैसा ही तुम्हारे बीच में इस दान के काम को पूरा भी कर ले।
7. सो जैसे हर बात में अर्यात् विश्वास, वचन, ज्ञान और सब प्रकार के यत्न में, और उस प्रेम में, जो हम से रखते हो, बढ़ते जाते हो, वैसे ही इस दान के काम में भी बढ़ते जाओ।
8. मैं आज्ञा की रीति पर तो नहीं, परन्तु और के उत्साह से तुम्हारे प्रेम की सच्चाई को परखने के लिथे कहता हूं।
9. तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह जानते हो, कि वह धनी होकर भी तुम्हारे लिथे कंगाल बन गया ताकि उसके कंगाल हो जाने से तुम धनी हो जाओ।
10. और इस बात में मेरा विचार यही है, क्योंकि यह तुम्हारे लिथे अच्छा है; जो एक वर्ष से न तो केवल इस काम को करने ही में, परन्तु इस बात के चाहने में भी प्रयम हुए थे।
11. इसलिथे अब यह काम पूरा करो; कि इच्छा करने में तुम तैयार थे, वैसा ही अपक्की अपक्की पूंजी के अनुसार पूरा भी करो।
12. कयोंकि यदि मन की तैयारी हो तो दान उसके अनुसार ग्रहण भी होता है जो उसके पास है न कि उसके अनुसार जो उसके पास नहीं।
13. यह नहींख् कि औरो को चैन और तुम को क्लेश मिले।
14. परनतु बराबरी के विचार से इस समय तुम्हारी बढ़ती उनकी घटी में काम आए, ताकि उन की बढ़ती भी तुम्हारी घटी में काम आए, कि बराबरी हो जाए।
15. जेसा लिखा है, कि जिस ने बहुत बटोरा उसका कुछ अधिक न निकला और जिस ने योड़ा बटोरा उसका कुछ कम न निकला।।
16. और परमेश्वर का धन्यवाद हो, जिस ने तुम्हारे लिथे वही उत्साह तितुस के ह्रृदय में डाल दिया है।
17. कि उस ने हमारा समझाना मान लिया बरन बहुत उत्साही होकर वह अपक्की इच्छा से तुम्हारे पास गया है।
18. और हम ने उसके साय उस भाई को भेजा है जिस का नाम सुसमाचार के विषय में सब कलीसिया में फैला हुआ है।
19. और इतना ही नहीं, परन्तु वह कलीसिया से ठहराया भी गया कि इस दान के काम के लिथे हमारे साय जाए और हम यह सेवा इसलिथे करते हैं, कि प्रभु की महिमा और हमारे मन की तैयारी प्रगट हो जाए।
20. हम इस बात में चौकस रहते हैं, कि इस उदारता के काम के विषय में जिस की सेवा हम करते हैं, कोई हम पर दोष न लगाते पाए।
21. क्योंकि जो बातें केवल प्रभु ही के निकट नहीं, परन्तु मनुष्योंके निकट भी भली हैं हम उन की चिन्ता करते हैं।
22. और हम ने उसके साय अपके भाई को भेजा है, जिस को हम ने बार बार परख के बहुत बातोंमें उत्साही पाया है; परन्तु अब तुम पर उस को बड़ा भरोसा है, इस कारण वह और भी अधिक उत्साही है।
23. यदि कोई तितुस के विषय में पूछे, तो वह मेरा सायी, और तुम्हारे लिथे मेरा सहकर्मी है, और यदि हमारे भाइयोंके विषय में पूछे, तो वे कलीसियाओं के भेजे हुए और मसीह की महिमा हैं।
24. सो अपना प्रेम और हमारा वह घमण्ड जो तुम्हारे विषय में है कलीसियाओं के साम्हने उन्हें सिद्ध करके दिखाओ।।
Chapter 9
1. अब उस सेवा के विषय में जो पवित्र लोगोंके लिथे की जाती है, मुझे तुम को लिखना अवश्य नहीं।
2. क्योंकि मैं तुम्हारे मन की तैयारी को जानता हूं, जिस के कारण मैं तुम्हारे विषय में मकिदुनियोंके साम्हने घमण्ड दिखाता हूं, कि अखया के लोग एक वर्ष से तैयार हुए हैं, और तुमहारे उत्साह ने और बहुतोंको भी उभारा है।
3. परन्तु मैं ने भाइयोंको इसलिथे भेजा है, कि हम ने जो घमण्ड तुम्हारे विषय में दिखाया, वह इस बात में व्यर्य न ठहरे; परन्तु जैसा मैं ने कहा; वैसे ही तुम तैयार हो रहो।
4. ऐसा न हो, कि यदि कोई मकिदुनी मेरे साय आए, और तुम्हें तैयार न पाए, तो क्या जानें, इस भरोसे के कारण हम (यह नहीं कहते कि तुम) लज्ज़ित हों।
5. इसलिथे मैं ने भाइयोंसे यह बिनती करना अवश्य समझा कि वे पहिले से तुम्हारे पास जाएं, और तुम्हारी उदारता का फल जिस के विषय में पहिले से वचन दिया गया या, तैयार कर रखें, कि यह दबाव से नहीं परन्तु उदारता के फल की नाई तैयार हो।।
6. परन्तु बात तो यह है, कि जो योड़ा बोता है वह योड़ा काटेगा भी; और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा।
7. हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करेद्ध न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।
8. और परमेश्वर सच प्रकार का अनुग्रह तुम्हें बहुतायत से दे सकता है जिस से हर बात में और हर समय, सब कुछ, जो तुम्हें आवश्यक हो, तुम्हारे पास रहे, और हर एक भले काम के लिथे तुम्हारे पास बहुत कुछ हो।
9. जेसा लिखा है, उस ने बियराया, उस ने कंगालोंको दान दिया, उसका धर्म सदा बना रहेगा।
10. सो जो बोनेवाले को बीज, और भोजन के लिथे रोटी देता है वह तुम्हें बीज देगा, और उसे फलवन्त करेगा; और तुम्हारे धर्म के फलोंको बढ़ाएगा।
11. कि तुम हर बात में सब प्रकार की उदारता के लिथे जो हमारे द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करवाती है, धनवान किए जाओ।
12. क्योंकि इस सेवा के पूरा करने से, न केवल पवित्र लोगोंकी घटियां पूरी होती हैं, परन्तु लोगोंकी ओर से परमेश्वर का बहुत धन्यवाद होता है।
13. क्योंकि इस सेवा से प्रमाण लेकर परमेश्वर की महिमा प्रगट करते हैं, कि तुम मसीह के सुसमाचार को मान कर उसके आधीन रहते हो, और उन की, और सब की सहाथता करने में उदारता प्रगट करते रहते हो।
14. ओर वे तुम्हारे लिथे प्रार्यना करते हैं; और इसलिथे कि तुम पर परमेश्वर का बड़ा ही अनुग्रह है, तुम्हारी लालसा करते रहते हैं।
15. परमेश्वर को उसके उस दान के लिथे जो वर्णन से बाहर है, धन्यवाद हो।।
Chapter 10
1. मैं वही पौलुस जो तुम्हारे साम्हने दीन हूं, परन्तु पीठ पीछे तुम्हारी ओर साहस करता हूं; तुम को मसीह की नम्रता, और कोमलता के कारण समझाता हूं।
2. मैं यह बिनती करता हूं, कि तुम्हारे साम्हने मुझे निर्भय होकर साहस करना न पके; जैसा मैं कितनोंपर जो हम को शरीर के अनुसार चलनेवाले समझते हैं, वीरता दिखाने का विचार करता हूं।
3. क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते।
4. क्योकि हमारी लड़ाई के हिययार शारीरिक नहीं, पर गढ़ोंको ढा देने के लिथे परमेश्वर के द्वारा सामर्यी हैं।
5. सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।
6. और तैयार रहते हैं कि जब तुम्हारा आज्ञा मानना पूरा हो जाए, तो हर एक प्रकार के आज्ञा न मानने का पलटा लें।
7. तुम इन्हीं बातोंको दखते हो, जो आंखोंके साम्हने हैं, यदि किसी का अपके पर यह भरोसा हो, कि मैं मसीह का हूं, तो वह यह भी जान ले, कि जैसा वह मसीह का है, वैसे ही हम भी हैं।
8. क्योंकि यदि मैं उस अधिक्कारने के विषय में और भी घमण्ड दिखाऊं, जो प्रभु ने तुम्हारे बिगाड़ने के लिथे नहीं पर बनाने के लिथे हमें दिया है, तो लज्ज़ित न हूंगा।
9. यह मैं इसलिथे कहता हूं, कि पत्रियोंके द्वारा तुम्हें डरानेवाला न ठहरूं।
10. क्योंकि कहते हें, कि उस की पत्रियां तो गम्भीर और प्रभावशाली हैं; परन्तु जब देखते हैं, तो वह देह का निर्बल और वक्तव्य में हल्का जान पड़ता है।
11. सो जो ऐसा कहता है, कि समझ रखे, कि जैसे पीठ पीछे पत्रियोंमें हमारे वचन हैं, वैसे ही तुम्हारे साम्हने हमारे काम भी होंगे।
12. क्योंकि हमें यह हियाव नहीं कि हम अपके आप को उन में से ऐसे कितनोंके साय गिनें, या उन से अपके को मिलाएं, जो अपक्की प्रशंसा करते हैं, और अपके आप को आपस में नाप तौलकर एक दूसरे से मिलान करके मूर्ख ठहरते हैं।
13. हम तो सीमा से बाहर घमण्ड कदापि न करेंगे, परन्तु उसी सीमा तक जो परमेश्वर ने हमारे लिथे ठहरा दी है, और उस में तुम भी आ गए हो और उसी के अनुसार घमण्ड भी करेंगे।
14. क्योंकि हम अपक्की सीमा से बाहर अपके आप को बढ़ाना नहीं चाहते, जैसे कि तुम तक न पहुंचने की दशा में होता, बरन मसीह का सुसमाचार सुनाते हुए तुम तक पहुंच चुके हैं।
15. और हम सीमा से बाहर औरोंके परिश्र्म पर घमण्उ नहीं करते; परन्तु हमें आशा है, कि ज्योंज्योंतुम्हारा विश्वास बढ़ता जाएगा त्योंत्योंहम अपक्की सीमा के अनुसार तुम्हारे कारण और भी बढ़ते जाएंगे।
16. कि हम तुम्हारे सिवानोंसे आगे बढ़कर सुसमाचार सुनाएं, और यह नहीं, कि हम औरोंकी सीमा के भीतर बने बनाए कामोंपर घमण्ड करें।
17. परनतु जो घमण्ड करे, वह प्रभु पर घमण्ड करें।
18. क्योंकि जो अपक्की बड़ाई करता है, वह नहीं, परन्तु जिस की बड़ाई प्रभु करता है, वही ग्रहण किया जाता है।।
Chapter 11
1. यदि तुम मेरी योड़ी मूर्खता सह लेते तो क्या ही भला होता; हां, मेरी सह भी लेते हो।
2. क्योंकि मैं तुम्हारे विषय मे ईश्वरीय धुन लगाए रहता हूं, इसलिथे कि मैं ने एक ही पुरूष से तुम्हारी बात लगाई है, कि तुम्हें पवित्र कुंवारी की नाई मसीह को सौंप दूं।
3. परन्तु मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपक्की चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साय होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएं।
4. यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्क़ा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला या; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना या, तो तुम्हारा सहना ठीक होता।
5. मैं तो समझता हमं, कि मैं किसी बात में बड़े से बड़े प्रेरितोंसे कम नहीं हूं।
6. यदि मैं व्क्तवय में अनाड़ी हूं, तौभी ज्ञान में नहीं; बरन हम ने इस को हर बात में सब पर तुम्हारे लिथे प्रगट किया है।
7. क्या इस में मैं ने कुछ पाप किया; कि मैं ने तुम्हें परमेश्वर का सुसमाचार सेंत मेंत सुनाया; और अपके आप को नीचा किया, कि तुम ऊंचे हो जाओ
8. मैं ने और कलीसियाओं को लूटा अर्यात् मैं ने उन से मजदूरी ली, ताकि तुम्हारी सेवा करूं।
9. ओर जब तुम्हारे साय या, और मुझे घटी हुई, तो मैं ने किसी पर भार नहीं दिया, क्योंकि भाइयोंने, मकिदुनिया से आकर मेरी घटी को पक्की की: और मैं ने हर बात में अपके आप को तुम पर भार होने से रोका, और रोके रहूंगा।
10. यदि मसीह की सच्चाई मुझ में है, तो अखया देश में कोई मुझे इस घमण्ड से न रोकेगा।
11. किस लिथे क्या इसलिथे कि मैं तुम से प्रेम नहीं रखता परमेश्वर यह जानता है।
12. परन्तु जो मैं करता हूं, वही करता रहूंगा; कि जो लोग दांव ढूंढ़ते हैं, उन्हें मैं दांव पाने दूं, ताकि जिस बात में वे घमण्ड करते हैं, उस में वे हमारे ही समान ठहरें।
13. क्योंकि ऐसे लोग फूठे प्रेरित, और छल से काम करनेवाले, और मसीह के प्रेरितोंका रूप धरनेवाले हैं।
14. और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्योंकि शैतान आप भी ज्योतिमर्य स्वर्गदूत का रूप धारण करता है।
15. सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकोंका सा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं परन्तु उन का अन्त उन के कामोंके अनुसार होगा।
16. मैं फिर कहता हूं, कोई मुझे मूर्ख न समझे; नहीं तो मूर्ख ही समझकर मेरी सह लो, ताकि योड़ा सा मैं भी घमण्ड करूं।
17. इस बेधड़क घमण्ड से बोलने में जो कुछ मैं कहता हूं वह प्रभू की आज्ञा के अनुसार नहीं पर मानोंमूर्खता से ही कहता हूं।
18. जब कि बहुत लोग शरीर के अनुसार घमण्ड करते हैं, तो मैं भी घमण्ड करूंगा।
19. तुम तो समझदार होकर आनन्द से मूर्खोंकी सह लेते हो।
20. क्योंकि जब तुम्हें कोई दास बना लेता है, या खा जाता है, या फसा लेता है, या अपके आप को बड़ा बनाता है, या तुम्हारे मुंह पर यप्पड़ मारता है, तो तुम सह लेते हो।
21. मेरा कहता अनादर की रीति पर है, मानो कि हम निर्बल से थे; परन्तु जिस किसी बात में कोई हियाव करता है (मैं मूर्खता से कहता हूं) तो मैं भी हियाव करता हूं।
22. क्या वे ही इब्रानी हैं मैं भी हूं: क्या वे ही इब्राहीम के वंश के हैं मैं भी हूं: क्या वे ही मसीह के सेवक हैं
23. (मैं पागल की नाई कहता हूं) मैं उन से बढ़कर हूं! अधिक परिश्र्म करने में; बार बार कैद होने में; कोड़े खाते में; बार बार मृत्यु के जोखिमोंमें।
24. पांच बार मैं ने यहूदियोंके हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए।
25. तीन बार मैं ने बेंतें खाई; एक बार पत्यरवाह किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा या, टूट गए; एक राज दिन मैं ने समुद्र में काटा।
26. मैं बार बार यात्राओं में; नदियोंके जोखिमोंमें; डाकुओं के जोखिमोंमें; अपके जातिवालोंसे जोखिमोंमें; अन्यजातियोंसे जोखिमोंमें; नगरोंमें के जाखिमोंमें; जंगल के जोखिमोंमें; समुद्र के जाखिमोंमें; फूठे भाइयोंके बीच जोखिमोंमें;
27. परिश्र्म और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख-पियास में; बार बार उपवास करते में; जाड़े में; उघाड़े रहने में।
28. और और बातोंको छोड़कर जिन का वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रतिदिन मुझे दबाती है।
29. किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता
30. यदि घमण्उ करना अवश्य है, तो मैं अपक्की निर्बलता की बातोंपर करूंगा।
31. प्रभु यीशु का परमेश्वर और पिता जो सदा धन्य है, जानता है, कि मैं फूठ नहीं बोलता।
32. दिमश्क में अरितास राजा की ओर से जो हाकिम या, उस ने मेरे पकड़ने को दिमश्िकियोंके नगर पर पहरा बैठा रखा या।
33. और मैं टोकरे में खिड़की से होकर भीत पर से उतारा गया, और उसके हाथ से बच निकला।।
Chapter 12
1. यद्यपि घमण्ड करना तो मेरे लिथे ठीक नहीं तौभी करना पड़ता है; सो मैं प्रभु के दिए हुए दर्शनोंऔर प्रकाशोंकी चर्चा करूंगा।
2. मैं मसीह में एक मनुष्य को जानता हूं, चौदह वर्ष हुए कि न जाने देहसहित, न जाने देहरिहत, परमेश्वर जानता है, ऐसा मनुष्य तीसरे स्वर्ग तक उठा लिया गया।
3. मैं ऐसे मनुष्य को जानता हूं न जाने देहसहित, न जाने देहरिहत परमेश्वर ही जानता है।
4. कि स्वर्ग लोक पर उठा लिया गया, और एसी बातें सुनीं जो कहने की नहीं; और जिन का मुंह में लाना मनुष्य को उचित नहींं।
5. ऐसे मनुष्य पर तो मैं घमण्ड करूंगा, परन्तु अपके पर अपक्की निर्बलताओं को छोड़, अपके विषय में घमण्ड न करूंगा।
6. क्योंकि यदि मैं घमण्ड करना चाहूं भी तो मूंर्ख न हूंगा, क्योंकि सच बोलूंगा; तोभी रूक जाता हूं, ऐसा न हो, कि जैसा कोई मुझे देखता है, या मुझ से सुनता है, मुझे उस से बढ़कर समझे।
7. और इसलिथे कि मैं प्रकाशोंकी बहुतायत से फूल न जाऊं, मेरे शरीर में एक कांटा चुभाया गया अर्यात् शैतान का एक दूत कि मुझे घूसे मारे ताकि मैं फूल न जाऊं।
8. इस के विषय में मैं ने प्रभु से तीन बार बिनती की, कि मुझ से यह दूर हो जाए।
9. और उस ने मुझ से कहा, मेरा अनुग्रह तेरे लिथे बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्य निर्बलता में सिद्ध होती है; इसलिथे मैं बड़े आनन्द से अपक्की निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्य मुझ पर छाया करती रहे।
10. इस कारण मैं मसीह के लिथे निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दिरद्रता में, और उपद्रवोंमें, और संकटोंमें, प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।।
11. मैं मूर्ख तो बना, परन्तु तुम ही ने मुझ से यह बरबस करवाया: तुम्हें तो मेरी प्रशंसा करनी चाहिए यी, क्योंकि यद्यपि मैं कुछ भी नहीं, तौभी उन बड़े से बड़े प्ररितोंसे किसी बात में कम नहीं हूं।
12. प्ररित के लझण भी तुम्हारे बीच सब प्रकार के धीरज सहित चिन्हों, और अद्भुत कामों, और सामर्य के कामोंसे दिखाए गए।
13. तुम कोैन सी बात में और कलीसिक्कों कम थे, केवल इस में कि मैं ने तुम पर अपना भार न रखा: मेरा यह अन्याय झमा करो।
14. देखो, मैं तीसरी बार तुम्हारे पास आने को तैयार हूं, और मैं तुम पर कोई भार न रखूंगा; क्योंकि मैं तुम्हारी सम्पत्ति नहीं, बरन तुम ही को चाहता हूं: क्योंकि लड़के-बालोंको माता-पिता के लिथे धन बटोरना न चाहिए, पर माता-पिता को लड़के-बालोंके लिथे।
15. मैं तुम्हारी आत्क़ाओं के लिथे बहुत आनन्द से खर्च करूंगा, बरन आप भी खर्च हो जाऊंगा: क्या जितना बढ़कर मैं तुम से प्रेम रखता हूं, उतना ही घटकर तुम मुझ से प्रेम रखोगे
16. ऐसा हो सकता है, कि मैं ने तुम पर बोफ नहीं डाला, परन्तु चतुराई से तुम्हें धोखा देकर फंसा लिया।
17. भला, जिन्हें मैं ने तुम्हारे पास भेजा, क्या उन में से किसी के द्वारा मैं ने छल करके तुम से कुछ ले लिया
18. मै ने तितुस को समझाकर उसके साय उस भाई को भेजा, तो क्या तीतुस ने छल करके तुम से कुछ लिया क्या हम एक ही आत्क़ा के चलाए न चले क्या एक ही लीक पर न चले
19. तुम अभी तक समझ रहे होगे कि हम तुम्हारे सामने प्रत्युत्तर दे रहे हैं, हम तो परमेश्वर को उपस्यित जानकर मसीह में बोलते हैं, और हे प्रियों, सब बातें तुम्हारी उन्नति ही के लिथे कहते हैं।
20. क्योंकि मुझे डर है, कहीं ऐसा न हो, कि मैं आकर जैसे चाहता हूं, वैसे तुम्हें न पाऊं; और मुझे भी जैसा तुम नहीं चाहते वैसा ही पाओ, कि तुम में फगड़ा, डाह, क्रोध, विराध, ईर्ष्या, चुगली, अभिमान और बखेड़े हों।
21. और मेरा परमेश्वर कहीं मेरे फिर से तुम्हारे यहां आने पर मुझ पर दबाव डाले और मुझे बहुतोंके लिथे फिर शोक करना पके, जिन्होंने पहिले पाप किया या, और उस गन्दे काम, और व्यभिचार, और लुचपन से, जो उन्होंने किया, मन नहीं फिराया।।
Chapter 13
1. अब तीसरी बार तुम्हारे पास आता हूं: दो या तीन गवाहोंके मुंह से हर एक बात ठहराई जाएगी।
2. जैसे जब दूसरी बार तुम्हारे साय या, सो वैसे ही अब दूर रहते हुए उन लोगोंसे जिन्होंने पहिले पाप किया, और और सब लोगोंसे अब पहिले से कहे देता हूं, कि यदि मैं फिर आऊंगा, तो नहीं छोडूंगा।
3. तुम तो इस का प्रमाण चाहते हो, कि मसीह मुझ में बोलता है, जो तुम्हारे लिथे निर्बल नहीं; परन्तु तुम में सामर्यी है।
4. वह निर्बलता के कारण क्रूस पर चढ़ाया तो गया, तौभी परमेश्वर की सामर्य से जीवित है, हम भी तो उस में निर्बल हैं; परन्तु परमेश्वर की सामर्य से जो तुम्हारे लिथे है, उसके साय जीएंगे।
5. अपके प्राण को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपके आप को जांचो, क्या तुम अपके विषय में यह नहीं जानते, कि यीशु मसीह तुम में है नहीं तो तुम निकम्मे निकले हो।
6. पर मेरी आशा है, कि तुम जान लोगे, कि हम निकम्मे नहीं।
7. और हम अपके परमेश्वर से प्रार्यना करते हैं, कि तुम कोई बुराई न करो; इसलिथे हनीं, कि हम खरे देख पकें, पर इसलिथे कि तुम भलाई करो, चाहे हम निकम्मे ही ठहरें।
8. क्योंकि हम सत्य के विरोध में कुछ नहीं कर सकते, पर सत्य के लिथे कर सकते हैं।
9. जब हम निर्बल हैं, और तुम बलवन्त हो, तो हम आनन्दित होते हैं, और यह प्रार्यना भी करते हैं, कि तुम सिद्ध हो जाओ।
10. इस कारण मैं तुम्हारे पीठ पीछे थे बातें लिखता हूं, कि उपस्यित होकर मुझे उस अधिक्कारने के अनुसार जिसे प्रभु ने बिगाड़ने के लिथे नहीं पर बनाने के लिथे मुझे दिया है, कढ़ाई से कुछ करना न पके।।
11. निदान, हे भाइयो, आनन्दित रहो; सिद्ध बनते जाओ; ढाढ़स रखो; एक ही मन रखो; मेल से रहो, और प्रेम और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हारे साय होगा।
12. एक दूसरे को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो।
13. सब पवित्र लोग तुम्हें नमस्कार करते हैं।
14. प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्र आत्क़ा की सहभागिता तुम सब के साय होती रहे।।
Chapter 1
1. पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुयियुस की ओर से परमेश्वर की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्युस में है; और सारे अखमा के सब पवित्र लागोंके नाम।।
2. हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।।
3. हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर है।
4. वह हमारे सब क्लेशोंमें शान्ति देता है; ताकि हम उस शान्ति के कारण जो परमेश्वर हमें देता है, उन्हें भी शान्ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों।
5. क्योंकि जैसे मसीह के दुख हम को अधिक होते हैं, वैसे ही हमारी शान्ति भी मसीह के द्वारा अधिक हाती है।
6. यदि हम क्लेश पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति और उद्धार के लिथे है और यदि शान्ति पाते हैं, तो यह तुम्हारी शान्ति के लिथे है; जिस के प्रभाव से तुम धीरज के साय उन क्लेशोंको सह लेते हो, जिन्हें हम भी सहते हैं।
7. और हमारी आशा तुम्हारे विषय में दृढ़ है; क्योंकि हम जानते हैं, कि तुम जैसे दुखोंके वैसे ही शान्ति के भी सहभागी हो।
8. हे भाइयों, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्लेश से अनजान रहो, जो आसिया में हम पर पड़ा, कि ऐसे भारी बोफ से दब गए थे, जो हमारी समर्य से बाहर या, यहां तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे।
9. बरन हम ने अपके मन में समझ लिया या, कि हम पर मृत्यु की आज्ञा हो चुकी है कि हम अपना भरोसा न रखें, बरन परमेश्वर का जो मरे हुओं को जिलाता है।
10. उसी ने हमें ऐसी बड़ी मृत्यु से बचाया, और बचाएगा; और उस से हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा।
11. और तुम भी मिलकर प्रार्यना के द्वारा हमारी सहाथता करोगे, कि जो बरदान बहुतोंके द्वारा हमें मिला, उसके कारण बहुत लोग हमारी ओर से धन्यवाद करें।।
12. क्योंकि हम अपके विवेक की इस गवाही पर घमण्ड करते हैं, कि जगत में और विशेष करके तुम्हारे बीच हमारा चरित्र परमेश्वर के योग्य ऐसी पवित्रता और सच्चाई सहित या, जो शारीरिक ज्ञान से नहीं, परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह के साय या।
13. हम तुम्हें और कुछ नहीं लिखते, केवल वह जो तुम पढ़ते या मानते भी हो, और मुझे आशा है, कि अन्त तक भी मानते रहोगे।
14. जैसा तुम में से कितनोंने मान लिया है, कि हम तुम्हारे घमण्ड का कारण है; वैसे तुम भी प्रभु यीशु के दिन हमारे लिथे घमण्ड का कारण ठहरोगे।।
15. और इस भरोसे से मैं चाहता या कि पहिले तुम्हारे पास आऊं; कि तुम्हें एक और दान मिले।
16. और तुम्हारे पास से होकर मकिदुनिया को जाऊं, और तुम मुछे यहूदिया की ओर कुद दूर तक पहुंचाओ।
17. इसलिथे मैं ने जो यह इच्छा की यी तो क्या मैं ने चंचलता दिखाई या जो करना चाहता हूं क्या शरीर के अनुसार करना चाहता हूं, कि मैं बात में हां, हां भी करूं;
18. और नहीं नहीं भी करूं परमेश्वर सच्चा गवाह है, कि हमारे उस वचन में जो तुम से कहा हां और नहीं दानोंपाई नहीं जातीं।
19. क्योंकि परमेश्वर का पुत्र यीशु मसीह जिसका हमारे द्वारा अर्यात् मेरे और सिलवानुस और तीमुयियुस के द्वारा तुम्हारे बीच में प्रचार हुआ; उस में हां और नहीं दोनोंन यी; परन्तु, उस में हां ही हां हुई।
20. क्यांकि परमेश्वर की जितनी प्रतिज्ञाएं हैं, वे सब उसी में हां के साय हैं: इसलिथे उसके द्वारा आमीन भी हुई, कि हमारे द्वारा परमेश्वर की महिमा हो।
21. और जो हमें तुम्हारे साय मसीह में दृढ़ करता है, और जिस ने हमें अभिषेक किया वही परमेश्वर है।
22. जिस ने हम पर छाप भी कर दी है और बयान में आत्क़ा को हमारे मनोंमें दिया।।
23. मैं परमेश्वर को गवाह करता हूं, कि मै अब तक कुरिन्युस में इसलिथे नहीं आया, कि मुझे तुम पर तरस आता या।
24. यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहाथक हैं क्योंकि तुम विश्वास ही से स्यिर रहते हो।
Chapter 2
1. मैंने अपके मन में यही ठान लिया या कि फिर तुम्हारे पास उदास होकर न आऊं।
2. क्योंकि यदि मैं तुम्हें उदास करूं, तो मुझे आनन्द देनेवाला कौन होगा, केवल वही जिस को मैं ने उदास किया
3. और मैं ने यही बात तुम्हें इसलिथे लिखी, कि कहीं ऐसा न हो, कि मेरे आने पर जिन से आनन्द मिलना चाहिए, मैं उन से उदास होऊं; क्योंकि मुझे तुम सब पर इस बात का भरोसा है, कि जो मेरा आनन्द है, वही तुम सब का भी है।
4. बड़े क्लेश, और मन के कष्ट से, मैं ने बहुत से आंसु बहा बहाकर तुम्हें लिखा, इसलिथे नहीं, कि तुम उदास हो, परन्तु इसलिथे कि तुम उस बड़े प्रेम को जान लो, जो मुझे तुम से है।।
5. और यदि किसी ने उदास किया है, तो मुझे ही नहीं बरन (कि उसके साय बहुत कड़ाई न करूं) कुछ कुछ तुम सब को भी उदास किया है।
6. ऐसे जन के लिथे यह दण्ड जो भाइयोंमें से बहुतोंने दिया, बहुत है।
7. इसलिथे इस से यह भला है कि उसका अपराध झमा करो; और शान्ति दो, न हो कि ऐसा मनुष्य उदासी में डूब जाए।
8. इस कारण मैं तुम से बिनती करता हूं, कि उस को अपके प्रेम का प्रमाण दो।
9. क्योंकि मैं ने इसलिथे भी लिखा या, कि तुम्हें परख लूं, कि सब बातोंके मानने के लिथे तैयार हो, कि नहीं।
10. जिस का तुम कुछ झमा करते हो उस मैं भी झमा करता हूं, क्योंकि मैं ने भी जो कुछ झमा किया है, यदि किया हो, तो तुम्हारे कारण मसीह की जगह में होकर झमा किया है।
11. कि शैतान का हम पर दांव न चले, क्योंकि हम उस की युक्तियोंसे अनजान नहीं।
12. और जब मैं मसीह का सुसमाचार, सुनाने को त्रोआस में आया, और प्रभु ने मेरे लिथे एक द्वार खोल दिया।
13. तो मेरे मन में चैन ने मिला, इसलिथे कि मैं ने अपके भाई तितुस को नहीं पाया; सो उन से विदा होकर मैं मकिदुनिया को चला गया।
14. परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय के उत्सव में लिथे फिरता है, और अपके ज्ञान का सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है।
15. क्योंकि हम परमेश्वर के निकट उद्धार पानेवालों, और नाश होनेवालों, दोनो के लिथे मसीह के सुगन्ध हैं।
16. कितनो के लिथे तो मरने के निमित्त मृन्यु की गन्ध, और कितनो के लिथे जीवन के निमित्त जीवन की सुगन्ध, और इन बातोंके योग्य कौन है
17. क्योंकि हम उन बहुतोंके समान नहीं, जो परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं; परन्तु मन की सच्चाई से, और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर को उपस्यित जानकर मसीह में बोलते हैं।।
Chapter 3
1. क्या हम फिर अपक्की बड़ाई करने लगे या हमें कितनोंकि नाई सिफारिश की पत्रियां तुम्हारे पास लानी या तुम से लेनी हैं
2. हमारी पत्री तुम ही हो, जो हमारे ह्रृदयोंपर लिखी हुई है, और उसे सब मनुष्य पहिचानते और पढ़ते है।
3. यह प्रगट है, कि तुम मसीह की पत्री हो, जिस को हम ने सेवकोंकी नाई लिखा; और जो सियाही से नहीं, परन्तु जीवते परमेश्वर के आत्क़ा से पत्यर की पटियोंपर नहीं, परन्तु ह्रृदय की मांस रूपी पटियोंपर लिखी है।
4. हम मसीह के द्वारा परमेश्वर पर ऐसा ही भरोसा रखते हैं।
5. यह नहीं, कि हम अपके आप से इस योग्य हैं, कि अपक्की ओर से किसी बात का विचार कर सकें; पर हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है।
6. जिस ने हमें नई वाचा के सेवक होने के योग्य भी किया, शब्द के सेवक नहीं बरन आत्क़ा के; क्योंकि शब्द मारता है, पर आत्क़ा जिलाता है।
7. और यहद मृत्यु की यह वाचा जिस के अझर पत्यरोंपर खोद गए थे, यहां तक तेजोमय हुई, कि मूसा के मुंह पर के तेज के कराण जो घटता भी जाता या, इस्त्राएल उसके मुंह पर दृष्टि नहीं कर सकते थे।
8. तो आत्क़ा की वाचा और भी तेजोमय क्योंन होगी
9. क्योंकि जब दोषी ठहरानेवाली वाचा तेजोमय यी, तो धर्मी ठहरानेवाली वाचा और भी तेजोमय क्योंन होगी
10. और जो तेजोमय या, वह भी उस तेज के कारण जो उस से बढ़कर तेजामय या, कुछ तेजोमय न ठहरा।
11. क्योंकि जब वह जो घटता जाता या तेजोमय या, तो वह जो स्यिर रहेगा, और भी तेजोमय क्योंन होगा
12. सो ऐसी आशा रखकर हम हियाव के साय बोलते हैं।
13. और मूसर की नाईं नहीं, जिस ने अपके मुंह पर परदा डाला या ताकि इस्त्राएली उस घटनेवाली वस्तु के अन्त को न देखें।
14. परन्तु वे मतिमन्द हो गए, क्योंकि आज तक पुराने नियम के पढ़ते समय उन के ह्रृदयोंपर वही परदा पड़ा रहता है; पर वह मसीह में उठ जाता है।
15. और आज तक जब कभी मूसा की पुस्तक पढ़ी जाती है, तो उन के ह्रृदय पर परदा पड़ा रहता है।
16. परन्तु जब कभी उन का ह्रृदय प्रभु की ओर फिरेगा, तब वह परदा उठ जाएगा।
17. प्रभु तो आत्क़ा है: और जहां कहीं प्रभु का आत्क़ा है वहां स्वतंत्रता है।
18. परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्क़ा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं।।
Chapter 4
1. इसलिथे जब हम पर ऐसी दया हुई, कि हमें यह सेवा मिली, तो हम हियाव नहीं छोड़ते।
2. परन्तु हम ने लज्ज़ा के गुप्त कामोंको त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं, परन्तु सत्य को प्रगट करके, परमेश्वर के साम्हने हर एक मनुष्य के विवेक में अपक्की भलाई बैठाते हैं।
3. परन्तु यदि हमारे सुसमाचार पर परदा पड़ा है, तो यह नाश होनेवालोंही के लिथे पड़ा है।
4. और उन अविश्वासियोंके लिथे, जिन की बुद्धि को इस संसार के ईश्वर ने अन्धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।
5. क्योंकि हम अपके को नहीं, परन्तु मसीह यीशु को प्रचार करते हैं, कि वह प्रभु है; और उसके विषय में यह कहते हैं, कि हम यीशु के कारण तुम्हारे सेवक हैं।
6. इसलिथे कि परमेश्वर ही है, जिस ने कहा, कि अन्धकार में से ज्योति चमके; और वही हमारे ह्रृदयोंमें चमका, कि परमेश्वर की महिमा की पहिचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो।।
7. परन्तु महारे पास यह धन मिट्ठी के बरतनोंमें रखा है, कि यह असीम सामर्य हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे।
8. हम चारोंओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरूपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते।
9. सताए तो जाते हैं; पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश नहीं होते।
10. हम यीशु की मृत्यु को अपक्की देह में हर समय लिथे फिरते हैं; कि यीशु का जीवन भी हमारी देह में प्रगट हो।
11. क्योंकि हम जीते जी सर्वदा यीशु के कारण मृत्यु के हाथ में सौंपे जाते हैं कि यीशु का जीवन भी हमारे मरनहार शरीर में प्रगट हो।
12. सो मृत्यु तो हम पर प्रभाव डालती है और जीवन तुम पर।
13. और इसलिथे कि हम में वही विश्वास की आत्क़ा है, (जिस के विषय मे लिखा है, कि मैं ने विश्वास किया, इसलिथे मैं बोला) सो हम भी विश्वास करते हैं, इसी लिथे बोलते हैं।
14. क्योंकि हम जातने हैं, जिस ने प्रभु यीशु को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागी जानकर जिलाएगा, और तुम्हारे साय अपके साम्हने उपस्यित करेगा।
15. क्योंकि सब वस्तुएं तुम्हारे लिथे हैं, ताकि अनुग्रह बहुतोंके द्वारा अधिक होकर परमेश्वर की महिमा के लिथे धन्यवाद भी बढ़ाए।।
16. इसलिथे हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है।
17. क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिथे बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त जीवन महिमा उत्पन्न करता जाता है।
18. और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं योड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं।
Chapter 5
1. क्योंकि हम जानते हैं, कि जब हमारा पृय्वी पर का डेरा सरीखा घर गिराया जाएगा तो हमें परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा, जो हाथोंसे बना हुआ घर नहीं परन्तु चिरस्याई है।
2. इस में तो हम कहरते, और बड़ी लालसा रखते हैं; कि अपके स्वर्गीय घर को पहिन लें।
3. कि इस के पहिनने से हम नंगे न पाए जाएं।
4. और हम इस डेरे में रहते हुए बोफ से दबे कहरते रहते हैं; क्योंकि हम उतारना नहीं, बरन और पहिनना चाहते हैं, ताकि वह जो मरनहार है जीवन में डूब जाए।
5. और जिस ने हमें इसी बात के लिथे तैयार किया है वह परमेश्वर है, जिस ने हमें बयाने में आत्क़ा भी दिया है।
6. सो हम सदा ढाढ़स बान्धे रहते हैं और यह जानते हैं; कि जब तक हम देह में रहते हैं, तब तक प्रभु से अलग हैं।
7. क्योंकि हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते हैं।
8. इसलिथे हम ढाढ़स बान्धे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साय रहना और भी उत्तम समझते हैं।
9. इस कारण हमारे मन की उमंग यह है, कि चाहे साय रहें, चाहे अलग रहें पर हम उसे भाते रहें।
10. क्योंकि अवश्य है, कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के साम्हने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपके अपके भले बुरे कामोंका बदला जो उस ने देह के द्वारा किए होंपाए।।
11. सो प्रभु का भय मानकर हम लोगोंको समझाते हैं और परमेश्वर पर हमारा हाल प्रगट है; और मेरी आशा यह है, कि तुम्हारे विवेक पर भी प्रगट हुआ होगा।
12. हम फिर भी अपक्की बड़ाई तुम्हारे साम्हने नहीं करते बरन हम अपके विषय में तुम्हें घमण्ड करने का अवसर देते हैं, कि तुम उन्हें उत्तर दे सको, जो मन पर नहीं, बरन दिखवटी बातोंपर घमण्ड करते हैं।
13. यदि हम बेसुध हैं, तो परमेश्वर के लिथे; और यदि चैतन्य हैं, तो तुम्हारे लिथे हैं।
14. क्योंकि मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है; इसलिथे कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिथे मरा तो सब मर गए।
15. और वह इस निमित्त सब के लिथे मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपके लिथे न जीएं परन्तु उसके लिथे जो उन के लिथे मरा और फिर जी उठा।
16. सो अब से हम किसी को शरीर के अनुसार न समझेंगे, और यदि हम ने मसीह को भी शरीर के अनुसार जाना या, तौभी अब से उस को ऐसा नहीं जानेंगे।
17. सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं।
18. और सब बातें परमेश्वर की ओर से हैं, जिस ने मसीह के द्वारा अपके साय हमारा मेल मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है।
19. अर्यात् परमेश्वर ने मसीह में होकर अपके साय संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उन के अपराधोंका दोष उन पर नहीं लगाया और उस ने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है।।
20. सो हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साय मेल मिलाप कर लो।
21. जो पाप से अज्ञात या, उसी को उस ने हमारे लिथे पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं।।
Chapter 6
1. और हम जो उसके सहकर्मी हैं यह भी समझाते हैं, कि परमेश्वर का अनुगंह जो तुम पर हुआ, व्यर्य न रहने दो।
2. क्योंकि वह तो कहता है, कि अपक्की प्रसन्नता के समय मैं ने तेरी सहाथता की: देखो, अभी उद्धार का दिन है।
3. हम किसी बात में ठोकर खाने का कोई भी अवसर नहीं देते, कि हमारी सेवा पर कोई दोष न आए।
4. परन्तु हर बात में परमेश्वर के सेवकोंकी नाई अपके सद्गुणोंको प्रगट करते हैं, बड़े धैर्य से, क्लेशोंसे, दिरद्रता से, संकटो से।
5. कोड़े खाने से, कैद होने से, हुल्लड़ोंसे, परिश्र्म से, जागते रहने से, उपवास करने से।
6. पवित्रता से, ज्ञान से, धीरज से, कृपालुता से, पवित्र आत्क़ा से।
7. सच्चे प्रेम से, सत्य के वचन से, परमेश्वर की सामर्य से; धामिर्कता के हिययारोंसे जो दिहने, बाएं हैं।
8. आदर और निरादर से, दुरनाम और सुनाम से, यद्यपि भरमानेवालोंके ऐसे मालूम होते हैं तौभी सच्चे हैं।
9. अनजानोंके सदृश्य हैं; तौभी प्रसिद्ध हैं; मरते हुओं के ऐसे हैं और देखोंजीवित हैं; मारखानेवालोंके सदृश हैं परन्तु प्राण से मारे नहीं जाते।
10. शोक करनेवाले के समान हैं, परन्तु सर्वदा आनन्द करते हैं, कंगालोंके ऐसे हैं, परन्तु बहुतोंको धनवान बना देते हैं; ऐसे हैं जैसे हमारे पास कुछ नहीं तौभी सब कुछ रखते हैं।
11. हे कुरिन्यियों, हम ने खुलकर तुम से बातें की हैं, हमारा ह्रृदय तुम्हारी ओर खुला हुआ है।
12. तुम्हारे लिथे हमारे मन में कुछ सकेती नहीं, पर तुम्हारे ही मनोंमें सकेती है।
13. पर अपके लड़के-बाले जानकर तुम से कहता हूं, कि तुम भी उसके बदले में अपना ह्रृदय खोल दो।।
14. अविश्वासियोंके साय असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धामिर्कता और अधर्म का क्या मेल जोल या ज्योति और अन्धकार की क्या संगति
15. और मसीह का बलियाल के साय क्या लगाव या विश्वासी के साय अविश्वासी का क्या नाता
16. और मूरतोंके साय परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध क्योंकि हम तो जीवते परमेश्वर का मन्दिर हैं; जैसा परमेश्वर ने कहा है कि मैं उन में बसूंगा और उन में चला फिरा करूंगा; और मैं उन का परमेश्वर हूंगा, और वे मेरे लोग होंगे।
17. इसलिथे प्रभु कहता है, कि उन के बीच में से निकलो और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छूओ, तो मैं तुम्हें ग्रहण करूंगा।
18. और तुम्हारा पिता हूंगा, और तुम मेरे बेटे और बेटियां होगे: यह सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर का वचन है।।
Chapter 7
1. सो हे प्यारो जब कि थे प्रतिज्ञाएं हमें मिली हैं, तो आओ, हम अपके आप को शरीर और आत्क़ा की सब मलिनता शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।।
2. हमें अपके ह्रृदय में जगह दो: हम ने न किसी से अन्याय किया, न किसी को बिगाड़ा, और न किसी को ठगा।
3. मैं तुम्हें दोषी ठहराने के लिथे यह नहीं कहता: क्योंकि मैं पहिले ही कह चूका हूं, कि तुम हमारे ह्रृदय में ऐसे बस गए हो कि हम तुम्हारे साय मरने जीने के लिथे तैयार हैं।
4. मैं तुम से बहुत हियाव के साय बोल रहा हूं, मुझे तुम पर बड़ा घमण्ड है: मैं शान्ति से भर गया हूं; अपके सारे क्लेश में मैं आनन्द से अति भरपूर रहता हूं।।
5. क्योंकि जब हम मकिदुनिया में आए, तब भी हमारे शरीर को चैन नहीं मिला, परन्तु हम चारोंओर से क्लेश पाते थे; बाहर लड़ाइयां यीं, भीतर भयंकर बातें यी।
6. तौभी दानोंको शान्ति देनेवाले परमेश्वर ने तितुस के आने से हम को शान्ति दी।
7. और न केवल उसके आने से परन्तु उस की उस शान्ति से भी, जो उस को तुम्हारी ओर से मिली यी; और उस ने तुम्हारी लालसा, और तुम्हारे दुख ओर मेरे लिथे तुम्हारी धुन का समाचार हमें सुनाया, जिस से मुझे और भी आनन्द हुआ।
8. क्योकि यद्यपि मैं ने अपक्की पत्री से तुम्हें शोकित किया, परन्तु उस से पछताता नहीं जैसा कि पहिले पछताता या क्योंकि मैं देखता हूं, कि उस पत्री से तुम्हें शोक तो हुआ परन्तु वह योड़ी देर के लिथे या।
9. अब मैं आनन्दित हूं पर इसलिथे नहीं कि तुम को शोक पहुंचा बरन इसलिथे कि तुम ने उस शोक के कारण मन फिराया, क्योंकि तुम्हारा शोक परमेश्वर की इच्छा के अनुसार या, कि हमारी ओर से तुम्हें किसी बात में हानि न पहुंचे।
10. क्योंकि परमेश्वर-भक्ति का शोक ऐसा पश्चाताप उत्पन्न करता है जिस का परिणाम उद्धार है और फिर उस से पछताना नहीं पड़ता: परन्तु संसारी शोक मृत्यु उत्पन्न करता है।
11. सो देखो, इसी बात से कि तुम्हें परमेश्वर-भक्ति का शोक हुआ तुम में कितनी उत्तेजना और प्रत्यत्तर और रिस, और भय, और लालसा, और धुन और पलआ लेने का विचार उत्पन्न हुआ तुम ने सब प्रकार से यह सिद्ध कर दिखाया, कि तुम इस बात में निर्दोष हो।
12. फिर मैं ने जो तुम्हारे पास लिखा या, वह न तो उसके कारण लिखा, जिस ने अन्याय किया, और न उसके कारण जिस पर अन्याय किया गया, परन्तु इसलिथे कि तुम्हारी उत्तेजना जो हमारे लिथे है, वह परमेश्वर के साम्हने तुम पर प्रगट हो जाए।
13. इसलिथे हमें शान्ति हुई; और हमारी इस शान्ति के साय तितुस के आनन्द के कारण और भी आनन्द हुआ कयोंकि उसका जी तुम सब के कारण हरा भरा हो गया है।
14. क्योंकि यदि मैं ने उसके साम्हने तुम्हारे विषय में कुछ घमण्ड दिखाया, तो लज्ज़ित नहीं हुआ, परन्तु जैसे हम ने तुम से सब बातें सच सच कह दी यीं, वैसे ही हमारा धमण्ड दिखाना तितुस के साम्हने भी सच निकला।
15. और जब उस को तुम सब के आज्ञाकारी होने का स्क़रण आता है, कि क्योंकर तुम ने डरते और कांपके हुए उस से भेंट की; तो उसका प्रेम तुम्हारी ओर और भी बढ़ता जाता है।
16. मैं आनन्द करता हूं, कि तुम्हारी ओर से मुझे हर बात में ढाढ़स होता है।।
Chapter 8
1. अब हे भाइयों, हम तुम्हें परमेश्वर के उस अनुग्रह का समाचार देते हैं, जो मकिदुनिया की कलीसियाओं पर हुआ है।
2. कि क्लेश की बड़ी पक्कीझा में उन के बड़े आनन्द और भारी कंगालपन के बढ़ जाने से उन की उदारता बहुत बढ़ गई।
3. और उनके विषय में मेरी यह गवाही है, कि उन्होंने अपक्की सामर्य भर बरन सामर्य से भी बाहर मन से दिया।
4. और इस दान में और पवित्र लोगोंकी सेवा में भागी होने के अनुग्रह के विषय में हम से बार बार बहुत बिनती की।
5. और जैसी हम ने आज्ञा की यी, वैसी ही नहीं, बरन उन्होंने प्रभु को, फिर परमेश्वर की इच्छा से हम को भी अपके तई दे दिया।
6. इसलिथे हम ने तितुस को समझाया, कि जेसा उस ने पहिले आरम्भ किया या, वैसा ही तुम्हारे बीच में इस दान के काम को पूरा भी कर ले।
7. सो जैसे हर बात में अर्यात् विश्वास, वचन, ज्ञान और सब प्रकार के यत्न में, और उस प्रेम में, जो हम से रखते हो, बढ़ते जाते हो, वैसे ही इस दान के काम में भी बढ़ते जाओ।
8. मैं आज्ञा की रीति पर तो नहीं, परन्तु और के उत्साह से तुम्हारे प्रेम की सच्चाई को परखने के लिथे कहता हूं।
9. तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह जानते हो, कि वह धनी होकर भी तुम्हारे लिथे कंगाल बन गया ताकि उसके कंगाल हो जाने से तुम धनी हो जाओ।
10. और इस बात में मेरा विचार यही है, क्योंकि यह तुम्हारे लिथे अच्छा है; जो एक वर्ष से न तो केवल इस काम को करने ही में, परन्तु इस बात के चाहने में भी प्रयम हुए थे।
11. इसलिथे अब यह काम पूरा करो; कि इच्छा करने में तुम तैयार थे, वैसा ही अपक्की अपक्की पूंजी के अनुसार पूरा भी करो।
12. कयोंकि यदि मन की तैयारी हो तो दान उसके अनुसार ग्रहण भी होता है जो उसके पास है न कि उसके अनुसार जो उसके पास नहीं।
13. यह नहींख् कि औरो को चैन और तुम को क्लेश मिले।
14. परनतु बराबरी के विचार से इस समय तुम्हारी बढ़ती उनकी घटी में काम आए, ताकि उन की बढ़ती भी तुम्हारी घटी में काम आए, कि बराबरी हो जाए।
15. जेसा लिखा है, कि जिस ने बहुत बटोरा उसका कुछ अधिक न निकला और जिस ने योड़ा बटोरा उसका कुछ कम न निकला।।
16. और परमेश्वर का धन्यवाद हो, जिस ने तुम्हारे लिथे वही उत्साह तितुस के ह्रृदय में डाल दिया है।
17. कि उस ने हमारा समझाना मान लिया बरन बहुत उत्साही होकर वह अपक्की इच्छा से तुम्हारे पास गया है।
18. और हम ने उसके साय उस भाई को भेजा है जिस का नाम सुसमाचार के विषय में सब कलीसिया में फैला हुआ है।
19. और इतना ही नहीं, परन्तु वह कलीसिया से ठहराया भी गया कि इस दान के काम के लिथे हमारे साय जाए और हम यह सेवा इसलिथे करते हैं, कि प्रभु की महिमा और हमारे मन की तैयारी प्रगट हो जाए।
20. हम इस बात में चौकस रहते हैं, कि इस उदारता के काम के विषय में जिस की सेवा हम करते हैं, कोई हम पर दोष न लगाते पाए।
21. क्योंकि जो बातें केवल प्रभु ही के निकट नहीं, परन्तु मनुष्योंके निकट भी भली हैं हम उन की चिन्ता करते हैं।
22. और हम ने उसके साय अपके भाई को भेजा है, जिस को हम ने बार बार परख के बहुत बातोंमें उत्साही पाया है; परन्तु अब तुम पर उस को बड़ा भरोसा है, इस कारण वह और भी अधिक उत्साही है।
23. यदि कोई तितुस के विषय में पूछे, तो वह मेरा सायी, और तुम्हारे लिथे मेरा सहकर्मी है, और यदि हमारे भाइयोंके विषय में पूछे, तो वे कलीसियाओं के भेजे हुए और मसीह की महिमा हैं।
24. सो अपना प्रेम और हमारा वह घमण्ड जो तुम्हारे विषय में है कलीसियाओं के साम्हने उन्हें सिद्ध करके दिखाओ।।
Chapter 9
1. अब उस सेवा के विषय में जो पवित्र लोगोंके लिथे की जाती है, मुझे तुम को लिखना अवश्य नहीं।
2. क्योंकि मैं तुम्हारे मन की तैयारी को जानता हूं, जिस के कारण मैं तुम्हारे विषय में मकिदुनियोंके साम्हने घमण्ड दिखाता हूं, कि अखया के लोग एक वर्ष से तैयार हुए हैं, और तुमहारे उत्साह ने और बहुतोंको भी उभारा है।
3. परन्तु मैं ने भाइयोंको इसलिथे भेजा है, कि हम ने जो घमण्ड तुम्हारे विषय में दिखाया, वह इस बात में व्यर्य न ठहरे; परन्तु जैसा मैं ने कहा; वैसे ही तुम तैयार हो रहो।
4. ऐसा न हो, कि यदि कोई मकिदुनी मेरे साय आए, और तुम्हें तैयार न पाए, तो क्या जानें, इस भरोसे के कारण हम (यह नहीं कहते कि तुम) लज्ज़ित हों।
5. इसलिथे मैं ने भाइयोंसे यह बिनती करना अवश्य समझा कि वे पहिले से तुम्हारे पास जाएं, और तुम्हारी उदारता का फल जिस के विषय में पहिले से वचन दिया गया या, तैयार कर रखें, कि यह दबाव से नहीं परन्तु उदारता के फल की नाई तैयार हो।।
6. परन्तु बात तो यह है, कि जो योड़ा बोता है वह योड़ा काटेगा भी; और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा।
7. हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करेद्ध न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।
8. और परमेश्वर सच प्रकार का अनुग्रह तुम्हें बहुतायत से दे सकता है जिस से हर बात में और हर समय, सब कुछ, जो तुम्हें आवश्यक हो, तुम्हारे पास रहे, और हर एक भले काम के लिथे तुम्हारे पास बहुत कुछ हो।
9. जेसा लिखा है, उस ने बियराया, उस ने कंगालोंको दान दिया, उसका धर्म सदा बना रहेगा।
10. सो जो बोनेवाले को बीज, और भोजन के लिथे रोटी देता है वह तुम्हें बीज देगा, और उसे फलवन्त करेगा; और तुम्हारे धर्म के फलोंको बढ़ाएगा।
11. कि तुम हर बात में सब प्रकार की उदारता के लिथे जो हमारे द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करवाती है, धनवान किए जाओ।
12. क्योंकि इस सेवा के पूरा करने से, न केवल पवित्र लोगोंकी घटियां पूरी होती हैं, परन्तु लोगोंकी ओर से परमेश्वर का बहुत धन्यवाद होता है।
13. क्योंकि इस सेवा से प्रमाण लेकर परमेश्वर की महिमा प्रगट करते हैं, कि तुम मसीह के सुसमाचार को मान कर उसके आधीन रहते हो, और उन की, और सब की सहाथता करने में उदारता प्रगट करते रहते हो।
14. ओर वे तुम्हारे लिथे प्रार्यना करते हैं; और इसलिथे कि तुम पर परमेश्वर का बड़ा ही अनुग्रह है, तुम्हारी लालसा करते रहते हैं।
15. परमेश्वर को उसके उस दान के लिथे जो वर्णन से बाहर है, धन्यवाद हो।।
Chapter 10
1. मैं वही पौलुस जो तुम्हारे साम्हने दीन हूं, परन्तु पीठ पीछे तुम्हारी ओर साहस करता हूं; तुम को मसीह की नम्रता, और कोमलता के कारण समझाता हूं।
2. मैं यह बिनती करता हूं, कि तुम्हारे साम्हने मुझे निर्भय होकर साहस करना न पके; जैसा मैं कितनोंपर जो हम को शरीर के अनुसार चलनेवाले समझते हैं, वीरता दिखाने का विचार करता हूं।
3. क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते।
4. क्योकि हमारी लड़ाई के हिययार शारीरिक नहीं, पर गढ़ोंको ढा देने के लिथे परमेश्वर के द्वारा सामर्यी हैं।
5. सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।
6. और तैयार रहते हैं कि जब तुम्हारा आज्ञा मानना पूरा हो जाए, तो हर एक प्रकार के आज्ञा न मानने का पलटा लें।
7. तुम इन्हीं बातोंको दखते हो, जो आंखोंके साम्हने हैं, यदि किसी का अपके पर यह भरोसा हो, कि मैं मसीह का हूं, तो वह यह भी जान ले, कि जैसा वह मसीह का है, वैसे ही हम भी हैं।
8. क्योंकि यदि मैं उस अधिक्कारने के विषय में और भी घमण्ड दिखाऊं, जो प्रभु ने तुम्हारे बिगाड़ने के लिथे नहीं पर बनाने के लिथे हमें दिया है, तो लज्ज़ित न हूंगा।
9. यह मैं इसलिथे कहता हूं, कि पत्रियोंके द्वारा तुम्हें डरानेवाला न ठहरूं।
10. क्योंकि कहते हें, कि उस की पत्रियां तो गम्भीर और प्रभावशाली हैं; परन्तु जब देखते हैं, तो वह देह का निर्बल और वक्तव्य में हल्का जान पड़ता है।
11. सो जो ऐसा कहता है, कि समझ रखे, कि जैसे पीठ पीछे पत्रियोंमें हमारे वचन हैं, वैसे ही तुम्हारे साम्हने हमारे काम भी होंगे।
12. क्योंकि हमें यह हियाव नहीं कि हम अपके आप को उन में से ऐसे कितनोंके साय गिनें, या उन से अपके को मिलाएं, जो अपक्की प्रशंसा करते हैं, और अपके आप को आपस में नाप तौलकर एक दूसरे से मिलान करके मूर्ख ठहरते हैं।
13. हम तो सीमा से बाहर घमण्ड कदापि न करेंगे, परन्तु उसी सीमा तक जो परमेश्वर ने हमारे लिथे ठहरा दी है, और उस में तुम भी आ गए हो और उसी के अनुसार घमण्ड भी करेंगे।
14. क्योंकि हम अपक्की सीमा से बाहर अपके आप को बढ़ाना नहीं चाहते, जैसे कि तुम तक न पहुंचने की दशा में होता, बरन मसीह का सुसमाचार सुनाते हुए तुम तक पहुंच चुके हैं।
15. और हम सीमा से बाहर औरोंके परिश्र्म पर घमण्उ नहीं करते; परन्तु हमें आशा है, कि ज्योंज्योंतुम्हारा विश्वास बढ़ता जाएगा त्योंत्योंहम अपक्की सीमा के अनुसार तुम्हारे कारण और भी बढ़ते जाएंगे।
16. कि हम तुम्हारे सिवानोंसे आगे बढ़कर सुसमाचार सुनाएं, और यह नहीं, कि हम औरोंकी सीमा के भीतर बने बनाए कामोंपर घमण्ड करें।
17. परनतु जो घमण्ड करे, वह प्रभु पर घमण्ड करें।
18. क्योंकि जो अपक्की बड़ाई करता है, वह नहीं, परन्तु जिस की बड़ाई प्रभु करता है, वही ग्रहण किया जाता है।।
Chapter 11
1. यदि तुम मेरी योड़ी मूर्खता सह लेते तो क्या ही भला होता; हां, मेरी सह भी लेते हो।
2. क्योंकि मैं तुम्हारे विषय मे ईश्वरीय धुन लगाए रहता हूं, इसलिथे कि मैं ने एक ही पुरूष से तुम्हारी बात लगाई है, कि तुम्हें पवित्र कुंवारी की नाई मसीह को सौंप दूं।
3. परन्तु मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपक्की चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साय होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएं।
4. यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्क़ा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला या; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना या, तो तुम्हारा सहना ठीक होता।
5. मैं तो समझता हमं, कि मैं किसी बात में बड़े से बड़े प्रेरितोंसे कम नहीं हूं।
6. यदि मैं व्क्तवय में अनाड़ी हूं, तौभी ज्ञान में नहीं; बरन हम ने इस को हर बात में सब पर तुम्हारे लिथे प्रगट किया है।
7. क्या इस में मैं ने कुछ पाप किया; कि मैं ने तुम्हें परमेश्वर का सुसमाचार सेंत मेंत सुनाया; और अपके आप को नीचा किया, कि तुम ऊंचे हो जाओ
8. मैं ने और कलीसियाओं को लूटा अर्यात् मैं ने उन से मजदूरी ली, ताकि तुम्हारी सेवा करूं।
9. ओर जब तुम्हारे साय या, और मुझे घटी हुई, तो मैं ने किसी पर भार नहीं दिया, क्योंकि भाइयोंने, मकिदुनिया से आकर मेरी घटी को पक्की की: और मैं ने हर बात में अपके आप को तुम पर भार होने से रोका, और रोके रहूंगा।
10. यदि मसीह की सच्चाई मुझ में है, तो अखया देश में कोई मुझे इस घमण्ड से न रोकेगा।
11. किस लिथे क्या इसलिथे कि मैं तुम से प्रेम नहीं रखता परमेश्वर यह जानता है।
12. परन्तु जो मैं करता हूं, वही करता रहूंगा; कि जो लोग दांव ढूंढ़ते हैं, उन्हें मैं दांव पाने दूं, ताकि जिस बात में वे घमण्ड करते हैं, उस में वे हमारे ही समान ठहरें।
13. क्योंकि ऐसे लोग फूठे प्रेरित, और छल से काम करनेवाले, और मसीह के प्रेरितोंका रूप धरनेवाले हैं।
14. और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्योंकि शैतान आप भी ज्योतिमर्य स्वर्गदूत का रूप धारण करता है।
15. सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकोंका सा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं परन्तु उन का अन्त उन के कामोंके अनुसार होगा।
16. मैं फिर कहता हूं, कोई मुझे मूर्ख न समझे; नहीं तो मूर्ख ही समझकर मेरी सह लो, ताकि योड़ा सा मैं भी घमण्ड करूं।
17. इस बेधड़क घमण्ड से बोलने में जो कुछ मैं कहता हूं वह प्रभू की आज्ञा के अनुसार नहीं पर मानोंमूर्खता से ही कहता हूं।
18. जब कि बहुत लोग शरीर के अनुसार घमण्ड करते हैं, तो मैं भी घमण्ड करूंगा।
19. तुम तो समझदार होकर आनन्द से मूर्खोंकी सह लेते हो।
20. क्योंकि जब तुम्हें कोई दास बना लेता है, या खा जाता है, या फसा लेता है, या अपके आप को बड़ा बनाता है, या तुम्हारे मुंह पर यप्पड़ मारता है, तो तुम सह लेते हो।
21. मेरा कहता अनादर की रीति पर है, मानो कि हम निर्बल से थे; परन्तु जिस किसी बात में कोई हियाव करता है (मैं मूर्खता से कहता हूं) तो मैं भी हियाव करता हूं।
22. क्या वे ही इब्रानी हैं मैं भी हूं: क्या वे ही इब्राहीम के वंश के हैं मैं भी हूं: क्या वे ही मसीह के सेवक हैं
23. (मैं पागल की नाई कहता हूं) मैं उन से बढ़कर हूं! अधिक परिश्र्म करने में; बार बार कैद होने में; कोड़े खाते में; बार बार मृत्यु के जोखिमोंमें।
24. पांच बार मैं ने यहूदियोंके हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए।
25. तीन बार मैं ने बेंतें खाई; एक बार पत्यरवाह किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा या, टूट गए; एक राज दिन मैं ने समुद्र में काटा।
26. मैं बार बार यात्राओं में; नदियोंके जोखिमोंमें; डाकुओं के जोखिमोंमें; अपके जातिवालोंसे जोखिमोंमें; अन्यजातियोंसे जोखिमोंमें; नगरोंमें के जाखिमोंमें; जंगल के जोखिमोंमें; समुद्र के जाखिमोंमें; फूठे भाइयोंके बीच जोखिमोंमें;
27. परिश्र्म और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख-पियास में; बार बार उपवास करते में; जाड़े में; उघाड़े रहने में।
28. और और बातोंको छोड़कर जिन का वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रतिदिन मुझे दबाती है।
29. किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता
30. यदि घमण्उ करना अवश्य है, तो मैं अपक्की निर्बलता की बातोंपर करूंगा।
31. प्रभु यीशु का परमेश्वर और पिता जो सदा धन्य है, जानता है, कि मैं फूठ नहीं बोलता।
32. दिमश्क में अरितास राजा की ओर से जो हाकिम या, उस ने मेरे पकड़ने को दिमश्िकियोंके नगर पर पहरा बैठा रखा या।
33. और मैं टोकरे में खिड़की से होकर भीत पर से उतारा गया, और उसके हाथ से बच निकला।।
Chapter 12
1. यद्यपि घमण्ड करना तो मेरे लिथे ठीक नहीं तौभी करना पड़ता है; सो मैं प्रभु के दिए हुए दर्शनोंऔर प्रकाशोंकी चर्चा करूंगा।
2. मैं मसीह में एक मनुष्य को जानता हूं, चौदह वर्ष हुए कि न जाने देहसहित, न जाने देहरिहत, परमेश्वर जानता है, ऐसा मनुष्य तीसरे स्वर्ग तक उठा लिया गया।
3. मैं ऐसे मनुष्य को जानता हूं न जाने देहसहित, न जाने देहरिहत परमेश्वर ही जानता है।
4. कि स्वर्ग लोक पर उठा लिया गया, और एसी बातें सुनीं जो कहने की नहीं; और जिन का मुंह में लाना मनुष्य को उचित नहींं।
5. ऐसे मनुष्य पर तो मैं घमण्ड करूंगा, परन्तु अपके पर अपक्की निर्बलताओं को छोड़, अपके विषय में घमण्ड न करूंगा।
6. क्योंकि यदि मैं घमण्ड करना चाहूं भी तो मूंर्ख न हूंगा, क्योंकि सच बोलूंगा; तोभी रूक जाता हूं, ऐसा न हो, कि जैसा कोई मुझे देखता है, या मुझ से सुनता है, मुझे उस से बढ़कर समझे।
7. और इसलिथे कि मैं प्रकाशोंकी बहुतायत से फूल न जाऊं, मेरे शरीर में एक कांटा चुभाया गया अर्यात् शैतान का एक दूत कि मुझे घूसे मारे ताकि मैं फूल न जाऊं।
8. इस के विषय में मैं ने प्रभु से तीन बार बिनती की, कि मुझ से यह दूर हो जाए।
9. और उस ने मुझ से कहा, मेरा अनुग्रह तेरे लिथे बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्य निर्बलता में सिद्ध होती है; इसलिथे मैं बड़े आनन्द से अपक्की निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्य मुझ पर छाया करती रहे।
10. इस कारण मैं मसीह के लिथे निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दिरद्रता में, और उपद्रवोंमें, और संकटोंमें, प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।।
11. मैं मूर्ख तो बना, परन्तु तुम ही ने मुझ से यह बरबस करवाया: तुम्हें तो मेरी प्रशंसा करनी चाहिए यी, क्योंकि यद्यपि मैं कुछ भी नहीं, तौभी उन बड़े से बड़े प्ररितोंसे किसी बात में कम नहीं हूं।
12. प्ररित के लझण भी तुम्हारे बीच सब प्रकार के धीरज सहित चिन्हों, और अद्भुत कामों, और सामर्य के कामोंसे दिखाए गए।
13. तुम कोैन सी बात में और कलीसिक्कों कम थे, केवल इस में कि मैं ने तुम पर अपना भार न रखा: मेरा यह अन्याय झमा करो।
14. देखो, मैं तीसरी बार तुम्हारे पास आने को तैयार हूं, और मैं तुम पर कोई भार न रखूंगा; क्योंकि मैं तुम्हारी सम्पत्ति नहीं, बरन तुम ही को चाहता हूं: क्योंकि लड़के-बालोंको माता-पिता के लिथे धन बटोरना न चाहिए, पर माता-पिता को लड़के-बालोंके लिथे।
15. मैं तुम्हारी आत्क़ाओं के लिथे बहुत आनन्द से खर्च करूंगा, बरन आप भी खर्च हो जाऊंगा: क्या जितना बढ़कर मैं तुम से प्रेम रखता हूं, उतना ही घटकर तुम मुझ से प्रेम रखोगे
16. ऐसा हो सकता है, कि मैं ने तुम पर बोफ नहीं डाला, परन्तु चतुराई से तुम्हें धोखा देकर फंसा लिया।
17. भला, जिन्हें मैं ने तुम्हारे पास भेजा, क्या उन में से किसी के द्वारा मैं ने छल करके तुम से कुछ ले लिया
18. मै ने तितुस को समझाकर उसके साय उस भाई को भेजा, तो क्या तीतुस ने छल करके तुम से कुछ लिया क्या हम एक ही आत्क़ा के चलाए न चले क्या एक ही लीक पर न चले
19. तुम अभी तक समझ रहे होगे कि हम तुम्हारे सामने प्रत्युत्तर दे रहे हैं, हम तो परमेश्वर को उपस्यित जानकर मसीह में बोलते हैं, और हे प्रियों, सब बातें तुम्हारी उन्नति ही के लिथे कहते हैं।
20. क्योंकि मुझे डर है, कहीं ऐसा न हो, कि मैं आकर जैसे चाहता हूं, वैसे तुम्हें न पाऊं; और मुझे भी जैसा तुम नहीं चाहते वैसा ही पाओ, कि तुम में फगड़ा, डाह, क्रोध, विराध, ईर्ष्या, चुगली, अभिमान और बखेड़े हों।
21. और मेरा परमेश्वर कहीं मेरे फिर से तुम्हारे यहां आने पर मुझ पर दबाव डाले और मुझे बहुतोंके लिथे फिर शोक करना पके, जिन्होंने पहिले पाप किया या, और उस गन्दे काम, और व्यभिचार, और लुचपन से, जो उन्होंने किया, मन नहीं फिराया।।
Chapter 13
1. अब तीसरी बार तुम्हारे पास आता हूं: दो या तीन गवाहोंके मुंह से हर एक बात ठहराई जाएगी।
2. जैसे जब दूसरी बार तुम्हारे साय या, सो वैसे ही अब दूर रहते हुए उन लोगोंसे जिन्होंने पहिले पाप किया, और और सब लोगोंसे अब पहिले से कहे देता हूं, कि यदि मैं फिर आऊंगा, तो नहीं छोडूंगा।
3. तुम तो इस का प्रमाण चाहते हो, कि मसीह मुझ में बोलता है, जो तुम्हारे लिथे निर्बल नहीं; परन्तु तुम में सामर्यी है।
4. वह निर्बलता के कारण क्रूस पर चढ़ाया तो गया, तौभी परमेश्वर की सामर्य से जीवित है, हम भी तो उस में निर्बल हैं; परन्तु परमेश्वर की सामर्य से जो तुम्हारे लिथे है, उसके साय जीएंगे।
5. अपके प्राण को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपके आप को जांचो, क्या तुम अपके विषय में यह नहीं जानते, कि यीशु मसीह तुम में है नहीं तो तुम निकम्मे निकले हो।
6. पर मेरी आशा है, कि तुम जान लोगे, कि हम निकम्मे नहीं।
7. और हम अपके परमेश्वर से प्रार्यना करते हैं, कि तुम कोई बुराई न करो; इसलिथे हनीं, कि हम खरे देख पकें, पर इसलिथे कि तुम भलाई करो, चाहे हम निकम्मे ही ठहरें।
8. क्योंकि हम सत्य के विरोध में कुछ नहीं कर सकते, पर सत्य के लिथे कर सकते हैं।
9. जब हम निर्बल हैं, और तुम बलवन्त हो, तो हम आनन्दित होते हैं, और यह प्रार्यना भी करते हैं, कि तुम सिद्ध हो जाओ।
10. इस कारण मैं तुम्हारे पीठ पीछे थे बातें लिखता हूं, कि उपस्यित होकर मुझे उस अधिक्कारने के अनुसार जिसे प्रभु ने बिगाड़ने के लिथे नहीं पर बनाने के लिथे मुझे दिया है, कढ़ाई से कुछ करना न पके।।
11. निदान, हे भाइयो, आनन्दित रहो; सिद्ध बनते जाओ; ढाढ़स रखो; एक ही मन रखो; मेल से रहो, और प्रेम और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हारे साय होगा।
12. एक दूसरे को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो।
13. सब पवित्र लोग तुम्हें नमस्कार करते हैं।
14. प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्र आत्क़ा की सहभागिता तुम सब के साय होती रहे।।
Post a Comment