{[['']]}
यशायाह (Isaiah)
Chapter यशायाह 1
1. आमोस के पुत्र यशायाह का दर्शन, जिसको उस ने यहूदा और यरूशलेम के विषय में उज्जियाह, योताम, आहाज, और हिजकिय्याह नाम यहूदा के राजाओं के दिनोंमें पाया।
2. हे स्वर्ग सुन, और हे पृय्वी कान लगा; क्योंकि यहोवा कहता है: मैं ने बालबच्चोंका पालन पोषण किया, और उनको बढ़ाया भी, परन्तु उन्होंने मुझ से बलवा किया।
3. बैल तो अपके मालिक को और गदहा अपके स्वामी की चरनी को पहिचानता है, परन्तु इस्राएल मुझें नहीं जानता, मेरी प्रजा विचार नहीं करती।।
4. हाथ, यह जाति पाप से कैसी भरी है! यह समाज अधर्म से कैसा लदा हुआ है! इस वंश के लोग कैसे कुकर्मी हैं, थे लड़केबाले कैसे बिगड़े हुए हैं! उन्होंने यहोवा को छोड़ दिया, उन्होंने इस्राएल के पवित्र को तुच्छ जाना है! वे पराए बनकर दूर हो गए हैं।।
5. तुम बलवा कर करके क्योंअधिक मार खाना चाहते हो? तुम्हारा सिर घावोंसे भर गया, और तुम्हारा ह्रृदय दु:ख से भरा है।
6. नख से सिर तक कहीं भी कुछ आरोग्यता नहीं, केवल चोट और कोड़े की मार के चिन्ह और सड़े हुए घाव हैं जो न दबाथे गए, न बान्धे गए, न तेल लगाकर नरमाथे गए हैं।।
7. तुम्हारा देश उजड़ा पड़ा है, तुम्हारे नगर भस्म हो गए हैं; तुम्हारे खेतोंको परदेशी लोग तुम्हारे देखते ही निगल रहे हैं; वह परदेश्यथें से नाश किए हुए देश के समान उजाड़ है।
8. और सिय्योन की बेटी दाख की बारी में की फोपक्की की नाईं छोड़ दी गई है, वा ककड़ी के खेत में की छपरिया या घिरे हुए नगर के समान अकेली खड़ी है।
9. यदि सेनाओं का यहोवा हमारे योड़े से लोगोंको न बचा रखता, तो हम सदोम के समान हो जाते, और अमोरा के समान ठहरते।।
10. हे सदोम के न्याइयों, यहोवा का वचन सुनो! हे अमोरा की प्रजा, हमारे परमेश्वर की शिझा पर कान लगा।
11. यहोवा यह कहता है, तुम्हारे बहुत से मेलबलि मेरे किस काम के हैं? मैं तो मेढ़ोंके होमबलियोंसे और पाले हुए पशुओं की चर्बी से अघा गया हूं;
12. मैं बछड़ोंवा भेड़ के बच्चोंवा बकरोंके लोहू से प्रसन्न नहीं होता।। तुम जब अपके मुंह मुझे दिखाने के लिथे आते हो, तब यह कौन चाहता है कि तुम मेरे आंगनोंको पांव से रौंदो?
13. व्यर्य अन्नबलि फिर मत लाओ; धूप से मुझे घृणा है। नथे चांद और विश्रमदिन का मानना, और सभाओं का प्रचार करना, यह मुझे बुरा लगता है। महासभा के साय ही साय अनर्य काम करना मुझ से सहा नहीं जाता।
14. तुम्हारे नथे चांदोंऔर नियत पर्वोंके मानने से मैं जी से बैर रखता हूं; वे सब मुझे बोफ से जान पड़ते हैं, मैं उनको सहते सहते उकता गया हूं।
15. जब तुम मेरी ओर हाथ फैलाओ, तब मैं तुम से मुंह फेर लूंगा; तुम कितनी ही प्रार्यना क्योंन करो, तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा; क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं।
16. अपके को धोकर पवित्र करो: मेरी आंखोंके साम्हने से अपके बुरे कामोंको दूर करो; भविष्य में बुराई करता छोड़ दो,
17. भलाई करना सीखो; यत्न से न्याय करो, उपद्रवी को सुधारो; अनाय का न्याय चुकाओ, विधवा का मुकद्दमा लड़ो।।
18. यहोवा कहता है, आओ, हम आपस में वादविवाद करें: तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम की नाईं उजले हो जाएंगे; और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्वेत हो जाएंगे।
19. यदि तुम आज्ञाकारी होकर मेरी मानो,
20. तो इस देश के उत्तम से उत्तम पदायै खाओगे; और यदि तुम ने मानो और बलवा करो, तो तलवार से मारे जाओगे; यहोवा का यही वचन है।।
21. जो नगरी सती यी सो क्योंकर व्यभिचारिन हो गई! वह न्याय से भरी यी और उस में धर्म पाया जाता या, परन्तु अब उस में हत्यारे ही पाए जाते हैं। तेरी चान्दी घातु का मैल हो गई,
22. तेरे दाखमधु में पानी मिल गया है।
23. तेरे हाकिम हठीले और चोरोंसे मिले हैं। वे सब के सब घूस खानेवाले और भेंट के लालची हैं। वे अनाय का न्याय नहीं करते, और न विधवा का मुकद्दमा अपके पास आने देते हैं।
24. इस कारण प्रभु सेनाओं के यहोवा, इस्राएल के शक्तिमान की यह वाणी है: सुनो, मैं अपके शत्रुओं को दूर करके शान्ति पाऊंगा, और अपके बैरियोंसे पलटा लूंगा।
25. और मैं तुम पर हाथ बढ़ाकर तुम्हारा धातु का मैल पूरी रीति से दूर करूंगा।
26. और मैं तुम में पहिले की नाईं न्यायी और आदि काल के समान मंत्री फिर नियुक्त करूंगा। उसके बाद तू धम्रपुरी और सती नगरी कहलाएगी।।
27. सिय्योन न्याय के द्वारा, और जो उस में फिरेंगे वे धर्म के द्वारा छुड़ा लिए जाएंगे।
28. परन्तु बलवाइयोंऔर पापियोंका एक संग नाश होगा, और जिन्होंने यहोवा को न्यागा है, उनका अन्त हो जाएगा।
29. क्योंकि जिन बांजवृझोंसे तुम प्रीति रखते थे, उन से वे लज्जित होंगे, और जिन बारियोंसे तुम प्रसन्न रहते थे, उसके कारण तुम्हारे मुंह काले होंगे।
30. क्योंकि तुम पत्ते मुर्फाए हुए बांजवृझ के, और बिना जल की बारी के समान हो जाओगे।
31. और बलवान तो सन और उसका काम चिंगारी बनेगा, और दोनोंएक साय जलेंगे, और कोई बुफानेवाला न होगा।।
Chapter यशायाह 2
1. आमोस के पुत्र यशायाह का वचन, जो उस ने यहूदा और यरूशलेम के विषय में दर्शन में पाया।।
2. अन्त के दिनोंमें ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ोंपर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाडिय़ोंसे अधिक ऊंचा किया जाएगा; और हर जाति के लागे धारा की नाई उसकी ओर चलेंगें।
3. और बहुत देशोंके लागे आएंगे, और आपस में कहेंगे: आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएं; तब वह हमको अपके मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पयोंपर चलेंगे। क्योंकि यहोवा की व्यवस्या सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा।
4. वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगोंके फगड़ोंको मिटाएगा; और वे अपक्की तलवारें पीटकर हल के फाल और अपके भालोंको हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरूद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।।
5. हे याकूब के घराने, आ, हम यहोवा के प्रकाश में चलें।।
6. तू ने अपक्की प्रजा याकूब के घराने को त्याग दिया है, क्योंकि वे पूविर्योंके व्यवहार पर तन मन से चलते और पलिश्तियोंकी नाई टोना करते हैं, और परदेशियोंके साय हाथ मिलाते हैं।
7. उनका देश चान्दी और सोने से भरपूर है, और उनके रय अनगिनित हैं।
8. उनका देश मूरतोंसे भरा है; वे अपके हाथोंकी बनाई हुई वस्तुओं को जिन्हें उनहोंने अपक्की उंगलियोंसे संवारा है, दण्डवत् करते हैं।
9. इस से मनुष्य फुकते, और बड़े मनुष्य प्रणाम करते हैं, इस कारण उनको झमा न कर!
10. यहोवा के भय के कारण और उसके प्रताप के मारे चट्टान में घुस जा, और मिट्टी में छिप जा।
11. क्योंकि आदमियोंकी घमण्ड भरी आंखें नीची की जाएंगी और मनुष्योंका घमण्ड दूर किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊंचे पर विराजमान रहेगा।।
12. क्योंकि सेनाओं के यहोवा का दिन सब घमण्डियोंऔर ऊंची गर्दनवालोंपर और उन्नति से फूलनेवालोंपर आएगा; और वे फुकाए जाएंगे;
13. और लबानोन के सब देवदारोंपर जो ऊंचे और बड़ें हैं;
14. बासान के सब बांजवृझोंपर; और सब ऊंचे पहाड़ोंऔर सब ऊंची पहाडिय़ोंपर;
15. सब ऊंचे गुम्मटोंऔर सब दृढ़ शहरपनाहोंपर;
16. तर्शीश के सब जहाजोंऔर सब सुन्दर चित्रकारी पर वह दिन आता है।
17. और मनुष्य का गर्व मिटाया जाएगा, और मनुष्योंका घमण्ड नीचा किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊंचे पर विराजमान रहेगा।
18. और मूरतें सब की सब नष्ट हो जाएंगी।
19. और जब यहोवा पृय्वी के कम्पित करने के लिथे उठेगा, तब उसके भय के कारण और उसके प्रताप के मारे लोग चट्टानोंकी गुफाओं और भूमि के बिलोंमें जा घुसेंगे।।
20. उस दिन लोग अपक्की चान्दी-सोने की मूरतोंको जिन्हें उन्होंने दण्डवत् करने के लिथे बनाया या, छछून्दरोंऔर चमगीदड़ोंके आगे फेंकेंगे,
21. और जब यहोवा पृय्वी को कम्पित करने के लिथे उठेगा तब वे उसके भय के कारण और उसके प्रताप के मारे चट्टानोंकी दरारोंओर पहाडिय़ोंके छेदोंमें घुसेंगे।
22. सो तुम मनुष्य से पके रहो जिसकी श्वास उसके नयनोंमें है, क्योंकि उसका मूल्य है ही क्या?
Chapter यशायाह 3
1. सुनों, प्रभु सेनाओं का यहोवा यरूशलेम और यहूदा का सब प्रकार का सहारा और सिरहाना अर्यात् अन्न का सारा आधार, और जल का सारा आधार दूर कर देगा;
2. और वी और योद्धा को, न्यायी और नबी को, भावी वक्ता और वृद्ध को, पचास सिपाहियोंके सरदार और प्रतिष्ठित पुरूष को,
3. मन्त्री और चतुर कारीगर को, और निपुण टोन्हे को भी दूर कर देगा।
4. और मैं लड़कोंको उनके हाकिम कर दूंगा, और बच्चे उन पर प्रभुता करेंगे।
5. और प्रजा के लागे आपस में एक दूसरे पर, और हर एक अपके पड़ोसी पर अंधेर करेंगे; और जवान वृद्ध जनोंसे और नीच जन माननीय लोगोंसे असभ्यता का व्यवहार करेंगे।।
6. उस समय जब कोई पुरूष अपके पिता के घर में अपके भाई को पकड़कर कहेगा कि तेरे पास तो वस्त्र है, आ हमारा न्यायी हो जा और इस उजड़े देश को अपके वश में कर ले;
7. तब वह शपय खाकर कहेगा, मैं चंगा करनेहारा न हूंगा; क्योंकि मेरे घर में न तो रोटी है और न कपके; इसलिथे तुम मुझे प्रजा का न्यायी नहीं नियुक्त कर सकोगे।
8. यरूशलेम तो डगमगाया और यहूदा गिर गया है; क्योंकि उनके वचन औश्र् उनके काम यहोवा के विरूद्ध हैं, जो उसकी तेजोमय आंखोंके साम्हने बलवा करनेवाले ठहरे हैं।।
9. उनका चिहरा भी उनके विरूद्ध साझी देता है; वे सदोमियोंकी नाई अपके आप को आप ही बखानते और नहीं छिपाते हैं। उन पर हाथ! क्योंकि उन्होंने अपक्की हानि आप ही की है।
10. धमिर्योंसे कहो कि उनका भला होगा, क्योंकि उसके कामोंका फल उसको मिलेगा।
11. दुष्ट पर हाय!उसका बुरा होगा, क्योंकि उसके कामों का फल उसको मिलेगा।
12. मेरी प्रजा पर बच्चे अंधेर करते और स्त्रियां उन पर प्रभुता करती हैं। हे मेरी प्रजा, तेरे अगुव तुझे भटकाते हैं, और तेरे चलने का मार्ग भुला देते हैं।।
13. यहोवा देश देश के लोगोंसे मुकद्दमा लड़ने और उनका न्याय करने के लिथे खड़ा है।
14. यहोवा अपक्की प्रजा के वृद्ध और हाकिमोंके साय यह विवाद करता है, तुम ही ने बारी की दाख खा डाली है, और दीन लोगोंका धन लूटकर तुम ने अपके घरोंमें रखा है।
15. सेनाओं के प्रभु यहोवा की यह वाणी है, तुम क्योंमेरी प्रजा को दलते, और दीन लोगोंको पीस डालते हो!
16. यहोवा ने यह भी कहा है, क्योंकि सिय्योन की स्त्रियां घमण्ड करतीं और सिर ऊंचे किथे आंखें मटकातीं और घुंघुरूओं को छमछमाती हुई ठुमुक ठुमुक चलती हैं,
17. इसलिथे प्रभु यहोवा उनके सिर को गंजा करेगा, और उनके तन को उघरवाएगा।।
18. उस समय प्रभु घुंघुरूओं, जालियों,
19. चंद्रहारों, फुमकों, कड़ों, घूंघटों,
20. पगडिय़ों, पैकरियों, पटुकों, सुगन्धपात्रों, गण्डों,
21. अंगूठियों, नत्यों,
22. सुन्दर वों, कुत्तियों, चद्दरों, बटुओं,
23. दर्पणों, मलमल के वों, बुन्दियों, दुपट्टोंइन सभोंकी शोभा को दूर करेगा।
24. और सुगन्ध की सन्ती सड़ाहट, सुन्दर कर्घनी की सन्ती बन्धन की रस्सी, गुंथें हुए बालोंकी सन्ती गंजापन, सुन्दर पटुके की सन्ती टाट की पेटी, और सुन्दरता की सन्ती दाग होंगे।
25. तेरे पुरूष तलवार से, और शूरवीर युद्ध मे मारे जाएंगे।
26. और उसके फाटकोंमें सांस भरना और विलाप करना होगा; और भूमि पर अकेली बैठी रहेगी।
Chapter यशायाह 4
1. उस समय सात स्त्रियां एक पुरूष को पकड़कर कहेंगी कि रोटी तो हम अपक्की ही खाएंगी, और वस्त्र अपके ही पहिनेंगी, केवल हम तेरी कहलाएं; हमारी नामधराई को दूर कर।।
2. उस समय इस्राएल के बचे हुओं के लिथे यहोवा का पल्लव, भूषण और महिमा ठहरेगा, और भूमि की उपज, बड़ाई और शोभा ठहरेगी।
3. और जो कोई सिय्योन में बचा रहे, और यरूशलेम में रहे, अर्यात् यरूशलेम में जितनोंके नाम जीवनपत्र में लिखे हों, वे पवित्र कहलाएंगे।
4. यह तब होगा, जब प्रभु न्याय करनेवाली और भस्म करनेवाली आत्मा के द्धारा सिय्योन की स्त्रियोंके मल को धो चुकेगा और यरूशलेम के खून को दूर कर चुकेगा।
5. तब यहोवा सिय्योन पर्वत के एक एक घर के ऊपर, और उसके सभास्यनोंके ऊपर, दिन को तो धूंए का बादल, और रात को धधकती आग का प्रकाश सिरजेगा, और समस्त विभव के ऊपर एक मण्डप छाया रहेगा।
6. वह दिन को घाम से बचाने के लिथे और आंधी-पानी और फड़ी में एक शरण और आड़ होगा।।
Chapter यशायाह 5
1. अब मैं अपके प्रिय के लिथे और उसकी दाख की बारी के विषय में गीत गाऊंगा: एक अति उपजाऊ टीले पर मेरे प्रिय की एक दाख की बरी यी।
2. उस ने उसकी मिट्टी खोदी और उसके पत्यर बीनकर उस में उत्तम जाति की एक दाखलता लगाई; उसके बीच में उस ने एक गुम्मट बनाया, और दाखरस के लिथे एक कुण्ड भी खोदा; तब उस ने दाख की आशा की, परन्तु उस में निकम्मी दाखें ही लगीं।।
3. अब हे यरूशलेम के निवासियोंऔर हे यहूदा के मनुष्यों, मेरे और मेरी दाख की बारी के बीच न्याय करो।
4. मेरी दाख की बारी के लिथे और क्या करना रह गया जो मैं ने उसके लिथे न किया हो? फिर क्या कारण है कि जब मैं ने दाख की आशा की तब उस में निकम्मी दाखें लगीं?
5. अब मैं तुम को जताता हूं कि अपक्की दाख की बारी से क्या करूंगा। मैं उसके कांटेवाले बाड़े को उखाड़ दूंगा कि वह चट की जाए, और उसकी भीत को ढा दूंगा कि वह रौंदी जाए।
6. मैं उसे उजाड़ दूंगा; वह न तो फिर छांटी और न खोदी जाएगी और उस में भांति भांति के कटीले पेड़ उगेंगे; मैं मेघोंको भी आज्ञा दूंगा कि उस पर जल न बरसाएं।।
7. क्योंकि सेनाओं के यहोवा की दाख की बारी इस्राएल का घराना, और उसका मनभाऊ पौधा यहूदा के लोग है; और उस ने उन में न्याय की आशा की परन्तु अन्याय देख पड़ा; उस ने धर्म की आशा की, परन्तु उसे चिल्लाहट ही सुन पक्की!
8. हाथ उन पर जो घर से घर, और खेत से खेत यहां तक मिलाते जाते हैं कि कुछ स्यान नहीं बचता, कि तुम देश के बीच अकेले रह जाओ।
9. सेनाओं के यहोवा ने मेरे सुनते कहा है: निश्चय बहुत से घर सुनसान हो जाएंगे, और बड़ें बड़े और सुन्दर घर निर्जन हो जाएंगे।
10. क्योंकि दस बीघे की दाख की बारी से एक ही बत दाखमधु मिलेगा, और होमेर भर के बीच से एक ही एपा अन्न उत्पन्न होगा।।
11. हाथ उन पर जो बड़े तड़के उठकर मदिरा पीने लगते हैं और बड़ी रात तक दाखमधु पीते रहते हैं जब तक उनको गर्मी न चढ़ जाए!
12. उनकी जेवनारोंमें वीणा, सारंगी, डफ, बांसली और दाखमधु, थे सब पाथे जाते हैं; परन्तु वे यहोवा के कार्य की ओर दृष्टि नहीं करते, और उसके हाथोंके काम को नहीं देखते।।
13. इसलिथे अज्ञानता के कारण मेरी प्रजा बंधुआई में जाती है, उसके प्रतिष्ठित पुरूष भूखोंमरते और साधारण लोग प्यास से ब्याकुल होते हैं।
14. इसलिथे अधोलोक ने अत्यन्त लालसा करके अपना मुंह बेपरिमाण पसारा है, और उनका विभव और भीड़ भाड़ और आनन्द करनेवाले सब के सब उसके मुंह में जा पड़ते हैं।
15. साधारण मनुष्य दबाए जाते और बड़े मनुष्य नीचे किए जाते हैं, और अभिमानियोंकी आंखें नीची की जाती हैं।
16. परन्तु सेनाओं का यहोवा न्याय करने के कारण महान ठहरता, और पवित्र परमेश्वर धर्मी होने के कारण पवित्र ठहरता है!
17. तब भेड़ोंके बच्चे मानो अपके खेत में चरेंगे, परन्तु ह्रृष्टपुष्टोंके उजड़े स्यान परदेशियोंको चराई के लिथे मिलेंगे।।
18. हाथ उन पर जो अधर्म को अनर्य की रस्सिक्कों और पाप को मानो गाड़ी के रस्से से खींच ले आते हैं,
19. जो कहते हैं, वह फुर्ती करे और अपके काम को शीघ्र करे कि हम उसको देखें; और इस्राएल के पवित्र की युक्ति प्रगट हो, वह निकट आए कि हम उसको समझें!
20. हाथ उन पर जो बुरे को भला और भले को बुरा कहते, जो अंधिक्कारने को उजियाला और उजियाले को अंधिक्कारनेा ठहराते, और कडुवे को मीठा और मीठे को कड़वा करके मानते हैं!
21. हाथ उन पर जो अपक्की दृष्टि में ज्ञानी और अपके लेखे बुद्धिमान हैं!
22. हाथ उन पर जो दाखमधु पीने में वीर और मदिरा को तेज बनाने में बहादुर हैं,
23. जो घूस लेकर दुष्टोंको निर्दोष, और निर्दोषोंको दोषी ठहराते हैं!
24. इस कारण जैसे अग्नि की लौ से खूंटी भस्म होती है और सूखी घास जलकर बैठ जाती है, वैसे ही उनकी जड़ सड़ जाएगी और उनके फूल धूल होकर उड़ जाएंगे; क्योंकि उन्होंने सेनाओं के यहोवा की व्यवस्या को निकम्मी जाना, और इस्राएल के पवित्र के वचन को तुच्छ जाना है।
25. इस कारण यहोवा का क्रोध अपक्की प्रजा पर भड़का है, और उस ने उनके विरूद्ध हाथ बढ़ाकर उनको मारा है, और पहाड़ कांप उठे; और लोगोंकी लोथें सड़कोंके बीच कूड़ा सी पक्की हैं। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
26. वह दूर दूर की जातियोंके लिथे फण्डा खड़ा करेगा, और सींटी बजाकर उनको पृय्वी की छोर से बुलाएगा; देखो, वे फुर्ती करके वेग से आएंगे!
27. उन में कोई यका नहीं न कोई ठोकर खाता है; कोई ऊंघने वा सोनेवाला नहीं, किसी का फेंटा नहीं खुला, और किसी के जूतोंका बन्धन नहीं टूटा;
28. उनके तीर चोखे और धनुष चढ़ाए हुए हैं, उनके घोड़ोंके खुर वज्र के से और रयोंके पहिथे बवण्डर सरीखे हैं।
29. वे सिंह वा जवान सिंह की नाई गरजते हैं; वे गुर्राकर अहेर को पकड़ लेते और उसको ले भागते हैं, और कोई उसे उन से नहीं छुड़ा सकता।
30. उस समय वे उन पर समुद्र के गर्जन की नाई गर्जेंगे और यदि कोई देश की ओर देखे, तो उसे अन्धकार और संकट देख पकेगा और ज्योति मेघोंसे छिप जाएगी।।
Chapter यशायाह 6
1. जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया।
2. उस से ऊंचे पर साराप दिखाई दिए; उनके छ: छ: पंख थे; दो पंखोंसे वे अपके मुंह को ढांपे थे और दो से अपके पांवोंको, और दो से उड़ रहे थे।
3. और वे एक दूसरे से पुकार पुकारकर कह रहे थे: सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृय्वी उसके तेज से भरपूर है।
4. और पुकारनेवाले के शब्द से डेवढिय़ोंकी नेवें डोल उठीं, और भवन धूंए से भर गया।
5. तब मैं ने कहा, हाथ! हाथ! मैं नाश हूआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठवाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठवाले मनुष्योंके बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपक्की आंखोंसे देखा है!
6. तब एक साराप हाथ में अंगारा लिए हुए, जिसे उस ने चिमटे से वेदी पर से उठा लिया या, मेरे पास उड़ कर आया।
7. और उस ने उस से मेरे मुंह को छूकर कहा, देख, इस ने तेरे होंठोंको छू लिया है, इसलिय तेरा अधर्म दूर हो गया और तेरे पाप झमा हो गए।
8. तब मैं ने प्रभु का यह वचन सुना, मैं किस को भेंजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा? तब मैं ने कहा, मैं यहां हूं! मुझे भेज
9. उस ने कहा, जा, और इन लोगोंसे कह, सुनते ही रहो, परन्तु न समझो; देखते ही रहो, परन्तु न बूफो।
10. तू इन लोगोंके मन को मोटे और उनके कानोंको भारी कर, और उनकी आंखोंको बन्द कर; ऐसा न हो कि वे आंखोंसे देखें, और कानोंसे सुनें, और मन से बूफें, और मन फिरावें और चंगे हो जाएं।
11. तब मैं ने पूछा, हे प्रभु कब तक? उस ने कहा, जब तक नगर न उजड़े और उन में कोई रह न जाए, और घरोंमें कोई मनुष्य न रह जाए, और देश उजाड़ और सुनसान हो जाए,
12. और यहोवा मनुष्योंको उस में से दूर कर दे, और देश के बहुत से स्यान निर्जन हो जाएं।
13. चाहे उसके निवासियोंका दसवां अंश भी रह जाए, तौभी वह नाश किया जाएगा, परनतु जैसे छोटे वा बड़े बांजवृझ को काट डालने पर भी उसका ठूंठ बना रहता है, वैसे ही पवित्र वंश उसका ठूंठ ठहरेगा।।
Chapter यशायाह 7
1. यहूदा का राजा आहाज जो योताम का पुत्र और उज्जिय्याह का पोता या, उसके दिनोंमें आराम के राजा रसीन और इस्राएल के राजा रमल्याह के पुत्र पेकह ने यरूशलेम से लड़ने के लिथे चढ़ाई की, परन्तु युद्ध करके उन से कुछ बन न पड़ा
2. जब दाऊद के घराने को यह समाचार मिला कि अरामियोंने एप्रैमियोंसे सन्धि की है, तब उसका और प्रजा का भी मन ऐसा कांप उठा जैसे वन के वृझ वायु चलने से कांप जाते हैं।
3. तब यहोवा ने यशायाह से कहा, अपके पुत्र शार्याशूब को लेकर धोबियोंके खेत की सड़क से ऊपरली पोखरे की नाली के सिक्के पर आहाज से भेंट करने के लिथे जा,
4. और उस से कह, सावधान और शान्त हो; और उन दोनोंधूंआं निकलती लुकटियोंसे अर्यात् रसीन और अरामियोंके भड़के हुए कोप से, और रमल्याह के पुत्र से मत डर, और न तेरा मन कच्चा हो।
5. क्यांकि अरामियोंऔर रमल्याह के पुत्र समेत एप्रैमियोंने यह कहकर तेरे विरूद्ध बुरी युक्ति ठानी है कि आओ,
6. हम यहूदा पर चढ़ाई करके उसको घबरा दें, और उसको अपके वश में लाकर ताबेल के पुत्र को राजा नियुक्त कर दें।
7. इसलिथे प्रभु यहोवा ने यह कहा है कि यह युक्ति न तो सफल होगी और न पूरी।
8. क्योंकि आराम का सिर दमिश्क, ओर दमिश्क का सिर रसीन है। फिर एप्रैम का सिर शोमरोन और शोमरोन का सिर रमल्याह का पुत्र है।
9. पैंसठ वर्ष के भीतर एप्रैम का बल इतना टूट जाएगा कि वह जाति बनी न रहेगी। यदि तुम लोग इस बात की प्रतीति न करो; तो निश्चय तुम स्यिर न रहोगे।।
10. फिर यहोवा ने आहाज से कहा,
11. अपके परमेश्वर यहोवा से कोई चिन्ह मांग; चाहे वह गहिरे स्यान का हो, वा ऊपर आसमान का हो।
12. आहाज ने कहा, मैं नहीं मांगने का, और मैं यहोवा की पक्कीझा नहीं करूंगा।
13. तब उस ने कहा, हे दाऊद के घराने सुनो! क्या तुम मनुष्योंको उकता देना छोटी बात समझकर अब मेरे परमेश्वर को भी उकता दोगे?
14. इस कारण प्रभु आप ही तुम को एक चिन्ह देगा। सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।
15. और जब तक वह बुरे को त्यागना और भले को ग्रहण करना न जाने तब तक वह मक्खन और मधु खाएगा।
16. क्योंकि उस से पहिले कि वह लड़का बुरे को त्यागना और भले को ग्रहण करना जाने, वह देश जिसके दोनोंराजाओं से तू घबरा रहा है निर्जन हो जाएगा।
17. यहोवा तुझ पर, तेरी प्रजा पर और तेरे पिता के घराने पर ऐसे दिनोंको ले आएगा कि जब से एप्रैम यहूदा से अलग हो गया, तब वे वैसे दिन कभी नहीं आए -- अर्यात् अश्शूर के राजा के दिन ।।
18. उस समय यहोवा उन मक्खियोंको जो मिस्र की नदियोंके सिरोंपर रहती हैं, और उन मधुमक्खियोंको जो अश्शूर देश में रहती हैं, सीटी बजाकर बुलाएगा।
19. और वे सब की सब आकर इस देश के पहाड़ी नालोंमें, और चट्टानोंकी दरारोंमें, और सब भटकटैयोंऔर सब चराइयोंपर बैठ जाएंगी।।
20. उसी समय प्रभु महानद के पारवाले अश्शूर के राजारूपी भाड़े के छूरे से सिर और पांवोंके रोंएं मूंड़ेगा, उस से दाढ़ी भी पूरी मुंड़ जाएगी।।
21. उस समय ऐसा होगा कि मनुष्य केवल एक कलोर और दो भेड़ोंको पालेगा;
22. और वे इतना दूध देंगी कि वह मक्खन खाया करेगा; क्योंकि जितने इस देश में रह जाएंगे वह सब मक्खन और मधु खाया करेंगे।।
23. उस समय जिन जिन स्यानें में हजार टुकड़े चान्दी की हजार दाखलताएं हैं, उन सब स्यानें में कटीले ही कटीले पेड़ होंगे।
24. तीर और धनुष लेकर लोग वहां जाया करेंगे, क्योंकि सरे देश में कटीले पेड़ हो जाएंगे; और जितने पहाड़ कुदाल से खोदे जाते हैं,
25. उन सभोंपर कटीले पेड़ोंके डर के मारे कोई न जाएगा, वे गाथे बैलोंके चरने के, और भेड़ बकरियोंके रौंदने के लिथे होंगे।।
Chapter यशायाह 8
1. फिर यहोवा ने मुझ से कहा, एक बड़ी पटिया लेकर उस पर साधारण अझरोंसे यह लिख: महेर्शालाल्हाशबज के लिथे।
2. और मैं विश्वासयोग्य पुरूषोंको अर्यात् ऊरिय्याह याजक और जेबेरेक्याह के पुत्र जकर्याह को इस बात की साझी करूंगा।
3. और मैं अपक्की पत्नी के पास गया, और वह गर्भवती हुई और उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। तब यहोवा ने मुझ से कहा, उसका नाम महेर्शालाल्हाशबज रख;
4. क्योंकि इस से पहिले कि वह लड़का बापू और माँ पुकारण जाने, दमिश्क और शोमरोन दोनोंकी धन-सम्पत्ति लूटकर अश्शूर का राजा अपके देश को भेजेगा।।
5. यहोवा ने फिर मुझ से दूसरी बार कहा,
6. इसलिथे कि लोग शीलोह के धीरे धीरे बहनेवाले सोते को निकम्मा जानते हैं, और रसीन और रमल्याह के पुत्र के संग एका करके आनन्द करते हैं,
7. इस कारण सुन, प्रभु उन पर उस प्रबल और गहिरे महानद को, अर्यात् अश्शूर के राजा को उसके सारे प्रताप के साय चढ़ा लाएगा; और वह उनके सब नालोंको भर देगा और सारे कड़ाड़ोंसे छलककर बहेगा;
8. और वह यहूदा पर भी चढ़ आएगा, और बढ़ते बढ़ते उस पर चढ़ेगा और गले तक पहुंचेगा; और हे इम्मानुएल, तेरा समस्त देश उसके पंखोंके फैलने से ढंप जाएगा।।
9. हे लोगों, हल्ला करो तो करो, परन्तु तुम्हारा सत्यानाश हो जाएगा। हे पृय्वी के दूर दूर देश के सब लोगोंकान लगाकर सुनो, अपक्की अपक्की कमर कसो तो कसो, परन्तु तुम्हारे टुकड़े टुकड़े किए जाएंगे; अपक्की कमर कसो तो कसो, परन्तु तुम्हारा सत्यानाश हो जाएगा।
10. तुम युक्ति करो तो करो, परन्तु वह निष्फल हो जाएगी, तुम कुछ भी कहो, परन्तु तुम्हारा कहा हुआ ठहरेगा नहीं, क्योंकि परमेश्वर हमारे संग है।।
11. क्योंकि यहोवा दृढ़ता के साय मुझ से बोला और इन लोगोंकी सी चाल चलने को मुझे मना किया,
12. और कहा, जिस बात को यह लोग राजद्रोह कहें, उसको तुम राजद्रोह न कहना, और जिस बात से वे डरते हैं उस से तुम न डरना और न भय खाना।
13. सेनाओं के यहोवा ही को पवित्र जानना; उसी का डर मानना, और उसी का भय रखना।
14. और वह शरणस्यान होगा, परन्तु इस्राएल के दोनो घरानोंके लिथे ठोकर का पत्यर और ठेस की चट्टान, और यरूशलेम के निवासियोंके लिथे फन्दा और जाल होगा।
15. और बहुत से लोग ठोकर खाएंगे; वे गिरेंगे और चकनाचूर होंगे; वे फन्दे में फसेंगे और पकड़े जाएंगे।
16. चितौनी का पत्र बन्द कर दो, मेरे चेलोंके बीच शिझा पर छाप लगा दो।
17. मैं उस यहोवा की बाट जोहता रहूंगा जो अपके मुंख को याकूब के घराने से छिपाथे है, और मैं उसी पर आशा लगाए रहूंगा।
18. देख, मैं और जो लड़के यहोवा ने मुझे सौंपे हैं, उसी सेनाओं के यहोवा की ओर से जो सिय्योन पर्वत पर निवास किए रहता है इस्राएलियोंके लिथे चिन्ह और चमत्कार हैं।
19. जब लोग तुम से कहें कि ओफाओं और टोन्होंके पास जाकर पूछो जो गुनगुनाते और फुसफुसाते हैं, तब तुम यह कहना कि क्या प्रजा को अपके परमेश्वर ही के पास जाकर न पूछना चाहिथे? क्या जीवतोंके लिथे मुर्दोंसे पूछना चाहिथे?
20. व्यवस्या और चितौनी ही की चर्चा किया करो! यदि वे लोग इस वचनोंके अनुसार न बोलें तो निश्चय उनके लिथे पौ न फटेगी
21. वे इस देश में क्लेशित और भूखे फिरते रहेंगे; और जब वे भूखे होंगे, तब वे क्रोध में आकर अपके राजा और अपके परमेश्वर को शाप देंगे, और अपना मुख ऊपर आकाश की ओर उठाएंगे;
22. तब वे पृय्वी की ओर दृष्टि करेंगे परन्तु उन्हें सकेती और अन्धिक्कारनेा अर्यात् संकट भरा अन्धकार ही देख पकेगा; और वे घोर अन्धकार में ढकेल दिए जाएंगे।।
Chapter यशायाह 9
1. तौभी संकट-भरा अन्धकार जाता रहेगा। पहिले तो उस ने जबूलून और नप्ताली के देशोंका अपमान किया, परन्तु अन्तिम दिनोंमें ताल की ओर यरदन के पार की अन्यजातियोंके गलील को महिमा देगा।
2. जो लोग अन्धिक्कारने में चल रहे थे उन्होंने बड़ा उजियाला देखा; और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी।
3. तू ने जाति को बढ़ाया, तू ने उसको बहुत आनन्द दिया; वे तेरे साम्हने कटनी के समय का सा आनन्द करते हैं, और ऐसे मगन हैं जैसे लोग लूट बांटने के समय मगन रहते हैं।
4. क्योंकि तू ने उसकी गर्दन पर के भारी जूए और उसके बहंगे के बांस, उस पर अंधेर करनेवाले की लाठी, इन सभोंको ऐसा तोड़ दिया है जेसे मिद्यानियोंके दिन में किया या।
5. क्योंकि युद्ध में लड़नेवाले सिपाहियोंके जूते और लोहू में लयड़े हुए कपके सब आग का कौर हो जाएंगे।
6. क्योंकि हमारे लिथे एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत युक्ति करनेवाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा।
7. उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शान्ति का अन्त न होगा, इसलिथे वि उसको दाऊद की राजगद्दीपर इस समय से लेकर सर्वदा के लिथे न्याय और धर्म के द्वारा स्यिर किए ओर संभाले रहेगा। सेनाओं के यहोवा की धुन के द्वारा यह हो जाएगा।।
8. प्रभु ने याकूब के पास एक संदेश भेजा है, और वह इस्राएल पर प्रगट हुआ है;
9. और सारी प्रजा को, एप्रैमियोंऔर शोमरोनवासिक्कों मालूम हो जाएगा जो गर्व और कठोरता से बोलते हैं: ईंटें तो गिर गई हैं,
10. परन्तु हम गढ़ें हुए पत्यरोंसे घर बनाएंगे; गूलर के वृझ तो कट गए हैं परन्तु हम उनकी सन्ती देवदारोंसे काम लेंगे।
11. इस कारण यहोवा उन पर रसीन के बैरियोंको प्रबल करेगा,
12. और उनके शत्रुओं को अर्यात् पहिले आराम को और तब पलिश्तियोंको उभारेगा, और वे मुंह खोलकर इस्राएलियोंको निगल लेंगे। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
13. तौभी थे लोग अपके मारनेवाले की ओर नहीं फिरे और न सेनाओं के यहोवा की खोज करते हैं।
14. इस कारण यहोवा इस्राएल में से सिर और पूंछ को, खजूर की डालियोंऔर सरकंडे को, एक ही दिन में काट डालेगा।
15. पुरनिया और प्रतिष्ठित पुरूष तो सिर हैं, और फूठी बातें सिखानेवाला नबी पूंछ है;
16. क्योंकि जो इन लोगोंकी अगुवाई करते हैं वे इनको भटका देते हैं, और जिनकी अगुवाई होती है वे नाश हो जाते हैं।
17. इस कारण प्रभु न तो इनके जवानोंसे प्रसन्न होगा, और न इनके अनाय बालकोंऔर विधवाओं पर दया करेगा; क्योंकि हर एक के मुख से मूर्खता की बातें निकलती हैं। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
18. क्योंकि दुष्टता आग की नाई धधकती है, वह ऊंटकटारोंऔर कांटोंको भस्म करती है, वरन वह घने वन की फाडिय़ोंमें आग लगाती है और वह धुंआ में चकरा चकराकर ऊपर की ओर उठती है।
19. सेनाओं के यहोवा के रोष के मारे यह देश जलाया गया है, और थे लोग आग की ईंधन के समान हैं; वे आपस में एक दूसरे से दया का व्यवहार नहीं करते।
20. वे दहिनी ओर से भोजनवस्तु छीनकर भी भूखे रहते, और बाथें ओर से खाकर भी तृप्त नहीं होते; उन में से प्रत्थेक मनुष्य अपक्की अपक्की बांहोंका मांस खाता है,
21. मनश्शे एप्रैम को और एप्रैम मनश्शे को खाता है, और वे दोनोंमिलकर यहूदा के विरूद्ध हैं इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ, और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
Chapter यशायाह 10
1. हाथ उन पर जो दुष्टता से न्याय करते, और उन पर जो उत्पात करने की आज्ञा लिख देते हैं,
2. कि वे कंगालोंका न्याय बिगाड़ें और मेरी प्रजा के दी लोगोंका हक मारें, कि वे विधवाओं को लूटें और अनायोंका माल अपना लें!
3. तुम दण्ड के दिन और उस आपत्ति के दिन जो दूर से आएगी क्या करोगे? तुम सहाथता के लिथे किसके पास भाग कर जाओगे? और तुम अपके विभव को कहां रख छोड़ोगे?
4. वे केवल बंधुओं के पैरोंके पास गिर पकेंगे और मरे हुओं के नीचे दबे पके रहेंगे। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
5. अश्शूर पर हाथ, जो मेरे क्रोध का लठ और मेरे हाथ में का सोंटा है! वह मेरा क्रोध है।
6. मैं उसको एक भक्तिहीन जाति के विरूद्ध भेजूंगा, और जिन लोगोंपर मेरा रोष भड़का है उनके विरूद्ध उसको आज्ञा दूंगा कि छीन छान करे और लूट ले, और उनको सड़कोंकी कीच के समान लताड़े।
7. परन्तु उसकी ऐसी मनसा न होगी, न उसके मन में यही है कि मैं बहुत सी जातियोंका नाश और अन्त कर डालूं।
8. कयोंकि वह कहता है, क्या मेरे सब हाकिम राजा के तुल्य नहीं है?
9. क्या कलनो कर्कमीश के समान नहीं है? क्या हमात अर्पद के और शोमरोन दमिश्क के समान नहीं?
10. जिस प्रकार मेरा हाथ मूरतोंसे भरे हुए उन राज्योंपर पहुंचा जिनकी मूरतें यरूशलेम और शोमरोन की मूरतोंसे बढ़कर यीं, और जिस प्रकार मैं ने शोमरोन और उसकी मूरतोंसे किया,
11. क्या उसी प्रकार मैं यरूशलेम से और उसकी मूरतोंसे भी न करूं?
12. इस कारण जब प्रभु सिय्योन पर्वत पर और यरूशलेम में अपना सब काम का चुकेगा, तब मैं अश्शूर के राजा के गर्व की बातोंका, और उसकी घमण्ड भरी आंखोंका पलटा दूंगा।
13. उस ने कहा है, अपके ही बाहुबल और बुद्धि से मैं ने यह काम किया है, क्योंकि मैं चतुर हूं; मैं ने देश देश के सिवानोंको हटा दिया, और उनके रखे हुए धन को लूअ लिया; मैं ने वीर की नाई गद्दी पर विराजनेहारोंको उतार दिया है।
14. देश देश के लोगोंकी धनसम्पत्ति, चिडिय़ोंके घोंसलोंकी नाईं, मेरे हाथ आई है, और जैसे कोई छोड़े हुए अण्डोंको बटोर ले वैसे ही मैं ने सारी पृय्वी को बटोर लिया है; और कोई पंख फड़फड़ाने वा चोंच खोलने वा चीं चीं करनेवाला न या।।
15. क्या कुल्हाड़ा उसक विरूद्ध जो उस से काटता हो डींग मारे, वा आरी उसके विरूद्ध जो उसे खींचता हो बड़ाई करे? क्या सोंटा अपके चलानेवाले को चलाए वा छड़ी उसे उठाए जो काठ नहीं है!
16. इस कारण प्रभु अर्यात् सेनाओं का प्रभु उस राजा के ह्रृष्टपुष्ट योद्धाओं को दुबला कर देगा, और उसके ऐश्वर्य के नीचे आग की सी जलन होगी।
17. इस्राएल की ज्योति तो आग ठहरेगी, और इस्राएल का पवित्र ज्वाला ठहरेगा; और वह उसके फाड़ फंखार को एक ही दीन में भस्म करेगा।
18. और जैसे रोगी के झीण हो जाने पर उसकी दशा होती है वैसी ही वह उसके वन और फलदाई बारी की शोभा पूरी रीति से नाश करेगा।
19. उस वन के वृझ इतने योड़े रह जाएंगे कि लड़का भी उनको गिन कर लिख लेगा।।
20. उस समय इस्राएल के बचे हुए लोग और याकूब के घराने के भागे हुए, अपके मारनेवाले पर फिर कभी भरोसा न रखेंगे, परन्तु यहोवा जो इस्राएल का पवित्र है, उसी पर वे सच्चाई से भरोसा रखेंगे।
21. याकूब में से बचे हुए लोग पराक्रमी परमेश्वर की ओर फिरेंगे।
22. क्योंकि हे इस्राएल, चाहे तेरे लोग समुद्र की बालू के किनकोंके समान भी बहुत हों, तौभी निश्चय है कि उन में से केवल बचे लोग भी लौटेंगे। सत्यानाश तो पूरे न्याय के साय ठाना गया है।
23. क्योंकि प्रभु सेनाओं के यहोवा ने सारे देश का सत्यानाश कर देना ठाना है।।
24. इसलिथे प्रभु सेनाओं का यहोवा योंकहता है, हे सिय्योन में रहनेवालोंमेरी प्रजा, अश्शूर से मत डर; चाहे वह सोंटें से तुझे मारे और मिस्र की नाई तेरे ऊपर छड़ी उठाएं।
25. क्योंकि अब योड़ी ही देर है कि मेरी जलन और क्रोध उनका सत्यानाश करके शान्त होगा
26. और सेनाओं का यहोवा उसके विरूद्ध कोड़ा उठाकर उसको ऐसा मारेगा जैसा उस ने ओरेब नाम चट्टान पर मिद्यानियोंको मारा या; और जेया उस ने मिस्रियोंके विरूद्ध समुद्र पर लाठी बढ़ाई, वैसा ही उसकी ओर भी बढ़ाएगा।
27. उस समय ऐसा होगा कि उसका बोफ तेरे कंधे पर से और उसका जूआ तेरी गर्दन पर से उठा लिया जाएगा, और अभिषेक के कारण वह जूआ तोड़ डाला जाएगा।।
28. वह अय्यात् में आया है, और मिग्रोन में से होकर आगे बढ़ गया है; मिकमाश में उस ने अपना सामान रखा है।
29. वे घाटी से पार हो गए, उन्होंने गेबा में रात काटी; रामा यरयरा उठा है, शाऊल का गिबा भाग निकला है।
30. हे गल्लीम की बेटी चिल्ला! हे लैशा के लागोंकान लगाओ! हाथ बेचारा अनातोत!
31. मदमेना मारा मारा फिरता है, गेबीम के निवासी भागने के लिथे अपना अपना समान इकट्टा कर रहे हैं।
32. आज ही के दिन वह नोब में टिकेगा; तब वह सिय्योन पहाड़ पर, और यरूशलेम की पहाड़ी पर हाथ उठाकर घमाकएगा।
33. देखो, प्रभु सेनाओं का यहोवा पेड़ोंको भयानक रूप से छांट डालेगा; ऊँचे ऊँचे वृझ काटे जाएंगे, और जो ऊँचे हैं सो नीचे किए जाएंगे।
34. वह घने वन को लोहे से काट डालेगा और लबानोन एक प्रतापी के हाथ से नाश किया जाएगा।।
Chapter यशायाह 11
1. तब यिशै के ठूंठ में से एक डाली फूट निकलेगी और उसकी जड़ में से एक शाखा निकलकर फलवन्त होगी।
2. और यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी।
3. ओर उसको यहोवा का भय सुगन्ध सा भाएगा।। वह मुंह देखा न्याय न करेगा और न अपके कानोंके सुनने के अनुसार निर्णय करेगा;
4. परन्तु वह कंगालोंका न्याय धर्म से, और पृय्वी के नम्र लोगोंका निर्णय खाराई से करेगा; और वह पृय्वी को अपके वचन के सोंटे से मारेगा, और अपके फूंक के फोंके से दुष्ट को मिटा डालेगा।
5. उसकी कटि का फेंटा धर्म और उसकी कमर का फेंटा सच्चाई होगी।।
6. तब भेडिय़ा भेड़ के बच्चे के संग रहा करेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साय बैठा रहेगा, और बछड़ा और जवान सिंह और पाला पोसा हुआ बैल तीनोंइकट्ठे रहेंगे, और एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा।
7. गाय और रीछनी मिलकर चरेंगी, और उनके बच्चे इकट्ठे बैठेंगे; और सिंह बैल की नाईं भूसा खाया करेगा।
8. दूधपिउवा बच्चा करैत के बिल पर खेलेगा, और दूध छुड़ाया हुआ लड़का नाग के बिल में हाथ डालेगा।
9. मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दु:ख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृय्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।।
10. उस समय यिशै की जड़ देश देश के लोगोंके लिथे एक फण्ड़ा होगी; सब राज्योंके लोग उसे ढूंढ़ेंगें, और उसका विश्रमस्यान तेजोमय होगा।।
11. उस समय प्रभु अपना हाथ दूसरी बार बढ़ाकर बचे हुओं को, जो उसकी प्रजा के रह गए हैं, अश्शूर से, मिस्र से, पत्रोस से, कूश से, एलाम से, शिनार से, हमात से, और समुद्र के द्वीपोंसे मोल लेकर छुड़ाएगा।
12. वह अन्यजातियोंके लिथे फण्ड़ा खड़ा करके इस्राएल के सब निकाले हुओं को, और यहूदा के सब बिखरे हुओं को पृय्वी की चारोंदिशाओं से इकट्ठा करेगा।
13. एप्रैम फिर डाह न करेगा और यहूदा के तंग करनेवाले काट डाले जाएंगे; न तो एप्रैम यहूदा से डाह करेगा और न यहूदा एप्रैम को तंग करेगा।
14. परन्तु वे पश्चिम की ओर पलिश्तियोंके कंधे पर फपट्टा मारेंगे, और मिलकर पूविर्योंको लूटेंगे। वे एदोम और मोआब पर हाथ बढ़ाएंगे, और अम्मोनी उनके अधीन हो जाएंगे।
15. और यहोवा मिस्र के समुद्र की खाड़ी को सुखा डालेगा, और महानद पर अपना हाथ बढ़ाकर प्रचण्ड लू से ऐसा सुखाएगा कि वह सात धार हो जाएगा, और लोग लूता पहिने हुए भी पार हो जाएंगे।
16. और उसकी प्रजा के बचे हुओं के लिथे अश्शूर से एक ऐसा राज-मार्ग होगा जैसा मिस्र देश से चले आने के समय इस्राएल के लिथे हुआ या।।
Chapter यशायाह 12
1. उस दिन तू कहेगा, हे यहोवा, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, क्योंकि यद्यिप तू मुझ पर क्रोधित हुआ या, परन्तु अब तेरा क्रोध शान्त हुआ, और तू ने मुझे शान्ति दी है।।
2. परमेश्वर मेरा उद्धार है, मैं भरोसा रखूंगा और न यरयराऊंगा; क्योंकि प्रभु यहोवा मेरा बल और मेरे भजन का विषय है, और वह मेरा उद्धारकर्ता हो गया है।।
3. तुम आनन्दपूर्वक उद्धार के सोतोंसे जल भरोगे।
4. और उस दिन तुम कहोगे, यहोवा की स्तुति करो, उस से प्रार्यना करो; सब जातियोंमें उसके बड़े कामोंका प्रचार करो, और कहो कि उसका नाम महान है।।
5. यहोवा का भजन गाओ, क्योंकि उस ने प्रतापमय काम किए हैं, इसे सारी पृय्वी पर प्रगट करो।
6. हे सिय्योन में बसनेवाली तू जयजयकार कर और ऊंचे स्वर से गा, क्योंकि इस्राएल का पवित्र तुझ में महान है।।
Chapter यशायाह 13
1. बाबुल के विषय की भारी भविष्यवाणी जिसको आमोस के पुत्र यशायाह ने दर्शन में पाया।
2. मुंड़े पहाड़ पर एक फंडा खड़ा करो, हाथ से सैन करो और और उन से ऊंचे स्वर से पुकारो कि वे सरदारोंके फाटकोंमें प्रवेश करें।
3. मैं ने स्वयं अपके पवित्र किए हुओं को आज्ञा दी है, मैं ने अपके क्रोध के लिथे अपके वीरोंको बुलाया है जो मेरे प्रताप के कारण प्रसन्न हैं।।
4. पहाड़ोंपर एक बड़ी भीड़ का सा कोलाहल हो रहा है, मानो एक बड़ी फौज की हलचल हों। राज्य राजय की इकट्ठी की हुई जातियां हलचल मचा रही हैं। सेनाओं का यहोवा युद्ध के लिथे अपक्की सेना इकट्ठी कर रहा है।
5. वे दूर देश से, आकाश के छोर से आए हैं, हाँ, यहोवा अपके क्रोध के हयियारोंसमेत सारे देश को नाश करने के लिथे आया है।।
6. हाथ-हाथ करो, क्योंकि यहोवा का दिन समीप है; वह सर्वशक्तिमान् की ओर से मानो सत्यानाश करने के लिथे आता है।
7. इस कारण सब के हाथ ढ़ीले पकेंगे, और हर एक मनुष्य का ह्रृदय पिघल जाएगा,
8. और वे घबरा जाएगें। उनको पीड़ा और शोक होगा; उनको जच्चा की सी पीड़ाएं उठेंगी। वे चकित होकर एक दूसरे को ताकेंगे; उनके मुंह जल जाथेंगे।।
9. देखो, यहोवा का वह दिन रोष और क्रोध और निर्दयता के साय आता है कि वह पृय्वी को उजाड़ डाले और पापियोंको उस में से नाश करे।
10. क्योंकि आकाश के तारागण और बड़े बड़े नझत्र अपना प्रकाश न देंगे, और सूर्य उदय होते होते अन्धेरा हो जाएगा, और चन्द्रमा अपना प्रकाश न देगा।
11. मैं जगत के लोगोंको उनकी बुराई के कारण, और दुष्टोंको उनके अधर्म का दण्ड दूंगा; मैं अभिमानियोंके अभिमान को नाश करूंगाए और उपद्रव करनेवालोंके घमण्ड को तोडूंगा।
12. मैं मनुष्य को कुन्दन से, और आदमी को ओपीर के सोने से भी अधिक महंगा करूंगा।
13. इसलिथे मैं आकाश को कंपाऊंगा, और पृय्वी अपके स्यान से टल जाएगी; यह सेनाओं के यहोवा के रोष के कारण और उसके भड़के हुए क्रोध के दिन होगा।
14. और वे खदेड़े हुए हरिण, वा बिन चरवाहे की भेड़ोंकी नाईं अपके अपके लोगोंकी ओर फिरेंगे, और अपके अपके देश को भाग जाएंगे।
15. जो कोई मिले सो बेधा जाएगा, और जो कोई पकड़ा जाए, वह तलवार से मार डाला जाएगा।
16. उनके बाल-बच्चे उनके साम्हने पटक दिए जाएंगे; और उनके घर लूटे जाएंगे, और उनकी स्त्रियां भ्रष्ट की जाएंगी।।
17. देखो, मैं उनके विरूद्ध मादी लोगोंको उभारूंगा जो न तो चान्दी का कुछ विचार करेंगे और न सोने का लालच करेंगे।
18. वे तीरोंसे जवानोंको मारेंगे, और बच्चोंपर कुछ दया न करेंगे, वे लड़कोंपर कुछ तरस न खाएंगे।
19. और बाबुल जो सब राज्योंका शिरोमणि है, और जिसकी शोभा पर कसदी लोग फूलते हैं, वह ऐसा हो जाएगा जैसे सदोम और अमोरा, जब परमेश्वर ने उन्हें उलट दिया या।
20. वह फिर कभी न बसेगा और युग युग उस में कोई वास न करेगा; अरबी लोग भी उस में डेरा खड़ा न करेंगे, और न चरवाहे उस में अपके पशु बैठाएंगे।
21. वहां जंगली जन्तु बैठेंगे, और उल्लू उनके घरोंमें भरे रहेंगे; वहां शुतुर्मुर्ग बसेंगे, और छगलमानस वहां नाचेंगे। उस नगर के राज-भवनोंमें हुंडार,
22. और उसके सुख-विलास के मन्दिरोंमें गीदड़ बोला करेंगे; उसके नाश होने का समय निकट आ गया है, और उसके दिन अब बहुत नहीं रहे।।
Chapter यशायाह 14
1. यहोवा याकूब पर दया करेगा, और इस्राएल को फिर अपनाकर, उन्हीं के देश में बसाएगा, और परदेशी उन से मिल जाएंगे और अपके अपके को याकूब के घराने से मिला लेंगे।
2. और देश देश के लोग उनको उन्हीं के स्यान में पहुंचाएंगे, और इस्राएल का घराना यहोवा की भूमि पर उनका अधिक्कारनेी होकर उनको दास और दासियां बनाएगा; क्योंकि वे अपके बंधुवाई में ले जानेवालोंको बंधुआ करेंगे, और जो उन पर अत्याचार करते थे उन पर वे शासन करेंगे।।
3. और जिस दिन यहोवा तुझे तेरे सन्ताप और घबराहट से, और उस कठिन श्र्म से जो तुझ से लिया गया विश्रम देगा,
4. उस दिन तू बाबुल के राजा पर ताना मारकर कहेगा कि परिश्र्म करानेवाला कैसा नाश हो गया है, सुनहले मन्दिरोंसे भरी नगरी कैसी नाश हो गई है!
5. यहोवा ने दुष्टोंके सोंटे को और अन्याय से शासन करनेवालोंके लठ को तोड़ दिया है,
6. जिस से वे मनुष्योंको लगातार रोष से मारते रहते थे, और जाति जाति पर क्रोध से प्रभुता करते और लगातार उनके पीछे पके रहते थे।
7. अब सारी पृय्वी को विश्रम मिला है, वह चैन से है; लोग ऊंचे स्वर से गा उठे हैं।
8. सनौवर और लबानोन के देवदार भी तुझ पर आनन्द करके कहते हैं, जब से तू गिराया गया तब से कोई हमें काटने को नहीं आया।
9. पाताल के नीचे अधोलो में तुझ से मिलने के लिथे हलचल हो रही है; वह तेरे लिथे मुर्दोंको अर्यात्पृय्वी के सब सरदारोंको जगाता है, और वह जाति जाति से सब राजाओं को उनके सिंहासन पर से उठा खड़ा करता है।
10. वे सब तुझ से कहेंगे, क्या तू भी हमारी नाई निर्बल हो गया है? क्या तू हमारे समान ही बन गया?
11. तेरा विभव और तेरी सारंगियोंको शब्द अधोलोक में उतारा गया है; कीड़े तेरा बिछौना और केचुए तेरा ओढ़ना हैं।।
12. हे भोर के चमकनेवाले तारे तू क्योंकर आकाश से गिर पड़ा है? तू जो जाति जाति को हरा देता या, तू अब कैसे काटकर भूमि पर गिराया गया है?
13. तू मन में कहता तो या कि मैं स्वर्ग पर चढूंगा; मैं अपके सिंहासन को ईश्वर के तारागण से अधिक ऊंचा करूंगा; और उत्तर दिशा की छोर पर सभा के पर्वत पर बिराजूंगा;
14. मैं मेघोंसे भी ऊंचे ऊंचे स्यानोंके ऊपर चढूंगा, मैं परमप्रधान के तुल्य हो जाऊंगा।
15. परन्तु तू अधोलोक में उस गड़हे की तह तक उतारा जाएगा।
16. जो तुझे देखेंगे तुझ को ताकते हुए तेरे विषय में सोच सोचकर कहेंगे, क्या यह वही पुरूष है जो पृय्वी को चैन से रहने न देता या और राज्य राज्य में घबराहट डज्ञल देता या;
17. जो जगत को जंगल बनाता और उसके नगरोंको ढा देता या, और अपके बंधुओं को घर जाने नहीं देता या?
18. जाति जाति के सब राजा अपके अपके घर पर महिमा के साय आराम से पके हैं;
19. परन्तु तू निकम्मी शाख की नाईं अपक्की कबर में से फेंका गया; तू उन मारे हुओं की लोयोंसे घिरा है जो तलवार से बिधकर गड़हे में पत्यरोंके बीच में लताड़ी हुई लोय के समान पके है।
20. तू उनके साय कब्र में न गाड़ा जाएगा, क्योंकि तू ने अपके देश को उजाड़ दिया, और अपक्की प्रजा का घात किया है। कुकमिर्योंके वंश का नाम भी कभी न लिया जाएगा।
21. उनके पूर्वजोंके अधर्म के कारण पुत्रोंके घात की तैयारी करो, ऐसा न हो कि वे फिर उठकर पृय्वी के अधिक्कारनेी हो जाएं, और जगत में बहुत से नगर बसाएं।।
22. सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है कि मैं उनके विरूद्ध उठूंगा, और बाबुल का नाम और निशान मिटा डालूंगा, और बेटों-पोतोंको काट डालूंगा, यहोवा की यही वाणी है।
23. मैं उसको साही की मान्द और जल की फीलें कर दूंगा, और मैं उसे सत्यानाश के फाडू से फाड़ डालूंगा, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।।
24. सेनाओं के यहोवा ने यह शपय खाई है, नि:सन्देह जैसा मैं ने ठाना है, वैसा ही हो जाएगा, और जैसी मैं ने युक्ति की है, वैसी ही पूरी होगी,
25. कि मैं अश्शूर को अपके ही देश में तोड़ दूंगा, और अपके पहाड़ोंपर उसे कुचल डालूंगा; तब उसका जूआ उनकी गर्दनोंपर से और उसका बोफ उनके कंधोंपर से उतर जाएगा।
26. यही युक्ति सारी पृय्वी के लिथे ठहराई गई है; और यह वही हाथ है जो सब जातियोंपर बढ़ा हुआ है।
27. क्योंकि सेनाओं के यहोवा ने युक्ति की है और कौन उसका टाल सकता है? उसका हाथ बढ़ाया गया है, उसे कौन रोक सकता है?
28. जिस वर्ष में आहाज राजा मर गया उसी वर्ष यह भारी भविष्यद्वाणी हुई:
29. हे सारे पलिश्तीन तू इसलिथे आनन्द न कर, कि तेरे मारनेवाले की लाठी टूट गई, क्योंकि सर्प की जड़ से एक काला नाग उत्पन्न होगा, और उसका फल एक उड़नेवाला और तेज विषवाला अग्निसर्प होगा।
30. तब कंगालोंके जेठे खाएंगे और दरिद्र लोग निडर बैठने पाएंगे, परन्तु मैं तेरे वंश को भूख से मार डालूंगा, और तेरे बचे हुए लोग घात किए जाएंगे।
31. हे फाटक, तू हाथ हाथ कर; हे नगर, तू चिल्ला; हे पलिश्तीन तू सब का सब पिघल जा! क्योंकि उत्तर से एक धूआं उठेगा और उसकी सेना में से कोई पीछे न रहेगा।।
32. तब अन्यजातियोंके दूतोंको क्या उत्तर दिया जाएगा? यह कि यहोवा ने सिय्योन की नेव डाली है, और उसकी प्रजा के दीन लोग उस में शरण लेंगे।।
Chapter यशायाह 15
1. मोआब के विषय भारी भविष्यद्वाणी। निश्चय मोआब का आर नगर एक ही रात में उजाड़ और नाश हो गया है; निश्चय मोआब का कीर नगर एक ही रात में उजाड़ और नाश हो गया है।
2. बैत और दीबोन ऊंचे स्यानोंपर रोने के लिथे चढ़ गए हैं; नबो और मेदबा के ऊपर मोआब हाथ हाथ करता है। उन सभोंके सिर मुड़े हुए, और सभोंकी दाढिय़ां मुंढ़ी हुई हैं;
3. सड़कोंमें लोग टाट पहिने हैं; छतोंपर और चौकोंमें सब कोई आंसू बहाते हुए हाथ हाथ करते हैं।
4. हेशबोन और एलाले चिल्ला रहे हैं, उनका शब्द यहस तक सुनाई पड़ता है; इस कारण मोआब के हयियारबन्द चिल्ला रहे हैं; उसका जी अति उदास है।
5. मेरा मन मोआब के लिथे दोहाई देता है; उसके रईस सोअर और एग्लतशलीशिय्या तक भागे जाते हैं। देखो, लूहीत की चढ़ाई पर वे रोते हुए चढ़ रहे हैं; सुनो, होरीनैम के मार्ग में वे नाश होने की चिल्लाहट मचा रहे हैं।
6. निम्रीम का जल सूख गया; घास कुम्हला गई और हरियाली मुर्फा गई, और नमी कुछ भी नहीं रही।
7. इसलिथे जो धन उन्होंने बचा रखा, और जो कुद उन्होंने इकट्ठा किया है, उस सब को वे उस नाले के पार लिथे जा रहे हैं जिस में मजनूवृझ हैं।
8. इस कारण मोआब के चारोंओर के सिवाने में चिल्लाहट हो रही है, उस में का हाहाकार एगलैम और बेरेलीम में भी सुन पड़ता है।
9. क्योंकि दीमोन का सोता लोहू से भरा हुआ है; तौभी मैं दीमोन पर और दु:ख डालूंगा, मैं बचे हुए मोआबियोंऔर उनके देश से भागे हुओं के विरूद्ध सिंह भेजूंगा।।
Chapter यशायाह 16
1. जंगल की ओर से सेला नगर से सिय्योन की बेटी के पर्वत पर देश के हाकिम के लिथे भेड़ोंके बच्चोंको भेजो।
2. मोआब की बेटियां अर्नोन के घाट पर उजाड़े हुए बच्चोंके समान हैं।
3. सम्मति करो, न्याय चुकाओ; दोपहर ही में अपक्की छाया को रात के समान करो; घर से निकाले हुओं को छिपा रखो, जो मारे मारे फिरते हैं उनको मत पकड़वाओ।
4. मेरे लोग जो निकाले हुए हैं वे तेरे बीच में रहें; नाश करनेवाले से मोआब को बचाओ। पीसनेवाला नहीं रहा, लूट पाट फिर न होगी; क्योंकि देश में से अन्धेर करनेवाले नाश हो गए हैं।
5. तब दया के साय एक सिंहासन स्यिर किया जाएगा और उस पर दाऊद के तम्बू में सच्चाई के साय एक विराजमान होगा जो सोच विचार कर सच्चा न्याय करेगा और धर्म के काम पर तत्पर रहेगा।।
6. हम ने मोआब के गर्व के विषय सुना है कि वह अत्यन्त अभिमानी या; उसके अभिमान और गर्व और रोष के सम्बन्ध में भी सुना है परन्तु उसका बड़ा बोल व्यर्य है।
7. क्योंकि मोआब हाथ हाथ करेगा; सब के सब मोआब के लिथे हाहाकार करेंगे। कीरहरासत की दाख की टिकियोंके लिथे वे अति निराश होकर लम्बी लम्बी सांस लिया करेंगे।।
8. क्योंकि हेशबोन के खेत और सिबमा की दाख लताएं मुर्फा गईं; अन्यजातियोंके अधिक्कारनेियोंने उनकी उत्तम उत्तम लताओं को काट काटकर गिरा दिया है, थे याजेर तक पहुंची और जंगल में भी फैलती गईं; और बढ़ते बढ़ते ताल के पार दूर तक बढ़ गई यीं।
9. मैं याजेर के साय सिबमा की दाखलताओं के लिथे भी रोऊंगा; हे हेशबोन और एलाले, मैं तुम्हें अपके आंसुओं से सींचूंगा; क्योंकि तुम्हारे धूपकाल के फलोंके और अनाज की कटनी के समय की ललकार सुनाई पक्की है।
10. और फलदाई बारियोंमें से आनन्द और मगनता जाती रही; दाख की बारियोंमें गीत न गाया जाएगा, न हर्ष का शब्द सुनाई देगा; और दाखरस के कुण्डोंमें कोई दाख न रौंदेगा, क्योंकि मैं उनके हर्ष के शब्द को बन्द करूंगा।
11. इसलिथे मेरा मन मोआब के कारण और मेरा ह्रृदय कीरहैरेस के कारण वीणा का सा क्रन्दन करता है।।
12. और जब मोआब ऊंचे स्यान पर मुंह दिखाते दिखाते यक जाए, और प्रार्यना करने को अपके पवित्र स्यान में आए, तो उसे कुछ लाभ न होगा।
13. यही वह बात है जो यहोवा ने इस से पहिले मोआब के विषय में कही यी।
14. परन्तु अब यहोवा ने योंकहा है कि मजदूरोंके वर्षोंके समान ती वर्ष के भीतर मोआब का विभव और उसकी भीड़-भाड़ सब तुच्छ ठहरेगी; और योड़े जो बचेंगे उनका कोई बल न होगा।।
Chapter यशायाह 17
1. दमिश्क के विषय भारी भविष्यवाणी। देखो, दमिश्क नगर न रहेगा, वह खंडहर ही खंडहर हो जाएगा।
2. अरोएर के नगर निर्जन हो जाएंगे, वे पशुओं के फुण्ड़ोंकी चराई बनेंगे; पशु उन में बैठेंगे और उनका कोई भगानेवाला न होगा।
3. एप्रैम के गढ़वाले नगर, और दमिश्क का राज्य और बचे हुए अरामी, तीनोंभविष्य में न रहेंगे; और जो दशा इस्राएलियोंके विभव की हुई वही उनकी होगी; सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।।
4. और उस समय याकूब का विभव घट जाएगा, और उसकी मोटी देह दुबली हो जाएगी।
5. और ऐसा होगा जैसा लवनेवाला अनाज काटकर बालोंको अपक्की अंकवार में समेटे वा रपाईम नाम तराई में कोई सिला बीनता हो।
6. तौभी जैसे जलपाई वृझ के फाड़ते समय कुछ फल रह जाते हैं, अर्यात् फुनगी पर दो-तीन फल, और फलवन्त डालियोंमें कहीं कहीं चार-पांच फल रह जाते हैं, वैसे ही उन में सिला बिनाई होगी, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।।
7. उस समय मनुष्य अपके कर्ता की ओर दृष्टि करेगा, और उसकी आंखें इस्राएल के पवित्र की ओर लगी रहेंगी;
8. वह अपक्की बनाई हुई वेदियोंकी ओर दृष्टि न करेगा, और न अपक्की बनाई हुई अशेरा नाम मूरतोंवा सूर्य की प्रतिमाओं की ओर देखेगा।
9. उस समय उनके गढ़वाले नगर घने वन, और उनके निर्जन स्यान पहाड़ोंकी चोटियोंके समान होंगे जो इस्राएलियोंके डर के मारे छोड़ दिए गए थे, और वे उजाड़ पके रहेंगे।।
10. क्योंकि तू अपके उद्धारकर्ता परमेश्वर को भूल गया और अपक्की दृढ़ चट्टान का स्मरण नहीं रखा; इस कारण चाहे तू मनभावने पौधे लगाथे और विदेशी कलम जमाथे,
11. चाहे रोपके के दिन तू अपके चारोंऔर बाड़ा बान्धे, और बिहान ही को उन में फूल खिलने लगें, तौभी सन्ताप और असाध्य दु:ख के दिन उसका फल नाश हो जाथेगा।।
12. हाथ, हाथ! देश देश के बहुत से लोगोंका कैसा नाद हो रहा है, वे समुद्र की लहरोंकी नाईं गरजते हैं। राज्य राज्य के लोगोंका कैसा गर्जन हो रहा है, वे प्रचण्ड धारा के समान नाद करते हैं!
13. राज्य राज्य के लोग बाढ़ के बहुत से जल की नाई नाद करते हैं, परन्तु वह उनको घुड़केगा, और वे दूर भाग जाएंगे, और ऐसे उड़ाए जाएंगे जैसे पहाड़ोंपर की भूसी वायु से, और धूलि बवण्डर से घुमाकर उड़ाई जाती है।
14. सांफ को, देखो, घबराहट है! और भोर से पहिले, वे लोप हो गथे हैं! हमारे नाश करनेवालोंको भाग और हमारे लूटनेवाले की यही दशा होगी।।
Chapter यशायाह 18
1. हाथ, पंखोंकी फड़फड़ाहट से भरे हुए देश, तू जो कूश की नदियोंके पके है;
2. और समुद्र पर दूतोंको नरकट की नावोंमें बैठाकर जल के मार्ग से यह कहके भेजता है, हे फुर्तीले दूतो, उस जाति के पास जाओ जिसके लोग बलिष्ट और सुन्दर हैं, जो आदि से अब तक डरावने हैं, जो मापके और रौंदनेवाला भी हैं, और जिनका देश नदियोंसे विभाजित किया हुआ है।।
3. हे जगत के सब रहनेवालों, और पृय्वी के सब निवासियों, जब फंड़ा पहाड़ोंपर खड़ा किया जाए, उसे देखो! जब नरसिंगा फूंका जाए, तब सुनो!
4. क्योंकि यहोवा ने मुझ से योंकहा है, धूप की तेज गर्मी वा कटनी के समय के ओसवाले बादल की नाईं मैं शान्त होकर निहारूंगा।
5. क्योंकि दाख तोड़ने के समय से पहिले जब फूल फूल चुकें, और दाख के गुच्छे पकने लगें, तब वह टहनियोंको हंसुओं से काट डालेगा, और फैली हुई डालियोंको तोड़ तोड़कर अलग फेंक देगा।
6. वे पहाड़ोंके मांसाहारी पझियोंऔर वन-पशुओं के लिथे इकट्ठे पके रहेंगे। और मांसाहारी पक्की तो उनको नोचते नोचते धूपकाल बिताएंगे, और सब भांति के वनपशु उनको खाते खाते जाड़ा काटेंगे।
7. उस समय जिस जाति के लोग बलिष्ट और सुन्दर हैं, और जो आदि ही से डरावने होते आए हैं, और मापके और रौंदनेवाले हैं, और जिनका देश नदियोंसे विभाजित किया हुआ है, उस जाति से सेनाओं के यहोवा के नाम के स्यान सिय्योन पर्वत पर सेनाओं के यहोवा के पास भेंट पहुंचाई जाएगी।।
Chapter यशायाह 19
1. मिस्र के विषय में भारी भविष्यवाणी। देखो, यहोवा शीघ्र उड़नेवाले बादल पर सवार होकर मिस्र में आ रहा है;
2. और मिस्र की मूरतें उसके आने से यरयरा उठेंगी, और मिस्रियोंका ह्रृदय पानी-पानी हो जाएगा। और मैं मिस्रियोंको एक दूसरे के विरूद्ध उभारूंगा, और वे आपस में लड़ेंगे, प्रत्थेक अपके भाई से और हर एक अपके पड़ोसी से लड़ेगा, नगर नगर में और राज्य राज्य में युद्ध छिड़ेंगा;
3. और मिस्रियोंकी बुद्धि मारी जाएगी और मैं उनकी युक्तियोंको व्यर्य कर दूंगा; और वे अपक्की मूरतोंके पास और ओफोंऔर फुसफुसानेवाले टोन्होंके पास जा जाकर उन से पूछेंगे;
4. परन्तु मैं मिस्रियोंको एक कठोर स्वामी के हाथ में कर दूंगा; और एक क्रूर राजा उन पर प्रभुता करेगा, प्रभु सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।।
5. और समुद्र का जल सूख जाएगा, और महानदी सूख कर खाली हो जाएगी;
6. और नाले बसाने लगेंगे, और मिस्र की नहरें भी सूख जाएंगी, और नरकट और हूगले कुम्हला जाएंगे।
7. नील नदी के तीर पर के कछार की घास, और जो कुछ नील नदी के पास बोया जाएगा वह सूखकर नष्ट हो जाएगा, और उसका पता तक न लगेगा।
8. सब मछुवे जितने नील नदी में बंसी डालते हैं विलाप करेंगे और लम्बी लम्बी सासें लेंगे, और जो जल के ऊपर जाल फेंकते हैं वे निर्बल हो जाएंगे।
9. फिर जो लोग धुने हुए सन से काम करते हैं और जो सूत से बुनते हैं उनकी आशा टूट जाएगी।
10. मिस्र के रईस तो निराश और उसके सब मजदूर उदास हो जाएंगे।।
11. निश्चय सोअन के सब हाकिम मूर्ख हैं; और फिरौन के बुद्धिमान मन्त्रियोंकी युक्ति पशु की सी ठहरी। फिर तुम फिरौन से कैसे कह सकते हो कि मैं बुद्धिमानोंका पुत्र और प्राचीन राजाओं की सन्तान हूं?
12. अब तेरे बुद्धिमान कहां है? सेनाओं के यहोवा ने मिस्र के विषय जो युक्ति की है, उसको यदि वे जानते होंतो तुझे बताएं।
13. सोअन के हाकिम मूढ़ बन गए हैं, नोप के हाकिमोंने धोखा खाया है; और जिन पर मिस्र के गोत्रोंके प्रधान लोगोंका भरोसा या उन्होंने मिस्र को भरमा दिया है।
14. यहोवा ने उस में भ्रमता उत्पन्न की है; उन्होंने मिस्र को उसके सारे कामोंमें वमन करते हुए मतवाले की नाई डगमगा दिया है।
15. और मिस्र के लिथे कोई ऐसा काम न रहेगा जो सिर वा पूंछ से अयवा प्रधान वा साधारण से हो सके।।
16. उस समय मिस्री, स्त्रियोंके समान हो जाएंगे, और सेनाओं का यहोवा जो अपना हाथ उन पर बढ़ाएगा उसके डर के मारे वे यरयराएंगे और कांप उठेंगे।
17. ओर यहूदा का देश मिस्र के लिथे यहां तक भय का कारण होगा कि जो कोई उसकी चर्चा सुनेगा वह यरयरा उठेगा; सेनाओं के यहोवा की उस युक्ति का यही फल होगा जो वह मिस्र के विरूद्ध करता है।।
18. उस समय मिस्र देश में पांच नगर होंगे जिनके लोग कनान की भाषा बोलेंगे और यहोवा की शपय खाथेंगे। उन में से एक का नाम नाशनगर रखा जाएगा।।
19. उस समय मिस्र देश के बीच में यहोवा के लिथे एक वेदी होगी, और उसके सिवाने के पास यहोवा के लिथे एक खंभा खड़ा होगा।
20. वह मिस्र देश में सेनाओं के यहोवा के लिथे चिन्ह और साझी ठहरेगा; और जब वे अंधेर करनेवाले के कारण यहोवा की दोहाई देंगे, तब वह उनके पास एक उद्धारकर्ता और रझक भेजेगा, और उन्हें मुक्त करेगा।
21. तब यहोवा अपके आप को मिस्रियोंपर प्रगट करेगा; और मिस्री उस समय यहोवा को पहिचानेंगे और मेलबलि और अन्नबलि चढ़ाकर उसकी उपासना करेंगे, और यहोवा के लिथे मन्नत मानकर पूरी भी करेंगे।
22. और यहोवा मिस्रियोंको मारेगा, और मारेगा और चंगा भी करेगा, और वे यहोवा की ओर फिरेंगे और वह उनकी बिनती सुनकर उनको चंगा करेगा।।
23. उस समय मिस्र से अश्शूर जाने का एक राजमार्ग होगा, और अश्शूरी मिस्र में आएंगे और मिस्री लोग अश्शूर को जाएंगे, और मिस्री अश्शूरियोंके संग मिलकर आराधना करेंगे।।
24. उस समय इस्राएल, मिस्र और अश्शूर तीनोंमिलकर पृय्वी के लिथे आशीष का कारण होंगे।
25. क्योंकि सेनाओं का यहोवा उन तीनोंको यह कहकर आशीष देगा, धन्य हो मेरी प्रजा मिस्र, और मेरा रख हुआ अश्शूर, और मेरा निज भाग इस्राएल।।
Chapter यशायाह 20
1. जिस वर्ष में अश्शूर के राजा सर्गोन की आज्ञा से तर्तान ने अशदोद आकर उस से युद्ध किया और उसको ले भी लिया,
2. उसी वर्ष यहोवा ने आमोस के पुत्र यशायाह से कहा, जाकर अपक्की कमर का टाट खोल और अपक्की जूतियां उतार; सो उस ने वैसा ही किया, और वह नंगा और नंगे पांव घूमता फिरता या।
3. और यहोवा ने कहा, जिस प्रकार मेरा दास यशायाह तीन वर्ष से उघाड़ा और नंगे पांव चलता आया है, कि मिस्र और कूश के लिथे चिन्ह और चमत्कार हो,
4. उसी प्रकार अश्शूर का राजा मिस्री और कूश के लोगोंको बंधुआ करके देश-निकाल करेगा, क्या लड़के क्या बूढ़े, सभोंको बंधुए करके उघाड़े और नंगे पांव और नितम्ब खुले ले जाएगा, जिस से मिस्र लज्जित हो।
5. तब वे कूश के कारण जिस पर उनकी आशा यी, और मिस्र के हेतु जिस पर वे फूलते थे व्याकुल और लज्जित हो जाएंगे।
6. और समुद्र के इस पार के बसनेवाले उस समय यह कहेंगे, देखो, जिन पर हम आशा रखते थे ओर जिनके पास हम अश्शूर के राजा से बचने के लिथे भागने को थे उनकी ऐसी दशा हो गई है। तो फिर हम लोग कैसे बचेंगे?
Chapter यशायाह 21
1. समुद्र के पास के जंगल के विषय भारी वचन। जैसे दक्खिनी प्रचण्ड बवण्डर चला आता है, वह जंगल से अर्यात् डरावने देश से निकट आ रहा है।
2. कष्ट की बातोंका मुझे दर्शन दिखाया गया है; विश्वासघाती विश्वासघात करता है, और नाशक नाश करता है। हे एलाम, चढ़ाई कर, हे मादै, घेर ले; उसका सब कराहना मैं बन्द करता हूं।
3. इस कारण मेरी कटि में कठिन पीड़ा है; मुझ को मानो जच्चा पीडें हो रही है; मैं ऐसे संकट में पडत्र् गया हूं कि कुछ सुनाई नहीं देता, मैं एसा घबरा गया हूं कि कुछ दिखाई नहीं दंता।
4. मेरा ह्रृदय धड़कता है, मैं अत्यन्त भयभीत हूं, जिस सांफ की मैं बाट जोहता या उसे उस ने मेरी यरयराहट का कारण कर दिया है।
5. भोजन की तैयारी हो रही है, पहरूए बैठाए जा रहे हैं, खाना-पीना हो रहा है। हे हाकिमो, उठो, ढाल में तेल मलो!
6. क्योंकि प्रभु ने मुझ से योंकहा है, जाकर एक पहरूआ खड़ा कर दे, और वह जो कुछ देखे उसे बताए।
7. जब वह सवार देखे जो दो-दो करके आते हों, और गदहोंऔर ऊंटोंके सवार, तब बहुत ही ध्यान देकर सुने।
8. और उस ने सिंह के से शब्द से पुकारा, हे प्रभु मैं दिन भर खड़ा पहरा देता रहा और मैं ने पूरी रातें पहरे पर काटा।
9. और क्या देखता हूं कि मनुष्योंका दल और दो-दो करके सवा चले आ रहे हैं! और वह बोल उठा, गिर पड़ा, बाबुल गिर पड़ा; और उसके देवताओं के सब खुदी हुई मूरतें भूमि पर चकनाचूर कर डाली गई हैं।
10. हे मेरे दाएं हुए, और मेरे खलिहान के अन्न, जो बातें मैं ने इस्राएल के परमेश्वर सेनाओं के यहोवा से सुनी है, उनको मैं ने तुम्हें जता दिया है।
11. दूमा के विषय भारी वचन। सेईर में से कोई मुझे पुकार रहा है, हे पहरूए, रात का क्या समाचार है? हे पहरूए, रात की क्या खबर है?
12. पहरूए ने कहा, भोर होती है और रात भी। यदि तुम पूछना चाहते हो तो पूछो; फिर लौटकर आना।।
13. अरब के विरूद्ध भारी वचन। हे ददानी बटोहियों, तुम को अरब के जंगल में रात बितानी पकेगी।
14. वे प्यासे के पास जल लाए, तेमा देश के रहनेवाले रोटी लेकर भागनेवाले से मिलने के लिथे निकल आ रहे हैं।
15. क्योंकि वे तलवारोंके साम्हने से वरन नंगी तलवार से और ताने हुए धनुष से और घोर युद्ध से भागे हैं।
16. क्योंकि प्रभु ने मुझ से योंकहा है, मजदूर के वर्षोंके अनुसार एक वर्ष में केदार का सारा विभव मिटाया जाएगा;
17. और केदार के धनुर्धारी शूरवीरोंमें से योड़े ही रह जाएंगे; क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने ऐसा कहा है।।
Chapter यशायाह 22
1. दर्शन की तराई के विषय में भारी वचन। तुम्हें क्या हुआ कि तुम सब के सब छतोंपर चढ़ गए हो,
2. हे कोलाहल और ऊधम से भरी प्रसन्न नगरी? तुझ में जो मारे गए हैं वे न तो तलवार से और न लड़ाई में मारे गए हैं।
3. तेरे सब न्यायी एक संग भाग गए और धनुर्धारियोंसे बान्धे गए हैं। और तेरे जितने शेष पाए गए वे एक संग बान्धे गए, वे दूर भागे थे।
4. इस कारण मैं ने कहा, मेरी ओर से मुंह फेर लो कि मैं बिलक बिलककर रोऊं; मेरे नगर सत्यनाश होने के शोक में मुझे शान्ति देने का यत्न मत करो।।
5. क्योंकि सेनाओं के प्रभु यहोवा का ठहराया हुआ दिन होगा, जब दर्शन की तराई में कोलाहल और रौंदा जाना और बेचैनी होगी; शहरपनाह में सुरंग लगाई जाएगी और दोहाई का शब्द पहाड़ोंतक पहुंचेगा।
6. और एलाम पैदलोंके दल और सवारोंसमेत तर्कश बान्धे हुए है, और कीर ढाल खोले हुए है।
7. तेरी उत्तम उत्तम तराइयां रयोंसे भरी हुई होंगी और सवार फाटक के साम्हने पांति बान्धेंगे। उस ने यहूदा का घूंघट खोल दिया है।
8. उस दिन तू ने वन नाम भवन के अस्त्र-शस्त्र का स्मरण किया,
9. और तू ने दाऊदपुर की शहरपनाह की दरारोंको देखा कि वे बहुत हैं, और तू ने निचले पोखरे के जल को इकट्ठा किया।
10. और यरूशलेम के घरोंको गिनकर शहरपनाह के दृढ़ करने के लिथे घरोंको ढा दिया।
11. तू ने दोनोंभीतोंके बीच पुराने पोखरे के जल के लिथे एक कुंड खोदा। परन्तु तू ने उसके कर्ता को स्मरण नहीं किया, जिस ने प्राचीनकाल से उसको ठहरा रखा या, और न उसकी ओर तू ने दृष्टि की।।
12. उस समय सेनाओं के प्रभु यहोवा ने रोने-पीटने, सिर मुंडाने और टाट पहिनने के लिथे कहा या;
13. परन्तु क्या देखा कि हर्ष और आनन्द मनाया जा रहा है, गाय-बैल का घात और भेड़-बकरी का वध किया जा रहा है, मांस खाया और दाखमधु पीया जा रहा है। और कहते हैं, आओ खाएं-पीएं, क्योंकि कल तो हमें मरना है।
14. सेनाओं के यहोवा ने मेरे कान में कहा और अपके मन की बात प्रगट की, निश्चय तुम लोगोंके इस अधर्म का कुछ भी प्रायश्चित्त तुम्हारी मृत्यु तक न हो सकेगा, सेनाओं के प्रभु यहोवा का यही कहना है।
15. सेनाओं का प्रभु यहोवा योंकहता है, शेबना नाम उस भण्डारी के पास जो राजघराने के काम पर नियुक्त है जाकर कह, यहां तू क्या करता है?
16. और यहां तेरा कौन है कि तू ने अपक्की कबर यहां खुदवाई है? तू अपक्की कबर ऊंचे स्यान में खुदवाता और अपके रहने का स्यान चट्टान में खुदवाता है?
17. देख, यहोवा तुझ को बड़ी शक्ति से पकड़कर बहुत दूर फेंक देगा।
18. वह तुझे मरोड़कर गेन्द की नाई लम्बे चौड़े देश में फेंक देगा; हे अपके स्वामी के घराने को लज्जित करनेवाले वहां तू मरेगा और तेरे विभव के रय वहीं रह जाएंगे।
19. मैं तुझ को तेरे स्यान पर से ढकेल दूंगा, और तू अपके पद से उतार दिया जाथेगा।
20. उस समय मैं हिल्कियाह के पुत्र अपके दास एल्याकीम को बुलाकर, उसे तेरा अंगरखा पहनाऊंगा,
21. और उसकी कमर में तेरी पेटी कसकर बान्धूंगा, और तेरी प्रभुता उसके हाथ में दूंगा। और वह यरूशलेम के रहनेवालोंऔर यहूदा के घराने का पिता ठहरेगा।
22. और मैं दाऊद के घराने की कुंजी उसके कंधे पर रखूंगा, और वह खोलेगा और कोई बन्द न कर सकेगा; वह बन्द करेगा और कोई खोल न सकेगा।
23. और मैं उसको दृढ़ स्यान में खूंटी की नाईं गाडूंगा, और वह अपके पिता के घराने के लिथे विभव का कारण होगा।
24. और उसके पिता से घराने का सारा विभव, वंश और सन्तान, सब छोटे-छोटे पात्र, क्या कटोरे क्या सुराहियां, सब उस पर टांगी जाएंगी।
25. सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है कि उस समय वह खूंटी जो दृढ़ स्यान में गाड़ी गई यी, वह ढीली हो जाएगी, और काटकर गिराई जाएगी; और उस का बोफ गिर जाएगा, क्योंकि यहोवा ने यह कहा है।
Chapter यशायाह 23
1. सोर के विषय भारी वचन। हे तर्शीश के जहाजोंहाथ, हाथ, करो; क्योंकि वह उजड़ गया; वहां न तो कोई घर और न कोई शरण का स्यान है! यह बात उनको कित्तियोंके देश में से प्रगट की गई है।
2. हे समुद्र के तीर के रहनेवालों, जिनको समुद्र के पार जानेवाले सीदोनी व्यापारियोंने धन से भर दिया है, चुप रहो!
3. शीहोर का अन्न, और नील नदी के पास की उपज महासागर के मार्ग से उसको मिनती यी, क्योंकि वह और जातियोंके लिथे व्योपार का स्यान या।
4. हे सीदोन, लज्जित हो, क्योंकि समुद्र ने अर्यात् समुद्र के दृढ़ स्थान ने यह कहा है, मैं ने न तो कभी जन्माने की पीड़ा जानी और न बालक को जन्म दिया, और न बेटोंको पाला और न बेटियोंको पोसा है।
5. जब सोर का समाचार मिस्र में पहुंचे, तब वे सुनकर संकट में पकेंगे।
6. हे समुद्र के तीर के रहनेवालोंहाथ, हाथ, करो! पार होकर तर्शीश को जाओ।
7. क्या यह तुम्हारी प्रसन्नता से भरी हुई नगरी है जो प्राचीनकाल से बसी यी, जिसके पांव उसे बसने को दूर ले जाते थे?
8. सोर जो राजाओं की गद्दी पर बैठाती यी, जिसके व्योपारी हाकिम थे, और जिसके महाजन पृय्वी भर में प्रतिष्ठित थे, उसके विरूद्ध किस ने ऐसी युक्ति की है?
9. सेनाओं के यहोवा ही ने ऐसी युक्ति की है कि समस्त गौरव के घमण्ड को तुच्छ कर दे और पृय्वी के प्रतिष्ठितोंका अपमान करवाए।
10. हे तर्शीश के निवासियोंनील नदी की नाई अपके देश में फैल जाओ; अब कुछ बन्धन नहीं रहा।
11. उस ने अपना हाथ समुद्र पर बढ़ाकर राज्योंको हिला दिया है; यहोवा ने कनान के दृढ़ किलोंके नाश करने की आज्ञा दी है।
12. और उस ने कहा है, हे सीदोन, हे भ्रष्ट की हुई कुमारी, तू फिर प्रसन्न होने की नहीं; उठ, पार होकर कित्तियोंके पास जा, परन्तु वहां भी तुझे चैन न मिलेगा।।
13. कसदियोंके देश को देखो, वह जाति अब न रही; अश्शूर ने उस देश को जंगली जन्तुओं का स्यान बनाया। उन्होंने अपके गुम्मट उठाए और राजभवनोंको ढ़ा दिया, और उसको खण्डहर कर दिया।
14. हे तर्शीश के जहाजों, हाथ, हाथ, करो, क्योंकि तुम्हारा दृढ़स्यान उजड़ गया है।
15. उस समय एक राजा के दिनोंके अनुसार सत्तर वर्ष के बीतने पर सोर वेश्या की नाईं गीत गाने लगेगा।
16. हे बिसरी हुई वेश्या, वीणा लेकर नगर में घूम, भली भांति बजा, बहुत गीत गा, जिस से लोग फिर तुझे याद करें।
17. सत्तर वर्ष के बीतने पर यहोवा सोर की सुधि लेगा, और वह फिर छिनाले की कमाई पर मन लगाकर धरती भर के सब राज्योंके संग छिनाला करेंगी।
18. उसके व्योपार की प्राप्ति, और उसके छिनाले की कमाई, यहोवा के लिथे पवित्र कि जाएगी; वह न भण्डार में रखी जाएगी न संचय की जाएगी, क्योंकि उसके व्योपार की प्राप्ति उन्हीं के काम में आएगी जो यहोवा के साम्हने रहा करेंगे, कि उनको भरपूर भोजन और चमकीला वस्त्र मिले।।
Chapter यशायाह 24
1. सुनों, यहोवा पृय्वी को निर्जन और सुनसान करने पर है, वह उसको उलटकर उसके रहनेवालोंको तितर बितर करेग।
2. और जैसी यजमान की वैसी याजक की; जैसी दास की वैसी स्वमी की; जैसी दासी की वैसी स्वामिनी की; जैसी लेनेवाले की वैसी बेचनेवाले की; जैसी उधार देनेवाले की वैसी उधार लेनेवाले की; जैसी ब्याज लेनेवाले की वैसी ब्याज देनेवाले की; सभोंकी एक ही दशा होगी।
3. पृय्वी शून्य और सत्यानाश हो जाएगी; क्योंकि यहोवा ही ने यह कहा है।।
4. पृय्वी विलाप करेगी और मुर्फाएगी, जगत कुम्हलाएगा और मुर्फा जाएगा; पृय्वी के महान लोग भी कुम्हला जाएंगे।
5. पृय्वी अपके रहनेवालोंके कारण अशुद्ध हो गई है, क्योंकि उन्होंने व्यवस्या का उल्लंघन किया और विधि को पलट डाला, और सनातन वाचा को तोड़ दिया है।
6. इस कारण पृय्वी को शाप ग्रसेगा और उस में रहनेवाले दोषी ठहरेंगे; और इसी कारण पृय्वी के निवासी भस्म होंगे और योड़े ही मनुष्य रह जाएंगे।
7. नया दाखमधु जाता रहेगा, दाखलता मुर्फा जाएगी, और जितने मन में आनन्द करते हैं सब लम्बी लम्बी सांस लेंगे।
8. डफ का सुखदाई शब्द बन्द हो जाएगा, वीणा का सुखदाई शब्द शान्त हो जाएगा।
9. वे गाकर फिर दाखमधु न पीएंगे; पीनेवाले को मदिरा कड़ुकी लगेगी।
10. गड़बड़ी मचानेवाली नगरी नाश होगी, उसका हर एक घर ऐसा बन्द किया जाएगा कि कोई पैठ न सकेगा।
11. सड़कोंमें लोग दाखमधु के लिथे चिल्लाएंगे; आनन्द मिट जाएगा: देश का सारा हर्ष जाता रहेगा।
12. नगर उजाड़ ही उजाड़ रहेगा, और उसके फाटक तोड़कर नाश किए जाएंगे।
13. क्योंकि पृय्वी पर देश देश के लोगोंमें ऐसा होगा जैसा कि जलपाइयोंके फाड़ने के समय, वा दाख तोड़ने के बाद कोई कोई फल रह जाते हैं।।
14. वे लोग गला खोलकर जयजयकार करेंगे, और यहोवा के महात्म्य को देखकर समुद्र से ललकारेंगे।
15. इस कारण पूर्व में यहोवा की महिमा करो, और समुद्र के द्वीपोंमें इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का गुणानुवाद करो।
16. पृय्वी की छोर से हमें ऐसे गीत की ध्वनि सुन पड़ती है, कि धर्मी की महिमा और बड़ाई हो। परन्तु मैं ने कहा, हाथ, हाथ! मैं नाश हो गया, नाश! क्योंकि विश्वासघाती विश्वासघात करते, वे बड़ा ही विश्वासघात करते हैं।।
17. हे पृय्वी के रहनेवालोंतुम्हारे लिथे भय और गड़हा और फन्दा है!
18. जो कोई भय के शब्द से भागे वह गड़हे में गिरेगा, और जो कोई गड़हे में से निकले वह फन्दे में फंसेगा। क्योंकि आकाश के फरोखे खुल जाएंगे, और पृय्वी की नेव डोल उठेगी। पृय्वी अत्यन्त कम्पायमान होगी।
19. वह मतवाले की नाईं बहुत डगमगाएगी
20. और मचान की नाई डोलेगी; वह अपके पाप के बोफ से दबकर गिरेगी और फिर न उठेगी।।
21. उस समय ऐसा होगा कि यहोवा आकाश की सेना को आकाश में और पृय्वी के राजाओं को पृय्वी ही पर दण्ड देगा।
22. वे बंधुओं की नाई गड़हे में इकट्ठे किए जाएंगे और बन्दीगृह में बन्द किए जाएंगे; और बहुत दिनोंके बाद उनकी सुधि ली जाएगी।
23. तब चन्द्रमा संकुचित हो जाएगा और सूर्य लज्जित होगा; क्योंकि सेनाओं का यहोवा सिय्योन पर्वत पर और यरूशलेम में अपक्की प्रजा के पुरनियोंके साम्हने प्रताप के साय राज्य करेगा।।
Chapter यशायाह 25
1. हे यहोवा, तू मेरा परमेश्वर है; मैं तुझे सराहूंगा, मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा; क्योंकि तू ने आश्चर्यकर्म किए हैं, तू ने प्राचीनकाल से पूरी सच्चाई के साय युक्तियां की हैं।
2. तू ने नगर को डीह, और उस गढ़वाले नगर को खण्डहर कर डाला है; तू ने परदेशियोंकी राजपुरी को ऐसा उजाड़ा कि वह नगर नहीं रहा; वह फिर कभी बसाया न जाएगा।
3. इस कारण बलवन्त राज्य के लोग तेरी महिमा करेंगे; भयंकर अन्यजातियोंके नगरोंमें तेरा भय माना जाएगा।
4. क्योंकि तू संकट में दीनोंके लिथे गढ़, और जब भयानक लोगोंका फोंका भीत पर बौछार के समान होता या, तब तू दरिद्रोंके लिथे उनकी शरण, और तपन में छाया का स्यान हुआ।
5. जैसे निर्जल देश में बादल की छाया से तपन ठण्डी होती है वैसे ही तू परदेशियोंका कोलाहल और क्रूर लोगोंको जयजयकार बन्द करता है।।
6. सेनाओं का यहोवा इसी पर्वत पर सब देशोंके लोगोंके लिथे ऐसी जेवनार करेगा जिस में भांति भांति का चिकना भोजन और नियरा हुआ दाखमधु होगा; उत्तम से उत्तम चिकना भोजन और बहुत ही नियरा हुआ दाखमधु होगा।
7. और जो पर्दा सब देशोंके लोगोंपर पड़ा है, जो घूंघट सब अन्यजातियोंपर लटका हुआ है, उसे वह इसी पर्वत पर नाश करेगा।
8. वह मृत्यु को सदा के लिथे नाश करेगा, और प्रभु यहोवा सभोंके मुख पर से आंसू पोंछ डालेगा, और अपक्की प्रजा की नामधराई सारी पृय्वी पर से दूर करेगा; क्योंकि यहोवा ने ऐसा कहा है।।
9. और उस समय यह कहा जाएगा, देखो, हमारा परमेश्वर यही है; हम इसी की बाट जोहते आए हैं, कि वह हमारा उद्धार करे। यहोवा यही है; हम उसकी बाट जोहते आए हैं। हम उस से उद्धार पाकर मगन और आनन्दित होंगे।
10. क्योंकि इस पर्वत पर यहोवा का हाथ सर्वदा बना रहेगा और मोआब अपके ही स्यान में ऐसा लताड़ा जाएगा जैसा घूरे में पुआल लताड़ा जाता है।
11. और वह उस में अपके हाथ इस प्रकार फैलाएगा, जैसे कोई तैरते हुए फैलाए; परन्तु वह उसके गर्व को तोड़ेगा; और उसकी चतुराई को निष्फल कर देगा।
12. और उसकी ऊंची ऊंची औश्र् दृढ़ शहरपनाहोंको वह फुकाएगा और नीचा करेगा, वरन भूमि पर गिराकर मिट्टी में मिला देगा।।
Chapter यशायाह 26
1. उस समय यहूदा देश में यह गीत गाया जाएगा, हमारा एक दृढ़ नगर है; उद्धार का काम देने के लिथे वह उसकी शहरपनाह और गढ़ को नियुक्त करता है।
2. फाटकोंको खोलो कि सच्चाई का पालन करनेवाली एक धर्मी जाति प्रवेश करे।
3. जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए हैं, उसकी तू पूर्ण शान्ति के साय रझा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है।
4. यहोवा पर सदा भरोसा रख, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान है।
5. वह ऊंचे पदवाले को फुका देता, जो नगर ऊंचे पर बसा है उसको वह नीचे कर देता। वह उसको भूमि पर गिराकर मिट्टी में मिला देता है।
6. वह पांवोंसे, वरन दरिद्रोंके पैरोंसे रौंदा जाएगा।।
7. धर्मी का मार्ग सच्चाई है; तू जो स्वयं सच्चाई है, तू धर्मी की अगुवाई करता है।
8. हे यहोवा, तेरे न्याय के मार्ग में हम लोग तेरी बाट जोहते आए हैं; तेरे नाम के स्मरण की हमारे प्राणोंमें लालसा बनी रहती है।
9. रात के समय मैं जी से तरी लालसा करता हूं, मेरा सम्पूर्ण मन से यत्न के साय तुझे ढूंढ़ता है। क्योंकि जब तेरे न्याय के काम पृय्वी पर प्रगट होते हैं, तब जगत के रहनेवाले धर्म की सीखते हैं।
10. दुष्ट पर चाहे दया भी की जाए तौभी वह धर्म को न सीखेगा; धर्मराज्य में भी वह कुटिलता करेगा, और यहोवा को महात्म्य उसे सूफ न पकेगा।।
11. हे यहोवा, तेरा हाथ बढ़ा हुआ है, पर वे नहीं देखते। परन्तु वे जानेंगे कि तुझे प्रजा के लिथे कैसी जलन है, और लजाएंगे।
12. तेरे बैरी आग से भस्म होंगे। हे यहोवा, तू हमारे लिथे शान्ति ठहराएगा, हम ने जो कुछ किया है उसे तू ही ने हमारे लिथे किया है।
13. हे हमारे परमेश्वर यहोवा, तेरे सिवाय और स्वामी भी हम पर प्रभुता करते थे, परन्तु तेरी कृपा से हम केवल तेरे ही नाम का गुणानुवाद करेंगे।
14. वे मर गए हैं, फिर कभी जीवित नहीं होंगे; उनको मरे बहुत दिन हुए, वे फिर नहीं उठने के; तू ने उनका विचार करके उनको ऐसा नाश किया कि वे फिर स्मरण में न आएंगे।
15. परन्तु तू ने जाति को बढ़ाया; हे यहोवा, तू ने जाति को बढ़ाया है; तू ने अपक्की महिमा दिखाई है और उस देश के सब सिवानोंको तू ने बढ़ाया है।।
16. हे यहोवा, दु:ख में वे तुझे स्मरण करते थे, जब तू उन्हें ताड़ना देता या तब वे दबे स्वर से अपके मन की बात तुझ पर प्रगट करते थे।
17. जैसे गर्भवती स्त्री जनने के समय ऐंठती और पीड़ोंके कारण चिल्ला उठती है, हम लोग भी, हे यहोवा, तेरे साम्हने वैसे ही हो गए हैं।
18. हम भी गर्भवती हुए, हम भी ऐंठें, हम ने मानो वायु ही को जन्म दिया। हम ने देश के लिथे कोई उद्धार का काम नहीं किया, और न जगत के रहनेवाले उत्पन्न हुए।
19. तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे, मुर्दे उठ खड़े होंगे। हे मिट्टी में बसनेवालो, जागकर जयजयकार करो! क्योंकि तेरी ओस ज्योति से उत्पन्न होती है, और पृय्वी मुर्दो को लौटा देगी।।
20. हे मेरे लोगों, आओ, अपक्की अपक्की कोठरी में प्रवेश करके किवाड़ोंको बन्द करो; योड़ी देर तक जब तक क्रोध शान्त न हो तब तक अपके को छिपा रखो।
21. क्योंकि देखो, यहोवा पृय्वी निवासिक्कों अधर्म का दण्ड देने के लिथे अपके स्यान से चला आता है, और पृय्वी अपना खून प्रगट करेगी और घात किए हुओं को और अधिक न छिपा रखेगी।।
Chapter यशायाह 27
1. उस समय यहोवा अपक्की कड़ी, बड़ी, और पोड़ तलवार से लिव्यातान नाम वेग और टेढ़े चलनेवाले सर्प को दण्ड देगा, और जो अजगर समुद्र में रहता है उसको भी घात करेगा।।
2. उस समय एक सुन्दर दाख की बारी होगी, तुम उसका यश गाना!
3. मैं यहोवा उसकी रझा करता हूं; मैं झण झण उसको सींचता रहूंगा। ऐसा न हो कि कोई उसकी हाति करे।
4. मेरे मन में जलजलाहट नहीं है। यदि कोई भांति भांति के कटीले पेड़ मुझ से लड़ने को खड़े करता, तो मैं उन पर पांव बढ़ाकर उनको पूरी रीति से भस्म कर देता।
5. वा मेरे साय मेल करने को वे मेरी शरण लें, वे मेरे साय मेल कर लें।।
6. भविष्य में याकूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राएल फूल-फलेगा, और उसके फलोंसे जगत भर जाएगा।।
7. क्या उस ने उसे मारा जैसा उस ने उसके मारनेवालोंको मारा या? क्या वह घात किया गया जैसे उसके घात किए हुए घात हुए?
8. जब तू ने उसे निकाला, तब सोच-विचार कर उसको दु:ख दिया : उसे ने पुरवाई के दिन उसको प्रचण्ड वायु से उड़ा दिया है।
9. इस से याकूब के अधर्म का प्रायश्चित किया जाएगा और उसके पाप के दूर होने का प्रतिफल यह होगा कि वे वेदी के सब पत्यरोंको चूना बनाने के पत्यरोंके समान चकनाचूर करेंगे, और अशेरा और सूर्य की प्रतिमाएं फिर खड़ी न रहेंगी।
10. क्योंकि गढ़वाला नगर निर्जन हुआ है, वह छोड़ी हुई बस्ती के समान निर्जन और जंगल हो गया है; वहां बछड़े चरेंगे और वहीं बैठेंगे, और पेड़ोंकी डालियोंकी फुनगी को खो लेंगे।
11. जब उसकी शाखाएं सूख जाएं तब तोड़ी जाएंगी; और स्त्रियां आकर उनको तोड़कर जला देंगी। क्योंकि थे लोग निर्बुद्धि हैं; इसलिथे उनका कर्ता उन पर दया न करेगा, और उनका रचनेवाला उन पर अनुग्रह न करेगा।।
12. उस समय यहोवा महानद से लेकर मिस्र के नाले तक अपके अन्न को फटकेगा, और हे इस्राएलियोंतुम एक एक करके इकट्ठे किए जाओगे।
13. उस समय बड़ा नरसिंगाा फूंका जाएगा, और जो अश्शूर देश में नाश हो रहे थे और जो मिस्र देश में बरबस बसाए हुए थे वे यरूशलेम में आकर पवित्र पर्वत पर यहोवा को दण्डवत् करेंगे।।
Chapter यशायाह 28
1. घमण्ड के मुकुट पर हाथ! जो एप्रैम के मतवालोंका है, और उनकी भड़कीली सुन्दरता पर जो मुर्फानेवाला फूल है, जो अति उपजाऊ तराई के सिक्के पर दाखमधु से मतवालोंकी है।
2. देखो, प्रभु के पास एक बलवन्त और समर्यी है जो ओले की वर्षा वा उजाड़नेवाली आंधी या बाढ़ की प्रचण्ड धार की नाई है वह उसको कठोरता से भूमि पर गिरा देगा।
3. एप्रैमी मतवालोंके घमण्ड का मुकुट पांव से लताड़ा जाएगा;
4. और उनकी भड़कीली सुन्दरता का मुर्फानेवाला फूल जो अति उपजाऊ तराई के सिक्के पर है, वह ग्रीष्मकाल से पहिले पके अंजीर के समान होगा, जिसे देखनेवाला देखते ही हाथ में ले और निगल जाए।।
5. उस समय सेनाओं का यहोवा स्वयं अपक्की प्रजा के बचे हुओं के लिथे सुन्दर और प्रतापी मुकुट ठहरेगा;
6. और जो न्याय करने को बैठते हैं उनके लिथे न्याय करनेवाली आत्मा और जो चढ़ाई करते हुए शत्रुओं को नगर के फाटक से हटा देते हैं, उनके लिथे वह बल ठहरेगा।।
7. थे भी दाखमधु के कारण डगमगाते और मदिरा से लड़खड़ाते हैं; याजक और नबी भी मदिरा के कारण डगमगाते हैं, दाखमधु ने उनको भुला दिया है, वे मदिरा के कारण लड़खड़ाते और दर्शन पाते हुए भटके जाते, और न्याय में भूल करते हैं।
8. क्योंकि सब भोजन आसन वमन और मल से भरे हैं, कोई शुद्ध स्यान नहीं बचा।।
9. वह किसको ज्ञान सिखाएगा, और किसको अपके समाचार का अर्य समझाएगा? क्या उनको जो दूध छुड़ाए हुए और स्तन से अलगाए हुए हैं? क्योंकि आज्ञा पर आज्ञा, आज्ञा पर आज्ञा,
10. नियम पर नियम, नियम पर नियम योड़ा यहां, योड़ा वहां।।
11. वह तो इन लोगोंसे परदेशी होंठोंऔर विदेशी भाषावालोंके द्वारा बातें करेगा;
12. जिन से उस ने कहा, विश्रम इसी से मिलेगा; इसी के द्वारा यके हुए को विश्रम दो; परन्तु उन्होंने सुनना न चाहा।
13. इसलिथे यहोवा का वचन उनके पास आज्ञा पर आज्ञा, आज्ञा पर आज्ञा, नियम पर नियम, नियम पर नियम है, योड़ा यहां, योड़ा वहां, जिस से वे ठोकर खाकर चित्त गिरें और घायल हो जाएं, और फंदे में फंसकर पकड़े जाएं।।
14. इस कारण हे ठट्ठा करनेवालो, यरूशलेमवासी प्रजा के हाकिमों, यहोवा का वचन सुनो!
15. तुम ने कहा है कि हम ने मृत्यु से वाचा बान्धी और अधोलोक से प्रतिज्ञा कराई है; इस कारण विपत्ति जब बाढ़ की नाई बढ़ आए तब हमारे पास न आएगी; क्योंकि हम ने फूठ की शरण ली और मिय्या की आड़ में छिपे हुए हैं।
16. इसलिथे प्रभु यहोवा योंकहता है, देखो, मैं ने सिय्योन में नेव का पत्यर रखा है, एक परखा हुआ पत्यर, कोने का अनमोल और अति दृढ़ नेव के योग्य पत्यर: और जो कोई विश्वास रखे वह उतावली न करेगा।
17. और मैं न्याय की डोरी और धर्म को साहुल ठहराऊंगा; और तुम्हारा फूठ का शरणस्यान ओलोंसे बह जाएगा, और तुम्हारे छिपके का स्यान जल से डूब जाएगा।
18. तब जो वाचा तुम ने मृत्यु से बान्धी है वह टूट जाएगी, और जो प्रतिज्ञा तुम ने अधोलोक से कराई वह न ठहरेगी; जब विपत्ति बाढ़ की नाई बढ़ आए, तब तुम उस में डूब ही जाओगे।
19. जब जब वह बढ़ आए, तब तब वह तुम को ले जाएगी; वह प्रति दिन वरन रात दिन बढ़ा करेंगी; और इस समाचार का सुनना ही व्याकुल होने का कारण होगा।
20. क्योंकि बिछौना टांग फैलाने के लिथे छोटा, और ओढ़ना ओढ़ने के लिथे सकरा है।।
21. क्योंकि यहोवा ऐसा उठ खड़ा होगा जैसा वह पराजीम नाम पर्वत पर खड़ा हुआ और जैसा गिबोन की तराई में उस ने क्रोध दिखाया या; वह अब फिर क्रोध दिखाएगा, जिस से वह अपना काम करे, जो अचम्भित काम है, और वह कार्य करे जो अनोखा है।
22. इसलिथे अब तुम ठट्ठा मत करो, नहीं तो तुम्हारे बन्धन कसे जाएंगे; क्योंकि मैं ने सेनाओं के प्रभु यहोवा से यह सुना है कि सारे देश का सत्यानाश ठाना गया है।।
23. कान लगाकर मेरी सुनो, ध्यान धरकर मेरा वचन सुनो।
24. क्या हल जोतनेवाला बीज बोने के लिथे लगातार जोतता रहता है? क्या वह सदा धरती को चीरता और हेंगाता रहता है?
25. क्या वह उसको चौरस करके सौंफ को नहीं छितराता, जीरे को नहीं बखेरता और गेहूं को पांति पांति करके और जब को उसके निज स्यान पर, और कठिथे गेहूं को खेत की छोर पर नहीं बोता?
26. क्योंकि उसका परमेश्वर उसको ठीक ठीक काम करना सिखलाता और बतलाता है।।
27. दांवने की गाड़ी से तो सौंफ दाई नहीं जाती, और गाड़ी का पहिया जीरे के ऊपर नहीं चलाया जाता; परन्तु सौंफ छड़ी से, और जीरा सोंटें से फाड़ा जाता है।
28. रोटी के अन्न पर दाथें की जाती है, परन्तु कोई उसको सदा दांवता नहीं रहता; और न गाड़ी के पहिथे न घोड़े उस पर चलाता है, वह उसे चूर चूर नहीं करता।
29. यह भी सेनाओं के यहोवा की ओर से नियुक्त हुआ है, वह अद्भुत युक्तिवाला और महाबुद्धिमान है।।
Chapter यशायाह 29
1. हाथ, अरीएल, अरीएल, हाथ उस नगर पर जिस में दाऊद छावनी किए हुए रहा! वर्ष पर वर्ष जाड़ते जाओ, उत्सव के पर्व अपके अपके समय पर मनाते जाओ।
2. तौभी मैं तो अरीएल को सकेती में डालूंगा, वहां रोना पीटना रहेगा, और वह मेरी दृष्टि में सचमुच अरीएल सा ठहरेगा।
3. और मैं चारोंओर तेरे विरूद्ध छावनी करके तुझे कोटोंसे घेर लूंगा, और तेरे विरूद्ध गढ़ भी बनाऊंगा।
4. तब तू गिराकर भूमि में डाला जाएगा, और धूल पर से बोलेगा, और तेरी बात भूमि से धीमी धीमी सुनाई देगी; तेरा बोल भूमि पर से प्रेत का सा होगा, और तू धूल से गुनगुनाकर बोलेगा।।
5. तब तेरे परदेशी बैरियोंकी भीड़ सूझ्म धूलि की नाईं, और उन भयानक लोागोंकी भीड़ भूसे की नाई उड़ाईं जाएगी।
6. और सेनाओं का यहोवा अचानक बादल गरजाता, भूमि को कम्पाता, और महाध्वनि करता, बवण्डर और आंधी चलाता, और नाश करनेवाली अग्नि भड़काता हुआ उसके पास आएगा।
7. और जातियोंकी सारी भीड़ जो अरीएल से युद्ध करेगी, ओर जितने लोग उसके और उसके गढ़ के विरूद्ध लड़ेंगे और उसको सकेती में डालेंगे, वे सब रात के देखे हुए स्वप्न के समान ठहरेंगे।
8. और जैसा कोई भूखा स्वपन में तो देखता है कि वह खा रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका पेट भूखा ही है, वा कोई प्यासा स्वपन में देखें की वह पी रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका गला सूखा जाता है और वह प्यासा मर रहा है; वैसी ही उन सब जातियोंकी भीड़ की दशा होगी जो सिय्योन पर्वत से युद्ध करेंगी।।
9. ठहर जाओ और चकित होओ! वे मतवाले तो हैं, परन्तु दाखमधु से नहीं, वे डगमगाते तो हैं, परन्तु मदिरा पीने से नहीं!
10. यहोवा ने तुम को भारी नींद में डाल दिया है और उस ने तुम्हारी नबीरूपी आंखोंको बन्द कर दिया है और तुम्हारे दर्शीरूपी सिरोंपर पर्दा डाला है।
11. इसलिथे सारे दर्शन तुम्हारे लिथे एक लपेटी और मुहर की हुई पुस्तक की बातोंके समान हैं, जिसे कोई पके-लिखे मनुष्य को यह कहकर दे, इसे पढ़, और वह कहे, मैं नहीं पढ़ सकता क्योंकि इस पर मुहर की हुई है।
12. तब वही पुस्तक अनपके को यह कहकर दी जाए, इसे पढ़, और वह कहे, मैं तो अनपढ़ हूं।।
13. और प्रभु ने कहा, थे लोग जो मुंह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्योंकी आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं।
14. इस कारण सुन, मैं इनके साय अद्भुत काम वरन अति अद्भुत और अचम्भे का काम करूंगा; तब इनके बुद्धिमानोंकी बुद्धि नष्ट होगी, और इनके प्रवीणोंकी प्रवीणता जाती रहेगी।।
15. हाथ उन पर जो अपक्की युक्ति को यहोवा से छिपाने का बड़ा यत्न करते, और अपके काम अन्धेरे में करके कहते हैं, हम को कौन देखता है? हम को कौन जानता है?
16. तुम्हारी कैसी उलटी समझ है! क्या कुम्हार मिट्टी के तुल्य गिना जाएगा? क्या बनाई हुई वस्तु अपके कर्त्ता के विषय कहे कि उस ने मुझे नहीं बनाया, वा रची हुई वस्तु अपके रचनेवाले के विषय कहे, कि वह कुछ समझ नहीं रखता?
17. क्या अब योड़े ही दिनोंके बीतने पर लबानोन फिर फलदाई बारी न बन जाएगा, और फलदाई बारी जंगल न गिनी जएगी?
18. उस समय बहिरे पुस्तक की बातें सुनने लेगेंगे, और अन्धे जिन्हें अब कुछ नहीं सूफता, वे देखने लेगेंगे।
19. नम्र लोग यहोवा के कारण फिर आनन्दित होंगे, और दरिद्र मनुष्य इस्राएल के पवित्र के कारण मगन होंगे।
20. क्योंकि उपद्रवी फिर न रहेंगे और ठट्ठा करनेवालोंका अन्त होगा, और जो अनर्य करने के लिथे जागते रहते हैं, जो मनुष्योंको वचन में फंसाते हैं,
21. और जो सभा में उलहना देते उनके लिथे फंदा लगाते, और धर्म को व्यर्य बात के द्वारा बिगाड़ देते हैं, वे सब मिट जाएंगे।।
22. इस कारण इब्राहीम का छुड़ानेवाला यहोवा, याकूब के घराने के विषय योंकहता है, याकूब को फिर लज्जित होना न पकेगा, उसका मुख फिर नीचा न होगा।
23. क्योंकि जब उसके सन्तान मेरा काम देखेंगे, जो मैं उनके बीच में करूंगा, तब वे मेरे नाम को पवित्र मानेंगे, और इस्राएल के परमेश्वर को अति भय मानेंगे।
24. उस समय जिनका मन भटका हो वे बुद्धि प्राप्त करेंगे, और जो कुड़कुड़ाते हैं वह शिझा ग्रहण करेंगे।।
Chapter यशायाह 30
1. यहोवा की यह वाणी है, हाथ उन बलवा करनेवाले लड़कोंपर जो युक्ति तो करते परन्तु मेरी ओर से नहीं; वाचा तो बान्धते परन्तु मेरे आत्मा के सिखाथे नहीं; और इस प्रकार पाप पर पाप बढ़ाते हैं।
2. वे मुझ से बिन पूछे मिस्र को जाते हैं कि फिरौन की रझा में रहे और मिस्र की छाया में शरण लें।
3. इसलिथे फिरौन का शरणस्यान तुम्हारी लज्जा का, और मिस्र की छाया में शरण लेना तुम्हारी निन्दा का कारण होगा।
4. उसके हाकिम सोअन में आए तो हैं और उसके दूत अब हानेस में पहुंचे हैं।
5. वे सब एक ऐसी जाति के कारण लज्जित होंगे जिस से उनका कुछ लाभ न होगा, जो सहाथता और लाभ के बदले लज्जा और नामधराई का कारण होगी।।
6. दक्खिन देश के पशुओं के विषय भारी वचन। वे अपक्की धन सम्पति को जवान गदहोंकी पीठ पर, और अपके खजानोंको ऊंटोंके कूबड़ोंपर लादे हुए, संकट और सकेती के देश में होकर, जहां सिंह और सिंहनी, नाग और उड़नेवाले तेज विषधर सर्प रहते हैं, उन लोगोंके पास जा रहे हैं जिन से उनको लाभ न होगा।
7. क्योंकि मिस्र की सहाथता व्यर्य और निकम्मी है, इस कारण मैं ने उसको बैठी रहनेवाली रहब कहा है।।
8. अब आकर इसको उनके साम्हने पत्यर पर खोद, और पुस्तक में लिख, कि वह भविष्य के लिथे वरन सदा के लिथे साझी बनी रहे।
9. क्योंकि वे बलवा करनेवाले लोग और फूठ बोलनेवाले लड़के हैं जो यहोवा की शिझा को सुनना नहीं चाहते।
10. वे दशिर्योंसे कहते हैं, दर्शी मत बनो; और नबियोंसे कहते हैं, हमारे लिथे ठीक नबूवत मत करो; हम से चिकनी चुपक्की बातें बोलो, धोखा देनेवाली नबूवत करो।
11. मार्ग से मुड़ो, पय से हटो, और इस्राएल के पवित्र को हमारे साम्हने से दूर करो।
12. इस कारण इस्राएल का पवित्र योंकहता है, तुम लोग जो मेरे इस वचन को निकम्मा जानते और अन्धेर और कुटिलता पर भरोसा करके उन्हीं पर टेक लगाते हो;
13. इस कारण यह अधर्म तुम्हारे लिथे ऊंची भीत का टूटा हुआ भाग होगा जो फटकर गिरने पर हो, और वह अचानक पल भर में टूटकर गिर पकेगा,
14. और कुम्हार के बर्तन की नाई फूटकर ऐसा चकनाचूर होगा कि उसके टुकड़ोंका एक ठीकरा भी न मिलेगा जिस से अंगेठी में से आग ली जाए वा हौद में से जल निकाला जाए।।
15. प्रभु यहोवा, इस्राएल का पवित्र योंकहता है, लौट आने और शान्त रहने में तुम्हारा उद्धार है; शान्त रहते और भरोसा रखने में तुम्हारी वीरता है। परन्तु तुम ने ऐसा नहीं किया,
16. तुम ने कहा, नहीं, हम तो घोड़ोंपर चढ़कर भागेंगे, इसलिथे तुम भागोगे; और यह भी कहा कि हम तेज सवारी पर चलेंगे, सो तुम्हारा पीछा करनेवाले उस से भी तेज होंगे।
17. एक ही की धमकी से एक हजार भागेंगे, और पांच की धमकी से तुम ऐसा भागोगे कि अन्त में तुम पहाड़ की चोटी के डण्डे वा टीले के ऊपर की ध्वजा के समान रह जाओगे जो चिन्ह के लिथे गाड़े जाते हैं।
18. तौभी यहोवा इसलिथे विलम्ब करता है कि तुम पर अनुग्रह करे, और इसलिथे ऊंचे उठेगा कि तुम पर दया करे। क्योंकि यहोवा न्यायी परमेश्वर है; क्या ही धन्य हैं वे जो उस पर आशा लगाए रहते हैं।।
19. हे सिय्योन के लोगोंतुम यरूशलेम में बसे रहो; तुम फिर कभी न रोओगे, वह तुम्हारी दोहाई सुनते ही तुम पर निश्चय अनुग्रह करेगा: वह सुनते ही तुम्हारी मानेगा।
20. और चाहे प्रभु तुम्हें विपत्ति की रोटी और दु:ख का जल भी दे, तौभी तुम्हारे उपकेशक फिर न छिपें, और तुम अपक्की आंखोंसे अपके उपकेशकोंको देखते रहोगे।
21. और जब कभी तुम दहिनी वा बाई ओर मुड़ने लगो, तब तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानोंमें पकेगा, मार्ग यही है, इसी पर चलो।
22. तब तुम वह चान्दी जिस से तुम्हारी खुदी हुई मूत्तियां मढ़ी हैं, और वह सोना जिस से तुम्हारी ढली हुई मूत्तियां आभूषित हैं, अशुद्ध करोगे। तुम उनको मैले कुचैले वस्त्र की नाईं फेंक दोगे और कहोगे, दूर हो।
23. और वह तुम्हारे लिथे जल बरसाएगा कि तुम खेत में बीज बो सको, और भूमि की उपज भी उत्तम और बहुतायत से होगी। उस समय तुम्हारे जानवरोंको लम्बी-चौड़ी चराई मिलेगी।
24. और बैल और गदहे जो तुम्हारी खेती के काम में आएंगे, वे सूप और डलिया से फटका हुआ स्वादिष्ट चारा खाएंगे।
25. और उस महासंहार के समय जब गुम्मट गिर पकेंगे, सब ऊंचे ऊंचे पहाड़ोंऔर पहाडिय़ोंपर नालियां और सोते पाए जाएंगे।
26. उस समय यहोवा अपक्की प्रजा के लोगोंका घाव बान्धेगा और उनकी चोट चंगा करेगा; तब चन्द्रमा का प्रकाश सूर्य का सा, और सूर्य का प्रकाश सातगुना होगा, अर्यात् अठवारे भर का प्रकाश एक दिन में होगा।।
27. देखो, यहोवा दूर से चला आता है, उसका प्रकोप भड़क उठा है, और धूएं का बादल उठ रहा है; उसके होंठ क्रोध से भरे हुए और उसकी जीभ भस्म करनेवाली आग के समान है।
28. उसकी सांस ऐसी उमण्डनेवाली नदी के समान है जो गले तक पहुंचक्की है; वह सब जातियोंको नाश के सूप से फटकेगा, और देश देश के लोगोंको भटकाने के लिथे उनके जभड़ोंमें लगाम लगाएगा।।
29. तब तुम पवित्र पर्व की रात का सा गीत गाओगे, और जैसा लोग यहोवा के पर्वत की ओर उस से मिलने को, जो इस्राएल की चट्टान है, बांसुली बजाते हुए जाते हैं, वैसे ही तुम्हारे मन में भी आनन्द होगा।
30. और यहोवा अपक्की प्रतापीवाणी सुनाएगा, और अपना क्रोध भड़काता और आग की लौ से भस्म करता हुआ, और प्रचण्ड आन्धी और अति वर्षा और ओलोंके साय अपना भुजबल दिखाएगा।
31. अश्शूर यहोवा के शब्द की शक्ति से नाश हो जाएगा, वह उसे सोंटे से मारेगा।
32. और जब जब यहोवा उसको दण्ड देगा, तब तब साय ही डफ और वीणा बजेंगी; और वह हाथ बढ़ाकर उसको लगातार मारता रहेगा।
33. बहुत काल से तोपेत तैयार किया गया है, वह राजा की के लिथे ठहराया गया है, वह लम्बा चौड़ा और गहिरा भी बनाया गया है, वहां की चिता में आग और बहुत सी लकड़ी हैं; यहोवा की सांस जलती हुई गन्धक की धारा की नाईं उसको सुलगाएगी।।
Chapter यशायाह 31
1. हाथ उन पर जो सहाथता पाने के लिथे मिस्र को जाते हैं और घोड़ोंका आसरा करते हैं; जो रयोंपर भरोसा रखते क्योंकि वे बहुत हैं, और सवारोंपर, क्योंकि वे अति बलवान हैं, पर इस्राएल के पवित्र की ओर दृष्टि नहीं करते और न यहोवा की खोज करते हैं!
2. परन्तु वह भी बुद्धिमान है और दु:ख देगा, वह अपके वचन न टालेगा, परन्तु उठकर कुकमिर्योंके घराने पर और अनर्यकारियोंके सहाथकोंपर भी चढ़ाई करेगा।
3. मिस्री लोग ईश्वर नहीं, मनुष्य ही हैं; और उनके घोड़े आत्मा नहीं, मांस ही हैं। जब यहोवा हाथ बढ़ाएगा, तब सहाथता करनेवाले और सहाथतक चाहनेवाले दोनोंठोकर खाकर गिरेंगे, और वे सब के सब एक संग नष्ट हो जाएंगे।
4. फिर यहोवा ने मुझ से योंकहा, जिस प्रकार सिंह वा जवान सिंह जब अपके अहेर पर गुर्राता हो, और चरवाहे इकट्ठे होकर उसके विरूद्ध बड़ी भीड़ लगाएं, तौभी वह उनके बोल से न घबराएगा और न उनके कोलाहल के कारण दबेगा, उसी प्रकार सेनाओं का यहोवा, सिय्योन पर्वत और यरूशलेम की पहाड़ी पर, युद्ध करने को उतरेगा।
5. पंख फैलाई हुई चिडिय़ोंकी नाईं सेनाओं का यहोवा यरूशलेम की रझा करेगा; वह उसकी रझा करके बचाएगा, और उसको बिन छूए ही उद्धार करेगा।।
6. हे इस्राएलियों, जिसके विरूद्ध तुम ने भारी बलवा किया है, उसी की ओर फिरो।
7. उस समय तुम लोग सोने चान्दी की अपक्की अपक्की मूतिर्योंसे जिन्हें तुम बनाकर पापी हो गए हो धृणा करोगे।
8. तब अश्शूर उस तलवार से गिराया जाएगा जो मनुष्य की नहीं; वह उस तलवार का कौर हो जाएगा जो आदमी की नहीं; और वह तलवार के साम्हने से भागेगा और उसके जवान बेगार में पकड़े जाएंगे।
9. वह भय के मारे अपके सुन्दर भवन से जाता रहेगा, और उसके हाकिम धबराहट के कारण ध्वजा त्याग कर भाग जाएंगे, यहोवा जिस की अग्नि सिय्योन में और जिसका भट्ठा यरूशेलम में हैं, उसी यह वाणी है।।
Chapter यशायाह 32
1. देखो, एक राजा धर्म से राज्य करेगा, और राजकुमा न्याय से हुकूमत करेंगे।
2. हर एक मानो आंधी से छिपके का स्यान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के फरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।
3. उस समय देखनेवालोंकी आंखें धुंधली न होंगी, और सुननेवालोंके कान लगे रहेंगे।
4. उतावलोंके मन ज्ञान की बातें समझेंगे, और तुतलानेवालोंकी जीभ फुर्ती से और साफ बोलेगी।
5. मूढ़ फिर उदार न कहलाएगा और न कंजूस दानी कहा जाएगा।
6. क्योंकि मूढ़ तो मूढ़ता ही की बातें बोलता और मन में अनर्य ही गढ़ता रहता है कि वह बिन भक्ति के काम करे और यहोवा के विरूद्ध फूठ कहे, भूखे को भूखा ही रहने दे और प्यासे का जल रोक रखे।
7. छली की चालें बुरी होती हैं, वह दुष्ट युक्तियां निकालता है कि दरिद्र को भी फूठी बातोंमें लूटे जब कि वे ठीक और नम्रता से भी बोलते हों।
8. परन्तु उदार मनुष्य उदारता ही की युक्तियां निकालता है, वह उदारता में स्यिर भी रहेगा।।
9. हे सुखी स्त्रियों, उठकर मेरी सुनो; हे निश्चिन्त पुत्रियों, मेरे वचन की ओर कान लगाओ।
10. हे निश्चिन्त स्त्रियों, वर्ष भर से कुछ ही अधिक समय में तुम विकल हो जाओगी; क्योंकि तोड़ने को दाखें न होंगी और न किसी भांति के फल हाथ लगेंगे।
11. हे सुखी स्त्रियों, यरयराओ, हे निश्चिन्त स्त्रियों, विकल हो; अपके अपके वस्त्र उतारकर अपक्की अपक्की कमर में टाट कसो।
12. वे मनभाऊ खेतोंऔर फलवन्त दाखलताओं के लिथे छाती पीटेंगी।
13. मेरे लागोंके वरन प्रसन्न नगर के सब हर्ष भरे घरोंमें भी भांति भांति के कटीले पेड़ उपकेंगे।
14. क्योंकि राजभवन त्यागा जाएगा, कोलाहल से भरा नगर सुनसान हो जाएगा और पहाड़ी और उन पर के पहरूओं के घर सदा के लिथे मांदे और जंगली गदहोंको विहारस्यान और घरैलू पशुओं की चराई उस समय तक बने रहेंगे
15. जब तक आत्मा ऊपर से हम पर उण्डेला न जाए, और जंगल फलदायक बारी न बने, और फलदायक बारी फिर वन न गिनी जाए।
16. तब उस जंगल में न्याय बसेगा, और उस फलदायक बारी में धर्म रहेगा।
17. और धर्म का फल शांति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्चिन्त रहना होगा।
18. मेरे लोग शान्ति के स्यानोंमें निश्चिन्त रहेंगे, और विश्रम के स्यानोंमें सुख से रहेंगे।
19. और वन के विनाश के समय ओले गिरेंगे, और नगर पूरी रीति से चौपट हो जाएगा।
20. क्या ही धन्य हो तुम जो सब जलाशयोंके पास बीच बोते, और बैलोंऔर गदहोंको स्वतन्त्रता से चराते हो।।
Chapter यशायाह 33
1. हाथ तुझ नाश करनेवाले पर जो नाश नहीं किया गया या; हाथ तुझ विश्वासघाती पर, जिसके साय विश्वासघात नहीं किया गया! जब तू नाश कर चुके, तब तू नाश किया जाएगा; और जब तू विश्वासघात कर चुके, तब तेरे साय विश्वासघात किया जाएगा।।
2. हे यहोवा, हम लोगोंपर अनुग्रह कर; हम तेरी ही बाट जोहते हैं। भोर को तू उनका भुजबल, संकट के समय हमारा उद्धारकर्त्ता ठहर।
3. हुल्लडऋ सुनते ही देश देश के लोग भाग गए, तेरे उठने पर अन्यजातियां तित्तर-बित्तर हुई।
4. और जैसे टिड्डियां चट करती हैं वैसे ही तुम्हारी लूट चट की जाएगी, और जैसे टिड्डियां टूट पड़ती हैं, वैसे ही वे उस पर टूट पकेंगे।।
5. यहोवा महान हुआ है, वह ऊंचे पर रहता है; उस ने सिय्योन को न्याय और धर्म से परिपूर्ण किया है;
6. और उद्धार, बुद्धि और ज्ञान की बहुतायत तेरे दिनोंका आधार होगी; यहोवा का भय उसका धन होगा।।
7. देख, उनके शूरवीर बाहर चिल्ला रहे हैं; संधि के दूत बिलक बिलककर रो रहे हैं।
8. राजमार्ग सुनसान पके हैं, उन पर बटोही अब नहीं चलते। उस ने वाचा को टाल दिया, नगरोंको तुच्छ जाना, उस ने मनुष्य को कुछ न समझा।
9. पृय्वी विलाप करती और मुर्फा गई है; लबानोन कुम्हला गया और उस पर सियाही छा गई है; शारोन मरूभूमि के समान हो गया; बाशान और कर्मेल में पतफड़ हो रहा है।।
10. यहोवा कहता है, अब मैं उठूंगा, मैं अपना प्रताप दिखाऊंगा; अब मैं महान ठहरूंगा।
11. तुम में सूखी घास का गर्भ रहेगा, तुम से भूसी उत्पन्न होगी; तुम्हारी सांस आग है जो तुम्हें भस्म करेगी।
12. देश देश के लोग फूंके हुए चूने के सामान हो जाएंगे, और कटे हुए कटीले पेड़ोंकी नाई आग में जलाए जाएंगे।।
13. हे दूर दूर के लोगों, सुनो कि मैं ने क्या किया है? और तुम भी जो निकट हो, मेरा पराक्रम जान लो।
14. सिय्योन के पापी यरयरा गए हैं: भक्तिहीनोंको कंपकंपी लगी है: हम में से कोन प्रचण्ड आग में रह सकता? हम में से कौन उस आग में बना रह सकता है जो कभी नहीं बुफेगी?
15. जो धर्म से चलता और सीधी बातें बोलता; जो अन्धेर के लाभ से घृणा करता, जो घूस नही लेता; जो खून की बात सुनने से कान बन्द करता, और बुराई देखने से आंख मूंद लेता है। वही ऊंचे स्यानोंमें निवास करेगा।
16. वह चट्टानोंके गढ़ोंमें शरण लिए हुए रहेगा; उसको रोटी मिलेगी और पानी की घटी कभी न होगी।।
17. तू अपक्की आंखोंसे राजा को उसकी शोभा सहित देखेगा; और लम्बे चौड़े देश पर दृष्टि करेगा।
18. तू भय के दिनोंको स्मरण करेगा: लेखा लेनेवाला और कर तौल कर लेनेवाला कहां रहा? गुम्मटोंका गिननेवाला कहां रहा?
19. जिनकी कठिन भाषा तू नहीं समझता, और जिनकी लड़बड़ाती जीभ की बात तू नहीं बूफ सकता उन निर्दय लोगोंको तू फिर न देखेगा।
20. हमारे पर्व के नगर सिय्योन पर दृष्टि कर! तू अपक्की आंखोंसे यरूशेलम को देखेगा, वह विश्रम का स्यान, और ऐसा तम्बू है जो कभी गिराया नहीं जाएगा, जिसका कोई खूंटा कभी उखाड़ा न जाएगा, और न कोई रस्सी कभी टूटेगी।
21. वहां महाप्रतापी यहोवा हमारे लिथे रहेगा, वह बहुत बड़ी बड़ी नदियोंऔर नहरो का स्यान होगा, जिस में डांड़वाली नाव न चलेगी और न शोभायमान जहाज उस में होकर जाएगा।
22. क्योंकि यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है; वही हमारा उद्धार करेगा।।
23. तेरी रस्सियां ढीली हो गईं, वे मस्तूल की जड़ को दृढ़ न रख सकीं, और न पाल को तान सकीं।। तब बड़ी लूट छीनकर बांटी गई, लंगड़े लोग भी लूट के भागी हुए।
24. कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं; और जो लाग उस में बसेंगे, उनका अधर्म झमा किया जाएगा।।
Chapter यशायाह 34
1. हे जाति जाति के लोगों, सुनने के लिथे निकट आओ, और हे राज्य राज्य के लोगों, ध्यान से सुनो! पृय्वी भी, और जो कुछ उस में है, जगत और जो कुछ उस में उत्पन्न होता है, सब सुनो।
2. यहोवा सब जातियोंपर क्रोध कर रहा है, और उनकी सारी सेना पर उसकी जलजलाहट भड़की हुई है, उस ने उनको सत्यानाश होने, और संहार होने को छोड़ दिया है।
3. उनके मारे हुए फेंक दिथे जाएंगे, और उनकी लोयोंकी दुर्गन्ध उठेगी; उनके लोहू से पहाड़ गल जाएंगे।
4. आकाश के सारे गण जाते रहेंगे और आकाश कागज की नाई लपेटा जाएगा। और जैसे दाखलता वा अंजीर के वृझ के पत्ते मुर्फाकर गिर जाते हैं, वैसे ही उसके सारे गण धुंधले होकर जाते रहेंगे।।
5. क्योंकि मेरी तलवार आकाश में पीकर तृप्त हुई है; देखो, वह न्याय करने को एदोम पर, और जिन पर मेरा शाप है उन पर पकेगी।
6. यहोवा की तलवार लोहू से भर गई है, वह चर्बी से और भेड़ोंके बच्चोंऔर बकरोंके लोहू से, और मेढ़ोंके गुर्दोंकी चर्बी से तृप्त हुई है। क्योंकि बोस्रा नगर में यहोवा का एक यज्ञ और एदोम देश में बड़ा संहार हुआ है।
7. उनके संग जंगली सांढ़ और बछड़े और बैल वध होंगे, और उनकी भूमि लोहू से भीग जाएगी और वहां की मिट्टी चर्बी से अघा जाएगी।।
8. क्योंकि पलटा लेने को यहोवा का एक दिन और सिय्योन का मुकद्दमा चुकाने का एक वर्ष नियुक्त है।
9. और एदोम की नदियां राल से और उसकी मिट्टी गन्धक से बदल जाएगी; उसकी भूमि जलती हुई राल बन जाएगी।
10. वह रात-दिन न बुफेगी; उसका धूंआ सदैव उठता रहेगा। युग युग वह उजाड़ पड़ा रहेगा; कोई उस में से होकर कभी न चलेगा।
11. उस में धनेशपक्की और साही पाए जाएंगे और वह उल्लू और कौवे का बसेरा होगा। वह उस पर गड़बड़ की डोरी और सुनसानी का साहूल तानेगा।
12. वहां न तो रईस होंगे और न ऐसा कोई होगा जो राज्य करने को ठहराया जाए; उसके सब हाकिमोंका अन्त होगा।।
13. उसके महलोंमें कटीले पेड़, गढ़ोंमें बिच्छू पौधे और फाड़ उगेंगे। वह गीदड़ोंका वासस्यान और शुतुर्मुगोंका आंगन हो जाएगा।
14. वहां निर्जल देश के जन्तु सियारोंके संग मिलकर बसेंगे और रोंआर जन्तु एक दूसरे को बुलाएंगे; वहां लीलीत नाम जन्तु वासस्यान पाकर चैन से रहेगा।।
15. वहां उड़नेवाली सांपिन का बिल होगा; वे अण्डे देकर उन्हें सेवेंगी और अपक्की छाया में बटोर लेंगी; वहां गिद्ध अपक्की सायिन के साय इकट्ठे रहेंगे।
16. यहोवा की पुस्तक से ढूंढ़कर पढ़ो इन में से एक भी बात बिना पूरा हुए न रहेगी; कोई बिना जोड़ा न रहेगा। क्योंकि मैं ने अपके मुंह से यह आज्ञा दी है और उसी की आत्मा ने उन्हें इकट्ठा किया है।
17. उसी ने उनके लिथे चिट्ठी डाली, उसी ने अपके हाथ से डोरी डालकर उस दंश को उनके लिथे बांट दिया है; वह सर्वदा उनका ही बना रहेगा और वे पीढ़ी से पीढ़ी तब उस में बसे रहेंगे।।
Chapter यशायाह 35
1. जंगल और निर्जल देश प्रफुल्लित होंगे, मरूभूमि मगन होकर केसर की नाईं फूलेगी;
2. वह अत्यन्त प्रभुल्लित होगी और आनन्द के साय जयजयकार करेगी। उसकी शोभा लबानोन की सी होगी और वह कर्मेल और शारोन के तुल्य तेजोमय हो जाएगी। वे यहोवा की शोभा और हमारे परमेश्वर का तेज देखेंगे।।
3. ढीले हाथोंको दृढ़ करो और यरयराते हुए घुटनोंको स्यिर करो।
4. घबरानेवालोंसे कहो, हियाव बान्धो, मत डरो! देखो, तुम्हारा परमेश्वर पलटा लेने और प्रतिफल देने को आ रहा है। हां, परमेश्वर आकर तुम्हारा उद्धार करेगा।।
5. तब अन्धोंकी आंखे खोली जाएंगी और बहिरोंके कान भी खोले जाएंगे;
6. तब लंगड़ा हरिण की सी चौकडिय़ां भरेगा और गूंगे अपक्की जीभ से जयजयकार करेंगे। क्योंकि जंगल में जल के सोते फूट निकलेंगे और मरूभूमि में नदियां बहने लगेंगीद्ध
7. मृगतृष्णा ताल बन जाएगी और सूखी भूमि में सोते फूटेंगे; और जिस स्यान में सियार बैठा करते हैं उस में घास और नरकट और सरकण्डे होंगे।।
8. और वहां एक सड़क अर्यात् राजमार्ग होगा, उसका नाम पवित्र मार्ग होगा; कोई अशुद्ध जन उस पर से न चलने पाएगा; वह तो उन्हीं के लिथे रहेगा और उस मार्ग पर जो चलेंगे वह चाहे मूर्ख भी होंतौभी कभी न भटकेंगे।
9. वहां सिंह न होगा ओर न कोई हिंसक जन्तु उस पर न चढ़ेगा न वहां पाया जाएगा, परन्तु छुड़ाए हुए उस में नित चलेंगे।
10. और यहोवा ने छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए सिय्योन में आएंगे; और उनके सिर पर सदा का आनन्द होगा; वे हर्ष और आनन्द पाएंगे और शोक और लम्बी सांस का लेना जाता रहेगा।।
Chapter यशायाह 36
1. हिजकिय्याह राजा के चौदहवें वर्ष में, अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरोंपर चढ़ाई करके उनको ले लिया।
2. और अश्शूर के राजा ने रबशाके की बड़ी सेना देकर लाकीश से यरूशलेम के पास हिजकिय्याह राजा के विरूद्ध भेज दिया। और वह उत्तरी पोखरे की नाली के पास धोबियोंके खेत की सड़क पर जाकर खड़ा हुआ।
3. तब हिल्किय्याह का पुत्र एल्याकीम जो राजघराने के काम पर नियुक्त या, और शेब्ना जो मन्त्री या, और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लेखक या, थे तीनोंउस से मिलने को बाहर निकल गए।।
4. रबशाके ने उन से कहा, हिजकिय्याह से कहा, महाराजाधिराज अश्शूर का राजा योंकहता है कि तू किसका भरोसा किए बैठा है?
5. मेरा कहना है कि क्या मुंह से बातें बनाना ही युद्ध के लिथे पराक्रम और युक्ति है? तू किस पर भरोसा रखता है कि तू ने मुझ से बलवा किया है?
6. सुन, तू तो उस कुचले हुए नरकट अर्यात् मिस्र पर भरोसा रखता है; उस पर यदि कोई टेक लगाए तो वह उसके हाथ में चुभकर छेद कर देगा। मिस्र का राजा फिरौन उन सब के साय ऐसा ही करता है जो उस पर भरोसा रखते हैं।
7. फिर यदि तू मुझ से कहे, हमारा भरोसा अपके परमेश्वर यहोवा पर है, तो क्या वह वही नहीं है जिसके ऊंचे स्यानोंऔर वेदियोंको ढा कर हिजकिय्याह ने यहूदा और यरूशलेम के लोगोंसे कहा कि तुम इस वेदी के साम्हने दण्डवत् किया करो?
8. इसलिथे अब मेरे स्वामी अश्शूर के राजा के साय वाचा बान्ध तब मैं तुझे दो हजार घोड़े दूंगा यदि तू उन पर सवार चढ़ा सके।
9. फिर तू रयोंऔर सवारोंके लिथे मिस्र पर भरोसा रखकर मेरे स्वामी के छोटे से छोटे कर्मचारी को भी कैसे हटा सकेगा?
10. क्या मैं ने यहोवा के बिना कहे इस देश को उजाड़ने के लिथे चढ़ाई की है? यहोवा ने मुझ से कहा है, उस देश पर चढ़ाई करके उसे उजाड़ दे।।
11. तब एल्याकीम, शेब्ना और योआह ने रबशाके से कहा, अपके दासोंसे अरामी भाषा में बात कर क्योंकि हम उसे समझते हैं; हम से यहूदी भाषा में शहरपनाह पर बैठे हुए लोगोंके सुनते बातें न कर।
12. रबशाके ने कहा, क्या मेरे स्वामी ने मुझे तेरे स्वामी ही के वा तुम्हारे ही पास थे बातें कहने को भेजा है? क्या उस ने मुझे उन लोगोंके पास नहीं भेजा जो शहरपनाह पर बैठे हैं जिन्हें तुम्हारे संग अपक्की विष्ठा खाना और अपना मूत्र पीना पकेगा?
13. तब रबशाके ने खड़े होकर यहूदी भाषा में ऊंचे शब्द से कहा, महाराजाधिराज अश्शूर के राजा की बातें सुनो!
14. राजा योंकहता है, हिजकिय्याह तुम को धोखा न दे, क्योंकि वह तुम्हें बचा न सकेगा।
15. ऐसा न हो कि हिजकिय्याह तुम से यह कहकर भुलवा दे कि यहोवा निश्चय हम को बचाएगा कि यह नगर अश्शूर के राजा के वश में न पकेगा।
16. हिजकिय्याह की मत सुनो; अश्शूर का राजा कहता है, भेंट भेजकर मुझे प्रसन्न करो और मेरे पास निकल आओ; तब तुम अपक्की अपक्की दाखलता और अंजीर के वृझ के फल खा पाओगे, और अपके अपके कुण्ड का पानी पिया करोगे;
17. जब तक मैं आकर तुम को ऐसे देश में न ले जाऊं जो तुम्हारे देश के समान अनाज और नथे दाखमधु का देश और रोटी और दाख की बारियोंका देश है।
18. ऐसा न हो कि हिजकिय्याह यह कहकर तुम को बहकाए कि यहोवा हम को बचाएगा। क्या और जातियोंके देवताओं ने अपके अपके देश को अश्शूर के राजा के हाथ से बचाया है?
19. हमात और अर्पाद के देवता कहां रहे? सपर्वैम के देवता कहां रहे? क्या उन्होंने शोमरोन को मेरे हाथ से बचाया?
20. देश देश के देवतओं में से ऐसा कौन है जिस ने अपके देश को मेरे हाथ से बचाया हो? फिर क्या यहोवा यरूशलेम को मेरे हाथ से बचाएगा?
21. परन्तु वे चुप रहे और उसके उत्तर में एक बात भी न कही, क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा यी कि उसको उत्तर न देना।
22. तब हिल्किय्याह का पुत्र एल्याकीम जो राजघराने के काम पर नियुक्त या और शेब्ना जो मन्त्री या और आसाप या, इन्होंने हिजकिय्याह के पास वस्त्र फाड़े हुए जाकर रबशाके की बातें कह सुनाई।।
Chapter यशायाह 37
1. जब हिजकिय्याह राजा ने यह सुना, तब वह अपके वस्त्र फाड़ और टाट ओढ़कर यहोवा के भवन में गया।
2. और उस ने एल्याकीम को जो राजघराने के काम पर नियुक्त या और शेब्ना मन्त्री को और याजकोंके पुरनियोंको जो सब टाट ओढ़े हुए थे, आमोस के पुत्र यशायाह नबी के पास भेज दिया।
3. उन्होंने उस से कहा, हिजकिय्याह योंकहता है कि आज का दिन संकट और उलहने और निन्दा का दिन है, बच्चे जन्मने पर हुए पर जच्चा को जनने का बल न रहा।
4. सम्भव है कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने रबशाके की बातें सुनी जिसे उसके स्वामी अश्शूर के राजा ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को भेजा है, और जा बातें तेरे परमेश्वर यहोवा ने सुनी हैं उन्हें दपके; सो तू इन बचे हुओं के लिथे जो रह गए हैं, प्रार्यना कर।।
5. जब हिजकिय्याह राजा के कर्मचारी यशायाह के पास आए।
6. तब यशायाह ने उन से कहा, अपके स्वामी से कहो, यहोवा योंकहता है कि जो वचन तू ने सुने हैं जिनके द्वारा अश्शूर के राजा के जनोंमें मेरी निन्दा की है, उनके कारण मत डर।
7. सुन, मैं उसके मन में प्रेरणा करूंगा जिस से वह कुछ समचार सुनकर अपके देश को लौट जाए; और मैं उसको उसी देश में तलवार से मरवा डालूंगा।।
8. तब रबशाके ने लौटकर अश्शूर के राजा को लिब्ना नगर से युद्ध करते पाया; क्योंकि उस ने सुना या कि वह लाकीश के पास से उठ गया है।
9. उस ने कूश के राजा तिर्हाका के विषय यह सुना कि वह उस से लड़ने को निकला है। तब उस ने हिजकिय्याह के पास दूतोंको यह कहकर भेजा।
10. कि तुम यहूदा के राजा हिजकिय्याह से योंकहना, तेरा परमेश्वर जिस पर तू भरोसा करता है, यह कहकर तुझे धोखा न देने पाए कि यरूशलेम अश्शूर के राजा के वश में न पकेगा।
11. देख, तू ने सुना है कि अश्शूर के राजाओं ने सब देशोंसे कैसा व्यवहार किया कि उन्हें सत्यानाश ही कर दिया।
12. फिर क्या तू बच जाएगा? गोज़ान और हारान और रेसेप में रहनेवाली जिन जातियोंको और तलस्सार में रहनेवाले एदेनी लोगोंको मेरे पुरखाओं ने नाश किया, क्या उनके देवताओं ने उन्हें बचा लिया?
13. हमात का राजा, अर्पाद का राजा, सपर्वैम नगर का राजा, और हेना और इव्वा के राजा, थे सब कहां गए?
14. इस पत्री को हिजकिय्याह ने दूतोंके हाथ से लेकर पढ़ा; तब उस ने यहोवा के भवन में जाकर उस पत्री को यहोवा के साम्हने फैला दिया।
15. और यहोवा से यह प्रार्यना की,
16. हे सेनाओं के यहोवा, हे करूबोंपर विराजमान इस्राएल के परमेश्वर, पृय्वी के सब राज्योंके ऊपर केवल तू ही परमेश्वर है; आकाश और पृय्वी को तू ही ने बनाया है।
17. हे यहोवा, कान लगाकर सुन; यहोवा आंख खोलकर देख; और सन्हेरीब के सब वचनोंको सुन ले, जिस ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को लिख भेजा है।
18. हे यहोवा, सच तो है कि अश्शूर के राजाओं ने सब जातियोंके देशोंको उजाड़ा है
19. और उनके देवताओं को आग में फोंका है; क्योंकि वे ईश्वर न थे, वे केवल मनुष्योंकी कारीगरी, काठ और पत्यर ही थे; इस कारण वे उनको नाश कर सके।
20. अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा, तू हमें उसके हाथ से बचा जिस से पृय्वी के राज्य राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है।।
21. तब आमोस के पुत्र यशायाह ने हिजकिय्याह के पास यह कहला भेजा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तू ने जो अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय में मुझ से प्रार्यना की है,
22. उसके विषय यहोवा ने यह वचन कहा है, सिय्योन की कुमारी कन्या तुझे तुच्छ जानती है और ठट्ठोंमें उड़ाती है; यरूशलेम की पुत्री तुझ पर सिर हिलाती है।।
23. तू ने किस की नामधराई और निन्दा की है? और तू जो बड़ा बोल बोला और घमण्ड किया है, वह किस के विरूद्ध किया है? इस्राएल के पवित्र के विरूद्ध!
24. अपके कर्मचारियोंके द्वारा तू ने प्रभु की निन्दा करके कहा है कि बहुत से रय लेकर मैं पर्वतोंकी चोटियोंपर वरन लबानोन के बीच तक चढ़ आया हूं; मैं उसके ऊंचे ऊंचे देवदारोंऔर अच्छे अच्छे सनौबरोंको काट डालूंगा और उसके दूर दूर के ऊंचे स्यानोंमें और उसके वन की फलदाई बारियोंमें प्रवेश करूंगा।
25. मैं ने खुदवाकर पानी पिया और मिस्र की नहरोंमें पांव धरते ही उन्हें सुखा दिया।
26. क्या तू ने नहीं सुना कि प्राचीनकाल से मैं ने यही ठाना और पूर्वकाल से इसकी तैयारी की यी? इसलिथे अब मैं ने यह पूरा भी किया है कि तू गढ़वाले नगरोंको खण्डहर की खण्डहर कर दे।
27. इसी कारण उनके रहनेवालोंका बल घट गया और वे विस्मित और लज्जित हुए: वे मैदान के छोटे छोटे पेड़ोंऔर हरी घास और छत पर की घास और ऐसे अनाज के समान हो गए जो बढ़ने से पहिले ही सूख जाता है।।
28. मैं तो तेरा बैठना, कूच करना और लौट आना जानता हूं; और यह भी कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता है।
29. इस कारण कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता और तेरे अभिमान की बातें मेरे कानोंमें पक्की हैं, मैं तेरी नाक में नकेल डालकर और तेरे मुंह में अपक्की लगाम लगाकर जिस मार्ग से तू आया है उसी मार्ग से तुझे लौटा दूंगा।।
30. और तेरे लिथे यह चिन्ह होगा कि इस वर्ष तो तुम उसे खाओगे जो आप से आप उगे, और दूसरे वर्ष वह जो उस से उत्पन्न हो, और तीसरे वर्ष बीज बोकर उसे लवने पाओगे और दाख की बारियां लगाने और उनका फल खाने पाओगे।
31. और यहूदा के घराने के बचे हुए लोग फिर जड़ पकड़ेंगे और फूलें-फलेंगे;
32. क्योंकि यरूशलेम से बचे हुए और सिय्योन पर्वत से भागे हुए लोग निकलेंगे। सेनाओं का यहोवा अपक्की जलन के कारण यह काम करेगा।।
33. इसलिथे यहोवा यश्शूर के राजा कि विषय योंकहता है कि वह इस नगर में प्रवेश करने, वरन इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा; और न वह ढाल लेकर इसके साम्हने आने वा इसके विरूद्ध दमदमा बान्धने पाएगा।
34. जिस मार्ग से वह आया है उसी से वह लौट भी जाएगा और इस नगर में प्रवेश न करने पाएगा, यहोवा की यही वाणी है।
35. क्योंकि मैं अपके निमित्त और अपके दास दाऊद के निमित्त, इस नगर की रझा करके उसे बचाऊंगा।।
36. ब यहोवा के दूत ने निकलकर अश्शूरियोंकी छावनी में एक लाख पचासी हजार पुरूषोंको मारा; और भोर को जब लोग सवेरे उठे तब क्या देखा कि लोय ही लोय पक्की हैं।
37. तब अश्शूर का राजा सन्हेरीब चल दिया और लौटकर नीनवे में रहने लगा।
38. वहां वह अपके देवता निस्रोक के मन्दिर में दण्डवत् कर रहा या कि इतने में उसके पुत्र अद्रम्मेलेक और शरेसेन ने उसको तलवार से मारा और अरारात देश में भाग गए। और उसका पुत्र एसर्हद्दोन उसके स्यान पर राज्य करने लगा।।
Chapter यशायाह 38
1. उन दिनोंमें हिजकिय्याह ऐसा रोगी हुआ कि वह मरने पर या। और आमोस के पुत्र यशायाह नबी ने उसके पास जाकर कहा, यहोवा योंकहता है, अपके घराने के विषय जो आज्ञा देनी हो वह दे, क्योंकि तू न बचेगा मर ही जाएगा।
2. तब हिजकिय्याह ने भी की ओर मुंह फेरकर यहोवा से प्रार्यना करके कहा;
3. हे यहोवा, मैं बिनती करता हूं, स्मरण कर कि मैं सच्चाई और खरे मन से अपके को तेरे सम्मुख जानकर चलता आया हूं और जो तेरी दृष्टि में उचित या वही करता आया हूं। और हिजकिय्याह बिलक बिलककर रोने लगा।
4. तब यहोवा का यह वचन यशायाह के पास पहुंचा,
5. जाकर हिजकिय्याह से कह कि तेरे मूलपुरूष दाऊद का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं ने तेरी प्रार्यना सुनी और तेरे आंसू देखे हैं; सुन, मैं तेरी आयु पन्द्रह वर्ष और बढ़ा दूंगा।
6. अश्शूर के राजा के हाथ से मैं तेरी और इस नगर की रझा करके बचाऊंगा।।
7. यहोवा अपके इस कहे हुए वचन को पूरा करेगा,
8. और यहोवा की ओर से इस बात का तेरे लिथे यह चिन्ह होगा कि धूप की छाया जो आहाज की धूपघड़ी में ढल गई है, मैं दस अंश पीछे की ओर लौटा दूंगा। सो वह छाया जो दस अंश ढल चुकी यी लौट गई।।
9. यहूदा के राजा हिजकिय्याह का लेख जो उस ने लिखा जब वह रोगी होकर चंगा हो गया या, वह यह है:
10. मैं ने कहा, अपक्की आयु के बीच ही मैं अधोलोक के फाटकोंमें प्रवेश करूंगा; क्योंकि मेरी शेष आयु हर ली गई है।
11. मैं ने कहा, मैं याह को जीवितोंकी भूमि में फिर न देखने पाऊंगा; इस लोक के निवासिक्कों मैं फिर न देखूंगा।
12. मेरा घर चरवाहे के तम्बू की नाई उठा लिया गया है; मैं ने जोलाहे की नाईं अपके जीवन को लपेट दिया है; वह मुझे तांत से काट लेगा; एक ही दिन में तू मेरा अन्त कर डालेगा।
13. मैं भोर तक अपके मन को शान्त करता रहा; वह सिंह की नाईं मेरी सब हड्डियोंको तोड़ता है; एक ही दिन में तू मेरा अन्त कर डालता है।
14. मैं सूपाबेने वा सारस की नाई च्यूं च्यूं करता, मैं पिण्डुक की नाई विलाप करता हूं। मेरी आंखें ऊपर देखते देखते पत्यरा गई हैं। हे यहोवा, मुझ पर अन्धेर हो रहा है; तू मेरा सहारा हो!
15. मैं क्या कहूं? उसी ने मुझ से प्रतिज्ञा की और पूरा भी किया है। मैं जीवन भर कडुआहट के साय धीरे धीरे चलता रहूंगा।।
16. हे प्रभु, इन्हीं बातोंसे लोग जीवित हैं, और इन सभोंसे मेरी आत्मा को जीवन मिलता है। तू मुझे चंगा कर और मुझे जीवित रख!
17. देख, शान्ति ही के लिथे मुझे बड़ी कडुआहट मिली; परन्तु तू ने स्नेह करके मुझे विनाश के गड़हे से निकाला है, क्योंकि मेरे सब पापोंको तू ने अपक्की पीठ के पीछे फेंक दिया है।
18. क्योंकि अधोलोक तेरा धन्यवाद नहीं कर सकता, न मृत्यु तेरी स्तुति कर सकती है; जो कबर में पकें वे तेरी सच्चाई की आशा नहीं रख सकते
19. जीवित, हो जीवित ही तेरा धन्यवाद करता है, जैसा मैं आज कर रहा हूं; पिता तेरी सच्चाई का समाचार पुत्रोंको देता है।।
20. यहोवा मेरा उद्धार करेगा, इसलिथे हम जीवन भर यहोवा के भवन में तारवाले बाजोंपर अपके रचे हुए गीत गातें रहेंगे।।
21. यशायाह ने कहा या, अंजीरोंकी एक टिकिया बनाकर हिजकिय्याह के फाड़े पर बान्धी जाए, तब वह बचेगा।
22. और हिजकिय्याह ने पूछा या कि इसका क्या चिन्ह है कि मैं यहोवा के भवन को फिर जाने पाऊंगा?
Chapter यशायाह 39
1. उस समय बलदान का पुत्र मरोदक बलदान, जो बाबुल का राजा या, उस ने हिजकिय्याह के रोगी होने और फिर चंगे हो जाने की चर्चा सुनकर उसके पास पत्री और भेंट भेजी।
2. इन से हिजकिय्याह ने प्रसन्न होकर अपके अनमोल पदार्योंका भण्डार और चान्दी, सोना, सुगन्ध द्रव्य, उत्तम तेल ओर भण्डारोंमें जो जो वस्तुएं यी, वे सब उनको दिखलाईं। हिजकिय्याह के भवन और राज्य भर में कोई ऐसी वस्तु नहीं रह गई जो उस ने उन्हें न दिखाई हो।
3. तब यशायाह नबी ने हिजकिय्याह राजा के पास जाकर पूछा, वे मनुष्य क्या कह गए? और वे कहां से तेरे पास आए थे? हिजकिय्याह ने कहा, वे तो दूर देश से अर्यात् बाबुल से मेरे पास आए थे।
4. फिर उस ने पूछा, तेरे भवन में उन्होंने क्या क्या देखा है? हिजकिय्याह ने कहा, जो कुछ मेरे भवन में है वह सब उन्होंने देखे है; मेरे भण्डारोंमें कोई ऐसी वस्तु नहीं जो मैं ने उन्हें न दिखाई हो।।
5. तब यशायाह ने हिजकिय्याह से कहा, सेनाओं के यहोवा का यह वचन सुन ले:
6. ऐसे दिन आनेवाले हैं, जि में जो कुछ तेरे भवन में है और जो कुछ आज के दिन तक तेरे पुरखाओं का रखा हुआ तेरे भण्डारोंमें हैं, वह सब बाबुल को उठ जाएगा; यहोवा यह कहता है कि कोई वस्तु न बचेगी।
7. और जो पुत्र तेरे वंश में उत्पन्न हों, उन में से भी कितनोंको वे बंधुआई में ले जाएंगे; और वह खोजे बनकर बाबुल के राजभवन में रहेंगे।
8. हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, यहोवा का वचन जो तू ने कहा है वह भला ही है। फिर उस ने कहा, मेरे दिनोंमें तो शान्ति और सच्चाई बनी रहेगी।।
Chapter यशायाह 40
1. तुम्हारा परमेश्वर यह कहता है, मेरी प्रजा को शान्ति दो, शान्ति!
2. यरूशलेम से शान्ति की बातें कहो; और उस से पुकारकर कहो कि तेरी कठिन सेवा पूरी हुई है, तेरे अधर्म का दण्ड अंगीकार किया गया है : यहोवा के हाथ से तू अपके सब पापोंका दूना दण्ड पा चुका है।।
3. किसी की पुकार सुनाई देती है, जंगल में यहोवा का मार्ग सुधारो, हमारे परमेश्वर के लिथे अराबा में एक राजमार्ग चौरस करो।
4. हर एक तराई भर दी जाए और हर एक पहाड़ और पहाड़ी गिरा दी जाए; जो टेढ़ा है वह सीधा और जो ऊंचा नीचा है वह चौरस किया जाए।
5. तब यहोवा का तेज प्रगट होगा और सब प्राणी उसको एक संग देखेंगे; क्योंकि यहोवा ने आप ही ऐसा कहा है।।
6. बोलनेवाले का वचन सुनाई दिया, प्रचार कर! मैं ने कहा, मैं क्या प्रचार करूं? सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा मैदान के फूल के समान है।
7. जब यहोवा की सांस उस पर चलती है, तब घास सूख जाती है, और फूल मुर्फा जाता है; नि:सन्देह प्रजा घास है।
8. घास तो सूख जाती, और फूल मुर्फा जाता है; परन्तु हमारे परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा।।
9. हे सिय्योन को शुभ समचार सुनानेवाली, ऊंचे पहाड़ पर चढ़ जा; हे यरूशलेम को शुभ समाचार सुनानेवाली, बहुत ऊंचे शब्द से सुना, ऊंचे शब्द से सुना, मत डर; यहूदा के नगरोंसे कह, अपके परमेश्वर को देखो!
10. देखो, प्रभु यहोवा सामर्य दिखाता हुआ रहा है, वह अपके भुजबल से प्रभुता करेगा; देखा, जो मजदूरी देने की है वह उसके पास है और जो बदला देने का है वह उसके हाथ में है।
11. वह चरवाहे की नाईं अपके फुण्ड को चराएगा, वह भेड़ोंके बच्चोंको अंकवार में लिए रहेगा और दूध पिलानेवालियोंको धीरे धीरे ले चलेगा।।
12. किस ने महासागर को चुल्लू से मापा और किस के बित्ते से आकाश का नाप हुआ, किस ने पृय्वी की मिट्टी को नपके में भरा और पहाड़ोंको तराजू में और पहाडिय़ोंको कांटे में तौला है?
13. किस ने यहोवा की आत्मा को मार्ग बताया वा उसका मन्त्री होकर उसको ज्ञान सिखाया है?
14. उस ने किस से सम्मति ली और किस ने उसे समझाकर न्याय का पय बता दिया और ज्ञान सिखाकर बुद्धि का मार्ग जता दिया है?
15. देखो, जातियां तो डोल की एक बून्द वा पलड़ोंपर की धूलि के तुल्य ठहरीं; देखो, वह द्वीपोंको धूलि के किनकोंसरीखे उठाता है।
16. लबानोन की ईधन के लिथे योड़ा होगा और उस में के जीव-जन्तु होमबलि के लिथे बस न होंगे।
17. सारी जातियां उसके साम्हने कुछ नहीं हैं, वे उसकी दृष्टि में लेश और शून्य से भी घट ठहरीं हैं।।
18. तुम ईश्वर को किस के समान बताओगे और उसकी उपमा किस से दोगे?
19. मूरत! कारीगर ढालता है, सोनार उसको सोने से मढ़ता और उसके लिथे चान्दी की सांकलें ढालकर बनाता है।
20. जो कंगाल इतना अर्पण नहीं कर सकता, वह ऐसा वृझ चुन लेता है जो न घुने; तब एक निपुण कारीगर ढूंढकर मूरत खुदवाता और उसे ऐसा स्यिर कराता है कि वह हिल न सके।।
21. क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? क्या तुम को आरम्भ ही से नहीं बताया गया? क्या तुम ने पृय्वी की नेव पड़ने के समय ही से विचार नहीं किया?
22. यह वह है जो पृय्वी के घेरे के ऊपर आकाशमण्डल पर विराजमान है; और पृय्वी के रहनेवाले टिड्डी के तुल्य है; जो आकाश को मलमल की नाईं फैलाता और ऐसा तान देता है जैसा रहने के लिथे तम्बू ताना जाता है;
23. जो बड़े बड़े हाकिमोंको तुच्छ कर देता है, और पृय्वी के अधिक्कारनेियोंको शून्य के समान कर देता है।।
24. वे रोपे ही जाते, वे बोए ही जाते, उनके ठूंठ भूमि में जड़ ही पकड़ पाते कि वह उन पर पवन बहाता और वे सूख जाते, और आंधी उन्हें भूसे की नाई उड़ा ले जाती है।।
25. सो तुम मुझे किस के समान बताओगे कि मैं उसके तुल्य ठहरूं? उस पवित्र का यही वचन है।
26. अपक्की आंखें ऊपर उठाकर देखो, किस ने इनको सिरजा? वह इन गणोंको गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है? वह ऐसा सामर्यी और अत्यन्त बली है कि उन में के कोई बिना आए नहीं रहता।।
27. हे याकूब, तू क्योंकहता है, हे इस्राएल तू क्योंबोलता है, मेरा मार्ग यहोवा के छिपा हुआ है, मेरा परमेश्वर मेरे न्याय की कुछ चिन्ता नहीं करता?
28. क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृय्वी भर का सिरजनहार है, वह न यकता, न श्र्मित होता है, उसकी बुद्धि अगम है।
29. वह यके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्य देता है।
30. तरूण तो यकते और श्र्मित हो जाते हैं, और जवान ठोकर खाकर गिरते हैं;
31. परन्तु जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे उकाबोंकी नाई उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्र्मित न होंगे, चलेंगे और यकित न होंगे।।
Chapter यशायाह 41
1. हे द्वीपों, मेरे साम्हने चुप रहो; देश देश के लोग नया बल प्राप्त करें; वे समीप आकर बोलें; हम आपस में न्याय के लिथे एक दूसरे के समीप आएं।।
2. किस ने पूर्व दिशा से एक को उभारा है, जिसे वह धर्म के साय अपके पांव के पास बुलाता है? वह जातियोंको उसके वश में कर देता और उसको राजाओं पर अधिक्कारनेी ठहराता है; उसकी तलवार वह उन्हें धूल के समान, और उसके धनुष से उड़ाए हुए भूसे के समान कर देता है।
3. वह उन्हें खदेड़ता और ऐसे मार्ग से, जिस पर वह कभी न चला या, बिना रोक टोक आगे बढ़ता है।
4. कि ने यह काम किया है और आदि से पीढिय़ोंको बुलाता आया है? मैं यहोवा, जो सब से पहिला, और अन्त के समय रहूंगा; मैं वहीं हूं।।
5. द्वीप देखकर डरते हैं, पृय्वी के दूर देश कांप उठे और निकट आ गए हैं।
6. वे एक दूसरे की सहाथता करते हैं और उन में से एक अपके भाई से कहता है, हियाव बान्ध!
7. बढ़ई सोनार को और हयौड़े से बराबर करनेवाला निहाई पर मारनेवाले को यह कहकर हियाव बन्धा रहा है, जोड़ तो अच्छी है, सो वह कील ठोंक ठोंककर उसको ऐसा दृढ़ करता है कि वह स्यिर रहे।।
8. हे मेरे दास इस्राएल, हे मेरे चुने हुए याकूब, हे मेरे प्रेमी इब्राहीम के वंश;
9. तू जिसे मैं ने पृय्वी के दूर दूर देशोंसे लिया और पृय्वी की छोर से बुलाकर यह कहा, तू मेरा दास है, मैं ने तुझे चुला है और तजा नहीं;
10. मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूं, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूं; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहाथता करूंगा, अपके धर्ममय दहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा।।
11. देख, जो तुझ से क्रोधित हैं, वे सब लज्जित होंगे; जो तुझ से फगड़ते हैं उनके मुंह काले होंगे और वे नाश होकर मिट जाएंगे।
12. जो तुझ से लड़ते हैं उन्हें ढूंढने पर भी तू न पएगा; जो तुझ से युद्ध करते हैं वे नाश होकर मिट जाएंगे।
13. क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़कर कहूंगा, मत डर, मैं तेरी सहाथता करूंगा।।
14. हे कीड़े सरीखे याकूब, हे इस्राएल के मनुष्यों, मत डरो! यहोवा की यह वाणी है, मैं तेरी सहयता करूंगा; इस्राएल का पवित्र तेरा छुड़ानेवाला है।
15. देख, मैं ने तुझे छुरीवाले दांवने का एक नया और चोखा यन्त्र ठहराया है; तू पहाड़ोंको दांय दांयकर स्ूझ्म धूलि कर देगा, और पहाडिय़ोंको तू भूसे के समान कर देगा।
16. तू उनको फटकेगा, और पवन उन्हें उड़ा ले जाएगी, और आंधी उन्हें तितर-बितर कर देगी। परन्तु तू यहोवा के कारण मगन होगा; और इस्राएल के पवित्र के कारण बड़ाई मारेगा।।
17. जब दी और दरिद्र लोग जल ढूंढ़ने पर भी न पाथें और उनका तालू प्यास के मारे सूख जाथे; मैं यहोवा उनकी बिनती सुनूंगा, मैं इस्राएल का परमेश्वर उनको त्याग न दूंगां
18. मैं मुण्डे टीलोंसे भी नदियां और मैदानोंके बीच में सोते बहऊंगा; मैं जंगल को ताल और निर्जल देश को सोते ही सोते कर दूंगा।
19. मैं जंगल में देवदार, बबूल, मेंहदी, और जलपाई उगाऊंगा; मैं अराबा में सनौवर, तिधार वृझ, और सीधा सनौबर इकट्ठे लगाऊंगा;
20. जिस से लोग देखकर जान लें, और सोचकर पूरी रीति से समझ लें कि यह यहोवा के हाथ का किया हुआ और इस्राएल के पवित्र का सृजा हुआ है।।
21. यहोवा कहता है, अपना मुकद्दमा लड़ो; याकूब का राजा कहता है, अपके प्रमाण दो।
22. वे उन्हें देकर हम को बताएं कि भविष्य में क्या होगा? पूर्वकाल की घटनाएं बताओ कि आदि में क्या क्या हुआ, जिस से हम उन्हें सोचकर जान सकें कि भविष्य में उनका क्या फल होगा; वा होनेवाली घटनाएं हम को सुना दो।
23. भविष्य में जो कुछ घटेगा वह बताओ, तब हम मानेंगे कि तुम ईश्वर हो; भला वा बुरा; कुछ तो करो कि हम देखकर एक चकित को जाएं।
24. देखो, तुम कुछ नहीं हो, तुम से कुछ नहीं बनता; जो कोई तुम्हें जानता है वह घृणित है।।
25. मैं ने एक को उत्तर दिशा से उभारा, वह आ भी गया है; वह पूर्व दिशा से है और मेरा नाम लेता है; जैसा कुम्हार गिली मिट्टी को लताड़ता है, वैसा ही वह हाकिमोंको कीच के समान लताड़ देगा।
26. किस ने इस बात को पहिले से बताया या, जिस से हम यह जानते? किस ने पूर्वकाल से यह प्रगट किया जिस से हम कहें कि वह सच्चा है? कोई भी बतानेवाला नहीं, कोई भी सुनानेवाला नहीं, तुम्हारी बातोंका कोई भी सुनानेवाला नहीं है।
27. मैं ही ने पहिले सिय्योन से कहा, देख, उन्हें देख, और मैं ने यरूशलेम को एक शुभ समाचार देनेवाला भेजा।
28. मैं ने देखने पर भी किसी को न पाया; उन में से कोई मन्त्री नहीं जो मेरे पूछने पर कुछ उत्तर दे सके।
29. सुनो, उन सभोंके काम अनर्य हैं; उनके काम तुच्छ हैं, और उनकी ढली हुई मूत्तियां वायु और मिय्या हैं।।
Chapter यशायाह 42
1. मेरे दास को देखो जिसे मैं संभाले हूं, मेरे चुने हुए को, जिस से मेरा जी प्रसन्न है; मैं ने उस पर अपना आत्मा रखा है, वह अन्यजातियोंके लिथे न्याय प्रगट करेगा।
2. न वह चिल्लाएगा और न ऊंचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपक्की वाणी सुनाथेगा।
3. कुचले हुए नरकट को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुफाएगा; वह सच्चाई से न्याय चुकाएगा।
4. वह न यकेगा और न हियाव छोड़ेगा जब तक वह न्याय को पृय्वी पर स्यिर न करे; और द्वीपोंके लोग उसकी व्यवस्या की बाट जाहेंगे।।
5. ईश्वर जो आकाश का सृजने और ताननेवाला है, जो उपज सहित पृय्वी का फैलानेवाला और उस पर के लोगोंको सांस और उस पर के चलनेवालोंको आत्मा देनेवाला यहावो है, वह योंकहता है:
6. मुझ यहोवा ने तुझ को धर्म से बुला लिया है; मैं तेरा हाथ याम कर तेरी रझा करूंगा; मैं तुझे प्रजा के लिथे वाचा और जातियोंके लिथे प्रकाश ठहराऊंगा; कि तू अन्धोंकी आंखें खोले,
7. बंधुओं को बन्दीगृह से निकाले और जो अन्धिक्कारने में बैठे हैं उनको कालकोठरी से निकाले।
8. मैं यहोवा हूं, मेरा नाम यही है; अपक्की महिमा मैं दूसरे को न दूंगा और जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतोंको न दूंगा।
9. देखो, पहिली बातें तो हो चुकी हैं, अब मैं नई बातें बताता हूं; उनके होने से पहिले मैं तुम को सुनाता हूं।।
10. हे समुद्र पर चलनेवालो, हे समुद्र के सब रहनेवालो, हे द्वीपो, तुम सब अपके रहनेवालो समेत यहोवा के लिथे नया गीत गाओ और पृय्वी की छोर से उसकी स्तुति करो।
11. जंगल और उस में की बस्तियां और केदार के बसे हुए गांव जयजयकार करें; सेला के रहनेवाले जयजयकार करें, वे पहाड़ोंकी चोटियोंपर से ऊंचे शब्द से ललकारें।
12. वे यहोवा की महिमा प्रगट करें और द्वीपोंमें उसका गुणानुवाद करें।
13. यहोवा वीर की नाईं निकलेगा और योद्धा के समान अपक्की जलन भड़काएगा, वह ऊंचे शब्द से ललकारेगा और अपके शत्रुओं पर जयवन्त होगा।।
14. बहुत काल से तो मैं चुप रहा और मौन साधे अपके को रोकता रहा; परन्तु अब जच्चा की नाईं चिल्लाऊंगा मैं हांफ हांफकर सांस भरूंगा।
15. पहाड़ोंऔर पहडिय़ोंको मैं सुखा डालूंगा और उनकी सब हरियाली फुलसा दूंगा; मैं नदियोंको द्वीप कर दूंगा और तालोंको सुखा डालूंगा।
16. मैं अन्धोंको एक मार्ग से ले चलूंगा जिसे वे नहीं जानते और उनको ऐसे पयोंसे चलाऊंगा जिन्हें वे नहीं जानते। उनके आगे मैं अन्धिक्कारने को उजियाला करूंगा और टेढ़े मार्गोंको सीधा कयंगा। मैं ऐसे ऐसे काम करूंगा और उनको न त्यागूंगा।
17. जो लोग खुदी हुई मूरतोंपर भरोसा रखते और ढली हुई मूरतोंसे कहते हैं कि तुम हमारे ईश्वर हो, उनको पीछे हटना और अत्यन्त लज्जित होना पकेगा।।
18. हे बहिरो, सुनो; हे अन्धो, आंख खोलो कि तुम देख सको!
19. मेरे दास के सियाव कौन अन्धा है? और मेरे भेजे हुए दूत के तुल्य कौन बहिरा है? मेरे मित्र के समान कौन अन्धा या यहोवा के दास के तुल्य अन्धा कौन है?
20. तू बहुत सी बातोंपर दृष्टि करता है परन्तु उन्हें देखता नहीं है; कान तो खुले हैं परन्तु सुनता नहीं है।।
21. यहोवा को अपक्की धामिर्कता के निमित्त ही यह भाया है कि व्यवस्या की बड़ाई अधिक करे।
22. परन्तु थे लोग लुट गए हैं, थे सब के सब गड़हियोंमें फंसे हुए और कालकोठरियोंमें बन्द किए हुए हैं; थे पकड़े गए और कोई इन्हें नहीं छुड़ाता; थे लुट गए और कोई आज्ञा नहीं देता कि फेर दो।
23. तुम में से कौन इस पर कान लगाएगा? कौन ध्यान धरके होनहार के लिथे सुनेगा?
24. किस ने याकूब को लुटवाया और इस्राएल को लुटेरोंके वश में कर दिया? क्या यहोवा ने यह नहीं किया जिसके विरूद्ध हम ने पाप किया, जिसके मार्गोंपर उन्होंने चलना न चाहा और न उसकी व्यवस्या को माना?
25. इस काण उस पर उस ने अपके क्रोध की आग भड़काई और युद्ध का बल चलाना; और यद्यिप आग उसके चारोंओर लग गई, तौभी वह न समझा; वह जल भी गया, तौभी न चेता।।
Chapter यशायाह 43
1. हे इस्राएल तेरा रचनेवाला और हे याकूब तेरा सृजनहार यहोवा अब योंकहता है, मत डर, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है; मैं ने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है।
2. जब तू जल में होकर जाए, मैं तेरे संग संग रहूंगा और जब तू नदियोंमें होकर चले, तब वे तुझे न डुबा सकेंगी; जब तू आग में चले तब तुझे आंच न लगेगी, और उसकी लौ तुझे न जला सकेगी।
3. क्योंकि मैं यहोवा तेरा परमेश्वर हूं, इस्राएल का पवित्र मैं तेरा उद्धारकर्ता हूं। तेरी छुड़ौती में मैं मिस्र को और तेरी सन्ती कूश और सबा को देता हूं।
4. मेरी दृष्टि में तू अनमोल और प्रतिष्ठित ठहरा है और मैं तुझ से प्रेम रखता हूं, इस कारण मैं तेरी सन्ती मनुष्योंको और तेरे प्राण के बदले में राज्य राज्य के लोगोंको दे दूंगा।
5. मत डर, क्योंकि मैं तेरे साय हूं; मैं तेरे वंश को पूर्व से ले आऊंगा, और पच्छिम से भी इकट्ठा करूंगा।
6. मैं उत्तर से कहूंगा, दे दे, और दक्खिन से कि रोक मत रख; मेरे पुत्रोंको दूर से और मेरी पुत्रियोंको पृय्वी की छोर से ले आओ;
7. हर एक को जो मेरा कहलाता है, जिसको मैं ने अपक्की महिमा के लिथे सृजा, जिसको मैं ने रचा और बनाया है।।
8. आंख रहते हुए अन्धोंको और कान रहते हुए बहिरोंको निकाल ले आओ!
9. जाति जाति के लोग इकट्ठे किए जाएं और राज्य राज्य के लोग एकत्रित हों। उन में से कौन यह बात बता सकता वा बीती हुई बातें हमें सुना सकता है? वे अपके साझी ले आएं जिस से वे सच्चे ठहरें, वे सुन लें और कहें, यह सत्य है।
10. यहोवा की वाणी है कि तुम मेरे साझी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैं ने इसलिथे चुना है कि समझकर मेरी प्रतीति करो और यह जान लो कि मैं वही हूं। मुझ से पहिले कोई ईश्वर न हुआ और न मेरे बाद कोई होगा।
11. मैं ही यहोवा हूं और मुझे छोड़ कोई उद्धारकर्ता नहीं।
12. मैं ही ने समाचार दिया और उद्धार किया और वर्णन भी किया, जब तुम्हारे बीच में कोई पराया देवता न या; इसलिथे तुम ही मेरे साझी हो, यहोवा की यह वाणी है।
13. मैं ही ईश्वर हूं और भविष्य में भी मैं ही हूं; मेरे हाथ से कोई छुड़ा न सकेगा; जब मैं काम करना चाहूं तब कौन मुझे रोक सकेगा।।
14. तुम्हारा छुड़ानेवाला और इस्राएल का पवित्र यहोवा योंकहता है, तुम्हारे निमित्त मैं ने बाबुल को भेजा है, और उसके सब रहनेवालोंको भगोड़ोंकी दशा में और कसदियोंको भी उन्हीं के जहाजोंपर चढ़ाकर ले आऊंगा जिन के विषय वे बड़ा बोल बोलते हैं।
15. मैं यहोवा तुम्हारा पवित्र, इस्राएल का सृजनहार, तुम्हारा राजा हूं।
16. यहोवा जो समुद्र में मार्ग और प्रचण्ड धारा में पय बनाता है,
17. जो रयोंऔर घोड़ोंको और शूरवीरोंसमेत सेना को निकाल लाता है, (वे तो एक संग वहीं रह गए और फिर नहीं उठ सकते, वे बुफ गए, वे सन की बत्ती की नाईं बुफ गए हैं।) वह योंकहता है,
18. अब बीती हुई घटनाओं का स्मरण मत करो, न प्राचीनकाल की बातोंपर मन लगाओ।
19. देखो, मैं एक नई बात करता हूं; वह अभी प्रगट होगी, क्या तुम उस से अनजान रहोगे? मैं जंगल में एक मार्ग बनाऊंगा और निर्जल देश में नदियां बहाऊंगा।
20. गीदड़ और शुतर्मुर्ग आदि जंगली जन्तु मेरी महिमा करेंगे; क्योंकि मैं अपक्की चुनी हुई प्रजा के पीने के लिथे जंगल में जल और निर्जल देश में नदियां बहाऊंगा।
21. इस प्रजा को मैं ने अपके लिथे बनाया है कि वे मेरा गुणानुवाद करें।।
22. तौभी हे याकूब, तू ने मुझ से प्रार्यना नहीं की; वरन हे इस्राएल तू मुझ से उकता गया है!
23. मेरे लिथे होमबलि करने को तू मेम्ने नहीं लाया और न मेलबलि चढ़ाकर मेरी महिमा की है। देख, मैं ने अन्नबलि चढ़ाने की कठिन सेवा तुझ से नहीं कराई, न तुझ से धूप लेकर तुझे यका दिया है।
24. तू मेरे लिथे सुगन्धित नरकट रूपऐ से मोल नहीं लाया और न मेलबलियोंकी चर्बी से मुझे तृप्त किया। परन्तु तू ने अपके पापोंके कारण मुझ पर बोफ लाट दिया है, और अपके अधर्म के कामोंसे मुझे यका दिया है।।
25. मैं वही हूं जो अपके नाम के निमित्त तेरे अपराधोंको मिटा देता हूं और तेरे पापोंको स्मरण न करूंगा।
26. मुझे स्मरण करो, हम आपस में विवाद करें; तू अपक्की बात का वर्णन कर जिस से तू निर्दोष ठहरे।
27. तेरा मूलपुरूष पापी हुआ और जो जो मेरे और तुम्हारे बीच बिचवई हुए, वे मुझ से बलवा करते चले आए हैं।
28. इस कारण मैं ने पवित्रस्यान के हाकिमोंको अपवित्र ठहराया, मैं ने याकूब को सत्यानाश और इस्राएल को निन्दित होने दिया है।।
Chapter यशायाह 44
1. परन्तु अब हे मेरे दास याकूब, हे मेरे चुने हुए इस्राएल, सुन ले!
2. तेरा कर्त्ता यहोवा, जो तुझे गर्भ ही से बनाता आया और तेरी सहाथता करेगा, योंकहता है, हे मेरे दास याकूब, हे मेरे चुने हुए यशूरून, मत डर!
3. क्योंकि मैं प्यासी भूमि पर जल और सूखी भूमि पर धाराएं बहाऊंगा; मैं तेरे वंश पर अपक्की आत्मा और तेरी सन्तान पर अपक्की आशीष उण्डेलूंगा।
4. वे उन मजनुओं की नाईं बढ़ेंगे जो धाराओं के पास घास के बीच में होते हैं।
5. कोई कहेगा, मैं यहोवा का हूं, कोई अपना नाम याकूब रखेगा, कोई अपके हाथ पर लिखेगा, मैं यहोवा का हूं, और अपना कुलनाम इस्राएली बताएगा।।
6. यहोवा, जो इस्राएल का राजा है, अर्यात् सेनाओं का यहोवा जो उसका छुड़ानेवाला है, वह योंकहता है, मैं सब से पहिला हूं, और मैं ही अन्त तक रहूंगा; मुझे छोड़ कोई परमेश्वर है ही नहीं।
7. और जब से मैं ने प्राचीनकाल में मनुष्योंको ठहराया, तब से कौन हुआ जो मेरी नाईं उसको प्रचार करे, वा बताए वा मेरे लिथे रचे अयवा होनहार बातें पहिले ही से प्रगट करे?
8. मत डरो और न भयमान हो; क्या मैं ने प्राचीनकाल ही से थे बातें तुम्हें नहीं सुनाईं और तुम पर प्रगट नहीं कीं? तुम मेरे साझी हो। क्या मुझे छोड़ कोई और परमेश्वर है? नहीं, मुझे छोड़ कोई चट्टान नहीं; मैं किसी और को नहीं जानता।।
9. जो मूरत खोदकर बनाते हैं, वे सब के सब व्यर्य हैं और जिन वस्तुओं में वे आनन्द ढूंढते उन से कुछ लाभ न होगा; उसके साझी, न तो आप कुछ देखते और न कुछ जानते हैं, इसलिथे उनको लज्जित होना पकेगा।
10. किस ने देवता वा निष्फल मूरत ढाली है?
11. देख, उसके सब संगियोंको तो लज्जित होना पकेगा, कारीगर तो मनुष्य ही है; वे सब के सब इकट्ठे होकर खड़े हों; वे डर जाएंगे; वे सब के सब लज्जित होंगे।
12. लोहार एक बसूला अंगारोंमे बनाता और हयौड़ोंसे गढ़कर तैयार करता है, अपके भुजबल से वह उसको बनाता है; फिर वह भूखा हो जाता है और उसका बल घटता है, वह पानी नहीं पीता और यक जाता है।
13. बढ़ई सूत लगाकर टांकी से रखा करता है और रन्दनी से काम करता और परकार से रेखा खींचता है, वह उसका आकार और मनुष्य की सी सुन्दरता बनाता है ताकि लोग उस घर में रखें।
14. वह देवदार को काटता वा वन के वृझोंमें से जाति जाति के बांजवृझ चुनकर सेवता है, वह एक तूस का वृझ लगाता है जो वर्षा का जल पाकर बढ़ता है।
15. तब वह मनुष्य के ईंधन के काम में आता है; वह उस में से कुछ सुलगाकर तापता है, वह उसको जलाकर रोटी बनाता है; उसी से वह देवता भी बनाकर उसको दण्डवत् करता है; वह मूरत खुदवाकर उसके साम्हने प्रणाम करता है।
16. और उसके बचे हुए भाग को लेकर वह एक देवता अर्यात् एक मूरत उसका एक भाग तो वह आग में जलाता और दूसरे भाग से मांस पकाकर खाता है, वह मांस भूनकर तृप्त होता; फिर तपाकर कहता है, अहा, मैं गर्म हो गया, मैं ने आग देखी है!
17. खोदकर बनाता है; तब वह उसके साम्हने प्रणाम और दण्डवत् करता और उस से प्रार्यना करके कहता है, मुझे बचा ले, क्योंकि तू मेरा देवता है। वे कुछ नहीं जानते, न कुछ समझ रखते हैं;
18. क्योंकि उनकी आंखें ऐसी मून्दी गई हैं कि वे देख नहीं सकते; और उनकी बुद्धि ऐसी कि वे बूफ नहीं सकते।
19. कोई इस पर ध्यान नहीं करता, और न किसी को इतना ज्ञान वा समझ रहती है कि कह सके, उसका एक भाग तो मैं ने जला दिया और उसके कोयलोंपर रोटी बनाई; और मांस भूनकर खाया है; फिर क्या मैं उसके बचे हुए भाग को घिनौनी वस्तु बनाऊं? क्या मैं काठ को प्रणाम करूं?
20. वह राख खाता है; भरमाई हुई बुद्धि के कारण वह भटकाया गया है और वह न अपके को बचा सकता और न यह कह सकता है, क्या मेरे दहिने हाथ में मिय्या नहीं?
21. हे याकूब, हे इस्राएल, इन बातोंको स्मरण कर, तू मेरा दास है, मैं ने तुझे रचा है; हे इस्राएल, तू मेरा दास है, मैं तुझ को न बिसराऊंगा।
22. मैं ने तेरे अपराधोंको काली घटा के समान और तेरे पापोंको बादल के समान मिटा दिया है; मेरी ओर फिर लौट आ, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है।।
23. हे आकाश, ऊंचे स्वर से गा, क्योंकि यहोवा ने यह काम किया है; हे पृय्वी के गहिरे स्यानों, जयजयकार करो; हे पहाड़ों, हे वन, हे वन के सब वृझों, गला खोलकर ऊंचे स्वर से गाओ! क्योंकि यहोवा ने याकूब को छुड़ा लिया है और इस्राएल में महिमावान होगा।।
24. यहोवा, तेरा उद्धारकर्त्ता, जो तुझे गर्भ ही से बनाता आया है, योंकहता है, मैं यहोवा ही सब का बनानेवाला हूं जिस ने अकेले ही आकाश को ताना और पृय्वी को अपक्की ही शक्ति से फैलाया है।
25. मैं फूठे लोगोंके कहे हुए चिन्होंको व्यर्य कर देता और भावी कहनेवालोंको बावला कर देता हूं; जो बुद्धिमानोंको पीछे हटा देता और उनकी पण्डिताई को मूर्खता बनाता हूं;
26. और अपके दास के वचन को पूरा करता और अपके दूतोंकी युक्ति को सुफल करता हूं; जो यरूशलेम के विषय कहता है, वह फिर बसाई जाएगी और यहूदा के नगरोंके विषय, वे फिर बनाए जाएंगे और मैं उनके खण्डहरोंको सुधारूंगा;
27. जो गहिरे जल से कहता है, तू सूख जा, मैं तेरी नदियोंको सुखाऊंगा;
28. जो कुस्रू के विषय में कहता है, वह मेरा ठहराया हुआ चरवाहा है और मेरी इच्छा पूरी करेगा; यरूशलेम के विषय कहता है, वह बसाई जाएगी और मन्दिर के विषय कि तेरी नेव डाली जाएगी।।
Chapter यशायाह 45
1. यहोवा अपके अभिषिक्त कुस्रू के विषय योंकहता है, मैं ने उस के दहिने हाथ को इसलिथे याम लिया है कि उसके साम्हने जातियोंको दबा दूं और राजाओं की कमर ढीली करूं, उसके साम्हने फाटकोंको ऐसा खोल दूं कि वे फाटक बन्द न किए जाएं।
2. मैं तेरे आगे आगे चलूंगा और ऊंची ऊंची भूमि को चौरस करूंगा, मैं पीतल के किवाड़ोंको तोड़ डालूंगा और लोहे के बेड़ोंको टुकड़े टुकड़े कर दूंगा।
3. मैं तुझ को अन्घकार में छिपा दूंगा, जिस से तू जाने कि मैं इस्राएल का परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे नाम लेकर बुलाता है।
4. अपके दास याकूब और अपके चुने हुए इस्राएल के निमित्त मैं ने नाम लेकर तुझे बुलाया है; यद्यिप तू मुझे नहीं जानता, तौभी मैं ने तुझे पदवी दी है।
5. मैं यहोवा हूं और दूसरा कोई नहीं, मुझे छोड़ कोई परमेश्वर नहीं; यद्यपि तू मुझे नहीं जानता, तौभी मैं तेरी कमर कसूंगा,
6. जिस से उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक लोग जान लें कि मुझ बिना कोई है ही नहीं है।
7. मैं उजियाले का बनानेवाला और अन्धिक्कारने का सृजनहार हूं, मैं शान्ति का दाता और विपत्ति को रचता हूं, मैं यहोवा ही इन सभोंका कर्त्ता हूं।
8. हे आकाश, ऊपर से धर्म बरसा, आकाशमण्डल से धर्म की वर्षा हो; पृय्वी खुले कि उद्धार उत्पन्न हो; और धर्म भी उसके संग उगाए; मैं यहोवा ही ने उसे उत्पन्न किया है।।
9. हाथ उस पर जो अपके रचनेवाले से फगड़ता है! वह तो मिट्टी के ठीकरोंमें से एक ठीकरा ही है! क्या मिट्टी कुम्हार से कहेगी, तू यह क्या करता है? क्या कारीगर का बनाया हुआ कार्य उसके विषय कहेगा कि उसके हाथ नहीं है?
10. हाथ उस पर जो अपके पिता से कहे, तू क्या जन्माता है? और मां से कहे, तू किस की माता है?
11. यहोवा जो इस्राएल का पवित्र और उसका बनानेवाला है, वह योंकहता है, क्या तुम आनेवाली घटनाएं मुझ से पूछोगे? क्या मेरे पुत्रोंऔर मेरे कामोंके विषय मुझे आज्ञा दोगे?
12. मैं ही ने पृय्वी को बनाया और उसके ऊपर मनुष्योंको सृजा है; मैं ने अपके ही हाथोंसे आकाश को ताना और उसके सारे गणोंकोंआज्ञा दी है।
13. मैं ही ने उस पुरूष को धामिर्कता से उभारा है और मैं उसके सब मार्गोंको सीधा करूंगा; वह मेरे नगर को फिर बसाएगा और मेरे बंधुओं को बिना दाम या बदला लिए छुड़ा देगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।।
14. यहोवा योंकहता है, मिस्रियोंकी कमाई और कूशियोंके ब्योपार का लाभ और सबाई लोग जो डील-डौलवाले हैं, तेरे पास चले आएंगे, और तेरे ही हो जाएंगे, वे तेरे पीछे पीछे चलेंगे; वे सांकलोंमें बन्धे हुए चले आएंगे और तेरे साम्हने दण्डवत् कर तुझ से बिनती करके कहेंगे, निश्चय परमेश्वर तेरे ही साय है और दूसरा कोई नहीं; उसके सिवाय कोई और परमेश्वर नहीं।।
15. हे इस्राएल के परमेश्वर, हे उद्धारकर्त्ता! निश्चय तू ऐसा ईश्वर है जो अपके को गुप्त रखता है।
16. मूत्तियोंके गढ़नेवाले सब के सब लज्जित और चकित होंगे, वे सब के सब व्याकुल होंगे।
17. परनतु इस्राएल यहोवा के द्वारा युग युग का उद्धार पाएगा; तुम युग युग वरन अनन्तकाल तक न तो कभी लज्जित और न कभी व्याकुल होगे।।
18. क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृय्वी को रख और बनाया, उसी ने उसको स्यिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिथे नहीं परन्तु बसने के लिथे उसे रचा है। वही योंकहता है, मैं यहोवा हूं, मेरे सिवा दूसरा और कोई नहीं है।
19. मैं ने न किसी गुप्त स्यान में, न अन्धकार देश के किसी स्यान में बातें कीं; मैं ने याकूब के वंश से नहीं कहा, मुझे व्यर्य में ढूंढ़ों। मैं यहोवा सत्य ही कहता हूं, मैं उचित बातें ही बताता हूं।।
20. हे अन्यजातियोंमें से बचे हुए लोगो, इकट्ठे होकर आओ, एक संग मिलकर निकट आओ! वह जो अपक्की लकड़ी की खोदी हुई मूरतें लिए फिरते हैं और ऐसे देवता से जिस से उद्धार नहीं हो सकता, प्रार्यना करते हैं, वे अज्ञान हैं।
21. तुम प्रचार करो और उनको लाओ; हां, वे आपस में सम्मति करें किस ने प्राचीनकाल से यह प्रगट किया? किस ने प्राचीनकाल में इसकी सूचना पहिले ही से दी? क्या मैं यहोवा ही ने यह नहीं किया? इसलिथे मुझे छोड़ कोई और दूसरा परमेश्वर नहीं है, धर्मी और उद्धारकर्ता ईश्वर मुझे छोड़ और कोई नहीं है।।
22. हे पृय्वी के दूर दूर के देश के रहनेवालो, तुम मेरी ओर फिरो और उद्धार पाओ! क्योंकि मैं ही ईश्वर हूं और दूसरा कोई नहीं है।
23. मैं ने अपक्की ही शपय खाई, धर्म के अनुसार मेरे मुख से यह वचन निकला है और वह नहीं टलेगा, प्रत्थेक घुटना मेरे सम्मुख फुकेगा और प्रत्थेक के मुख से मेरी ही शपय खाई जाएगी।।
24. लोग मेरे विषय में कहेंगे, केवल यहोवा ही में धर्म और शक्ति है। उसी के पास लोग आएंगे। और जो उस से रूठे रहेंगे, उन्हें लज्जित होना पकेगा।
25. इस्राएल के सारे वंश के लोग यहोवा ही के कारण धर्मी ठहरेंगे, और उसकी महिमा करेंगे।।
Chapter यशायाह 46
1. बेल देवता फुक गया, नबो देवता नब गया है, उनकी प्रतिमाएं पशुओं वरन घरैलू पशुओं पर लदी हैं; जिन वस्तुओं को तुम उठाए फिरते थे, वे अब भारी बोफ हो गईं और यकित पशुओं पर लदी हैं।
2. वे नब गए, वे एक संग फुक गए, वे उस भार को छुड़ा नहीं सके, और आप भी बंधुआई में चले गए हैं।।
3. हे याकूब के घराने, हे इस्राएल के घराने के सब बचे हुए लोगो, मेरी ओर कान लगाकर सुनो; तुम को मैं तुम्हारी उत्पत्ति ही से उठाए रहा और जन्म ही से लिए फिरता आया हूं।
4. तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूंगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूंगा। मैं ने तुम्हें बनाया और तुम्हें लिए फिरता रहूंगा;
5. मैं तुम्हें उठाए रहूंगा और छुड़ाता भी रहूंगा।। तुम किस से मेरी उपमा दोगे और मुझे किस के समान बताओगे, किस से मेरा मिलान करोगे कि हम एक समान ठहरें?
6. जो यैली से सोना उण्डेलते वा कांटे में चान्दी तौलते हैं, जो सुनार को मजदुरी देकर उस से देवता बनवाले हैं, तब वे उसे प्रणाम करते वरन दण्डवत् भी करते हैं!
7. वे उसको कन्धे पर उठाकर लिए फिरते हैं, वे उसे उसके स्यान में रख देते और वह वहीं खड़ा रहता है; वह अपके स्यान से हट नहीं सकता; यदि कोई उसकी दोहाई भी दे, तौभी न वह सुन सकता है और न विपत्ति से उसका उद्धार कर सकता है।।
8. हे अपराधियों, इस बात को स्मरण करो और ध्यान दो, इस पर फिर मन लगाओ।
9. प्राचीनकाल की बातें स्मरण करो जो आरम्भ ही से है; क्योंकि ईश्वर मैं ही हूं, दूसरा कोई नहीं; मैं ही परमेश्वर हूं और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है।
10. मै तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूं जो अब तक नहीं हुई। मैं कहता हूं, मेरी युक्ति स्यिर रहेगी और मैं अपक्की इच्छा को पूरी करूंगा।
11. मैं पूर्व से एक उकाब पक्की को अर्यात् दूर देश से अपक्की युक्ति के पूरा करनेवाले पुरूष को बुलाता हूं। मैं ही ने यह बात कही है और उसे पूरी भी करूंगा; मैं ने यह विचार बान्घा है और उसे सुफल भी करूंगा।
12. हे कठोर मनवालो तुम जो धर्म से दूर हो, कान लगाकर मेरी सुनो।
13. मैं अपक्की धामिर्कता को समीप ले आने पर हूं वह दूर नहीं है, और मेरे उद्धार करने में विलम्ब न होगा; मैं सिय्योन का उद्धार करूंगा और इस्राएल को महिमा दूंगा।।
Chapter यशायाह 47
1. हे बाबुल की कुमारी बेटी, उतर आ और धूलि पर बैठ; हे कसदियोंकी बेटी तू बिना सिंहासन भूमि पर बैठ! क्योंकि तू अब फिर कोमल और सुकुमार न कहलाएगी।
2. चक्की लेकर आटा पीस, अपना घूंघट हटा और घाघरा समेंट ले और उघारी टांगोंसे नदियोंको पार कर।
3. तेरी नग्नता उघाड़ी जाएगी और तेरी लज्जा प्रगट होगी। मैं बदला लूंगा और किसी मनुष्य को ग्रहण न करूंगा।।
4. हमारा छुटकारा देनेवाले का नाम सेनाओं का यहोवा और इस्राएल का पवित्र है।।
5. हे कसदियोंकी बेटी, चुपचाप बैठी रह और अन्धिक्कारने में जो; क्योंकि तू अब राज्य राज्य की स्वामिन न कहलाएगी।
6. मैं ने अपक्की प्रजा से क्रोधित होकर अपके निज भाग को अपवित्र ठहराया और तेरे वश में कर दिया; तू न उन पर कुछ दया न की; बूढ़ोंपर तू ने अपना अत्यन्त भारी जूआ रख दिया।
7. तू ने कहा, मैं सर्वदा स्वामिन बनी रहूंगी, सो तू ने अपके मन में इन बातोंपर विचार न किया और यह भी न सोचा कि उनका क्या फल होगा।।
8. इसलिथे सुन, तू जो राग-रंग में उलफी हुई निडर बैठी रहती है और मन में कहती है कि मैं ही हूं, और मुझे छोड़ कोई दूसरा नहीं; मैं विधवा की नाईं न बैठूंगी और न मेरे लड़केबोल मिटेंगे।
9. सुन, थे दोनोंदु:ख अर्यात् लड़कोंका जाता रहता और विधवा हो जाना, अचानक एक ही दिन तुझ पर आ पकेंगे। तेरे बहुत से टोनोंऔर तेरे भारी भारी तन्त्र-मन्त्रोंके रहते भी थे तुझ पर अपके पूरे बल से आ पकेंगे।।
10. तू ने अपक्की दुष्टता पर भरोसा रखा, तू ने कहा, मुझे कोई नहीं देखता; तेरी बुद्धि और ज्ञान ने तुझे बहकाया और तू ने अपके मन में कहा, मैं ही हूं और मेरे सिवाय कोई दूसरा नहीं।
11. परन्तु तेरी ऐसी दुर्गती होगी जिसका मन्त्र तू नहीं जानती, और तुझ पर ऐसी विपत्ति पकेगी कि तू प्रायश्चित करके उसका निवारण न कर सकेगी; अचानक विनाश तुझ पर आ पकेगा जिसका तुझे कुछ भी पता नहीं।।
12. अपके तन्त्र मन्त्र और बहुत से टोनहोंको, जिनका तू ने बाल्यावस्या ही से अभ्यास किया है उपयोग में ला, सम्भव है तू उन से लाभ उठा सके या उनके बल से स्यिर रह सके।
13. तू तो युक्ति करते करते यक गई है; अब तेरे ज्योतिषी जो नझत्रोंको ध्यान से देखते और नथे नथे चान्द को देखकर होनहार बताते हैं, वे खड़े होकर तुझे उन बातोंसे बचाए जो तुझ पर घटेंगी।।
14. देख; वे भूसे के समान होकर आग से भस्म हो जाएंगे; वे अपके प्राणोंको ज्वाला से न बचा सकेंगे। वह आग तापके के लिथे नहीं, न ऐसी होगी जिसके साम्हने कोई बैठ सके!
15. जिनके लिथे तू परिश्र्म करती आई है वे सब तेरे लिथे वैसे ही होंगे, और जो तेरी युवावस्या से तेरे संग व्योपार करते आए हैं, उन मे ंसे प्रत्थेक अपक्की अपक्की दिशा की ओर चले जाएंगे; तेरा बचानेवाला कोई न रहेगा।।
Chapter यशायाह 48
1. हे याकूब के घराने, यह बात सुन, तुम जो इस्राएली कहलाते हो; जो यहोवा के नाम की शपय खाते हो और इस्राएल के परमेश्वर की चर्चा तो करते हो, परन्तु सच्चाई और धर्म से नहीं करते।
2. क्योंकि वे अपके को पवित्र नगर के बताते हैं, और इस्राएल के परमेश्वर पर जिसका नाम सेनाओं का यहोवा है भरोसा करते हैं।।
3. होनेवाली बातोंको तो मैं ने प्राचीनकाल ही से बताया है, और उनकी चर्चा मेरे मुंह से निकली, मैं ने अचानक उन्हें प्रगट किया और वे बातें सचमुच हुईं।
4. मैं जानता या कि तू हठीला है और तेरी गर्दन लोहे की नस और तेरा माया पीतल का है।
5. इस कारण मैं ने इन बातोंको प्राचीनकाल ही से तुझे बताया उनके होने से पहिले ही मैं ने तुझे बता दिया, ऐसा न हो कि तू यह कह पाए कि यह मेरे देवता का काम है, मेरी खोदी और ढली हुई मूत्तिर्योंकी आज्ञा से यह हुआ ।।
6. तू ने सुना हे, सो अब इन सब बातोंपर ध्यान कर; और देखो, क्या तुम उसका प्रचार न करोगे? अब से मैं तुझे नई नई बातें और एसी गुप्त बातें सुनाऊंगा जिन्हें तू नही जानता।
7. वे अभी अभी सृजी गई हैं, प्राचीनकाल से नहीं; परन्तु आज से पहिले तू ने उन्हें सुना भी न या, ऐसा न हो कि तू कहे कि देख मैं तो इन्हें जानता या।
8. हां निश्चय तू ने उन्हें न तो सुना, न जाना, न इस से पहिले तेरे कान ही खुले थे। क्योंकि मैं जानता या कि तू निश्चय विश्वासघात करेगा, और गर्भ ही से तेरा नाम अपराधी पड़ा है।।
9. अपके ही नाम के निमित्त मैं क्रोध करने में विलम्ब करता हूं, ओर अपक्की महिमा के निमित्त अपके तईं रोक रखता हूं, ऐसा न हो कि मैं तुझे काट डालूं।
10. देख, मैं ने तुझे निर्मल तो किया, परन्तु, चान्दी की नाईं नहीं; मैं ने दु:ख की भट्ठी में परखकर तुझे चुन लिया है।
11. अपके निमित्त, हां अपके ही निमित्त मैं ने यह किया है, मेरा नाम क्योंअपवित्र ठहरे? अपक्की महिमा मैं दूसरे को नहीं दूंगा।।
12. हे याकूब, हे मेरे बुलाए हुए इस्राएल, मेरी ओर कान लगाकर सुन! मैं वही हूं, मैं ही आदि और मैं ही अन्त हूं।
13. निश्चय मेरे ही हाथ ने पृय्वी की नेव डाली, और मेरे ही दहिने हाथ ने आकाश फैलाया; जब मैं उनको बुलाता हूं, वे एक साय उपस्यित हो जाते हैं।।
14. तुम सब के सब इकट्ठे होकर सुनो! उन में से किस ने कभी इन बातोंका समाचार दिया? यहोवा उस से प्रेम रखता है: वह बाबुल पर अपक्की इच्छा पूरी करेगा, और कसदियोंपर उसका हाथ पकेगा।
15. मैं ने, हां मैं ही ने कहा और उसको बुलाया है, मैं उसको ले आया हूं, और, उसका काम सुफल होगा।
16. मेरे निकट आकर इस बात को सुनो: आदि से लेकर अब तक मैं ने कोई भी बात गुप्त में नही कही; जब से वह हुआ तब से मैं वहां हूं। और अब प्रभु यहोवा ने और उसकी आत्मा ने मुझे भेज दिया है।।
17. यहोवा जो तेरा छुड़ानेवाला और इस्राएल का पवित्र है, वह यो कहता है, मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिथे शिझा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।
18. भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा धर्म समुद्र की लहरोंके नाई होता;
19. तेरा वंश बालू के किनकोंके तुल्य होता, और तेरी निज सन्तान उसके कणोंके समान होती; उनका नाम मेरे सम्मुख से न कभी काटा और न मिटाया जाता।।
20. बाबुल में से निकल जाओ, कसदियोंके बीच में से भाग जाओ; जयजयकार करते हुए इस बात को प्रचार करके सुनाओ, पृय्वी की छोर तक इसकी चर्चा फैलाओ; कहते जाओ कि यहोवा ने अपके दास याकूब को छुड़ा लिया है!
21. जब वह उन्हें निर्जल देशोंमें ले गया, तब वे प्यासे न हुए; उस ने उनके लिथे चट्टान में से पानी निकाला; उस ने चट्टान को चीरा और जल बह निकला।
22. दुष्टोंके लिथे कुछ शान्ति नहीं, यहोवा का यही वचन है।।
Chapter यशायाह 49
1. हे द्वीपो, मेरी और कान लगाकर सुनो; हे दूर दूर के राज्योंके लागों, ध्यान लगाकर मेरी सुनो! यहोवा ने मुझे गर्भ ही में से बुलाया, जब मैं माता के पेट में या, तब ही उस ने मेरा नाम बताया।
2. उस ने मेरे मुंह को चोखी तलवार के समान बनाया और अपके हाथ की आड़ में मुझे छिपा रखा; उस ने मुझ को चमकिला तीर बनाकर अपके तर्कश में गुप्त रखा।
3. ओर मुझ से कहा, तू मेरा दास इस्राएल है, मैं तुझ में अपक्की महिमा प्रगट करूंगा।
4. तब मैं ने कहा, मैं ने तो व्यर्य परिश्र्म किया, मैं ने व्यर्य ही अपना बल खो दिया है; तौभी निश्चय मेरा न्याय यहोवा के पास है और मेरे परिश्र्म का फल मेरे परमेश्वर के हाथ में है।।
5. ओर अब यहोवा जिस ने मुझे जन्म ही से इसलिथे रख कि मैं उसका दास होकर याकूब को उसकी ओर फेर ले आऊं अर्यात् इस्राएल को उसके पास इकट्ठा करूं, क्योंकि यहोवा की दृष्टि में मैं आदरयोग्य हूं और मेरा परमेश्वर मेरा बल है,
6. उसी ने मुझ से यह भी कहा है, यह तो हलकी सी बात है कि तू याकूब के गोत्रोंका उद्धार करने और इस्राएल के रझित लोगोंको लौटा ले आने के लिथे मेरा सेवक ठहरे; मैं तुझे अन्यजातियोंके लिथे ज्योति ठहराऊंगा कि मेरा उद्धार पृय्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए।।
7. जो मनुष्योंसे तुच्छ जाना जाता, जिस से जातियोंको घृणा है, और, जो अपराधियोंका दास है, इस्राएल का छुड़ानेवाला और उसका पवित्र अर्यात् यहावो योंकहता है, कि राजा उसे देखकर खड़े हो जाएंगे और हाकिम दण्डवत् करेंगे; यह यहोवा के निमित्त होगा, जो सच्चा और इस्राएल का पवित्र है और जिस ने तुझे चुन लिया है।।
8. यहोवा योंकहता है, अपक्की प्रसन्नता के समय मैं ने तेरी सुन ली, उद्धार करने के दिन मैं ने तेरी सहाथता की है; मैं तेरी रझा करके तुझे लोगोंके लिथे एक वाचा ठहराऊंगा, ताकि देश को स्यिर करे और उजड़े हुए स्यानोंको उनके अधिक्कारनेियोंके हाथ में दे दे; और बंधुओं से कहे, बन्दीगृह से निकल आओ;
9. और जो अन्धिक्कारने में हैं उन से कहे, अपके आप को दिखलाओ! वे मार्गोंके किनारे किनारे पेट भरने पाएंगे, सब मुण्डे टीलोंपर भी उनको चराई मिलेगी।
10. वे भूखे और प्यासे होंगे, न लूह और न घाम उन्हें लगेगा, क्योंकि, वह जा उन पर दया करता है, वही उनका अगुवा होगा, और जल के सोतोंके पास उन्हें ले चलेगा।
11. और, मैं अपके सब पहाड़ोंको मार्ग बना दूंगा, और मेरे राजमार्ग ऊंचे किए जाएंगे।
12. देखो, थे दूर से आएंगे, और, थे उत्तर और पच्छिम से और सीनियोंके देश से आएंगे।
13. हे आकाश, जयजयकार कर, हे पृय्वी, मगन हो; हे पहाड़ों, गला खोलकर जयजयकार करो! क्योंकि यहोवा ने अपक्की प्रजा को शान्ति दी है और अपके दीन लोगोंपर दया की है।।
14. परन्तु सिय्योन ने कहा, यहोवा ने मुझे त्याग दिया है, मेरा प्रभु मुझे भूल गया है।
15. क्या यह हो सकता है कि कोई माता अपके दूघपिउवे बच्चे को भूल जाए और अपके जन्माए हुए लड़के पर दया न करे? हां, वह तो भूल सकती है, परन्तु मैं तुझे नहीं भूल सकता।
16. देख, मैं ने तेरा चित्र हथेलियोंपर खोदकर बनाया है; तेरी शहरपनाह सदैव मेरी दृष्टि के साम्हने बनी रहती है।
17. तेरे लड़के फुर्ती से आ रहे हैं और खण्डहर बनानेवाले और उजाड़नेवाले तेरे बीच से निकले जा रहे हैं।
18. अपक्की आंखें उठाकर चारोंओर देख, वे सब के सब इकट्ठे होकर तेरे पास आ रहे हैं। यहोवा की यह वाणी है कि मेरे जीवन की शपय, तू निश्चय उन सभोंको गहने के समान पहिल लेगी, तू दुल्हिन की नाई अपके शरीर में उन सब को बान्ध लेगी।।
19. तेरे जो स्यान सुनसान और उजड़े हैं, और तेरे जो देश खण्डहर ही खण्डहर हैं, उन में अब निवासी न समाएंगे, और, तुझे नष्ट करनेवाले दूर हो जाएंगे।
20. तेरे पुत्र जो तुझ से ले लिए गए वे फिर तेरे कान में कहने पाएंगे कि यह स्यान हमारे लिथे सकेत है, हमें और स्यान दे कि उस में रहें।
21. तब तू मन में कहेगी, किस ने इनको मेरे लिथे जन्माया? मैं तो पुत्रहीन और बांफ हो गई यीं, दासत्व में और यहां वहां मैं घूमती रही, इनको किस ने पाला? देख, मैं अकेली रह गई यी; फिर थे कहां थे?
22. प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, थे अपना हाथ जाति जाति के लोगोंकी ओर उठाऊंगा, और देश देश के लोगोंके साम्हने अपना फण्डा खड़ा करूंगा; तब वे तेरे पुत्रोंको अपक्की गोद में लिए आएंगे, और तेरी पुत्रियोंको अपके कन्धे पर चढ़ाकर तेरे पास पहुंचाएंगे।
23. राजा तेरे बच्चोंके निज-सेवक और उनकी रानियां दूध पिलाने के लिथे तेरी धाइयोंहोंगी। वे अपक्की नाक भूमि पर रगड़कर तुझे दण्डवत् करेंगे और तेरे पांवोंकी धूलि चाटेंगे। तब तू यह जान लेगी कि मैं ही यहोवा हूं; मेरी बाट जोहनेवाले कभी लज्जित न होंगे।।
24. क्या वीर के हाथ से शिकार छीना जा सकता है? क्या दुष्ट के बंघुए छुड़ाए जा सकते हैं?
25. तौभी यहोवा योंकहता है, हां, वीर के बंधुए उस से छीन लिए जांएगे, और बलात्कारी का शिकार उसके हाथ से छुड़ा लिया जाएगा, क्योंकि जो तुझ से लड़ते हैं उन से मैं आप मुकद्दमा लडूंगा, और तेरे लड़केबालोंका मैं उद्धार करूंगा।
26. जो तुझ पर अन्धेर करते हैं उनको मैं उन्हीं का मांस खिलाऊंगा, और, वे अपना लोहू पीकर ऐसे मतवाले होंगे जैसे नथे दाखमधु से होते हैं। तब सब प्राणी जान लेंगे कि तेरा उद्धारकर्ता यहोवा और तेरा छुड़ानेवाला, याकूब का शक्तिमान मैं ही हूं।।
Chapter यशायाह 50
1. तुम्हारी माता का त्यागपत्र कहां है? जिसे मैं ने उसे त्यागते समय दिया या? या मैं ने किस व्योपारी के हाथ तुम्हें बेचा? यहोवा योंकहता है, सुनो, तुम अपके ही अधर्म के कामोंके कारण बिक गए, और तुम्होर ही अपराधोंके कारण तुम्हारी माता छोड़ दी गई।
2. इसका क्या कारण है कि जब मैं आया तब कोई न मिला? और जब मैं ने पुकारा, तब कोई न बोला? क्या मेरा हाथ ऐसा छोटा हो गया है कि छुड़ा नहीं सकता? क्या मुझ में उद्धार करने की शक्ति नहीं? देखो, मै एक धमकी से समुद्र को सुखा देता हूं, मैं महानदोंको रेगिस्यान बना देता हूं, उनकी मछलियां जल बिना मर जाती और बसाती हैं।
3. मैं आकाश को मानो शोक का काला कपड़ा पहिनाता, और टाट को उनका ओढ़ना बना देता हूं।।
4. प्रभु यहोवा ने मुझे सीखनेवालोंकी जीभ दी है कि मैं यके हुए को अपके वचन के द्वारा संभालना जानूं। भोर को वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान सुनूं।
5. प्रभु यहोवा ने मेरा कान खोला है, और मैं ने विरोध न किया, न पीछे हटा।
6. मैं ने मारनेवालोंको अपक्की पीठ और गलमोछ नोचनेवालोंकी ओर अपके गाल किए; अपमानित होने और यूकने से मैं ने मुंह न छिपाया।।
7. क्योंकि प्रभु यहोवा मेरी सहाथता करता है, इस कारण मैं ने संकोच नहीं किया; वरन अपना माया चकमक की नाईं कड़ा किया क्योंकि मुझे निश्चय या कि मुझे लज्जित होना न पकेगा।
8. जो मुझे धर्मी ठहराता है वह मेरे निकट है। मेरे साय कौन मुकद्दमा करेगा? हम आमने-साम्हने खड़े हों। मेरा विरोधी कौन है? वह मेरे निकट आए।
9. सुनो, प्रभु यहोवा मेरी सहाथता करता है; मुझे कौन दोषी ठहरा कसेगा? देखो, वे सब कपके के समान पुराने हो जाएंगे; उनको कीड़े खा जाएंगे।।
10. तुम में से कौन है जो यहोवा का भय मानता और उसके दास की बातें सुनता है, जो अन्धिक्कारने में चलता हो और उसके पास ज्योति न हो? वह यहोवा के नाम का भरोसा रखे, और अपके परमेश्वर पर आशा लगाए रहे।
11. देखो, तुम सब जो आग जलाते और अग्निबाणोंको कमर में बान्धते हो! तुम सब अपक्की जलाई हुई आग में और अपके जलाए हुए अग्निबाणोंके बीच आप ही चलो। तुम्हारी यह दशा मेरी ही ओर से होगी, तुम सन्ताप में पके रहोगे।।
Chapter यशायाह 51
1. हे धर्म पर चलनेवालो, हे यहोवा के ढूंढ़नेवालो, कान लगाकर मेरी सुनो; जिस चट्टान में से तुम खोदे गए और जिस खानि में से तुम निकाले गए, उस पर ध्यान करो।
2. अपके मूलपुरूष इब्राहीम और अपक्की माता सारा पर ध्यान करो; जब वह अकेला या, तब ही से मैं ने उसको बुलाया और आशीष दी और बढ़ा दिया।
3. यहोवा ने सिय्योन को शान्ति दी है, उस ने उसके सब खण्डहरोंको शान्ति दी है; वह उसके जंगल को अदन के समान और उसक निर्जल देश को यहोवा की बाटिका के समान बनाएगा; उस में हर्ष और आनन्द और धन्यवाद और भजन गाने का शब्द सुनाई पकेगा।।
4. हे मेरी प्रजा के लोगो, मेरी ओर ध्यान धरो; हे मेरे लोगो, कान लगाकर मेरी सुनो; क्योंकि मेरी ओर से व्यवस्या दी जाएगी, और मैं अपना नियम देश देश के लोगोंकी ज्योति होने के लिथे स्यिर करूंगा।
5. मेरा छुटकारा निकट है; मेरा उद्धार प्रगट हुआ है; मैं अपके भुजबल से देश देश के लोगोंका न्याय करूंगा। द्वीप मेरी बाट जाहेंगे और मेरे भुजबल पर आशा रखेंगे।
6. आकाश की ओर अपक्की आंखें उठाओ, और पृय्वी को निहारो; क्योंकि आकाश धुंए ही नाई लोप हो जाएगा, पृय्वी कपके के समान पुरानी हो जाएगी, और उसके रहनेवाले योंही जाते रहेंगे; परन्तु जो उद्धार मैं करूंगा वह सर्वदा ठहरेगा, और मेरे धर्म का अन्त न होगा।।
7. हे धर्म के जाननेवलो, जिनके मन में मेरी व्यवस्या है, तुम कान लगाकर मेरी सुनो; मनुष्योंकी नामधराई से मत डरो, और उनके निन्दा करने से विस्मित न हो।
8. क्योंकि धुन उन्हें कपके की नाईं और कीड़ा उन्हें ऊन की नाईं खाएगा; परन्तु मेरा धर्म अनन्तकाल तक, और मेरा उद्धार पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा।
9. हे यहोवा की भुजा, जाग ! जाग और बल धारण कर; जैसे प्राचीनकाल में और बीते हुए पीढिय़ोंमें, वैसे ही अब भी जाग। क्या तू वही नहीं है जिस ने रहब को टुकड़े टुकड़े किया और मगरमच्छ को छेदा?
10. क्या तू वही नहीं जिस ने समुद्र को अर्यात् गहिरे सागर के जल को सुखा डाला और उसकी गहराई में अपके छुड़ाए हओं के पार जाने के लिथे मार्ग निकाला या?
11. सो यहोवा के छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए सिय्योन में आएंगे, और उनके सिरोंपर अनन्त आनन्द गूंजता रहेगा; वे हर्ष और आनन्द प्राप्त करेंगे, और शोक और सिसकियोंका अन्त हो जाएगा।।
12. मैं, मैं ही तेरा शान्तिदाता हूं; तू कौन है जो मरनेवाले मनुष्य से, और घास के समान मुर्फानेवाले आदमी से डरता है,
13. और आकाश के ताननेवाले और पृय्वी की नेव डालनेवाले अपके कर्ता यहोवा को भूल गया है, और जब द्रोही नाश करने को तैयार होता है तब उसकी जलजलाहट से दिन भर लगातार यरयराता है? परन्तु द्रोही की जलजलाहट कहां रही?
14. बंधुआ शीघ्र ही स्वतन्त्र् किया जाएगा; वह गड़हे में न मरेगा और न उसे रोटी की कमी होगी।
15. जो समुद्र को उयल-पुयल करता जिस से उसकी लहरोंमे गरजन होती है, वह मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं मेरा नाम सेनाओं का यहोवा है। और मैं ने तेरे मुंह में अपके वचन डाले,
16. और तुझे अपके हाथ की आड़ में छिपा रखा है; कि मैं आकाश को तानूं और पृय्वी की नेव डालूं, और सिय्योन से कहूं, तुम मेरी प्रजा हो।।
17. हे यरूशलेम जाग ! जाग उठ ! खड़ी हो जा, तू ने यहोवा के हाथ से उसकी जलजलाहट के कटोरे में से पिया है, तू ने कटोरे का लड़खड़ा देनेवाला मद पूरा पूरा ही पी लिया है।
18. जितने लड़कोंने उस से जन्म लिया उन में से कोई न रहा जो उसकी अगुवाई करके ले चले; और जितने लड़के उस ने पाले-पोसे उन में से कोई न रहा जो उसके हाथ को याम ले।
19. थे दो विपत्तियां तुझ पर आ पक्की हैं; कौन तेरे संग विलाप करेगा? उजाड़ और विनाश और महंगी और तलवार आ पक्की है; कौन तुझे शान्ति देगा?
20. तेरे लड़के मूच्छिर्त होकर हर एक सड़क के सिक्के पर, महाजाल में फंसे हुए हरिण की नाई पके हैं; याहोवा की जलजलाहट और तेरे परमेश्वर की धमकी के कारण वे अचेत पके हैं।।
21. इस कारण हे दुखियारी सुन, तू मतवाली तो है, परन्तु दाखमधु पीकर नहीं;
22. तेरा प्रभु यहोवा जो अपक्की प्रजा का मुकद्दमा लड़नेवाला तेरा परमेश्वर है, वह योंकहता है, सुन मैं लड़खड़ा देनेवाले मद के कटोरे को अर्यात् अपक्की जलजलाहट के कटोरे को तेरे हाथ से ले लेता हूं; तुझे उस में से फिर कभी पीना न पकेगा।
23. और मैं उसे तेरे उन दु:ख देनेवालोंके हाथ में दूंगा, जिन्होंने तुझ से कहा, लेट जा, कि हम तुझ पर पांव धरकर आगे चलें; और तू ने औंधे मुंह गिरकर अपक्की पीठ को भूमि और आगे चलनेवालोंके लिथे सड़क बना दिया।।
Chapter यशायाह 52
1. हे सिय्योन, जाग, जाग ! अपना बल धारण कर; हे पवित्र नगर यरूशलेम, अपके शोभायमान वस्त्र पहिन ले; क्योंकि तेरे बीच खतनारहित और अशुद्ध लोग फिर कभी प्रवेश न करने पाएंगे।
2. अपके ऊपर से धूल फाड़ दे, हे यरूशलेम, उठ; हे सिय्योन की बन्दी बेटी अपके गले के बन्धन को खोल दे।।
3. क्योंकि यहोवा योंकहता है, तुम जो सेंतमेंत बिक गए थे, इसलिथे अब बिना रूपया दिए छुड़ाए भी जाओगे।
4. प्रभु यहोवा योंकहता है, मेरी प्रजा पहिले तो मिस्र में परदेशी होकर रहने को गई यी, और अश्शूरियोंने भी बिना कारण उन पर अत्याचार किया।
5. इसलिथे यहोवा की यह वाणी है कि मैं अब यहां क्या करूं जब कि मेरी प्रजा सेंतमेंत हर ली गई है? यहोवा यह भी कहता है कि जो उन पर प्रभुता करते हैं वे उधम मचा रहे हैं, और, मेरे नाम कि निन्दा लगातार दिन भर होती रहती है।
6. इस कारण मेरी प्रजा मेरा नाम जान लेगी; वह उस समय जान लेगी कि जो बातें करता है वह यहोवा ही है; देखो, मैं ही हूं।।
7. पहाड़ोंपर उसके पांव क्या ही सुहावने हैं जो शुभ समाचार लाता है, जो शान्ति की बातें सुनाता है और कल्याण का शुभ समाचार और उद्धार का सन्देश देता है, जो सिय्योन से कहता हे, तेरा परमेश्वर राज्य करता है।
8. सुन, तेरे पहरूए पुकार रहे हैं, वे एक साय जयजयकार कर रहें हैं; क्योंकि वे साझात् देख रहे हैं कि यहोवा सिय्योन को लौट रहा है।
9. हे यरूशलेम के खण्डहरों, एक संग उमंग में आकर जयजयकार करो; क्योंकि यहोवा ने अपक्की प्रजा को शान्ति दी है, उस ने यरूशलेम को छुड़ा लिया है।
10. यहोवा ने सारी जातियोंके साम्हने अपक्की पवित्र भुजा प्रगट की है; और पृय्वी के दूर दूर देशोंके सब लोग हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार निश्चय देख लेंगे।।
11. दूर हो, दूर, वहां से निकल जाओ, कोई अशुद्ध वस्तु मत छुओ; उसके बीच से निकल जाओ; हे यहोवा के पात्रोंके ढोनेवालो, अपके को शुद्ध करो।
12. क्योंकि तुम को उतावली से निकलना नहीं, और न भागते हुए चलना पकेगा; क्योंकि यहोवा तुम्हारे आगे आगे अगुवाई करता हुआ चलेगा, और, इस्राएल का परमेश्वर तुम्हारे पीछे भी रझा करता चलेगा।।
13. देखो, मेरा दास बुद्धि से काम करेगा, वह ऊंचा, महान और अति महान हो जाएगा।
14. जैसे बहुत से लोग उसे देखकर चकित हुए (क्योंकि उसका रूप यहां तक बिगड़ा हुआ या कि मनुष्या का सा न जान पड़ता या और उसकी सुन्दरता भी आदमियोंकी सी न रह गई यी),
15. वैसे ही वह बहुत सी जातियोंको पवित्र करेगा और उसको देखकर राजा शान्त रहेंगे; क्योंकि वे ऐसी बात देखेंगे जिसका वर्णन उनके सुनने में भी नहीं आया, और, ऐसी बात उनकी समझ में आएगी जो उन्होंने अभी तक सुनी भी न यी।।
Chapter यशायाह 53
1. जो समाचार हमें दिया गया, उसका किस ने विश्वास कया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?
2. क्योंकि वह उसके साम्हने अंकुर की नाईं, और ऐसी जड़ के समान उगा जो निर्जल भूमि में फूट निकले; उसकी न तो कुछ सुन्दरता यी कि हम उसको देखते, और न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा कि हम उसको चाहते।
3. वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्योंका त्यागा हुआ या; वह दु:खी पुरूष या, रोग से उसकी जान पहिचान यी; और लोग उस से मुख फेर लेते थे। वह तुच्छ जाना गया, और, हम ने उसका मूल्य न जाना।।
4. निश्चय उस ने हमारे रोगोंको सह लिया और हमारे ही दु:खोंको उठा लिया; तौभी हम ने उसे परमेश्वर का मारा-कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा।
5. परन्तु वह हमारे ही अपराधो के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामोंके हेतु कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिथे उस पर ताड़ना पक्की कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएं।
6. हम तो सब के सब भेड़ोंकी नाईं भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभोंके अधर्म का बोफ उसी पर लाद दिया।।
7. वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुंह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय वा भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उस ने भी अपना मुंह न खोला।
8. अत्याचार करके और दोष लगाकर वे उसे ले गए; उस समय के लोगोंमें से किस ने इस पर ध्यान दिया कि वह जीवतोंके बीच में से उठा लिया गया? मेरे ही लोगोंके अपराधोंके कारण उस पर मार पक्की।
9. और उसकी कब्र भी दुष्टोंके संग ठहराई गई, और मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ, यद्यपि उस ने किसी प्रकार का अपद्रव न किया या और उसके मुंह से कभी छल की बात नहीं निकली यी।।
10. तौभी यहोवा को यही भया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब तू उसका प्राण दोषबलि करे, तब वह अपना वंश देखने पाएगा, वह बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी।
11. वह अपके प्राणोंका दु:ख उठाकर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपके ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरोंको धर्मी ठहराएगा; और उनके अधर्म के कामोंका बोफ आप उठा लेगा।
12. इस कारण मैं उसे महान लोगोंके संग भाग दूंगा, और, वह सामयिर्योंके संग लूट बांट लेगा; क्योंकि उसने अपना प्राण मृत्यु के लिथे उण्डेल दिया, वह अपराधियोंके संग गिना गया; तौभी उस ने बहुतोंके पाप का बोफ उठ लिया, और, अपराधियोंके लिथे बिनती करता है।।
Chapter यशायाह 54
1. हे बांफ तू जो पुत्रहीन है जयजयकार कर; तू जिसे जन्माने की पीड़े नहीं हुई, गला खोलकर जयजयकार कर और पुकार! क्योंकि त्यागी हुई के लड़के सुहागिन के लड़कोंसे अधिक होंगे, यहोवा का यही वचन है।
2. अपके तम्बू का स्यान चौड़ा कर, और तेरे डेरे के पट लम्बे किए जाएं; हाथ मत रोक, रस्सिक्कों लम्बी और खूंटोंको दृढ़ कर।
3. क्योंकि तू दहिने-बाएं फैलेगी, और तेरा वंश जाति-जाति का अधिक्कारनेी होगा और उजड़े हुए नगरोंको फिर से बसाएगा।।
4. मत डर, क्योंकि तेरी आशा फिर नहीं टूटेगी; मत घबरा, क्योंकि तू फिर लज्जित न होगी और तुझ पर सियाही न छाएगी; क्योंकि तू अपक्की जवानी की लज्जा भूल जाएगी, और, अपके विधवापन की नामधराई को फिर स्मरण न करेगी।
5. क्योकि तेरा कर्त्ता तेरा पति है, उसका नाम सेनाओं का यहोवा है; और इस्राएल का पवित्र तेरा छुड़ानेवाला है, वह सारी पृय्वी का भी परमेश्वर कहलाएगा।
6. क्योंकि यहोवा ने तुझे ऐसा बुलाया है, मानो तू छोड़ी हुई और मन की दुखिया और जवानी की त्यागी हुई स्त्री हो, तेरे परमेश्वर का यही वचन है।
7. झण भर ही के लिथे मैं ने तुझे छोड़ दिया या, परन्तु अब बड़ी दया करके मैं फिर तुझे रख लूंगा।
8. क्रोध के फकोरे में आकर मैं ने पल भर के लिथे तुझ से मुंह छिपाया या, परन्तु अब अनन्त करूणा से मैं तुझ पर दया करूंगा, तेरे छुड़ानेवाले यहोवा का यही वचन है।
9. यह मेरी दृष्टि में नूह के समय के जलप्रलय के समान है; क्योंकि जैसे मैं ने शपय खाई यी कि नूह के समय के जलप्रलय से पृय्वी फिर न डूबेगी, वैसे ही मैं ने यह भी शपय खाई है कि फिर कभी तुझ पर क्रोध न करूंगा और न तुझ को धमकी दूंगा।
10. चाहे पहाड़ हट जाएं और पहाडिय़ां टल जाएं, तौभी मेरी करूणा तुझ पर से कभी न हटेगी, और मेरी शान्तिदायक वाचा न टलेगी, यहोवा, जो तुझ पर दया करता है, उसका यही वचन है।।
11. हे दु:खियारी, तू जो आंधी की सताई है और जिस को शान्ति नहीं मिली, सुन, मैं तेरे पत्यरोंकी पच्चीकारी करके बैठाऊंगा, और तेरी नेव नीलमणि से डालूंगा।
12. तेरे कलश मैं माणिकों, तेरे फाटक लालडिय़ोंसे और तेरे सब सिवानोंको मनोहर रत्नोंसे बनाऊंगा।
13. तू धामिर्कता के द्वारा स्यिर होगी; तू अन्धेर से बचेगी, क्योंकि तुझे डरना न पकेगा; और तू भयभीत होने से बचेगी, क्योंकि भय का कारण तेरे पास न आएगा।
14. तू धामिर्कता के द्वारा स्यिर होगी; तू अन्धेर से बचेगी, क्योंकि तुझे डरना न पकेगा; और तू भयभीत होने से बचेगी, क्योंकि भय का कारण तेरे पास न आएगा।
15. सुन, लोग भीड़ लगाएंगे, परन्तु मेरी ओर से नहीं; जितने तेरे विरूद्ध भीड़ लगाएंगे वे तेरे कारण गिरेंगे।
16. सुन, एक लोहर कोएले की आग धोंककर इसके लिथे हयियार बनाता है, वह मेरा ही सृजा हुआ है। उजाड़ने के लिथे भी मेरी ओर से एक नाश करनेवाला सृजा गया है।
17. जितने हयियार तेरी हानि के लिथे बनाए जाएं, उन में से कोई सफल न होगा, और, जितने लोग मुद्दई होकर तुझ पर नालिश करें उन सभोंसे तू जीत जाएगा। यहोवा के दासोंका यही भाग होगा, और वे मेरे ही कारण धर्मी ठहरेंगे, यहोवा की यही वाणी है।।
Chapter यशायाह 55
1. अहो सब प्यासे लोगो, पानी के पास आओ; और जिनके पास रूपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रूपए और बिना दाम ही आकर ले लो।
2. जो भोजनवस्तु नहीं है, उसके लिथे तुम क्योंरूपया लगाते हो, और, जिस से पेट नहीं भरता उसके लिथे क्योंपरिश्र्म करते हो? मेरी ओर मन लगाकर सुनो, तब उत्तम वस्तुएं खाने पाओगे और चिकनी चिकनी वस्तुएं खाकर सन्तुष्ट हो जाओगे।
3. कान लगाओ, और मेरे पास आओ; सुनो, तब तुम जीवित रहोगे; और मैं तुम्हारे साय सदा की वाचा बान्धूंगा अर्यात् दाऊद पर की अटल करूणा की वाचा।
4. सुनो, मैं ने उसको राज्य राज्य के लोगोंके लिथे साझी और प्रधान और आज्ञा देनेवाला ठहराया है।
5. सुन, तू ऐसी जाति को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और ऐसी जातियां जो तुझे नहीं जानतीं तेरे पास दौड़ी आएंगी, वे तेरे परमेश्वर यहोवा और इस्राएल के पवित्र के निमित्त यह करेंगी, क्योंकि उस ने तुझे शोभायमान किया है।।
6. जब जब यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो;
7. दुष्ट अपक्की चालचलन और अनर्यकारी अपके सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको झमा करेगा।
8. क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है।
9. क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारोंमें, आकाश और पृय्वी का अन्तर है।।
10. जिस प्रकार से वर्षा और हिम आकाश से गिरते हैं और वहां योंही लौट नहीं जाते, वरन भूमि पर पड़कर उपज उपजाते हैं जिस से बोलनेवाले को बीज और खानेवाले को रोटी मिलती है,
11. उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्य ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिथे मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।।
12. क्योंकि तुम आनन्द के साय निकलोगे, और शान्ति के साय पहुंचाए जाओगे; तुम्हारे आगे आगे पहाड़ और पहाडिय़ां गला खोलकर जयजयकार करेंगी, और मैदान के सब वृझ आनन्द के मारे ताली बजाएंगे।
13. तब भटकटैयोंकी सन्ती सनौवर उगेंगे; और बिच्छु पेड़ोंकी सन्ती मेंहदी उगेगी; और इस से यहोवा का नाम होगा, जो सदा का चिन्ह होगा और कभी न मिटेगा।
Chapter यशायाह 56
1. यहोवा योंकहता है, न्याय का पालन करो, और धर्म के काम करो; क्योंकि मैं शीघ्र तुम्हारा उद्धार करूंगा, और मेरा धर्मी होना प्रगट होगा।
2. क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो ऐसा ही करता, और वह आदमी जो इस पर स्यिर रहता है, जो विश्रपदिन को पवित्र मानता और अपवित्र करने से बचा रहता है, और अपके हाथ को सब भांति की बुराई करने से रोकता है।
3. जो परदेशी यहोवा से मिल गए हैं, वे न कहें कि यहोवा हमें अपक्की प्रजा से निश्चय अलग करेगा; और खोजे भी न कहें कि हम तो सूखे वृझ हैं।
4. क्योंकि जो खोजे मेरे विश्रमदिन को मानते और जिस बात से मैं प्रसन्न रहता हूं उसी को अपनाते और मेरी वाचा को पालते हैं, उनके विषय यहोवा योंकहता है
5. कि मैं अपके भवन और अपक्की शहर-पनाह के भीतर उनको ऐसा नाम दूंगा जो पुत्र-पुत्रियोंसे कहीं उत्तम होगा; मैं उनका नाम सदा बनाए रखूंगा और वह कभी न मिटाया जाएगा।
6. परदेशी भी जो यहोवा के साय इस इच्छा से मिले हुए हैं कि उसकी सेवा टहल करें और यहोवा के नाम से प्रीति रखें और उसके दास हो जाएं, जितने विश्रमदिन को अपवित्र करने से बचे रहते और मेरी वाचा को पालते हैं,
7. उनको मैं अपके पवित्र पर्वत पर ले आकर अपके प्रार्यना के भवन में आनन्दित करूंगा; उनके होमबलि और मेलबलि मेरी वेदी पर ग्रहण किए जाएंगे; क्योंकि मेरा भवन सब देशोंके लोगोंके लिथे प्रार्यना का घर कहलाएगा।
8. प्रभु यहोवा, जो निकाले हुए इस्राएलियोंको इकट्ठे करनेवाला है, उसकी यह वाणी है कि जो इकट्ठे किए गए हैं उनके साय मैं औरोंको भी इकट्ठे करके मिला दूंगा।।
9. हे मैदान के सब जन्तुओं, हे वन के सब पशुओं, खाने के लिथे आओ।
10. उसके पहरूए अन्धे हैं, वे सब के सब अज्ञानी हैं, वे सब के सब गूंगे कुत्ते हैं जो भूंक नहीं सकते; वे स्वप्न देखनेवाले और लेटे रहकर सोते रहना चाहते हैं।
11. वे मरभूखे कुत्ते हैं जो कभी तृप्त नहीं होते। वे चरवाहे हें जिन में समझ ही नहीं; उन सभोंने अपके अपके लाभ के लिथे अपना अपना मार्ग लिया है।
12. वे कहते हैं कि आओ, हम दाखमधु ले आएं, आओ मदिरा पीकर छक जाएं; कल का दिन भी तो आज ही के समान अत्यन्त सुहावना होगा।।
Chapter यशायाह 57
1. धर्मी जन नाश होता है, और कोई इस बात की चिन्ता नहीं करता; भक्त मनुष्य उठा लिए जाते हैं, परन्तु कोई नहीं सोचता। धर्मी जन इसलिथे उठा लिया गया कि आनेवाली आपत्ति से बच जाए,
2. वह शान्ति को पहुंचता है; जो सीधी चाल चलता है वह अपक्की खाट पर विश्रम करता है।।
3. परन्तु तुम, हे जादूगरती के पुत्रों, हे व्यभिचारी और व्यभिचारिणी की सन्तान, यहां निकट आओ।
4. तुम किस पर हंसी करते हो? तुम किस पर मुंह खोलकर जीभ निकालते हो? क्या तुम पाखण्डी और फूठे के वंश नहीं हो,
5. तुम, जो सब हरे वृझोंके तले देवताओं के कारण कामातुर होते और नालोंमें और चट्टानोंही दरारोंके बीच बाल-बच्चोंको वध करते हो?
6. नालोंके चिकने पत्यर ही तेरा भाग और अंश ठहरे; तू ने उनके लिथे तपावन दिया और अन्नबलि चढ़ाया है। क्या मैं इन बातोंसे शान्त हो जाऊं?
7. एक बड़े ऊंचे पहाड़ पर तू ने अपना बिछौना छािया है, वहीं तू बलि चढ़ाने को चढ़ गई।
8. तू ने अपक्की चिन्हानी अपके द्वार के किवाड़ और चौखट की आड़ ही में रखी; मुझे छोड़कर तू औरोंको अपके तई दिखाने के लिथे चक्की, तू ने अपक्की खाट चौड़ी की और उन से वाचा बान्ध ली, तू ने उनकी खाट को जहां देखा, पसन्द किया।
9. तू तेल लिए हुए राजा के पास गई और बहुत सुगन्धित तेल अपके काम में लाई; अपके दूत तू ने दूर तक भेजे और अधोलोक तक अपके को नीचा किया।
10. तू अपक्की यात्रा की लम्बाई के कारण यक गई, तौभी तू ने न कहा कि यह व्यर्य है; तेरा बल कुछ अधिक हो गया, इसी कारण तू नहीं यकी।।
11. तू ने किस के डर से फूठ कहा, और किसका भय मानकर ऐसा किया कि मुझ को स्मरण नहीं रखा न मुझ पर ध्यान दिया? क्या मैं बहुत काल से चुप नहीं रहा? इस कारण तू मेरा भय नहीं मानती।
12. मैं आप तेरे धर्म और कर्मोंका वर्णन करूंगा, परन्तु, उन से तुझे कुछ लाभ न होगा।
13. जब तू दोहाई दे, तब जिन मूत्तिर्योंको तू ने जमा किया है वह ही तुझे छुड़ाएं ! वे तो सब की सब वायु से वरन एक ही फूंक से उड़ जाएंगी। परन्तु जो मेरी शरण लेगा वह देश का अधिक्कारनेी होगा, और मेरे पवित्र पर्वत को भी अधिक्कारनेी होगा।।
14. और यह कहा जाएगा, पांति बान्ध बान्धकर राजमार्ग बनाओ, मेरी प्रजा के मार्ग में से हर एक ठोकर दूर करो।
15. क्योंकि जो महान और उत्तम और सदैव स्यिर रहता, और जिसका नाम पवित्र है, वह योंकहता है, मैं ऊंचे पर और पवित्र स्यान में निवास करता हूं, और उसके संग भी रहता हूं, जो खेदित और नम्र हैं, कि, नम्र लोगोंके ह्रृदय और खेदित लोगोंके मन को हषिर्त करूं।
16. मैं सदा मुकद्दमा न लड़ता रहूंगा, न सर्वदा क्रोधित रहूंगा; क्योंकि आत्मा मेरे बनाए हुए हैं और जीव मेरे साम्हने मूच्छिर्त हो जाते हैं।
17. उसके लोभ के पाप के कारण मैं ने क्रोधित होकर उसको दु:ख दिया या, और क्रोध के मारे उस से मुंह छिपाया या; परन्तु वह अपके मनमाने मार्ग में दूर भटकता चला गया या।
18. मैं उसकी चाल देखता आया हूं, तौभी अब उसको चंगा करूंगा; मैं उसे ले चलूंगा और विशेष करके उसके शोक करनेवालोंको शान्ति दूंगा।
19. मैं मुंह के फल का सृजनहार हूं; यहोवा ने कहा है, जो दूर और जो निकट हैं, दोनोंको पूरी शान्ति मिले; और मैं उसको चंगा करूंगा।
20. परन्तु दुष्ट तो लहराते समुुद्र के समान है जो स्यिर नहीं रह सकता; और उसका जल मैल और कीच उछालता है।
21. दुष्टोंके लिथे शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है।।
Chapter यशायाह 58
1. गला खोलकर पुकार, कुछ न रख छोड़, नरसिंगे का सा ऊंचा शब्द कर; मेरी प्रजा को उसका अपराध अर्यात् याकूब के घराने को उसका पाप जता दे।
2. वे प्रति दिन मेरे पास आते और मेरी गति बूफने की इच्छा ऐसी रखते हैं मानो वे धर्मी लोगे हैं जिन्होंने अपके परमेश्वर के नियमोंको नहीं टाला; वे मुझ से धर्म के नियम पूछते और परमेश्वर के निकट आने से प्रसन्न होते हैं।
3. वे कहते हैं, क्या कारएा है कि हम ने तो उपवास रखा, परन्तु तू ने इसकी सुधि नहीं ली? हम ने दु:ख उठाया, परन्तु तू ने कुछ ध्यान नहीं दिया? सुनो, उपवास के दिन तुम अपक्की ही इच्छा पूरी करते हो और अपके सेवकोंसे कठिन कामोंको कराते हो।
4. सुनो, तुम्हारे उपवास का फल यह होता है कि तुम आपस में लड़ते और फगड़ते और दुष्टता से घूंसे मारते हो। जैसा उपवास तुम आजकर रखते हो, उस से तुम्हारी प्रार्यना ऊपर नहीं सुनाई देगी।
5. जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं अर्यात् जिस में मनुष्य स्वयं को दीन करे, क्या तुम इस प्रकार करते हो? क्या सिर को फाऊ की नाईं फुकाना, अपके नीचे टाट बिछाना, और राख फैनाने ही को तुम उपवास और यहोवा को प्रसन्न करने का दिन कहते हो?
6. जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहनेवालोंका जुआ तोड़कर उनको छुड़ा लेना, और, सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?
7. क्या वह यह नहीं है कि अपक्की रोटी भूखोंको बांट देना, अनाय और मारे मारे फिरते हुओं को अपके घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपके जातिभाइयोंसे अपके को न छिपाना?
8. तब तेरा प्रकाश पौ फटने की नाईं चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा; तेरा धर्म तेरे आगे आगे चलेगा, यहोवा का तेज तेरे पीछे रझा करते चलेगा।
9. तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दोहाई देगा और वह कहेगा, मैं यहां हूं। यदि तू अन्धेर करना और उंगली मटकाना, और, दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे,
10. उदारता से भूखे की सहाथता करे और दीन दु:खियोंको सन्तुष्ट करे, तब अन्धिक्कारने में तेरा प्रकाश चमकेगा, और तेरा घोर अन्धकार दोपहर का सा उजियाला हो जाएगा।
11. और यहोवा तुझे लगातार लिए चलेगा, और काल के समय तुझे तृप्त और तेरी हड्डियोंको हरी भरी करेगा; और तू सींची हुई बारी और ऐसे सोते के समान होगा जिसका जल कभी नहीं सूखता।
12. और तेरे वंश के लोग बहुत काल के उजड़े हुए स्यानोंको फिर बसाएंगे; तू पीढ़ी पीढ़ी की पक्की हुई नेव पर घर उठाएगा; तेरा नाम टूटे हुए बाड़े का सुधारक और पयोंका ठीक करनेवाला पकेगा।।
13. यदि तू विश्रमदिन को अशुद्ध न करे अर्यात् मेरे उस पवित्र दिन में अपक्की इच्छा पूरी करने का यत्न न करे, और विश्रमदिन को आनन्द का दिन और यहोवा का पवित्र किया हुआ दिन समझकर माने; यदि तू उसका सन्मान करके उस दिन अपके मार्ग पर न चले, अपक्की इच्छा पूरी न करे, और अपक्की ही बातें न बोले,
14. तो तू यहोवा के कारण सुखी होगा, और मैं तुझे देश के ऊंचे स्यानोंपर चलने दूंगा; मैं तेरे मूलपुरूष याकूब के भाग की उपज में से तुझे खिलाऊंगा, क्योंकि यहोवा ही के मुख से यह वचन निकला है।।
Chapter यशायाह 59
1. सुनो, यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहिरा हो गया है कि सुन न सके;
2. क्योंकि तुम्हारे हाथ हत्या से और तुम्हारी अंगुलियां अधर्म के कर्मो से अपवित्र हो गई है; तुम्हारे मुंह से तो फूठ और तुम्हारी जीभ से कुटिल बातें निकलती हैं।
3. क्योंकि तुम्हारे हाथ हत्या से और तुम्हारी अंगुलियां अधर्म के कर्मोंसे अपवित्र हो गईं हैं; तुम्हारे मुंह से तो फूठ और तुम्हारी जीभ से कुटिल बातें निकलती हैं।
4. कोई धर्म के साय नालिश नहीं करता, न कोई सच्चाई से मुकद्दमा लड़ता है; वे मिय्या पर भरोसा रखते हैं और फूठ बातें बकते हैं, उसको मानो उत्पात का गर्भ रहता, और वे अनर्य को जन्म देते हैं।
5. वे सांपिन के अण्डे सेते और मकड़ी के जाले बनाते हैं; जो कोई उनके अण्डे खाता वह मर जाता है, और जब कोई एक को फोड़ता तब उस में से सपोला निकलता है।
6. उनके जाले कपके का काम न देंगे, न वे अपके कामोंसे अपके को ढाप सकेंगे। क्योंकि उनके काम अनर्य ही के होते हैं, और उनके हाथोंसे अपद्रव का काम होता है।
7. वे बुराई करने को दौड़ते हैं, और निर्दोष की हत्या करने को तत्पर रहते हैं; उनकी युक्तियां व्यर्य हैं, उजाड़ और विनाश ही उनके मार्गोंमें हैं।
8. शान्ति का मार्ग वे जानते ही नहीं और न उनके व्यवहार में न्याय है; उनके पय टेढ़े हैं, जो कोई उन पर चले वह शान्ति न पाएगा।।
9. इस कारण न्याय हम से दूर है, और धर्म हमारे समीप ही नहीं आता हम उजियाले की बाट तो जोहते हैं, परन्तु, देखो अन्धिक्कारनेा ही बना रहता है, हम प्रकाश की आशा तो लगाए हैं, परन्तु, घोर अन्धकार ही में चलते हैं।
10. हम अन्धोंके समान भीत टटोलते हैं, हां, हम बिना आंख के लोगोंकी नाईं टटोलते हैं; हम दिन-दोपहर रात की नाईं ठोकर खाते हैं, ह्रृष्टपुष्टोंके बीच हम मुर्दोंके समान हैं।
11. हम सब के सब रीछोंकी नाई चिल्लाते हैं और पण्डुकोंके समान च्यूं च्यूं करते हैं; हम न्याय की बाट तो जोहते हैं, पर वह कहीं नहीं; और उद्धार की बाट जोहते हैं पर वह हम से दूर ही रहता है।
12. क्योंकि हमारे अपराध तेरे साम्हने बहुत हुए हैं, हमारे पाप हमारे विरूद्ध साझी दे रहे हैं; हमारे अपराध हमारे संग हैं और हम अपके अधर्म के काम जानते हैं:
13. हम ने यहोवा का अपराध किया है, हम उस से मुकर गए और अपके परमेश्वर के पीछे चलना छोड़ दिया, हम अन्धेर करने लगे और उलट फेर की बातें कहीं, हम ने फूठी बातें मन में गढ़ीं और कही भी हैं।
14. न्याय तो पीछे हटाया गया और धर्म दूर खड़ा रह गया; सच्चाई बाजार में गिर पक्की और सिधाई प्रवेश नहीं करने पाती।
15. हां, सच्चाई खोई, और जो बुराई से भागता है सो शिकार हो जाता है।। यह देखकर यहोवा ने बुरा माना, क्योंकि न्याय जाता रहा,
16. उस ने देखा कि कोई भी पुरूष नहीं, और इस से अचम्भा किया कि कोई बिनती करनेवाला नहीं; तब उस ने अपके ही भुजबल से उद्धार किया, और अपके धर्मी होने के कारण वह सम्भल गया।
17. उस ने धर्म को फिलम की नाई पहिन लिया, और उसके सिर पर उद्धार का टोप रखा गया; उस ने पलटा लेने का वस्त्र धारण किया, और जलजलाहट को बागे की नाई पहिन लिया है।
18. उनके कर्मोंके अनुसार वह उनको फल देगा, अपके द्रोहियोंपर वह अपना क्रोध भड़काएगा और अपके शत्रुओं को उनकी कमाई देगा; वह द्वीपवासिक्कों भी उनकी कमाई भर देगा।
19. तब पश्चिम की ओर लोग यहोवा के नाम का, और पूर्व की ओर उसकी महिमा का भय मानेंगे; क्योंकि जब शत्रु महानद की नाईं चढ़ाई करेंगे तब यहोवा का आत्मा उसके विरूद्ध फण्डा खड़ा करेगा।।
20. और याकूब में जो अपराध से मन फिराते हैं उनके लिथे सिय्योन में एक छुड़ानेवाला आएगा, यहोवा की यही वाणी है।
21. और यहोवा यह कहता है, जो वाचा मैं ने उन से बान्धी है वह यह है, कि मेरा आत्मा तुझ पर ठहरा है, और अपके वचन जो मैं ने तेरे मुंह में डाले हैं अब से लेकर सर्वदा तक वे मेरे मुंह से, और, तेरे पुत्रोंऔर पोतोंके मुंह से भी कभी न हटेंगे।।
Chapter यशायाह 60
1. उठ, प्रकाशमान हो; क्योंकि तेरा प्रकाश आ गया है, और यहोवा का तेज तेरे ऊपर उदय हुआ है।
2. देख, पृय्वी पर तो अन्धिक्कारनेा और राज्य राज्य के लोगोंपर घोर अन्धकार छाया हुआ है; परन्तु तेरे ऊपर यहोवा उदय होगा, और उसका तेज तुझ पर प्रगट होगा।
3. और अन्यजातियां तेरे पास प्रकाश के लिथे और राजा तेरे आरोहण के प्रताप की ओर आएंगे।।
4. अपक्की आंखें चारो ओर उठाकर देख; वे सब के सब इकट्ठे होकर तेरे पास आ रहे हैं; तेरे पुत्र दूर से आ रहे हैं, और तेरी पुत्रियां हाथों-हाथ पहुंचाई जा रही हैं।
5. तब तू इसे देखेगी और तेरा मुख चमकेगा, तेरा ह्रृदय यरयराएगा और आनन्द से भर जाएगा; क्योंकि समुद्र का सारा धन और अन्यजातियोंकी धन-सम्पति तुझ को मिलेगी।
6. तेरे देश में ऊंटोंके फुण्ड और मिद्यान और एपादेशोंकी साड़नियां इकट्ठी होंगी; शिबा के सब लोग आकर सोना और लोबान भेंट लाएंगे और यहोवा का गुणानुवाद आनन्द से सुनाएंगे।
7. केदार की सब भेड़-बकरियां इकट्ठी होकर तेरी हो जाएंगी, नबायोत के मेढ़े तेरी सेवा टहल के काम में आएंगे; मेरी वेदी पर वे ग्रहण किए जाएंगे और मैं अपके शोभायमान भवन को और भी प्रतापी कर दूंगा।।
8. थे कौन हैं जो बादल की नाई और दर्बाओं की ओर उड़ते हुए कबूतरोंकी नाई चले आते हैं?
9. निश्चय द्वीप मेरी ही बाट देखेंगे, पहिले तो तर्शीश के जहाज आएंगे, कि, मेरे पुत्रोंको सोने चान्दी समेत तेरे परमेश्वर यहोवा अर्यात् इस्राएल के पवित्र के नाम के निमित्त दूर से पहुंचाए, क्योंकि उस ने तुझे शोभायमान किया है।।
10. परदेशी लोग तेरी शहरपनाह को उठाएंगे, और उनके राजा तेरी सेवा टहल करेंगे; क्योंकि मैं ने क्रोध में आकर तुझे दु:ख दिया या, परन्तु अब तुझ से प्रसन्न होकर तुझ पर दया की है।
11. तेरे फाटक सदैव खुले रहेंगे; दिन और रात वे बन्द न किए जाएंगे जिस से अन्यजातियोंकी धन-सम्पत्ति और उनके राजा बंधुए होकर तेरे पास पहुंचाए जाएं।
12. क्योंकि जो जाति और राज्य के लोग तेरी सेवा न करें वे नष्ट हो जाएंगे; हां ऐसी जातियां पूरी रीति से सत्यानाश हो जाएंगी।
13. लबानोन का विभव अर्यात् सनौबर और देवदार और सीधे सनौबर के पेड़ एक सााि तेरे पास आएंगे कि मेरे पवित्रस्यान को सुशोभित करें; और मैं अपके चरणोंके स्यान को महिमा दूंगा।
14. तेरे दु:ख देनेवालोंकी सन्तान तेरे पास सिर फुकाए हुए आंएगें; और जिन्होंने तेरा तिरस्कार किया सब तेरे पांवोंपर गिरकर दण्डवत् करेंगे; वे तेरा नाम यहोवा का नगर, इस्राएल के पवित्र का सिय्योन रखेंगे।।
15. तू जो त्यागी गई और घृणित ठहरी, यहां तक कि कोई तुझ में से होकर नहीं जाता या, इसकी सन्ती मैं तुझे सदा के घमण्ड का और पीढ़ी पीढ़ी के हर्ष का कारण ठहराऊंगा।
16. तू अन्यजातियोंका दूध पी लेगी, तू राजाओं की छातियां चूसेगी; और तू जान लेगी कि मैं याहवो तेरा उद्धारकर्त्ता और तेरा छुड़ानेवाला, याकूब का सर्वशक्तिमान हूं।।
17. मैं पीतल की सन्ती लोहा, लोहे की सन्ती चान्दी, लकड़ी की सन्ती पीतल और पत्यर की सन्ती लोहा लाऊंगा। मैं तेरे हाकिमोंको मेल-मिलाप और चौधरियोंको धामिर्कता ठहराऊंगा।
18. तेरे देश में फिर कभी उपद्रव और तेरे सिवानोंके भीतर उत्पात वा अन्धेर की चर्चा न सुनाई पकेगी; परन्तु तू अपक्की शहरपनाह का नाम उद्धार और अपके फाटकोंका नाम यश रखेगी।
19. फिर दिन को सूर्य तेरा उजियाला न होगा, न चान्दनी के लिथे चन्द्रमा परन्तु यहोवा तेरे लिथे सदा का उजियाला और तेरा परमेश्वर तेरी शोभा ठहरेगा।
20. तेरा सूर्य फिर कभी अस्त न होगा और न तेरे चन्द्रमा की ज्योति मलिन होगी; क्योंकि यहोवा तेरी सदैव की ज्योति होगा और तरे विलाप के दिन समाप्त हो जाएंगे।
21. और तेरे लोग सब के सब धर्मी होंगे; वे सर्वदा देश के अधिक्कारनेी रहेंगे, वे मेरे लगाए हुए पौधे और मेरे हाथोंका काम ठहरेंगे, जिस से मेरी महिमा प्रगट हो।
22. छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्यी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूं; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।।
Chapter यशायाह 61
1. प्रभु यहोवा का आत्मा मुझ पर है; क्योंकि यहोवा ने सुसमाचार सुनाने के लिथे मेरा अभिषेक किया और मुझे इसलिथे भेजा है कि खेदित मन के लोगोंको शान्ति दूं; कि बंधुओं के लिथे स्वतंत्रता का और कैदियोंके लिथे छुटकारे का प्रचार करूं;
2. कि यहोवा के प्रसन्न रहने के वर्ष का और हमारे परमेश्वर के पलटा लेने के दिन का प्रचार करूं; कि सब विलाप करनेवालोंको शान्ति दूं
3. और सिय्योन के विलाप करनेवालोंके सिर पर की राख दूर करके सुन्दर पगड़ी बान्ध दूं, कि उनका विलाप दूर करके हर्ष का तेल लगाऊं और उनकी उदासी हटाकर यश का ओढ़ना ओढ़ाऊं; जिस से वे धर्म के बांजवृझ और यहोवा के लगाए हुए कहलाएं और जिस से उसकी महिमा प्रगट हो।
4. तब वे बहुत काल के उजड़े हुए स्यानोंको फिर बसाएंगे, पूर्वकाल से पके हुए खण्डहरोंमें वे फिर घर बनाएंगे; उजड़े हुए नगरोंको जो पीढ़ी पीढ़ी में उजड़े हुए होंवे फिर नथे सिक्के से बसाएंगे।।
5. परदेशी आ खड़े होंगे और तुम्हारी भेड़-बकरियोंको चराएंगे और विदेशी लोग तुम्हारे चरवाहे और दाख की बारी के माली होंगे;
6. पर तुम यहोवा के याजक कहलाओगे, वे तुम को हमरो परमेश्वर के सेवक कहेंगे; और तुम अन्यजातियोंकी धन-सम्पत्ति को खाओगे, उनके विभव की वस्तुएं पाकर तुम बड़ाई करोगे।
7. तुम्हारी नामधराई की सन्ती दूना भाग मिलेगा, अनादर की सन्ती तुम अपके भाग के कारण जयजयकार करोगे; तुम अपके देश में दूने भाग के अधिक्कारनेी होगे; और सदा आनन्दित बने रहोगे।।
8. क्योंकि, मैं यहोवा न्याय से प्रीति रखता हूं, मैं अन्याय और डकैती से घृणा करता हूं; इसलिथे मैं उनको उनके साय सदा की वाचा बान्धूंगा।
9. उनका वंश अन्यजातियोंमें और उनकी सन्तान देश देश के लोगोंके बीच प्रसिद्ध होगी; जितने उनको देखेंगे, पहिचान लेंगे कि यह वह वंश है जिसको परमेश्वर ने आशीष दी है।।
10. मैं यहोवा के कारण अति आनन्दित होऊंगा, मेरा प्राण परमेश्वर के कारण मगन रहेगा; क्योंकि उस ने मुझे उद्धार के वस्त्र पहिनाए, और धर्म की चद्दर ऐसे ओढ़ा दी है जैसे दूल्हा फूलोंकी माला से अपके आपको सजाता और दुल्हिन अपके गहनोंसे अपना सिंगार करती है।
11. क्योंकि जैसे भूमि अपक्की उपज को उगाती, और बारी में जो कुछ बोया जाता है उसको वह उपजाती है, वैसे ही प्रभु यहोवा सब जातियोंके साम्हने धामिर्कता और धन्यवाद को बढ़ाएगा।।
Chapter यशायाह 62
1. सिय्योन के निमित्त मैं चुप न रहूंगा, और यरूशलेम के निमित्त मैं चैन न लूंगा, जब तक कि उसकी धामिर्कता प्रकाश की नाईं और उसका उद्धार जलते हुए पक्कीते के समान दिखाई न दे।
2. जब अन्यजातियां तेरा धर्म और सब राजा तेरी महिमा देखेंगे; और तेरा एक नया नाम रखा जाएगा जो यहोवा के मुख से निकलेगा।
3. तू यहोवा के हाथ में एक शोभायमान मुकुट और अपके पकेश्वर की हथेली में राजमुकुट ठहरेगी।
4. तू फिर त्यागी हुई न कहलाएगी, और तेरी भूमि फिर उजड़ी हुई न कहलाएगी; परन्तु तू हेप्सीबा और तेरी भूमि ब्यूला कहलाएगी; क्योंकि यहोवा तुझ से प्रसन्न है, और तेरी भूमि सुहागन होगी।
5. क्योंकि जिस प्रकार जवान पुरूष एक कुमारी को ब्याह लाता है, वैसे ही तेरे पुत्र तुझे ब्याह लेंगे; और, जैसे दुल्हा अपक्की दुल्हिन के कारण हषिर्त होता है, वैसे ही तेरा परमेश्वर तेरे कारण हषिर्त होगा।।
6. हे यरूशलेम, मैं ने तेरी शहरपनाह पर पहरूए बैठाए हैं; वे दिन-रात कभी चुप न रहेंगे। हे यहोवा को स्मरण करनेवालो, चुप न रहो,
7. और, जब तक वह यरूशलेम को स्यिर करके उसकी प्रशंसा पृय्वी पर न फैला दे, तब तक उसे भी चैन न लेने दो।
8. यहोवा ने अपके दहिने हाथ की और अपक्की बलवन्त भुजा की शपय खाई है: निश्चय मैं भविष्य में तेरा अन्न अब फिर तेरे शत्रुओं को खाने के लिथे न दूंगा, और परदेशियोंके पुत्र तेरा नया दाखमधु जिसके लिथे तू ने परिश्र्म किया है, नहीं पीने पाएंगे;
9. केवल वे ही, जिन्होंने उसे खत्ते में रखा हो, उस से खाकर यहोवा की स्तुति करेंगे, और जिन्होंने दाखमधु भण्डारोंमें रखा हो, वे ही उसे मेरे पवित्रस्यान के आंगनोंमें पीने पाएंगे।।
10. जाओ, फाटकोंमें से निकल जाओ, प्रजा के लिथे मार्ग सुधारो; राजमार्ग सुधारकर ऊंचा करो, उस में के पत्यर बीन बीनकर फेंक दो, देश देश के लोगोंके लिथे फण्डा खड़ा करो।
11. देखो, यहोवा ने पृय्विी की छोर तक इस आज्ञा का प्रचार किया है: सिय्योन की बेटी से कहो, देख, तेरा उद्धारकर्ता आता है, देख, जो मजदूरी उसको देनी है वह उसके पास है और उसका काम उसके सामने है।
12. और लोग उनको पवित्र प्रजा और यहोवा के छुड़ाए हुए कहेंगे; और तेरा नाम ग्रहण की हुई अर्यात् न-त्यागी हुई नगरी पकेगा।।
Chapter यशायाह 63
1. यह कौन है जो एदोम देश के बोस्त्रा नगर से बैंजनी वस्त्र पहिने हुए चला आता है, जो अति बलवान और भड़कीला पहिरावा पहिने हुए फूमता चला आता है? यह मैं ही हूं, जो धर्म से बोलता और पूरा उद्धार करने की शक्ति रखता हूं।
2. तेरा पहिरावा क्योंलाल है? और क्या कारण है कि तेरे वस्त्र हौद में दाख रौंदनेवाले के समान हैं?
3. मैं ने तो अकेले ही हौद में दाखें रौंदी हैं, और देश के लोगोंमें से किसी ने मेरा साय नहीं दिया; हां, मैं ने अपके क्रोध में आकर उन्हें रौंदा और जलकर उन्हें लताड़ा; उनके लोहू के छींटे मेरे वस्त्रोंपर पके हैं, इस से मेरा सारा पहिरावा धब्बेदार हो गया है।
4. क्योंकि पलटा लेने का दिन मेरे मन में या, और मेरी छुड़ाई हुई प्रजा का वर्ष आ पहुंचा है।
5. मैं ने खोजा, पर कोई सहाथक न दिखाई पड़ा; मैं ने इस से अचम्भा भी किया कि कोई सम्भालनेवाला नहीं या; तब मैं ने अपके ही भुजबल से उद्धार किया, और मेरी जलजलाहट ही ने मुझे सम्हाला।
6. हां, मैं ने अपके क्रोध में आकर देश देश के लोगोंको लताड़ा, अपक्की जलजलाहट से मैं ने उन्हें मतवाला कर दिया, और उनके लोहू को भूमि पर बहा दिया।।
7. जितना उपकार यहोवा ने हम लोगोंका किया अर्यात् इस्राएल के घराने पर दया और अत्यन्त करूणा करके उस ने हम से जितनी भलाई, कि उस सब के अनुसार मैं यहोवा के करूणामय कामोंका वर्णन और उसका गुणानुवाद करूंगा।
8. क्योंकि उस ने कहा, निस्न्देह थे मेरी प्रजा के लोग हैं, ऐसे लड़के हैं जो धोखा नदेंगे; और वह उनका उद्धारकर्ता हो गया।
9. उनके सारे संकट में उस ने भी कष्ट उठाया, और उसके सम्मुख रहनेवाले दूत ने उनका उद्धार किया; प्रेम और कोमलता से उस ने आप की उनको छुड़ाया; उस ने उन्हें उठाया और प्राचीनकाल से सदा उन्हें लिए फिरा।
10. तौभी उन्होंने बलवा किया और उसके पवित्र आत्मा को खेदित किया; इस कारण वह पलटकर उनका शत्रु हो गया, और स्वयं उन से लड़ने लगा।
11. तब उसके लोगोंको उनके प्राचीन दिन अर्यात् मूसा के दिन स्मरण आए, वे कहने लगे कि जो अपक्की भेड़ोंको उनके चरवाहे समेत समुद्र में से निकाल लाया वह कहां है? जिस ने उनके बीच अपना पवित्र आत्मा डाला, वह कहां है?
12. जिस ने अपके प्रतापी भुजबल को मूसा के दहिने हाथ के साय कर दिया, जिस ने उनके साम्हने जल को दो भाग करके अपना सदा का नाम कर लिया,
13. जो उनको गहिरे समुद्र में से ले चला; जैसा घोड़े को जंगल में वैसे ही उनको भी ठोकर न लगी, वह कहां है?
14. जैसे घरैलू पशु तराई में उतर जाता है, वैसे ही यहोवा के आत्मा न उनको विश्रम दिया। इसी प्रकार से तू ने अपक्की प्रजा की अगुवाई की ताकि अपना नाम महिमायुक्त बनाए।।
15. स्वर्ग से, जो तेरा पवित्र और महिमापूर्ण वासस्यान है, दृष्टि कर। तेरी जलन और पराक्रम कहां रहे? तेरी दया और करूणा मुझ पर से हट गई हैं।
16. निश्चय तू हमारा पिता है, यद्यपि इब्राहीम हमें नहीं पहिचानता, और इस्राएल हमें ग्रहण नहीं करता; तौभी, हे यहोवा, तू हमारा पिता और हमारा छुड़ानेवाला है; प्राचीनकाल से यही तेरा नाम है।
17. हे यहोवा, तू क्योंहम को अपके मार्गोंसे भटका देता, और हमारे मन ऐसे कठोर करता है कि हम तेरा भय नहीं मानते? अपके दास, अपके निज भाग के गोत्रोंके निमित्त लौट आ।
18. तेरी पवित्र प्रजा तो योड़े ही काल तक मेरे पवित्रस्यान की अधिक्कारनेी रही; हमारे द्रोहियोंने उसे लताड़ दिया है।
19. हम लोग तो ऐसे हो गए हैं, मानो तू ने हम पर कभी प्रभुता नहीं की, और उनके समान जो कभी तेरे न कहलाए।।
Chapter यशायाह 64
1. भला हो कि तू आकाश को फाड़कर उतर आए और पहाड़ तेरे साम्हने कांप उठे।
2. जैसे आग फाड़-फंखाड़ को जला देती वा जल को उबालती है, उसी रीति से तू अपके शत्रुओं पर अपना नाम ऐसा प्रगट कर कि जाति जाति के लोग तेरे प्रताप से कांप उठें!
3. जब तू ने ऐसे भयानक काम किए जो हमारी आशा से भी बढ़कर थे, तब तू उतर आया, पहाड़ तेरे प्रताप से कांप उठे।
4. क्योंकि प्राचीनकाल ही से तुझे छोड़ कोई और ऐसा परमेश्वर न तो कभी देखा गया और न काल से उसकी चर्चा सुनी गई जो अपक्की बाट जोहनेवालोंके लिथे काम करे।
5. तू तो उन्हीं से मिलता है जो धर्म के काम हर्ष के साय करते, और तेरे मार्गोंपर चलते हुए तुझे स्मरण करते हैं। देख, तू क्रोधित हुआ या, क्योंकि हम ने पाप किया; हमारी यह दशा तो बहुत काल से है, क्या हमारा उद्धार हो सकता है?
6. हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चियड़ोंके समान हैं। हम सब के सब पत्ते की नाईं मुर्फा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामोंने हमें वायु की नाईं उड़ा दिया है।
7. कोई भी तुझ से सहाथता लेने के लिथे चौकसी करता है कि तुझ से लिपटा रहे; क्योंकि हमारे अधर्म के कामोंके कारण तू ने हम से अपना मुंह छिपा लिया है, और हमें हमारी बुराइयोंके वश में छोड़ दिया है।।
8. तौभी, हे यहोवा, तू हमार पिता है; देख, हम तो मिट्टी है, और तू हमारा कुम्हार है; हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं।
9. इसलिथे हे यहोवा, अत्यन्त क्रोधित न हो, और अनन्तकाल तक हमारे अधर्म को स्मरण न रख। विचार करके देख, हम तेरी बिनती करते हैं, हम सब तेरी प्रजा हैं।
10. देख, तेरे पवित्र नगर जंगल हो गए, सिय्योन सुनसान हो गया है, यरूशलेम उजड़ गया है।
11. हमारा पवित्र और शोभायमान मन्दिर, जिस में हमारे पूर्वज तेरी स्तुति करते थे, आग से जलाया गया, और हमारी मनभावनी वस्तुएं सब नष्ट हो गई हैं।
12. हे यहोवा, क्या इन बातोंके होते भी तू अपके को रोके रहेगा? क्या तू हम लोगोंको इस अत्यन्त दुर्दशा में रहने देगा?
Chapter यशायाह 65
1. जो मुझ को पूछते भी न थे वे मेरे खोजी हैं; जो मुझे ढूंढ़ते भी न थे उन्होंने मुझे पा लिया, और जो जाति मेरी नहीं कहलाई यी, उस से भी मैं कहता हूं, देख, मैं उपस्यित हूं।
2. मैं एक हठीली जाति के लोगोंकी ओर दिन भर हाथ फैलाए रहा, जो अपक्की युक्तियोंके अनुसार बुरे मार्गोंमें चलते हैं।
3. ऐसे लो, जो मेरे साम्हने ही बारियोंमें बलि चढ़ा चढ़ाकर और ईंटोंपर धूप जला जलाकर, मुझे लगातार क्रोध दिलाते हैं।
4. थे कब्र के बीच बैठते और छिपे हुए स्यानोंमें रात बिताते; जो सूअर का मांस खाते, और घृणित वस्तुओं का रस अपके बर्तनोंमें रखते;
5. जो कहते हैं, हट जा, मेरे निकट मत आ, क्योंकि मैं तुझ से पवित्र हूं। थे मेरी नाक में धूंएं व उस आग के समान हैं जो दिन भर जलती रहती है।
6. देखो, यह बात मेरे साम्हने लिखी हुई है: मैं चुप न रहूंगा, मैं निश्चय बदला दूंगा वरन तुम्हारे और तुम्हारे पुरखाओं के भी अधर्म के कामोंका बदला तुम्हारी गोद में भर दूंगा।
7. क्योंकि उन्होंने पहाड़ोंपर धूप जलाया और पहाडिय़ोंपर मेरी निन्दा की है, इसलिथे मैं यहोवा कहता हूं, कि, उनके पिछले कामोंके बदले को मैं इनकी गोद में तौलकर दूंगा।।
8. यहोवा योंकहता है, जिस भांति दाख के किसी गुच्छे में जब नया दाखमधु भर आता है, तब लोग कहते हैं, उसे नाश मत कर, क्योंकि उस में आशीष है; उसी भांति मैं अपके दासोंके निमित्त ऐसा करूंगा कि सभोंको नाश न करूंगा।
9. मैं याकूब में से एक वंश, और यहूदा में से अपके पर्वतोंका एक वारिस उत्पन्न करूंगा; मेरे चुने हुए उसके वारिस होंगे, और मेरे दास वहां निवास करेंगे।
10. मेरी प्रजा जो मुझे ढूंढ़ती है, उसकी भेंड़-बकरियां तो शारोन में चरेंगी, और उसके गाय-बैल आकोर नाम तराई में विश्रम करेंगे।
11. परन्तु तुम जो यहोवा को त्याग देते और मेरे पवित्र पर्वत को भूल जाते हो, जो भाग्य देवता के लिथे मेंज पर भोजन की वस्तुएं सजाते और भावी देवी के लिथे मसाला मिला हुआ दाखमधु भर देते हो;
12. मैं तुम्हें गिन गिनकर तलवार का कौर बनाऊंगा, और तुम सब घात होने के लिथे फुकोगे; क्योंकि, जब मैं ने तुम्हें बुलाया तुम ने उत्तर न दिया, जब मैं बोला, तब तुम ने मेरी न सुनी; वरन जो मुझे बुरा लगता है वही तुम ने नित किया, और जिस से मैं अप्रसन्न होता हूं, उसी को तुम ने अपनाया।।
13. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, देखो, मेरे दास तो खाएंगे, पर तुम भूखे रहोगे; मेरे दास पीएंगे, पर तुम प्यासे रहोगे; मेरे दास आनन्द करेंगे, पर तुम लज्जित होगे;
14. देखो, मेरे दास हर्ष के मारे जयजयकार करेंगे, परन्तु तुम शोक से चिल्लाओगे और खेद के मारे हाथ हाथ, करोगे।
15. मेरे चुने हुए लोग तुम्हारी उपमा दे देकर शाप देंगे, और प्रभु यहोवा तुझ को नाश करेगा; परन्तु अपके दासोंका दूसरा नाम रखेगा।
16. तब सारे देश में जो कोई अपके को धन्य कहेगा वह सच्चे परमेश्वर का नाम लेकर अपके को धन्य कहेगा, और जो कोई देश में शपय खाए वह सच्चे परमेश्वर के नाम से शपय खाएगा; क्योंकि पिछला कष्ट दूर हो गया और वह मेरी आंखोंसे छिप गया है।।
17. क्योंकि देखो, मैं नया आकाश और नई पृय्वी उत्पन्न करने पर हूं, और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।
18. इसलिथे जो मैं उत्पन्न करने पर हूं, उसके कारण तुम हषिर्त हो और सदा सर्वदा मगन रहो; क्योंकि देखो, मैं यरूशलेम को मगन और उसकी प्रजा को आनन्दित बनाऊंगा।
19. मैं आप यरूशलेम के कारण मगन, और अपक्की प्रजा के हेतु हषिर्त हूंगा; उस में फिर रोने वा चिल्लाने का शब्द न सुनाई पकेगा।
20. उस में फिर न तो योड़े दिन का बच्चा, और न ऐसा बूढ़ा जाता रहेगा जिस ने अपक्की आयु पूरी न की हो; क्योंकि जो लड़कपन में मरनेवाला है वह सौ वर्ष का होकर मरेगा, परन्तु पापी सौ वर्ष का होकर श्रपित ठहरेगा।
21. वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियां लगाकर उनका फल खाएंगे।
22. ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएं और दूसरा बसे; वा वे लगाएं, और दूसरा खाए; क्योंकि मेरी प्रजा की आयु वृझोंकी सी होगी, और मेरे चुने हुए अपके कामोंका पूरा लाभ उठाएंगे।
23. उनका परिश्र्म व्यर्य न होगा, न उनके बालक घबराहट के लिथे उत्पन्न होंगे; क्योंकि वे यहोवा के धन्य लोगोंका वंश ठहरेंगे, और उनके बालबच्चे उन से अलग न होंगे।
24. उनके पुकारने से पहिले ही मैं उनको उत्तर दूंगा, और उनके मांगते ही मैं उनकी सुन लूंगा।
25. भेडिय़ा और मेम्ना एक संग चरा करेंगे, और सिंह बैल की नाई भूसा खाएगा; और सर्प का आहार मिट्टी ही रहेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई किसी को दु:ख देगा और न कोई किसी की हानि करेगा, यहोवा का यही वचन है।।
Chapter यशायाह 66
1. यहोवा योंकहता है, आकाश मेरा सिंहासन और पृय्वी मेरे चरणोंकी चौकी है; तुम मेरे लिथे कैसा भवन बनाओगे, और मेरे विश्रम का कौन सा स्यान होगा?
2. यहोवा की यह वाणी है, थे सब वस्तुएं मेरे ही हाथ की बनाई हुई हैं, सो थे सब मेरी ही हैं। परन्तु मैं उसी की ओर दृष्टि करूंगा जो दी और खेदित मन का हो, और मेरा वचन सुनकर यरयराता हो।।
3. बैल का बलि करनेवाला मनुष्य के मार डालनेवाले के समान है; जो भेड़ के चढ़ानेवाला है वह उसके समान है जो कुत्ते का गला काटता है; जो अन्नबलि चढ़ाता है वह मानो सूअर का लोहू चढ़ानेवाले के समान है; और, जो लोबान जलाता है, वह उसके समान है जो मूरत को धन्य कहता है। इन सभोंने अपना अपना मार्ग चुन लिया है, और घिनौनी वस्तुओं से उनके मन प्रसन्न हाते हैं।
4. इसलिथे मैं भी उनके लिथे दु:ख की बातें निकालूंगा, और जिन बातोंसे वे डरते हैं उन्हीं को उन पर लाऊंगा; क्योंकि जब मैं ने उन्हें बुलाया, तब कोई न बोला, और जब मैं ने उन से बातें की, तब उन्होंने मेरी न सुनी; परन्तु जो मेरी दृष्टि में बुरा या वही वे करते रहे, और जिस से मैं अप्रसन्न होता या उसी को उन्होंने अपनाया।। तुम जो यहोवा का वचन सुनकर यरयराते हो यहोवा का यह वचन सुनो:
5. तुम्हारे भाई जो तुम से बैर रखते और मेरे नाम के निमित्त तुम को अलग कर देते हैं उन्होंने कहा है, यहोवा की महिमा तो बढ़े, जिस से हम तुम्हारा आनन्द देखते पाएं; परन्तु उन्हीं को लज्जित होना पकेगा।।
6. सुनो, नगर से कोलाहल की धूम, मन्दिर से एक शब्द, सुनाई देता है! वह यहोवा का शब्द है, वह अपके शत्रुओं को उनकी करनी का फल दे रहा है!
7. उसकी पीड़ाएं उठाने से पहले ही उस ने जन्मा दिया; उसको पीड़ाएं होने से पहिले ही उस से बेटा जन्मा।
8. ऐसी बात किस ने कभी सुनी? किस ने कभी ऐसी बातें देखी? क्या देश एक ही दिन में उत्पन्न हो सकता है? क्या एक जाति झण मात्र में ही उत्पन्न हो सकती है? क्योंकि सिय्योन की पीड़ाएं उठी ही यीं कि उस से सन्तान उत्पन्न हो गए।
9. यहोवा कहता है, क्या मैं उसे जन्माने के समय तक पहुंचाकर न जन्माऊं? तेरा परमेश्वर कहता है, मैं जो गर्भ देता हूं क्या मैं कोख बन्द करूं?
10. हे यरूशलेम से सब प्रेम रखनेवालो, उसके साय आनन्द करो और उसके कारण मगन हो; हे उसके विषय सब विलाप करनेवालो उसके साय हषिर्त हो!
11. जिस से तुम उसके शान्तिरूपी स्तन से दूध पी पीकर तृप्त हो; और दूध पीकर उसकी महिमा की बहुतायत से अत्यन्त सुखी हो।।
12. क्योंकि यहोवा योंकहता है, देखो, मैं उसकी ओर शान्ति को नदी की नाईं, और अन्यजातियोंके धन को नदी की बाढ़ के समान बहा दूंगा; और तुम उस से पीओगे, तुम उसकी गोद में उठाए जाओगे और उसके घुटनोंपर कुदाए जाओगे।
13. जिस प्रकार माता अपके पुत्र को शान्ति देती है, वैस ही मैं भी तुम्हें शान्ति दुंगा; तुम को यरूशलेम ही में शान्ति मिलेगी।
14. तुम यह देखोगे और प्रफुल्लित होगे; तुम्हारी हड्डियां घास की नाईं हरी भरी होंगी; और यहोवा का हाथ उसके दासोंके लिथे प्रगट होगा, और, उसके शत्रुओं के ऊपर उसका क्रोध भड़केगा।।
15. क्योंकि देखो, यहोवा आग के साय आएगा, और उसके रय बवण्डर के समान होंगे, जिस से वह अपके क्रोध को जलजलाहट के साय और अपक्की चितौनी को भस्म करनेवाली आग की लपट में प्रगट करे।
16. क्योंकि यहोवा सब प्राणियोंका न्याय आग से और अपक्की तलवार से करेगा; और यहोवा के मारे हुए बहुत होंगे।।
17. जो लोग अपके को इसलिथे पवित्र और शुद्ध करते हैं कि बारियोंमें जाएं और किसी के पीछे खड़े होकर सूअर वा चूहे का मांस और और घृणित वस्तुएं खाते हैं, वे एक ही संग नाश हो जाएंगे, यहोवा की यही वाणी है।।
18. क्योंकि मैं उनके काम और उनकी कल्पनाएं, दोनोंअच्छी रीति से जानता हूं। और वह समय आता है जब मैं सारी जातियोंऔर भिन्न भिन्न भाषा बोलनेवालोंको इकट्ठा करूंगा; और वे आकर मेरी महिमा देखेंगे।
19. और मैं उन से एक चिन्ह प्रगट करूंगा; और उनके बचे हुओं को मैं उन अन्यजातियोंके पास भेजूंगा जिन्होंने न तो मेरा समाचार सुना है और न मेरी महिमा देखी है, अर्यात् तर्शीशियोंऔर धनुर्धारी पूलियोंऔर लूदियोंके पास, और तबलियोंऔर यूनानियोंऔर दूर द्वीपवासियोंके पास भी भेज दूंगा और वे अन्यजातियोंमें मेरी महिमा का वर्णन करेंगे।
20. और जैसे इस्राएली लोग अन्नबलि को शुद्ध पात्र में धरकर यहोवा के भवन में ले आते हैं, वैसे ही वे तुम्हारे सब भाइयोंको घोड़ों, रयों, पालयथें, खच्चरोंऔर साड़नियोंपर चढ़ा चढ़ाकर मेरे पवित्र पर्वत यरूशलेम पर यहोवा की भेंट के लिथे ले आएंगे, यहोवा का यही वचन है।
21. और उन में से मैं कितने लोगोंको याजक और लेवीय पद के लिथे भी चुन लूंगा।।
22. क्योंकि जिस प्रकार नया आकाश और नई पृय्वी, जो मैं बनाने पर हूं, मेरे सम्मुख बनी रहेगी, उसी प्रकार तुम्हारा वंश और तुम्हारा नाम भी बना रहेगा; यहोवा की यही वाणी है।
23. फिर ऐसा होगा कि एक नथे चांद से दूसरे नथे चांद के दिन तक और एक विश्रम दिन से दूसरे विश्रम दिन तक समस्त प्राणी मेरे साम्हने दण्डवत् करने को आया करेंगे; यहोवा का यही वचन है।।
24. तब वे निकलकर उन लोगोंकी लोयोंपर जिन्होंने मुझ से बलवा किया दृष्टि डालेंगे; क्योंकि उन में पके हुए कीड़े कभी न मरेंगे, उनकी आस कभी न बुफेगी, और सारे मनुष्योंको उन से अत्यन्त घृणा होगी।।
Chapter यशायाह 1
1. आमोस के पुत्र यशायाह का दर्शन, जिसको उस ने यहूदा और यरूशलेम के विषय में उज्जियाह, योताम, आहाज, और हिजकिय्याह नाम यहूदा के राजाओं के दिनोंमें पाया।
2. हे स्वर्ग सुन, और हे पृय्वी कान लगा; क्योंकि यहोवा कहता है: मैं ने बालबच्चोंका पालन पोषण किया, और उनको बढ़ाया भी, परन्तु उन्होंने मुझ से बलवा किया।
3. बैल तो अपके मालिक को और गदहा अपके स्वामी की चरनी को पहिचानता है, परन्तु इस्राएल मुझें नहीं जानता, मेरी प्रजा विचार नहीं करती।।
4. हाथ, यह जाति पाप से कैसी भरी है! यह समाज अधर्म से कैसा लदा हुआ है! इस वंश के लोग कैसे कुकर्मी हैं, थे लड़केबाले कैसे बिगड़े हुए हैं! उन्होंने यहोवा को छोड़ दिया, उन्होंने इस्राएल के पवित्र को तुच्छ जाना है! वे पराए बनकर दूर हो गए हैं।।
5. तुम बलवा कर करके क्योंअधिक मार खाना चाहते हो? तुम्हारा सिर घावोंसे भर गया, और तुम्हारा ह्रृदय दु:ख से भरा है।
6. नख से सिर तक कहीं भी कुछ आरोग्यता नहीं, केवल चोट और कोड़े की मार के चिन्ह और सड़े हुए घाव हैं जो न दबाथे गए, न बान्धे गए, न तेल लगाकर नरमाथे गए हैं।।
7. तुम्हारा देश उजड़ा पड़ा है, तुम्हारे नगर भस्म हो गए हैं; तुम्हारे खेतोंको परदेशी लोग तुम्हारे देखते ही निगल रहे हैं; वह परदेश्यथें से नाश किए हुए देश के समान उजाड़ है।
8. और सिय्योन की बेटी दाख की बारी में की फोपक्की की नाईं छोड़ दी गई है, वा ककड़ी के खेत में की छपरिया या घिरे हुए नगर के समान अकेली खड़ी है।
9. यदि सेनाओं का यहोवा हमारे योड़े से लोगोंको न बचा रखता, तो हम सदोम के समान हो जाते, और अमोरा के समान ठहरते।।
10. हे सदोम के न्याइयों, यहोवा का वचन सुनो! हे अमोरा की प्रजा, हमारे परमेश्वर की शिझा पर कान लगा।
11. यहोवा यह कहता है, तुम्हारे बहुत से मेलबलि मेरे किस काम के हैं? मैं तो मेढ़ोंके होमबलियोंसे और पाले हुए पशुओं की चर्बी से अघा गया हूं;
12. मैं बछड़ोंवा भेड़ के बच्चोंवा बकरोंके लोहू से प्रसन्न नहीं होता।। तुम जब अपके मुंह मुझे दिखाने के लिथे आते हो, तब यह कौन चाहता है कि तुम मेरे आंगनोंको पांव से रौंदो?
13. व्यर्य अन्नबलि फिर मत लाओ; धूप से मुझे घृणा है। नथे चांद और विश्रमदिन का मानना, और सभाओं का प्रचार करना, यह मुझे बुरा लगता है। महासभा के साय ही साय अनर्य काम करना मुझ से सहा नहीं जाता।
14. तुम्हारे नथे चांदोंऔर नियत पर्वोंके मानने से मैं जी से बैर रखता हूं; वे सब मुझे बोफ से जान पड़ते हैं, मैं उनको सहते सहते उकता गया हूं।
15. जब तुम मेरी ओर हाथ फैलाओ, तब मैं तुम से मुंह फेर लूंगा; तुम कितनी ही प्रार्यना क्योंन करो, तौभी मैं तुम्हारी न सुनूंगा; क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं।
16. अपके को धोकर पवित्र करो: मेरी आंखोंके साम्हने से अपके बुरे कामोंको दूर करो; भविष्य में बुराई करता छोड़ दो,
17. भलाई करना सीखो; यत्न से न्याय करो, उपद्रवी को सुधारो; अनाय का न्याय चुकाओ, विधवा का मुकद्दमा लड़ो।।
18. यहोवा कहता है, आओ, हम आपस में वादविवाद करें: तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम की नाईं उजले हो जाएंगे; और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्वेत हो जाएंगे।
19. यदि तुम आज्ञाकारी होकर मेरी मानो,
20. तो इस देश के उत्तम से उत्तम पदायै खाओगे; और यदि तुम ने मानो और बलवा करो, तो तलवार से मारे जाओगे; यहोवा का यही वचन है।।
21. जो नगरी सती यी सो क्योंकर व्यभिचारिन हो गई! वह न्याय से भरी यी और उस में धर्म पाया जाता या, परन्तु अब उस में हत्यारे ही पाए जाते हैं। तेरी चान्दी घातु का मैल हो गई,
22. तेरे दाखमधु में पानी मिल गया है।
23. तेरे हाकिम हठीले और चोरोंसे मिले हैं। वे सब के सब घूस खानेवाले और भेंट के लालची हैं। वे अनाय का न्याय नहीं करते, और न विधवा का मुकद्दमा अपके पास आने देते हैं।
24. इस कारण प्रभु सेनाओं के यहोवा, इस्राएल के शक्तिमान की यह वाणी है: सुनो, मैं अपके शत्रुओं को दूर करके शान्ति पाऊंगा, और अपके बैरियोंसे पलटा लूंगा।
25. और मैं तुम पर हाथ बढ़ाकर तुम्हारा धातु का मैल पूरी रीति से दूर करूंगा।
26. और मैं तुम में पहिले की नाईं न्यायी और आदि काल के समान मंत्री फिर नियुक्त करूंगा। उसके बाद तू धम्रपुरी और सती नगरी कहलाएगी।।
27. सिय्योन न्याय के द्वारा, और जो उस में फिरेंगे वे धर्म के द्वारा छुड़ा लिए जाएंगे।
28. परन्तु बलवाइयोंऔर पापियोंका एक संग नाश होगा, और जिन्होंने यहोवा को न्यागा है, उनका अन्त हो जाएगा।
29. क्योंकि जिन बांजवृझोंसे तुम प्रीति रखते थे, उन से वे लज्जित होंगे, और जिन बारियोंसे तुम प्रसन्न रहते थे, उसके कारण तुम्हारे मुंह काले होंगे।
30. क्योंकि तुम पत्ते मुर्फाए हुए बांजवृझ के, और बिना जल की बारी के समान हो जाओगे।
31. और बलवान तो सन और उसका काम चिंगारी बनेगा, और दोनोंएक साय जलेंगे, और कोई बुफानेवाला न होगा।।
Chapter यशायाह 2
1. आमोस के पुत्र यशायाह का वचन, जो उस ने यहूदा और यरूशलेम के विषय में दर्शन में पाया।।
2. अन्त के दिनोंमें ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ोंपर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाडिय़ोंसे अधिक ऊंचा किया जाएगा; और हर जाति के लागे धारा की नाई उसकी ओर चलेंगें।
3. और बहुत देशोंके लागे आएंगे, और आपस में कहेंगे: आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएं; तब वह हमको अपके मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पयोंपर चलेंगे। क्योंकि यहोवा की व्यवस्या सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा।
4. वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगोंके फगड़ोंको मिटाएगा; और वे अपक्की तलवारें पीटकर हल के फाल और अपके भालोंको हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरूद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।।
5. हे याकूब के घराने, आ, हम यहोवा के प्रकाश में चलें।।
6. तू ने अपक्की प्रजा याकूब के घराने को त्याग दिया है, क्योंकि वे पूविर्योंके व्यवहार पर तन मन से चलते और पलिश्तियोंकी नाई टोना करते हैं, और परदेशियोंके साय हाथ मिलाते हैं।
7. उनका देश चान्दी और सोने से भरपूर है, और उनके रय अनगिनित हैं।
8. उनका देश मूरतोंसे भरा है; वे अपके हाथोंकी बनाई हुई वस्तुओं को जिन्हें उनहोंने अपक्की उंगलियोंसे संवारा है, दण्डवत् करते हैं।
9. इस से मनुष्य फुकते, और बड़े मनुष्य प्रणाम करते हैं, इस कारण उनको झमा न कर!
10. यहोवा के भय के कारण और उसके प्रताप के मारे चट्टान में घुस जा, और मिट्टी में छिप जा।
11. क्योंकि आदमियोंकी घमण्ड भरी आंखें नीची की जाएंगी और मनुष्योंका घमण्ड दूर किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊंचे पर विराजमान रहेगा।।
12. क्योंकि सेनाओं के यहोवा का दिन सब घमण्डियोंऔर ऊंची गर्दनवालोंपर और उन्नति से फूलनेवालोंपर आएगा; और वे फुकाए जाएंगे;
13. और लबानोन के सब देवदारोंपर जो ऊंचे और बड़ें हैं;
14. बासान के सब बांजवृझोंपर; और सब ऊंचे पहाड़ोंऔर सब ऊंची पहाडिय़ोंपर;
15. सब ऊंचे गुम्मटोंऔर सब दृढ़ शहरपनाहोंपर;
16. तर्शीश के सब जहाजोंऔर सब सुन्दर चित्रकारी पर वह दिन आता है।
17. और मनुष्य का गर्व मिटाया जाएगा, और मनुष्योंका घमण्ड नीचा किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊंचे पर विराजमान रहेगा।
18. और मूरतें सब की सब नष्ट हो जाएंगी।
19. और जब यहोवा पृय्वी के कम्पित करने के लिथे उठेगा, तब उसके भय के कारण और उसके प्रताप के मारे लोग चट्टानोंकी गुफाओं और भूमि के बिलोंमें जा घुसेंगे।।
20. उस दिन लोग अपक्की चान्दी-सोने की मूरतोंको जिन्हें उन्होंने दण्डवत् करने के लिथे बनाया या, छछून्दरोंऔर चमगीदड़ोंके आगे फेंकेंगे,
21. और जब यहोवा पृय्वी को कम्पित करने के लिथे उठेगा तब वे उसके भय के कारण और उसके प्रताप के मारे चट्टानोंकी दरारोंओर पहाडिय़ोंके छेदोंमें घुसेंगे।
22. सो तुम मनुष्य से पके रहो जिसकी श्वास उसके नयनोंमें है, क्योंकि उसका मूल्य है ही क्या?
Chapter यशायाह 3
1. सुनों, प्रभु सेनाओं का यहोवा यरूशलेम और यहूदा का सब प्रकार का सहारा और सिरहाना अर्यात् अन्न का सारा आधार, और जल का सारा आधार दूर कर देगा;
2. और वी और योद्धा को, न्यायी और नबी को, भावी वक्ता और वृद्ध को, पचास सिपाहियोंके सरदार और प्रतिष्ठित पुरूष को,
3. मन्त्री और चतुर कारीगर को, और निपुण टोन्हे को भी दूर कर देगा।
4. और मैं लड़कोंको उनके हाकिम कर दूंगा, और बच्चे उन पर प्रभुता करेंगे।
5. और प्रजा के लागे आपस में एक दूसरे पर, और हर एक अपके पड़ोसी पर अंधेर करेंगे; और जवान वृद्ध जनोंसे और नीच जन माननीय लोगोंसे असभ्यता का व्यवहार करेंगे।।
6. उस समय जब कोई पुरूष अपके पिता के घर में अपके भाई को पकड़कर कहेगा कि तेरे पास तो वस्त्र है, आ हमारा न्यायी हो जा और इस उजड़े देश को अपके वश में कर ले;
7. तब वह शपय खाकर कहेगा, मैं चंगा करनेहारा न हूंगा; क्योंकि मेरे घर में न तो रोटी है और न कपके; इसलिथे तुम मुझे प्रजा का न्यायी नहीं नियुक्त कर सकोगे।
8. यरूशलेम तो डगमगाया और यहूदा गिर गया है; क्योंकि उनके वचन औश्र् उनके काम यहोवा के विरूद्ध हैं, जो उसकी तेजोमय आंखोंके साम्हने बलवा करनेवाले ठहरे हैं।।
9. उनका चिहरा भी उनके विरूद्ध साझी देता है; वे सदोमियोंकी नाई अपके आप को आप ही बखानते और नहीं छिपाते हैं। उन पर हाथ! क्योंकि उन्होंने अपक्की हानि आप ही की है।
10. धमिर्योंसे कहो कि उनका भला होगा, क्योंकि उसके कामोंका फल उसको मिलेगा।
11. दुष्ट पर हाय!उसका बुरा होगा, क्योंकि उसके कामों का फल उसको मिलेगा।
12. मेरी प्रजा पर बच्चे अंधेर करते और स्त्रियां उन पर प्रभुता करती हैं। हे मेरी प्रजा, तेरे अगुव तुझे भटकाते हैं, और तेरे चलने का मार्ग भुला देते हैं।।
13. यहोवा देश देश के लोगोंसे मुकद्दमा लड़ने और उनका न्याय करने के लिथे खड़ा है।
14. यहोवा अपक्की प्रजा के वृद्ध और हाकिमोंके साय यह विवाद करता है, तुम ही ने बारी की दाख खा डाली है, और दीन लोगोंका धन लूटकर तुम ने अपके घरोंमें रखा है।
15. सेनाओं के प्रभु यहोवा की यह वाणी है, तुम क्योंमेरी प्रजा को दलते, और दीन लोगोंको पीस डालते हो!
16. यहोवा ने यह भी कहा है, क्योंकि सिय्योन की स्त्रियां घमण्ड करतीं और सिर ऊंचे किथे आंखें मटकातीं और घुंघुरूओं को छमछमाती हुई ठुमुक ठुमुक चलती हैं,
17. इसलिथे प्रभु यहोवा उनके सिर को गंजा करेगा, और उनके तन को उघरवाएगा।।
18. उस समय प्रभु घुंघुरूओं, जालियों,
19. चंद्रहारों, फुमकों, कड़ों, घूंघटों,
20. पगडिय़ों, पैकरियों, पटुकों, सुगन्धपात्रों, गण्डों,
21. अंगूठियों, नत्यों,
22. सुन्दर वों, कुत्तियों, चद्दरों, बटुओं,
23. दर्पणों, मलमल के वों, बुन्दियों, दुपट्टोंइन सभोंकी शोभा को दूर करेगा।
24. और सुगन्ध की सन्ती सड़ाहट, सुन्दर कर्घनी की सन्ती बन्धन की रस्सी, गुंथें हुए बालोंकी सन्ती गंजापन, सुन्दर पटुके की सन्ती टाट की पेटी, और सुन्दरता की सन्ती दाग होंगे।
25. तेरे पुरूष तलवार से, और शूरवीर युद्ध मे मारे जाएंगे।
26. और उसके फाटकोंमें सांस भरना और विलाप करना होगा; और भूमि पर अकेली बैठी रहेगी।
Chapter यशायाह 4
1. उस समय सात स्त्रियां एक पुरूष को पकड़कर कहेंगी कि रोटी तो हम अपक्की ही खाएंगी, और वस्त्र अपके ही पहिनेंगी, केवल हम तेरी कहलाएं; हमारी नामधराई को दूर कर।।
2. उस समय इस्राएल के बचे हुओं के लिथे यहोवा का पल्लव, भूषण और महिमा ठहरेगा, और भूमि की उपज, बड़ाई और शोभा ठहरेगी।
3. और जो कोई सिय्योन में बचा रहे, और यरूशलेम में रहे, अर्यात् यरूशलेम में जितनोंके नाम जीवनपत्र में लिखे हों, वे पवित्र कहलाएंगे।
4. यह तब होगा, जब प्रभु न्याय करनेवाली और भस्म करनेवाली आत्मा के द्धारा सिय्योन की स्त्रियोंके मल को धो चुकेगा और यरूशलेम के खून को दूर कर चुकेगा।
5. तब यहोवा सिय्योन पर्वत के एक एक घर के ऊपर, और उसके सभास्यनोंके ऊपर, दिन को तो धूंए का बादल, और रात को धधकती आग का प्रकाश सिरजेगा, और समस्त विभव के ऊपर एक मण्डप छाया रहेगा।
6. वह दिन को घाम से बचाने के लिथे और आंधी-पानी और फड़ी में एक शरण और आड़ होगा।।
Chapter यशायाह 5
1. अब मैं अपके प्रिय के लिथे और उसकी दाख की बारी के विषय में गीत गाऊंगा: एक अति उपजाऊ टीले पर मेरे प्रिय की एक दाख की बरी यी।
2. उस ने उसकी मिट्टी खोदी और उसके पत्यर बीनकर उस में उत्तम जाति की एक दाखलता लगाई; उसके बीच में उस ने एक गुम्मट बनाया, और दाखरस के लिथे एक कुण्ड भी खोदा; तब उस ने दाख की आशा की, परन्तु उस में निकम्मी दाखें ही लगीं।।
3. अब हे यरूशलेम के निवासियोंऔर हे यहूदा के मनुष्यों, मेरे और मेरी दाख की बारी के बीच न्याय करो।
4. मेरी दाख की बारी के लिथे और क्या करना रह गया जो मैं ने उसके लिथे न किया हो? फिर क्या कारण है कि जब मैं ने दाख की आशा की तब उस में निकम्मी दाखें लगीं?
5. अब मैं तुम को जताता हूं कि अपक्की दाख की बारी से क्या करूंगा। मैं उसके कांटेवाले बाड़े को उखाड़ दूंगा कि वह चट की जाए, और उसकी भीत को ढा दूंगा कि वह रौंदी जाए।
6. मैं उसे उजाड़ दूंगा; वह न तो फिर छांटी और न खोदी जाएगी और उस में भांति भांति के कटीले पेड़ उगेंगे; मैं मेघोंको भी आज्ञा दूंगा कि उस पर जल न बरसाएं।।
7. क्योंकि सेनाओं के यहोवा की दाख की बारी इस्राएल का घराना, और उसका मनभाऊ पौधा यहूदा के लोग है; और उस ने उन में न्याय की आशा की परन्तु अन्याय देख पड़ा; उस ने धर्म की आशा की, परन्तु उसे चिल्लाहट ही सुन पक्की!
8. हाथ उन पर जो घर से घर, और खेत से खेत यहां तक मिलाते जाते हैं कि कुछ स्यान नहीं बचता, कि तुम देश के बीच अकेले रह जाओ।
9. सेनाओं के यहोवा ने मेरे सुनते कहा है: निश्चय बहुत से घर सुनसान हो जाएंगे, और बड़ें बड़े और सुन्दर घर निर्जन हो जाएंगे।
10. क्योंकि दस बीघे की दाख की बारी से एक ही बत दाखमधु मिलेगा, और होमेर भर के बीच से एक ही एपा अन्न उत्पन्न होगा।।
11. हाथ उन पर जो बड़े तड़के उठकर मदिरा पीने लगते हैं और बड़ी रात तक दाखमधु पीते रहते हैं जब तक उनको गर्मी न चढ़ जाए!
12. उनकी जेवनारोंमें वीणा, सारंगी, डफ, बांसली और दाखमधु, थे सब पाथे जाते हैं; परन्तु वे यहोवा के कार्य की ओर दृष्टि नहीं करते, और उसके हाथोंके काम को नहीं देखते।।
13. इसलिथे अज्ञानता के कारण मेरी प्रजा बंधुआई में जाती है, उसके प्रतिष्ठित पुरूष भूखोंमरते और साधारण लोग प्यास से ब्याकुल होते हैं।
14. इसलिथे अधोलोक ने अत्यन्त लालसा करके अपना मुंह बेपरिमाण पसारा है, और उनका विभव और भीड़ भाड़ और आनन्द करनेवाले सब के सब उसके मुंह में जा पड़ते हैं।
15. साधारण मनुष्य दबाए जाते और बड़े मनुष्य नीचे किए जाते हैं, और अभिमानियोंकी आंखें नीची की जाती हैं।
16. परन्तु सेनाओं का यहोवा न्याय करने के कारण महान ठहरता, और पवित्र परमेश्वर धर्मी होने के कारण पवित्र ठहरता है!
17. तब भेड़ोंके बच्चे मानो अपके खेत में चरेंगे, परन्तु ह्रृष्टपुष्टोंके उजड़े स्यान परदेशियोंको चराई के लिथे मिलेंगे।।
18. हाथ उन पर जो अधर्म को अनर्य की रस्सिक्कों और पाप को मानो गाड़ी के रस्से से खींच ले आते हैं,
19. जो कहते हैं, वह फुर्ती करे और अपके काम को शीघ्र करे कि हम उसको देखें; और इस्राएल के पवित्र की युक्ति प्रगट हो, वह निकट आए कि हम उसको समझें!
20. हाथ उन पर जो बुरे को भला और भले को बुरा कहते, जो अंधिक्कारने को उजियाला और उजियाले को अंधिक्कारनेा ठहराते, और कडुवे को मीठा और मीठे को कड़वा करके मानते हैं!
21. हाथ उन पर जो अपक्की दृष्टि में ज्ञानी और अपके लेखे बुद्धिमान हैं!
22. हाथ उन पर जो दाखमधु पीने में वीर और मदिरा को तेज बनाने में बहादुर हैं,
23. जो घूस लेकर दुष्टोंको निर्दोष, और निर्दोषोंको दोषी ठहराते हैं!
24. इस कारण जैसे अग्नि की लौ से खूंटी भस्म होती है और सूखी घास जलकर बैठ जाती है, वैसे ही उनकी जड़ सड़ जाएगी और उनके फूल धूल होकर उड़ जाएंगे; क्योंकि उन्होंने सेनाओं के यहोवा की व्यवस्या को निकम्मी जाना, और इस्राएल के पवित्र के वचन को तुच्छ जाना है।
25. इस कारण यहोवा का क्रोध अपक्की प्रजा पर भड़का है, और उस ने उनके विरूद्ध हाथ बढ़ाकर उनको मारा है, और पहाड़ कांप उठे; और लोगोंकी लोथें सड़कोंके बीच कूड़ा सी पक्की हैं। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
26. वह दूर दूर की जातियोंके लिथे फण्डा खड़ा करेगा, और सींटी बजाकर उनको पृय्वी की छोर से बुलाएगा; देखो, वे फुर्ती करके वेग से आएंगे!
27. उन में कोई यका नहीं न कोई ठोकर खाता है; कोई ऊंघने वा सोनेवाला नहीं, किसी का फेंटा नहीं खुला, और किसी के जूतोंका बन्धन नहीं टूटा;
28. उनके तीर चोखे और धनुष चढ़ाए हुए हैं, उनके घोड़ोंके खुर वज्र के से और रयोंके पहिथे बवण्डर सरीखे हैं।
29. वे सिंह वा जवान सिंह की नाई गरजते हैं; वे गुर्राकर अहेर को पकड़ लेते और उसको ले भागते हैं, और कोई उसे उन से नहीं छुड़ा सकता।
30. उस समय वे उन पर समुद्र के गर्जन की नाई गर्जेंगे और यदि कोई देश की ओर देखे, तो उसे अन्धकार और संकट देख पकेगा और ज्योति मेघोंसे छिप जाएगी।।
Chapter यशायाह 6
1. जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया।
2. उस से ऊंचे पर साराप दिखाई दिए; उनके छ: छ: पंख थे; दो पंखोंसे वे अपके मुंह को ढांपे थे और दो से अपके पांवोंको, और दो से उड़ रहे थे।
3. और वे एक दूसरे से पुकार पुकारकर कह रहे थे: सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृय्वी उसके तेज से भरपूर है।
4. और पुकारनेवाले के शब्द से डेवढिय़ोंकी नेवें डोल उठीं, और भवन धूंए से भर गया।
5. तब मैं ने कहा, हाथ! हाथ! मैं नाश हूआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठवाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठवाले मनुष्योंके बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपक्की आंखोंसे देखा है!
6. तब एक साराप हाथ में अंगारा लिए हुए, जिसे उस ने चिमटे से वेदी पर से उठा लिया या, मेरे पास उड़ कर आया।
7. और उस ने उस से मेरे मुंह को छूकर कहा, देख, इस ने तेरे होंठोंको छू लिया है, इसलिय तेरा अधर्म दूर हो गया और तेरे पाप झमा हो गए।
8. तब मैं ने प्रभु का यह वचन सुना, मैं किस को भेंजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा? तब मैं ने कहा, मैं यहां हूं! मुझे भेज
9. उस ने कहा, जा, और इन लोगोंसे कह, सुनते ही रहो, परन्तु न समझो; देखते ही रहो, परन्तु न बूफो।
10. तू इन लोगोंके मन को मोटे और उनके कानोंको भारी कर, और उनकी आंखोंको बन्द कर; ऐसा न हो कि वे आंखोंसे देखें, और कानोंसे सुनें, और मन से बूफें, और मन फिरावें और चंगे हो जाएं।
11. तब मैं ने पूछा, हे प्रभु कब तक? उस ने कहा, जब तक नगर न उजड़े और उन में कोई रह न जाए, और घरोंमें कोई मनुष्य न रह जाए, और देश उजाड़ और सुनसान हो जाए,
12. और यहोवा मनुष्योंको उस में से दूर कर दे, और देश के बहुत से स्यान निर्जन हो जाएं।
13. चाहे उसके निवासियोंका दसवां अंश भी रह जाए, तौभी वह नाश किया जाएगा, परनतु जैसे छोटे वा बड़े बांजवृझ को काट डालने पर भी उसका ठूंठ बना रहता है, वैसे ही पवित्र वंश उसका ठूंठ ठहरेगा।।
Chapter यशायाह 7
1. यहूदा का राजा आहाज जो योताम का पुत्र और उज्जिय्याह का पोता या, उसके दिनोंमें आराम के राजा रसीन और इस्राएल के राजा रमल्याह के पुत्र पेकह ने यरूशलेम से लड़ने के लिथे चढ़ाई की, परन्तु युद्ध करके उन से कुछ बन न पड़ा
2. जब दाऊद के घराने को यह समाचार मिला कि अरामियोंने एप्रैमियोंसे सन्धि की है, तब उसका और प्रजा का भी मन ऐसा कांप उठा जैसे वन के वृझ वायु चलने से कांप जाते हैं।
3. तब यहोवा ने यशायाह से कहा, अपके पुत्र शार्याशूब को लेकर धोबियोंके खेत की सड़क से ऊपरली पोखरे की नाली के सिक्के पर आहाज से भेंट करने के लिथे जा,
4. और उस से कह, सावधान और शान्त हो; और उन दोनोंधूंआं निकलती लुकटियोंसे अर्यात् रसीन और अरामियोंके भड़के हुए कोप से, और रमल्याह के पुत्र से मत डर, और न तेरा मन कच्चा हो।
5. क्यांकि अरामियोंऔर रमल्याह के पुत्र समेत एप्रैमियोंने यह कहकर तेरे विरूद्ध बुरी युक्ति ठानी है कि आओ,
6. हम यहूदा पर चढ़ाई करके उसको घबरा दें, और उसको अपके वश में लाकर ताबेल के पुत्र को राजा नियुक्त कर दें।
7. इसलिथे प्रभु यहोवा ने यह कहा है कि यह युक्ति न तो सफल होगी और न पूरी।
8. क्योंकि आराम का सिर दमिश्क, ओर दमिश्क का सिर रसीन है। फिर एप्रैम का सिर शोमरोन और शोमरोन का सिर रमल्याह का पुत्र है।
9. पैंसठ वर्ष के भीतर एप्रैम का बल इतना टूट जाएगा कि वह जाति बनी न रहेगी। यदि तुम लोग इस बात की प्रतीति न करो; तो निश्चय तुम स्यिर न रहोगे।।
10. फिर यहोवा ने आहाज से कहा,
11. अपके परमेश्वर यहोवा से कोई चिन्ह मांग; चाहे वह गहिरे स्यान का हो, वा ऊपर आसमान का हो।
12. आहाज ने कहा, मैं नहीं मांगने का, और मैं यहोवा की पक्कीझा नहीं करूंगा।
13. तब उस ने कहा, हे दाऊद के घराने सुनो! क्या तुम मनुष्योंको उकता देना छोटी बात समझकर अब मेरे परमेश्वर को भी उकता दोगे?
14. इस कारण प्रभु आप ही तुम को एक चिन्ह देगा। सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।
15. और जब तक वह बुरे को त्यागना और भले को ग्रहण करना न जाने तब तक वह मक्खन और मधु खाएगा।
16. क्योंकि उस से पहिले कि वह लड़का बुरे को त्यागना और भले को ग्रहण करना जाने, वह देश जिसके दोनोंराजाओं से तू घबरा रहा है निर्जन हो जाएगा।
17. यहोवा तुझ पर, तेरी प्रजा पर और तेरे पिता के घराने पर ऐसे दिनोंको ले आएगा कि जब से एप्रैम यहूदा से अलग हो गया, तब वे वैसे दिन कभी नहीं आए -- अर्यात् अश्शूर के राजा के दिन ।।
18. उस समय यहोवा उन मक्खियोंको जो मिस्र की नदियोंके सिरोंपर रहती हैं, और उन मधुमक्खियोंको जो अश्शूर देश में रहती हैं, सीटी बजाकर बुलाएगा।
19. और वे सब की सब आकर इस देश के पहाड़ी नालोंमें, और चट्टानोंकी दरारोंमें, और सब भटकटैयोंऔर सब चराइयोंपर बैठ जाएंगी।।
20. उसी समय प्रभु महानद के पारवाले अश्शूर के राजारूपी भाड़े के छूरे से सिर और पांवोंके रोंएं मूंड़ेगा, उस से दाढ़ी भी पूरी मुंड़ जाएगी।।
21. उस समय ऐसा होगा कि मनुष्य केवल एक कलोर और दो भेड़ोंको पालेगा;
22. और वे इतना दूध देंगी कि वह मक्खन खाया करेगा; क्योंकि जितने इस देश में रह जाएंगे वह सब मक्खन और मधु खाया करेंगे।।
23. उस समय जिन जिन स्यानें में हजार टुकड़े चान्दी की हजार दाखलताएं हैं, उन सब स्यानें में कटीले ही कटीले पेड़ होंगे।
24. तीर और धनुष लेकर लोग वहां जाया करेंगे, क्योंकि सरे देश में कटीले पेड़ हो जाएंगे; और जितने पहाड़ कुदाल से खोदे जाते हैं,
25. उन सभोंपर कटीले पेड़ोंके डर के मारे कोई न जाएगा, वे गाथे बैलोंके चरने के, और भेड़ बकरियोंके रौंदने के लिथे होंगे।।
Chapter यशायाह 8
1. फिर यहोवा ने मुझ से कहा, एक बड़ी पटिया लेकर उस पर साधारण अझरोंसे यह लिख: महेर्शालाल्हाशबज के लिथे।
2. और मैं विश्वासयोग्य पुरूषोंको अर्यात् ऊरिय्याह याजक और जेबेरेक्याह के पुत्र जकर्याह को इस बात की साझी करूंगा।
3. और मैं अपक्की पत्नी के पास गया, और वह गर्भवती हुई और उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। तब यहोवा ने मुझ से कहा, उसका नाम महेर्शालाल्हाशबज रख;
4. क्योंकि इस से पहिले कि वह लड़का बापू और माँ पुकारण जाने, दमिश्क और शोमरोन दोनोंकी धन-सम्पत्ति लूटकर अश्शूर का राजा अपके देश को भेजेगा।।
5. यहोवा ने फिर मुझ से दूसरी बार कहा,
6. इसलिथे कि लोग शीलोह के धीरे धीरे बहनेवाले सोते को निकम्मा जानते हैं, और रसीन और रमल्याह के पुत्र के संग एका करके आनन्द करते हैं,
7. इस कारण सुन, प्रभु उन पर उस प्रबल और गहिरे महानद को, अर्यात् अश्शूर के राजा को उसके सारे प्रताप के साय चढ़ा लाएगा; और वह उनके सब नालोंको भर देगा और सारे कड़ाड़ोंसे छलककर बहेगा;
8. और वह यहूदा पर भी चढ़ आएगा, और बढ़ते बढ़ते उस पर चढ़ेगा और गले तक पहुंचेगा; और हे इम्मानुएल, तेरा समस्त देश उसके पंखोंके फैलने से ढंप जाएगा।।
9. हे लोगों, हल्ला करो तो करो, परन्तु तुम्हारा सत्यानाश हो जाएगा। हे पृय्वी के दूर दूर देश के सब लोगोंकान लगाकर सुनो, अपक्की अपक्की कमर कसो तो कसो, परन्तु तुम्हारे टुकड़े टुकड़े किए जाएंगे; अपक्की कमर कसो तो कसो, परन्तु तुम्हारा सत्यानाश हो जाएगा।
10. तुम युक्ति करो तो करो, परन्तु वह निष्फल हो जाएगी, तुम कुछ भी कहो, परन्तु तुम्हारा कहा हुआ ठहरेगा नहीं, क्योंकि परमेश्वर हमारे संग है।।
11. क्योंकि यहोवा दृढ़ता के साय मुझ से बोला और इन लोगोंकी सी चाल चलने को मुझे मना किया,
12. और कहा, जिस बात को यह लोग राजद्रोह कहें, उसको तुम राजद्रोह न कहना, और जिस बात से वे डरते हैं उस से तुम न डरना और न भय खाना।
13. सेनाओं के यहोवा ही को पवित्र जानना; उसी का डर मानना, और उसी का भय रखना।
14. और वह शरणस्यान होगा, परन्तु इस्राएल के दोनो घरानोंके लिथे ठोकर का पत्यर और ठेस की चट्टान, और यरूशलेम के निवासियोंके लिथे फन्दा और जाल होगा।
15. और बहुत से लोग ठोकर खाएंगे; वे गिरेंगे और चकनाचूर होंगे; वे फन्दे में फसेंगे और पकड़े जाएंगे।
16. चितौनी का पत्र बन्द कर दो, मेरे चेलोंके बीच शिझा पर छाप लगा दो।
17. मैं उस यहोवा की बाट जोहता रहूंगा जो अपके मुंख को याकूब के घराने से छिपाथे है, और मैं उसी पर आशा लगाए रहूंगा।
18. देख, मैं और जो लड़के यहोवा ने मुझे सौंपे हैं, उसी सेनाओं के यहोवा की ओर से जो सिय्योन पर्वत पर निवास किए रहता है इस्राएलियोंके लिथे चिन्ह और चमत्कार हैं।
19. जब लोग तुम से कहें कि ओफाओं और टोन्होंके पास जाकर पूछो जो गुनगुनाते और फुसफुसाते हैं, तब तुम यह कहना कि क्या प्रजा को अपके परमेश्वर ही के पास जाकर न पूछना चाहिथे? क्या जीवतोंके लिथे मुर्दोंसे पूछना चाहिथे?
20. व्यवस्या और चितौनी ही की चर्चा किया करो! यदि वे लोग इस वचनोंके अनुसार न बोलें तो निश्चय उनके लिथे पौ न फटेगी
21. वे इस देश में क्लेशित और भूखे फिरते रहेंगे; और जब वे भूखे होंगे, तब वे क्रोध में आकर अपके राजा और अपके परमेश्वर को शाप देंगे, और अपना मुख ऊपर आकाश की ओर उठाएंगे;
22. तब वे पृय्वी की ओर दृष्टि करेंगे परन्तु उन्हें सकेती और अन्धिक्कारनेा अर्यात् संकट भरा अन्धकार ही देख पकेगा; और वे घोर अन्धकार में ढकेल दिए जाएंगे।।
Chapter यशायाह 9
1. तौभी संकट-भरा अन्धकार जाता रहेगा। पहिले तो उस ने जबूलून और नप्ताली के देशोंका अपमान किया, परन्तु अन्तिम दिनोंमें ताल की ओर यरदन के पार की अन्यजातियोंके गलील को महिमा देगा।
2. जो लोग अन्धिक्कारने में चल रहे थे उन्होंने बड़ा उजियाला देखा; और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी।
3. तू ने जाति को बढ़ाया, तू ने उसको बहुत आनन्द दिया; वे तेरे साम्हने कटनी के समय का सा आनन्द करते हैं, और ऐसे मगन हैं जैसे लोग लूट बांटने के समय मगन रहते हैं।
4. क्योंकि तू ने उसकी गर्दन पर के भारी जूए और उसके बहंगे के बांस, उस पर अंधेर करनेवाले की लाठी, इन सभोंको ऐसा तोड़ दिया है जेसे मिद्यानियोंके दिन में किया या।
5. क्योंकि युद्ध में लड़नेवाले सिपाहियोंके जूते और लोहू में लयड़े हुए कपके सब आग का कौर हो जाएंगे।
6. क्योंकि हमारे लिथे एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत युक्ति करनेवाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा।
7. उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शान्ति का अन्त न होगा, इसलिथे वि उसको दाऊद की राजगद्दीपर इस समय से लेकर सर्वदा के लिथे न्याय और धर्म के द्वारा स्यिर किए ओर संभाले रहेगा। सेनाओं के यहोवा की धुन के द्वारा यह हो जाएगा।।
8. प्रभु ने याकूब के पास एक संदेश भेजा है, और वह इस्राएल पर प्रगट हुआ है;
9. और सारी प्रजा को, एप्रैमियोंऔर शोमरोनवासिक्कों मालूम हो जाएगा जो गर्व और कठोरता से बोलते हैं: ईंटें तो गिर गई हैं,
10. परन्तु हम गढ़ें हुए पत्यरोंसे घर बनाएंगे; गूलर के वृझ तो कट गए हैं परन्तु हम उनकी सन्ती देवदारोंसे काम लेंगे।
11. इस कारण यहोवा उन पर रसीन के बैरियोंको प्रबल करेगा,
12. और उनके शत्रुओं को अर्यात् पहिले आराम को और तब पलिश्तियोंको उभारेगा, और वे मुंह खोलकर इस्राएलियोंको निगल लेंगे। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
13. तौभी थे लोग अपके मारनेवाले की ओर नहीं फिरे और न सेनाओं के यहोवा की खोज करते हैं।
14. इस कारण यहोवा इस्राएल में से सिर और पूंछ को, खजूर की डालियोंऔर सरकंडे को, एक ही दिन में काट डालेगा।
15. पुरनिया और प्रतिष्ठित पुरूष तो सिर हैं, और फूठी बातें सिखानेवाला नबी पूंछ है;
16. क्योंकि जो इन लोगोंकी अगुवाई करते हैं वे इनको भटका देते हैं, और जिनकी अगुवाई होती है वे नाश हो जाते हैं।
17. इस कारण प्रभु न तो इनके जवानोंसे प्रसन्न होगा, और न इनके अनाय बालकोंऔर विधवाओं पर दया करेगा; क्योंकि हर एक के मुख से मूर्खता की बातें निकलती हैं। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
18. क्योंकि दुष्टता आग की नाई धधकती है, वह ऊंटकटारोंऔर कांटोंको भस्म करती है, वरन वह घने वन की फाडिय़ोंमें आग लगाती है और वह धुंआ में चकरा चकराकर ऊपर की ओर उठती है।
19. सेनाओं के यहोवा के रोष के मारे यह देश जलाया गया है, और थे लोग आग की ईंधन के समान हैं; वे आपस में एक दूसरे से दया का व्यवहार नहीं करते।
20. वे दहिनी ओर से भोजनवस्तु छीनकर भी भूखे रहते, और बाथें ओर से खाकर भी तृप्त नहीं होते; उन में से प्रत्थेक मनुष्य अपक्की अपक्की बांहोंका मांस खाता है,
21. मनश्शे एप्रैम को और एप्रैम मनश्शे को खाता है, और वे दोनोंमिलकर यहूदा के विरूद्ध हैं इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ, और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
Chapter यशायाह 10
1. हाथ उन पर जो दुष्टता से न्याय करते, और उन पर जो उत्पात करने की आज्ञा लिख देते हैं,
2. कि वे कंगालोंका न्याय बिगाड़ें और मेरी प्रजा के दी लोगोंका हक मारें, कि वे विधवाओं को लूटें और अनायोंका माल अपना लें!
3. तुम दण्ड के दिन और उस आपत्ति के दिन जो दूर से आएगी क्या करोगे? तुम सहाथता के लिथे किसके पास भाग कर जाओगे? और तुम अपके विभव को कहां रख छोड़ोगे?
4. वे केवल बंधुओं के पैरोंके पास गिर पकेंगे और मरे हुओं के नीचे दबे पके रहेंगे। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।।
5. अश्शूर पर हाथ, जो मेरे क्रोध का लठ और मेरे हाथ में का सोंटा है! वह मेरा क्रोध है।
6. मैं उसको एक भक्तिहीन जाति के विरूद्ध भेजूंगा, और जिन लोगोंपर मेरा रोष भड़का है उनके विरूद्ध उसको आज्ञा दूंगा कि छीन छान करे और लूट ले, और उनको सड़कोंकी कीच के समान लताड़े।
7. परन्तु उसकी ऐसी मनसा न होगी, न उसके मन में यही है कि मैं बहुत सी जातियोंका नाश और अन्त कर डालूं।
8. कयोंकि वह कहता है, क्या मेरे सब हाकिम राजा के तुल्य नहीं है?
9. क्या कलनो कर्कमीश के समान नहीं है? क्या हमात अर्पद के और शोमरोन दमिश्क के समान नहीं?
10. जिस प्रकार मेरा हाथ मूरतोंसे भरे हुए उन राज्योंपर पहुंचा जिनकी मूरतें यरूशलेम और शोमरोन की मूरतोंसे बढ़कर यीं, और जिस प्रकार मैं ने शोमरोन और उसकी मूरतोंसे किया,
11. क्या उसी प्रकार मैं यरूशलेम से और उसकी मूरतोंसे भी न करूं?
12. इस कारण जब प्रभु सिय्योन पर्वत पर और यरूशलेम में अपना सब काम का चुकेगा, तब मैं अश्शूर के राजा के गर्व की बातोंका, और उसकी घमण्ड भरी आंखोंका पलटा दूंगा।
13. उस ने कहा है, अपके ही बाहुबल और बुद्धि से मैं ने यह काम किया है, क्योंकि मैं चतुर हूं; मैं ने देश देश के सिवानोंको हटा दिया, और उनके रखे हुए धन को लूअ लिया; मैं ने वीर की नाई गद्दी पर विराजनेहारोंको उतार दिया है।
14. देश देश के लोगोंकी धनसम्पत्ति, चिडिय़ोंके घोंसलोंकी नाईं, मेरे हाथ आई है, और जैसे कोई छोड़े हुए अण्डोंको बटोर ले वैसे ही मैं ने सारी पृय्वी को बटोर लिया है; और कोई पंख फड़फड़ाने वा चोंच खोलने वा चीं चीं करनेवाला न या।।
15. क्या कुल्हाड़ा उसक विरूद्ध जो उस से काटता हो डींग मारे, वा आरी उसके विरूद्ध जो उसे खींचता हो बड़ाई करे? क्या सोंटा अपके चलानेवाले को चलाए वा छड़ी उसे उठाए जो काठ नहीं है!
16. इस कारण प्रभु अर्यात् सेनाओं का प्रभु उस राजा के ह्रृष्टपुष्ट योद्धाओं को दुबला कर देगा, और उसके ऐश्वर्य के नीचे आग की सी जलन होगी।
17. इस्राएल की ज्योति तो आग ठहरेगी, और इस्राएल का पवित्र ज्वाला ठहरेगा; और वह उसके फाड़ फंखार को एक ही दीन में भस्म करेगा।
18. और जैसे रोगी के झीण हो जाने पर उसकी दशा होती है वैसी ही वह उसके वन और फलदाई बारी की शोभा पूरी रीति से नाश करेगा।
19. उस वन के वृझ इतने योड़े रह जाएंगे कि लड़का भी उनको गिन कर लिख लेगा।।
20. उस समय इस्राएल के बचे हुए लोग और याकूब के घराने के भागे हुए, अपके मारनेवाले पर फिर कभी भरोसा न रखेंगे, परन्तु यहोवा जो इस्राएल का पवित्र है, उसी पर वे सच्चाई से भरोसा रखेंगे।
21. याकूब में से बचे हुए लोग पराक्रमी परमेश्वर की ओर फिरेंगे।
22. क्योंकि हे इस्राएल, चाहे तेरे लोग समुद्र की बालू के किनकोंके समान भी बहुत हों, तौभी निश्चय है कि उन में से केवल बचे लोग भी लौटेंगे। सत्यानाश तो पूरे न्याय के साय ठाना गया है।
23. क्योंकि प्रभु सेनाओं के यहोवा ने सारे देश का सत्यानाश कर देना ठाना है।।
24. इसलिथे प्रभु सेनाओं का यहोवा योंकहता है, हे सिय्योन में रहनेवालोंमेरी प्रजा, अश्शूर से मत डर; चाहे वह सोंटें से तुझे मारे और मिस्र की नाई तेरे ऊपर छड़ी उठाएं।
25. क्योंकि अब योड़ी ही देर है कि मेरी जलन और क्रोध उनका सत्यानाश करके शान्त होगा
26. और सेनाओं का यहोवा उसके विरूद्ध कोड़ा उठाकर उसको ऐसा मारेगा जैसा उस ने ओरेब नाम चट्टान पर मिद्यानियोंको मारा या; और जेया उस ने मिस्रियोंके विरूद्ध समुद्र पर लाठी बढ़ाई, वैसा ही उसकी ओर भी बढ़ाएगा।
27. उस समय ऐसा होगा कि उसका बोफ तेरे कंधे पर से और उसका जूआ तेरी गर्दन पर से उठा लिया जाएगा, और अभिषेक के कारण वह जूआ तोड़ डाला जाएगा।।
28. वह अय्यात् में आया है, और मिग्रोन में से होकर आगे बढ़ गया है; मिकमाश में उस ने अपना सामान रखा है।
29. वे घाटी से पार हो गए, उन्होंने गेबा में रात काटी; रामा यरयरा उठा है, शाऊल का गिबा भाग निकला है।
30. हे गल्लीम की बेटी चिल्ला! हे लैशा के लागोंकान लगाओ! हाथ बेचारा अनातोत!
31. मदमेना मारा मारा फिरता है, गेबीम के निवासी भागने के लिथे अपना अपना समान इकट्टा कर रहे हैं।
32. आज ही के दिन वह नोब में टिकेगा; तब वह सिय्योन पहाड़ पर, और यरूशलेम की पहाड़ी पर हाथ उठाकर घमाकएगा।
33. देखो, प्रभु सेनाओं का यहोवा पेड़ोंको भयानक रूप से छांट डालेगा; ऊँचे ऊँचे वृझ काटे जाएंगे, और जो ऊँचे हैं सो नीचे किए जाएंगे।
34. वह घने वन को लोहे से काट डालेगा और लबानोन एक प्रतापी के हाथ से नाश किया जाएगा।।
Chapter यशायाह 11
1. तब यिशै के ठूंठ में से एक डाली फूट निकलेगी और उसकी जड़ में से एक शाखा निकलकर फलवन्त होगी।
2. और यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी।
3. ओर उसको यहोवा का भय सुगन्ध सा भाएगा।। वह मुंह देखा न्याय न करेगा और न अपके कानोंके सुनने के अनुसार निर्णय करेगा;
4. परन्तु वह कंगालोंका न्याय धर्म से, और पृय्वी के नम्र लोगोंका निर्णय खाराई से करेगा; और वह पृय्वी को अपके वचन के सोंटे से मारेगा, और अपके फूंक के फोंके से दुष्ट को मिटा डालेगा।
5. उसकी कटि का फेंटा धर्म और उसकी कमर का फेंटा सच्चाई होगी।।
6. तब भेडिय़ा भेड़ के बच्चे के संग रहा करेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साय बैठा रहेगा, और बछड़ा और जवान सिंह और पाला पोसा हुआ बैल तीनोंइकट्ठे रहेंगे, और एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा।
7. गाय और रीछनी मिलकर चरेंगी, और उनके बच्चे इकट्ठे बैठेंगे; और सिंह बैल की नाईं भूसा खाया करेगा।
8. दूधपिउवा बच्चा करैत के बिल पर खेलेगा, और दूध छुड़ाया हुआ लड़का नाग के बिल में हाथ डालेगा।
9. मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दु:ख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृय्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।।
10. उस समय यिशै की जड़ देश देश के लोगोंके लिथे एक फण्ड़ा होगी; सब राज्योंके लोग उसे ढूंढ़ेंगें, और उसका विश्रमस्यान तेजोमय होगा।।
11. उस समय प्रभु अपना हाथ दूसरी बार बढ़ाकर बचे हुओं को, जो उसकी प्रजा के रह गए हैं, अश्शूर से, मिस्र से, पत्रोस से, कूश से, एलाम से, शिनार से, हमात से, और समुद्र के द्वीपोंसे मोल लेकर छुड़ाएगा।
12. वह अन्यजातियोंके लिथे फण्ड़ा खड़ा करके इस्राएल के सब निकाले हुओं को, और यहूदा के सब बिखरे हुओं को पृय्वी की चारोंदिशाओं से इकट्ठा करेगा।
13. एप्रैम फिर डाह न करेगा और यहूदा के तंग करनेवाले काट डाले जाएंगे; न तो एप्रैम यहूदा से डाह करेगा और न यहूदा एप्रैम को तंग करेगा।
14. परन्तु वे पश्चिम की ओर पलिश्तियोंके कंधे पर फपट्टा मारेंगे, और मिलकर पूविर्योंको लूटेंगे। वे एदोम और मोआब पर हाथ बढ़ाएंगे, और अम्मोनी उनके अधीन हो जाएंगे।
15. और यहोवा मिस्र के समुद्र की खाड़ी को सुखा डालेगा, और महानद पर अपना हाथ बढ़ाकर प्रचण्ड लू से ऐसा सुखाएगा कि वह सात धार हो जाएगा, और लोग लूता पहिने हुए भी पार हो जाएंगे।
16. और उसकी प्रजा के बचे हुओं के लिथे अश्शूर से एक ऐसा राज-मार्ग होगा जैसा मिस्र देश से चले आने के समय इस्राएल के लिथे हुआ या।।
Chapter यशायाह 12
1. उस दिन तू कहेगा, हे यहोवा, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, क्योंकि यद्यिप तू मुझ पर क्रोधित हुआ या, परन्तु अब तेरा क्रोध शान्त हुआ, और तू ने मुझे शान्ति दी है।।
2. परमेश्वर मेरा उद्धार है, मैं भरोसा रखूंगा और न यरयराऊंगा; क्योंकि प्रभु यहोवा मेरा बल और मेरे भजन का विषय है, और वह मेरा उद्धारकर्ता हो गया है।।
3. तुम आनन्दपूर्वक उद्धार के सोतोंसे जल भरोगे।
4. और उस दिन तुम कहोगे, यहोवा की स्तुति करो, उस से प्रार्यना करो; सब जातियोंमें उसके बड़े कामोंका प्रचार करो, और कहो कि उसका नाम महान है।।
5. यहोवा का भजन गाओ, क्योंकि उस ने प्रतापमय काम किए हैं, इसे सारी पृय्वी पर प्रगट करो।
6. हे सिय्योन में बसनेवाली तू जयजयकार कर और ऊंचे स्वर से गा, क्योंकि इस्राएल का पवित्र तुझ में महान है।।
Chapter यशायाह 13
1. बाबुल के विषय की भारी भविष्यवाणी जिसको आमोस के पुत्र यशायाह ने दर्शन में पाया।
2. मुंड़े पहाड़ पर एक फंडा खड़ा करो, हाथ से सैन करो और और उन से ऊंचे स्वर से पुकारो कि वे सरदारोंके फाटकोंमें प्रवेश करें।
3. मैं ने स्वयं अपके पवित्र किए हुओं को आज्ञा दी है, मैं ने अपके क्रोध के लिथे अपके वीरोंको बुलाया है जो मेरे प्रताप के कारण प्रसन्न हैं।।
4. पहाड़ोंपर एक बड़ी भीड़ का सा कोलाहल हो रहा है, मानो एक बड़ी फौज की हलचल हों। राज्य राजय की इकट्ठी की हुई जातियां हलचल मचा रही हैं। सेनाओं का यहोवा युद्ध के लिथे अपक्की सेना इकट्ठी कर रहा है।
5. वे दूर देश से, आकाश के छोर से आए हैं, हाँ, यहोवा अपके क्रोध के हयियारोंसमेत सारे देश को नाश करने के लिथे आया है।।
6. हाथ-हाथ करो, क्योंकि यहोवा का दिन समीप है; वह सर्वशक्तिमान् की ओर से मानो सत्यानाश करने के लिथे आता है।
7. इस कारण सब के हाथ ढ़ीले पकेंगे, और हर एक मनुष्य का ह्रृदय पिघल जाएगा,
8. और वे घबरा जाएगें। उनको पीड़ा और शोक होगा; उनको जच्चा की सी पीड़ाएं उठेंगी। वे चकित होकर एक दूसरे को ताकेंगे; उनके मुंह जल जाथेंगे।।
9. देखो, यहोवा का वह दिन रोष और क्रोध और निर्दयता के साय आता है कि वह पृय्वी को उजाड़ डाले और पापियोंको उस में से नाश करे।
10. क्योंकि आकाश के तारागण और बड़े बड़े नझत्र अपना प्रकाश न देंगे, और सूर्य उदय होते होते अन्धेरा हो जाएगा, और चन्द्रमा अपना प्रकाश न देगा।
11. मैं जगत के लोगोंको उनकी बुराई के कारण, और दुष्टोंको उनके अधर्म का दण्ड दूंगा; मैं अभिमानियोंके अभिमान को नाश करूंगाए और उपद्रव करनेवालोंके घमण्ड को तोडूंगा।
12. मैं मनुष्य को कुन्दन से, और आदमी को ओपीर के सोने से भी अधिक महंगा करूंगा।
13. इसलिथे मैं आकाश को कंपाऊंगा, और पृय्वी अपके स्यान से टल जाएगी; यह सेनाओं के यहोवा के रोष के कारण और उसके भड़के हुए क्रोध के दिन होगा।
14. और वे खदेड़े हुए हरिण, वा बिन चरवाहे की भेड़ोंकी नाईं अपके अपके लोगोंकी ओर फिरेंगे, और अपके अपके देश को भाग जाएंगे।
15. जो कोई मिले सो बेधा जाएगा, और जो कोई पकड़ा जाए, वह तलवार से मार डाला जाएगा।
16. उनके बाल-बच्चे उनके साम्हने पटक दिए जाएंगे; और उनके घर लूटे जाएंगे, और उनकी स्त्रियां भ्रष्ट की जाएंगी।।
17. देखो, मैं उनके विरूद्ध मादी लोगोंको उभारूंगा जो न तो चान्दी का कुछ विचार करेंगे और न सोने का लालच करेंगे।
18. वे तीरोंसे जवानोंको मारेंगे, और बच्चोंपर कुछ दया न करेंगे, वे लड़कोंपर कुछ तरस न खाएंगे।
19. और बाबुल जो सब राज्योंका शिरोमणि है, और जिसकी शोभा पर कसदी लोग फूलते हैं, वह ऐसा हो जाएगा जैसे सदोम और अमोरा, जब परमेश्वर ने उन्हें उलट दिया या।
20. वह फिर कभी न बसेगा और युग युग उस में कोई वास न करेगा; अरबी लोग भी उस में डेरा खड़ा न करेंगे, और न चरवाहे उस में अपके पशु बैठाएंगे।
21. वहां जंगली जन्तु बैठेंगे, और उल्लू उनके घरोंमें भरे रहेंगे; वहां शुतुर्मुर्ग बसेंगे, और छगलमानस वहां नाचेंगे। उस नगर के राज-भवनोंमें हुंडार,
22. और उसके सुख-विलास के मन्दिरोंमें गीदड़ बोला करेंगे; उसके नाश होने का समय निकट आ गया है, और उसके दिन अब बहुत नहीं रहे।।
Chapter यशायाह 14
1. यहोवा याकूब पर दया करेगा, और इस्राएल को फिर अपनाकर, उन्हीं के देश में बसाएगा, और परदेशी उन से मिल जाएंगे और अपके अपके को याकूब के घराने से मिला लेंगे।
2. और देश देश के लोग उनको उन्हीं के स्यान में पहुंचाएंगे, और इस्राएल का घराना यहोवा की भूमि पर उनका अधिक्कारनेी होकर उनको दास और दासियां बनाएगा; क्योंकि वे अपके बंधुवाई में ले जानेवालोंको बंधुआ करेंगे, और जो उन पर अत्याचार करते थे उन पर वे शासन करेंगे।।
3. और जिस दिन यहोवा तुझे तेरे सन्ताप और घबराहट से, और उस कठिन श्र्म से जो तुझ से लिया गया विश्रम देगा,
4. उस दिन तू बाबुल के राजा पर ताना मारकर कहेगा कि परिश्र्म करानेवाला कैसा नाश हो गया है, सुनहले मन्दिरोंसे भरी नगरी कैसी नाश हो गई है!
5. यहोवा ने दुष्टोंके सोंटे को और अन्याय से शासन करनेवालोंके लठ को तोड़ दिया है,
6. जिस से वे मनुष्योंको लगातार रोष से मारते रहते थे, और जाति जाति पर क्रोध से प्रभुता करते और लगातार उनके पीछे पके रहते थे।
7. अब सारी पृय्वी को विश्रम मिला है, वह चैन से है; लोग ऊंचे स्वर से गा उठे हैं।
8. सनौवर और लबानोन के देवदार भी तुझ पर आनन्द करके कहते हैं, जब से तू गिराया गया तब से कोई हमें काटने को नहीं आया।
9. पाताल के नीचे अधोलो में तुझ से मिलने के लिथे हलचल हो रही है; वह तेरे लिथे मुर्दोंको अर्यात्पृय्वी के सब सरदारोंको जगाता है, और वह जाति जाति से सब राजाओं को उनके सिंहासन पर से उठा खड़ा करता है।
10. वे सब तुझ से कहेंगे, क्या तू भी हमारी नाई निर्बल हो गया है? क्या तू हमारे समान ही बन गया?
11. तेरा विभव और तेरी सारंगियोंको शब्द अधोलोक में उतारा गया है; कीड़े तेरा बिछौना और केचुए तेरा ओढ़ना हैं।।
12. हे भोर के चमकनेवाले तारे तू क्योंकर आकाश से गिर पड़ा है? तू जो जाति जाति को हरा देता या, तू अब कैसे काटकर भूमि पर गिराया गया है?
13. तू मन में कहता तो या कि मैं स्वर्ग पर चढूंगा; मैं अपके सिंहासन को ईश्वर के तारागण से अधिक ऊंचा करूंगा; और उत्तर दिशा की छोर पर सभा के पर्वत पर बिराजूंगा;
14. मैं मेघोंसे भी ऊंचे ऊंचे स्यानोंके ऊपर चढूंगा, मैं परमप्रधान के तुल्य हो जाऊंगा।
15. परन्तु तू अधोलोक में उस गड़हे की तह तक उतारा जाएगा।
16. जो तुझे देखेंगे तुझ को ताकते हुए तेरे विषय में सोच सोचकर कहेंगे, क्या यह वही पुरूष है जो पृय्वी को चैन से रहने न देता या और राज्य राज्य में घबराहट डज्ञल देता या;
17. जो जगत को जंगल बनाता और उसके नगरोंको ढा देता या, और अपके बंधुओं को घर जाने नहीं देता या?
18. जाति जाति के सब राजा अपके अपके घर पर महिमा के साय आराम से पके हैं;
19. परन्तु तू निकम्मी शाख की नाईं अपक्की कबर में से फेंका गया; तू उन मारे हुओं की लोयोंसे घिरा है जो तलवार से बिधकर गड़हे में पत्यरोंके बीच में लताड़ी हुई लोय के समान पके है।
20. तू उनके साय कब्र में न गाड़ा जाएगा, क्योंकि तू ने अपके देश को उजाड़ दिया, और अपक्की प्रजा का घात किया है। कुकमिर्योंके वंश का नाम भी कभी न लिया जाएगा।
21. उनके पूर्वजोंके अधर्म के कारण पुत्रोंके घात की तैयारी करो, ऐसा न हो कि वे फिर उठकर पृय्वी के अधिक्कारनेी हो जाएं, और जगत में बहुत से नगर बसाएं।।
22. सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है कि मैं उनके विरूद्ध उठूंगा, और बाबुल का नाम और निशान मिटा डालूंगा, और बेटों-पोतोंको काट डालूंगा, यहोवा की यही वाणी है।
23. मैं उसको साही की मान्द और जल की फीलें कर दूंगा, और मैं उसे सत्यानाश के फाडू से फाड़ डालूंगा, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।।
24. सेनाओं के यहोवा ने यह शपय खाई है, नि:सन्देह जैसा मैं ने ठाना है, वैसा ही हो जाएगा, और जैसी मैं ने युक्ति की है, वैसी ही पूरी होगी,
25. कि मैं अश्शूर को अपके ही देश में तोड़ दूंगा, और अपके पहाड़ोंपर उसे कुचल डालूंगा; तब उसका जूआ उनकी गर्दनोंपर से और उसका बोफ उनके कंधोंपर से उतर जाएगा।
26. यही युक्ति सारी पृय्वी के लिथे ठहराई गई है; और यह वही हाथ है जो सब जातियोंपर बढ़ा हुआ है।
27. क्योंकि सेनाओं के यहोवा ने युक्ति की है और कौन उसका टाल सकता है? उसका हाथ बढ़ाया गया है, उसे कौन रोक सकता है?
28. जिस वर्ष में आहाज राजा मर गया उसी वर्ष यह भारी भविष्यद्वाणी हुई:
29. हे सारे पलिश्तीन तू इसलिथे आनन्द न कर, कि तेरे मारनेवाले की लाठी टूट गई, क्योंकि सर्प की जड़ से एक काला नाग उत्पन्न होगा, और उसका फल एक उड़नेवाला और तेज विषवाला अग्निसर्प होगा।
30. तब कंगालोंके जेठे खाएंगे और दरिद्र लोग निडर बैठने पाएंगे, परन्तु मैं तेरे वंश को भूख से मार डालूंगा, और तेरे बचे हुए लोग घात किए जाएंगे।
31. हे फाटक, तू हाथ हाथ कर; हे नगर, तू चिल्ला; हे पलिश्तीन तू सब का सब पिघल जा! क्योंकि उत्तर से एक धूआं उठेगा और उसकी सेना में से कोई पीछे न रहेगा।।
32. तब अन्यजातियोंके दूतोंको क्या उत्तर दिया जाएगा? यह कि यहोवा ने सिय्योन की नेव डाली है, और उसकी प्रजा के दीन लोग उस में शरण लेंगे।।
Chapter यशायाह 15
1. मोआब के विषय भारी भविष्यद्वाणी। निश्चय मोआब का आर नगर एक ही रात में उजाड़ और नाश हो गया है; निश्चय मोआब का कीर नगर एक ही रात में उजाड़ और नाश हो गया है।
2. बैत और दीबोन ऊंचे स्यानोंपर रोने के लिथे चढ़ गए हैं; नबो और मेदबा के ऊपर मोआब हाथ हाथ करता है। उन सभोंके सिर मुड़े हुए, और सभोंकी दाढिय़ां मुंढ़ी हुई हैं;
3. सड़कोंमें लोग टाट पहिने हैं; छतोंपर और चौकोंमें सब कोई आंसू बहाते हुए हाथ हाथ करते हैं।
4. हेशबोन और एलाले चिल्ला रहे हैं, उनका शब्द यहस तक सुनाई पड़ता है; इस कारण मोआब के हयियारबन्द चिल्ला रहे हैं; उसका जी अति उदास है।
5. मेरा मन मोआब के लिथे दोहाई देता है; उसके रईस सोअर और एग्लतशलीशिय्या तक भागे जाते हैं। देखो, लूहीत की चढ़ाई पर वे रोते हुए चढ़ रहे हैं; सुनो, होरीनैम के मार्ग में वे नाश होने की चिल्लाहट मचा रहे हैं।
6. निम्रीम का जल सूख गया; घास कुम्हला गई और हरियाली मुर्फा गई, और नमी कुछ भी नहीं रही।
7. इसलिथे जो धन उन्होंने बचा रखा, और जो कुद उन्होंने इकट्ठा किया है, उस सब को वे उस नाले के पार लिथे जा रहे हैं जिस में मजनूवृझ हैं।
8. इस कारण मोआब के चारोंओर के सिवाने में चिल्लाहट हो रही है, उस में का हाहाकार एगलैम और बेरेलीम में भी सुन पड़ता है।
9. क्योंकि दीमोन का सोता लोहू से भरा हुआ है; तौभी मैं दीमोन पर और दु:ख डालूंगा, मैं बचे हुए मोआबियोंऔर उनके देश से भागे हुओं के विरूद्ध सिंह भेजूंगा।।
Chapter यशायाह 16
1. जंगल की ओर से सेला नगर से सिय्योन की बेटी के पर्वत पर देश के हाकिम के लिथे भेड़ोंके बच्चोंको भेजो।
2. मोआब की बेटियां अर्नोन के घाट पर उजाड़े हुए बच्चोंके समान हैं।
3. सम्मति करो, न्याय चुकाओ; दोपहर ही में अपक्की छाया को रात के समान करो; घर से निकाले हुओं को छिपा रखो, जो मारे मारे फिरते हैं उनको मत पकड़वाओ।
4. मेरे लोग जो निकाले हुए हैं वे तेरे बीच में रहें; नाश करनेवाले से मोआब को बचाओ। पीसनेवाला नहीं रहा, लूट पाट फिर न होगी; क्योंकि देश में से अन्धेर करनेवाले नाश हो गए हैं।
5. तब दया के साय एक सिंहासन स्यिर किया जाएगा और उस पर दाऊद के तम्बू में सच्चाई के साय एक विराजमान होगा जो सोच विचार कर सच्चा न्याय करेगा और धर्म के काम पर तत्पर रहेगा।।
6. हम ने मोआब के गर्व के विषय सुना है कि वह अत्यन्त अभिमानी या; उसके अभिमान और गर्व और रोष के सम्बन्ध में भी सुना है परन्तु उसका बड़ा बोल व्यर्य है।
7. क्योंकि मोआब हाथ हाथ करेगा; सब के सब मोआब के लिथे हाहाकार करेंगे। कीरहरासत की दाख की टिकियोंके लिथे वे अति निराश होकर लम्बी लम्बी सांस लिया करेंगे।।
8. क्योंकि हेशबोन के खेत और सिबमा की दाख लताएं मुर्फा गईं; अन्यजातियोंके अधिक्कारनेियोंने उनकी उत्तम उत्तम लताओं को काट काटकर गिरा दिया है, थे याजेर तक पहुंची और जंगल में भी फैलती गईं; और बढ़ते बढ़ते ताल के पार दूर तक बढ़ गई यीं।
9. मैं याजेर के साय सिबमा की दाखलताओं के लिथे भी रोऊंगा; हे हेशबोन और एलाले, मैं तुम्हें अपके आंसुओं से सींचूंगा; क्योंकि तुम्हारे धूपकाल के फलोंके और अनाज की कटनी के समय की ललकार सुनाई पक्की है।
10. और फलदाई बारियोंमें से आनन्द और मगनता जाती रही; दाख की बारियोंमें गीत न गाया जाएगा, न हर्ष का शब्द सुनाई देगा; और दाखरस के कुण्डोंमें कोई दाख न रौंदेगा, क्योंकि मैं उनके हर्ष के शब्द को बन्द करूंगा।
11. इसलिथे मेरा मन मोआब के कारण और मेरा ह्रृदय कीरहैरेस के कारण वीणा का सा क्रन्दन करता है।।
12. और जब मोआब ऊंचे स्यान पर मुंह दिखाते दिखाते यक जाए, और प्रार्यना करने को अपके पवित्र स्यान में आए, तो उसे कुछ लाभ न होगा।
13. यही वह बात है जो यहोवा ने इस से पहिले मोआब के विषय में कही यी।
14. परन्तु अब यहोवा ने योंकहा है कि मजदूरोंके वर्षोंके समान ती वर्ष के भीतर मोआब का विभव और उसकी भीड़-भाड़ सब तुच्छ ठहरेगी; और योड़े जो बचेंगे उनका कोई बल न होगा।।
Chapter यशायाह 17
1. दमिश्क के विषय भारी भविष्यवाणी। देखो, दमिश्क नगर न रहेगा, वह खंडहर ही खंडहर हो जाएगा।
2. अरोएर के नगर निर्जन हो जाएंगे, वे पशुओं के फुण्ड़ोंकी चराई बनेंगे; पशु उन में बैठेंगे और उनका कोई भगानेवाला न होगा।
3. एप्रैम के गढ़वाले नगर, और दमिश्क का राज्य और बचे हुए अरामी, तीनोंभविष्य में न रहेंगे; और जो दशा इस्राएलियोंके विभव की हुई वही उनकी होगी; सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।।
4. और उस समय याकूब का विभव घट जाएगा, और उसकी मोटी देह दुबली हो जाएगी।
5. और ऐसा होगा जैसा लवनेवाला अनाज काटकर बालोंको अपक्की अंकवार में समेटे वा रपाईम नाम तराई में कोई सिला बीनता हो।
6. तौभी जैसे जलपाई वृझ के फाड़ते समय कुछ फल रह जाते हैं, अर्यात् फुनगी पर दो-तीन फल, और फलवन्त डालियोंमें कहीं कहीं चार-पांच फल रह जाते हैं, वैसे ही उन में सिला बिनाई होगी, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।।
7. उस समय मनुष्य अपके कर्ता की ओर दृष्टि करेगा, और उसकी आंखें इस्राएल के पवित्र की ओर लगी रहेंगी;
8. वह अपक्की बनाई हुई वेदियोंकी ओर दृष्टि न करेगा, और न अपक्की बनाई हुई अशेरा नाम मूरतोंवा सूर्य की प्रतिमाओं की ओर देखेगा।
9. उस समय उनके गढ़वाले नगर घने वन, और उनके निर्जन स्यान पहाड़ोंकी चोटियोंके समान होंगे जो इस्राएलियोंके डर के मारे छोड़ दिए गए थे, और वे उजाड़ पके रहेंगे।।
10. क्योंकि तू अपके उद्धारकर्ता परमेश्वर को भूल गया और अपक्की दृढ़ चट्टान का स्मरण नहीं रखा; इस कारण चाहे तू मनभावने पौधे लगाथे और विदेशी कलम जमाथे,
11. चाहे रोपके के दिन तू अपके चारोंऔर बाड़ा बान्धे, और बिहान ही को उन में फूल खिलने लगें, तौभी सन्ताप और असाध्य दु:ख के दिन उसका फल नाश हो जाथेगा।।
12. हाथ, हाथ! देश देश के बहुत से लोगोंका कैसा नाद हो रहा है, वे समुद्र की लहरोंकी नाईं गरजते हैं। राज्य राज्य के लोगोंका कैसा गर्जन हो रहा है, वे प्रचण्ड धारा के समान नाद करते हैं!
13. राज्य राज्य के लोग बाढ़ के बहुत से जल की नाई नाद करते हैं, परन्तु वह उनको घुड़केगा, और वे दूर भाग जाएंगे, और ऐसे उड़ाए जाएंगे जैसे पहाड़ोंपर की भूसी वायु से, और धूलि बवण्डर से घुमाकर उड़ाई जाती है।
14. सांफ को, देखो, घबराहट है! और भोर से पहिले, वे लोप हो गथे हैं! हमारे नाश करनेवालोंको भाग और हमारे लूटनेवाले की यही दशा होगी।।
Chapter यशायाह 18
1. हाथ, पंखोंकी फड़फड़ाहट से भरे हुए देश, तू जो कूश की नदियोंके पके है;
2. और समुद्र पर दूतोंको नरकट की नावोंमें बैठाकर जल के मार्ग से यह कहके भेजता है, हे फुर्तीले दूतो, उस जाति के पास जाओ जिसके लोग बलिष्ट और सुन्दर हैं, जो आदि से अब तक डरावने हैं, जो मापके और रौंदनेवाला भी हैं, और जिनका देश नदियोंसे विभाजित किया हुआ है।।
3. हे जगत के सब रहनेवालों, और पृय्वी के सब निवासियों, जब फंड़ा पहाड़ोंपर खड़ा किया जाए, उसे देखो! जब नरसिंगा फूंका जाए, तब सुनो!
4. क्योंकि यहोवा ने मुझ से योंकहा है, धूप की तेज गर्मी वा कटनी के समय के ओसवाले बादल की नाईं मैं शान्त होकर निहारूंगा।
5. क्योंकि दाख तोड़ने के समय से पहिले जब फूल फूल चुकें, और दाख के गुच्छे पकने लगें, तब वह टहनियोंको हंसुओं से काट डालेगा, और फैली हुई डालियोंको तोड़ तोड़कर अलग फेंक देगा।
6. वे पहाड़ोंके मांसाहारी पझियोंऔर वन-पशुओं के लिथे इकट्ठे पके रहेंगे। और मांसाहारी पक्की तो उनको नोचते नोचते धूपकाल बिताएंगे, और सब भांति के वनपशु उनको खाते खाते जाड़ा काटेंगे।
7. उस समय जिस जाति के लोग बलिष्ट और सुन्दर हैं, और जो आदि ही से डरावने होते आए हैं, और मापके और रौंदनेवाले हैं, और जिनका देश नदियोंसे विभाजित किया हुआ है, उस जाति से सेनाओं के यहोवा के नाम के स्यान सिय्योन पर्वत पर सेनाओं के यहोवा के पास भेंट पहुंचाई जाएगी।।
Chapter यशायाह 19
1. मिस्र के विषय में भारी भविष्यवाणी। देखो, यहोवा शीघ्र उड़नेवाले बादल पर सवार होकर मिस्र में आ रहा है;
2. और मिस्र की मूरतें उसके आने से यरयरा उठेंगी, और मिस्रियोंका ह्रृदय पानी-पानी हो जाएगा। और मैं मिस्रियोंको एक दूसरे के विरूद्ध उभारूंगा, और वे आपस में लड़ेंगे, प्रत्थेक अपके भाई से और हर एक अपके पड़ोसी से लड़ेगा, नगर नगर में और राज्य राज्य में युद्ध छिड़ेंगा;
3. और मिस्रियोंकी बुद्धि मारी जाएगी और मैं उनकी युक्तियोंको व्यर्य कर दूंगा; और वे अपक्की मूरतोंके पास और ओफोंऔर फुसफुसानेवाले टोन्होंके पास जा जाकर उन से पूछेंगे;
4. परन्तु मैं मिस्रियोंको एक कठोर स्वामी के हाथ में कर दूंगा; और एक क्रूर राजा उन पर प्रभुता करेगा, प्रभु सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।।
5. और समुद्र का जल सूख जाएगा, और महानदी सूख कर खाली हो जाएगी;
6. और नाले बसाने लगेंगे, और मिस्र की नहरें भी सूख जाएंगी, और नरकट और हूगले कुम्हला जाएंगे।
7. नील नदी के तीर पर के कछार की घास, और जो कुछ नील नदी के पास बोया जाएगा वह सूखकर नष्ट हो जाएगा, और उसका पता तक न लगेगा।
8. सब मछुवे जितने नील नदी में बंसी डालते हैं विलाप करेंगे और लम्बी लम्बी सासें लेंगे, और जो जल के ऊपर जाल फेंकते हैं वे निर्बल हो जाएंगे।
9. फिर जो लोग धुने हुए सन से काम करते हैं और जो सूत से बुनते हैं उनकी आशा टूट जाएगी।
10. मिस्र के रईस तो निराश और उसके सब मजदूर उदास हो जाएंगे।।
11. निश्चय सोअन के सब हाकिम मूर्ख हैं; और फिरौन के बुद्धिमान मन्त्रियोंकी युक्ति पशु की सी ठहरी। फिर तुम फिरौन से कैसे कह सकते हो कि मैं बुद्धिमानोंका पुत्र और प्राचीन राजाओं की सन्तान हूं?
12. अब तेरे बुद्धिमान कहां है? सेनाओं के यहोवा ने मिस्र के विषय जो युक्ति की है, उसको यदि वे जानते होंतो तुझे बताएं।
13. सोअन के हाकिम मूढ़ बन गए हैं, नोप के हाकिमोंने धोखा खाया है; और जिन पर मिस्र के गोत्रोंके प्रधान लोगोंका भरोसा या उन्होंने मिस्र को भरमा दिया है।
14. यहोवा ने उस में भ्रमता उत्पन्न की है; उन्होंने मिस्र को उसके सारे कामोंमें वमन करते हुए मतवाले की नाई डगमगा दिया है।
15. और मिस्र के लिथे कोई ऐसा काम न रहेगा जो सिर वा पूंछ से अयवा प्रधान वा साधारण से हो सके।।
16. उस समय मिस्री, स्त्रियोंके समान हो जाएंगे, और सेनाओं का यहोवा जो अपना हाथ उन पर बढ़ाएगा उसके डर के मारे वे यरयराएंगे और कांप उठेंगे।
17. ओर यहूदा का देश मिस्र के लिथे यहां तक भय का कारण होगा कि जो कोई उसकी चर्चा सुनेगा वह यरयरा उठेगा; सेनाओं के यहोवा की उस युक्ति का यही फल होगा जो वह मिस्र के विरूद्ध करता है।।
18. उस समय मिस्र देश में पांच नगर होंगे जिनके लोग कनान की भाषा बोलेंगे और यहोवा की शपय खाथेंगे। उन में से एक का नाम नाशनगर रखा जाएगा।।
19. उस समय मिस्र देश के बीच में यहोवा के लिथे एक वेदी होगी, और उसके सिवाने के पास यहोवा के लिथे एक खंभा खड़ा होगा।
20. वह मिस्र देश में सेनाओं के यहोवा के लिथे चिन्ह और साझी ठहरेगा; और जब वे अंधेर करनेवाले के कारण यहोवा की दोहाई देंगे, तब वह उनके पास एक उद्धारकर्ता और रझक भेजेगा, और उन्हें मुक्त करेगा।
21. तब यहोवा अपके आप को मिस्रियोंपर प्रगट करेगा; और मिस्री उस समय यहोवा को पहिचानेंगे और मेलबलि और अन्नबलि चढ़ाकर उसकी उपासना करेंगे, और यहोवा के लिथे मन्नत मानकर पूरी भी करेंगे।
22. और यहोवा मिस्रियोंको मारेगा, और मारेगा और चंगा भी करेगा, और वे यहोवा की ओर फिरेंगे और वह उनकी बिनती सुनकर उनको चंगा करेगा।।
23. उस समय मिस्र से अश्शूर जाने का एक राजमार्ग होगा, और अश्शूरी मिस्र में आएंगे और मिस्री लोग अश्शूर को जाएंगे, और मिस्री अश्शूरियोंके संग मिलकर आराधना करेंगे।।
24. उस समय इस्राएल, मिस्र और अश्शूर तीनोंमिलकर पृय्वी के लिथे आशीष का कारण होंगे।
25. क्योंकि सेनाओं का यहोवा उन तीनोंको यह कहकर आशीष देगा, धन्य हो मेरी प्रजा मिस्र, और मेरा रख हुआ अश्शूर, और मेरा निज भाग इस्राएल।।
Chapter यशायाह 20
1. जिस वर्ष में अश्शूर के राजा सर्गोन की आज्ञा से तर्तान ने अशदोद आकर उस से युद्ध किया और उसको ले भी लिया,
2. उसी वर्ष यहोवा ने आमोस के पुत्र यशायाह से कहा, जाकर अपक्की कमर का टाट खोल और अपक्की जूतियां उतार; सो उस ने वैसा ही किया, और वह नंगा और नंगे पांव घूमता फिरता या।
3. और यहोवा ने कहा, जिस प्रकार मेरा दास यशायाह तीन वर्ष से उघाड़ा और नंगे पांव चलता आया है, कि मिस्र और कूश के लिथे चिन्ह और चमत्कार हो,
4. उसी प्रकार अश्शूर का राजा मिस्री और कूश के लोगोंको बंधुआ करके देश-निकाल करेगा, क्या लड़के क्या बूढ़े, सभोंको बंधुए करके उघाड़े और नंगे पांव और नितम्ब खुले ले जाएगा, जिस से मिस्र लज्जित हो।
5. तब वे कूश के कारण जिस पर उनकी आशा यी, और मिस्र के हेतु जिस पर वे फूलते थे व्याकुल और लज्जित हो जाएंगे।
6. और समुद्र के इस पार के बसनेवाले उस समय यह कहेंगे, देखो, जिन पर हम आशा रखते थे ओर जिनके पास हम अश्शूर के राजा से बचने के लिथे भागने को थे उनकी ऐसी दशा हो गई है। तो फिर हम लोग कैसे बचेंगे?
Chapter यशायाह 21
1. समुद्र के पास के जंगल के विषय भारी वचन। जैसे दक्खिनी प्रचण्ड बवण्डर चला आता है, वह जंगल से अर्यात् डरावने देश से निकट आ रहा है।
2. कष्ट की बातोंका मुझे दर्शन दिखाया गया है; विश्वासघाती विश्वासघात करता है, और नाशक नाश करता है। हे एलाम, चढ़ाई कर, हे मादै, घेर ले; उसका सब कराहना मैं बन्द करता हूं।
3. इस कारण मेरी कटि में कठिन पीड़ा है; मुझ को मानो जच्चा पीडें हो रही है; मैं ऐसे संकट में पडत्र् गया हूं कि कुछ सुनाई नहीं देता, मैं एसा घबरा गया हूं कि कुछ दिखाई नहीं दंता।
4. मेरा ह्रृदय धड़कता है, मैं अत्यन्त भयभीत हूं, जिस सांफ की मैं बाट जोहता या उसे उस ने मेरी यरयराहट का कारण कर दिया है।
5. भोजन की तैयारी हो रही है, पहरूए बैठाए जा रहे हैं, खाना-पीना हो रहा है। हे हाकिमो, उठो, ढाल में तेल मलो!
6. क्योंकि प्रभु ने मुझ से योंकहा है, जाकर एक पहरूआ खड़ा कर दे, और वह जो कुछ देखे उसे बताए।
7. जब वह सवार देखे जो दो-दो करके आते हों, और गदहोंऔर ऊंटोंके सवार, तब बहुत ही ध्यान देकर सुने।
8. और उस ने सिंह के से शब्द से पुकारा, हे प्रभु मैं दिन भर खड़ा पहरा देता रहा और मैं ने पूरी रातें पहरे पर काटा।
9. और क्या देखता हूं कि मनुष्योंका दल और दो-दो करके सवा चले आ रहे हैं! और वह बोल उठा, गिर पड़ा, बाबुल गिर पड़ा; और उसके देवताओं के सब खुदी हुई मूरतें भूमि पर चकनाचूर कर डाली गई हैं।
10. हे मेरे दाएं हुए, और मेरे खलिहान के अन्न, जो बातें मैं ने इस्राएल के परमेश्वर सेनाओं के यहोवा से सुनी है, उनको मैं ने तुम्हें जता दिया है।
11. दूमा के विषय भारी वचन। सेईर में से कोई मुझे पुकार रहा है, हे पहरूए, रात का क्या समाचार है? हे पहरूए, रात की क्या खबर है?
12. पहरूए ने कहा, भोर होती है और रात भी। यदि तुम पूछना चाहते हो तो पूछो; फिर लौटकर आना।।
13. अरब के विरूद्ध भारी वचन। हे ददानी बटोहियों, तुम को अरब के जंगल में रात बितानी पकेगी।
14. वे प्यासे के पास जल लाए, तेमा देश के रहनेवाले रोटी लेकर भागनेवाले से मिलने के लिथे निकल आ रहे हैं।
15. क्योंकि वे तलवारोंके साम्हने से वरन नंगी तलवार से और ताने हुए धनुष से और घोर युद्ध से भागे हैं।
16. क्योंकि प्रभु ने मुझ से योंकहा है, मजदूर के वर्षोंके अनुसार एक वर्ष में केदार का सारा विभव मिटाया जाएगा;
17. और केदार के धनुर्धारी शूरवीरोंमें से योड़े ही रह जाएंगे; क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने ऐसा कहा है।।
Chapter यशायाह 22
1. दर्शन की तराई के विषय में भारी वचन। तुम्हें क्या हुआ कि तुम सब के सब छतोंपर चढ़ गए हो,
2. हे कोलाहल और ऊधम से भरी प्रसन्न नगरी? तुझ में जो मारे गए हैं वे न तो तलवार से और न लड़ाई में मारे गए हैं।
3. तेरे सब न्यायी एक संग भाग गए और धनुर्धारियोंसे बान्धे गए हैं। और तेरे जितने शेष पाए गए वे एक संग बान्धे गए, वे दूर भागे थे।
4. इस कारण मैं ने कहा, मेरी ओर से मुंह फेर लो कि मैं बिलक बिलककर रोऊं; मेरे नगर सत्यनाश होने के शोक में मुझे शान्ति देने का यत्न मत करो।।
5. क्योंकि सेनाओं के प्रभु यहोवा का ठहराया हुआ दिन होगा, जब दर्शन की तराई में कोलाहल और रौंदा जाना और बेचैनी होगी; शहरपनाह में सुरंग लगाई जाएगी और दोहाई का शब्द पहाड़ोंतक पहुंचेगा।
6. और एलाम पैदलोंके दल और सवारोंसमेत तर्कश बान्धे हुए है, और कीर ढाल खोले हुए है।
7. तेरी उत्तम उत्तम तराइयां रयोंसे भरी हुई होंगी और सवार फाटक के साम्हने पांति बान्धेंगे। उस ने यहूदा का घूंघट खोल दिया है।
8. उस दिन तू ने वन नाम भवन के अस्त्र-शस्त्र का स्मरण किया,
9. और तू ने दाऊदपुर की शहरपनाह की दरारोंको देखा कि वे बहुत हैं, और तू ने निचले पोखरे के जल को इकट्ठा किया।
10. और यरूशलेम के घरोंको गिनकर शहरपनाह के दृढ़ करने के लिथे घरोंको ढा दिया।
11. तू ने दोनोंभीतोंके बीच पुराने पोखरे के जल के लिथे एक कुंड खोदा। परन्तु तू ने उसके कर्ता को स्मरण नहीं किया, जिस ने प्राचीनकाल से उसको ठहरा रखा या, और न उसकी ओर तू ने दृष्टि की।।
12. उस समय सेनाओं के प्रभु यहोवा ने रोने-पीटने, सिर मुंडाने और टाट पहिनने के लिथे कहा या;
13. परन्तु क्या देखा कि हर्ष और आनन्द मनाया जा रहा है, गाय-बैल का घात और भेड़-बकरी का वध किया जा रहा है, मांस खाया और दाखमधु पीया जा रहा है। और कहते हैं, आओ खाएं-पीएं, क्योंकि कल तो हमें मरना है।
14. सेनाओं के यहोवा ने मेरे कान में कहा और अपके मन की बात प्रगट की, निश्चय तुम लोगोंके इस अधर्म का कुछ भी प्रायश्चित्त तुम्हारी मृत्यु तक न हो सकेगा, सेनाओं के प्रभु यहोवा का यही कहना है।
15. सेनाओं का प्रभु यहोवा योंकहता है, शेबना नाम उस भण्डारी के पास जो राजघराने के काम पर नियुक्त है जाकर कह, यहां तू क्या करता है?
16. और यहां तेरा कौन है कि तू ने अपक्की कबर यहां खुदवाई है? तू अपक्की कबर ऊंचे स्यान में खुदवाता और अपके रहने का स्यान चट्टान में खुदवाता है?
17. देख, यहोवा तुझ को बड़ी शक्ति से पकड़कर बहुत दूर फेंक देगा।
18. वह तुझे मरोड़कर गेन्द की नाई लम्बे चौड़े देश में फेंक देगा; हे अपके स्वामी के घराने को लज्जित करनेवाले वहां तू मरेगा और तेरे विभव के रय वहीं रह जाएंगे।
19. मैं तुझ को तेरे स्यान पर से ढकेल दूंगा, और तू अपके पद से उतार दिया जाथेगा।
20. उस समय मैं हिल्कियाह के पुत्र अपके दास एल्याकीम को बुलाकर, उसे तेरा अंगरखा पहनाऊंगा,
21. और उसकी कमर में तेरी पेटी कसकर बान्धूंगा, और तेरी प्रभुता उसके हाथ में दूंगा। और वह यरूशलेम के रहनेवालोंऔर यहूदा के घराने का पिता ठहरेगा।
22. और मैं दाऊद के घराने की कुंजी उसके कंधे पर रखूंगा, और वह खोलेगा और कोई बन्द न कर सकेगा; वह बन्द करेगा और कोई खोल न सकेगा।
23. और मैं उसको दृढ़ स्यान में खूंटी की नाईं गाडूंगा, और वह अपके पिता के घराने के लिथे विभव का कारण होगा।
24. और उसके पिता से घराने का सारा विभव, वंश और सन्तान, सब छोटे-छोटे पात्र, क्या कटोरे क्या सुराहियां, सब उस पर टांगी जाएंगी।
25. सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है कि उस समय वह खूंटी जो दृढ़ स्यान में गाड़ी गई यी, वह ढीली हो जाएगी, और काटकर गिराई जाएगी; और उस का बोफ गिर जाएगा, क्योंकि यहोवा ने यह कहा है।
Chapter यशायाह 23
1. सोर के विषय भारी वचन। हे तर्शीश के जहाजोंहाथ, हाथ, करो; क्योंकि वह उजड़ गया; वहां न तो कोई घर और न कोई शरण का स्यान है! यह बात उनको कित्तियोंके देश में से प्रगट की गई है।
2. हे समुद्र के तीर के रहनेवालों, जिनको समुद्र के पार जानेवाले सीदोनी व्यापारियोंने धन से भर दिया है, चुप रहो!
3. शीहोर का अन्न, और नील नदी के पास की उपज महासागर के मार्ग से उसको मिनती यी, क्योंकि वह और जातियोंके लिथे व्योपार का स्यान या।
4. हे सीदोन, लज्जित हो, क्योंकि समुद्र ने अर्यात् समुद्र के दृढ़ स्थान ने यह कहा है, मैं ने न तो कभी जन्माने की पीड़ा जानी और न बालक को जन्म दिया, और न बेटोंको पाला और न बेटियोंको पोसा है।
5. जब सोर का समाचार मिस्र में पहुंचे, तब वे सुनकर संकट में पकेंगे।
6. हे समुद्र के तीर के रहनेवालोंहाथ, हाथ, करो! पार होकर तर्शीश को जाओ।
7. क्या यह तुम्हारी प्रसन्नता से भरी हुई नगरी है जो प्राचीनकाल से बसी यी, जिसके पांव उसे बसने को दूर ले जाते थे?
8. सोर जो राजाओं की गद्दी पर बैठाती यी, जिसके व्योपारी हाकिम थे, और जिसके महाजन पृय्वी भर में प्रतिष्ठित थे, उसके विरूद्ध किस ने ऐसी युक्ति की है?
9. सेनाओं के यहोवा ही ने ऐसी युक्ति की है कि समस्त गौरव के घमण्ड को तुच्छ कर दे और पृय्वी के प्रतिष्ठितोंका अपमान करवाए।
10. हे तर्शीश के निवासियोंनील नदी की नाई अपके देश में फैल जाओ; अब कुछ बन्धन नहीं रहा।
11. उस ने अपना हाथ समुद्र पर बढ़ाकर राज्योंको हिला दिया है; यहोवा ने कनान के दृढ़ किलोंके नाश करने की आज्ञा दी है।
12. और उस ने कहा है, हे सीदोन, हे भ्रष्ट की हुई कुमारी, तू फिर प्रसन्न होने की नहीं; उठ, पार होकर कित्तियोंके पास जा, परन्तु वहां भी तुझे चैन न मिलेगा।।
13. कसदियोंके देश को देखो, वह जाति अब न रही; अश्शूर ने उस देश को जंगली जन्तुओं का स्यान बनाया। उन्होंने अपके गुम्मट उठाए और राजभवनोंको ढ़ा दिया, और उसको खण्डहर कर दिया।
14. हे तर्शीश के जहाजों, हाथ, हाथ, करो, क्योंकि तुम्हारा दृढ़स्यान उजड़ गया है।
15. उस समय एक राजा के दिनोंके अनुसार सत्तर वर्ष के बीतने पर सोर वेश्या की नाईं गीत गाने लगेगा।
16. हे बिसरी हुई वेश्या, वीणा लेकर नगर में घूम, भली भांति बजा, बहुत गीत गा, जिस से लोग फिर तुझे याद करें।
17. सत्तर वर्ष के बीतने पर यहोवा सोर की सुधि लेगा, और वह फिर छिनाले की कमाई पर मन लगाकर धरती भर के सब राज्योंके संग छिनाला करेंगी।
18. उसके व्योपार की प्राप्ति, और उसके छिनाले की कमाई, यहोवा के लिथे पवित्र कि जाएगी; वह न भण्डार में रखी जाएगी न संचय की जाएगी, क्योंकि उसके व्योपार की प्राप्ति उन्हीं के काम में आएगी जो यहोवा के साम्हने रहा करेंगे, कि उनको भरपूर भोजन और चमकीला वस्त्र मिले।।
Chapter यशायाह 24
1. सुनों, यहोवा पृय्वी को निर्जन और सुनसान करने पर है, वह उसको उलटकर उसके रहनेवालोंको तितर बितर करेग।
2. और जैसी यजमान की वैसी याजक की; जैसी दास की वैसी स्वमी की; जैसी दासी की वैसी स्वामिनी की; जैसी लेनेवाले की वैसी बेचनेवाले की; जैसी उधार देनेवाले की वैसी उधार लेनेवाले की; जैसी ब्याज लेनेवाले की वैसी ब्याज देनेवाले की; सभोंकी एक ही दशा होगी।
3. पृय्वी शून्य और सत्यानाश हो जाएगी; क्योंकि यहोवा ही ने यह कहा है।।
4. पृय्वी विलाप करेगी और मुर्फाएगी, जगत कुम्हलाएगा और मुर्फा जाएगा; पृय्वी के महान लोग भी कुम्हला जाएंगे।
5. पृय्वी अपके रहनेवालोंके कारण अशुद्ध हो गई है, क्योंकि उन्होंने व्यवस्या का उल्लंघन किया और विधि को पलट डाला, और सनातन वाचा को तोड़ दिया है।
6. इस कारण पृय्वी को शाप ग्रसेगा और उस में रहनेवाले दोषी ठहरेंगे; और इसी कारण पृय्वी के निवासी भस्म होंगे और योड़े ही मनुष्य रह जाएंगे।
7. नया दाखमधु जाता रहेगा, दाखलता मुर्फा जाएगी, और जितने मन में आनन्द करते हैं सब लम्बी लम्बी सांस लेंगे।
8. डफ का सुखदाई शब्द बन्द हो जाएगा, वीणा का सुखदाई शब्द शान्त हो जाएगा।
9. वे गाकर फिर दाखमधु न पीएंगे; पीनेवाले को मदिरा कड़ुकी लगेगी।
10. गड़बड़ी मचानेवाली नगरी नाश होगी, उसका हर एक घर ऐसा बन्द किया जाएगा कि कोई पैठ न सकेगा।
11. सड़कोंमें लोग दाखमधु के लिथे चिल्लाएंगे; आनन्द मिट जाएगा: देश का सारा हर्ष जाता रहेगा।
12. नगर उजाड़ ही उजाड़ रहेगा, और उसके फाटक तोड़कर नाश किए जाएंगे।
13. क्योंकि पृय्वी पर देश देश के लोगोंमें ऐसा होगा जैसा कि जलपाइयोंके फाड़ने के समय, वा दाख तोड़ने के बाद कोई कोई फल रह जाते हैं।।
14. वे लोग गला खोलकर जयजयकार करेंगे, और यहोवा के महात्म्य को देखकर समुद्र से ललकारेंगे।
15. इस कारण पूर्व में यहोवा की महिमा करो, और समुद्र के द्वीपोंमें इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का गुणानुवाद करो।
16. पृय्वी की छोर से हमें ऐसे गीत की ध्वनि सुन पड़ती है, कि धर्मी की महिमा और बड़ाई हो। परन्तु मैं ने कहा, हाथ, हाथ! मैं नाश हो गया, नाश! क्योंकि विश्वासघाती विश्वासघात करते, वे बड़ा ही विश्वासघात करते हैं।।
17. हे पृय्वी के रहनेवालोंतुम्हारे लिथे भय और गड़हा और फन्दा है!
18. जो कोई भय के शब्द से भागे वह गड़हे में गिरेगा, और जो कोई गड़हे में से निकले वह फन्दे में फंसेगा। क्योंकि आकाश के फरोखे खुल जाएंगे, और पृय्वी की नेव डोल उठेगी। पृय्वी अत्यन्त कम्पायमान होगी।
19. वह मतवाले की नाईं बहुत डगमगाएगी
20. और मचान की नाई डोलेगी; वह अपके पाप के बोफ से दबकर गिरेगी और फिर न उठेगी।।
21. उस समय ऐसा होगा कि यहोवा आकाश की सेना को आकाश में और पृय्वी के राजाओं को पृय्वी ही पर दण्ड देगा।
22. वे बंधुओं की नाई गड़हे में इकट्ठे किए जाएंगे और बन्दीगृह में बन्द किए जाएंगे; और बहुत दिनोंके बाद उनकी सुधि ली जाएगी।
23. तब चन्द्रमा संकुचित हो जाएगा और सूर्य लज्जित होगा; क्योंकि सेनाओं का यहोवा सिय्योन पर्वत पर और यरूशलेम में अपक्की प्रजा के पुरनियोंके साम्हने प्रताप के साय राज्य करेगा।।
Chapter यशायाह 25
1. हे यहोवा, तू मेरा परमेश्वर है; मैं तुझे सराहूंगा, मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा; क्योंकि तू ने आश्चर्यकर्म किए हैं, तू ने प्राचीनकाल से पूरी सच्चाई के साय युक्तियां की हैं।
2. तू ने नगर को डीह, और उस गढ़वाले नगर को खण्डहर कर डाला है; तू ने परदेशियोंकी राजपुरी को ऐसा उजाड़ा कि वह नगर नहीं रहा; वह फिर कभी बसाया न जाएगा।
3. इस कारण बलवन्त राज्य के लोग तेरी महिमा करेंगे; भयंकर अन्यजातियोंके नगरोंमें तेरा भय माना जाएगा।
4. क्योंकि तू संकट में दीनोंके लिथे गढ़, और जब भयानक लोगोंका फोंका भीत पर बौछार के समान होता या, तब तू दरिद्रोंके लिथे उनकी शरण, और तपन में छाया का स्यान हुआ।
5. जैसे निर्जल देश में बादल की छाया से तपन ठण्डी होती है वैसे ही तू परदेशियोंका कोलाहल और क्रूर लोगोंको जयजयकार बन्द करता है।।
6. सेनाओं का यहोवा इसी पर्वत पर सब देशोंके लोगोंके लिथे ऐसी जेवनार करेगा जिस में भांति भांति का चिकना भोजन और नियरा हुआ दाखमधु होगा; उत्तम से उत्तम चिकना भोजन और बहुत ही नियरा हुआ दाखमधु होगा।
7. और जो पर्दा सब देशोंके लोगोंपर पड़ा है, जो घूंघट सब अन्यजातियोंपर लटका हुआ है, उसे वह इसी पर्वत पर नाश करेगा।
8. वह मृत्यु को सदा के लिथे नाश करेगा, और प्रभु यहोवा सभोंके मुख पर से आंसू पोंछ डालेगा, और अपक्की प्रजा की नामधराई सारी पृय्वी पर से दूर करेगा; क्योंकि यहोवा ने ऐसा कहा है।।
9. और उस समय यह कहा जाएगा, देखो, हमारा परमेश्वर यही है; हम इसी की बाट जोहते आए हैं, कि वह हमारा उद्धार करे। यहोवा यही है; हम उसकी बाट जोहते आए हैं। हम उस से उद्धार पाकर मगन और आनन्दित होंगे।
10. क्योंकि इस पर्वत पर यहोवा का हाथ सर्वदा बना रहेगा और मोआब अपके ही स्यान में ऐसा लताड़ा जाएगा जैसा घूरे में पुआल लताड़ा जाता है।
11. और वह उस में अपके हाथ इस प्रकार फैलाएगा, जैसे कोई तैरते हुए फैलाए; परन्तु वह उसके गर्व को तोड़ेगा; और उसकी चतुराई को निष्फल कर देगा।
12. और उसकी ऊंची ऊंची औश्र् दृढ़ शहरपनाहोंको वह फुकाएगा और नीचा करेगा, वरन भूमि पर गिराकर मिट्टी में मिला देगा।।
Chapter यशायाह 26
1. उस समय यहूदा देश में यह गीत गाया जाएगा, हमारा एक दृढ़ नगर है; उद्धार का काम देने के लिथे वह उसकी शहरपनाह और गढ़ को नियुक्त करता है।
2. फाटकोंको खोलो कि सच्चाई का पालन करनेवाली एक धर्मी जाति प्रवेश करे।
3. जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए हैं, उसकी तू पूर्ण शान्ति के साय रझा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है।
4. यहोवा पर सदा भरोसा रख, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान है।
5. वह ऊंचे पदवाले को फुका देता, जो नगर ऊंचे पर बसा है उसको वह नीचे कर देता। वह उसको भूमि पर गिराकर मिट्टी में मिला देता है।
6. वह पांवोंसे, वरन दरिद्रोंके पैरोंसे रौंदा जाएगा।।
7. धर्मी का मार्ग सच्चाई है; तू जो स्वयं सच्चाई है, तू धर्मी की अगुवाई करता है।
8. हे यहोवा, तेरे न्याय के मार्ग में हम लोग तेरी बाट जोहते आए हैं; तेरे नाम के स्मरण की हमारे प्राणोंमें लालसा बनी रहती है।
9. रात के समय मैं जी से तरी लालसा करता हूं, मेरा सम्पूर्ण मन से यत्न के साय तुझे ढूंढ़ता है। क्योंकि जब तेरे न्याय के काम पृय्वी पर प्रगट होते हैं, तब जगत के रहनेवाले धर्म की सीखते हैं।
10. दुष्ट पर चाहे दया भी की जाए तौभी वह धर्म को न सीखेगा; धर्मराज्य में भी वह कुटिलता करेगा, और यहोवा को महात्म्य उसे सूफ न पकेगा।।
11. हे यहोवा, तेरा हाथ बढ़ा हुआ है, पर वे नहीं देखते। परन्तु वे जानेंगे कि तुझे प्रजा के लिथे कैसी जलन है, और लजाएंगे।
12. तेरे बैरी आग से भस्म होंगे। हे यहोवा, तू हमारे लिथे शान्ति ठहराएगा, हम ने जो कुछ किया है उसे तू ही ने हमारे लिथे किया है।
13. हे हमारे परमेश्वर यहोवा, तेरे सिवाय और स्वामी भी हम पर प्रभुता करते थे, परन्तु तेरी कृपा से हम केवल तेरे ही नाम का गुणानुवाद करेंगे।
14. वे मर गए हैं, फिर कभी जीवित नहीं होंगे; उनको मरे बहुत दिन हुए, वे फिर नहीं उठने के; तू ने उनका विचार करके उनको ऐसा नाश किया कि वे फिर स्मरण में न आएंगे।
15. परन्तु तू ने जाति को बढ़ाया; हे यहोवा, तू ने जाति को बढ़ाया है; तू ने अपक्की महिमा दिखाई है और उस देश के सब सिवानोंको तू ने बढ़ाया है।।
16. हे यहोवा, दु:ख में वे तुझे स्मरण करते थे, जब तू उन्हें ताड़ना देता या तब वे दबे स्वर से अपके मन की बात तुझ पर प्रगट करते थे।
17. जैसे गर्भवती स्त्री जनने के समय ऐंठती और पीड़ोंके कारण चिल्ला उठती है, हम लोग भी, हे यहोवा, तेरे साम्हने वैसे ही हो गए हैं।
18. हम भी गर्भवती हुए, हम भी ऐंठें, हम ने मानो वायु ही को जन्म दिया। हम ने देश के लिथे कोई उद्धार का काम नहीं किया, और न जगत के रहनेवाले उत्पन्न हुए।
19. तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे, मुर्दे उठ खड़े होंगे। हे मिट्टी में बसनेवालो, जागकर जयजयकार करो! क्योंकि तेरी ओस ज्योति से उत्पन्न होती है, और पृय्वी मुर्दो को लौटा देगी।।
20. हे मेरे लोगों, आओ, अपक्की अपक्की कोठरी में प्रवेश करके किवाड़ोंको बन्द करो; योड़ी देर तक जब तक क्रोध शान्त न हो तब तक अपके को छिपा रखो।
21. क्योंकि देखो, यहोवा पृय्वी निवासिक्कों अधर्म का दण्ड देने के लिथे अपके स्यान से चला आता है, और पृय्वी अपना खून प्रगट करेगी और घात किए हुओं को और अधिक न छिपा रखेगी।।
Chapter यशायाह 27
1. उस समय यहोवा अपक्की कड़ी, बड़ी, और पोड़ तलवार से लिव्यातान नाम वेग और टेढ़े चलनेवाले सर्प को दण्ड देगा, और जो अजगर समुद्र में रहता है उसको भी घात करेगा।।
2. उस समय एक सुन्दर दाख की बारी होगी, तुम उसका यश गाना!
3. मैं यहोवा उसकी रझा करता हूं; मैं झण झण उसको सींचता रहूंगा। ऐसा न हो कि कोई उसकी हाति करे।
4. मेरे मन में जलजलाहट नहीं है। यदि कोई भांति भांति के कटीले पेड़ मुझ से लड़ने को खड़े करता, तो मैं उन पर पांव बढ़ाकर उनको पूरी रीति से भस्म कर देता।
5. वा मेरे साय मेल करने को वे मेरी शरण लें, वे मेरे साय मेल कर लें।।
6. भविष्य में याकूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राएल फूल-फलेगा, और उसके फलोंसे जगत भर जाएगा।।
7. क्या उस ने उसे मारा जैसा उस ने उसके मारनेवालोंको मारा या? क्या वह घात किया गया जैसे उसके घात किए हुए घात हुए?
8. जब तू ने उसे निकाला, तब सोच-विचार कर उसको दु:ख दिया : उसे ने पुरवाई के दिन उसको प्रचण्ड वायु से उड़ा दिया है।
9. इस से याकूब के अधर्म का प्रायश्चित किया जाएगा और उसके पाप के दूर होने का प्रतिफल यह होगा कि वे वेदी के सब पत्यरोंको चूना बनाने के पत्यरोंके समान चकनाचूर करेंगे, और अशेरा और सूर्य की प्रतिमाएं फिर खड़ी न रहेंगी।
10. क्योंकि गढ़वाला नगर निर्जन हुआ है, वह छोड़ी हुई बस्ती के समान निर्जन और जंगल हो गया है; वहां बछड़े चरेंगे और वहीं बैठेंगे, और पेड़ोंकी डालियोंकी फुनगी को खो लेंगे।
11. जब उसकी शाखाएं सूख जाएं तब तोड़ी जाएंगी; और स्त्रियां आकर उनको तोड़कर जला देंगी। क्योंकि थे लोग निर्बुद्धि हैं; इसलिथे उनका कर्ता उन पर दया न करेगा, और उनका रचनेवाला उन पर अनुग्रह न करेगा।।
12. उस समय यहोवा महानद से लेकर मिस्र के नाले तक अपके अन्न को फटकेगा, और हे इस्राएलियोंतुम एक एक करके इकट्ठे किए जाओगे।
13. उस समय बड़ा नरसिंगाा फूंका जाएगा, और जो अश्शूर देश में नाश हो रहे थे और जो मिस्र देश में बरबस बसाए हुए थे वे यरूशलेम में आकर पवित्र पर्वत पर यहोवा को दण्डवत् करेंगे।।
Chapter यशायाह 28
1. घमण्ड के मुकुट पर हाथ! जो एप्रैम के मतवालोंका है, और उनकी भड़कीली सुन्दरता पर जो मुर्फानेवाला फूल है, जो अति उपजाऊ तराई के सिक्के पर दाखमधु से मतवालोंकी है।
2. देखो, प्रभु के पास एक बलवन्त और समर्यी है जो ओले की वर्षा वा उजाड़नेवाली आंधी या बाढ़ की प्रचण्ड धार की नाई है वह उसको कठोरता से भूमि पर गिरा देगा।
3. एप्रैमी मतवालोंके घमण्ड का मुकुट पांव से लताड़ा जाएगा;
4. और उनकी भड़कीली सुन्दरता का मुर्फानेवाला फूल जो अति उपजाऊ तराई के सिक्के पर है, वह ग्रीष्मकाल से पहिले पके अंजीर के समान होगा, जिसे देखनेवाला देखते ही हाथ में ले और निगल जाए।।
5. उस समय सेनाओं का यहोवा स्वयं अपक्की प्रजा के बचे हुओं के लिथे सुन्दर और प्रतापी मुकुट ठहरेगा;
6. और जो न्याय करने को बैठते हैं उनके लिथे न्याय करनेवाली आत्मा और जो चढ़ाई करते हुए शत्रुओं को नगर के फाटक से हटा देते हैं, उनके लिथे वह बल ठहरेगा।।
7. थे भी दाखमधु के कारण डगमगाते और मदिरा से लड़खड़ाते हैं; याजक और नबी भी मदिरा के कारण डगमगाते हैं, दाखमधु ने उनको भुला दिया है, वे मदिरा के कारण लड़खड़ाते और दर्शन पाते हुए भटके जाते, और न्याय में भूल करते हैं।
8. क्योंकि सब भोजन आसन वमन और मल से भरे हैं, कोई शुद्ध स्यान नहीं बचा।।
9. वह किसको ज्ञान सिखाएगा, और किसको अपके समाचार का अर्य समझाएगा? क्या उनको जो दूध छुड़ाए हुए और स्तन से अलगाए हुए हैं? क्योंकि आज्ञा पर आज्ञा, आज्ञा पर आज्ञा,
10. नियम पर नियम, नियम पर नियम योड़ा यहां, योड़ा वहां।।
11. वह तो इन लोगोंसे परदेशी होंठोंऔर विदेशी भाषावालोंके द्वारा बातें करेगा;
12. जिन से उस ने कहा, विश्रम इसी से मिलेगा; इसी के द्वारा यके हुए को विश्रम दो; परन्तु उन्होंने सुनना न चाहा।
13. इसलिथे यहोवा का वचन उनके पास आज्ञा पर आज्ञा, आज्ञा पर आज्ञा, नियम पर नियम, नियम पर नियम है, योड़ा यहां, योड़ा वहां, जिस से वे ठोकर खाकर चित्त गिरें और घायल हो जाएं, और फंदे में फंसकर पकड़े जाएं।।
14. इस कारण हे ठट्ठा करनेवालो, यरूशलेमवासी प्रजा के हाकिमों, यहोवा का वचन सुनो!
15. तुम ने कहा है कि हम ने मृत्यु से वाचा बान्धी और अधोलोक से प्रतिज्ञा कराई है; इस कारण विपत्ति जब बाढ़ की नाई बढ़ आए तब हमारे पास न आएगी; क्योंकि हम ने फूठ की शरण ली और मिय्या की आड़ में छिपे हुए हैं।
16. इसलिथे प्रभु यहोवा योंकहता है, देखो, मैं ने सिय्योन में नेव का पत्यर रखा है, एक परखा हुआ पत्यर, कोने का अनमोल और अति दृढ़ नेव के योग्य पत्यर: और जो कोई विश्वास रखे वह उतावली न करेगा।
17. और मैं न्याय की डोरी और धर्म को साहुल ठहराऊंगा; और तुम्हारा फूठ का शरणस्यान ओलोंसे बह जाएगा, और तुम्हारे छिपके का स्यान जल से डूब जाएगा।
18. तब जो वाचा तुम ने मृत्यु से बान्धी है वह टूट जाएगी, और जो प्रतिज्ञा तुम ने अधोलोक से कराई वह न ठहरेगी; जब विपत्ति बाढ़ की नाई बढ़ आए, तब तुम उस में डूब ही जाओगे।
19. जब जब वह बढ़ आए, तब तब वह तुम को ले जाएगी; वह प्रति दिन वरन रात दिन बढ़ा करेंगी; और इस समाचार का सुनना ही व्याकुल होने का कारण होगा।
20. क्योंकि बिछौना टांग फैलाने के लिथे छोटा, और ओढ़ना ओढ़ने के लिथे सकरा है।।
21. क्योंकि यहोवा ऐसा उठ खड़ा होगा जैसा वह पराजीम नाम पर्वत पर खड़ा हुआ और जैसा गिबोन की तराई में उस ने क्रोध दिखाया या; वह अब फिर क्रोध दिखाएगा, जिस से वह अपना काम करे, जो अचम्भित काम है, और वह कार्य करे जो अनोखा है।
22. इसलिथे अब तुम ठट्ठा मत करो, नहीं तो तुम्हारे बन्धन कसे जाएंगे; क्योंकि मैं ने सेनाओं के प्रभु यहोवा से यह सुना है कि सारे देश का सत्यानाश ठाना गया है।।
23. कान लगाकर मेरी सुनो, ध्यान धरकर मेरा वचन सुनो।
24. क्या हल जोतनेवाला बीज बोने के लिथे लगातार जोतता रहता है? क्या वह सदा धरती को चीरता और हेंगाता रहता है?
25. क्या वह उसको चौरस करके सौंफ को नहीं छितराता, जीरे को नहीं बखेरता और गेहूं को पांति पांति करके और जब को उसके निज स्यान पर, और कठिथे गेहूं को खेत की छोर पर नहीं बोता?
26. क्योंकि उसका परमेश्वर उसको ठीक ठीक काम करना सिखलाता और बतलाता है।।
27. दांवने की गाड़ी से तो सौंफ दाई नहीं जाती, और गाड़ी का पहिया जीरे के ऊपर नहीं चलाया जाता; परन्तु सौंफ छड़ी से, और जीरा सोंटें से फाड़ा जाता है।
28. रोटी के अन्न पर दाथें की जाती है, परन्तु कोई उसको सदा दांवता नहीं रहता; और न गाड़ी के पहिथे न घोड़े उस पर चलाता है, वह उसे चूर चूर नहीं करता।
29. यह भी सेनाओं के यहोवा की ओर से नियुक्त हुआ है, वह अद्भुत युक्तिवाला और महाबुद्धिमान है।।
Chapter यशायाह 29
1. हाथ, अरीएल, अरीएल, हाथ उस नगर पर जिस में दाऊद छावनी किए हुए रहा! वर्ष पर वर्ष जाड़ते जाओ, उत्सव के पर्व अपके अपके समय पर मनाते जाओ।
2. तौभी मैं तो अरीएल को सकेती में डालूंगा, वहां रोना पीटना रहेगा, और वह मेरी दृष्टि में सचमुच अरीएल सा ठहरेगा।
3. और मैं चारोंओर तेरे विरूद्ध छावनी करके तुझे कोटोंसे घेर लूंगा, और तेरे विरूद्ध गढ़ भी बनाऊंगा।
4. तब तू गिराकर भूमि में डाला जाएगा, और धूल पर से बोलेगा, और तेरी बात भूमि से धीमी धीमी सुनाई देगी; तेरा बोल भूमि पर से प्रेत का सा होगा, और तू धूल से गुनगुनाकर बोलेगा।।
5. तब तेरे परदेशी बैरियोंकी भीड़ सूझ्म धूलि की नाईं, और उन भयानक लोागोंकी भीड़ भूसे की नाई उड़ाईं जाएगी।
6. और सेनाओं का यहोवा अचानक बादल गरजाता, भूमि को कम्पाता, और महाध्वनि करता, बवण्डर और आंधी चलाता, और नाश करनेवाली अग्नि भड़काता हुआ उसके पास आएगा।
7. और जातियोंकी सारी भीड़ जो अरीएल से युद्ध करेगी, ओर जितने लोग उसके और उसके गढ़ के विरूद्ध लड़ेंगे और उसको सकेती में डालेंगे, वे सब रात के देखे हुए स्वप्न के समान ठहरेंगे।
8. और जैसा कोई भूखा स्वपन में तो देखता है कि वह खा रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका पेट भूखा ही है, वा कोई प्यासा स्वपन में देखें की वह पी रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका गला सूखा जाता है और वह प्यासा मर रहा है; वैसी ही उन सब जातियोंकी भीड़ की दशा होगी जो सिय्योन पर्वत से युद्ध करेंगी।।
9. ठहर जाओ और चकित होओ! वे मतवाले तो हैं, परन्तु दाखमधु से नहीं, वे डगमगाते तो हैं, परन्तु मदिरा पीने से नहीं!
10. यहोवा ने तुम को भारी नींद में डाल दिया है और उस ने तुम्हारी नबीरूपी आंखोंको बन्द कर दिया है और तुम्हारे दर्शीरूपी सिरोंपर पर्दा डाला है।
11. इसलिथे सारे दर्शन तुम्हारे लिथे एक लपेटी और मुहर की हुई पुस्तक की बातोंके समान हैं, जिसे कोई पके-लिखे मनुष्य को यह कहकर दे, इसे पढ़, और वह कहे, मैं नहीं पढ़ सकता क्योंकि इस पर मुहर की हुई है।
12. तब वही पुस्तक अनपके को यह कहकर दी जाए, इसे पढ़, और वह कहे, मैं तो अनपढ़ हूं।।
13. और प्रभु ने कहा, थे लोग जो मुंह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्योंकी आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं।
14. इस कारण सुन, मैं इनके साय अद्भुत काम वरन अति अद्भुत और अचम्भे का काम करूंगा; तब इनके बुद्धिमानोंकी बुद्धि नष्ट होगी, और इनके प्रवीणोंकी प्रवीणता जाती रहेगी।।
15. हाथ उन पर जो अपक्की युक्ति को यहोवा से छिपाने का बड़ा यत्न करते, और अपके काम अन्धेरे में करके कहते हैं, हम को कौन देखता है? हम को कौन जानता है?
16. तुम्हारी कैसी उलटी समझ है! क्या कुम्हार मिट्टी के तुल्य गिना जाएगा? क्या बनाई हुई वस्तु अपके कर्त्ता के विषय कहे कि उस ने मुझे नहीं बनाया, वा रची हुई वस्तु अपके रचनेवाले के विषय कहे, कि वह कुछ समझ नहीं रखता?
17. क्या अब योड़े ही दिनोंके बीतने पर लबानोन फिर फलदाई बारी न बन जाएगा, और फलदाई बारी जंगल न गिनी जएगी?
18. उस समय बहिरे पुस्तक की बातें सुनने लेगेंगे, और अन्धे जिन्हें अब कुछ नहीं सूफता, वे देखने लेगेंगे।
19. नम्र लोग यहोवा के कारण फिर आनन्दित होंगे, और दरिद्र मनुष्य इस्राएल के पवित्र के कारण मगन होंगे।
20. क्योंकि उपद्रवी फिर न रहेंगे और ठट्ठा करनेवालोंका अन्त होगा, और जो अनर्य करने के लिथे जागते रहते हैं, जो मनुष्योंको वचन में फंसाते हैं,
21. और जो सभा में उलहना देते उनके लिथे फंदा लगाते, और धर्म को व्यर्य बात के द्वारा बिगाड़ देते हैं, वे सब मिट जाएंगे।।
22. इस कारण इब्राहीम का छुड़ानेवाला यहोवा, याकूब के घराने के विषय योंकहता है, याकूब को फिर लज्जित होना न पकेगा, उसका मुख फिर नीचा न होगा।
23. क्योंकि जब उसके सन्तान मेरा काम देखेंगे, जो मैं उनके बीच में करूंगा, तब वे मेरे नाम को पवित्र मानेंगे, और इस्राएल के परमेश्वर को अति भय मानेंगे।
24. उस समय जिनका मन भटका हो वे बुद्धि प्राप्त करेंगे, और जो कुड़कुड़ाते हैं वह शिझा ग्रहण करेंगे।।
Chapter यशायाह 30
1. यहोवा की यह वाणी है, हाथ उन बलवा करनेवाले लड़कोंपर जो युक्ति तो करते परन्तु मेरी ओर से नहीं; वाचा तो बान्धते परन्तु मेरे आत्मा के सिखाथे नहीं; और इस प्रकार पाप पर पाप बढ़ाते हैं।
2. वे मुझ से बिन पूछे मिस्र को जाते हैं कि फिरौन की रझा में रहे और मिस्र की छाया में शरण लें।
3. इसलिथे फिरौन का शरणस्यान तुम्हारी लज्जा का, और मिस्र की छाया में शरण लेना तुम्हारी निन्दा का कारण होगा।
4. उसके हाकिम सोअन में आए तो हैं और उसके दूत अब हानेस में पहुंचे हैं।
5. वे सब एक ऐसी जाति के कारण लज्जित होंगे जिस से उनका कुछ लाभ न होगा, जो सहाथता और लाभ के बदले लज्जा और नामधराई का कारण होगी।।
6. दक्खिन देश के पशुओं के विषय भारी वचन। वे अपक्की धन सम्पति को जवान गदहोंकी पीठ पर, और अपके खजानोंको ऊंटोंके कूबड़ोंपर लादे हुए, संकट और सकेती के देश में होकर, जहां सिंह और सिंहनी, नाग और उड़नेवाले तेज विषधर सर्प रहते हैं, उन लोगोंके पास जा रहे हैं जिन से उनको लाभ न होगा।
7. क्योंकि मिस्र की सहाथता व्यर्य और निकम्मी है, इस कारण मैं ने उसको बैठी रहनेवाली रहब कहा है।।
8. अब आकर इसको उनके साम्हने पत्यर पर खोद, और पुस्तक में लिख, कि वह भविष्य के लिथे वरन सदा के लिथे साझी बनी रहे।
9. क्योंकि वे बलवा करनेवाले लोग और फूठ बोलनेवाले लड़के हैं जो यहोवा की शिझा को सुनना नहीं चाहते।
10. वे दशिर्योंसे कहते हैं, दर्शी मत बनो; और नबियोंसे कहते हैं, हमारे लिथे ठीक नबूवत मत करो; हम से चिकनी चुपक्की बातें बोलो, धोखा देनेवाली नबूवत करो।
11. मार्ग से मुड़ो, पय से हटो, और इस्राएल के पवित्र को हमारे साम्हने से दूर करो।
12. इस कारण इस्राएल का पवित्र योंकहता है, तुम लोग जो मेरे इस वचन को निकम्मा जानते और अन्धेर और कुटिलता पर भरोसा करके उन्हीं पर टेक लगाते हो;
13. इस कारण यह अधर्म तुम्हारे लिथे ऊंची भीत का टूटा हुआ भाग होगा जो फटकर गिरने पर हो, और वह अचानक पल भर में टूटकर गिर पकेगा,
14. और कुम्हार के बर्तन की नाई फूटकर ऐसा चकनाचूर होगा कि उसके टुकड़ोंका एक ठीकरा भी न मिलेगा जिस से अंगेठी में से आग ली जाए वा हौद में से जल निकाला जाए।।
15. प्रभु यहोवा, इस्राएल का पवित्र योंकहता है, लौट आने और शान्त रहने में तुम्हारा उद्धार है; शान्त रहते और भरोसा रखने में तुम्हारी वीरता है। परन्तु तुम ने ऐसा नहीं किया,
16. तुम ने कहा, नहीं, हम तो घोड़ोंपर चढ़कर भागेंगे, इसलिथे तुम भागोगे; और यह भी कहा कि हम तेज सवारी पर चलेंगे, सो तुम्हारा पीछा करनेवाले उस से भी तेज होंगे।
17. एक ही की धमकी से एक हजार भागेंगे, और पांच की धमकी से तुम ऐसा भागोगे कि अन्त में तुम पहाड़ की चोटी के डण्डे वा टीले के ऊपर की ध्वजा के समान रह जाओगे जो चिन्ह के लिथे गाड़े जाते हैं।
18. तौभी यहोवा इसलिथे विलम्ब करता है कि तुम पर अनुग्रह करे, और इसलिथे ऊंचे उठेगा कि तुम पर दया करे। क्योंकि यहोवा न्यायी परमेश्वर है; क्या ही धन्य हैं वे जो उस पर आशा लगाए रहते हैं।।
19. हे सिय्योन के लोगोंतुम यरूशलेम में बसे रहो; तुम फिर कभी न रोओगे, वह तुम्हारी दोहाई सुनते ही तुम पर निश्चय अनुग्रह करेगा: वह सुनते ही तुम्हारी मानेगा।
20. और चाहे प्रभु तुम्हें विपत्ति की रोटी और दु:ख का जल भी दे, तौभी तुम्हारे उपकेशक फिर न छिपें, और तुम अपक्की आंखोंसे अपके उपकेशकोंको देखते रहोगे।
21. और जब कभी तुम दहिनी वा बाई ओर मुड़ने लगो, तब तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानोंमें पकेगा, मार्ग यही है, इसी पर चलो।
22. तब तुम वह चान्दी जिस से तुम्हारी खुदी हुई मूत्तियां मढ़ी हैं, और वह सोना जिस से तुम्हारी ढली हुई मूत्तियां आभूषित हैं, अशुद्ध करोगे। तुम उनको मैले कुचैले वस्त्र की नाईं फेंक दोगे और कहोगे, दूर हो।
23. और वह तुम्हारे लिथे जल बरसाएगा कि तुम खेत में बीज बो सको, और भूमि की उपज भी उत्तम और बहुतायत से होगी। उस समय तुम्हारे जानवरोंको लम्बी-चौड़ी चराई मिलेगी।
24. और बैल और गदहे जो तुम्हारी खेती के काम में आएंगे, वे सूप और डलिया से फटका हुआ स्वादिष्ट चारा खाएंगे।
25. और उस महासंहार के समय जब गुम्मट गिर पकेंगे, सब ऊंचे ऊंचे पहाड़ोंऔर पहाडिय़ोंपर नालियां और सोते पाए जाएंगे।
26. उस समय यहोवा अपक्की प्रजा के लोगोंका घाव बान्धेगा और उनकी चोट चंगा करेगा; तब चन्द्रमा का प्रकाश सूर्य का सा, और सूर्य का प्रकाश सातगुना होगा, अर्यात् अठवारे भर का प्रकाश एक दिन में होगा।।
27. देखो, यहोवा दूर से चला आता है, उसका प्रकोप भड़क उठा है, और धूएं का बादल उठ रहा है; उसके होंठ क्रोध से भरे हुए और उसकी जीभ भस्म करनेवाली आग के समान है।
28. उसकी सांस ऐसी उमण्डनेवाली नदी के समान है जो गले तक पहुंचक्की है; वह सब जातियोंको नाश के सूप से फटकेगा, और देश देश के लोगोंको भटकाने के लिथे उनके जभड़ोंमें लगाम लगाएगा।।
29. तब तुम पवित्र पर्व की रात का सा गीत गाओगे, और जैसा लोग यहोवा के पर्वत की ओर उस से मिलने को, जो इस्राएल की चट्टान है, बांसुली बजाते हुए जाते हैं, वैसे ही तुम्हारे मन में भी आनन्द होगा।
30. और यहोवा अपक्की प्रतापीवाणी सुनाएगा, और अपना क्रोध भड़काता और आग की लौ से भस्म करता हुआ, और प्रचण्ड आन्धी और अति वर्षा और ओलोंके साय अपना भुजबल दिखाएगा।
31. अश्शूर यहोवा के शब्द की शक्ति से नाश हो जाएगा, वह उसे सोंटे से मारेगा।
32. और जब जब यहोवा उसको दण्ड देगा, तब तब साय ही डफ और वीणा बजेंगी; और वह हाथ बढ़ाकर उसको लगातार मारता रहेगा।
33. बहुत काल से तोपेत तैयार किया गया है, वह राजा की के लिथे ठहराया गया है, वह लम्बा चौड़ा और गहिरा भी बनाया गया है, वहां की चिता में आग और बहुत सी लकड़ी हैं; यहोवा की सांस जलती हुई गन्धक की धारा की नाईं उसको सुलगाएगी।।
Chapter यशायाह 31
1. हाथ उन पर जो सहाथता पाने के लिथे मिस्र को जाते हैं और घोड़ोंका आसरा करते हैं; जो रयोंपर भरोसा रखते क्योंकि वे बहुत हैं, और सवारोंपर, क्योंकि वे अति बलवान हैं, पर इस्राएल के पवित्र की ओर दृष्टि नहीं करते और न यहोवा की खोज करते हैं!
2. परन्तु वह भी बुद्धिमान है और दु:ख देगा, वह अपके वचन न टालेगा, परन्तु उठकर कुकमिर्योंके घराने पर और अनर्यकारियोंके सहाथकोंपर भी चढ़ाई करेगा।
3. मिस्री लोग ईश्वर नहीं, मनुष्य ही हैं; और उनके घोड़े आत्मा नहीं, मांस ही हैं। जब यहोवा हाथ बढ़ाएगा, तब सहाथता करनेवाले और सहाथतक चाहनेवाले दोनोंठोकर खाकर गिरेंगे, और वे सब के सब एक संग नष्ट हो जाएंगे।
4. फिर यहोवा ने मुझ से योंकहा, जिस प्रकार सिंह वा जवान सिंह जब अपके अहेर पर गुर्राता हो, और चरवाहे इकट्ठे होकर उसके विरूद्ध बड़ी भीड़ लगाएं, तौभी वह उनके बोल से न घबराएगा और न उनके कोलाहल के कारण दबेगा, उसी प्रकार सेनाओं का यहोवा, सिय्योन पर्वत और यरूशलेम की पहाड़ी पर, युद्ध करने को उतरेगा।
5. पंख फैलाई हुई चिडिय़ोंकी नाईं सेनाओं का यहोवा यरूशलेम की रझा करेगा; वह उसकी रझा करके बचाएगा, और उसको बिन छूए ही उद्धार करेगा।।
6. हे इस्राएलियों, जिसके विरूद्ध तुम ने भारी बलवा किया है, उसी की ओर फिरो।
7. उस समय तुम लोग सोने चान्दी की अपक्की अपक्की मूतिर्योंसे जिन्हें तुम बनाकर पापी हो गए हो धृणा करोगे।
8. तब अश्शूर उस तलवार से गिराया जाएगा जो मनुष्य की नहीं; वह उस तलवार का कौर हो जाएगा जो आदमी की नहीं; और वह तलवार के साम्हने से भागेगा और उसके जवान बेगार में पकड़े जाएंगे।
9. वह भय के मारे अपके सुन्दर भवन से जाता रहेगा, और उसके हाकिम धबराहट के कारण ध्वजा त्याग कर भाग जाएंगे, यहोवा जिस की अग्नि सिय्योन में और जिसका भट्ठा यरूशेलम में हैं, उसी यह वाणी है।।
Chapter यशायाह 32
1. देखो, एक राजा धर्म से राज्य करेगा, और राजकुमा न्याय से हुकूमत करेंगे।
2. हर एक मानो आंधी से छिपके का स्यान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के फरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।
3. उस समय देखनेवालोंकी आंखें धुंधली न होंगी, और सुननेवालोंके कान लगे रहेंगे।
4. उतावलोंके मन ज्ञान की बातें समझेंगे, और तुतलानेवालोंकी जीभ फुर्ती से और साफ बोलेगी।
5. मूढ़ फिर उदार न कहलाएगा और न कंजूस दानी कहा जाएगा।
6. क्योंकि मूढ़ तो मूढ़ता ही की बातें बोलता और मन में अनर्य ही गढ़ता रहता है कि वह बिन भक्ति के काम करे और यहोवा के विरूद्ध फूठ कहे, भूखे को भूखा ही रहने दे और प्यासे का जल रोक रखे।
7. छली की चालें बुरी होती हैं, वह दुष्ट युक्तियां निकालता है कि दरिद्र को भी फूठी बातोंमें लूटे जब कि वे ठीक और नम्रता से भी बोलते हों।
8. परन्तु उदार मनुष्य उदारता ही की युक्तियां निकालता है, वह उदारता में स्यिर भी रहेगा।।
9. हे सुखी स्त्रियों, उठकर मेरी सुनो; हे निश्चिन्त पुत्रियों, मेरे वचन की ओर कान लगाओ।
10. हे निश्चिन्त स्त्रियों, वर्ष भर से कुछ ही अधिक समय में तुम विकल हो जाओगी; क्योंकि तोड़ने को दाखें न होंगी और न किसी भांति के फल हाथ लगेंगे।
11. हे सुखी स्त्रियों, यरयराओ, हे निश्चिन्त स्त्रियों, विकल हो; अपके अपके वस्त्र उतारकर अपक्की अपक्की कमर में टाट कसो।
12. वे मनभाऊ खेतोंऔर फलवन्त दाखलताओं के लिथे छाती पीटेंगी।
13. मेरे लागोंके वरन प्रसन्न नगर के सब हर्ष भरे घरोंमें भी भांति भांति के कटीले पेड़ उपकेंगे।
14. क्योंकि राजभवन त्यागा जाएगा, कोलाहल से भरा नगर सुनसान हो जाएगा और पहाड़ी और उन पर के पहरूओं के घर सदा के लिथे मांदे और जंगली गदहोंको विहारस्यान और घरैलू पशुओं की चराई उस समय तक बने रहेंगे
15. जब तक आत्मा ऊपर से हम पर उण्डेला न जाए, और जंगल फलदायक बारी न बने, और फलदायक बारी फिर वन न गिनी जाए।
16. तब उस जंगल में न्याय बसेगा, और उस फलदायक बारी में धर्म रहेगा।
17. और धर्म का फल शांति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्चिन्त रहना होगा।
18. मेरे लोग शान्ति के स्यानोंमें निश्चिन्त रहेंगे, और विश्रम के स्यानोंमें सुख से रहेंगे।
19. और वन के विनाश के समय ओले गिरेंगे, और नगर पूरी रीति से चौपट हो जाएगा।
20. क्या ही धन्य हो तुम जो सब जलाशयोंके पास बीच बोते, और बैलोंऔर गदहोंको स्वतन्त्रता से चराते हो।।
Chapter यशायाह 33
1. हाथ तुझ नाश करनेवाले पर जो नाश नहीं किया गया या; हाथ तुझ विश्वासघाती पर, जिसके साय विश्वासघात नहीं किया गया! जब तू नाश कर चुके, तब तू नाश किया जाएगा; और जब तू विश्वासघात कर चुके, तब तेरे साय विश्वासघात किया जाएगा।।
2. हे यहोवा, हम लोगोंपर अनुग्रह कर; हम तेरी ही बाट जोहते हैं। भोर को तू उनका भुजबल, संकट के समय हमारा उद्धारकर्त्ता ठहर।
3. हुल्लडऋ सुनते ही देश देश के लोग भाग गए, तेरे उठने पर अन्यजातियां तित्तर-बित्तर हुई।
4. और जैसे टिड्डियां चट करती हैं वैसे ही तुम्हारी लूट चट की जाएगी, और जैसे टिड्डियां टूट पड़ती हैं, वैसे ही वे उस पर टूट पकेंगे।।
5. यहोवा महान हुआ है, वह ऊंचे पर रहता है; उस ने सिय्योन को न्याय और धर्म से परिपूर्ण किया है;
6. और उद्धार, बुद्धि और ज्ञान की बहुतायत तेरे दिनोंका आधार होगी; यहोवा का भय उसका धन होगा।।
7. देख, उनके शूरवीर बाहर चिल्ला रहे हैं; संधि के दूत बिलक बिलककर रो रहे हैं।
8. राजमार्ग सुनसान पके हैं, उन पर बटोही अब नहीं चलते। उस ने वाचा को टाल दिया, नगरोंको तुच्छ जाना, उस ने मनुष्य को कुछ न समझा।
9. पृय्वी विलाप करती और मुर्फा गई है; लबानोन कुम्हला गया और उस पर सियाही छा गई है; शारोन मरूभूमि के समान हो गया; बाशान और कर्मेल में पतफड़ हो रहा है।।
10. यहोवा कहता है, अब मैं उठूंगा, मैं अपना प्रताप दिखाऊंगा; अब मैं महान ठहरूंगा।
11. तुम में सूखी घास का गर्भ रहेगा, तुम से भूसी उत्पन्न होगी; तुम्हारी सांस आग है जो तुम्हें भस्म करेगी।
12. देश देश के लोग फूंके हुए चूने के सामान हो जाएंगे, और कटे हुए कटीले पेड़ोंकी नाई आग में जलाए जाएंगे।।
13. हे दूर दूर के लोगों, सुनो कि मैं ने क्या किया है? और तुम भी जो निकट हो, मेरा पराक्रम जान लो।
14. सिय्योन के पापी यरयरा गए हैं: भक्तिहीनोंको कंपकंपी लगी है: हम में से कोन प्रचण्ड आग में रह सकता? हम में से कौन उस आग में बना रह सकता है जो कभी नहीं बुफेगी?
15. जो धर्म से चलता और सीधी बातें बोलता; जो अन्धेर के लाभ से घृणा करता, जो घूस नही लेता; जो खून की बात सुनने से कान बन्द करता, और बुराई देखने से आंख मूंद लेता है। वही ऊंचे स्यानोंमें निवास करेगा।
16. वह चट्टानोंके गढ़ोंमें शरण लिए हुए रहेगा; उसको रोटी मिलेगी और पानी की घटी कभी न होगी।।
17. तू अपक्की आंखोंसे राजा को उसकी शोभा सहित देखेगा; और लम्बे चौड़े देश पर दृष्टि करेगा।
18. तू भय के दिनोंको स्मरण करेगा: लेखा लेनेवाला और कर तौल कर लेनेवाला कहां रहा? गुम्मटोंका गिननेवाला कहां रहा?
19. जिनकी कठिन भाषा तू नहीं समझता, और जिनकी लड़बड़ाती जीभ की बात तू नहीं बूफ सकता उन निर्दय लोगोंको तू फिर न देखेगा।
20. हमारे पर्व के नगर सिय्योन पर दृष्टि कर! तू अपक्की आंखोंसे यरूशेलम को देखेगा, वह विश्रम का स्यान, और ऐसा तम्बू है जो कभी गिराया नहीं जाएगा, जिसका कोई खूंटा कभी उखाड़ा न जाएगा, और न कोई रस्सी कभी टूटेगी।
21. वहां महाप्रतापी यहोवा हमारे लिथे रहेगा, वह बहुत बड़ी बड़ी नदियोंऔर नहरो का स्यान होगा, जिस में डांड़वाली नाव न चलेगी और न शोभायमान जहाज उस में होकर जाएगा।
22. क्योंकि यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है; वही हमारा उद्धार करेगा।।
23. तेरी रस्सियां ढीली हो गईं, वे मस्तूल की जड़ को दृढ़ न रख सकीं, और न पाल को तान सकीं।। तब बड़ी लूट छीनकर बांटी गई, लंगड़े लोग भी लूट के भागी हुए।
24. कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं; और जो लाग उस में बसेंगे, उनका अधर्म झमा किया जाएगा।।
Chapter यशायाह 34
1. हे जाति जाति के लोगों, सुनने के लिथे निकट आओ, और हे राज्य राज्य के लोगों, ध्यान से सुनो! पृय्वी भी, और जो कुछ उस में है, जगत और जो कुछ उस में उत्पन्न होता है, सब सुनो।
2. यहोवा सब जातियोंपर क्रोध कर रहा है, और उनकी सारी सेना पर उसकी जलजलाहट भड़की हुई है, उस ने उनको सत्यानाश होने, और संहार होने को छोड़ दिया है।
3. उनके मारे हुए फेंक दिथे जाएंगे, और उनकी लोयोंकी दुर्गन्ध उठेगी; उनके लोहू से पहाड़ गल जाएंगे।
4. आकाश के सारे गण जाते रहेंगे और आकाश कागज की नाई लपेटा जाएगा। और जैसे दाखलता वा अंजीर के वृझ के पत्ते मुर्फाकर गिर जाते हैं, वैसे ही उसके सारे गण धुंधले होकर जाते रहेंगे।।
5. क्योंकि मेरी तलवार आकाश में पीकर तृप्त हुई है; देखो, वह न्याय करने को एदोम पर, और जिन पर मेरा शाप है उन पर पकेगी।
6. यहोवा की तलवार लोहू से भर गई है, वह चर्बी से और भेड़ोंके बच्चोंऔर बकरोंके लोहू से, और मेढ़ोंके गुर्दोंकी चर्बी से तृप्त हुई है। क्योंकि बोस्रा नगर में यहोवा का एक यज्ञ और एदोम देश में बड़ा संहार हुआ है।
7. उनके संग जंगली सांढ़ और बछड़े और बैल वध होंगे, और उनकी भूमि लोहू से भीग जाएगी और वहां की मिट्टी चर्बी से अघा जाएगी।।
8. क्योंकि पलटा लेने को यहोवा का एक दिन और सिय्योन का मुकद्दमा चुकाने का एक वर्ष नियुक्त है।
9. और एदोम की नदियां राल से और उसकी मिट्टी गन्धक से बदल जाएगी; उसकी भूमि जलती हुई राल बन जाएगी।
10. वह रात-दिन न बुफेगी; उसका धूंआ सदैव उठता रहेगा। युग युग वह उजाड़ पड़ा रहेगा; कोई उस में से होकर कभी न चलेगा।
11. उस में धनेशपक्की और साही पाए जाएंगे और वह उल्लू और कौवे का बसेरा होगा। वह उस पर गड़बड़ की डोरी और सुनसानी का साहूल तानेगा।
12. वहां न तो रईस होंगे और न ऐसा कोई होगा जो राज्य करने को ठहराया जाए; उसके सब हाकिमोंका अन्त होगा।।
13. उसके महलोंमें कटीले पेड़, गढ़ोंमें बिच्छू पौधे और फाड़ उगेंगे। वह गीदड़ोंका वासस्यान और शुतुर्मुगोंका आंगन हो जाएगा।
14. वहां निर्जल देश के जन्तु सियारोंके संग मिलकर बसेंगे और रोंआर जन्तु एक दूसरे को बुलाएंगे; वहां लीलीत नाम जन्तु वासस्यान पाकर चैन से रहेगा।।
15. वहां उड़नेवाली सांपिन का बिल होगा; वे अण्डे देकर उन्हें सेवेंगी और अपक्की छाया में बटोर लेंगी; वहां गिद्ध अपक्की सायिन के साय इकट्ठे रहेंगे।
16. यहोवा की पुस्तक से ढूंढ़कर पढ़ो इन में से एक भी बात बिना पूरा हुए न रहेगी; कोई बिना जोड़ा न रहेगा। क्योंकि मैं ने अपके मुंह से यह आज्ञा दी है और उसी की आत्मा ने उन्हें इकट्ठा किया है।
17. उसी ने उनके लिथे चिट्ठी डाली, उसी ने अपके हाथ से डोरी डालकर उस दंश को उनके लिथे बांट दिया है; वह सर्वदा उनका ही बना रहेगा और वे पीढ़ी से पीढ़ी तब उस में बसे रहेंगे।।
Chapter यशायाह 35
1. जंगल और निर्जल देश प्रफुल्लित होंगे, मरूभूमि मगन होकर केसर की नाईं फूलेगी;
2. वह अत्यन्त प्रभुल्लित होगी और आनन्द के साय जयजयकार करेगी। उसकी शोभा लबानोन की सी होगी और वह कर्मेल और शारोन के तुल्य तेजोमय हो जाएगी। वे यहोवा की शोभा और हमारे परमेश्वर का तेज देखेंगे।।
3. ढीले हाथोंको दृढ़ करो और यरयराते हुए घुटनोंको स्यिर करो।
4. घबरानेवालोंसे कहो, हियाव बान्धो, मत डरो! देखो, तुम्हारा परमेश्वर पलटा लेने और प्रतिफल देने को आ रहा है। हां, परमेश्वर आकर तुम्हारा उद्धार करेगा।।
5. तब अन्धोंकी आंखे खोली जाएंगी और बहिरोंके कान भी खोले जाएंगे;
6. तब लंगड़ा हरिण की सी चौकडिय़ां भरेगा और गूंगे अपक्की जीभ से जयजयकार करेंगे। क्योंकि जंगल में जल के सोते फूट निकलेंगे और मरूभूमि में नदियां बहने लगेंगीद्ध
7. मृगतृष्णा ताल बन जाएगी और सूखी भूमि में सोते फूटेंगे; और जिस स्यान में सियार बैठा करते हैं उस में घास और नरकट और सरकण्डे होंगे।।
8. और वहां एक सड़क अर्यात् राजमार्ग होगा, उसका नाम पवित्र मार्ग होगा; कोई अशुद्ध जन उस पर से न चलने पाएगा; वह तो उन्हीं के लिथे रहेगा और उस मार्ग पर जो चलेंगे वह चाहे मूर्ख भी होंतौभी कभी न भटकेंगे।
9. वहां सिंह न होगा ओर न कोई हिंसक जन्तु उस पर न चढ़ेगा न वहां पाया जाएगा, परन्तु छुड़ाए हुए उस में नित चलेंगे।
10. और यहोवा ने छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए सिय्योन में आएंगे; और उनके सिर पर सदा का आनन्द होगा; वे हर्ष और आनन्द पाएंगे और शोक और लम्बी सांस का लेना जाता रहेगा।।
Chapter यशायाह 36
1. हिजकिय्याह राजा के चौदहवें वर्ष में, अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरोंपर चढ़ाई करके उनको ले लिया।
2. और अश्शूर के राजा ने रबशाके की बड़ी सेना देकर लाकीश से यरूशलेम के पास हिजकिय्याह राजा के विरूद्ध भेज दिया। और वह उत्तरी पोखरे की नाली के पास धोबियोंके खेत की सड़क पर जाकर खड़ा हुआ।
3. तब हिल्किय्याह का पुत्र एल्याकीम जो राजघराने के काम पर नियुक्त या, और शेब्ना जो मन्त्री या, और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लेखक या, थे तीनोंउस से मिलने को बाहर निकल गए।।
4. रबशाके ने उन से कहा, हिजकिय्याह से कहा, महाराजाधिराज अश्शूर का राजा योंकहता है कि तू किसका भरोसा किए बैठा है?
5. मेरा कहना है कि क्या मुंह से बातें बनाना ही युद्ध के लिथे पराक्रम और युक्ति है? तू किस पर भरोसा रखता है कि तू ने मुझ से बलवा किया है?
6. सुन, तू तो उस कुचले हुए नरकट अर्यात् मिस्र पर भरोसा रखता है; उस पर यदि कोई टेक लगाए तो वह उसके हाथ में चुभकर छेद कर देगा। मिस्र का राजा फिरौन उन सब के साय ऐसा ही करता है जो उस पर भरोसा रखते हैं।
7. फिर यदि तू मुझ से कहे, हमारा भरोसा अपके परमेश्वर यहोवा पर है, तो क्या वह वही नहीं है जिसके ऊंचे स्यानोंऔर वेदियोंको ढा कर हिजकिय्याह ने यहूदा और यरूशलेम के लोगोंसे कहा कि तुम इस वेदी के साम्हने दण्डवत् किया करो?
8. इसलिथे अब मेरे स्वामी अश्शूर के राजा के साय वाचा बान्ध तब मैं तुझे दो हजार घोड़े दूंगा यदि तू उन पर सवार चढ़ा सके।
9. फिर तू रयोंऔर सवारोंके लिथे मिस्र पर भरोसा रखकर मेरे स्वामी के छोटे से छोटे कर्मचारी को भी कैसे हटा सकेगा?
10. क्या मैं ने यहोवा के बिना कहे इस देश को उजाड़ने के लिथे चढ़ाई की है? यहोवा ने मुझ से कहा है, उस देश पर चढ़ाई करके उसे उजाड़ दे।।
11. तब एल्याकीम, शेब्ना और योआह ने रबशाके से कहा, अपके दासोंसे अरामी भाषा में बात कर क्योंकि हम उसे समझते हैं; हम से यहूदी भाषा में शहरपनाह पर बैठे हुए लोगोंके सुनते बातें न कर।
12. रबशाके ने कहा, क्या मेरे स्वामी ने मुझे तेरे स्वामी ही के वा तुम्हारे ही पास थे बातें कहने को भेजा है? क्या उस ने मुझे उन लोगोंके पास नहीं भेजा जो शहरपनाह पर बैठे हैं जिन्हें तुम्हारे संग अपक्की विष्ठा खाना और अपना मूत्र पीना पकेगा?
13. तब रबशाके ने खड़े होकर यहूदी भाषा में ऊंचे शब्द से कहा, महाराजाधिराज अश्शूर के राजा की बातें सुनो!
14. राजा योंकहता है, हिजकिय्याह तुम को धोखा न दे, क्योंकि वह तुम्हें बचा न सकेगा।
15. ऐसा न हो कि हिजकिय्याह तुम से यह कहकर भुलवा दे कि यहोवा निश्चय हम को बचाएगा कि यह नगर अश्शूर के राजा के वश में न पकेगा।
16. हिजकिय्याह की मत सुनो; अश्शूर का राजा कहता है, भेंट भेजकर मुझे प्रसन्न करो और मेरे पास निकल आओ; तब तुम अपक्की अपक्की दाखलता और अंजीर के वृझ के फल खा पाओगे, और अपके अपके कुण्ड का पानी पिया करोगे;
17. जब तक मैं आकर तुम को ऐसे देश में न ले जाऊं जो तुम्हारे देश के समान अनाज और नथे दाखमधु का देश और रोटी और दाख की बारियोंका देश है।
18. ऐसा न हो कि हिजकिय्याह यह कहकर तुम को बहकाए कि यहोवा हम को बचाएगा। क्या और जातियोंके देवताओं ने अपके अपके देश को अश्शूर के राजा के हाथ से बचाया है?
19. हमात और अर्पाद के देवता कहां रहे? सपर्वैम के देवता कहां रहे? क्या उन्होंने शोमरोन को मेरे हाथ से बचाया?
20. देश देश के देवतओं में से ऐसा कौन है जिस ने अपके देश को मेरे हाथ से बचाया हो? फिर क्या यहोवा यरूशलेम को मेरे हाथ से बचाएगा?
21. परन्तु वे चुप रहे और उसके उत्तर में एक बात भी न कही, क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा यी कि उसको उत्तर न देना।
22. तब हिल्किय्याह का पुत्र एल्याकीम जो राजघराने के काम पर नियुक्त या और शेब्ना जो मन्त्री या और आसाप या, इन्होंने हिजकिय्याह के पास वस्त्र फाड़े हुए जाकर रबशाके की बातें कह सुनाई।।
Chapter यशायाह 37
1. जब हिजकिय्याह राजा ने यह सुना, तब वह अपके वस्त्र फाड़ और टाट ओढ़कर यहोवा के भवन में गया।
2. और उस ने एल्याकीम को जो राजघराने के काम पर नियुक्त या और शेब्ना मन्त्री को और याजकोंके पुरनियोंको जो सब टाट ओढ़े हुए थे, आमोस के पुत्र यशायाह नबी के पास भेज दिया।
3. उन्होंने उस से कहा, हिजकिय्याह योंकहता है कि आज का दिन संकट और उलहने और निन्दा का दिन है, बच्चे जन्मने पर हुए पर जच्चा को जनने का बल न रहा।
4. सम्भव है कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने रबशाके की बातें सुनी जिसे उसके स्वामी अश्शूर के राजा ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को भेजा है, और जा बातें तेरे परमेश्वर यहोवा ने सुनी हैं उन्हें दपके; सो तू इन बचे हुओं के लिथे जो रह गए हैं, प्रार्यना कर।।
5. जब हिजकिय्याह राजा के कर्मचारी यशायाह के पास आए।
6. तब यशायाह ने उन से कहा, अपके स्वामी से कहो, यहोवा योंकहता है कि जो वचन तू ने सुने हैं जिनके द्वारा अश्शूर के राजा के जनोंमें मेरी निन्दा की है, उनके कारण मत डर।
7. सुन, मैं उसके मन में प्रेरणा करूंगा जिस से वह कुछ समचार सुनकर अपके देश को लौट जाए; और मैं उसको उसी देश में तलवार से मरवा डालूंगा।।
8. तब रबशाके ने लौटकर अश्शूर के राजा को लिब्ना नगर से युद्ध करते पाया; क्योंकि उस ने सुना या कि वह लाकीश के पास से उठ गया है।
9. उस ने कूश के राजा तिर्हाका के विषय यह सुना कि वह उस से लड़ने को निकला है। तब उस ने हिजकिय्याह के पास दूतोंको यह कहकर भेजा।
10. कि तुम यहूदा के राजा हिजकिय्याह से योंकहना, तेरा परमेश्वर जिस पर तू भरोसा करता है, यह कहकर तुझे धोखा न देने पाए कि यरूशलेम अश्शूर के राजा के वश में न पकेगा।
11. देख, तू ने सुना है कि अश्शूर के राजाओं ने सब देशोंसे कैसा व्यवहार किया कि उन्हें सत्यानाश ही कर दिया।
12. फिर क्या तू बच जाएगा? गोज़ान और हारान और रेसेप में रहनेवाली जिन जातियोंको और तलस्सार में रहनेवाले एदेनी लोगोंको मेरे पुरखाओं ने नाश किया, क्या उनके देवताओं ने उन्हें बचा लिया?
13. हमात का राजा, अर्पाद का राजा, सपर्वैम नगर का राजा, और हेना और इव्वा के राजा, थे सब कहां गए?
14. इस पत्री को हिजकिय्याह ने दूतोंके हाथ से लेकर पढ़ा; तब उस ने यहोवा के भवन में जाकर उस पत्री को यहोवा के साम्हने फैला दिया।
15. और यहोवा से यह प्रार्यना की,
16. हे सेनाओं के यहोवा, हे करूबोंपर विराजमान इस्राएल के परमेश्वर, पृय्वी के सब राज्योंके ऊपर केवल तू ही परमेश्वर है; आकाश और पृय्वी को तू ही ने बनाया है।
17. हे यहोवा, कान लगाकर सुन; यहोवा आंख खोलकर देख; और सन्हेरीब के सब वचनोंको सुन ले, जिस ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को लिख भेजा है।
18. हे यहोवा, सच तो है कि अश्शूर के राजाओं ने सब जातियोंके देशोंको उजाड़ा है
19. और उनके देवताओं को आग में फोंका है; क्योंकि वे ईश्वर न थे, वे केवल मनुष्योंकी कारीगरी, काठ और पत्यर ही थे; इस कारण वे उनको नाश कर सके।
20. अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा, तू हमें उसके हाथ से बचा जिस से पृय्वी के राज्य राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है।।
21. तब आमोस के पुत्र यशायाह ने हिजकिय्याह के पास यह कहला भेजा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, तू ने जो अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय में मुझ से प्रार्यना की है,
22. उसके विषय यहोवा ने यह वचन कहा है, सिय्योन की कुमारी कन्या तुझे तुच्छ जानती है और ठट्ठोंमें उड़ाती है; यरूशलेम की पुत्री तुझ पर सिर हिलाती है।।
23. तू ने किस की नामधराई और निन्दा की है? और तू जो बड़ा बोल बोला और घमण्ड किया है, वह किस के विरूद्ध किया है? इस्राएल के पवित्र के विरूद्ध!
24. अपके कर्मचारियोंके द्वारा तू ने प्रभु की निन्दा करके कहा है कि बहुत से रय लेकर मैं पर्वतोंकी चोटियोंपर वरन लबानोन के बीच तक चढ़ आया हूं; मैं उसके ऊंचे ऊंचे देवदारोंऔर अच्छे अच्छे सनौबरोंको काट डालूंगा और उसके दूर दूर के ऊंचे स्यानोंमें और उसके वन की फलदाई बारियोंमें प्रवेश करूंगा।
25. मैं ने खुदवाकर पानी पिया और मिस्र की नहरोंमें पांव धरते ही उन्हें सुखा दिया।
26. क्या तू ने नहीं सुना कि प्राचीनकाल से मैं ने यही ठाना और पूर्वकाल से इसकी तैयारी की यी? इसलिथे अब मैं ने यह पूरा भी किया है कि तू गढ़वाले नगरोंको खण्डहर की खण्डहर कर दे।
27. इसी कारण उनके रहनेवालोंका बल घट गया और वे विस्मित और लज्जित हुए: वे मैदान के छोटे छोटे पेड़ोंऔर हरी घास और छत पर की घास और ऐसे अनाज के समान हो गए जो बढ़ने से पहिले ही सूख जाता है।।
28. मैं तो तेरा बैठना, कूच करना और लौट आना जानता हूं; और यह भी कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता है।
29. इस कारण कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता और तेरे अभिमान की बातें मेरे कानोंमें पक्की हैं, मैं तेरी नाक में नकेल डालकर और तेरे मुंह में अपक्की लगाम लगाकर जिस मार्ग से तू आया है उसी मार्ग से तुझे लौटा दूंगा।।
30. और तेरे लिथे यह चिन्ह होगा कि इस वर्ष तो तुम उसे खाओगे जो आप से आप उगे, और दूसरे वर्ष वह जो उस से उत्पन्न हो, और तीसरे वर्ष बीज बोकर उसे लवने पाओगे और दाख की बारियां लगाने और उनका फल खाने पाओगे।
31. और यहूदा के घराने के बचे हुए लोग फिर जड़ पकड़ेंगे और फूलें-फलेंगे;
32. क्योंकि यरूशलेम से बचे हुए और सिय्योन पर्वत से भागे हुए लोग निकलेंगे। सेनाओं का यहोवा अपक्की जलन के कारण यह काम करेगा।।
33. इसलिथे यहोवा यश्शूर के राजा कि विषय योंकहता है कि वह इस नगर में प्रवेश करने, वरन इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा; और न वह ढाल लेकर इसके साम्हने आने वा इसके विरूद्ध दमदमा बान्धने पाएगा।
34. जिस मार्ग से वह आया है उसी से वह लौट भी जाएगा और इस नगर में प्रवेश न करने पाएगा, यहोवा की यही वाणी है।
35. क्योंकि मैं अपके निमित्त और अपके दास दाऊद के निमित्त, इस नगर की रझा करके उसे बचाऊंगा।।
36. ब यहोवा के दूत ने निकलकर अश्शूरियोंकी छावनी में एक लाख पचासी हजार पुरूषोंको मारा; और भोर को जब लोग सवेरे उठे तब क्या देखा कि लोय ही लोय पक्की हैं।
37. तब अश्शूर का राजा सन्हेरीब चल दिया और लौटकर नीनवे में रहने लगा।
38. वहां वह अपके देवता निस्रोक के मन्दिर में दण्डवत् कर रहा या कि इतने में उसके पुत्र अद्रम्मेलेक और शरेसेन ने उसको तलवार से मारा और अरारात देश में भाग गए। और उसका पुत्र एसर्हद्दोन उसके स्यान पर राज्य करने लगा।।
Chapter यशायाह 38
1. उन दिनोंमें हिजकिय्याह ऐसा रोगी हुआ कि वह मरने पर या। और आमोस के पुत्र यशायाह नबी ने उसके पास जाकर कहा, यहोवा योंकहता है, अपके घराने के विषय जो आज्ञा देनी हो वह दे, क्योंकि तू न बचेगा मर ही जाएगा।
2. तब हिजकिय्याह ने भी की ओर मुंह फेरकर यहोवा से प्रार्यना करके कहा;
3. हे यहोवा, मैं बिनती करता हूं, स्मरण कर कि मैं सच्चाई और खरे मन से अपके को तेरे सम्मुख जानकर चलता आया हूं और जो तेरी दृष्टि में उचित या वही करता आया हूं। और हिजकिय्याह बिलक बिलककर रोने लगा।
4. तब यहोवा का यह वचन यशायाह के पास पहुंचा,
5. जाकर हिजकिय्याह से कह कि तेरे मूलपुरूष दाऊद का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं ने तेरी प्रार्यना सुनी और तेरे आंसू देखे हैं; सुन, मैं तेरी आयु पन्द्रह वर्ष और बढ़ा दूंगा।
6. अश्शूर के राजा के हाथ से मैं तेरी और इस नगर की रझा करके बचाऊंगा।।
7. यहोवा अपके इस कहे हुए वचन को पूरा करेगा,
8. और यहोवा की ओर से इस बात का तेरे लिथे यह चिन्ह होगा कि धूप की छाया जो आहाज की धूपघड़ी में ढल गई है, मैं दस अंश पीछे की ओर लौटा दूंगा। सो वह छाया जो दस अंश ढल चुकी यी लौट गई।।
9. यहूदा के राजा हिजकिय्याह का लेख जो उस ने लिखा जब वह रोगी होकर चंगा हो गया या, वह यह है:
10. मैं ने कहा, अपक्की आयु के बीच ही मैं अधोलोक के फाटकोंमें प्रवेश करूंगा; क्योंकि मेरी शेष आयु हर ली गई है।
11. मैं ने कहा, मैं याह को जीवितोंकी भूमि में फिर न देखने पाऊंगा; इस लोक के निवासिक्कों मैं फिर न देखूंगा।
12. मेरा घर चरवाहे के तम्बू की नाई उठा लिया गया है; मैं ने जोलाहे की नाईं अपके जीवन को लपेट दिया है; वह मुझे तांत से काट लेगा; एक ही दिन में तू मेरा अन्त कर डालेगा।
13. मैं भोर तक अपके मन को शान्त करता रहा; वह सिंह की नाईं मेरी सब हड्डियोंको तोड़ता है; एक ही दिन में तू मेरा अन्त कर डालता है।
14. मैं सूपाबेने वा सारस की नाई च्यूं च्यूं करता, मैं पिण्डुक की नाई विलाप करता हूं। मेरी आंखें ऊपर देखते देखते पत्यरा गई हैं। हे यहोवा, मुझ पर अन्धेर हो रहा है; तू मेरा सहारा हो!
15. मैं क्या कहूं? उसी ने मुझ से प्रतिज्ञा की और पूरा भी किया है। मैं जीवन भर कडुआहट के साय धीरे धीरे चलता रहूंगा।।
16. हे प्रभु, इन्हीं बातोंसे लोग जीवित हैं, और इन सभोंसे मेरी आत्मा को जीवन मिलता है। तू मुझे चंगा कर और मुझे जीवित रख!
17. देख, शान्ति ही के लिथे मुझे बड़ी कडुआहट मिली; परन्तु तू ने स्नेह करके मुझे विनाश के गड़हे से निकाला है, क्योंकि मेरे सब पापोंको तू ने अपक्की पीठ के पीछे फेंक दिया है।
18. क्योंकि अधोलोक तेरा धन्यवाद नहीं कर सकता, न मृत्यु तेरी स्तुति कर सकती है; जो कबर में पकें वे तेरी सच्चाई की आशा नहीं रख सकते
19. जीवित, हो जीवित ही तेरा धन्यवाद करता है, जैसा मैं आज कर रहा हूं; पिता तेरी सच्चाई का समाचार पुत्रोंको देता है।।
20. यहोवा मेरा उद्धार करेगा, इसलिथे हम जीवन भर यहोवा के भवन में तारवाले बाजोंपर अपके रचे हुए गीत गातें रहेंगे।।
21. यशायाह ने कहा या, अंजीरोंकी एक टिकिया बनाकर हिजकिय्याह के फाड़े पर बान्धी जाए, तब वह बचेगा।
22. और हिजकिय्याह ने पूछा या कि इसका क्या चिन्ह है कि मैं यहोवा के भवन को फिर जाने पाऊंगा?
Chapter यशायाह 39
1. उस समय बलदान का पुत्र मरोदक बलदान, जो बाबुल का राजा या, उस ने हिजकिय्याह के रोगी होने और फिर चंगे हो जाने की चर्चा सुनकर उसके पास पत्री और भेंट भेजी।
2. इन से हिजकिय्याह ने प्रसन्न होकर अपके अनमोल पदार्योंका भण्डार और चान्दी, सोना, सुगन्ध द्रव्य, उत्तम तेल ओर भण्डारोंमें जो जो वस्तुएं यी, वे सब उनको दिखलाईं। हिजकिय्याह के भवन और राज्य भर में कोई ऐसी वस्तु नहीं रह गई जो उस ने उन्हें न दिखाई हो।
3. तब यशायाह नबी ने हिजकिय्याह राजा के पास जाकर पूछा, वे मनुष्य क्या कह गए? और वे कहां से तेरे पास आए थे? हिजकिय्याह ने कहा, वे तो दूर देश से अर्यात् बाबुल से मेरे पास आए थे।
4. फिर उस ने पूछा, तेरे भवन में उन्होंने क्या क्या देखा है? हिजकिय्याह ने कहा, जो कुछ मेरे भवन में है वह सब उन्होंने देखे है; मेरे भण्डारोंमें कोई ऐसी वस्तु नहीं जो मैं ने उन्हें न दिखाई हो।।
5. तब यशायाह ने हिजकिय्याह से कहा, सेनाओं के यहोवा का यह वचन सुन ले:
6. ऐसे दिन आनेवाले हैं, जि में जो कुछ तेरे भवन में है और जो कुछ आज के दिन तक तेरे पुरखाओं का रखा हुआ तेरे भण्डारोंमें हैं, वह सब बाबुल को उठ जाएगा; यहोवा यह कहता है कि कोई वस्तु न बचेगी।
7. और जो पुत्र तेरे वंश में उत्पन्न हों, उन में से भी कितनोंको वे बंधुआई में ले जाएंगे; और वह खोजे बनकर बाबुल के राजभवन में रहेंगे।
8. हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, यहोवा का वचन जो तू ने कहा है वह भला ही है। फिर उस ने कहा, मेरे दिनोंमें तो शान्ति और सच्चाई बनी रहेगी।।
Chapter यशायाह 40
1. तुम्हारा परमेश्वर यह कहता है, मेरी प्रजा को शान्ति दो, शान्ति!
2. यरूशलेम से शान्ति की बातें कहो; और उस से पुकारकर कहो कि तेरी कठिन सेवा पूरी हुई है, तेरे अधर्म का दण्ड अंगीकार किया गया है : यहोवा के हाथ से तू अपके सब पापोंका दूना दण्ड पा चुका है।।
3. किसी की पुकार सुनाई देती है, जंगल में यहोवा का मार्ग सुधारो, हमारे परमेश्वर के लिथे अराबा में एक राजमार्ग चौरस करो।
4. हर एक तराई भर दी जाए और हर एक पहाड़ और पहाड़ी गिरा दी जाए; जो टेढ़ा है वह सीधा और जो ऊंचा नीचा है वह चौरस किया जाए।
5. तब यहोवा का तेज प्रगट होगा और सब प्राणी उसको एक संग देखेंगे; क्योंकि यहोवा ने आप ही ऐसा कहा है।।
6. बोलनेवाले का वचन सुनाई दिया, प्रचार कर! मैं ने कहा, मैं क्या प्रचार करूं? सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा मैदान के फूल के समान है।
7. जब यहोवा की सांस उस पर चलती है, तब घास सूख जाती है, और फूल मुर्फा जाता है; नि:सन्देह प्रजा घास है।
8. घास तो सूख जाती, और फूल मुर्फा जाता है; परन्तु हमारे परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा।।
9. हे सिय्योन को शुभ समचार सुनानेवाली, ऊंचे पहाड़ पर चढ़ जा; हे यरूशलेम को शुभ समाचार सुनानेवाली, बहुत ऊंचे शब्द से सुना, ऊंचे शब्द से सुना, मत डर; यहूदा के नगरोंसे कह, अपके परमेश्वर को देखो!
10. देखो, प्रभु यहोवा सामर्य दिखाता हुआ रहा है, वह अपके भुजबल से प्रभुता करेगा; देखा, जो मजदूरी देने की है वह उसके पास है और जो बदला देने का है वह उसके हाथ में है।
11. वह चरवाहे की नाईं अपके फुण्ड को चराएगा, वह भेड़ोंके बच्चोंको अंकवार में लिए रहेगा और दूध पिलानेवालियोंको धीरे धीरे ले चलेगा।।
12. किस ने महासागर को चुल्लू से मापा और किस के बित्ते से आकाश का नाप हुआ, किस ने पृय्वी की मिट्टी को नपके में भरा और पहाड़ोंको तराजू में और पहाडिय़ोंको कांटे में तौला है?
13. किस ने यहोवा की आत्मा को मार्ग बताया वा उसका मन्त्री होकर उसको ज्ञान सिखाया है?
14. उस ने किस से सम्मति ली और किस ने उसे समझाकर न्याय का पय बता दिया और ज्ञान सिखाकर बुद्धि का मार्ग जता दिया है?
15. देखो, जातियां तो डोल की एक बून्द वा पलड़ोंपर की धूलि के तुल्य ठहरीं; देखो, वह द्वीपोंको धूलि के किनकोंसरीखे उठाता है।
16. लबानोन की ईधन के लिथे योड़ा होगा और उस में के जीव-जन्तु होमबलि के लिथे बस न होंगे।
17. सारी जातियां उसके साम्हने कुछ नहीं हैं, वे उसकी दृष्टि में लेश और शून्य से भी घट ठहरीं हैं।।
18. तुम ईश्वर को किस के समान बताओगे और उसकी उपमा किस से दोगे?
19. मूरत! कारीगर ढालता है, सोनार उसको सोने से मढ़ता और उसके लिथे चान्दी की सांकलें ढालकर बनाता है।
20. जो कंगाल इतना अर्पण नहीं कर सकता, वह ऐसा वृझ चुन लेता है जो न घुने; तब एक निपुण कारीगर ढूंढकर मूरत खुदवाता और उसे ऐसा स्यिर कराता है कि वह हिल न सके।।
21. क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? क्या तुम को आरम्भ ही से नहीं बताया गया? क्या तुम ने पृय्वी की नेव पड़ने के समय ही से विचार नहीं किया?
22. यह वह है जो पृय्वी के घेरे के ऊपर आकाशमण्डल पर विराजमान है; और पृय्वी के रहनेवाले टिड्डी के तुल्य है; जो आकाश को मलमल की नाईं फैलाता और ऐसा तान देता है जैसा रहने के लिथे तम्बू ताना जाता है;
23. जो बड़े बड़े हाकिमोंको तुच्छ कर देता है, और पृय्वी के अधिक्कारनेियोंको शून्य के समान कर देता है।।
24. वे रोपे ही जाते, वे बोए ही जाते, उनके ठूंठ भूमि में जड़ ही पकड़ पाते कि वह उन पर पवन बहाता और वे सूख जाते, और आंधी उन्हें भूसे की नाई उड़ा ले जाती है।।
25. सो तुम मुझे किस के समान बताओगे कि मैं उसके तुल्य ठहरूं? उस पवित्र का यही वचन है।
26. अपक्की आंखें ऊपर उठाकर देखो, किस ने इनको सिरजा? वह इन गणोंको गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है? वह ऐसा सामर्यी और अत्यन्त बली है कि उन में के कोई बिना आए नहीं रहता।।
27. हे याकूब, तू क्योंकहता है, हे इस्राएल तू क्योंबोलता है, मेरा मार्ग यहोवा के छिपा हुआ है, मेरा परमेश्वर मेरे न्याय की कुछ चिन्ता नहीं करता?
28. क्या तुम नहीं जानते? क्या तुम ने नहीं सुना? यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृय्वी भर का सिरजनहार है, वह न यकता, न श्र्मित होता है, उसकी बुद्धि अगम है।
29. वह यके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्य देता है।
30. तरूण तो यकते और श्र्मित हो जाते हैं, और जवान ठोकर खाकर गिरते हैं;
31. परन्तु जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएंगे, वे उकाबोंकी नाई उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्र्मित न होंगे, चलेंगे और यकित न होंगे।।
Chapter यशायाह 41
1. हे द्वीपों, मेरे साम्हने चुप रहो; देश देश के लोग नया बल प्राप्त करें; वे समीप आकर बोलें; हम आपस में न्याय के लिथे एक दूसरे के समीप आएं।।
2. किस ने पूर्व दिशा से एक को उभारा है, जिसे वह धर्म के साय अपके पांव के पास बुलाता है? वह जातियोंको उसके वश में कर देता और उसको राजाओं पर अधिक्कारनेी ठहराता है; उसकी तलवार वह उन्हें धूल के समान, और उसके धनुष से उड़ाए हुए भूसे के समान कर देता है।
3. वह उन्हें खदेड़ता और ऐसे मार्ग से, जिस पर वह कभी न चला या, बिना रोक टोक आगे बढ़ता है।
4. कि ने यह काम किया है और आदि से पीढिय़ोंको बुलाता आया है? मैं यहोवा, जो सब से पहिला, और अन्त के समय रहूंगा; मैं वहीं हूं।।
5. द्वीप देखकर डरते हैं, पृय्वी के दूर देश कांप उठे और निकट आ गए हैं।
6. वे एक दूसरे की सहाथता करते हैं और उन में से एक अपके भाई से कहता है, हियाव बान्ध!
7. बढ़ई सोनार को और हयौड़े से बराबर करनेवाला निहाई पर मारनेवाले को यह कहकर हियाव बन्धा रहा है, जोड़ तो अच्छी है, सो वह कील ठोंक ठोंककर उसको ऐसा दृढ़ करता है कि वह स्यिर रहे।।
8. हे मेरे दास इस्राएल, हे मेरे चुने हुए याकूब, हे मेरे प्रेमी इब्राहीम के वंश;
9. तू जिसे मैं ने पृय्वी के दूर दूर देशोंसे लिया और पृय्वी की छोर से बुलाकर यह कहा, तू मेरा दास है, मैं ने तुझे चुला है और तजा नहीं;
10. मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूं, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूं; मैं तुझे दृढ़ करूंगा और तेरी सहाथता करूंगा, अपके धर्ममय दहिने हाथ से मैं तुझे सम्हाले रहूंगा।।
11. देख, जो तुझ से क्रोधित हैं, वे सब लज्जित होंगे; जो तुझ से फगड़ते हैं उनके मुंह काले होंगे और वे नाश होकर मिट जाएंगे।
12. जो तुझ से लड़ते हैं उन्हें ढूंढने पर भी तू न पएगा; जो तुझ से युद्ध करते हैं वे नाश होकर मिट जाएंगे।
13. क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा, तेरा दहिना हाथ पकड़कर कहूंगा, मत डर, मैं तेरी सहाथता करूंगा।।
14. हे कीड़े सरीखे याकूब, हे इस्राएल के मनुष्यों, मत डरो! यहोवा की यह वाणी है, मैं तेरी सहयता करूंगा; इस्राएल का पवित्र तेरा छुड़ानेवाला है।
15. देख, मैं ने तुझे छुरीवाले दांवने का एक नया और चोखा यन्त्र ठहराया है; तू पहाड़ोंको दांय दांयकर स्ूझ्म धूलि कर देगा, और पहाडिय़ोंको तू भूसे के समान कर देगा।
16. तू उनको फटकेगा, और पवन उन्हें उड़ा ले जाएगी, और आंधी उन्हें तितर-बितर कर देगी। परन्तु तू यहोवा के कारण मगन होगा; और इस्राएल के पवित्र के कारण बड़ाई मारेगा।।
17. जब दी और दरिद्र लोग जल ढूंढ़ने पर भी न पाथें और उनका तालू प्यास के मारे सूख जाथे; मैं यहोवा उनकी बिनती सुनूंगा, मैं इस्राएल का परमेश्वर उनको त्याग न दूंगां
18. मैं मुण्डे टीलोंसे भी नदियां और मैदानोंके बीच में सोते बहऊंगा; मैं जंगल को ताल और निर्जल देश को सोते ही सोते कर दूंगा।
19. मैं जंगल में देवदार, बबूल, मेंहदी, और जलपाई उगाऊंगा; मैं अराबा में सनौवर, तिधार वृझ, और सीधा सनौबर इकट्ठे लगाऊंगा;
20. जिस से लोग देखकर जान लें, और सोचकर पूरी रीति से समझ लें कि यह यहोवा के हाथ का किया हुआ और इस्राएल के पवित्र का सृजा हुआ है।।
21. यहोवा कहता है, अपना मुकद्दमा लड़ो; याकूब का राजा कहता है, अपके प्रमाण दो।
22. वे उन्हें देकर हम को बताएं कि भविष्य में क्या होगा? पूर्वकाल की घटनाएं बताओ कि आदि में क्या क्या हुआ, जिस से हम उन्हें सोचकर जान सकें कि भविष्य में उनका क्या फल होगा; वा होनेवाली घटनाएं हम को सुना दो।
23. भविष्य में जो कुछ घटेगा वह बताओ, तब हम मानेंगे कि तुम ईश्वर हो; भला वा बुरा; कुछ तो करो कि हम देखकर एक चकित को जाएं।
24. देखो, तुम कुछ नहीं हो, तुम से कुछ नहीं बनता; जो कोई तुम्हें जानता है वह घृणित है।।
25. मैं ने एक को उत्तर दिशा से उभारा, वह आ भी गया है; वह पूर्व दिशा से है और मेरा नाम लेता है; जैसा कुम्हार गिली मिट्टी को लताड़ता है, वैसा ही वह हाकिमोंको कीच के समान लताड़ देगा।
26. किस ने इस बात को पहिले से बताया या, जिस से हम यह जानते? किस ने पूर्वकाल से यह प्रगट किया जिस से हम कहें कि वह सच्चा है? कोई भी बतानेवाला नहीं, कोई भी सुनानेवाला नहीं, तुम्हारी बातोंका कोई भी सुनानेवाला नहीं है।
27. मैं ही ने पहिले सिय्योन से कहा, देख, उन्हें देख, और मैं ने यरूशलेम को एक शुभ समाचार देनेवाला भेजा।
28. मैं ने देखने पर भी किसी को न पाया; उन में से कोई मन्त्री नहीं जो मेरे पूछने पर कुछ उत्तर दे सके।
29. सुनो, उन सभोंके काम अनर्य हैं; उनके काम तुच्छ हैं, और उनकी ढली हुई मूत्तियां वायु और मिय्या हैं।।
Chapter यशायाह 42
1. मेरे दास को देखो जिसे मैं संभाले हूं, मेरे चुने हुए को, जिस से मेरा जी प्रसन्न है; मैं ने उस पर अपना आत्मा रखा है, वह अन्यजातियोंके लिथे न्याय प्रगट करेगा।
2. न वह चिल्लाएगा और न ऊंचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपक्की वाणी सुनाथेगा।
3. कुचले हुए नरकट को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुफाएगा; वह सच्चाई से न्याय चुकाएगा।
4. वह न यकेगा और न हियाव छोड़ेगा जब तक वह न्याय को पृय्वी पर स्यिर न करे; और द्वीपोंके लोग उसकी व्यवस्या की बाट जाहेंगे।।
5. ईश्वर जो आकाश का सृजने और ताननेवाला है, जो उपज सहित पृय्वी का फैलानेवाला और उस पर के लोगोंको सांस और उस पर के चलनेवालोंको आत्मा देनेवाला यहावो है, वह योंकहता है:
6. मुझ यहोवा ने तुझ को धर्म से बुला लिया है; मैं तेरा हाथ याम कर तेरी रझा करूंगा; मैं तुझे प्रजा के लिथे वाचा और जातियोंके लिथे प्रकाश ठहराऊंगा; कि तू अन्धोंकी आंखें खोले,
7. बंधुओं को बन्दीगृह से निकाले और जो अन्धिक्कारने में बैठे हैं उनको कालकोठरी से निकाले।
8. मैं यहोवा हूं, मेरा नाम यही है; अपक्की महिमा मैं दूसरे को न दूंगा और जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतोंको न दूंगा।
9. देखो, पहिली बातें तो हो चुकी हैं, अब मैं नई बातें बताता हूं; उनके होने से पहिले मैं तुम को सुनाता हूं।।
10. हे समुद्र पर चलनेवालो, हे समुद्र के सब रहनेवालो, हे द्वीपो, तुम सब अपके रहनेवालो समेत यहोवा के लिथे नया गीत गाओ और पृय्वी की छोर से उसकी स्तुति करो।
11. जंगल और उस में की बस्तियां और केदार के बसे हुए गांव जयजयकार करें; सेला के रहनेवाले जयजयकार करें, वे पहाड़ोंकी चोटियोंपर से ऊंचे शब्द से ललकारें।
12. वे यहोवा की महिमा प्रगट करें और द्वीपोंमें उसका गुणानुवाद करें।
13. यहोवा वीर की नाईं निकलेगा और योद्धा के समान अपक्की जलन भड़काएगा, वह ऊंचे शब्द से ललकारेगा और अपके शत्रुओं पर जयवन्त होगा।।
14. बहुत काल से तो मैं चुप रहा और मौन साधे अपके को रोकता रहा; परन्तु अब जच्चा की नाईं चिल्लाऊंगा मैं हांफ हांफकर सांस भरूंगा।
15. पहाड़ोंऔर पहडिय़ोंको मैं सुखा डालूंगा और उनकी सब हरियाली फुलसा दूंगा; मैं नदियोंको द्वीप कर दूंगा और तालोंको सुखा डालूंगा।
16. मैं अन्धोंको एक मार्ग से ले चलूंगा जिसे वे नहीं जानते और उनको ऐसे पयोंसे चलाऊंगा जिन्हें वे नहीं जानते। उनके आगे मैं अन्धिक्कारने को उजियाला करूंगा और टेढ़े मार्गोंको सीधा कयंगा। मैं ऐसे ऐसे काम करूंगा और उनको न त्यागूंगा।
17. जो लोग खुदी हुई मूरतोंपर भरोसा रखते और ढली हुई मूरतोंसे कहते हैं कि तुम हमारे ईश्वर हो, उनको पीछे हटना और अत्यन्त लज्जित होना पकेगा।।
18. हे बहिरो, सुनो; हे अन्धो, आंख खोलो कि तुम देख सको!
19. मेरे दास के सियाव कौन अन्धा है? और मेरे भेजे हुए दूत के तुल्य कौन बहिरा है? मेरे मित्र के समान कौन अन्धा या यहोवा के दास के तुल्य अन्धा कौन है?
20. तू बहुत सी बातोंपर दृष्टि करता है परन्तु उन्हें देखता नहीं है; कान तो खुले हैं परन्तु सुनता नहीं है।।
21. यहोवा को अपक्की धामिर्कता के निमित्त ही यह भाया है कि व्यवस्या की बड़ाई अधिक करे।
22. परन्तु थे लोग लुट गए हैं, थे सब के सब गड़हियोंमें फंसे हुए और कालकोठरियोंमें बन्द किए हुए हैं; थे पकड़े गए और कोई इन्हें नहीं छुड़ाता; थे लुट गए और कोई आज्ञा नहीं देता कि फेर दो।
23. तुम में से कौन इस पर कान लगाएगा? कौन ध्यान धरके होनहार के लिथे सुनेगा?
24. किस ने याकूब को लुटवाया और इस्राएल को लुटेरोंके वश में कर दिया? क्या यहोवा ने यह नहीं किया जिसके विरूद्ध हम ने पाप किया, जिसके मार्गोंपर उन्होंने चलना न चाहा और न उसकी व्यवस्या को माना?
25. इस काण उस पर उस ने अपके क्रोध की आग भड़काई और युद्ध का बल चलाना; और यद्यिप आग उसके चारोंओर लग गई, तौभी वह न समझा; वह जल भी गया, तौभी न चेता।।
Chapter यशायाह 43
1. हे इस्राएल तेरा रचनेवाला और हे याकूब तेरा सृजनहार यहोवा अब योंकहता है, मत डर, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है; मैं ने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है।
2. जब तू जल में होकर जाए, मैं तेरे संग संग रहूंगा और जब तू नदियोंमें होकर चले, तब वे तुझे न डुबा सकेंगी; जब तू आग में चले तब तुझे आंच न लगेगी, और उसकी लौ तुझे न जला सकेगी।
3. क्योंकि मैं यहोवा तेरा परमेश्वर हूं, इस्राएल का पवित्र मैं तेरा उद्धारकर्ता हूं। तेरी छुड़ौती में मैं मिस्र को और तेरी सन्ती कूश और सबा को देता हूं।
4. मेरी दृष्टि में तू अनमोल और प्रतिष्ठित ठहरा है और मैं तुझ से प्रेम रखता हूं, इस कारण मैं तेरी सन्ती मनुष्योंको और तेरे प्राण के बदले में राज्य राज्य के लोगोंको दे दूंगा।
5. मत डर, क्योंकि मैं तेरे साय हूं; मैं तेरे वंश को पूर्व से ले आऊंगा, और पच्छिम से भी इकट्ठा करूंगा।
6. मैं उत्तर से कहूंगा, दे दे, और दक्खिन से कि रोक मत रख; मेरे पुत्रोंको दूर से और मेरी पुत्रियोंको पृय्वी की छोर से ले आओ;
7. हर एक को जो मेरा कहलाता है, जिसको मैं ने अपक्की महिमा के लिथे सृजा, जिसको मैं ने रचा और बनाया है।।
8. आंख रहते हुए अन्धोंको और कान रहते हुए बहिरोंको निकाल ले आओ!
9. जाति जाति के लोग इकट्ठे किए जाएं और राज्य राज्य के लोग एकत्रित हों। उन में से कौन यह बात बता सकता वा बीती हुई बातें हमें सुना सकता है? वे अपके साझी ले आएं जिस से वे सच्चे ठहरें, वे सुन लें और कहें, यह सत्य है।
10. यहोवा की वाणी है कि तुम मेरे साझी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैं ने इसलिथे चुना है कि समझकर मेरी प्रतीति करो और यह जान लो कि मैं वही हूं। मुझ से पहिले कोई ईश्वर न हुआ और न मेरे बाद कोई होगा।
11. मैं ही यहोवा हूं और मुझे छोड़ कोई उद्धारकर्ता नहीं।
12. मैं ही ने समाचार दिया और उद्धार किया और वर्णन भी किया, जब तुम्हारे बीच में कोई पराया देवता न या; इसलिथे तुम ही मेरे साझी हो, यहोवा की यह वाणी है।
13. मैं ही ईश्वर हूं और भविष्य में भी मैं ही हूं; मेरे हाथ से कोई छुड़ा न सकेगा; जब मैं काम करना चाहूं तब कौन मुझे रोक सकेगा।।
14. तुम्हारा छुड़ानेवाला और इस्राएल का पवित्र यहोवा योंकहता है, तुम्हारे निमित्त मैं ने बाबुल को भेजा है, और उसके सब रहनेवालोंको भगोड़ोंकी दशा में और कसदियोंको भी उन्हीं के जहाजोंपर चढ़ाकर ले आऊंगा जिन के विषय वे बड़ा बोल बोलते हैं।
15. मैं यहोवा तुम्हारा पवित्र, इस्राएल का सृजनहार, तुम्हारा राजा हूं।
16. यहोवा जो समुद्र में मार्ग और प्रचण्ड धारा में पय बनाता है,
17. जो रयोंऔर घोड़ोंको और शूरवीरोंसमेत सेना को निकाल लाता है, (वे तो एक संग वहीं रह गए और फिर नहीं उठ सकते, वे बुफ गए, वे सन की बत्ती की नाईं बुफ गए हैं।) वह योंकहता है,
18. अब बीती हुई घटनाओं का स्मरण मत करो, न प्राचीनकाल की बातोंपर मन लगाओ।
19. देखो, मैं एक नई बात करता हूं; वह अभी प्रगट होगी, क्या तुम उस से अनजान रहोगे? मैं जंगल में एक मार्ग बनाऊंगा और निर्जल देश में नदियां बहाऊंगा।
20. गीदड़ और शुतर्मुर्ग आदि जंगली जन्तु मेरी महिमा करेंगे; क्योंकि मैं अपक्की चुनी हुई प्रजा के पीने के लिथे जंगल में जल और निर्जल देश में नदियां बहाऊंगा।
21. इस प्रजा को मैं ने अपके लिथे बनाया है कि वे मेरा गुणानुवाद करें।।
22. तौभी हे याकूब, तू ने मुझ से प्रार्यना नहीं की; वरन हे इस्राएल तू मुझ से उकता गया है!
23. मेरे लिथे होमबलि करने को तू मेम्ने नहीं लाया और न मेलबलि चढ़ाकर मेरी महिमा की है। देख, मैं ने अन्नबलि चढ़ाने की कठिन सेवा तुझ से नहीं कराई, न तुझ से धूप लेकर तुझे यका दिया है।
24. तू मेरे लिथे सुगन्धित नरकट रूपऐ से मोल नहीं लाया और न मेलबलियोंकी चर्बी से मुझे तृप्त किया। परन्तु तू ने अपके पापोंके कारण मुझ पर बोफ लाट दिया है, और अपके अधर्म के कामोंसे मुझे यका दिया है।।
25. मैं वही हूं जो अपके नाम के निमित्त तेरे अपराधोंको मिटा देता हूं और तेरे पापोंको स्मरण न करूंगा।
26. मुझे स्मरण करो, हम आपस में विवाद करें; तू अपक्की बात का वर्णन कर जिस से तू निर्दोष ठहरे।
27. तेरा मूलपुरूष पापी हुआ और जो जो मेरे और तुम्हारे बीच बिचवई हुए, वे मुझ से बलवा करते चले आए हैं।
28. इस कारण मैं ने पवित्रस्यान के हाकिमोंको अपवित्र ठहराया, मैं ने याकूब को सत्यानाश और इस्राएल को निन्दित होने दिया है।।
Chapter यशायाह 44
1. परन्तु अब हे मेरे दास याकूब, हे मेरे चुने हुए इस्राएल, सुन ले!
2. तेरा कर्त्ता यहोवा, जो तुझे गर्भ ही से बनाता आया और तेरी सहाथता करेगा, योंकहता है, हे मेरे दास याकूब, हे मेरे चुने हुए यशूरून, मत डर!
3. क्योंकि मैं प्यासी भूमि पर जल और सूखी भूमि पर धाराएं बहाऊंगा; मैं तेरे वंश पर अपक्की आत्मा और तेरी सन्तान पर अपक्की आशीष उण्डेलूंगा।
4. वे उन मजनुओं की नाईं बढ़ेंगे जो धाराओं के पास घास के बीच में होते हैं।
5. कोई कहेगा, मैं यहोवा का हूं, कोई अपना नाम याकूब रखेगा, कोई अपके हाथ पर लिखेगा, मैं यहोवा का हूं, और अपना कुलनाम इस्राएली बताएगा।।
6. यहोवा, जो इस्राएल का राजा है, अर्यात् सेनाओं का यहोवा जो उसका छुड़ानेवाला है, वह योंकहता है, मैं सब से पहिला हूं, और मैं ही अन्त तक रहूंगा; मुझे छोड़ कोई परमेश्वर है ही नहीं।
7. और जब से मैं ने प्राचीनकाल में मनुष्योंको ठहराया, तब से कौन हुआ जो मेरी नाईं उसको प्रचार करे, वा बताए वा मेरे लिथे रचे अयवा होनहार बातें पहिले ही से प्रगट करे?
8. मत डरो और न भयमान हो; क्या मैं ने प्राचीनकाल ही से थे बातें तुम्हें नहीं सुनाईं और तुम पर प्रगट नहीं कीं? तुम मेरे साझी हो। क्या मुझे छोड़ कोई और परमेश्वर है? नहीं, मुझे छोड़ कोई चट्टान नहीं; मैं किसी और को नहीं जानता।।
9. जो मूरत खोदकर बनाते हैं, वे सब के सब व्यर्य हैं और जिन वस्तुओं में वे आनन्द ढूंढते उन से कुछ लाभ न होगा; उसके साझी, न तो आप कुछ देखते और न कुछ जानते हैं, इसलिथे उनको लज्जित होना पकेगा।
10. किस ने देवता वा निष्फल मूरत ढाली है?
11. देख, उसके सब संगियोंको तो लज्जित होना पकेगा, कारीगर तो मनुष्य ही है; वे सब के सब इकट्ठे होकर खड़े हों; वे डर जाएंगे; वे सब के सब लज्जित होंगे।
12. लोहार एक बसूला अंगारोंमे बनाता और हयौड़ोंसे गढ़कर तैयार करता है, अपके भुजबल से वह उसको बनाता है; फिर वह भूखा हो जाता है और उसका बल घटता है, वह पानी नहीं पीता और यक जाता है।
13. बढ़ई सूत लगाकर टांकी से रखा करता है और रन्दनी से काम करता और परकार से रेखा खींचता है, वह उसका आकार और मनुष्य की सी सुन्दरता बनाता है ताकि लोग उस घर में रखें।
14. वह देवदार को काटता वा वन के वृझोंमें से जाति जाति के बांजवृझ चुनकर सेवता है, वह एक तूस का वृझ लगाता है जो वर्षा का जल पाकर बढ़ता है।
15. तब वह मनुष्य के ईंधन के काम में आता है; वह उस में से कुछ सुलगाकर तापता है, वह उसको जलाकर रोटी बनाता है; उसी से वह देवता भी बनाकर उसको दण्डवत् करता है; वह मूरत खुदवाकर उसके साम्हने प्रणाम करता है।
16. और उसके बचे हुए भाग को लेकर वह एक देवता अर्यात् एक मूरत उसका एक भाग तो वह आग में जलाता और दूसरे भाग से मांस पकाकर खाता है, वह मांस भूनकर तृप्त होता; फिर तपाकर कहता है, अहा, मैं गर्म हो गया, मैं ने आग देखी है!
17. खोदकर बनाता है; तब वह उसके साम्हने प्रणाम और दण्डवत् करता और उस से प्रार्यना करके कहता है, मुझे बचा ले, क्योंकि तू मेरा देवता है। वे कुछ नहीं जानते, न कुछ समझ रखते हैं;
18. क्योंकि उनकी आंखें ऐसी मून्दी गई हैं कि वे देख नहीं सकते; और उनकी बुद्धि ऐसी कि वे बूफ नहीं सकते।
19. कोई इस पर ध्यान नहीं करता, और न किसी को इतना ज्ञान वा समझ रहती है कि कह सके, उसका एक भाग तो मैं ने जला दिया और उसके कोयलोंपर रोटी बनाई; और मांस भूनकर खाया है; फिर क्या मैं उसके बचे हुए भाग को घिनौनी वस्तु बनाऊं? क्या मैं काठ को प्रणाम करूं?
20. वह राख खाता है; भरमाई हुई बुद्धि के कारण वह भटकाया गया है और वह न अपके को बचा सकता और न यह कह सकता है, क्या मेरे दहिने हाथ में मिय्या नहीं?
21. हे याकूब, हे इस्राएल, इन बातोंको स्मरण कर, तू मेरा दास है, मैं ने तुझे रचा है; हे इस्राएल, तू मेरा दास है, मैं तुझ को न बिसराऊंगा।
22. मैं ने तेरे अपराधोंको काली घटा के समान और तेरे पापोंको बादल के समान मिटा दिया है; मेरी ओर फिर लौट आ, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है।।
23. हे आकाश, ऊंचे स्वर से गा, क्योंकि यहोवा ने यह काम किया है; हे पृय्वी के गहिरे स्यानों, जयजयकार करो; हे पहाड़ों, हे वन, हे वन के सब वृझों, गला खोलकर ऊंचे स्वर से गाओ! क्योंकि यहोवा ने याकूब को छुड़ा लिया है और इस्राएल में महिमावान होगा।।
24. यहोवा, तेरा उद्धारकर्त्ता, जो तुझे गर्भ ही से बनाता आया है, योंकहता है, मैं यहोवा ही सब का बनानेवाला हूं जिस ने अकेले ही आकाश को ताना और पृय्वी को अपक्की ही शक्ति से फैलाया है।
25. मैं फूठे लोगोंके कहे हुए चिन्होंको व्यर्य कर देता और भावी कहनेवालोंको बावला कर देता हूं; जो बुद्धिमानोंको पीछे हटा देता और उनकी पण्डिताई को मूर्खता बनाता हूं;
26. और अपके दास के वचन को पूरा करता और अपके दूतोंकी युक्ति को सुफल करता हूं; जो यरूशलेम के विषय कहता है, वह फिर बसाई जाएगी और यहूदा के नगरोंके विषय, वे फिर बनाए जाएंगे और मैं उनके खण्डहरोंको सुधारूंगा;
27. जो गहिरे जल से कहता है, तू सूख जा, मैं तेरी नदियोंको सुखाऊंगा;
28. जो कुस्रू के विषय में कहता है, वह मेरा ठहराया हुआ चरवाहा है और मेरी इच्छा पूरी करेगा; यरूशलेम के विषय कहता है, वह बसाई जाएगी और मन्दिर के विषय कि तेरी नेव डाली जाएगी।।
Chapter यशायाह 45
1. यहोवा अपके अभिषिक्त कुस्रू के विषय योंकहता है, मैं ने उस के दहिने हाथ को इसलिथे याम लिया है कि उसके साम्हने जातियोंको दबा दूं और राजाओं की कमर ढीली करूं, उसके साम्हने फाटकोंको ऐसा खोल दूं कि वे फाटक बन्द न किए जाएं।
2. मैं तेरे आगे आगे चलूंगा और ऊंची ऊंची भूमि को चौरस करूंगा, मैं पीतल के किवाड़ोंको तोड़ डालूंगा और लोहे के बेड़ोंको टुकड़े टुकड़े कर दूंगा।
3. मैं तुझ को अन्घकार में छिपा दूंगा, जिस से तू जाने कि मैं इस्राएल का परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे नाम लेकर बुलाता है।
4. अपके दास याकूब और अपके चुने हुए इस्राएल के निमित्त मैं ने नाम लेकर तुझे बुलाया है; यद्यिप तू मुझे नहीं जानता, तौभी मैं ने तुझे पदवी दी है।
5. मैं यहोवा हूं और दूसरा कोई नहीं, मुझे छोड़ कोई परमेश्वर नहीं; यद्यपि तू मुझे नहीं जानता, तौभी मैं तेरी कमर कसूंगा,
6. जिस से उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक लोग जान लें कि मुझ बिना कोई है ही नहीं है।
7. मैं उजियाले का बनानेवाला और अन्धिक्कारने का सृजनहार हूं, मैं शान्ति का दाता और विपत्ति को रचता हूं, मैं यहोवा ही इन सभोंका कर्त्ता हूं।
8. हे आकाश, ऊपर से धर्म बरसा, आकाशमण्डल से धर्म की वर्षा हो; पृय्वी खुले कि उद्धार उत्पन्न हो; और धर्म भी उसके संग उगाए; मैं यहोवा ही ने उसे उत्पन्न किया है।।
9. हाथ उस पर जो अपके रचनेवाले से फगड़ता है! वह तो मिट्टी के ठीकरोंमें से एक ठीकरा ही है! क्या मिट्टी कुम्हार से कहेगी, तू यह क्या करता है? क्या कारीगर का बनाया हुआ कार्य उसके विषय कहेगा कि उसके हाथ नहीं है?
10. हाथ उस पर जो अपके पिता से कहे, तू क्या जन्माता है? और मां से कहे, तू किस की माता है?
11. यहोवा जो इस्राएल का पवित्र और उसका बनानेवाला है, वह योंकहता है, क्या तुम आनेवाली घटनाएं मुझ से पूछोगे? क्या मेरे पुत्रोंऔर मेरे कामोंके विषय मुझे आज्ञा दोगे?
12. मैं ही ने पृय्वी को बनाया और उसके ऊपर मनुष्योंको सृजा है; मैं ने अपके ही हाथोंसे आकाश को ताना और उसके सारे गणोंकोंआज्ञा दी है।
13. मैं ही ने उस पुरूष को धामिर्कता से उभारा है और मैं उसके सब मार्गोंको सीधा करूंगा; वह मेरे नगर को फिर बसाएगा और मेरे बंधुओं को बिना दाम या बदला लिए छुड़ा देगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।।
14. यहोवा योंकहता है, मिस्रियोंकी कमाई और कूशियोंके ब्योपार का लाभ और सबाई लोग जो डील-डौलवाले हैं, तेरे पास चले आएंगे, और तेरे ही हो जाएंगे, वे तेरे पीछे पीछे चलेंगे; वे सांकलोंमें बन्धे हुए चले आएंगे और तेरे साम्हने दण्डवत् कर तुझ से बिनती करके कहेंगे, निश्चय परमेश्वर तेरे ही साय है और दूसरा कोई नहीं; उसके सिवाय कोई और परमेश्वर नहीं।।
15. हे इस्राएल के परमेश्वर, हे उद्धारकर्त्ता! निश्चय तू ऐसा ईश्वर है जो अपके को गुप्त रखता है।
16. मूत्तियोंके गढ़नेवाले सब के सब लज्जित और चकित होंगे, वे सब के सब व्याकुल होंगे।
17. परनतु इस्राएल यहोवा के द्वारा युग युग का उद्धार पाएगा; तुम युग युग वरन अनन्तकाल तक न तो कभी लज्जित और न कभी व्याकुल होगे।।
18. क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृय्वी को रख और बनाया, उसी ने उसको स्यिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिथे नहीं परन्तु बसने के लिथे उसे रचा है। वही योंकहता है, मैं यहोवा हूं, मेरे सिवा दूसरा और कोई नहीं है।
19. मैं ने न किसी गुप्त स्यान में, न अन्धकार देश के किसी स्यान में बातें कीं; मैं ने याकूब के वंश से नहीं कहा, मुझे व्यर्य में ढूंढ़ों। मैं यहोवा सत्य ही कहता हूं, मैं उचित बातें ही बताता हूं।।
20. हे अन्यजातियोंमें से बचे हुए लोगो, इकट्ठे होकर आओ, एक संग मिलकर निकट आओ! वह जो अपक्की लकड़ी की खोदी हुई मूरतें लिए फिरते हैं और ऐसे देवता से जिस से उद्धार नहीं हो सकता, प्रार्यना करते हैं, वे अज्ञान हैं।
21. तुम प्रचार करो और उनको लाओ; हां, वे आपस में सम्मति करें किस ने प्राचीनकाल से यह प्रगट किया? किस ने प्राचीनकाल में इसकी सूचना पहिले ही से दी? क्या मैं यहोवा ही ने यह नहीं किया? इसलिथे मुझे छोड़ कोई और दूसरा परमेश्वर नहीं है, धर्मी और उद्धारकर्ता ईश्वर मुझे छोड़ और कोई नहीं है।।
22. हे पृय्वी के दूर दूर के देश के रहनेवालो, तुम मेरी ओर फिरो और उद्धार पाओ! क्योंकि मैं ही ईश्वर हूं और दूसरा कोई नहीं है।
23. मैं ने अपक्की ही शपय खाई, धर्म के अनुसार मेरे मुख से यह वचन निकला है और वह नहीं टलेगा, प्रत्थेक घुटना मेरे सम्मुख फुकेगा और प्रत्थेक के मुख से मेरी ही शपय खाई जाएगी।।
24. लोग मेरे विषय में कहेंगे, केवल यहोवा ही में धर्म और शक्ति है। उसी के पास लोग आएंगे। और जो उस से रूठे रहेंगे, उन्हें लज्जित होना पकेगा।
25. इस्राएल के सारे वंश के लोग यहोवा ही के कारण धर्मी ठहरेंगे, और उसकी महिमा करेंगे।।
Chapter यशायाह 46
1. बेल देवता फुक गया, नबो देवता नब गया है, उनकी प्रतिमाएं पशुओं वरन घरैलू पशुओं पर लदी हैं; जिन वस्तुओं को तुम उठाए फिरते थे, वे अब भारी बोफ हो गईं और यकित पशुओं पर लदी हैं।
2. वे नब गए, वे एक संग फुक गए, वे उस भार को छुड़ा नहीं सके, और आप भी बंधुआई में चले गए हैं।।
3. हे याकूब के घराने, हे इस्राएल के घराने के सब बचे हुए लोगो, मेरी ओर कान लगाकर सुनो; तुम को मैं तुम्हारी उत्पत्ति ही से उठाए रहा और जन्म ही से लिए फिरता आया हूं।
4. तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूंगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूंगा। मैं ने तुम्हें बनाया और तुम्हें लिए फिरता रहूंगा;
5. मैं तुम्हें उठाए रहूंगा और छुड़ाता भी रहूंगा।। तुम किस से मेरी उपमा दोगे और मुझे किस के समान बताओगे, किस से मेरा मिलान करोगे कि हम एक समान ठहरें?
6. जो यैली से सोना उण्डेलते वा कांटे में चान्दी तौलते हैं, जो सुनार को मजदुरी देकर उस से देवता बनवाले हैं, तब वे उसे प्रणाम करते वरन दण्डवत् भी करते हैं!
7. वे उसको कन्धे पर उठाकर लिए फिरते हैं, वे उसे उसके स्यान में रख देते और वह वहीं खड़ा रहता है; वह अपके स्यान से हट नहीं सकता; यदि कोई उसकी दोहाई भी दे, तौभी न वह सुन सकता है और न विपत्ति से उसका उद्धार कर सकता है।।
8. हे अपराधियों, इस बात को स्मरण करो और ध्यान दो, इस पर फिर मन लगाओ।
9. प्राचीनकाल की बातें स्मरण करो जो आरम्भ ही से है; क्योंकि ईश्वर मैं ही हूं, दूसरा कोई नहीं; मैं ही परमेश्वर हूं और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है।
10. मै तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूं जो अब तक नहीं हुई। मैं कहता हूं, मेरी युक्ति स्यिर रहेगी और मैं अपक्की इच्छा को पूरी करूंगा।
11. मैं पूर्व से एक उकाब पक्की को अर्यात् दूर देश से अपक्की युक्ति के पूरा करनेवाले पुरूष को बुलाता हूं। मैं ही ने यह बात कही है और उसे पूरी भी करूंगा; मैं ने यह विचार बान्घा है और उसे सुफल भी करूंगा।
12. हे कठोर मनवालो तुम जो धर्म से दूर हो, कान लगाकर मेरी सुनो।
13. मैं अपक्की धामिर्कता को समीप ले आने पर हूं वह दूर नहीं है, और मेरे उद्धार करने में विलम्ब न होगा; मैं सिय्योन का उद्धार करूंगा और इस्राएल को महिमा दूंगा।।
Chapter यशायाह 47
1. हे बाबुल की कुमारी बेटी, उतर आ और धूलि पर बैठ; हे कसदियोंकी बेटी तू बिना सिंहासन भूमि पर बैठ! क्योंकि तू अब फिर कोमल और सुकुमार न कहलाएगी।
2. चक्की लेकर आटा पीस, अपना घूंघट हटा और घाघरा समेंट ले और उघारी टांगोंसे नदियोंको पार कर।
3. तेरी नग्नता उघाड़ी जाएगी और तेरी लज्जा प्रगट होगी। मैं बदला लूंगा और किसी मनुष्य को ग्रहण न करूंगा।।
4. हमारा छुटकारा देनेवाले का नाम सेनाओं का यहोवा और इस्राएल का पवित्र है।।
5. हे कसदियोंकी बेटी, चुपचाप बैठी रह और अन्धिक्कारने में जो; क्योंकि तू अब राज्य राज्य की स्वामिन न कहलाएगी।
6. मैं ने अपक्की प्रजा से क्रोधित होकर अपके निज भाग को अपवित्र ठहराया और तेरे वश में कर दिया; तू न उन पर कुछ दया न की; बूढ़ोंपर तू ने अपना अत्यन्त भारी जूआ रख दिया।
7. तू ने कहा, मैं सर्वदा स्वामिन बनी रहूंगी, सो तू ने अपके मन में इन बातोंपर विचार न किया और यह भी न सोचा कि उनका क्या फल होगा।।
8. इसलिथे सुन, तू जो राग-रंग में उलफी हुई निडर बैठी रहती है और मन में कहती है कि मैं ही हूं, और मुझे छोड़ कोई दूसरा नहीं; मैं विधवा की नाईं न बैठूंगी और न मेरे लड़केबोल मिटेंगे।
9. सुन, थे दोनोंदु:ख अर्यात् लड़कोंका जाता रहता और विधवा हो जाना, अचानक एक ही दिन तुझ पर आ पकेंगे। तेरे बहुत से टोनोंऔर तेरे भारी भारी तन्त्र-मन्त्रोंके रहते भी थे तुझ पर अपके पूरे बल से आ पकेंगे।।
10. तू ने अपक्की दुष्टता पर भरोसा रखा, तू ने कहा, मुझे कोई नहीं देखता; तेरी बुद्धि और ज्ञान ने तुझे बहकाया और तू ने अपके मन में कहा, मैं ही हूं और मेरे सिवाय कोई दूसरा नहीं।
11. परन्तु तेरी ऐसी दुर्गती होगी जिसका मन्त्र तू नहीं जानती, और तुझ पर ऐसी विपत्ति पकेगी कि तू प्रायश्चित करके उसका निवारण न कर सकेगी; अचानक विनाश तुझ पर आ पकेगा जिसका तुझे कुछ भी पता नहीं।।
12. अपके तन्त्र मन्त्र और बहुत से टोनहोंको, जिनका तू ने बाल्यावस्या ही से अभ्यास किया है उपयोग में ला, सम्भव है तू उन से लाभ उठा सके या उनके बल से स्यिर रह सके।
13. तू तो युक्ति करते करते यक गई है; अब तेरे ज्योतिषी जो नझत्रोंको ध्यान से देखते और नथे नथे चान्द को देखकर होनहार बताते हैं, वे खड़े होकर तुझे उन बातोंसे बचाए जो तुझ पर घटेंगी।।
14. देख; वे भूसे के समान होकर आग से भस्म हो जाएंगे; वे अपके प्राणोंको ज्वाला से न बचा सकेंगे। वह आग तापके के लिथे नहीं, न ऐसी होगी जिसके साम्हने कोई बैठ सके!
15. जिनके लिथे तू परिश्र्म करती आई है वे सब तेरे लिथे वैसे ही होंगे, और जो तेरी युवावस्या से तेरे संग व्योपार करते आए हैं, उन मे ंसे प्रत्थेक अपक्की अपक्की दिशा की ओर चले जाएंगे; तेरा बचानेवाला कोई न रहेगा।।
Chapter यशायाह 48
1. हे याकूब के घराने, यह बात सुन, तुम जो इस्राएली कहलाते हो; जो यहोवा के नाम की शपय खाते हो और इस्राएल के परमेश्वर की चर्चा तो करते हो, परन्तु सच्चाई और धर्म से नहीं करते।
2. क्योंकि वे अपके को पवित्र नगर के बताते हैं, और इस्राएल के परमेश्वर पर जिसका नाम सेनाओं का यहोवा है भरोसा करते हैं।।
3. होनेवाली बातोंको तो मैं ने प्राचीनकाल ही से बताया है, और उनकी चर्चा मेरे मुंह से निकली, मैं ने अचानक उन्हें प्रगट किया और वे बातें सचमुच हुईं।
4. मैं जानता या कि तू हठीला है और तेरी गर्दन लोहे की नस और तेरा माया पीतल का है।
5. इस कारण मैं ने इन बातोंको प्राचीनकाल ही से तुझे बताया उनके होने से पहिले ही मैं ने तुझे बता दिया, ऐसा न हो कि तू यह कह पाए कि यह मेरे देवता का काम है, मेरी खोदी और ढली हुई मूत्तिर्योंकी आज्ञा से यह हुआ ।।
6. तू ने सुना हे, सो अब इन सब बातोंपर ध्यान कर; और देखो, क्या तुम उसका प्रचार न करोगे? अब से मैं तुझे नई नई बातें और एसी गुप्त बातें सुनाऊंगा जिन्हें तू नही जानता।
7. वे अभी अभी सृजी गई हैं, प्राचीनकाल से नहीं; परन्तु आज से पहिले तू ने उन्हें सुना भी न या, ऐसा न हो कि तू कहे कि देख मैं तो इन्हें जानता या।
8. हां निश्चय तू ने उन्हें न तो सुना, न जाना, न इस से पहिले तेरे कान ही खुले थे। क्योंकि मैं जानता या कि तू निश्चय विश्वासघात करेगा, और गर्भ ही से तेरा नाम अपराधी पड़ा है।।
9. अपके ही नाम के निमित्त मैं क्रोध करने में विलम्ब करता हूं, ओर अपक्की महिमा के निमित्त अपके तईं रोक रखता हूं, ऐसा न हो कि मैं तुझे काट डालूं।
10. देख, मैं ने तुझे निर्मल तो किया, परन्तु, चान्दी की नाईं नहीं; मैं ने दु:ख की भट्ठी में परखकर तुझे चुन लिया है।
11. अपके निमित्त, हां अपके ही निमित्त मैं ने यह किया है, मेरा नाम क्योंअपवित्र ठहरे? अपक्की महिमा मैं दूसरे को नहीं दूंगा।।
12. हे याकूब, हे मेरे बुलाए हुए इस्राएल, मेरी ओर कान लगाकर सुन! मैं वही हूं, मैं ही आदि और मैं ही अन्त हूं।
13. निश्चय मेरे ही हाथ ने पृय्वी की नेव डाली, और मेरे ही दहिने हाथ ने आकाश फैलाया; जब मैं उनको बुलाता हूं, वे एक साय उपस्यित हो जाते हैं।।
14. तुम सब के सब इकट्ठे होकर सुनो! उन में से किस ने कभी इन बातोंका समाचार दिया? यहोवा उस से प्रेम रखता है: वह बाबुल पर अपक्की इच्छा पूरी करेगा, और कसदियोंपर उसका हाथ पकेगा।
15. मैं ने, हां मैं ही ने कहा और उसको बुलाया है, मैं उसको ले आया हूं, और, उसका काम सुफल होगा।
16. मेरे निकट आकर इस बात को सुनो: आदि से लेकर अब तक मैं ने कोई भी बात गुप्त में नही कही; जब से वह हुआ तब से मैं वहां हूं। और अब प्रभु यहोवा ने और उसकी आत्मा ने मुझे भेज दिया है।।
17. यहोवा जो तेरा छुड़ानेवाला और इस्राएल का पवित्र है, वह यो कहता है, मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिथे शिझा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।
18. भला होता कि तू ने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरा धर्म समुद्र की लहरोंके नाई होता;
19. तेरा वंश बालू के किनकोंके तुल्य होता, और तेरी निज सन्तान उसके कणोंके समान होती; उनका नाम मेरे सम्मुख से न कभी काटा और न मिटाया जाता।।
20. बाबुल में से निकल जाओ, कसदियोंके बीच में से भाग जाओ; जयजयकार करते हुए इस बात को प्रचार करके सुनाओ, पृय्वी की छोर तक इसकी चर्चा फैलाओ; कहते जाओ कि यहोवा ने अपके दास याकूब को छुड़ा लिया है!
21. जब वह उन्हें निर्जल देशोंमें ले गया, तब वे प्यासे न हुए; उस ने उनके लिथे चट्टान में से पानी निकाला; उस ने चट्टान को चीरा और जल बह निकला।
22. दुष्टोंके लिथे कुछ शान्ति नहीं, यहोवा का यही वचन है।।
Chapter यशायाह 49
1. हे द्वीपो, मेरी और कान लगाकर सुनो; हे दूर दूर के राज्योंके लागों, ध्यान लगाकर मेरी सुनो! यहोवा ने मुझे गर्भ ही में से बुलाया, जब मैं माता के पेट में या, तब ही उस ने मेरा नाम बताया।
2. उस ने मेरे मुंह को चोखी तलवार के समान बनाया और अपके हाथ की आड़ में मुझे छिपा रखा; उस ने मुझ को चमकिला तीर बनाकर अपके तर्कश में गुप्त रखा।
3. ओर मुझ से कहा, तू मेरा दास इस्राएल है, मैं तुझ में अपक्की महिमा प्रगट करूंगा।
4. तब मैं ने कहा, मैं ने तो व्यर्य परिश्र्म किया, मैं ने व्यर्य ही अपना बल खो दिया है; तौभी निश्चय मेरा न्याय यहोवा के पास है और मेरे परिश्र्म का फल मेरे परमेश्वर के हाथ में है।।
5. ओर अब यहोवा जिस ने मुझे जन्म ही से इसलिथे रख कि मैं उसका दास होकर याकूब को उसकी ओर फेर ले आऊं अर्यात् इस्राएल को उसके पास इकट्ठा करूं, क्योंकि यहोवा की दृष्टि में मैं आदरयोग्य हूं और मेरा परमेश्वर मेरा बल है,
6. उसी ने मुझ से यह भी कहा है, यह तो हलकी सी बात है कि तू याकूब के गोत्रोंका उद्धार करने और इस्राएल के रझित लोगोंको लौटा ले आने के लिथे मेरा सेवक ठहरे; मैं तुझे अन्यजातियोंके लिथे ज्योति ठहराऊंगा कि मेरा उद्धार पृय्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए।।
7. जो मनुष्योंसे तुच्छ जाना जाता, जिस से जातियोंको घृणा है, और, जो अपराधियोंका दास है, इस्राएल का छुड़ानेवाला और उसका पवित्र अर्यात् यहावो योंकहता है, कि राजा उसे देखकर खड़े हो जाएंगे और हाकिम दण्डवत् करेंगे; यह यहोवा के निमित्त होगा, जो सच्चा और इस्राएल का पवित्र है और जिस ने तुझे चुन लिया है।।
8. यहोवा योंकहता है, अपक्की प्रसन्नता के समय मैं ने तेरी सुन ली, उद्धार करने के दिन मैं ने तेरी सहाथता की है; मैं तेरी रझा करके तुझे लोगोंके लिथे एक वाचा ठहराऊंगा, ताकि देश को स्यिर करे और उजड़े हुए स्यानोंको उनके अधिक्कारनेियोंके हाथ में दे दे; और बंधुओं से कहे, बन्दीगृह से निकल आओ;
9. और जो अन्धिक्कारने में हैं उन से कहे, अपके आप को दिखलाओ! वे मार्गोंके किनारे किनारे पेट भरने पाएंगे, सब मुण्डे टीलोंपर भी उनको चराई मिलेगी।
10. वे भूखे और प्यासे होंगे, न लूह और न घाम उन्हें लगेगा, क्योंकि, वह जा उन पर दया करता है, वही उनका अगुवा होगा, और जल के सोतोंके पास उन्हें ले चलेगा।
11. और, मैं अपके सब पहाड़ोंको मार्ग बना दूंगा, और मेरे राजमार्ग ऊंचे किए जाएंगे।
12. देखो, थे दूर से आएंगे, और, थे उत्तर और पच्छिम से और सीनियोंके देश से आएंगे।
13. हे आकाश, जयजयकार कर, हे पृय्वी, मगन हो; हे पहाड़ों, गला खोलकर जयजयकार करो! क्योंकि यहोवा ने अपक्की प्रजा को शान्ति दी है और अपके दीन लोगोंपर दया की है।।
14. परन्तु सिय्योन ने कहा, यहोवा ने मुझे त्याग दिया है, मेरा प्रभु मुझे भूल गया है।
15. क्या यह हो सकता है कि कोई माता अपके दूघपिउवे बच्चे को भूल जाए और अपके जन्माए हुए लड़के पर दया न करे? हां, वह तो भूल सकती है, परन्तु मैं तुझे नहीं भूल सकता।
16. देख, मैं ने तेरा चित्र हथेलियोंपर खोदकर बनाया है; तेरी शहरपनाह सदैव मेरी दृष्टि के साम्हने बनी रहती है।
17. तेरे लड़के फुर्ती से आ रहे हैं और खण्डहर बनानेवाले और उजाड़नेवाले तेरे बीच से निकले जा रहे हैं।
18. अपक्की आंखें उठाकर चारोंओर देख, वे सब के सब इकट्ठे होकर तेरे पास आ रहे हैं। यहोवा की यह वाणी है कि मेरे जीवन की शपय, तू निश्चय उन सभोंको गहने के समान पहिल लेगी, तू दुल्हिन की नाई अपके शरीर में उन सब को बान्ध लेगी।।
19. तेरे जो स्यान सुनसान और उजड़े हैं, और तेरे जो देश खण्डहर ही खण्डहर हैं, उन में अब निवासी न समाएंगे, और, तुझे नष्ट करनेवाले दूर हो जाएंगे।
20. तेरे पुत्र जो तुझ से ले लिए गए वे फिर तेरे कान में कहने पाएंगे कि यह स्यान हमारे लिथे सकेत है, हमें और स्यान दे कि उस में रहें।
21. तब तू मन में कहेगी, किस ने इनको मेरे लिथे जन्माया? मैं तो पुत्रहीन और बांफ हो गई यीं, दासत्व में और यहां वहां मैं घूमती रही, इनको किस ने पाला? देख, मैं अकेली रह गई यी; फिर थे कहां थे?
22. प्रभु यहोवा योंकहता है, देख, थे अपना हाथ जाति जाति के लोगोंकी ओर उठाऊंगा, और देश देश के लोगोंके साम्हने अपना फण्डा खड़ा करूंगा; तब वे तेरे पुत्रोंको अपक्की गोद में लिए आएंगे, और तेरी पुत्रियोंको अपके कन्धे पर चढ़ाकर तेरे पास पहुंचाएंगे।
23. राजा तेरे बच्चोंके निज-सेवक और उनकी रानियां दूध पिलाने के लिथे तेरी धाइयोंहोंगी। वे अपक्की नाक भूमि पर रगड़कर तुझे दण्डवत् करेंगे और तेरे पांवोंकी धूलि चाटेंगे। तब तू यह जान लेगी कि मैं ही यहोवा हूं; मेरी बाट जोहनेवाले कभी लज्जित न होंगे।।
24. क्या वीर के हाथ से शिकार छीना जा सकता है? क्या दुष्ट के बंघुए छुड़ाए जा सकते हैं?
25. तौभी यहोवा योंकहता है, हां, वीर के बंधुए उस से छीन लिए जांएगे, और बलात्कारी का शिकार उसके हाथ से छुड़ा लिया जाएगा, क्योंकि जो तुझ से लड़ते हैं उन से मैं आप मुकद्दमा लडूंगा, और तेरे लड़केबालोंका मैं उद्धार करूंगा।
26. जो तुझ पर अन्धेर करते हैं उनको मैं उन्हीं का मांस खिलाऊंगा, और, वे अपना लोहू पीकर ऐसे मतवाले होंगे जैसे नथे दाखमधु से होते हैं। तब सब प्राणी जान लेंगे कि तेरा उद्धारकर्ता यहोवा और तेरा छुड़ानेवाला, याकूब का शक्तिमान मैं ही हूं।।
Chapter यशायाह 50
1. तुम्हारी माता का त्यागपत्र कहां है? जिसे मैं ने उसे त्यागते समय दिया या? या मैं ने किस व्योपारी के हाथ तुम्हें बेचा? यहोवा योंकहता है, सुनो, तुम अपके ही अधर्म के कामोंके कारण बिक गए, और तुम्होर ही अपराधोंके कारण तुम्हारी माता छोड़ दी गई।
2. इसका क्या कारण है कि जब मैं आया तब कोई न मिला? और जब मैं ने पुकारा, तब कोई न बोला? क्या मेरा हाथ ऐसा छोटा हो गया है कि छुड़ा नहीं सकता? क्या मुझ में उद्धार करने की शक्ति नहीं? देखो, मै एक धमकी से समुद्र को सुखा देता हूं, मैं महानदोंको रेगिस्यान बना देता हूं, उनकी मछलियां जल बिना मर जाती और बसाती हैं।
3. मैं आकाश को मानो शोक का काला कपड़ा पहिनाता, और टाट को उनका ओढ़ना बना देता हूं।।
4. प्रभु यहोवा ने मुझे सीखनेवालोंकी जीभ दी है कि मैं यके हुए को अपके वचन के द्वारा संभालना जानूं। भोर को वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान सुनूं।
5. प्रभु यहोवा ने मेरा कान खोला है, और मैं ने विरोध न किया, न पीछे हटा।
6. मैं ने मारनेवालोंको अपक्की पीठ और गलमोछ नोचनेवालोंकी ओर अपके गाल किए; अपमानित होने और यूकने से मैं ने मुंह न छिपाया।।
7. क्योंकि प्रभु यहोवा मेरी सहाथता करता है, इस कारण मैं ने संकोच नहीं किया; वरन अपना माया चकमक की नाईं कड़ा किया क्योंकि मुझे निश्चय या कि मुझे लज्जित होना न पकेगा।
8. जो मुझे धर्मी ठहराता है वह मेरे निकट है। मेरे साय कौन मुकद्दमा करेगा? हम आमने-साम्हने खड़े हों। मेरा विरोधी कौन है? वह मेरे निकट आए।
9. सुनो, प्रभु यहोवा मेरी सहाथता करता है; मुझे कौन दोषी ठहरा कसेगा? देखो, वे सब कपके के समान पुराने हो जाएंगे; उनको कीड़े खा जाएंगे।।
10. तुम में से कौन है जो यहोवा का भय मानता और उसके दास की बातें सुनता है, जो अन्धिक्कारने में चलता हो और उसके पास ज्योति न हो? वह यहोवा के नाम का भरोसा रखे, और अपके परमेश्वर पर आशा लगाए रहे।
11. देखो, तुम सब जो आग जलाते और अग्निबाणोंको कमर में बान्धते हो! तुम सब अपक्की जलाई हुई आग में और अपके जलाए हुए अग्निबाणोंके बीच आप ही चलो। तुम्हारी यह दशा मेरी ही ओर से होगी, तुम सन्ताप में पके रहोगे।।
Chapter यशायाह 51
1. हे धर्म पर चलनेवालो, हे यहोवा के ढूंढ़नेवालो, कान लगाकर मेरी सुनो; जिस चट्टान में से तुम खोदे गए और जिस खानि में से तुम निकाले गए, उस पर ध्यान करो।
2. अपके मूलपुरूष इब्राहीम और अपक्की माता सारा पर ध्यान करो; जब वह अकेला या, तब ही से मैं ने उसको बुलाया और आशीष दी और बढ़ा दिया।
3. यहोवा ने सिय्योन को शान्ति दी है, उस ने उसके सब खण्डहरोंको शान्ति दी है; वह उसके जंगल को अदन के समान और उसक निर्जल देश को यहोवा की बाटिका के समान बनाएगा; उस में हर्ष और आनन्द और धन्यवाद और भजन गाने का शब्द सुनाई पकेगा।।
4. हे मेरी प्रजा के लोगो, मेरी ओर ध्यान धरो; हे मेरे लोगो, कान लगाकर मेरी सुनो; क्योंकि मेरी ओर से व्यवस्या दी जाएगी, और मैं अपना नियम देश देश के लोगोंकी ज्योति होने के लिथे स्यिर करूंगा।
5. मेरा छुटकारा निकट है; मेरा उद्धार प्रगट हुआ है; मैं अपके भुजबल से देश देश के लोगोंका न्याय करूंगा। द्वीप मेरी बाट जाहेंगे और मेरे भुजबल पर आशा रखेंगे।
6. आकाश की ओर अपक्की आंखें उठाओ, और पृय्वी को निहारो; क्योंकि आकाश धुंए ही नाई लोप हो जाएगा, पृय्वी कपके के समान पुरानी हो जाएगी, और उसके रहनेवाले योंही जाते रहेंगे; परन्तु जो उद्धार मैं करूंगा वह सर्वदा ठहरेगा, और मेरे धर्म का अन्त न होगा।।
7. हे धर्म के जाननेवलो, जिनके मन में मेरी व्यवस्या है, तुम कान लगाकर मेरी सुनो; मनुष्योंकी नामधराई से मत डरो, और उनके निन्दा करने से विस्मित न हो।
8. क्योंकि धुन उन्हें कपके की नाईं और कीड़ा उन्हें ऊन की नाईं खाएगा; परन्तु मेरा धर्म अनन्तकाल तक, और मेरा उद्धार पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा।
9. हे यहोवा की भुजा, जाग ! जाग और बल धारण कर; जैसे प्राचीनकाल में और बीते हुए पीढिय़ोंमें, वैसे ही अब भी जाग। क्या तू वही नहीं है जिस ने रहब को टुकड़े टुकड़े किया और मगरमच्छ को छेदा?
10. क्या तू वही नहीं जिस ने समुद्र को अर्यात् गहिरे सागर के जल को सुखा डाला और उसकी गहराई में अपके छुड़ाए हओं के पार जाने के लिथे मार्ग निकाला या?
11. सो यहोवा के छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए सिय्योन में आएंगे, और उनके सिरोंपर अनन्त आनन्द गूंजता रहेगा; वे हर्ष और आनन्द प्राप्त करेंगे, और शोक और सिसकियोंका अन्त हो जाएगा।।
12. मैं, मैं ही तेरा शान्तिदाता हूं; तू कौन है जो मरनेवाले मनुष्य से, और घास के समान मुर्फानेवाले आदमी से डरता है,
13. और आकाश के ताननेवाले और पृय्वी की नेव डालनेवाले अपके कर्ता यहोवा को भूल गया है, और जब द्रोही नाश करने को तैयार होता है तब उसकी जलजलाहट से दिन भर लगातार यरयराता है? परन्तु द्रोही की जलजलाहट कहां रही?
14. बंधुआ शीघ्र ही स्वतन्त्र् किया जाएगा; वह गड़हे में न मरेगा और न उसे रोटी की कमी होगी।
15. जो समुद्र को उयल-पुयल करता जिस से उसकी लहरोंमे गरजन होती है, वह मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं मेरा नाम सेनाओं का यहोवा है। और मैं ने तेरे मुंह में अपके वचन डाले,
16. और तुझे अपके हाथ की आड़ में छिपा रखा है; कि मैं आकाश को तानूं और पृय्वी की नेव डालूं, और सिय्योन से कहूं, तुम मेरी प्रजा हो।।
17. हे यरूशलेम जाग ! जाग उठ ! खड़ी हो जा, तू ने यहोवा के हाथ से उसकी जलजलाहट के कटोरे में से पिया है, तू ने कटोरे का लड़खड़ा देनेवाला मद पूरा पूरा ही पी लिया है।
18. जितने लड़कोंने उस से जन्म लिया उन में से कोई न रहा जो उसकी अगुवाई करके ले चले; और जितने लड़के उस ने पाले-पोसे उन में से कोई न रहा जो उसके हाथ को याम ले।
19. थे दो विपत्तियां तुझ पर आ पक्की हैं; कौन तेरे संग विलाप करेगा? उजाड़ और विनाश और महंगी और तलवार आ पक्की है; कौन तुझे शान्ति देगा?
20. तेरे लड़के मूच्छिर्त होकर हर एक सड़क के सिक्के पर, महाजाल में फंसे हुए हरिण की नाई पके हैं; याहोवा की जलजलाहट और तेरे परमेश्वर की धमकी के कारण वे अचेत पके हैं।।
21. इस कारण हे दुखियारी सुन, तू मतवाली तो है, परन्तु दाखमधु पीकर नहीं;
22. तेरा प्रभु यहोवा जो अपक्की प्रजा का मुकद्दमा लड़नेवाला तेरा परमेश्वर है, वह योंकहता है, सुन मैं लड़खड़ा देनेवाले मद के कटोरे को अर्यात् अपक्की जलजलाहट के कटोरे को तेरे हाथ से ले लेता हूं; तुझे उस में से फिर कभी पीना न पकेगा।
23. और मैं उसे तेरे उन दु:ख देनेवालोंके हाथ में दूंगा, जिन्होंने तुझ से कहा, लेट जा, कि हम तुझ पर पांव धरकर आगे चलें; और तू ने औंधे मुंह गिरकर अपक्की पीठ को भूमि और आगे चलनेवालोंके लिथे सड़क बना दिया।।
Chapter यशायाह 52
1. हे सिय्योन, जाग, जाग ! अपना बल धारण कर; हे पवित्र नगर यरूशलेम, अपके शोभायमान वस्त्र पहिन ले; क्योंकि तेरे बीच खतनारहित और अशुद्ध लोग फिर कभी प्रवेश न करने पाएंगे।
2. अपके ऊपर से धूल फाड़ दे, हे यरूशलेम, उठ; हे सिय्योन की बन्दी बेटी अपके गले के बन्धन को खोल दे।।
3. क्योंकि यहोवा योंकहता है, तुम जो सेंतमेंत बिक गए थे, इसलिथे अब बिना रूपया दिए छुड़ाए भी जाओगे।
4. प्रभु यहोवा योंकहता है, मेरी प्रजा पहिले तो मिस्र में परदेशी होकर रहने को गई यी, और अश्शूरियोंने भी बिना कारण उन पर अत्याचार किया।
5. इसलिथे यहोवा की यह वाणी है कि मैं अब यहां क्या करूं जब कि मेरी प्रजा सेंतमेंत हर ली गई है? यहोवा यह भी कहता है कि जो उन पर प्रभुता करते हैं वे उधम मचा रहे हैं, और, मेरे नाम कि निन्दा लगातार दिन भर होती रहती है।
6. इस कारण मेरी प्रजा मेरा नाम जान लेगी; वह उस समय जान लेगी कि जो बातें करता है वह यहोवा ही है; देखो, मैं ही हूं।।
7. पहाड़ोंपर उसके पांव क्या ही सुहावने हैं जो शुभ समाचार लाता है, जो शान्ति की बातें सुनाता है और कल्याण का शुभ समाचार और उद्धार का सन्देश देता है, जो सिय्योन से कहता हे, तेरा परमेश्वर राज्य करता है।
8. सुन, तेरे पहरूए पुकार रहे हैं, वे एक साय जयजयकार कर रहें हैं; क्योंकि वे साझात् देख रहे हैं कि यहोवा सिय्योन को लौट रहा है।
9. हे यरूशलेम के खण्डहरों, एक संग उमंग में आकर जयजयकार करो; क्योंकि यहोवा ने अपक्की प्रजा को शान्ति दी है, उस ने यरूशलेम को छुड़ा लिया है।
10. यहोवा ने सारी जातियोंके साम्हने अपक्की पवित्र भुजा प्रगट की है; और पृय्वी के दूर दूर देशोंके सब लोग हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार निश्चय देख लेंगे।।
11. दूर हो, दूर, वहां से निकल जाओ, कोई अशुद्ध वस्तु मत छुओ; उसके बीच से निकल जाओ; हे यहोवा के पात्रोंके ढोनेवालो, अपके को शुद्ध करो।
12. क्योंकि तुम को उतावली से निकलना नहीं, और न भागते हुए चलना पकेगा; क्योंकि यहोवा तुम्हारे आगे आगे अगुवाई करता हुआ चलेगा, और, इस्राएल का परमेश्वर तुम्हारे पीछे भी रझा करता चलेगा।।
13. देखो, मेरा दास बुद्धि से काम करेगा, वह ऊंचा, महान और अति महान हो जाएगा।
14. जैसे बहुत से लोग उसे देखकर चकित हुए (क्योंकि उसका रूप यहां तक बिगड़ा हुआ या कि मनुष्या का सा न जान पड़ता या और उसकी सुन्दरता भी आदमियोंकी सी न रह गई यी),
15. वैसे ही वह बहुत सी जातियोंको पवित्र करेगा और उसको देखकर राजा शान्त रहेंगे; क्योंकि वे ऐसी बात देखेंगे जिसका वर्णन उनके सुनने में भी नहीं आया, और, ऐसी बात उनकी समझ में आएगी जो उन्होंने अभी तक सुनी भी न यी।।
Chapter यशायाह 53
1. जो समाचार हमें दिया गया, उसका किस ने विश्वास कया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?
2. क्योंकि वह उसके साम्हने अंकुर की नाईं, और ऐसी जड़ के समान उगा जो निर्जल भूमि में फूट निकले; उसकी न तो कुछ सुन्दरता यी कि हम उसको देखते, और न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा कि हम उसको चाहते।
3. वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्योंका त्यागा हुआ या; वह दु:खी पुरूष या, रोग से उसकी जान पहिचान यी; और लोग उस से मुख फेर लेते थे। वह तुच्छ जाना गया, और, हम ने उसका मूल्य न जाना।।
4. निश्चय उस ने हमारे रोगोंको सह लिया और हमारे ही दु:खोंको उठा लिया; तौभी हम ने उसे परमेश्वर का मारा-कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा।
5. परन्तु वह हमारे ही अपराधो के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामोंके हेतु कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिथे उस पर ताड़ना पक्की कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएं।
6. हम तो सब के सब भेड़ोंकी नाईं भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभोंके अधर्म का बोफ उसी पर लाद दिया।।
7. वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुंह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय वा भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उस ने भी अपना मुंह न खोला।
8. अत्याचार करके और दोष लगाकर वे उसे ले गए; उस समय के लोगोंमें से किस ने इस पर ध्यान दिया कि वह जीवतोंके बीच में से उठा लिया गया? मेरे ही लोगोंके अपराधोंके कारण उस पर मार पक्की।
9. और उसकी कब्र भी दुष्टोंके संग ठहराई गई, और मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ, यद्यपि उस ने किसी प्रकार का अपद्रव न किया या और उसके मुंह से कभी छल की बात नहीं निकली यी।।
10. तौभी यहोवा को यही भया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब तू उसका प्राण दोषबलि करे, तब वह अपना वंश देखने पाएगा, वह बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी।
11. वह अपके प्राणोंका दु:ख उठाकर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपके ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरोंको धर्मी ठहराएगा; और उनके अधर्म के कामोंका बोफ आप उठा लेगा।
12. इस कारण मैं उसे महान लोगोंके संग भाग दूंगा, और, वह सामयिर्योंके संग लूट बांट लेगा; क्योंकि उसने अपना प्राण मृत्यु के लिथे उण्डेल दिया, वह अपराधियोंके संग गिना गया; तौभी उस ने बहुतोंके पाप का बोफ उठ लिया, और, अपराधियोंके लिथे बिनती करता है।।
Chapter यशायाह 54
1. हे बांफ तू जो पुत्रहीन है जयजयकार कर; तू जिसे जन्माने की पीड़े नहीं हुई, गला खोलकर जयजयकार कर और पुकार! क्योंकि त्यागी हुई के लड़के सुहागिन के लड़कोंसे अधिक होंगे, यहोवा का यही वचन है।
2. अपके तम्बू का स्यान चौड़ा कर, और तेरे डेरे के पट लम्बे किए जाएं; हाथ मत रोक, रस्सिक्कों लम्बी और खूंटोंको दृढ़ कर।
3. क्योंकि तू दहिने-बाएं फैलेगी, और तेरा वंश जाति-जाति का अधिक्कारनेी होगा और उजड़े हुए नगरोंको फिर से बसाएगा।।
4. मत डर, क्योंकि तेरी आशा फिर नहीं टूटेगी; मत घबरा, क्योंकि तू फिर लज्जित न होगी और तुझ पर सियाही न छाएगी; क्योंकि तू अपक्की जवानी की लज्जा भूल जाएगी, और, अपके विधवापन की नामधराई को फिर स्मरण न करेगी।
5. क्योकि तेरा कर्त्ता तेरा पति है, उसका नाम सेनाओं का यहोवा है; और इस्राएल का पवित्र तेरा छुड़ानेवाला है, वह सारी पृय्वी का भी परमेश्वर कहलाएगा।
6. क्योंकि यहोवा ने तुझे ऐसा बुलाया है, मानो तू छोड़ी हुई और मन की दुखिया और जवानी की त्यागी हुई स्त्री हो, तेरे परमेश्वर का यही वचन है।
7. झण भर ही के लिथे मैं ने तुझे छोड़ दिया या, परन्तु अब बड़ी दया करके मैं फिर तुझे रख लूंगा।
8. क्रोध के फकोरे में आकर मैं ने पल भर के लिथे तुझ से मुंह छिपाया या, परन्तु अब अनन्त करूणा से मैं तुझ पर दया करूंगा, तेरे छुड़ानेवाले यहोवा का यही वचन है।
9. यह मेरी दृष्टि में नूह के समय के जलप्रलय के समान है; क्योंकि जैसे मैं ने शपय खाई यी कि नूह के समय के जलप्रलय से पृय्वी फिर न डूबेगी, वैसे ही मैं ने यह भी शपय खाई है कि फिर कभी तुझ पर क्रोध न करूंगा और न तुझ को धमकी दूंगा।
10. चाहे पहाड़ हट जाएं और पहाडिय़ां टल जाएं, तौभी मेरी करूणा तुझ पर से कभी न हटेगी, और मेरी शान्तिदायक वाचा न टलेगी, यहोवा, जो तुझ पर दया करता है, उसका यही वचन है।।
11. हे दु:खियारी, तू जो आंधी की सताई है और जिस को शान्ति नहीं मिली, सुन, मैं तेरे पत्यरोंकी पच्चीकारी करके बैठाऊंगा, और तेरी नेव नीलमणि से डालूंगा।
12. तेरे कलश मैं माणिकों, तेरे फाटक लालडिय़ोंसे और तेरे सब सिवानोंको मनोहर रत्नोंसे बनाऊंगा।
13. तू धामिर्कता के द्वारा स्यिर होगी; तू अन्धेर से बचेगी, क्योंकि तुझे डरना न पकेगा; और तू भयभीत होने से बचेगी, क्योंकि भय का कारण तेरे पास न आएगा।
14. तू धामिर्कता के द्वारा स्यिर होगी; तू अन्धेर से बचेगी, क्योंकि तुझे डरना न पकेगा; और तू भयभीत होने से बचेगी, क्योंकि भय का कारण तेरे पास न आएगा।
15. सुन, लोग भीड़ लगाएंगे, परन्तु मेरी ओर से नहीं; जितने तेरे विरूद्ध भीड़ लगाएंगे वे तेरे कारण गिरेंगे।
16. सुन, एक लोहर कोएले की आग धोंककर इसके लिथे हयियार बनाता है, वह मेरा ही सृजा हुआ है। उजाड़ने के लिथे भी मेरी ओर से एक नाश करनेवाला सृजा गया है।
17. जितने हयियार तेरी हानि के लिथे बनाए जाएं, उन में से कोई सफल न होगा, और, जितने लोग मुद्दई होकर तुझ पर नालिश करें उन सभोंसे तू जीत जाएगा। यहोवा के दासोंका यही भाग होगा, और वे मेरे ही कारण धर्मी ठहरेंगे, यहोवा की यही वाणी है।।
Chapter यशायाह 55
1. अहो सब प्यासे लोगो, पानी के पास आओ; और जिनके पास रूपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रूपए और बिना दाम ही आकर ले लो।
2. जो भोजनवस्तु नहीं है, उसके लिथे तुम क्योंरूपया लगाते हो, और, जिस से पेट नहीं भरता उसके लिथे क्योंपरिश्र्म करते हो? मेरी ओर मन लगाकर सुनो, तब उत्तम वस्तुएं खाने पाओगे और चिकनी चिकनी वस्तुएं खाकर सन्तुष्ट हो जाओगे।
3. कान लगाओ, और मेरे पास आओ; सुनो, तब तुम जीवित रहोगे; और मैं तुम्हारे साय सदा की वाचा बान्धूंगा अर्यात् दाऊद पर की अटल करूणा की वाचा।
4. सुनो, मैं ने उसको राज्य राज्य के लोगोंके लिथे साझी और प्रधान और आज्ञा देनेवाला ठहराया है।
5. सुन, तू ऐसी जाति को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और ऐसी जातियां जो तुझे नहीं जानतीं तेरे पास दौड़ी आएंगी, वे तेरे परमेश्वर यहोवा और इस्राएल के पवित्र के निमित्त यह करेंगी, क्योंकि उस ने तुझे शोभायमान किया है।।
6. जब जब यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो;
7. दुष्ट अपक्की चालचलन और अनर्यकारी अपके सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको झमा करेगा।
8. क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है।
9. क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारोंमें, आकाश और पृय्वी का अन्तर है।।
10. जिस प्रकार से वर्षा और हिम आकाश से गिरते हैं और वहां योंही लौट नहीं जाते, वरन भूमि पर पड़कर उपज उपजाते हैं जिस से बोलनेवाले को बीज और खानेवाले को रोटी मिलती है,
11. उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्य ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिथे मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।।
12. क्योंकि तुम आनन्द के साय निकलोगे, और शान्ति के साय पहुंचाए जाओगे; तुम्हारे आगे आगे पहाड़ और पहाडिय़ां गला खोलकर जयजयकार करेंगी, और मैदान के सब वृझ आनन्द के मारे ताली बजाएंगे।
13. तब भटकटैयोंकी सन्ती सनौवर उगेंगे; और बिच्छु पेड़ोंकी सन्ती मेंहदी उगेगी; और इस से यहोवा का नाम होगा, जो सदा का चिन्ह होगा और कभी न मिटेगा।
Chapter यशायाह 56
1. यहोवा योंकहता है, न्याय का पालन करो, और धर्म के काम करो; क्योंकि मैं शीघ्र तुम्हारा उद्धार करूंगा, और मेरा धर्मी होना प्रगट होगा।
2. क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो ऐसा ही करता, और वह आदमी जो इस पर स्यिर रहता है, जो विश्रपदिन को पवित्र मानता और अपवित्र करने से बचा रहता है, और अपके हाथ को सब भांति की बुराई करने से रोकता है।
3. जो परदेशी यहोवा से मिल गए हैं, वे न कहें कि यहोवा हमें अपक्की प्रजा से निश्चय अलग करेगा; और खोजे भी न कहें कि हम तो सूखे वृझ हैं।
4. क्योंकि जो खोजे मेरे विश्रमदिन को मानते और जिस बात से मैं प्रसन्न रहता हूं उसी को अपनाते और मेरी वाचा को पालते हैं, उनके विषय यहोवा योंकहता है
5. कि मैं अपके भवन और अपक्की शहर-पनाह के भीतर उनको ऐसा नाम दूंगा जो पुत्र-पुत्रियोंसे कहीं उत्तम होगा; मैं उनका नाम सदा बनाए रखूंगा और वह कभी न मिटाया जाएगा।
6. परदेशी भी जो यहोवा के साय इस इच्छा से मिले हुए हैं कि उसकी सेवा टहल करें और यहोवा के नाम से प्रीति रखें और उसके दास हो जाएं, जितने विश्रमदिन को अपवित्र करने से बचे रहते और मेरी वाचा को पालते हैं,
7. उनको मैं अपके पवित्र पर्वत पर ले आकर अपके प्रार्यना के भवन में आनन्दित करूंगा; उनके होमबलि और मेलबलि मेरी वेदी पर ग्रहण किए जाएंगे; क्योंकि मेरा भवन सब देशोंके लोगोंके लिथे प्रार्यना का घर कहलाएगा।
8. प्रभु यहोवा, जो निकाले हुए इस्राएलियोंको इकट्ठे करनेवाला है, उसकी यह वाणी है कि जो इकट्ठे किए गए हैं उनके साय मैं औरोंको भी इकट्ठे करके मिला दूंगा।।
9. हे मैदान के सब जन्तुओं, हे वन के सब पशुओं, खाने के लिथे आओ।
10. उसके पहरूए अन्धे हैं, वे सब के सब अज्ञानी हैं, वे सब के सब गूंगे कुत्ते हैं जो भूंक नहीं सकते; वे स्वप्न देखनेवाले और लेटे रहकर सोते रहना चाहते हैं।
11. वे मरभूखे कुत्ते हैं जो कभी तृप्त नहीं होते। वे चरवाहे हें जिन में समझ ही नहीं; उन सभोंने अपके अपके लाभ के लिथे अपना अपना मार्ग लिया है।
12. वे कहते हैं कि आओ, हम दाखमधु ले आएं, आओ मदिरा पीकर छक जाएं; कल का दिन भी तो आज ही के समान अत्यन्त सुहावना होगा।।
Chapter यशायाह 57
1. धर्मी जन नाश होता है, और कोई इस बात की चिन्ता नहीं करता; भक्त मनुष्य उठा लिए जाते हैं, परन्तु कोई नहीं सोचता। धर्मी जन इसलिथे उठा लिया गया कि आनेवाली आपत्ति से बच जाए,
2. वह शान्ति को पहुंचता है; जो सीधी चाल चलता है वह अपक्की खाट पर विश्रम करता है।।
3. परन्तु तुम, हे जादूगरती के पुत्रों, हे व्यभिचारी और व्यभिचारिणी की सन्तान, यहां निकट आओ।
4. तुम किस पर हंसी करते हो? तुम किस पर मुंह खोलकर जीभ निकालते हो? क्या तुम पाखण्डी और फूठे के वंश नहीं हो,
5. तुम, जो सब हरे वृझोंके तले देवताओं के कारण कामातुर होते और नालोंमें और चट्टानोंही दरारोंके बीच बाल-बच्चोंको वध करते हो?
6. नालोंके चिकने पत्यर ही तेरा भाग और अंश ठहरे; तू ने उनके लिथे तपावन दिया और अन्नबलि चढ़ाया है। क्या मैं इन बातोंसे शान्त हो जाऊं?
7. एक बड़े ऊंचे पहाड़ पर तू ने अपना बिछौना छािया है, वहीं तू बलि चढ़ाने को चढ़ गई।
8. तू ने अपक्की चिन्हानी अपके द्वार के किवाड़ और चौखट की आड़ ही में रखी; मुझे छोड़कर तू औरोंको अपके तई दिखाने के लिथे चक्की, तू ने अपक्की खाट चौड़ी की और उन से वाचा बान्ध ली, तू ने उनकी खाट को जहां देखा, पसन्द किया।
9. तू तेल लिए हुए राजा के पास गई और बहुत सुगन्धित तेल अपके काम में लाई; अपके दूत तू ने दूर तक भेजे और अधोलोक तक अपके को नीचा किया।
10. तू अपक्की यात्रा की लम्बाई के कारण यक गई, तौभी तू ने न कहा कि यह व्यर्य है; तेरा बल कुछ अधिक हो गया, इसी कारण तू नहीं यकी।।
11. तू ने किस के डर से फूठ कहा, और किसका भय मानकर ऐसा किया कि मुझ को स्मरण नहीं रखा न मुझ पर ध्यान दिया? क्या मैं बहुत काल से चुप नहीं रहा? इस कारण तू मेरा भय नहीं मानती।
12. मैं आप तेरे धर्म और कर्मोंका वर्णन करूंगा, परन्तु, उन से तुझे कुछ लाभ न होगा।
13. जब तू दोहाई दे, तब जिन मूत्तिर्योंको तू ने जमा किया है वह ही तुझे छुड़ाएं ! वे तो सब की सब वायु से वरन एक ही फूंक से उड़ जाएंगी। परन्तु जो मेरी शरण लेगा वह देश का अधिक्कारनेी होगा, और मेरे पवित्र पर्वत को भी अधिक्कारनेी होगा।।
14. और यह कहा जाएगा, पांति बान्ध बान्धकर राजमार्ग बनाओ, मेरी प्रजा के मार्ग में से हर एक ठोकर दूर करो।
15. क्योंकि जो महान और उत्तम और सदैव स्यिर रहता, और जिसका नाम पवित्र है, वह योंकहता है, मैं ऊंचे पर और पवित्र स्यान में निवास करता हूं, और उसके संग भी रहता हूं, जो खेदित और नम्र हैं, कि, नम्र लोगोंके ह्रृदय और खेदित लोगोंके मन को हषिर्त करूं।
16. मैं सदा मुकद्दमा न लड़ता रहूंगा, न सर्वदा क्रोधित रहूंगा; क्योंकि आत्मा मेरे बनाए हुए हैं और जीव मेरे साम्हने मूच्छिर्त हो जाते हैं।
17. उसके लोभ के पाप के कारण मैं ने क्रोधित होकर उसको दु:ख दिया या, और क्रोध के मारे उस से मुंह छिपाया या; परन्तु वह अपके मनमाने मार्ग में दूर भटकता चला गया या।
18. मैं उसकी चाल देखता आया हूं, तौभी अब उसको चंगा करूंगा; मैं उसे ले चलूंगा और विशेष करके उसके शोक करनेवालोंको शान्ति दूंगा।
19. मैं मुंह के फल का सृजनहार हूं; यहोवा ने कहा है, जो दूर और जो निकट हैं, दोनोंको पूरी शान्ति मिले; और मैं उसको चंगा करूंगा।
20. परन्तु दुष्ट तो लहराते समुुद्र के समान है जो स्यिर नहीं रह सकता; और उसका जल मैल और कीच उछालता है।
21. दुष्टोंके लिथे शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है।।
Chapter यशायाह 58
1. गला खोलकर पुकार, कुछ न रख छोड़, नरसिंगे का सा ऊंचा शब्द कर; मेरी प्रजा को उसका अपराध अर्यात् याकूब के घराने को उसका पाप जता दे।
2. वे प्रति दिन मेरे पास आते और मेरी गति बूफने की इच्छा ऐसी रखते हैं मानो वे धर्मी लोगे हैं जिन्होंने अपके परमेश्वर के नियमोंको नहीं टाला; वे मुझ से धर्म के नियम पूछते और परमेश्वर के निकट आने से प्रसन्न होते हैं।
3. वे कहते हैं, क्या कारएा है कि हम ने तो उपवास रखा, परन्तु तू ने इसकी सुधि नहीं ली? हम ने दु:ख उठाया, परन्तु तू ने कुछ ध्यान नहीं दिया? सुनो, उपवास के दिन तुम अपक्की ही इच्छा पूरी करते हो और अपके सेवकोंसे कठिन कामोंको कराते हो।
4. सुनो, तुम्हारे उपवास का फल यह होता है कि तुम आपस में लड़ते और फगड़ते और दुष्टता से घूंसे मारते हो। जैसा उपवास तुम आजकर रखते हो, उस से तुम्हारी प्रार्यना ऊपर नहीं सुनाई देगी।
5. जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं अर्यात् जिस में मनुष्य स्वयं को दीन करे, क्या तुम इस प्रकार करते हो? क्या सिर को फाऊ की नाईं फुकाना, अपके नीचे टाट बिछाना, और राख फैनाने ही को तुम उपवास और यहोवा को प्रसन्न करने का दिन कहते हो?
6. जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहनेवालोंका जुआ तोड़कर उनको छुड़ा लेना, और, सब जुओं को टूकड़े टूकड़े कर देना?
7. क्या वह यह नहीं है कि अपक्की रोटी भूखोंको बांट देना, अनाय और मारे मारे फिरते हुओं को अपके घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपके जातिभाइयोंसे अपके को न छिपाना?
8. तब तेरा प्रकाश पौ फटने की नाईं चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा; तेरा धर्म तेरे आगे आगे चलेगा, यहोवा का तेज तेरे पीछे रझा करते चलेगा।
9. तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दोहाई देगा और वह कहेगा, मैं यहां हूं। यदि तू अन्धेर करना और उंगली मटकाना, और, दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे,
10. उदारता से भूखे की सहाथता करे और दीन दु:खियोंको सन्तुष्ट करे, तब अन्धिक्कारने में तेरा प्रकाश चमकेगा, और तेरा घोर अन्धकार दोपहर का सा उजियाला हो जाएगा।
11. और यहोवा तुझे लगातार लिए चलेगा, और काल के समय तुझे तृप्त और तेरी हड्डियोंको हरी भरी करेगा; और तू सींची हुई बारी और ऐसे सोते के समान होगा जिसका जल कभी नहीं सूखता।
12. और तेरे वंश के लोग बहुत काल के उजड़े हुए स्यानोंको फिर बसाएंगे; तू पीढ़ी पीढ़ी की पक्की हुई नेव पर घर उठाएगा; तेरा नाम टूटे हुए बाड़े का सुधारक और पयोंका ठीक करनेवाला पकेगा।।
13. यदि तू विश्रमदिन को अशुद्ध न करे अर्यात् मेरे उस पवित्र दिन में अपक्की इच्छा पूरी करने का यत्न न करे, और विश्रमदिन को आनन्द का दिन और यहोवा का पवित्र किया हुआ दिन समझकर माने; यदि तू उसका सन्मान करके उस दिन अपके मार्ग पर न चले, अपक्की इच्छा पूरी न करे, और अपक्की ही बातें न बोले,
14. तो तू यहोवा के कारण सुखी होगा, और मैं तुझे देश के ऊंचे स्यानोंपर चलने दूंगा; मैं तेरे मूलपुरूष याकूब के भाग की उपज में से तुझे खिलाऊंगा, क्योंकि यहोवा ही के मुख से यह वचन निकला है।।
Chapter यशायाह 59
1. सुनो, यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहिरा हो गया है कि सुन न सके;
2. क्योंकि तुम्हारे हाथ हत्या से और तुम्हारी अंगुलियां अधर्म के कर्मो से अपवित्र हो गई है; तुम्हारे मुंह से तो फूठ और तुम्हारी जीभ से कुटिल बातें निकलती हैं।
3. क्योंकि तुम्हारे हाथ हत्या से और तुम्हारी अंगुलियां अधर्म के कर्मोंसे अपवित्र हो गईं हैं; तुम्हारे मुंह से तो फूठ और तुम्हारी जीभ से कुटिल बातें निकलती हैं।
4. कोई धर्म के साय नालिश नहीं करता, न कोई सच्चाई से मुकद्दमा लड़ता है; वे मिय्या पर भरोसा रखते हैं और फूठ बातें बकते हैं, उसको मानो उत्पात का गर्भ रहता, और वे अनर्य को जन्म देते हैं।
5. वे सांपिन के अण्डे सेते और मकड़ी के जाले बनाते हैं; जो कोई उनके अण्डे खाता वह मर जाता है, और जब कोई एक को फोड़ता तब उस में से सपोला निकलता है।
6. उनके जाले कपके का काम न देंगे, न वे अपके कामोंसे अपके को ढाप सकेंगे। क्योंकि उनके काम अनर्य ही के होते हैं, और उनके हाथोंसे अपद्रव का काम होता है।
7. वे बुराई करने को दौड़ते हैं, और निर्दोष की हत्या करने को तत्पर रहते हैं; उनकी युक्तियां व्यर्य हैं, उजाड़ और विनाश ही उनके मार्गोंमें हैं।
8. शान्ति का मार्ग वे जानते ही नहीं और न उनके व्यवहार में न्याय है; उनके पय टेढ़े हैं, जो कोई उन पर चले वह शान्ति न पाएगा।।
9. इस कारण न्याय हम से दूर है, और धर्म हमारे समीप ही नहीं आता हम उजियाले की बाट तो जोहते हैं, परन्तु, देखो अन्धिक्कारनेा ही बना रहता है, हम प्रकाश की आशा तो लगाए हैं, परन्तु, घोर अन्धकार ही में चलते हैं।
10. हम अन्धोंके समान भीत टटोलते हैं, हां, हम बिना आंख के लोगोंकी नाईं टटोलते हैं; हम दिन-दोपहर रात की नाईं ठोकर खाते हैं, ह्रृष्टपुष्टोंके बीच हम मुर्दोंके समान हैं।
11. हम सब के सब रीछोंकी नाई चिल्लाते हैं और पण्डुकोंके समान च्यूं च्यूं करते हैं; हम न्याय की बाट तो जोहते हैं, पर वह कहीं नहीं; और उद्धार की बाट जोहते हैं पर वह हम से दूर ही रहता है।
12. क्योंकि हमारे अपराध तेरे साम्हने बहुत हुए हैं, हमारे पाप हमारे विरूद्ध साझी दे रहे हैं; हमारे अपराध हमारे संग हैं और हम अपके अधर्म के काम जानते हैं:
13. हम ने यहोवा का अपराध किया है, हम उस से मुकर गए और अपके परमेश्वर के पीछे चलना छोड़ दिया, हम अन्धेर करने लगे और उलट फेर की बातें कहीं, हम ने फूठी बातें मन में गढ़ीं और कही भी हैं।
14. न्याय तो पीछे हटाया गया और धर्म दूर खड़ा रह गया; सच्चाई बाजार में गिर पक्की और सिधाई प्रवेश नहीं करने पाती।
15. हां, सच्चाई खोई, और जो बुराई से भागता है सो शिकार हो जाता है।। यह देखकर यहोवा ने बुरा माना, क्योंकि न्याय जाता रहा,
16. उस ने देखा कि कोई भी पुरूष नहीं, और इस से अचम्भा किया कि कोई बिनती करनेवाला नहीं; तब उस ने अपके ही भुजबल से उद्धार किया, और अपके धर्मी होने के कारण वह सम्भल गया।
17. उस ने धर्म को फिलम की नाई पहिन लिया, और उसके सिर पर उद्धार का टोप रखा गया; उस ने पलटा लेने का वस्त्र धारण किया, और जलजलाहट को बागे की नाई पहिन लिया है।
18. उनके कर्मोंके अनुसार वह उनको फल देगा, अपके द्रोहियोंपर वह अपना क्रोध भड़काएगा और अपके शत्रुओं को उनकी कमाई देगा; वह द्वीपवासिक्कों भी उनकी कमाई भर देगा।
19. तब पश्चिम की ओर लोग यहोवा के नाम का, और पूर्व की ओर उसकी महिमा का भय मानेंगे; क्योंकि जब शत्रु महानद की नाईं चढ़ाई करेंगे तब यहोवा का आत्मा उसके विरूद्ध फण्डा खड़ा करेगा।।
20. और याकूब में जो अपराध से मन फिराते हैं उनके लिथे सिय्योन में एक छुड़ानेवाला आएगा, यहोवा की यही वाणी है।
21. और यहोवा यह कहता है, जो वाचा मैं ने उन से बान्धी है वह यह है, कि मेरा आत्मा तुझ पर ठहरा है, और अपके वचन जो मैं ने तेरे मुंह में डाले हैं अब से लेकर सर्वदा तक वे मेरे मुंह से, और, तेरे पुत्रोंऔर पोतोंके मुंह से भी कभी न हटेंगे।।
Chapter यशायाह 60
1. उठ, प्रकाशमान हो; क्योंकि तेरा प्रकाश आ गया है, और यहोवा का तेज तेरे ऊपर उदय हुआ है।
2. देख, पृय्वी पर तो अन्धिक्कारनेा और राज्य राज्य के लोगोंपर घोर अन्धकार छाया हुआ है; परन्तु तेरे ऊपर यहोवा उदय होगा, और उसका तेज तुझ पर प्रगट होगा।
3. और अन्यजातियां तेरे पास प्रकाश के लिथे और राजा तेरे आरोहण के प्रताप की ओर आएंगे।।
4. अपक्की आंखें चारो ओर उठाकर देख; वे सब के सब इकट्ठे होकर तेरे पास आ रहे हैं; तेरे पुत्र दूर से आ रहे हैं, और तेरी पुत्रियां हाथों-हाथ पहुंचाई जा रही हैं।
5. तब तू इसे देखेगी और तेरा मुख चमकेगा, तेरा ह्रृदय यरयराएगा और आनन्द से भर जाएगा; क्योंकि समुद्र का सारा धन और अन्यजातियोंकी धन-सम्पति तुझ को मिलेगी।
6. तेरे देश में ऊंटोंके फुण्ड और मिद्यान और एपादेशोंकी साड़नियां इकट्ठी होंगी; शिबा के सब लोग आकर सोना और लोबान भेंट लाएंगे और यहोवा का गुणानुवाद आनन्द से सुनाएंगे।
7. केदार की सब भेड़-बकरियां इकट्ठी होकर तेरी हो जाएंगी, नबायोत के मेढ़े तेरी सेवा टहल के काम में आएंगे; मेरी वेदी पर वे ग्रहण किए जाएंगे और मैं अपके शोभायमान भवन को और भी प्रतापी कर दूंगा।।
8. थे कौन हैं जो बादल की नाई और दर्बाओं की ओर उड़ते हुए कबूतरोंकी नाई चले आते हैं?
9. निश्चय द्वीप मेरी ही बाट देखेंगे, पहिले तो तर्शीश के जहाज आएंगे, कि, मेरे पुत्रोंको सोने चान्दी समेत तेरे परमेश्वर यहोवा अर्यात् इस्राएल के पवित्र के नाम के निमित्त दूर से पहुंचाए, क्योंकि उस ने तुझे शोभायमान किया है।।
10. परदेशी लोग तेरी शहरपनाह को उठाएंगे, और उनके राजा तेरी सेवा टहल करेंगे; क्योंकि मैं ने क्रोध में आकर तुझे दु:ख दिया या, परन्तु अब तुझ से प्रसन्न होकर तुझ पर दया की है।
11. तेरे फाटक सदैव खुले रहेंगे; दिन और रात वे बन्द न किए जाएंगे जिस से अन्यजातियोंकी धन-सम्पत्ति और उनके राजा बंधुए होकर तेरे पास पहुंचाए जाएं।
12. क्योंकि जो जाति और राज्य के लोग तेरी सेवा न करें वे नष्ट हो जाएंगे; हां ऐसी जातियां पूरी रीति से सत्यानाश हो जाएंगी।
13. लबानोन का विभव अर्यात् सनौबर और देवदार और सीधे सनौबर के पेड़ एक सााि तेरे पास आएंगे कि मेरे पवित्रस्यान को सुशोभित करें; और मैं अपके चरणोंके स्यान को महिमा दूंगा।
14. तेरे दु:ख देनेवालोंकी सन्तान तेरे पास सिर फुकाए हुए आंएगें; और जिन्होंने तेरा तिरस्कार किया सब तेरे पांवोंपर गिरकर दण्डवत् करेंगे; वे तेरा नाम यहोवा का नगर, इस्राएल के पवित्र का सिय्योन रखेंगे।।
15. तू जो त्यागी गई और घृणित ठहरी, यहां तक कि कोई तुझ में से होकर नहीं जाता या, इसकी सन्ती मैं तुझे सदा के घमण्ड का और पीढ़ी पीढ़ी के हर्ष का कारण ठहराऊंगा।
16. तू अन्यजातियोंका दूध पी लेगी, तू राजाओं की छातियां चूसेगी; और तू जान लेगी कि मैं याहवो तेरा उद्धारकर्त्ता और तेरा छुड़ानेवाला, याकूब का सर्वशक्तिमान हूं।।
17. मैं पीतल की सन्ती लोहा, लोहे की सन्ती चान्दी, लकड़ी की सन्ती पीतल और पत्यर की सन्ती लोहा लाऊंगा। मैं तेरे हाकिमोंको मेल-मिलाप और चौधरियोंको धामिर्कता ठहराऊंगा।
18. तेरे देश में फिर कभी उपद्रव और तेरे सिवानोंके भीतर उत्पात वा अन्धेर की चर्चा न सुनाई पकेगी; परन्तु तू अपक्की शहरपनाह का नाम उद्धार और अपके फाटकोंका नाम यश रखेगी।
19. फिर दिन को सूर्य तेरा उजियाला न होगा, न चान्दनी के लिथे चन्द्रमा परन्तु यहोवा तेरे लिथे सदा का उजियाला और तेरा परमेश्वर तेरी शोभा ठहरेगा।
20. तेरा सूर्य फिर कभी अस्त न होगा और न तेरे चन्द्रमा की ज्योति मलिन होगी; क्योंकि यहोवा तेरी सदैव की ज्योति होगा और तरे विलाप के दिन समाप्त हो जाएंगे।
21. और तेरे लोग सब के सब धर्मी होंगे; वे सर्वदा देश के अधिक्कारनेी रहेंगे, वे मेरे लगाए हुए पौधे और मेरे हाथोंका काम ठहरेंगे, जिस से मेरी महिमा प्रगट हो।
22. छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्यी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूं; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।।
Chapter यशायाह 61
1. प्रभु यहोवा का आत्मा मुझ पर है; क्योंकि यहोवा ने सुसमाचार सुनाने के लिथे मेरा अभिषेक किया और मुझे इसलिथे भेजा है कि खेदित मन के लोगोंको शान्ति दूं; कि बंधुओं के लिथे स्वतंत्रता का और कैदियोंके लिथे छुटकारे का प्रचार करूं;
2. कि यहोवा के प्रसन्न रहने के वर्ष का और हमारे परमेश्वर के पलटा लेने के दिन का प्रचार करूं; कि सब विलाप करनेवालोंको शान्ति दूं
3. और सिय्योन के विलाप करनेवालोंके सिर पर की राख दूर करके सुन्दर पगड़ी बान्ध दूं, कि उनका विलाप दूर करके हर्ष का तेल लगाऊं और उनकी उदासी हटाकर यश का ओढ़ना ओढ़ाऊं; जिस से वे धर्म के बांजवृझ और यहोवा के लगाए हुए कहलाएं और जिस से उसकी महिमा प्रगट हो।
4. तब वे बहुत काल के उजड़े हुए स्यानोंको फिर बसाएंगे, पूर्वकाल से पके हुए खण्डहरोंमें वे फिर घर बनाएंगे; उजड़े हुए नगरोंको जो पीढ़ी पीढ़ी में उजड़े हुए होंवे फिर नथे सिक्के से बसाएंगे।।
5. परदेशी आ खड़े होंगे और तुम्हारी भेड़-बकरियोंको चराएंगे और विदेशी लोग तुम्हारे चरवाहे और दाख की बारी के माली होंगे;
6. पर तुम यहोवा के याजक कहलाओगे, वे तुम को हमरो परमेश्वर के सेवक कहेंगे; और तुम अन्यजातियोंकी धन-सम्पत्ति को खाओगे, उनके विभव की वस्तुएं पाकर तुम बड़ाई करोगे।
7. तुम्हारी नामधराई की सन्ती दूना भाग मिलेगा, अनादर की सन्ती तुम अपके भाग के कारण जयजयकार करोगे; तुम अपके देश में दूने भाग के अधिक्कारनेी होगे; और सदा आनन्दित बने रहोगे।।
8. क्योंकि, मैं यहोवा न्याय से प्रीति रखता हूं, मैं अन्याय और डकैती से घृणा करता हूं; इसलिथे मैं उनको उनके साय सदा की वाचा बान्धूंगा।
9. उनका वंश अन्यजातियोंमें और उनकी सन्तान देश देश के लोगोंके बीच प्रसिद्ध होगी; जितने उनको देखेंगे, पहिचान लेंगे कि यह वह वंश है जिसको परमेश्वर ने आशीष दी है।।
10. मैं यहोवा के कारण अति आनन्दित होऊंगा, मेरा प्राण परमेश्वर के कारण मगन रहेगा; क्योंकि उस ने मुझे उद्धार के वस्त्र पहिनाए, और धर्म की चद्दर ऐसे ओढ़ा दी है जैसे दूल्हा फूलोंकी माला से अपके आपको सजाता और दुल्हिन अपके गहनोंसे अपना सिंगार करती है।
11. क्योंकि जैसे भूमि अपक्की उपज को उगाती, और बारी में जो कुछ बोया जाता है उसको वह उपजाती है, वैसे ही प्रभु यहोवा सब जातियोंके साम्हने धामिर्कता और धन्यवाद को बढ़ाएगा।।
Chapter यशायाह 62
1. सिय्योन के निमित्त मैं चुप न रहूंगा, और यरूशलेम के निमित्त मैं चैन न लूंगा, जब तक कि उसकी धामिर्कता प्रकाश की नाईं और उसका उद्धार जलते हुए पक्कीते के समान दिखाई न दे।
2. जब अन्यजातियां तेरा धर्म और सब राजा तेरी महिमा देखेंगे; और तेरा एक नया नाम रखा जाएगा जो यहोवा के मुख से निकलेगा।
3. तू यहोवा के हाथ में एक शोभायमान मुकुट और अपके पकेश्वर की हथेली में राजमुकुट ठहरेगी।
4. तू फिर त्यागी हुई न कहलाएगी, और तेरी भूमि फिर उजड़ी हुई न कहलाएगी; परन्तु तू हेप्सीबा और तेरी भूमि ब्यूला कहलाएगी; क्योंकि यहोवा तुझ से प्रसन्न है, और तेरी भूमि सुहागन होगी।
5. क्योंकि जिस प्रकार जवान पुरूष एक कुमारी को ब्याह लाता है, वैसे ही तेरे पुत्र तुझे ब्याह लेंगे; और, जैसे दुल्हा अपक्की दुल्हिन के कारण हषिर्त होता है, वैसे ही तेरा परमेश्वर तेरे कारण हषिर्त होगा।।
6. हे यरूशलेम, मैं ने तेरी शहरपनाह पर पहरूए बैठाए हैं; वे दिन-रात कभी चुप न रहेंगे। हे यहोवा को स्मरण करनेवालो, चुप न रहो,
7. और, जब तक वह यरूशलेम को स्यिर करके उसकी प्रशंसा पृय्वी पर न फैला दे, तब तक उसे भी चैन न लेने दो।
8. यहोवा ने अपके दहिने हाथ की और अपक्की बलवन्त भुजा की शपय खाई है: निश्चय मैं भविष्य में तेरा अन्न अब फिर तेरे शत्रुओं को खाने के लिथे न दूंगा, और परदेशियोंके पुत्र तेरा नया दाखमधु जिसके लिथे तू ने परिश्र्म किया है, नहीं पीने पाएंगे;
9. केवल वे ही, जिन्होंने उसे खत्ते में रखा हो, उस से खाकर यहोवा की स्तुति करेंगे, और जिन्होंने दाखमधु भण्डारोंमें रखा हो, वे ही उसे मेरे पवित्रस्यान के आंगनोंमें पीने पाएंगे।।
10. जाओ, फाटकोंमें से निकल जाओ, प्रजा के लिथे मार्ग सुधारो; राजमार्ग सुधारकर ऊंचा करो, उस में के पत्यर बीन बीनकर फेंक दो, देश देश के लोगोंके लिथे फण्डा खड़ा करो।
11. देखो, यहोवा ने पृय्विी की छोर तक इस आज्ञा का प्रचार किया है: सिय्योन की बेटी से कहो, देख, तेरा उद्धारकर्ता आता है, देख, जो मजदूरी उसको देनी है वह उसके पास है और उसका काम उसके सामने है।
12. और लोग उनको पवित्र प्रजा और यहोवा के छुड़ाए हुए कहेंगे; और तेरा नाम ग्रहण की हुई अर्यात् न-त्यागी हुई नगरी पकेगा।।
Chapter यशायाह 63
1. यह कौन है जो एदोम देश के बोस्त्रा नगर से बैंजनी वस्त्र पहिने हुए चला आता है, जो अति बलवान और भड़कीला पहिरावा पहिने हुए फूमता चला आता है? यह मैं ही हूं, जो धर्म से बोलता और पूरा उद्धार करने की शक्ति रखता हूं।
2. तेरा पहिरावा क्योंलाल है? और क्या कारण है कि तेरे वस्त्र हौद में दाख रौंदनेवाले के समान हैं?
3. मैं ने तो अकेले ही हौद में दाखें रौंदी हैं, और देश के लोगोंमें से किसी ने मेरा साय नहीं दिया; हां, मैं ने अपके क्रोध में आकर उन्हें रौंदा और जलकर उन्हें लताड़ा; उनके लोहू के छींटे मेरे वस्त्रोंपर पके हैं, इस से मेरा सारा पहिरावा धब्बेदार हो गया है।
4. क्योंकि पलटा लेने का दिन मेरे मन में या, और मेरी छुड़ाई हुई प्रजा का वर्ष आ पहुंचा है।
5. मैं ने खोजा, पर कोई सहाथक न दिखाई पड़ा; मैं ने इस से अचम्भा भी किया कि कोई सम्भालनेवाला नहीं या; तब मैं ने अपके ही भुजबल से उद्धार किया, और मेरी जलजलाहट ही ने मुझे सम्हाला।
6. हां, मैं ने अपके क्रोध में आकर देश देश के लोगोंको लताड़ा, अपक्की जलजलाहट से मैं ने उन्हें मतवाला कर दिया, और उनके लोहू को भूमि पर बहा दिया।।
7. जितना उपकार यहोवा ने हम लोगोंका किया अर्यात् इस्राएल के घराने पर दया और अत्यन्त करूणा करके उस ने हम से जितनी भलाई, कि उस सब के अनुसार मैं यहोवा के करूणामय कामोंका वर्णन और उसका गुणानुवाद करूंगा।
8. क्योंकि उस ने कहा, निस्न्देह थे मेरी प्रजा के लोग हैं, ऐसे लड़के हैं जो धोखा नदेंगे; और वह उनका उद्धारकर्ता हो गया।
9. उनके सारे संकट में उस ने भी कष्ट उठाया, और उसके सम्मुख रहनेवाले दूत ने उनका उद्धार किया; प्रेम और कोमलता से उस ने आप की उनको छुड़ाया; उस ने उन्हें उठाया और प्राचीनकाल से सदा उन्हें लिए फिरा।
10. तौभी उन्होंने बलवा किया और उसके पवित्र आत्मा को खेदित किया; इस कारण वह पलटकर उनका शत्रु हो गया, और स्वयं उन से लड़ने लगा।
11. तब उसके लोगोंको उनके प्राचीन दिन अर्यात् मूसा के दिन स्मरण आए, वे कहने लगे कि जो अपक्की भेड़ोंको उनके चरवाहे समेत समुद्र में से निकाल लाया वह कहां है? जिस ने उनके बीच अपना पवित्र आत्मा डाला, वह कहां है?
12. जिस ने अपके प्रतापी भुजबल को मूसा के दहिने हाथ के साय कर दिया, जिस ने उनके साम्हने जल को दो भाग करके अपना सदा का नाम कर लिया,
13. जो उनको गहिरे समुद्र में से ले चला; जैसा घोड़े को जंगल में वैसे ही उनको भी ठोकर न लगी, वह कहां है?
14. जैसे घरैलू पशु तराई में उतर जाता है, वैसे ही यहोवा के आत्मा न उनको विश्रम दिया। इसी प्रकार से तू ने अपक्की प्रजा की अगुवाई की ताकि अपना नाम महिमायुक्त बनाए।।
15. स्वर्ग से, जो तेरा पवित्र और महिमापूर्ण वासस्यान है, दृष्टि कर। तेरी जलन और पराक्रम कहां रहे? तेरी दया और करूणा मुझ पर से हट गई हैं।
16. निश्चय तू हमारा पिता है, यद्यपि इब्राहीम हमें नहीं पहिचानता, और इस्राएल हमें ग्रहण नहीं करता; तौभी, हे यहोवा, तू हमारा पिता और हमारा छुड़ानेवाला है; प्राचीनकाल से यही तेरा नाम है।
17. हे यहोवा, तू क्योंहम को अपके मार्गोंसे भटका देता, और हमारे मन ऐसे कठोर करता है कि हम तेरा भय नहीं मानते? अपके दास, अपके निज भाग के गोत्रोंके निमित्त लौट आ।
18. तेरी पवित्र प्रजा तो योड़े ही काल तक मेरे पवित्रस्यान की अधिक्कारनेी रही; हमारे द्रोहियोंने उसे लताड़ दिया है।
19. हम लोग तो ऐसे हो गए हैं, मानो तू ने हम पर कभी प्रभुता नहीं की, और उनके समान जो कभी तेरे न कहलाए।।
Chapter यशायाह 64
1. भला हो कि तू आकाश को फाड़कर उतर आए और पहाड़ तेरे साम्हने कांप उठे।
2. जैसे आग फाड़-फंखाड़ को जला देती वा जल को उबालती है, उसी रीति से तू अपके शत्रुओं पर अपना नाम ऐसा प्रगट कर कि जाति जाति के लोग तेरे प्रताप से कांप उठें!
3. जब तू ने ऐसे भयानक काम किए जो हमारी आशा से भी बढ़कर थे, तब तू उतर आया, पहाड़ तेरे प्रताप से कांप उठे।
4. क्योंकि प्राचीनकाल ही से तुझे छोड़ कोई और ऐसा परमेश्वर न तो कभी देखा गया और न काल से उसकी चर्चा सुनी गई जो अपक्की बाट जोहनेवालोंके लिथे काम करे।
5. तू तो उन्हीं से मिलता है जो धर्म के काम हर्ष के साय करते, और तेरे मार्गोंपर चलते हुए तुझे स्मरण करते हैं। देख, तू क्रोधित हुआ या, क्योंकि हम ने पाप किया; हमारी यह दशा तो बहुत काल से है, क्या हमारा उद्धार हो सकता है?
6. हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चियड़ोंके समान हैं। हम सब के सब पत्ते की नाईं मुर्फा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामोंने हमें वायु की नाईं उड़ा दिया है।
7. कोई भी तुझ से सहाथता लेने के लिथे चौकसी करता है कि तुझ से लिपटा रहे; क्योंकि हमारे अधर्म के कामोंके कारण तू ने हम से अपना मुंह छिपा लिया है, और हमें हमारी बुराइयोंके वश में छोड़ दिया है।।
8. तौभी, हे यहोवा, तू हमार पिता है; देख, हम तो मिट्टी है, और तू हमारा कुम्हार है; हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं।
9. इसलिथे हे यहोवा, अत्यन्त क्रोधित न हो, और अनन्तकाल तक हमारे अधर्म को स्मरण न रख। विचार करके देख, हम तेरी बिनती करते हैं, हम सब तेरी प्रजा हैं।
10. देख, तेरे पवित्र नगर जंगल हो गए, सिय्योन सुनसान हो गया है, यरूशलेम उजड़ गया है।
11. हमारा पवित्र और शोभायमान मन्दिर, जिस में हमारे पूर्वज तेरी स्तुति करते थे, आग से जलाया गया, और हमारी मनभावनी वस्तुएं सब नष्ट हो गई हैं।
12. हे यहोवा, क्या इन बातोंके होते भी तू अपके को रोके रहेगा? क्या तू हम लोगोंको इस अत्यन्त दुर्दशा में रहने देगा?
Chapter यशायाह 65
1. जो मुझ को पूछते भी न थे वे मेरे खोजी हैं; जो मुझे ढूंढ़ते भी न थे उन्होंने मुझे पा लिया, और जो जाति मेरी नहीं कहलाई यी, उस से भी मैं कहता हूं, देख, मैं उपस्यित हूं।
2. मैं एक हठीली जाति के लोगोंकी ओर दिन भर हाथ फैलाए रहा, जो अपक्की युक्तियोंके अनुसार बुरे मार्गोंमें चलते हैं।
3. ऐसे लो, जो मेरे साम्हने ही बारियोंमें बलि चढ़ा चढ़ाकर और ईंटोंपर धूप जला जलाकर, मुझे लगातार क्रोध दिलाते हैं।
4. थे कब्र के बीच बैठते और छिपे हुए स्यानोंमें रात बिताते; जो सूअर का मांस खाते, और घृणित वस्तुओं का रस अपके बर्तनोंमें रखते;
5. जो कहते हैं, हट जा, मेरे निकट मत आ, क्योंकि मैं तुझ से पवित्र हूं। थे मेरी नाक में धूंएं व उस आग के समान हैं जो दिन भर जलती रहती है।
6. देखो, यह बात मेरे साम्हने लिखी हुई है: मैं चुप न रहूंगा, मैं निश्चय बदला दूंगा वरन तुम्हारे और तुम्हारे पुरखाओं के भी अधर्म के कामोंका बदला तुम्हारी गोद में भर दूंगा।
7. क्योंकि उन्होंने पहाड़ोंपर धूप जलाया और पहाडिय़ोंपर मेरी निन्दा की है, इसलिथे मैं यहोवा कहता हूं, कि, उनके पिछले कामोंके बदले को मैं इनकी गोद में तौलकर दूंगा।।
8. यहोवा योंकहता है, जिस भांति दाख के किसी गुच्छे में जब नया दाखमधु भर आता है, तब लोग कहते हैं, उसे नाश मत कर, क्योंकि उस में आशीष है; उसी भांति मैं अपके दासोंके निमित्त ऐसा करूंगा कि सभोंको नाश न करूंगा।
9. मैं याकूब में से एक वंश, और यहूदा में से अपके पर्वतोंका एक वारिस उत्पन्न करूंगा; मेरे चुने हुए उसके वारिस होंगे, और मेरे दास वहां निवास करेंगे।
10. मेरी प्रजा जो मुझे ढूंढ़ती है, उसकी भेंड़-बकरियां तो शारोन में चरेंगी, और उसके गाय-बैल आकोर नाम तराई में विश्रम करेंगे।
11. परन्तु तुम जो यहोवा को त्याग देते और मेरे पवित्र पर्वत को भूल जाते हो, जो भाग्य देवता के लिथे मेंज पर भोजन की वस्तुएं सजाते और भावी देवी के लिथे मसाला मिला हुआ दाखमधु भर देते हो;
12. मैं तुम्हें गिन गिनकर तलवार का कौर बनाऊंगा, और तुम सब घात होने के लिथे फुकोगे; क्योंकि, जब मैं ने तुम्हें बुलाया तुम ने उत्तर न दिया, जब मैं बोला, तब तुम ने मेरी न सुनी; वरन जो मुझे बुरा लगता है वही तुम ने नित किया, और जिस से मैं अप्रसन्न होता हूं, उसी को तुम ने अपनाया।।
13. इस कारण प्रभु यहोवा योंकहता है, देखो, मेरे दास तो खाएंगे, पर तुम भूखे रहोगे; मेरे दास पीएंगे, पर तुम प्यासे रहोगे; मेरे दास आनन्द करेंगे, पर तुम लज्जित होगे;
14. देखो, मेरे दास हर्ष के मारे जयजयकार करेंगे, परन्तु तुम शोक से चिल्लाओगे और खेद के मारे हाथ हाथ, करोगे।
15. मेरे चुने हुए लोग तुम्हारी उपमा दे देकर शाप देंगे, और प्रभु यहोवा तुझ को नाश करेगा; परन्तु अपके दासोंका दूसरा नाम रखेगा।
16. तब सारे देश में जो कोई अपके को धन्य कहेगा वह सच्चे परमेश्वर का नाम लेकर अपके को धन्य कहेगा, और जो कोई देश में शपय खाए वह सच्चे परमेश्वर के नाम से शपय खाएगा; क्योंकि पिछला कष्ट दूर हो गया और वह मेरी आंखोंसे छिप गया है।।
17. क्योंकि देखो, मैं नया आकाश और नई पृय्वी उत्पन्न करने पर हूं, और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।
18. इसलिथे जो मैं उत्पन्न करने पर हूं, उसके कारण तुम हषिर्त हो और सदा सर्वदा मगन रहो; क्योंकि देखो, मैं यरूशलेम को मगन और उसकी प्रजा को आनन्दित बनाऊंगा।
19. मैं आप यरूशलेम के कारण मगन, और अपक्की प्रजा के हेतु हषिर्त हूंगा; उस में फिर रोने वा चिल्लाने का शब्द न सुनाई पकेगा।
20. उस में फिर न तो योड़े दिन का बच्चा, और न ऐसा बूढ़ा जाता रहेगा जिस ने अपक्की आयु पूरी न की हो; क्योंकि जो लड़कपन में मरनेवाला है वह सौ वर्ष का होकर मरेगा, परन्तु पापी सौ वर्ष का होकर श्रपित ठहरेगा।
21. वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियां लगाकर उनका फल खाएंगे।
22. ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएं और दूसरा बसे; वा वे लगाएं, और दूसरा खाए; क्योंकि मेरी प्रजा की आयु वृझोंकी सी होगी, और मेरे चुने हुए अपके कामोंका पूरा लाभ उठाएंगे।
23. उनका परिश्र्म व्यर्य न होगा, न उनके बालक घबराहट के लिथे उत्पन्न होंगे; क्योंकि वे यहोवा के धन्य लोगोंका वंश ठहरेंगे, और उनके बालबच्चे उन से अलग न होंगे।
24. उनके पुकारने से पहिले ही मैं उनको उत्तर दूंगा, और उनके मांगते ही मैं उनकी सुन लूंगा।
25. भेडिय़ा और मेम्ना एक संग चरा करेंगे, और सिंह बैल की नाई भूसा खाएगा; और सर्प का आहार मिट्टी ही रहेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई किसी को दु:ख देगा और न कोई किसी की हानि करेगा, यहोवा का यही वचन है।।
Chapter यशायाह 66
1. यहोवा योंकहता है, आकाश मेरा सिंहासन और पृय्वी मेरे चरणोंकी चौकी है; तुम मेरे लिथे कैसा भवन बनाओगे, और मेरे विश्रम का कौन सा स्यान होगा?
2. यहोवा की यह वाणी है, थे सब वस्तुएं मेरे ही हाथ की बनाई हुई हैं, सो थे सब मेरी ही हैं। परन्तु मैं उसी की ओर दृष्टि करूंगा जो दी और खेदित मन का हो, और मेरा वचन सुनकर यरयराता हो।।
3. बैल का बलि करनेवाला मनुष्य के मार डालनेवाले के समान है; जो भेड़ के चढ़ानेवाला है वह उसके समान है जो कुत्ते का गला काटता है; जो अन्नबलि चढ़ाता है वह मानो सूअर का लोहू चढ़ानेवाले के समान है; और, जो लोबान जलाता है, वह उसके समान है जो मूरत को धन्य कहता है। इन सभोंने अपना अपना मार्ग चुन लिया है, और घिनौनी वस्तुओं से उनके मन प्रसन्न हाते हैं।
4. इसलिथे मैं भी उनके लिथे दु:ख की बातें निकालूंगा, और जिन बातोंसे वे डरते हैं उन्हीं को उन पर लाऊंगा; क्योंकि जब मैं ने उन्हें बुलाया, तब कोई न बोला, और जब मैं ने उन से बातें की, तब उन्होंने मेरी न सुनी; परन्तु जो मेरी दृष्टि में बुरा या वही वे करते रहे, और जिस से मैं अप्रसन्न होता या उसी को उन्होंने अपनाया।। तुम जो यहोवा का वचन सुनकर यरयराते हो यहोवा का यह वचन सुनो:
5. तुम्हारे भाई जो तुम से बैर रखते और मेरे नाम के निमित्त तुम को अलग कर देते हैं उन्होंने कहा है, यहोवा की महिमा तो बढ़े, जिस से हम तुम्हारा आनन्द देखते पाएं; परन्तु उन्हीं को लज्जित होना पकेगा।।
6. सुनो, नगर से कोलाहल की धूम, मन्दिर से एक शब्द, सुनाई देता है! वह यहोवा का शब्द है, वह अपके शत्रुओं को उनकी करनी का फल दे रहा है!
7. उसकी पीड़ाएं उठाने से पहले ही उस ने जन्मा दिया; उसको पीड़ाएं होने से पहिले ही उस से बेटा जन्मा।
8. ऐसी बात किस ने कभी सुनी? किस ने कभी ऐसी बातें देखी? क्या देश एक ही दिन में उत्पन्न हो सकता है? क्या एक जाति झण मात्र में ही उत्पन्न हो सकती है? क्योंकि सिय्योन की पीड़ाएं उठी ही यीं कि उस से सन्तान उत्पन्न हो गए।
9. यहोवा कहता है, क्या मैं उसे जन्माने के समय तक पहुंचाकर न जन्माऊं? तेरा परमेश्वर कहता है, मैं जो गर्भ देता हूं क्या मैं कोख बन्द करूं?
10. हे यरूशलेम से सब प्रेम रखनेवालो, उसके साय आनन्द करो और उसके कारण मगन हो; हे उसके विषय सब विलाप करनेवालो उसके साय हषिर्त हो!
11. जिस से तुम उसके शान्तिरूपी स्तन से दूध पी पीकर तृप्त हो; और दूध पीकर उसकी महिमा की बहुतायत से अत्यन्त सुखी हो।।
12. क्योंकि यहोवा योंकहता है, देखो, मैं उसकी ओर शान्ति को नदी की नाईं, और अन्यजातियोंके धन को नदी की बाढ़ के समान बहा दूंगा; और तुम उस से पीओगे, तुम उसकी गोद में उठाए जाओगे और उसके घुटनोंपर कुदाए जाओगे।
13. जिस प्रकार माता अपके पुत्र को शान्ति देती है, वैस ही मैं भी तुम्हें शान्ति दुंगा; तुम को यरूशलेम ही में शान्ति मिलेगी।
14. तुम यह देखोगे और प्रफुल्लित होगे; तुम्हारी हड्डियां घास की नाईं हरी भरी होंगी; और यहोवा का हाथ उसके दासोंके लिथे प्रगट होगा, और, उसके शत्रुओं के ऊपर उसका क्रोध भड़केगा।।
15. क्योंकि देखो, यहोवा आग के साय आएगा, और उसके रय बवण्डर के समान होंगे, जिस से वह अपके क्रोध को जलजलाहट के साय और अपक्की चितौनी को भस्म करनेवाली आग की लपट में प्रगट करे।
16. क्योंकि यहोवा सब प्राणियोंका न्याय आग से और अपक्की तलवार से करेगा; और यहोवा के मारे हुए बहुत होंगे।।
17. जो लोग अपके को इसलिथे पवित्र और शुद्ध करते हैं कि बारियोंमें जाएं और किसी के पीछे खड़े होकर सूअर वा चूहे का मांस और और घृणित वस्तुएं खाते हैं, वे एक ही संग नाश हो जाएंगे, यहोवा की यही वाणी है।।
18. क्योंकि मैं उनके काम और उनकी कल्पनाएं, दोनोंअच्छी रीति से जानता हूं। और वह समय आता है जब मैं सारी जातियोंऔर भिन्न भिन्न भाषा बोलनेवालोंको इकट्ठा करूंगा; और वे आकर मेरी महिमा देखेंगे।
19. और मैं उन से एक चिन्ह प्रगट करूंगा; और उनके बचे हुओं को मैं उन अन्यजातियोंके पास भेजूंगा जिन्होंने न तो मेरा समाचार सुना है और न मेरी महिमा देखी है, अर्यात् तर्शीशियोंऔर धनुर्धारी पूलियोंऔर लूदियोंके पास, और तबलियोंऔर यूनानियोंऔर दूर द्वीपवासियोंके पास भी भेज दूंगा और वे अन्यजातियोंमें मेरी महिमा का वर्णन करेंगे।
20. और जैसे इस्राएली लोग अन्नबलि को शुद्ध पात्र में धरकर यहोवा के भवन में ले आते हैं, वैसे ही वे तुम्हारे सब भाइयोंको घोड़ों, रयों, पालयथें, खच्चरोंऔर साड़नियोंपर चढ़ा चढ़ाकर मेरे पवित्र पर्वत यरूशलेम पर यहोवा की भेंट के लिथे ले आएंगे, यहोवा का यही वचन है।
21. और उन में से मैं कितने लोगोंको याजक और लेवीय पद के लिथे भी चुन लूंगा।।
22. क्योंकि जिस प्रकार नया आकाश और नई पृय्वी, जो मैं बनाने पर हूं, मेरे सम्मुख बनी रहेगी, उसी प्रकार तुम्हारा वंश और तुम्हारा नाम भी बना रहेगा; यहोवा की यही वाणी है।
23. फिर ऐसा होगा कि एक नथे चांद से दूसरे नथे चांद के दिन तक और एक विश्रम दिन से दूसरे विश्रम दिन तक समस्त प्राणी मेरे साम्हने दण्डवत् करने को आया करेंगे; यहोवा का यही वचन है।।
24. तब वे निकलकर उन लोगोंकी लोयोंपर जिन्होंने मुझ से बलवा किया दृष्टि डालेंगे; क्योंकि उन में पके हुए कीड़े कभी न मरेंगे, उनकी आस कभी न बुफेगी, और सारे मनुष्योंको उन से अत्यन्त घृणा होगी।।
Post a Comment