Latest Albums :
Home » » The Holy Bible - 2 इतिहास(2 Chronicles)

The Holy Bible - 2 इतिहास(2 Chronicles)

{[['']]}
2 इतिहास(2 Chronicles)

Chapter 1

1. दाऊद का पुत्र सुलैमान राज्य में स्यिर हो गया, और उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग रहा और उसको बहुत ही बढ़ाया। 
2. और सुलैमान ने सारे इस्राएल से, अर्यात्‌ सहस्रपतियों, शतपतियों, न्यायियोंऔर इस्राएल के सब रईसोंसे जो पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुष थे, बातें कीं। 
3. और सुलैमान पूरी मण्डली समेत गिबोन के ऊंचे स्यान पर गया, क्योंकि परमेश्वर का मिलापवाला तम्बू, जिसे यहोवा के दास मूसा ने जंगल में बनाया या, वह वहीं पर या। 
4. परन्तु परमेश्वर के सन्दूक को दाऊद किर्यत्यारीम से उस स्यान पर ले आया या जिसे उस ने उसके लिथे तैयार किया या, उस ने तो उसके लिथे यरूशलेम में एक तम्बू खड़ा कराया या। 
5. और पीतल की जो वेदी ऊरी के पुत्र बसलेल ने, जो हूर का पोता या, बनाई यी, वह गिबोन में यहोवा के निवास के साम्हने यी। इसलिथे सुलैमान मण्डली समेत उसके पास गया। 
6. और सुलैमान ने वहीं उस पीतल की वेदी के पास जाकर, जो यहोवा के साम्हने मिलापवाले तम्बू के पास यी, उस पर एक हजार होमबलि चड़ाए। 
7. उसी दिन रात को परमेश्वर ने सुलैमान को दर्शन देकर उस से कहा, जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग। 
8. सुलैमान ने परमेश्वर से कहा, तू मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करुणा करता रहा और मुझ को उसके स्यान पर राजा बनाया है। 
9. अब हे यहोवा परमेश्वर ! जो बचन तू ने मेरे पिता दाऊद को दिया या, वह पूरा हो; तू ने तो मुझे ऐसी प्रजा का राजा बनाया है जो भूमि की धूलि के किनकोंके समान बहुत है। 
10. अब मुझे ऐसी बुद्धि और ज्ञान दे, कि मैं इस प्रजा के साम्हने अन्दर- बाहर आना-जाना कर सकूं, क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके? 
11. परमेश्वर ने सुलैमान से कहा, तेरी जो ऐसी ही मनसा हुई, अर्यात तू ने न तो धन सम्पत्ति मांगी है, न ऐश्वर्य्‌और न अपके बैरियोंका प्राण और न अपक्की दीर्घायु मांगी, केवल बुद्धि और ज्ञान का वर मांगा है, जिस से तू मेरी प्रजा का जिसके ऊपर मैं ने तुझे राजा नियुक्त किया है, न्याय कर सके, 
12. इस कारण बुद्धि और ज्ञान तुझे दिया जाता है। और मैं तुझे इतना धन सम्पत्ति और ऐश्वर्य दूंगा, जितना न तो तुझ से पहिले किसी राजा को, मिला और न तेरे बाद किसी राजा को मिलेगा। 
13. तब सुलैमान गिबोन के ऊंचे स्यान से, अर्यात्‌ मिलापवाले तम्बू के साम्हने से यरूशलेम को आया और वहां इस्राएल पर राज्य करने लगा। 
14. फिर सुलैमान ने रय और सवार इकट्ठे कर लिथे; और उसके चौदह सौ रय और बारह हजार सवार थे, और उनको उस ने रयोंके नगरोंमें, और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 
15. और राजा ने ऐसा किया, कि यरूशलेम में सोने-चान्दी का मूल्य बहुतायत के कारण पत्यरोंका सा, और देवदारोंका मूल्य नीचे के देश के गूलरोंका सा बना दिया। 
16. और जो घोड़े सुलैमान रखता या, वे मिस्र से आते थे, और राजा के य्यापारी उन्हें फुणड के फुणड ठहराए हुए दाम पर लिया करते थे। 
17. एक रय तो छ: सौ शेकेल चान्दी पर, और एक घोड़ा डेढ़ सौ शेकेल पर मिस्र से आता या; और इसी दाम पर वे हित्तियोंके सब राजाओं और अराम के राजाओं के लिथे उन्हीं के द्वारा लाया करते थे।

Chapter 2

1. और सुलैमान ने यहोवा के नाम का एक भवन और अपना राजभवन बनाने का विचार किया। 
2. इसलिए सुलैमान ने सत्तर हजार बोफिथे और अस्सी हजार पहाड़ से पत्यर काटनेवाले और वृझ काटनेवाले, और इन पर तीन हजार छ: सौ मुखिथे गिनती करके ठहराए। 
3. तब सुलैमान ने सोर के राजा हूराम के पास कहला भेजा, कि जैसा तू ने मेरे पिता दाऊद से बर्त्ताव किया, अर्यात्‌ उसके रहने का भवन बनाने को देवदार भेजे थे, पैसा ही अब मुझ से भी बर्त्ताव कर। 
4. देख, मैं अपके परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाने पर हूँ, कि उसे उसके लिथे पवित्र करूं और उसके सम्मुख सुगन्धित धूम जलाऊं, और नित्य भेंट की रोटी उस में रखी जाए; और प्रतिदिन सबेरे और सांफ को, और विश्रम और नथे चांद के दिनोंमें और हमारे परमेश्वर यहोवा के सब नियत पब्बॉं में होमबलि चढ़ाया जाए। इस्राएल के लिथे ऐसी ही सदा की विधि है। 
5. और जो भवन मैं बनाने पर हूं, वह महान होगा; क्योंकि हमारा परमेश्वर सब देवताओं में महान है। 
6. परन्तु किस की इतनी शक्ति है, कि उसके लिथे भवन बनाए, वह तो स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी नहीं समाता? मैं क्या हूँ कि उसके साम्हने धूप जलाने को छोड़ और किसी मनसा से उसका भवन बनाऊं? 
7. सो अब तू मेरे पास एक ऐसा मनुष्य भेज दे, जो सोने, चान्दी, पीतल, लोहे और बैंजनी, लाल और नीले कपके की कारीगरी में निपुण हो और नक्काशी भी जानता हो, कि वह मेरे पिता दाऊद के ठहराए हुए निपुण पनुष्योंके साय होकर जो मेरे पास यहूदा और यरूशलेम में रहते हैं, काम करे। 
8. फिर लबानोन से मेरे पास देवदार, सनोवर और चंदन की लकड़ी भेजना, क्योंकि मैं जानता हूँ कि तेरे दास लबानोन में वृझ काटना जानते हैं, और तेरे दासोंके संग मेरे दास भी रहकर, 
9. मेरे लिथे बहुत सी लकड़ी तैयार करेंगे, क्योंकि जो भवन मैं बनाना चाहता हूँ, वह बड़ा और अचम्भे के योग्य होगा। 
10. और तेरे दास जो लकड़ी काटेंगे, उनको मैं बीस हजार कोर कूटा हुआ गंहूं, बीस हजार कोर जव, बीस हजार बत दाखमधु और बीस हजार बत तेल दूंगा। 
11. तब सोर के राजा हूराम ने चिट्ठी लिखकर सुलैमान के पास भेजी, कि यहोवा अपक्की प्रजा से प्रेम रखता है, इस से उस ने तुझे उनका राजा कर दिया। 
12. फिर हूराम ने यह भी लिखा कि धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जो आकाश और पृय्वी का सृजनहार है, और उस ने दाऊद राजा को एक बुद्धिमान, चतुर और समझदार पुत्र दिया है, ताकि वह यहोवा का एक भवन और अपना राजभवन भी बनाए। 
13. इसलिथे अब मैं एक बुद्धिमान और समझदार पुरुष को, अर्यात्‌ हूराम-अबी को भेजता हूँ, 
14. जो एक दानी स्त्री का बेटा है, और उसका पिता सोर का या। और वह सोने, चान्दी, पीतल, लोहे, पत्यर, लकड़ी, बैंजनी और नीले और लाल और सूझ्म सन के कपके का काम, और सब प्रकार की नक्काशी को जानता और सब भांति की कारीगरी बना सकता है : सो तेरे चतुर मनुष्याोंके संग, और मेरे प्रभु तेरे पिता दाऊद के चतुर मनुष्योंके संग, उसको भी काम मिले। 
15. और मेरे प्रभु ने जो गेहूं, जव, तेल और दाखमधु भेजने की चर्चा की है, उसे अपके दासोंके पास भ्जिवा दे। 
16. और हम लोग जितनी लकड़ी का तुझे प्रयोजन हो उतनी लबानोन पर से काटेंगे, और बेड़े बनवाकर समुद्र के मार्ग से जापा को पहुचाएंगे, और तू उसे यरूशलेम को ले जाना। 
17. तब सुलैमान ने इस्राएली देश के सब परदेशियोंकी गिनती ली, यह उस गिनती के बाद हुई जो उसके पिता दाऊद ने ली यी; और वे डेढ़ लाख तीन हजार छ: सौ पुरुष निकले। 
18. उन में से उस ने सत्तर हजार बोफिथे, अस्सी हजार पहाड़ पर पत्यर काटनेवाले और वृझ काटनेवाले और तीन हजार छ: सौ उन लोगोंसे काम करानेवाले मुखिथे नियुक्त किए।

Chapter 3

1. तब सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिय्याह नाम पहाड़ पर उसी स्यान में यहोवा का भवन बनाना आरम्भ किया, जिसे उसके पिता दाऊद ने दर्शन पाकर यबूसी ओर्नान के खलिहान में तैयार किया या : 
2. उस ने अपके राज्य के चौथे वर्ष के दूसरे महीने के, दूसरे दिन को बनाना आरम्भ किया। 
3. परमेश्वर का जो भवन सुलैमान ने बनाया, उसका यह ढव है, अर्यात्‌ उसकी लम्बाई तो प्राचीन काल की नाप के अनुसार साठ हाथ, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ् की यी। 
4. और भवन के साम्हने के ओसारे की लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की; और उसकी ऊंचाई एक सौ बीस हाथ की थी। सुलैमान ने उसको भीतर चोखे सोने से मढ़वाया। 
5. और भवन के बड़े भाग की छत उस ने सनोवर की लकड़ी से पटवाई, और उसको अच्छे सोने से मढ़वाया, और उस पर खजूर के वृझ की और सांकलोंकी नक्काशी कराई। 
6. फिर शोभा देने के लिथे उस ने भवन में मणि जड़वाए। और यह सोना पवैंम का या। 
7. और उस ने भवन को, अर्यात्‌ उसकी कडिय़ों, डेवढिय़ों, भीतोंऔर किवाडोंको सोने से मढ़वाया, और भीतोंपर करूब खुदवाए। 
8. फिर उस ने भवन के परमपवित्र स्यान को बनाया; उसकी लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की यी, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की यी; और उस ने उसे छ: सौ किक्कार चोखे सोने से मढ़वाया। 
9. और सोने की कीलोंका तौल पचास शेकेल या। और उस ने अटारियोंको भी सोने से मढ़वाया। 
10. फिर भवन के परमपवित्र स्यान में उसने नक्काशी के काम के दो करूब बनवाए और वे सोने से मढ़वाए गए। 
11. करूबोंके पंख तो सब मिलकर बीस हाथ लम्बे थे, अर्यात्‌ एक करूब का एक पंख पांच हाथ का और भवन की भीत तक पहुंचा हुआ या; और उसका दूसरा पंख पांच हाथ का या और दूसरे करूब के पंख से मिला हुआ या। 
12. और दूसरे करूब का भी एक पंख पांच हाथ का और भवन की दूसरी भीत तक पहुंचा या, और दूसरा पंख पांच हाथ का और पहिले करूब के पंख से सटा हुआ या। 
13. इन करूबोंके पंख बीस हाथ फैले हुए थे; और वे अपके अपके पांवोंके बल खड़े थे, और अपना अपना मुख भीतर की ओर किए हुए थे। 
14. फिर उस ने बीचवाले पर्दे को नीले, बैंजनी और लाल रंग के सन के कपके का बनवाया, और उस पर करूब कढ़वाए। 
15. और भवन के साम्हने उस ने पैंतीस पैंतीस हाथ ऊंचे दो खम्भे बनवाए, और जो कंगनी एक एक के ऊपर यी वह पांच पांच हाथ की यी। 
16. फिर उस ने भीतरी कोठरी में सांकलें बनवाकर खम्भोंके ऊपर लगाई, और एक सौ अनार भी बनाकर सांकलोंपर लटकाए। 
17. उस ने इन ख्म्भोंको मन्दिर के साम्हने, एक तो उसकी दाहिनी ओर और दूसरा बाई ओर खड़ा कराया; और दाहिने खम्भे का नाम याकीन और बाथें खम्भे का नाम बोअज़ रखा।

Chapter 4

1. फिर उस ने पीतल की एक वेदी बनाई, उसकी लम्बाई और चौड़ाई बीस बीस हाथ की और ऊंचाई दस हाथ की यी। 
2. फिर उस ने एक ढाला हुआ हौद बनवाया; जो छोर से छोर तक दस हाथ तक चौड़ा या, उसका आकार गोल या, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की यी, और उसके चारोंओर का घेर तीस हाथ के नाप का या। 
3. और उसके तले, उसके चारोंओर, एक एक हाथ में दस दस बैलोंकी प्रतिमाएं बनी यीं, जो हौद को घेरे यीं; जब वह ढाला गया, तब थे बैल भी दो पांति करके ढाले गए। 
4. और वह बारह बने हुए बैलोंपर धरा गया, जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और इनके ऊपर हौद घरा या, और उन सभोंके पिछले अंग भीतरी भाग में पड़ते थे। 
5. और हौद की मोटाई चौवा भर की यी, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाई, सोसन के फूलोंके काम से बना या, और उस में तीन हजार बत भरकर समाता या। 
6. फिर उस ने धोने के लिथे दस हौदी बनवाकर, पांच दाहिनी और पांच बाई ओर रख दीं। उन में होमबलि की वस्तुएं धोई जाती यीं, परन्तु याजकोंके धोने के लिलथे बड़ा हौद या। 
7. फिर उस ने सोने की दस दीवट विधि के अनुसार बनवाई, और पांच दाहिनी ओर और पांच बाई ओर मन्दिर में रखवा दीं। 
8. फिर उस ने दस मेज बनवाकर पांच दाहिनी ओर और पाच बाई ओर मन्दिर में रखवा दीं। और उस ने सोने के एक सौ कटोरे बनवाए। 
9. फिर उस ने याजकोंके आंगन और बड़े आंगन को बनवाया, और इस आंगन में फाटक बनवाकर उनके किवाड़ोंपर पीतल मढ़वाया। 
10. और उस ने हौद को भवन की दाहिनी ओर अर्यात्‌ पूर्व और दक्खिन के कोने की ओर रखवा दिया। 
11. और हूराम ने हण्डों, फावडिय़ों, और कटोरोंको बनाया। और हूराम ने राजा सुलैमान के लिथे परमेश्वर के भवन में जो काम करना या उसे निपटा दिया : 
12. अर्यात्‌ दो खम्भे और गोलोंसमेत वे कंगनियां जो खम्भोंके सिरोंपर यीं, और खम्भोंके सिरोंपर के गोलोंको ढांपके के लिए जालियोंकी दो दो पांति; 
13. और दोनोंजालियोंके लिथे चार सौ अनार और जो गोले खम्भोंके सिरोंपर थे, उनको ढांपकेवाली एक एक जाली के लिथे अनारोंकी दो दो पांति बनाई। 
14. फिर उस न कुसिर्यां और कुसिर्योंपर की हौदियां, 
15. और उनके नीचे के बारह बैल बनाए। 
16. फिर हूराम-अबी ने हण्डों, फावडिय़ों, कांटोंऔर इनके सब सामान को यहोवा के भवन के लिथे राजा सुलैमान की आज्ञा से फलकाए हुए पीतल के बनवाए। 
17. राजा ने उसको यरदन की तराई में अर्यात्‌ सुक्कोत और सारतान के बीच की चिकनी मिट्टीवाली भूमि में ढलवाया। 
18. सुलैमान ने थे सब पात्र बहुत बनवाए, यहां तक कि पीतल के तौल का हिसाब न या। 
19. और सुलैमान ने परमेश्वर के भवन के सब पात्र, सोने की वेदी, और वे मेज जिन पर भेंट की रोटी रखी जाती यीं, 
20. और दीपकोंसमेत चोखे सोने की दीवटें, जो विधि के अनुसार भीतरी कोठरी के साम्हने जला करतीं यीं। 
21. और सोने बरन निरे सोने के फूल, दीपक और चिमटे; 
22. और चोखे सोने की कैंचियां, कटोरे, धूपदान और करछे बनवाए। फिर भवन के द्वार और परम पवित्र स्यान के भीतरी किवाड़ और भवन अर्यात्‌ मन्दिर के किवाड़ सोने के बने।

Chapter 5

1. इस प्रकार सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिथे जो जो काम बनवाया वह सब निपट गया। तब सुलैमान ने अपके पिता दाऊद के पवित्र किए हुए सोने, चान्दी और सब पात्रोंको भीतर पहुंचाकर परमेश्वर के भवन के भएाडारोंमें रखवा दिया। 
2. तब सुलैमान ने इस्राएल के पुरनियोंको और गोत्रोंके सब मुखय पुरुष, जो इस्राएलियोंके पितरोंके घरानोंके प्रधान थे, उनको भी यरूशलेम में इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर से अर्यात्‌ सिय्योन से ऊपर लिवा ले आएं। 
3. सब इस्राएली पुरुष सातवें महीने के पर्व के समय राजा के पास इकट्ठे हुए। 
4. जब इस्राएल के सब पुरनिथे आए, तब लेवियोंने सन्दूक को उठा लिया। 
5. और लेवीय याजक सन्दूक और मिलाप का तम्बू और जितने पवित्र पात्र उस तम्बू में थे उन सभोंको ऊपर ले गए। 
6. और राजा सुलैमान और सब इस्राएली मण्डली के लोग जो उसके पास इकट्ठे हुए थे, उन्होंने सन्दूक के साम्हने इतनी भेड़ और बैल बलि किए, जिनकी गिनती और हिसाब बहुतायत के कारण न हो सकती यी। 
7. तब याजकोंने यहोवा की वाचा का सनदूक उसके स्यान में, अर्यात्‌ भवन की भीतरी कोठरी में जो परमपवित्र स्यान है, पहंचाकर, करूबोंके पंखोंके तले रख दिया। 
8. सन्दूक के स्यान के ऊपर करूब तो पंख फैलाए हुए थे, जिससे वे ऊपर से सन्दूक और उसके डणडोंको ढांपे थे। 
9. डणडे तो इतने लम्बे थे, कि उनके सिक्के सन्दूक से निकले हुए भीतरी कोठरी के साम्हने देख पड़ते थे, परन्तु बाहर से वे दिखई न पड़ते थे। वे आज के दिन तक वहीं हैं। 
10. सन्दूक में पत्य्र की उन दो पटियाओं को छोड़ कुछ न या, जिन्हें मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखा, जब यहोवा ने इस्राएलियोंके मिस्र से निकलने के बाद उनके साय वाचा बान्धी यी। 
11. जब याजक पवित्रस्यान से निकले ( जितने याजक उपस्यित थे, उन सभोंने तो अपके अपके को पवित्र किया या, और अलग अलग दलोंमें होकर सेवा न करते थे; 
12. और जितने लेवीय गवैथे थे, वे सब के सब अर्यात्‌ मुत्रोंऔर भइयोंसमेत आसाप, हेमान और यदूतून सन के वस्त्र पहिने फांफ, सारंगियां और वीणाएं लिथे हुए, वेदी के पूर्व अलंग में खड़े थे, और उनके साय एक सौ बीस याजक तुरहियां बजा रहे थे।) 
13. तो जब तुरहियां बजानेवाले और गानेवाले एक स्वर से यहोवा की स्तुति और धन्यवाद करने लगे, और तुरहियां, फांफ आदि बाजे बजाते हुए यहोवा की यह स्तुति ऊंचे शब्द से करने लगे, कि वह भला है और उसकी करुणा सदा की है, तब यहोवा के भवन मे बादल छा गया, 
14. और बादल के कारण याजक लोग सेवा-टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज परमेश्वर के भवन में भर गया या।

Chapter 6

1. तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा या, कि मैं घोर अंधकार मैं वास किए रहूंगा। 
2. परन्तु मैं ने तेरे लिथे एक वासस्यान वरन ऐसा दृढ़ स्यान बनाया है, जिस में तू युग युग रहे। 
3. और राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुंह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया, और इस्राएल की पूरी सभा खड़ी रही। 
4. और उस ने कहा, धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जिस ने अपके मुंह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया या, और अपके हाथोंसे इसे पूरा किया है, 
5. कि जिस दिन से मैं अपक्की प्रजा को मिस्र देश से निकाल लाया, तब से मैं ने न तो इस्राएल के किसी गोत्र का कोई नगर चुना जिस में मेरे नाम के निवास के लिथे भवन बनाया जाए, और न कोई मनुष्य चुना कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो। 
6. परन्तु मैं ने यरूशलेम को इसलिथे चुना है, कि मेरा नाम वहां हो, और दाऊद को चुन लिया है कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो। 
7. मेरे पिता दाऊद की यह मनसा यी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाए। 
8. परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, तेरी जो मनसा है कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी मनसा करके नू ने भला तो किया; 
9. तौभी तू उस भवन को बनाने न पाएगा : तेरा जो निज पुत्र होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा। 
10. यह वचन जो यहोवा ने कहा या, उसे उस ने पूरा भी किया है; ओर मैं अपके पिता दाऊद के स्यान पर उठकर यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम के इस भवन को बनाया है। 
11. और इस में मैं ने उस सन्दूक को रख दिया है, जिस में यहोवा की वह वाचा है, जो उस ने इस्राएलियोंसे बान्धी यी। 
12. तब वह इस्राएल की सारी सभा के देखते यहोवा की वेदी के साम्हने खड़ा हुआ और अपके हाथ फैलाए। 
13. सुलैमान ने पांच हाथ लम्बी, पांच हाथ चौड़ी और तीन हाथ ऊंची पीतल की एक चौकी बनाकर आंगन के बीच रखवाई यी; उसी पर खड़े होकर उस ने सारे इस्राएल की सभा के सामने घुटने टेककर स्वर्ग की ओर हाथ फैलाए हुए कहा, 
14. हे यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर, तेरे समान न तो स्वर्ग में और न पृय्वी पर कोई ईश्वर है : तेरे जो दास अपके सारे मन से अपके को तेरे सम्मुख जानकर जलते हैं, उनके लिथे तू अपक्की वाचा पूरी करता और करुणा करता रहता है। 
15. तू ने जो वचन मेरे पिता दाऊद को दिया या, उसका तू ने पालन किया है; जैसा तू ने अपके मुंह से कहा या, वैसा ही अपके हाथ से उसको हमारी आंखोंके साम्हने पूरा भी किया है। 
16. इसलिथे अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा इस वचन को भी मूरा कर, जो तू ने अपके दास मेरे पिता दाऊद को दिया या, कि तेरे कुल में मेरे साम्हने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदा बने रहेंगे, यह हो कि जैसे तू अपके को मेरे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपक्की चाल चलन में ऐसी चौकसी करें, कि मेरी य्यवस्या पर चलें। 
17. अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा जो वचन तू ने अपके दास दाऊद को दिया य, वह सव्चा किया जाए। 
18. परन्तु क्या परमेश्वर सचमुच मनुष्योंके संग पुय्वी पर वास करेगा? स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में तू क्योंकर समाएगा? 
19. तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा, अपके दास की प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट की ओर ध्यान दे और मेरी पुकार और यह प्रार्यना सुन, जो मैं तेरे साम्हने कर रहा हूँ। 
20. वह यह है कि तेरी आंखें इस भवन की ओर, अर्यत्‌ इसी स्यान की ओर जिसके विषय में तू ने कहा है कि मैं उस में अपना नाम रखूंगा, रात दिन खुली रहें, और जो प्रार्यना तेरा दास इस स्यान की ओर करे, उसे तू सुन ले। 
21. और अपके दास, और अपक्की प्रजा इस्राएल की प्रार्यना जिसको वे इस स्यान की ओर मुंह किए हुए गिड़गिड़ाकर करें, उसे सुन लेना; स्वर्ग में से जो तेरा निवासस्यान है, सुन लेना; और सुनकर झमा करना। 
22. जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे और उसको शपय खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के साम्हने शपय खाए, 
23. तब तू स्वर्ग में से सुनना और मानना, और अपके दासोंका न्याय करके दुष्ट को बदला देना, और उसकी चाल उसी के सिर लैटा देना, और निदॉष को निदॉष ठहराकर, उसके धर्म के अनुसार उसको फल देना। 
24. फिर यदि तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करने के कारण अपके शत्रुओं से हार जाएं, और तेरी ओर फिरका तेरा नाम मानें, और इस भवन में तुझ से प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट करें, 
25. तो तू स्वर्ग में से सुनना; और अपक्की प्रजा इस्राएल का पाप झमा करना, और उन्हें इस देश में लौटा ले आना जिसे तू ने उनको और उनके पुरखाओं को दिया है। 
26. जब वे तेरे विरुद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश इतना बन्द हो जाए कि वर्षा न हो, ऐसे समय यदि वे इस स्यान की ओर प्रार्यना करके तेरे नाम को मानें, और तू जो उन्हें दु:ख देता है, इस कारण वे अपके पाप से फिरें, 
27. तो तू स्वर्ग में से सुनना, और अपके दासोंऔर अपक्की प्रजा इस्राएल के पाप को झमा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है जिस पर उन्हें चलना चाहिथे, इसलिथे अपके इस देश पर जिसे तू ने अपक्की प्रजा का भाग करके दिया है, पानी बरसा देना। 
28. जब इस देश में काल वा मरी वा फुलस हो वा गेरुई वा टिड्डियां वा कीड़े लगें, वा उनके शत्रु उनके देश के फाटकोंमें उन्हें घेर रखें, वा कोई विपत्ति वा रोग हो; 
29. तब यदि कोई मनुष्य वा तेरी सारी प्रजा इस्राएल जो अपना अपना दु:ख और अपना अपना खेद जान कर और गिड़गिड़ाहट के साय प्रार्यना करके अपके हाथ इस भवन की ओर फैलाए; 
30. जो तू अपके स्वगींय निवासस्यान से सुनकर झमा करना, और एक एक के मन की जानकर उसकी चाल के अनुसार उसे फल देना; (तू ही तो आदमियोंके मन का जाननेवाला है); 
31. कि वे जितने दिन इस देश में रहें, जिसे तू ने उनके पुरखाओं को दिया या, उतने दिन तक तेरा भय मानते हुए तेरे मागॉं पर चनते रहें। 
32. फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा के कारण दूर देश से आए, और आकर इस भवन की ओर मुंह किए हुए प्रार्यना करे, 
33. तब तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से सुने, और जिस बात के लिथे ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसके अनुसार करना; जिस से पुय्वी के सब देशोंके लोग तेरा नाम जानकर, तेरी प्रजा इस्राएल की नाई तेरा भय मानें; और निश्चय करें, कि यह भवन जो मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता हैं। 
34. जब तेरी प्रजा के लोग जहां कहीं तू उन्हें भेजे वहां अपके शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएं, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, मुंह किए हुए तुझ से प्रार्यना करें, 
35. तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना। 
36. निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है, यदि वे भी तेरे विरुद्ध पाप करें और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रुओं के हाथ कर दे, और वे उन्हें बन्धुआ करके किसी देश को, चाहे वह दूर हो, चाहे निकट, ले जाएं, 
37. तो यदि वे बन्धुआई के देश में सोच विचर करें, और फिरकर अपक्की बन्धुआई करनेवालोंके देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें, कि हम ने पाप किया, और कुटिलता और दूष्टता की है; 
38. सो यदि वे अपक्की बन्धुआई के देश में जहां वे उन्हें बन्धुआ करके ले गए होंअपके पूरे मन और सारे जीव से तेरी ओर फिरें, और अपके इस देश की ओर जो तू ने उनके पुरखाओं को दिया या, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, मुंह किए हुए तुझ से प्रार्यना करें, 
39. तो तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से उनकी प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरुद्ध करें, उन्हें झमा करना। 
40. और हे मेरे परमेश्वर ! जो प्रार्यना इस स्यान में की जाए उसकी ओर अपक्की आंखें खोले रह और अपके कान लगाए रख। 
41. अब हे यहोवा परमेश्वर, उठकर अपके सामर्य्य के सन्दूक समेत अपके विश्रमस्यान में आ, हे यहोवा परमेश्वर तेरे याजक उद्धाररूपी वस्त्र पहिने रहें, और तेरे भक्त लोग भलाई के कारण आनन्द करते रहें। 
42. हे यहोवा परमेश्वर, अपके अभिशिक्त की प्रार्यना को अनसुनी न कर, तू अपके दास दाऊद पर की गई करुणा के काम स्मरण रख।

Chapter 7

1. जब सुलैमान यह प्रार्यना काजुका, तब स्वर्ग से आग ने गिरकर होमबलियोंतया और बलियोंको भस्म किया, और यहोवा का तेज भवन में भर गया। 
2. और याजक यहोवा के भवन में प्रवेश न कर सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया या। 
3. और जब आग गिरी और यहोवा का तेज भवन पर छा गया, तब सब इस्राएली देखते रहे, और फर्श पर फुककर अपना अपना मुंह भूमि की ओर किए हुए दणडवत किया, और योंकहकर यहोवा का धन्यवाद किया कि, वह भला है, उसकी करुणा सदा की है। 
4. तब सब प्रजा समेत राजा ने यहोवा को बलि चढ़ाई। 
5. और राजा सुलैमान ने बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ -बकरियां चढ़ाई। योंपूरी प्रजा समेत राजा ने यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की। 
6. और याजक अपना अपना कार्य करने को खड़े रहे, और लेवीय भी यहोवा के गीत के गाने के लिथे बाजे लिथे हूए खड़े थे, जिन्हें दाऊद राजा ने यहोवा की सदा की करुणा के कारण उसका धन्यवाद करने को बनाकर उनके द्वारा स्तुति कराई यी; और इनके साम्हने याजक लोग तुरहियां बजाते रहे; और सब इस्राएली झड़े रहे। 
7. फिर सुलैमान ने यहोवा के भवन के साम्हने आंगन के बीच एक स्यान ववित्र करके होमबलि और मेलबलियोंकी चक्कीं वहीं चढ़ाई, क्योंकि सुलैमान की बनाई इुई पीतल की बेदी होमबलि और अन्नबलि और चक्कीं के लिथे छोटी यी। 
8. उसी समय सुलैमान ने और उसके संग हमात की घाटी से लेकर मिस्र के नाले तक के सारे इस्राएल की एक बहुत बड़ी सभा ने सात दिन तक पर्व को माना। 
9. और आठवें दिन को उन्होंने महासभा की, उन्होंने वेदी की प्रतिष्ठा सात दिन की; और पवॉं को भी सात दिन माना। 
10. निदान सातवें महीने के तेइसवें दिन को उस ने प्रजा के लोगोंको विदा किया, कि वे अपके अपके डेरे को जाएं, और वे उस भलाई के कारण जो यहोवा ने दाऊद और सुलैमान और अपक्की प्रजा इस्राएल पर की यी आनन्दित थे। 
11. योंसुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और यहोवा के भवन में और अपके भवन में जो कुछ उस ने बनाना चाहा, उस में उसका मनोरय पूरा हुआ। 
12. तब यहोवा ने रात में उसको दर्शन देकर उस से कहा, मैं ने तेरी प्रार्याना सुनी और इस स्यान को यज्ञ के भवन के लिथे अपनाया है। 
13. यदि मैं आकाश को ऐसा बन्द करूं, कि वर्षा न हो, वा टिडियोंको देश उजाड़ने की आज्ञा दूं, वा अपक्की प्रजा में मरी फैलाऊं, 
14. तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्यना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपक्की बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप झमा करूंगा और उनके देश को ज्योंका त्योंकर दूंगा। 
15. अब से जो प्रार्यना इस स्यान में की जाएगी, उस पर मेरी आंखें खुली और मेरे कान लगे रहेंगे। 
16. और अब मैं ने इस भवन को अपनाया और पवित्र किया है कि मेरा नाम सदा के लिथे इस में बना रहे; मेरी आंखें और मेरा मन दोनोंनित्य यहीं लगे रहेंगे। 
17. और यदि तू अपके पिता दाऊद की नाई अपके को मेरे सम्मुख जानकर चलता रहे और मेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया करे, और मेरी विधियोंऔर नियमोंको मानता रहे, 
18. तो मैं तेरी राजगद्दी को स्यिर रखूंगा; जैसे कि मैं ने तेरे पिता दाऊद के साय वाचा बान्धी यी, कि तेरे कुल में इस्राएल पर प्रभुता करनेवाला सदा बना रहेगा। 
19. परन्तु यदि तुम लोग फिरो, और मेरी विधियोंऔर आज्ञाओं को जो मैं ने तुम को दी हैं त्यागो, और जाकर पराथे देवताओं की उपासना करो और उन्हें दणडवत करो, 
20. तो मैं उनको अपके देश में से जो मैं ने उनको दिया है, जड़ से उखाडूंगा; और इस भवन को जो मैं ने अपके नाम के लिथे पवित्र किया है, अपक्की दृष्टि से दूर करूंगा; और ऐसा करूंगा कि देश देश के लोगोंके बीच उसकी उपमा और नामधराई चलेगी। 
21. और यह भवन जो इतना विशाल है, उसके पास से आने जानेवाले चकित होकर पूछेंगे कि यहोवा ने इस देश और इस भवन से ऐसा क्योंकिया है। 
22. तब लोग कहेंगे, कि उन लोगोंने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को जो उनको मिस्र देश से निकाल लाया या, त्यागकर पराथे देवताओं को ग्रहण किया, और उन्हें दफाडवत की और उनकी उपासना की, इस कारण उस ने यह सब विपत्ति उन पर डाली है।

Chapter 8

1. सुलैमान को यहोवा के भवन और अपके भवन के बनाने में बीस वर्ष लगे। 
2. तब जो नगर हूराम ने सुलैमान को दिए थे, उन्हें सुलैमान ने दृढ़ करके उन में इस्राएलियोंको बसाया। 
3. तब सुलैमान सोबा के हमात को जाकर, उस पर जयवन्त हुआ। 
4. और उस ने तदमोर को जो जंगल में है, और हमात के सब भणडार नगरोंको दृढ़ किया। 
5. फिर उस ने ऊपरवाले और नीचेवाले दोनोंबेयोरोन को शहरपनाह और फाटकोंऔर बेड़ोंसे दृढ़ किया। 
6. और उस ने बालात को और सुलैमान के जितने भणडार नगर थे और उसके रयोंऔर सवारोंके जितने नगर थे उनको, और जो कुछ सुलैमान ने यरूशलेम, लबानोन और अपके राज्य के सब देश में बनाना चाहा, उन सब को बनाया। 
7. हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिय्वियोंऔर यबूसियोंके बचे हुए लोग जो इस्राएल के न थे, 
8. उनके वंश जो उनके बाद देश में रह गए, और जिनका इस्राएलियोंने अन्त न किया या, उन में से तो कितनोंको सुलैमान ने बेगार में रखा और आज तक उनकी वही दशा है। 
9. परन्तु इस्राएलियोंमें से सुलैमान ने अपके काम के लिथे किसी को दास न बनाया, वे तो योद्धा और उसके हाकिम, उसके सरदार और उसके रथें और सवारोंके प्रधान हुए। 
10. और सुलैमान के सरदारोंके प्रधान जो प्रजा के लोगोंपर प्रभुता करनेवाले थे, वे अढ़ाई सौ थे। 
11. फिर सुलैमान फ़िरौन की बेटी को दाऊदपुर में से उस भवन में ले आया जो उस ने उसके लिथे बनाया या, क्योंकि उस ने कहा, कि जिस जिस स्यान में यहोवा का सन्दूक आया है, वह पवित्र है, इसलिथे मेरी रानी इस्राएल के राजा दाऊद के भवन में न रहने पाएगी। 
12. तब सुलैमान ने यहोवा की उस वेदी पर जो उस ने ओसारे के आगे बनाई यी, यहोवा को होमबलि चढ़ाई। 
13. वह मूसा की आज्ञा के और दिन दिन के प्रयोजन के अनुसार, अर्यात्‌ विश्रम और नथे चांद और प्रति वर्ष तीन बार ठहराए हुए पवॉं अर्यात्‌ अखमीरी रोटी के पर्य्व, और अठवारोंके पर्य्व, और फोपडिय़ोंके पर्य्व में बलि चढ़ाया करता या। 
14. और उस ने अपके पिता दाऊद के नियम के अनुसार याजकोंकी सेवकाई के लिथे उनके दल ठहराए, और लेवियोंको उनके कामोंपर ठहराया, कि हर एक दिन के प्रयोजन के अनुसार वे यहोवा की स्तुति और याजकोंके साम्हने सेवा-टहल किया करें, और एक एक फाटक के पास द्वारपालोंको दल दल करके ठहरा दिया; क्योंकि परमेश्वर के भक्त दाऊद ने ऐसी आज्ञा दी यी। 
15. और राजा ने भणडारोंया किसी और बात में याजकोंऔर लेवियोंके लिथे जो जो आज्ञा दी यी, उन्होंने न टाला। 
16. और सुलैमान का सब काम जो उस ने यहोवा के भ्वन की नेव डालने से लेकर उसके पूरा करने तक किया वह ठीक हुआ। निदान यहोवा का भवन पूरा हुआ। 
17. तब सुलैमान एस्योनगेबेर और एलोत को गया, जो एदोम के देश में समुद्र के तीर पर हैं। 
18. और हूराम ने उसके पास अपके जहाजियोंके द्वारा जहाज और समुद्र के जानकार मल्लाह भेज दिए, और उन्होंने सुलैमान के जहाजियोंके संग ओपीर को जाकर वहां से साढ़े चार सौ किक्कार सोना राजा सुलैमान को ला दिया।

Chapter 9

1. जब शीबा की रानी ने सुलैमान की कीत्तिर् सुनी, तब वह कठिन कठिन प्रश्नोंसे उसकी पक्कीझा करने के लिथे यरूशलेम को चक्की । वह बहुत भारी दल और मसालोंऔर बहुत सोने और मणि से लदे ऊंट साय लिथे हुए आई, और सुलैमान के पास पहुंचकर उससे अपके मन की सब बातोंके विषय बातें कीं। 
2. सुलैमान ने उसके सब प्रश्नोंका उत्तर दिया, कोई बात सुलैमान की बुद्धि से ऐसी बाहर न रही कि वह उसे न बता सके। 
3. जब शीबा की रानी ने सुलैमान की बुद्धिमानी और उसका बनाया हुआ भवन 
4. और उसकी मेज पर का भोजन देखा, और उसके कर्मचारी किस रीति बैठते और उसके ठहलुए किस रीति खड़े रहते और कैसे कैसे कपके पहिने रहते हैं, और उसके पिलानेवाले कैसे हैं, और वे कैसे कपके पहिने हैं, और वह कैसी चढ़ाई है जिस से वह यहोवा के भवन को जाया करता है, जब उस ने यह सब देखा, तब वह चकित हो गई। 
5. तब उस ने राजा से कहा, मैं ने तेरे कामोंऔर बुद्धिमानी की जो कीत्तिर् अपके देश में सुनी वह सच ही है। 
6. परन्तु जब तक मैं ने आप ही आकर अपक्की आंखोंसे यह न देखा, तब तक मैं ने उनकी प्रतीति न की; परन्तु तेरी बुद्धि की आधी बड़ाई भी मुझे न बताई गई यी; तू उस कीत्तिर् से बढ़कर है जो मैं ने सुनी यी। 
7. धन्य हैं तेरे जन, धन्य हैं तेरे थे सेवक, जो नित्य तेरे सम्मुख उपस्यित रहकर तेरी बुद्धि की बातें सुनते हैं। 
8. धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ, कि तुझे अपक्की राजगद्दी पर इसलिथे विराजमान किया कि तू अपके परमेश्वर यहोवा की ओर से राज्य करे; तेरा परमेश्वर जो इस्राएल से प्रेम करके उन्हें सदा के लिथे स्य्िर करना जाहता य, उसी कारण उस ने तुझे न्याय और धर्म करने को उनका राजा बना दिया। 
9. और उस ने राजा को एक सौ बीस किक्कार सोना, बहुत सा सुगन्ध द्रय्य, और मणि दिए; जैसे सुगन्धद्रय्य शीबा की रानी ने राजा सुलैमान को दिए, वैसे देखने में नहीं आए। 
10. फिर हूराम और सुलैमान दोनोंके जहाजी जो ओषीर से सोना लाते थे, वे चन्दन की लकड़ी और मणि भी लाते थे। 
11. और राजा ने चन्दन की लकड़ी से यहोवा के भवन और राजभवन के लिथे चबूतरे और गवैयोंके लिथे वीणाएं और सारंगियां बनवाई; ऐसी वस्तुएं उस से पहिले यहूदा देश में न देख पक्की यीं 
12. और शीबा की रानी ने जो कुछ चाहा वही राजा सुलैमान ने उसको उसकी इच्छा के अनुसार दिया; यह उस से अधिक या, जो वह राजा के पास ले आई यी। तब वह अपके जनोंसमेत अपके देश को लौट गई। 
13. जो सोना प्रति वर्ष सुलैमान के पास पहुचा करता या, उसका तौल छ: सौ छियासठ किक्कार या। 
14. यह उस से अधिक या जो सौदागर और य्यापारी लाते थे; और अरब देश के सब राजा और देश के अधिपति भी सुलैमान के पास सोना चान्दी लाते थे। 
15. और राजा सुलैमान ने सोना गढ़ाकर दो सौ बड़ी बड़ी ढालें बनवाई; एक एक ढाल में छ:छ:सौ शेकेल गढ़ा हुआ सोना लगा। 
16. फिर उस ने सोना गढ़ाकर तीन सौ छोटी ढालें और भी बनवाई; एक एक छोटी ढाल मे तीन सौ शेकेल सोना लगा, और राजा ने उनको लबानोनी बन नामक भवन में रखा दिया। 
17. और राजा ने हाथीदांत का एक बड़ा सिंहासन बनाया और चोखे सोने से मढ़ाया। 
18. उस सिंहासन में छ: सीढियां और सोने का एक पावदान या; थे सब सिंहासन से जुड़े थे, और बैठने के स्यान की दोनोंअलंग टेक लगी यी और दोनोंटेकोंके पास एक एक सिंह खड़ा हुआ बना या। 
19. और छहोंसीढिय़ोंकी दोनोंअलंग में एक एक सिंह खड़ा हुउा बना या, वे सब बारह हुए। किसी राज्य में ऐसा कभी न बना। 
20. और रजा सुलैमान के पीने के सब पात्र सोने के थे, और लबानोनी बन नामक भवन के सब पात्र भी चोखे सोने के थे; सुलैमान के दिनोंमें चान्दी का कुछ हिसाब न या। 
21. क्योंकि हूराम के जहाजियोंके संग राजा के तशींश को जानेवाले जहाज थे, और तीन तीन वर्ष के बाद वे तशींश के जहाज सोना, चान्दी, हाथीदांत, बन्दर और मोर ले आते थे। 
22. योंराजा सुलैमान धन और बुद्धि में पृय्वी के सब राजाओं से बढ़कर हो गया। 
23. और पृय्वी के सब राजा सुलैमान की उस बुद्धि की बातें सुनने को जो परमेश्वर ने उसके मन में उपजाई यीं उसका दर्शन करना चाहते थे। 
24. और वे प्रति वर्ष अपक्की अपक्की भेंट अर्यात्‌ चान्दी और सोने के पात्र, वस्त्र-शस्त्र, सुगन्धद्रय्य, घोड़े और खच्चर ले आते थे। 
25. और अपके घेड़ोंऔर रयोंके लिथे सुलैमान के चार हजार यान और बारह हजार सवार भी थे, जिनको उस ने रयोंके नगरोंमें और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 
26. और वह महानद से ले पलिश्तियोंके देश और मिस्र के सिवाने तक के सब राजाओं पर प्रभुता करता या। 
27. और राजा ने ऐसा किया, कि बहुतायत के कारण यरूशलेम में चान्दी का मूल्य पत्यरोंका और देवदार का मूल्य नीचे के देश के गूलरोंका सा हो गया। 
28. और लोग मिस्र से और और सब देशोंसे सुलैमान के लिथे घोड़े लाते थे। 
29. आदि से अन्त तक सुलैमान के और सब काम क्या नातान नबी की पुस्तक में, और शीलोवासी अहिय्याह की तबूवत की पुस्तक में, और नबात के पुत्र यारोबाम के विषय इद्दो दशीं के दर्शन की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 
30. सुलैमान ने यरूशलेम में सारे इस्राएल पर चालीस वर्ष तक राज्य किया। 
31. और सुलैमान अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसको उसके पिता दाऊद के नगर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र रहूबियाम उसके स्यान पर राजा हुआ।

Chapter 10

1. रहूबियाम शकेम को गया, क्योंकि सारे इस्राएली उसको राजा बनाने के लिथे वहीं गए थे। 
2. और नबात के पुत्र यारोबाम ने यह सुना (वह तो मिस्र में रहता या, जहां वह सुलैमान राजा के डर के मारे भाग गया या), और यारोबाम मिस्र से लौट आया। 
3. तब उन्होंने उसको बुलवप भेजा; सो यारोबाम और सब इस्राएली आकर रहूबियाम से कहने लगे, 
4. तेरे पिता ने तो हम लोगोंपर भारी जूआ डाल रखा या, इसलिथे अब तू अपके पिता की कठिन सेवा को और उस भारी जूए को जिसे उस ने हम पर डाल रखा है कुछ हलका कर, तब हम तेरे अधीन रहेंगे। 
5. उस ने उन से कहा, तीन दिन के उपरान्त मेरे पास फिर आना, तो वे चले गए। 
6. तब राजा रहूबियाम ने उन बूढ़ोंसे जो उसके पिता सुलैमान के जीवन भर उसके साम्हने अपस्य्ित रहा करते थे, यह कहकर सम्मति ली, कि इस प्रजा को कैसा उत्तर देना उचित है, इस में तुम क्या सम्मति देते हो? 
7. उन्होंने उसको यह उत्तर दिया, कि यदि तू इस प्रजा के लोगोंसे अच्छा बर्त्ताव करके उन्हें प्रसन्न करे और उन से मधुर बातें कहे, तो वे सदा तेरे अधीन बने रहेंगे। 
8. परन्तु उस ने उस सम्मति को जो बूढ़ोंने उसको दी यी छोड़ दिया और उन जवानोंसे सम्मति ली, जो उसके संग बड़े हुए थे और उसके सम्मुख उपस्यित रहा करते थे। 
9. उन से उस ने पूछा, मैं प्रजा के लोगोंको कैसा उत्तर दूं, इस में तुम क्या सम्मति देते हो? उन्होंने तो मुझ से कहा है, कि जो जूआ तेरे पिता ने हम पर डाल रखा है, उसे तू हलका कर। 
10. जवानोंने जो उस के संग बड़े हुए थे उसको यह उत्तर दिया, कि उन लागोंने तुझ से कहा है, कि तेरे पिता ने हमारा जूआ भारी किया या, परन्तु उसे हमारे लिथे हलका कर; तू उन से योंकहना, कि मेरी छिंगुलिया मेरे पिता की कटि से भी मोटी ठहरेगी। 
11. मेरे मिता ने तुम पर जो भारी जूआ रखा या, उसे मैं और भी भारी करूंगा; मेरा पिता तो तूम को कोड़ोंसे ताड़ना देता या, परन्तु मैं बिच्छुओं से दूंगा। 
12. तीसरे दिन जैसे राजा ने ठहराया या, कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना, वैसे ही यारोबाम और सारी प्रजा रहूबियाम के पास उपस्यित हुई। 
13. तब राजा ने उस से कड़ी बातें कीं, और रहूबियाम राजा ने बूढ़ोंकी दी हुई सम्मति छोड़कर 
14. जवानोंकी सम्मति के अनुसार उन से कहा, मेरे पिता ने तो तुम्हारा जूआ भारी कर दिया, परन्तु मैं उसे और भी कठिन कर दूंगा; मेरे पिता ने तो तुम को कोड़ोंसे ताड़ना दी, परन्तु मैं बिच्छुओं से ताड़ना दूंगा। 
15. इस प्रकार राजा ने प्रजा की बिनती न मानी; इसका कारण यह है, कि जो वचन यहोवा ने शीलोवासी अहिय्याह के द्वारा नबात के पुत्र यारोबाम से कहा या, उसको पूरा करने के लिथे परमेश्वर ने ऐसा ही ठहराया या। 
16. जब सब इस्राएलियोंने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता, तब वे बोले कि दाऊद के साय हमारा क्या अंश? हमारा तो यिशै के पुत्र में कोई भाग नहीं है। हे इस्राएलियो, अपके अपके डेरे को चले जाओ। अब हे दाऊद, अपके ही घराने की चिन्ता कर। 
17. तब सब इस्राएली अपके डेरे को चले गए। केवल जितने इस्राएली यहूदा के नगरोंमें बसे हुए थे, उन्हीं पर रहूबियाम राज्य करता रहा। 
18. तब राजा रहूबियाम ने हदोराम को जो सब बेगारोंपर अधिक्कारनेी या भेज दिया, और इस्राएलियोंने उसको पत्य्रवाह किया और वह मर गया। तब रहूबियाम फुतीं से अपके रय पर चढ़कर, यरूशलेम को भाग गया। 
19. योंइस्राएल दाऊद के घराने से फिर गया और आज तक फिरा हुआ है।

Chapter 11

1. जब रहूबियाम यरूशलेम को आया, तब उस ने यहूदा और बिन्यामीन के घराने को जो मिलकर एक लाख अस्सी हजार अच्छे योद्धा थे इकट्ठा किया, कि इस्राएल के साय युद्ध करें जिस से राज्य रहूबियाम के वश में फिर आ जाए। 
2. तब यहोवा का यह वचन परमेश्वर के भक्त शमायाह के पास पहुंचा, 
3. कि यहूदा के राजा सुलैमान के पुत्र रहूबियाम से और यहूदा और बिन्यामीन के सब इस्राएलियोंसे कह, 
4. यहोवा योंकहता है, कि अपके भाइयोंपर चढ़ाई करके युद्ध न करो। तुम अपके अपके घर लौट जाओ, क्योंकि यह बात मेरी ही ओर से हुई है। यहोवा के थे वचन मानकर, वे यारोबाम पर बिना चढ़ाई किए लौट गए। 
5. सो रहूबियाम यरूशलेम में रहने लगा, और यहूदा में बचाव के लिथे थे नगर दृढ़ किए, 
6. अर्यात्‌ बेतलेहेम, एताम, तकोआ, 
7. बेत्सूर, सोको, अदुल्लाम। 
8. गत, मारेशा, जीप। 
9. अदोरैम, लाकीश, अजेका। 
10. सोरा, अय्यालोत और हेब्रोन जो यहूदा और बिन्यामीन में हैं, दृढ़ किया। 
11. और उस ने दृढ़ नगरोंको और भी दृढ़ करके उन में प्रधान ठहराए, और भोजन वस्तु और तेल और दाखमधु के भणडार रखवा दिए। 
12. फिर एक एक नगर में उस ने ढालें और भाले रखवाकर उनको अत्यन्त दृढ़ कर दिया। यहूदा और बिन्यामीन तो उसके थे। 
13. और सारे इस्राएल के याजक और लेवीय भी अपके सब देश से उठकर उसके पास गए। 
14. योंलेवीय अपक्की चराइयोंऔर निज भूमि छोड़कर, यहूदा और यरूशलेम में आए, क्योंकि यारोबाम और उसके पुत्रोंने उनको निकाल दिया या कि वे यहोवा के लिथे याजक का काम न करें। 
15. और उस ने ऊंचे स्यानोंऔर बकरोंऔर अपके बनाए हुए बछड़ोंके लिथे, अपक्की ओर से याजक ठहरा लिए। 
16. और लेवियोंके बाद इस्राएल के सब गोत्रोंमें से जितने मन लगाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के खोजी थे वे अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को बलि चढ़ाने के लिथे यरूशलेम को आए। 
17. और उन्होंने यहूदा का राज्य स्यिर किया और सुलैमान के पुत्र रहूबियाम को तीन वर्ष तक दृढ़ कराया, क्योंकि तीन वर्ष तक वे दाऊद और सुलैमान की लीक पर चलते रहे। 
18. और रहूबियाम ने एक स्त्री को ब्याह लिया, अर्यात्‌ महलत को जिसका पिता दाऊद का पुत्र यरीमोत और माता यिशै के पुत्र एलीआब की बेटी अबीहैल यी। 
19. और उस से यूश, शमर्याह और जाहम नाम पुत्र उत्पन्न हुए। 
20. और उसके बाद उस ने अबशलोम की बेटी माका को ब्याह लिया, और उस से अबिय्याह, अत्ते, जीजा और शलोमीत उत्पन्न हुए। 
21. रहूबियाम ने अठारह रानियां ब्याह लीं और साठ रखेलियां रखीं, और उसके अठाईस बेटे और साठ बेटियां उत्पन्न हुई। अबशलोम की नतिनी माका से वह अपक्की सब रानियोंऔर रखेलियोंसे अधिक प्रेम रखता या; 
22. सो रहूबियाम ने माका के बेटे अबिय्याह को मुख्य और सब भाइयोंमें प्रधान इस मनसा से ठहरा दिया, कि उसे राजा बनाए। 
23. और वह समझ बूफकर काम करता या, और उस ने अपके सब पुत्रोंको अलग अलग करके यहूदा और बिन्यामीन के सब दाशोंके सब गढ़वाले नगरोंमें ठहरा दिया; और उन्हें भोजन वस्तु बहुतायत से दी, और उनके लिथे बहुत सी स्त्रियां ढूंढ़ी।

Chapter 12

1. परन्तु जब रहूबियाम का राज्य दृढ़ हो गया, और वह आप स्यिर हो गया, तब उस ने और उसके साय सारे इस्राएल ने यहोवा की य्यवस्या को त्याग दिया। 
2. उन्होंने जो यहोवा से विश्वासघात किया, उस कारण राजा रहूबियाम के पांचपें वर्ष में मिस्र के राजा शीशक ने, 
3. बारह सौ रय और साठ हजार सवार लिथे हुए यरूशलेम पर चढ़ाई की, और जो लोग उसके संग मिस्र से आए, अर्यात्‌ लूबी, सुक्किय्यी, कूशी, थे अनगिनत थे। 
4. और उस ने यहूदा के गढ़वाले नगरोंको ले लिया, और यरूशलेम तक आया। 
5. तब शमायाह नबी रहूबियाम और यहूदा के हाकिमोंके पास जो शीशक के डर के मारे यरूशलेम में इाट्ठे हुए थे, आकर कहने लगा, यहोवा योंकहता है, कि तुम ने मुझ को छोड़ दिया है, इसलिथे मैं ने तुम को छोड़कर शीशक के हाथ में कर दिया है। 
6. तब इस्राएल के हाकिम और राजा दीन हो गए, और कहा, यहोवा धमीं है। 
7. जब यहोवा ने देखा कि वे दीन हुए हैं, तब यहोवा का यह वचन शमायाह के पास पहुंचा कि वे दीन हो गए हैं, मैं उनको नष्ट न करूंगा; मैं उनका कुछ बचाव करूंगा, और मेरी जलजलाहट शीशक के द्वारा यरूशलेम पर न भड़केगी। 
8. तौभी वे उसके अधीन तो रहेंगे, ताकि वे मेरी और देश देश के राज्योंकी भी सेवा जान लें। 
9. तब मिस्र का राजा शीशक यरूशलेम पर चढ़ाई करके यहोवा के भवन की अनमोल वस्तुएं और राजभवन की अनमोल वस्तुएं उठा ले गया। वह सब कुछ उठा ले गया, और सोने की जो फरियां सुलैमान ने बनाई यीं, उनको भी वह ले गया। 
10. तब राजा रहूबियाम ने उनके बदले पीतल की ढालें बनावाई और उन्हें पहरुओं के प्रधानोंके हाथ सौंप दिया, जो राजभवन के द्वार की रखवाली करते थे। 
11. और जब जब राजा यहोवा के भवन में जाता, तब तब पहरुए आकर उन्हें उठा ले चलते, और फिर पहरुओं की कोठरी में लौटाकर रख देते थे। 
12. जब रहूबियाम दीन हुआ, तब यहोवा का क्रोध उस पर से उतर गया, और उस ने उसका पूरा विनाश न किया; और यहूदा में अच्छे गुण भी थे। 
13. सो राजा रहूबियाम यरूशलेम में दृढ़ होकर राज्य करता रहा। जब रहूबियाम राज्य करने लगा, तब एकनालीस वर्ष की आयु का या, और यरूशलेम में अर्यात्‌ उस नगर में, जिसे यहोवा ने अपना नाम बनाए रखने के लिथे इस्राएल के सारे गोत्र में से चुन लिया या, सत्रह वर्ष तक राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम नामा या, जो अम्मोनी स्त्री यी। 
14. उस ने वह कर्म किया जो बुरा है, अर्यात्‌ उस ने अपके मन को यहोवा की खोज में न लगाया। 
15. आादि से अन्त तक रहूबियाम के काम क्या शमायाह नबी और इद्दो दशीं की पुस्तकोंमें वंशावलियोंकी रीति पर नहीं लिखे हैं? रहूबियाम और यारोबाम के बीच तो लड़ाई सदा होती रही। 
16. और रहूबियाम अपके पुरखाओं के संग सो गया और दाऊदपुर में उसको मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र अबिय्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।

Chapter 13

1. यारोबाम के अठारहवें वर्ष में अबिय्याह यहूदा पर राज्य करने लगा। 
2. वह तीन वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा, और उसकी माता का नाम मीकायाह या; जो गिबावासी ऊरीएल की बेटी यी। और अबिय्याह और यारोबाम के बीच में लड़ाई हई। 
3. अबिय्याह ने तो बड़े योद्धाओं का दल, अर्यात्‌ चार लाख छंटे हुए पुरुष लेकर लड़ने के लिथे पांति बन्धाई, और यारोबाम ने आठ लाख छंटे हुए पुरुष जो एड़े शूरवीर थे, लेकर उसके विरुद्ध पांति बन्धाई। 
4. तब अबिय्याह समारैम नाम पहाड़ पर, जो एप्रैम के पहाड़ी देश में है, खड़ा होकर कहने लगा, हे यारोबाम, हे सब इस्राएलियो, मेरी सुनो। 
5. क्या तुम को न जानना चाहिए, कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने लोनवाली वाचा बान्धकर दाऊद को और उसके वंश को इस्राएल का राज्य सदा के लिथे दे दिया है। 
6. तौभी नबात का पुत्र यारोबाम जो दाऊद के पुत्र सुलैमान का कर्मचारी या, वह अपके स्वामी के विरुद्ध उठा है। 
7. और उसके पास हलके और ओछे मनुष्य इकट्ठा हो गए हैं और जब सुलैमान का पुत्र रहूबियाम लड़का और अल्हड़ मन का या और उनका साम्हना न कर सकता या, तब वे उसके विरुद्ध सामयीं हो गए। 
8. और अब तुम सोचते हो कि हम यहोवा के राज्य का साम्हना करेंगे, जो दाऊद की सन्तान के हाथ में है, क्योंकि तुम सब मिलकर बड़ा समाज बन गए हो और तुम्हारे पास वे सोने के बछड़े भी हैं जिन्हें यारोबाम ने तुम्हारे देवता होने के लिथे बनवाया। 
9. क्या तुम ने यहोवा के याजकोंको, अर्यात्‌ हारून की सन्तान और लेवियोंको निकालकर देश देश के लोगोंकी नाई याजक नियुक्त नहीं कर लिए? जो कोई एक बछड़ा और सात मेढ़े अपना संस्कार कराने को ले आता, तो उनका याजक हो जाता है जो ईश्वर नहीं है। 
10. परन्तु हम लोगोंका परमेश्वर यहोवा है और हम ने उसको नहीं त्यागा, और हमारे पास यहोवा की सेवा टहल करनेवाले याजक हारून की सन्तान और अपके अपके काम में लगे हुए लेवीय हैं। 
11. और वे नित्य सवेरे और सांफ को यहोवा के लिथे होमबलि और सुगन्धद्रय्य का धूप जलाते हैं, और शूद्ध मेज पर भेंट की रोटी सजाते और सोने की दीवट और उसके दीपक सांफ-सांफ को जलाते हैं; हम तो अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को मानते रहते हैं, परन्तु तुम ने उसको त्याग दिया है। 
12. और देखो, हमारे संग हमारा प्रधान परमेश्वर है, और उसके याजक तुम्हारे विरुद्ध सांस वान्धकर फूंकने को तुरहियां लिथे हुए भी हमारे साय हैं। हे इस्राएलियो अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा से मत लड़ो, क्योंकि तुम कृतार्य न होगे। 
13. परन्तु यारोबाम ने घातकोंको उनके पीछे भेज दिया, वे तो यहूदा के साम्हने थे, और घातक उनके पीछे थे। 
14. और जब यहूदियोंने पीछे को मुंह फेरा, तो देखा कि हमारे आगे और पीछे दोनोंओर से लड़ाई होनेवाली है; तब उन्होंने यहोवा की दोहाई दी, और याजक तुरहियोंको फूंकने लगे। 
15. तब यहूदी पुरुषोंने जय जयकार किया, और जब यहूदी पुरुषोंने जय जयकार किया, तब परमेश्वर ने अबिय्याह और यहूदा के साम्हने, यारोबाम और सारे इस्राएलियोंको मारा। 
16. और इस्राएली यहूदा के साम्हने से भागे, और परमेश्वर ने उन्हें उनके हाथ में कर दिया। 
17. और अबिय्याह और उसकी प्रजा ने उन्हें बड़ी मार से मारा, यहां तक कि इस्राएल में से पांच लाख छंटे हुए पुरुष मारे गए। 
18. उस समय तो इस्राएली दब गए, और यहूदी इस कारण प्रबल हुए कि उन्होंने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखा या। 
19. तब अबिय्याह ने यारोबाम का पीछा करके उस से बेतेल, यशाना और एप्रोन नगरोंऔर उनके गांवोंको ले लिया। 
20. और अबिय्याह के जीवन भर यारोबाम फिर सामथीं न हुआ; निदान यहोवा ने उसको ऐसा मारा कि वह मर गया। 
21. परन्तु अबिय्याह और भी सामयीं हो गया और चौदह स्त्रियां ब्याह लीं जिन से बाइस बेटे और सोलह बेटियां उत्पन्न हुई। 
22. और अबिय्याह के काम और उसकी चाल चलन, और उसके वचन, इद्दो नबी की कया में लिखे हैं।

Chapter 14

1. निदान अबिय्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया, और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र आसा उसके स्यान पर राज्य करने लगा। इसके दिनोंमें दस वर्ष तक देश में चैन रहा। 
2. और आसा ने वही किया जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में अच्छा और ठीक या। 
3. उस ने तो पराई वेदियोंको और ऊंचे स्यानोंको दूर किया, और लाठोंको तुड़वा डाला, और अशेरा नाम मूरतोंको तोड़ डाला। 
4. और यहूदियोंको आज्ञा दी कि अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा की खोज करें और य्यवस्या और आज्ञा को मानों। 
5. और उस ने ऊंचे स्यानोंऔर सूर्य की प्रतिमाओं को यहूदा के सब नगरोंमें से दूर किया, और उसके साम्हने राज्य में चैन रहा। 
6. और उस ने यहूदा में गढ़वाले नगर बसाए, क्योंकि देश में चैन रहा। और उन बरसोंमें उसे किसी से लड़ाई न करनी पक्की क्योंकि यहोवा ने उसे विश्रम दिया या। 
7. उस ने यहूदियोंसे कहा, आओ हम इन नगरोंको बसाएं और उनके चारोंओर शहरपनाह, गढ़ और फाटकोंके पल्ले और बेड़े बनाएं; देश अब तक हमारे साम्हने पड़ा है, क्योंकि हम ने, अपके परमेश्वर यहोवा की खोज की है हमने उसकी खोज की और उस ने हमको चारोंओर से विश्रम दिया है। तब उन्होंने उन नगरोंको बसाया और कृतार्य हुए। 
8. फिर आसा के पास ढाल और बछीं रखनेवालोंकी एक सेना थी, अर्यात्‌ यहूदा में से तो तीन लाख पुरुष और बिन्यामीन में से फरी रखनेवाले और धनुर्धारी दो लाख अस्सी हजार थे सब शूरवीर थे। 
9. और उनके विरुद्ध दस लाख पुरुषोंकी सेना और तीन सौ रय लिथे हुए जेरह नाम एक कूशी निकला और मारेशा तक आ गया। 
10. तब आसा उसका साम्हना करने को चला और मारेशा के निकट सापता नाम तराई में युद्ध की पांति बान्धी गई। 
11. तब आसा ने अपके परमेश्वर यहोवा की योंदोहाई दी, कि हे यहोवा ! जैसे तू सामयीं की सहाथता कर सकता है, वैसे ही शक्तिहीन की भी; हे हमारे परमेश्वर यहोवा ! हमारी सहाथता कर, क्योंकि हमारा भरोसा तुझी पर है और तेरे नाम का भरोसा करके हम इस भीड़ के विरुद्ध आए हैं। हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है; मनुष्य तुझ पर प्रबल न होने पाएगा। 
12. तब यहोवा ने कूशियोंको आसा और यहूदियोंके साम्हने मारा और कूशी भाग गए। 
13. और आसा और उसके संग के लोगोंने उनका पीछा गरार तक किया, और इतने कूशी मारे गए, कि वे फिर सिर न उठा सके क्योंकि वे यहोवा और उसकी सेना से हार गए, और यहूदी बहुत सा लूट ले गए। 
14. और उन्होंने गरार के आस पास के सब नगरोंको मार लिया, क्योंकि यहोवा का भय उनके रहनेवालोंके मन में समा गया और उन्होंने उन नगरोंको लूट लिया, क्योंकि उन में बहुत सा धन या। 
15. फिर पशु-शालाओं को जीतकर बहुत सी भेड़- बकरियां और ऊंट लूटकर यरूशलेम को लौटे।

Chapter 15

1. तब परमेश्वर का आत्मा ओदेद के पुत्र अजर्याह में समा गया, 
2. और वह आसा से भेंट करने निकला, और उस से कहा, हे आसा, और हे सारे यहूदा और बिन्यामीन मेरी सुनो, जब तक तुम यहोवा के संग रहोगे तब तक वह तुम्हारे संग रहेगा; और यदि तुम उसकी खोज में लगे रहो, तब तो वह तुम से मिला करेगा, परन्तु यदि तुम उसको त्याग दोगे तो वह भी तुम को त्याग देगा। 
3. बहुत दिन इस्राएल बिना सत्य परमेश्वर के और बिना सिखानेवाले याजक के और बिना ब्यवस्या के रहा। 
4. परन्तु जब जब वे संकट में पड़कर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर फिरे और उसको ढूंढ़ा, तब तब वह उनको मिला। 
5. उस समय न तो जानेवाले को कुछ शांति होती यी, और न आनेवाले को, वरन सारे देश के सब निवासियोंमें बड़ा ही कोलाहल होता या। 
6. और जाति से जाति और तगर से नगर चूर किए जाते थे, क्योंकि परमेश्वर नाना प्रकार का कष्ट देकर उन्हें घबरा देता या। 
7. परन्तु तुम लोग हियाब बान्धो और तुम्हारे हाथ ढीले न पकें, क्योंकि तुम्हारे काम का बदला मिलेगा। 
8. जब आसा ने थे वचन और ओदेद नबी की नबूवत सुनी, तब उस ने हियाब बान्धकर यहूदा और बिन्यामीन के सारे देश में से, और उन नगरोंमें से भी जो उस ने एप्रैम के पहाड़ी देश में ले लिथे थे, सब घिनौनी वस्तुएं दूर कीं, और यहोवा की जो वेदी यहोवा के ओसारे के साम्हने यी, उसको नथे सिक्के से बनाया। 
9. और उस ने सारे यहूदा और बिन्यामीन को, और एप्रैम, मनश्शे और शिमोन में से जो लोग उसके संग रहते थे, उनको इकट्ठा किया, क्योंकि वे यह देखकर कि उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग रहता है, इस्राएल में से उसके पास बहुत से चले आए थे। 
10. आसा के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने में वे यरूशलेम में इाट्ठे हुए। 
11. और उसी समय उन्होंने उस लूट में से जो वे ले आए थे, सात सौ बैल और सात हजार भेड़-बकरियां, यहोवा को बलि करके चढ़ाई। 
12. और उन्होंने वाचा बान्धी कि हम अपके पूरे मन और सारे जीव से अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा की खोज करेंगे। 
13. और क्या बड़ा, क्या छोटा, क्या स्त्री, क्या पुरुष, जो कोई इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की खोज न करे, वह मार डाला जाएगा। 
14. और उन्होंने जय जयकार के साय तुरहियां और नरसिंगे बजाते हुए ऊंचे शब्द से यहोवा की शपय खाई। 
15. और यह शपय खाकर सब यहूदी आनन्दित हुए, क्योंकि उन्होंने अपके सारे मन से शपया खाई और बडी अभिलाषा से उसको ढूंढ़ा और वह उनको मिला, और यहोवा ने चारोंओर से उन्हें विश्रम दिया। 
16. बरन आसा राजा की माता माका जिस ने अशेरा के पास रखने के लिए एक घिनौनी मूरत बनाई, उसको उस ने राजमाता के पद से उतार दिया, और आसा ने उसकी मूरत काटकर पीस डाली और किद्रोन नाले में फूंक दी। 
17. ऊंचे स्यान तो इस्राएलियोंमें से न ढाए गए, तौभी आसा का मन जीवन भर तिष्कपट रहा। 
18. और उस ने जो सोना चान्दी, और पात्र उसके पिता ने अर्पण किए थे, और जो उस ने आप अर्पण किए थे, उनको परमेश्वर के भवन में पहंचा दिया। 
19. और राजा आसा के राज्य के पैंतीसवें वर्ष तक फिर लड़ाई न हुई।

Chapter 16

1. आसा के राज्य के छत्तीसवें वर्ष में इस्राएल के राजा बाशा ने यहूदा पर चढ़ाई की और रामा को इसलिथे दृढ़ किया, कि यहूदा के राजा आसा के पास कोई आने जाने न पाए। 
2. तब आस ने यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारोंमें से चान्दी-सोना निकाल दमिश्कवासी अराम के राजा बेन्हदद के पास दूत भेजकर यह कहा, 
3. कि जैसे मेरे-तेरे पिता के बीच वैसे ही मेरे-तेरे बीच भी वाचा बन्धे; देख मैं तेरे पास चान्दी-सोना भेजता हूं, इसलिथे आ, इस्राएल के राजा बाशा के साय की अपक्की वाचा को तोड़ दे, ताकि वह मुझ से दूर हो। 
4. बेन्हदद ने राजा आसा की यह बात मानकर, अपके दलोंके प्रधानोंसे इस्राएली नगरोंपर चढ़ाई करवाकर इय्योन, दान, आबेल्मैम और नप्ताली के सब भणडारवाले नगरोंको जीत लिया। 
5. यह सुनकर बाशा ने रामा को दृढ़ करना छोड़ दिया, और अपना वह काम बन्द करा दिया। 
6. तब राजा आसा ने पूरे यहूदा देश को साय लिया और रामा के पत्यरोंऔर लकड़ी को, जिन से बासा काम करता या, उठा ले गया, और उन से उस ने गेवा, और मिस्पा को दृढ़ किया। 
7. उस समय हनानी दशीं यहूदा के राजा आसा के पास जाकर कहने लगा, तू ने जो अपके परमेश्वर यहोवा पर भरोसा नही रखा वरन अराम के राजा ही पर भरोसा रखा है, इस कारण अराम के राजा की सेना तेरे हाथ से बच गई है। 
8. क्या कूशियोंऔर लूबियोंकी सेना बड़ी न यी, और क्या उस में बहुत ही रय, और सवार न थे? तौभी तू ने यहोवा पर भरोसा रखा या, इस कारण उस ने उनको तेरे हाथ में कर दिया। 
9. देख, यहोवा की दृष्टि सारी पृय्वी पर इसलिथे फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कमट रहता है, उनकी सहाथता में वह अपना सामर्य दिखाए। तूने यह काम मूर्खता से किया है, इसलिथे अब से तू लड़ाइयोंमे फंसा रहेगा। 
10. तब आसा दशीं पर क्रोधित हुआ और उसे काठ में ठोंकवा दिया, क्योंकि वहउसकी ऐसी बात के कारण उस पर क्रोधित या। और उसी समय से आसा प्रजा के कुछ लोगोंको पीसने भी लगा। 
11. आदि से लेकर अन्त तक आसा के काम यहूदा औ इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त में लिखे हैं। 
12. अपके राज्य के उनतीसवें वर्ष में आसा को पांव का रोग हुआ, और वह रोग अत्यन्त बढ़ गया, तौभी उस ने रोगी होकर यहोवा की नहीं वैद्योंही की शरण ली। 
13. निदान आसा अपके राज्य के एकतालीसवें वर्ष में मरके अपके पुरखाओं के साय सो गया। 
14. तब उसको उसी की कब्र में जो उस ने दाऊदपुर में खुदवा ली यी, मिट्टी दी गई; और वह सुगन्धद्रय्योंऔर गंधी के काम के भांति भांति के मसालोंसे भरे हुए एक बिछौने पर लिटा दिया गया, और बहुत सा सुगन्धद्रय्य उसके लिथे जलाया गया।

Chapter 17

1. और उसका पुत्र यहोशापात उसके स्यान पर राज्य करने लगा, और इस्राएल के विरुद्ध अपना बल बढ़ाया। 
2. और उस ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरोंमें सिपाहियोंके दल ठहरा दिए, और यहूदा के देश में और एप्रैम के उन नगरोंमें भी जो उसके पिता आसा ने ले लिथे थे, सिपाहियोंकी चौकियां बैठा दीं। 
3. और यहोवा यहोशापात के संग रहा, क्योंकि वह अपके मूलपुरुष दाऊद की प्राचीन चाल सी चाल चला और बाल देवताओं की खोज में न लगा। 
4. वरन वह अपके पिता के परमेश्वर की खोज में लगा रहता या और उसी की आज्ञाओं पर चलता या, और इस्राएल के से काम नहीं करता या। 
5. इस कारएा यहोवा ने रज्य को उसके हाथ में दृढ़ किया, और सारे यहूदी उसके पास भेंट लाया करते थे, और उसके पास बहुत धन और उसका विभव बढ़ गया। 
6. और यहोवा के मागॉं पर चलते चलते उसका मन मगन हो गया; फिर उस ने यहूदा से ऊंचे स्यान और अशेरा नाम मूरतें दूर कर दीं। 
7. और उस ने अपके राज्य के तीसरे वर्ष में बेन्हैल, ओबद्याह, जकर्याह, नतनेल और मीकायाह नामक अपके हाकिमोंको यहूदा के नगरोंमें शिझा देने को भेज दिया। 
8. और उनके साय शमायाह, नतन्याह, जबद्याह, असाहेल, शमीरामोत, यहोनातान, अदोनिय्याह, तोबिय्याह और तोबदोनिय्याह, नाम लेवीय और उनके संग एलीशामा और यहोराम नामक याजक थे। 
9. सो उन्होंने यहोवा की य्यवस्या की पुस्तक अपके साय लिथे हुए यहूदा में शिझा दी, वरन वे यहूदा के सब नगरोंमें प्रजा को सिखाते हुए घूमे। 
10. और यहूदा के आस पास के देशोंके राज्य राज्य में यहोवा का ऐसा डर समा गया, कि उन्होंने यहोशापात से युद्ध न किया। 
11. वरन किनते पलिश्ती यहोशपात के पास भेंट और कर समझकर चान्दी लाए; और अरबी लोग भी सात हजार सात सौ मेढ़े और सात हजार सात सौ बकरे ले आए।
12. और यहोशापात बहुत ही बढ़ता गया और उस ने यहूदा में किले और भण्डार के नगर तैयार किए। 
13. और यहूदा के नगरोंमें उसका बहुत काम होता या, और यरूशलेम में उसके योद्धा अर्यात्‌ शूरवीर रहते थे। 
14. और इनके पितरोंके घरानोंके अनुसार इनकी यह गिनती यी, अर्यात्‌ यहूदी सहस्रपति तो थे थे, प्रधान अदना जिसके साय तीन लाख शूरवीर थे, 
15. और उसके बाद प्रधान यहोहानान जिसके साय दो लाख अस्सी हजार पुरुष थे। 
16. और इसके बाद जिक्री का पुत्र अमस्याह, जिस ने अपके को अपक्की ही इच्छा से यहोवा को अर्पण किया या, उसके साय दो लाख शूरवीर थे। 
17. फिर बिन्यामीन में से एल्यादा नामक एक शूरवीर जिसके साय ढाल रखनेवाले दो लाख धनुर्धारी थे। 
18. और उसके नीचे यहोजाबाद जिसके साय युद्ध के हयियार बान्धे हुए एक लाख अस्सी हजार पुरुष थे। 
19. वे थे हैं, जो राजा की सेवा में लवलीन थे। और थे उन से अलग थे जिन्हें राजा ने सारे यहूदा के गढ़वाले नगरोंमें ठहरा दिया।

Chapter 18

1. यहोशपात बड़ा धनवान और ऐश्वर्य्यवान हो गया; और उस ने अहाब के साय समधियाना किया। 
2. कुछ वर्ष के बाद वह शोमरोन में अहाब के पास गया, तब अहाब ने उसके और उसके संगियोंके लिथे बहुत सी भेड़-बकरियां और गाय-बैल काटकर, उसे गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करने को उसकाया। 
3. और इस्राएल के राजा अहाब ने यहूदा के राजा यहोशापात से कहा, क्या तू मेरे साय गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करेगा? उस ने उसे उत्तर दिया, जैसा तू वैसा मैं भी हूँ, और जैसी तेरी प्रजा, वैसी मेरी भी प्रजा है। हम लोग युद्ध में तेरा साय देंगे। 
4. फिर यहोशापात ते इस्राएल के राजा से कहा, आज यहोवा की आज्ञा ले। 
5. तब इस्राएल के राजा ने नबियोंको जो चार सौ पुरुष थे, इकट्ठा करके उन से पूछा, क्या हम गिलाद के रामोत पर युद्ध करने को चढ़ाई करें, अयवा मैं रुका रहूं? उन्होंने उत्तर दिया चढ़ाई कर, क्योंकि परमेश्वर उसको राजा के हाथ कर देगा। 
6. परन्तु यहोशापात ने पूछा, क्या यहोंयहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिस से हम पूछ लें? 
7. इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, हां, एक पुरुष और है, जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछ सकते हैं; परन्तु मैं उस से घृणा करता हूँ; क्योंकि वह मेरे विष्य कभी कल्याण की नहीं, सदा हानि ही की नबूवत करता है। वह यिम्ला का पुत्र मीकायाह है। यहोशापात ने कहा, राजा ऐसा न कहे। 
8. तब इस्राएल के राजा ने एक हाकिम को बुलवाकर कहा, यिम्ला के पुत्र मीकायाह को फुतीं से ले आ। 
9. इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा यहोशापात अपके अपके राजवस्त्र पहिने हुए, अपके अपके सिंहासन पर बैठे हुए थे; वे शोमरोन के फाटक में एक खुले स्यान में बैठे थे और सब नबी उनके साम्हने नबूवत कर रहे थे। 
10. तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने लोहे के सींग बनवाकर कहा, यहोवा योंकहता है, कि इन से तू अरामियोंको मारते मारते नाश कर डालेगा। 
11. और सब नबियोंने इसी आशय की नबूवत करके कहा, कि गिलाद के रामोत पर चढ़ाई कर और तू कृतार्य होवे; क्योंकि यहोवा उसे राजा के हाथ कर देगा। 
12. और जो दूत मीकायाह को बुलाने गया या, उस ने उस से कहा, सुन, नबी लोग एक ही मुंह से राजा के विषय हाुभ वचन कहते हैं; सो तेरी बात उनकी सी हो, तू भी शुभ वचन कहना। 
13. मीकायाह ने कहा, यहोवा के जीवन की सौंह, जो कुछ मेरा परमेश्वर कहे वही मैं भी कहूंगा। 
14. जब वह राजा के पास आया, तब राजा ने उस से पूछा, हे मीकायाह, क्या हम गिलाद के रामोत पर युद्ध करने को चढ़ाई करें अयवा मैं रुका रहूं? उस ने कहा, हां, तुम लोग चढ़ाई करो, और कृतार्य होओ; और वे तुम्हारे हाथ में कर दिए जाएंगे। 
15. राजा ने उस से कहा, मुझे कितनी बार तुझे शपय धराकर चिताना होगा, कि तू यहोवा का स्मरण करके मुझ से सच ही कह। 
16. मीकायाह ने कहा, मुझे सारा इस्राएल बिना चरवाहे की भेंड़-बकरियोंकी नाई पहाड़ोंपर तितर बितर दिखाई पड़ा, और यहोवा का वचन आया कि वे तो अनाय हैं, इसलिथे हर एक अपके अपके घर कुशल झेम से लौट जाएं। 
17. तब इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा या, कि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं, हानि ही की नबूवत करेगा? 
18. मीकायाह ने कहा, इस कारण तुम लोग यहोवा का यह वचन सुनो : मुझे सिंहासन पर विराजमान यहोवा और उसके दाहिने बाएं खड़ी हुई स्वर्ग की सारी सेना दिखाई पक्की। 
19. तब यहोवा ने पूछा, इस्राएल के राजा अहाब को कौन ऐसा बहकाएगा, कि वह गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करके खेत आए, तब किसी ने कुछ और किसी ने कुछ कहा। 
20. निदान एक आत्मा पास आकर यहोवा के सम्मुख खड़ी हुई, और कहने लगी, मैं उसको बहकाऊंगी। 
21. यहोवा ने पूछा, किस उपाय से? उस ने कहा, मैं जाकर उसके सब नबियोंमें पैठ के उन से फूठ बुलवाऊंगी। यहोवा ने कहा, तेरा उसको बहकाना सफल होगा, जाकर ऐसा ही कर। 
22. इसलिथे तुन अब यहोवा ने तेरे इन नबियोंके मुंह में एक फूठ बोलनेवाली आत्मा पैठाई है, और यहोवा ने तेरे विषय हानि की बात कही है। 
23. तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने निकट जा, मीकायाह के गाल पर यप्पड़ मारकर पूछा, यहोवा का आत्मा मुझे छोड़कर तुझ से बातें करने को किधर गया। 
24. उस ने कहा, जिस दिन तू छिपके के लिथे कोठरी से कोठरी में भागेगा, तब जान लेगा। 
25. इस पर इस्राएल के राजा ने कहा, कि मीकायाह को नगर के हाकिम आमोन और राजकुमार योआश के पास लौटाकर, 
26. उन से कहो, राजा योंकहता है, कि इसको बन्दीगृह में डालो, और जब तक मैं कुशल से न आऊं, तब तक इसे दु:ख की रोटी और पानी दिया करो। 
27. तब मीकायाह ने कहा, यदि तू कभी कुशल से लौटे, तो जान, कि यहोवा ने मेरे द्वारा नहीं कहा। फिर उस ने कहा, हे लोगो, तुम सब के सब सुनं लो। 
28. तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा यहोशापात दोनोंने गिलाद के रामोत पर चढ़ाई की। 
29. और इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, मैं तो भेष बदलकर युद्ध में जाऊंगा, परन्तु तू अपके ही वस्त्र पहिने रह। इस्राएल के राजा ने भेष बदला और वे दोनोंयुद्ध में गए। 
30. अराम के राजा ने तो अपके रयोंके प्रधानोंको आज्ञा दी यी, कि न तो छोटे से लड़ो और न बड़े से, केवल इस्राएल के राजा से लड़ो। 
31. सो जब रयोंके प्रधानोंने यहोशापात को देखा, तब कहा इस्राएल का राजा वही है, और वे उसी से लड़ने को मुड़े। इस पर यहोशापात चिल्ला उठा, तब यहोवा ने उसकी सहाथता की। और परमेश्वर ने उनको उसके पास से फिर जाने की प्रेरणा की। 
32. सो यह देखकर कि वह इस्राएल का राजा नही है, रयोंके प्रधान उसका पीछा छोड़ के लौट गए। 
33. तब किसी ने अटकल से एक तीर चलाया, और वह इस्राएल के राजा के फिलम और निचले वस्त्र के बीच छेदकर लगा; तब उस ने अपके सारयी से कहा, मैं घायल हुआ, इसलिथे लगाम फेरके मुझे सेना में से बाहर ले चल। 
34. और उस दिन युद्ध बढ़ता गया और इस्राएल का राजा अपके रय में अरामियोंके सम्मुख सांफ तक खड़ा रहा, परन्तु सूर्य अस्त होते-होते वह मर गया।

Chapter 19

1. और यहूदा का राजा यहोशापात यरूशलेम को अपके भवन में कुशल से लौट गया। 
2. तब हनानी नाम दशीं का पुत्र थेहू यहोशापात राजा से भेंट करने को निकला और उस से कहने लगा, क्या दुष्टोंकी सहाथता करनी और यहोवा के बैरियोंसे प्रेम रखना चाहिथे? इस काम के कारण यहोवा की ओर से तुझ पर क्रोध भड़का है। 
3. तौभी तुझ में कुछ अच्छी बातें पाई जाती हैं। तू ने तो देश में से अशेरोंको नाश किया और उपके मन को परमेश्वर की खोज में लगाया है। 
4. यहोशापात यरूशलेम में रहता या, और उस ने बेर्शेबा से लेकर बप्रैम के पहाड़ी देश तक अपक्की प्रजा में फिर दौरा करके, उनको उनके पितरोंके परमेश्वर यहोवा की ओर फेर दिया। 
5. फिर उस ने यहूदा के एक एक गढ़वाले नगर में न्यायी ठहराया। 
6. और उस ने न्यायियोंसे कहा, सोचो कि क्या करते हो, क्योंकि तुम जो न्याय करोगे, वह मनुष्य के लिथे नहीं, यहोवा के लिथे करोगे; और वह न्याय करते समय तुम्हारे साय रहेगा। 
7. अब यहोवा का भय तुम में बना रहे; चौकसी से काम करना, क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा में कुछ कुटिलता नहीं है, और न वह किसी का पझ करता और न घूस लेता है। 
8. और यरूशलेम में भी यहोशापात ने लेवियोंऔर याजकोंऔर इस्राएल के पितरोंके घरानोंके कुछ मुख्य पुरुषोंको यहोवा की ओर से न्याय करने और मुकद्दमोंको जांचने के लिथे ठहराया। 
9. और वे यरूशलेम को लौटे। और उस ने उनको आज्ञा दी, कि यहोवा का भय मानकर, सच्चाई और निष्कपट मन से ऐसा करना। 
10. तुम्हारे भाई जो अपके अपके नगर में रहते हैं, उन में से जिसका कोई मुकद्दमा तुम्हारे साम्हने आए, चाहे वह खून का हो, चाहे य्यवस्या, अयवा किसी आज्ञा या विधि वा नियम के विषय हो, उनको चिता देना, कि यहोवा के विषय दोषी न होओ। बेसा न हो कि तुम पर और तुम्हारे भाइयोंपर उसका क्रोध भड़के। ऐसा करो तो तुम दोषी न ठहरोगे। 
11. और देखो, यहोवा के विष्य के सब मुकद्दमोंमें तो अमर्याह महाथाजक और राजा के विषय के सब मुकद्दमोंमें यहूदा के घराने का प्रधान इश्माएल का पुत्र जबद्याह तुम्हारे ऊपर अधिक्कारनेी है; और लेवीय तुम्हारे साम्हने सरदारोंका काम करेंगे। इसलिथे हियाब बान्धकर काम करो और भले मनुष्य के साय यहोवा रहेगा।

Chapter 20

1. इसके बाद मोआबियोंऔर अम्मोनियोंने और उनके साय कई मूनियोंने युद्ध करने के लिथे यहोशाात पर चढ़ाई की। 
2. तब लोगोंने आकर यहोशापात को बता दिया, कि ताल के पार से एदोम देश की ओर से एक बड़ी भीड़ तुझ पर चढ़ाई कर रही है; और देख, वह हसासोन्तामार तक जो एनगदी भी कहलाता है, पहुंच गई है। 
3. तब यहोशपात डर गया और यहोवा की खोज में लग गया, और पूरे यहूदा में उपवास का प्रचार करवाया। 
4. सो यहूदी यहोवा से सहाथता मांगने के लिथे इकट्ठे हुए, वरन वे यहूदा के सब नगरोंसे यहोवा से भेंट करते को आए। 
5. तब यहोशपात यहोवा के भवन में नथे आंगन के साम्हने यहूदियोंऔर यरूशलेमियोंकी मण्डली में खड़ा होकर 
6. यह कहने लगा, कि हे हमारे पितरोंके परमेश्वर यहोवा ! क्या तू स्वर्ग में परमेश्वर नहीं है? और क्या तू जाति जाति के सब राज्योंके ऊपर प्रभुता नहीं करता? और क्या तेरे हाथ में ऐसा बल और पराक्रम नहीं है कि तेरा साम्हना कोई नहीं कर सकता? 
7. हे हमारे परमेश्वर ! क्या तू ने इस देश के निवासिक्कों अपक्की प्रजा इस्राएल के साम्हने से निकालकर इन्हें अपके मित्र इब्राहीम के वंश को सदा के लिथे नहीं दे दिया? 
8. वे इस में बस गए और इस में तेरे नाम का एक पवित्रस्यान बनाकर कहा, 
9. कि यदि तलवार या मरी अयवा अकाल वा और कोई विपत्ति हम पर पके, तौभी हम इसी भवन के साम्हने और तेरे साम्हने (तेरा नाम तो इस भवन में बसा है) खड़े होकर, अपके क्लेश के कारण तेरी दोहाई देंगे और तू सुनकर बचाएगा। 
10. और अब अम्मोनी और मोआबी और सेईर के पहाड़ी देश के लोग जिन पर तू ने इस्राएल को मिस्र देश से आते समय चढ़ाई करने न दिया, और वे उनकी ओर से मुड़ गए और उनको विनाश न किया, 
11. देख, वे ही लोग तेरे दिए हुए अधिक्कारने के इस देश में से जिसका अधिक्कारने तू ने हमें दिया है, हम को निकालकर कैसा बदला हमें दे रहे हैं। 
12. हे हमारे परमेश्वर, क्या तू उनका न्याय न करेगा? यह जो बड़ी भीड़ हम पर चढ़ाई कर रही है, उसके साम्हने हमारा तो बस नहीं चलता और हमें हुछ सूफता नहीं कि क्या करना चाहिथे? परन्तु हमारी आंखें तेरी ओर लगी हैं। 
13. और सब यहूदी अपके अपके बालबच्चों, स्त्रिीयोंऔर पुत्रोंसमेत यहोवा के सम्मुख खड़े रहे। 
14. तब आसाप के वंश में से यहजीएल नाम एक लेवीय जो जकर्याह का पुत्र और बनायाह का पोता और मत्तन्याह के पुत्र यीएल का परपोता या, उस में मण्डली के बीच यहोवा का आत्मा समाया। 
15. और वह कहने लगा, हे सब यहूदियो, हे यरूशलेम के रहनेवालो, हे राजा यहोशापात, तुम सब ध्यान दो; यहोवा तुम से योंकहता है, तुम इस बड़ी भीड़ से मत डरो और तुम्हारा मन कच्चा न हो; क्योंकि युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्वर का है। 
16. कल उनका साम्हना करने को जाना। देखो वे सीस की चढ़ाई पर चढ़े आते हैं और यरूएल नाम जंगल के साम्हने नाले के सिक्के पर तुम्हें मिलेंगे। 
17. इस लड़ाई में तुम्हें लड़ना न होगा; हे यहूदा, और हे यरूशलेम, ठहरे रहना, और खड़े रहकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखना। मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो; कल उनका साम्हना करने को चलना और यहोवा तुम्हारे साय रहेगा। 
18. तब यहोशापात भूमि की ओर मुंह करके भुका और सब यहूदियोंऔर यरूशलेम के निवासियोंने यहोवा के साम्हने गिरके यहोवा को दण्डवत किया। 
19. और कहातियोंऔर कोरहियोंमें से कुछ लेवीय खड़े होकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की स्तुति अत्यन्त ऊंचे स्वर से करने लगे। 
20. बिहान को वे सबेरे उठकर तकोआ के जंगल की ओर निकल गए; और चलते समय यहोशापात ने खड़े होकर कहा, हे यहूदियो, हे यरूशलेम के निवासियो, मेरी सुुनो, अपके परमेश्वर यहोवा पर विश्वास रखो, तब तुम स्यिर रहोगे; उसके नबियोंकी प्रतीत करो, तब तुम कृतार्य हो जाओगे। 
21. तब उस ने प्रजा के साय सम्मति करके कितनोंको ठहराया, जो कि पवित्रता से शोभायमान होकर हयियारबन्दोंके आगे आगे चलते हुए यहोवा के गीत गाएं, और यह कहते हुए उसकी स्तुति करें, कि यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि उसकी करुणा सदा की है। 
22. जिस समय वे गाकर स्तुति करने लगे, उसी समय यहोवा ने अम्मोनियोंमोआबियोंऔर सेईर के पहाड़ी देश के लोगोंपर जो यहूदा के विरुद्ध आ रहे थे, घातकोंको बैठा दिया और वे मारे गए। 
23. क्योंकि अम्मोनियोंऔर मोआबियोंने सेईर के पहाड़ी देश के निवासिक्कों डराने और सत्यानाश करने के लिथे उन पर चढ़ाई की, और जब वे सेईर के पहाड़ी देश के निवासियोंका अन्त कर चुके, तब उन सभोंने एक दूसरे के नाश करने में हाथ लगाया। 
24. सो जब यहूदियोंने जंगल की चौकी पर पहुंचकर उस भीड़ की ओर दृष्टि की, तब क्या देख कि वे भूमि पर पक्की हुई लोय हैं; और कोई नहीं बचा। 
25. तब यहोशापात और उसकी प्रजा लूट लेने को गए और लोयोंके बीचा बहुत सी सम्मत्ति और मनभावने गहने मिले; उन्होंने इतने गहने उतार लिथे कि उनको न ले जा सके, वरन लूट इतनी मिली, कि बटोरते बटोरते तीन दिन बीत गए। 
26. चौथे दिन वे बराका नाम तराई में इकट्ठे हुए और वहां यहोवा का धन्यवाद किया; इस कारण उस स्यान का नाम बराका की तािई पड़ा, जो आज तक है। 
27. तब वे, अर्यात्‌ यहूदा और यरूशलेम नगर के सब पुरुष और उनके आगे आगे यहोशापात, आनन्द के साय यरूशलेम लौटे क्योंकि यहोवा ने उन्हें शत्रुओं पर आनन्दित किया या। 
28. सो वे सारंगियां, वीणाएं और तुरहियां बजाते हुए यरूशलेम में यहोवा के भवन को आए। 
29. और जब देश देश के सब राज्योंके लोगोंने सुना कि इस्राएल के शत्रुओं से यहोवा लड़ा, तब उनके मन में परमेश्वर का डर समा गया। 
30. और यहोशापात के राज्य को चैन मिला, क्योंकि उसके परमेश्वर ने उसको चारोंओर से विश्रम दिया। 
31. योंयहोशापात ने यहूदा पर राज्य किया। जब वह राज्य करने लगा तब वह पैंतीस वर्ष का या, और पच्चीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अजूबा या, जो शिल्ही की बेटी यी। 
32. और वह अपके पिता आसा की लीक पर चला ओर उस से न मुड़ा, अर्यात्‌ जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही वह करता रहा। 
33. तौभी ऊंचे स्यान ढाए न गए, वरन अब तक प्रजा के लोगोंने अपना मन अपके पितरोंके परमेश्वर की ओर न लगाया या। 
34. और आदि से अन्त तक यहोशापात के और काम, हनानी के पुत्र थेहू के विषय उस वृत्तान्त में लिखे हैं, जो इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त में पाया जाता हैं। 
35. इसके बाद यहूद के राजा यहोशापात ने इस्राएल का राजा अहज्याह से जो बड़ी दुष्टता करता या, मेल किया। 
36. अर्यात्‌ उस ने उसके साय इसलिथे मेल किया कि तशींश जाने को जहाज बनवाए, और उन्होंने ऐसे जहाज एस्योनगेबेर में बनवाए। 
37. तब दोदावाह के पुत्र मारेशावासी एलीआजर ने यहोशापात के विरुृद्ध यह नबूवत कही, कि तू ने जो अहज्याह से मेल किया, इस कारण यहोवा तेरी बनवाई हुई वस्तुओं को तोड़ डालेगा। सो जहरज टूट गए और तशींश को न जा सके।

Chapter 21

1. निदान यहोशापात अपके पुरखाओं के संग सो गया, और उसको उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र यहोराम उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 
2. इसके भाई जो यहोशापात के पुत्र थे, थे थे, अर्यात्‌ अजर्याह, यहीएल, जकर्याह, अजर्याह, मीकाएल और शपत्याह; थे सब इस्राएल के राजा यहोशापात के पुत्र थे। 
3. और उनके पिता ने उन्हे चान्दी सोना और अनमोल वस्तुएं और बड़े बड़े दान और यहूदा में गढ़वाले नगर दिए थे, परन्तु यहोराम को उस ने राज्य दे दिया, क्योंकि वह जेठा या। 
4. जब यहोराम अपके पिता के राज्य पर नियुक्त हुआ और बलवन्त भी हो गया, तब उसने अपके सब भाइयोंको और इस्राएल के कुछ हाकिमोंको भी तलवार से घात किया। 
5. जब यहोराम राजा हुआ, तब वह बत्तीस वर्ष का या, और वह आठ वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 
6. वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता या, क्योंकि उसकी पत्नी अहाब की बेटी यी। और वह उस काम को करता या, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 
7. तौभी यहोवा ने दाऊद के घराने को नाश करना न चाहा, यह उस वाचा के कारण या, जो उसने दाऊद से बान्धी यी। और उस वचन के अनुसार या, जो उस ने उसको दिया या, कि में ऐसा करूंगा कि तेरा और तेरे वंश का दीपक कभी न बुफेगा। 
8. उसके दिनोंमें एदोम ने यहूदा की अधीनता छोड़कर अपके ऊपर एक राजा बना लिया। 
9. सो यहोराम अपके हाकिमोंऔर अपके सब रयोंको साय लेकर उधर गया, और रयोंके प्रधानोंको मारा। 
10. योंएदोम यहूदा के वश से छूट गया और आज तक वैसा ही है। उसी समय लिब्ना ने भी उसकी अधीनता छोड़ दी, यह इस कारण हुआ, कि उस ने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया या। 
11. और उस ने यहूदा के पहाड़ोंपर ऊंचे स्यान बनाए और यरूशलेम के निवासिक्कों य्यभिचार कराया, और यहूदा को बहका दिया। 
12. तब एलिय्याह नबी का एक पत्र उसके पास आया, कि तेरे मूलपुरुष दाऊद का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि तू जो न तो अपके पिता यहोशापात की लीक पर चला है और न यहूदा के राजा आसा की लीक पर, 
13. वरन इस्राएल के राजाओं की लीक पर चला है, और अहाब के घराने की नाई यहूलियोंऔर यरूशलेम के निवासिक्कों य्यभिचार कराया है और अपके पिता के घराने में से अपके भाइयोंको जो तुझ से अच्छे थे, घात किया है, 
14. इस कारण यहोवा तेरी प्रजा, पुत्रों, स्त्रियोंऔर सारी सम्मत्ति को बड़ी मार से मारेगा। 
15. और तू अंतडिय़ोंके रोग से बहुत पीड़ित हो जाएगा, यहां तक कि उस रोग के कारण तेरी अंतडिय़ां प्रतिदिन निकलती जाएंगी। 
16. और यहोवा ने पलिश्तियोंको और कूशियोंके पास रहनेवाले अरबियोंको, यहोराम के विरुद्ध उभारा। 
17. और वे यहूदा पर चढ़ाई करके उस पर टूट पके, और राजभवन में जितनी सम्पत्ति मिली, उस सब को और राजा के पुत्रोंऔर स्त्रियोंको भी ले गए, यहां तक कि उसके लहुरे बेटे यहोआहाज को छोड़, उसके पास कोई भी पुत्र न रहा। 
18. इन सब के बाद यहोवा ने उसे अंतडिय़ोंके असाध्यरोग से पीड़ित कर दिया। 
19. और कुछ समय के बाद अर्यात्‌ दो वर्ष के अन्त में उस रोग के कारण उसकी अंतडिय़ां निकल पक्कीं, ओर वह अत्यन्त पीड़ित होकर मर गया। और उसकी प्रजा ने जैसे उसके पुरखाओं के लिथे सुगन्धद्रय्य जलाया या, वैसा उसके लिथे कुछ न जलाया। 
20. वह जब रज्य करने लगा, तब बत्तीस वर्ष का या, और यरूशलेम में आठ वर्ष तक राज्य करता रहा; और सब को अप्रिय होकर जाता रहा। और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं।

Chapter 22

1. तब यरूशलेम के निवासियोंने उसके लहुरे पुत्र अहज्याह को उसके स्यान पर राजा बनाया; क्योंकि जो दल अरबियोंके संग छावनी में आया या, उस ने उसके सब बड़े बड़े बेटोंको घात किया या सो यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह राजा हुआ। 
2. जब अहज्याह राजा हुआ, तब वह बयालीस वर्ष का या, और यरूशलेम में बक ही वर्ष राज्य किया, और उसकी माता का ताम अतल्याह या, जो ओम्री की पोती यी। 
3. वह अहाब के घराने की सी चाल चला, क्योंकि उसकी माता उसे दुष्टता करने की सम्मति देती यी। 
4. और वह अहाब के घराने की नाई वह काम करता या जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, क्योंकि उसके पिता की मृत्यु के बाद वे उसको ऐसी सम्मति देते थे, जिस से उसका विनाश हुआ। 
5. और वह उनकी सम्मति के अनुसार चलता या, और इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र यहोराम के संग गिलाद के रामोत में अराम के राजा हजाएल से लड़ने को गया और अरामियोंने यहोराम को घायल किया। 
6. सो राजा यहोराम इसलिथे लौट गया कि यिज्रेल में उन घावोंका इताज कराए जो उसको अरामियोंके हाथ से उस समय लगे थे जब वह हजाएल के साय लड़ रहा या। और अहाब का पुत्र यहोराम जो यिज्रेल में रोगी या, इस कारण से यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह उसको देखने गया। 
7. और अहज्याह का विनाश यहोवा की ओर से हुआ, क्योंकि वह यहोराम के पास गया या। और जब वह वहां पहुंचा, तब यहोराम के संग निमशी के पुत्र थेहू का साम्हना करने को निकल गया, जिसका अभिषेक यहोवा ने इसलिथे कराया या कि वह अहाब के घराने को नाश करे। 
8. और जब थेहू अहाब के घराने को दणड दे रहा या, तब उसको यहूदा के हाकिम और अहज्याह के भतीजे जो अहज्याह के टहलुए थे, मिले, और उस ने उनको घात किया। 
9. तब उस ने अहज्याह को ढूंढ़ा। वह शोमरोन में छिपा या, सो लोगोंने उसको पकड़ लिया और थेहू के पास पहुंचाकर उसको मार डाला। तब यह कहकर उसको मिट्टी दी, कि यह यहोशपात का पोता है, जो अपके पूरे मन से यहोवा की खोज करता या। और अहज्याह के घराने में राज्य करने के योग्य कोई न रहा। 
10. जब अहज्याह की माता अतल्याह ने देख कि मेरा पुत्र मर गया, तब उस ने उठकर यहूदा के घराने के सारे राजवंश को नाश किया। 
11. परन्तु यहोशवत जो राजा की बेटी यी, उस ने अहज्याह के पुत्र योआश को घात होनेवाले राजकुमारोंके बीच से चुराकर धाई समेत बिछौने रखने की कोठरी में छिपा दिया। इस प्रकार राजा यहोराम की बेटी यहोशवत जो यहोयादा याजक की स्त्री और अहज्याह की बहिन यी, उस ने योआश को अतल्याह से ऐसा छिपा रखा कि वह उसे मार डालने न पाई। 
12. और वह उसके पास परमेश्वर के भवन में छ: वर्ष छिपा रहा, इतने दिनोंतक अतल्याह देश पर राज्य करती रही।

Chapter 23

1. सातवें वर्ष में यहोयादा ने हियाब बान्धकर यरोहाम के पुत्र अजर्याह, यहोहानान के पुत्र इश्वाएल, ओबेद के पुत्र अजर्याह, अदायाह के पुत्र मासेयाह और जिक्री के पुत्र बलीशपात, इन शतपतियोंसे वाचा बान्धी। 
2. तब वे यहूदा में घूमकर यहूदा के सब नगरोंमें से लेवियोंको और इस्राएल के पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुषोंको इकट्ठा करके यरूशलेम को ले आए। 
3. और उस सारी मएडली ने परमेश्वर के भवन में राजा के साय वाचा बान्धी, और यहोयादा ने उन से कहा, सुनो, यह राजकुमार राज्य करेगा जैसे कि यहोवा ने दाऊद के वंश के विषय कहा है। 
4. तो तुम एक काम करो, अर्यात्‌ तुम याजकोंऔर लेवियोंकी एक तिहाई लोग जो विश्रमदिन को आनेवाले हो, वे द्वारपाली करें, 
5. और एक तिहाई लोग राजभवन में रहें और एक तिहाई लोग नेव के फाटक के पास रहें; और सब लोग यहोवा के भवन के आंगनोंमें रहें। 
6. परन्तु याजकोंऔर सेवा टहल करनेवाले लेवियोंको छोड़ और कोई यहोवा के भवन के भीतर न आने पाए; वे तो भीतर आएं, क्योंकि वे पवित्र हैं परन्तु सब लोग यहोवा के भवन की चौकसी करें। 
7. और लेवीय लोग अपके अपके हाथ में हयियार लिथे हुए राजा के चारोंओर रहें और जो कोई भवन के भीतर घुसे, वह मार डाला जाए। और तुम राजा के आते जाते उसके साय रहना। 
8. यहोयादा याजक की इन सब आज्ञाओं के अनुसार लेवियोंऔर सब यहूदियोंने किया। उन्होंने विश्रमदिन को आनेवाले और विश्रमदिन को जानेवाले दोनोंदलोंके, अपके अपके जनोंको अपके साय कर लिया, क्योंकि यहोयादा याजक ने किसी दल के लेवियोंको विदा न किया य। 
9. तब यहोयादा याजक ने शतपतियोंको राजा दाऊद के बर्छे और भाले और ढालें जो परमेश्वर के भवन में यीं, दे दीं। 
10. फिर उस ने उन सब लोगोंको अपके अपके हाथ में हयियार लिथे हुए भवन के दक्खिनी कोने से लेकर, उत्तरी कोने तक वेदी और भवन के पास राजा के चारोंओर उसकी आड़ करके खड़ा कर दिया। 
11. तब उन्होंने राजकुमार को बाहर ला, उसके सिर पर मुकुट रखा और साझीपत्र देकर उसे राजा बनाया; और यहोयादा और उसके पुत्रोंने उसका अभिषेक किया, और लोग बोल उठे, राजा जीवित रहे। 
12. जब अतल्याह को उन लोगोंका हल्ला, जो दौड़ते और राजा को सराहते थे सुन पड़ा, तब वह लोगोंके पास यहोवा के भवन में गई। 
13. और उस ने क्या देखा, कि राजा द्वार के निकट खम्भे के पास खड़ा है और राजा के पास प्रधान और तुरही बजानेवाले खड़े हैं, और सब लोग आनन्द कर रहे हैं और तुरहियां बजा रहे हैं और गाने बजानेवाले बाजे बजाते और स्तुति करते हैं। तब अतल्याह अपके वस्त्र फाड़कर पुकारने लगी, राजद्रोह, राजद्रोह ! 
14. तब यहोयादा याजक ने दल के अधिक्कारनेी शतपतियोंको बाहर लाकर उन से कहा, कि उसे अपक्की पांतियोंके बीच से निकाल ले जाओ; और जो कोई उसके पीछे चले, वह तलवार से मार डाला जाए। याजक ने कहा, कि उसे यहोवा के भवन में न मार डालो। 
15. तब उन्होंने दोनोंओर से उसको जगह दी, और वह राजभवन के घोड़ाफाटक के द्वार तक गई, और वहां उन्होंने उसको मार डाला। 
16. तब यहोयादा ने अपके और सारी प्रजा के और राजा के बीच यहोवा की प्रजा होने की वाचा बन्धवाई। 
17. तब सब लोगोंने बाल के भवन को जाकर ढा दिया; और उसकी वेदियोंऔर मूरतोंको टुकड़े टुकड़े किया, और मत्तान नाम बाल के याजक को वेदियोंके साम्हने ही घात किया। 
18. तब यहोयादा ने यहोवा के भवन की सेवा के लिथे उन लेवीय याजकोंको ठहरा दिया, जिन्हें दाऊद ने यहोवा के भवन पर दल दल करके इसलिथे ठहराया या, कि जैसे मूसा की य्यवस्या में लिखा है, वैसे ही वे यहोवा को होमबलि चढ़ाया करें, और दाऊद की चलाई हुई विधि के अनुसार आनन्द करें और गाएं। 
19. और उस ने यहोवा के भवन के फाटकोंपर द्वारपालोंको इसलिथे खड़ा किया, कि जो किसी रीति से अशुद्ध हो, वह भीतर जाने न पाए। 
20. और वह शतपतियोंऔर रईसोंऔर प्रजा पर प्रभुता करनेवालोंऔर देश के सब लोगोंको साय करके राजा को यहोवा के भवन से नीचे ले गया और ऊंचे फाटक से होकर राजभवन में आया, और राजा को राजगद्दी पर बैठाया। 
21. तब सब लोग आनन्दित हुए और नगर में शान्ति हुई। अतल्याह तो तलवार से मार ही डाली गई यी।

Chapter 24

1. जब योआश राजा हुआ, तब वह सात वर्ष का या, और यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा; उसकी माता का नाम सिब्या या, जो बेर्शेबा की यी। 
2. और जब तक यहोयादा याजक जीवित रहा, तब तक योआश वह काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है। 
3. और यहसेयादा ने उसके दो ब्याह कराए और उस से बेटे-बेटियां उत्पन्न हुई। 
4. इसके बाद योआश के मन में यहोवा के भवन की मरम्मत करने की मनसा उपक्की। 
5. तब उस ने याजकोंऔर लेवियोंको इकट्ठा करके कहा, प्रति वर्ष यहूदा के नगरोंमें जा जाकर सब इस्राएलियोंसे रुपके लिया करो जिस से तुम्हारे परमेश्वर के भवन की मरम्मत हो; देखो इसकाम में फुतीं करो। तौभी लेवियोंने कुछ फुतीं न की। 
6. तब राजा ने यहोयादा महाथाजक को बुलवा कर पूछा, क्या कारण है कि तू ने लेवियोंको दृढ़ आज्ञा नहीं दी कि वे यहूदा और यरूशलेम से उस चन्दे के रुपए ले आएं जिसका नियम यहोवा के दास मूसा और इस्राएल की मण्डली ने साझीपत्र के तम्बू के निमित्त चलाया या। 
7. उस दुष्ट स्त्री अतल्याह के बेटोंने तो परमेश्वर के भवन को तोड़ दिया और यहोवा के भवन की सब पवित्र की हुई वस्तुएं बाल देवताओं को दे दी यीं। 
8. और राजा ने एक सन्दूक बनाने की आज्ञा दी और वह यहोवा के भवन के फाटक के पास बाहर रखा गया। 
9. तब यहूदा और यरूशलेम में यह प्रचार किया गया कि जिस चन्दे का नियम परमेश्वर के दास मूसा ने जंगल में इस्राएल में चलाया या, उसके रुपए यहोवा के निमित्त ले आओ। 
10. तो सब हाकिम और प्रजा के सब लोग आनन्दित हो रुपए लाकर जब तक चन्दा पूरा न हुआ तब तक सन्दूक में डालते गए। 
11. और जब जब वह सन्दूक लेवियोंके हाथ से राजा के प्रधानोंके पास पहुंचाया जाता और यह जान पड़ता या कि उस में रुपए बहुत हैं, तब तब राजा के प्रधान और महाथाजक का नाइब आकर सन्दूक को खाली करते और तब उसे फिर उसके स्यान पर रख देते थे। उन्होंने प्रतिदिन ऐसा किया और बहुत रुपए इाट्ठा किए। 
12. तब राजा और यहोयादा ने वह रुपए यहोवा के भवन में काम करनेवालोंको दे दिए, और उन्होंने राजोंऔर बढ़इयोंको यहोवा के भवन के सुधारने के लिथे, और लोहारोंऔर ठठेरोंको यहोवा के भवन की मरम्मत करने के लिथे मजदूरी पर रखा। 
13. और कारीगर काम करते गए और काम पूरा होता गया और उन्होंने परमेश्वर का भवन जैसा का तैसा बनाकर दृढ़ कर दिया। 
14. जब उन्होंने वह काम निपटा दिया, तब वे शेष रुपए राजा और यहोयादा के पास ले गए, और उन से यहोवा के भवन के लिथे पात्र बनाए गए, अर्यात्‌ सेवा टहल करने और होमबलि चढ़ाने के पात्र और धूपदान आदि सोने चान्दी के पात्र। और जब तक यहोयादा जीवित रहा, तब तक यहोवा के भवन में होमबलि नित्य चढ़ाए जाते थे। 
15. परन्तु यहोयादा बूढ़ा हो गया और दीर्घायु होकर मर गया। जब वह मर गया तब एक सौ तीस वर्ष का या। 
16. और दाऊदपुर में राजाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, क्योंकि उस ने इस्राएल में और परमेश्वर के और उसके भवन के विषय में भला किया या। 
17. यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के हाकिमोंने राजा के पास जाकर उसे दणडवत की, और राजा ने उनकी मानी। 
18. तब वे अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा का भवन छोड़कर अशेरोंऔर मूरतोंकी उपासना करने लगे। सो उनके ऐसे दोषी होने के कारण परमेश्वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का। 
19. तौभी उस ने उनके पास नबी भेजे कि उनको यहोवा के पास फेर लाएं; और इन्होंने उन्हें चिता दिया, परन्तु उन्होंने कान न लगाया। 
20. और परमेश्वर का आत्मा यहोयादा याजक के पुत्र जकर्याह में समा गया, और वह ऊंचे स्यन पर खड़ा होकर लोगोंसे कहने लगा, परमेश्वर योंकहता है, कि तुम यहोवा की आज्ञाओं को क्योंटालते हो? ऐसा करके तुम भाग्यवान नहीं हो सकते, देखो, तुम ने तो यहोवा को त्याग दिया है, इस कारण उस ने भी तुम को त्याग दिया। 
21. तब लोगोंने उस से द्रोह की गोष्ठी करके, राजा की आज्ञा से यहोवा के भवन के आंगन में उसको पत्यरवाह किया। 
22. योंराजा योआश ने वह प्रीति भूलकर जो यहोयादा ने उस से की यी, उसके पुत्र को घात किया। और मरते समय उस ने कहा यहोवा इस पर दृष्टि करके इसका लेखा ले। 
23. तथे वर्ष के लगते अरामियोंकी सेना ने उस पर चढ़ाई की, और यहूदा ओर यरूशलेम आकर प्रजा में से सब हाकिमोंको नाश किया और उनका सब धन लूटकर दमिश्क के राजा के पास भेजा। 
24. अरामियोंकी सेना थेड़े ही पुरुषोंकी तो आई, पन्तु यहोवा ने एक बहुत बड़ी सेना उनके हाथ कर दी, क्योंकि उन्होंने अपके पितरो के परमेश्वा को त्याग दिया य। और योआश को भी उन्होंने दणड दिया। 
25. और जब वे उसे बहुत ही रोगी छोड़ गए, तब उसके कर्मचारियोंने यहोयादा याजक के पुत्रोंके खून के कारण उस से द्रोह की गोष्ठी करके, उसे उसके बिछौने पर ही ऐसा मारा, कि वह मर गया; और उन्होंने उसको दाऊद पुर में मिट्टी दी, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं। 
26. जिन्होंने उस से राजद्रोह की गोष्ठी की, वे थे थे, अर्यात्‌ अम्मोनिन, शिमात का पुत्र जाबाद और शिम्रित, मोआबिन का पुत्र यहोजाबाद। 
27. उसके बेटोंके विषय और उसके विरुद्ध, जो बड़े दणड की तबूवत हुई, उसके और परमेश्वर के भवन के बनने के विषय थे सब बातें राजाओं के वृत्तान्त की पुस्तक में लिखी हैं। और उसका पुत्र अमस्याह उसके स्यान पर राजा हुआ।

Chapter 25

1. जब अमस्याह राज्य करने लगा तब वह वचीस वर्ष का या, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम यहोअद्दान या, जो यरूशलेम की यी। 
2. उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, परन्तु खरे मन से न किया। 
3. जब राज्य उसके हाथ में स्यिर हो गया, तब उस ने अपके उन कर्मचारियोंको मार डाला जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला या। 
4. परन्तु उस ने उनके लड़केवालोंको न मारा क्योंकि उस ने यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार किया, जो मूसा की य्यवस्या की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए, जिस ने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 
5. और अमस्याह ने यहूदा को वरन सारे यहूदियोंऔर बिन्यामीनियोंको इकट्ठा करके उनको, पितरोंके घरानोंके अनुसार सहस्रपतियोंऔर शतपतियोंके अधिक्कारने में ठहराया; और उन में से जितनोंकी अवस्या बीस वर्ष की अयवा उस से अधिक यी, उनकी गिनती करके तीन लाख भाला चलानेवाले और ढाल उठानेवाले बड़े बड़े योद्धा पाए। 
6. फिर उस ने एक लाख इस्राएली शूरवीरोंको भी एक सौ किक्कार चान्दी देकर बुलवा रखा। 
7. परन्तु परमेश्वर के एक जन ने उसके पास आकर कहा, हे राजा इस्राएल की सेना तेरे साय जाने न पाए; क्योंकि यहोवा इस्राएल अर्यात्‌ एप्रैम की कुल सन्तान के संग नहीं रहता। 
8. यदि तू जाकर पुरुषार्य करे; और युद्ध के लिथे हियाव वान्धे, तौभी परमेश्वर तुझे शत्रुओं के साम्हने गिराएगा, क्योंकि सहाथता करने और गिरा देने दोनोंमें परमेश्वर सामयीं है। 
9. अमस्याह ने परमेश्वर के भक्त से पूछा, फिर जो सौ किक्कार चान्दी मैं इस्राएली दल को दे चुका हूँ, उसके विषय क्या करूं? परमेश्वर के भक्त ने उत्तर दिया, यहोवा तुझे इस से भी बहुत अधिक दे सकता है। 
10. तब अमस्याह ने उन्हें अर्यात्‌ उस दल को जो एप्रैम की ओर से उसके पास आया या, अलग कर दिया, कि वे अपके स्यान को लौट जाएं। तब उनका क्रोध यहूदियो पर बहुत भड़क उठा, और वे अत्यन्त क्रोधित होकर अपके स्यान को लौट गए। 
11. परन्तु अमस्याह हियाब बान्धकर अपके लोगोंको ले चला, और लोन की तराई में जाकर, दस हजार सेईरियोंको मार डाला। 
12. और यहूलियोंने दस हजार को बन्धुआ करके चट्टान की चोटी पर ले गथे, और चट्टान की चोटी पर से गिरा दिया, सो वे सब चूर चूर हो गए। 
13. परन्तु उस दल के पुरुष जिसे अमस्याह ने लौटा दिया कि वे उसके साय युद्ध करने को न जाएं, शेमरोन से बेथेरोन तक यहूदा के सब नगरोंपर टूट पके, और उनके तीन हजार निवासी मार डाले और बहुत लूट ले ली। 
14. जब अमस्याह एदोनियोंका संहार करके लौट आया, तब उस ने सेईरियोंके देवताओं को ले आकर अपके देवता करके खड़ा किया, और उन्हीं के साम्हने दणडवत करने, और उन्हीं के लिथे धूप जलाने लगा। 
15. तब यहोवा का क्रोध अमस्याह पर भड़क उठा और उस ने उसके पास एक नबी भेजा जिस ने उस से कहा, जो देवता अपके लोगोंको तेरे हाथ से बचा न सके, उनकी खोज में तू क्योंलगा है? 
16. वह उस से कह ही रहा या कि उस ने उस से पूछा, क्या हम ने तुझे राजमन्त्री ठहरा दिया है? चुप रह ! क्या तू मार खाना चाहता है? तब वह नबी यह कहकर चुप हो गया, कि मुझे मालूम है कि परमेश्वर ने तुझे नाश करने को ठाना है, क्योंकि तू ने ऐसा किया है और मेरी सम्मति नहीं मानी। 
17. तब यहूदा के राजा अमस्याह ने सम्मति लेकर, इस्राएल के राजा योआश के पास, जो थेहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र या, योंकहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें। 
18. इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास योंकहला भेजा, कि लबानोन पर की एक फड़बेरी ने लबानोन के एक देवदार के पास कहला भेजा, कि अपक्की बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन का कोई वन पशु पास से चला गया और उस फड़बेरी को दौंद डाला। 
19. तू कहता है, कि मैं ने एदोमियोंको जीत लिया है; इस कारण तू फूल उठा और बड़ाई मारता है ! अपके घर में रह जा; तू अपक्की हानि के लिथे यहां क्योंहाथ डालता है, इस से तू क्या, वरन यहूदा भी नीचा खाएगा। 
20. परन्तु अमस्याह ने न माना। यह तो परमेश्वर की ओर से हुआ, कि वह उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ कर दे, क्योंकि वे एदोम के देवताओं की खोज में लग गए थे। 
21. तब इस्राएल के राजा योआश ने चढ़ाई की और उस ने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का साम्हना किया। 
22. और यहूदा इस्राएल से हार गया, और हर एक अपके अपके डेरे को भागा। 
23. तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को, जो यहोआहाज का पोता और योआश का पुत्र या, बेतशेमेश में पकड़ा और यरूशलेम को ले गया और यरूशलेम की शहरपनाह में से बप्रैमी फाटक से कोनेवाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए। 
24. और जितना सोना चान्दी और जितने पात्र परमेश्वर के भवन में ओबेदेदोम के पास मिले, और राजभवन में जितना खजाना या, उस सब को और बन्धक लोगोंको भी लेकर वह शोमरोन को लोट गया। 
25. यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा योआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष तक जीवित रहा। 
26. आदि से अन्त तक अमस्याह के और काम, क्या यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 
27. जिस समय अपस्याह यहोवा के पीछे चलना छोड़कर फिर गया या उस समय से यरूशलेम में उसके विरुद्ध द्रोह की गोष्ठी होने लगी, और वह लाकीश को भाग गया। सो दूतोंने लाकीश तक उसका पीछा कर के, उसको वहीं मार डाला। 
28. तब वह घोड़ोंपर रखकर पहुंचाया गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच यहूदा के नगर में मिट्टी दी गई।

Chapter 26

1. तब सब यहूदी प्रजा ने उज्जिय्याह को लेकर जो सोलह वर्ष का या, उसके पिता अमस्याह के स्यान पर राजा बनाया। 
2. जब राजा अमस्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया तब उज्जिय्याह ने एलोत नगर को दृढ़ कर के यहूदा में फिर मिला लिया। 
3. जब उज्जिय्याह राज्य करने लगा, तब वह सोलह वर्ष का या। और यरूशलेम में बावन वर्ष तक राज्य करता रहा, और उसकी माता का नाम यकील्याह या, जो यरूशलेम की यी। 
4. जैसे उसका पिता अमस्याह, किया करता या वैसा ही उसने भी किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या। 
5. और जकर्याह के दिनोंमें जो परमेश्वर के दर्शन के विषय समझ रखता या, वह परमेश्वर की खोज में लगा रहता या; और जब तक वह यहोवा की खोज में लगा रहा, तब तक परमेश्वर उसको भाग्यवान किए रहा। 
6. तब उस ने जाकर पलिश्तियोंसे युद्ध किया, और गत, यब्ने और अशदोद की शहरपनाहें गिरा दीं, और अशदोद के आसपास और पलिश्तियोंके बीच में नगर बसाए। 
7. और परमेश्वर ने पलिश्तियोंऔर गूर्बालवासी, अरबियोंऔर मूनियोंके विरुद्ध उसकी सहाथता की। 
8. और अम्मोनी उज्जिय्याह को भेंट देने लगे, वरन उसकी कीत्तिर् मिस्र के सिवाने तक भी फैल गई्र, क्योंकि वह अत्यन्त सामयीं हो गया या। 
9. फिर उज्जिय्याह ने यरूशलेम में कोने के फाटक और तराई के फाटक और शहरपनाह के मोड़ पर गुम्मट बनवाकर दृढ़ किए। 
10. और उसके बहुत जानवर थे इसलिथे उस ने जंगल में और नीचे के देश और चौरस देश में गुम्मट बनवाए और बहुत से हौद खुदवाए, और पहाड़ोंपर और कर्म्मेल में उसके किसान और दाख की बारियोंके माली थे, क्योंकि वह खेती किसानी करनेवाला या। 
11. फिर उज्जिय्याह के योद्धाओं की एक सेना यी जिनकी गिनती यीएल मुंशी और मासेयाह सरदार, हनन्याह नामक राजा के एक हाकिम की आज्ञा से करते थे, और उसके अनुसार वह दल बान्धकर लड़ने को जाती यी। 
12. पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुष जो शूरवीर थे, उनकी पूरी गिनती दो हजार छ: सौ यी। 
13. और उनके अधिक्कारने में तीन लाख साढ़े सात हजार की एक बड़ी बड़ी सेना यी, जो शत्रुओं के विरुद्ध राजा की सहाथता करने को बड़े बल से युद्ध करनेवाले थे। 
14. इनके लिथे अर्यात्‌ पूरी सेना के लिथे उज्जिय्याह ने ढालें, भाले, टोप, फिलम, धनुष और गोफन के पत्यर तैयार किए। 
15. फिर उस ने यरूशलेम में गुम्मटोंऔर कंगूरोंपर रखने को चतुर पुरुषोंके निकाले हुए यन्त्र भी बनवाए जिनके द्वारा तीर और बड़े बड़े पत्यर फेंके जाते थे। और उसकी कीत्तिर् दूर दूर तक फैल गई, क्योंकि उसे अदभुत यहाथता यहां तक मिली कि वह सामयीं हो गया। 
16. परन्तु जब वह सामयीं हो गया, तब उसका मन फूल उठा; और उस ने बिगड़कर अपके परमेश्वर यहोवा का विश्वासघात किया, अर्यात्‌ वह धूप की वेदी पर धूम जलाने को यहोवा के मन्दिर में घुस गया। 
17. और अजर्याह याजक उसके बाद भीतर गया, और उसके संग यहोवा के अस्सी याजक भी जो वीर थे गए। 
18. और उन्होंने उज्जिय्याह राजा का साम्हना करके उस से कहा, हे उज्जिय्याह यहोवा के लिथे धूप जलाना तेरा काम नहीं, हारून की सन्तान अर्यात्‌ उन याजकोंही का काम है, जो धूप जलाने को पवित्र किए गए हैं। तू पवित्रस्यान से निकल जा; तू ने विश्वासघात किया है, यहोवा परमेश्वर की ओर से यह तेरी महिमा का कारण न होगा। 
19. तब उज्जिय्याह धूप जलाने को धूपदान हाथ में लिथे हुए फुंफला उठा। और वह याजकोंपर फुंफला रहा या, कि याजकोंके देखते देखते यहोवा के भवन में धूप की वेदी के पास ही उसके माथे पर कोढ़ प्रगट हुआ। 
20. और अजर्याह महाथाजक और सब याजकोंने उस पर दृष्टि की, और क्या देखा कि उसके माथे पर कोढ़ निकला है ! तब उत्होंने उसको वहां से फटपट निकाल दिया, वरन यह जानकर कि यहोवा ने मुझे कोढ़ी कर दिया है, उस ने आप बाहर जाने को उतावली की। 
21. और उज्जिय्याह राजा मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और कोढ़ के कारण अलग एक घर में रहता या, वह तो यहोवा के भवन में जाने न पाता या। और उसका पुत्र योताम राजघराने के काम पर नियुक्त किया गया और वह लोगोंका न्याय भी करता या। 
22. आदि से अन्त तक उज्जिय्याह के और कामोंका वर्णन तो आमोस के पुत्र यशायाह नबी ने लिखा है। 
23. निदान उज्जिय्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया, और उसको उसके पुरखाओं के निकट राजाओं के मिट्टी देने के खेत में मिट्टी दी गई क्योंकि उन्होंने कहा, कि वह कोढ़ी है। और उसका पुत्र योताम उसके स्यान पर राज्य करने लगा।

Chapter 27

1. जब योताम राज्य करने लगा तब वह पक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यरूशा या, जो सादोक की बेठी यी। 
2. उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, अर्यात्‌ जैसा उसके पिता उज्जिय्याह ने किया या, ठीक वैसा ही उस ने भी किया : तौभी वह यहोवा के मन्दिर में न घुसा। और प्रजा के लोग तब भी बिगड़ी चाल चलते थे। 
3. उसी ने यहोवा के भवन के ऊपरवाले फाटक को बनाया, और ओपेल की शहरपनाह पर बहुत कुछ बनवाया। 
4. फिर उस ने यहूदा के पहाड़ी देश में कई नगर दृढ़ किए, और जंगलोंमें गढ़ और गुम्मट बनाए। 
5. और वह अम्मोनियोंके राजा से युद्ध करके उन पर प्रबल हो गया। उसी वर्ष अम्मोनियोंने उसको सौ किक्कार चांदी, और दस दस हजार कोर गेहूं और जव दिया। और फिर दूसरे और तीसरे वर्ष में भी उन्होंने उसे उतना ही दिया। 
6. योंयोताम सामयीं हो गया, क्योंकि वह अपके आप को अपके परमेश्वर यहोवा के सम्मुख जानकर सीधी चाल चलता या। 
7. योताम के और काम और उसके सब युद्ध और उसकी चाल चलन, इन सब बातोंका वर्णन इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास में लिखा है। 
8. जब वह राजा हुआ, तब पक्कीस वर्ष का या; और वह यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। 
9. निदान योताम अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र आहाज उसके स्यान पर राज्य करने लगा।

Chapter 28

1. जब आहाज राज्य करने लगा तब वह बीस वर्ष का या, और सोलह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और अपके मूलपुरुष दाऊद के समान काम नहीं किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या, 
2. परन्तु वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, और बाल देवताओं की मूतिर्यां ढलवाकर बनाई; 
3. और हिन्नोम के बेटे की तराई में धूूप जलाया, और उन जातियोंके घिनौने कामोंके अनुसार जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से निकाल दिया या, अपके लड़केबालोंको आग में होम कर दिया। 
4. और ऊंचे स्यानोंपर, और पहाडिय़ोंपर, और सब हरे वृझोंके तले वह बलि चढ़ाया और धूम जलाया करता या। 
5. इसलिथे उसके परमेश्वर यहोवा ने उसको अरामियोंके राजा के हाथ कर दिया, और वे उसको जीतकर, उसके बहुत से लोगोंको बन्धुआ बनाके दमिश्क को ले गए। और वह इस्राएल के राजा के वश में कर दिया गया, जिस ने उसे बड़ी मार से मारा। 
6. और रमल्याह के पुत्र पेकह ने, यहूदा में एक ही दिन में एक लाख बीस हजार लोगोंको जो सब के सब वीर थे, घात किया, क्योंकि उन्होंने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया या। 
7. और जिक्री नामक एक एप्रैमी वीर ने मासेयाह नामक एक राजपुत्र को, और राजभवन के प्रधान अज्रीकाम को, और एलकाना को, जो राजा का मंत्री या, मार डाला। 
8. और इस्राएली अपके भाइयोंमें से त्रियों, बेटोंऔर बेटियोंको मिलाकर दो लाख लोगोंको बन्धुआ बनाके, और उनकी बहुत लूट भी छीनकर शोमरोन की ओर ले चले। 
9. परन्तु वहां ओदेद नामक यहोवा का एक नबी या; वह शोमरोन को आनेवाली सेना से मिलकर उन से कहने लगा, सुनो, तुम्हारे पितरोंके परमेश्वर यहोवा ने यहूदियोंपर फुंफलाकर उनको तुम्हारे हाथ कर दिया है, और तुम ने उनको ऐसा क्रोध करके घात किया जिसकी चिल्लाहट स्वर्ग को पहुंच गई है। 
10. और अब तुम ने ठाना है कि यहूदियोंऔर यरूशलेमियोंको अपके दास-दासी बनाकर दबाए रखो। क्या तुम भी अपके परमेश्वर यहोवा के यहां दाषी नहीं हो? 
11. इसलिथे अब मेरी सुनो और इन बन्धुओं को जिन्हें तुम अपके भाइयोंमें से बन्धुआ बनाके ले आए हो, लौटा दो, यहोवा का क्रोध तो तुम पर भड़का है। 
12. तब एप्रैमियोंके कितने मुख्य पुरुष अर्यात्‌ योहानान का पुत्र अजर्याह, मशिल्लेमोत का पुत्र बेरेक्याह, शल्लूम का पुत्र यहिजकिय्याह, और हदलै का पुत्र अमासा, लड़ाई से आनेवालोंका साम्हना करके, उन से कहने लगे। 
13. तुम इन बन्धुओं को यहां मत लाओ; क्योंकि तुम ने वह बात ठानी है जिसके कारण हम यहोवा के यहां दोषी हो जाएंगे, और उस से हमारा पाप और दोष बढ़ जाएगा, हमारा दोष तो बड़ा है और इस्राएल पर बहुत क्रोध भड़का है। 
14. तब उन हयियार बन्धोंने बन्धुओं और लूट को हाकिमोंऔर सारी सभा के साम्हने छोड़ दिया। 
15. तब जिन पुरुषोंके नाम ऊपर लिखे हैं, उन्होंने उठकर बन्धुओं को ले लिया, और लूट में से सब नंगे लोगोंको कपके, और जूतियां पहिनाई; और खाना खिलाया, और पानी पिलाया, और तेल मला; और तब निर्बल लोगोंको गदहोंपर चढ़ाकर, यरीहो को जो खजूर का नगर कहलाता है, उनके भाइयोंके पास पहुंचा दिया। तब वे शोमरोन को लौट आए। 
16. उस समय राजा आहाज ने अश्शूर के राजाओं के पास दूत भेजकर सहाथता मांगी। 
17. क्योंकि एदोमियोंने यहूदा में आकर उसको मारा, और बन्धुओं को ले गए थे। 
18. और पलिश्तयोंने नीचे के देश और यहूदा के दक्खिन देश के नगरोंपर चढ़ाई करके, बेतशेमेश, अय्यालोन और गदेरोत को, और अपके अपके गांवोंसमेत सोको, तिम्ना, और गिमजो को ले लिया; और उन में रहने लगे थे। 
19. योंयहोवा ने इस्राएल के राजा आहाज के कारण यहूदा को दबा दिया, क्योंकि वह निरंकुश होकर चला, और यहोवा से बड़ा विश्वासघात किया। 
20. तब अश्शूर का राजा तिलगतपिलनेसेर उसके विरुद्ध आया, और उसको कष्ट दिया; दृढ़ नहीं किया। 
21. आहाज ने तो यहोवा के भवन और राजभवन और हाकिमोंके घरोंमें से धन निकालकर अश्शूर के राजा को दिया, परन्तु इससे उसकी कुछ सहाथता न हुई। 
22. और क्लेश के समय राजा आहाज ने यहोवा से और भी विश्वासघात किया। 
23. और उस ने दमिश्क के देवताओं के लिथे जिन्होंने उसको मारा या, बलि चढ़ाया; क्योंकि उस ने यह सोचा, कि आरामी राजाओं के देवताओं ने उनकी यहाथता की, तो मैं उनके लिथे बलि चढ़ाऊंगा कि वे मेरी सहाथता करें। परन्तु वे उसके और सारे इस्राएल के पतन का कारण हुए। 
24. फिर आहाज ने परमेश्वर के भवन के पात्र बटोरकर तुड़वा डाले, और यहोवा के भवन के द्वारोंको बन्द कर दिया; और यरूशलेम के सब कोनोंमें वेदियां बनाई। 
25. और यहूदा के एक एक नगर में उस ने पराथे देवताओं को धूप जलाने के लिथे ऊंचे स्यान बनाए, और अपके मितरोंके परमेश्वर यहोवा को रिस दिलाई। 
26. और उसके और कामों, और आदि से अन्त तक उसकी पूरी चाल चलन का वर्णन यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 
27. निदान आहाज अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसको यरूशलेम नगर में मिट्टी दी गई, परन्तु वह इस्राएल के राजाओं के कब्रिस्तान में पहुंचाया न गया। और उसका पुत्र हिजकिय्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।

Chapter 29

1. जब हिजकिय्याह राज्य करने लगा तब वह पक्कीस वर्ष का या, और उनतीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का ताम अबिय्याह या, जो जकर्याह की बेटी यी। 
2. जैसे उसके मूलपुरुष दाऊद ने किया या अर्यात्‌ जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या वैसा ही उस ने भी किया। 
3. अपके राज्य के पहिले वर्ष के पहिले महीने में उस ने यहोवा के भवन के द्वार खुलवा दिए, और उनकी मरम्मत भी कराई। 
4. तब उस ने याजकोंऔर लेवियोंको ले आकर पूर्व के चौक में इकट्ठा किया। 
5. और उन से कहने लगा, हे लेवियो मेरी सुनो ! अब अपके अपके को पवित्र करो, और अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा के भवन को पवित्र करो, और पवित्रस्यान में से मैल निकालो। 
6. देखो हमारे पुरखाओं ने विश्वासघात करके वह कर्म किया या, जो हमारे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है और उसको तज करके यहोवा के निवास से मुंह फेरकर उसको पीठ दिखाई यी। 
7. फिर उन्होंने ओसारे के द्वार बन्द किए, और दीपकोंको बुफा दिया या; और पवित्र स्यान में इस्राएल के परमेश्वर के लिथे न तो धूप जलाया और न होमबलि चढ़ाया या। 
8. इसलिथे यहोवा का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का है, और उस ने ऐसा किया, कि वे मारे मारे फिरें और चकित होने और ताली बजाने का कारण हो जाएं, जैसे कि तुम अपक्की आंखोंसे देख रहे हो। 
9. देखो, अस कारण हमारे बाप तलवार से मारे गए, और हमारे बेटे-बेटियां और स्त्रियां बन्धुआई में चक्की गई हैं। 
10. अब मेरे मन ने यह निर्णय किया है कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से वाचा बान्धूं, इसलिथे कि उसका भड़का हुआ क्रोध हम पर से दूर हो जाए। 
11. हे मेरे बेटो, ढिलाई न करो देखो, यहोवा ने अपके सम्मुख खड़े रहने, और अपक्की सेवा टहल करने, और अपके टहलुए और धूप जलानेवाले का काम करने के लिथे तुम्हीं को चुन लिया है। 
12. तब लेवीय उठ खड़े हुए, अर्यात्‌ कहातियोंमें से अमासै का पुत्र महत, और अजर्याह का पुत्र योएल, और मरारियोंमें से अब्दी का पुत्र कीश, और यहल्लेलेल का पुत्र अजर्याह, और गेशॉनियोंमें से जिम्मा का पुत्र योआह, और योआह का पुत्र एदेन। 
13. और एलीसापान की सन्तान में से शिम्री, और यूएल और आसाप की सन्तान में से जकर्याह और मत्तन्याह। 
14. और हेमान की सन्तान में से यहूएल और शिमी, और यदूतून की सन्तान में से शमायाह और उज्जीएल। 
15. इन्होंने अपके भाइयोंको इकट्ठा किया और अपके अपके को पवित्र करके राजा की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने यहोवा से वचन पाकर दी यी, यहोवा के भवन के शुद्ध करने के लिथे भीतर गए। 
16. तब याजक यहोवा के भवन के भीतरी भाग को शुद्ध करने के लिथे उस में जाकर यहोवा के मन्दिर में जितनी अशुद्ध वस्तुएं मिीं उन सब को निकालकर यहोवा के भवन के आंगन में ले गए, और लेवियोंने उन्हें उठाकर बाहर किद्रोन के नाले में पहुंचा दिया। 
17. पहिले महीने के पहिले दिन को उन्होंने पवित्र करने का काम आरम्भ किया, और उसी महीने के आठवें दिन को वे यहोवा के ओसारे तक आ गए। इस प्रकार उन्होंने यहोवा के भवन को आठ दिन में पवित्र किया, और पहिले महीने के सोलहवें दिन को उन्होंने उस काम को पूरा किया। 
18. तब उन्होंने राजा हिजकिय्याह के पास भीतर जाकर कहा, हम यहोवा के पूरे भवन को और पात्रोंसमेत होमबलि की वेदी और भेंट की रोटी की मेज को भी शुद्ध कर चुके। 
19. और जितने पात्र राजा आहाज ने अपके राज्य में विश्वासघात करके फेंक दिए थे, उनको भी हम ने ठीक करके पवित्र किया है; और वे यहोवा की वेदी के साम्हने रखे हुए हैं। 
20. तब राजा हिजकिय्याह सबेरे उठकर नगर के हाकिमोंको इकट्ठा करके, यहोवा के भवन को गया। 
21. तब वे राज्य और पवित्रस्यान और यहूदा के निमित्त सात बछड़े, सात मेढ़े, सात भेड़ के बच्चे, और पापबलि के लिथे सात बकरे ले आए, और उस ने हारून की सन्तान के लेवियोंको आज्ञा दी कि इन सब को यहोवा की वेदी पर चढ़ाएं। 
22. तब उन्होंने बछड़े बलि किए, और याजकोंने उनका लोहू लेकर वेदी पर छिड़क दिया; तब उन्होंने मेढ़े बलि किए, और उनका लोहू भी वेदी पर छिड़क दिया। और भेड़ के बच्चे बलि किए, और उनका भी लोहू वेदी पर छिडक दिया। 
23. तब वे पापबलि के बकरोंको राजा और मण्डली के समीप ले आए और उन पर अपके अपके हाथ रखे। 
24. तब याजकोंने उनको बलि करके, उनका लोहू वेदी पर छिड़क कर पापबलि किया, जिस से सारे इस्राएल के लिथे प्रायश्चित्त किया जाए। क्योंकि राजा ने सारे इस्राएल के लिथे होमबलि और पापबलि किए जाने की आज्ञा दी यी। 
25. फिर उस ने दाऊद और राजा के दशीं गाद, और नातान नबी की आज्ञा के अनुसार जो यहोवा की ओर से उसके नबियोंके द्वारा आई यी, फांफ, सारंगियां और वीणाएं लिए हुए लेवियोंको यहोवा के भवन में खड़ा किया। 
26. तब लेवीय दाऊद के चलाए बाजे लिए हुए, और याजक तुरहियां लिए हुए खड़े हुए। 
27. तब हिजकिय्याह ने वेदी पर होमबलि चढ़ाने की आज्ञा दी, और जब होमबलि चढ़ने लगी, तब यहोवा का गीत आरम्भ हुआ, और तुरहियां और इस्राएल के राजा दाऊद के बाजे बजने लगे। 
28. और मण्डली के सब लोग दणडवत करते और गानेवाले गाते और तुरही फूंकनेवाले फूंकते रहे; यह सब तब तक होता रहा, जब तक होमबलि चढ़ न चुकी। 
29. और जब बलि चढ़ चुकी, तब राजा और जितने उसके संग वहां थे, उन सभोंने सिर फुकाकर दणडवत किया। 
30. और राजा हिजकिय्याह और हाकिमोंने लेवियोंको आज्ञा दी, कि दाऊद और आसाप दशीं के भजन गाकर यहोवा की स्तुति करें। और उन्होंने आनन्द के साय स्तुति की और सिर नवाकर दणडवत किया। 
31. तब हिजकिय्याह कहने लगा, अब तुम ने यहोवा के निमित्त अपना अर्पण किया है; इसलिथे समीप आकर यहोवा के भवन में मेलबलि और धन्यवादबलि पहुंचाओ। तब मण्डली के लोगोंने मेलबलि और धन्यवादबलि पहुंचा दिए, और जितने अपक्की इच्छा से देना चाहते थे उन्होंने भी होमबलि पहुंचाए। 
32. जो होमबलि पशु मण्डली के लाग ले आए, उनकी गिनती यह यी; सत्तर बैल, एक सौ मेढ़े, और दो सौ भेड़ के बच्चे; थे सब यहोवा के निमित्त होमबलि के काम में आए। 
33. और पवित्र किए हुए पशु, छ: सौ बैल और तीन हजार भेड़-बकरियां यी। 
34. परन्तु याजक ऐसे थेड़े थे, कि वे सब होमबलि पशुओं की खालें न उतार सके, तब उनके भाई लेवीय उस समय तक उनकी सहाथता करते रहे जब तक वह काम निपट न गया, और याजकोंने अपके को पवित्र न किया; क्योंकि लेवीय अपके को पवित्र करने के लिथे पवित्र याजकोंसे अधिक सीधे मन के थे। 
35. और फिर होमबलि पशु बहुत थे, और मेलबलि पशुओं की चक्कीं भी बहुत यी, और एक एक होमबलि के साय अर्ध भी देना पड़ा। योंयहोवा के भवन में की उपासना ठीक की गई। 
36. तब हिजकिय्याह और सारी प्रजा के लोग उस काम के कारण आनन्दित हुए, जो यहोवा ने अपक्की प्रजा के लिथे तैयार किया या; क्योंकि वह काम एकाएक हो गया या।

Chapter 30

1. फिर हिजकिय्याह ने सारे इस्राएल और यहूदा में कहला भेजा, और एप्रैम और मनश्शे के पास इस आशय के पत्र लिख भेजे, कि तुम यरूशलेम को यहोवा के भवन में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिथे फसह मनाने को आओ। 
2. राजा और उसके हाकिमोंऔर यरूशलेम की मणडली ने सम्मति की यी कि फसह को दूसरे महीने में मनाएं। 
3. वे उसे उस समय इस कारण न मना सकते थे, क्योंकि योड़े ही याजकोंने अपके अपके को पवित्र किया या, और प्रजा के लोग यरूशलेम में इकट्ठे न हुए थे। 
4. और यह बात राजा और सारी मणडली को अच्छी लगी। 
5. तब उन्होंने यह ठहरा दिया, कि बेर्शेबा से लेकर दान के सारे इस्राएलियोंमें यह प्रचार किया जाय, कि यरूशलेम में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिथे फसह मनाने को चले आओ; क्योंकि उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में उसको इस प्रकार न मनाया या जैसा कि लिखा है। 
6. इसलिथे हरकारे राजा और उसके हाकिमोंसे चिट्ठियां लेकर, राजा की आज्ञा के अनुसार सारे इस्राएल और यहूदा में घूमे, और यह कहते गए, कि हे इस्राएलियो ! इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो, कि वह अश्शूर के राजाओं के हाथ से बचे हुए तुम लोगाोंकी ओर फिरे। 
7. और अपके पुरखाओं और भाइयोंके समान मत बनो, जिन्होंने अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा से विश्वासघात किया या, और उस ने उन्हें चकित होने का कारण कर दिया, जैसा कि तुम स्वयं देख रहे हो। 
8. अब अपके पुरखाओं की नाई हठ न करो, वरन यहोवा के अधीन होकर उसके उस पवित्रस्यान में आओ जिसे उस ने सदा के लिथे पवित्र किया है, और अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना करो, कि उसका भड़का हुआ क्रोध तुम पर से दूर हो जाए। 
9. यदि तुम यहोवा की ओर फिरोगे तो जो तुम्हारे भाइयोंऔर लड़केबालोंको बन्धुआ बनाके ले गए हैं, वे उन पर दया करेंगे, और वे इस देश में लौट सकेंगे क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु है, और यदि तुम उसकी ओर फिरोगे तो वह अपना मुंह तुम से न मोड़ेगा। 
10. इस प्रकार हरकारे एप्रैम और मनश्शे के देशें में नगर नगर होते हुए जबूलून तक गए; परन्तु उन्होंने उनकी हंसी की, और उन्हें ठट्ठोंमें उड़ाया। 
11. तौभी आशेर, मनश्शे और जबूलून में से कुछ लोग दीन होकर यरूशलेम को आए। 
12. और यहूदा में भी परमेश्वर की ऐसी शक्ति हुई, कि वे एक मन होकर, जो आज्ञा राजा और हाकिमोंने यहोवा के वचन के अनुसार दी यी, उसे मानने को तैयार हुए। 
13. इस प्रकार अधिक लोग यरूशलेम में इसलिथे इकट्ठे हुए, कि दूसरे महीने में अखमीरी रोटी का पर्व्व मानें। और बहुत बड़ी सभा इकट्ठी हो गई। 
14. और उन्होंने उठकर, यरूशलेम की वेदियोंऔर धूम जलाने के सब स्यानोंको उठाकर किद्रोन नाले में फेंक दिया। 
15. तब दूसरे महीने के चौदहवें दिन को उन्होंने फसह के पशु बलि किए तब याजक और लेवीय लज्जित हुए और अपके को पवित्र करके होमबलियोंको यहोवा के भवन में ले आए। 
16. और वे अपके नियम के अनुुसार, अर्यात्‌ परमेश्वर के जन मूसा की व्यवस्या के अनुसार, अपके अपके स्यान पर खड़े हुए, और याजकोंने रक्त को लेवियोंके हाथ से लेकर छिड़क दिया। 
17. क्योंकि सभा में बहुते ऐसे थे जिन्होंने अपके को पवित्र न किया या; इसलिथे सब अशुद्ध लोगोंके फसह के पशुओं को बलि करने का अधिक्कारने लेवियोंको दिया गया, कि उनको यहोवा के लिथे पवित्र करें। 
18. बहुत से लोगोंने अर्यात्‌ एप्रैम, मनश्शे, इस्साकार और जबूलून में से बहुतोंने अपके को शुद्ध नहीं किया या, तौभी वे फसह के पशु का मांस लिखी हुई विधि के विरुद्ध खाते थे। क्योंकी हिजकिय्याह ने उनके लिथे यह प्रार्यना की यी, कि यहोवा जो भला है, वह उन सभोंके पाप ढांप दे; 
19. जो परमेश्वर की अर्यात्‌ अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा की खोज में मन लगाए हुए हैं, चाहे वे पवित्रस्यान की विधि के अनुसार शुद्ध न भी हों। 
20. और यहोवा ने हिजकिय्याह की यह प्रार्यन सुनकर लोगोंको चंगा किया। 
21. और जो इस्राएली यरूशलेम में उपस्यित थे, वे सात दिन तक अखमीरी रोटी का पर्व्व बड़े आनन्द से मनाते रहे; और प्रतिदिन लेवीय और याजक ऊंचे शब्द के बाजे यहोवा के लिथे बजाकर यहोवा की स्तुति करते रहे। 
22. और जितने लेवीय यहोवा का भजन बुद्धिमानी के साय करते थे, उनको हिजकिय्याह ने शान्ति के वचन कहे। इस प्रकार वे मेलबलि चढ़ाकर और अपके पुर्वजोंके परमेश्वर यहोवा के सम्मुख पापांगीकार करते रहे और उस नियत पर्व्व के सातोंदिन तक खाते रहे। 
23. तब सारी सभा ने सम्मति की कि हम और सात दिन वर्व मानेंगे; सो उन्होंने और सात दिन आनन्द से पर्व्व मनाया। 
24. क्योंकि यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने सभा को एक हजार बछड़े और सात हजार भेड़-बकरियां दे दीं, और हाकिमोंने सभा को एक हजार बछड़े और दस हजार भेड़-बकरियां दीं, और बहुत से याजकोंने अपके को पवित्र किया। 
25. तब याजकोंऔर लेवियोंसमेत यहूदा की सारी सभा, और इस्राएल से आए हुओं की सभा, और इस्राएल के देश से आए हुए, और यहूदा में रहनेवाले परदेशी, इन सभोंने आनन्द किया। 
26. सो यरूशलेम में बड़ा आनन्द हुआ, क्योंकि दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान के दिनोंसे ऐसी बात यरूशलेम में न हुई यी। 
27. अन्त में लेवीय याजकोंने खड़े होकर प्रजा को आशीर्वाद दिया, और उनकी सुनी गई, और उनकी प्रार्यना उसके पपित्र धाम तक अर्यात्‌ स्वर्ग तक पहुंची।

Chapter 31

1. जब यह सब हो चुका, तब जितने इस्राएली अपस्यित थे, उन सभोंने यहूदा के नगरोंमें जाकर, सारे यहूदा और बिन्यामीन और एप्रेम और मनश्शे में कि लाठोंको तोड़ दिया, अशेरोंको काट डाला, और ऊंचे स्यानोंऔर वेदियोंको गिरा दिया; और उन्होंने उन सब का अन्त कर दिया। तब सब इस्राएली अपके अपके नगर को लौटकर, अपक्की अपक्की निज भूमि में पहुंचे। 
2. और हिजकिय्याह ने याजकोंके दलोंको और लेवियोंको वरन याजकोंऔर लेवियोंदोनोंको, प्रति दल के अनुसार और एक एक मतुष्य को उसकी सेवकाई के अनुसार इसलिथे ठहरा दिया, कि वे यहोवा की छावनी के द्वारोंके भीतर होमबलि, मेलबलि, सेवा टहल, धन्यवाद और स्तुति किया करें। 
3. फिर उस ने अपक्की सम्पत्ति में से राजभाषा को होमबलियोंके लिथे ठहरा दिया; अर्यत्‌ सबेरे और सांफ की होमबलि और विश्रम और नथे चांद के दिनोंऔर नियत समयोंकी होमबलि के लिथे जैसा कि यहोवा की व्यवस्या में लिखा है। 
4. और उस ने यरूशलेम में रहनेवालोंको याजकोंऔर लेवियोंको उनका भाग देने की आज्ञा दी, ताकि वे यहोवा की व्यवस्या के काम मन लगाकर कर सकें। 
5. यह आज्ञा सुनते ही इस्राएली अन्न, नया दाखमधु, टटका तेल, मधु आादि खेती की सब भांति की पहिली उपज बहुतायत से देने, और सब वस्तुओं का दशमांश अधिक मात्रा में लाने लगे। 
6. और जो इस्राएली और यहूदी, यहूदा के नगरोंमें रहते थे, वे भी बैलोंऔर भेड़-बकरियोंका दशमांश, और उन पवित्र वस्तुओं का दशमांश, जो उनके परमेश्वर यहोवा के निमित्त पवित्र की गई यीं, लाकर ढेर ढेर करके रखने लगे। 
7. इस प्रकार ढेर का लगाना उन्होंने तीसरे महीने में आरम्भ किया और सातवें महीने में पूरा किया। 
8. जब हिजकिय्याह और हाकिमोंने आकर उन ढेरोंको देखा, तब यहोवा को और उसकी प्रजा इस्राएल को धन्य धन्य कहा। 
9. तब हिजकिय्याह ने याजकोंऔर लेवियोंसे उन ढेरोंके विषय पूछा। 
10. और अजर्याह महाथाजक ने जो सादोक के घराने का या, उस से कहा, जब से लोग यहोवा के भवन में उठाई हुई भेंटें लाने लगे हैं, तब से हम लोग पेट भर खाने को पाते हैं, वरन बहुत बचा भी करता है; क्योंकि यहोवा ने अपक्की प्रजा को आशीष दी है, और जो शेष रह गया है, उसी का यह बड़ा ढेर है। 
11. तब हिजकिय्याह ने यहोवा के भवन में कोठरियां तैयार करने की आज्ञा दी, और वे तैयार की गई। 
12. तब लोगोंने उठाई हुई भेंटें, दशमांश और पवित्र की हुई वस्तुएं, सच्चाई से पहुंचाई और उनके मुख्य अधिक्कारनेी तो कोनन्याह नाम एक लेवीय और इूसरा उसका भाई शिमी नायब या। 
13. और कोनन्याह और उसके भाई शिमी के नीचे, हिजकिय्याह राजा और परमेश्वर के भवन के प्रधान अजर्याह दोनोंकी आज्ञा से अहीएल, अजज्याह, नहत, असाहेल, यरीमेत, योजाबाद, एलीएल, यिस्मक्याह, महत और बनायाह अधिक्कारनेी थे। 
14. और परमेश्वर के लिथे स्वेच्छाबलियोंका अधिक्कारनेी यिम्ना लेवीय का पुत्र कोरे या, जो पूर्व फाटक का द्वारापाल या, कि वह यहोवा की उठाई हुई भेंटें, और परमपवित्र वस्तुएं बांटा करे। 
15. और उसके अधिक्कारने में एदेन, मिन्यामीन, थेशू, शमायाह, अमर्याह और शकन्याह याजकोंके नगरोंमें रहते थे, कि वे क्या बड़े, क्या छोटे, अपके भाइयोंको उनके दलोंके अनुसार सच्चाई से दिया करें, 
16. और उनके अलावा उनको भी दें, जो पुरुषोंकी वंशावली के अनुसार गिने जाकर तीन वर्ष की अवस्या के वा उस से अधिक आयु के थे, और अपके अपके दल के अनुसार अपक्की अपक्की सेवकाई निबाहने को दिन दिन के काम के अनुसार यहोवा के भवन में जाया करते थे। 
17. और उन याजकोंको भी दें, जिनकी वंशावली उनके पितरोंके घरानोंके अनुसार की गई, और उन लेवियोंको भी जो बीस वर्ष की अवस्या से ले आगे को अपके अपके दल के अनुसार, अपके अपके काम निबाहते थे। 
18. और सारी सभा में उनके बालबच्चों, स्त्रियों, बेटोंऔर बेटियोंको भी दें, जिनकी वंशवली यी, क्योंकि वे सच्चाई से अपके को पवित्र करते थे। 
19. फिर हारून की सन्तान के याजकोंको भी जो अपके अपके नगरोंके चराईवाले मैदान में रहते थे, देने के लिथे वे पुरुष नियुक्त किए गए थे जिनके नाम ऊपर लिखे हुए थे कि वे याजकोंके सब पुरुषोंऔर उन सब लेवियोंको भी उनका भाग दिया करें जिनकी वंशावली यी। 
20. और सारे यहूदा में भी हिजकिय्याह ने ऐसा ही प्रबन्ध किया, और जो कुछ उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला ओर ठीक और सच्चाई का या, उसे वह करता या। 
21. और जो जो काम उस ने परमेश्वर के भवन की उपासना और व्यवस्या और आज्ञा के विषय अपके परमेश्वर की खोज में किया, वह उस ने अपना सारा मन लगाकर किया और उस में कृतार्य भी हुआ।

Chapter 32

1. इन बातोंऔर ऐसे प्रबन्ध के बाद अश्शूर का राजा सन्हेरीब ने आकर यहूदा में प्रवेश कर ओर गढ़वाले नगरोंके विरुद्ध डेरे डालकर उनको अपके लाभ के लिथे लेना चाहा। 
2. यह देखकर कि सन्हेरीब निकट आया है और यरूशलेम से लड़ने की मनसा करता है, 
3. हिजकिय्याह ने अपके हाकिमोंऔर वीरोंके साय यह सम्मति की, कि नगर के बाहर के सोतोंको पठवा दें; और उन्होंने उसकी सहाथता की। 
4. इस पर बहुत से लोग इकट्ठे हुए, और यह कहकर, कि अश्शूर के राजा क्योंयहां आएं, और आकर बहुत पानी पाएं, उन्होंने सब सोतोंको पाट दिया और उस नदी को सुखा दिया जो देश के मध्य होकर बहती यी। 
5. फिर हिजकिय्याह ने हियाव बान्धकर शहरपनाह जहां कहीं टूटी यी, वहां वहां उसको बनवाया, और उसे गुम्मटोंके बराबर ऊंचा किया और बाहर एक और शहरपनाह बनवाई, और दाऊदपुर में मिल्लो को दृढ़ किया। और बहुत से तीर और ढालें भी बनवाई। 
6. तब उस ने प्रजा के ऊपर सेनापति नियुक्त किए और उनको नगर के फाटक के चौक में इकट्ठा किया, और यह कहकर उनको धीरज दिया, 
7. कि हियाव बान्धो और दृढ हो तुम न तो अश्शूर के राजा से डरो और न उसके संग की सारी भीड़ से, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; क्योंकि जो हमारे साय है, वह उसके संगियोंसे बड़ा है। 
8. अर्यात्‌ उसका सहारा तो मतुष्य ही है परन्तु हमारे साय, हमारी सहाथता और हमारी ओर से युद्ध करने को हमारा परमेश्वर यहोवा है। इसलिथे प्रजा के लोग यहूदा के राजा हिजकिय्याह की बातोंपर भरोसा किए रहे। 
9. इसके बाद अश्शूर का राजा सन्हेरीब जो सारी सेना समेत लाकीश के साम्हने पड़ा या, उस ने अपके कर्मचारियोंको यरूशलेम में यहूदा के राजा हिजकिय्याह और उन सब यहूदियोंसे जो यरूशलेम में थे योंकहने के लिथे भेजा, 
10. कि अश्शूर का राजा सन्हेरीब कहता है, कि तुम्हें किस का भरोसा है जिससे कि तुम घेरे हुए यरूशलेम में बैठे हो? 
11. क्या हिजकिय्याह तुम से यह कहकर कि हमारा परमेश्वर यहोवा हम को अश्शूर के राजा के पंजे से बचाएगा तुम्हें नहीं भरमाता है कि तुम को भूखोंप्यासोंमारे? 
12. क्या उसी हिजकिय्याह ने उसके ऊंचे स्यान और वेदियो दूर करके यहूदा और यरूशलेम को आज्ञा नहीं दी, कि तुम एक ही वेदी के साम्हने दणडवत करना और उसी पर धूप जलाना? 
13. क्या तुम को मालूम नहीं, कि मैं ने और मेरे पुरखाओं ने देश देश के सब लोगोंसे क्या क्या किया है? क्या उन देशें की जातियोंके देवता किसी भी उपाय से अपके देश को मेरे हाथ से बचा सके? 
14. जितनी जातियोंका मेरे पुरखाओं ने सत्यानाश किया है उनके सब देवताओं में से ऐसा कौन या जो अपक्की प्रजा को मेरे हाथ से बचा सका हो? फिर तुम्हारा देवता तुम को मेरे हाथ से कैसे बचा सकेगा? 
15. अब हिजकिय्याह तुम को इस रीति भुलाने अयवा बहकाने न पाए, और तुम उसकी प्रतीति न करो, क्योंकि किसी जाति या राज्य का कोई देवता अपक्की प्रजा को न तो मेरे हाथ से और न मेरे पुरखाओं के हाथ से बचा सका। यह निश्चय है कि तुम्हारा देवता तुम को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा। 
16. इस से भी अधिक उसके कर्मचारियोंने यहोवा परमेश्वर की, और उसके दास हिजकिय्याह की निन्दा की। 
17. फिर उस ने ऐसा एक पत्र भेजा, जिस में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की निन्दा की थे बातें लिखी यीं, कि जैसे देश देश की जातियोंके देवताओं ने अपक्की अपक्की प्रजा को मेरे हाथ से नहीं बचाया वैसे ही हिजकिय्याह का देवता भी अपक्की प्रजा को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा। 
18. और उन्होंने ऊंचे शब्द से उन यरूशलेमियोंको जो शहरपनाह पर बैठे थे, यहूदी बोली में पुकारा, कि उनको डराकर घबराहट में डाल दें जिस से नगर को ले लें। 
19. और उन्होंने यरूशलेम के परमेश्वर की ऐसी चर्चा की, कि मानो पृय्वी के देश देश के लोगोंके देवताओं के बराबर हो, जो मनुष्योंके बनाए हुए हैं। 
20. तब इन घटनाओं के कारण राजा हिजकिय्याह और आमोस के पुत्र यशायाह नबी दोनोंने प्रार्यना की और स्वर्ग की ओर दोहाई दी। 
21. तब यहोवा ने एक दूत भेज दिया, जिस ने अश्शूर के राजा की छावनी में सब शूरवीरों, प्रधानोंऔर सेनापतियोंको नाश किया। और वह लज्जित होकर, आने देश को लौट गया। और जब वह अपके देवता के भवन में या, तब उसके निज पुत्रोंने वहीं उसे तलवार से मार डाला। 
22. योंयहोवा ने हिजकिय्याह और यरूशलेम के निवासिक्कों अश्शूर के राजा सन्हेरीब और अपके सब शत्रुओं के हाथ से बचाया, और चारोंओर उनकी अगुवाई की। 
23. और बहुत लोग यरूशलेम को यहोवा के लिथे भेंट और यहूदा के राजा हिजकिय्याह के लिथे अनमोल वस्तुएं ले आने लगे, और उस समय से वह सब जातियोंकी दृष्टि में महान ठहरा। 
24. उन दिनोंहिजकिय्याह ऐसा रोगी हुआ, कि वह मरा चाहता या, तब उस ने यहोवा से प्रार्यना की; और उस ने उस से बातें करके उसके लिथे एक चमत्कार दिखाया। 
25. परन्तु हिजकिय्याह ने उस उपकार का बदला न दिया, क्योंकि उसका मन फूल उठा या। इस कारण उसका कोप उस पर और यहूदा और यरूशलेम पर भड़का। 
26. तब हिजकिय्याह यरूशलेम के निवासियोंसमेत अपके मन के फूलने के कारण दीन हो गया, इसलिथे यहोवा का क्रोध उन पर हिजकिय्याह के दिनोंमें न भड़का। 
27. और हिजकिय्याह को बहुत ही धन और विभव मिला; और उस ने चान्दी, सोने, मणियों, सुगन्धद्रव्य, ढालोंऔर सब प्रकार के मनभावने पात्रोंके लिथे भणडार बनवाए। 
28. फिर उस ने अन्न, नया दाखमधु, और टटका लेल के लिथे भणडार, और सब भांति के पशुओं के लिथे यान, और भेड़-बकरियोंके लिथे भेड़शालाएं बनवाई। 
29. और उस ने नगर बसाए, और बहुत ही भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैलोंकी सम्पत्ति इकट्ठा कर ली, क्योंकि परमेश्वर ने उसे बहुत ही धन दिया या। 
30. उसी हिजकिय्याह ने गीहोन नाम नदी के ऊपर के सोते को पाटकर उस नदी को नीचे की ओर दाऊदपुर की पच्छिम अलंग को सीधा पहुंचाया, और हिजकिय्याह अपके सब कामोंमें कृतार्य होता या। 
31. तौभी जब बाबेल के हाकिमोंने उसके पास उसके देश में किए हुए चमत्कार के विषय पूछने को दूत भेजे तब परमेश्वर ने उसको इसलिथे छोड़ दिया, कि उसको परख कर उसके मन का सारा भेद जान ले। 
32. हिजकिय्याह के और काम, ओर उसके भक्ति के काम आमोस के पुत्र यशायाह नबी के दर्शन नाम पुस्तक में, और यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 
33. अन्त में हिजकिय्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसको दाऊद की सन्तान के कब्रिस्तान की चढाई पर मिट्टी दी गई, और सब यहूदियोंऔर यरूशलेम के निवासियोंने उसकी मृत्यु पर उसका आदरमान किया। और उसका पुत्र मनश्शे उसके स्यान पर राज्य करने लगा।

Chapter 33

1. जब मनश्शे राज्य करने लगा तब वह बारह वर्ष का या, और यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राज्य करता रहा। 
2. उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात्‌ उन जातियोंके घिनौने कामोंके अनुसार जिनको यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से तिकाल दिया या। 
3. उस ने उन ऊंचे स्यानोंको जिन्हें उसके पिता हिजकिय्याह ने तोड़ दिया या, फिर बनाया, और बाल नाम देवताओं के लिथे वेदियां ओर अशेरा नाम मूरतें बनाई, और आकाश के सारे गण को दणडवत करता, और उनकी उपासना करता रहा। 
4. और उस ने यहोवा के उस भवन मे वेदियां बनाई जिसके विषय यहोवा ने कहा या कि यरूशलेम में मेरा नाम सदा बना रहेगा। 
5. वरन यहोवा के भवन के दोनोंआंगनोंमें भी उस ने आकाश के सारे गण के लिथे वेदियां बनाई। 
6. फिर उस ने हिन्नोम के बेटे की तराई में अपके लड़केबालोंको होम करके चढ़ाया, और शुभ-अशुभ मुहूतॉं को मानता, और टोना और तंत्र-मंत्र करता, और ओफोंऔर भूतसिद्धिवालोंसे व्यवहार करता या। वरन उस ने ऐसे बहुत से काम किए, जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं और जिन से वह अप्रसन्न होता है। 
7. और उस ने अपक्की खुदवाई हुई मूत्तिर् परमेश्वर के उस भवन में स्यापन की जिसके विषय परमेश्वर ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा या, कि इस भवन में, और यरूशलेम में, जिसको मैं ने इस्राएल के सब गोत्रोंमें से चुन लिया है मैं आना नाम सर्वदा रखूंगा, 
8. और मैं ऐसा न करूंगा कि जो देश मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दिया या, उस में से इस्राएल फिर मारा मारा फिरे; इतना अवश्य हो कि वे मेरी सब आज्ञाओं को अर्यात्‌ मूसा की दी हुई सारी व्यवस्या और विधियोंऔर नियमोंको पालन करने की चौकसी करें। 
9. और मनश्शे ने यहूदा और यरूशलेम के निवासिक्कों यहां तक भटका दिया कि उन्होंने उन जातियोंसे भी बढ़कर बुराई की, जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से विनाश किया या। 
10. और यहोवा ने मनश्शे और उसकी प्रजा से बातें कीं, परन्तु उन्होंने कुछ ध्यान नहीं दिया। 
11. तब यहोवा ने उन पर अश्शूर के सेनापतियोंसे चढ़ाई कराई, और थे मनश्शे को नकेल डालकर, और पीतल की बेडिय़ां जकड़कर, उसे बाबेल को ले गए। 
12. तब संकट में पड़कर वह अपके परमेश्वर यहोवा को मानने लगा, और अपके पूर्वजोंके परमेश्वर के साम्हने बहुत दीन हुआ, और उस से प्रार्यना की। 
13. तब उस ने प्रसन्न होकर उसकी बिनती सुनी, और उसको यरूशलेम में पहुंचाकर उसका राज्य लौटा दिया। तब मनश्शे को निश्चय हो गया कि यहोवा ही परमेश्वर है। 
14. इसके बाद उस ने दाऊदमुर से बाहर गीहोन के पश्चिम की ओर नाले में मच्छली फाटक तक एक शहरपनाह बनवाई, फिर ओपेल को घेरकर बहुत ऊंचा कर दिया; और यहूदा के सब गढ़वाले नगरोंमें सेनापति ठहरा दिए। 
15. फिर उस ने पराथे देवताओं को और यहोवा के भवन में की मूत्तिर् को, और जितनी वेदियां उस ने यहोवा के भवन के पर्वत पर, और यरूशलेम में बनवाई यीं, उन सब को दूर करके नगर से बाहर फेंकवा दिया। 
16. तब उस ने यहोवा की वेदी की मरम्मत की, और उस पर मेलबलि और धन्यवादबलि चढ़ाने लगा, और यहूदियोंको इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की उपासना करते की आज्ञा दी। 
17. तौभी प्रजा के लोग ऊंचे स्यानोंपर बलिदान करते रहे, परन्तु केवल अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे। 
18. मनश्शे के ओर काम, और उस ने जो प्रार्यना अपके परमेश्वर से की, और उन दशिर्योंके वचन जो इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से उस से बातें करते थे, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास में लिखा हुआ है। 
19. और उसकी प्रार्यना और वह कैसे सुनी गई, और उसका सारा पाप और विश्वासघात और उस ने दीन होने से पहिले कहां कहां ऊंचे स्यान बनवाए, और अशेरा नाम और खुदी हुई मूत्तिर्यां खड़ी कराई, यह सब होशे के वचनोंमें जिखा है। 
20. निदान मनश्शे अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसी के घर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र आमोन उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 
21. जब आमोन राज्य करने लगा, तब वह बाईस वर्ष का या, और यरूशलेम में दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 
22. और उस ने अपके पिता मनश्शे की नाई वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। और जितनी मूत्तिर्यां उसके पिता मनश्शे ने खोदकर बनवाई यीं, वह भी उन सभोंके साम्हने बलिदान करता और उन सभोंकी उपासना भी करता या। 
23. और जैसे उसका पिता मनश्शे यहोवा के साम्हने दीन हुआ, वैसे वह दीन न हुआ, वरन आमोन अधिक दोषी होता गया। 
24. और उसके कर्मचारियोंने द्रोह की गोष्ठी करके, उसको उसी के भवन में मार डाला। 
25. तब साधारण लोगोंने उन सभोंको मार डाला, जिन्होंने राजा आमोन से द्रोह की गोष्ठी की यी; और लोगोंने उसके पुत्र योशिय्याह को उसके स्यान पर राजा बनाया।

Chapter 34

1. जब योशिय्याह राज्य करने लगा तब वह आठ वर्ष का या, और यरूशलेम में इकतीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 
2. उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, और जिन मागॉं पर उसका मूलपुरुष दाऊद चलता रहा, उन्हीं पर वह भी चला करता या और उस से न तो दाहिनी ओर मूड़ा, और न बाईं ओर। 
3. वह लड़का ही या, अर्यात उसको गद्दी पर बैठे आठ वर्ष पूरे भी न हुए थे कि अपके मूलमुरुष दाऊद के परमेश्वर की खोज करने लगा, और बारहवें वर्ष में वह ऊंचे स्यानोंऔर अश्ेरा नाम मूरतोंको और खुदी और ढली हुई मूरतोंको दूर करके, यहूदा और यरूशलेम को शुद्ध करने लगा। 
4. और बालदेवताओं की वेदियां उसके साम्हने तोड़ डाली गई, और सूर्य की प्रतिमाथें जो उनके ऊपर ऊंचे पर यी, उस ने काट डालीं, और अशेरा नाम, और खुदी और ढली हुई मूरतोंको उस ने तोड़कर पीस डाला, और उनकी बुकनी उन लोगोंकी कबरोंपर छितरा दी, जो उनको बलि चढ़ाते थे। 
5. और पुजारियोंकी हड्डियां उस ने उन्हीं की वेदियोंपर जलाई। योंउस ने यहूदा और यरूशलेम को शुद्ध किया। 
6. फिर मनश्शे, एप्रैम और शिमोन के बरन नप्ताली तक के नगरोंके खणडहरोंमें, उस ने वेदियोंको तोड़ डाला, 
7. और अशेरा नाम और खुदी हुई मूरतोंको पीसकर बुकनी कर डाला, और इस्राएल के सारे देश की सूर्य की सब प्रतिमाओं को काटकर यरूशलेम को लौट गया। 
8. फिर अपके राज्य के अठारहवें वर्ष में जब वह देश और भवन दोनोंको शुद्ध कर चुका, तब उस ने असल्याह के पुत्र शापान और नगर के हाकिम मासेयाह और योआहाज के पुत्र इतिहास के लेखक योआह को अपके परमेश्वर यहोवा के भवन की मरम्मत कराने के लिथे भेज दिया। 
9. सो उन्होंने हिल्किय्याह महाथाजक के पास जाकर जो रुपया परमेश्वर के भवन में लाया गया या, अर्यात्‌ जो लेवीय दरबानोंने मनश्शियों, एप्रैमियोंऔर सब बचे हुए इस्राएलियोंसे और सब यहूदियोंऔर बिन्यामीनियोंसे और यरूशलेम के निवासियोंके हाथ से लेकर इकट्ठा किया या, उसको सौंप दिया। 
10. अर्यात्‌ उन्होंने उसे उन काम करनेवालोंके हाथ सौंप दिया जो यहोवा के भवन के काम पर मुखिथे थे, और यहोवा के भवन के उन काम करनेवालोंने उसे भवन में जो कुछ टूटा फूटा या, उसकी मरम्मत करने में लगाया। 
11. अर्यात्‌ उन्होंने उसे बढ़इयोंऔर राजोंको दिया कि वे गढ़े हुए पत्यर और जोड़ोंके लिथे लकड़ी मोल लें, और उन घरोंको पाटें जो यहूदा के राजाओं ने नाश कर दिए थे। 
12. और वे मनुष्य सच्चाई से काम करते थे, और उनके अधिक्कारनेी मरारीय, यहत और ओबद्याह, लेवीय और कहाती, जकर्याह और मशुल्लाम काम चलानेवाले और गाने-बजाने का भेद सब जाननेवाले लेवीय भी थे। 
13. फिर वे बोफियोंके अधिक्कारनेी थे और भांति भांति की सेवकाई और काम चलानेवाले थे, और कुछ लेवीय मुंशी सरदार और दरबान थे। 
14. जब वे उस रुपके को जो यहोवा के भवन में पहुंचाया गया या, निकाल रहे थे, तब हिल्किय्याह याजक को मूसा के द्वारा दी हुई यहोवा की व्यवस्या की पुस्तक मिली। 
15. तब हिल्किय्याह ने शापान मंत्री से कहा, मुझे यहोवा के भवन में व्यवस्या की पुस्तक मिली है; तब हिल्किय्याह ने शापान को वह पुस्तक दी। 
16. तब शापान उस पुस्तक को राजा के पास ले गया, और यह सन्देश दिया, कि जो जो काम तेरे कर्मचारियोंको सौंपा गया या उसे वे कर रहे हैं। 
17. और जो रुपया यहोवा के भवन में मिला, उसको उन्होंने उणडेलकर मुखियोंऔर कारीगरोंके हाथोंमें सौंप दिया है। 
18. फिर शापान मंत्री ने राजा को यह भी बता दिया कि हिल्किय्याह याजक ने मुझे एक पुस्तक दी है तब शपान ने उस में से राजा को पढ़कर सुनाया। 
19. व्यवस्या की वे बातें सुनकर राजा ने अपके वस्त्र फाढ़े। 
20. फिर राजा ने हिल्किय्याह शापान के पुत्र अहीकाम, मीका के पुत्र अब्दोन, शापान मंत्री और असायाह नाम अपके कर्मचारी को आज्ञा दी, 
21. कि तुम जाकर मेरी ओर से और इस्राएल और यहूदा में रहनेवालोंकी ओर से इस पाई हुई पुस्तक के वचनोंके विष्य यहोवा से पूछो; क्योंकि यहोवा की बड़ी ही जलजलाहट हम पर इसलिथे भड़की है कि हमारे पुरखाओं ने यहोवा का वचन नहीं माना, और इस पुस्तक में लिखी हुई सब आज्ञाओं का पालन नहीं किया। 
22. तब हिल्कय्याह ने राजा के और और दूतोंसमेत हुल्दा नबिया के पास जाकर उस से उसी बात के अनुसार बातें की, वह तो उस शल्लूम की स्त्री यी जो तोखत का पुत्र और हस्रा का पोता और वस्त्रालय का रखवाला या : और वह स्त्री यरूशलेम के नथे टोले में रहती यी। 
23. उस ने उन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि जिस पुरुष ने तुम को मेरे पास भेजा, उस से यह कहो, 
24. कि यहोवा योंकहता है, कि सुन, मैं इस स्यान और इस के निवासियोंपर विपत्ति डालकर यहूदा के राजा के साम्हने जो पुस्तक पक्की गई, उस में जितने शाप लिखे हैं उन सभोंको पूरा करूंगा। 
25. उन लोगोंने मुझे त्यागकर पराथे देवताओं के लिथे धूप जलाया है और अपक्की बनाई हुई सब वस्तुओं के द्वारा मुझे रिस दिलाई है, इस कारण मेरी जलजलाहट इस स्यान पर भड़क उठी है, और शान्त न होगी। 
26. परन्तु यहूदा का राजा जिस ने तुम्हें यहोवा के पूछने को भेज दिया है उस से तुम योंकहो, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, 
27. कि इसलिथे कि तू वे बातें सुनकर दीन हुआ, और परमेश्वर के साम्हने अपना सिर नवाया, और उसकी बातें सुनकर जो उसने इस स्यान और इस के निवासियोंके विरुद्ध कहीं, तू ने मेरे साम्हने अपना सिर नवाया, और वस्त्र फाड़कर मेरे साम्हने रोया है, इस कारण मैं ने तेरी सुनी है; यहोवा की यही बाणी है। 
28. सुन, मैं तुझे तेरे पुरखाओं के संग ऐसा मिलाऊंगा कि तू शांति से अपक्की कब्र को पहुंचाया जायगा; और जो विपत्ति मैं इस स्यान पर, और इसके निवासियोंपर डालना चाहता हूँ, उस में से तुझे अपक्की आंखोंसे कुछ भी देखना न पकेगा। तब उन लोगोंने लौटकर राजा को यही सन्देश दिया। 
29. तब राजा ने सहूदा और यरूशलेम के सब पुरनियोंको इकट्ठे होने को बचलवा भेजा। 
30. और राजा यहूदा के सब लोगोंऔर यरूशलेम के सब निवासियोंऔर याजकोंऔर लेवियोंवरन छोटे बड़े सारी प्रजा के लोगोंको संग लेकर यहोवा के भवन को गया; तब उस न जो वाचा की पुस्तक यहोवा के भवन में मिली याी उस में की सारी बातें उनको पढ़कर सुनाई। 
31. तब राजा ने अपके स्यान पर खड़ा होकर, यहोवा से इस आशय की वाचा बान्धी कि मैं यहोवा के पीछे पीछे चलूंगा, और अपके पूर्ण मन और पूर्ण जीव से उसकी आज्ञाएं, चितौनियोंऔर विधियोंका पालन करूंगा, और इन वाचा की बातोंको जो इस पुस्तक में लिखी हैं, पूरी करूंगा। 
32. और उस ने उन सभोंसे जो यरूशलेम में और बिन्यामीन में थे वैसी ही वाचा बन्धाई। और यरूशलेम के निवासी, परमेश्वर जो उनके पितरोंका परमेश्वर या, उसकी वाचा के अनुसार करने लगे। 
33. और योशिय्याह ने इस्राएलियोंके सब देशोंमें से सब घिनौनी वस्तुओं को दूर करके जितने इस्राएल में मिले, उन सभोंसे उपासना कराई; अर्यात्‌ उनके परमेश्वर सहोवा की उपासना कराई। और उसके जीवन भर उन्होंने अपके पूवजोंके परमेश्वर यहोवा के पीछे चलना न छोड़ा।

Chapter 35

1. और योशिय्याह ने यरूशलेम में यहोवा के लिथे फसह पर्व माना और पहिले महीने के चौदहवें दिन को फसह का पशु बलि किया गया। 
2. और उस ने याजकोंको अपके अपके काम में ठहराया, और यहोवा के भवन में की सेवा करने को उनका हियाब बन्धाया। 
3. फिर लेवीय जो सब इस्राएल लियोंको सिखाते और यहोवा के लिथे पवित्र ठहरे थे, उन से उस ने कहा, तुम पवित्र सन्दूक को उस भवन में रखो जो दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान ने बनवाया या; अब तुम को कन्धोंपर बोफ उठाना न होगा। अब अपके परमेश्वर यहोवा की और उसकी प्रजा इस्राएल की सेवा करो। 
4. और इस्राएल के राजा दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान दोनोंकी लिखी हुई विधियोंके अनुसार, अपके अपके पितरोंके अनुसार, अपके अपके दल में तैयार रहो। 
5. और तुम्हारे भाई लोगोंके पितरोंके घरानोंके भागोंके अनुसार पवित्रस्यान में खड़े रहो, अर्यात्‌ उनके एक भाग के लिथे लेवियोंके एक एक पितर के घराने का एक भाग हो। 
6. और फसह के पशुओं को बलि करो, और अपके अपके को पवित्र करके अपके भाइयोंके लिथे तैयारी करो कि वे यहोवा के उस वचन के अनुसार कर सकें, जो उस ने मूसा के द्वारा कहा या। 
7. फिर योशिय्याह ने सब लोगोंको जो वहां उपस्यित थे, तीस हजार भेड़ोंऔर बकरियोंके बच्चे और तीन हजार बैल दिए थे; थे सब फसह के बलिदानोंके लिथे राजा की सम्पत्ति में से दिए गए थे। 
8. और उसके हाकिमोंने प्रजा के लोगों, याजकोंऔर लेवियोंको स्वेच्छा -बलियोंके लिथे पशु दिए। और हिल्किय्याह, जकर्याह और यहीएल नाम परमेश्वर के भवन के प्रधानोंने याजकोंको दो हजार छ:सौ भेड �-बकरियां। और तीन सौ बैल फसह के बलिदानोंके लिए दिए। 
9. और कोनन्याह ने और शमायाह और नतनेल जो उसके भाई थे, और हसब्याह, यीएल और योजाबाद नामक लेवियोंके प्रधानोंने लेवियोंको पांच हजार भेड़-बकरियां, और पांच सौ बैल फसह के बलिदानोंके लिथे दिए। 
10. इस प्रकार उपासना की तैयारी हो गई, और राजा की आज्ञा के अनुसार याजक अपके अपके स्यान पर, और लेवीय अपके अपके दल में खड़े हुऐ। 
11. तब फसह के पशु बलि किए गए, और याजक बलि करनेवालोंके हाथ से लोहू को लेकर छिड़क देते और लेवीय उनकी खाल उतारते गए। 
12. तब उन्होंने होमबलि के पशु इसलिथे अलग किए कि उन्हें लोगोंके पितरोंके घरानोंके भागोंके अनुसार दें, कि वे उन्हें यहोवा के लिथे चढ़वा दें जैसा कि मूसा की पुस्तक में लिखा है; और बैलोंको भी उन्होंने वैसा ही किया। 
13. तब उन्होंने फसह के पशुओं का मांस विधि के अनुसार आग में भूंजा, और पवित्र वस्तुएं, हंडियोंऔर हंडोंऔर यालियोंमें सिफा कर फूतीं से लोगोंको पहुंचा दिया। 
14. तब उन्होंने अपके लिथे और याजकोंके लिथे तैयारी की, क्योंकि हारून की सन्तान के याजक होमबलि के पशु और चरबी रात तक चढ़ाते रहे, इस कारण लेवियोंने अपके लिथे और हारून की सन्तान के याजकोंके लिथे तैयारी की। 
15. और आसाप के वंश के गवैथे, दाऊद, आसाप, हेमान और राजा के दशीं यदूतून की आज्ञा के अनुसार अपके अपके स्यान पर रहे, और द्वारपाल एक एक फाटक पर रहे। उन्हें अपना अपना काम छोड़ना न पड़ा, क्योंकि उनके भई लेवियोंने उनके लिथे तैयारी की। 
16. योंउसी दिन राजा योशिय्याह की आज्ञा के अनुसार फसह मनाने और यहोवा की बेदी पर होमबलि चढ़ाने के लिथे यहोवा की सारी अपासना की तैयारी की गई। 
17. जो इस्राएली वहां उपस्यित थे उन्होंने फसह को उसी समय और अखमीरी रोटी के पर्व को सात दिन तक माना। 
18. इस फसह के बराबर शमूएल नबी के दिनोंसे इस्राएल में कोई फसह मनाया न गया या, और न इस्राएल के किसी राजा ने ऐसा मनाया, जैसा योशिय्याह और याजकों, लेवियोंऔर जितने यहूदी और इस्राएली उपस्यित थे, उनहोंने और यरूशलेम के निवासियोंने मनाया। 
19. यह फसह योशिय्याह के राज्य के अठारहवें वर्ष में मनाया गया। 
20. इसके बाद जब योशिय्याह भवन को तैयार कर चुका, तब मिस्र के राजा नको ने परात के पास के कुर्कमीश नगर से लड़ने को चढ़ाई की और योशिय्याह उसका साम्हना करने को गया। 
21. परन्तु उस ने उसके पास दूतोंसे कहला भेजा, कि हे यहूदा के राजा मेरा तुझ से क्या काम ! आज मैं तुझ पर नहीं उसी कुल पर चढ़ाई कर रहा हूँ, जिसके साय मैं युद्ध करता हूँ; फिर परमेश्वर ने मुझ से फुतीं करने को कहा है। इसलिथे परमेश्वर जो मेरे संग है, उससे अलग रह, कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे नाश करे। 
22. परन्तु योशिय्याह ने उस से मुंह न मोड़ा, वरन उस से लड़ने के लिथे भेष बदला, और नको के उन वचनोंको न माना जो उस ने परमेश्वर की ओर से कहे थे, और मगिद्दो की तराई में उस से युद्ध करने को गया। 
23. तब धनुर्धारियोंने राजा योशिय्याह की ओर तीर छोड़े; और राजा ने अपके सेवकोंसे कहा, मैं तो बहुत घायल हुआ, इसलिथे मुझे यहां से ले जाओ। 
24. तब उसके सेवकोंने उसको रय पर से उतार कर उसके दूसरे रय पर चढ़ाया, और यरूशलेम ले गथे। और वह मर गया और उसके पुरखाओं के कब्रिस्तान में उसको मिट्टी दी गई। और यहूदियोंऔर यरूशलेमियोंने योशिय्याह के लिए विलाप किया। 
25. और यिर्मयाह ने योशिय्याह के लिथे विलाप का गीत बनाया और सब गानेवाले और गानेवालियां अपके विलाप के गीतोंमें योशिय्याह की चर्चा आज तक करती हैं। और इनका गाना इस्राएल में एक विधि के तुल्य ठहराया गया और थे बातें विलापक्कीतोंमें लिखी हुई हैं। 
26. योशिय्याह के और काम और भक्ति के जो काम उस ने उसी के अनुसार किए जो यहोवा की व्यवस्या में लिखा हुआ है। 
27. और आदि से अन्त तक उसके सब काम इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हुए हैं।

Chapter 36

1. तब देश के लोगोंने योशिय्याह के पुत्र यहोआहाज को लेकर उसके पिता के स्यान पर यरूशलेम में राजा बनाया। 
2. जब यहोआहाज राज्य करने लगा, तब वह तेईस वर्ष का या, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 
3. तब मिस्र के राजा ने उसको यरूशलेम में राजगद्दी से उनार दिया, और देश पर सौ किक्कार चान्दी और किक्कार भर लोना जुरमाने में दणड लगाया। 
4. तब मिस्र के राजा ने उसके भाई एल्याकीम को यहूदा और यरूशलेम का राजा बनाया और उसका नाम बदलकर यहोयाकीम रखा। और नको उसके भाई यहोआहाज को मिस्र में ले गया। 
5. जब यहोयाकीम राज्य करने लगा, तब वह पक्कीस वर्ष का या, और ग्यारह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उस ने वह काम किया, जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 
6. उस पर बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने चढ़ाई की, और बाबेल ले जाने के लिथे उसको बेडिय़ां पहना दीं। 
7. फिर नबूकदनेस्सर ने यहोवा के भवन के कुछ पात्र बाबेल ले जाकर, अपके मन्दिर में जो बाबेल में या, रख दिए। 
8. यहोयाकीम के और काम और उस ने जो जो घिनौने काम किए, और उस में जो जो बिुराइयां पाई गई, वह इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखी हैं। और उसका पुत्र यहोयाकीन उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 
9. जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह आठ वर्ष का या, और तीन महीने और दस दिन तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उस ने वह किया, जो परमेश्वर यहोवा की दुष्टि में बुरा है। 
10. नथे वर्ष के लगते ही नबूकदनेस्सर ने लोगोंको भेजकर, उसे और यहोवा के भवन के मनभावने पात्रोंको बाबेल में मंगवा लिया, और उसके भाई सिदकिय्याह को यहूदा और यरूशलेम पर राजा नियुक्त किया। 
11. जब सिदकिय्याह राज्य करने लगा, तब वह इक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में ग्यारह वर्ष तक राज्य करता रहा। 
12. और उस ने वही किया, जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है। यद्यापि यिर्मयाह नबी यहोवा की ओर से बातें कहता या, तौभी वह उसके साम्हने दीन न हुआ।
13. फिर नबूकदनेस्सर जिस ने उसे परमेश्वर की शपय खिलाई यी, उस से उस ने बलवा किया, और उस ने हठ किया और अपना मन कठोर किया, कि वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर न फिरे। 
14. वरन सब प्रधान याजकोंने और लोगोंने भी अन्य जातियोंके से घिनौने काम करके बहुत बड़ा विश्वासघात किया, और यहोवा के भवन को जो उस ने यरूशलेम में पवित्र किया या, अशुद्ध कर डाला। 
15. और उनके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा ने बड़ा यत्न करके अपके दूतोंसे उनके पास कहला भेजा, क्योंकि वह अपक्की प्रजा और अपके धाम पर तरस खाता या; 
16. परन्तु वे परमेश्वर के दूतोंको ठट्ठोंमें उड़ाते, उसके वचनोंको तुच्छ जानते, और उसके नबियोंकी हंसी करते थे। निदान यहोवा अपक्की प्रजा पर ऐसा फुंफला उठा, कि बचने का कोई उपाय न रहा। 
17. तब उस ने उन पर कसदियोंके राजा से चढ़ाई करवाई, और इस ने उनके जवानोंको उनके पवित्र भवन ही में तलवार से मार डाला। और क्या जवान, क्या कुंवारी, क्या बूढ़े, क्या पक्के बालवाले, किसी पर भी कोमलता न की; यहोवा ने सभोंको उसके हाथ में कर दिया। 
18. और क्या छोटे, क्या बड़े, परमेश्वर के भवन के सब पात्र और यहोवा के भवन, और राजा, और उसके हाकिमोंके खजाने, इन सभोंको वह बाबेल में ले गया। 
19. और कसदियो ने परमेश्वर का भवन फूंक दिया, और यरूशलेम की शहरपनाह को तोड़ ड़ाला, और आग लगा कर उसके सब भवनोंको जलाया, और उस में का सारा बहुमूल्य सामान नष्ट कर दिया। 
20. और जो तलवार से बच गए, उन्हें वह बाबेल को ले गया, और फारस के राज्य के प्रबल होने तक वे उसके और उसके बेटों-पोतोंके आधीन रहे। 
21. यह सब इसलिथे हुआ कि यहोवा का जो वचन यिर्मयाह के मुंह से निकला या, वह पूरा हो, कि देश अपके विश्रम कालोंमें मुख भोगता रहे। इसलिथे जब तक वह सूना पड़ा रहा तब तक अर्यात्‌ सत्तर वर्ष के पूरे होने तक उसको विश्रम मिला। 
22. फारस के राजा कूस्रू के पहिले वर्ष में यहोवा ने उसके मन को उभारा कि जो वचन यिर्मयाह के मुंह से निकला या, वह पूरा हो। इसलिथे उस ने अपके समस्त राज्य में यह प्रचार करवाया, और इस आशय की चिट्ठियां लिखवाई, 

23. कि फारस का राजा कू्रस्रू कहता है, कि स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा ने पृय्वी भर का राज्य मुझे दिया है, और उसी ने मुझे आज्ञा दी है कि यरूशलेम जो यहूदा में है उस में मेरा एक भवन बनवा; इसलिथे हे उसकी प्रजा के सब लोगो, तुम में से जो कोई चाहे कि उसका परमेश्वर यहोवा उसके साय रहे, तो वह वहां रवाना हो जाए।
Share this article :

Post a Comment

 
Support : Creating Website | Johny Template | Mas Template
Copyright © 2011. Christian Songs and Stuff - All Rights Reserved
Template Created by Creating Website Published by Mas Template
Proudly powered by Blogger