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गलातियों (Galatians)
Chapter 1
1. पौलुस की, जो न मनुष्योंकी ओर से, और न मनुष्य के द्वारा, बरन यीशु मसीह और परमेश्वर पिता के द्वारा, जिस ने मरे हुओं में से जिलाया, प्रेरित है।
2. और सारे भाइयोंकी आरे से, जो मेरे साय हैं; गलतिया की कलीसियाओं के नाम।
3. परमेश्वर पिता, और हमारे प्रभु यीशु मसीह की आरे से तुम्हें अनुगंह और शान्ति मिलती रहे।
4. उसी ने अपके आप को हमारे पापोंके लिथे दे दिया, ताकि हमारे परमेश्वर और पिता की इच्छा के अनुसार हमें इस वर्तमान बुरे संसार से छुड़ाए।
5. उस की स्तुति और बड़ाइ। युगानुयुग होती रहे। आमीन।।
6. मुझे आश्चर्य होता है, कि जिस ने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर फुकने लगे।
7. परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं।
8. परन्तु यदि हम या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो स्त्रमित हो।
9. जैसा हम पहिले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूं, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो स्त्रापित हो। अब मैं क्या मनुष्योंको मानता हूं या परमेश्वर को क्या मैं मनुष्योंको प्रसन्न करना चाहता हूं
10. यदि मैं अब तक मनुष्योंको प्रसन्न करता रहता, तो मसीह का दास न होता।।
11. हे भाइयो, मैं तुम्हें जताए देता हूं, कि जो सुसमाचार मैं ने सुनाया है, वह मनुष्य का सा नहीं।
12. क्योंकि वह मुझै मनुष्य की ओर से नहीं पहुंचा, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाश से मिला।
13. यहूदी मत में जो पहिले मेरा चाल चलन या, तुम सुन चुके हो; कि मैं परमेश्वर की कलीसिया को बहुत ही सताता और नाश करता या।
14. और अपके बहुत से जातिवालोंसे जो मेरी अवस्या के थे यहूदी मत में बढ़ता जाता या और अपके बापदादोंके व्यवहारोंमें बहुत ही उत्तेजित या।
15. परन्तु परमेश्वर की, जिस ने मेरी माता के गर्भ ही से मुझे ठहराया और अपके अनुग्रह से बुला लिया,
16. जब इच्छा हुई, कि मुझ में अपके पुत्र को प्रगट करे कि मैं अन्यजातियोंमें उसका सुसमाचार सुनाऊं; तो न मैं ने मांस और लोहू से सलाह ली;
17. और न यरूशलेम को उन के पास गया जो मुझ से पहिले प्रेरित थे, पर तुरन्त अरब को चला गया: और फिर वहां से दिमश्क को लौट आया।।
18. फिर तीन बरस के बाद मैं कैफा से भेंट करने के लिथे यरूशलेम को गया, और उसके पास पन्द्रह दिन तक रहा।
19. परन्तु प्रभु के भाई याकूब को छोड़ और प्रेरितोंमें से किसी से न मिला।
20. जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूं, देखो परमेश्वर को उपस्यित जानकर कहता हूं, कि वे फूठी नहीं।
21. इस के बाद मैं सूरिया और किलकिया के देशोंमें आया।
22. परन्तु यहूदिया की कलीसियाओं ने जो मसीह में यी, मेरा मुह तो कभी नहीं देखा या।
23. परन्तु यही सुना करती यीं, कि जो हमें पहिले सताता या, वह अब उसी धर्म का सुसमाचार सुनाता है, जिसे पहिले नाश करता या।
24. और मेरे विषय में परमेश्वर की महिमा करती यीं।।
Chapter 2
1. चौदह वर्ष के बाद मैं बरनबास के साय यरूशलेम को गया और तितुस को भी साय ले गया।
2. और मेरा जाना ईश्वरीय प्रकाश के अनुसार हुआ: और जो सुसमाचार मैं अन्यजातियोंमें प्रचार करता हूं, उस को मैं ने उन्हें बता दिया, पर एकान्त में उन्हीं को जो बड़े समझे जाते थे, ताकि ऐसा न हो, कि मेरी इस समय की, या अगली दौड़ धूप व्यर्य ठहरे।
3. परन्तु तितुस भी जो मेरे साय या और जो यूनानी है; खतना कराने के लिथे विवश नहीं किया गया।
4. और यह उन फूठे भाइयोंके कारण हुआ, जो चोरी से घुस आए थे, कि उस स्वतंत्रता का जो मसीह यीशु में हमें मिली है, भेद लेकर हमें दास बनाएं।
5. उन के आधीन होना हम ने एक घड़ी भर न माना, इसलिथे कि सुसमाचार की सच्चाई तुम में बनी रहे।
6. फिर जो लोग कुछ समझे जाते थे (वे चाहे कैसे ही थे, मुझे इस से कुछ काम नहीं, परमेश्वर किसी का पझपात नहीं करता) उन से जो कुछ भी समझे जाते थे, मुझे कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ।
7. परन्तु इसके विपक्कीत जब उन्होंने देखा, कि जैसा खतना किए हुए लोगोंके लिथे सुसमाचार का काम पतरस को सौंपा गया वैसा ही खतनारिहतोंके लिथे मुझे सुसमाचार सुनाना सौंपा गया।
8. (क्योंकि जिस ने पतरस से खतना किए हुओं में प्रेरिताई का कार्य्य बड़े प्रभाव सहित करवाया, उसी ने मुझ से भी अन्यजातियोंमें प्रभावशाली कार्य्य करवाया)
9. और जब उन्होंने उस अनुग्रह को जो मुझे मिला या जान लिया, तो याकूब, और कैफा, और यूहन्ना ने जो कलीसिया के खम्भे समझे जाते थे, मुझ को और बरनबास को दिहना हाथ देकर संग कर लिया, कि हम अन्यजातियोंके पास जाएं, और वे खतना किए हुओं के पास।
10. केवल यह कहा, कि हम कंगालोंकी सुधि लें, और इसी काम के करने का मैं आप भी यत्न कर रहा या।
11. पर जब कैफा अन्ताकिया में आया तो मैं ने उसके मुंह पर उसका साम्हना किया, क्योंकि वह दोषी ठहरा या।
12. इसलिथे कि याकूब की ओर से कितने लोगोंके आने से पहिले वह अन्यजातियोंके साय खाया करता या, परन्तु जब वे आए, तो खतना किए हुए लोगोंके डर के मारे उन से हट गया और किनारा करने लगा।
13. और उसके साय शेष यहूदियोंने भी कपट किया, यहां तक कि बरनबास भी उन के कपट में पड़ गया।
14. पर जब मैं ने देखा, कि वे सुसमाचार की सच्चाई पर सीधी चाल नहीं चलते, तो मैं ने सब के साम्हने कैफा से कहा; कि जब तू यहूदी होकर अन्यजातियोंकी नाई चलता है, और यहूदियोंकी नाईं नहीं तो तू अन्यजातियोंको यहूदियोंकी नाईं चलने को क्योंकहता है
15. हम जो जन्क़ के यहूदी हैं, और पापी अन्यजातियोंमें से नहीं।
16. तौभी यह जानकर कि मनुष्य व्यवस्या के कामोंसे नहीं, पर केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहरता है, हम ने आप भी मसीह यीशु पर विश्वास किया, कि हम व्यवस्या के कामोंसे नहीं पर मसीह पर विश्वास करने से धर्मी ठहरें; इसलिथे कि व्यवस्या के कामोंसे कोई प्राणी धर्मी न ठहरेगा।
17. हम जो मसीह में धर्मी ठहरना चाहते हैं, यदि आप ही पापी निकलें, तो क्या मसीह पाप का सेवक है कदापि नहीं।
18. क्योंकि जो कुछ मैं ने गिरा दिया, यदि उसी को फिर बनाता हूं, तो अपके आप को अपराधी ठहराता हूं।
19. मैं जो व्यवसाि के द्वारा व्यवस्या के लिथे मर गया, कि परमेश्वर के लिथे जीऊं।
20. मैं मसीह के साय क्रूस पर चढ़ाया गया हूं, और अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है: और मैं शरीर में अब जो जीवित हूं तो केवल उस विश्वास से जीवित हूं, जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिथे अपके आप को दे दिया।
21. मैं परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्य नहीं ठहराता, क्योंकि यदि व्यवस्या के द्वारा धामिर्कता होती, तो मसीह का मरना व्यर्य होता।।
Chapter 3
1. हे निर्बुद्धि गलतियों, किस ने तुम्हें मोह लिया तुम्हारी तो मानोंआंखोंके साम्हने यीशु मसीह क्रूस पर दिखाया गया!
2. मैं तुम से केवल यह जानना चाहता हूं, कि तुम ने आत्क़ा को, क्या व्यवस्या के कामोंसे, या विश्वास के समाचार से पाया
3. क्या तुम ऐसे निर्बुद्धि हो, कि आत्क़ा की रीति पर आरम्भ करके अब शरीर की रीति पर अन्त करोगे
4. क्या तुम ने इतना दुख योंही उठाया परन्तु कदाचित व्यर्य नहीं।
5. सो जो तुम्हें आत्क़ा दान करता और तुम में सामर्य के काम करता है, वह क्या व्यवस्या के कामोंसे या विश्वास के सुसमाचार से ऐसा करता है
6. इब्राहीम ने तो परमेश्वर पर विश्वास किया और यह उसके लिथे धामिर्कता गिनी गई।
7. तो यह जान लो, कि जो विश्वास करनेवाले हैं, वे ही इब्राहीम की सन्तान हैं।
8. और पवित्रशास्त्र ने पहिले ही से यह जानकर, कि परमेश्वर अन्यजातियोंको विश्वास से धर्मी ठहराएगा, पहिले हीे से इब्राहीम को यह सुसमाचार सुना दिया, कि तुझ में सब जातियां आशीष पाएंगी।
9. तो जो विश्वास करनेवाले हैं, वे विश्वासी इब्राहीम के साय आशीष पाते हैं।
10. सो जितने लोग व्यवस्या के कामोंपर भरोसा रखते हैं, वे सब स्त्राप के आधीन हैं, क्योंकि लिखा है, कि जो कोई व्यवस्या की पुस्तक में लिखी हुई सब बातोंके करने में स्यिर नहीं रहता, वह स्त्रापित है।
11. पर यह बात प्रगट है, कि व्यवस्या के द्वारा परमेश्वर के यहां कोई धर्मी नहीं ठहरता क्योंकि धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा।
12. पर व्यवस्या का विश्वास से कुछ सम्बन्ध नहीं; पर जो उन को मानेगा, वह उन के कारण जीवित रहेगा।
13. मसीह ने जो हमारे लिथे स्त्रापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्या के स्त्राप से छुड़ाया क्योंकि लिखा है, जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह स्त्रापित है।
14. यह इसलिथे हुआ, कि इब्राहिम की आशीष मसीह यीशु में अन्यजातियोंतक पंहुचे, और हम विश्वास के द्वारा उस आत्क़ा को प्राप्त करें, जिस की प्रतिज्ञा हुई है।।
15. हे भाइयों, मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूं, कि मनुष्य की वाचा भी जो पक्की हो जाती है, तो न कोई उसे टालता है और न उस में कुछ बढ़ाता है।
16. निदान, प्रतिज्ञाएं इब्राहीम को, और उसके वंश को दी गईं; वह यह नहीं कहता, कि वशोंको; जेसे बहुतोंके विषय में कहा, पर जैसे एक के विषय में कि तेरे वंश को: और वह मसीह है।
17. पर मैं यह कहता हूं की जो वाचा परमेश्वर ने पहिले से पक्की की यी, उस को व्यवस्या चार सौ तीस बरस के बाद आकर नहीं टाल देती, कि प्रतिज्ञा व्यर्य ठहरे।
18. क्योंकि यदि मीरास व्यवस्या से मिली है, तो फिर प्रतिज्ञा से नहीं, परन्तु परमेश्वर ने इब्राहीम को प्रतिज्ञा के द्वारा दे दी है।
19. तब फिर व्यवस्या क्या रही वह तो अपराधोंके कारण बाद में दी गई, कि उस वंश के आने तक रहे, जिस को प्रतिज्ञा दी गई यी, और वह स्वर्गदूतोंके द्वारा एक मध्यस्य के हाथ ठहराई गई।
20. मध्यस्य तो एक का नहीं होता, परन्तु परमेश्वर एक ही है।
21. तो क्या व्यवस्या परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है कदापि न हो क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्या दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धामिर्कता व्यवस्या से होती।
22. परन्तु पवित्र शास्त्र ने सब को पाप के आधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिस का आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करनेवालोंके लिथे पूरी हो जाए।।
23. पर विश्वास के आने से पहिले व्यवस्या की अधीनता में हमारी रखवाली होती यी, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होनेवाला या, हम उसी के बन्धन में रहे।
24. इसलिथे व्यवस्या मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिझक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।
25. परन्तु जब विश्वास आ चुका, तो हम अब शिझक के आधीन न रहे।
26. क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो।
27. और तुम में से जितनोंने मसीह में बपतिस्क़ा लिया है उन्होंने मसीह को पहिन लिया है।
28. अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो।
29. और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।।
Chapter 4
1. मैं यह कहता हूं, कि वारिस जब तक बालक है, यद्यपि सब वस्तुओं का स्वामी है, तौभी उस में और दास में कुछ भेद नहीं।
2. परन्तु पिता के ठहराए हुए समय तक रझकोंऔर भण्डारियोंके वश में रहता है।
3. वैसे ही हम भी, जब बालक थे, तो संसार की आदि शिझा के वश में होकर दास बने हुए थे।
4. परन्तु जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपके पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्क़ा, और व्यवस्या के आधीन उत्पन्न हुआ।
5. ताकि व्यवस्या के आधीनोंको मोल लेकर छुड़ा ले, और हम को लेपालक होने का पद मिले।
6. और तुम जो पुत्र हो, इसलिथे परमेश्वर ने अपके पुत्र के आत्क़ा को, जो हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारता है, हमारे ह्रृदय में भेजा है।
7. इसलिथे तू अब दास नहीं, परन्तु पुत्र है; और जब पुत्र हुआ, तो परमेश्वर के द्वारा वारिस भी हुआ।
8. भला, तक तो तुम परमेश्वर को न जानकर उनके दास थे जो स्वभाव से परमेश्वर नहीं।
9. पर अब जो तुम ने परमेश्वर को पहचान लिया बरन परमेश्वर ने तुम को पहचाना, तो उन निर्बल और निकम्मी आदि-शिझा की बातोंकी ओर क्योंफिरते हो, जिन के तुम दोबारा दास होना चाहते हो
10. तुम दिनोंऔर महीनोंऔर नियत समयोंऔर वर्षोंको मानते हो।
11. मैं तुम्हारे विषय में डरता हूं, कहीं ऐसा न हो, कि जो परिश्र्म मैं नं तुम्हारे लिथे किया है व्यर्य ठहरे।।
12. हे भाइयों, मैं तुम से बिनती करता हूं, तुम मेरे समान हो जाओ: क्योंकि मैं भी तुम्हारे समान हुआ हूं; तुम ने मेरा कुछ बिगाड़ा नहीं।
13. पर तुम जानते हो, कि पहिले पहिल मैं ने शरीर की निर्बलता के कारण तुम्हें सुसमाचार सुनाया।
14. और तुम ने मेरी शारीरिक दशा को जो तुम्हारी पक्कीझा का कारण यी, तुच्छ न जाना; न उस ने घृणा की; और परमेश्वर के दूत बरन मसीह के समान मुझे ग्रहण किया।
15. तो वह तुम्हारा आनन्द मनाना कहां गया मैं तुम्हारा गवाह हूं, कि यदि हो सकता, तो तुम अपक्की आंखें भी निकालकर मुझे दे देते।
16. तो क्या तुम से सच बोलने के कारण मैं तुम्हारा बैरी हो गया हूं।
17. वे तुम्हें मित्र बनाना तो चाहते हैं, पर भली मनसा से नहीं; बरन तुम्हें अलग करना चाहते हैं, कि तुम उन्हीं को मित्र बना लो।
18. पर यह भी अच्छा है, कि भली बात में हर समय मित्र बनाने का यत्न किया जाए, न केवल उसी समय, कि जब मैं तुम्हारे साय रहता हूं।
19. हे मेरे बालकों, जब तक तुम में मसीह का रूप न बन जाए, तब तक मैं तुम्हारे लिथे फिर जच्चा की सी पीड़ाएं सहता हूं।
20. इच्छा तो यह होती है, कि अब तुम्हारे पास आकर और ही प्रकार से बोलू, क्योंकि तुम्हारे विषय में मुझे सन्देह है।।
21. तुम जो व्यवस्या के आधीन होना चाहते हो, मुझ से कहो, क्या तुम व्यवस्या की नहीं सुनते
22. यह लिखा है, कि इब्राहीम के दो पुत्र हुए; एक दासी से, और एक स्वतंत्र स्त्री से।
23. परन्तु जो दासी से हुआ, वह शारीरिक रीति से जन्क़ा, और जो स्वतंत्र स्त्री से हुआ, वह प्रतिज्ञा के अनुसार जन्क़ा।
24. इन बातोंमें दृष्टान्त है, थे स्त्रियां मानोंदो वाचाएं हैं, एक तो सीना पहाड़ की जिस से दास ही उत्पन्न होते हैं; और वह हाजिरा है।
25. और हाजिरा मानो अरब का सीना पहाड़ है, और आधुनिक यरूशलेम उसे तुल्य है, क्योंकि वह अपके बालकोंसमेत दासत्व में है।
26. पर ऊपर की यरूशलेम स्वतंत्र है, और वह हमारी माता है।
27. क्योंकि लिखा है, कि हे बांफ, तू जो नहीं जनती आनन्द कर, तु जिस को पीड़ाएं नहीं उठतीं गला खोलकर जय जयकार कर, क्योंकि त्यागी हुई की सन्तान सुहागिन की सन्तान से भी अधिक है।
28. हे भाइयो, हम इसहाक की नाईं प्रतिज्ञा की सन्तान हैं।
29. और जैसा उस समय शरीर के अनुसार जन्क़ा हुआ आत्क़ा के अनुसार जन्क़े हुए को सताता या, वैसा ही अब भी होता है।
30. परन्तु पवित्र शास्त्र क्या कहता है दासी और उसके पुत्र को निकाल दे, क्योंकि दासी का पुत्र स्वतंत्र स्त्री के पुत्र के साय उत्तराधिक्कारनेी नहीं होगा।
31. इसलिथे हे भाइयों, हम दासी के नहीं परन्तु स्वतंत्र स्त्री के सन्तान हैं।
Chapter 5
1. मसीह ने स्वतंत्रता के लिथे हमें स्वतंत्र किया है; सो इसी में स्यिर रहो, और दासत्व के जूए में फिर से न जुतो।।
2. देखो, मैं पौलुस तुम से कहता हूं, कि यदि खतना कराओगे, तो मसीह से तुम्हें कुछ लाभ न होगा।
3. फिर भी मैं हर एक खतना करानेवाले को जताए देता हूं, कि उसे सारी व्यवस्या माननी पकेगी।
4. तुम जो व्यवस्या के द्वारा धर्मी ठहरना चाहते हो, मसीह से अलग और अनुग्रह से गिर गए हो।
5. क्योंकि आत्क़ा के कारण, हम विश्वास से, आशा की हुई धामिर्कता की बाट जोहते हैं।
6. और मसीह यीशु में न खतना, न खतनारिहत कुछ काम का है, परन्तु केवल विश्वास का जो प्रेम के द्वारा प्रभाव करता है।
7. तुम तो भली भांति दौड रहे थे, अब किस ने तुम्हें रोक दिया, कि सत्य को न मानो।
8. ऐसी सीख तुम्हारे बुलानेवाले की ओर से नहीं।
9. योड़ा सा खमीर सारे गूंधे हुए आटे को खमीर कर डालता है।
10. मैं प्रभु पर तुम्हारे विषय में भरोसा रखताह हूं, कि तुम्हारा कोई दूसरा विचार न होगा; परन्तु जो तुम्हें घबरा देता है, वह कोई क्योंन हो दण्ड पाएगा।
11. परन्तु हे भाइयो, यदि मैं अब तक खतना का प्रचार करता हूं, तो क्योंअब तक सताया जाता हूं; फिर तो क्रूस की ठोकर जाती रही।
12. भला होता, कि जो तुम्हें डांवाडोल करते हैं, वे काट डाले जाते!
13. हे भाइयों, तुम स्वतंत्र होने के लिथे बुलाए गए हो परन्तु ऐसा न हो, कि यह स्वतंत्रता शारीरिक कामोंके लिथे अवसर बने, बरन प्र्रेम से एक दूसरे के दास बनो।
14. क्योंकि सारी व्यवस्या इस एक ही बात में पूरी हो जाती है, कि तू अपके पड़ोसी से अपके समान प्रेम रख।
15. पर यदि तुम एक दूसरे को दांत से काटते और फाड़ खाते हो, तो चौकस रहो, कि एक दूसरे का सत्यानाश न कर दो।।
16. पर मैं कहता हूं, आत्क़ा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे।
17. क्योंकि शरीर आत्क़ा के विरोध में लालसा करती है, और थे एक दूसरे के विरोधी हैं; इसलिथे कि जो तुम करना चाहते हो वह न करने पाओ।
18. और यदि तुम आत्क़ा के चलाए चलते हो तो व्यवस्या के आधीन न रहे।
19. शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्यात् व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन।
20. मूत्ति पूजा, टोना, बैर, फगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म।
21. डाह, मलवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इन के ऐसे और और काम हैं, इन के विषय में मैं तुम को पहिले से कह देता हूं जैसा पहिले कह भी चुका हूं, कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।
22. पर आत्क़ा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज,
23. और कृपा, भालाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामोंके विरोध में कोई व्यवस्या नहीं।
24. और जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उस की लालसाओं और अभिलाषोंसमेत क्रूस पर चढ़ा दिया है।।
25. यदि हम आत्क़ा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्क़ा के अनुसार चलें भी।
26. हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न ऐ दूसरे से डाह करें।
Chapter 6
1. हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा जाए, तो तुम जो आत्क़िक जो, नम्रता के साय ऐसे को संभालो, और अपक्की भी चौकसी रखो, कि तुम भी पक्कीझा में न पड़ो।
2. तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्या को पूरी करो।
3. क्योंकि यदि कोई कुछ न होने पर भी अपके आप को कुछ समझता है, तो अपके आप को धोखा देता है।
4. पर हर एक अपके ही काम को जांच ले, और तक दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपके ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।
5. क्योंकि हर एक व्यक्ति अपना ही बोफ उठाएगा।।
6. जो वचन की शिझा पाता है, वह सब अच्छी वस्तुओं में सिखानेवाले को भागी करे।
7. धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठोंमें नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।
8. क्योंकि जो अपके शरीर के लिथे बोता है, वह शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेगा; और जो आत्क़ा के लिथे बोता है, वह आत्क़ा के द्वारा अनन्त जीवन की कटनी काटेगा।
9. हम भले काम करने में हियाव न छोड़े, क्योंकि यदि हम ढीले न हांे, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।
10. इसलिथे जहां तक अवसर मिले हम सब के साय भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयोंके साय।।
11. देखो, मैं ने कैसे बड़े बड़े अझरोंमें तुम को अपके हाथ से लिखा है।
12. जितने लोग शरीरिक दिखव चाहते हैं वे तुम्हारे खतना करवाने के लिथे दबाव देते हैं, केवल इसलिथे कि वे मसीह के क्रूस के कारण सताए न जाएं।
13. क्योंकि खतना करानेवाले आप तो, व्यवस्या पर नहीं चलते, पर तुम्हारा खतना कराना इसलिथे चाहते हैं, कि तुम्हारी शारीरिक दशा पर घमण्ड करें।
14. पर ऐसा न हो, कि मैं और किसी बात का घमण्ड करूं, केवल हमारे प्रभु यीशु मसीह के क्रूस का जिस के द्वारा संसार मेरी दृष्टि में और मैं संसार की दृष्टि में क्रूस पर चढ़ाया गया हूं।
15. क्योंकि न खतना, और न खतनारिहत कुछ है, परन्तु नई सृष्टि।
16. और जितने इस नियम पर चलेंगे उन पर, और परमेश्वर के इस्त्राएल पर, शान्ति और दया होती रहे।।
17. आगे को कोई मुझे दुख न दे, क्योंकि मैं यीशु के दागोंको अपक्की देह में लिथे फिरता हूं।।
18. हे भाइयो, हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्क़ा के साय रहे। आमीन।।
Chapter 1
1. पौलुस की, जो न मनुष्योंकी ओर से, और न मनुष्य के द्वारा, बरन यीशु मसीह और परमेश्वर पिता के द्वारा, जिस ने मरे हुओं में से जिलाया, प्रेरित है।
2. और सारे भाइयोंकी आरे से, जो मेरे साय हैं; गलतिया की कलीसियाओं के नाम।
3. परमेश्वर पिता, और हमारे प्रभु यीशु मसीह की आरे से तुम्हें अनुगंह और शान्ति मिलती रहे।
4. उसी ने अपके आप को हमारे पापोंके लिथे दे दिया, ताकि हमारे परमेश्वर और पिता की इच्छा के अनुसार हमें इस वर्तमान बुरे संसार से छुड़ाए।
5. उस की स्तुति और बड़ाइ। युगानुयुग होती रहे। आमीन।।
6. मुझे आश्चर्य होता है, कि जिस ने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर फुकने लगे।
7. परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं।
8. परन्तु यदि हम या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो स्त्रमित हो।
9. जैसा हम पहिले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूं, कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो स्त्रापित हो। अब मैं क्या मनुष्योंको मानता हूं या परमेश्वर को क्या मैं मनुष्योंको प्रसन्न करना चाहता हूं
10. यदि मैं अब तक मनुष्योंको प्रसन्न करता रहता, तो मसीह का दास न होता।।
11. हे भाइयो, मैं तुम्हें जताए देता हूं, कि जो सुसमाचार मैं ने सुनाया है, वह मनुष्य का सा नहीं।
12. क्योंकि वह मुझै मनुष्य की ओर से नहीं पहुंचा, और न मुझे सिखाया गया, पर यीशु मसीह के प्रकाश से मिला।
13. यहूदी मत में जो पहिले मेरा चाल चलन या, तुम सुन चुके हो; कि मैं परमेश्वर की कलीसिया को बहुत ही सताता और नाश करता या।
14. और अपके बहुत से जातिवालोंसे जो मेरी अवस्या के थे यहूदी मत में बढ़ता जाता या और अपके बापदादोंके व्यवहारोंमें बहुत ही उत्तेजित या।
15. परन्तु परमेश्वर की, जिस ने मेरी माता के गर्भ ही से मुझे ठहराया और अपके अनुग्रह से बुला लिया,
16. जब इच्छा हुई, कि मुझ में अपके पुत्र को प्रगट करे कि मैं अन्यजातियोंमें उसका सुसमाचार सुनाऊं; तो न मैं ने मांस और लोहू से सलाह ली;
17. और न यरूशलेम को उन के पास गया जो मुझ से पहिले प्रेरित थे, पर तुरन्त अरब को चला गया: और फिर वहां से दिमश्क को लौट आया।।
18. फिर तीन बरस के बाद मैं कैफा से भेंट करने के लिथे यरूशलेम को गया, और उसके पास पन्द्रह दिन तक रहा।
19. परन्तु प्रभु के भाई याकूब को छोड़ और प्रेरितोंमें से किसी से न मिला।
20. जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूं, देखो परमेश्वर को उपस्यित जानकर कहता हूं, कि वे फूठी नहीं।
21. इस के बाद मैं सूरिया और किलकिया के देशोंमें आया।
22. परन्तु यहूदिया की कलीसियाओं ने जो मसीह में यी, मेरा मुह तो कभी नहीं देखा या।
23. परन्तु यही सुना करती यीं, कि जो हमें पहिले सताता या, वह अब उसी धर्म का सुसमाचार सुनाता है, जिसे पहिले नाश करता या।
24. और मेरे विषय में परमेश्वर की महिमा करती यीं।।
Chapter 2
1. चौदह वर्ष के बाद मैं बरनबास के साय यरूशलेम को गया और तितुस को भी साय ले गया।
2. और मेरा जाना ईश्वरीय प्रकाश के अनुसार हुआ: और जो सुसमाचार मैं अन्यजातियोंमें प्रचार करता हूं, उस को मैं ने उन्हें बता दिया, पर एकान्त में उन्हीं को जो बड़े समझे जाते थे, ताकि ऐसा न हो, कि मेरी इस समय की, या अगली दौड़ धूप व्यर्य ठहरे।
3. परन्तु तितुस भी जो मेरे साय या और जो यूनानी है; खतना कराने के लिथे विवश नहीं किया गया।
4. और यह उन फूठे भाइयोंके कारण हुआ, जो चोरी से घुस आए थे, कि उस स्वतंत्रता का जो मसीह यीशु में हमें मिली है, भेद लेकर हमें दास बनाएं।
5. उन के आधीन होना हम ने एक घड़ी भर न माना, इसलिथे कि सुसमाचार की सच्चाई तुम में बनी रहे।
6. फिर जो लोग कुछ समझे जाते थे (वे चाहे कैसे ही थे, मुझे इस से कुछ काम नहीं, परमेश्वर किसी का पझपात नहीं करता) उन से जो कुछ भी समझे जाते थे, मुझे कुछ भी नहीं प्राप्त हुआ।
7. परन्तु इसके विपक्कीत जब उन्होंने देखा, कि जैसा खतना किए हुए लोगोंके लिथे सुसमाचार का काम पतरस को सौंपा गया वैसा ही खतनारिहतोंके लिथे मुझे सुसमाचार सुनाना सौंपा गया।
8. (क्योंकि जिस ने पतरस से खतना किए हुओं में प्रेरिताई का कार्य्य बड़े प्रभाव सहित करवाया, उसी ने मुझ से भी अन्यजातियोंमें प्रभावशाली कार्य्य करवाया)
9. और जब उन्होंने उस अनुग्रह को जो मुझे मिला या जान लिया, तो याकूब, और कैफा, और यूहन्ना ने जो कलीसिया के खम्भे समझे जाते थे, मुझ को और बरनबास को दिहना हाथ देकर संग कर लिया, कि हम अन्यजातियोंके पास जाएं, और वे खतना किए हुओं के पास।
10. केवल यह कहा, कि हम कंगालोंकी सुधि लें, और इसी काम के करने का मैं आप भी यत्न कर रहा या।
11. पर जब कैफा अन्ताकिया में आया तो मैं ने उसके मुंह पर उसका साम्हना किया, क्योंकि वह दोषी ठहरा या।
12. इसलिथे कि याकूब की ओर से कितने लोगोंके आने से पहिले वह अन्यजातियोंके साय खाया करता या, परन्तु जब वे आए, तो खतना किए हुए लोगोंके डर के मारे उन से हट गया और किनारा करने लगा।
13. और उसके साय शेष यहूदियोंने भी कपट किया, यहां तक कि बरनबास भी उन के कपट में पड़ गया।
14. पर जब मैं ने देखा, कि वे सुसमाचार की सच्चाई पर सीधी चाल नहीं चलते, तो मैं ने सब के साम्हने कैफा से कहा; कि जब तू यहूदी होकर अन्यजातियोंकी नाई चलता है, और यहूदियोंकी नाईं नहीं तो तू अन्यजातियोंको यहूदियोंकी नाईं चलने को क्योंकहता है
15. हम जो जन्क़ के यहूदी हैं, और पापी अन्यजातियोंमें से नहीं।
16. तौभी यह जानकर कि मनुष्य व्यवस्या के कामोंसे नहीं, पर केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहरता है, हम ने आप भी मसीह यीशु पर विश्वास किया, कि हम व्यवस्या के कामोंसे नहीं पर मसीह पर विश्वास करने से धर्मी ठहरें; इसलिथे कि व्यवस्या के कामोंसे कोई प्राणी धर्मी न ठहरेगा।
17. हम जो मसीह में धर्मी ठहरना चाहते हैं, यदि आप ही पापी निकलें, तो क्या मसीह पाप का सेवक है कदापि नहीं।
18. क्योंकि जो कुछ मैं ने गिरा दिया, यदि उसी को फिर बनाता हूं, तो अपके आप को अपराधी ठहराता हूं।
19. मैं जो व्यवसाि के द्वारा व्यवस्या के लिथे मर गया, कि परमेश्वर के लिथे जीऊं।
20. मैं मसीह के साय क्रूस पर चढ़ाया गया हूं, और अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है: और मैं शरीर में अब जो जीवित हूं तो केवल उस विश्वास से जीवित हूं, जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिस ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिथे अपके आप को दे दिया।
21. मैं परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्य नहीं ठहराता, क्योंकि यदि व्यवस्या के द्वारा धामिर्कता होती, तो मसीह का मरना व्यर्य होता।।
Chapter 3
1. हे निर्बुद्धि गलतियों, किस ने तुम्हें मोह लिया तुम्हारी तो मानोंआंखोंके साम्हने यीशु मसीह क्रूस पर दिखाया गया!
2. मैं तुम से केवल यह जानना चाहता हूं, कि तुम ने आत्क़ा को, क्या व्यवस्या के कामोंसे, या विश्वास के समाचार से पाया
3. क्या तुम ऐसे निर्बुद्धि हो, कि आत्क़ा की रीति पर आरम्भ करके अब शरीर की रीति पर अन्त करोगे
4. क्या तुम ने इतना दुख योंही उठाया परन्तु कदाचित व्यर्य नहीं।
5. सो जो तुम्हें आत्क़ा दान करता और तुम में सामर्य के काम करता है, वह क्या व्यवस्या के कामोंसे या विश्वास के सुसमाचार से ऐसा करता है
6. इब्राहीम ने तो परमेश्वर पर विश्वास किया और यह उसके लिथे धामिर्कता गिनी गई।
7. तो यह जान लो, कि जो विश्वास करनेवाले हैं, वे ही इब्राहीम की सन्तान हैं।
8. और पवित्रशास्त्र ने पहिले ही से यह जानकर, कि परमेश्वर अन्यजातियोंको विश्वास से धर्मी ठहराएगा, पहिले हीे से इब्राहीम को यह सुसमाचार सुना दिया, कि तुझ में सब जातियां आशीष पाएंगी।
9. तो जो विश्वास करनेवाले हैं, वे विश्वासी इब्राहीम के साय आशीष पाते हैं।
10. सो जितने लोग व्यवस्या के कामोंपर भरोसा रखते हैं, वे सब स्त्राप के आधीन हैं, क्योंकि लिखा है, कि जो कोई व्यवस्या की पुस्तक में लिखी हुई सब बातोंके करने में स्यिर नहीं रहता, वह स्त्रापित है।
11. पर यह बात प्रगट है, कि व्यवस्या के द्वारा परमेश्वर के यहां कोई धर्मी नहीं ठहरता क्योंकि धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा।
12. पर व्यवस्या का विश्वास से कुछ सम्बन्ध नहीं; पर जो उन को मानेगा, वह उन के कारण जीवित रहेगा।
13. मसीह ने जो हमारे लिथे स्त्रापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्या के स्त्राप से छुड़ाया क्योंकि लिखा है, जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह स्त्रापित है।
14. यह इसलिथे हुआ, कि इब्राहिम की आशीष मसीह यीशु में अन्यजातियोंतक पंहुचे, और हम विश्वास के द्वारा उस आत्क़ा को प्राप्त करें, जिस की प्रतिज्ञा हुई है।।
15. हे भाइयों, मैं मनुष्य की रीति पर कहता हूं, कि मनुष्य की वाचा भी जो पक्की हो जाती है, तो न कोई उसे टालता है और न उस में कुछ बढ़ाता है।
16. निदान, प्रतिज्ञाएं इब्राहीम को, और उसके वंश को दी गईं; वह यह नहीं कहता, कि वशोंको; जेसे बहुतोंके विषय में कहा, पर जैसे एक के विषय में कि तेरे वंश को: और वह मसीह है।
17. पर मैं यह कहता हूं की जो वाचा परमेश्वर ने पहिले से पक्की की यी, उस को व्यवस्या चार सौ तीस बरस के बाद आकर नहीं टाल देती, कि प्रतिज्ञा व्यर्य ठहरे।
18. क्योंकि यदि मीरास व्यवस्या से मिली है, तो फिर प्रतिज्ञा से नहीं, परन्तु परमेश्वर ने इब्राहीम को प्रतिज्ञा के द्वारा दे दी है।
19. तब फिर व्यवस्या क्या रही वह तो अपराधोंके कारण बाद में दी गई, कि उस वंश के आने तक रहे, जिस को प्रतिज्ञा दी गई यी, और वह स्वर्गदूतोंके द्वारा एक मध्यस्य के हाथ ठहराई गई।
20. मध्यस्य तो एक का नहीं होता, परन्तु परमेश्वर एक ही है।
21. तो क्या व्यवस्या परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है कदापि न हो क्योंकि यदि ऐसी व्यवस्या दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धामिर्कता व्यवस्या से होती।
22. परन्तु पवित्र शास्त्र ने सब को पाप के आधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिस का आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करनेवालोंके लिथे पूरी हो जाए।।
23. पर विश्वास के आने से पहिले व्यवस्या की अधीनता में हमारी रखवाली होती यी, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होनेवाला या, हम उसी के बन्धन में रहे।
24. इसलिथे व्यवस्या मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिझक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।
25. परन्तु जब विश्वास आ चुका, तो हम अब शिझक के आधीन न रहे।
26. क्योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्तान हो।
27. और तुम में से जितनोंने मसीह में बपतिस्क़ा लिया है उन्होंने मसीह को पहिन लिया है।
28. अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो।
29. और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।।
Chapter 4
1. मैं यह कहता हूं, कि वारिस जब तक बालक है, यद्यपि सब वस्तुओं का स्वामी है, तौभी उस में और दास में कुछ भेद नहीं।
2. परन्तु पिता के ठहराए हुए समय तक रझकोंऔर भण्डारियोंके वश में रहता है।
3. वैसे ही हम भी, जब बालक थे, तो संसार की आदि शिझा के वश में होकर दास बने हुए थे।
4. परन्तु जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपके पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्क़ा, और व्यवस्या के आधीन उत्पन्न हुआ।
5. ताकि व्यवस्या के आधीनोंको मोल लेकर छुड़ा ले, और हम को लेपालक होने का पद मिले।
6. और तुम जो पुत्र हो, इसलिथे परमेश्वर ने अपके पुत्र के आत्क़ा को, जो हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारता है, हमारे ह्रृदय में भेजा है।
7. इसलिथे तू अब दास नहीं, परन्तु पुत्र है; और जब पुत्र हुआ, तो परमेश्वर के द्वारा वारिस भी हुआ।
8. भला, तक तो तुम परमेश्वर को न जानकर उनके दास थे जो स्वभाव से परमेश्वर नहीं।
9. पर अब जो तुम ने परमेश्वर को पहचान लिया बरन परमेश्वर ने तुम को पहचाना, तो उन निर्बल और निकम्मी आदि-शिझा की बातोंकी ओर क्योंफिरते हो, जिन के तुम दोबारा दास होना चाहते हो
10. तुम दिनोंऔर महीनोंऔर नियत समयोंऔर वर्षोंको मानते हो।
11. मैं तुम्हारे विषय में डरता हूं, कहीं ऐसा न हो, कि जो परिश्र्म मैं नं तुम्हारे लिथे किया है व्यर्य ठहरे।।
12. हे भाइयों, मैं तुम से बिनती करता हूं, तुम मेरे समान हो जाओ: क्योंकि मैं भी तुम्हारे समान हुआ हूं; तुम ने मेरा कुछ बिगाड़ा नहीं।
13. पर तुम जानते हो, कि पहिले पहिल मैं ने शरीर की निर्बलता के कारण तुम्हें सुसमाचार सुनाया।
14. और तुम ने मेरी शारीरिक दशा को जो तुम्हारी पक्कीझा का कारण यी, तुच्छ न जाना; न उस ने घृणा की; और परमेश्वर के दूत बरन मसीह के समान मुझे ग्रहण किया।
15. तो वह तुम्हारा आनन्द मनाना कहां गया मैं तुम्हारा गवाह हूं, कि यदि हो सकता, तो तुम अपक्की आंखें भी निकालकर मुझे दे देते।
16. तो क्या तुम से सच बोलने के कारण मैं तुम्हारा बैरी हो गया हूं।
17. वे तुम्हें मित्र बनाना तो चाहते हैं, पर भली मनसा से नहीं; बरन तुम्हें अलग करना चाहते हैं, कि तुम उन्हीं को मित्र बना लो।
18. पर यह भी अच्छा है, कि भली बात में हर समय मित्र बनाने का यत्न किया जाए, न केवल उसी समय, कि जब मैं तुम्हारे साय रहता हूं।
19. हे मेरे बालकों, जब तक तुम में मसीह का रूप न बन जाए, तब तक मैं तुम्हारे लिथे फिर जच्चा की सी पीड़ाएं सहता हूं।
20. इच्छा तो यह होती है, कि अब तुम्हारे पास आकर और ही प्रकार से बोलू, क्योंकि तुम्हारे विषय में मुझे सन्देह है।।
21. तुम जो व्यवस्या के आधीन होना चाहते हो, मुझ से कहो, क्या तुम व्यवस्या की नहीं सुनते
22. यह लिखा है, कि इब्राहीम के दो पुत्र हुए; एक दासी से, और एक स्वतंत्र स्त्री से।
23. परन्तु जो दासी से हुआ, वह शारीरिक रीति से जन्क़ा, और जो स्वतंत्र स्त्री से हुआ, वह प्रतिज्ञा के अनुसार जन्क़ा।
24. इन बातोंमें दृष्टान्त है, थे स्त्रियां मानोंदो वाचाएं हैं, एक तो सीना पहाड़ की जिस से दास ही उत्पन्न होते हैं; और वह हाजिरा है।
25. और हाजिरा मानो अरब का सीना पहाड़ है, और आधुनिक यरूशलेम उसे तुल्य है, क्योंकि वह अपके बालकोंसमेत दासत्व में है।
26. पर ऊपर की यरूशलेम स्वतंत्र है, और वह हमारी माता है।
27. क्योंकि लिखा है, कि हे बांफ, तू जो नहीं जनती आनन्द कर, तु जिस को पीड़ाएं नहीं उठतीं गला खोलकर जय जयकार कर, क्योंकि त्यागी हुई की सन्तान सुहागिन की सन्तान से भी अधिक है।
28. हे भाइयो, हम इसहाक की नाईं प्रतिज्ञा की सन्तान हैं।
29. और जैसा उस समय शरीर के अनुसार जन्क़ा हुआ आत्क़ा के अनुसार जन्क़े हुए को सताता या, वैसा ही अब भी होता है।
30. परन्तु पवित्र शास्त्र क्या कहता है दासी और उसके पुत्र को निकाल दे, क्योंकि दासी का पुत्र स्वतंत्र स्त्री के पुत्र के साय उत्तराधिक्कारनेी नहीं होगा।
31. इसलिथे हे भाइयों, हम दासी के नहीं परन्तु स्वतंत्र स्त्री के सन्तान हैं।
Chapter 5
1. मसीह ने स्वतंत्रता के लिथे हमें स्वतंत्र किया है; सो इसी में स्यिर रहो, और दासत्व के जूए में फिर से न जुतो।।
2. देखो, मैं पौलुस तुम से कहता हूं, कि यदि खतना कराओगे, तो मसीह से तुम्हें कुछ लाभ न होगा।
3. फिर भी मैं हर एक खतना करानेवाले को जताए देता हूं, कि उसे सारी व्यवस्या माननी पकेगी।
4. तुम जो व्यवस्या के द्वारा धर्मी ठहरना चाहते हो, मसीह से अलग और अनुग्रह से गिर गए हो।
5. क्योंकि आत्क़ा के कारण, हम विश्वास से, आशा की हुई धामिर्कता की बाट जोहते हैं।
6. और मसीह यीशु में न खतना, न खतनारिहत कुछ काम का है, परन्तु केवल विश्वास का जो प्रेम के द्वारा प्रभाव करता है।
7. तुम तो भली भांति दौड रहे थे, अब किस ने तुम्हें रोक दिया, कि सत्य को न मानो।
8. ऐसी सीख तुम्हारे बुलानेवाले की ओर से नहीं।
9. योड़ा सा खमीर सारे गूंधे हुए आटे को खमीर कर डालता है।
10. मैं प्रभु पर तुम्हारे विषय में भरोसा रखताह हूं, कि तुम्हारा कोई दूसरा विचार न होगा; परन्तु जो तुम्हें घबरा देता है, वह कोई क्योंन हो दण्ड पाएगा।
11. परन्तु हे भाइयो, यदि मैं अब तक खतना का प्रचार करता हूं, तो क्योंअब तक सताया जाता हूं; फिर तो क्रूस की ठोकर जाती रही।
12. भला होता, कि जो तुम्हें डांवाडोल करते हैं, वे काट डाले जाते!
13. हे भाइयों, तुम स्वतंत्र होने के लिथे बुलाए गए हो परन्तु ऐसा न हो, कि यह स्वतंत्रता शारीरिक कामोंके लिथे अवसर बने, बरन प्र्रेम से एक दूसरे के दास बनो।
14. क्योंकि सारी व्यवस्या इस एक ही बात में पूरी हो जाती है, कि तू अपके पड़ोसी से अपके समान प्रेम रख।
15. पर यदि तुम एक दूसरे को दांत से काटते और फाड़ खाते हो, तो चौकस रहो, कि एक दूसरे का सत्यानाश न कर दो।।
16. पर मैं कहता हूं, आत्क़ा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे।
17. क्योंकि शरीर आत्क़ा के विरोध में लालसा करती है, और थे एक दूसरे के विरोधी हैं; इसलिथे कि जो तुम करना चाहते हो वह न करने पाओ।
18. और यदि तुम आत्क़ा के चलाए चलते हो तो व्यवस्या के आधीन न रहे।
19. शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्यात् व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन।
20. मूत्ति पूजा, टोना, बैर, फगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म।
21. डाह, मलवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इन के ऐसे और और काम हैं, इन के विषय में मैं तुम को पहिले से कह देता हूं जैसा पहिले कह भी चुका हूं, कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।
22. पर आत्क़ा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज,
23. और कृपा, भालाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामोंके विरोध में कोई व्यवस्या नहीं।
24. और जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उस की लालसाओं और अभिलाषोंसमेत क्रूस पर चढ़ा दिया है।।
25. यदि हम आत्क़ा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्क़ा के अनुसार चलें भी।
26. हम घमण्डी होकर न एक दूसरे को छेड़ें, और न ऐ दूसरे से डाह करें।
Chapter 6
1. हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा जाए, तो तुम जो आत्क़िक जो, नम्रता के साय ऐसे को संभालो, और अपक्की भी चौकसी रखो, कि तुम भी पक्कीझा में न पड़ो।
2. तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्या को पूरी करो।
3. क्योंकि यदि कोई कुछ न होने पर भी अपके आप को कुछ समझता है, तो अपके आप को धोखा देता है।
4. पर हर एक अपके ही काम को जांच ले, और तक दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपके ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा।
5. क्योंकि हर एक व्यक्ति अपना ही बोफ उठाएगा।।
6. जो वचन की शिझा पाता है, वह सब अच्छी वस्तुओं में सिखानेवाले को भागी करे।
7. धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठोंमें नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।
8. क्योंकि जो अपके शरीर के लिथे बोता है, वह शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेगा; और जो आत्क़ा के लिथे बोता है, वह आत्क़ा के द्वारा अनन्त जीवन की कटनी काटेगा।
9. हम भले काम करने में हियाव न छोड़े, क्योंकि यदि हम ढीले न हांे, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।
10. इसलिथे जहां तक अवसर मिले हम सब के साय भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयोंके साय।।
11. देखो, मैं ने कैसे बड़े बड़े अझरोंमें तुम को अपके हाथ से लिखा है।
12. जितने लोग शरीरिक दिखव चाहते हैं वे तुम्हारे खतना करवाने के लिथे दबाव देते हैं, केवल इसलिथे कि वे मसीह के क्रूस के कारण सताए न जाएं।
13. क्योंकि खतना करानेवाले आप तो, व्यवस्या पर नहीं चलते, पर तुम्हारा खतना कराना इसलिथे चाहते हैं, कि तुम्हारी शारीरिक दशा पर घमण्ड करें।
14. पर ऐसा न हो, कि मैं और किसी बात का घमण्ड करूं, केवल हमारे प्रभु यीशु मसीह के क्रूस का जिस के द्वारा संसार मेरी दृष्टि में और मैं संसार की दृष्टि में क्रूस पर चढ़ाया गया हूं।
15. क्योंकि न खतना, और न खतनारिहत कुछ है, परन्तु नई सृष्टि।
16. और जितने इस नियम पर चलेंगे उन पर, और परमेश्वर के इस्त्राएल पर, शान्ति और दया होती रहे।।
17. आगे को कोई मुझे दुख न दे, क्योंकि मैं यीशु के दागोंको अपक्की देह में लिथे फिरता हूं।।
18. हे भाइयो, हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारी आत्क़ा के साय रहे। आमीन।।
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